मेरी सास और ननद हर काम में मीनमेख निकालती रहती हैं, कृपया उचित सलाह दें?

सवाल
मैं 27 साल की विवाहिता हूं. विवाह को 2 वर्ष हुए हैं. हमारी शादी घर वालों की मरजी से हुई थी. पति अपने ही शहर में नौकरी करते थे. साल भर कोई भी परेशानी नहीं हुई. पर 1 साल के बाद पति का बैंगलूरु औफिस में तबादला हो गया. नौकरी के कारण मैं साथ नहीं जा सकती थी. पति के जाने के बाद सास और ननद का व्यवहार बिलकुल बदल गया. सुबह घर का काफी काम निबटा कर जाती हूं और लौट कर फिर रसोई में जुटना पड़ता है. कभी किसी ने एक गिलास पानी तक नहीं दिया. इतना ही नहीं, हर काम में दोनों मीनमेख निकालती रहती हैं.

मैं बहुत परेशान हूं. पति 3-4 महीने बाद लौटते हैं. उन्हें गिलेशिकवे बता कर परेशान नहीं करना चाहती. इस वजह से मेरा स्वास्थ्य अब दिनबदिन बिगड़ता जा रहा है. कभी मन करता है कि नौकरी छोड़ दूं और उन के पास चली जाऊं. कृपया उचित सलाह दें?

जवाब
दरअसल, पति से दूरी की वजह से आप को अकेलापन महसूस होता होगा. जिस पर सासननद की बातें आप को नागवार गुजरती होंगी. बहू के साथ सास और ननदभौजाई के रिश्ते में इन बातों से परेशान न हों. यदि आप इन्हें पचा नहीं पा रही हैं और इस का आप के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है तो इस समस्या पर पति के साथ विचार कर सकती हैं. यदि लगता है कि पति अच्छा खातेकमाते हैं तो आप के नौकरी छोड़ने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. पर जो भी फैसला करें सोचसमझ कर करें.

भारत के विक्रांत सिंह चंदेल ने रूस की ओल्गा एफिमेनाकोवा से शादी की. शादी के बाद वे गोवा में रहने लगे. कारोबार में नुकसान होने के बाद ओल्गा पति के साथ उस के घर आगरा रहने आ गई. लेकिन विक्रांत की मां ने ओल्गा को घर में आने देने से साफ मना कर दिया. कारण एक तो यह शादी उस की मरजी के खिलाफ हुई थी, दूसरा सास को विदेशी बहू का रहनसहन पसंद नहीं था.

सुलह का कोई रास्ता न निकलता देख ओल्गा को अपने पति के साथ घर के बाहर भूख हड़ताल पर बैठना पड़ा. ओल्गा का कहना था कि उस की सास दहेज न लाने और उस के विदेशी होने के कारण उसे सदा ताने देती रही है.

जब मामला तूल पकड़ने लगा तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को हस्तक्षेप करते हुए राज्य के मुख्यमंत्री से विदेशी बहू की मदद करने के लिए कहना पड़ा. उस के बाद सास और ननद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए गए. तब जा कर सास ने बहू को घर में रहने की इजाजत दी और कहा कि अब वह उसे कभी तंग नहीं करेगी.

नहीं देती प्राइवेसी

सास-बहू के रिश्ते को ले कर न जाने कितने ही किस्से हमें देखने और सुनने को मिलते हैं. सास को बहू एक खतरे या प्रतिद्वंद्वी के रूप में ही ज्यादा देखती है. इस की सब से बड़ी वजह है सास का अपने बेटे को ले कर पजैसिव होना और बहू को अपनी मनमरजी से जीने न देना. सास का हस्तक्षेप ऐसा मुद्दा है जिस का सामना बेटाबहू दोनों ही नहीं कर पाते हैं. वे नहीं समझ पाते कि पजैसिव मां को अपनी प्राइवेसी में दखल देने से कैसे रोकें कि संबंधों में कटुता किसी ओर से भी न आए.

अधिकांश बहुओं की यही शिकायत होती है कि सास प्राइवेसी और बहू को आजादी देने की बात को समझती ही नहीं हैं. उन्हें अगर इस बात को समझाना चाहो तो वे फौरन कह देती हैं कि तुम जबान चला रही हो या हमारी सास ने भी हमारे साथ ऐसा ही व्यवहार किया था, पर हम ने उन्हें कभी पलट कर जवाब नहीं दिया.

आन्या की जब शादी हुई तो उसे इस बात की खुशी थी कि उस के पति की नौकरी दूसरे शहर में है और इसलिए उसे अपनी सास के साथ नहीं रहना पड़ेगा. वह नहीं चाहती थी कि नईनई शादी में किसी तरह का व्यवधान पड़े. वह बहुत सारे ऐसे किस्से सुन चुकी थी और देख भी चुकी थी जहां सास की वजह से बेटेबहू के रिश्तों में दरार आ गई थी.

शुरुआती दिनों में पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने के लिए वक्त चाहिए होता है और उस समय अगर सास की दखलंदाजी बनी रहे तो मतभेदों का सिलसिला न सिर्फ नवयुगल के बीच शुरू हो जाता है बल्कि सासबहू में भी तनातनी होने लगती है.

आन्या अपने तरीके से रोहन के साथ गृहस्थी बसाना, उसे सजानासंवारना चाहती थी. उस की सास बेशक दूसरे शहर में रहती थी पर वह हर 2 महीने बाद एक महीने के लिए उन के पास रहने चली आती थी क्योंकि उसे हमेशा यह डर लगा रहता था कि उस की नौकरीपेशा बहू उस के बेटे का खयाल रख भी पा रही होगी या नहीं.

आन्या व्यंग्य कसते हुए कहती है कि आखिर अपने नाजों से पाले बेटे की चिंता मां न करे तो कौन करेगा. लेकिन समस्या तो यह है मेरी सास को हददरजे तक हस्तक्षेप करने की आदत है, वे सुबह जल्दी जाग जातीं और किचन में घुसी रहतीं. कभी कोई काम तो कभी कोई काम करती ही रहतीं.

मुझे अपने और रोहन के लिए नाश्ता व लंच पैक करना होता था पर मैं कर ही नहीं पाती थी क्योंकि पूरे किचन में वे एक तरह से अपना नियंत्रण  रखती थीं. यही नहीं, वे लगातार मुझे निर्देश देती रहतीं कि मुझे क्या बनाना चाहिए, कैसे बनाना चाहिए और उन के बेटे को क्या पसंद है व क्या नापसंद है.

सुबहसुबह उन का लगातार टोकना मुझे इतना परेशान कर देता कि मेरा सारा दिन बरबाद हो जाता. यहां तक कि गुस्से में मैं रोहन से भी नाराज हो जाती और बात करना बंद कर देती. मुझे लगता कि रोहन अपनी मां को ऐसा करने से रोकते क्यों नहीं हैं?

सब से ज्यादा उलझन मुझे इस बात से होती थी कि जब भी मौका मिलता वे यह सवाल करने लगतीं कि हम उन्हें उन के पोते का मुंह कब दिखाएंगे? हमें जल्दी ही अपना परिवार शुरू कर लेना चाहिए. जो भी उन से मिलता, यही कहतीं, ‘मेरी बहू को समझाओ कि मुझे जल्दी से पोते का मुंह दिखा दे.’ रोहन को भी वे अकसर सलाह देती रहतीं. प्राइवेसी नाम की कोई चीज ही नहीं बची थी.

रोहन का कहना था कि  हर रोज आन्या को मेरी मां से कोई न कोई शिकायत रहती थी. तब मुझे लगता कि मां हमारे पास न आएं तो ज्यादा बेहतर होगा. मैं उस की परेशानी समझ रहा था पर मां को क्या कहता. वे तो तूफान ही खड़ा कर देतीं कि बेटा, शादी के बाद बदल गया और अब बहू की ही बात सुनता है.

मैं खुद उन दोनों के बीच पिस रहा था और हार कर मैं ने अपना ट्रांसफर बहुत दूर नए शहर में करा लिया ताकि मां जल्दीजल्दी न आ सकें. मुझे बुरा लगा था अपनी सोच पर, पर आन्या के साथ वक्त गुजारने और उसे एक आरामदायक जिंदगी देने के लिए ऐसा करना आवश्यक था.

परिपक्व हैं आज की बहुएं

मनोवैज्ञानिक विजयालक्ष्मी राय मानती हैं कि ज्यादातर विवाह इसलिए बिखर जाते हैं क्योंकि पति अपनी मां को समझा नहीं पाता कि उस की बहू को नए घर में ऐडजस्ट होने के लिए समय चाहिए और वह उन के अनुसार नहीं बल्कि अपने तरीके से जीना चाहती है ताकि उसे लगे कि वह भी खुल कर नए परिवेश में सांस ले रही है, उस के निर्णय भी मान्य हैं तभी तो उस की बात को सुना व सराहा जाता है.

बहू के आते ही अगर सास उस पर अपने विचार थोपने लगे या रोकटोक करने लगे तो कभी भी वह अपनेपन की महक से सराबोर नहीं हो सकती.

बेटेबहू की जिंदगी की डोर अगर सास के हाथ में रहती है तो वे कभी भी खुश नहीं रह पाते हैं. सास को समझना चाहिए कि बहू एक परिपक्व इंसान है, शिक्षित है, नौकरी भी करती है और वह जानती है कि अपनी गृहस्थी कैसे संभालनी है. वह अगर उसे गाइड करे तो अलग बात है पर यह उम्मीद रखे कि बहू उस के हिसाब से जागेसोए या खाना बनाए या फिर हर उस नियम का पालन करे जो उस ने तय कर रखे हैं तो तकरार स्वाभाविक ही है.

आज की बहू कोई 14 साल की बच्ची नहीं होती, वह हर तरह से परिपक्व और बड़ी उम्र की होती है. कैरियर को ले कर सजग आज की लड़की जानती है कि उसे शादी के बाद अपने जीवन को कैसे चलाना है.

फैमिली ब्रेकर बहू

आर्थिक तौर पर संपन्न होने और अपने लक्ष्यों को पाने के लिए एक टारगेट सैट करने वाली बहू पर अगर सास हावी होना चाहेगी तो या तो उन के बीच दरार आ जाएगी या फिर पतिपत्नी के बीच भी स्वस्थ वैवाहिक संबंध नहीं बन पाएंगे.

एक टीवी धारावाहिक में यही दिखाया जा रहा है कि मां अपने बेटे को ले कर इतनी पजैसिव है कि वह उसे उस की पत्नी के साथ बांटना ही नहीं चाहती थी. बेटे का खयाल वह आज तक रखती आई है और बहू के आने के बाद भी रखना चाहती है, जिस की वजह से पतिपत्नी के बीच अकसर गलतफहमी पैदा हो जाती है.

फिर ऐसी स्थिति में जब बहू परिवार से अलग होने का फैसला लेती है तो उसे फैमिली यानी घर तोड़ने वाली ब्रेकर कहा जाता है. सास अकसर यह भूल जाती है कि बहू को भी खुश रहने का अधिकार है.

विडंबना तो यह है कि बेटा इन दोनों के बीच पिसता है. वह जिस का भी पक्ष लेता है, दोषी ही पाया जाता है. मां की न सुने तो वह कहती है कि जिस बेटे को इतने अरमानों से पाला, वह आज की नई लड़की की वजह से बदल गया है और पत्नी कहती है कि जब मुझ से शादी की है तो मुझे भी अधिकार मिलने चाहिए. मेरा भी तो तुम पर हक है. बेटे और पति पर हक की इस लड़ाई में बेटा ही परेशान रहता है और वह अपने मातापिता से अलग ही अपनी दुनिया बसा लेता है.

शादी किसी लड़की के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण व नया अध्याय होता है. पति के साथ वह आसानी से सामंजस्य स्थापित कर लेती है, पर सास को बहू में पहले ही दिन से कमियां नजर आने लगती हैं. उसे लगता है कि बेटे को किसी तरह की दिक्कत न हो, इस के लिए बहू को सुघड़ बनाना जरूरी है. और वह इस काम में लग जाती है बिना इस बात को समझे कि वह बेटे की गृहस्थी और उस की खुशियों में ही सेंध लगा रही हैं.

इस का एक और पहलू यह है कि बेटे के मन में मां इतना जहर भर देती है कि  उसे यकीन हो जाता है कि उस की पत्नी ही सारी परेशानियों की वजह है और वह नहीं चाहती कि वह अपने परिवार वालों का खयाल रखे या उन के साथ रहे.

जरूरी है कि सास बेटे की पत्नी को खुल कर जीने का मौका दें और उसे खुद

ही निर्णय लेने दें कि वह कैसे अपनी जिंदगी संवारना व अपने पति के साथ जीना चाहती है. सास अगर हिदायतें व रोकटोक करने के बजाय बहू का मार्गदर्शन करती है तो यह रिश्ता तो मधुर होगा ही साथ ही, पतिपत्नी के संबंधों में भी मधुरता बनी रहेगी.

गांवों के लिए पर्यटन स्थल सरीखे होंगे अमृत सरोवर

लखनऊ , हर ग्राम पंचायत में लबालब भरे तालाब, इनके किनारों पर लकदक हरियाली. बैठकर सकुन के कुछ घन्टे गुजरने के लिए जगह-जगह लगी बेंचे. भविष्य में कुछ यही स्वरूप होगा आजादी के अमृतमहोत्सव पर बन रहे अमृतसरोवरों का.

हर अमृत सरोवर खूबसूरत हो। इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार एक स्वस्थ्य प्रतिस्पर्द्धा भी शुरू करने जा रही है। इसके तहत जो अमृत सरोवर सबसे अच्छे होंगे उनके निर्माण से जुड़े ग्राम प्रधानों, अधिकारियों और कर्मचारियों को ग्राम्य विकास विभाग सम्मानित करेगा।

हरियाली बढ़ाने के लिए 21 सितंबर को होगा सघन पौधरोपण अमृत सरोवरों के किनारे लकदक हरियाली हो इसके लिए I21 सितंबर को पौधरोपण का सघन अभियान भी चलेगा, इस दौरान स्थानीय लोगों के अलावा 80 हजार होमगार्ड के जवान पौधरोपण में भाग लेंगे. इस बाबत गढ्ढे मनरेगा से खोदे जाएंगे और निःशुल्क पौधे वन विभाग उपलब्ध कराएगा.

“सबकी मदद से सबके लिए” की मिसाल बनेगें ये अमृतसरोवर कालांतर में ये अमृत सरोवर,”सबकी मदद से सबके लिए” और पानी की हर बूंद को संरक्षित करने के साथ अपनी परंपरा को सहेजने की नजीर भी बनेंगे.

बूंद-बूंद संरक्षित करने के साथ परंपरा को सहेजने की भी बनेंगे नजीर उल्लेखनीय है कि पहले भी तालाब, कुएं, सराय, धर्मशालाएं और मंदिर जैसी सार्वजनिक उपयोग की चीजों के निर्माण का निर्णय भले किसी एक का होता था,पर इनके निर्माण में स्थानीय लोगों के श्रम एवं पूंजी की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी।

यही वजह है कि बात चाहे लुप्तप्राय हो रही नदियों के पुनरुद्धार की हो या अमृत सरोवरों के निर्माण की, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन सबको जनता से जोड़कर जनांदोलन बनाने की बात करते रहे हैं. अमृत सरोवरों की रिकॉर्ड संख्या के निर्माण के पीछे यही वजह है. इसीके बूते पहले हर जिले में एक अमृत सरोवर के निर्माण का लक्ष्य था. बाद में इसे बढ़ाकर हर ग्राम पंचायत में दो अमृत सरोवरों का निर्णय लिया गया है. इस सबके बनने पर इनकी संख्या एक लाख 16 हजार के करीब हो जाएगी.

भविष्य में ये सरोवर अपने अधिग्रहण क्षेत्र में होने वाली बारिश की हर बूंद को सहेजकर स्थानीय स्तर पर भूगर्भ जल स्तर को बढ़ाएंगे. बारिश के पानी का उचित संग्रह होने से बाढ़ और जलजमाव की समस्या का भी हल निकलेगा. यही नहीं सूखे के समय में यह पानी सिंचाई एवं मवेशियों के पीने के काम आएगा. भूगर्भ जल की तुलना में सरफेस वाटर से पंपिंग सेट से सिंचाई कम समय होती है.इससे किसानों का डीजल बचेगा. कम डीजल जलने से पर्यावरण संबंधी होने वाला लाभ बोनस होगा.

दरअसल बारिश के हर बूंद को सहेजने के इस प्रयास का सिलसिला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर उनके पहले कार्यकाल से ही शुरू हो गया था। गंगा एवं अन्य बड़ी नदियों के किनारे बन रहे बड़े एवं बहुउद्देश्यीय तालाब और खेत-तालाब जैसी योजनाएं इसका प्रमाण हैं।

इसी मकसद से सरकार अब तक 24583 खेत-तालाब खुदवा चुकी है। इनमें से अधिकांश (80 फीसद) बुंदेलखंड, विंध्य, क्रिटिकल एवं सेमी क्रिटिकल ब्लाकों में हैं. मौजूदा वित्तीय वर्ष में 10 हजार और खेत-तालाब तैयार करने की है.

पांच साल का लक्ष्य 37500 खेत तालाब निर्माण की है. इनका निर्माण कराने वाले किसानों को सरकार 50 फीसद का अनुदान देती है. इस समयावधि में इन पर 457.25 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य है.

भूगर्भ जल स्तर में सुधार और सूखे के दौरान सिंचाई के काम आने के लिए सरकार गंगा नदी के किनारे बहुउद्देशीय गंगा तालाबों का भी निर्माण करा रही है. आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में बनाए जा रहे अमृत सरोवरों का भी यही उद्देश्य है. फिलहाल उत्तर प्रदेश इनके निर्माण में नंबर एक है. ग्राम्य विकास विभाग से मिले अद्यतन आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में अमृत सरोवर के रूप में अब तक 15441 तालाबों का चयन हुआ है. 10656 के निर्माण का काम चल रहा है. 8389 तालाब अमृत सरोवर के रूप में विकसित किये जा चुके हैं.

यूपी में अब 5 मिनट में होगा ‘ई रेंट एग्रीमेंट’

लखनऊ, उत्तर प्रदेश में अब आम नागरिकों और व्यापारियों को मकान, दुकान, गोदाम जैसी जगह किराए पर लेने के लिए कहीं भटकना पड़ेगा. योगी सरकार इनकी सुविधा के लिए ‘ई रेंट एग्रीमेंट’ के जरिए ऑनलाइन लीज डीड की शुरुआत कर रही है. इससे अब डीड राइटर की आवश्यक्ता नहीं रह जाएगी. सीधे मकान या बिल्डिंग के मालिक के साथ किराएदार ऑनलाइन अनुबंध कर सकेंगे. इससे आम नागरिकों समेत व्यापारियों को राहत मिलेगी. उन्हें मौजूदा जटिल प्रक्रिया से नहीं गुजरना होगा, बल्कि ऑनलाइन महज 5 मिनट में वो कांट्रैक्ट लेटर हासिल करने में सक्षम होंगे.

गौरतलब है कि योगी सरकार ने प्रदेश में नागरिकों को कई तरह की सेवाएं ऑनलाइन देकर उनके जीवन को सुगम बनाने का प्रयास किया है. ई रेंट एग्रीमेंट उसी मुहिम का हिस्सा है. फिलहाल इसकी शुरुआत गौतम बुद्धनगर से हुई है और जल्द ही अन्य जिलों में यह व्यवस्था लागू हो जाएगी.

जटिल प्रक्रिया से मिलेगा छुटकारा
रेंट एग्रीमेंट की मौजूदा व्यवस्था के तहत किराएदार को पहले डीड राइटर से संपर्क साधना पड़ता था। इसके बाद स्टांप पेपर खरीदने, उसकी नोटरी कराने के बाद दोनों पार्टियों के रेंट एग्रीमेंट पर सिग्नेचर होते थे। प्रस्तावित ऑनलाइन व्यवस्था में अब किराएदार को सिर्फ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अनुमोदित एग्रीमेंट पोर्टल पर जाकर अपने नाम और मोबाइल के जरिए लॉगिन करके लीज डिटेल भरनी होगी. उदाहरण के तौर पर गौतम बुद्धनगर में www.gbnagar.nic.in नाम से साइट विकसित की गई है. इस पर प्रॉपर्टी की डिटेल भरने के बाद स्टांप ड्यूटी अदा करते ही लीज डीड की प्रिंट कॉपी मिल जाएगी. पोर्टल पर रेंट डिटेल भरते ही स्टांप ड्यूटी का ऑटोमैटिक कैलकुलेशन हो जाएगा.

5 मिनट से भी कम समय में पूरी होगी प्रक्रिया
यह पूरी प्रक्रिया 5 मिनट से भी कम समय में पूरी हो जाएगी. यानी चाय ठंडी होने से पहले रेंट एग्रीमेंट मिल जाएगा. इसके लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं होगी, सिर्फ अपने लैपटॉप, डेस्कटॉप या मोबाइल पर यह काम संभव हो सकेगा. इससे न सिर्फ आम लोगों को राहत मिलेगी, बल्कि व्यापार करने में सुगमता होगी. यह व्यवस्था पहले से ज्यादा सुरक्षित एवं विश्वसनीय होगी. साथ ही कहीं से भी और कभी भी इसके जरिए एग्रीमेंट किया जा सकेगा.

प्रदेश के राजस्व में भी होगी बढ़ोतरी
यह नई व्यवस्था प्रदेश के लिए राजस्व का भी अच्छा जरिया बनेगी. गौतम बुद्धनगर में मौजूदा व्यवस्था के तहत प्रतिवर्ष कम से कम 1.5 लाख लीज डीज होती हैं. स्टांप ड्यूटी के जरिए इस प्रक्रिया से प्रति वर्ष 1.5 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है. वहीं, प्रस्तावित लीज डीड के जरिए प्रत्येक 15 हजार से अधिक मासिक किराए पर 2 प्रतिशत स्टांप ड्यूटी के जरिए 3600 रुपए प्राप्त होंगे. कुल मिलाकर सरकार को सिर्फ गौतम बुद्धनगर से 54 करोड़ रुपए के राजस्व की प्राप्ति होगी. पूरे प्रदेश में व्यवस्था लागू होने के बाद सरकार को बड़ी मात्रा में राजस्व प्राप्त होगा.

2 पत्नियों ने दी पति की सुपारी

नीतीश कुमार का नरेंद्र मोदी को करंट

15अगस्त, 2022 देश के लिए एक ऐतिहासिक दिन था, क्योंकि सारा देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा था. इस दिन लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री द्वारा देश को संबोधित करने की परंपरा रही है. ऐसे में सारे देश की निगाह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण पर टिकी हुई थी.

मगर जैसा कि होता रहा है नरेंद्र मोदी एक बार फिर चूक गए. अमृत महोत्सव के इस ऐतिहासिक मौके पर देश को एक नई दिशा देने का समय था. एक ऐसा संबोधन, जो देश की जनता में एक ऊर्जा, एक असर पैदा कर देता, मगर प्रधानमंत्री ने इस खास मौके पर जो कुछ कहा वह विवादित हो गया. क्योंकि यह समय परिवारवाद और भ्रष्टाचार जैसे मसले पर चर्चा करने का कतई नहीं कहा जा सकता. स्वतंत्रता दिवस मौका था, दुनिया के सामने भारत की उन उपलब्धियों को सामने रखने का, जिसे देश ने पाया है. आज मौका था देश की जनता को देश के लिए एक बार फिर समर्पित कर दिखाने का.

सच तो यह है कि हमारे बाद जो देश आजाद हुए, वह आज हम से काफी आगे निकल गए हैं. भारत में इतनी जनसंख्या और इतने संसाधन हैं कि वह सचमुच दुनिया का नेतृत्व कर सकता है, मगर इस दिशा में भाषण सिफर रहा और संसद में या किसी सामान्य रूप से देश को संबोधित करने कर मौके जैसा भाषण दे कर नरेंद्र मोदी ने इस से देश को निराश किया. सब से अहम मसला जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखा, वह था परिवारवाद और भ्रष्टाचार. यकीनन, यह एक बड़ी समस्या है, मगर समस्या को बता देना ही पर्याप्त नहीं होता. महानता और मनुष्यता तो इसी में है कि अगर हमें यह पता है कि समाज में यह खामियां हैं,

तो सब से पहले हम अपनेआप को ठीक करें, अपने आसपास को ठीक करें. ऐसे में नरेंद्र मोदी के पास आज यह मौका था कि वे अपनी भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार को इस के लिए प्रतिबद्ध करते. मगर बड़े ही खेद की बात है कि नरेंद्र मोदी जो कहते हैं, वह दूसरों के लिए बड़ीबड़ी बातें कहते हैं, ज्ञान की ऐसी बातें कि लोग तालियां बजाएं. मगर खुद पर कभी लागू नहीं करते. ऐसे में उस का असर खत्म हो जाता है. परिवारवाद और भ्रष्टाचार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं जब परिवारवाद की बात करता हूं, तो लोगों को लगता है कि सिर्फ राजनीति की बात करता हूं.

लेकिन ऐसा नहीं है, मैं जब परिवारवाद की बात करता हूं, तो यह सभी क्षेत्रों की बात होती है. मगर सच तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी आज देश की सब से बड़ी पार्टी है, दुनिया की सब से बड़ी पार्टी है, जो वह गर्व के साथ कहती है, तो यह भी सच है कि वह परिवारवाद का एक बड़ा कटोरा भी है. यही नहीं, दूसरी पार्टी के बड़े नेताओं को भाजपा में प्रवेश दिया गया और उन्हें बड़ी रेवडि़यों से नवाजा गया. यह भी तो आखिर राजनीतिक भ्रष्टाचार और परिवारवाद का नमूना कहा जा सकता है, फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निगाह इस ओर क्यों नहीं जाती?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि 25 साल का एक समय तय कर के इन समस्याओं को दूर किया जाए. यह सब से बड़ी खोखली बात है. 25 साल किस ने देखे हैं? आप आज ही से अपनेआप में बदलाव क्यों नहीं करते? अपनी पार्टी में बदलाव क्यों नहीं करते? अपने आसपास बदलाव क्यों नहीं करते? दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी, आप को 5 साल के लिए देश की जनता चुनती है और आप बड़ी ही चतुराई के साथ 25 साल और समय मांगने का खेल खेलते हैं. क्या आप यह समझते हैं कि आप को 25 साल तक यह देश प्रधानमंत्री पद पर निर्वाचित करता रहे? आप अपने इस समय काल की भीतर की योजना बनाएं और उसे देश को जागृत कर के दिखाएं, वरना बाकी सब बातें तो लफ्फाजी ही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि पहले खेलों में भी भाईभतीजावाद चलता था, पर आज नहीं है.

हमारे खिलाड़ी दुनिया में भारत का नाम रोशन कर रहे हैं. परिवारवाद से केवल परिवार का फायदा होता है, देश का नहीं. भाईभतीजावाद को ले कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह हर संस्था में देखने को मिलता है. ऐसा कई संस्थाओं में है, जिस के कारण नुकसान उठाना पड़ता है. यह भी भ्रष्टाचार का कारण बन जाता है. इस परिवारवाद और भाईभतीजावाद से हमें बचना होगा. राजनीति में भी परिवारवाद देखने को मिलता है. परिवारवाद से केवल परिवार का फायदा होता है, देश का नहीं. उन्होंने भ्रष्टाचार और भाईभतीजावाद का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि इन दोनों चीजों से हमें बचना चाहिए. भ्रष्टाचार से हर हाल में लड़ना होगा. पिछली सरकारों में बैंकों को लूट कर जो भाग गए, उन्हें पकड़ने का काम जारी है. बैंकों को लूटने वालों की संपत्तियां जब्त की जा रही हैं. जिन्होंने देश को लूटा,

उन्हें वह लौटाना होगा. सौ टके की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह चाहते हैं कि 2024 में भी देश की जनता उन्हें भारी वोट दे कर प्रधानमंत्री बनाए, इसीलिए आप के भाषणों में आमतौर पर भविष्य के लिए बातें कही जाती हैं. ‘वर्तमान’ और ‘आज की बात’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिक्शनरी में नहीं हैं. वे हमेशा ही कहते हैं कि ऐसा करना है, ऐसा हो गया, ऐसा हो रहा है. मगर यह नहीं कहते कि देश में उन की सरकार यह करेगी या कर रही है.

जैकलीन फर्नांडीस हाजिर हों

ठगी की दुनिया में एक नया इतिहास लिखने वाले सुकेश चंद्रशेखर पर 215 करोड़ रुपए की वसूली का मामला चल रहा है. तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता की मौत के बाद उन की पार्टी के चुनाव चिह्न को ले कर एक अनोखी ठगी का आरोपी सुकेश चंद्रशेखर अभी जेल में है. दूसरी तरफ फिल्म हीरोइनों से उस की दोस्ती और गिफ्ट देने की कहानियां देशभर की मीडिया में सुर्खियां बटोर रही हैं.

अगर यह कहा जाए कि सुकेश चंद्रशेखर ठगों का बादशाह है और खूबसूरती का दीवाना, तो यह बात झूठ नहीं होगी. यही वजह है कि वह जेल में है, मगर जब उस से कई हीरोइनों ने तिहाड़ में मुलाकात की तो यह बात जांच के घेरे में आ गई. सुकेश चंद्रशेखर ने राजामहाराजाओं की तरह ठगी के रुपए फिल्म दुनिया की हीरोइनों पर लुटाए. उन्हीं में से एक जैकलिन फर्नांडीस को सब से महंगे गिफ्ट दे कर के अपने प्रभाव में लेने का काम भी उस ने किया. अब जैकलिन फर्नांडीस समेत अनेक फिल्मी चेहरे जांच के दायरे में हैं.

आप को बताते चलें कि जैकलिन फर्नांडीस श्रीलंकाई मूल की भारतीय हीरोइन व मौडल हैं. वे साल 2006 की मिस श्रीलंका यूनिवर्स रह चुकी हैं और उन्हें फिल्म ‘अलादीन’ के लिए 2010 का सर्वश्रेष्ठ नई अभिनेत्री का आईफा और स्टारडस्ट पुरस्कार दिया गया था. अपनेआप में बहुचर्चित ठगी के इस बड़े मामले में ईडी ने चार्जशीट दाखिल की है.

ईडी की चार्जशीट में जैकलीन फर्नांडीस पर आरोप है कि सुकेश चंद्रशेखर से उन्हें तकरीबन 7 करोड़ रुपए की जूलरी गिफ्ट में मिली और तकरीबन 9-9 लाख रुपए की 3 पर्शियन बिल्लियां, तकरीबन 52 लाख रुपए का एक अरबी घोड़ा, कानों में पहनने वाली 15 जोड़ी बालियां, डायमंड के सैट, बेशकीमती क्रौकरी, गुच्ची और शनेल जैसे महंगे ब्रांड्स के डिजाइनर बैग, जिम में पहनने के लिए गुच्ची के 2 आउटफिट्स, लुई वितों के कई जोड़ी जूते, हमीज के 2 ब्रेसलेट, एक मिनी कूपर कार, रौलैक्स की महंगी घडि़यां गिफ्ट में दी थीं.

नैतिकता का सवाल पाठकों को हम याद दिलाएं कि फिल्मों में काम करने वाले हीरोहीरोइन आमतौर पर अपनी फिल्म के माध्यम से आदर्श का संदेश देने का काम करते हैं. वे बताते हैं कि ईमानदारी और नैतिकता की क्या अहमियत होती है और आखिर में विलेन को जेल जाना पड़ता है.

आमतौर पर तकरीबन हर फिल्म की यही कहानी होती है सच की जीत और बुराई की हार. मगर फिल्मों में काम करने वाले कलाकार अकसर फिसल जाते हैं. मौका मिलते ही कानून को अपने हाथ में लेने से इन्हें गुरेज नहीं होता. ये लोग समझते हैं कि कानून तो उन की मुट्ठी में है, मगर अकसर कानून को हाथ में लेने वाले फिल्म स्टार हों या कोई दूसरा आखिरकार जेल के सींखचों के पीछे होता है.

सुकेश चंद्रशेखर के मामले में भी अब जब जांच अपनी रफ्तार पर है, तब जैकलिन फर्नांडीस हों या पिंकी ईरानी, नोरा फतेही सभी का पसीना निकल रहा है और परेशान हैं. अगर ये हीरोइनें अपनी फिल्मों की कहानी के मुताबिक अपना आचरण करतीं तो सुकेश से दूरी बना कर रहतीं, मगर जब लाखोंकरोड़ों के गिफ्ट मिलने लगे, तो ये अपनी फिल्मों का संदेश भूल गईं और आज पुलिस अफसरों के आगेपीछे चक्कर काटने और सवालों के जवाब देने के लिए मजबूर हैं.

कांटों भरी राह पर नंगे पैर

सेक्स, क्या वाकई में प्यार है? आप भी जानिए

सच्चे प्रेम से खिलवाड़ करना किसी बड़े अपराध से कम नहीं है. प्रेम मनुष्य को अपने अस्तित्व का वास्तविक बोध करवाता है. प्रेम की शक्ति इंसान में उत्साह पैदा करती है. प्रेमरस में डूबी प्रार्थना ही मनुष्य को मानवता के निकट लाती है.

मुहब्बत के अस्तित्व पर सैक्स का कब्जा

आज प्रेम के मानदंड तेजी से बदल रहे हैं. त्याग, बलिदान, निश्छलता और आदर्श में खुलेआम सैक्स शामिल हो गया है.

प्रेम की आड़ में धोखा दिए जाने वाले उदाहरणों की शृंखला छोटी नहीं है और शायद इसी की जिम्मेदारी बदलते सामाजिक मूल्यों और देरी से विवाह, सच को स्वीकारने पर डाली जा सकती है. प्रेम को यथार्थ पर आंका जा रहा है. शायद इसी कारण प्रेम का कोरा भावपक्ष अस्त हो रहा है यानी प्रेम की नदी सूख रही है और सैक्स की चाहत से जलराशि बढ़ रही है.

विकृत मानसिकता व संस्कृति

आज के मल्टी चैनल युग में टीवी और फिल्मों ने जानकारी नहीं मनोरंजन ही परोसा है. समाज द्वारा किसी भी रूप में भावनाओं का आदर नहीं किया जाता. प्रेम का मधुर एहसास तो कुछ सप्ताह तक चलता है. अब तन के उपभोग की अपेक्षा है.

क्षणिक होता मुहब्बत का जज्बा

प्रेम अब सड़क, टाकीज, रेस्तरां और बागबगीचों का चटपटा मसाला बन गया है. वर्तमान प्रेम क्षणिक हो चला है, वह क्षणभर दिल में तूफान ला देता है और अगले ही पल बिलकुल खामोश हो जाता है. युवा आज इसी क्षणभर के प्रेम की प्रथा में जी रहे हैं.

एक शोध के अनुसार, 86% युवाओं की महिला मित्र हैं, 92% युवक ब्लू फिल्म देखते हैं, तो 62% युवक और 38% युवतियों ने विवाहपूर्व शारीरिक संबंध स्थापित किए हैं.

यही है मुहब्बत की हकीकत

एक नई तहजीब भी इन युवाओं में गहराई से पैठ कर रही है, वह है डेटिंग यानी युवकयुवतियों का एकांत मिलन.

शोध के अनुसार, 93% युवकयुवतियों ने डेटिंग करना स्वीकार किया. इन में से एक बड़ा वर्ग डेटिंग के समय स्पर्श, चुंबन या सहवास करता है. इस शोध का गौरतलब तथ्य यह है कि अधिकांश युवक विवाहपूर्व यौन संबंधों के लिए अपनी मंगेतर को नहीं बल्कि किसी अन्य युवती को चुनते हैं. पहले इस आयु के युवाओं को विवाह बंधन में बांध दिया जाता था और समय आने तक जोड़ा दोचार बच्चों का पिता बन चुका होता था.

अमीरी की चकाचौंध में मदहोश प्रेमी

मृदुला और मनमोहन का प्रेम कालेज में चर्चा का विषय था. दोनों हर जगह हमेशा साथसाथ ही दिखाई देते थे. मनमोहन की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. वह मध्यवर्गीय परिवार से था, लेकिन मृदुला के सामने खुद को थोड़ा बढ़ाचढ़ा कर दिखाने की कोशिश में रहता था. वह मृदुला को अपने दोस्त की अमीरी और वैभव द्वारा प्रभावित करना चाहता था. दूसरी ओर आदेश पर भी अपना रोब गांठना चाहता था कि धनदौलत न होने पर भी वह अपने व्यक्तित्व की बदौलत किसी खूबसूरत युवती से दोस्ती कर सकता है.

लेकिन घटनाचक्र ने ऐसा पलटा खाया कि जिस की मनमोहन ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी. उस की तुलना में अत्यंत साधारण चेहरेमुहरे वाला आदेश अपनी अमीरी की चकाचौंध से मृदुला के प्यार को लूट कर चला गया.

मनमोहन ने जब कुछ दिन बाद अपनी आंखों से मृदुला को आदेश के साथ उस की गाड़ी से जाते देखा तो वह सोच में पड़ गया कि क्या यह वही मृदुला है, जो कभी उस की परछाईं बन उस के साथ चलती थी. उसे अपनी बचकानी हरकत पर भी गुस्सा आ रहा था कि उस ने मृदुला और आदेश को क्यों मिलवाया.

कालेज में मनमोहन की मित्रमंडली के फिकरों ने उस की कुंठा और भी बढ़ा दी.

प्रेम संबंधों में पैसे का महत्त्व

प्रेम संबंधों के बीच पैसे की महत्ता होती है. दोस्ती का हाथ बढ़ाने से पहले युवक की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रख कर निर्णय लेना चाहिए. प्रेमी का यह भय सही है कि यदि वह अपनी प्रेमिका को महंगे उपहार नहीं देगा तो वह उसे छोड़ कर चली जाएगी. कोई भी युवती अपने प्रेमी को ठुकरा कर एक ऐसा नया रिश्ता स्थापित कर सकती है, जिस का आधार स्वाभाविक प्यार न हो कर केवल घूमनेफिरने और मौजमस्ती करने की चाह हो. युवकों को पैसे के अनुभव के बावजूद अपनी प्रेमिकाओं और महिला मित्रों को प्रभावित करने के लिए हैसियत से ज्यादा खर्च करना होगा.

प्रेम में पैसे का प्रदर्शन, बचकानी हरकत

छात्रा अरुणा का विचार है कि अधिकतर युवक इस गलतफहमी का शिकार होते हैं कि पैसे से युवती को आकर्षित किया जा सकता है. यही कारण है कि ये लोग कमीज के बटन खोल कर अपनी सोने की चेन का प्रदर्शन करते हैं. सड़कों, पान की दुकानों या गलियों में खड़े हो कर मोबाइल पर ऊंची आवाज में बात करते हैं या गाड़ी में स्टीरियो इतना तेज बजाते हैं कि राह चलते लोग उन्हें देखें.

हैसियत की झूठी तसवीर पेश करना घातक

अरुणा कहती है कि कुछ लोग प्रेमिका से आर्थिक स्थिति छिपाते हैं तथा अपनी आमदनी, वास्तविक आय से अधिक दिखाने के लिए अनेक हथकंडे अपनाते हैं. इसी संबंध में उन्होंने अपने एक रिश्तेदार का जिक्र किया जो एक निजी कंपनी में नौकरी करते थे. विवाह के तुरंत बाद उन्होंने पत्नी को टैक्सी में घुमाने, उस के लिए ज्वैलरी खरीदने तथा उसे खुश रखने के लिए इस कदर पैसा उड़ाया कि वे कर्ज में डूब गए. कर्ज चुकाने के लिए जब उन्होंने कंपनी से पैसे का गबन किया तो फिर पकड़े गए.

परिणामस्वरूप अच्छीखासी नौकरी चली गई. इतना ही नहीं, पत्नी भी उन की ऐसी स्थिति देख कर अपने मायके लौट गई. अगर शुरू से ही वह चादर देख कर पैर फैलाते, तो यह नौबत न आती.

समय के साथ बदलती मान्यताएं

मीनाक्षी भल्ला जो एक निजी कंपनी में कार्यरत हैं, का कहना है कि प्यार में प्रेमीप्रेमिका दोनों ही जहां एकदूसरे के लिए कुछ भी कर गुजरने की भावना रखते हैं, वहीं अपने साथी से कुछ अपेक्षाएं भी रखते हैं.

व्यापार बनता आज का प्रेम

इस प्रकार के रवैए ने प्यार को एक प्रकार का व्यापार बना दिया है. जितना पैसा लगाओ, उतना लाभ कमाओ. कुछ मित्रों का अनुभव तो यह है कि जो काम प्यार का अभिनय कर के तथा झूठी भावुकता दिखा कर साल भर में भी नहीं होता, वही काम पैसे के दम पर हफ्ते भर में हो सकता है. अगर पैसे वाला न हो तो युवती अपना तन देने को तैयार ही नहीं होती.

नोटों की ऐसी कोई बौछार कब उन के लिए मछली का कांटा बन जाए, पता नहीं चलेगा. ऐसी आजाद खयाल या बिंदास युवतियों का यह दृष्टिकोण कि सच्चे आशिक आज कहां मिलते हैं, इसलिए जो भी युवक मौजमस्ती और घूमनेफिरने का खर्च उठा सके, आराम से बांहों में समय बिताने के लिए जगह का इंतजाम कर सके, उसे अपना प्रेमी बना लो.

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मेरी गर्लफ्रैंड शादी करना नहीं चाहती है, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरे घर में मेरी शादी की बातें बड़ी जोरोंशोरों से होने लगी हैं जबकि मैं अपनी गर्लफ्रैंड से शादी करना चाहता हूं पर वह मुझ से शादी नहीं करना चाहती. मैं घरवालों और गर्लफ्रैंड के बीच फंस गया हूं.

एक तरफ तो घरवालों ने लड़की ढूंढ़ ली तो दूसरी तरफ मेरी अपनी गर्लफ्रैंड से बातचीत पहले से भी ज्यादा बढ़ गई. वह अब भी मुझ से शादी करना नहीं चाहती और मम्मीपापा मेरी शादी कराने के पीछे पड़े हैं. अब मुझे शादी तो मम्मीपापा की मरजी से करनी ही होगी लेकिन अपनी गर्लफ्रैंड से रिश्ता खत्म कैसे करूं यह समझ नहीं आता.

जवाब
आप अपनी गर्लफ्रैंड से ब्रेकअप न कर के और शादी होने तक रिश्ता कायम रखते हुए गलती कर रहे हैं. आप जानते हैं कि उस से आप की शादी नहीं होगी और आप जल्द ही शादी करने वाले हैं तो फिर उस से रिलेशनशिप निभाते रहने की तुक क्या है. आप अपने दिल के साथ तो खिलवाड़ करेंगे ही, साथ ही समय रहते आगे भी नहीं बढ़ पाएंगे और जब किसी और से शादी करेंगे तो उसे भी खुश नहीं रख पाएंगे. यदि आप शादी के बाद भी इस रिलेशनशिप में रहने की सोच रहे हैं तो वह तो और ज्यादा गलत होगा. बेहतरी इसी में है कि समय रहते इस रिश्ते को खत्म कर आप आगे बढ़ें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

पति ने किया पत्नी का मर्डर

मियांबीवी के झगड़े आम हैं पर कभी कभार हत्या में भी तबदील हो जाते हैं. दिल्ली में एक मैकेनिक का घर बेचने को ले कर हो रहे झगड़े में मर्द ने औरत पर किसी तेज चीज से हमला कर दिया और शायद यह एहसास होने पर कि कुछ गलत हो गया हैउस ने खुद को भी घायल कर दिया. दोनों की अपने बड़े बच्चों के सामने मौत हो गई.

 

कूएं में कूद जाऊंगीआग लगा लूंगीजहर पी लूंगाघर छोड़ कर भाग जाऊंगा जैसे बोल अक्सर मियांबीवी के झगड़ों में झल्ला कर बोले जाते हैं. मर्द और औरत में कौन सही है कौन गलतइस का फैसला नहीं होता. झगड़ा तो किस की चलेगी पर होता है. पहले हमेशा मर्दों की चलती रही है पर अब औरतें भी बराबर होने लगी हैं.

यह बात दूसरी कि आम आदमी को पट्टी पढ़ाई जाती है कि औरत पैर की जूती हैवहीं रखो. यही सीख जो मांबाप देते हैंपंडेपादरी देते हैंसमाज देता हैरिश्तेदार देते हैंझगड़ों को मारपीट की हद तक ले जाते हैं.

जिस भी बात पर 2 जनों की राय एक न हो वहां कौन सही है कौन गलत का पूरा फैसला कभी नहीं हो सकता. हर मामले के कई पहलू होते हैं और हरेक अपनी समझ से अपना मन बनाता है. अच्छे पतिपत्नी के होते हैं जो एकदूसरे की पूरी तरह सुनते हैं और बिना अकड़ लाए तय करते हैं कि क्या सही हैक्या गलत है. अगर पतिपत्नी में से कोई तीसरे से चिपक भी रहा है तो मरनामारना कोई तरीका नहीं है. आज किसी को मार कर उस की लाश को निपटाना आसान नहीं है. अगर बच्चे हो तो मारने वाला भी जेल में रहता है तो बच्चों की देखभालके लिए कोई बचता नहीं. तीसरे के साथ जुड़ाव होने पर घर से अलग होना सब से सही है.

हमारे समाज में पतिपत्नी झगड़े मारपीट में इसलिए ज्यादा तबदील होते हैं कि यहां शादी को तोडऩा आसान नहीं है. अगर झगड़े के बाद आदमी या औरत कुछ दिन अपना अकेले का घर बना सकते हों तो उन्हें जल्दी ही एहसास हो जाए कि वजह कुछ भी रही होवे एकदूसरे के बिना अधूरे हैं. इस के लिए जरूरी है कि मर्द और औरत का हमेशा बाहर काम करते रहें और अपने पैरों पर खड़े हों.

दूसरी जरूरत हो कि कानून यह मजबूर करे कि कोई मकानमालिक अकेले आदमी या अकेली औरत के मकान किराए पर देने से मना न करेगा. चाहे मकान बड़ा हो या छोटी खोलीआजकल अकेलों को घर मिलना मुश्किल होता जा रहा है.

मुश्किल यह है कि सरकारें तो धर्मङ्क्षहदूमुसलिममूॢतयोंनारों में इतनी लगी हैं कि समाज की सब से बड़ी जरूरतघरसुखी घरपर उन का कोई ध्यान नहीं है.

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