राजू श्रीवास्तव यादें: भाभी की बहन को दे बैठे थे दिल

सत्यप्रकाश उर्फ राजू श्रीवास्तव ने भले ही मिमिक्री और अनोखे अंदाज में पेश किए गए चुटकुलों से लोगों के दिलों में अपनी जगह बना ली थी, लेकिन हकीकत यह है कि वह बेहद शर्मीले स्वभाव के व्यक्ति थे. इस का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि वह अपनी भाभी की बहन शिखा को प्यार करते थे. लेकिन यह बात कहने में उन्होंने 12 साल लगा दिए. बाद में शिखा से उन का विवाह हुआ तो…

स्टैंडअप कौमेडी के बाद राजू श्रीवास्तव काम के सिलसिले में 10 अगस्त, 2022 को दिल्ली में थे. वह हर दिन की तरह होटल में ट्रेडमिल पर वर्कआउट कर रहे थे. यह 58 वर्षीय राजू की दिनचर्या में शामिल था. उन्हें खुद को फिट और चुस्तदुरुस्त बनाए रखना था.

कोरोना दौर के जाते ही स्टेज शो से ले कर शूटिंग का सिलसिला अपनी गति पर आ चुका था. सिनेमा के नए पुराने सितारों की तरह राजू भी अपनी रौ आ चुके थे.

पुराने जोश के साथ सक्रिय हो जाने की चाहत नए सिरे से मन में जोश भर रही थी. कुछ शोज करने लगे थे. उन में और नएपन के साथ ताजगी लाना चाहते थे. रोजमर्रा की सामान्य जिंदगी से ले कर खास लोगों तक पर वह पैनी नजर टिकाए थे. पता नहीं किधर से हास्य का कोई आइडिया मौलिकता के साथ दिमाग में समा जाए.

इस के विपरीत उम्र का अपना ही असर था, लेकिन राजू श्रीवास्तव का अपना अलग ही अंदाज था. अपनी कानपुरिया मस्ती, गजोधर की हस्ती और महंगाई के दौर में सस्ती हुई जा रही इंसान की जिंदगी उन के जेहन में उमड़घुमड़ रही थी. यानी उम्र के रिटायर होने वाले पड़ाव पर ज्यादा जरूरत थी फिल्म इंडस्ट्री में बने रहना.

सुबह का वक्त था. राजू ने अभी वाकिंग के ट्रेडमिल पर चलना शुरू ही किया था. धीरेधीरे उस की रफ्तार बढ़ाते जा रहे थे. उन के आसपास की युवतियां और युवक तुरंत अपनी रफ्तार तेज कर दौड़ने लगे थे. राजू ने एक नजर उन पर डाली और थोड़ी स्पीड बढ़ा दी, लेकिन यह क्या उन के पैर लड़खड़ा गए. वह गिर पड़े.

संयोग से वह ट्रेडमिल से नीचे गिरे. पास में ही निगरानी करता जिम का कर्मचारी दौड़ कर राजू के पास आया और उन्हें उठाते हुए बोला, ‘‘राजू भाई, संभल कर… अभी स्पीड नहीं बढ़ानी थी.’’ किंतु वह कुछ बोल नहीं पा रहे थे. गरदन एक ओर झुकी जा रही थी.

‘‘आप ठीक हैं न राजू भाई?’’ इस का भी कोई जवाब नहीं मिला. तब कर्मचारी समझ गया मामला गड़बड़ है. वह बेहोश हो गए थे.

होटलकर्मी ने तुरंत एंबुलैंस बुलवाई और फौरन दिल्ली एम्स (आल इंडिया इंस्टीट्यूट औफ मैडिकल साइंसेस) में भरती करवा दिया. सूचना मिलने पर उन के घर वाले भी अस्पताल पहुंच गए.

हौस्पिटलाइज होते ही उन्हें एम्म में वेंटिलेटर पर रखा गया और उन के परिजनों को बताया कि उन के ब्रेन ने काम करना बंद कर दिया है. यानी उन्हें दिल का दौरा पड़ा था.

इलाज के दौरान डाक्टरों ने 2 स्टेंट लगाए. इस के बाद 13 अगस्त को एमआरआई में राजू श्रीवास्तव के सिर की एक नस दबी होने की बात भी बताई गई.

उस के बाद तो सोशल मीडिया से ले कर टीवी चैनलों में उन के बीमार होने की खबर फैल गई. जिस ने भी सुना स्तब्ध रह गया. लगा जैसे उन के होंठों से हंसी छिन गई हो. कुछ दिन पहले ही तो उन्हें लाफ्टर चैलेंज के मंच पर देखा गया था. उन की कौमेडी पर शेखर सुमन और अर्चना पूरन सिंह ठहाके लगा रहे थे. मंच पर राजू और शंभु शिखर कौमेडी की जबरदस्त तुकबंदी के साथ तड़का लगा रहे थे.

यह कोई नहीं जानता था कि जिस लाफ्टर चैलेंज के मंच से उन्हें बंपर छप्परफाड़ पहचान मिली थी, वही उन का आखिरी मंच साबित होगा. राजू के एम्स (दिल्ली) में भरती होते ही देश भर में उन के चाहने वाले जल्द स्वस्थ होने की दुआएं करने लगे, राजू के परिवार वाले और उन के फैंस रोज ये उम्मीद करते थे कि जल्द ही राजू ठीक हो जाएंगे और फिर से लोगों को खूब हंसाएंगे. लेकिन सच्चाई उस के उलट थी.

कारण, उन की हालत में सुधार होने की संभावना बहुत कम दिख रही थी. डाक्टरों ने आखिरकार परिजनों को यह कहते हुए जवाब दे दिया कि उन के ब्रेन तक औक्सीजन नहीं पहुंच रही है.

यानी कि डाक्टरों ने उन्हें शुरू में ही ब्रेन डेड घोषित कर दिया था. बीच में उन्हें तेज बुखार भी आया था, शरीर में इंफेक्शन होने की बात भी सामने आई थी. तरहतरह की जांच प्रक्रिया शुरू हुई. डाक्टरों ने उन के सिर का सीटी स्कैन करवाया तो दिमाग के एक हिस्से में सूजन पाई गई.

जांच रिपोर्ट के अनुसार अभी डाक्टरों के बीच विचारविमर्श चल ही रहा था कि 15 दिन बाद उन के घर के एक सदस्य से जानकारी मिली कि उन्होंने अपना एक पैर मोड़ा था.

डाक्टर ने इस संदर्भ में विचार किया तो पाया कि उन्हें होश नहीं आया था और उन के ब्रेन से भी किसी तरह की हलचल नहीं मिल रही थी.

राजू की इस से पहले 7 साल पहले हुई हार्ट समस्या के बाद एंजियोप्लास्टी की गई थी, जिस में हार्ट के एक बड़े हिस्से में 100 फीसदी ब्लौकेज मिला था.

कुल मिला कर राजू श्रीवास्तव के निधन की वजह ब्रेन में औक्सीजन का नहीं पहुंचना, कई अंगों का काम बंद करना बताया गया.

डाक्टरों के लिए मल्टीपल और्गन फेल्योर समस्या वाले मरीज को दुरुस्त करने में कई तरह की उलझनों के दौर से गुजरना होता है. यानी जब शरीर के 2 से ज्यादा अंग काम करना बंद कर देते हैं तो ऐसे अधिकतर मामले जानलेवा साबित होते हैं. राजू श्रीवास्तव के केस में भी यही हुआ.

जीवन मृत्यु से जूझते हुए गजोधर भैया राजू श्रीवास्तव अंतत: 21 सितंबर को सुबह 10.20 बजे सारी दुनिया को रुला गए. उन का 41 दिनों बाद निधन हो गया और वह अपने पीछे भरेपूरे परिवार को अलविदा कह गए.

डाक्टर ने मौत का कारण कार्डियक हार्ट अटैक बताया. हालांकि वह इस तरह की समस्या से 2 बार पहले भी गुजर चुके थे. इस बार आया उन का तीसरा हार्ट अटैक था. यानी कि राजू श्रीवास्तव को हार्ट से जुड़ी समस्या पहले से रही है. यह जानते हुए भी वह इसे ले कर शोज में कभी असहज नहीं दिखे.

उन्हें पहली बार मुंबई में एक शो के दौरान 10 साल पहले सीने में दर्द की शिकायत आई थी. तब हार्ट की समस्या को ले कर उन्हें मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में भरती कराया गया था. तब वह जल्द स्वस्थ हो गए थे. उन दिनों उन का करिअर चरम पर था. शोज और शूटिंग के अलावा प्रैस कौन्फ्रैंस की व्यस्तता बनी रहती थी.

बताते हैं कि वह मिले मौके को हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे.  इस कारण मानसिक दबाव में भी रहते थे. इस का असर सेहत पर पड़ना स्वाभाविक था.

काम के बोझ और व्यस्तता के बारे में राजू श्रीवास्तव की बेटी अंतरा श्रीवास्तव ने बताया कि पापा काम के लिए सिलसिले में अकसर दिल्ली और देशभर के अन्य शहरों में जाते रहते थे. वह हर दिन जिम में वर्कआउट करते थे. यह उन का डेली का रुटीन था.

नतीजा हुआ कि ठीक 3 साल बाद दोबारा उन्हें दिल की समस्या आई थी. यह समस्या पहली बार की समस्या की वजह से ही थी. तब उन्हें मुंबई के लीलावती अस्पताल में भरती करवाया गया. तब डाक्टरों की तरफ से कई हिदायतें दी गई थीं, जो रहनसहन, खानपान से ले कर हैवी वर्कआउट तक की थीं.

राजू श्रीवास्तव अपने पीछे परिवार में पत्नी शिखा श्रीवास्तव, बेटी अंतरा, बेटा आयुष्मान, बडे़ भाई सी.पी. श्रीवास्तव, छोटे भाई दीपू श्रीवास्तव, भतीजे मयंक और मृदुल को बिलखता छोड़ गए. उन से जुड़े कई किस्से हैं, जो एक संघर्ष और कुछ पाने की जिद एवं महत्त्वाकांक्षा को दर्शाते हैं.

कानपुर में 25 दिसंबर, 1953 को जन्म लेने वाले राजू श्रीवास्तव का वास्तविक नाम सत्य प्रकाश श्रीवास्तव था. वह सरस्वती श्रीवास्तव और रमेशचंद्र श्रीवास्तव की 3 संतानों में से एक थे.

लोग उन्हें प्यार से राजू भैया कह कर बुलाते थे. उन्होंने कौमेडी के लिए एक काल्पनिक नाम गजोधर गढ़ लिया था. इस कारण लोग उन को गजोधर भैया भी कहने लगे.

उन का जीवन काफी उतारचढ़ाव से भरा हुआ है, जिस में कानपुर, मुंबई और दिल्ली से जुड़ी संघर्ष की दास्तान की लंबी फेहरिस्त है. सफलता उन्हें आसानी से नहीं मिली. इस के लिए उन्हें चंदन की तरह खुद को घिसना पड़ा.

वैसे राजू को मिमिक्री करने की कला अपने पिता कवि रमेशचंद्र श्रीवास्तव से विरासत में मिली थी. वह बचपन से ही अलगअलग फिल्म कलाकारों और प्रसिद्ध व्यक्तियों की मिमिक्री किया करते थे. राजू के पिता गांव के छोटेछोटे कार्यक्रमों में लोगों की मिमिक्रियां किया करते थे.

रमेशचंद्र श्रीवास्तव मशहूर कवि थे, जिन्हें बलाई काका के नाम से जाना जाता है. उन्हें देख कर राजू बड़े हुए थे. उन्होंने बचपन में ही ठान लिया था कि आगे अपना करिअर कौमेडी में ही बनाना है. राजू को बचपन से ही मिमिक्री और कौमेडी करने का बहुत शौक था. इसलिए वह काम की तलाश में 1982 में मुंबई आ गए.

जब तक कोई बड़ा और अच्छा काम नहीं मिला, तब तक मुंबई में आटोरिक्शा भी चलाया. लेकिन बाद में राजू की किस्मत पलटी और उन्हें टीवी पर सब से पहला ब्रेक ‘शक्तिमान’ नामक टीवी धारावाहिक में मिल गया. इस के बाद राजू ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा और अपने जीवन में बहुत सारे स्टेज और कौमेडी शो किए.

सौभाग्य से उन्हें एन. चंद्रा के बड़े बैनर की फिल्म ‘तेजाब’ में छोटी सी भूमिका भी मिल गई. वे अनिल कपूर के दोस्त बने थे. हालांकि उन को उस में पहचानना आसान नहीं होगा.

उस के बाद अगले साल ही राजश्री प्रोडक्शंस की सुपरडुपर हिट फिल्म ‘मैं ने प्यार किया’ में देखा गया था. उस में वह सलमान खान और भाग्यश्री के साथ नेगेटिव रोल में थे.

राजू श्रीवास्तव के जीवन से जुड़ी कई बातें हैं, जिस में उन का प्रेम प्रसंग भी है. वह इतने शर्मीले थे कि जिस से प्यार किया उसे प्रपोज करने में 12 साल लगा दिए.

वह अपने बड़े भाई की बारात में फतेहपुर (यूपी) गए थे. वहां उन्होंने एक लड़की शिखा को देखा तो उसे देखते ही रह गए. लेकिन शर्मीले होने के कारण उस से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. शादी के मौके पर राजू की एकतरफा लवस्टोरी शुरू हो गई थी. वह उन के दिल की गहराई में उतर गई थी, लेकिन प्यार का इजहार नहीं कर पाए थे.

उन की खुशी का ठिकाना तब नहीं रहा, जब उन्हें पता चला कि शिखा उन के भाई की होने वाली पत्नी की कजिन है और शादी में इटावा से आई थी. इस के बाद राजू ने थोड़ी राहत की सांस ली, क्योंकि उन्हें यकीन हो गया कि शिखा को पाना अब ज्यादा मुश्किल नहीं होगा.

शादी तक तो राजू ने अपनी आंखों को तसल्ली दी, लेकिन शिखा से मिलने की तड़प ने राजू के मन में उन्हें अगला कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया.

ऐसे में वह नईनवेली भाभी के घर जाने लगे, ताकि इसी बहाने से शिखा से मिलने का रास्ता निकाल सके. इस में उन्हें सफलता मिली. उन का शिखा से मिलने का इंतजार खत्म हो गया. जल्द ही उन के बीच पत्राचार के जरिए बातों का सिलसिला भी शुरू हो गया.

राजू जब अपनी किस्मत आजमाने मुंबई आए, तब वह शिखा को नहीं भूल पाए थे. इस दौरान भी राजू और शिखा एक दूसरे को लेटर लिखा करते थे. एक इंटरव्यू में राजू ने इस बात का खुलासा किया था कि शिखा भी कहीं न कहीं उन्हें पसंद करती थीं, क्योंकि जो भी शादी के रिश्ते उन के लिए आते थे वो उन्हें मना कर दिया करती थीं.

राजू अंदर से गहरे और शर्मीले स्वभाव के थे. इस कारण उन का प्रेम 12 सालों तक कागजों पर ही एकदूसरे की तारीफों में चलता रहा. वह तो शुक्र है कि राजू के घर वालों ने उन के दिल की बात जान कर शिखा के घर रिश्ता भेज दिया. और फिर साल 1993 में राजू कानपुर से इटावा शिखा के घर अपनी बारात ले कर पहुंच गए. इसी बीच राजू श्रीवास्तव अपने करिअर पर भी ध्यान दे रहे थे.

साल 1993 में शादी करने के बाद राजू-शिखा के परिवार में 2 बच्चे आ गए. बेटी अंतरा और बेटा आयुष्मान. राजू की बेटी अंतरा सोशल मीडिया पर खूब एक्टिव रहती हैं और वह एक असिस्टेंट डायेक्टर हैं. साल 2006 में राजू की बेटी अंतरा को बाल वीरता पुरस्कार मिला था.

इस बारे में राजू ने ही खुलासा किया था कि वह जब एक शो के लिए विदेश गए थे, तब उन के कानपुर वाले घर में बदमाश घुस गए थे. वहीं अंतरा ने बदमाशों से लड़ते हुए 2 बदमाशों को पुलिस के हवाले करवा दिया था.

राजू श्रीवास्तव अगर आम आदमी के कौमेडियन थे तो वह छोटे परदे का एक बड़ा स्टार भी थे. उन को लोग तब से सुनते रहे हैं, जब टीवी चैनल, सीडी, डीवीडी, सोशल मीडिया और यूट्यूब नहीं था. उन दिनों रेडियो के बाद सिर्फ दूरदर्शन ही मनोरंजन का साधन था. सिर्फ आडियो कैसेट आया था. बात 1980 के दशक की है. उन का पहला कौमेडी आडियो कैसेट ‘हंसना मना है’ आया था. इसे टी सीरीज ने निकाला था.

उस में उन के चुटकुले भरे थे, जो राजू ने आवाज बदलबदल कर सुनाए थे. इस की लोकप्रियता के बारे में राजू ने एक इंटरव्यू में गजब का वाकया सुनाया था.

‘‘मैं उस जमाने का आदमी हूं, जब डीवीडी, सीडी ये सब नहीं था. पेन ड्राइव तो था नहीं बेचारा. उस समय हमारे आडियो कैसेट रिलीज होते थे, जो फंस जाते थे तो उन में पेंसिल डाल कर ठीक करना होता था.’’

उस दौरान उस से जुड़ी कई मजेदार घटनाएं थीं. लोग उन का नाम जानते थे, लेकिन पहचानते नहीं थे. उन का एक मजेदार वाकया कुछ यूं था— एक बार राजू अपने शहर में रिक्शे से कहीं जा रहे थे. रिक्शेवाला उन का कैसेट बजा रहा था और उस के चुटकुले सुनता हुआ मजे से रिक्शा चला रहा था. उस जमाने की खासियत ये थी कि जो हिट हो गया, लोग उस के पीछे ही पड़ जाते थे.

रिक्शे वाले को पता नहीं था कि उस के रिक्शे पर बैठा दुबलापतला सा साधारण युवक वही है, जिस के वह चुटकुले सुन रहा है. तब राजू श्रीवास्तव को एक शरारत सूझी उन्होंने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘ये क्या सुन रहे हो यार, कुछ अच्छा लगाओ.’’

इस पर रिक्शे वाला बोल पड़ा, ‘‘अरे नहीं भैया, कोई श्रीवास्तव है, बहुत हंसाता है.’’

उस के बाद तो राजू की तो मानो बोलती ही बंद हो गई.

इसी तरह राजू ने एक और किस्सा साझा किया था, ‘एक बार की बात है कि हम ट्रेन में अपने एक किरदार मनोहर के अंदाज में किसी को शोले की कहानी सुना रहे थे. ऊपर की बर्थ पर एक चाचा सो रहे थे, हमें सुन कर वो नीचे उतरे और बोले कि ऐसा है, तुम ये जो कर रहे हो, इस को और ढंग से करो. इस में थोड़ी और मेहनत कर के इस को जो है…कि कैसेट बनवाओ. बंबई (अब मुंबई) जाओ, वहां गुलशन कुमार का स्टूडियो है. तुम वहां सुनाओ अपना ये…तुम्हारा भी कैसेट आएगा. एक श्रीवास्तव का कैसेट निकला है, उस से आइडिया ले लो.’

राजू श्रीवास्तव कौमेडी कलाकार बनने के ढेर सारे सपने ले कर साल 1982 में मुंबई तो पहुंच गए थे, लेकिन उन्होंने महसूस किया कि सिनेमा में कौमेडी कलाकारों का दौर जौनी वाकर से शुरू हो कर जौनी लीवर पर आ कर खत्म होने की स्थिति में था. जो कुछ बचा था उस में भौंडापन, अश्लीलता के द्विअर्थी संवाद और सिर्फ चुटकुलेबाजी ही था.

वैसे तो उन्होंने कौमेडी अपने पिता कवि रमेशचंद्र श्रीवास्तव से सीखी थी, लेकिन उन्हें बड़े स्टेज पर मौका कानपुर के ही एक अंकल ने दिया था. काव्य पाठ का एक कार्यक्रम चल रहा था. मंच कुछ समय के लिए खाली हो गया था. सामने बैठे दर्शक शोर मचाने लगे थे. तभी संचालक ने कानपुर के किदवई नगर निवासी सत्यप्रकाश श्रीवास्तव उर्फ राजू श्रीवास्तव से चुटकुला सुनाने की गुजारिश की.

अनाउंसमेंट करने वाले अंकल ने कहा कि अब चंद चुटकुले सुनाने राजू आ रहे हैं. बस फिर क्या था उस दिन के बाद सत्यप्रकाश का नाम स्टेज पर राजू श्रीवास्तव बन गया.

राजू ने एक इंटरव्यू में मुंबई का एक वाकया बताया था कि वो आटो में सफर कर रहे लोगों को चुटकुले सुनाते थे. बदले में उन्हें किराए के साथ टिप भी मिल जाती थी. ऐसे ही एक दिन उन के आटो में बैठी एक सवारी ने उन्हें स्टैंडअप कौमेडी के बारे में जानकारी दी.

जिस के बाद उन्होंने स्टेज पर कौमिक परफारमेंस देना शुरू किया, हालांकि पहला शो मिलने में भी उन्हें लंबा समय लग गया. बताते हैं कि तब फीस के तौर पर 50 रुपए मिलते थे. वह मंच आर्केस्ट्रा का होता था. स्ट्रगल के दिनों में उन्होंने बर्थडे पार्टीज में जा कर 50 रुपए के लिए भी कौमेडी की थीं. आर्केस्टा में काम करते हुए उन्हें मात्र 100 रुपए ही मिल पाते थे.

कुछ समय बाद फिल्में मिलनी शुरू हो गई थीं, लेकिन उन का रोल काफी छोटा और नहीं पहचाना जाने वाला ही था. बड़े परदे पर पहली बार फिल्म ‘तेजाब’ में अनिल कपूर के साथ दिखे, जिस में उन की भूमिका एक्स्ट्रा कलाकार की थी.

फिर सलमान खान के साथ ‘मैं ने प्यार किया’ में नजर आए. उस में भी उन्हें छोटा सा सीन मिला था और वे एक ट्रक क्लीनर की भूमिका में थे. किंतु 1993 में उन्हें ‘बाजीगर’ में थोड़ी और बड़ी भूमिका मिली. जिस में वे शिल्पा शेट्टी के साथ कालेज के एक स्टूडेंट थे.

फिल्म का एक महत्त्वपूर्ण सीन था, जिस में शिल्पा शेट्टी एक पार्टी में नाच रही होती हैं और शाहरुख को कांच के पार से आवाज देती हैं. उस सीन में राजू भी देखे गए थे.

इस तरह 90 के दशक से ले कर साल 2003 तक राजू ने तमाम फिल्मों में छोटेछोटे किरदार ही निभाए. जिस में ऋतिक रोशन और करीना कपूर की ‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ भी शामिल थी. तब तक उन्हें लाइव शो के जरिए पहचाना जाने लगा था.

वह कानपुर, मुंबई, दिल्ली समेत दूसरे शहरों में लाइव शोज के लिए बुलाए जाने लगे थे. लोग उन से लालू प्रसाद यादव और अमिताभ बच्चन की मिमिक्री सुनने की मांग करते थे. फिल्म ‘शोले’ के सांबा बन कर जब गब्बर को नसीहत देते थे, तब लोग अपनी हंसी रोके नहीं रोक पाते थे.

उन्हीं दिनों दूरदर्शन ने अपना एक एंटरटेनमेंट का चैनल डीडी मैट्रो शुरू किया था, जिस में सीरियल, टेलीफिल्में, इंटरव्यू और कौमेडी के शोज आते थे. वहां 1993 में उन्हें एक शो ‘टी टाइम मनोरंजन’ में मौका मिल गया था. तब कौमेडी के दौर में नया प्रयोग इंप्रोवाइजेशनल कौमेडी शुरू हुआ था, जिस में 3 कौमेडियन को एक डिब्बे में रखे कई तरह के तमाम नाटक से संबंधित बक्से प्रौप रखे होते थे और उन के इस्तेमाल से 3 कौमेडियंस को बगैर किसी तैयार के कौमेडी सीन बनाना होता था. यहीं से राजू श्रीवास्तव की अलग पहचान बन गई थी.

उस के कुछ समय बाद 1998 में ‘शक्तिमान’ दूरदर्शन पर दिखने वाला देश का सब से पापुलर शो बन गया था. उस में उन की भूमिका रिपोर्टर धुरंधर सिंह की थी. राजू को लोग तब देशभर में पहचानने लगे थे. उस के बाद जैसे ही केबल टीवी और चौबीसों घंटे न्यूज और डेली सोप ओपेरा का दौर आया उस का फायदा राजू को भी मिला. उन दिनों शेखर सुमन टीवी कौमेडी का एक बड़ा नाम थे.

स्टार वन पर 2005 में नए अंदाज में कौमेडी टैलेंट शो ‘द ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ आया था. उस में राजू के अलावा  सुनील पाल, अहसान कुरैशी, नवीन प्रभाकर, भगवंत मान और पराग कंसारा देखे गए. शेखर सुमन और नवजोत सिंह सिद्धू इस शो के जज थे.

इस शो ने न सिर्फ कौमेडी को ग्लैमर दिया, बल्कि कौमेडी को फिल्मों में महज ‘कौमिक रिलीफ’ वाले सींस से निकाल कर इंडिया में एक मेनस्ट्रीम आर्ट फौर्म के रूप में स्थापित कर दिया.

इस शो में कौमेडियन न केवल एक  किरदार थे, बल्कि वही अपने सीन के एक कहानीकार भी थे. उन्हें कहानियां गढ़नी थीं, उसे अनोखे अंदाज में पेश करना था और खड़े हो कर अभिनय भी करना था.

राजू ने वहीं एक किरदार ‘गजोधर भैया’ गढ़ लिया था. गजोधर एक अधेड़ ग्रामीण पुरुष था, जिसे दुनियादारी की समझ नहीं थी. शहरी चीजें उसे अचंभे से भर देती थीं. और राजू उस के भोलेपन से ही कौमेडी निकालते थे.

कानपुर से सटे शहर उन्नाव के पास के बीघापुर गांव में राजू की ननिहाल है. स्कूल की गरमी की छुट्टियां वहीं बीतती थीं. वहां जो सज्जन बाल काटते थे उन का नाम गजोधर था. वे अब नहीं रहे. लेकिन उन्होंने इतने किस्सेकहानियां सुनाई थीं कि वह राजू के जहन में रह गए. इसलिए राजू जब भी कोई कौमेडी का किस्सा सुनाते थे, तब वह उन्हीं का नाम इस्तेमाल करते थे.

गजोधर के अलावा राजू के अधिकतर पात्रों के नाम ग्रामीण और कस्बाई परिवेश से आने वाले लोगों के ही थे. जैसे पप्पू, गुड्डू, पुत्तन, संगठा और मनोहर.

राजू की कौमेडी का अंदाज छोटीछोटी बातों को ध्यान से जहन में बिठाना और उन में से हास्य पैदा करना था. उन के गढ़े हुए पात्रों से हास्य इसीलिए उपजता था, क्योंकि वैसे पात्र हर मिडिल क्लास परिवार में रहे.

उदाहरण के तौर पर राजू का शादी वाला कौमेडी सीन काफी लोकप्रिय रहा. उस में एक दुलहन होती है. उस की छोटी बहन को बिजली चले जाने पर मेकअप खराब होने का डर है. एक अकड़ू मामा हैं, जो ताने देने का काम करते हैं. एक मां है जो बारबार पूछ रही है कि बारातियों के इंतजाम में कोई कमी तो नहीं रह गई. एक पिता है, जो बेटी की विदाई पर आंसू रोकने का असफल प्रयास कर रहा है और एक भाई है जो काम कर के इतना थक चुका है कि उसे विदाई का गम महसूस ही नहीं होने पा रहा है.

इसी तरह ‘बूढ़ा हो गया गब्बर’ की भी मांग होती रहती थी. हालांकि करिअर की शुरुआत में अमिताभ बच्चन की नकल किया करते थे. समय के साथ उन्हें महसूस हुआ कि केवल मिमिक्री करने से काम नहीं चलेगा. और फिर उन्होंने कहानी आधारित  औब्जरवेशनल ह्यूमर वाली कौमेडी पर काम किया.

इस का फायदा यह हुआ कि उन्हें फिल्म वालों के फोन आने लगे. कई फिल्में औफर की गईं. तब उन्होंने एक और निर्णय लिया कि कौमेडी की कला को छोड़ फिल्मों की तरफ मुड़ना ठीक नहीं होगा. तब तक कौमेडियन के नाम से कई शो बनने लगे थे. ‘कौमेडी सर्कस’ में वह लगातार आए.

दूसरे रियलिटी शो में भी राजू ने अपनी धाक जमाई. जैसे 2009 में वह ‘बिग बौस’ में दिखे. यहां तक कि 2013-14 में वे अपनी पत्नी के साथ कपल डांस शो ‘नच बलिए’ में दिखे. कुल मिला कर 2007-2017 के बीच राजू तमाम शोज में आए.

उन की सफलता का सब से बड़ा प्रमाण 2011 में तब आया, जब सीबीएसई की 8वीं कक्षा की किताब में उन की जीवनकथा शामिल की गई. ‘गजोधर मेरा दोस्त’ टाइटल से छपे इस चैप्टर की खबर जब उन्हें मिली, तब उन्हें यकीन ही नहीं हुआ. उस के बाद राजू ने एक अंगरेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था, ‘मुझे लगता है ये पहली दफा है जब किसी कौमेडियन को इस तरह का गौरव प्राप्त हुआ है. मुझे लगता है कि महमूद साहब और जौनी लीवर को तो कब का किताबों में शामिल कर लिया जाना चाहिए था. पर चलो, ये सिलसिला शुरू तो हुआ.’

बहरहाल, राजू श्रीवास्तव की पहचान साफ सुथरी और परिवार के साथ देखने वाली कौमेडी की रही है. इस की वह वकालत किया करते थे.

इंटरनेट पर आज करोड़ों व्यूज पाने वाले स्टैंडअप आर्टिस्ट किसी भी तरह की सेंसरशिप से मुक्त हैं. इस बारे में राजू ने ही कहा था, ‘मैं ने अपने ऊपर सेंसर लगा रखा है कि मैं जब भी कौमेडी पेश करूं तो ये सोच कर करूं कि मेरे सामने मेरे परिवार वाले बैठे हैं. डबल मीनिंग जोक्स बहुत चलते हैं. आप पैसे भी कमा लेंगे ऐसे जोक सुना कर, लेकिन समाज में इज्जत नहीं मिलेगी.’

ज्यादातर लोगों को भले ही राजू श्रीवास्तव की पहली छवि ‘ग्रेट इंडियन लाफ्टर चैलेंज’ में नजर आई हो, लेकिन राजू ने टीवी पर आने से पहले किशोर कुमार और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ वर्ल्ड टूर कर लिया था.

राजू श्रीवास्तव बताते हैं, ‘भीड़ और उन का रिस्पौंस तो मैं पहले ही देख चुका था, लेकिन लाफ्टर चैलेंज के बाद वो कई गुना बढ़ गया था.’

वर्ष 2019 में राजू ने अपना यूट्यूब चैनल शुरू किया था. और उस पर खासे एक्टिव रहे. टीवी पर वो जिस भी शो में वो एंट्री लेते, कभी भागते हुए आते तो कभी नाचते हुए. टीवी पर चलने वाला ‘पेट सफा’ का मशहूर विज्ञापन अब केवल एक याद बन कर रह जाएगा.

2005 के दौर में राजू को उन के गोल्डन पीरियड में टीवी पर देखने वाली पीढ़ी उन्हें एक ऐसे हंसोड़ के रूप में याद रखेगी, जो स्टेज पर हमेशा हंसते हुए घुसता था और अपने जोक्स पर खुद ही ताली बजा कर हंस देता था.

राजू श्रीवास्तव का झुकाव राजनीति की तरफ भी हुआ था. जाते हुए 2014 में अखिलेश यादव की पार्टी की तरफ से उन्हें चुनाव लड़ने का मौका मिला, मगर वह उस पार्टी को छोड़ कर 11 मार्च, 2014 को भारतीय जनता पार्टी के साथ जुड़ गए. बाद में स्वच्छ भारत अभियान की मुहिम को संभालने के लिए प्रधानमंत्री ने उन का नाम नामांकित किया था.

राजू श्रीवास्तव यानी गजोधर भैया भले ही हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन अपने चुटकुलों की वजह से वह लोगों के दिलों में हमेशा बने रहेंगे.

Diwali 2022: दीवाली कभी पति के घर कभी पत्नी के मायके

मधु की शादी के बाद की पहली दीवाली थी. ससुराल में सब खुश थे. पूरे घर में चहलपहल थी. घर में नई बहू आई थी, सो ननद परिवार समेत दीवाली सैलिब्रेट करने आई थी. मधु ससुराल वालों की खुशी में खुश थी मगर उस के मन के एक कोने में मायके के सूने आंगन का एहसास कसक पैदा कर रहा था. वह एकलौती बेटी थी. शादी के बाद उस के मांबाप अकेले रह गए थे. मां की तबीयत ठीक नहीं रहती थी. वैसे भी, पहले पूरे घर में उस की वजह से ही तो रौनक रहती थी. अब उस आंगन में कौन दौड़दौड़ कर दीये जलाएगा, यह एहसास उस के दिल के अंदर एक खालीपन पैदा कर रहा था.

मधु ने पति से कुछ कहा तो नहीं, मगर उस के मन की उदासी पति से छिपी भी न रह सकी. पति ने मधु से रात 9 बजे के करीब कार में बैठने को कहा. मधु हैरान थी कि वे कहां जा रहे हैं. गाड़ी जब उस के मायके के घर के आगे रुकी तो मधु की खुशी का ठिकाना न रहा. घर में सजावट थी पर थोड़ीबहुत ही. वह दौड़ती हुई अंदर पहुंची. मां बिस्तर पर बैठी थीं और पापा किचन में कुछ बना रहे थे. अपनी लाड़ली को देखते ही दोनों ने उसे गले लगा लिया. बीमार मां का चेहरा खुशी से दमकने लगा. दोनों करीब 1 घंटे वहां रहे. घर को रोशन कर जब वापस लौटे तो मधु का दिल पति के प्रेम में आकंठ डूबा हुआ था.

खुशियों के त्योहार दीवाली का आनंद पूरे परिवार के साथ मनाने में आता है.  एक लड़की के लिए उस का मायका और ससुराल दोनों ही महत्त्वपूर्ण होते हैं.  शादी के बाद उसे अपनी ससुराल में ही दीवाली मनानी होती है और तब वह अपनी मां के हाथों की मिठाई व भाईबहनों की चुहलबाजियां बहुत मिस करती है.  आज जबकि परिवार वैसे ही काफी छोटे होते हैं, दीवाली में सब के साथ मिल कर ही खुशियां बांटी जा सकती हैं.

शरीर से स्त्री भले ही ससुराल में हो  पर उस के मन का कोना मायके की याद में गुम रहता है. क्यों न इस दीवाली की रोशनी हर आंगन में बिखेरें. कभी पति की ससुराल तो कभी पत्नी की ससुराल खुशियों से आबाद करें.

कहां मनाएं दीवाली

आमतौर पर शादी के बाद की पहली दीवाली रिश्तों को बनाने और उन्हें रंगों से सजाने में खास महत्त्वपूर्ण होती है. यह दिन ससुराल में ही बीतना चाहिए ताकि नई बहू के आने की खुशी दोगुनी हो जाए. पर ध्यान रहे आप की बहू किसी घर की बेटी भी है. वह आप के घर में रौनक ले कर आई है पर उस का मायका सूना हो चला है. तो क्यों न पत्नी के मायके को भी नए दामाद के आने की खुशी से रोशन किया जाए.

यदि पत्नी का मायका और ससुराल एक ही शहर में हैं तो दोनों परिवार मिल कर भी दीवाली मना सकते हैं. इस से दोनों परिवारों को आपस में घुलनेमिलने का मौका मिलेगा और बच्चे भी दोनों परिवारों से जुड़ सकेंगे. दोनों घरों की खुशियों के लिए यह भी किया जा सकता है कि पतिपत्नी दोचार घंटे के लिए बच्चों को नानानानी के पास छोड़ आएं.

यदि दोनों घर अलगअलग शहरों में हैं तो पतिपत्नी बच्चों को ले कर एक दीवाली ससुराल में तो दूसरी मायके में मना सकते हैं.

आजकल कई घरों में एकलौती  बेटियां होती हैं. ऐसे में लड़की के मायके वाले यानी उस के मांबाप को भी हक  है कि वे अपनी बेटी और उस के बच्चों के साथ अपने जीवन की खुशियां बांटें.

जब पति दीवाली में अपनी ससुराल जाए तो दामाद के बजाय बेटे की तरह जाए.  अपनी आवभगत  कराने के बजाय इस बात का खयाल ज्यादा रखे कि सासससुर के लिए तोहफा क्या ले जाना है या मिठाइयों, कपड़ों, पटाखों और सजावटी सामानों का बढि़या इंतजाम कैसे किया जाए या घर को इस दिन कैसे अधिक खूबसूरत बनाया जाए या फिर सासससुर के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं कैसे दूर की जाएं.

पति की ससुराल का अर्थ है पत्नी के मांबाप का घर. जब पत्नी पति के मांबाप को अपने मांबाप और उस के घर को अपना घर मान सकती है तो पति क्यों नहीं? आखिर मांबाप तो लड़के के हों या लड़की के, उतने ही प्यारदुलार और केयर के साथ अपने बच्चों का पालनपोषण करते हैं. तो क्या लड़की के मांबाप को  बुढ़ापे में अपने बच्चों का प्यार और साथ पाने का हक नहीं है?

झगड़े दूर करें

यदि किसी बात को ले कर दोनों घरों में किसी भी तरह का मनमुटाव है तो दीवाली के मौके पर उसे जरूर दूर कर दें. परस्पर आगे बढ़ने और खुशियों को बांटने से ही जीवन सुखद बनता है.

किसी अनजान के सामने मैं अपनी बात को ठीक ढंग से रख नहीं पाता हूं, क्या करूं?

सवाल

मैं 19 साल का एक लड़का हूं और पढ़ाई में काफी अच्छा हूं. मेरे साथ दिक्कत यह है कि किसी अनजान के सामने मैं अपनी बात को ठीक ढंग से रख नहीं पाता हूं. सच कहूं, तो मेरी बोलती बंद हो जाती है. इस वजह से मेरे मन में हीनता का भाव रहता है.

जवाब

मेरे दोस्त मुझे इस हीनता से बाहर निकालने के लिए काफी मदद करते हैं और उन के सामने मुझे लगता भी है कि भविष्य में यह समस्या नहीं होगी. पर जब मैं अकेला होता हूंतो फिर वही ढाक के तीन पात वाली बात हो जाती है. मैं क्या करूंआप कुछ सुझाव दें?

आप में आत्मविश्वास की कमी हैजो बहुत बड़ी चिंता की बात नहीं. आप अपना ज्यादातर समय दोस्तों के साथ गुजारें और अकेले में आईने के सामने बोलने की प्रैक्टिस करें. हिम्मत कर के स्कूलकालेज की भाषण प्रतियोगिताओं में हिस्सा लें और एक बात खुद को समझाते रहें कि सारी दुनिया के लोग बेवकूफ हैं और सिर्फ आप पर ध्यान लगाए नहीं बैठे हैं.

जब भी आप को मौका मिलेबोलें जरूर. अनजान लोगों से बात करें. इस से भी आप के बोलने की समस्या हल होने में मदद मिलेगी. इस से भी अगर बात न बनेतो किसी माहिर मनोचिकित्सक से मशवरा लें.   

40 करोड़ की डील: अमेरिका से लौटे दंपति हुए लापता

नेपाली मूल के लाल शर्मा और उस की पत्नी बिजनैसमैन आर. श्रीकांत के बंगले पर पिछले 20 सालों से नौकर थे. इतना ही नहीं, श्रीकांत ने लाल शर्मा के बेटे पदम लाल उर्फ कृष्णा को न सिर्फ अपनी औलाद की तरह पाला बल्कि उसे अपना ड्राइवर बना दिया. इस सब के बावजूद भी 40 करोड़ रुपए के लालच में कृष्णा ने बंगले में ऐसा खून बहाया कि…

अपनी पत्नी अनुराधा (55 वर्ष) के साथ अमेरिका से भारत लौट रहे श्रीकांत (58 वर्ष) ने अपने सहायक और ड्राइवर कृष्णा को फोन कर के बता दिया था कि उन की फ्लाइट सुबह करीब साढ़े 3 बजे चेन्नई पहुंच जाएगी. वह समय पर उन्हें लेने पहुंच जाए.

श्रीकांत तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में स्थित माईलापुर थाना क्षेत्र की द्वारका कालोनी के निवासी थे. ड्राइवर कृष्णा मूलरूप से नेपाल का रहने वाला था. वह अपने दोस्त रवि राय को साथ ले कर अपने मालिक आर. श्रीकांत को लेने के लिए समय पर चेन्नई एयरपोर्ट पहुंच गया था.

फ्लाइट निश्चित समय पर चेन्नई एयरपोर्ट पर पहुंच गई. वहां ड्राइवर कृष्णा पहले से मौजूद था. वह श्रीकांत और उन की पत्नी को ले कर सवा 4 बजे घर की ओर चल दिया.

संयुक्त राज्य अमेरिका से दंपति की बेटी सुनंथा का फोन आ गया. पिता श्रीकांत ने बेटी को बताया कि उन की फ्लाइट ने ठीक साढ़े 3 बजे लैंड कर लिया था, उन्हें लेने के लिए कृष्णा आया हुआ है. वे अब माईलापुर के लिए निकल चुके हैं.

बताते चलें कि आर. श्रीकांत चार्टर्ड एकाउंटेंट थे, साथ ही रियल एस्टेट का काम भी करते हैं. वह एक फाइनैंस कंपनी में कारपोरेट फाइनैंस का प्रमुख होने के साथसाथ गुजरात में एक निजी आईटी कंपनी भी चलाते थे. अमेरिका के राज्य कैलिफोर्निया में उन की बेटी सुनंथा और बेटा शाश्वत डाक्टर हैं. दंपति अपने बच्चों के पास लगभग 6 माह रह कर 7 मई, 2022 को चेन्नई वापस आए थे.

इस के बाद सुबह साढ़े 8 बजे बेटे शाश्वत ने फोन लगाया तो श्रीकांत का मोबाइल बंद था. तब पापामम्मी का हालचाल लेने के लिए उस ने ड्राइवर कृष्णा को फोन लगाया. कृष्णा ने बताया कि दोनों सो रहे हैं.

लगभग 2 घंटे बीतने के बाद शाश्वत ने फिर फोन किया तो कृष्णा ने ऊटपटांग जबाव दिया. इस से शाश्वत को संदेह हुआ. जब यह बात शाश्वत ने बहन सुनंथा को बताई तो वह घबरा गई. उस ने भाई को राय दी कि वह तुरंत वहां रह रहे रिश्तेदारों से संपर्क करे.

शाश्वत ने तब इंद्रानगर निवासी अपने चचेरे भाई रमेश परमेश्वरन को फोन किया कि पापामम्मी सुबह चेन्नई वापस आ गए थे. अब उन से बात नहीं हो पा रही है, दोनों के मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ हैं और कृष्णा भी सही जबाव नहीं दे रहा है. वह घर जा कर देखे कि वहां क्या हुआ है.

रमेश पत्नी दिव्या और अपने मित्र श्रीनाथ के साथ माईलापुर थाना क्षेत्र की द्वारका कालोनी स्थित श्रीकांत के घर दोपहर साढ़े 12 बजे पहुंचे. उन्हें दरवाजा पर ताला लगा मिला. किसी अनहोनी की आशंका पर उन्होंने माईलापुर थानाप्रभारी एम. रवि को सूचना देने के साथ ही पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. इस के साथ ही अमेरिका में शाश्वत को भी अवगत कराया.

बगले के हालात दे रहे थे अनहोनी के सबूत दंपति के गायब होने की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी तुरंत हरकत में आ गए और वह टीम के साथ श्रीकांत के बंगले पर पहुंच कर छानबीन में जुट गए. बंगले के गेट पर लटके ताले ने थानाप्रभारी की भी बेचैनी बढ़ा दी. लिहाजा उन्होंने गेट का ताला तुड़वा दिया. जैसे ही पुलिस बंगले में दाखिल हुई तो अंदर का नजारा देखते ही सभी के होश उड़ गए.

सूटकेस और 3 लेयर वाला लौकर और अलमारी खुले पड़े थे. पुलिस ने घर की तलाशी ली. घर के फर्श पर खून के हलके दाग मिलने के साथ ही फर्श को डेटोल से धोए जाने की महक भी आ रही थी. यूटिलिटी रूम में खून के धब्बे मिले. वहीं टायलेट के ड्रेन होल में भी खून था. हालांकि वहां दंपति दिखाई नहीं दिए. दंपति घर से गायब थे.

ड्राइवर कृष्णा भी दिखाई नहीं दे रहा था. इस के साथ ही श्रीकांत की कार भी नहीं थी. घर में लगे सीसीटीवी कैमरों का डीवीआर (डिजिटल वीडियो रिकौर्डर) व पलंग से बैडशीट भी गायब थी.

थानाप्रभारी एम. रवि ने मामले की गंभीरता को देखते हुए माईलापुर के डीसीपी गौतमन को अवगत कराया. वे कुछ देर में फोरैंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए और जांच शुरू की.

जैसे ही अमेरिका में रह रहे भाईबहनों को इस की जानकारी दी गई तो दोनों परेशान हो गए और मातापिता की कुशलता की प्रार्थना करने लगे. दोनों ही बहुत घबराए हुए थे और बारबार पुलिस तथा चचेरे भाई रमेश को फोन कर रहे थे.

दंपति के मोबाइल स्विच्ड औफ आ रहे थे. इस पर पुलिस ने ड्राइवर कृष्णा के मोबाइल पर काल की लेकिन अब उस ने अपना फोन भी स्विच्ड औफ कर लिया था. पुलिस को आशंका हुई कि कहीं ड्राइवर कृष्णा ने ही दंपति का अपहरण तो नहीं कर लिया? वह उन से बड़ी रकम तो वसूलना नहीं चाहता.

लेकिन पुलिस के सामने प्रश्न यह था कि कृष्णा यह काम अकेले नहीं कर सकता, जरूर कुछ लोग उस के साथ होंगे.

लेकिन दूसरी ओर घर में खून के दाग मिलने व डेटोल की महक से ऐसा लगता था कि अपहरण घर से ही किया गया था और शायद लौकर व सूटकेस की चाबी मांगने के दौरान दंपति के साथ मारपीट करने से खून निकला होगा.

पुलिस ने दंपति के फोन नंबरों की लोकेशन चैक की. तब पता चला कि एअरपोर्ट पर उतरने के बाद दोनों के साथ कृष्णा भी था. तीनों के फोन नंबरों की लोकेशन साथ आई थी, घर तक तीनों साथ आए थे. इस के कुछ देर बाद दंपति के मोबाइल फोन स्विच्ड औफ हो गए थे.

कुछ देर बाद कृष्णा का भी फोन स्विच औफ आने लगा था. पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती दंपति का शीघ्र पता लगाने की थी कि वे कहां हैं और किस अवस्था में हैं?

पुलिस ने मामला दर्ज कर आगे की जांच शुरू कर दी. पुलिस ने कृष्णा का पता लगाने के लिए घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज और काल डिटेल्स का इस्तेमाल किया.

इस के साथ ही श्रीकांत के फोन के काल डेटा रिकौर्ड को एक्सेस किया, जिस में फास्ट टैग संदेश प्राप्त हुए थे. उस में दिखाया गया था कि कई टोल बूथों से हो कर कार गुजरी थी. उस के फास्ट टैग रिकौर्ड को खंगालने पर पता चला कि उन की कार चेन्नई-कोलकाता राष्ट्रीय राजमार्ग पर जा रही है.

आंध्र प्रदेश पुलिस ने धर दबोचे आरोपी

कंट्रोल रूम की मदद से कृष्णा और कार खोजने के लिए नाकाबंदी शुरू कर दी गई. चूंकि कृष्णा नेपाल का रहने वाला था और उस के नेपाल भागने की आशंका ज्यादा थी, इसलिए देश छोड़ने से पहले उसे पकड़ने के लिए आंध्र प्रदेश पुलिस को भी अलर्ट कर दिया गया.

आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले के एसपी मलिका गर्ग के निर्देश पर हाईवे थाना ओंगोल के डीएसपी यू. नागराजू के आदेश पर तंगुटुक टोलगेट पर हाईवे पुलिस ने कृष्णा और उस के साथी रवि को कार सहित 7 मई, 2022 की शाम साढ़े 4 बजे ओंगोल पर दबोच लिया.

इस के बाद मामला परत दर परत खुलता चला गया. दोनों की गिरफ्तारी के बाद आंध्र प्रदेश पुलिस ने चेन्नई पुलिस को सूचित किया. चेन्नई पुलिस की एक टीम आंध्र प्रदेश के लिए रवाना हो गई. पुलिस टीम दोनों आरोपियों कृष्णा व रवि राय को कार व लूटे गए 8 किलोग्राम सोना, 50 किलोग्राम चांदी के बरतन, नकदी और 5 करोड़ के जेवरात सहित उन्हें ले कर माईलापुर थाना ले आई.

यहां दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई. दोनों ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया. उन्होंने बताया कि 40 करोड़ रुपयों के लिए दंपति की हत्या की थी. आरोपियों ने बताया कि दोनों लाशों को उन के ही चेन्नई के बाहर स्थित फार्महाउस में दफन कर दिया था. इस के बाद वे लोग नेपाल जा रहे थे.

लाशों को बरामद करने के लिए थानाप्रभारी एम. रवि दोनों आरोपियों को ले कर दंपति के नेमिलीचेरी स्थित फार्महाउस पर पहुंचे. वहां आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने  फार्महाउस में पीछे की ओर पेड़ों के बीच एक जगह पर ताजा मिट्टी को हटाया तो वहां गड्ढा खोदा हुआ मिला.

कत्ल कर उन के ही फार्महाउस में दफना दिया दंपति को आरडीओ थिरूपोरूर की मौजूदगी में दंपति के नेमिलीचेरी स्थित फार्महाउस में गड्ढे से मिट्टी हटाने पर श्रीकांत और उन की पत्नी अनुराधा की खून से लथपथ लाशें बरामद हुईं. गड्ढे से दंपति के मोबाइल फोन और फ्लाइट टिकट के आधे जले हुए अवशेष भी बरामद हुए.

जब माईलापुर थाने की पुलिस टीम शवों को निकालने की काररवाई कर रही थी, तब वहां फावड़ा व एक आधा जला हुआ क्रिकेट स्टंप मिला. संभवत: यह वही स्टंप था, जिस का प्रयोग हत्यारों ने दंपति की हत्या में किया था. इसी के साथ लाशों को दफन करने के लिए इसी फावड़े से गड्ढा खोदा गया था.

पुलिस ने सभी चीजों को अपने कब्जे में ले लिया.  पुलिस को बाड़ से जुड़ा एक बिजली का तार भी मिला, इस तार को हत्यारों ने इसलिए लगाया था ताकि सुरक्षा गार्ड के न होने पर लोग फार्महाउस में प्रवेश न कर सकें और जहां शव दफनाए गए थे, उस स्थान पर न पहुंच सकें. इस पूरी काररवाई की वीडियो रिकौर्डिंग की गई. मौके पर फोरैंसिक टीम भी मौजूद रही.

पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर शवों को पोस्टमार्टम के लिए चेंगल पट्टू के सरकारी अस्पताल भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक दंपति की मौत अत्यधिक पिटाई से आई चोटों व खून बहने से हुई थी.

हत्यारोपियों ने दंपति को बेरहमी से पीटा था, जिस से उन की मौत हो गई थी. मामला दर्ज होने के 8 घंटे के अंदर पुलिस ने आरोपियों को आंध्र प्रदेश पुलिस की मदद से पकड़ कर अपहरण, हत्या और 5 करोड़ की लूट का  परदाफाश कर दिया.

चार्टर्ड एकाउंटेंट श्रीकांत ने सिम्मापुर, नेपाल निवासी लाल शर्मा व उन की पत्नी को 20 साल पहले अपने यहां काम पर रखा था. लगभग 10 साल पहले उन्होंने उन के बेटे कृष्णा उर्फ पदमलाल कृष्णा को भी घरेलू सहायक व ड्राइवर के रूप में रख लिया था.

अब कृष्णा के पिता सिक्योरिटी गार्ड के रूप में फार्महाउस की देखभाल करते थे.  बंगले में श्रीकांत ने रहने के लिए कृष्णा को एक क्वार्टर दे रखा था. इस के साथ ही देश से बाहर जाने पर वह कृष्णा को कार के प्रयोग की अनुमति दे जाते थे.

40 करोड़ की डील के लिए आए थे दंपति

कृष्णा घरेलू कामों के साथ ही श्रीकांत की कार भी चलाता था. उसे श्रीकांत के व्यापार के संबंध में जानकारी रहती थी. एडिशनल सीपी (दक्षिण) डा. एन. कन्नन ने प्रैस कौन्फैंस में बताया कि चार्टर्ड एकाउंटेंट श्रीकांत रियल एस्टेट का काम भी करते थे.

श्रीकांत अमेरिका जाने के बाद मार्च, 2022 में अकेले अमेरिका से संक्षिप्त यात्रा पर चेन्नई वापस आए थे.

उस अवधि में कार में यात्रा के दौरान ड्राइवर कृष्णा ने श्रीकांत को 40 करोड़ रुपए की एक बड़ी संपत्ति की बिक्री के बारे में फोन पर डील करते सुन लिया था. इस के बाद उस ने मान लिया कि घर के लौकर में 40 करोड़ कैश रखा हुआ है.

कृष्णा भले ही बंगले में मिले एक बाहरी क्वार्टर में रह रहा था, लेकिन उसे बंगले के अंदर की सारी जानकारी रहती थी. श्रीकांत को प्रौपर्टी बेचने के बाद वापस अमेरिका चले जाना था. विश्वासपात्र और घरेलू सहायक व ड्राइवर होने के कारण कृष्णा को श्रीकांत के बिजनैस और घर के अन्य क्रियाकलापों  की पूरी जानकारी रहती थी.

वह जानता था कि दंपति की हत्या के बाद ही वह 40 करोड़ की रकम हासिल कर सकता है. पुलिस ने जांच में पाया कि दंपति की नृशंस हत्या के पीछे का मकसद पैसा था. इसलिए लूट की योजना के लिए उस ने दंपति के आने का इंतजार करने का फैसला किया.

सावधानी से बनाई थी लूट की योजना

हत्या के बाद लूट की योजना सावधानीपूर्वक बनाई गई थी. कृष्णा इस बात को अच्छी तरह जानता था कि श्रीकांत और उन की पत्नी अमेरिका में रहते हुए भी मोबाइल के जरिए यहां बंगले पर लगे सीसीटीवी के माध्यम से अपने घर को देख रहे थे. वे कृष्णा को फोन करते थे और उस के ठिकाने के बारे में पूछते रहते थे.

पकड़े जाने के डर से वह बंगले के ताले व लौकर को तोड़ने से बचता रहा. उस का सोचना था कि दंपति के आने पर ही हत्या कर उन से चाबी ले कर 40 करोड़ रुपयों को हासिल किया जा सकता है.

अतिरिक्त पुलिस आयुक्त ने बताया कि आरोपी नेपाल मूल के कृष्णा ने एक तमिल महिला से शादी की थी और अब वे अलग हो गए हैं. उन का बेटा दार्जिलिंग में पढ़ रहा है.

इस बीच अपने दार्जिलिंग के एक दोस्त रवि राय को इस योजना में शामिल कर लिया. कृष्णा का जो दोस्त रवि राय इस अपहरण, हत्या व लूट में शामिल था, उस से कृष्णा परिचित था.

जब कृष्णा अपने बेटे का दार्जिलिंग के एक स्कूल में दाखिला कराने का प्रयास कर रहा था, तब रवि ने इस में उस की मदद की थी. तभी से वे दोस्त बन गए थे.

बड़ी रकम हाथ लगने की बात सुन कर रवि लालच में आ गया और कृष्णा का साथ देने को तैयार हो गया.

दोस्त को भी योजना में किया शामिल

घटना से एक महीना पहले कृष्णा ने रवि को 40 करोड़ की पूरी बात बताई और उसे अपनी योजना में शामिल कर लिया. दोनों हत्यारों का ऐसा मानना था कि श्रीकांत की तिजोरी में 40 करोड़ रुपए रखे हैं. तय हुआ कि दंपति की हत्या के बाद वे रकम को ले कर नेपाल भाग जाएंगे.

तिजोरी की चाबियों के लिए वे दंपति के लौटने का बेसब्री से इंतजार करने लगे. घटना से 2 सप्ताह पहले श्रीकांत ने फोन कर कृष्णा को बताया था कि वे 7 मई, 2022 को चेन्नई लौट रहे हैं.

माईलापुर की डीसीपी दिशा मित्तल के अनुसार माईलापुर क्षेत्र निवासी श्रीकांत अपनी पत्नी अनुराधा के साथ पिछले साल नवंबर में अमेरिका के कैलिफोर्निया में बसी बेटी सुनंदा और बेटे शाश्वत से मिलने गए थे. बेटी सुनंदा गर्भवती है.

हवाई अड्डे पर कार में दंपति को बैठाने के बाद योजनानुसार कृष्णा दंपति को माईलापुर उन के बंगले में ले गया. उस समय सुबह के साढ़े 8 बजे का समय था. घर पहुंचते ही हत्यारों ने योजनानुसार घर की बिजली आपूर्ति बंद कर दी.

श्रीकांत कुछ समझ पाते, इस से पहले ही अंधेरे की आड़ में कृष्णा ने श्रीकांत को भूतल के कमरे में बंद कर दिया. जबकि उस का दोस्त रवि अनुराधा के पीछे पहली मंजिल तक गया.

कृष्णा ने श्रीकांत को क्रिकेट के स्टंप से  बुरी तरह से पीटा और उन से जबरन लौकर व सूटकेस की चाबियां छीन लीं. इस के बाद उन के गले में नुकीली ओर से स्टंप घोंप दिया. इसी तरह अनुराधा को मौत के घाट उतार दिया गया. दोनों को अलगअलग कमरों में मार दिया गया.

आरोपी यहां लगभग 2 घंटे तक रहे. इस दौरान उन्होंने खून के धब्बों को साफ करने के साथ ही सोने और डायमंड के जेवरात, जिन की संख्या एक हजार से अधिक थी, व चांदी के बरतनों आदि को पैक किया. बंगले से निकलने से पहले आरोपी सीसीटीवी रिकौर्डर अपने साथ ले गए.

दोनों के शवों को बैडशीट में लपेट कर श्रीकांत की कार में रखा. इस के बाद रवि और कृष्णा घर में ताला लगा कर निकल गए. दोनों सुबह लगभग साढ़े 10 बजे लाशों को चेन्नई के बाहर ईस्ट कोस्ट रोड पर नेमिलीचेरी स्थित फार्महाउस ले गए, जहां पहले से खोदे गए गड्ढे में दंपति को दफना दिया.

10 दिन पहले खोदा था गड्ढा

हत्यारों को बड़ी नकदी मिलने की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें लगभग 5 करोड़ कीमत के 8 किलोग्राम सोने के आभूषण तथा 50 किलोग्राम चांदी के बरतन, कुछ नकदी ही मिली थी.

दंपति की हत्या करने के बाद ही उन्हें पता चला कि 40 करोड़ रुपए की रकम श्रीकांत के बैंक एकाउंट में पहले ही जमा हो चुकी थी.

कृष्णा ने दंपति की हत्या की योजना एक माह पहले रची थी. श्रीकांत ने अमेरिका से जब फोन कर कृष्णा को बताया कि वह 7 मई को वापस आ रहे हैं. तब कृष्णा ने साथी रवि के साथ मिल कर अपनी योजना को कार्यान्वित करते हुए उन के फार्महाउस में घटना से 10 दिन पहले 6 फुट गहरा गड्ढा खोदा.

यह कार्य गोपनीयता के चलते दोनों ने स्वयं किया. हत्या के बाद उन्होंने दंपति की लाशों को इसी गड्ढे में दफन कर दिया. अमेरिका से लौटे दंपति को शायद भनक भी नहीं थी कि चेन्नई एयरपोर्ट पर विश्वसनीय ड्राइवर कृष्णा के रूप में मौत उन का इंतजार कर रही है.

विधानसभा में गूंजा यह मामला

दोहरे हत्याकांड की दिल दहलाने वाली इस घटना से चेन्नई में सनसनी फैल गई थी. दंपति की हत्या के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया. इस की गूंज विधानसभा में भी सुनाई दी.

विधानसभा में विपक्ष के नेता एडपाडि पलनीसामी द्वारा उठाए गए प्रश्न का जवाब देते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने जानकारी दी कि लूट के इरादे से दंपति की हत्या की गई थी और हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने के 8 घंटे के अंदर हत्यारों को लूटे गए माल सहित गिरफ्तार कर लिया गया.

हत्यारोपियों को पकड़ने के लिए विशेष दल का गठन किया गया था और आंध्र प्रदेश की पुलिस की मदद से दोनों आरोपी अपहरण, हत्या व लूट के बाद आभूषण ले कर नेपाल भाग रहे थे. लेकिन पुलिस की तत्परता के चलते घटना को अंजाम देने के 12 घंटे के अंदर वे पकड़ लिए गए.

पुलिस को जांच से यह भी पता चला कि फार्महाउस पर गार्ड के रूप में कार्यरत 70 वर्षीय पिता लाल शर्मा व मां को कृष्णा ने कुछ समय पहले नेपाल स्थित घर भेज दिया था. पुलिस अब इस बात की जांच कर रही है कि कृष्णा के पिता का भी इस घटना में हाथ तो नहीं है?

चेन्नई पुलिस ने तुरंत लाल शर्मा से संपर्क किया, जो अब नेपाल में हैं और उन्हें पूछताछ के लिए बुलाया. उन्हें पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया. उन्होंने कहा, ‘‘मेरा बेटा मेरे मालिक के साथ ऐसा कैसे कर सकता है? मैं हैरान हूं.’’

शुरू में उन्होंने यह मानने से इंकार कर दिया कि उन के बेटे ने दंपति को मार डाला है. उन्होंने पुलिस को बताया कि दंपति द्वारा उन का और परिवार का अच्छी तरह से खयाल रखा जाता था. हालांकि पुलिस सतर्क है और उस का कहना है कि वह जांच पूरी होने तक पिता को बेगुनाह नहीं कह सकते.

पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से दंपति के बंगले से लूटे गए आभूषण, कार, घर का सीसीटीवी रिकौर्डर जिस में हत्या किए जाने के सबूत हैं, के साथ ही, फार्महाउस में शव दफन करने के बाद लौटते समय के सीसीटीवी फुटेज, हवाई यात्रा के टिकट, स्टंप, फावड़ा आदि बरामद किए हैं.

पुलिस के पास आरोपियों का दोष साबित करने के लिए पर्याप्त मजबूत सबूत हैं. पुलिस ने दोनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

इस संबंध में आरोपियों से पूछताछ करने पर जो बात उजागर हुई, उस पर कोई भी व्यक्ति सोचने को मजबूर हो जाता है कि दंपति ने जहां अपनी औलाद की तरह कृष्णा को अपने पास रखा और उस की व उस के वृद्ध मातापिता की सुखसुविधाओं का पूरा ध्यान रखा.

दगाबाज कृष्णा ने अपने दोस्त के साथ मिल कर 40 करोड़ रुपयों की खातिर अपने मालिक के भरोसे का कत्ल कर दिया. पालनहारों की जान ले ली.

जहां कृष्णा इन रुपयों से नेपाल में रह कर शाही अंदाज में जीवन गुजारना चाहता था, वहीं अब उसे अपने किए गुनाह के लिए सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मेरे मां-बाप कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ते हैं, क्या करूं?

सवाल

मैं 25 साल की एक कुंआरी लड़की हूं. मेरे मांबाप को लगता है कि घर के बाहर हर कोई मुझे दबोचने के लिए ही बैठा है. इसी वजह से वे कभी मुझे अकेला नहीं छोड़ते हैं. यहां तक कि अपने कालेज की पढ़ाई के दौरान तक मेरी सहेलियां मेरे इर्दगिर्द ही रहती थीं, जिन से वे मेरी हर खबर रखते थे.

अब वे मुझे नौकरी भी नहीं करने देना चाहते हैं. मैं उन्हें लाख बार समझा चुकी हूं कि ऐसा कुछ नहीं है और घर के बाहर मैं अपनी हिफाजत खुद कर सकती हूं, पर उन के कान पर जूं तक नहीं रेंगती. इन सब बातों से घर पर तनाव का माहौल रहता है. मैं क्या करूं?

 जवाब

आप जैसी लाखोंकरोड़ों लड़कियां घर वालों के इस रवैए से दुखी रहती हैं और जिंदगी अपने मुताबिक नहीं जी पा रही हैं. इस की सब से बड़ी वजह समाज में लड़कियों की हिफाजत की गारंटी न होना. दूसरी वजह, मांबाप द्वारा लड़कियों को आजादी न देना है.

मांबाप को हमेशा यह डर सताता रहता है कि बेटी के साथ कुछ अनहोनी न हो जाए या फिर वह प्यारमुहब्बत के चक्कर में पड़ कर घर की इज्जत मिट्टी में न मिला दे. पर ये सब बकवास बातें हैं, जिन से लड़कियों को घुटन और अपनी पैदाइश पर अफसोस होता है.
आप को हिम्मत जुटा कर बगावत करना होगी, तभी नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ी हो पाएंगी, नहीं तो जिंदगीभर यों ही पिंजरे की पंछी बन कर फड़फड़ाती रहेंगी.

वैशाली ठक्कर सुसाइड: क्या अतीत में कोई कहानी है

टेलीविजन की सुप्रसिद्ध अदाकारा वैशाली ठक्कर ने  मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में अपने घर में कथित तौर पर फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. यह खबर देखते ही देखते चारों ओर फैल  जन चर्चा का विषय बन गई कि आखिर ऐसी क्या परिस्थितियां रही होंगी कि एक उभरते सितारे वैशाली ने हत्या की है.

इंदौर के पुलिस अधिकारी आरडी कानवा के मुताबिक आसपास के निवासियों की सूचना पर पुलिसकर्मियों ने साई बाग कालोनी में ठक्कर के घर का दरवाजा खोला, जहां वह कमरे में पंखे से लटकी हुई मिलीं.

वैशाली को तुरंत एमवाय अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. वैशाली के आवास से एक सुसाइड नोट भी मिला है जिस पर पुलिस जांच कर रही है.

दरअसल,टेलीविजन धारावाहिक ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ से अपने करिअर की शुरुआत करने वाली वैशाली ठक्कर ‘ससुराल सिमर का’ सीरियल में अभिनय करते हुए देश भर में अपनी पहचान बनाई.

वैशाली ठक्कर मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के महिदपुर कस्बे की रहने वाली थीं. वह पिछले तीन साल से इंदौर में थी.

सन् 2015 में वैशाली को स्टार प्लस का शो यह रिश्ता क्या कहलाता है में संजना का किरदार निभाने का मौका मिला था. और इस टेलीविजन शो से खूब प्रसिद्धि हासिल की थी. इस शो के बाद वैशाली ‘ये वादा रहा’, ‘ये है आशिकी’, ‘ससुराल सिमर का’, ‘सुपर सिस्टर’, ‘लाल इश्क और विष’ और ‘अमृत’ में नजर आईं. सबसे बड़ा सवाल यह सामने है कि वैशाली ठक्कर विगत वर्ष आत्महत्या करने वाले टेलीविजन एवं फिल्म के उभरते स्टार सुशांत सिंह राजपूत की अच्छी दोस्त रही थी सुशांत की आत्महत्या के बाद वैशाली ने भी आत्महत्या कर ली आखिर यह सुसाइड कनेक्शन क्या है.

अलग-अलग परिस्थितियों में ही सही संघर्ष के बाद ऊंची ऊंचाइयों में पहुंचने वाले सेलिब्रिटी और फिल्मी चेहरे आखिर आत्महत्या की  दिशा में क्यों बढ़ जाते हैं.

सुशांत सिंह से दोस्ती और सवाल

सच्चाई यह है कि विगत वर्ष अचानक आत्महत्या करने वाले सुशांत सिंह राजपूत की अच्छी दोस्त थीं वैशाली ठक्कर.

सुशांत की रहस्यमय मौत के बाद वैशाली ठक्कर ने  आवाज उठाई थी. यहां तक कि वैशाली ने सुशांत की मौत को मर्डर करार दिया था. वैशाली ने दावा किया था कि रिया चक्रवर्ती की वजह से ही सुशांत की मौत हुई है. अब लोगों को यकीन ही नहीं हो रहा है सुशांत की आत्महत्या पर सवाल खड़े करने वाली  वैशाली ठक्कर अब इस दुनिया में नहीं हैं. सचमुच यह एक चिंता का सबब है कि आखिर सुशांत की आत्महत्या अपना कड़ा नजरिया रखने वाली वैशाली को आखिर आत्महत्या का रास्ता क्यों अख्तियार करना पड़ा या फिर इसके पीछे भी कोई कहानी है.

कहानी रबर बैंड की रिव्यू: कंडोम खरीदने वाला छिछोरा नहीं बल्कि जेंटलमैन होता है

रेटिंग: ढाई स्टार

निर्माताः सारिका संजोत

सहनिर्माताः नरेश दुदानी

लेखक व निर्देशकः सारिका संजोत

कलाकारः मनीष रायसिंघन, अविका गोर,प्रतीक गांधी,राजेष जैस,अरूणा ईरानी, पेंटल, गौरव गेरा व अन्य

अवधिः दो घंटे

भारत में आज भी ‘कंडोम’ को टैबू समझा जाता है. हर पुरूष दवा की दुकान से कंडोम खरीदने में  झिझकता है. इस टैबू समझे जाने वाले विषय पर ही महिला फिल्मकार सारिका संजोत ने साहसिक कदम उठाते हुए एक अनूठी कहानी पेष की है.जिसमें मामला अदालत तक पहुॅचता है और नायक जज से पूछता है-‘जिस देष में कंडोम टैबू हो,हर लड़का या पुरूष उसे खरीदने में झिझकता हो,दुकानदार एक कागज मंे लपेटकर बेचता हो,जैसे कि वह स्मगलिंग कर रहा है.ऐसे में कोई इंसान उसकी एक्सपायरी डेट कैसे देखेगा?’तो एक महिला होते हुए भी सारिका संजोत ने महिलाओं की सुरक्षा व उनके स्वास्थ्य के हित को ध्यान में रखकर इस तरह के टैबू वाले विष् ाय पर फिल्म बनायी है.अगर सारिका ने पटकथा लेखन में मेहनत की होती तो इस विषय पर इससे भी बेहतरीन फिल्म बन सकती थी.

कहानीः

फिल्म की कहानी इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद अपने पिता चैधरी साहब की दुाकन संभालने वाले आकाश (मनीष रायसिंघन) के इर्द गिर्द घूमती है. जिसके दोस्त नन्नो वकालत पास करने के बावजूद पिता की दवा की दुकान पर बैठता है.नन्नो अपनी दुकान पर ‘कंडोम’ को रबरबैंड’ के नाम से बेचता है,जिससे कोई भी लड़का बिना हिचक से खरद सके. आकाष को अपने अमीर पिता के साथ रह रही काव्या (अविका गोर) से प्यार हो जाता है.दोनों की नोकझोंक के बाद दोस्ती, प्यार और फिर शादी होती है.दोनों अभी बच्चा नही चाहते हैं.इस बात से आकाष के माता पिता भी सहमत हैं.अब आकाष सुरक्षा के लिए अपने दोस्त नन्नो की दुकान पर कंडोम खरीदने जाता है,मगर वहां नन्नो की जगह उनके पिता बैठे होते हैं.झिझक के साथ वह कंडोम/ रबरबैंड खरीदकर लाता है.कहानी में मोड़ उस समय आता है,जब आकाश द्वारा कंडोम का इस्तेमाल करने के बावजूद काव्या गर्भवती हो जाती है.क्योंकि कंडोम फट गया था. इससे दोनों की जिंदगी में उथल पुथल मच जाती है.मगर सच जाने बगैर आकाश के मन में शक पैदा होता है कि काव्या के करीबी दोस्त रोहन (रोमिल चैधरी) का इस मामले में हाथ है. आकाश उस पर बेवफाई का इल्जाम लगाता है तो काव्या नाराज होकर और गुस्से में अपने मायके चली जाती है.बाद में जब आकाश को एहसास होता है कि खराब और एक्सपायरी डेट वाला कंडोम होने के कारण वह सुरक्षा देने में सफल नहीं हुआ था,तब आकाश कंडोम बनाने वाली कंपनी ‘वी केअर’ पर अदालत में मुकदमा दर्ज करवाता है. यहां से फिल्म की एकदम नई कहानी शुरू होती है. इस केस को उसका करीबी दोस्त नन्नो (प्रतीक गांधी) ही लड़ता है.जबकि बचाव पक्ष की वकील सबसे विख्यात एडवोकेट करुणा राजदान (अरूणा ईरानी) होती है, जो अब तक एक केस भी नहीं हारी.जहां मजेदार बहस के साथ ही हर इंसान के अंदर एक जागरूकता लाने वाली बहस होती है.आकाष द्वारा अदालत के अंदर जज से पूछे गए सवाल के चलते हर इंसान बहुत कुछ सीख सकेगा .बहरहाल,जज ‘कंडोम’ बनाने वाली कंपनी को दोषी ठहराते हैं.

लेखन व निर्देशनः

फिल्मकार सारिका संजोत की बतौर लेखक व निर्देषक यह पहली फिल्म है.महिला होते हुए भी पहले प्रयास में ही एक बोल्ड विषय को उठाकर उन्होने साहस का परिचय दिया है.मगर इसकी कमजोर कड़ी इसकी पटकथा व संवाद हैं.फिल्म केकुछ संवाद अषेभनीय हैं. मसलन -अदालत के अंदर अपनी वरिष्ठ वकील अरूणा ईरानी से प्रतीक गांधी से बातचीत के संवाद अति अषोभनीय हैं.लेकिन ‘कंडोम खरीदने वाला छिछोरा नहीं बल्कि जेंटलमैन होता है.’अथवा ‘‘काव्या है,तभी तो कांफिडेंस है.‘‘जैसे कुछ संवाद अवष्य फिल्म के संदेष को आगे बढ़ाते हैं.फिल्म की गति काफी धीमी है.मगर उन्होने ‘सुरक्षित सेक्स’ पर चर्चा के महत्व को भी उकेरा है.

पूरी फिल्म बनारस में फिल्मायी गयी हैं.फिल्मसर्जक ने इस फिल्म को वास्तविक अदालत के अंदर ही फिल्माते हुए पूरी तरह से यथार्थपरक ढंग से ही फिल्माया है.इससे दर्षकों को इस बात का अहसास होता है कि छोटे षहरों की अदालतों की हालत कैसी है और वहंा किस ढंग से काम होता है.

महिला निर्देशिक होते हुए भी जिस तरह से उन्होने टैबू समझे जाने वाले व संजीदा विषय को हल्के फुल्के ढंग से पेश किया है. उसके चलते एक बार फिल्म देखी जा सकती है.

फिल्मकार ने दवा कंपनियों ंव डाक्टरांे की मिलीभगत का भी संुदर चित्रण किया है. दवा कंपनियां किस तरह डॉक्टरों को कमीशन देकर आम लोगों की जिंदगी में उथल पुथल लाने व उनकी जिंदगी के साथ खिलवाड़ करती है,इसे हल्के फुल्के ढंग से मगर बेहतरीन तरीके से उकेरा गया है.फिल्म इस बारे में भी बात करती है कि दवा कंपनियां अपना मुनाफा बढ़ाने क ेलिए किस तरह ‘एक्सपायरी डेट’ वाली दवाएं बाजार तक पहुंचाती हैं. इसमें डॉक्टर , मेडिकल स्टोर वाले और दवा कम्पनी से जुड़े लोग किस तरह शामिल होते हैं,इसका बेहतरीन चित्रण है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है तो न चाहते हुए भी पत्नी के गर्भवती हो जाने पर जिस पीड़ा से आकाष जैसे युवक गुजरते हैं,उसे तथा अपनी पत्नी की व्यथा के चलते जो कुछ आकाष पर गुजरता है, उस मनःस्थिति को ‘ससुराल सिमर का’ फेम अभिनेता मनीष रायसिंघन ने अपने अभिनय से जीवंतता प्रदान की है.

आकाष के दोस्त नन्नो के किरदार में प्रतीक गांधी ने एकदम नेचुरल अभिनय किया है. वह अपनी प्रतिभा को लोहा इससे पहले ‘स्कैम 92’ में मनवा चुके हैं.काव्या क ेकिरदार में ‘बालिका वधू’ फेम अविका गोर का अभिनय ठीक ठाक है.अविका और मनीष् ा रायसिंघन की केमिस्ट्री और उनके बीच ट्यूनिंग काफी अच्छी है. अरुणा ईरानी का काम बतौर वकील काबिल ए तारीफ है.

Diwali 2022: जीवनसाथी के साथ स्वस्थ और मस्त दीवाली

रोशनी का त्योहार दीवाली यानी चारों ओर जगमगाहट, घर की खास साजसजावट की तैयारियां, दोस्तों, रिश्तेदारों के लिए उपहारों की खरीदारी, खानपान में सबकुछ खास. आप कहेंगे ये सब तो हम हर साल ही करते हैं, इस में नया क्या है. आप ने सही कहा, ये सब तो आप हर साल ही करते हैं. इसीलिए इस दीवाली इस सब के अलावा आप की दीवाली को स्वस्थ और मस्त बनाने के लिए हम आप को कुछ ऐसा करने को कह रहे हैं कि जिस से आप की दीवाली रोशन होने के साथसाथ यादगार भी बन जाएगी. आइए आप को बताते हैं कि आप को क्या करना और कैसे करना है.

दिन को करें रोशन

दीवाली की सारी तैयारियों, मेहमानों की आवभगत और अन्य कामों के बीच आप को निकालने हैं अपने लिए दिन के 2 घंटे और इस 2 घंटे में आप के साथ सिर्फ और सिर्फ होंगे आप के पति. उस दौरान आप दोनों के बीच और कोई नहीं होगा. यकीन मानिए इन 2 घंटों में बिताए गए एकदूसरे के साथ के अंतरंग पल हमेशा के लिए यादगार पल बन जाएंगे. दूसरे लोगों के लिए तो दीवाली रात को रोशन होती है लेकिन आप दोनों के लिए आप का दिन भी एकदूसरे के साथ बिताए खुशनुमा लमहों से रोशन हो जाएगा.

आइए, जानते हैं अंतरंग पलों के इस खास साथ के लिए आप को क्या खास तैयारी करनी है :

डैकोरेशन :  वह जगह जहां आप को एकदूसरे के साथ 2 घंटे बिताने हैं, दिन को रोशन करना है, खास होना चाहिए, इसलिए उसे डैकोरेट करें.

रोशनी से जगमगाए कमरा : पूरे कमरे को सैंटेड ऐरोमैटिक कैंडल्स की रोशनी से सराबोर कर दें. कमरे के हर कोने को जगमगाती कैंडल्स से सजाएं. आप चाहें तो कमरे में हार्टशेप्ड पेपर लैंटर्न भी लगा सकते हैं. जिस से छन कर आती रोशनी आप के प्यार भरे पलों को और रोमांच से भर देगी.

महके कमरे का हर कोना : कमरे को रोमानी बनाने के लिए कमरे को ताजे लाल गुलाब, कारनेशन व रजनीगंधा के फूलों से सजाएं. इस महकते कमरे को देख कर आप को यकीनन अपनी सुहागरात यानी फर्स्ट नाइट याद आ जाएगी और साथ ही याद आ जाएंगे पहले के एकदूसरे के साथ बिताए अंतरंग पल.

फर्निशिंग : कमरे के बैडकवर, परदे, कुशंस सभी हों सिंबल औफ लव वाले यानी जिन्हें देखते ही आप एकदूसरे में खो जाएं. रैड हार्टशेप्ड वाले कुशंस, रैड इरोटिक इमेजवाला बैडकवर आप का मूड बनाने करने में मदद करेगा.

खुद भी चकमें दमकें : घर की साजसजावट तो आप ने अच्छे से कर ली, अब बारी है आप दोनों के सजनेसंवरने की. इन खास पलों के लिए खुद का सौंदर्यीकरण करवाएं. चाहें तो पार्लर या स्पा जा कर खुद को रिफ्रैश करें. इस से आप नई ताजगी से भरपूर होंगे. इन सब तैयारियों से आप दोनों का प्यार एकदूसरे के लिए दोगुना हो जाएगा और आप दोनों एकदूसरे की खूबसूरती में खो जाएंगे. साथ ही, उन खास पलों के लिए हौट सैक्सी लिंगरी की शौपिंग करना न भूलें.

फूड से बनाएं मूड :  उन 2 घंटों के साथ के लिए कुछ स्पैशल फूड, जैसे चौकलेट, चौकलेट केक, आइसक्रीम, रंगबिरंगे मौकटेल तैयार रखें. ध्यान रहे, खाने की सभी चीजें ऐसी हों कि आप दोनों के दिल की बात फूड के जरिए एकदूसरे तक पहुंच जाए और आप उन पलों का भरपूर मजा ले सकें.

रोमांटिक नोट्स :  एकदूसरे के साथ इन पलों को रोमांटिक बनाने के लिए कमरे में जगहजगह रंगबिरंगे पेपर्स पर एकदूसरे के लिए रोमांटिक मैसेजेस वाले लवनोट्स लिख कर रख दें. इन्हें पढ़ कर प्यार के ये पल और मस्तीभरे हो जाएंगे. ऐसा कर के एकदूसरे को सरप्राइज करें. ये लवनोट्स आप दोनों को सैक्सुअल प्लेजर देने का काम करेंगे.

एकदूसरे में खो जाएं : सामान्य दिनों से अलग आप ने अपने मिलन की खास तैयारी तो कर ली जहां कोई आप को डिस्टर्ब नहीं करेगा. आप दोनों पूरे 2 घंटे तक एकदूसरे के साथ रहेंगे. अब इन लमहों को खास बनाने के लिए अपनाएं ये टिप्स-

शुरुआत करें छेड़छाड़ से :  सैक्सोलौजिस्ट मानते हैं कि जहां प्यार में छेड़छाड़ होती है वहां प्यार अधिक गहरा होता है. इसलिए सैक्स की शुरुआत छेड़छाड़ और फ्लर्टिंग से करें ताकि सैक्स का पूरा फायदा उठाया जा सके. पतिपत्नी के बीच सैक्स से पहले फ्लर्टिंग उन के उत्साह को बढ़ाती है जिस से सैक्स करते समय बोरियत नहीं होती और नयापन बना रहता है. छेड़छाड़ के दौरान पत्नी को चाहिए कि वह पति को अपनी अदाओं से रिझाए ताकि पति खुल कर इस मौके का लुत्फ ले सके. आप चाहें तो इस दौरान अपने खुशनुमा सैक्स पलों को याद कर सकते हैं या फिर कोई शौर्ट रोमांटिक मूवी साथ में देख सकते हैं ताकि सैक्स के लिए मूड बन सके. ध्यान रहे, इस दौरान आप दोनों का ध्यान पूरी तरह एकदूसरे पर ही रहे व आप इधरउधर की बातों के बजाय सिर्फ और सिर्फ सैक्स व रोमांस की बातें करें. सैक्स गेम खेलें और खुल कर मजा लें. आंखों ही आंखों में बातें करें ताकि साथ में बिताए ये पल हमेशा के लिए आप दोनों की यादों में बस जाएं.

हर पल को रोमानी बनाएं : चूंकि आप दोनों एकदूसरे से अनजान नहीं हैं, इसलिए बिना समय गंवाए एकदूसरे के जिस्म के हौट पार्ट्स के साथ खेलें और प्यार के उन पलों को यादगार बनाएं. प्यार के उन पलों में जब आप एकदूसरे के साथ हों तो ध्यान रखें आप किसी और चीज के बारे में न सोचें और जीभर एकदूसरे को सैक्सुअल प्लेजर दें.

दीवाली के दिन 2 घंटों का प्यारभरा यह साथ न केवल आप के आपसी रिश्तों को खुशनुमा बनाएगा बल्कि आप की दीवाली को यादगार भी बना देगा. दीवाली को नए तरह से मनाने का यह तरीका आप दोनों की बोरियतभरी जिंदगी में प्यार की फुलझडि़यां जलाएगा और आप के सैक्सुअल रिश्तों को नएपन की मिठास से भरेगा.

तो फिर, तैयार हैं न आप, दीवाली की रात में, नहींनहीं दिन में, हमतुम एक कमरे में बंद हों… गुनगुनाते हुए स्पैशल तरीके से एकदूसरे के साथ दीवाली मनाने के

लिए. हमें पूरा विश्वास है कि इस अनोखे तरीके से दीवाली मनाने के बाद आप हमें मन ही मन थैंक्स जरूर कहेंगे.

Diwali 2022: अबकी दीवाली मनाएं कुछ हट के

संध्या हर साल दीवाली का त्योहार अपने परिवार के साथ ही मनाती थी. वही शाम को पूजा-अर्चना, फिर घर-बाहर की दीया-बत्ती, पटाखे, खाना-पीना, पड़ोसियों-दोस्तों में मिठाईयों का आदान-प्रदान और बस लो मन गयी दीवाली. एक बारं संध्या कम्पनी के काम से लालपुर गयी थी. जिस औफिस में उसको काम था, उसके बगल वाली बिल्डिंग के लौन में उसने बहुत सारे नन्हें-नन्हें बच्चों को खेलते देखा था. पहले तो उसको लगा कि कोई छोटा-मोटा स्कूल है, मगर वहां लगे एक धुंधले से बोर्ड पर जब उसकी नजर पड़ी तो पता चला कि वह एक अनाथाश्रम है. लंच टाइम में फ्री होने पर संध्या उस अनाथाश्रम को देखने की इच्छा से भीतर चली गयी. दरअसल बच्चों के प्रति उसका खिचांव ही उसे वहां ले गया. बरसों से उसकी कोख सूनी थी. शादी के दस साल तक एक बच्चे की चाह में उसने शहर के हर डौक्टर, हर क्लीनिक के चक्कर लगा डाले थे, हर तरह की पूजा-पाठ कर ली थी, मगर उसकी मुराद पूरी नहीं हुई. धीरे-धीरे उसने अपना मन काम में लगा दिया और उसकी मां बनने की इच्छा कहीं भीतर दफन हो गयी. मगर उस दिन उन छोटे-छोटे बच्चों को लॉन में खेलता देख उसकी कामना फिर जाग उठी.

अनाथाश्रम में जीरो से सात सात तक के कोई पच्चीस बच्चे थे. बिन मां-बाप के बच्चे. जिन्हें पता ही नहीं कि परिवार क्या होता है. मां-बाप का प्यार क्या होता है. वे तो यहां बस आयाओं के रहमो-करम पर पल रहे थे. उनके इशारे पर उठते-बैठते, सोते-जागते और खेलते-खाते थे. संध्या ने देखा कि कुछ बच्चे यहां-वहां पड़े रो रहे थे, मगर उनको उठा कर छाती से चिपकाने वाला कोई नहीं था. आयाएं अपनी बातों में मशगूल थीं. संध्या ने अनाथाश्रम चलाने वाले के बारे में पूछा तो पता चला कि वह शनिवार को आते हैं और दोपहर तक रहते हैं. बाकी दिनों में अनाथाश्रम का सारा जिम्मा वहां काम करने वाली चार आयाएं ही उठाती थीं.

उस दिन के बाद से संध्या अक्सर ही उस अनाथाश्रम में जाने लगी थी. वह जगह उसके घर से ज्यादा दूर नहीं थी. एक शनिवार जाकर वह अनाथाश्रम के मालिक से भी मिल आयी थी और उन्होंने संध्या के वहां आने और बच्चों के साथ वक्त गुजारने पर कोई आपत्ति भी नहीं जाहिर की थी. दरअसल संध्या एक बड़ी कम्पनी में अच्छी पोस्ट पर काम कर रही थी. जिसका हवाला देने पर अनाथाश्रम के मालिक पर काफी प्रभाव पड़ा था. जब संध्या ने उनसे कहा कि वह बच्चों की जरूरत की चीजें डोनेट करना चाहती है, तो यह सुनकर वह खुश हो गये थे. संध्या जल्दी ही उन नन्हें-नन्हें बच्चों के साथ घुलमिल गयी थी. संडे की शाम तो वह उन बच्चों के लिए ही खाली रखने लगी थी और बच्चे भी उसके आने का इंतजार करते थे क्योंकि वह जब भी आती थी उनके लिए चॉकलेट्स, बिस्कुट, फल और चिप्स आदि के ढेर सारे पैकेट्स लेकर आती थी.

दीवाली आने वाली थी. संध्या ने अबकी दीवाली अलग तरह से मनाने का फैसला किया था. अपनी योजना से उसने जब अपने पति और परिवार के दूसरे सदस्यों को अवगत कराया तो वह भी खुशी-खुशी उसके फैसले में शामिल हो गये. योजना था कि इस बार की दीवाली सपरिवार अनाथाश्रम के बच्चों के साथ मनाएंगे. संध्या की ननद तो उनकी योजना के बारे में सुनकर खुशी से नाच उठी. हर साल एक जैसी दीवाली मनाने से यह योजना बहुत हट कर थी. दीवाली के दो दिन पहले ही संध्या और उसकी ननद बाजार से ढेर सारे पटाखे, दीये, मिठाइयां, चौकलेट्स, फल आदि खरीद लाये थे. दीवाली के साथ-साथ जाड़ा भी दस्तक दे देता है, इसको देखते हुए संध्या ने छोटी-छोटी पच्चीस दुलाइयां भी खरीद ली थीं. वहां की आयाओं के लिए साड़ियां और मिठाइयां अलग से पैक करवा ली थीं. घर के दूसरे सदस्यों ने भी संध्या की योजना में खूब हाथ बंटाया. दीवाली वाले दिन जब संध्या की सास ने उसके सामने एक बड़ा सा बैग खोला तो उसमें चार-पांच कम्बल, नन्हें-नन्हें मोजे, टोपे, स्वेटर्स, तौलिये, पाउडर के डिब्बे, सोप वगैरह देखकर तो संध्या खुशी के मारे अपनी सास के गले लग गयी. इन सब चीजों की तो उन बच्चों को बहुत जरूरत थी. पता नहीं मां और बाबू जी कब चुपके-चुपके जाकर इतनी सारी खरीदारी कर आये थे. संध्या के पति ने भी कमाल कर दिया. शौपिंग से हमेशा दूर रहने वाले पतिदेव टोकरी भर के खिलौने खरीद लाए थे.

दीवाली वाले दिन शाम को तीन बजे संध्या का पूरा परिवार सारे सामान के साथ अनाथाश्रम की ओर रवाना हो गया. अनाथाश्रम के गेट पर जैसे ही संध्या की गाड़ी रुकी, अन्दर शोर सा मच गया – संध्या दीदी आ गयीं, संध्या दीदी आ गयीं चिल्लाते एक आया भागती हुई गेट पर पहुंच गयी. उसके पीछे कई बच्चे भी भागते आये. सारे आकर संध्या से लिपट गये. संध्या के सास-ससुर, पति और ननद यह नजारा देखकर भावुक हो उठे. संध्या ने सबका परिचय वहां के लोगों से करवाया. उस दिन अनाथाश्रम के मालिक भी अपने परिवार के साथ वहां उपस्थित थे. सबने मिलकर पूरे अनाथाश्रम में दीये और मोमबत्तियां लगायीं. बच्चे तो इतने सारे लोगों को अपने बीच देख कर बेहद उत्साहित थे. संध्या ने सारे बच्चों को इकट्ठा करके एक मजेदार कहानी भी सुनायी. फिर कई तरह के खेल खेले गये. बच्चों को जब उनके मनपसंद तोहफे मिले तो वह खुशी से झूम उठे. किसी को गुड़िया, किसी को बत्तख, किसी को बंदर तो किसी को हाथी. बच्चे एक दूसरे को अपने खिलौने दिखाते घूम रहे थे. आज पूरा अनाथाश्रम खुशी के अलग ही रंग में रंगा हुआ था. बच्चे संध्या को छोड़ते ही न थे. कोई उसकी गोद में बैठा चौकलेट खा रहा था तो कोई उसकी पीठ पर झूल रहा था. संध्या की ननद भी जब से आयी थी उनके साथ खेलने में मशगूल थी. शाम को सबने एक साथ मिलकर दीवाली की पूजा की. फिर पटाखों का डिब्बा निकाला गया और बाहर के लौन में खूब जम कर पटाखे छुड़ाए गये. खूब रोशनी की गयी. बड़े बच्चों के हाथों में फुलझड़ियां भी दी गयीं. बच्चों को मिठाइयां, फल और चौकलेट्स बांटे गये. सच पूछो तो अबकी दीवाली संध्या के परिवार के लिए ही नहीं, बल्कि अनाथाश्रम के बच्चों, आयाओं और उसके मालिक के लिए भी बिल्कुल नयी और अनोखी थी.

रात को सबने इकट्ठा होकर खाना बनवाने में मदद की और खाने के बाद जब संध्या ने बच्चों के लिए लाए जरूरी सामान का बैग खोला तो अनाथाश्रम के मालिक भावुक होकर बोल पड़े – बहनजी, अगर शहर के कुछ अन्य लोग भी आपकी तरह का दिल रखते तो यह बच्चे अनाथ न कहलाते. हम अपनी हैसियत भर जो हो सकता है, इन बच्चों के लिए करते हैं मगर वह कम ही पड़ता है. जिस तरह आप इन बच्चों से जुड़ी हैं, इनको अपनापन दिया है, इनकी जरूरतों को समझा है, ऐसा कोई कोई ही समझता है. अपना त्योहार हमारे इन बच्चों के साथ मनाना बहुत बड़ी बात है और आप इनके लिए जो तोहफे और जरूरत का सामान लायी हैं वह हमारे लिए बहुत बड़ी मदद है.

तब से संध्या हर साल दीवाली और होली इन्हीं नन्हें-मुन्नों के साथ मनाती है और इसमें हर साल उसके परिवार वाले भी शामिल होते हैं. क्या आपका दिल नहीं चाहता रुटीन से हट कर कुछ करने का? किसी के चेहरे पर मुस्कान बिखेरने का? सच्ची और असली खुशी पाने का? अगर करता है तो अपने खींचे हुए दायरों से बाहर निकलें. घर से बाहर निकलें. अपने आसपास नजर डालें. कितने वृद्धाश्रम हैं जहां मौत की कगार पर बैठे बूढ़ों की बुझती आंखों में आप अबकी त्यौहार में खुशियों की चमक पैदा कर सकते हैं. कितने अनाथाश्रम हैं जहां बच्चों को एक पैकेट फुलझड़ी की देकर आप उनकी खुशियों को आसमान पर पहुंचा सकते हैं. अगर यह न कर सकें तो देखें अपनी कॉलोनी के गार्ड को, अपनी मेड को, अपने रिक्शेवाले को, अपने ड्राइवर को… क्या इस दीवाली उनके बच्चों के लिए छोटा सा उपहार देकर आप उनके परिवार में थोड़ी सी खुशी भेज सकते हैं… अगर हां, तो इतना ही कर दीजिए… मगर इस दीवाली कुछ हट कर जरूर करिये…

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