आप ने हाथ धोए क्या?

कीटाणु भरे हाथ रोजाना तकरीबन 1,000 भारतीय बच्चों की जान लेते हैं. गंदे हाथ कई जानलेवा बीमारियों की वजह बनते हैं. खाने से पहले, खाने के बाद और शौच के बाद हाथ जरूर धोएं. न सिर्फ धोएं, बल्कि अच्छे से साफ  रखने का जतन भी करें.

गंदे तौलिए से हाथ न पोंछें

हाथ अच्छी तरह धो कर उन्हें पहने हुए कपड़ों की छोर से, जेब में रखे रूमाल से या आंचल से नहीं पोंछना चाहिए. इन में कीटाणु मौजूद होते हैं, जो गीले हाथों में चिपक जाते हैं.

डाक्टरों की सलाह है कि साफसुथरी जगह पर सुखाए गए तौलिए का ही इस्तेमाल करें. तौलिए को उबलते पानी में धोएं, ताकि वह पूरी तरह कीटाणुमुक्त हो जाए.

खाने के पहले हथेलियों के ऊपर तक हाथ धोएं और हवा में सुखाएं. इस तरह तौलिए में छिपे कीटाणुओं से बचा जा सकता है. खांसतेछींकते वक्त हाथों को आगे करने के बजाय रूमाल को आगे करें.

पानी से नहीं जाते कीटाणु

गांधी मैडिकल कालेज के मैडिसिन महकमे के मुताबिक, दिनभर में हम कई चीजों को छूते हैं. हाथों की लकीरों में ये कीटाणु छिप जाते हैं. अगर केवल सामान्य पानी से हाथ धोए जाएं, तो ये कीटाणु नहीं निकलते हैं. इसलिए साबुन से हाथ धोना जरूरी है.

बड़ों की तुलना में बच्चों को खाने के पहले हाथ धोना ज्यादा जरूरी है, क्योंकि बच्चे धूल में खेलते रहते हैं, इसलिए उन के हाथों में कीटाणु पाए जाते हैं.

किसी संक्रामक बीमारी से पीडि़त इनसान के हाथ मिलाने के बाद कोई भी चीज न खाएं.

रोज पूछें, हाथ धोए क्या

डायरिया की कई वजह हैं, जिन में गंदे हाथ भी एक खास वजह हैं. हमें तो आदत डाल लेनी चाहिए और बच्चों को ही नहीं, बल्कि बड़ों से भी खाने से पहले पूछना चाहिए कि हाथ धोए क्या?

ऊपर की ओर सुखाएं

महज हाथ धोना काफी नहीं है, बल्कि सही तरीके से हाथ धोने की जरूरत है. अमूमन लोग साबुन से हाथ धो कर हाथों में बचे पानी को नीचे की ओर बहने देते हैं. इस से हथेलियों के कीटाणु उंगलियों की पोर में आ जाते हैं, इसलिए हाथ धो कर हाथों को ऊपर रखें.

होने वाली बीमारियां

हाथ न धोने के चलते फ्लू, स्वाइन फूल, सर्दीजुकाम, उलटीदस्त, पेट की बीमारियां, गले में संक्रमण और सांस की नली में संक्रमण हो सकता है, इसलिए हर तरह की संक्रामक बीमारियों से बचें.

कोरोना के समय ऐसे करें सेफ सेक्स

अगर कोरोना की महामारी के दौरान आपने और आपके साथी ने खुद को एकांतवास में ले लिया है तो ऐसे में आपकी सेक्स लाइफ में रोमांच लाने के कई तरीके हो सकते हैं. कोरोना वायरस के खौफ के साए में हम चेहरे पर तो हाथ का स्पर्श नहीं ले जा रहे हैं लेकिन बदन के अन्य हिस्सों को तो छुआ जा सकता है.

सेक्स सेफ है

यह बीमारी सेक्स से संक्रमित नहीं होती और न ही ऐसा कोई मामला सामने आया है कि किन्ही युगलों के बीच सेक्स के कारण इसका संक्रमण हो गया हो. यह मूल रूप से सांसों के माध्यम से गिरी बारीक बूंदों और किसी संक्रमित सतह को छूने से हो रही है.

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ओरल सेक्स से बचें

इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि कोविड-19 का संक्रमण योनी या गुदा मैथुन से हुआ हो. सेक्स के दौरान चूमना बहुत आम बात है लिहाजा इसका वायरस मुंह की लार के जरिए फैल सकता है. अगर आपका पार्टनर विदेष दौरे से लौटा/लौटी है तो उस स्थिति में चुंबन लेने से बचें! यात्रा करने के दो हफ्ते बाद ऐसा करना सुरक्षित है. कोविड-19 के ओरल-फिकल ट्रांसमिशन के भी सबूत मिले हैं, लिहाज़ा, ओरल सैक्स से बचना चाहिए.

यदि एक भी पार्टनर कोविड-19 का संदिग्ध रोगी है तो बेहतर यही होगा कि आप एक दूसरे से दूर रहे हैं और जांच के नतीजे मिलने तक अलग-अलग कमरों में ही सोएं.

स्ट्रैस रिलीवर

लेकिन अगर आपमें से किसी में भी किसी किस्म का लक्षण दिखायी नहीं दिया है और किसी संक्रमित व्यक्ति या सतह आदि के संपर्क में भी नहीं आए हैं तथा पूरे समय घर पर ही रहे हैं तो सेक्स से अच्छा और कोई तरीका आनंद लेने का नहीं हो सकता. यह तनावपूर्ण समय में बेचैनी दूर करने का सबसे बढ़िया उपाय है.

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फिलहाल यही सलाह है कि जितना हो सके घर पर रहें और रोज़मर्रा की जरूरतों का सामान खरीदने के वक़्त ही दूसरे लोगों के संपर्क में आएं. इस दौरान भी अन्य लोगों से कम से कम दो मीटर की दूरी बनाएं रखें. हालाकि इस स्थिति में कैजुअल सेक्स करना चुनौतीपूर्ण होगा!

हस्तमैथुन

किसी भी किस्म का अंतरर्वैयक्तिक संबंध तभी कायम करें जब ऐसा करना एकदम जरूरी हो. लिहाज़ा, आगामी कुछ हफ्तों में यौन संसर्ग कुछ कम हो सकता है. लेकिन यौन सुख प्राप्त करने के और भी कई तरीके हैं. जो मौजूदा हालात में उपयोगी साबित हो सकते हैं. इनमें सेक्सटिंग, वीडियो कौल, कामोत्तेजक साहित्य पढ़ना और हस्तमैथुन शामिल हैं. याद रखिये, आप अपने सबसे सुरक्षित सेक्स पार्टनर हैं. ऐसे में हस्तमैथुन बढ़िया विकल्प है और यह आपको कोविड-19 से बचाए रखेगा. ऐसे में भी हाथ धोना मत भूलिये और यदि आप सेक्स टौयज का इस्तेमाल करते हैं तो उन्हें भी सेक्स से पहले और बाद में 20 सेकंड अवश्य धो लें.

डा. अनूप धीर, डायरेक्टर अल्फा वन एंड्रोलॉजी ,फेलो औफ यूरोपीयन काउंसिल औफ सेक्सुअल मेडिसिन से बातचीत पर आधारित

हकीकत: महामारी पर भारी अंधविश्वास की दुकानदारी

दूसरी लहर में कोरोना कंट्रोल से बाहर होता दिखा. शहर के अस्पतालों में बिस्तर और औक्सीजन की कमी थी. मरीज दरदर भटक रहे थे. गांवों में तो इलाज की सुविधा ही नहीं दिखी. कहींकहीं पर तो पेड़ के नीचे कोरोना मरीजों का इलाज किया गया. नीमहकीम ग्लूकोज चढ़ा कर मरीजों का इलाज कर रहे थे.
राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, कोटा, उदयपुर से सटे जिलों में नए मरीजों में रिकौर्ड बढ़ोतरी हुई.

डाक्टरी महकमे के मुताबिक, तकरीबन 45 फीसदी तक नए मरीज गांवदेहात के इलाकों से आए. बाड़मेर, चूरू, धौलपुर, राजसमंद, प्रतापगढ़ जैसे जिलों में भी रोज के औसतन 600 केस आए, जबकि यहां पर दूरदराज के इलाकों में तो सैंपलिंग ही नहीं हो रही थी.

लोग भी कोरोना के नाम पर इतने डरे हुए दिखे कि खुद जांच ही नहीं कराई. वजह, यहां आईसीयू, बिस्तर और रेमडेसिविर दवा तो दूर मरीजों के इलाज के लिए कोविड सैंटर भी नहीं थे. इलाज के लिए लोगों को 100 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालयों तक जाना पड़ा.

जिला मुख्यालय के अस्पतालों में भी जगह नहीं बची थी. तहसील और उपखंड मुख्यालय के अस्पतालों में भी बिस्तर खाली नहीं दिखे. ऐसे में नीमहकीम पनप आए, जो घरों के बाहर नीम के पेड़ों के नीचे बिस्तर बिछा कर लोगों का इलाज कर रहे थे.

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पाली जिले के जैतारण इलाके में इसी तरह का मामला देखने को मिला, जहां पर कोरोना के संदिग्ध मरीजों का ग्लूकोज चढ़ा कर इलाज हो रहा था. बांगड़ अस्पताल में 280 बिस्तर बनाए गए. उन्हीं मरीजों को भरती किया जा रहा था, जिन का औक्सीजन सैचुरेशन 85 से नीचे था.

भरतपुर के बयाना इलाके में मरीजों को भरती करने की कोई सुविधा नहीं थी. सीटी स्कैन भी 10 गुना दाम पर हो रहा था. लोग जांच कराने के बजाय लक्षणों के आधार पर दवा ले रहे थे. वैर सीएचसी से 2 किलोमीटर दूर सटे 5,000 आबादी वाले नगला गोठरा इलाके में 70 फीसदी लोगों को खांसीजुकाम और बुखार था. मैडिकल टीम आई, पर किसी ने जांच नहीं कराई.

भोपुर, सहजनपुर, गाजीपुर समेत कई गांव थे, जहां हर घर में बुखार से पीडि़त लोग थे. सहजनपुर के शेर सिंह ने बताया कि एसडीएम ने मैडिकल टीम भेजी थी, पर लोग टैस्ट कराने को तैयार नहीं हुए. वे खुद ही दवा ले रहे थे.

जयपुर के मनोहरपुर में संक्रमितों के इलाज का माकूल इंतजाम नहीं दिखा.  50 किलोमीटर दूर जयपुर और  60 किलोमीटर दूर कोटपुतली में कोविड सैंटर बने थे. किशनगढ़रेनवाल में खारड़ा इलाके के 35 साला नौजवान को पहले सर्दीजुकाम हुआ, बाद में उस की मौत  हो गई.

बाड़मेर के चौहटन विधानसभा क्षेत्र में चौहटन, सेवा, धनाऊ व बाखासर में सीएचसी और पूरे इलाके में 14 से ज्यादा पीएचसी हैं. इन में सैंपलिंग तो हो रही थी, लेकिन कोविड सैंटर ही नहीं बने थे. मरीजों को बाड़मेर रैफर किया जा रहा था. गुड़ामालानी में कोविड सैंटर नहीं था. मरीजों को 100 किलोमीटर दूर बाड़मेर जाना पड़ रहा था.

औनलाइन महामृत्युंजय जाप

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के गृह जिले जोधपुर के 5 गांवों भावी, बिजासनी, जेतिवास, पिचीयाक और जेलवा में कोरोना की दूसरी लहर में महज 8 दिन में 36 मौतें हो चुकी थीं, वहीं पाली सांसद पीपी चौधरी के पैतृक गांव भावी में दिनभर हवनपूजन हो रहा था. औनलाइन महामृत्युंजय जाप का सीधा प्रसारण घरों में दिखाया जा रहा था.

कोरोना की दूसरी लहर में घरघर में मातम दिखा. श्मशान में एक चिता ठंडी नहीं होती, उस से पहले ही दूसरी अर्थी आ जाती थी.

यह दर्दनाक मंजर अकेले भावी गांव का नहीं, बल्कि जोधपुर जिले के  झाक, पीपाड़, बिलाड़ा, रणसीगांव, खेजड़ला, चिरडाणी, औसियां, भोपालगढ़ और दूसरे कई गांवों का भी था.

वैक्सीन पर नहीं भरोसा

पाली और बांसवाड़ा जिले के आदिवासी गांवों में वैक्सीन को ले कर अफवाहें फैल रही थीं. अफवाहों के चलते ही कम उम्र के लोग वैक्सीन लगवाने से बच रहे थे या उन्हें घर वाले ही वैक्सीन नहीं लगवाने दे रहे थे.

गोडवाड़ क्षेत्र के आदिवासी इलाके की 13 ग्राम पंचायतों में महज 15 लोगों ने ही वैक्सीन लगवाई थी. वागड़ के आदिवासी क्षेत्र में महज 54 फीसदी वैक्सीनेशन हुआ था. बाली के आदिवासियों ने टीके लगवाने से किनारा कर लिया था.

इस इलाके में यह अफवाह घरघर फैली थी कि वैक्सीन लगवाने से बच्चे पैदा करने की ताकत खत्म हो जाएगी. एक महीने में मौत भी हो सकती है. यही वजह थी कि डाक्टरी महकमे की ओर से बारबार वैक्सीनेशन कैंप लगाने के बाद भी टीका लगवाने कोई नहीं आ रहा था.

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सब से बड़ी बात यह दिखी कि यह अफवाह स्वयंभू आदिवासी नेताओं ने अलगअलग जगह पर बड़ी सभाओं के जरीए सरेआम फैलाई थी. एक मामले में तो पुलिस ने सभासदों के खिलाफ भीड़ जुटाने का मुकदमा तो दर्ज किया, लेकिन अफवाह फैलाने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं की.

चौंकाने वाला सच तो यह रहा कि आदिवासी क्षेत्र की 13 ग्राम पंचायतों  में टीकाकरण कराने वाले लोगों की संख्या एक दहाई तक ही रही, जिन में सरकारी कार्मिक या फ्रंटलाइन वर्कर्स ही  शामिल थे.

बाली पंचायत समिति की प्रधान पानरी बाई 58 साल की हैं. वे सिर्फ साक्षर हैं. अपने घर में जब उन्होंने कोरोना से तड़पते हुए दोहिते को देखा, तो सब से पहले डाक्टर ने उन के घर पहुंच कर औक्सीमीटर से औक्सीजन लैवल नापा. लैवल 70 तक आने के बाद दोहिते की सांसें उखड़ गईं.

इस के बाद पानरी बाई ने अपने पति और पूर्व प्रधान सामताराम गरासिया के साथ मिल कर यह तय किया कि गांव में अब ऐसी मौतों को रोकने की कोशिश की जाएगी. उन्होंने कोरोना से निबटने के लिए औक्सीमीटर मंगवाया.

टैलीविजन पर प्रोनिंग यानी औक्सीजन बढ़ाने का तरीका सीखा और दिन में 3 बार अपने घर में ही बने बगीचे में परिवार समेत गांव के लोगों को प्रोनिंग सिखाई.

नामर्दगी की वैक्सीन

बांसवाड़ा के कुशलगढ़ ब्लौक में एक और नया संकट खड़ा होता दिखा, जहां से वागड़ में कोरोना की ऐंट्री हुई थी. यहां पहले कोरोना का कहर था और बाद में वैक्सीनेशन को ले कर चल रही तमाम अफवाहों से डाक्टरी महकमा परेशान होता दिखा.

एक औरत ने बताया कि यहां ऐसी बात उड़ रही है कि पैंटशर्ट वालों का टीका अलग और गांवों में टीका अलग लग रहा है. यह टीका अगर जवान को लगा, तो बच्चे पैदा नहीं होंगे और बुजुर्गों को लगा, तो वे जल्दी मर जाएंगे.

कुशलगढ़ कसबे में हालात ज्यादा खतरनाक दिखे. वहां 2,776 लोग संक्रमित हो चुके थे, जबकि 36 लोगों की मौत हो चुकी थी. पहली लहर में 395 संक्रमण के मामले सामने आए थे, अब अफवाहों ने हालात को और बिगाड़ दिया था. कुशलगढ़ ब्लौक में महज  54 फीसदी ही वैक्सीनेशन हुआ.

सबलपुरा में वैक्सीनेशन के लिए गई टीम को गांव वालों ने भगा दिया. कुशलगढ़ के बीसीएमओ डाक्टर राजेंद्र उज्जैनिया ने माना कि यहां अंधविश्वास बहुत है, इसलिए टीकाकरण कम है.

पुरखों की पूजा

भंवरदा पंचायत के एक गांव में कई लोग एकसाथ पूजापाठ करते हुए देखे गए. जब इन से बातचीत की गई, तो बुजुर्ग सरदार सरपोटा ने बताया कि गांवगांव में कोरोना का डर है. दूसरे इलाकों की तरह हमारे गांव में यह आपदा नहीं आए, इसलिए पुरखों की पूजाअर्चना कर परिवार की हिफाजत की कामना कर रहे हैं.

गांव के हेमला सरपोटा बताते हैं कि कोरोना में सावधानी तो रख रहे हैं, लेकिन अब ऊपर वाला ही बचा सकता है.

राजस्थान के गांवदेहात के इलाकों में कोरोना को ले कर जागरूकता सही तरीके से नहीं पहुंच पा रही थी. यही वजह थी कि यहां के लोगों को पता ही नहीं था कि कोरोना कितना खतरनाक है. लक्षण दिखने पर लोग इलाज कराने भोपों के पास चले गए. खुद जयपुर जिले के गांवों में मैडिकल सेवाएं वैंटिलेटर पर थीं. सिस्टम खुद बीमार नजर आ रहा था.

क्वारंटीन सैंटर या जेल

कोरोना की दूसरी लहर में प्रतापगढ़ जिले के धरियावद उपखंड में ग्राम पंचायत और गांवों के साथ ढाणियों के भी हाल बुरे दिखे. यहां पर तकरीबन हर घर में खांसीबुखार के मरीज मौजूद थे, लेकिन इस से भी बुरा यह था कि गांव वालों को यह नहीं पता था कि कोरोना क्या है और यह कितना खतरनाक है.

यहां के सीधेसादे लोग तो बीमार होने पर यह कहते हैं कि उन्हें काली चढ़ी है या फिर माता का प्रकोप आया है और देवरे पामणे (देवीदेवता नाराज हो कर शरीर में मेहमान) हो गए हैं. इलाज के लिए डाक्टरों के पास नहीं, बल्कि भोपा और  झाड़फूंक वालों के पास चले  जाते हैं.

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देवरे (मंदिर) पर भोपे कोरोना के इलाज का दावा करते दिखे. यहां की राख और भभूति कोरोना की दवा बन गई. वहीं डाक्टर और हैल्थ वर्कर्स के नाम से तो यहां के लोगों को डर लगता है. कहते हैं कि अगर डाक्टर के पास गए, तो वे जेल यानी क्वारंटीन सैंटर भेज देंगे.

इतना ही नहीं, इलाके में कुछ कारोबारियों की अस्पताल में कोरोना से इलाज के दौरान मौत हो गई, तो यहां के लोगों को लगने लगा कि अगर जांच में कोरोना निकला और अस्पताल में भरती हुए, तो उन की मौत तय है.

वैसे, ज्यादातर गांव वाले अपनेअपने घरों को छोड़ कर खेतों में परिवारों से अलग रहने लगे. हालांकि, एक अच्छी बात यह हो रही थी कि लक्षण दिखने पर यहां लोग 7 से 8 दिन तक खुद को क्वारंटीन रखते थे. ऐसे में संक्रमण आगे नहीं फैल रहा था. तकरीबन हर गांव  में इस तरह सैल्फ क्वारंटीन होने का चलन दिखा.

धरियावद में तकरीबन 30 से ज्यादा ऐसे गांव थे, जहां कोरोना जैसे लक्षण लोगों में देखे जा सकते थे. हैरत की बात यह थी कि यहां पर पारेल, नलवा, वलीसीमा के कुछ गांव को छोड़ कर हैल्थ डिपार्टमैंट की ओर से कोरोना के सैंपल ही नहीं लिए गए.

वलीसीमा के सरपंच विष्णु मीणा और पूर्व सरपंच पूरणलाल मीणा बताते हैं कि तकरीबन 3 महीने पहले आखिरी बार 35 लोगों के सैंपल लिए गए थे, जबकि एक महीने में 10 लोगों की मौत हो चुकी थी.

भरम से बड़ा कोरोना

सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम सिंह  झाला ने बताया कि गांव के लोगों की यह सोच है कि बीमार होने पर अगर डाक्टर के पास गए तो सीधे क्वारंटीन सैंटर या फिर अस्पताल भेज दिए जाएंगे. वहां पर सिर्फ मौत मिलती है, क्योंकि जो भी अस्पताल गया, वह जिंदा नहीं लौटा.

टीचर गौतमलाल मीणा बताते हैं कि कुछ गांव वालों को यह गलतफहमी है कि कोरोना का टीका लगाने के बाद भी कोरोना होता है. गांव के कुछ फ्रंटलाइन वर्कर को जो टीके लगाए, वे अच्छे वाले थे. हमें बुरे वाले लगाएंगे.

हर 15 से 20 घरों के बीच एक देवरा है, लेकिन 10,000 की आबादी के बीच बमुश्किल एक अस्पताल, एक या  दो डाक्टर मिल पाते हैं. खांसीबुखार होने पर डाक्टर कोरोना जांच की सलाह  देते हैं. यहीं से गांव वाले डर जाते हैं  और मजबूरी में भोपा और  झाड़फूंक वालों के पास चले जाते हैं. इस चक्कर में कई लोगों की जानें भी चली गईं.

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कोरोना का भूत

दूसरी लहर में उदयपुर जिले में वल्लभनगर उपखंड के गांवों में कोरोना पूरी तरह पैर पसार चुका था. हर गांव में तीनचौथाई आबादी में खांसीबुखार के मरीज दिखे. अगर कोरोना के 100 सैंपल करवाए जाते, तो इन में से 80 पौजिटिव मिल जाते, लेकिन हैल्थ डिपार्टमैंट और प्रशासन के रिकौर्ड में सच से बिलकुल उलट तसवीर दिखी, क्योंकि सैंपल लेने का काम केवल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तक ही सिमट कर रह गया था.

यहां के हर गांव में देवरे और देवीदेवताओं के स्थान पर लोग कोरोना को भूत सम झ कर  झाड़फूंक के लिए पहुंच गए थे. इन देवरों पर अकसर शनिवार और रविवार को छोटेबड़े मेले लग ही जाते थे.

यहां दिनभर में हर देवरे पर तकरीबन 100 से 250 के बीच लोग आते दिखे. गांवदेहात में लोग कोरोना को भूत मानते हैं और भूत उतरवाने के लिए ये लोग डाक्टर के पास जाने के बजाय भोपा और  झाड़फूंक वालों के पास पहुंच जाते हैं.
अगर कोई मास्क में यहां आता है, तो भोपे  झाड़फूंक करने के बाद यह कह कर मास्क उतरवा देते हैं कि तुम्हारे ऊपर से कोरोना का भूत हम ने भगा दिया है. घर जाओ और आराम करो.

गांव में जा कर सैंपल लेने की बात सिर्फ कागजों में दौड़ती दिखी. महकमे के मुताबिक, ग्राम पंचायत खरसाण में  6, नवणिया में 8, मैनार में 6 लोगों की कोरोना से मौत हुई थी, जबकि सचाई यह थी कि पिछले 30 दिन यानी  21 अप्रैल से 21 मई तक इन ग्रामीण इलाकों में 45 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी.

मौत के आंकड़ों पर पहरा

जयपुर की दूदू, फागी, चाकसू, बगरू, सांभर, शाहपुरा, कोटपुतली तहसील के गांवों में जमीनी हकीकत देखी तो रूह कंपाने वाली सचाई सामने आई. गांवों में स्वास्थ्य सेवाएं वैंटिलेटर पर और मरीज लाचार नजर आए.

कोरोना की दूसरी लहर में यहां मौतों की तादाद में इजाफा हो गया. हैरत की बात यह थी कि मौतों के लिए सरकार महामारी को जिम्मेदार नहीं बताती दिखी. जब स्वास्थ्य महकमे के अफसरों से जानकारी चाही, तो उन्होंने फोन काट दिया.

अंदाजा लगाया जा सकता है कि मौतों के आंकड़ों पर सरकारी पहरा किस कदर लगा था. 20 दिन में ही फागी में 30, कोटपुतली में 75 और बस्सी में
50 लोग दम तोड़ चुके थे.

गांवों के लोगों से बातचीत की, तो हरसूली के रामकिशन ने बताया कि गांव में तकरीबन हर घर में लोग बीमार हैं. पिछले 7 दिनों में ही 10 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. उपजिला अस्पताल दूदू से महज 3 किलोमीटर दूर खुडियाला के सरपंच गणेश डाबला ने बताया कि इलाके में 13 मौतें हो चुकी हैं.

इसी तरह फागी इलाके में पिछले कुछ दिनों के अंतराल में 30 मौतें हो चुकी हैं. कोटपुतली के मनीष ने बताया कि इलाके में 75 मौतें हो चुकी हैं. बस्सी इलाके में भी एक महीने के भीतर 50 से ज्यादा मौतें प्रशासनिक दावों की पोल खोल रही हैं.

दूदू उपजिला अस्पताल के डाक्टर सुरेश मीणा ने बताया कि अस्पताल में वैंटिलेटर नहीं हैं. हालांकि 4 औक्सीजन सलैंडर हैं. पड़ताल में सामने आया कि इन की सुविधा मरीजों को नहीं मिल रही, बल्कि उन्हें 70 किलोमीटर दूर जयपुर के लिए रैफर कर दिया जाता है. बदइंतजामी का आलम यह है कि 3 घंटे तक मरीज सुनीता हाथ में एक्सरे को ले कर दर्द से कराहती रही, लेकिन संभालने वाला कोई नहीं था.

यही हालत कोटपुतली अस्पताल की थी. आसपास के 35 से ज्यादा गांवों के मरीजों को वहां वैंटिलेटर की सुविधा नहीं मिल रही थी और जरूरत पड़ने पर मरीजों को जयपुर या दिल्ली का रुख करना पड़ रहा था.

लटकाए जूतेचप्पल

हर साल अकाल  झेलने वाले आसींद और बदनौर इलाके के हालात डरावने हो गए थे. आसींद के दांतड़ा बांध गांव में 30 दिन में कोरोना से 62 मौतें हो गई थीं. लोग दहशत में हैं. गांव में कोरोना से मौतें होने से लोगों में गुस्सा दिखा, क्योंकि कोई पुख्ता इंतजाम नहीं थे.

खौफजदा गांव वालों ने घरों के बाहर जूतेचप्पल लटका दिए. इस गांव में तकरीबन 400 घर हैं. सभी घरों में यही हालात दिखे. इस बारे में गांव वालों का कहना था कि इस से हमारे परिवार और गांव को किसी की नजर नहीं लगेगी. कोरोना से भी बचे रहेंगे. यहां घरों के बाहर काली मटकी और टायर बांधते हुए तो देखा गया था, लेकिन कोरोना के खौफ के चलते जूते और चप्पलें पहली बार लटकी दिख रही थीं.

गांव में कोरोना का खौफ इतना ज्यादा था कि जिस घर में संदिग्ध मरीज था, वहां लोगों ने दरवाजे से बल्लियों का क्रौस का निशान बना रखा था, ताकि गांव वालों को पता चल जाए कि यहां से दूरी बना कर रखनी है.

लोगों ने बताया कि हमारे यहां इतनी मौतें हुईं, लेकिन प्रशासन ने बिलकुल ध्यान नहीं दिया. शुरुआत में टीम आई और 80 लोगों के सैंपल लिए. इस में से 8 पौजिटिव निकल गए. इस के बाद दोबारा टीम गांव में नहीं आई. अस्पताल भी बंद है.

समाजसेवी नरेंद्र गुर्जर कहते हैं कि दांतड़ा बांध गांव में 1,700 वोटर और 300 घर हैं. यहां इलाज के कोई साधन नहीं हैं. नजदीक में कोई बड़ा अस्पताल भी नहीं है. शुरुआत में दवा किट भी  पूरी नहीं दी गई. अब कोई टीम भी  नहीं आ रही है. लोग बहुत डरे हुए हैं, इसलिए जूतेचप्पलें लटका रहे हैं.

 झोलाछाप डाक्टरों का राज

कोरोना की दूसरी लहर में  झोलाछाप डाक्टर गांवों में दुकानें खोल कर बैठ गए थे. वे छोटे बच्चों से ले कर गंभीर बुजुर्ग मरीजों को इलाज की जगह मौत बांट रहे थे. फागलवा गांव में एक  झोलाछाप डाक्टर क्लिनिक खोल कर बैठा था. वह कोविड मरीजों को बिना जांच के ही दवा दे कर ड्रिप लगाता दिखा.

खांसीजुकाम के मरीजों से ये लोग कोविड जांच करवाने के बजाय यह कह रहे थे कि कोई कोविडफोविड नहीं है. हम से दवा ले जाओ. 2 दिन में सही हो जाओगे.
सेवदा गांव में एक क्लिनिक के बाहर मरीजों की भारी भीड़ जुटी हुई थी. वहीं, इस के पास नर्सिंग होम में भी महिला मरीजों की भीड़ जुटी हुई थी.

सब से बड़ी बात यह थी कि ये  झोलाछाप डाक्टर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के ठीक सामने अपने क्लिनिक और नर्सिंग होम खोल कर बैठे दिखे. ये मरीजों की जान के साथ बेखौफ हो कर खिलवाड़ कर रहे थे. कोरोना के दौर में इन लोगों ने कई सामान्य मरीजों को क्रिटिकल हालात में पहुंचा दिया था.

चूरू जिले की रतनगढ़ तहसील के पडि़हारा गांव में एक  झोलाछाप डाक्टर कई कोविड मरीजों को इलाज के नाम पर कई दिनों से दवाएं देने के साथ ही ड्रिप चढ़ा रहा था. इस से कई मरीज गंभीर हालात में पहुंच गए. कुछ मरीज तो आईसीयू और वैंटिलेटर पर चले गए.

गांव की सीएचसी में डाक्टर तो हैं. पर गांव वालों ने  झोलाछाप डाक्टरों की कलक्टर सांवरमल वर्मा और सीएमएचओ डाक्टर मनोज शर्मा से शिकायत की, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई.

कटेवा गांव में 5  झोलाछाप डाक्टर मैडिकल स्टोर की आड़ में मरीजों को देख रहे थे. घिरणियां बड़ा के रहने वाले बाबूलाल बैरवा अपने 13 साल के बेटे नीतीश कुमार को कटेवा के लाइफ केयर मैडिकल ऐंड नर्सिंग होम में इलाज के लिए ले कर आए थे. उन के बेटे को किडनी में संक्रमण था.  झोलाछाप डाक्टर ने नीतीश को दुकान के बाहर ही ड्रिप लगा दी और उस के मातापिता को उस के पास बैठा दिया.

अब कह रहे हैं कि कोरोना की तीसरी लहर भी आएगी. अगर तब तक सरकार ने तैयारी पूरी नहीं की, तो देशभर में क्या हाल होगा, इस का आसानी  से अंदाजा लगाया जा सकता है.

क्या सेक्स करने से भी हो सकता है कोरोना!

एक तरफ जहां कोरोना वायरस से बचाव के लिए सोशल डिस्टैंसिंग को जरूरी बताया जा रहा है, वहीं लोगों के मन में यह सवाल भी उठ रहे हैं कि क्या सेक्स करने से भी कोरोना वायरस फैल सकता है? जानिए, सेक्स को ले कर जुङे तमाम सवालों के जवाब :

पार्टनर के साथ सेक्स करने से कोरोना वायरस फैलने का डर है क्या?

कोरोना वायरस संक्रमण से ही फैलता है मगर यह सेक्स से फैलता है, इस को ले कर अभी कोई ठोस वजह सामने नहीं आया है. मगर जब कोई सेक्स पार्टनर से इंटिमेट होता है तो इस वायरस के फैलने का खतरा हो सकता है. मगर यह तब होगा जब सेक्स पार्टनर में से कोई एक कोरोना वायरस से संक्रमित होगा.

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क्या सोशल डिस्टैंसिंग सेक्स पार्टनर पर भी लागू होता है?

बिलकुल. अगर सेक्स पार्टनर को सूखी खांसी, छींक अथवा नाक बहने के लक्षण हैं तो उस के साथ सेक्स करने से बचना चाहिए और अलग क्वारेंटीन करना चाहिए.

क्या फेस मास्क लगा कर सेक्स किया जा सकता है? यह कितना सेफ है?

सेक्स पार्टनर अगर कोरोना वायरस से संक्रमित है तो उस के साथ सेक्स संबंध बनाने से परहेज करें. इस दौरान दूसरे पार्टनर को भी इफैक्ट होने का चांस हो सकता है. इस का फेस मास्क से कोई लेनादेना नहीं है.

क्या ओरल सेक्स से भी कोरोना वायरस के फैलने का खतरा है?

कोरोना वायरस से संक्रमित सेक्स पार्टनर से ओरल सेक्स सेफ नहीं माना जा सकता क्योंकि इस प्रकिया में भी डीप टच होता है और पूरी संभावना है कि इस से दूसरा भी संक्रमित हो जाए. इसलिए यह कह सकते हैं कि ओरल सेक्स भी पूरी तरह सेफ नहीं है.

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इस समय सेक्स संबंध बनाने से पहले क्या करना चाहिए?

पार्टनर के साथ सेक्स करने से पहले हाइजीन का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. बैडरूम में जाने से पहले कपड़े बदल लें. बेहतर होगा कि बाहर से आने के बाद चप्पलें आदि भी बदल लें. खुद को सैनिटाइज कर नहा लेना चाहिए. सब से जरूरी है कि अगर पार्टनर में कोरोना वायरस के कोई भी लक्षण दिखें तो बेहतर है कि अलगअलग रहें और चिकित्सक से संपर्क करें.

-डा. एल बी प्रसाद एमबीबीएस, एमडी, सीनियर कंसल्टैंट, फिजीशियन ऐंड डाइबेटोलोजिस्ट से बातचीत पर आधारित

बेदर्द सरकार पेट पर पड़ी मार

आज भी बहुत से कामधंधे और कारोबार ऐसे हैं, जो सालभर न चल कर एक खास सीजन में ही चलते हैं और इन कारोबारों से जुड़े लोग इसी सीजन में कमाई कर अपने परिवार के लिए सालभर का राशनपानी जमा कर लोगों का पेट पाल लेते हैं. पर लगातार दूसरे साल कोरोना महामारी ने इन कारोबारियों पर रोजीरोटी का संकट पैदा कर दिया है.

हमारे देश में सब से ज्यादा शादीब्याह अप्रैल से जुलाई महीने तक होते हैं. इस वैवाहिक सीजन में कोरोना की मार से टैंट हाउस, डीजे, बैंडबाजा, खाना बनाने और परोसने वाले, दोनापत्तल बनाने वाले लोग सब से ज्यादा प्रभावित हुए हैं.

सरकारी ढुलमुल नीतियां भी इस के लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं. पूरे मध्य प्रदेश में अप्रैल महीने में लौकडाउन लागू कर दिया, जबकि दमोह जिले में विधानसभा उपचुनाव के चलते सरकार बड़ी सभाओं और रैलियों में मस्त रही. सरकार की इन ढुलमुल नीतियों की वजह से लोगों का गुस्सा आखिरकार फूट ही पड़ा.

दमोह में उमा मिस्त्री की तलैया पर  चुनावी सभा संबोधित करने पहुंचे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का  डीजे और टैंट हाउस वालों ने खुला विरोध कर दिया. मुख्यमंत्री को इन लोगों ने जो तख्तियां दिखाईं, उन पर बड़ेबड़े अक्षरों में लिखा था :

‘चुनाव में नहीं है कोरोना,

शादीविवाह में है रोना.

चुनाव का बहिष्कार,

पेट पर पड़ रही मार.’

आंखों पर सियासी चश्मा चढ़ाए मुख्यमंत्री को इन लोगों का दर्द समझ नहीं आया. लोगों के गुस्से की यही वजह भाजपा उम्मीदवार राहुल लोधी की हार का सबब बनी.

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पिछले साल के लौकडाउन से सरकार ने कोई सबक नहीं लिया और न ही कोरोना से लड़ने के लिए कोई माकूल इंतजाम किए. मध्य प्रदेश के गाडरवारा तहसील के सालीचौका रोड के बाशिंदे दिनेश मलैया अपनी पीड़ा बताते हुए कहते हैं, ‘‘मेरा टैंट डैकोरेशन का काम है, जिसे मैं घर से ही चलाता हूं, लेकिन इस कोरोना बीमारी के चलते पिछले साल सरकार के लगाए हुए लौकडाउन में पूरा धंधा चौपट हो गया.

‘‘पिछले साल का नुकसान तो जैसेतैसे सहन कर लिया, लेकिन इस साल फिर वही बीमारी और लौकडाउन ने तंगहाली ला दी है. इस साल शादियों के सीजन को देखते हुए कर्ज ले कर टैंट डैकोरेशन का सामान खरीद लिया था, पर लौकडाउन की वजह से धंधा चौपट हो गया.’’

साईंखेड़ा के रघुवीर और अशोक वंशकार का बैंड और ढोल आसपास के इलाकों में जाना जाता है, लेकिन पिछले 2 साल से शादियों में बैंडबाजा की इजाजत न होने से उन के सामने रोजीरोटी का संकट खड़ा हो गया है.

वे कहते हैं कि सरकार और उन के मंत्री व विधायक सभाओं और रैलियों में तो हजारों की भीड़ जमा कर सकते हैं, पर 10-15 लोगों की बैंड और ढोल बजाने वाली टीम से उन्हें कोरोना फैलने का खतरा नजर आता है.

दोनापत्तल का कारोबार करने वाले नरसिंहपुर के ओम श्रीवास बताते हैं, ‘‘मार्च के महीने में ही बड़ी तादाद में दोनापत्तल बनवा कर रख लिए थे, पर अप्रैल महीने में लौकडाउन के चलते शादियों में 20 लोगों के शामिल होने की इजाजत मिलने से दोनापत्तल का कारोबार ठप हो गया.’’

शादीब्याह में भोजन बनाने का काम करने वाले राकेश अग्रवाल बताते हैं कि उन के साथ 50 से 60 लोगों की टीम रहती है, जो खाना बनाने और परोसने का काम करती है, लेकिन इस बार इन लोगों को खुद का पेट भरने का कोई काम नहीं मिल रहा है.

शादियों में मंडप की फूलों से डैकोरेशन करने वाले चंदन कुशवाहा ने तो कर्ज ले कर फूलों की खेती शुरू की थी. चंदन को उम्मीद थी कि उन के खेतों से निकले फूलों से वे शादियों में डैकोरेशन कर खूब पैसा कमा लेंगे, पर कोरोना महामारी के चलते सरकार ने जनता कर्फ्यू लगा कर उन की उम्मीदों पर पानी फेर दिया.

हाथ ठेला पर सब्जी और फल बेचने वालों का बुरा हाल है. लौकडाउन में वे अपने परिवार के लिए भोजनपानी की तलाश में कुछ करना चाहते हैं, तो पुलिस की सख्ती उन्हे रोक देती है. हाथ ठेला लगाने वाले ये विक्रेता गांव से सब्जी खरीद कर लाते हैं और दिनभर की मेहनत से उन्हें सिर्फ 200-300 रुपए ही मिल पाते हैं.

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रायसेन जिले के सिलवानी में नगरपरिषद के सीएमओ ने जब एक फलसब्जी बेचने वाले का हाथ ठेला पलट दिया, तो उस का गुस्सा फूट पड़ा और मजबूरन उसे सीएमओ से गलत बरताव करना पड़ा.

यही समस्या दिहाड़ी मजदूरों की भी है, जिन्हें लौकडाउन की वजह से काम नहीं मिल पा रहा है और उन के बीवीबच्चे भूख से परेशान हैं. दिहाड़ी मजदूर रोज कमाते हैं और रोज राशन दुकान से सामान खरीदते हैं, पर राशन दुकान भी बंद हैं.

राजमिस्त्री का काम करने वाले रामजी ठेकेदार का कहना है कि सरकारी ढुलमुल नीतियों की वजह से गरीब मजदूर ही परेशान होता है.

सरकार अभी तक यह नहीं समझ पाई है कि कोरोना वायरस का इलाज लौकडाउन नहीं है, बल्कि सतर्क और जागरूक रह कर उस से मुकाबला किया जा सकता है. पिछले साल से अब तक सरकार अस्पतालों में कोई खास इंतजाम नहीं कर पाई है. जैसे ही अप्रैल महीने  में संक्रमण बढ़ा, तो सरकार ने अपनी नाकामी छिपाने के लिए लौकडाउन  लगा दिया.

सरकार की इस नीति से लाखों की तादाद में छोटामोटा कामधंधा करने वाले लोगों की रोजीरोटी पर जो बुरा असर पड़ा है, उस की भरपाई सालों तक पूरी नहीं हो सकती.

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कोरोना से जंग में जीते हम: कभी न सोचें, हाय यह क्या हो गया!

“11अप्रैल को मेरी बेटी टिया का 15वां जन्मदिन था. पिछले एक हफ्ते से हम उसे सैलिब्रेट करने की सोच रहे थे, क्योंकि टिया का पिछला जन्मदिन भी लौकडाउन की भेंट चढ़ गया था. हालांकि दिल्ली में कोरोना की दूसरी लहर आ चुकी थी, पर शायद स्वार्थी हो कर हम ने आंखें मूंद ली थीं.

“सब ठीकठाक चल रहा था कि 9 अप्रैल की शाम को मुझे हलका बुखार चढ़ गया. बुखार ज्यादा तेज नहीं था, पर मन के किसी कोने में डर ने दस्तक दी कि कहीं जालिम कोरोना तो नहीं है? इस आशंका की वजह यह भी थी कि मुझे आसानी से बुखार या सर्दीजुकाम नहीं होता. पर मेरा सारा ध्यान रविवार को बेटी के जन्मदिन पर ही था. शनिवार तक बुखार 100-101 डिगरी फौरेनहाइट था. रविवार आया, जन्मदिन मनाया गया और सब खुश थे. पर कोरोना का वार होना अभी बाकी था. जैसे कान में कह रहा हो, ‘हा हा हा, कल आऊंगा मैं…’

“सोमवार की सुबह ठीकठाक रही. दोपहर को मेरा चीकू खाने का मन हुआ. खाया भी, पर अचानक बीच में ही मुझे महसूस हुआ कि उस में से खुशबू नहीं आ रही है. बारबार नाक के पास चीकू ले जाऊं और उसे सूंघने की कोशिश करूं, पर कोई गंध न पता चले.

“इस के बाद तो मैं पूरे घर में भटकती रही कि ऐसा क्या करूं कि किसी भी चीज की गंध का पता चल सके. तब तक मेरे मन में यह आ चुका था कि कुछ तो गड़बड़ है दया… फिर मैं ने अपने हाथ पर परफ्यूम छिड़का और उसे सूंघा. नथुनों में कोई हरकत नहीं हुई.

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“इस के बाद मैं अपने कमरे में 10 मिनट के लिए अकेली बैठी, गहरी लंबी सांसें लीं और कहा, ‘आल इज वैल…’

“खैर, अब तो कोरोना टैस्ट कराना था, जो हुआ भी. घर के 4 सदस्यों में से मेरा ही पौजिटिव नतीजा आया. मेरी रिपोर्ट देखते ही मेरे पति योगेश के चेहरे पर एक अजीब सी मुसकान आई, जैसे वे पूछना चाहते हों कि तुम कैसे लपेटे में आ गई, पर वे बोले, “घबराओ नहीं. आज के हालात में कुछ भी हो सकता है. लेकिन तुम चिंता मत करो मैं सब संभाल लूंगा.

“इसी बीच अच्छा यह हुआ था कि मैं खुद को आइसोलेट कर चुकी थी. फिर मैं ने ठंडे दिमाग से सोचा कि अब शायद मुझे अपने लिए समय मिला है. बस, आराम करो बिना किसी चिंता के. फिर मैं ने मन बनाया कि फोन पर किसी से ज्यादा बात नहीं करूंगी, क्योंकि एक तो सब मेरी सेहत को ले कर चिंता करेंगे और दूसरे फोन पर सकारात्मक से ज्यादा नकारात्मक मैसेज ज्यादा फौरवर्ड हो रहे हैं. लोग कैसे मर रहे हैं, यह तो सब दिखा रहे हैं, पर जो लोग कोरोना से जंग जीत चुके हैं, उन के बारे में ज्यादा बात नहीं हो रही है. उस समय मेरा फोकस खुद पर था बस.

“जहां तक मेरी दिनचर्या की बात है तो वह सामान्य ही थी. लेकिन मैं इस बात का खास खयाल रखती थी कि कोरोना का कोई नया लक्षण तो मेरे अंदर नहीं आया है न. चूंकि एक अकेले कमरे में खुद को अलग रखना था तो उस अकेलपन को दूर करने का विचार किया. इस बीच मैं ने अपनी बेटी की 10वीं की हिंदी और सामाजिक विज्ञान की किताबें पढ़ डालीं.

“अपने अनुभव से बताना चाहूंगी कि ऐसे अकेलेपन में टैलीविजन पर खबरें न देखें, क्योंकि मुझे याद है कि कोरोना के 8वें दिन जब मुझे रात को नींद नहीं आ रही थी, मैं खबरें देखने लगी. साथ ही मुझे यह भी पता चला कि हमारा कोई रिश्तेदार अस्पताल में भरती हो गया है. टैलीविजन पर जिस तरह से कोरोना की खबरें दिखाई जा रही हैं, उन से कोरोना मरीज अपना आत्मविश्वास खो सकते हैं. मेरे साथ उस रात वैसा ही कुछ हुआ. सारी रात नींद नहीं आई.

“दिन बीतते गए. धीरेधीरे मेरी सूंघने की ताकत वापस आ गई और आज मैं ने सेहतमंद हूं. पर इस बीमारी से मुझे एक सीख मिली है कि भले ही यह पूरी दुनिया के लिए एक बुरा समय है, पर अगर आप और आप के घर वाले हौसला नहीं खोते हैं, अपना स्नेह आप को देते हैं, डाक्टर जो कहता है या दवा देता है, उस का पालन करते हुए सेवन करते हैं, तो इस बीमारी से पार पा सकते हैं.

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“मैं आज भी जब उन दिनों को याद करती हूं तो सामने आते हैं मेरे बच्चे जो सुबह होते ही ‘गुड मौर्निंग मम्मा’ कहते थे या मेरे पति योगेश का मेरे लिए चाय बनाना आंखों के सामने आ जाता है. इस से मुझे बड़ी ताकत मिली थी. ये छोटीछोटी बातें भावना के स्तर पर बड़ा काम कर जाती हैं और मरीज का अकेलापन दूर कर देती हैं.

“आखिर में इतना ही कहूंगी कि परेशानियां तो जिंदगी में आती रहेंगी, उन का सामना पूरे हौसले से करें. जीत मिल ही जाएगी.”

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यूपी पंचायती चुनाव ड्यूटी पर कोरोना संक्रमण के कारण 135 शिक्षकों की मौत

लेखिका- सोनाली 

देश के विभिन्न राज्यों  में कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है और उत्तर प्रदेश भी उनमें से एक है जहां लगातार कोरोना के मामले व उससे हो रही मौत के आंकड़े भी लगातार बढ़ रहे हैं.

जहां एक ओर अदालतें चुनावी रैलियों में कोविड दिशानिर्देशों के पालन न होने को लेकर चुनाव आयोग को फटकार लगा रही हैं, वहीं यूपी के पंचायत चुनाव में बिना कोविड प्रोटोकॉल के चुनावी ड्यूटी करते हुए संक्रमित हो रहे कई सरकारी कर्मचारी अपनी जान गंवा रहे हैं.

एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पंचायत चुनाव में ड्यूटी करने वाले राज्य के 135 शिक्षकों, शिक्षा मित्रों और अनुदेशक कोरोना संक्रमण के चलते जान गंवा चुके हैं.

राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने मुख्यमंत्री से पंचायत चुनाव तत्काल स्थगित कर संक्रमितों का निशुल्क इलाज व मृतकों के परिजनों को 50 लाख की सहायता व अनुकंपा नियुक्ति देने की मांग की है.

शिक्षकों व कर्मचारियों की चुनाव में ड्यूटी लगने की वजह से उनके परिवारों में बेचैनी है. वर्तमान हालात को देखते हुए कोई भी चुनाव ड्यूटी नहीं करना चाहता है. चुनाव में प्रथम चरण के प्रशिक्षण से लेकर तीसरे चरण के मतदान तक हजारों शिक्षक, शिक्षामित्र व अनुदेशक कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं. जहां-जहां चुनाव हो चुके हैं वहां कोविड संक्रमण कई गुना बढ़ गया है.

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संघ के प्रवक्ता वीरेंद्र मिश्र ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि कोविड-19 की भयंकर महामारी के बीच प्रदेश में पंचायत चुनाव कराए जा रहे हैं, जिसमें सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ रही हैं. पंचायत चुनाव से जुड़े अधिकारी, कर्मचारी, शिक्षक व सुरक्षाकर्मी प्रतिदिन संक्रमित हो रहे हैं और अनगिनत मौतों के साथ जनमानस सहमा हुआ है.

उल्लेखनीय है कि प्रदेश में  58,189 ग्राम पंचायत हैं, जहां ग्राम प्रधान के चुनाव होने हैं, जबकि ग्राम पंचायत सदस्यों के लिए 732, 563 पदों पर चुनाव होना है. इनके अलावा 75,855 क्षेत्र पंचायत सदस्य के पदों पर निर्वाचन होना है. राज्‍य के 75 ज़िलों में ज़िला पंचायत सदस्य के कुल 3,051 पदों पर चुनाव होने हैं.

मतदान चार चरणों में- 15 अप्रैल, 19 अप्रैल, 26 अप्रैल और 29 अप्रैल को होना था, जिनमें बस एक ही चरण बचा है. बता दें कि मतगणना दो मई को होगी.

मिश्र ने बताया, ‘चुनाव प्रशिक्षण व ड्यूटी के बाद अब तक हरदोई, लखीमपुर में 10-10, बुलंदशहर, हाथरस, सीतापुर, शाहजहांपुर में 8-8, भदोही, लखनऊ व प्रतापगढ़ में 7-7, सोनभद्र, गाजियाबाद व गोंडा में 6-6, कुशीनगर, जौनपुर, देवरिया, महाराजगंज व मथुरा में 5-5, गोरखपुर, बहराइच, उन्नाव व बलरामपुर में 4-4 तथा श्रावस्ती में तीन शिक्षक, शिक्षा मित्र या अनुदेशक की अकस्मात मृत्यु हुई है.

उन्होंने यह भी कहा कि महासंघ ने चुनाव से पहले शिक्षकों को टीका लगवाने की मांग की थी. मिश्र ने कहा, ‘केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में तैनात पोलिंग पार्टियों के टीकाकरण को अनुमति दी थी, इसी तरह पंचायत चुनाव में भी किया जा सकता था. लेकिन इस पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. महासंघ ने मुख्यमंत्री के अलावा यह पत्र पर बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी व प्रमुख सचिव रेणुका कुमार को भी भेजा है.

गौरतलब है कि पंचायत चुनाव में प्रदेश के सभी ज़िलों के विभिन्न विभागों के कर्मचारियों और अधिकारियों की मतदान और मतगणना में ड्यूटी लगी है.एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इनमें सर्वाधिक संख्या प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों की है, जहां लगभग 80 प्रतिशत परिषदीय शिक्षक चुनाव की ड्यूटी में लगे हुए हैं.

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शिक्षकों ने दी मतगणना के बहिष्कार की चेतावनी

उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में पंचायत चुनाव ड्यूटी के बाद अब तक सात शिक्षा कर्मी दम तोड़ चुके हैं. शिक्षकों ने मृतकों के परिजनों को 50 लाख रुपये के मुआवजे की मांग के साथ मतगणना के लिए कोविड संबंधी पुख्ता इंतजाम करने की भी बात कही है. और ऐसा न होने पर मतगणना का बहिष्कार करने  की चेतावनी दी है.

उत्तर प्रदेश जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ ने जिला अधिकारी को दिए मांग पत्र में कहा कि पंचायत चुनाव की ड्यूटी के बाद बड़ी संख्या में शिक्षक बीमार हैं. कई अस्पतालों में भर्ती हैं, तो कई घर पर ही क्वारंटीन हैं. अब तक जिले के सात शिक्षा कर्मी  संक्रमण के कारण दम तोड़ चुके हैं.

शिक्षक संघ ने कहा कि मतगणना के लिए पुख्ता इंतजाम हों, मतगणना ड्यूटी से पहले इसमें शामिल होने वाले शिक्षकों समेत तमाम कर्मचारियों को कोरोना का टीका लगवाया जाए. उन्होंने चेताया है कि ऐसा न होने की स्थिति में वे इस ड्यूटी का बहिष्कार करने को विवश होंगे.

इससे पहले बीते हफ्ते तीसरे चरण के मतदान से पहले अलीगढ़ के शिक्षकों ने पंचायत चुनाव का विरोध करते हुए तीसरे और चौथे चरण के चुनाव स्थगित करने की मांग की थी. ऐसी ही मांग मेरठ जिले के शेरकोट से भी उठी थी.

उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षक संघ सेवारत गुट की वर्चुअल बैठक में जिला मंत्री विनोद कुमार ने महामारी के बीच पंचायत चुनाव कराने को सरकार व चुनाव आयोग की संवेदनहीनता बताया था. उनका भी कहना था कि बाकी चरणों के चुनाव और  मतगणना स्थगित किए जाएं और ऐसा नहीं किया गया तो ड्यूटी का बहिष्कार किया जाएगा. जिला मंत्री ने सरकार पर पंचायत चुनाव को प्राथमिकता देकर शिक्षकों एवं कर्मचारियों को मौत के मुंह में धकेलने का आरोप लगाया था. उनका कहना था  केंद्रों पर किसी कोविड दिशानिर्देश का पालन नहीं हो रहा है, जिसके चलते तेजी से संक्रमण फ़ैल रहा है.

हालांकि सरकार की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि महामारी मद्देनजर सभी दिशानिर्देशों का पालन किया जा रहा है, लेकिन हकीकत कुछ ओर ही बयां करती नजर आ रही है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- आपराधिक अभियोग चलाया जाए

इस मामले पर अब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए चुनाव आयोग को आड़े हाथ लिया और नोटिस जारी किया और कहा कि पंचायत चुनाव के दौरान सरकारी गाइडलाइंस का पालन क्यों नहीं की गया. अब ड्यूटी कर रहे 135 लोगों की मौत की खबर है. कोर्ट ने आयोग से जवाब मांगा कि क्यों न उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए और आपराधिक अभियोग चलाया जाए. साथ ही हाईकोर्ट ने रह गए चुनाव में तुरंत कोरोना गाइडलाइंस का पालना सुनिश्चित करने का आदेश दिया है. साथ ही अवहेलना करने पर चुनाव करवा रहे अधिकारियों पर कार्रवाई की चेतावनी दी है.

इसके साथ ही कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए सरकारी रवैये की भी कोर्ट ने आलोचना की है. हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकार माय वे या नो वे (मेरा रास्ता या कोई रास्ता नहीं) का तरीका छोड़े और लोगों के सुझावों पर भी अमल करे. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अधिक संक्रमित नौ शहरों के लिए कई सुझाव दिए हैं. साथ ही उन पर अमल करने और सचिव स्तर के अधिकारी के हलफनामे के साथ 3 मई तक अनुपालन रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है.

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हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

हाईकोर्ट ने प्रदेश के नौ शहरों, लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर नगर, आगरा, गोरखपुर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर और झांसी के जिला जजों को आदेश दिया है कि सिविल जज सीनियर रैंक के न्यायिक अधिकारी को नोडल अधिकारी के रूप मे तैनात करें. ये शासन की ओर से बनाई गई कोरोना मरीजों की रिपोर्ट सप्ताहांत मे महानिबंधक हाईकोर्ट को भेजें. मामले की अब अगली सुनवाई 3 मई को होगी.

यह आदेश न्यायाधीश सिद्धार्थ वर्मा और अजित कुमार की खंडपीठ ने कोरोना मामले में कायम जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए दिया है. कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि कोरोना का भूत गली, सड़क पर दिन-रात मार्च कर रहा है. लोगों का जीवन भाग्य भरोसे है, कोरोना के भय से लोगों ने स्वयं को अपने घर मे लॉकडाउन कर लिया है. सड़कें रेगिस्तान की तरह सुनसान हैं. भारी संख्या मे लोग संक्रमित हो रहे हैं और जीवन बचाने के लिए बेड की तलाश मे अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं. अस्पताल मरीजों की जरूरत पूरी करने मे असमर्थ हैं. डॉक्टर, स्टाफ थक चुके है. जीवन रक्षक दवाएं, इंजेक्शन की मारामारी है. ऑक्सीजन, मांग और आपूर्ति के मानक पर खरी नहीं उतर रही. सरकार के उपाय नाकाफी हैं.

हाईकोर्ट ने चेतावनी दी है कि पेपर वर्क बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. इन सभी सुझावों पर राज्य सरकार को अमल करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने सरकार के प्लान को खारिज करते हुए नये सिरे से प्लान तैयार करने का आदेश दिया है

पंचायत चुनाव से गांवों तक पहुंच रहा कोरोना संकट

जिस समय कोरोना की दूसरी लहर से पूरे देश में तांडव मचा हुआ है, उसी समय उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हो रहे हैं. पंचायत चुनाव के प्रचार में न तो लोग मास्क पहन रहे हैं, न ही दो गज की दूरी किसी का पालन नहीं हो रहा है. ऐसे में चुनाव प्रचार के साथसाथ कोरोना का प्रसार भी गांवों में हो रहा है.

जिन जिलों में पंचायत के चुनाव हो चुके हैं, वहां पर कोरोना के मामले ज्यादा निकल रहे हैं. कई जिलों से मतदान में ड्यूटी करने वाले कर्मचारियों के कोरोना पौजिटिव होने के मामले भी सामने आए हैं. कर्मचारी संगठन भी इस के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं.

उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव 4 चरणों में हो रहे हैं. 15 अप्रैल और 19 अप्रैल के 2 चरणों के मतदान हो चुके हैं. 26 अप्रैल और 29 अप्रैल वाले 2 चरणों में मतदान होेने वाला है. एक गांव में कम से कम 1500 वोटर हैं. ग्राम प्रधान, पंच, ब्लौक सीमित सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के 4 पदों पर मतदान हो रहा है. ऐसे में 4 तरह के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. वे सभी बड़ी संख्या में लोगों के साथ प्रचार कर रहे हैं.

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कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत भी अप्रैल के दूसरे हफ्ते से ही शुरू  हुई. जैसेजैसे चुनाव आगे बढ़ रहे हैं, उसी तरह से कोरोना संक्रमण भी आगे बढ़ रहा है.

प्रचार और मतदान ड्यूटी से कोरोना का खतरा

गांवगांव कोरोना का संकट 2 तरह से फैल रहा है. एक तो चुनावी प्रचार से दूसरा मतदान करने आने वाले वोटर और मतदान में ड्यूटी करने आने वाले कर्मचारी इस संक्रमण को बढ़ा रहे हैं.

सुलतानपुर जिले में लंभुआ के कोटिया निवासी सुरेश चंद्र त्रिपाठी दुबेपुर ब्लौक के उच्च प्राथमिक विद्यालय उतुरी में सहायक अध्यापक नियुक्त थे. उन्हें चुनाव अधिकारी बना कर चांदा के कोथराखुर्द भेजा गया. उन्हें कई दिनों से बुखार आ रहा था. इस के बाद भी उन की कोरोना की जांच नहीं हुई.

सुरेश चंद्र त्रिपाठी अपनी जांच कराने और चुनावी ड्यूटी से छुट्टी देने के लिए बारबार कहते रहे, पर विभाग के लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. न तो उन की जांच हुई, न ही उन की ड्यूटी कटी.

19 अप्रैल को पंचायत चुनाव के दूसरे फेस में चुनावी ड्यूटी के दौरान सुरेश चंद्र त्रिपाठी की तबीयत खराब हुई. इस के बाद उन्हें जिला अस्पताल सुलतानपुर भेजा गया, जहां उन की मौत हो गई. मौत के बाद जांच पर पता चला कि वह कोरोना पौजिटिव भी थे.

ऐसे में सोचा जा सकता है कि कोरोना का संक्रमण किस तरह से फैल रहा है. सुरेश चंद्र त्रिपाठी के संपर्क में गांव के तमाम लोग आए होंगे. न तो उन की जांच मुमकिन है और न ही उन का पता लगाया जा सकता है. इस तरह से पंचायत चुनाव में गांवगांव कोरोना फैलने का डर बना हुआ है.

इंडियन पब्लिक सर्विस इंप्लौइज फैडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीपी मिश्रा और महामंत्री प्रेमचंद्र ने प्रधानमंत्री और चुनाव आयोग को चिट्ठी भेजी है. इस में लिखा है कि कोरोना जैसी महामारी को देखते हुए देशभर में हो रहे चुनावों को स्थगित कर दिया जाए, क्योंकि चुनाव ड्यूटी में लगे हजारों कर्मचारी संक्रमित हो रहे हैं. चिट्ठी में कहा गया है कि चुनाव में कोविड प्रोटोकौल का पालन करा पाना मुमकिन नहीं है.

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80 फीसदी तक हो रहा मतदान

पंचायत चुनावों में 80 फीसदी तक मतदान हो रहा है, जिस से यह समझा जा सकता है कि कितनी ज्यादा भीड़ वोट डालने के लिए लाइनों में लगती है. किसी भी लाइन में 2 गज की दूरी का कोई पालन नहीं होता है. पुलिस के डर से वोट डालते समय भले ही लोग मास्क का इस्तेमाल कर लें, पर चुनाव प्रचार में मास्क का इस्तेमाल तकरीबन न के बराबर होता है.

वोट डालने के लिए मतदाताओं को मुंबई, सूरत, पंजाब और दिल्ली से गांव बुलाया गया. ये लोग प्राइवेट गाड़ी कर के गांव में वोट डालने आए और वहां से वापस अपनी जगह चले गए. ऐसे बाहरी लोग कोरोना संक्रमण फैलने की सब से बड़ी वजह हैं. जिन जिलों में पहले और दूसरे चरण का मतदान हो चुका है, वहां कोरोना के मरीज सब से ज्यादा मिलने लगे हैं. इस से साफ है कि पंचायत चुनाव कोरोना संक्रमण को बढ़ाने वाला साबित हो रहा है.

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Lockdown Returns: आखिर पिछले बुरे अनुभव से सरकार कुछ सीख क्यों नहीं रहीं?

भले अभी साल 2020 जैसी स्थितियां न पैदा हुई हों, सड़कों, बस अड्डों, रेलवे स्टेशनों में भले अभी पिछले साल जैसी अफरा तफरी न दिख रही हो. लेकिन प्रवासी मजदूरों को न सिर्फ लाॅकडाउन की दोबारा से लगने की शंका ने परेशान कर रखा है बल्कि मुंबई और दिल्ली से देश के दूसरे हिस्सों की तरफ जाने वाली ट्रेनों में देखें तो तमाम कोविड प्रोटोकाॅल को तोड़ते हुए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है. पिछले एक हफ्ते के अंदर गुड़गांव, दिल्ली, गाजियाबाद से ही करीब 20 हजार से ज्यादा मजदूर फिर से लाॅकडाउन लग जाने की आशंका के चलते अपने गांवों की तरफ कूच कर गये हैं. मुंबई, पुणे, लुधियाना और भोपाल से भी बड़े पैमाने पर मजदूरों का फिर से पलायन शुरु हो गया है. माना जा रहा है कि अभी तक यानी 1 अप्रैल से 10 अप्रैल 2021 के बीच मंुबई से बाहर करीब 3200 लोग गये हैं, जो कोरोना के पहले से सामान्य दिनों से कम, लेकिन कोरोना के बाद के दिनों से करीब 20 फीसदी ज्यादा है. इससे साफ पता चल रहा है कि मुंबई से पलायन शुरु हो गया है. सूरत, बड़ौदा और अहमदाबाद में आशंकाएं इससे कहीं ज्यादा गहरी हैं.

सवाल है जब पिछले साल का बेहद हृदयविदारक अनुभव सरकार के पास है तो फिर उस रोशनी में कोई सबक क्यों सीख रही? इस बार भी वैसी ही स्थितियां क्यों बनायी जा रही हैं? क्यों आगे आकर प्रधानमंत्री स्पष्टता के साथ यह नहीं कह रहे कि लाॅकडाउन नहीं लगेगा, चाहे प्रतिबंध और कितने ही कड़े क्यों न करने पड़ंे? लोगों को लगता है कि अब लाॅकडाउन लगना मुश्किल है, लेकिन जब महाराष्ट्र और दिल्ली के खुद मुख्यमंत्री कह रहे हों कि स्थितियां बिगड़ी तो इसके अलावा और कोई चारा नहीं हैं, तो फिर लोगों में दहशत क्यों न पैदा हो? जिस तरह पिछले साल लाॅकडाउन में प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा हुई थी, उसको देखते हुए क्यों न प्रवासी मजदूर डरें ?

पिछले साल इन दिनों लाखों की तादाद में प्रवासी मजदूर तपती धूप व गर्मी में भूखे-प्यासे पैदल ही अपने गांवों की तरफ भागे जा रहे थे, इनके हृदयविदारक पलायन की ये तस्वीरें अभी भी जहन से निकली नहीं हैं. पिछले साल मजदूरों ने लाॅकडाउन में क्या क्या नहीं झेला. ट्रेन की पटरियों में ही थककर सो जाने की निराशा से लेकर गाजर मूली की तरह कट जाने की हृदयविदारक हादसों का वह हिस्सा बनीं. हालांकि लग रहा था जिस तरह उन्होंने यह सब भुगता है, शायद कई सालों तक वापस शहर न आएं, लेकिन मजदूरों के पास इस तरह की सुविधा नहीं होती. यही वजह है कि दिसम्बर 2020 व जनवरी 2021 में शहरों में एक बार फिर से प्रवासी मजदूर लौटने लगे या इसके लिए विवश हो गये. लेकिन इतना जल्दी उन्हें अपना फैसला गलत लगने लगा है. एक बार फिर से वे पलायन के लिए विवश हो रहे हैं.

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प्रवासी मजदूरों के इस पलायन को हर हाल में रोकना होगा. अगर हम ऐसा नहीं कर पाये किसी भी वजह से तो चकनाचूर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाना सालों के लिए मुश्किल हो जायेगा. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार लगातार छह सप्ताह से कोविड-19 संक्रमण व मौतों में ग्लोबल वृद्धि हो रही है, पिछले 11 दिनों में पहले के मुकाबले 11 से 12 फीसदी मौतों में इजाफा हुआ है. नये कोरोना वायरस के नये स्ट्रेन से विश्व का कोई क्षेत्र नहीं बचा, जो इसकी चपेट में न आ गया हो. पहली लहर में जो कई देश इससे आंशिक रूप से बचे हुए थे, अब वहां भी इसका प्रकोप जबरदस्त रूप से बढ़ गया है, मसलन थाईलैंड और न्यूजीलैंड. भारत में भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के डाटा के अनुसार संक्रमण के एक्टिव केस लगभग 13 लाख हो गये हैं और कुछ दिनों से तो रोजाना ही संक्रमण के एक लाख से अधिक नये मामले सामने आ रहे हैं.

जिन देशों में टीकाकरण ने कुछ गति पकड़ी है, उनमें भी संक्रमण, अस्पतालों में भर्ती होने और मौतों का ग्राफ निरंतर ऊपर जा रहा है, इसलिए उन देशों में स्थितियां और चिंताजनक हैं जिनमें टीकाकरण अभी दूर का स्वप्न है. कोविड-19 संक्रमितों से अस्पताल इतने भर गये हैं कि अन्य रोगियों को जगह नहीं मिल पा रही है. साथ ही हिंदुस्तान में कई प्रांतों दुर्भाग्य से जो कि गैर भाजपा शासित हैं, वैक्सीन किल्लत झेल रहे हैं. हालांकि सरकार इस बात को मानने को तैयार नहीं. लेकिन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उधव ठाकरे तक सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं कि उनके यहां महज दो दिन के लिए वैक्सीन बची है और नया कोटा 15 के बाद जारी होगा.

हालांकि सरकार ने इस बीच न सिर्फ कोरोना वैक्सीनों के फिलहाल निर्यात पर रोक लगा दी है बल्कि कई ऐसी दूसरी सहायक दवाईयों पर भी निर्यात पर प्रतिबंध लग रहा है, जिनके बारे में समझा जाता है कि वे कोरोना से इलाज में सहायक हैं. हालांकि भारत में टीकाकरण शुरुआत के पहले 85 दिनों में 10 करोड़ लोगों को कोविड-19 के टीके लगाये गये हैं. लेकिन अभी भी 80 फीसदी भारतीयों को टीके की जद में लाने के लिए अगले साल जुलाई, अगस्त तक यह कवायद बिना रोक टोक के जारी रखनी पड़ेगी. हालांकि हमारे यहां कोरोना वैक्सीनों को लेकर चिंता की बात यह भी है कि टीकाकरण के बाद भी लोग न केवल संक्रमित हुए हैं बल्कि मर भी रहे हैं.

31 मार्च को नेशनल एईएफआई (एडवर्स इवेंट फोलोइंग इम्यूनाइजेश्न) कमेटी के समक्ष दिए गये प्रेजेंटेशन में कहा गया है कि उस समय तक टीकाकरण के बाद 180 मौतें हुईं, जिनमें से तीन-चैथाई मौतें शॉट लेने के तीन दिन के भीतर हुईं. बहरहाल, इस बढ़ती लहर को रोकने के लिए तीन टी (टेस्ट, ट्रैक, ट्रीट), सावधानी (मास्क, देह से दूरी व नियमित हाथ धोने) और टीकाकरण के अतिरिक्त जो तरीके अपनाये जा रहे हैं, उनमें धारा 144 (सार्वजनिक स्थलों पर चार या उससे अधिक व्यक्तियों का एकत्र न होना), नाईट कर्फ्यू सप्ताहांत पर लॉकडाउन, विवाह व मय्यतों में निर्धारित संख्या में लोगों की उपस्थिति, स्कूल व कॉलेजों को बंद करना आदि शामिल हैं. लेकिन खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन का बयान है कि नाईट कफर््यू से कोरोनावायरस नियंत्रित नहीं होता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे ‘कोरोना कफर््यू’ का नाम दे रहे हैं ताकि लोग कोरोना से डरें व लापरवाह होना बंद करें (यह खैर अलग बहस है कि यही बात चुनावी रैलियों व रोड शो पर लागू नहीं है).

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महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे का कहना है कि राज्य का स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतर करने के लिए दो या तीन सप्ताह का ‘पूर्ण लॉकडाउन’ बहुत आवश्यक है. जबकि डब्लूएचओ की प्रवक्ता डा. मार्गरेट हैरिस का कहना है कि कोविड-19 के नये वैरिएंटस और देशों व लोगों के लॉकडाउन से जल्द निकल आने की वजह से संक्रमण दर में वृद्धि हो रही है. दरअसल, नाईट कफर््यू व लॉकडाउन का भय ही प्रवासी मजदूरों को फिर से पलायन करने के लिए मजबूर कर रहा है. नया कोरोनावायरस महामारी को बेहतर स्वास्थ्य इन्फ्रास्ट्रक्चर और मंत्रियों से लेकर आम नागरिक तक कोविड प्रोटोकॉल्स का पालन करने से ही नियंत्रित किया जा सकता है.

लेकिन सरकारें लोगों के मूवमेंट पर पाबंदी लगाकर इसे रोकना चाहती हैं, जोकि संभव नहीं है जैसा कि पिछले साल के असफल अनुभव से जाहिर है. अतार्किक पाबंदियों से कोविड तो नियंत्रित होता नहीं है, उल्टे गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो जाते हैं, खासकर गरीब व मध्यवर्ग के लिए. लॉकडाउन के पाखंड तो प्रवासी मजदूरों के लिए जुल्म हैं, क्रूर हैं. कार्यस्थलों के बंद हो जाने से गरीब प्रवासी मजदूरों का शहरों में रहना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य हो जाता है, खासकर इसलिए कि उनकी आय के स्रोत बंद हो जाते हैं और जिन ढाबों पर वह भोजन करते हैं उनके बंद होने से वह दाल-रोटी के लिए भी तरसने लगते हैं.

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#Lockdown: लौक डाउन की पाबन्दी में अनचाही प्रैगनेंसी से कैसें बचें

कोरोना के खतरे को देखते हुए अब आप भी घर से बाहर नहीं निकलेंगें और जब घर से बाहर नहीं निकलेंगे तो निश्चित ही खाली तो बैठेंगे नहीं. आप कहानियां पढेंगे, टीवी देखेंगे, सोसल मीडिया की ख़ाक छानेंगे, कोरोना के बारे में जाननें के लिए इंटरनेट की दुनियां में खो भी जायेंगे. भले ही आप ने आज तक घर में बीबी के साथ खाना पकाने में मदद न की हो लेकिन इस खाली समय में आप अब खाना भी पकाएंगे. यह सब करनें से तो दिन कटने वाला नहीं हैं. इस लिए बीबी के साथ रोमांस भी तो करेंगे.

लेकिन संभल कर क्यों की अगर आप का परिवार पूरा हो चुका है और अब आप और बच्चे नहीं चाहते हैं या अभी आप नें  बच्चे ही की प्लानिंग ही नहीं की है तो कोरोना लौकडाउन में किये जाने वाले रोमांस के दौरान की छोटी सी भी लापरवाही आप के और आपके साथी के लिए मुसीबत बन सकता हैं. क्यों की रोमांस करने को सरकार ने इमरजेंसी में तो रखा नहीं है. ऐसे में हमबिस्तर से होने वाली अनचाही प्रेगनेंसी से बचनें के लिए आप बाहर निकल कर कंडोम, कौन्ट्रसेप्टिव पिल यानी गर्भनिरोधक गोली जैसी कोई चीज नहीं ले सकतें हैं.

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चूंकि आप लौकडाउन के चलते घर में कैद हैं तो कहीं ऐसा न हो की आप की हमबिस्तर होने की चाहत साथी के ऊपर भारी पड़ जाए. तो ऐसे में गर्भनिरोधक की कमी के चलते साथी प्रैग्नेंट भी न हों और लौकडाउन में रोमांस भी हो जाए. इसके लिए इन उपायों को अपना कर आप अनचाही प्रैगनेंसी से बच सकतें हैं.

पुलआउट मैथेड

कोरोना के कहर के बीच और लौकडाउन के दौरान अगर आप के पास कंडोम या गर्भनिरोधक गोलियों का स्टाक ख़त्म हो गया है या उपलब्धता नहीं हो पा रही है तो निश्चित ही यह मैथेड आप के लिए प्रभावी हो सकता है. ऐसे स्थिति में सेक्स के दौरान मेल साथी को सेक्स के अंतिम क्षणों में अपने अंग को वेजाइना से बाहर निकालना होता है. जिससे शुक्राणु गर्भाशय तक नहीं पहुंच पाते है. इस वजह से गर्भधारण की संभवना शून्य हो जाती है. लेकिन पुलआउट कंडीशन में सेल्फ कंट्रोल की बड़ी आवश्यकता होती है. ऐसे में जब आप के पास कोई उपाय नहीं है तो आप के सामने यही एक सहारा हो सकता है .

स्वास्थ्य कर्मियों का ले सहारा – 

लौकडाउन के दौरान भले ही आप के बाहर निकलनें पर पाबन्दी लगी हो लेकिन शहरों से लेकर गाँवों तक में तैनात स्वास्थ्य कर्मियों की इमरजेंसी ड्यूटी लगाईं गई है. जिन्हें परिवार को सीमित करने के साधनों को मुफ्त या बहुत ही मामूली कीमत पर वितरण हेतु उपलब्ध कराया गया है. इन स्वास्थ्य कर्मियों में आशा, ए एन एम जैसे लोग शामिल हैं. जिन्हें महानगरों से लेकर गांवों तक में सभी राज्यों में तैनात किया गया है. इनको आप काल कर घर पर बुला सकते हैं और उनसे आप अनचाही प्रेग्नेसी से बचनें वाले साधनों की मांग कर सकतें हैं. इसके अलावा मेडिकल स्टोर्स के खुलने पर भी पाबंदी नहीं लगाईं गई है और कई जगहों पर मेडिकल स्टोर्स संचालकों को होम डिलेवरी का भी निर्देश दिया गया है. इनको भी आप फोन कर कंडोम , कौन्ट्रसेप्टिव पिल्स मंगा सकतें हैं.

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किन साधनों का करें उपयोग-

हमबिस्तर के दौरान वैसे तो आप अपनें मर्जी से परिवार नियोजन के साधनों का उपयोग कर सकतें हैं. अगर आपने बिना किसी गर्भनिरोधक साधन के ही सम्बन्ध बना लिया है तो इसके लिए आप आशा कर्मी से इमरजेंसी कौन्ट्रसेप्टिव पिल्स की मांग कर सकतें हैं. इसे हमबिस्तर होने के 72 घंटों के भीतर महिला को खाना होता है. यह इमरजेंसी कौन्ट्रसेप्टिव पिल्स आशा के पास केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को भरपूर मात्रा में उपलब्ध कराई गई हैं. इनके पास कंडोम भी मुफ्त वितरण के लिए उपलब्ध कराया गया है. इसके अलावा माला डी, माला एन जैसी गोलियों का उपयोग भी किया जा सकता है. यह गोलियां भी स्वास्थ्य कर्मियों को फोन कर घर पर ही मुफ्त में मंगाया जा सकता है. लेकिन माला डी, माला एन जैसी गोलियां स्टीरौयड होने के कारण हौर्मोनल होती हैं.  जिसके शरीर पर साइड इफेफ्ट भी देखे जा सकतें है लेकिन इस लॉक डाउन के दौरान यह भी आप की साथी बन सकती हैं.

छाया सबसे अच्छा साधन – 

लौकडाउन के बीच लगी पाबंदियों में अनचाहे गर्भ से बच पायें इसके लिए उपलब्ध साधनों में शामिल खाने की गोलियों में छाया को सबसे अच्छा माना गया है. यह नान हार्मोनल गोली है जो सरकार द्वारा मुफ्त वितरण हेतु छाया के नाम से स्वास्थ्य कर्मियों को को उपलब्ध कराई गई है. महिला को इसे माला-एन की तरह प्रतिदिन सेवन नहीं करना पड़ता है. छाया गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन तीन माह तक सप्ताह में दो बार और तीन माह पूरा होने के बाद सप्ताह में केवल एक बार ही करना होता है. इसमें स्टीरॉयड न होने से यह नान हर्मोनल गर्भ निरोधक गोली होती है, जिसका कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है. हार्मोनल गोलियों की तरह छाया के सेवन से मोटापा, मतली होना, उल्टी या चक्कर आना, अधिक रक्तस्त्राव, मुहांसे जैसे कोई दुष्प्रभाव नहीं होते.  इस कारण यह अधिक सुरक्षित है.
तो आप भी लॉक डाउन के दौरान निश्चिंत होकर घर पर अपने साथी के साथ रोमांस कर सकतें है, हमबिस्तर हो सकतें हैं. बस ऊपर बताई गई बातों का ख्याल आप को रखना होगा. आप यह न सोचें की आप को इस इमरजेंसी में गर्भनिरोधक साधन कहाँ मिलेंगे. आप इसे स्वास्थ्य कर्मियों से मुफ्त में घर मंगा सकतें हैं इसके अलावा सेल्फ कंट्रोल द्वारा पुलआउट मैथेड का प्रयोग भी कर सकतें हैं. इस लिए इन बातों का ध्यान जरुर रखें नहीं तो लॉक डाउन की पाबंदियां अनचाहे गर्भ के रूप में सामने आ सकतीं हैं.
इन उपायों के अलावा भी अनचाही प्रैग्नेसी से बचनें के कई स्थाई और अस्थाई उपाय हैं जिसका उपयोग किया जा सकता है. लेकिन यह समय बाकी के उपायों के अजमाने का नहीं हैं. इसे लिए इन्हीं उपायों के सहारे आप साथी के साथ को हसीन बना सकतें हैं.

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