तेजस्वी प्रकाश ने नया घर लेते ही डाली ब्रेकअप की पोस्ट, जानें मामला

टीवी की मशहूर एक्ट्रेस तेजस्वी प्रकाश इन दिनों काफी ज्यादा चर्चा में हैं, वजह जानकर आप भी चौक जाएंगे, बता दें कि अपने काम की वजह से तेजस्वी  प्रकाश इन दिनों चर्चा में बनी हुईं है.

तेजस्वी प्रकाश और करण कुंद्रा अपने रिलेशन को लेकर चर्चा में थें, तेजस्वी प्रकाश का ब्रेकअप पोस्ट खूब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, लोग भी तेजस्वी के इस पोस्ट को देखकर सदमें में आ गए हैं.

 

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इस खबर के आते ही करण के फैंस भी सदमें में आ गए हैं, तेजस्वी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि मैंने ब्रेकअप कर लिया है, क्योंकि मैं नाची हूं. इस पोस्ट में तेजस्वी करण कुंद्रा के साथ बाकी पर डांस वाले पोज में नजर आ रही हैं.

दरअसल, करण कुंद्रा और तेजस्वी प्रकाश इन दिनों गोवा में हॉलीडे मना रहे हैं. तेजस्वी ने गोवा में आलिशान घर लिया है. कुछ दिनों पहले वह अपनी डायमंड रिंग शेयर करते हुए लिखा था कि हां ये मेरी है.

तेजस्वी प्रकाश और करण कुंद्रा अपने रिलेशल को लेकर काफी ज्यादा सीरियस हैं. खबर है कि जल्द ही वह दोनों शोदी के बंधन में बंधने वाले हैं.

YRKKH: अक्षरा को तलाक देकर, माया से शादी करेगा अभिमन्यु!

ये रिश्ता क्या कहलाता है सीरियल इन दिनों टीआरपी लिस्ट में है, इसके साथ यह सीरियल लोगों के दिलों पर छाया हुआ है. कुछ समय पहले इस सीरियल की टीआरपी लिस्ट कम हो गई थी.

जिस वजह से मेकर्स ने अपनी कमर कस ली हैं, की इस सीरियल की टीआरपी लिस्ट को आगे बढ़ाना है. जिसके लिए इस सीरियल में कुछ टर्न आने वाला है.


आने वाला टविस्ट लोगों को हिला कर दिया है, इस शो में अभिमन्यु जल्द ही अपनी दूसरी शादी की घोषणा करने वाला है.

अक्षरा को अब छोड़कर अब अभिमन्यु माया के साथ शादी करने का फैसला लिया है. अक्षरा अभिमन्यु को रोकने की कोशिश करती है लेकिन वह रुकता नहीं है वह अपना फैसला ले लिया है, उसी पर अड़ा हुआ है.

जब अभिमन्यु डॉक्टर कुणाल से अक्षरा केबारेमें पूछता है तो वह कहता है कि वह अपने भाई को बचाने के लिए मारिशस गई थी, जिससे अभिमन्यु को लगता है कि उसे अक्षरा ने धोखा दिया है. इन सभी के बीच मंजरी को दिल का दौरा पड़ता है.

जिससे अभिमन्यु को डॉक्टर म्युजिक थेरेपी की सलाह देता है. अभिमन्यु अक्षरा को फोन लगाने की कोशिश करता है लेकिन वह बात नहीं मानती हैं. उसका फोन लगता नहीं है.

अब फैंस को इस दिन को इंतजार है कि इस सीरियल में क्या होने वाला है.

तेजस्वी यादव बिहारियों को देंगे नौकरी

महागठबंधन 2 की सरकार ने कहा है कि वह बिहार में 20 लाख नौकरियां देगी. तेजस्वी यादव का वादा कितना चलता है या चल सकता है, यह पूरे शक में है. बिहार की सरकार के पास 20 लाख और लोगों को नौकरियां देना नामुमकिन है क्योंकि सरकार के खजाने में इतना पैसा है ही नहीं. फक्कड़ सरकार तो वैसे ही भीख का कटोरा ले कर केंद्र सरकार के सामने खड़ी रहती है या बैंकों से उधार लेती रहती है.
असलियत यह है कि जनता को सम?ा दिया गया है कि नौकरी वह है जिस में ऊंचे पंडों, पादरियों की तरह काम करना न पड़े और बातों से ऐशोआराम मिल जाए.

यह सिर्फ सरकारी नौकरी में हो सकता है जहां वेतन पैंशन की तरह मिलता है और दिन पान खाने में, चुगली करने में, घूमनेफिरने या रिश्वतें बटोरने में बीतता है. काम होता है तो रुपए में 10 पैसे. बाकी 90 पैसे बटोरने के लिए जो मेहनत करनी पड़ती है, उसे नौकरी कहना चाहें तो कह लें पर है वह लूट ही.

तेजस्वी यादव अगर 20 लाख नौकरियां देने वाले हैं तो सम?ा लें कि 20 लाख और लुटेरों को बिहार के सिर पर बैठाया जाएगा. बिहारियों के लिए राज्य छोड़ कर जाना इसीलिए चालू रहेगा क्योंकि नौकरियां कुछ को मिल गईं तो दूसरों की जाएंगी.
सरकार कई बार कहती है कि उस ने खेतों से होती सीधी सड़क बना कर जौब क्रिएट की, नौकरियां दीं जिन्होंने सड़क बनाई. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. बस किसानों की जमीन हथियाई गई, सड़क के किनारों की जमीनें दिए मुआवजे से ज्यादा दाम पर बेची गईं, ठेकेदारों की चांदी हुई, टोल जमा करने वालों को मोटा कमीशन मिला और आम जनता को वह रास्ता भी नहीं मिला, जो उन की जमीन पर बना था.

जेसीबी के कारखाने ने हजारों नौकरियां दीं, यह अंगरेज प्राइम मिनिस्टर बोरिस जौनसन ने भारत आ कर जेसीबी फैक्टरी में कहा था पर यह जेसीबी भारत में जुल्म की निशानी बन चुकी है. आज इसे नफरत से देखा जाने लगा है. यह धौंस की निशानी है. जेसीबी नौकरियां नहीं देती, यह नौकरीपेशा लोगों के सिर से छत हटाने के लिए जानी जाने लगी है. देश की आनबानशान तिरंगे में जब किसी अपने का शव आए तो पता नहीं रहता कि तिरंगे को प्यार करें या उस से नफरत.

जौब देने के नाम पर हजारों तरह के टैक्स लगाए जाते हैं. कुछ राज्यों में नौकरियां शराब की बिक्री पर लगे टैक्स पर टिकी हैं. बढ़ते जीएसटी की वजह सरकारी नौकरी में लगे लोगों के सुख हैं. ईकौमर्स ने हजारों को नौकरियां दी हैं जो घरघर सामान पहुंचा रहे हैं पर लाखों छोटे दुकानदारों की दुकानें बंद करा दीं. यह कैसी नौकरी पैदा करने की खेती है? मंदिरों में पूजा के फूल उगाने के लिए गेहूं के खेत इस्तेमाल करना एकदम बेवकूफी और पागलपन है और सरकारें इसी में लगी हैं.

तेजस्वी यादव का वादा कोरा रह जाएगा यह तो पक्का है पर नरेंद्र मोदी के 2 करोड़ की नौकरियों के पक्के वादे से तो कम ही है. नरेंद्र मोदी तो वादों से मुकर जाने के लिए अब जाने जाते ही हैं. 

प्रेम की इबारत : भाग 3

‘‘बडे़ कठोर प्रेमी हैं ये लोग, जिस बेदर्दी से दीवारों पर लिखते हैं, इस से क्या इन का प्रेम अमर हो गया?’’ दीवार के स्वर में अब गुस्सा था.

‘‘ये क्या जानें प्रेम के बारे में?’’ झरोखे ने कहा, ‘‘प्रेम था रानी रूपमती का. गायन व संगीत मिलन, सबकुछ अलौकिक…’’

नर्मदा की पवित्रता की मुसकान उभरी, ‘‘मेरे दर्शनों के बाद रूपमती अपना काम शुरू करती थीं, संगीत की पूजा करती थीं.’’

बिलकुल, या फिर प्रेम का बावलापन देखा है तो मैं ने उस लड़की की काली आंखों में, उस के मुसकराते हुए होंठों में’’, हवा बोली, ‘‘मैं ने कई बार उस के चंदन से शीतल, सांवले शरीर का स्पर्श किया है. मेरे स्पर्श से वह उसी तरह सिहर उठती है जिस तरह पराग के छूने से.’’

चांदनी की किरणों में हलचल होती देख कर हवा ने पूछा, ‘‘कुछ कहोगी?’’

‘‘नहीं, मैं सिर्फ महसूस कर रही हूं उस लड़की व पराग के प्रेम को,’’ किरणों ने कहा.

‘‘मैं ने छेड़ा है पराग के कत्थई रेशमी बालों को,’’ हवा ने कहा, ‘‘उस के कत्थई बालों मेें मैं ने मदहोश करने वाली खुशबू भी महसूस की है. कितनी खुशनसीब है वह लड़की, जिसे पराग स्पर्श करता है, उस से बातें करता है धीमेधीमे कही गई उस की बातों को मैं ने सुना है…देखती रहती हूं घंटों तक उन का मिलन. कभी छेड़ने का मन हुआ तो अपनी गति को बढ़ा कर उन दोनों को परेशान कर देती हूं.’’

‘‘सितार के उस के रियाज को मैं भी सुनता रहता हूं. कभी घंटों तक वह खोया रहेगा रियाज में, तो कभी डूबने लगेगा उस लड़की की काली आंखों के जाल में,’’ झरोखा चुप कब रहने वाला था, बोल पड़ा.

ताड़ के पेड़ों की हिलती परछाइयों से इन की बातचीत को विराम मिला. एक पल के लिए वे खामोश हुए फिर शुरू हो गए, लेकिन अब सोया हुआ जीवन धीरे से जागने लगा था. पक्षियों ने अंगड़ाई लेने की तैयारी शुरू कर दी थी.

दीवार, झरोखा, पर्यटकों के कदमों की आहटों को सुन कर खामोश हो चले थे.

दिन का उजाला अब रात के सूनेपन की ओर बढ़ रहा था. दीवार, झरोखा, हवा, किरण आदि वह सब सुनने को उत्सुक थे, जो नर्मदा की पवित्रता उन से कहने वाली थी पर उस रात कह नहीं पाई थी. वे इंतजार कर रहे थे कि कहीं से एक अलग तरह की खुशबू उन्हें आती लगी. सभी समझ गए कि नर्मदा की पवित्रता आ गई है. कुछ पल में ही नर्मदा की पवित्रता अपने धवल वेश में मौजूद थी. उस के आने भर से ही एक आभा सी चारों तरफ बिखर गई.

‘‘मेरा आप सब इंतजार कर रहे थे न,’’ पवित्रता की उज्ज्वल मुसकान उभरी.

‘‘हां, बिलकुल सही कहा तुम ने,’’ दीवार की मधुर आवाज गूंजी.

उन की जिज्ञासा को शांत करने के लिए पवित्रता ने धीमे स्वर में कहा.

‘‘क्या तुम सब को नहीं लगता कि महल के इस हिस्से में अभी कहीं से पायल की आवाज गूंज उठेगी, कहीं से कोई धीमे स्वर में राग बसंत गा उठेगा. कहीं से तबले की थाप की आवाज सुनाई दे जाएगी.’’

‘‘हां, लगता है,’’ हवा ने अपनी गति को धीमा कर कहा.

‘‘यहां, इसी महल में गूंजती थी रानी रूपमती की पायलों की आवाज, उस के घुंघरुओं की मधुर ध्वनि, उस की चूडि़यों की खनक, उस के कपड़ों की सरसराहट,’’ नर्मदा की पवित्रता के शब्दों ने जैसे सब को बांध लिया.

‘‘महल के हर कोने में बसती थी वीणा की झंकार, उस के साथ कोकिलकंठी  रानी के गायन की सम्मोहित कर देने वाली स्वर लहरियां… जब कभी बाजबहादुर और रानी रूपमती के गायन और संगीत का समय होता था तो वह पल वाकई अद्भुत होते थे. ऐसा लगता था कि प्रकृति स्वयं इस मिलन को देखने के लिए थम सी गई हो.

‘‘रूपमती की आंखों की निर्मलता और उस के चेहरे का वह भोलापन कम ही देखने को मिलता है. बाजबहादुर के प्रेम का वह सुरूर, जिस में रानी अंतर तक भीगी हुई थी, बिरलों को ही नसीब होता है ऐसा प्रेम…’’

‘‘उन की छेड़छाड़, उन का मिलन, संगीत के स्वरों में उन का खो जाना, वाकई एक अनुभूति थी और मैं ने उसे महसूस किया था.

‘‘मुझे आज भी ऐसा लगता है कि झील में कोई छाया दिख जाएगी और एहसास दिला जाएगी अपने होने का कि प्रेम कभी मरता नहीं. रूप बदल लेता है समय के साथ…’’

‘‘हां, बिलकुल यही सब देखा है मैं ने पराग के मतवाले प्रेम में, उस की रियाज करती उंगलियों में, उस के तराशे हुए अधरों में,’’ झरोखे ने चुप्पी तोड़ी.

‘‘गूंजती है जब सितार की आवाज तो मांडव की हवाओं में तैरने लगते हैं उस सांवली लड़की के प्रेम स्वर, वह देखती रहती है अपलक उस मासूम और भोले चेहरे को, जो डूबा रहता है अपने सितार के रियाज में,’’ दीवार की मधुर आवाज गूंजी.

‘‘कितना सुंदर लगता था बाजबहादुर, जब वह वीणा ले कर हाथों में बैठता था और रानी रूपमती उसे निहारती थी. कितना अलौकिक दृश्य होता था,’’ नर्मदा की पवित्रता ने बात आगे बढ़ाई.

इस महान प्रेमी को युद्ध और उस के नगाड़ों, तलवारों की आवाजों से कोई मतलब नहीं था, मतलब था तो प्रेम से, संगीत से. बाज बहादुर ने युद्ध कौशल में जरा भी रुचि नहीं ली, खोया रहा वह रानी रूपमती के प्रेम की निर्मल छांह में, वीणा की झंकार में, संगीत के सातों सुरों में.

‘‘ऐसे कलाकार और महान प्रेमी से आदम खान ने मांडव बड़ी आसानी से जीत लिया, फिर शुरू हुई आदम खान की बर्बरता इन 2 महान प्रेमियों के प्रति…’’

‘‘कितने कठोर होंगे वे दिल जिन्होंने इन 2 संगीत प्रेमियों को भी नहीं छोड़ा,’’ हवा ने अपनी गति को बिलकुल रोक लिया.

‘‘हां, वह समय कितना भारी गुजरा होगा रानी पर, बाज बहादुर पर. कितनी पीड़ा हुई होगी रानी को,’’ नर्मदा की पवित्रता बोली, ‘‘रानी इसी महल के कक्ष में फूटफूट कर रोई थीं.’’

‘‘आदम खान रानी के प्रस्ताव से सहमत नहीं हुआ. रानी का कहना था कि वह एक राजपूत हिंदू कन्या है. उस की इज्जत बख्शी जाए…आदम खान ने मांडव जीता पर नहीं जीत पाया रानी के हृदय को, जिस में बसा था संगीत के सुरों का मेल और बाज बहादुर का पे्रम.

‘‘जब आदम खान नियत समय पर रानी से मिलने गया तो उस ने रूपमती को मृत पाया. रानी ने जहर खा कर अमर कर दिया अपने को, अपने प्रेम को, अपने संगीत को.’’

‘‘हां, केवल शरीर ही तो नष्ट होता है, पर प्रेम कभी मरा है क्या?’’ झरोखा अपनी धीमी आवाज में बोला.

तभी दीवार की धीमी आवाज ने वहां छाने लगी खामोशी को भंग किया, ‘‘हर जगह मुझे महसूस होती है रानी की मौजूदगी, कितना कठोर होता है यह समय, जो गुजरता रहता है अपनी रफ्तार से.’’

‘‘पराग, वह लंबा लड़का, जो रियाज करने आता है और उस के साथ आती है वह सुंदर आंखों वाली लड़की. मैं ने उस की बोलती आंखों के भीतर एक मूक दर्द को देखा है. वह कहती कुछ नहीं, न ही उस लड़के से कुछ मांगती है. बस, अपने प्रेम को फलते हुए देखना चाहती है,’’ झरोखा बोला.

‘‘हां, बिलकुल सही कह रहे हो. प्रेम की तड़प और इंतजार की कसक जो उस के अंदर समाई है वह मैं ने महसूस की है,’’ हवा ने अपने पंख फैलाए और अपनी गति को बढ़ाते हुए कहा, ‘‘उस के घंटों रियाज में डूबे रहने पर भी लड़की के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आती. वह अपलक उसे निहारती है. मैं जब भी पराग के कोमल बालों को बिखेर देती हूं, वह अपनी पतलीपतली उंगलियों से उन को संवार कर उस के रियाज को निरंतर चलने देती है.’’

‘‘सच, कितनी सुंदर जोड़ी है. मेरे दामन में कभी इस जोड़ी ने बेदर्दी से अपना नाम नहीं खुरचा. अपनी उदासियों को ले कर जब कभी वह पराग के विशाल सीने में खो जाती है तो दिलासा देता है पराग उस बच्ची सी मासूम सांवली लड़की को कि ऐसे उदास नहीं होते प्रीत…’’ दीवार ने कहा.

‘‘यों ही प्रेम अमर होता है, एक अनोखे और अनजाने आकर्षण से बंधा हुआ अलौकिक प्रेम खामोशी से सफर तय करता है,’’ झरोखा बोला.

हवा ने अपनी गति अधिक तेज की. बोली, ‘‘मैं उसे देखने फिर आऊंगी, समझाऊंगी कि ऐ सुंदर लड़की, उदास मत हो, प्रेम इसी को कहते हैं.’’

खामोशी का साम्राज्य अब थोड़ा मंद पड़ने लगा था, सुबह की किरणों ने दस्तक देनी शुरू जो कर दी थी.

ड्रीम डेट- भाग 1 : आरव ने कैसे किया अपने प्यार का इजहार

सच तो यह है कि आरव से मिलना ही एक ड्रीम है और जब उस डे और डेट को अगर सच में एक ड्रीम की तरह से बना लिया जाए तो फिर सोने पर सुहागा. हां, यह वाकई बेहद रोमांटिक ड्रीम डेट थी, मैं इसे और भी ज्यादा रोमांटिक और स्वप्निल बना देना चाहती थी. कितने महीनों के बाद हमारा मिलना हुआ था. एक ही शहर में साथसाथ जाने का अवसर मिला था. कितनी बेसब्री से कटे थे हमारे दिनरात, आंसूउदासी में. आरव को देखते ही मेरा सब्र कहीं खो गया. मैं उस पब्लिक प्लेस में ही उन के गले लग गई थी. आरव ने मेरे माथे को चूमा और कहा, ‘‘चलो, पहले यह सामान वेटिंगरूम में रख दें.’’

‘‘हां, चलो.’’

मैं आरव का हाथ पकड़ लेना चाहती थी पर यह संभव नहीं था क्योंकि वे तेजी से अपना बैग खींचते हुए आगेआगे चले जा रहे थे और मैं उन के पीछेपीछे.

‘‘बहुत तेज चलते हो आप,’’ मैं नाराज सी होती हुई बोली.

‘‘हां, अपनी चाल हमेशा तेज ही रखनी चाहिए,’’ आरव ने समझने के लहजे में मुझ से कहा.

‘‘अरे, यहां तो बहुत भीड़ है,’’ वे वेटिंगरूम को देखते हुए बोले. लोगों का सामान और लोग पूरे हौल में बिखरे हुए से थे.

‘‘अरे, जब आजकल ट्रेनें इतनी लेट हो रही हैं तो यही होना है न,’’ मैं कहते हुए मुसकराई.

‘‘कह तो सही ही रही हो. आजकल ट्रेनों का कोई समय ही नहीं है,’’ वे मुसकराते हुए बोले.

मेरी मुसकान की छाप उन के चेहरे पर भी पड़ गई. ‘‘फिर कैसे जाएं, क्या घर में बैठें?’’ मैं ने पूछा.

‘‘अरे नहीं भई, आराम से फ्लाइट से जाओ,’’ उन्होंने जवाब दिया.

‘‘यह भी सही है, आजकल फ्लाइट का सफर राजधानी ऐक्सप्रैस से सस्ता है.’’

वे हंसे, ‘‘बिलकुल ठीक कहा. कुछ समय बाद देखना, फ्लाइट वाले जोरजोर से आवाजें लगाएंगे. आओ, आओ, एक सीट बची है यहां की, वहां की. जैसे बस वाले लगाते हैं.’’

उन की बात सुन कर मैं भी जोर से हंस दी.

इसी तरह से मुसकराते, बतियाते हुए लेडीज वेटिंगरूम आ गया था. किसी तरह से उस में अपने सामान के साथ उन का सामान सैट किया.

‘‘चलो, अब बाहर चलते हैं, यहां बैठना तो बड़ा मुश्किल है. लेकिन बाहर सर्दी लगेगी.’’

‘‘नहीं, कोई सर्दीवर्दी नहीं. आओ,’’ वे मेरा हाथ पकड़ते हुए बोले.

मैं किसी मासूम बच्चे की तरह उन का? हाथ पकड़े बाहर की तरफ चलती चली गई.

‘‘चलो आओ, पहले तुम्हें यहां की फेमस चाय की दुकान से चाय पिलवाता हूं.’’

‘‘आप को यहां की चाय की दुकानें पता हैं?’’

‘‘हांहां, क्यों नहीं पता होंगी, क्या मैं यहां से कहीं आताजाता नहीं?’’

मैं जवाब में सिर्फ मुसकराई.

‘‘सुन भई, जरा 2 बढि़या सी चाय ले कर आओ,’’ उन्होंने वहां पहुंचते ही अपनी ठसकभरी आवाज में और्डर दिया.

कितने अपनेपन से कहा, जैसे जाने कब से उसे जानते हैं. वे शायद मेरे मन की भाषा समझ गए थे.

‘‘अरे, यह अपना यार है, बहुत ही बढि़या चाय बनाता है. मैं तो पहले कई बार सिर्फ चाय पीने के लिए ही यहां चला आता था.’’

वे बोल रहे थे और मैं उन के चेहरे को देख रही थी. न जाने कुछ खोज रही थी या उस चेहरे को अपनी आंखों में और भी ज्यादा भर लेना चाहती थी.

चाय मेज पर रख कर जाते हुए लड़के ने पूछा, ‘‘कुछ और भी चाहिए?’’

‘‘नहीं, बस यहां की चाय से ही तृप्त हो जाता हूं.’’

 

बीवी की शतरंजी चाल

प्रेम की इबारत

क्या नरेंद्र मोदी -“पानीदार नहीं रहे”

जिस रास्ते पर आज भारतीय जनता पार्टी के नेता चल रहे हैं अगर अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भी यही करती तो आज देश में भारतीय जनता पार्टी तो क्या अन्य दूसरी पार्टियां के कोई नामलेवा भी नहीं होते और उनकी राजनीति के गर्भ में ही भ्रूण हत्या हो जाती.

मगर कांग्रेस के नेताओं ने चाहे पंडित जवाहरलाल नेहरु हों अथवा श्रीमती इंदिरा गांधी अथवा अन्य ने लोकतंत्र पर सदैव विश्वास आस्था रखी और विपक्ष की विचारधारा को सदैव सम्मान दिया. गोवा में जिस तरह 8 विधायकों बदल बदल हुआ है और घटनाक्रम सामने आया है उससे एक सबसे बड़ा प्रश्न आज यह उठ खड़ा हुआ है कि सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी क्या अब पानीदार नहीं रहे हैं.

दरअसल, सत्ता और विपक्ष लोकतंत्र के दो ऐसे पहिए हैं जिनके बूते देश आगे बढ़ता है अगर सत्ताधारी यह समझ ले और ठान लें कि विपक्ष को निर्मूल करना है तो यह संभव है. मगर इससे जिस तानाशाही का जन्म होगा वह न तो देश के हित में हैं और ना ही देश के लोकतंत्र के हित में. गोवा में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस के 8 विधायकों का जिस तरह इस्तीफा दिलवा भाजपा प्रवेश करवाया गया है राजनीति के इतिहास में शर्मनाक घटना के रूप में याद किया जाएगा.

सवाल है, आज देश में जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार है तो देश किस दिशा में अग्रसर होगा एक तरफ है लोकतंत्र तो दूसरी तरफ है नाजी हिटलर शाही शासन .भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है हमें गर्व करते हैं कि भारत में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था है जहां सभी संविधानिक दायित्व के तहत देश के चारों स्तंभ अपने अपने कर्तव्य निर्वहन करते हैं. मगर आज स्थिति जैसी बनाई जा रही है उसे लोकतंत्र के लिए हितकारी कभी नहीं कहा जा सकता.

दरअसल, दलबदल एक ऐसा मसला है जिस पर किसी का कोई अंकुश नहीं है गोवा के मामले में यह आज सामने है. वहां सभी विधायकों को ईश्वर के नाम पर शपथ दिलाई गई थी और सभी ने यह कसम खाई थी कि हम दल बदल नहीं करेंगे मगर बड़े ही हास्यास्पद स्थिति में जिसे देश में देखा है गोवा में विपक्ष को खत्म करने का खेल हो गया.

गोवा और भारत जोड़ो यात्रा

भारत जोड़ो यात्रा के साथ राहुल गांधी ने जिस तरह देश को संदेश दिया है उससे कांग्रेस की स्थिति मजबूत बनने लगी है माना जा रहा है, शायद इसी से घबरा करके भाजपा ने गोवा में यह खेल किया  है.

कांग्रेसी नेता पवन खेड़ा में बड़ी गहरी बात कही है – “सुनाई है भारत जोड़ो यात्रा से बौखलाई भाजपा ने गोवा में “ऑपरेशन कीचड़” आयोजित किया है. सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो… जो भारत जोड़ने के इस कठिन सफ़र में साथ नहीं दे पा रहे, वो भाजपा की धमकियों से डर कर तोड़ने वालों के पास जाएं तो यह भी समझ लें कि भारत देख रहा है.’”

सचमुच आज देश में जिस तरह की गंदली राजनीति प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी कि भारतीय जनता पार्टी उनके संरक्षण में कर रही है यह सब कभी भुलाया नहीं जा सकेगा और आने वाला समय प्रत्युत्तर तो मांगेगा ही.

ईश्वर के नाम पर शपथ लेकर के विधायकों ने संकल्प लिया था कि हम दल बदल नहीं करेंगे अब जब यह खेल हो गया है तब गोवा मे सत्तारूढ़ भाजपा के पास होंगे 40 में से 33 विधायक हो गए हैं .

मार्च2022  में सरकार बनाने वाली भारतीय जनता पार्टी के साथ कांग्रेस के विधायक दल के विलय के साथ, तटीय राज्य में सत्तारूढ़ दल के पास 40 में से 33 विधायक हो गए हैं इनमें से 20 विधायक बीजेपी के टिकट पर जीते हुए हैं, 2 विधायक महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी से और तीन निर्दलीय जिन्होंने बीजेपी को समर्थन दिया. इसके पहले माइकल लोबो और कामत पर जुलाई में पहली बार जब वो दलबदल करना चाह रहे थे तब कांग्रेस पार्टी ने उनका ये प्रयास विफल कर दिया था.

अब  कांग्रेस के साथ रहने वाले तीन विधायक अल्टोन डी’कोस्टा, यूरी अलेमाओ और कार्लोस फरेरा हैं. कांग्रेस विधायकों ने फरवरी विधानसभा चुनाव से पहले एक मंदिर और एक चर्च सहित विभिन्न पूजा स्थलों पर दलबदल को लेकर शपथ ली थी. इस संबंध में उन्होंने एक शपथ पत्र पर भी हस्ताक्षर किए थे.

गोवा फॉरवर्ड पार्टी के अध्यक्ष विजय सरदेसाई ने  जो कहा है वह सारे देश की आवाज है- “कांग्रेस के जिन आठ विधायकों ने सभी राजनीतिक औचित्य, बुनियादी शालीनता और ईमानदारी के खिलाफ, धन के अपने लालच और सत्ता की भूख को आगे बढ़ाने का फैसला किया है, वे आज अपने बेशर्म स्वार्थ, लोभ और कपट का प्रदर्शन करते हुए,सर्वशक्तिमान ईश्वर की अवहेलना करते हुए बुराई के प्रतीक के रूप में खड़े हैं.”

पर्यटकों के लिए मिलेगी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधायें -जयवीर सिंह

उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री जयवीर सिंह ने कहा कि उ0प्र0 में पर्यटन की असीमित संभावनायें एवं निवेशकों के रूचि को देखते हुए बड़े पैमाने पर अवस्थापना सुविधाओं का विकास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश आगामी पांच वर्षों मंे 30 प्रतिशत घरेलू तथा 20 प्रतिशत विदेशी पर्यटकों के वृद्धि की संभावना है. जिससे 25 लाख लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा. उन्होंने कहा कि प्रक्रियाधीन पर्यटन नीति 2022 के तहत 10,000 करोड़ रूपये से अधिक निवेश का लक्ष्य रखा गया है. इस लक्ष्य को एक जिला एक पर्यटन केन्द्र के तहत प्राप्त किया जायेगा.

पर्यटन मंत्री आज होटल डी-पोलो क्लब स्पा रिजार्ट, धर्मशाला, हिमांचल प्रदेश में पर्यटन एवं अवस्थापना सुविधाओं के विकास विषय पर आयोजित 03 दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे. उन्होंने इस राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन के लिए केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री जी किशन रेड्डी तथा केन्द्रीय पर्यटन विभाग के अधिकारियों को बधाई दी. इस राष्ट्रीय सम्मेलन मं् विभिन्न प्रदेशों के पर्यटन मंत्री, केन्द्रशासित प्रदेशों के एलजी, प्रशासक, वरिष्ठ अधिकारी, भारत सरकार, पर्यटन मंत्रालय के उच्चाधिकारी, राज्यों के पर्यटन विभागाध्यक्ष एवं सेवाक्षेत्र के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि उ0प्र0 देश का सबसे बड़ा राज्य है. यहां पर हर जनपद में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए धार्मिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं पौराणिक स्थल मौजूद हैं. इन स्थानों पर पर्यटकों के पसंद के हिसाब से अवस्थापना सुविधाओं को विकसित किया जा रहा है.

श्री जयवीर सिंह ने कहा कि उ0प्र0 में सड़क, रेल, वायु तथा जल मार्ग के माध्यम से सभी धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थलों को जोड़ने के लिए अवस्थापना विकास के लिए वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में 940 करोड़ रूपये का प्राविधान किया गया है. पर्यटन के विकास की दृष्टि से प्रदेश को 12 सर्किट में बांटा गया है. सभी सर्किटों पर बुनियादी सुविधाओं के विकास पर कार्य तेजी से चल रहा है. बहुत से कार्य पूर्णता के अंतिम चरण में हैं.

पर्यटन मंत्री ने कहा कि ब्रज परिपथ में मथुरा, वृन्दावन, आगरा, रामायण परिपथ में लखनऊ, प्रयागराज के बीच के सभी स्थान एवं वन इको टूरिज्म, साहसिक पर्यटन स्थल, जल विहार, हेरिटेज आर्क के रूप में आगरा, लखनऊ एवं वाराणसी को जोड़कर बनाया जा रहा है. इसके अतिरिक्त महाभारत मेरठ, हस्तिनापुर, जैन परिपथ, सूफी परिपथ आदि शामिल हैं. इसके अलावा बौद्ध परिपथ के अंतर्गत लुम्बिनी, बोध गया, नालन्दा, राजगिरी, बैशाली, सारनाथ, श्रावस्ती, कुशीनगर, कौशाम्बी जैसे स्थलों को जोड़ा गया है.

श्री जयवीर सिंह ने कहा कि भारत की बौद्ध संस्कृति का प्रभाव दुनिया के अधिकांश देशों में है. इन देशो के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बौद्ध आस्था से जुड़े सभी स्थानों पर विश्वस्तरीय सुविधायें उपलब्ध कराई जा रही हैं. इसके अतिरिक्त हेरिटेज, टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए बुन्देलखण्ड के 31 किलों को चिन्हित किया गया है. पर्यटन की दृष्टि से इन्हें सजाने एवं संवारने के लिए सेन्टर फॉर इनवायरनमेंटल प्लानिंग एण्ड टेक्नोलॉजी (सीईपीटी) विश्वविद्यालय अहमदाबाद से सहयोग लिया जा रहा है.

पर्यटन मंत्री ने कहा कि पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा संचालित स्वदेश दर्शन स्कीम की नई गाइडलाइन के अनुसार प्रदेश की वैभवशाली सांस्कृतिक विरासत को देखते हुए विन्ध्याचल, नैमिषारण्य, प्रयागराज, चित्रकूट, संगिसा, आगरा, कानपुर, झांसी, महोबा, गोरखपुर एवं कुशीनगर को अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किये जाने के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है. इसके अतिरिक्त प्रदेश में इको टूरिज्म बोर्ड के गठन के साथ वेलनेस टूरिज्म के लिए तैयार किया जा रहा है. इसके साथ ही ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके अतिरिक्त उ0प्र0 पर्यटन एवं संस्कृति प्रोत्साहन परिषद का गठन किया गया है.

श्री जयवीर सिंह ने कहा कि उ0प्र0 में पर्यटन की अनंत संभावनायें हैं. इस क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करने तथा रोजगार सृजित करने के उद्देश्य से विभिन्न संभावनाओं को तलाशा जा रहा है. इसके साथ ही अध्यात्मिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक महत्व के स्थलों पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधायें विकसित की जा रही हैं. भगवान श्रीराम की अयोध्या नगरी, कृष्ण की मथुरा एवं काशी कॉरीडोर को अत्याधुनिक बनाया जा रहा है. श्री जयवीर सिंह ने कहा कि पर्यटन सेक्टर का अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है. प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी ने उ0प्र0 की अर्थव्यवस्था को एक अरब डॉलर बनाने का लक्ष्य रखा है. जिसमंे पर्यटन का अहम योगदान होगा. उन्होंने कहा कि अगले वर्ष जी-20 सम्मेलन में पर्यटन विभाग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेगा.

इस अवसर पर केन्द्रीय पर्यटन सचिव श्री अरविन्द सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत किया, इसके पश्चात केन्द्रीय पर्यटन रक्षा मंत्री श्री अजय भट्ट, एफएआईटीएच फेडरेशन के चेयरमैन श्री नकुल आनन्द, अध्यक्ष भारतीय पर्यटन विकास निगम श्री संबित पात्रा ने सम्बोधित किया. इसके अलावा असम के पर्यटन मंत्री, प्रमुख सचिव पर्यटन गुजरात तथा पर्यटन सचिव दादरा एवं नागर हवेली, दमन द्वीव ने भी अपने विचार रखे. उ0प्र0 के प्रमुख सचिव पर्यटन श्री मुकेश मेश्राम एवं अन्य अधिकारी इस सम्मेलन में मौजूद थे.

पाबिबेन रबारी : एक जुझारू औरत की दिलचस्प कहानी

एक जुझारू औरत की दिलचस्प कहानी एक औरत चाहे तो क्या नहीं कर सकती है और बात जब अपने काम के प्रति समर्पण की हो तो इस का कोई तोड़ नहीं, यह बात पाबिबेन रबारी ने सच कर दिखाई है. उन्होंने इस बात को गलत साबित कर दिया है कि पढ़ाईलिखाई और पैसे के बिना इनसान कुछ नहीं कर सकता. अगर इनसान में कुछ करगुजरने का जज्बा हो,

तो गरीबी के बीच पल कर भी वह अपनी मंजिल तक पहुंच सकता है, रास्ते के हर पत्थर को ठोकर मारते हुए आगे निकल सकता है. पाबिबेन रबारी ने एक कारीगर के तौर पर रबारी समुदाय की खत्म हो रही पारंपरिक कढ़ाईबुनाई कला को न सिर्फ बचाया, बल्कि दुनिया में उसे एक नई पहचान भी दिलाई और खुद को एक मजबूत औरत के तौर पर स्थापित भी किया. यही वजह है कि आज वे इंटरनैट पर छाई हुई हैं. पूरी दुनिया में उन की एक अलग पहचान है. पेश हैं, पाबिबेन रबारी से हुई बातचीत के खास अंश : आप अपने बचपन के बारे में कुछ बताइए? मेरा जन्म मुंद्रा तालुका के कुकड़सर गांव में साल 1984 में हुआ था.

हमारे रबारी समाज का मूल काम भेड़बकरियां चराना है. लिहाजा, मेरे पापा भी भेड़बकरियां चराते थे. तब हम 2 बहनें थीं और तीसरी बहन मां के पेट में थी. एक दिन जब मेरे पापा भेड़बकरियों को पानी पिलाने के लिए कुएं से पानी भरने लगे, तो उन का पैर फिसल गया और कुएं में गिरने से उन की मौत हो गई. दूसरी बार परिवार पर दुखों का पहाड़ तब टूट पड़ा, जब 2 महीने बाद घर में तीसरी भी बेटी ही आई. आज भले ही लोगों की सोच बदल रही है और बेटियों को महत्त्व दिया जाने लगा है,

पर उस जमाने में बेटियों का कोई मोल नहीं था. बेटों को ही सबकुछ समझा जाता था, इसलिए लोगों को बेटा तो चाहिए ही था. आप के पापा के गुजर जाने के बाद आप की मां ने आप तीनों बहनों को कैसे संभाला? पापा के गुजर जाने के बाद हमारे पास आजीविका का कोई साधन नहीं था, इसलिए मां लोगों के घरों में काम करने लगीं और साथ में मजदूरी भी. उस समय मैं घर पर रह कर अपनी छोटी बहनों का ध्यान रखती थी. बाकी बच्चों को स्कूल जाते देख कर क्या आप का मन नहीं करता था? मुझे पढ़नेलिखने का बहुत शौक था. मां से जिद की कि मुझे भी पढ़ना है,

तो वे मुझे स्कूल भेजने लगीं. मैं अपनी छोटी बहनों को साथ ले कर स्कूल जाती थी, लेकिन उस समय न तो मेरे पास स्कूल की यूनिफार्म थी, न किताबें थीं और न ही पैरों में चप्पल, लेकिन मन में उत्साह था कि मैं स्कूल पढ़ने जा रही हूं. हमारे गांव में तब 4 जमात तक ही स्कूल था. पास के गांव में एक स्कूल था, जहां शिक्षा मुफ्त में मिलती थी. लेकिन उतनी दूर पैदल जाना मुश्किल था. मां के पास उतने पैसे नहीं होते थे कि रिकशा कर दें. पर मैं जिद करने लगी कि मुझे आगे और पढ़ना है, लेकिन मां कहने लगीं कि जो तेरे नसीब में था पढ़ लिया. अब आ कर मेरे काम में हाथ बंटा. मां के काम का बोझ हलका करने के लिए मैं बड़े घरानों में पानी भरने का काम करने लगी,

जिस से मुझे रोजाना एक रुपया मिलता था. इस तरह से मेरी पढ़ाई छूट गई. आप ने एंब्रोइडरी का काम कैसे सीखा? हमारे समाज में शिक्षा से ज्यादा इस इस काम को महत्त्व दिया जाता है, इसलिए 7 से 13 साल की लड़कियां एंब्रोइडरी सीखने लगती हैं. इस तबके में जब बेटी बड़ी होती है, तो उसे खुद ही अपने दहेज का सामान जुटाना पड़ता है. कोईकोई ही अपने बेटियों को दहेज में फ्रिज, टीवी देते हैं, पर हमारे में एंब्रोइडरी का सामान देने का रिवाज है. जो पैसे वाले मांबाप होते हैं, वे अपनी बेटियों को यह सामान खरीद कर दे देते हैं, ताकि बेटी घर में बैठी न रह जाए, लेकिन जिन लड़कियों के मांबाप गरीब होते हैं और बेटी को हाथ की कढ़ाई का काम नहीं आता, तो वह 30-35 साल तक मांबाप के घर कुंआरी बैठी रह जाती थी.

अपने बनाए सामान को बाजार में उतारने का आइडिया आप के दिमाग में कैसे आया? एक बार ऐसे ही मेरे मन में खयाल आया कि अपना बनाया इतना सुंदर सामान हम घर में इस्तेमाल करते हैं और जब हम में इतनी अच्छी कला है, तो क्यों न एक बार मार्केट में ट्राई करूं. यही सोच कर मैं ने इसे बाजार में उतारा. क्या आप ने इस काम की ट्रेनिंग भी ली है? नहीं, कहीं से भी ट्रेनिंग नहीं ली है. पर मैं बाहर जा कर सीखना चाहती थी, क्योंकि मुझे और ज्यादा सीखने का शौक था. लेकिन मां कहने लगीं कि अब जाने दो, बेकार में लोग बातें बनाएंगे. आप ने अपने काम को लोगों तक कैसे पहुंचाया? कच्छ में पहले छोटीछोटी संस्थाएं थीं. वे हम से काम करवा कर माल ले जाते और बदले में हमें मजदूरी देते थे.

कोई व्यापारी भी हम से हमारा माल खरीद कर अपने नाम से बेचता था. बहुत सालों तक यों ही चलता रहा. लेकिन मन में एक बात खटकती रहती थी कि हमारी मेहनत का न तो ठीक से पैसा मिल रहा है, न ही वैल्यू. हमें हमारी कला की कोई पहचान नहीं मिल रही थी. हमारे बनाए सामान या तो किसी बड़े ब्रांड के नाम पर बिकता है या कोई व्यापारी इसे बेचता है. हमारा तो कहीं जिक्र भी नहीं करते थे ये लोग. आज कारीगर को नाम, पैसा, वैल्यू सब मिल रहा है, पर उस जमाने में ऐसा नहीं था. मेहनत हमारी होती थी और नाम किसी और का. आप की शादी कब हुई और आप के पति ने कितना सहयोग किया? साल 2003 में मेरी शादी हुई थी और साल 2005 में मैं अपनी ससुराल आई थी. मेरे पति भेड़बकरियां चराते थे.

वे उन्हें एक जगह से दूसरी जगह जाते थे. मैं भी उन के साथ जाने लगी, लेकिन मुझे यह काम मुश्किल लगता था, क्योंकि हमारा कोई स्थायी ठिकाना नहीं था, इसलिए मैं ने अपने पति को समझाया और हम वापस कच्छ आ गए. वहां पति किराने की दुकान पर काम करने लगे और मैं कढ़ाईबुनाई का काम करने लगी. एक दिन मेरे पति लक्षमन भाई बोले कि तेरे में इतना हुनर है, तो क्यों नहीं तू गांव की औरतों को भी यह काम सिखाती है. इस से उन्हें रोजगार मिलेगा और तेरा भी इस में भला होगा. फिर क्या सोचा आप ने? फिर मैं नीलेश भाई से मिली. वे पढ़ेलिखे और इन सब चीजों में ऐक्सपर्ट थे. नीलेश भाई के साथ बैग के सैंपल बना कर जब मैं दुकान में दिखाने गई, तो उन्हें हमारा काम पसंद आया और तुरंत उन्होंने मुझे 70,000 रुपए का और्डर दे दिया. यह मेरा पहला और्डर था. खुशी के मारे मेरे आंसू गिर पड़े थे.

आप के बनाए हर सामान पर ‘पाबि बैग’ लिखा होता है. इस की कोई खास वजह? यह मेरा ही नाम है. मेरे मन में एक बात आई थी कि बिना मार्केटिंग के मेरा सामान कैसे बिकेगा? कोई नाम तो होना चाहिए न, सो मैं ने नीलेश भाई से बात की और कहा कि सब से पहले मेरा ब्रांड बना दो. बहुत सोचविचार के बाद मैं ने हमारे ब्रांड का नाम ‘पाबि डौट कौम’ रखा. आज मेरे साथ 300 औरतें और लड़कियां काम करती हैं. हमारे ब्रांड को अब देश के अलावा विदेशों से भी बड़ेबड़े और्डर मिलते हैं. जब लोग आप के काम की तारीफ करते हैं, तब आप को कैसा लगता है? अपनी तारीफ सुन कर अच्छा तो बहुत लगता है,

लेकिन जब लोग कहते हैं कि बिना पढ़ालिखा इनसान कुछ नहीं कर सकता, तो बुरा लगता है. मेरा मानना है कि अगर मन में हौसला है तो इनसान कुछ भी कर सकता है. कितने ऐसे भाईबहन हैं, जो पढ़लिख कर सरकारी नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं. छोटी नौकरी वे करना नहीं चाहते, क्योंकि उन्हें शर्म आती है. लेकिन काम करने में कैसी शर्म. कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता. काम तो काम होता है. देश की घरेलू औरतों और लड़कियों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी? मैं तो यही संदेश देना चाहती हूं कि कोई भी काम छोटा नहीं होता. अपने खाली समय में कुछ न कुछ जरूर सीखिए. अपना हुनर बाहर निकालिए और यह मत सोचिए कि लोग क्या कहेंगे या यह काम आप से नहीं हो पाएगा. बस, जरूरत है तो आत्मविश्वास की.

आप ने कई अवार्ड जीते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों भी आप को अवार्ड मिला है. उस के बारे में कुछ बताइए. अवार्ड तो मुझे बहुत सारे मिले हैं. पहला ‘स्वयंसिद्ध अवार्ड’ मुझे गुजरात सरकार ने दिया था. उस के बाद मुझे ‘जानकी देवी बजाज पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया. दिल्ली में एग्जीबिशन के दौरान भी मुझे पुरस्कार मिला था. साल 2016 में ‘महिला दिवस’ पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों भी मुझे एक अवार्ड मिल चुका है.

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