वह फोटो ब्राजील के एक कब्रिस्तान की थी. उस फोटो के नीचे जो लिखा था, वह और भी डराने वाला था, जो इस तरह था कि ‘ब्राजील में कोरोना का नया स्वरूप तबाही मचाए हुए है. यहां के साओ पाउलो शहर में इतनी जानें जा चुकी हैं कि उन शवों को दफनाने के लिए जगह कम पड़ गई है. ऐसे में पुरानी कब्रों को खोद कर कंकाल निकाले जा रहे हैं और नए शव दफनाने के लिए जगह बनाई जा रही है. पिछले हफ्ते ब्राजील में 60 हजार से ज्यादा मौतें हुई हैं.’
दुनियाभर में कोरोना महामारी की दूसरी लहर आ चुकी है. भारत भी इस से अछूता नहीं है. दिल्ली को ही देख लें. वहां मार्च महीने के बाद कोरोना के मामले इस तरह तेजी से बढ़े कि वहां रात का कर्फ्यू तक लगाना पड़ा.
ऐसा नहीं है कि वहां कोरोना की टैस्टिंग नहीं की जा रही है, बल्कि वहां तो रिकौर्ड एक लाख से ज्यादा लोगों की कोरोना जांच की गई, कोरोना का टीका भी लगाया जा रहा है, पर इस से हालात काबू में आते नहीं दिखे.
पूरे देश की बात करें, तो पिछले 6 महीने के टौप पर कोरोना का आतंक रहा और बहुत से शहर तो दोबारा लौक होने लगे. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कई जिलों में बंदिशें लगाई गईं.
आम तो क्या खास लोग भी इस भयंकर बीमारी की चपेट में आ गए, जिन में रौबर्ट वाड्रा, सचिन तेंदुलकर, अक्षय कुमार और बड़ेबड़े अस्पतालों के डाक्टर तक शामिल थे.
गरीबों में खलबली
पिछले साल के लौकडाउन में लोगों को पता ही नहीं था कि यह बीमारी कितनी गंभीर है, इसलिए वे इस हद तक घबरा गए थे कि आननफानन अपनेअपने मूल इलाकों की तरफ बोरियाबिस्तर समेट कर जैसे हुआ निकल पड़े. तब उन पर मुसीबतें आई थीं, तो बहुत से लोगों ने उन की मदद भी की थी.
रोजगार छोड़ कर वे किसी तरह कंगाली में जिए, जो काम मिला उसे किया और अपने दिन गुजारे. कोरोना थोड़ा सुस्त हुआ तो फिर बड़े शहरों की तरफ रुख किया, पर उन का इस बार का पलायन और भी भयावह होगा. मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में तो इस का असर दिखने लगा है.
इन में से ज्यादातर कुशल और अर्धकुशल मजदूर हैं, जो मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, तेलंगाना और ओडिशा जैसे राज्यों से संबंध रखते हैं.
मुंबई की धारावी कच्ची बस्ती में पहले भी कोरोना बम फूटा था. वहां के कामगार घर वापसी को मजबूर हुए थे, जिन में से तकरीबन 80 फीसदी मजदूर अक्तूबर, 2020 तक वापस आ गए थे, मगर अब उन में से आधे से ज्यादा लोग फिर से अपने गांव लौटने की तैयारी कर रहे हैं या जा चुके हैं.
दिल्ली के रेलवे स्टेशनों और बसअड्डों पर भी मजदूर तबके की यह अफरातफरी दिखाई दे रही है. पर कुछ गरीब ऐसे भी हैं, जो दिल्ली और उस के आसपास के शहरों में रह कर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं और न चाहते हुए भी यह जगह नहीं छोड़ सकते हैं.
हरियाणा के फरीदाबाद के राजू नगर की एक झुग्गी में राजेश रहता है. झुग्गी अपनी है, पर रोजगार का कोई ठिकाना नहीं. परिवार उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में रहता है और राजेश यहां चाय का ठेला लगाता है. इस से पहले वह किसी ट्रैक्टर कंपनी में हैल्पर था और 9,000 रुपए हर महीने पगार पाता था. इतने में गुजारा नहीं था और कंपनी में हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती थी.
राजेश हिम्मत हार गया और नौकरी छोड़ दी. फिर इसी साल के जनवरी महीने में चाय का ठेला लगा लिया, पर उस के बाद क्या हुआ, यह उसी की जबानी सुनिए.
तकरीबन 50 साल के राजेश ने बताया, ‘‘नौकरी छोड़ कर सोचा कि चाय के ठेले से ठीकठाक कमाई हो जाएगी, पर मेरी सोच गलत थी. यहां गरीब को और ज्यादा दबाया जाता है. लोग मेरे ठेले पर चाय पीने आते हैं, बीड़ीसिगरेट, खाने का दूसरा छोटामोटा सामान लेते हैं, पर ज्यादातर उधार. ऐसा नहीं है कि वे नकद सामान नहीं ले सकते हैं, पर ऐसा करते नहीं हैं.
‘‘आप यकीन नहीं मानोगे कि पिछले ढाई महीने में मैं ने सिर्फ 8,000 रुपए की कमाई की है. इस से अच्छी तो ट्रैक्टर कंपनी की नौकरी ही थी. अब जब फिर से कोरोना बीमारी ज्यादा फैलने की खबरें आ रही हैं, तो इस से गरीब की और ज्यादा कमर टूट जाएगी.’’
इसी तरह दिल्ली के आया नगर में रहने वाले राहुल निगम का दर्द कुछ यों छलका, ‘‘मैं गुरुग्राम में बिरयानी का स्टाल लगा कर अपने परिवार का पेट पाल रहा था, पर लगातार कम होती आमदनी से मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी. अब मैं ने कड़ा फैसला लेते हुए अपना धंधा समेट दिया है और हमेशा के लिए वापस इंदौर जा रहा हूं.
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‘‘पिछले साल अचानक हुए लौकडाउन ने मेरा सारा कामधंधा चौपट कर दिया था. बाद में जो थोड़ाबहुत पैसा बचा हुआ था, वह भी खत्म हो गया. अब अगर दोबारा काम शुरू करने की भी सोचूं तो कोरोना महामारी के गंभीर हालात के चलते दोबारा लौकडाउन लग जाने का डर सता रहा है, इसीलिए यहां से जाना ही ठीक लग रहा है.’’
दिल्ली के आया नगर में ही रहने वाली बसंती लोगों के घरों में काम करती है. वह मूल रूप से उत्तराखंड की है और दिल्ली में रोजीरोटी के लिए आई है. वह अपने ड्राइवर पति और 2 बच्चों के साथ दिल्ली में रहती है.
बसंती ने अपना दर्द बताया, ‘‘पिछले लौकडाउन में पति और मेरा दोनों का काम छूट गया था. वे 6 महीने हम ने बहुत मुश्किल से गुजारे थे. हम पूरी तरह सरकार और मददगारों पर आश्रित थे. जब धीरेधीरे सब खुलने लगा, तब बड़ी मुश्किल से किसी घर में काम मिला. पति को तो अभी कुछ दिन पहले ही नौकरी मिली है.
‘‘गांव में सास बीमार रहती हैं. हमें वहां भी पैसे भेजने होते हैं. अगर फिर से लौकडाउन लग गया तो क्या होगा, यह सोच कर ही डर लगने लगता है. हम इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं हैं.’’
महरौली जिले के भाजपा महिला मोरचा में मंत्री और मालती फाउंडेशन की सहसंस्थापक मधु गुप्ता ने कोरोना के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए कहा, ‘‘दोबारा लगे नाइट कर्फ्यू से लोगों में खलबली सी मची हुई है. गरीब ही नहीं, बल्कि मिडिल क्लास भी बड़ा चिंतित है. समाज में हर कोई एकदूसरे से जुड़ा हुआ है. अगर मजदूर तबका या गरीब लोग यों शहर छोड़ कर अपने गांव जाएंगे तो सबकुछ ठप हो जाएगा.
‘‘अगर ऐसा हुआ तो पूरा देश फिर आर्थिक मंदी की तरफ चला जाएगा. पिछला लौकडाउन तो किसी तरह झेल गए थे, पर अब तो हिम्मत ही टूट जाएगी. सरकार को सबकुछ ध्यान में रख कर कोई भी फैसला लेना होगा. आम आदमी की सोचनी होगी.’’
चुनौतियां हैं बड़ी
कोरोना को झेलते हुए एक साल से ऊपर का समय हो गया है. टीका जरूर आ गया है, पर वह भी बीमारी दूर भगाने का पक्का इलाज नहीं है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वीरवार, 15 अप्रैल तक देश में तकरीबन 10 करोड़ डोज दिए जा चुके थे, पर जिस तरह से कोरोना के केस बढ़ने लगे हैं, अभी भी यह कोशिश नाकाफी लग रही है.
यह दूसरी लहर तब तेजी से लौटी है, जब लगने लगा था कि अब कोरोना पर काबू पाना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा और लोगों को रोजगार पाने में आसानी होगी. लेकिन बड़ेबड़े शहरों में लगे रात के कर्फ्यू ने लोगों खासकर उस गरीब कामगार तबके की सांसें अटका दी हैं, जो रोज कुआं खोद कर पानी पीता है. वह दोबारा शहर छोड़ कर अपने गांव जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा और जो लोग चले भी जाएंगे, उन्हें फिर भुखमरी का सामना करना पड़ेगा. इस बार कोई सोनू सूद उन की मदद करेगा, इस शक है. हां, ऐसे लोगों को लूटने वालों की लार जरूर टपकने लगेगी.
अमेरिका की एक संस्था की बात मानें, तो पिछले एक साल में कोरोना महामारी के चलते भारत में रोजाना 725 रुपए से 1,450 रुपए की कमाई करने वाले 3.20 करोड़ लोग मध्यम आय वर्ग से निम्न आय वर्ग में चले गए हैं. इतना ही नहीं, रोज तकरीबन 150 या उस से कम रुपए कमाने वाले निम्न आय वर्ग का आंकड़ा बढ़ कर 7.5 करोड़ तक पहुंच गया है.
कोरोना महामारी दोबारा बड़ी गंभीर समस्या के रूप में उभरी है. इस का असर देश की माली हालत पर पड़ेगा. लोगों में निराशा, हताशा और असुरक्षा की भावना जागेगी, खुद के प्रति भी और सरकार के प्रति भी.