भाभी: क्यों बरसों से अपना दर्द छिपाए बैठी थी वह- भाग 3

उन की ननद का विवाह तय हो गया और तारीख भी निश्चित हो गई थी. लेकिन किसी भी शुभकार्य के संपन्न होते समय वे कमरे में बंद हो जाती थीं. लोगों का कहना था कि वे विधवा हैं, इसलिए उन की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए. यह औरतों के लिए विडंबना ही तो है कि बिना कुसूर के हमारा समाज विधवा के प्रति ऐसा दृष्टिकोण रखता है. उन के दूसरे विवाह के बारे में सोचना तो बहुत दूर की बात थी. उन की हर गतिविधि पर तीखी आलोचना होती थी. जबकि चाचा का दूसरा विवाह, चाची के जाने के बाद एक साल के अंदर ही कर दिया गया. लड़का, लड़की दोनों मां के कोख से पैदा होते हैं, फिर समाज की यह दोहरी मानसिकता देख कर मेरा मन आक्रोश से भर जाता था, लेकिन कुछ कर नहीं सकती थी.

मेरे पिताजी पुश्तैनी व्यवसाय छोड़ कर दिल्ली में नौकरी करने का मन बना रहे थे. भाभी को जब पता चला तो वे फूटफूट कर रोईं. मेरा तो बिलकुल मन नहीं था उन से इतनी दूर जाने का, लेकिन मेरे न चाहने से क्या होना था और हम दिल्ली चले गए. वहां मैं ने 2 साल में एमए पास किया और मेरा विवाह हो गया. उस के बाद भाभी से कभी संपर्क ही नहीं हुआ. ससुराल वालों का कहना था कि विवाह के बाद जब तक मायके के रिश्तेदारों का निमंत्रण नहीं आता तब तक वे नहीं जातीं. मेरा अपनी चाची  से ऐसी उम्मीद करना बेमानी था. ये सब सोचतेसोचते कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला.

‘‘उठो दीदी, सांझ पड़े नहीं सोते. चाय तैयार है,’’ भाभी की आवाज से मेरी नींद खुली और मैं उठ कर बैठ गई. पुरानी बातें याद करतेकरते सोने के बाद सिर भारी हो रहा था, चाय पीने से थोड़ा आराम मिला. भाभी का बेटा, प्रतीक भी औफिस से आ गया था. मेरी दृष्टि उस पर टिक गई, बिलकुल भाई पर गया था. उसी की तरह मनमोहक व्यक्तित्व का स्वामी, उसी तरह बोलती आंखें और गोरा रंग.

इतने वर्षों बाद मिली थी भाभी से, समझ ही नहीं आ रहा था कि बात कहां से शुरू करूं. समय कितना बीत गया था, उन का बेटा सालभर का भी नहीं था जब हम बिछुड़े थे. आज इतना बड़ा हो गया है. पूछना चाह रही थी उन से कि इतने अंतराल तक उन का वक्त कैसे बीता, बहुतकुछ तो उन के बाहरी आवरण ने बता दिया था कि वे उसी में जी रही हैं, जिस में मैं उन को छोड़ कर गई थी. इस से पहले कि मैं बातों का सिलसिला शुरू करूं, भाभी का स्वर सुनाई दिया, ‘‘दामादजी क्यों नहीं आए? क्या नाम है बेटी का? क्या कर रही है आजकल? उसे क्यों नहीं लाईं?’’ इतने सारे प्रश्न उन्होंने एकसाथ पूछ डाले.

मैं ने सिलसिलेवार उत्तर दिया, ‘‘इन को तो अपने काम से फुरसत नहीं है. मीनू के इम्तिहान चल रहे थे, इसलिए भी इन का आना नहीं हुआ. वैसे भी, मेरी सहेली के बेटे की शादी थी, इन का आना जरूरी भी नहीं था. और भाभी, आप कैसी हो? इतने साल मिले नहीं, लेकिन आप की याद बराबर आती रही. आप की बेटी के विवाह में भी चाची ने नहीं बुलाया. मेरा बहुत मन था आने का, कैसी है वह?’’ मैं ने सोचने में और समय बरबाद न करते हुए पूछा.

‘‘क्या करती मैं, अपनी बेटी की शादी में भी औरों पर आश्रित थी. मैं चाहती तो बहुत थी…’’ कह कर वे शून्य में खो गईं.’’

‘‘चलो, अब चाचाचाची तो रहे नहीं, प्रतीक के विवाह में आप नहीं बुलाएंगी तो भी आऊंगी. अब तो विवाह के लायक वह भी हो गया है.’’

‘‘मैं भी अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होना चाह रही हूं,’’ उन्होंने संक्षिप्त उत्तर देते हुए लंबी सांस ली.

‘‘एक बात पूछूं, भाभी, आप को भाई की याद तो बहुत आती होगी?’’ मैं ने सकुचाते हुए उन्हें टटोला.

‘‘हां दीदी, लेकिन यादों के सहारे कब तक जी सकते हैं. जीवन की कड़वी सचाइयां यादों के सहारे तो नहीं झेली जातीं. अकेली औरत का जीवन कितना दूभर होता है. बिना किसी के सहारे के जीना भी तो बहुत कठिन है. वे तो चले गए लेकिन मुझे तो सारी जिम्मेदारी अकेले संभालनी पड़ी. अंदर से रोती थी और बच्चों के सामने हंसती थी कि उन का मन दुखी न हो. वे अपने को अनाथ न समझें,’’ एक सांस में वे बोलीं, जैसे उन्हें कोई अपना मिला, दिल हलका करने के लिए.

‘‘हां भाभी, आप सही हैं, जब भी ये औफिस टूर पर चले जाते हैं तब अपने को असहाय महसूस करती हूं मैं भी. एक बात पूछूं, बुरा तो नहीं मानेंगी? कभी आप को किसी पुरुषसाथी की आवश्यकता नहीं पड़ी?’’ मेरी हिम्मत उन की बातों से बढ़ गई थी.

‘‘क्या बताऊं दीदी, जब मन बहुत उदास होता था तो लगता था किसी के कंधे पर सिर रख कर खूब रोऊं और वह कंधा पुरुष का हो तभी हम सुरक्षित महसूस कर सकते हैं. उस के बिना औरत बहुत अकेली है,’’ उन्होंने बिना संकोच के कहा.

‘‘आप ने कभी दूसरे विवाह के बारे में नहीं सोचा?’’ मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी.

‘‘कुछ सोचते हुए वे बोलीं,  ‘‘क्यों नहीं दीदी, पुरुषों की तरह औरतों की भी तो तन की भूख होती है बल्कि उन को तो मानसिक, आर्थिक सहारे के साथसाथ सामाजिक सुरक्षा की भी बहुत जरूरत होती है. मेरी उम्र ही क्या थी उस समय. लेकिन जब मैं पढ़ीलिखी न होने के कारण आर्थिक रूप से दूसरों पर आश्रित थी तो कर भी क्या सकती थी. इसीलिए मैं ने सब के विरुद्ध हो कर, अपने गहने बेच कर आस्था को पढ़ाया, जिस से वह आत्मनिर्भर हो कर अपने निर्णय स्वयं ले सके. समय का कुछ भी भरोसा नहीं, कब करवट बदले.’’

उन का बेबाक उत्तर सुन कर मैं अचंभित रह गई और मेरा मन करुणा से भर आया, सच में जिस उम्र में वे विधवा हुई थीं उस उम्र में तो आजकल कोई विवाह के बारे में सोचता भी नहीं है. उन्होंने इतना समय अपनी इच्छाओं का दमन कर के कैसे काटा होगा, सोच कर ही मैं सिहर उठी थी.

‘‘हां भाभी, आजकल तो पति की मृत्यु के बाद भी उन के बाहरी आवरण में और क्रियाकलापों में विशेष परिवर्तन नहीं आता और पुनर्विवाह में भी कोई अड़चन नहीं डालता, पढ़ीलिखी होने के कारण आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के साथ जीती हैं, होना भी यही चाहिए, आखिर उन को किस गलती की सजा दी जाए.’’

‘‘बस, अब तो मैं थक गई हूं. मुझे अकेली देख कर लोग वासनाभरी नजरों से देखते हैं. कुछ अपने खास रिश्तेदारों के भी मैं ने असली चेहरे देख लिए तुम्हारे भाई के जाने के बाद. अब तो प्रतीक के विवाह के बाद मैं संसार से मुक्ति पाना चाहती हूं,’’ कहतेकहते भाभी की आंखों से आंसू बहने लगे. समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा न करने के लिए कह कर उन का दुख बढ़ाऊंगी या सांत्वना दूंगी, मैं शब्दहीन उन से लिपट गई और वे अपना दुख आंसुओं के सहारे हलका करती रहीं. ऐसा लग रहा था कि बरसों से रुके हुए आंसू मेरे कंधे का सहारा पा कर निर्बाध गति से बह रहे थे और मैं ने भी उन के आंसू बहने दिए.

अगले दिन ही मुझे लौटना था, भाभी से जल्दी ही मिलने का तथा अधिक दिन उन के साथ रहने का वादा कर के मैं भारी मन से ट्रेन में बैठ गई. वे प्रतीक के साथ मुझे छोड़ने के लिए स्टेशन आई थीं. ट्रेन के दरवाजे पर खड़े हो कर हाथ हिलाते हुए, उन के चेहरे की चमक देख कर मुझे सुकून मिला कि चलो, मैं ने उन से मिल कर उन के मन का बोझ तो हलका किया.

Diwali Special: बॉयफ्रेंड के साथ दीवाली

दीवाली आते ही खुशियों का माहौल बनने लगता है. खुशियों को मिल कर मनाना चाहिए. ऐसे में दीवाली गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड मिल कर मनाते हैं. आज समय बदल गया है. गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड अब जौब वाले भी हैं. वे खुद पर निर्भर होते हैं. पहले गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड टीनएज में होते थे तो उन के दायरे भी सीमित होते थे. आज युवा जल्दी ही जौब करने लगे हैं. इस के अलावा घरों से दूर होस्टल में या दूसरे शहरों में रह रहे हैं.

ऐसे में वे पहले के मुकाबले ज्यादा आजाद होते हैं. उन के सामने अब अवसर होते हैं कि वे आपस में मिल कर फैस्टिवल मना सकते हैं. पार्टीज करने के लिए जरूरी नहीं है कि महंगे होटल या पब में जाएं. किसी दोस्त के घर या छोटे होटल, पार्क में भी इस को कर सकते हैं.

प्रोफैशनल स्टडीज कर रही इसिका यादव कहती हैं, ‘‘गर्लफ्रैंड और बौयफ्रैंड ही नहीं, हम अपने सामान्य फ्रैंड्स के साथ भी दीवाली कुछ खास तरह से मना सकते हैं. कालेज और होस्टल में रहने वाले लोग छुटिट्यों में अपने घर जाते हैं. ऐसे में दीवाली से पहले दीवाली पार्टी और दीवाली के बाद भी पार्टी का आयोजन कर सकते हैं. उस में खास दोस्तों को बुला सकते हैं. पार्टी में डांस, म्यूजिक, गेम्स और कई तरह के प्राइजेज के साथ खानेपीने के अच्छे मैन्यू रख सकते हैं. युवाओं को यह अच्छा लगता है. दीवाली रोशनी यानी लाइटिंग का त्योहार होता है. पार्टी में लाइटिंग भी होनी चाहिए.’’

होस्टल में रहने वाले और कोचिंग के जरिए जौब की तैयारी करने वाले कुछ युवाओं की जब जौब लग जाती है तो वे अपनी तरफ से भी ऐसी पार्टी का आयोजन दीवाली सैलिब्रेशन के साथ कर लेते हैं जिस से उन की सक्सैस पार्टी भी हो जाती है और दीवाली की सैलिब्रेशन पार्टी भी. अपनी उम्र और अपनी पसंद के लोगों के साथ पार्टी करने का आनंद ही अलग होता है. ऐसे में दीवाली सैलिब्रेशन पार्टी बहुत अच्छी होती है. ज्यादातर लोगों की प्लेसमैंट के बाद इन्हीं महीनों में जौब लग चुकी होती है तो वह एक खास अवसर भी होता है.’’

अलग अंदाज में दें बधाई

दीवाली में बधाई देने का अंदाज पिछले साल से कुछ अलग हो, इस बात का खास खयाल रखें. पहले ग्रीटिंग कार्ड का जमाना था. इस के बाद एसएमएस आया और अब सोशल मीडिया आने के साथ व्हाट्सऐप के जरिए संदेश भेजे जाने लगे. कई बार लोग किसी और के भेजे गए बधाई संदेश आगे फौरवर्ड कर देते हैं.

ध्यान रखें, अब फौरवर्ड किए मैसेज में यह लिख कर आने लगा है कि यह मैसेज फौरवर्ड किया हुआ है. कुछ मैसेज में भेजने वाले का नाम लिखा होता है. कई बार जल्दी मैसेज भेजने के चक्कर में लोग दूसरे का नाम हटाना भूल जाते हैं. यह बहुत हास्यास्पद लगता है. जब भी किसी और का मैसेज आगे भेजते हैं तो उस को ध्यान से देख लें. गर्लफ्रैंड, बौयफ्रैंड ही नहीं, आम फ्रैंड्स को भी दीवाली की बधाई नए अंदाज में दें.

पूजा वाजपेई कहती हैं, ‘‘कोशिश करें कि खास दोस्तों को मिल कर बधाई दें. अगर दोस्त किसी और शहर में है तो फोन से बधाई दें. बधाई देने जाएं तो अपने साथ कुछ गिफ्ट जरूर ले कर जाएं. दोस्त किसी बाहरी शहर में है तो उस को कुरियर से गिफ्ट भेज सकते हैं.

‘‘आजकल औनलाइन गिफ्ट भेजना सरल हो गया है. दीवाली में गिफ्ट की कीमत की जगह आप के इमोशन दिखने चाहिए, यही युवाओं को पंसद आता है. पार्टी भी केवल कौफी की हो तो भी बेहद अच्छी लगती है. पार्टी में इस बात का खयाल रखें कि किसी भी तरह की नशे की चीजों का प्रयोग न करें. आजकल पार्टियों में नशे का प्रयोग होने लगा है. युवा ऐसी पार्टी से बच कर रहें.’’

उपहार में पैकिंग हो खास

उपहार देते समय इस बात का खास खयाल रखें कि गिफ्ट उस को पसंद आए. लड़कियों को डायमंड रिंग, नैकलैस, चौकलेट, परफ्यूम, एथनिक ड्रैसें पसंद आती हैं. ऐसे में अपने फ्रैंड की पसंद की चीजों को गिफ्ट में दें. किसी फ्रैंड को बुक्स बहुत अच्छी लगती हैं. आजकल तमाम तरह के गिफ्ट वाउचर भी हैं जिन को भी गिफ्ट की तरह से दे सकते हैं.

ब्यूटी सैलून के तमाम पैकेज होते हैं. वे अपनी गर्लफ्रैंड को दे सकते हैं. गिफ्ट आइटम की पैकिंग का काम करने वाली प्रीति शर्मा कहती हैं, ‘‘गिफ्ट देते समय इस बात का खास खयाल रखें कि उस की पैकिंग बेहद आकर्षक हो. आजकल ऐसे बहुत सारे प्रयोग होने लगे हैं जिन से दीवाली खास हो जाती है. पैकिंग को देने वाले या पाने वाले की रुचि के हिसाब से भी तैयार किया जा सकता है.‘‘

लड़कों को उपहार देना हो तो अच्छी ड्रैस दे सकते हैं. जैकेट, शर्ट और टीशर्ट आज के युवा बहुत पसंद करते हैं. उन्हें सिलवर या डायमंड के सिक्के भी दे सकते हैं व होम डैकोर की चीजें दे सकते हैं. वाल स्टीकर भी दिए जा सकते हैं. अलगअलग तरह की कैंडल्स भी दी जा सकती हैं. इन सब के साथ खानेपीने की चीजें भी उपहार में दें.

दीवाली में प्रदूषण को ले कर भी जागरूकता की जरूरत होती है. ऐसे में जरूरी है कि हम गिफ्ट में छोटेछोटे प्लांट या बोनसाई भी दे सकते हैं. घर में हरीभरी चीजें देखने को मिलती हैं तो बहुत अच्छा लगता है.

‘छप्पन भोग’ मिठाई शौप के मालिक नमन गुप्ता कहते हैं, ‘‘दीवाली गिफ्ट में अपने इलाके की मशहूर खानेपीने की चीजें दे सकते हैं. आज आसान बात यह है कि इन की औनलाइन शौपिंग कर के देशविदेश कहीं भी भेजा जा सकता है. ज्यादातर लोग एकजैसी खाने की चीजें ही भेजते हैं. सोहन पापड़ी को ले कर तमाम तरह के जोक्स बन चुके हैं. अगर आप अपने यहां की मशहूर खाने की चीजें उपहार में देंगे तो उस का अलग असर पड़ेगा.

‘‘अब कुरियर से तय समय और दिन में भी डिलीवरी देने का सिस्टम बन गया है. ऐसे में दीवाली के दिन शाम को सैलिब्रेशन के समय ही गिफ्ट खास दोस्त तक पहुंच सकता है.’’

मेरे प्रेमी की छोटी बहन मुझे पसंद नहीं करती, मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 18 साल है और पिछले कई दिनों से मेरा अपने प्रेमी से अजीब सा झगड़ा चल रहा है. इस की वजह है उस की छोटी बहन, जो न जाने क्यों मुझे पसंद नहीं करती है, जबकि मैं किसी भी लिहाज से उस की भाभी बनने में कमतर नहीं हूं. मेरा बौयफ्रैंड भी, जैसा कि वह मुझ से बोलता है, उसे समझाने की पूरी कोशिश करता है, पर जैसे उस ने ठान लिया है कि वह मुझे किसी भी तरीके से बदनाम कर के अपने घर वालों की नजरों में गिरा कर ही दम लेगी.

मुझे लगता है कि मेरा बौयफ्रैंड उसे ठीक ढंग से समझा नहीं पा रहा है, इसलिए हमारे बीच तनाव बढ़ रहा है. मैं क्या करूं?

जवाब

अगर आप के और आप के प्रेमी के बीच तनाव बढ़ रहा है तो उस की बहन अपने मकसद में कामयाब हो रही है, जो आप के लिए ठीक नहीं है.

लगता है कि वह किसी बात पर आप से चिढ़ गई है या फिर उसे लग रहा है कि आप ने उस के भाई को फंसा लिया है. इन दोनों ही बातों का कोई इलाज नहीं है, सिवाए इस के कि आप के व प्रेमी के बीच मजबूत रिश्ता हो और वह बहन इसी को तोड़ रही है.

आप का यह कहना प्रेमी के प्रति अविश्वास ही जताता है कि वह अपनी बहन को ठीक से समझा नहीं पा रहा है. अब आप के पास बेहतर रास्ता यही है कि आप और प्रेमी एकदूसरे पर भरोसा बनाए रखें. इस से बहन के हौसले पस्त होंगे.

वैसे, एक बार फिर अकेले में उस से खुल कर बात करें कि उसे आप से दिक्कत क्या है? अगर कोई गलतफहमी होगी तो दूर हो सकती है, नहीं तो यह भी सोचें कि जिस लड़की ने शादी के पहले आप का जीना हराम कर दिया है, वह शादी के बाद आप का क्या हाल करेगी.

Diwali 2022: वातावरण को शुद्ध बनाएं व जीवन मे खुशियां लाएं  

त्योहारों का सीजन शुरू हो गया है. सभी के घरों मे त्योहारों की तैयारी जोरों पर है. लोग घरों की साफ सफाई में जुट गए हैं या शौपिंग करने मे बिजी है. त्यौहारों के सीजन में  हर कोई अपने दोस्तों, रिश्तेदारों से भी मिलने जाते हैं. ऐसे में लोगों के रिश्तों मे मिठास बढ़ती है. लेकिन इस त्यहारों के सीजन में एक और चीज बढ़ रही है जिसकी कोई परवहा नहीं कर रहा है और वो है हमारे आस पास बढ़ता हुआ प्रदूषण का स्तर. चाहे वो धुआं हो, प्लास्टिक कचरा या पटाखों से बढ़ता प्रदूषण. दिवाली से पहले ही आकाश में प्रदूषण के धुंध की चादर फैली हुई है. दिवाली के त्योहार पर बढ़ते प्रदूषण का स्तर आपकी सेहत के लिए खतरा ना बन जाए इस बात को ध्यान में रखते हुए हम कुछ जरूरी टिप्स बता रहे है जिससे आप अपने आस पास प्रदूषण को बढ़ने से बचा सकते हैं.

करो कुछ ऐसा जो प्रकृति को भाए

  • दिवाली पर सब साफ सफाई में जुट जाते हैं. सफाई करते समय ध्यान रखें की अगर आपके पास कोई प्लास्टिक का ऐसा कचरा है जिस को हम किसी न किसी तरह  दोबारा इस्तेमाल कर सकते है तो उसे फेकें नहीं. उससे आप अपने घर की सजावट का सामान बना सकते हैं या उसमे पौधे लगा सकते हैं. जिससे आप वातावरण को भी शुद्ध बना सकते हैं और प्लास्टिक का दोबारा अच्छे तरीके से इस्तेमाल भी कर सकते हैं. क्योंकि प्लास्टिक मिट्टी के उपजाऊपन को नुकसान पहुंचाता है और ये आसानी से नष्ट नहीं होता है.
  • दुकानदार और खरीदार अभी भी प्लास्टिक के बैग का इस्तेमाल कर रहे हैं. पर्यावरण संरक्षण में छोटा सा योगदान देते हुए खरीदार कपड़े के या जूट के बने बैग का इस्तेमाल कर सकते हैं. गिफ्ट रैप करने के लिए भी बड़े पैमाने पर प्लास्टिक रैपर का इस्तेमाल होता है. पेपर से बने या ग्रीन फैब्रिक से बने रैपर का इस्तेमाल करें या ब्राउन बैग का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
  • दिवाली पर हर कोई पटाखे जलता है. पटाखों का जहरीला धुंआ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है और आसमान में भी धुंध सा छा जाता है, और यह वायु प्रदूषण को इतना ज्यादा बढ़ा देता है कि लोगों को मास्क के बिना घर से निकल पाना मुश्किल होता है. इसलिए पटाखों से दूरी बनाये और आप दूसरों को भी पटाखें ना खरीदने को लेकर जागरूक करें.
  • दीवाली को रोशनी का त्योहार कहा जाता है. लोग इस दिन घरों, औफिस और धार्मिक जगहों पर लड़ियां व मोमबत्ती जलाते हैं. इस बार मोमबत्ती की जगह दीए जलाएं. दरअसल, मिट्टी के बने दिए बायोडिग्रेडेबल होते हैं, जिससे पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं होता. और हो सके तो दिए रोड पर बैठे गरीब लोगों से खरीदें  न की दुकानदारों से आपकी खरीदारी उनके घर को रोशन कर सकती हैं.
  • दीवाली के दिन लोग अपने घर को  प्लास्टिक के फूलों से सजाते हैं. आप  प्लास्टिक की जगह फूलों की माला से डेकोरेशन कर सकते हैं. जो कि बहुत खूबसूरत दिखती है और साथ ही प्लास्टिक के इस्तेमाल से भी दूर रखती है.
  • यदि आपके घर मे मिठाई ज्यादा हैं तो किसी गरीब को दें. और हो सके तो कपड़े व खाना गरीबों में भेट करें जिससे वो भी अपना त्यौहार खुशी से मना सकें. ऐसा करने से आपको भी बेहद खुशी व सुकून मिलेगा.

Bigg Boss 16: शालीन-गौतम की दोस्ती में आई दरार! सुम्बुल तौकीर खान बनीं वजह

टीवी इंडस्ट्री का जाना-माना शों बिग बॉस 16 दुनिया के सबसे पसंदीदा रियलिटी शो में से एक है इस शो मे आए दिन धमाके होते रहते हैं. रिश्ते बनते और बिगड़ते रहते हैं. आने वाले एपिसोड में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिलेगा जब सुम्बुल तौकीर खान जाकर गौतम विज के मजाक के बारे में शालीन भनोट को बताएंगी

टीवी रियलिटी शो ‘बिग बॉस 16’ के बीते एपिसोड में आपने देखा कि कैसे चारों बेडरूम्स को लेकर एक टास्क हुआ और इसी में शालीन भनोट और टीना दत्ता के बीच दरार आनी शुरू हो गईं. इसके पहले शालीन और गौतम के बीच भी कहा सुनी को दौर चल रहा था, जिस वजह से दोनों के बीट बातचीत नहीं हो रही थी. अब शो के नए प्रोमो में इन तीनों के बीच जमकर हंगामा होने वाला है और वजह कोई और नहीं बल्कि सुम्बुल ही हैं.

दरअसल, घर में आने के बाद शालीन भनोट, टीना दत्ता और गौतम विज अच्छे दोस्त बन गए थे. सुम्बुल भी इस ग्रुप में शामिल थीं साथ ही इन चारों ने निमृत कौर अहलूवालिया के साथ भी गैंगअप कर लिया था.

गौतम विज के मजाक से उतरा सुम्बुल का चेहरा

बिग बॉस 16 (Bigg Boss 16) के प्रोमो में दिख रहा है कि एक बेड पर टीना, निमृत, गौतम और सुम्बुल लेटे हुए हैं. वहीं दूसरे बेड पर अर्चना, शालीन और सौंदर्य भी नजर आ रही हैं. इसी बीच गौतम (Gautam Vig)मजाक में कहते हैं- ‘सुम्बुल के भी घंटे हैं. फिर निमृत कहती हैं कि वह डिवाइडेड हैं. फिर टीना कहती हैं- तुम लोग टाइमअप कैसे हो गए. मैं तो ऐसे ही पूछ रही हूं. गौतम जवाब देते हैं- यहां तो ओवरटाइम कर रही है पगली’. ये सुनकर सुम्बुल का चेहरा उतर जाता है.

सुम्बुल तौकीर को लेकर भिड़े शालीन और गौतम विज

सुम्बुल शालीन से जाकर बताती हैं- ‘गौतम कह रहा था कि मैं इस घर में ओवरटाइम कैसे कर रही हूं, जा क्यों नहीं रही? इसमें टीना भी शामिल थी. फिर शालीन वहीं खड़े गौतम से कहते हैं- तू और वो टीना बहुत ताने मार रहे हो इसको. सामने बोल ना. फिर गौतम कहते हैं- बाप क्यों बन रहा है किसी का. शालीन कहते हैं- बाप नहीं बन रहा. गौतम कहते हैं- सुम्बुल (Sumbul Touqeer Khan) मेरी दोस्त है, मेरी जो मर्जी वो बोलूं. इसके बाद दोनों के बीच चीखम चिल्ली मच होने लग जाती है. बाकी घरवाले बीच-बचाव में आ जाते हैं.

शालीन ने दी गोतम को धमकी

गौतम फिर शालीन से कहते हैं- ‘18 साल की बच्ची को तुम बहका रहे हो. तुम इसे पालना चाहो तो पाल भी सकते हो. शालीन कहते हैं- ये पालना वालना मत बोल. टीना भी बोलती हैं कि उनसे झगड़ा मत करो. फिर शालीन कहते हैं कि वह उनसे झगड़ भी नहीं रहे. गुस्से में गौतम बोलते हैं- बच्ची को छेड़ रहे हो और फिर बाप बन रहे हो’. गुस्से मे शालीन उनको- मुंह तोड़ने की धमकी देते हैं. दोनों एक-दूसरे को इसके बाद ललकारते भी हैं लेकिन घरवाले उन पर काबू पाते दिखाई देते हैं.

मेरा चचेरा भाई मुझे बहुत प्यार करता है, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं एक लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे प्यार करता है. पर समस्या यह है कि मेरा चचेरा भाई भी मुझे बहुत प्यार करता है, मैं उसे नहीं चाहती. लेकिन यह बात कह कर मैं उसे दुखी भी नहीं करना चाहती हूं. फिर यदि मैं ने अपने बौयफ्रैंड से इस प्रेम संबंध को समाप्त करने की बात कही तो उसे तो दुख होगा ही, साथ ही मैं भी उस से जुदा हो कर जी नहीं पाऊंगी. मैं अजीब उलझन में हूं. किसी का भी दिल नहीं तोड़ना चाहती. कृपया मेरा मार्गदर्शन करें?

जवाब

आप को अपने चचेरे भाई को किसी मुगालते में नहीं रखना चाहिए. उस से साफ साफ कह दें कि आप दोनों भाईबहन हैं और आप का खून का रिश्ता है. आप की उस के प्रति जो चाहत है वह सिर्फ एक बहन की अपने भाई के प्रति है. यह सुन कर वह दुखी होगा, हो सकता है कि आप से नफरत भी करने लगे, पर इस के अलावा आप के पास कोई चारा भी नहीं है. प्यार के इस भ्रम को जितनी जल्दी तोड़ देंगी, तकलीफ उतनी ही कम होगी.

Diwali 2022: दीवाली का पाखंड- पढ़िए दीवाली के पाखंडों का पूरा बहीखाता

हमारे देश में दीवाली के अवसर पर लक्ष्मी यानी धन पाने के लिए तरहतरह के ढकोसले किए जाते हैं. यज्ञहवन से ले कर तांत्रिक क्रिया भी करवाते हैं. दीवाली को ले कर लोगों के मन में कई तरह की मान्यताएं बनी हुई हैं जिस में से एक यह भी है कि दीवाली के दिन तांत्रिक क्रिया के जरिए अपनी बलाएं टाली जा सकती हैं. कुछ लोग दीवाली की रात लक्ष्मी की मूर्ति के आगे मूषक की बलि देते हैं, इस के पीछे यह अंधविश्वास है कि ऐसा करने से साल भर उन्हें भूतपिशाच से मुक्ति मिल जाएगी. सिर्फ यही नहीं, घर की गरीबी को दूर करने के लिए भी अलगअलग कर्मकांड देश के कई हिस्सों में किए जाते हैं. दीवाली के दिन लक्ष्मीगणेश पूजन का इतना महत्त्व दिया जाता है कि इस के लिए लोग पैसे को पानी की तरह बहाते हैं. व्यापारी वर्ग गद्दी पूजा के साथ अपने बहीखातों की भी पूजा करते हैं. लोगों में ऐसी मान्यता भी है कि जो लक्ष्मी पूजन पर जितना ज्यादा पैसा खर्च करता है. लक्ष्मी खुश हो कर उस पर उतने ही धन की वर्षा करती हैं. इस धारणा के चलते ही लाखों परिवार पंडितों का पेट भरते हैं. धर्मभीरु लोग लक्ष्मीगणेश की मूर्ति के सामने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए धन, समृद्धि और कल्याण की कामना करते हैं. यही नहीं वे रात भर लक्ष्मी के स्वागत के लिए देशी घी का दीपक जलाते हैं ताकि लक्ष्मी रात में आ कर उन की दौलत को दोगुनाचौगुना कर दें.

कुछ लोग इसी कारण दीवाली के दिन अपने घर का दरवाजा खुला रखते हैं कि लक्ष्मी नाराज हो कर कहीं चली न जाएं. ये सारी कवायद तथाकथित धनदेवी लक्ष्मी को खुश करने के लिए की जाती है. शायद यही वजह है कि लोग लक्ष्मी के आगे शंख और घंटेघडि़याल बजाते हैं कि वह धन की देवी है, अगर खुश हो गई तो पौबारह, रात में आ कर सोना बरसा जाएगी तो आराम से उम्र भर खाएंगे और मौज करेंगे. एक और अंधविश्वास कि धनतेरस पर नया बरतन खरीदना चाहिए क्योंकि धन देवी लक्ष्मी धातु पर विराजमान हो कर घर को धनसंपत्ति से भर देती हैं. इस दिन सब से अधिक जुआ खेला जाता है. जो लोग कभी जुआ नहीं खेलते वे भी इस दिन रीति, परंपरा या लक्ष्मी की प्रसन्नता के नाम पर जुआ खेलते हैं.

अब सवाल यह उठता है कि दीवाली को ही ये सारे कर्मकांड क्यों किए जाते हैं? इस के पीछे यह धारणा है कि इस दिन विष्णु के साथ लक्ष्मी धरती पर विचरण करती हैं और जो पूजापाठ के जरिए उन्हें खुश कर देता है वह उन की सारी मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं. शायद यही वजह है कि लोग इस दिन लक्ष्मीपूजन, हवन और दानदक्षिणा देते हैं. यदि हम लक्ष्मी पूजा के मंत्रों की बात करें, तो पंडितों के कहे अनुसार ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी के मंत्रों का जाप करने से हमें लक्ष्मी की कभी कमी नहीं होगी. दूसरे, अगर लक्ष्मी पूजन से हमारे सारे दुख दूर हो जाते और हम सुखी हो जाते, तो लक्ष्मी की पूजा एक दिन ही क्यों फिर तो पूरे साल की जानी चाहिए.

यह सब अंधविश्वास और ढकोसले भी पंडितों के द्वारा फैलाए गए हैं. पंडितों ने पूजा के लिए एक विशेष दिन बना रखा है. मायावी मंत्रों के जरिए लोगों को इस कदर जकड़ रखा है कि वे इस मकड़जाल में फंसते जाते हैं. उन्हें लगता है पंडित जो कह रहा है वह सच कह रहा है. सवाल उठता है कि अगर ऐसा होता, तो पंडित घरघर जा कर क्यों भटकता है, क्योंकि सब से ज्यादा लक्ष्मी का नाम तो वही लेता है. जब लक्ष्मी उस का ही भला नहीं कर सकती, तो आम जनता का भला क्या वह खाक करेगी. मजेदार बात तो यह है कि दूसरों को भूखे रहने की सलाह दे कर वह खुद उन के यहां भरपेट भोजन कर के आता है.

अब आप इस मंत्र को ही देखिए : अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्ति- कामनया ज्ञाता……….

इस संकल्प वाक्य को पढ़ कर जल को गणेशजी के पास छोड़ दें. इस के अलावा एक बानगी और देखिए कि गणेशजी की पूजा करने से पहले बाएं हाथ में अक्षत ले कर आप को एक मंत्र पढ़ना है और वह यह है : ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पति- र्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ……….

इस मंत्र को पढ़ते हुए जल गणेश पर छिड़कना होता है और उस के बाद इस मंत्र को पढ़ते हुए फिर दाहिने हाथ से उस अक्षत को गणेश के पास छोड़ना है, लेकिन यह बात समझ से बाहर है कि चार बूंद जल गणेश को छिड़कने से क्या हो जाएगा? एक तो इस का शुद्ध उच्चारण करना कठिन है इसलिए यह सिर्फ एक औपचारिकता है. गौर करने वाली बात यह है कि एक पत्थर की मूर्ति को शुद्ध करने के लिए इतना सब ढोंग किया जाता है और आप जिसे अक्षत कहते हैं वह चावल होता है जिसे यों ही बरबाद कर दिया जाता है. पत्थर की मूर्ति पर अक्षत के नाम पर जो चावल फेंका जाता है, जरा सोचिए कि इस तरह कितना चावल बरबाद किया जाता होगा. अगर एक परिवार 50 ग्राम भी चावल लक्ष्मी पूजा के नाम पर बरबाद करता है, तो देश में कितना अधिक चावल इस नाम पर बरबाद हो रहा है.

आज बिहार में आई कोसी में बाढ़ के कहर के चलते लाखों लोगों को ऐसे चावलों की दरकार है जो अक्षत के नाम पर बरबाद होते हैं. एक और मंत्र देखिए :

महालक्ष्म्यै नम:. पय:स्नानं समर्पयामि. पय:स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि. अर्थात गो के कच्चे दूध से स्नान कराएं, पुन: शुद्ध जल से स्नान कराएं.

सवाल यह उठता है कि अपने देश में करोड़ों बच्चे भूख से बिलख रहे हैं, उन्हें पीने के लिए दूध तक नसीब नहीं होता. वहीं अंधविश्वास में डूबे ये पाखंडी हजारों लिटर दूध भगवान पर चढ़ाने के नाम पर नालियों में बहा देते हैं. क्या आप को नहीं लगता कि अगर इस दूध को यों बरबाद करने के बजाय किसी भूखे को पिला दिया जाए, तो आप का भगवान ज्यादा खुश होगा क्योंकि भगवान ही तो कहता है कि गरीब की मदद करो और भूखे को रोटी दो, फिर अगर आप ने वह दूध भगवान पर चढ़ाने के बजाय किसी भूख से बिलखते बच्चे को दे दिया तो क्या वह नाराज हो जाएगा? अगर नहीं तो फिर पंडितों की बातों में आ कर यह ढकोसला क्यों? यह मंत्र देखिए :

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम्. तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्.

जहां तक बात शुद्ध पेय जल की है, तो यह तो सभी जानते हैं कि शुद्ध जल लोगों को पीने को नहीं है. अशुद्ध जल पीने के कारण लोग हैजे जैसी कितनी ही बीमारियों से घिरे रहते हैं. जब शुद्ध जल पीने को नहीं है तो फिर भगवान की मूर्ति पर चढ़ाने के लिए कहां से आएगा? जरा इस मंत्र को पढि़ए :

रत्नकङ्णवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च. सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरूष्व भो:.

इस के बाद भी मंत्र चलता रहता है और आखिर में : ॐ महालक्ष्म्यै नम:. नानाविधानि कुण्डलकटकादीनि…

इस मंत्र का जाप कर आभूषण दान करने की बात कही जाती है. इन आभूषणों में सोना, चांदी आदि कुछ भी हो सकता है और जो भी चीज पूजा में चढ़ गई वह पंडित की हो जाती है. इसलिए वे जानबूझ कर और औकात देख कर वस्तु की मांग करते हैं. यह भी सच है कि अमीर जजमान के यहां जाना ये खासतौर से पसंद करते हैं क्योंकि वहां से चढ़ावा भी अच्छा मिलता है. वैसे इन पंडितों से पूछा जाए कि जिस के पास दान देने को कुछ नहीं वह क्या करे? तो इस पर इन का जवाब होता है कि हर व्यक्ति को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिए. मतलब यह कि अगर गरीब हो तो भी दान करो, चाहे उस के लिए कर्ज ही क्यों न लेना पड़े. अब इस मंत्र को पढि़ए :

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसो:. अनंतपुण्यफलदमत: शान्ति प्रयच्छ मे.

इस मंत्र का जाप करने के बाद यह मंत्र पढ़ें : ॐ महालक्ष्म्यै नम:, दक्षिणां समर्पयामि.

लगता है कि इस श्लोक को पढ़े बिना पंडितों का लक्ष्मी पूजन अधूरा है. ये लोग इस मंत्र को पूजा के बीचबीच में पढ़ते रहते हैं ताकि दक्षिणा मिलती रहे क्योंकि अगर सब से आखिर में पढ़ा तो हो सकता है कि दक्षिणा न मिले. इन की बुद्धिमत्ता देखिए कि ये मंत्रोच्चारण के बीच में कभी कलश पर कुछ दक्षिणा डालने की बात करते हैं, तोे कभी थाली में कुछ डालने की मांग करते हैं ताकि इन की झोली हरेक मंत्र के बाद भरती रहे. वैसे कार्य समापन पर दक्षिणा ये अलग से लेते हैं जो इन की पूजा कराने से पहले तय हुई है. यह सारा खेल है ही पंडितों का अपनी कमाई करने का. वैसे तो पूरे साल ये ढकोसले चलते रहते हैं लेकिन त्योहारों के अवसर पर खासतौर से इस का लाभ पंडितों को मिलता है.

एक अन्य मंत्र देखिए : ॐ सर्वा बाधा बिनर्मुक्तो धन धान्य सुतान्नित:

मनुष्यों मत: प्रसादेन भविष्यतिन शंसय:. लक्ष्मी माता सभी बाधाओं को दूर करने वाली होती है. धन, धान्य, पुत्र, परिवार सबकुछ सुलभ ही प्राप्त हो जाता है. मनुष्य को इस बारे में कोई शंका नहीं करनी चाहिए. इस संसार में जो लक्ष्मी को मानता है उसे धन की प्राप्ति होती है.

सिर्फ यही नहीं बल्कि कई मंत्रों मेंलोगों को यह बताया जाता है कि जो दिनरात पूजापाठ करता है उस का धन और वैभव बढ़ता ही जाता है लेकिन अगर धन आ जाने के बाद लक्ष्मी की पूजा नहीं करोगे, तो वह धन वापस ले लेगी. कई जगह यह भी कहा गया है कि जो जितना पूजापाठ करेगा उसे उतने ही अधिक धन की प्राप्ति होगी. यानी कि ज्यादा पूजा करने से लक्ष्मी की असीम कृपा होगी. अगर इस बात पर विश्वास किया जाए, तो सब से ज्यादा अमीर तो इन पंडितों को होना चाहिए लेकिन इन का ही कोई ठौरठिकाना नहीं होता तो आम जनता के लिए क्या कहा जा सकता है.

ऐसे एक नहीं कई मंत्र हैं जिन्हें पढ़ कर कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता. त्योहारों पर धार्मिक कर्मकांड दकियानूसी और पिछड़ेपन की इन्हीं मान्यताओं और ढकोसलों की वजह से बढ़ रहे हैं, दीवाली को महिमामंडित करने के लिए ही लक्ष्मी पूजन जैसी किताबों को लिखा गया है ताकि पंडेपुजारी इन कर्मकांडों के जरिए जनता के सामने नमकमिर्च लगा कर पेश कर सके और जनता त्योहार के नाम पर बेवकूफ बन कर इन पंडों की झोली भरती रहे.

नागरिकता बिल

देश के कुछ हिस्सों में इस बिल का पुरजोर विरोध हुआ था और कुछ हिस्सों में जम कर स्वागत भी हो रहा था.

मीडिया वाले लगातार इस अहम खबर पर नजरें गड़ाए हुए थे और पिछले कई दिनों से वे इसी खबर को प्रमुखता से दिखा रहे थे.

रजिया बैठी हुई टैलीविजन पर यह सब देख रही थी. उस की आंखों में आंसू तैर गए. खबरिया चैनल का एंकर बता रहा था कि जो मुसलिम शरणार्थी भारत में रह रहे हैं, उन को यहां की नागरिकता नहीं मिल सकती है.

‘क्यों? हमारा क्या कुसूर है इस में… हम ने तो इस देश को अपना सम झ कर ही शरण ली है… इस देश में सांस ली है, यहां का नमक खाया है और आज राजनीति के चलते यहां के नेता हमें नागरिक मानने से ही इनकार कर रहे हैं. हमें कब तक इन नेताओं के हाथ की कठपुतली बन कर रहना पड़ेगा,’ रजिया बुदबुदा उठी.

रजिया सोफे से उठी और रसोईघर की खिड़की से बाहर  झांकने लगी. उस की आंखों में बीती जिंदगी की किताब के पन्ने फड़फड़ाने लगे.

तब रजिया तकरीबन 20 साल की एक खूबसूरत लड़की थी. उस की मां बचपन में ही मर गई थी. बड़ी हुई तो बाप बीमारी से मर गया. उस के देश में अकाल पड़ा, तो खाने की तलाश में भटकते हुए वह भारत की सरहद में आ गई और शरणार्थियों के कैंप में शामिल हो गई थी. भारत सरकार ने शरणार्थियों के लिए जो कैंप लगाया था, रजिया उसी में रहने लगी थी.

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पहलेपहल कुछ गैरसरकारी संस्थाएं इन कैंपों में भोजन वगैरह बंटवाती थीं, पर वह सब सिर्फ सोशल मीडिया पर प्रचार पाने के लिए था, इसलिए कुछ समय तक ही ऐसा चला. कुछ नेता भी इन राहत कैंपों में आए, पर वे भी अपनी राजनीति चमकाने के फेर में ही थे. सो, वह सब भी चंद दिनों तक ही टिक पाया.

शरणार्थियों को आभास हो चुका था कि उन्हें अपनी आजीविका चलाने के लिए कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा. जिन के पास कुछ पैसा था, वे रेहड़ीखोमचा लगाने लगे, तो कुछ रैड सिगनलों पर भीख मांगने लगे. कुछ तो घरों में नौकर बन कर अपना गुजारा करने लगे.

एक दिन शरणार्थी शिविर में एक नेताजी अपना जन्मदिन मनाने पहुंचे. उन के हाथों से लड्डू बांटे जाने थे. लड्डू बांटते समय उन की नजर सिकुड़ीसिमटी और सकुचाई रजिया पर पड़ी, जो उस लड्डू को लगातार घूरे जा रही थी.

नेताजी ने रजिया को अपने पास बुलाया और पूछा, ‘लड्डू खाओगी?’

रजिया ने हां में सिर हिलाया.

‘मेरे घर पर काम करोगी?’

रजिया कुछ न बोल सकी. उस ने फिर हां में सिर हिलाया.

‘विनय, इस लड़की को कल मेरा बंगला दिखा देना और इसे कल से काम पर रख लो. सबकुछ अच्छे से सम झा भी देना,’ नेताजी ने रोबीली आवाज में अपने सचिव विनय से कहा.

‘आखिरकार जनता का ध्यान हम नेताओं को ही तो रखना है,’ कहते हुए नेताजी ने एक आंख विनय की तरफ दबा दी.

विनय को नेताजी की बात माननी ही थी, सो वह अगले दिन रजिया को उन के बंगले पर ले आया और उसे साफसफाई का सारा काम सम झा दिया.

रजिया इतने बड़े घर में पहली बार आई थी. चारों तरफ चमक ही चमक थी. वह खुद भी आज नहाधो कर आई थी. कल तक जहां उस के चेहरे पर मैल की पपड़ी जमी रहती थी, वहां आज गोरी चमड़ी दिख रही थी. विनय को भी यह बदलाव दिखाई दिया था.

विनय ने रजिया को खाना खिलाया. पहले तो संकोच के मारे रजिया धीरेधीरे खाती रही, पर उस की दुविधा सम झ कर जैसे ही विनय वहां से हटा, रजिया दोनों हाथों से खाने पर जुट गई और उस ने अपना मुंह तब ऊपर किया, जब उस के पेट में बिलकुल जगह न रह गई. उस का चेहरा भी अब उस के पेट के भरे होने की गवाही दे रहा था.

अब रजिया नेताजी के बंगले पर दिनभर काम करती और शाम ढले कैंप में वापस चली जाती.

यों ही दिन बीतने लगे. रजिया का काम अच्छा था. धीरेधीरे उस ने शाम को शरणार्थी कैंप में जाना भी छोड़ दिया. वह शाम को नेताजी के बंगले में ही कहीं जमीन पर सो जाती थी.

आज नेताजी के घर में जश्न का माहौल था, क्योंकि चुनाव में उन्होंने बड़ी जीत हासिल की थी. नीचे हाल में चारों तरफ सिगरेट के धुएं की गंध थी. शराब के दौर चल रहे थे. जश्न देर रात तक चलना था, इसलिए विनय ने रजिया से खाना खा कर सो जाने के लिए कहा और खुद नेताजी के आगेपीछे डोल कर अपने नमक का हक अदा करने लग गया.

नेताजी के कई दोस्त उन से शराब के साथ शबाब की मांग कर रहे थे. जब इस मांग ने जोर पकड़ लिया, तो नेताजी ने धीरे से रजिया के कमरे की तरफ इशारा कर दिया.

ऊपर कमरे में रजिया सो रही थी. देर रात कोई उस के कमरे में गया, जिस ने उस का मुंह दबाया और अपने शरीर को उस के शरीर में गड़ा दिया.

बेचारी रजिया चीख भी नहीं पा रही थी. एक हटा तो दूसरा आया. न जाने कितने लोग थे, रजिया को पता ही न चला. वह बेहोश हो गई और शायद मर ही जाती, अगर विनय सही समय पर न पहुंच गया होता.

विनय ने रजिया को अस्पताल में दाखिल कराया. वह गुस्से से आगबबूला हो रहा था, पर क्या करता, नेताजी के अहसान के बो झ तले दबा जो हुआ था.

‘इन के पति का नाम बताइए?’ नर्स ने पूछा.

‘जी, विनय रंजन,’ विनय ने अपना नाम बताया.

नाम बताने के बाद एक पल को विनय ठिठक गया था.

‘मैं ने यह क्यों किया? पर क्यों न किया जाए?’ उस ने सोचा. आखिर उस की शरण में भी पहली बार कोई लड़की आई थी.

विनय उस समय छोटा सा था, जब उस के मम्मीपापा एक हादसे में मारे गए थे. तब इसी नेता ने उसे अनाथालय में रखा था और उस की पढ़ाई का खर्चा भी दिया था.

नेताजी के विनय के ऊपर और बहुत से अहसान थे, पर उन अहसानों की कीमत वह इस तरह चुका तो नहीं सकता.

रजिया की हालत में सुधार आ रहा था. वह कुछ बताती, विनय को इस की परवाह ही नहीं थी, उस ने तो मन ही मन एक फैसला ले लिया था.

अपने साथ कुछ जरूरी सामान और रजिया को ले विनय ने शहर छोड़ दिया.

बस में सफर शुरू किया तो कितनी दूर चले गए, उन्हें कुछ पता नहीं था. वे तो दूर चले जाना चाहते थे, बहुत दूर, जहां शरणार्थी कैंप और उस नेता की गंध भी न आ सके.

और यही हुआ भी. वे दोनों भारत के दक्षिणी इलाके में आ गए थे और अब उन को अपना पेट भरने के लिए एक अदद नौकरी की जरूरत थी.

विनय पढ़ालिखा तो था ही, इसलिए उसे नौकरी ढूंढ़ने में समय न लगा. नौकरी मिली तो एक घर भी किराए पर ले लिया.

रजिया भी सदमे से उबर चुकी थी, पर विनय उस से कभी भी उस घटना का जिक्र न करता और न ही उस को याद करने देता.

रजिया का हाथ शिल्प वगैरह में बहुत अच्छा था. एक दिन उस ने एक छोटा सा कालीन बना कर विनय को दिखाया.

वह कालीन विनय को बहुत अच्छा लगा और उस ने वह कालीन अपने बौस को गिफ्ट कर दिया.

‘अरे… वाह विनय, इस कालीन को रजिया ने बनाया है. बहुत अच्छा… घर में आसानी से मिलने वाली चीजों से बना कालीन…

‘क्यों न तुम ऐसे कालीनों का एक कारोबार शुरू कर दो. भारत में बहुत मांग है,’ बौस ने कहा.

‘अरे… सर… पर, उस के लिए तो पैसों की जरूरत होगी,’ विनय ने शंका जाहिर की.

‘अरे, जितना पैसा चाहिए, मैं दूंगा और जब कारोबार चल जाएगा, तब मु झे लौटा देना,’ बौस जोश में था.

विनय ने नानुकर की, पर उस का बौस एक कला प्रेमी था. उस ने खास लोगों से बात कर विनय का एक छोटा सा कारखाना खुलवा दिया.

फिर क्या था, रजिया कालीन का मुख्य डिजाइन बनाती और कारीगर उस को बुनते. कुछ ही दिनों में विनय का कारोबार अच्छा चल गया था और जिंदगी में खुशियां आने लगीं.

डोरबेल की तेज आवाज ने रजिया का ध्यान भंग किया. दरवाजा खोला तो सामने विनय खड़ा था. उसे देखते ही रजिया उस के सीने से लिपट गई.

‘‘अरे बाबा, क्या हुआ?’’ विनय ने चौंक कर पूछा.

‘‘कुछ नहीं विनय. मैं इस देश में शरणार्थी की तरह आई थी, उस नेता ने मु झे सहारा दिया. वहां भी तुम ने साए की तरह मेरा ध्यान रखा, पर उस जश्न वाली रात को नेता के साथियों ने मेरे साथ बलात्कार किया. न जाने कितने लोगों ने मु झें रौंदा, मु झे तो पता भी नहीं, फिर भी तुम ने इस जूठन को अपनाया. तुम महान हो विनय. मु झ से वादा करो कि तुम मु झे कभी नहीं छोड़ोगे.’’

‘‘पर, आज अचानक से यह सब क्यों पगली. मेरा भी तो इस दुनिया में तुम्हारे सिवा कोई नहीं है. उस नेता के कई अहसान थे मुझ पर, सो मैं सामने से उस से लड़ न सका, पर तुम को उन भेडि़यों से बचाने के लिए मैं ने नेता को भी छोड़ दिया, लेकिन आज अचानक बीती बातें क्यों पूछ रही हो रजिया?’’ विनय ने रिमोट से टैलीविजन चालू करते हुए पूछा.

‘‘वह… दरअसल, नागरिकता वाले कानून के तहत भारत में सिर्फ हिंदू शरणार्थियों को ही नागरिकता मिल सकती है और मैं तो हिंदू नहीं विनय. आज यह कानून आया है, अगर कल को यह कानून आ गया कि जो शरणार्थी जहां के हैं, उसी देश वापस चले जाएं तब तो मु झे तुम को छोड़ कर जाना होगा. इस मुई राजनीति का कुछ भरोसा नहीं,’’ कहते हुए रजिया रो पड़ी.

‘‘अरे पगली, तुम इतना दिमाग मत लगाओ. अब तुम्हें मेरी जिंदगी ने नागरिकता दे दी है, तब किसी देश के कागजी दस्तावेज की जरूरत नहीं है तुम्हें. जोकुछ होगा, देखा जाएगा और फिर जब हम दोनों शादी कर लेंगे, तो भला तुम को यहां का नागरिक कौन नहीं मानेगा,’’ कहते हुए विनय ने रजिया की पेशानी चूमते हुए कहा.

उस समय रजिया और विनय की आंखों में आंसू थे.

Diwali 2022: अपनों के साथ मनाएं दीवाली

त्योहार अपनों के साथ मिल कर मनाने में ही आनंद मिलता है, फिर चाहे आप कितने भी दूर क्यों न रह रहे हों. आप अपने करीबियों से त्योहार में मिलते हैं तो वे मीठे पुराने पल फिर से याद आते हैं जिन्हें आप ने कभी साथ में जिया था.

आज सुबहसुबह अंकित के पास मां का फोन आया. मां ने बड़े प्यार से उसे घर पर बुलाया तो अंकित चिढ़ता हुआ बोला,

‘‘नहीं मां, मैं नहीं आ पाऊंगा. औफिस में इतना सारा काम है. वैसे ही सब संभालना मुश्किल हो रहा है. आने का प्लान बनाया तो आनेजाने में 4 दिन बरबाद हो जाएंगे.’’

मां खामोश रह गई और उस ने फोन काट दिया. वह सोचने लगा एक तो दीवाली के समय काम इतना ज्यादा होता है, दूसरे, घरवाले बुलाने लगते हैं. उसे याद आया कि कैसे पिछले साल उस के पिता ने उसे बुलाने के लिए फोन किया था तब भी उस ने मना कर दिया था, मगर इस साल तो पिताजी गुजर चुके हैं, इसलिए मां ने फोन किया. तभी उसे खयाल आया कि कैसे एक साल में जिंदगी बदल जाती है.

पिताजी हर साल कितने प्यार से उसे दीवाली पर घर बुलाते थे पर अब वे हैं ही नहीं. वह अब उन से कभी मिल नहीं पाएगा. अब मां बुला रही हैं. कल को क्या जाने कहीं अचानक वे भी बुलाने के लिए न रहीं तो, अचानक यह खयाल आते ही उस ने मन ही मन फैसला किया कि उसे जाना है.

पिताजी के जाने के बाद वह सम झ चुका था कि जिंदगी बहुत छोटी होती है. अपनों के साथ जितना वक्त गुजार लो, वे ही सब से खूबसूरत लमहे होते हैं. बहन प्रिया भी शादी के लायक है. अगले साल तक शादी कर के वह अपने घर चली जाएगी. फिर वह दीवाली का त्योहार मनाने भाइयों के पास कहां आ पाएगी.

अंकित ने तुरंत अपने भाई कुशल को फोन किया जो बेंगलुरु में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था. फोन कर के वह भाई से बोला, ‘‘इस बार दीवाली में घर चलते हैं.’’

‘‘अरे नहीं भैया, मैं नहीं जा पाऊंगा. एग्जाम आने वाले हैं.‘‘

‘‘कुशल, मैं कह रहा हूं न, आ जा मां के लिए. मां अकेली है. तू घर आ जा, बस. मैं कुछ नहीं सुनूंगा. मैं भी जा रहा हूं.’’

कुशल सहमति देता हुआ बोला, ‘‘ठीक है भैया, मैं भी आ रहा हूं.’’

दीवाली से 2 दिनों पहले जब चुपके से कुशल और अंकित दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुए तो मां और छोटी बहन प्रिया खिलखिला कर हंस पड़ीं. मां ने दौड़ कर दोनों बच्चों को सीने से लगा लिया. उन की आंखों से खुशी के आंसू बह रहे थे.

वह दीवाली बहुत खूबसूरत गुजरी. मां ने तरहतरह के पकवान बनाए. अंकित प्रिया के लिए खूबसूरत सी ड्रैस ले कर आया था जिसे दीवाली के दिन पहन कर वह शहजादी लग रही थी. मां की खुशी की सीमा न थी. पति के जाने के गम में वह इतने महीने तक मुसकराई नहीं थी. मगर दीवाली के नाम पर बच्चों के एकसाथ आ जाने से उस की जिंदगी में खुशियां जैसे फिर से लौट आई थीं.

मिल कर दीवाली मनाने के फायदे

आप त्योहार का असली मजा तभी ले पाते हैं जब अपनों के साथ होते हैं. इस से किसी भी त्योहार में जो खूबसूरती और रंगत आती है वह बड़े शहरों में अकेले एक या दो कमरे के फ्लैट में सिमट कर बैठे रहने से नहीं मिल सकती. मांबाप का प्यार, मां के हाथों की मिठाइयां, पिता की प्यारीप्यारी  िझड़कियां, भाईबहनों की मीठीमीठी लड़ाइयां और प्यारभरी बातें त्योहार का आनंद कई गुना बढ़ा देती हैं.

यह वो खुशी है जो और किसी भी तरह नहीं मिल सकती. भले ही आप की शादी हो जाए, बच्चे हो जाएं, आप करोड़ों कमा लें या फिर सफलता का आसमान छू लें मगर तब भी आप मांबाप, भाईबहन के साथ त्योहार मनाने की खूबसूरत यादें नहीं मिटा पाएंगे.

त्योहार एकसाथ मिल कर मनाने से प्यार बढ़ता है. आप को यह सम झ आता है कि आप इन लोगों के साथ कितने प्यारे से बंधन में बंधे हुए हैं. आप का आत्मविश्वास बढ़ता है. किसी भी चीज को देखने और महसूस करने का सकारात्मक रवैया मिलता है. जैसेजैसे इंसान बड़ा होता जाता है और अपनों से दूर होता जाता है, वैसेवैसे पुरानी बातें त्योहारों के मौके पर ही याद आती हैं.

आप जब अपने हाथों से पूरे घर को दीपों से सजाएंगे और खूबसूरत लाइटिंग कर के अपने जगमगाते घर के साथसाथ मांबाप के मुसकराते चेहरे को देखेंगे तो उन पलों को कभी नहीं भूल सकेंगे. दीवाली के दिन अपनों को गिफ्ट्स दे कर जो खुशी मिलती है वह खुद के लिए हजारों की शौपिंग कर के भी नहीं मिलती.

दीवाली में जब आप घरवालों के साथ होते हो तो रिश्ते को एक नया ठहराव मिलता है. आपसी प्यार और विश्वास की नींव मजबूत होती है. जीवन में सही माने में नया सवेरा आता है. इसलिए जब भी मौका मिल रहा हो, इस मौके को न गंवाए. कोई नहीं जानता, आगे जिंदगी में क्या होगा, इसलिए यादगार लमहों का कारवां इकट्ठा करते जाइए.

हमेशा घरवालों के साथ ही दीवाली मनाएं. औफिस का काम ज्यादा है या एग्जाम की तैयारी करनी है तो इस में भी कोई समस्या नहीं है. आप कुछ दिनों पहले से ज्यादा मेहनत शुरू कीजिए ताकि समय आने पर जिम्मेदारी निभा कर घर के लिए निकल सकें और कोई बहाना न बनाते हुए रिलैक्स हो कर घरवालों के साथ दीवाली मना सकें.

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