"बाबा रामदेव" से "लाला रामदेव" बने पतंजलि के प्रमुख स्वघोषित बाबा, स्वयं घोषित महान योगाचार्य बाबा रामदेव का हट और उनका व्यवहार सीधे-सीधे कानून सरकार और संविधान को चैलेंज करने वाला है.

वह यह कहना चाहते हैं कि आज देश में वह स्वयंभू महाशक्ति है. शासन प्रशासन को उनके खीसे में है, वे साफ-साफ यह कहना चाहते हैं कि केंद्र की नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार के रहते उनका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता, क्योंकि प्रधानमंत्री तक सीधा उनका दखल और अपना रूतबा है.

बाबा रामदेव जब तलक एक साधारण योगी थे और अपना काम निष्ठा पूर्वक कर रहे थे, तब तक उनकी सभी ओर जय जयकार थी. उन्हें देश का हर छोटा बड़ा आदमी सम्मान की दृष्टि से देखता था. क्योंकि वह योग को जन जन तक पहुंचाने का काम इमानदारी से कर रहे थे. मगर जैसे ही उन्होंने राजनीति का दामन थामा और बाबा से लाला बनने की ओर अग्रसर हुए तो उनके स्वार्थ ने उन्हें अपने मार्ग से भटका दिया.यही कारण है कि आज वह कोरोना संक्रमण काल में अपनी सेवा भावाना को प्रदर्शित करने की अपेक्षा वाक- युद्ध में लग गए हैं और डॉक्टरों, एलोपैथी सिस्टम को चैलेंज कर रहे हैं. परिणाम स्वरूप देशभर में यह चर्चा का मुद्दा बन गया है.

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एक स्वयंभू सत्ता संचालक!

बाबा रामदेव जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं उनकी एक एक शब्द और भाव भंगिमा से यह स्पष्ट झलक रहा है कि वे देश में आज प्रधानमंत्री दामोदरदास मोदी के संरक्षण में स्वयंभू सत्ता के संचालक बन गए हैं. उन्हें गर्व और घोर घमंड है कि वह देश की सत्ता को बनाते हैं और बिगाड़ने की कूबत रखते हैं. क्योंकि वे बहुत लोकप्रिय हो चुके हैं और जनता उनको बहुत चाहती है. यही नहीं वह बहुत महान काम कर रहे हैं, यह बात उन की बातों से साफ झलकती है कि उन्हें अपने आप पर गर्व है कि मैं मैं हूं. मेरे जैसा देश में दूसरा कोई नहीं है. और जहां तक सत्ता की बात है सत्ता तो मेरे पतंजलि के मुख्य गेट की चेरी है. यही भाव भंगिमा लेकर के बाबा रामदेव आत्मविश्वास से लबरेज पूरे एलोपैथिक सिस्टम पर प्रहार पर प्रहार कर रहे हैं. और जब कोई उनसे निवेदन करते हुए कहता है कि यह गलत है तो उसे आंख दिखाते हैं और जब कोई कानून की बात करता है तो वे पीछे हट जाते हैं और माफी मांग लेते हैं.

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