‘प्यार तूने क्या किया’ सीजन 13 के साथ ज़िंग के सबसे पसंदीदा शो की वापसी

~हर लव है खास, के रूप में नया सीजन प्यार के सभी हर रूपों को सेलिब्रेट करता है ~

भारत का प्रमुख यूथ एंटरटेनमेंट चैनल- ज़िंग, अपने दर्शकों को दिलचस्प शोज के साथ रोमांचित कर रहा है और त्योहारों के इस सीजन के लिए स्टोर में कुछ खास है. ज़िंग अपने सबसे लोकप्रिय शो प्यार तूने क्या किया का एक नया सीज़न शुरू कर रहा है जो प्रारंभ से ही प्रशंसकों का पसंदीदा रहा है. कहानियों की सशक्त विरासत के साथ जो प्यार के पेचीदा विषयों के साथ युवा दिलों से जुड़े विषयों को बयां करते हैं. 13वां सीजन दिलकश और जज्बाती प्रेम कहानियों से भरपूर है और यह 22 अक्टूबर, हर शनिवार को शाम 7 बजे शुरू हो रहा है.

12 सीज़न, 200+ एपिसोड और 3.5 बिलियन सोशल मीडिया व्यूज की विरासत को आगे बढ़ाते हुए, प्यार तूने क्या किया का नया सीजन दर्शकों के लिए शानदार लव स्टोरी लेकर आएगा. इस सीज़न की थीम इस इनसाइट पर आधारित है कि प्यार एक एहसास है जिसे एक ही अंदाज में परिभाषित नहीं किया जा सकता, इसे छोटे-छोटे एक्शंस या रिएक्शंस में देखा जा सकता है जो हर व्यक्ति के लिए अलग होती है. ‘हर लव है खास’ की थीम के साथ यह शो प्रेम के हर रूप को सेलिब्रेट करेगा. पारंपरिक कहानियों तक ही सीमित न होकर, नया सीज़न आज के डेटिंग परिदृश्य के साथ जुड़ी परिभाषाओं से परे प्रेम के विचार पर प्रकाश डालता है, सीज़न 13 विभिन्न दृष्टिकोणों से प्रेम कहानियों को एक साथ पेश करता है जो जुनून, जज्बात, जटिलताओं, सच्चे प्यार और दोस्ती का आदर्श मिश्रण होगा.

जिंग टीवी के चीफ चैनल ऑफिसर, अर्घ्य रॉय चौधरी ने कहा, “अपनी वाइब, अपनी ट्राइब हमारे लगातार बढ़ते फैनबेस को एक ऐसा स्पेस देने का हमारा गहन प्रयास है, जिसे वे अपना कह सकते हैं. पीटीकेके का एक मजबूत फैन फॉलोइंग है और दर्शक उन प्रेम कहानियों का बेसब्री से इंतजार करते हैं जो सीजन दर सीजन हम उनके लिए लाते हैं. प्यार तूने क्या किया सीजन 13 के साथ, एक ऐसा शो लाने का विचार था जो हमारे दर्शकों के लिए एक दर्पण की तरह काम करे, ताकि वे उन कहानियों से जुड़ सकें जो उनके दिल के बेहद करीब हों. शो के साथ, हमने ये इवोल्यूशन देखा है कि कैसे प्यार के विचार इन खास 9 वर्षों के दौरान पैदा हुए और बदल चुके है. हर सीजन इसका रिफ्लेक्शन रहा है. इस सीज़न के साथसाथ, हम आज के युवाओं के बहुत करीब की, थीम के साथ बहुत सारी ताज़ा कहानियाँ लेकर आए हैं, और आशा करते हैं कि दर्शकों को यह प्रयास पहले से कहीं अधिक पसंद आएगा.

ट्यून करें, भारत का पसंदीदा युवा मनोरंजन चैनल ज़िंग और देखें प्यार तूने क्या किया सीजन 13 के नए एपिसोड्स, 22 अक्टूबर 2022 से हर शनिवार शाम 7 बजे!

नरेंद्र मोदी के राज में “खिलौने” राज्यपाल!

देश की जनता, बौद्धिक वर्ग और उच्चतम न्यायालय को यह देखना परखना चाहिए कि आज नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार द्वारा नियुक्त विभिन्न प्रदेशों के राज्यपाल की भूमिका इतनी विवादास्पद क्यों है. विशेष रूप से उन राज्यों में जहां भाजपा की सरकारें नहीं है चाहे पंजाब हो या दिल्ली, झारखण्ड, बिहार यहां के महामहिम राज्यपाल की भूमिका अक्सर मुख्यमंत्री से एक टकराव लिए क्यों होती है और गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल पर बैठे विभूतियां शांत भाव से सही गलत सब क्यों देखते रहते हैं.
सच तो यह है कि आम जनमानस में राज्यपालों की भूमिका पर चर्चा हो रही है और निष्कर्ष रूप से कहा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी के “प्रसाद स्वरूप राज्यपाल” पद मिलने के बाद यह शख्सियत भाजपा की कार्यकर्ता की तरह व्यवहार कर रही है जो लोकतंत्र के लिए मुफीद नहीं है.

दरअसल,एक बार फिर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित पर राज्य सरकार के कामकाज में लगातार हस्तक्षेप करने का गंभीर आरोप लगाया है. मान ने यह आरोप पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के कुलपति को हटाने के लिए कहे जाने के दो दिन बाद लगाया है.

राज्यपाल किसके “खिलौने” है

राज्यपाल पुरोहित ने हाल में भगवंत मान से कहा था कि वह विश्वविद्यालय के कुलपति सतबीर सिंह गोसल को पद से हटाएं. पुरोहित का कहना था कि कुलपति को आयोग (यूजीसी) के मानदंडों के अनुपालन बैगर किया गया था.
अब बनवारीलाल पुरोहित को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री मान ने कहा है- “गोसल को कानून के अनुसार नियुक्त किया गया था.”
हाल ही में पंजाब के चुनाव हुए और भगवंत मान मुख्यमंत्री बन गए भाजपा को यहां करारी हार मिली सवाल है क्या भाजपा आलाकमान राज्यपाल के माध्यम से आप पार्टी की चुनी हुई सरकार को कंट्रोल कर रही है.
देश ने देखा है कि किस तरह राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने पिछले महीने विधानसभा सत्र बुलाने की मंजूरी वापस ले ली थी और बाबा फरीद यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंसेज, फरीदकोट के कुलपति के रूप में प्रसिद्ध हृदयरोग विशेषज्ञ डा गुरप्रीत सिंह वांडर की नियुक्ति को मंजूरी देने से भी इनकार कर दिया था. क्या यह सब एक चुनी हुई सरकार के साथ अपने अधिकारों के बल पर अनुचित प्रयोग नहीं कहा जाएगा.
संविधान में राज्यपाल की अपने अधिकार और कर्तव्य है और उसमें साफ-साफ लिखा हुआ है कि राज्यपाल चुनी हुई सरकार की सहमति से कार्य करेंगे.

मगर देखा यह जा रहा है कि संविधान से हटकर राज्यपाल हास्यपाल की भूमिका में आ गए हैं और केंद्र सरकार की ताल में ताल मिला रहे हैं. यही कारण है कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत
मान ने राज्यपाल को भेजे पत्र में कहा है, ‘पिछले कुछ महीनों से आप सरकार के कामकाज में लगातार दखल दे रहे हैं, जो
व्यापक जनादेश के साथ सत्ता में आई है. पंजाब के लोग इससे बहुत परेशान हैं.’ मान ने लिखा है, ‘पहले आपने पंजाब विधानसभा का सत्र लाने में अवरोध पैदा किया, उसके बाद आपने बाबा फरीद यूनिवर्सिटी आफ हेल्थ साइंसेज, फरीदकोट के कुलपति की नियुक्ति रद्द कर दी और अब आपने पीएयू की नियुक्ति निरस्त करने आदेश दिया है.’

मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बनवारी लाल पुरोहित से यह भी पूछा है कि आखिर उन्हें इस तरह के ‘गलत और संवैधानिक काम करने के लिए कौन कह रहा है और वह ऐसा करने के लिए क्यों सहमत हुए. उन्होंने कहा, ‘मैंने आपसे कई बार मुलाकात की है. आप बहुत ही अच्छे और शिष्ट व्यक्ति हैं. आप अपने बूते इस तरह का कार्य नहीं कर सकते.आपसे इस तरह के गलत और असंवैधानिक कार्य करने को किसने कहा है? आप उनसे सहमत क्यों हुए? ये आपकी पीठ पीछे छुपे हैं और आप (बेकार) बदनाम हो रहे हैं. ‘मान ने कहा, मैं आपसे हाथ जोड़कर अनुरोध करता हूं कि उनकी बात न सुनें आपसे गलत काम करवाने वाले लोग स्पष्ट रूप से पंजाब का कल्याण नहीं चाहते हैं आप कृपया चुनी हुई सरकार को काम करने दें.
यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि आप पार्टी ही काम करने की शैली कुछ इस तरह है कि वह प्रधानमंत्री हो या राज्यपाल अथवा अन्य ऐसी शख्सियत है जो संविधान से हटकर काम करती हैं उन्हें व्यंग्यात्मक शैली में जवाब देती है.
संभवत यही कारण है कि भगवंत मान ने राज्यपाल को एक पत्र लिखा और सार्वजनिक करते हुए बताया है कि कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति हरियाणा और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम, 1970 के तहत की जाती है। मुख्यमंत्री ने लिखा है, ‘कुलपति की नियुक्ति पीएयू बोर्ड द्वारा की जाती है. इसमें मुख्यमंत्री या राज्यपाल की कोई भूमिका नहीं होती है.’ राज्यपाल ने कुलपति के रूप में बलदेव सिंह ढिल्लों व एमएस कांग की पिछली नियुक्तियों का उदाहरण दिया था. मान ने कहा कि किसी भी पूर्व कुलपति की नियुक्ति के लिए राज्यपाल की मंजूरी नहीं मांगी गई थी.
देश में अगर लोकतंत्र है अगर संविधान का अनुपालन हो रहा है तो यह सब खेल खिलौना बंद होना चाहिए और प्रत्येक संवैधानिक पद पर बैठे हुए शख्स को अपनी मर्यादा और गरिमा का ध्यान रखते हुए काम करना चाहिए अब ऐसे हालात में देश देश के उच्चतम न्यायालय की ओर देख रहा है.

नरेंद्र दामोदरदास मोदी और नौकरी का चुनावी संजाल

जैसा कि देश जानता है 2024 का लोकसभा समर अब ज्यादा दूर नहीं है, ऐसे में प्रधानमंत्री दामोदरदास मोदी हर दिशा में अलर्ट मोड पर आ गए हैं. जिसमें सबसे बड़ा उदाहरण है देश के बेरोजगारों को नौकरी देने की राग दरबारी धुन छेड़ने का . जैसा कि हम जानते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का सबसे अहम वादा था कि प्रतिवर्ष 1 करोड़ लोगों को नौकरी दी जाएगी. मगर यह वादा पूरा नहीं हुआ और विपक्ष और बेरोजगार बारंबार सवाल खड़ा करते रहे है.
अब जब चुनाव सर पर है तो मोदी सरकार की आंख खुली है इस दिशा में आज 22 अक्टूबर से आगाज करने जा रहे हैं. मगर इसके साथ ही अनेक सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब नरेंद्र मोदी के पास नहीं है उनकी सरकार मौन है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज 22 अक्टूबर 2022 से 10 लाख कर्मियों के लिए नियुक्ति अभियान की शुरुआत कर चुके हैं और कहा जा रहा है कि अगले 18 महीने में ये नौकरियां दी जाएंगी. इस अभियान को ‘रोजगार मेला’ नाम दिया गया है। पहले दिन प्रधानमंत्री 75,000 नवनियुक्त युवाओं को नियुक्ति पत्र सौंपेंगे. इन युवाओं को 38 मंत्रालयों और विभागों के लिए चुना गया है. प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने एक बयान में यह सूचना देश को दी है. और जैसा कि नरेंद्र मोदी की फितरत है आप हर योजना को एक इवेंट बना देते हैं ऐसे में भला बेरोजगारों को जब नौकरी का नियुक्ति पत्र दिया जा रहा हो तो हमारे प्रधानमंत्री भला मौन कैसे रहेंगे इसलिए व्यस्तता के बावजूद प्रधानमंत्री वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से युवाओं को संबोधित करेंगे. मगर यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि ही नरेंद्र मोदी ने 2014 में कहा था कि प्रतिवर्ष एक करोड़ नौकरियों का वादा है,वह कब पूरा होगा .

धन्य है हमारे प्रधानमंत्री

पाठकों को यह बताते चलें कि नरेंद्र मोदी राजनीति की चौपड़ पर लगातार चले चलते रहते हैं उनका एकमात्र लक्ष्य है कि देश की जनता उनके माया जाल में फंसी रहे इसलिए लगाता लगातार कुछ ऐसा नया करते रहते हैं जिससे लोग वाह-वाह करते रहे. मगर जमीनी हकीकत यह है कि इससे देश का कोई भला नहीं होता विकास थमा हुआ है और देश लगातार दुनिया के नक्शे पर पिछड़ता चला जा रहा है. हां उनके कुछ चाहते जरूर दुनिया के सबसे ज्यादा मालदार लोगों की गिनती में आते जा रहे हैं मगर देश का युवा पढ़ा-लिखा नौजवान नौकरी के लिए भटक रहा है और अगर नौकरी मिल भी जाती है तो उसकी स्थिति अच्छी नहीं है क्योंकि कटौतियां जारी है.

अगर हम प्रधानमंत्री कार्यालय की बात करें तो पीएमओ के मुताबिक, युवाओं के लिए रोजगार के अवसर प्रदान करने और नागरिकों का कल्याण सुनिश्चित करने की प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिबद्धता को पूरा करने की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा. प्रधानमंत्री ने इसी साल जून महीने में सरकार के विभिन्न मंत्रालयों व विभागों को निर्देश दिया था कि वे मिशन मोड से 10 लाख पदों पर भर्तियां करें.
मगर यह नहीं भूलना चाहिए कि नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने 8 वर्ष से अधिक हो चुके हैं और उन्होंने बेरोजगारों को नौकरी देने का वादा किया हुआ था जिस पर लंबे समय तक वे मोनी बाबा बने हुए थे. अब जब चुनाव सामने हैं तो उन्होंने नौकरी का यह राग छेड़ दिया है .

युवाओं के लिए छलावा..!

जैसा कि यह कहा जा रहा है कि मानव संसाधन की स्थिति की समीक्षा के बाद प्रधानमंत्री ने यह निर्देश दिया था.पीएमओ ने कहा कि प्रधानमंत्री के निर्देश के मुताबिक यह काम आगे बढ़ाया जाएगा. सभी मंत्रालय व विभाग स्वीकृत पदों के बरक्स मौजूदा रिक्तियों को भरने की दिशा में मिशन मोड में काम कर रहे हैं. देश भर से चयनित नए कर्मियों को भारत सरकार के 38 मंत्रालयों और विभागों में नियुक्ति की जा रही है .
पीएमओ ने कहा है कि ये नियुक्तियां मंत्रालयों व विभागों द्वारा खुद से या नियुक्ति एजेंसियों के माध्यम से मिशन मोड में की जा रही हैं. इन एजंसियों में संघ लोक सेवा आयोग, कर्मचारी चयन आयोग और रेलवे भर्ती बोर्ड शामिल हैं. पीएमओ के अनुसार तेज गति से नियुक्ति के लिए चयन प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है और तकनीकी रूप से सक्षम बनाया गया है.

यहां उल्लेखनीय है कि जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नौकरियों के बारे में घोषणा की थी भारत सरकार के एक सर्वे (पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे, पीएलएफएस) के मुताबिक अक्तूबर-दिसंबर के दौरान बेरोजगारी का औसर 20.8 था. भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम निष्पादन मंत्रालय के मुताबिक, जून-जुलाई 2021 की अवधि में ग्रामीण इलाकों में औसत आंकड़ा 12.9 से 18.5 के बीच था. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2019 में हर पांचवां सरकारी पद खाली था एक मार्च, 2019 तक केंद्रीय सरकारी कर्मियों की संख्या 31.43 लाख थी.जबकि एक साल पहले यह संख्या 22.69 लाख थी. एक साल में 22.69 फीसद पद खाली हो गए थे. उस अवधि में कर्मचारी चयन आयोग और केंद्रीय लोक सेवा आयोग ने क्रमशः 1,85,734 और 27,764 भर्तियां निकाली थीं। इनमें से 2017 18 और 2021-22 के दौरान क्रमशः 1, 74, 744 एवं 24,836 नौकरियां दी गई.
समूह बी (राजपत्रित), समूह बी (अराजपत्रित) और समूह सी के जिन पदों पर नियुक्तियां की जा रही हैं, उनमें केंद्रीय सशस्त्र बल कार्मिक, उप निरीक्षक, कांस्टेबल, एलडीसी, स्टेनो, पीए, आयकर निरीक्षक, एमटीएस तथा अन्य है .
मगर देखना यह दिलचस्प होगा कि भारत सरकार के प्रमुख के रूप में नरेंद्र मोदी की यह परियोजना भी कितना जमीनी स्तर पर लोगों को राहत दे पाती है या फिर यह भी एक छलावा मात्र बन कर रह जाएगी .

अनोखा रिश्ता: कैसी थी सास और बहू की जोड़ी – भाग 3

सासबहू के झगड़े सुनदेख कर पल्लवी का तो शादी पर से विश्वास ही उठ गया था. जब भी उस की शादी की बात चलती, वह सिहर जाती. सोचती, जाने कैसी ससुराल मिलेगी. कहीं उस की सास भी शकुंतला चाची जैसी निकली तो या कहीं उस में भी उस की मां का गुण आ गया तो? ऐसे कई सवाल उस के मन को डराते रहते.

अपने मन का डर उस ने विपुल को भी बताया, जिसे सुन उस की हंसी रुक नहीं रही थी. किसी तरह अपनी हंसी रोक वह कहने लगा, ‘‘हां, मेरी मां सच में ललिता पवार हैं. सोच लो अब भी समय है. कहीं ऐसा न हो तुम्हें बाद में पछताना पड़े? पागल, मेरी मां पुराने जमाने की सास नहीं हैं. तुम्हें उन से मिलने के बाद खुद ही पता चल जाएगा.’’

विपुल की बातों ने उस का डर जरा कम तो कर दिया, पर पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया. अब भी सास को ले कर दिल के किसी कोने में डर तो था ही.

बिदाई के वक्त बड़े प्यार से शांति ने भी अपनी बेटी के कान फूंकते हुए समझाया था, ‘‘देख बिटिया, सास को कभी मां समझने की भूल न करना, क्योंकि सास चुड़ैल का दूसरा रूप होती है. देखा नहीं अपनी दादी को? मांजीमांजी कह कर उसे सिर पर मत बैठा लेना. पैरों में तेल मालिशवालिश की आदत तो डालना ही मत नहीं तो मरते दम तक तुम से सेवा करवाती रहेगी… सब से बड़ी बात पति को अपनी मुट्ठी में रखना और उस के कमाए पैसों को भी. अपनी कमाई तो उसे छूने भी मत देना. एक बार मुंह को खून लग जाए, तो आदत पड़ जाती है. समझ रही हो न मेरे कहने का मतलब?’’

अपनी मां की कुछ बातों को उस ने आत्मसात कर लिया तो कुछ को नहीं.

ससुराल में जब पल्लवी ने पहला कदम रखा, तो सब से पहले उस का

सामना ललिता यानी अपनी सास से ही हुआ. उन का भरा हुआ रोबीला चेहरा, लंबा चरबी से लदा शरीर देख कर ही वह डर गई. लगा जैसा नाम वैसा ही रूप. और जिस तरह से वे आत्मविश्वास से भरी आवाज में बातें करतीं, पल्लवी कांप जाती. वह समझ गई कि उस का हाल वही होने वाला है जो और बेचारी बहुओं का होता आया है.

मगर हफ्ता 10 दिन में ही जान लिया पल्लवी ने कि यथा नाम तथा गुण वाली कहावत ललिता पर कहीं से भी लागू नहीं होती है. तेजतर्रार, कैंची की तरह जबान और सासों वाला रोब जरा भी नहीं था उन के पास.

एक रोज जब वह अपनी मां को याद कर रोने लगी, तो उस की सास ने उसे सीने से लगा लिया और कहा कि वह उसे सास नहीं मां समझे और जब मन हो जा कर अपनी मां से मिल आए. किसी बात की रोकटोक नहीं है यहां उस पर, क्योंकि यह उस का भी घर है. जैसे उन के लिए उन की बेटी है वैसे ही बहू भी… और सिर्फ कहा ही नहीं ललिता ने कर के भी दिखाया, क्योंकि पल्लवी को नए माहौल में ढलने और वहां के लोगों की पसंदनापसंद को समझने के लिए उसे पर्याप्त समय दिया.

अगर पल्लवी से कोई गलती हो जाती, तो एक मां की  तरह बड़े प्यार से उसे

सिखाने का प्रयास करतीं. पाककला में तो उस की सास ने ही उसे माहिर किया था वरना एक मैगी और अंडा उबालने के सिवा और कुछ कहां बनाना आता था उसे. लेकिन कभी ललिता ने उसे इस बात के लिए तानाउलाहना नहीं मारा, बल्कि बोलने वालों का भी यह कह कर मुंह चुप करा देतीं कि आज की लड़कियां चांद पर पहुंच चुकी हैं, पर अफसोस कि हमारी सोच आज भी वहीं की वहीं है. क्यों हमें बहू सर्वगुण संपन्न चाहिए? क्या हम सासें भी हैं सर्वगुण संपन्न और यही उम्मीद हम अपनी बेटियों से क्यों नहीं लगाते? फिर क्या मजाल जो कोई पल्लवी के बारे में कुछ बोल भी दे.

उस दिन ललिता की बातें सुन कर दिल से पल्लवी ने अपनी सास को मां समझा और सोच लिया कि वह कैसा रिश्ता निभाएगी अपनी सास से.

कभी ललिता ने यह नहीं जताया कि विपुल उन का बेटा है तो विपुल पर पहला अधिकार भी उन का ही है और न ही कभी पल्लवी ने ऐसा जताया कि अब उस के पति पर सिर्फ उस का अधिकार है. जब कभी बेटेबहू में किसी बात को ले कर बहस छिड़ जाती, तो ललिता बहू का ही साथ देतीं. इस से पल्लवी के मन में ललिता के प्रति और सम्मान बढ़ता गया. धीरेधीरे वह अपनी सास के और करीब आने लगी. पूरी तरह से खुलने लगी उन के साथ. कोई भी काम होता वह ललिता से पूछ कर ही करती. उस का जो भय था सास को ले कर वह दूर हो चुका था.

लोग कहते हैं अच्छी बहू बनना और सूर्य पर जाना एक ही बात है. लेकिन अगर मैं एक अच्छी बेटी हूं, तो अच्छी बहू क्यों नहीं बन सकती? मांदादी को मैं ने हमेशा लड़तेझगड़ते देखा है, लेकिन गलती सिर्फ दादी की ही नहीं होती थी. मां चाहतीं तो सासबहू के रिश्ते को संवार सकती थीं, पर उन्होंने और बिगाड़ा रिश्ते को. मुझे भी उन्होंने वही सब सिखाया सास के प्रति, पर मैं उन की एक भी बात में नहीं आई, क्योंकि मैं जानती थी कि सामने वाले मुझे वही देंगे, जो मैं उन्हें दूंगी और ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती. शादी के बाद एक लड़की का रिश्ता सिर्फ अपने पति से ही नहीं जुड़ता, बल्कि ससुराल के बाकी सदस्यों से भी खास रिश्ता बन जाता है, यह बात क्यों नहीं समझती लड़कियां? अगर अपने घर का माहौल हमेशा अच्छा और खुशी भरा रखना है, तो मुझे अपनी मां की बातें भूलनी होंगी और फिर सिर्फ पतिपत्नी में ही 7 वचन क्यों? सासबहू भी क्यों न कुछ वचनों में बंध जाएं ताकि जीवन सुखमय बीत सके, अपनेआप से ही कहती पल्लवी.

उसी दिन ठान लिया पल्लवी ने कि वे सासबहू भी कुछ वचनों में बंधेंगी और अपने रिश्ते को एक नया नाम देंगी-अनोखा रिश्ता. अब पल्लवी अपनी सास की हर पसंदनापसंद को जाननेसमझने लगी थी. चाहे शौपिंग पर जाना हो, फिल्म देखने जाना हो या घर में बैठ कर सासबहू सीरियल देखना हो, दोनों साथ देखतीं.

अब तो पल्लवी ने ललिता को व्हाट्सऐप, फेसबुक, लैपटौप यहां तक कि कार चलाना भी सिखा दिया था. सब के औफिस चले जाने के बाद ललिता घर में बोर न हों, इसलिए उस ने जबरदस्ती उन्हें किट्टी भी जौइन करवा दी.

शुरूशुरू में ललिता को अजीब लगा था, पर फिर मजा आने लगा. अब वे भी अपनी बहू के साथ जा कर और औरतों की तरह स्टाइलिश कपड़े खरीद लातीं. वजन भी बहुत कम कर लिया था. आखिर दोनों सासबहू रोज वाक पर जो जाती थीं. अपने हलके शरीर को देख बहुत खुश होतीं ललिता और उस का सारा श्रेय देतीं अपनी बहू को, जिस के कारण उन में इतना बदलाव आया था वरना तो 5 गज की साड़ी में ही लिपटी उन की जिंदगी गुजर रही थी.

एक दिन चुटकी लेते हुए शंभूजी ने कहा भी, ‘‘कहीं तुम ललिता पवार से 0 फिगर साइज वाली करीना न बन जाओ. फिर मेरा क्या होगा मेरी जान?’’

‘‘हां, बनूंगी ही, आप को क्यों जलन हो रही है?’’ ललिता बोलीं.

‘‘अरे, मैं क्यों जलने लगा भई. अच्छा है बन जाओ करीना की तरह. मेरे लिए तो और अच्छा ही है न वरना तो ट्रक के साथ आधी से ज्यादा उम्र बीत ही गई मेरी,’’ कह कर शंभूजी हंस पड़े पर ललिता बड़बड़ा उठीं.

दोनों की इस तरह की नोकझोंक देख पल्लवी और विपुल हंस पड़ते.

एक दिन जब पल्लवी ने अपने लिए जींस और टीशर्ट खरीदी, तो ललिता के लिए भी खरीद लाई. वैसे विपुल ने मना किया था कि मत खरीदो, मां नहीं पहनेगी, पर वह ले ही आई.

‘‘अरे, यह क्या ले आई बहू? नहींनहीं मैं ये सब नहीं पहनूंगी. लोग क्या कहेंगे और मेरी उम्र तो देखो,’’ जींस व टीशर्ट एक तरफ रखते हुए ललिता ने कहा.

‘‘उम्र क्यों नहीं है? अभी आप की उम्र ही क्या हुई है मां? लगता है आप 50 की हैं? लोगों की परवाह छोडि़ए, बस वही पहनिए जो आप को अच्छा लगता है और मुझे पता है आप का जींस पहनने का मन है. आप यह जरूर पहनेंगी,’’ हुक्म सुना कर पल्लवी फ्रैश होने चली गई. ललिता उसे जाते देखते हुए सोचने लगीं कि यह कैसा अनोखा रिश्ता है उन का.

Diwali Special: हॉस्टल वाली दीवाली

जो लोग होस्टल में रहे हैं उन्हें पता है कि वे उन की जिंदगी के कभी न भूलने वाले पल हैं. होस्टल की जिंदगी मजेदार भी होती है और परेशानियों से भरी भी. बावजूद इस के, होस्टल में रह कर त्योहारों के समय जो खुशियां मिलती हैं, जो आजादी और मस्ती मिलती है, वह कहीं और नहीं मिलती.

संध्या जब हैदराबाद से दिल्ली के एक एनजीओ में काम करने आई थी तो उस ने कई साल वुमन होस्टल में गुजारे थे. अब तो वह शादी कर के पति के घर में सैटल हो गई है मगर होस्टल के दिन उन्हें नहीं भूलते हैं. घर के ऐशोआराम से निकल कर कम संसाधनों और जुगाड़ों के बीच होस्टल की टफ लाइफ का भी अपना ही मजा था. उस जिंदगी को याद करते वक्त उन्हें सब से ज्यादा दीवाली की याद आती है.

संध्या कहती हैं, ‘‘किसी आसपास के शहर से होती तो त्योहारों में जरूर घर भाग जाती, मगर दिल्ली से ट्रेन में हैदराबाद तक 2 दिन का सफर बड़ा कठिन लगता था और वह भी सिर्फ दोतीन दिन के लिए जाना बिलकुल ऐसा जैसे देहरी छू कर लौट आओ. शुरू के 2 साल तो मैं दीवाली पर घर गई, मगर बाद में होलीदीवाली सब होस्टल में ही मनाने लगी.

‘‘दिल्ली के आसपास रहने वाली ज्यादातर लड़कियां घर चली जाती थीं.  बस, थोड़ी सी बचती थीं. शुरू में तो त्योहार के समय खाली पड़े कमरे को देख कर मु झे भुतहा फीलिंग होती थी, मगर जब शाम को बची हुई लड़कियां होस्टल की छत पर इकट्ठी हो कर पटाखे छुड़ाती थीं तब बड़ा मजा आता था. हम 8-10 लड़कियां नई ड्रैसेस पहन कर सुबह से ही त्योहार की तैयारियों में जुट जाती थीं. हमारी वार्डन काफी सख्तमिजाज महिला थीं, मगर उस दिन उन का मातृत्व हम लड़कियों पर खूब छलकता था. वे सिंगल मदर थीं. पति से तलाक हो चुका था. 14 साल की उन की बेटी थी जो उन के साथ ही रहती थी. त्योहार के दिन होस्टल के रसोइए की छुट्टी रहती थी और किचन हम लड़कियों के हवाले होता था. ऐसे में विशेष मैन्यू तैयार किया जाता. दोपहर और रात के खाने के लिए मनपसंद सब्जियां,  नौनवेज, पूडि़यां, पुलाव हम बनाते थे. इकट्ठे जब इतने सारे बंदे रसोई में पकाने के लिए जमा होते थे तो काम भी फटाफट निबट जाता था. शाम को हम सब होस्टल के गेट पर बड़ी सी रंगोली बनाने में जुट जाते थे. पूरे गेट और दीवार की मुंडेर को दीयों, फूलमालाओं और रंगोली से सजा देते थे.

‘‘अंधेरा होते ही पूरा होस्टल दीयों की जगमगाहट से भर जाता था. दीवाली की रात हम सब छत पर इकट्ठे हो कर आधी रात तक जम कर पटाखे जलाते थे. मगर उस दिन दोस्ती के लिए तो सब को खुली छूट थी. खुद वार्डन भी उन लड़कियों के साथ मस्ती करती. खानेपीने के बाद जब हम सोते तो दूसरे दिन 12 बजे से पहले आंख न खुलती थी.

‘‘फिर वार्डन की आवाज सुनाई देती कि जाओ सब मिल कर छत साफ करो. छत पर जले हुए पटाखों, दीयों, मोमबत्तियों, जूठे बरतनों का ढेर लगा होता था. सारा कूड़ा इकट्ठा कर के बोरियों में भर कर हम कूड़ा गाड़ी पर फेंकने जाते थे. घर की दीवाली में कभी इतना मजा नहीं आया जितना होस्टल की दीवाली में आया करता था. जबकि होस्टल की दीवाली में हमारी मेहनत दोगुनी होती थी लेकिन मजा भी दोगुना था. घर में तो मां ही पूरी रसोई बनाती थीं. वे ही पूजा करती थीं, फिर थोड़े से पटाखे हम भाईबहन महल्ले के बच्चों के साथ जला लेते थे. लो मन गई दीवाली. मगर होस्टल में त्योहार का आनंद ही अलग था. खुलेपन का एहसास जहां होस्टल में हुआ तो बियर का स्वाद भी पहलेपहल वहीं चखा.’’

संध्या बताती हैं, ‘‘मैं बचपन में बहुत दब्बू टाइप थी. मगर होस्टल में आने के बाद काफी बोल्ड हो गई. इस की वजह है होस्टल में हमें अपनी परेशानियों का हल खुद ही निकालना होता है. वहां मांबाप या बड़े भाईबहन नहीं होते जो परेशानी हल कर दें. एक बार की बात है, हमारे होस्टल में सुबह पानी की मोटर जल गई. अब किसी को कालेज के लिए निकलना था, किसी को औफिस के लिए. तब हम सब बाहर सरकारी नल से बाल्टी में पानी भरभर कर लाए और नहाया.

यह तो ऐसा मामला था जो शायद कभीकभार ही हो, लेकिन कुछ बातें तो लगभग हर गर्ल्स होस्टल या पीजी में देखने को मिलती हैं. हर होस्टल में चोरी जरूर होती है. चाहे वह कोई रहने वाली लड़की करे, चाहे कोई नौकर करे या कोई पड़ोसी ही आ कर कुछ चुरा ले जाए. लड़कियों की कटोरीचम्मच से ले कर अंडरगारमैंट्स तक गायब हो जाते थे.

‘‘कभीकभी 2 लड़कियों के बीच इतनी भयानक लड़ाई हो जाती थी कि मामला हाथापाई तक पहुंच जाता था. उस में बीचबचाव करना और सम झाना खुद की लाइफ को बहुत स्ट्रौंग बना देता है. होस्टल एक ऐसी जगह है जहां आजादी, मस्ती, टाइमपास, फैशन,  झगड़े सब होते हैं. लड़कियां अपने घर से दूर, मांबाप की डांट से दूर अपनी उम्र की लड़कियों के साथ जिंदगी का पूरा मजा लेती हैं.’’

वैसे होस्टल लाइफ को ले कर बहुत से लोग कहते हैं, ‘जो कभी होस्टल में नहीं रहा,  उस ने लाइफ में बहुतकुछ मिस किया है.’ राजीव चन्नी अपनी होस्टल लाइफ याद करते हुए कहते हैं, ‘‘पानी जैसी दाल, नहाने के लिए लंबी लाइन और खूसट वार्डन के अलावा भी बहुतकुछ होता है होस्टल में. घर के ऐशोआराम के बाद अगर आप ने होस्टल में संघर्ष कर लिया तो सम झ लो, जीवन सफल हो गया.

‘‘होस्टल में इंसान लाइफ के बहुत सारे स्किल्स सीख लेता है. जैसे, नहाते हुए पानी चले जाने पर शरीर पर लगे साबुन को गीले तौलिए से पोंछना और फ्रैश फील करना, दूसरे की शेविंग क्रीम या शैंपू इस्तेमाल कर लेना और उस को हवा भी न लगने देना, पौटी प्रैशर रोकने में सक्षम हो जाना, मनपसंद सब्जी न होने पर दहीचावल खा कर जीना, पनीर की सब्जी में से पनीर और आलू के परांठों में आलू ढूंढ़ना और जब हद गुजर जाए तो भूखहड़ताल करना वगैरहवगैरह और सब से अहम सीख है ‘एकता’. एकजुट हो कर कोई भी काम करना, स्ट्राइक से ले कर त्योहार मनाने तक.

‘‘दीवाली के दिन तो लड़कों का जोश देखने लायक होता था. कुछ घरेलू किस्म के लड़के जहां अपने कमरों में दीयामोमबत्तियां सजाते थे, पूजा करते और कुछ स्पैशल खाना बनाने में रसोइए की मदद करते थे, वहीं मर्द टाइप के लड़के इस जुगाड़ में रहते थे कि दारू और गर्लफ्रैंड के साथ त्योहार की रात कहां और कैसे मनाई जाए. दीवाली की रात ज्यादातर लड़के होस्टल के बाहर ही बिताते थे. कुछ सिनेमाहौल में तो कुछ होटल वगैरह में पाए जाते थे.

‘‘होस्टल लाइफ थी. खुली छूट थी. कोई रोकटोक नहीं. जब तक चाहो, बाहर रहो. कोई पूछने वाला नहीं था. न मां की  िझक िझक, न बाप की फटकार. कई बार तो हम सुबह के 4 बजे वापस आते और चौकीदार की जेब में 10 रुपए का नोट ठूंस कर आराम से कमरे में जा कर सो जाते. अलग ही आनंद था होस्टल लाइफ में त्योहार मनाने का. वे दिन तो जिंदगीभर नहीं भूलेंगे.’’

Diwali Special: डाइटिंग छोड़ें डाइट का मजा लें

दीवाली के आने का मतलब होता है ढेर सारा खानापीना, ढेर सारी मस्ती करना. ऐसे में अगर हम डाइटिंग के बारे में सोचने लगे तो मजा फीका होगा ही. इसलिए दीवाली पर नो डाइटिंग. एंजौय करने का जो भी मौका मिले उसे कभी भी डाइटिंग के कारण खराब नहीं करना चाहिए. आप ही सोचिए त्योहार क्या रोजरोज आता है, ऐसे में भी अगर हम हर बाइट के साथ मोटे होने की बात सोचेंगे तो न हम खाने का मजा ले पाएंगे और न ही फैस्टिवल को पूरी तरह एंजौय कर पाएंगे.

अगर हम सही डाइट प्लान बना कर चलें तो 4 दिन हैवी डाइट लेने पर हम मोटे या फिर बीमार नहीं होंगे. आप को सिर्फ इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप को जितनी भूख हो उतना ही खाएं. जरूरत से ज्यादा खाना आप को बीमार कर सकता है.

खाएं और खिलाएं भी

फैस्टिवल मूड और घर में पकवान न बने, ऐसा तो हो ही नहीं सकता. दीवाली पर घर में दहीभल्ले, पूरी सब्जी, खीर, पकौड़े बनने लाजिमी हैं. ऐसे में हम पकवानों से भरी प्लेट सामने आते ही डाइटिंग की बात कहने लगें तो घर पर त्योहार जैसा माहौल नहीं बन पाएगा. ऐसे में यदि आप बाकी घर वालों के सामने डाइटिंग के चक्कर में सलाद ले कर बैठ जाएं तो आप ही सोचिए कि इस से आप को और बनाने वाले को कैसा लगेगा. इसलिए त्योहार के मौके पर आप के घर कोई आए तो उसे खूब खिलाएं.

खुशी मिलबैठ कर खाने में

आज की भागदौड़भरी जिंदगी में किसी के पास भी समय नहीं है कि वे साथ बैठ कर खाना खा सकें. सब के औफिस या व्यापारिक प्रतिष्ठान से आने का टाइम अलगअलग होता है. ऐसे में रोज साथ बैठ कर खाना खाना संभव नहीं हो पाता. सिर्फ त्योहार ही ऐसा मौका होता है जब घर में सभी की छुट्टी होती है. ऐसे में हम मिल कर खाना खा सकते हैं और मन को एक अलग ही खुशी मिलेगी. अगर आप औयली चीज देख कर ना कहने लगें तो सामने वाले आप को बोरिंग बोलने से भी नहीं चूकेंगे. इसलिए अपने कारण बाकी लोगों की खुशियों को फीका न करें बल्कि शामिल हो कर दीवाली को यादगार बनाएं.

चार दिन में कोई मोटा नहीं होता

जब आप यह सोच कर बाकी काम कर सकते हो कि 4 दिन अगर पढ़ाई नहीं की तो कौन सा पहाड़ टूट जाएगा या फिर अगर 4 दिन औफिस नहीं गए तो कौन सा वहां का काम रुक जाएगा तो ठीक इसी तरह यदि आप दीवाली पर खुल कर खा लोगे तो कोई मोटापा बढ़ने वाला नहीं है. मोटापा रोजरोज तली हुई चीजें खाने से बढ़ता है न कि कभीकभी खाने से. इसलिए मन से मोटापे का डर निकाल दें.

राष्ट्रीय राजधानी स्थित ईजी डाइट क्लीनिक की डाइटीशियन रेणु चांदवानी कहती हैं कि दीवाली जैसे त्योहार पर न चाहते हुए भी काफी कुछ खा लिया जाता है. ऐसे में हम दीवाली के बाद की डाइट को कंट्रोल कर के संतुलन बना सकते हैं. अगर आप को पूरे दिन में 3 बार मील लेना है तो आप सुबह टोंड दूध लेने के थोड़ी देर बाद फू्रट ले लें या फिर स्प्राउट्स लें. दिन में अगर आप ने एक दाल व एक सब्जी 2 रोटी के साथ ले ली हैं तो फिर रात को खाने में आप दाल व सलाद लें. इस से आप की डाइट बैलेंस रहेगी. आप कुछ दिनों तक उबली हुई सब्जियां खाएं, ऐक्सरसाइज का रुटीन बढ़ाएं. इस से आप को काफी सुधार महसूस होगा.

दीवाली के पर्व पर खूब खाएं पर इस बात का ध्यान रखें कि दीवाली के बाद 1-2 हफ्ते तक फास्टफूड और औयली चीजों को बिलकुल भी न लें. चौकलेट, चिप्स, तले हुए खाद्य पदार्थों को कुछ दिनों तक नजरअंदाज करें. यानी इस दीवाली पर फुल मस्ती. 

क्या करें दीवाली से पहले

पूरी नींद लें : फैस्टिवल पर फुल एंजौय करने के लिए समय पर सोएं व 7-8 घंटे की पूरी नींद लें जिस से आप को थकान महसूस न हो और आप सभी कार्यों को पूरे जोश के साथ कर सकें. जब तक आप की नींद पूरी नहीं होगी तब तक आप तरोताजा महसूस नहीं कर पाएंगे.

त्योहार के पहले ऐक्सरसाइज : दीवाली के 2 हफ्ते पहले से अगर आप रोजाना ऐक्सरसाइज का नियम बना लें तो आप खुद ही अपने में चेंज देखेंगे. इस से दीवाली पर कपड़े पहनने का भी अलग मजा आएगा. स्मार्ट दिखने के लिए अच्छा फिगर होना भी जरूरी है. 2 हफ्ते की ऐक्सरसाइज के बाद अगर आप ने 2-3 दिन खा भी लिया तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

ज्यादा चीनी न लें : उतनी ही चीनी लें जितनी जरूरी हो. ऐसा न करें कि अगर आप ने सुबह दूध में डाल कर 2 चम्मच चीनी ले ली है तो फिर दिन और शाम में भी चीनी वाली चाय या कौफी ले ली. इस से मोटापा बढ़ेगा. पूरे दिन में एक बार ही चीनी लें ताकि बैलेंस डाइट रहे ताकि आप दीवाली पर मिठाइयों का मजा उठा सकें.

कोल्डडिंक्स, फास्टफूड न खाएं : कोल्डडिंक्स व फास्टफूड में कैलोरीज ज्यादा होती है जो आप को बीमार कर सकती है इसलिए त्योहारों से पहले फास्टफूड को कहें बायबाय और हैल्दी फूड यानी फल, सब्जियों को ही अपनी डाइट में शामिल करें.

स्ट्रैस से दूर रहें : स्ट्रैस खुशी के मौके को फीका करता है. साथ ही, ज्यादा स्ट्रैस वजन भी बढ़ाता है क्योंकि जब आप कम सोएंगे तब आप को ज्यादा भूख का एहसास होगा. इसलिए स्ट्रैस से दूर रहें.

दीवाली के बाद

दीवाली के बाद उबली सब्जियां खाएं : दीवाली जैसे त्योहार पर खानेपीने को काफी चीजें हैं. दीवाली के बाद उसे कंट्रोल करने के लिए आप उबली हुई सब्जियां खा कर शरीर को थोड़ा आराम दें. इस से आप को अच्छा महसूस होगा.

ऐक्सरसाइज का टाइम बढ़ाएं : आप को अगर ऐसा लग रहा है कि आप ने दीवाली पर बहुत ज्यादा खा लिया है और शरीर भारीभारी लग रहा है तो ऐक्सरसाइज का टाइम बढ़ाएं. आप पहले आधा घंटा ऐक्सरसाइज करते थे तो उसे 1 घंटा कर दीजिए. इस से आप का शरीर थोड़े ही दिनों में पहले जैसा हो जाएगा.

तले हुए खाद्य पदार्थ से बचें : सब्जियों में ज्यादा घी, तेल न डालें, सिर्फ उतना ही डालें जितनी जरूरत हो. अगर आप दाल में ऊपर से घी डाल कर खाएंगे तो ये आप की सेहत से खिलवाड़ होगा.

मेरी पत्नी के दूसरें पुरुषों के साथ संबंध हैं, मैं क्या करूं?

सवाल 

मेरी उम्र 38 साल है. मेरी शादी को कई साल हो गए हैं, लेकिन मुझे अब पता चला है कि मेरी पत्नी एक 55 साल के आदमी के साथ नाजायज रिश्ता बनाए हुए है. इस बात से मैं बहुत दुखी हूं, लेकिन अपनी इज्जत बचाए रखने के लिए चुप हूं. मैं क्या करूं?

जवाब 

परेशानी यह है कि आप अपनी पत्नी को रोक नहीं पा रहे हैं और न ही इस की वजह समझ पा रहे हैं जिस ने आप का जीना हराम कर दिया है. मुमकिन है कि आप की पत्नी को उस के साथ संबंध बनाने में ज्यादा सुख मिलता हो जिस के चलते उस ने घरगृहस्थी, समाज और आप की परवाह न करते हुए एक गैर और अधेड़ मर्द से नाजायज संबंध बनाए. इस का यह मतलब?नहीं है कि आप में कोई कमी?है. मुमकिन यह भी है कि आप की पत्नी उस मर्द के किसी दबाव में हो. कोई भी कदम उठाने से पहले आप बात की तह तक जाएं और पत्नी से खुल कर बात करें और उसे ऐसा न करने को कहें. इस पर भी अगर बात न बने तो उस के नाजायज संबंधों के सुबूत इकट्ठा कर अदालत में तलाक के लिए जाएं. समाज और इज्जत की परवाह करते रहेंगे तो यों ही घुटघुट कर जीते रहेंगे और पत्नी भी इस का नाजायज फायदा उठाती रहेगी.

Diwali Special: गिफ्ट वही जो हो सही

त्योहार यानी अपनों के साथ खुशियोंभरा समय, जिस में हम अपनी बिजी लाइफस्टाइल में से फुरसत के कुछ पल निकाल कर अपनों के साथ बिताते हैं. उन के साथ बातें करते हैं और खूबसूरत यादें बांटते हैं. अगर इस में उपहार का तड़का लग जाए तो सोने पे सुहागा वाली बात हो जाती है. बता दें कि उपहार लेना भला किसे पसंद नहीं होता. सभी को उपहार भाते हैं. लेकिन कई बार इन उपहारों में थोड़ी स्मार्टनैस न दिखाई जाए तो खुशियों का रंग फीका पड़ सकता है. जबकि, उपहार दे कर आप अपनों के चेहरे पर एक मीठी सी मुसकान बिखेर देते हैं. चलो जानते हैं कि इस दीवाली अपनों के लिए उपहारों का चयन कैसे करें. पसंद की चीजें दें

उपहार चेहरे पर मुसकान ला देता है, दिल को गार्डनगार्डन कर देता है. इस फैस्टिवल पर आप को अपनों को उपहार के नाम पर सिर्फ उपहार दे कर खानापूर्ति नहीं करनी है, बल्कि इस बार आप उन्हें उन की पसंद की चीजें गिफ्ट करें. जैसे बात करें मम्मीपापा को गिफ्ट देने की, तो आप कुछ समय पहले से ही बातोंबातों में उन के मन की बात जानने की कोशिश करें कि उन का क्या लेने का मन है.

अगर मम्मी को किचन के लिए कुछ खरीदने का मन है और आप को उस बात का आइडिया है तो आप उन के लिए वही खरीदें. यकीन मानें, जब आप उन्हें वे गिफ्ट देंगे तो उन के चेहरे पर जो चमक व खुशी नजर आएगी उस का आप को अंदाजा भी नहीं होगा.

ठीक उसी तरह अगर आप के पापा को कपड़ों का शौक है तो आप उन के लिए एक साइज ऊपर के कपड़े खरीदें. कोशिश करें उन के लिए औनलाइन शौपिंग करने की क्योंकि उस में रिटर्न करने में काफी आसानी होती है. मतलब जिस के लिए भी गिफ्ट खरीदें, उस की पसंद का ध्यान जरूर रखें. वरना चेहरे की मुसकान फीकी पड़ने में देर न लगेगी.

सेहतभरे उपहार दें

उपहारों और खुशियों का आदानप्रदान ही है दीवाली का त्योहार. लेकिन कोरोना महामारी के कारण समय ऐसा चल रहा है कि हर कोई अपनी हैल्थ का खासतौर पर ध्यान रख रहा है और ऐसे में अगर आप इस दीवाली अपनों को मिठाई का उपहार देना चाहते हैं तो अपना इरादा बदल दें. मिठाइयां आप के अपनों को बीमार कर सकती हैं. त्योहार के समय में मिठाइयों में मिलावट का धंधा जोरों पर होता है. ऐसे में आप अपनों को ड्राईफ्रूट्स, ग्रेन, बिस्कुट पैक्स, हैल्दी जूस, सूप पैक्स जैसे सेहतभरे उपहार दें. ये पैक्स अट्रैक्टिव लगने के साथसाथ सेहत का भी ध्यान रखने का काम करेंगे.

गिफ्ट वाउचर भी अच्छा औप्शन

अभी तक आप त्योहारों पर अपनी पसंद के गिफ्ट्स अपनों को देते ही आए हैं. लेकिन इस  दीवाली थोड़ा हट कर सोचें. इसलिए इस बार आप अपनों को गिफ्ट नहीं, बल्कि गिफ्ट वाउचर दें, जिसे आप औनलाइन आसानी से खरीद सकते हैं. जिसे आप इस वाउचर को दे रहे हैं, उन के नाम का मैसेज भी उस में ड्रौप कर सकते हैं. बहुत ही यूनीक आइडिया है.

बच्चों को दें क्रिएटिव चीजें

अगर इस दीवाली आप अपने घर के बच्चों के लिए गिफ्ट ले जाने को सोच रहे हैं तो उन्हें प्लास्टिक के टौयज या अन्य खिलौने देने के बजाय कुछ सीखने वाली चीजें दें. जैसे, आप उन्हें साइंस से जुड़े हुए कुछ मौडल बनाने वाले टौयज दे सकते हैं, उन के कोर्स से जुड़ी हुई कुछ काम की किताबें या फिर ऐसे गेम्स जो उन्हें खेलखेल में मजे के साथ लर्न करना भी सिखाएं. इस से उन्हें उपहार भी मिल जाएगा और इस बहाने वे कुछ काम की चीजें भी सीख जाएंगे.

जब कुछ न समझ आए

अगर आप सम झ नहीं पा रहे हैं कि आप इस त्योहार अपने घर गिफ्ट में क्या ले कर जाएं तो आप को हम एक बैस्ट औप्शन बताते हैं, जो हमेशा हर घर की जरूरत में शामिल रहता है. जी हां, हम बात कर रहे हैं बैडशीट की, जो हर मौम या फिर आप जिन्हें भी इसे देंगे, इसे जरूर इस्तेमाल करेंगे और इस गिफ्ट को पा कर वे अपनी खुशी का इजहार न करें, ऐसा हो ही नहीं सकता. कोशिश करें जब भी आप बैडशीट का चयन करें तो साइज बड़ा ही चुनें, क्योंकि अगर आप कई लोगों के लिए ले रहे हैं तो पता नहीं किस के बैड का साइज क्या है. इसलिए, बड़ा साइज चुनने में ही सम झदारी है. यकीन मानिए, यह गिफ्ट हर किसी को पसंद आएगा.

एक्सपायरी जरूर देखें

आप अगर त्योहार पर घर में गिफ्ट के साथ खानेपीने की चीजें ले जाने के बारे में सोच रहे हैं तो कुछ बातों का ध्यान रख कर ही खरीदें. जैसे, प्रोडक्ट्स की एक्सपायरी जरूर चैक करें, पैकेट कहीं से फटा तो नहीं है, इस बात का ध्यान जरूर रखें. मिठाइयां खरीदने से बचें और अगर खरीद भी रहे हैं तो ज्यादा चाशनी वाली व खोए वाली मिठाई खरीदने से बचें क्योंकि चाशनी वाली मिठाई से आप का बैग खराब होने का डर बना रहता है वहीं त्योहारों पर खोए वाली मिठाई में सब से ज्यादा मिलावट के चांसेस रहते हैं, जो अपनों की हैल्थ को खराब कर सकती है. इसलिए आप इस की जगह अच्छी व ब्रैंडेड दुकान से नमकीन, बिस्कुट, ड्राईफ्रूट्स, टौफी के पैकेट खरीद लें. ये त्योहारों पर बहुत काम के साबित होते हैं.

होम लाइट्स भी अच्छा गिफ्ट

दीवाली पर हर किसी को अपने घर को सजाने का दिल करता है. ऐसे में इस त्योहार अगर आप अपने घर जा रहे हैं तो आप घर को सजाने के लिए मार्केट में मिलने वाली अच्छी लाइट्स जैसा गिफ्ट भी अपनों को दे कर उन के चेहरे पर मुसकान ला सकते हैं. इस के लिए आप आजकल डिमांड में चल रहे एलईडी लाइट्स या बल्ब्स के औप्शन को भी चूज कर सकते हैं. यकीन मानिए, इन लाइट्स से जब आप का घर चमकेगा तो आप के अपनों के चेहरे पर खूब खुशी नजर आएगी. तब आप को सम झ आएगा कि शायद इस गिफ्ट से बेहतर और कोई गिफ्ट हो ही नहीं सकता था.

कपड़ों का सलेक्शन ध्यान से

त्योहार मतलब अच्छा खानापीना, लोगों का एकदूसरे के घर आनाजाना व नए कपड़े पहनना व एकदूसरे के साथ खूब खुशियोंभरे पल बांटना. ऐसे में अगर आप अपनों के लिए कपड़े ले जाने की सोच रहे हैं तो थोड़ा सम झदारी से काम लें. अगर ले जाना है तो एक साइज बड़े कपड़े खरीदें या फिर इस संबंध में किसी अपने की सलाह लें ताकि आप को सही साइज की गाइडैंस मिलने के साथ सलैक्शन में आसानी हो. हमेशा ट्रैंड में चल रहे कपड़े ही खरीदें, और जितना संभव हो अपने आसपास या नजदीकी मार्केट से ही खरीदें और साथ ही, रिटर्न पौलिसी के बारे में भी जरूर पूछ लें ताकि बदलने में आसानी हो.

फोटो फ्रेम दें उपहार में

जरूरी नहीं कि दीवाली पर कपड़े या फिर मिठाई ही उपहार के रूप में दी जाएं, आप थोड़ा क्रिएटिव सोचते हुए इस बार अपनों के यादगार पलों को मनचाहे फोटो फ्रेम में कैद कर के अपनों को ये शानदार गिफ्ट दे सकते हैं. जब भी उन की नजर आप के इस गिफ्ट पर जाएगी तो वे उन्हें आप की याद दिलवाने के साथसाथ आप के इस गिफ्ट की तारीफ करने को मजबूर जरूर करेंगे तो थोड़ा यूनीक सोचिए इस बार.

बजट का भी ध्यान रखें

चाहे बात हो औनलाइन की या औफलाइन की, जब भी आप कुछ खरीदें तो बजट का ध्यान जरूर रखें. साइट्स पर कंपेयर कर के ही खरीदें. कोशिश करें कि बिलकुल आखिरी समय पर न खरीदें, क्योंकि इस से आप का बजट गड़बड़ा सकता है. पहले से ही प्लान कर लें कि घर में किस के लिए क्या खरीदना है. इस से आप को चीजों को सलैक्ट करने में आसानी होगी. इस तरह आप दीवाली पर अपनों को जरूरत के हिसाब से व पसंद के गिफ्ट्स दे कर उन के चेहरे पर मुसकान ला सकते हैं.

Diwali Special: मिलन के त्योहारों को धर्म से न बांटे

त्योहारों का प्रचलन जब भी हुआ हो, यह निश्चित तौर पर आपसी प्रेम, भाईचारा, मिलन, सौहार्द और एकता के लिए हुआ था. पर्वों को इसीलिए मानवीय मिलन का प्रतीक माना गया है. उत्सवों के पीछे की भावना मानवीय गरिमा को समृद्धि प्रदान करना है. सामाजिक बंधनों और पारिवारिक दायित्वों में बंधा व्यक्ति अपना जीवन व्यस्तताओं में बिता रहा है. वह इतना व्यस्त रहता है कि उसे परिवार के लिए खुशियां मनाने का वक्त ही नहीं मिलता.

इन सब से कुछ राहत पाने के लिए तथा कुछ समय हर्षोल्लास के साथ बिना किसी तनाव के व्यतीत करने के लिए ही मुख्यतया पर्वउत्सव मनाने का चलन हुआ, इसलिए समयसमय पर वर्ष के शुरू से ले कर अंत तक त्योहार के रूप में खुशियां मनाई जाती हैं.

उत्सवों के कारण हम अपने प्रियजनों, दोस्तों, शुभचिंतकों व रिश्तेदारों से मिल, कुछ समय के लिए सभी चीजों को भूल कर अपनेपन में शामिल होते हैं. सुखदुख साझा कर के प्रेम व स्नेह से आनंदित, उत्साहित होते हैं. और एक बार फिर से नई चेतना, नई शारीरिकमानसिक ऊर्जा का अनुभव कर के कामधंधे में व्यस्त हो जाते हैं.

दीवाली भी मिलन और एकता का संदेश देने वाला सब से बड़ा उत्सव है. यह सामूहिक पर्र्व है.  दीवाली ऐसा त्योहार है जो व्यक्तिगत तौर पर नहीं, सामूहिक तौर पर मनाया जाता है. एकदूसरे के साथ खुशियां मनाई जाती हैं. एक दूसरे को बधाई, शुभकामनाएं और उपहार दिए जाते हैं. इस से आपसी प्रेम, सद्भाव बढ़ता है. आनंद, उल्लास और उमंग का अनुभव होता है.

व्रत और उत्सव में फर्क है. व्रत में सामूहिकता का भाव नहीं होता. व्रत व्यक्तिगत होता है, स्वयं के लिए. व्रत व्यक्ति अपने लिए रखता है.  व्रत में निजी कल्याण की भावना रहती है जबकि उत्सव में मिलजुल कर खुशी मनाने के भाव. शिवरात्रि, गणेश चतुर्थी, नवरात्र, दुर्गापूजा, कृष्ण जन्माष्टमी, छठ पूजा, गोवर्धन पूजा आदि ये सब व्रत और व्रतों की श्रेणी में हैं. ये  सब पूरी तरह से धर्म से जुड़े हुए हैं जो किसी न किसी देवीदेवता से संबद्घ हैं. इन में पूजापाठ, हवनयज्ञ, दानदक्षिणा का विधान रचा गया है.

यह सच है कि हर दौर में त्योहार हमें अवसर देते हैं कि हम अपने जीवन को सुधार कर, खुशियों से सराबोर हो सकें. कुछ समय सादगी के साथ अपनों के साथ बिता सकें ताकि हमें शारीरिक व मानसिक आनंद मिल सके. मनुष्य के भले के लिए ही त्योहार की सार्थकता है और यही सच्ची पूजा भी है. उत्सव जीवन में नए उत्साह का संचार करते हैं. यह उत्साह मनुष्य के मन में सदैव कायम रहता है. जीवन में गति आती है. लोग जीवन में सकारात्मक रवैया रखते हैं. त्योहारों की यही खुशबू हमें जीवनभर खुशी प्रदान करती रहती है.

लेकिन दीवाली जैसे त्योहारों में धर्म और उस के पाखंड घुस आए हैं जबकि इन की कोई जरूरत ही नहीं है. इस में लक्ष्मी यानी धन के आगमन के लिए पूजापाठ, हवनयज्ञ और मंत्रसिद्धि जैसे प्रपंच गढ़ दिए गए हैं. मंदिरों में जाना, पूजन का मुहूर्त, विधिविधान अनिवार्य कर दिया गया है. इसलिए हर गृहस्थ को सब से पहले पंडेपुजारियों के पास यह सब जानने के लिए जाना पड़ता है. उन्हें चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है.

दीवाली पर परिवार के साथ स्वादिष्ठ मिठाइयों, पटाखों, फुलझडि़यों और रोशनी के आनंद के साथसाथ रिश्तेदारों, मित्रों से अपने संबंधों को नई ऊर्जा प्रदान करें. स्वार्थी लोगों ने दीवाली, होली में भी धर्म को इस कदर घुसा दिया है कि इन के मूल स्वरूप ही अब पाखंड, दिखावे, वैर, नफरत में परिवर्तित हो गए हैं.

पिछले कुछ समय से हमारे सामाजिकमजहबी बंधन के धागे काफी ढीले दिखाई देने लगे हैं. दंगों ने सामूहिक एकता को तोड़ने का काम किया है. आज उत्सव कटुता के पर्याय बन रहे हैं. त्योहारों की रौनक पर भाईचारे में आई कमी का कुप्रभाव पड़ा है. स्वार्थपरकता ने यह सब छीन लिया है. त्योहारों को संकीर्ण धार्मिक मान्यताओं के दायरे में समेट कर संपूर्ण समाज की एकता में मजहब, जाति, वर्ग के बैरिकेड खड़े कर दिए गए. लिहाजा, एक ही धर्म के सभी लोग जरूरी नहीं, उस उत्सव को मनाएं.

धर्म व पाखंड के चलते रक्षाबंधन को ब्राह्मणों, विजयादशमी को क्षत्रियों, दीवाली को वैश्यों का पर्व करार सा दे दिया गया है, तो होली को शूद्रों का. ऐसे में शूद्र, दलित दीवाली मनाने में हिचकिचाते हैं. दीवाली मनाने के पीछे जितनी धार्मिक कथाएं हैं, उन से शूद्रों और दलितों का कोई सरोकार नहीं बताया गया. उलटा उन्हें दुत्कारा गया है.

अशांति की जड़ है धर्म       

अगर किसी का इन गढ़ी हुई मान्यताओं में यकीन नहीं है या वह उन से नफरत करता है तो निश्चित ही तकरार, टकराव होगा. दीवाली को लंका पर विजय के बाद राम के अयोध्या आगमन की खुशी का प्रतीक माना जाता है पर कुछ लोग रावण के प्रशंसक भी हैं जो राम को आदर्श, मर्यादा पुरुषोत्तम नहीं मानते. राम के शंबूक वध की वजह से पढ़ेलिखे दलित उन के इस कृत्य के विरोधी हैं. राम द्वारा अपनी पत्नी सीता की अग्निपरीक्षा और गर्भवती अवस्था में घर से निष्कासन की वजह से उन्हें स्त्री विरोधी भी माना जाता है.

इसी तरह हर त्योहार को ले कर कोईर् न कोई धार्मिक मान्यता गढ़ दी गई. त्योहारों को धर्म और उस की मान्यताओं से जोड़ने से नुकसान यह है कि समाज के सभी वर्गों के लोग अब एकसाथ उन से जुड़ा महसूस नहीं कर पाते. कहने को धर्म को कितना ही प्रेम का प्रतीक संदेशवाहक बताया जाए पर धर्म हकीकत में सामाजिक भेदभाव, वैर, नफरत, अशांति की जड़ है. सच है कि त्योहारों में मिठास घुली होती है पर अपनों तक ही. मजहबी बंटवारे से यह मिठास खट्टेपन में तबदील हो रही है. अकसर त्योहारों पर निकलने वाले जुलूस, झांकियों के वक्त एकदूसरे का विरोध, गुस्सा देखा जा सकता है. कभीकभी तो खूनखराबा तक हो जाता है.

हर धर्म के त्योहार अलगअलग हैं. एक धर्र्म को मानने वाले लोग दूसरे के त्योहार को नहीं मानते. धर्मों की बात तो और, एक धर्र्म में ही इतना विभाजन है कि एक धर्म वाले सभी उत्सव एकसाथ नहीं मनाते. हिंदुओं के त्योहार ईर्साई, सिख, मुसलमान ही नहीं, स्वयं नीचे करार दिए गए हिंदू ही मनाने में परहेज करते हैं. मुसलमानों में शिया अलग, सुन्नी अलग, ईसाइयों में कैथोलिक और प्रोटैस्टेंटों की अलगअलग ढफली हैं. हर धर्म में ऊंचनीच है. श्रेष्ठता और छोटेबड़े की भावना है. फिर कहां है सांझी एकता? कहां है मिलन? क्या त्योहार आज भी मानवीय गुणों को स्थापित करने में, प्रेम, शांति एवं सद्भावना को बढ़ाते दिखाईर् पड़ते हैं?

त्योहारों में धर्म की घुसपैठ सामाजिक मिलन, एकता, समरसता की खाई को पाटने के बजाय और चौड़ी कर रही है. एकता, समन्वय और परस्पर जुड़ने का संदेश देने वाले त्योहारों के बीच मनुष्यों को बांट दिया गया है.

धर्म के धंधेबाजों का औजार 

धार्मिक वर्ग विभाजन की वजह से उत्सव अब सामाजिक मिलन के वास्तविक पर्व साबित नहीं हो पा रहे हैं. त्योहारों के वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक महत्त्व को भूल कर धार्मिक, सांस्कृतिक पहलू को सर्वोपरि मान लिया गया है. त्योहार अब धर्म के कारोबारियों के औजार बन गए हैं. नतीजा यह हो रहा है कि विद्वेष, भेदभाव की जड़वत मान्यताओं को त्योहारों के जरिए और मजबूत किया जा रहा है. एक परिवार हजारों, लाखों रुपए दिखावे, होड़ में फूंक देता है. ऐसे में त्योहारों की सार्थकता पर प्रश्नचिह्न लगने लगे हैं.

केवल समृद्धि, धन के आगमन की उम्मीदों के तौर पर मनाए जाने वाले दीवाली पर्व का महत्त्व धन से ही नहीं है, इस का रिश्ता सारे समाज की एकता, प्रेम, सामंजस्य, मिलन के भाव से है. हमें सोचना होगा कि क्यों सामाजिक, पारिवारिक विघटन हो रहा है. धर्मों में विद्वेष फैल रहा है? त्योहार सौहार्द के विकास में कहां सहयोग कर रहे हैं?

ऐसे में सवाल पूछा जाना चाहिए कि सामाजिक जीवन में धर्मों की क्या उपयोगिता रह गई है? धर्र्म के होते ‘अधर्म’ जैसे काम क्यों हो रहे हैं? त्योहारों के वक्त आतंकी खतरे बढ़ जाते हैं. सरकारों को सुरक्षा व्यवस्था करनी पड़ती है. रामलीलाओं में पुलिस और स्वयंसेवकों का कड़ा पहरा रहता है. वे हर संदिग्ध गतिविधियों पर नजर रखते हैं. अब तो रामलीलाओं की सुरक्षा का जिम्मा द्रोण द्वारा तय किया जाने लगा है. फिर भी आतंकी बम फोड़ जाते हैं और निर्दोष लोग मारे जाते है.

नए सिरे से विचार करना होगा कि परस्पर मेलमिलाप के त्योहार हमारी ऐसी सामाजिक सोच को बढ़ावा दे रहे हैं या नहीं? दीवाली को अंधकार को समाप्त करने वाला त्योहार कहा गया है. कई तरह के अंधकारों में धार्मिक भेदभाव, असहिष्णुता, वैमनस्यता और भाईचारे, सौहार्द के अभाव का अंधेरा अधिक खतरनाक है. जब घरपरिवार, समाज में सद्भाव, प्रेम, मेलमिलाप न रहेगा तो कैसा उत्सव, कैसी खुशी? समाज में फैल रहे धर्मरूपी अंधकार को काटना दीवाली पर्व का उद्देश्य होना चाहिए. तभी इस त्योहार की सही माने में सार्थकता है.

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