प्यार का ऐसा भयानक अंजाम आपने सोचा न होगा

नींद न आने की वजह से सुशीला बेचैनी से करवट बदल रही थी. जिंदगी ने उसे एक ऐसे मुकाम पर ला खड़ा किया था, जहां वह पति प्रदीप से जुदा हो सकती थी. चाहत हर किसी की कमजोरी होती है और जब कोई इंसान किसी की कमजोरी बन जाता है तो वह उस से बिछुड़ने के खयाल से ही बेचैन हो उठता है. सुशीला और प्रदीप का भी यही हाल था. प्रदीप उसे कई बार समझा चुका था, फिर भी सुशीला उस के खयालों में डूबी रातरात भर बेचैनी से करवट बदलती रहती थी. उस रात भी कुछ वैसा ही था. रात में नींद न आने की वजह से सुबह भी सुशीला के चेहरे पर बेचैनी और चिंता साफ झलक रही थी. उसे परेशान देख कर प्रदीप ने उसे पास बैठाया तो उस ने उसे हसरत भरी निगाहों से देखा. उस की आंखों में उसे बेपनाह प्यार का सागर लहराता नजर आया.

कुछ कहने के लिए सुशीला के होंठ हिले जरूर, लेकिन जुबान ने साथ नहीं दिया तो उस की आंखों में आंसू उमड़ आए. प्रदीप ने गालों पर आए आंसुओं को हथेली से पोंछते हुए कहा, ‘‘सुशीला, तुम इतनी कमजोर नहीं हो, जो इस तरह आंसू बहाओ. हम ने कसम खाई थी कि हर पल खुशी से बिताएंगे और एकदूसरे का साथ नहीं छोड़ेंगे.’’

‘‘साथ ही छूटने का तो डर लग रहा है मुझे.’’ सुशीला ने झिझकते हुए कहा.

‘‘सच्चा प्यार करने वालों की खुशियां कभी अधूरी नहीं होतीं सुशीला.’’

‘‘मैं तुम्हारे बिना जिंदा नहीं रह सकती प्रदीप. तुम मेरी जिंदगी हो. यह जिस्म मेरा है, दिल मेरा है, लेकिन मेरे दिल की हर धड़कन तुम्हारी नजदीकियों की मोहताज है.’’

सुशीला के इतना कहते ही प्रदीप तड़प उठा. अपनी हथेली उस के होंठों पर रख कर उस ने कहा, ‘‘मुझे कुछ नहीं होगा सुशीला. मैं तुम्हें सारे जहां की खुशियां दूंगा. तुम्हारे चेहरे पर उदासी नहीं, सिर्फ खुशी अच्छी लगती है, इसलिए तुम खुश रहा करो. इस फूल से खिलते चेहरे ने मुझे हमेशा हिम्मत दी है, वरना हम कब के हार चुके होते.’’

‘‘मैं ने सुना है कि मेरे घर वालों ने धमकी दी है कि वे हमें जिंदा नहीं छोड़ेंगे?’’ सुशीला ने चिंतित हो कर पूछा.

‘‘अब तक कुछ नहीं हुआ तो आगे भी कुछ नहीं होगा, इसलिए तुम बेफिक्र रहो. अब तो हमारे प्यार की एक और निशानी जल्द ही दुनिया में आ जाएगी. हम हमेशा इसी तरह खुशी से रहेंगे.’’ प्रदीप ने कहा.

पति के कहने पर सुशीला ने बुरे खयालों को दिल से निकाल दिया. नवंबर, 2016 के पहले सप्ताह की बात थी यह. अगर सुशीला ने प्रदीप से प्यार न किया होता तो उसे यह डर कभी न सताता. प्यार के शिखर पर पहुंच कर दोनों खुश थे. यह बात अलग थी कि इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने काफी विरोध का सामना किया था.

उन्होंने ऐसी जगह प्यार का तराना गुनगुनाया था, जहां कभी सामाजिक व्यवस्था तो कभी गोत्र तो कभी झूठी शान के लिए प्यार को गुनाह मान कर अपने ही खून के प्यासे बन जाते हैं.

प्रदीप हरियाणा के सोनीपत जिले के खरखौदा कस्बे के बरोणा मार्ग निवासी धानक समाज के सुरेश का बेटा था. वह मूलरूप से झज्जर जिले के जसौर खेड़ी के रहने वाले थे, लेकिन करीब 17 साल पहले आ कर यहां बस गए थे. उन के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा 2 बेटे एवं एक बेटी थी. बच्चों में प्रदीप बड़ा था. सुरेश खेती से अपने इस परिवार को पाल रहे थे.

3 साल पहले की बात है. प्रदीप जिस कालेज में पढ़ता था, वहीं उस की मुलाकात नजदीक के गांव बिरधाना की रहने वाली सुशीला से हुई. सुशीला जाट बिरादरी के किसान ओमप्रकाश की बेटी थी. दोनों की नजरें चार हुईं तो वे एकदूसरे को देखते रह गए. इस के बाद जब भी सुशीला राह चलती मिल जाती, प्रदीप उसे हसरत भरी निगाहों से देखता रह जाता.

सुशीला खूबसूरत थी. उम्र के नाजुक पायदान पर कदम रख कर उस का दिल कब धड़कना सीख गया था, इस का उसे खुद भी पता नहीं चल पाया था. वह हसीन ख्वाबों की दुनिया में जीने लगी थी. प्रदीप उस के दिल में दस्तक दे चुका था.

सुशीला समझ गई थी कि खुद उसी के दिल की तरह प्रदीप के दिल में भी कुछ पनप रहा है. दोनों के बीच थोड़ी बातचीत से जानपहचान भी हो गई थी. यह अलग बात थी कि प्रदीप ने कभी उस पर कुछ जाहिर नहीं किया था. वक्त के साथ आंखों से शुरू हुआ प्यार उन के दिलों में चाहत के फूल खिलाने लगा था.

एक दिन सुशीला बाजार गई थी. वह पैदल ही चली जा रही थी, तभी उसे अपने पीछे प्रदीप आता दिखाई दिया. उसे आता देख कर उस का दिल तेजी से धड़कने लगा. वह थोड़ा तेज चलने लगी. प्रदीप के आने का मकसद चाहे जो भी रहा हो, लेकिन सामाजिक लिहाज से यह ठीक नहीं था.

प्रदीप ने जब सुशीला का पीछा करना काफी दूरी तक नहीं छोड़ा तो वह रुक गई. उसे रुकता देख कर प्रदीप हिचकिचाया जरूर, लेकिन वह उस के निकट पहुंच गया. सुशीला ने नजरें झुका कर शोखी से पूछा, ‘‘मेरा पीछा क्यों कर रहे हो?’’

‘‘तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है?’’ प्रदीप ने सवाल के जवाब में सवाल ही कर दिया.

‘‘इतनी देर से पीछा कर रहे हो, इस में लगने जैसा क्या है.’’

‘‘तुम से बातें करने का दिल हो रहा था मेरा.’’ प्रदीप ने कहा.

‘‘इस तरह मेरे पीछे मत आओ, किसी ने देख लिया तो…’’ सुशीला ने कहा.

प्रदीप उस दिन जैसे ठान कर आया था, इसलिए इधरउधर नजरें दौड़ा कर उस ने कहा, ‘‘अगर किसी से 2 बातें करने की तड़प दिल में हो तो रहा नहीं जाता सुशीला. तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. तुम पहली लड़की हो, जिसे मैं प्यार करने लगा हूं.’’

सुशीला ने उस की बातों का जवाब नहीं दिया और मुसकरा कर आगे बढ़ गई. हालांकि प्रदीप की बातों से वह मन ही मन खुश हुई थी. वह भी प्रदीप को चाहने लगी थी. उस रात दोनों की ही आंखों से नींद गायब हो गई थी.

इस के बाद उन की मुलाकात हुई तो सुशीला प्रदीप को देख कर नजरों में ही इस तरह मुसकराई, जैसे दिल का हाल कह दिया हो. इस तरह प्यार का इजहार होते ही उन के बीच बातों और मुलाकातों का सिलसिला चल निकला. प्यार के पौधे को रोपने में भले ही वक्त लगता है, लेकिन वह बढ़ता बहुत तेजी से है.

यह जानते हुए भी कि दोनों की जाति अलगअलग हैं, वे प्यार के डगर पर चल निकले. सुशीला प्रदीप के साथ घूमनेफिरने लगी. प्यार अगर दिल की गहराइयों से किया जाए तो वह कोई बड़ा गुला खिलाता है. दोनों का यह प्यार वक्ती नहीं था, इसलिए उन्होंने साथ जीनेमरने की कसमें भी खाईं.

समाज प्यार करने वालों के खिलाफ होता है, यह सोच कर उन के दिलों में निराशा जरूर काबिज हो जाती थी. यही सोच कर एक दिन मुलाकात के क्षणों में सुशीला प्रदीप से कहने लगी, ‘‘मैं हमेशा के लिए तुम्हारी होना चाहती हूं प्रदीप, लेकिन शायद ऐसा न हो पाए.’’

‘‘क्यों?’’ कड़वी हकीकत को जानते हुए भी प्रदीप ने अंजान बन कर पूछा.

‘‘मेरे घर वाले शायद कभी तैयार नहीं होंगे.’’

‘‘बस, तुम कभी मेरा साथ मत छोड़ना, मैं तुम्हारे लिए हर मुश्किल पार करने को तैयार हूं.’’

‘‘यह साथ तो अब मरने के बाद ही छूटेगा.’’ सुशीला ने प्रदीप से वादा किया.

प्यार उस शय का नाम है, जो कभी छिपाए नहीं छिपता. सुशीला के घर वालों को जब बेटी के प्यार के बारे में पता चला तो घर में भूचाल आ गया. ओमप्रकाश के पैरों तले से यह सुन कर जमीन खिसक गई कि उन की बेटी किसी अन्य जाति के लड़के से प्यार करती है. उन्होंने सुशीला को आड़े हाथों लिया और डांटाफटकारा, साथ ही उस की पिटाई भी की. उन्होंने जमाना देखा था, इसलिए उस पर पहरा लगा दिया.

शायद उन्हें पता नहीं था कि सुशीला का प्यार हद से गुजर चुका है. इस से पहले कि कोई ऊंचनीच हो, ओमप्रकाश ने उस के लिए लड़के की तलाश शुरू कर दी. सुशीला ने दबी जुबान से मना किया कि वह शादी नहीं करना चाहती, लेकिन उस की किसी ने नहीं सुनी.

प्यार करने वालों पर जितने अधिक पहरे लगाए जाते हैं, उन की चाहत का सागर उतना ही उफनता है. सुशीला के साथ भी ऐसा ही हुआ. एक दिन किसी तरह मौका मिला तो उस ने प्रदीप को फोन किया. उस से संपर्क न हो पाने के कारण वह भी परेशान था.

फोन मिलने पर सुशीला ने डूबे दिल से कहा, ‘‘मेरे घर वालों को हमारे प्यार का पता चल गया है प्रदीप. अब शायद मैं तुम से कभी न मिल पाऊं. वे मेरे लिए रिश्ता तलाश रहे हैं.’’

यह सुन कर प्रदीप सकते में आ गया. उस ने कहा, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता सुशीला. तुम सिर्फ मेरा प्यार हो. तुम जानती हो, अगर ऐसा हुआ तो मैं जिंदा नहीं रहूंगा.’’

‘‘उस से पहले मैं खुद भी मर जाना चाहती हूं. प्रदीप जल्दी कुछ करो, वरना…’’ सुशीला ने कहा और रोने लगी.

प्रदीप ने उसे हौसला बंधाते हुए कहा, ‘‘मुझे सोचने का थोड़ा वक्त दो सुशीला. पहले मैं अपने घर वालों को मना लूं.’’

दोनों के कई दिन चिंता में बीते. प्रदीप ने अपने घर वालों को दिल का राज बता कर उन्हें सुशीला से विवाह के लिए मना लिया. जबकि सुशीला का परिवार इस रिश्ते के सख्त खिलाफ था. उन्होंने उस पर पहरा लगा दिया था. मारपीट के साथ उसे समझाने की भी कोशिश की गई थी, लेकिन वह प्रदीप से विवाह की जिद पर अड़ी थी.

सुशीला बगावत पर उतर आई थी, क्योंकि प्रदीप के बिना उसे जिंदगी अधूरी लग रही थी. कई दिनों की कलह के बाद भी जब वह नहीं मानी तो उसे घर वालों ने अपनी जिंदगी से बेदखल कर के उस के हाल पर छोड़ दिया.

प्रदीप ने भी सुशीला को समझाया, ‘‘प्यार करने वालों की राह आसान नहीं होती सुशीला. हम दोनों शादी कर लेंगे तो बाद में तुम्हारे घर वाले मान जाएंगे.’’

एक दिन सुशीला ने चुपके से अपना घर छोड़ दिया. पहले दोनों ने कोर्ट में, उस के बाद सादे समारोह में शादी कर के एकदूसरे को जीवनसाथी चुन लिया. इसी के साथ परिवार से सुशीला के रिश्ते खत्म हो गए.

सुशीला और प्रदीप ने प्यार की मंजिल पा ली थी. इस बीच प्रदीप ने एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली. एक साल बाद प्यार की निशानी के रूप में सुशीला ने बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उन्होंने प्रिया रखा. वह 3 साल की हो चुकी थी. अब एक और खुशी उन के आंगन में आने वाली थी.

इतने दिन हो गए थे, फिर भी एक अंजाना सा डर सुशीला के दिल में समाया रहता था. इस की वजह थी उस के परिवार वाले. उन से उसे धमकियां मिलती रहती थीं. उस दिन भी सुशीला इसीलिए परेशान थी. सुशीला के घर वालों की नाराजगी बरकरार थी.

अपने रिश्ते को उन्होंने सुशीला से पूरी तरह खत्म कर लिया था. एक बार प्रदीप की होने के बाद सुशीला भी कभी अपने मायके नहीं गई थी. उसे मायके की याद तो आती थी, लेकिन मजबूरन अपने जज्बातों को दफन कर लेती थी. उस ने सोच लिया था कि वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा.

प्रदीप और सुशीला अपने घर में नए मेहमान के आने की खुशी से खुश थे, लेकिन जिंदगी में खुशियों का स्थाई ठिकाना हो, यह जरूरी नहीं है. कई बार खुशियां रूठ जाती हैं और वक्त ऐसे दर्दनाक जख्म दे जाता है, जिन का कोई मरहम नहीं होता. सुशीला और प्रदीप की भी खुशियां कितने दिनों की मेहमान थीं, इस बात को कोई नहीं जानता था.

18 नवंबर, 2016 की रात की बात है. प्रदीप के घर के सभी लोग सो रहे थे. प्रदीप और सुशीला बेटी के साथ अपने कमरे में सो रहे थे, जबकि उस के मातापिता सुरेश और सुनीता, भाई सूरज अलग कमरे में सो रहे थे. बहन ललिता अपने ताऊ के घर गई थी. समूचे इलाके में खामोशी और सन्नाटा पसरा था. तभी किसी ने प्रदीप के दरवाजे पर दस्तक दी. प्रदीप ने दरवाजा खोला तो सामने कुछ हथियारबंद लोग खड़े थे.

प्रदीप कुछ समझ पाता, उस से पहले ही उन्होंने उस पर गोलियां चला दीं. गोलियां लगते ही प्रदीप जमीन पर गिर पड़ा. सुशीला बाहर आई तो उसे भी गोली मार दी गई. प्रदीप के पिता सुरेश और मां सुनीता के बाहर आते ही हमलावरों ने उन पर भी गोलियां चला दीं. सूरज की भी आंखें खुल गई थीं. खूनखराबा देख कर उस के होश उड़ गए. हमलावरों ने उसे भी नहीं बख्शा.

गोलियों की तड़तड़ाहट से वातावरण गूंज उठा था. आसपास के लोग इकट्ठा होते, उस के पहले ही हमलावर भाग गए थे. घटना की सूचना स्थानीय थाना खरखौदा को दी गई. थानाप्रभारी कर्मबीर सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर आ पहुंचे. पुलिस आननफानन घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गई. तीनों की हालत गंभीर थी, लिहाजा प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें रोहतक के पीजीआई अस्पताल रेफर कर दिया गया.

उपचार के दौरान सुरेश, सुनीता और प्रदीप की मौत हो गई, जबकि डाक्टर सुशीला और सूरज की जान बचाने में जुट गए. सूरज के कंधे में गोली लगी थी और सुशीला की पीठ में. डाक्टरों ने औपरेशन कर के गोलियां निकालीं. सुरक्षा के लिहाज से अस्पताल में पुलिस तैनात कर दी गई थी. सुशीला गर्भ से थी. उस के शिशु की जान को भी खतरा हो सकता था.

डाक्टरों ने उस की सीजेरियन डिलीवरी की. उस ने स्वस्थ बेटे को जन्म दिया. डाक्टरों ने दोनों को खतरे से निकाल लिया था. पति और सासससुर की मौत ने उसे तोड़ कर रख दिया था. सुशीला बहुत दुखी थी. अचानक हुई घटना ने उस के जीवन में अंधेरा ला दिया था. वह दर्द और आंसुओं की लकीरों के बीच उलझ चुकी थी.

घायल सूरज ने पुलिस को जो बताया था, उसी के आधार पर अज्ञात हमलावरों के खिलाफ हत्या और हत्या के प्रयास का मुकदजा दर्ज किया गया. एसपी अश्विन शैणवी ने अविलंब आरोपियों की गिरफ्तारी के निर्देश दिए. 3 लोगों की हत्या से क्षेत्र में दहशत फैल गई थी.

अगले दिन एसपी अश्विन शैणवी और डीएसपी प्रदीप ने भी घटनास्थल का दौरा किया. उन के निर्देश पर पुलिस टीमों का गठन किया गया. एसआईटी इंचार्ज राज सिंह को भी टीम में शामिल किया गया. पुलिस ने जांच शुरू की तो सुशीला और प्रदीप के प्रेम विवाह की बात सामने आई.

पुलिस ने सुशीला से पूछताछ की, लेकिन वह सही से बात करने की स्थिति में नहीं थी. फिर भी उस ने हमले का शक मायके वालों पर जताया. मामला औनर किलिंग का लगा. पुलिस ने सुशीला के पिता के घर दबिश दी तो वह और उन के बेटे सोनू एवं मोनू फरार मिले.

इस से पुलिस को विश्वास हो गया कि हत्याकांड को इन्हीं लोगों के इशारे पर अंजाम दिया गया था. पुलिस के हाथ सुराग लग गया कि खूनी खेल खेलने वाले कोई और नहीं, बल्कि सुशीला के घर वाले ही थे. पुलिस सुशीला के पिता और उस के बेटों की तलाश में जुट गई.

उन की तलाश में झज्जर, बेरी, दादरी, रिवाड़ी और बहादुरगढ़ में दबिशें दी गईं. पुलिस ने उन के मोबाइल नंबर हासिल कर के जांच शुरू कर दी. 22 नवंबर को पुलिस ने सुशीला के एक भाई सोनू को गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ की गई तो नफरत की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

दरअसल, सुशीला के अपनी मरजी से अंतरजातीय विवाह करने से पूरा परिवार खून का घूंट पी कर रह गया था. सोनू और मोनू को बहन के बारे में सोच कर लगता था कि उस ने उन की शान के खिलाफ कदम उठाया है. उन्हें सब से ज्यादा इस बात की तकलीफ थी कि सुशीला ने एक पिछड़ी जाति के लड़के से शादी की थी.

उन के दिलों में आग सुलग रही थी. मोनू आपराधिक प्रवृत्ति का था. उस की बुआ का बेटा हरीश भी आपराधिक प्रवृत्ति का था. हरीश पर हत्या का मुकदमा चल रहा था और वह जेल में था. समय अपनी गति से बीत रहा था. समाज में भी उन्हें समयसमय पर ताने सुनने को मिल रहे थे. जब भी सुशीला का जिक्र आता, उन का खून खौल उठता था.

मोनू ने मन ही मन ठान लिया था कि वह अपनी बहन को उस के किए की सजा दे कर रहेगा. उस के इरादों से परिवार वाले भी अंजान नहीं थे. जुलाई, 2016 में मोनू की बुआ का बेटा हरीश पैरोल पर जेल से बाहर आया तो वह मोनू का साथ देने को तैयार हो गया. मोनू लोगों के सामने धमकियां देता रहता था कि वह बहन को तो सजा देगा ही, प्रदीप से भी अपनी इज्जत का बदला ले कर रहेगा.

मोनू शातिर दिमाग था. वह योजनाबद्ध तरीके से वारदात को अंजाम देना चाहता था. उस ने छोटे भाई सोनू को सुशीला के घर भेजना शुरू कर दिया. इस के पीछे उस का मकसद यह जानना था कि वे लोग कहांकहां सोते हैं, कोई हथियार आदि तो नहीं रखते. इस बीच जबजब सुशीला को पता चलता कि मोनू प्रदीप और उस के घर वालों को मारने की धमकी दे रहा है, वह परेशान हो उठती थी.

मोनू का भाई सोनू और पिता भी इस खतरनाक योजना में शामिल थे. जब मोनू पहली प्लानिंग में कामयाब हो गया तो उस ने वारदात को अंजाम देने की ठान ली. हरीश के साथ मिल कर उस ने देशी हथियारों के साथ एक कार का इंतजाम किया. इस के बाद वह कार से अपने साथियों के साथ रात में सुशीला के घर जा पहुंचा और वारदात को अंजाम दे कर फरार हो गया.

एक दिन बाद पुलिस ने सुशीला के षडयंत्रकारी पिता ओमप्रकाश को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद दोनों आरोपियों को पुलिस ने अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. इस बीच खरखौदा थाने का चार्ज इंसपेक्टर प्रदीप के सुपुर्द कर दिया गया. वह मुख्य आरोपी मोनू की तलाश में जुटे हैं.

सुशीला ने सोचा भी नहीं था कि उसे प्यार करने की इतनी बड़ी सजा मिलेगी. ओमप्रकाश और उस के बेटे ने सुशीला के विवाह को अपनी झूठी शान से न जोड़ा होता तो शायद ऐसी नौबत न आती. सुशीला का सुहाग उजाड़ कर वे सलाखों के पीछे पहुंच गए हैं. कथा लिखे जाने तक आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी और पुलिस मोनू और उस के अन्य साथियों की सरगर्मी से तलाश कर रही थी.

कच्ची गली: खुद को बदलने पर मजबूर हो गई दामिनी- भाग 3

फिर दामिनी को पानी की बोतल पकड़ाते हुए विपिन आगे कहने लगे, ‘‘मैं तुम्हारी तकलीफ समझता हूं. मैं तुम्हारे साथ हूं. इस घटना के कारण तुम्हारे प्रति मेरे प्यार में कोई कमी नहीं आएगी. तुम मेरी पत्नी हो और हमेशा रहोगी. अपने मन से आज की इस रात को हमेशा के लिए मिटा दो. आज के बाद हम इस का जिक्र कभी नहीं करेंगे.’’

तभी विपिन का फोन बजा. स्क्रीन पर सृष्टि का नाम देख उन्होंने लपक कर फोन उठाया.

‘‘सौरी पापा, मेरा फोन स्विचऔफ हो गया था, बैटरी डैड हो गई थी. मुझे आज घर लौटने में देर हो गई. वह असल में एक फ्रैंड का बर्थडे था और पार्टी में थोड़ी लेट हो गई. पर अब मैं घर आ चुकी हूं, लेकिन मम्मा घर पर नहीं हैं. आप दोनों कहां हैं?’’ सृष्टि ने पूछा.

सृष्टि घर आ चुकी है. लेकिन उस के कुछ समय देर से आने के कारण उस के अभिभावक इतना घबरा गए कि एक ऐसा कटु अनुभव अपने जीवन में जोड़ बैठे जिसे भूलना शायद संभव नहीं. दामिनी के मन में अब झंझावत चल रहा है. क्या करे वह? क्या उस के लिए इस दुर्घटना को भुलाना संभव होगा? क्या इतना आसान है यह? इन्हीं सब विचारों में उलझी दामिनी घर के सामने आ रुकी अपनी गाड़ी से उतरना नहीं चाह रही थी. काश, वह समय की सूई उलटी घुमा पाती और सबकुछ पहले की तरह खुशहाल हो जाता. उस की गृहस्थी, प्यारी सी बिटिया, स्नेह लुटाता पति अब तक सबकुछ कितना स्वप्निल रहा उस के जीवन में.

विपिन की आवाज पर दामिनी धीरे से उतर कर घर में प्रविष्ट हो गई.

‘‘कहां गए थे आप दोनों?’’ सृष्टि के प्रश्न पर दामिनी से पहले विपिन बोल उठे, ‘‘तेरी मम्मा की तबीयत कुछ ठीक नहीं है. डाक्टर के पास गए थे.’’

अगले 2 दिनों तक दामिनी यों ही निढाल पड़ी रही. उस का मन किसी भी  काम, किसी भी बात में नहीं लग रहा था. रहरह कर जी चाहता कि पुलिस के पास चली जाए और उन दरिंदों को सजा दिलवाने के लिए संघर्ष करे. फिर विपिन द्वारा कही बातें दिमाग में घूमने लगतीं. बात तो उन की भी सही थी कि उस के पास पुलिस को बताने के लिए कोई ठोस बात नहीं, कोई पुख्ता सुबूत नहीं है.

इन दिनों विपिन ने घर संभाल लिया क्योंकि वे दामिनी को बिलकुल परेशान नहीं करना चाहते थे. वे उस के दिल और दिमाग की स्थिति से अनजान नहीं थे और इसीलिए उसे सामान्य होने के लिए पूरा समय देने को तैयार थे.

सृष्टि जरूर बर्थडे पार्टी की तैयारी में लगी हुई थी. अब पार्टी में केवल 3 दिन शेष थे. विपिन दामिनी की मानसिक हालत समझ रहे थे, इसलिए वे पार्टी को ले कर जरा भी उत्साहित न थे. लेकिन सृष्टि को क्या बताते भला, इसलिए उस के सामने वे चुप ही थे.

अगली सुबह विपिन के औफिस चले जाने  के बाद सृष्टि दामिनी से साथ मार्केट चलने का आग्रह करने लगी, ‘‘मम्मा, आप के लिए एक न्यू ड्रैस लेनी है. आखिर आप पार्टी की शान होने वाली हैं. सब से स्टाइलिश ड्रैस लेंगे.’’

सृष्टि चहक रही थी. लेकिन दामिनी का मन  उचट चुका था. वह अपने मन को शांत करने में स्वयं को असमर्थ पा रही थी. सृष्टि की बात से दामिनी के घाव फिर हरे होने लगे. ‘पार्टी’ शब्द सुन दामिनी को उस रात की बर्थडे पार्टी के कारण वह देर से घर लौटी थी. न सृष्टि पार्टी के चक्कर में पड़ती और न ही दामिनी के साथ यह हादसा होता.

अपने बिगड़ते मूड से दामिनी ने उस रात सृष्टि के देर से घर आने को ले कर कुछ उखड़े लहजे में कहा, ‘‘पार्टी, पार्टी, पार्टी… उस रात किस की बर्थडे पार्टी थी? क्या तुम एक फोन भी नहीं कर सकती थीं? इतनी लापरवाह कब से हो गईं तुम, सृष्टि?’’

अचानक नाराज दामिनी को देख सृष्टि चौंक गई, ‘‘वह… उस दिन… वह मम्मा… अब क्या बताऊं आप को. उस शाम मुझे कुछ ऐसी बात पता चली कि न तो मुझे समय का आभास रहा और न ही अपने डिस्चार्ज हुए फोन को चार्ज करने का होश रहा.’’

कुछ पल सोचने के पश्चात सृष्टि आगे कहने लगी, ‘‘पहले मैं ने सोचा था कि आप को यह बात बता कर चिंतित नहीं करूंगी पर अब सोचती हूं कि बता दूं.’’

सृष्टि और दामिनी का रिश्ता भले ही मांबेटी का था लेकिन उन का संबंध दोस्तों जैसा था. सृष्टि अपनी हर बात बेझिझक अपनी मां से बांटती आई थी. आज भी उस ने अपनी मां को उस शाम हुई देरी के पीछे का असली कारण बताने का निश्चय किया.

‘‘मां, मेरी सहेली है न निधि. उस का एक बौयफ्रैंड है. निधि अकसर उस से मिलने उस के पीजी रूम पर जाया करती थी. यह बात केवल उन दोनों को ही पता थी. मुझे भी नहीं. लेकिन पिछले कुछ दिनों से निधि और उस लड़के में कुछ अनबन चल रही थी.

निधि ने ब्रेकअप करने का मन बना लिया. यह बात उस ने अपने बौयफ्रैंड से कह डाली. वह निधि से अपने निर्णय पर दोबारा विचार करने की जिद करने लगा. फिर उस ने निधि को एक लास्ट टाइम इस विषय पर बात करने के लिए अपने पीजी रूम में बुलाया. बस, निधि से गलती यह हुई कि वह उस लड़के की बात पर विश्वास कर आखिरी बार उस से मिलने को राजी हो गई.’’

दामिनी ध्यान से सृष्टि की बात सुन रही थी. साथ ही, उस का मन इस उलझन में गोते लगा रहा था कि क्या उसे भी सृष्टि को अपनी आपबीती सुना देनी चाहिए.

‘‘उस दिन रूम में निधि के बौयफ्रैंड के अलावा 3 लड़के और मौजूद थे, जिन्हें उस ने  अपने दोस्त बताया. जब निधि ब्रेकअप के अपने निर्णय पर अडिग रही तो उन चारों ने मिल कर उस का रेप कर डाला. उस के बौयफ्रैंड को उस से बदला लेना था. उफ, कितनी घिनौनी सोच है. या तो मेरी या किसी की भी नहीं. ऊंह,’’ कह कर सृष्टि के चेहरे पर पीड़ा, दर्द, क्रोध और घिन के मिलेजुले भाव उभर आए.

वह आगे बोली, ‘‘आप ही बताओ मम्मा, जब निधि मुझ से ये सारी बातें शेयर कर रही थी तब ऐसे में समय का ध्यान कैसे रहता?’’

सृष्टि की बात सही थी. उस समय अपनी बात ढकने के लिए उस ने बर्थडे पार्टी का झूठा बहाना बना दिया था. मगर आज असलियत जानने के बाद दामिनी के पास भी कोई जवाब न था. वह चुपचाप सृष्टि का हाथ थामे बैठी रही, ‘‘निधि ने अब आगे क्या करने का सोचा है?’’ बस, इतना ही पूछ पाई वह.

‘‘इस में सोचना क्या है, मम्मा? जो हुआ उसे एक दुर्घटना समझ कर भुला देने में ही निधि को अपनी भलाई लग रही है. वह कहती है कि जिस नीयत से उस के बौयफ्रैंड ने उस का रेप किया, वह नहीं चाहती कि वह उस में कामयाब हो. वह इस घटना को अपने वजूद पर हावी नहीं होने देना चाहती. वैसे देखा जाए मम्मा, तो उस की बात में दम तो है. एक घटना हमारे पूरे व्यक्तित्व का आईना नहीं हो सकती.

‘‘आखिर रेप को इतनी वरीयता क्यों दी जाए कि उस से पहले और बाद के हमारे जीवन में इतना बड़ा फर्क पड़े. ठीक है, हो गई एक दुर्घटना, पर क्या अब जीना छोड़ दें या फिर बस मरमर कर, अफसोस करते हुए, रोते हुए जिंदगी गुजारें? इस बात को अपने मन में दफना कर आगे क्यों न बढ़ा जाए, वह भी पूरे आत्मविश्वास के साथ,’’ सृष्टि न जाने क्या कुछ कहे जा रही थी.

आज दामिनी के सामने आज की लड़कियों की केवल हिम्मत ही नहीं, उन के सुलगते विचार और क्रांतिशील व्यक्तित्व भी उजागर हो रहे थे. वे सिर्फ हिम्मत ही नहीं रखतीं, बल्कि समझदारी से भी काम लेती हैं. जिन बातों से अपना जीवन सुधरता हो, वे ऐसे निर्णय लेना चाहती हैं, न कि भावनाओं में बह कर खुद को परेशानी में डालने के कदम उठाती हैं. अपनी बेटी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर दामिनी के अंदर भी कुछ बदल गया.

जब सृष्टि की बात पूरी हुई तब तक मांबेटी चाय के खाली कप मेज पर रख चुकी थीं.

‘‘तो चल, कौन सी मार्केट ले चलेगी एक शानदार सी ड्रैस खरीदने के लिए,’’ दामिनी ने कहा तो सृष्टि खुशी से उछल पड़ी, ‘‘मैं ने तो शौप भी तय कर रखी है. बस, आप की ड्रैस की फिटिंग चैक करनी है मेरी प्यारी मम्मा,’’ कह उस ने अपनी दोनों बांहें दामिनी के गले में डाल दीं. दामिनी भी सृष्टि को बांहों में ले हंसती हुई झूम उठी.

अपराजिता: क्या पप्पी बचा पायगी अपनी जान?

मेरे जागीरदार नानाजी की कोठी हमेशा मेरे जीवन के तीखेमीठे अनुभवों से जुड़ी रही है. मुझे वे सब बातें आज भी याद हैं.

कोठी क्या थी, छोटामोटा महल ही था. ईरानी कालीनों, नक्काशीदार भारी फर्नीचर व झाड़फानूसों से सजे लंबेचौड़े कमरों में हर वक्त गहमागहमी रहती थी. गलियारों में शेर, चीतों, भालुओं की खालें व बंदूकें जहांतहां टंगी रहती थीं. नगेंद्र मामा के विवाह की तसवीरें, जिन में वह रूपा मामी, तत्कालीन केंद्रीय मंत्रियों व उच्च अधिकारियों के साथ खडे़ थे, जहांतहां लगी हुई थीं.

रूपा मामी दिल्ली के प्रभावशाली परिवार की थीं. सब मौसियां भी ठसके वाली थीं. तकरीबन सभी एकाध बार विदेश घूम कर आ चुकी थीं. नगेंद्र मामा तो विदेश में नौकरी करते ही थे.

देशी घी में भुनते खोए से सारा घर महक रहा था. लंबेचौड़े दीवानखाने में तमाम लोग मामा व मौसाजी के साथ जमे हुए थे. कहीं राजनीतिक चर्चा गरम थी तो कहीं रमी का जोर था. नरेन मामा, जिन की शादी थी, बारबार डबल पपलू निकाल रहे थे. सभी उन की खिंचाई कर रहे थे, ‘भई, तुम्हारे तो पौबारह हैं.’

नगेंद्र मामा अपने विभिन्न विदेश प्रवासों के संस्मरण सुना रहे थे. साथ ही श्रोताओं के मुख पर श्रद्धामिश्रित ईर्ष्या के भाव पढ़ कर संतुष्ट हो चुरुट का कश खींचने लगते थे. उन का रोबीला स्वर बाहर तक गूंज रहा था. लोग तो शुरू से ही कोठी के पोर्टिको में खड़ी कार से उन के ऊंचे रुतबे का लोहा माने हुए थे. अब हजारों रुपए फूंक भारत आ कर रहने की उदारता के कारण नम्रता से धरती में ही धंसे जा रहे थे.

यही नगेंद्र मामा व रूपा मामी जब एक बार 1-2 दिन के लिए हमारे घर रुके थे तो कितनी असुविधा हुई थी उन्हें भी, हमें भी. 2 कमरों का छोटा सा घर  चमड़े के विदेशी सूटकेसों से कैसा निरीह सा हो उठा था. पिताजी बरसते पानी में भीगते डबलरोटी, मक्खन, अंडे खरीदने गए थे. घर में टोस्टर न होने के कारण मां ने स्टोव जला कर तवे पर ही टोस्ट सेंक दिए थे, पर मामी ने उन्हें छुआ तक नहीं था.

आमलेट भी उन के स्तर का नहीं था. रूपा मामी चाय पीतेपीते मां को बता रही थीं कि अगर अंडे की जरदी व सफेदी अलगअलग फेंटी जाए तो आमलेट खूब स्वादिष्ठ और अच्छा बनता है.

यही मामी कैसे भूल गई थीं कि नाना के घर मां ही सवेरे तड़के उठ रसोई में जुट जाती थीं. लंबेचौडे़ परिवार के सदस्यों की विभिन्न फरमाइशें पूरी करती कभी थकती नहीं थीं. बीच में जाने कब अंडे वाला तवा मांज कर पिताजी के लिए अजवायन, नमक का परांठा भी सेंक देती थीं. नौकर का काम तो केवल तश्तरियां रखने भर तक था.

दिन भर जाने क्या बातें होती रहीं. मैं तो स्कूल रही. रात को सोते समय मैं अधजागी सी मां और पिताजी के बीच में सोई थी. मां पिताजी के रूखे, भूरे बालों में उंगलियां फिरा रही थीं. बिना इस के उन्हें नींद ही नहीं आती थी. मुझे भी कभी कहते. मैं तो अपने नन्हे हाथ उन के बालों में दिए उन्हीं के कंधे पर नींद के झोंके में लुढ़क पड़ती थी.

मां कह रही थीं, ‘पिताजी को बिना बताए ही ये लोग आपस में सलाह कर के यहां आए हैं. उन से कह कर देखूं क्या?’

‘छोड़ो भी, रत्ना, क्यों लालच में पड़ रही हो? आज नहीं तो कुछ वर्ष बाद जब वह नहीं रहेंगे, तब भी यही करना पडे़गा. अभी क्यों न इस इल्लत से छुटकारा पा लें. हमें कौन सी खेतीबाड़ी करनी है?’ कह कर पिताजी करवट बदल कर लेट गए.

‘खेतीबाड़ी नहीं करनी तो क्या? लाखों की जमीन है. सुनते हैं, उस पर रेलवे लाइन बनने वाली है. शायद उसे सरकार द्वारा खरीद लिया जाएगा. भैया क्या विलायत बैठे वहां खेती करेंगे.’

मां को इस तरह मीठी छुरी तले कट कर अपना अधिकार छोड़ देना गले नहीं उतर रहा था. उत्तर भारत में सैकड़ों एकड़ जमीन पर उन की मिल्कियत की मुहर लगी हुई थी.

भूमि की सीमाबंदी के कारण जमीनें सब बच्चों के नाम अलगअलग लिखा दी गई थीं. बंजर पड़ी कुछ जमीनें ‘भूदान यज्ञ’ में दे कर नाम कमाया था. मां के नाम की जमीनें ही अब नगेंद्र मामा बडे़ होने के अधिकार से अपने नाम करवाने आए थे. वैसे क्या गरीब बहन के घर उन की नफासतपसंद पत्नी आ सकती थी?

स्वाभिमानी पिताजी को मिट्टी- पत्थरों से कुछ मोह नहीं था. जिस मायके से मेरे लिए एक रिबन तक लेना वर्जित था वहां से वह मां को जमीनें कैसे लेने देते? उन्होंने मां की एक न चलने दी.

दूसरे दिन बड़ेबडे़ कागजों पर मामा ने मां से हस्ताक्षर करवाए. मामी अपनी खुशी छिपा नहीं पा रही थीं.

शाम को वे लोग वापस चले गए थे.

अपने इस अस्पष्ट से अनुभव के कारण मुझे नगेंद्र मामा की बातें झूठी सी लगती थीं. उन की विदेशों की बड़बोली चर्चा से मुझ पर रत्ती भर प्रभाव नहीं पड़ा. पिताजी शायद अपने कुछ साहित्यकार मित्रों के यहां गए हुए थे. लिखने का शौक उन्हें कोठी के अफसरी माहौल से कुछ अलग सा कर देता था.

मुझे यह देख कर बड़ा गुस्सा आता था कि पिताजी का नाम अखबारों, पत्रिकाओं में छपा देख कर भी कोई इतना उत्साहित नहीं होता जितना मेरे हिसाब से होना चाहिए. अध्यापक थे तो क्या, लेखक भी तो थे. पर जाने क्यों हर कोई उन्हें ‘मास्टरजी’ कह कर पुकारता था.

सब मामामौसा शायद अपनी अफसरी के रोब में अकड़े रहते थे. कभी कोई एक शेर भी सुना कर दिखाए तो. मोटे, बेढंगे सभी कुरतापजामा, बास्कट पहने मेरे छरहरे, खूबसूरत पिताजी के पैर की धूल के बराबर भी नहीं थे. उन की हलकी भूरी आंखें कैसे हर समय हंसती सी मालूम होती थीं.

अनजाने में कई बार मैं अपने घर व परिस्थितियों की रिश्तेदारों से तुलना करती तो इतने बडे़ अंतर का कारण नहीं समझ पाई थी कि ऊंचे, धनी खानदान की बेटी, मां ने मास्टर (पिताजी) में जाने क्या देखा कि सब सुख, ऐश्वर्य, आराम छोड़ कर 2 कमरों के साधारण से घर में रहने चली आईं.

नानानानी ने क्रोध में आ कर फिर उन का मुंह न देखने की कसम खाई. जानपहचान वालों ने लड़कियों को पढ़ाने की उदारता पर ही सारा दोष मढ़ा. परंतु नानी की अकस्मात मृत्यु ने नाना को मानसिक रूप से पंगु सा कर दिया था.

मां भी अपना अभिमान भूल कर रसोई का काम और भाईबहनों को संभालने लगीं. नौकरों की रेलपेल तो खाने, उड़ाने भर को थी.

नानाजी ने कई बार कोठी में ही आ कर रहने का आग्रह किया था, परंतु स्वाभिमानी पिताजी इस बात को कहां गवारा कर सकते थे? बहुत जिद कर के  नानाजी ने करीब की कोठी कम किराए पर लेने की पेशकश की, परंतु मां पति के विरुद्ध कैसे जातीं?

फिर पिताजी की बदली दूसरे शहर में हो गई, पर घर में शादी, मुंडन, नामकरण या अन्य कोई भी समारोह होने पर नानाजी मां को महीना भर पहले बुलावा भेजते, ‘तुम्हारे बिना कौन सब संभालेगा?’

यह सच भी था. उन का तर्क सुन कर मां को जाना ही पड़ता था.

असुविधाओं के बावजूद मां अपना पुराना सा सूटकेस बांध कर, मुझे ले कर बस में बैठ जातीं. बस चलने पर पिताजी से कहती जातीं, ‘अपना ध्यान रखना.’

कभीकभी उन की गीली आंखें देख कर मैं हैरान हो जाती थी, क्या बडे़ लोग भी रोते हैं? मुझे तो रोते देख कर मां कितना नाराज होती हैं, ‘छि:छि:, बुरी बात है, आंखें दुखेंगी,’ अब मैं मां से क्या कहूं?

सोचतेसोचते मैं मां की गोद में आंचल से मुंह ढक कर सो जाती थी. आंख खुलती सीधी दहीभल्ले वाले की आवाज सुन कर. एक दोना वहीं खाती और एक दोना कुरकुरे भल्लों के ऊपर इमली की चटनी डलवा रास्ते में खाने के लिए रख लेती. गला खराब होगा, इस की किसे चिंता थी.

कोठी में आ कर नानाजी हमें हाथोंहाथ लेते. मां को तो फिर दम मारने की भी फुरसत नहीं रहती थी. बाजार का, घर का सारा काम वही देखतीं. हम सब बच्चे, ममेरे, मौसेरे बहनभाई वानर सेना की तरह कोठी के आसपास फैले लंबेचौड़े बाग में ऊधम मचाते रहते थे.

आज भी मैं, रिंपी, डिंकी, पप्पी और अन्य कई लड़कियां उस शामियाने की ओर चल दीं जहां परंपरागत गीत गाने के लिए आई महिलाएं बैठी थीं. बीच में ढोलकी कसीकसाई पड़ी थी पर बजाने की किसे पड़ी थी. पेशेवर गानेवालियां गा कर थक कर चाय की प्रतीक्षा कर रही थीं.

सभी महिलाएं अपनी चकमक करती कीमती साडि़यां संभाले गपशप में लगी थीं. हम सब बच्चे दरी पर बैठ कर ठुकठुक कर के ढोलकी बजाने का शौक पूरा करने लगे. मैं ने बजाने के लिए चम्मच हाथ में ले लिया. ठकठक की तीखी आवाज गूंजने लगी. नगेंद्र मामा की डिंकी व रिंपी के विदेशी फीते वाले झालरदार नायलोनी फ्राक गुब्बारे की तरह फूल कर फैले हुए थे.

पप्पी व पिंकी के साटन के गरारे खेलकूद में हमेशा बाधा डालते थे, सो अब उन्हें समेट कर घुटनों से ऊपर उठा कर बैठी हुई थीं. गोटे की किनारी वाले दुपट्टे गले में गड़ते थे, इसलिए कमर पर उन की गांठ लगा कर बांध रखे थे.

इन सब बनीठनी परियों सी मौसेरी, ममेरी बहनों में मेरा साधारण छपाई का सूती फ्राक अजीब सा लग रहा था. पर मुझे इस का कहां ज्ञान था. बाल मन अभी आभिजात्य की नापजोख का सिद्धांत नहीं जान पाया था. जहां प्रेम के रिश्ते हीरेमोती की मालाओं में बंधे विदेशी कपड़ों में लिपटे रहते हों वहां खून का रंग भी शायद फीका पड़ जाता है.

रूपा मामी चम्मच के ढोलकी पर बजने की ठकठक से तंग आ गई थीं. मुझे याद है, सब औरतें मग्न भाव से उन के लंदन प्रवास के संस्मरण सुन रही थीं. अपने शब्द प्रवाह में बाधा पड़ती देख वह मुझ से बोलीं, ‘अप्पू, जा न, मां से कह कर कपडे़ बदल कर आ.’

हतप्रभ सी हो कर मैं ने अपनी फ्राक की ओर देखा. ठीक तो है, साफसुथरा, इस्तिरी किया हुआ, सफेद, लाल, नीले फूलों वाला मेरा फ्राक.

किसी अन्य महिला ने पूछा, ‘यह रत्ना की बेटी है क्या?’

‘हां,’ मामी का स्वर तिरस्कारयुक्त था.

‘तभी…’ एक गहनों से लदी जरी की साड़ी पहने औरत इठलाई.

इस ‘तभी’ ने मुझे अपमान के गहरे सागर में कितनी बार गले तक डुबोया था, पर मैं क्या समझ पाती कि रत्ना की बेटी होना ही सब प्रकार के व्यंग्य का निशाना क्यों बनता है?

समझी तो वर्षों बाद थी, उस समय तो केवल सफेद चमकती टाइलों वाली रसोई में जा कर खट्टे चनों पर मसाला बुरकती मां का आंचल पकड़ कर कह पाई थी, ‘मां, रूपा मामी कह रही हैं, कपड़े बदल कर आ.’

मां ने विवश आंखों में छिपी नमी किस चतुराई से पलकें झपका कर रोक ली थी. कमरे में आ कर मुझे नया फ्राक पहना दिया, जो शायद अपनी पुरानी टिशू की साड़ी फाड़ कर दावत के दिन पहनने के लिए बनाया था.

‘दावत वाले दिन क्या पहनूंगी?’ इस चिंता से मुक्त मैं ठुमकतीकिलकती फिर ढोलक पर आ बैठी. रूपा मामी की त्योरी चढ़ गईं, साथ ही साथ होंठों पर व्यंग्य की रेखा भी खिंच गई.

‘मां ने अपनी साड़ी से बना दिया है क्या?’ नाश्ते की प्लेट चाटते मामी बोलीं. वही नाश्ता जो दोपहर भर रसोई में फुंक कर मां ने बनाया था. मैं शामियाने से उठ कर बाहर आ गई.

सेहराबंदी, घुड़चढ़ी, सब रस्में मैं ने अपने छींट के फ्राक में ही निभा दीं. फिर मेहमानों में अधिक गई ही नहीं. दावत वाले दिन घर में बहुत भीड़भाड़ थी. करीबकरीब सारे शहर को ही न्योता था. हम सब बच्चे पहले तो बैंड वाले का गानाबजाना सुनते रहे, फिर कोठी के पिछवाड़े बगीचे में देर तक खेलते रहे.

फिर बाग पार कर दूर बने धोबियों के घरों की ओर निकल आए. पुश्तों से ये लोग यहीं रहते आए थे. अब शहर वालों के कपड़े भी धोने ले आते थे. बदलते समय व महंगाई ने पुराने सामंती रिवाज बदल डाले थे. यहीं एक बड़ा सा पक्का हौज बना हुआ था, जिस में पानी भरा रहता था.

यहां सन्नाटा छाया हुआ था. धोबियों के परिवार विवाह की रौनक देखने गए हुए थे. हम सब यहां देर तक खेलते रहे, फिर हौज के किनारे बनी सीढि़यां चढ़ कर मुंडेर पर आ खडे़ हुए. आज इस में पानी लबालब भरा था. रिंपी और पप्पी रोब झाड़ रही थीं कि लंदन में उन्होंने तरणताल में तैरना सीखा है. बाकी हम में से किसी को भी तैरना नहीं आता था.

डिंकी ने चुनौती दी थी, ‘अच्छा, जरा तैर कर दिखाओ तो.’

‘अभी कैसे तैरूं? तैरने का सूट भी तो नहीं है,’ पप्पी बोली थी.

‘खाली बहाना है, तैरनावैरना खाक आता है,’ रीना ने मुंह चिढ़ाया.

तभी शायद रिंपी का धक्का लगा और पप्पी पानी में जा गिरी.

हम सब आश्वस्त थे कि उसे तैरना आता है, अभी किनारे आ लगेगी, पर पप्पी केवल हाथपैर फटकार कर पानी में घुसती जा रही थी. सभी डर कर भाग खड़े हुए. फिर मुझे ध्यान आया कि जब तक कोठी पर खबर पहुंचेगी, पप्पी शायद डूब ही जाए.

मैं ने चिल्ला कर सब से रुकने को कहा, पर सब के पीछे जैसे भूत लगा था. मैं हौज के पास आई. पप्पी सचमुच डूबने को हो रही थी. क्षणभर को लगा, ‘अच्छा ही है, बेटी डूब जाए तो रूपा मामी को पता लगेगा. हमारा कितना मजाक उड़ाती रहती हैं. मेरा कितना अपमान किया था.’

तभी पप्पी मुझे देख कर ‘अप्पू…अप्पू…’ कह कर एकदो बार चिल्लाई. मैं ने इधरउधर देखा. एक कटे पेड़ की डालियां बिखरी पड़ी थीं. एक हलकी पत्तों से भरी टहनी ले कर मैं ने हौज में डाल दी और हिलाहिला कर उसे पप्पी तक पहुंचाने का प्रयत्न करने लगी. पत्तों के फैलाव के कारण पप्पी ने उसे पकड़ लिया. मैं उसे बाहर खींचने लगी. घबराहट के कारण पप्पी डाल से चिपकी जा रही थी. अचानक एक जोर का झटका लगा और मैं पानी में जा गिरी. पर तब तक पप्पी के हाथ में मुंडेर आ गई थी. मैं पानी में गोते खाती रही और फिर लगा कि इस 9-10 फुट गहरे हौज में ही प्राण निकल जाएंगे.

होश आया तो देखा शाम झुक आई थी. रूपा मामी वहीं घास पर मुझे बांहों में भरे बैठी थीं. उन की बनारसी साड़ी का पानी से सत्यानास हो चुका था. डाक्टर अपना बक्सा खोले कुछ ढूंढ़ रहा था. मां और पिताजी रोने को हो रहे थे.

‘बस, अब कोई डर की बात नहीं है,’ डाक्टर ने कहा तो मां ने चैन की सांस ली.

‘आज हमारी बहादुर अप्पू न होती तो जाने क्या हो जाता. पप्पी के लिए इस ने अपनी जान की भी परवा नहीं की,’ नगेंद्र मामा की आंखों में कृतज्ञता का भाव था.

मैं ने मां की ओर यों देखा जैसे कह रही हों, ‘तुम्हारा दिया अपराजिता नाम मैं ने सार्थक कर दिया, मां. आज मैं ने प्रतिशोध की भावना पर विजय पा ली.’

शायद मैं ने साथ ही साथ रूपा मामी के आभिजात्य के अहंकार को भी पराजित कर दिया था.

नजदीकी रिश्तों में प्यार को परवान न चढ़ने दें

मामला 1

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले धार के गांव गिरवान्या में पिछले साल 12 दिसंबर को महुआ के एक पेड़ पर जवान लड़कालड़की फांसी पर लटके मिले थे. लड़के का नाम दिनेश और लड़की का नाम सीमा था. वे दोनों एक शादी में शामिल होने अपने गांव देगडी नानपुर से गिरवान्या आए थे.

यह खबर जंगल की आग की तरह पूरे निमाड़ इलाके में फैली. यह तो हर किसी को समझ आ गया था कि मामला प्यारमुहब्बत का रहा होगा, लेकिन लोगों को जब यह पता चला कि सीमा और दिनेश आपस में चचेरे भाईबहन थे, तो हर किसी ने यह कहा कि उन्होंने खुदकुशी कर के दूसरी गलती की. पहली गलती यह थी कि भाईबहन होने के नाते उन्हें प्यार के पचड़े में ही नहीं पड़ना चाहिए था.

तो फिर क्या करते वे दोनों और ऐसी गलतियां अकसर आजकल के जवान लड़केलड़कियों से क्यों हो रही हैं कि वे नजदीकी रिश्ते में प्यार में पड़ जाते हैं और साथ जीनेमरने और शादी की कसमें खाने के बाद जब घर वालों से शादी की बात करते हैं, तो उन पर तो मानो पहाड़ सा टूट पड़ता है, क्योंकि रिश्तेनातों की मर्यादा इस की इजाजत नहीं देते?

इस सवाल का जवाब दिनेश के पिता सुकलाल और सीमा के पिता इरडा के पास भी नहीं है जो आपस में भाईभाई हैं. उन दोनों के चेहरे अपने बच्चों को खोने के 3 महीने बाद भी बुझे और उतरे हुए हैं, लेकिन वे भी समाज और उसूलों से बंधे हैं, जो गलत कहीं से नहीं कहे जा सकते.

सीमा और दिनेश ने अपने प्यार के बारे में बताते हुए शादी की इजाजत अपनेअपने पिता से मांगी थी, जो उन्होंने नहीं दी. इस जवाब पर उन्होंने वही बुजदिली दिखाई, जो बीती 9 फरवरी को गुजरात के सूरत में रामसेवक और पूनम उर्फ लक्ष्मी ने दिखाई थी.

मामला 2

रामसेवक निषाद मूलत: उत्तर प्रदेश का रहने वाला था और अपने 3 भाइयों के साथ रोजगार के जुगाड़ में सूरत आ गया था. अच्छी बात यह थी कि उसे एक कंपनी में मशीन आपरेटर का काम भी मिल गया था. 6 लोगों वाला यह परिवार शिवांजलि सोसाइटी के नजदीक अक्षय पटेल की चाल में एक दड़बेनुमा घर में रहता था.

घर की माली हालत हालांकि ठीक नहीं थी, लेकिन सभी भाइयों के कामकाजी होने से जिंदगी की गाड़ी ठीकठाक और शांति से चल रही थी, लेकिन लौकडाउन के दिनों में इन की फुफेरी बहन लक्ष्मी भी सूरत आ गई तो एक तूफान आया और सबकुछ अपने साथ बहा ले गया.

सूरत की एक कंपनी में बतौर टीएफओ आपरेटर काम करने वाले पूनम के पिता गंगाचरण ने भी इसी चाल में कमरा ले लिया था, जो रामसेवक के घर के नजदीक था.

3 महीनों में ही नाबालिग 17 साला पूनम और रामसेवक को एकदूसरे से इतना प्यार हो गया कि वे साथ जीनेमरने की कसमें खाने लगे.

रिश्ते में कजिन होने के चलते उन पर दोनों के घर वालों ने किसी तरह का शक नहीं किया, लेकिन यह लापरवाही

5 फरवरी को उन पर तब गाज बन कर गिरी, जब उन्होंने अपने प्यार की बात बताते हुए शादी करने की भी ख्वाहिश जाहिर की.

यह सोचते हुए कि जवानी में नादानी हो ही जाती है, घर वालों ने उन्हें टरकाने की कोशिश की कि जल्द ही मसला सुलझा लेंगे और कुछ सख्ती भी दिखाई कि किसी भी सूरत में यह शादी नहीं हो सकती तो रामसेवक और लक्ष्मी ने भी पंखे पर एकसाथ लटक कर खुदकुशी कर ली.

मामला 3

यह दिलचस्प मामला छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले का है. दिसंबर, 2020 के दूसरे हफ्ते में सुबह के तकरीबन 10 बजे एक जवान लड़की गंगरेल बांध पर बने मां अंगार मोती मंदिर के पास गहरे पानी में कूद पड़ी, जिस पर राह चलते लोगों की नजर पड़ी तो उन्होंने बांध में कूद कर उसे बचा लिया.

मामला थाने तक पहुंचा तो पता चला कि एक साल पहले ही लड़की ने अपने ही गांव के एक लड़के से लव मैरिज की थी. लेकिन दोनों में शादी के बाद पटरी नहीं बैठी तो वह पति से तलाक ले कर मायके आ कर रहने लगी.

यहां तक बात हर्ज की नहीं थी, लेकिन लोचा उस वक्त शुरू हुआ जब लड़की अपने ममेरे भाई से दिल लगा बैठी और वह भी उसे टूट कर चाहने लगा. उन दोनों ने घर वालों से अपनी शादी कराने की बात कही तो वे सकते में आ गए और ऊंचनीच बताते हुए दो टूक कह दिया कि रिश्ते के भाईबहन में आपस में शादी नहीं हो सकती, तो लड़की अकेली दरिया में कूद गई, लेकिन लोगों की नजर में आ जाने से बचा ली गई.

मामला 4

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गांव पश्चिम टोला का 20 साला पिंकू लोधी मुंबई में टेलरिंग का काम करता था, लेकिन लौकडाउन के दौरान दूसरे तमाम लोगों की तरह उसे भी गांव वापस आना पड़ा था. आया तो घर के सामने रहने वाली लड़की ज्योतिका लोधी से उसे प्यार हो गया, जो रिश्ते में उस की भतीजी लगती थी. चूंकि नजदीकी रिश्ता होने के चलते उन की शादी की मंजूरी घर वाले नहीं दे रहे थे, इसलिए दोनों ने बीती

18 जनवरी को गांव के एक बगीचे के पेड़ पर साथ लटक कर खुदकुशी कर ली. बाद में यह सुगबुगाहट भी हुई कि दोनों प्यार तो बहुत पहले से करते थे, लेकिन लौकडाउन में पिंकू के गांव आ जाने के बाद यह तेजी से परवान चढ़ने लगा था, जिस का अंजाम इस तरीके से हुआ.

जवानी और नादानी

नजदीकी रिश्तों में प्यार और शादी की जिद पूरी न होने पर साथ या फिर अकेले खुदकुशी कर लेने के जो मामले आएदिन सामने आते हैं, उन में लड़कालड़की की उम्र इतनी कम होती है कि उन्हें समझदार नहीं माना जा सकता. वे सपनों की दुनिया में जी रहे होते हैं, जहां रिश्तेनातों और हकीकत की कोई जगह ही नहीं होती. यह सच है कि प्यार का असल लुत्फ जवानी के दिनों में ही आता है, क्योंकि इस उम्र में प्यार किया नहीं जाता, बल्कि हो जाता है.

लेकिन जब यह प्यार गलत जगह होता है, तो लुत्फ कम मुसीबतें ज्यादा प्रेमियों को झेलनी पड़ती हैं. खासतौर पर जब घरपरिवार के लोगों समेत समाज और कानून भी उन की जिद से इत्तिफाक न रखते हों.

इन सभी की निगाह में नजदीकी रिश्तों में प्यार और शादी जुर्म है, फिर भी नौजवान यह करते हैं तो इस की वजहें जानना भी जरूरी हैं, जिस से इस

आफत को वक्त रहते काबू किया जा सके और निराशहताश बच्चों की जान बचाई जा सके.

इसलिए परवान चढ़ता इश्क

यह समाज का वह दौर है, जब हर तबके के लोग आजादी से रहना चाहते हैं, इसलिए वे कमाऊ होते ही या फिर शादी के कुछ दिनों बाद मांबाप और घर से अलग हो जाते हैं. जब बच्चे होते हैं, तो उन्हें पालनेपोसने में सभी को पसीने आ जाते हैं. रोजीरोटी के जुगाड़ में सभी इस तरह मसरूफ रहते हैं कि बड़े होते बच्चों को बहुत सी जरूरी बातें नहीं सिखा पाते, खासतौर से रिश्तों की हद और अहमियत कि ममेरा, चचेरा, फुफेरा और मौसेरा रिश्ता क्या होता है और  कैसे निभाया जाता है.

रिश्तेदारी में पहले सी नजदीकियां नहीं रह गई हैं, लिहाजा लोग सालोंसाल एकदूसरे से नहीं मिल पाते. और जब कभी मिलते भी हैं, तो 2-4 दिनों के लिए और पुरानी यादें ताजा कर चलते बनते हैं. जवान होते बच्चे होश संभालने के बाद एकदूसरे को देखते हैं, तो उन की फीलिंग्स में एकदूसरे के लिए सैक्स का आकर्षण हो आना कुदरती बात होती है, क्योंकि उन्होंने एकदूसरे को कभी भाई या बहन की नजर से देखा और महसूसा ही नहीं होता.

इन के मिलनेजुलने पर कोई रोकटोक नहीं होती, इसलिए गलत जगह हो गया प्यार जल्द परवान चढ़ता है. चूंकि तनहाई और आजादी इफरात से मिलती है, इसलिए अकसर उन में सैक्स ताल्लुकात भी कायम हो जाते हैं. फिर तो इन की वापसी मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन हो जाती है.

चूंकि एक नया रिश्ता कायम हो चुका होता है, इसलिए पुराने रिश्ते की कोई कीमत और अहमियत इन के लिए नहीं रह जाती.

आखिर हमारी शादी में हर्ज क्या है? यह सवाल जब वे घर वालों से करते हैं, तो जवाब में समझाइश और मारकुटाई ही उन के हिस्से में आती है. पर तब तक लड़कालड़की तन और मन से एकदूसरे के हो चुके होते हैं. घर वालों की बातें सुन कर उन्हें लगता है कि उन्होंने कोई भारी पाप कर डाला है.

प्यार के दौरान किए गए वादे और खाई गई कसमें इन्हें रहरह कर याद आती हैं. साथ जी नहीं सकते, लेकिन साथ मर तो सकते हैं की सोच लिए ये लोग एकसाथ खुदकुशी कर लेते हैं.

मांबाप भी ध्यान दें

जवान होते लड़केलड़कियों को शुरू से ही रिश्तेनातों की अहमियत वक्तवक्त पर समझाते रहें और उन्हें अकेले में ज्यादा मिलनेजुलने न दें. सीधे टोकने पर बात बिगड़ सकती है, इसलिए कोई न कोई उन के साथ रहे तो प्यार पनपेगा ही नहीं. लड़कालड़की भी रिश्ते की अहमियत आप की तरह समझते हैं, यह मुगालता पालना अकसर महंगा पड़ता है.

लड़का या लड़की को कभी रिश्तेदार के यहां लंबे वक्त के लिए अकेला न छोड़ें, खासतौर से वहां जहां उन की उम्र का लड़का या लड़की हो. इस के बाद भी कभी वे अगर शादी की बात करें तो सब्र और समझ से काम लें, ज्यादा डांटफटकार, रोकटोक और मारपिटाई से भी बात नहीं बनती, क्योंकि इश्क का भूत बच्चों के सिर चढ़ कर बोल रहा होता है, इसलिए उन्हें इतना मौका ही न दें कि वे नजदीकी रिश्ते में प्यार करें.  तो फिर हल क्या

तेजी से बढ़ती इस समस्या का हल नौजवानों के पास ही है, जो जानतेमझते हैं कि नजदीकी रिश्तों में प्यार और शादी को कोई मंजूरी नहीं देता, इसलिए इन्हें ही ये एहतियात बरतनी चाहिए :

* रिश्ते के कजिन यानी भाईबहन के अलावा हमउम्र चाचा, मामा, मौसा और फूफा से अकेले में मिलनेजुलने से बचना चाहिए. यही बात लड़कों को भी समझते हुए उस पर अमल करना चाहिए.

* हंसीमजाक और सैक्सी बातें तो बिलकुल नहीं करनी चाहिए.

* मोबाइल फोन पर बात करने से परहेज करना चाहिए. आजकल प्यार जायज हो या नाजायज इसी पर ज्यादा पनपता है.

* अगर कोई नजदीकी रिश्तेदार प्यार हो जाने की बात कहे, तो बजाय उसे शह देने के पहली बार में ही सख्ती से मना कर देना चाहिए.

* तोहफे न तो लेना चाहिए और न ही देना चाहिए.

* यह बात हमेशा ध्यान रखनी चाहिए कि नजदीकी रिश्तेदारी में प्यार और शादी कामयाब नहीं होती. इस से फायदा तो कोई नहीं उलटे नुकसान कई हैं.

* इस के बाद भी प्यार हो जाए तो धीरेधीरे प्रेमी से दूरी बनाने की कोशिश करते हुए कहीं और मन लगाने की भी कोशिश करनी चाहिए. एक दफा दूसरी जाति और धर्म में प्यार करने पर दुनिया, समाज और कानून आप का साथ दे सकते हैं, लेकिन नजदीकी रिश्तों में प्यार हो जाने पर नहीं, इसलिए इस से बचना ही बेहतर रास्ता है.

* खुदकुशी इस समस्या का हल नहीं है. इस से 2 परिवारों के लोग जिंदगीभर दुख में डूबे रहते हैं और आप को भी कुछ हासिल नहीं होता.

* शादी के लिए घर वालों के राजी न होने पर अगर दूसरा साथ मरने की बात कहे तो उस की जज्बाती बातों में न आ कर उसे समझाना चाहिए कि इस से प्यार अमर नहीं हो जाएगा, बल्कि घर वालों और मांबाप की बदनामी होगी, इसलिए रास्ते अलग करना ही एकलौता रास्ता है.

मेरा होने वाला पति अपनी एक्स गर्लफ्रेंड से आज भी बात करता है, ऐसी स्थिति में मुझे करना चाहिए?

सवाल

मैं 24 वर्षीय युवती हूं. जौब लगे 10 महीने हो चुके हैं. पहले दिन ही औफिस में अच्छी पोस्ट और पैकेज पर 2 साल से काम करने वाले लड़के से कुछ विशेष जानपहचान हो गई. लौकडाउन के दौरान वर्क ऐट होम के बीच हमारी फोन पर रोज बात होती थी. अब औफिस स्टार्ट होने के बाद रोज ही मुलाकात होती है. थोड़े दिनों पहले उस ने मुझसे साफसाफ कह दिया कि वह मुझसे शादी करना चाहता है. मुझे भी वह पसंद है और शादी करने में कोई दिक्कत नहीं. लेकिन हाल ही में मुझे पता चला है कि औफिस की एक और लड़की से उस का अफेयर था हालांकि अब ब्रेकअप हो गया है. वह लड़की अभी भी औफिस में है और काम के सिलसिले में दोनों में बात भी होती है.

मुझे उन दोनों का बात करना अच्छा नहीं लगता. मेरे बौयफ्रैंड का कहना है कि अब उसे उस लड़की से कोई मतलब नहीं, कोई फीलिंग्स नहीं उस के प्रति. उस से बात होती है तो सिर्फ औफिशल वर्क की. उसे सिर्फ मैं पसंद हूं, मुझसे प्यार करता है तभी तो शादी करना चाहता है. लेकिन मैं जब भी उस लड़की को देखती हूं तो यह सोच कर कि बौयफ्रैंड की वह पहली पसंद थी, मन बैठ सा जाता है. शादी का उत्साह कुछ कम सा हो गया है. अपने मन को समझा नहीं पा रही हूं. क्या करूं?

जवाब

आप की समस्या वह लड़की है. हमें लगता है आप उस लड़की के बारे में कुछ ज्यादा ही सोच रही हैं. इस में दोराय नहीं कि जिसे हम प्यार करते हैं उसे ले कर पजेसिव हो जाते हैं. लेकिन आप यह भी तो सोचिए कि वह लड़का आप से प्यार ही नहीं बल्कि शादी करना चाहता है. आप को ले कर वह सीरियस है. यानी, लाइफ पार्टनर के लिए उसे जो चाहिए, वह सब उसे आप में दिखा. वह लड़की उस के मानदंडों पर खरी नहीं उतरी, तभी तो ब्रेकअप हो गया.

आप बेकार परेशान हो रही हैं. उस लड़की की भी तो शादी होगी, या हो सकता है वह जौब चेंज कर ले. अगर यह सब नहीं होता तो भी आप का ब्रौयफै्रंड काबिल है. वह दूसरी जौब के लिए ट्राई कर सकता है. यदि बौयफ्रैंड जौब बदलता है तो सारी समस्या अपनेआप हल हो जाएगी. इसलिए हमारी तो यही राय है कि बेकार की बातें दिमाग से निकाल दीजिए और सब्र से काम लें, और आने वाली खुशियों को खुले दिमाग से एंजौय करें, खुश रहें और ब्रौयफ्रैंड को भी अपने प्यार से बांध कर खुश रखें. तभी तो उस के दिमाग में आप ही आप रहेंगी.

‘‘ बचपन में मुझे फिल्म इंडस्ट्री से नफरत थी…’’ – जीवा

सत्तर और अस्सी के दशक के मशहूर खलनायक रंजीत ने छह सौ से भी अधिक फिल्मों में खलनायकी के अपने ऐसे खंूखार अंदाज विखेरे,जिन्हे आज तक कोई अन्य कलाकार नही विखेर पाया.अब उन्ही के बेटे जीवा ने भी बौलीवुड में कदम रख दिया है.जीवा की पहली फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’16 दिसंबर को ‘डिज़्नी प्लस हाॅटस्टार’ पर स्ट्ीम होने वाली है.शशांक खेतान निर्देशित इस फिल्म में जीवा के साथ विक्की कौशल, किआरा अडवाणी,भूमि पेडणेकर,रेणुका शहाणे व अमेय वाघ जैसे कलाकार हैं.मजेदार बात यह है कि एक वक्त वह था जब अभिनेता रंजीत के बंगले में जीवा अपने दो दोस्तों टाइगर श्राफ व रिंजिंग के साथ मार्शल आर्ट सीखा करते थे.तभी अनुमान लग गया था कि यह तीनों बौलीवुड से जुड़ेंगे.टाइगर श्राफ ने 2014 में फिल्म ‘हीरोपंती’ से बौलीवुड में कदम रखा और एक्शन स्टार के रूप में उनकी पहचान बन चुकी है.रिन्जिंग डेंजोगपा भी ‘स्क्वाड’ से बौलीवुड मे कदम रख चुके हैं और अब ख्ुाद जीवा ने ‘गोविंदा नाम मेरा’ से बौलीवुड में कदम रखा है.

प्रस्तुत है जीवा से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..

सवाल –  आप अभिनेता रंजीत के बेटे हैं.आपके  साथ मार्शल आर्ट सीखने वाले आपके दोनोे खास दोस्त काफी पहले ही अभिनय जगत से जुड़ चुके हैं,तो फिर आपने इतनी देर से बौलीवुड मे कदम क्यो रखा?

जवाब – यह सच है कि टाइगर श्राफ व रिंजिंग मेेरे खास दोस्त हैं.हम तीनों कभी एक साथ मार्शल आर्ट की ट्ेनिंग भी लिया करते थे. मगर यह ट्ेनिंग लेते वक्त हम तीनों मे से किसी के भी मन में बौलीवुड से जुड़ने की इच्छा नही थी.हम तीनों तो स्पोर्टस के शौकीन रहे हैं.हमने मार्शल आर्ट की ट्ेनिंग भी स्पोटर्् समझ कर ही ली थी.

सवाल – आप लोग किस तरह के स्पोर्ट्स खेलते थे?

जवाब – मैने राज्य स्तर पर बैंडमिंटन खेला है.मेरे बहुत खास दोस्त टाइगर श्राफ बहुत बढ़िया फुटबालर था.बास्केटबाल भी बहुत अच्छा खेलता था.वह मुझे फुटबाल व बास्केट बाल सिखाता था और मैं उसे बैडमिंटन व मोटर स्पोर्ट्स सिखाता था.कार रेसिंग करना सिखाता था.स्पोर्टस में हम दोनों एक दूसरे को ‘पुष’ किया करते थे.हम दोनों पढ़ाई से ज्यादा स्पोटर््स में ध्यान दिया करते थे.

सवाल – स्पोर्ट्स से भी पैसा शोहरत बटोरी जा सकती है.तो फिर आपने स्पोर्ट्स को अलविदा कह कर फिल्मो में अभिनय करने का निर्णय क्या सोचकर लिया?

जवाब – सच कहें तो उन दिनों स्पोटर््स में कैरियर बनाना आसान नहीं था.उन दिनों क्रिकेट ही लोकप्रिय था.हम जिस स्पोटर््स के खेलते थे,उसे ज्यादा लोकप्रियता हासिल नही थी.इसके अलावा माना कि बचपन में मुझे फिल्म इंडस्ट्ी से नफरत थी.क्यांेकि मैं बचपन से देखता आ रहा था कि मेरे पिता जी फिल्मों में मार खा रहे हैं.मैने फिल्में देखनी बंद कर दी थी.उसके बाद 15-16 साल की उम्र से मैने पुनः फिल्में देखनी षुरू की.तब मुझे ‘ओंकारा’, ‘मकबूल’, ‘वास्तव’,‘कई पो चे’ जैसी फिल्में काफी पसंद आयीं.‘कई पो चे’ की कहानी तो मुझे काफी पसंद आयी और इस फिल्म को देखकर मेरे अंदर फिल्म इंडस्ट्ी से जुड़ने की बात आयी.सच कहॅूं तो ‘कई पो चे’ देखने के बाद मुझे लगा कि अब अच्छी कहानियों पर काम हो रहा है,जिससे मेरे अंदर धीरे धीरे फिल्म इंडस्ट्ी के प्रति पैशंन बढ़ता गया.इसके अलावा मुझे समझ में आया कि फिल्मों में काम करने वाला कलाकार कैमरे के सामने एकदम अलग इंसान होता है और कैमरे के सामने से हटने पर वह इंसान अलग होता है.यह बात मुझे बहुत ही ज्यादा फैशिनेटिंग लगी.फिल्मों मंे अभिनय करने पर किसी को पता नहीं होता कि जीवा कौन है? तो स्पोटर््स खेलते हुए भी फिल्म का कीड़ा लग गया था.

सवाल – आप भी टाइगर श्राफ पहले भी बौलीवुड से जुड़ सकते थे?

जवाब -जब मैं और टाइगर श्राफ एक साथ मार्शल आर्ट सीख रहे थे,उस वक्त हम दोनो का अप्रोच अलग था.मुझे कैमरे के पीछे क्या होता है,वह सीखने का शौक था.मुझे बिजनेस का भी शौक है.मैं अपना  स्टार्ट अप शुरू करना चाह रहा था.मैं अभिनय को कैरियर बनाने की दिशा मंे सोचने की बजाय इस बात को सीख रहा था कि फिल्म का व्यवसाय है क्या? यहां फिल्में कैसे बनती हैं.क्या अप्रोच होती है? किसी फिल्म में फलां हीरो या फलां हीरोईन को क्यों लेते हैं,यह समझने पर ध्यान दे रहा था.तो मैने टाइगर श्राफ के साथ अभिनय की तरफ कदम नही बढ़ाए थे.जबकि उसका फोकश अभिनेता बनना ही था.

सवाल – तो फिर अभिनय की तरफ मुड़ना कैसे हुआ?

जवाब – जब मैने अभिनय को कैरियर बनाने का निर्णय लिया,तब मेरा पहला निर्णय यह था कि मैं अपने पिता से मदद नही लॅूंगा.इसलिए मैने अपने माता पिता को भनक लगे बिना अपने तरीके से तैयारी करनी षुरू की.सबसे पहले मैने खुद ही परखना शुरू किया कि क्या मैं कर पाउंगा? इसलिए मैने कुछ वर्ष पहले औडीशन देना शुरू किया था.मैं चाहता था कि मैं अंदर से श्योर हो जाउं कि मैं कर पाउंगा या नहीं…मैं जो कदम उठाने जा रहा था,जिस दिशा में आगे बढ़ना चाहता था,उसके बारे में जानकारी भी लेना चाहता था.वर्किंग मैथड को समझना था.देखिए,संघर्ष का अपना अलग मजा होता है.औडीशन देते हुए मैंने काफी रिजेक्शन सहे.औडीशन के वक्त किसी को पता नहीं चल रहा था कि मैं कौन हॅूं.औडीशन करते हुए मैं सीख रहा था कि मैं क्या गलत कर रहा हॅंू और उसे किस तरह से सुधारना है.फिर मुझे एक्टिंग वर्कशाॅप करने का भी मौका मिला.वर्कशाॅप की वजह से मैने कुछ लघु फिल्मों में भी अभिनय कर लिया.मैने इंटरनेशनल स्टूडियो की एक फिल्म के लिए औडीशन दिया था,वह कुछ वजहो ंसे आगे नहीं बढ़ी.मगर उसी स्टूडियो के लिए मैने ख्ुाद एक लघु फिल्म का निर्माण कर डाला.इस तरह फिल्म निर्माण का अनुभव हासिल हुआ.तो मैने कैमरे के पीछे जमीनी काम करने में काफी समय बिताया और बहुत कुछ सीखा.इसके अलावा मैने अपने पिता जी को अक्सर देखा करता था कि वह अपने किरदार के लिए किस तरह से तैयारी करते हैं.तो जाने अनजाने वह सब मैं सीख ही रहा था.औडीशन देते हुए मेरे अंदर का आत्म विश्वास जागा.आज कल तो सोशल मीडिया पर सभी लोकप्रिय कास्टिंग डायरेक्टरों के बारे में पता चलता रहता है कि वह किस तरह के किरदार के लिए कलाकार ढूंढ रहे हैं,कहंा औडीशन हो रहे है.तो मैं भी औडीशन देने पहुॅच जाता था.

सवाल – बतौर अभिनेता पहली फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ से जुड़ने का अवसर कैसे मिला?

जवाब – तकदीर ने मुझसे इस फिल्म में अभिनय करवा लिया.हकीकत में मुझे लिखने का भी शौक रहा है.मैने दो कहानियां लिखी हैं,जिन पर मैं चाहता हॅंू कि फिल्म बने.इसीलिए मैं शशंाक खेतान से मिला.षंषंाक खेतान ने मुझसे कहा कि वह हमारी कहानियों पर काम करेंगे,पर पहले मैं औडीशन दे दॅूं.तो उनके कहने पर मैने काॅस्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबड़ा के यहां जाकर औडीशन दिया. मुझे दो तीन बार औडीशन देना पडा और फिर एक दिन मुझे पता चला कि मुझे फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ में अभिनय करने के लिए चुन लिया गया है.फिल्म की स्क्रिप्ट भी मजेदार थी.स्क्रिप्ट पढ़ते हुए मुझे हंसी आ रही थी.फिर शशंाक खेतान के निर्देषन में काम करना था,तो मना नही कर पाया.मेरी समझ से कोई पागल ही इस फिल्म के करने से मना करता.

सवाल – फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ मंे आपका अपना किरदार क्या है?

जवाब – मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहॅूंगा कि मैने अपनी जिंदगी मंे नहीं सोचा था कि इस तरह के बेहतरीन किरदार के साथ मेरे कैरियर की शुरूआत होगी.मुझे तो यकीन भी नहीं था कि मैं इस किरदार को निभा पाउंगा.पर निर्देशक शशांक खेतान ने मुझ पर विश्वास किया और मुझसे काम करवा लिया.सोलह दिसंबर को जब आप फिल्म देखेंगंे,तो आपकी समझ में आएगा कि मेरा किरदार क्या है.अभी से कुछ कहना ठीक नहीं होगा.

सवाल – आपके पिता रंजीत को कब पता चला कि आप भी बौलीवुड से जुड़ चुके हैं?

जवाब – फिल्म ‘‘गोविंदा नाम मेरा’’ की षूटिंग षुरू करने से पहले मेरी मम्मी का जन्मदिन था.उस दिन मैने जन्मदिन उपहार के रूप में यह खबर अपने पिता के समाने अपनी मां को दी थी.मगर मेरी मां या पिता जी या बहन किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया.मैं काम करता रहा.जब फिल्म का ट्ेलर रिलीज हुआ,तब पहली बार मेरे पिता जी को यकीन हुआ कि मैं अभिनेता बन गया हॅूं.

सवाल – आपने भी कुछ कहानियंा लिखी हैं.ऐसे में किरदारों को समझने की अलग ताकत अपने आप विकसित हो जाती है.इसकी वजह से भी आपके लिए अभिनय करना आसान हो हुआ होगा?

जवाब – आपने एक दम सही कहा.मैंने तीन कहानियां लिखी हैं.यह तीनों एकदम अलग जाॅनर की कहानियंा हंै.कहानियंा लिखते हुए मुझमे किरदार की बैकस्टोरी विकसित करने की कला आ गयी.तो इस किरदार को निभाते हुए मैने किरदार की बैक स्टोरी को समझा, जिससे किरदार में ढलने में मुझे आसानी हुई.

सवाल – लिखने का शौक कब पैदा हुआ?

जवाब – मुझे बचपन से ही लिखने व स्केच बनाने का शौक रहा है.मुझे गाड़ियों /कार का भी शौक है,तो मैं गाड़ियों की स्केच बनाता था.मुझे टेकनोलाॅजी का भी शौक है,तो मैं गाड़ियो के कम्पोनेंट डिजाइन करता था.मेरे कमरे मे भी आपको इस तरह की किताबें बहुत मिल जाएंगी.मुझे पढ़ने का भी बेहद शौक है.फिर जब मेरी रूचि फिल्मों में बढ़ी,तो कहानी लिखने की गति भी बढ़ गयी.मैं हर फिल्म देखते समय उसकी तकनीक व उसके बिजनेस अस्पेक्ट पर ध्यान देता रहता हॅूं.

सच कहॅू तो मैं बचपन मंे पत्र और कविताएं बहुत लिखता था.मेरे खास दोस्त अभिनेता डैनी के बेटे रेंजिल हैं.वह बोर्डिंग स्कूल में पढ़ते थे,तो हम उन्हे पत्र लिखा करते थे.फिर मंैं,टाइगर श्राफ व रेंजिल ने कए साथ मार्षल आर्ट की ट्ेनिंग भी ली. उस वक्त हम तीनों मार्षल आर्ट अपने लिए सीख रहे थे.उस वक्त इसे सीखने के पीछे हम तीनो का मकसद फिल्मों से जुड़ना नहीं था.हमारे लिए मार्षल आर्ट सीखना मतलब एक्सरसाइज करना था.

सवाल – शौक?

जवाब – मुझे बिजनेस का शौक है.मैं अपने तीन स्टार्ट अप विकसित कर रहा हॅूं.सब कुछ ठीक ठाक रहा,तो 2023 में घोषणा करुंगा.

इस दिन शादी करेंगे अथिया शेट्टी और क्रिकेटर केएल राहुल

बॉलीवुड इंडस्ट्री में आए दिन तमाम सितारों के लिंकअप और शादी की खबरें आती रहती हैं. इनमें एक नाम है एक्ट्रेस अथिया शेट्टी (Athiya Shetty) का भी है. अथिया शेट्टी और क्रिकेटर केएल राहुल (KL Rahul) एक दूसरे को काफी समय से डेट कर रहे हैं. इस कपल की शादी की खबरें अक्सर आती रहती हैं. एक बार फिर अथिया शेट्टी और केएल राहुल की शादी को लेकर नया अपडेट आया है. लेटेस्टे मीडिया रिपोर्ट में बताया जा रहा है कि इस कपल ने साल 2023 में जनवरी के महीने में अपनी शादी की डेट फाइनल कर ली है.

 

 

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अथिया शेट्टी और केएल राहुल जनवरी, 2023 में करेंगे शादी

 ‘पिंकविला’ की रिपोर्ट के मुताबिक, अथिया शेट्टी और केएल राहुल की शादी के कार्यक्रम 21 से 23 जनवरी के बीच होंगे. सुनील शेट्टी और माना शेट्टी की बेटी आथिया शेट्टी और केएल राहुल जनवरी के चौथे सप्ताह में शादी करने जा रहे हैं. कपल की शादी के दौरान परिवार और करीबी दोस्त शामिल होंगे. रिपोर्ट में बताया गया है कि अथिया शेट्टी और केएल राहुल दिसंबर के आखिर तक निमंत्रण भेजने वाले है और 21 से 23 जनवरी की डेट को लॉक करने के लिए बोलने वाले हैं. इस कपल की शादी में कुछ दिन बचे हैं इसलिए तैयारियां जोरों पर हैं. इन दोनों की शादी साउथ इंडियन की तरह होने वाली है, जिसमें हल्दी, मेहंदी और संगीत जैसे कार्यक्रम होंगे. हालांकि, अथिया शेट्टी और केएल राहुल ने शादी को लेकर कोई भी कमेंट करने से मना किया है.

 

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अथिया शेट्टी और केएल राहुल का रिश्ता

गौरतलब है कि अथिया शेट्टी और केएल राहुल बीते तीन साल से एक-दूसरे को डेट कर रहे हैं। दोनों ने बीते साल अपने रिलेशनशिप को ऑफिशियल किया था जब अथिया शेट्टी अपने भाई अहान शेट्टी की फिल्म ‘तड़प’ की स्क्रीनिंग पर बॉयफ्रेंड केएल राहुल के साथ पहुंची थीं। अथिया शेट्टी अक्सर बॉयफ्रेंड केएल राहुल के इंटरनेशनल क्रिकेट टूर पर उनके साथ जाती हैं। वर्क फ्रंट की बात करें तो अथिया शेट्टी ने साल 2015 में फिल्म ‘हीरो’ से बॉलीवुड डेब्यू किया था। इस फिल्म में उनके साथ सूरज पंचोली थे। अथिया शेट्टी पिछली बार साल 2019 में रिलीज हुई फिल्म ‘मोतीचूर चकनाचूर’ में नवाजुद्दीन सिद्दीकी के साथ नजर आई थीं।

बिग बॉस 16: नॉमिनेशन के दौरान सुम्बुल से नाराज हुईं प्रियंका कहा- मगरमच्छ के आंसू

बिग बॉस 16 के नॉमिनेशन हमेशा ड्रामा का कारण बनते हैं. अब तो ओपन नॉमिनेशन हैं, इसलिए सबको पता है कि कौन किसे टारगेट कर रहा है. बिग बॉस 16 के लेटेस्ट प्रोमो में इस हफ्ते के नॉमिनेशन को लेकर बहुत सारा ड्रामा देखा जा सकता है. मंडली प्रियंका चाहा चौधरी को निशाने पर लेती नजर आ रही है. यह एमसी स्टेन है जो उसे यह कहते हुए नामांकित करता है कि उसे उसकी आवाज़ पसंद नहीं है, जबकि शिव ठाकरे कहते हैं कि वह ‘डबल ढोलकी’ है. वह बताता है कि उसके दोहरे मापदंड क्यों हैं. निमृत कौर अहलूवालिया ‘तमीज़’ के बारे में बात करती हैं और कहती हैं कि उनके पास इसमें से कुछ भी नहीं है. यह बहुत स्पष्ट नहीं है कि सुम्बुल तौकीर खान किसे नामांकित करता है, लेकिन वह प्रियंका चाहर चौधरी के साथ एक बड़े पैमाने पर लड़ाई में शामिल हो जाती है.

 

सुम्बुल और प्रियंका के बीच जबरदस्त लड़ाई-

सुम्बुल तौकीर खान ‘तमीज़’ के बारे में बात करते हैं और उल्लेख करते हैं कि कोई नहीं है और प्रियंका चाहर चौधरी आगबबूला हो जाती हैं. वह इमली स्टार के खिलाफ कुछ घटिया कमेंट्स करती है. वह बताती हैं कि सुम्बुल ‘मगरमच के आसू’ रोती थी, यानी नकली आंसू क्योंकि वह प्रतिभाशाली है. साजिद खान ने सुझाव दिया था कि उन्हें प्रियंका चाहर चौधरी को कप्तान बनाना चाहिए. निमृत कौर अहलूवालिया और शिव ठाकरे ने इसका विरोध किया कि वे नहीं चाहते कि वह घर की कप्तान बने. वर्तमान में, तीन प्रतियोगी हैं जो कप्तान हैं – सुम्बुल तौकीर, टीना दत्ता और सौंदर्या शर्मा.

 

 

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मॉर्निंग डांस को लेकर प्रियंका और अंकित में हुई लड़ाई-
इसके  बाद  72वें  दिन   की  सुबह डांस  सेशन  और  एक्सरसाइज  से  होती  है. सभी  घरवाले  डांस  के  साथ  एक्सरसाइज  को  एंजॉय  करते  हैं.  सुबह-सुबह  प्रियंका  और  अंकित  के  बीच  डांस  करने को  लेकर  बहस  हो  जाती है. इसके  बाद  अंकित  प्रियंका  से  उनकी  टोन को  लेकर  बात  करते  हैं  तो  प्रियंका  कहती  हैं  कि  मेरा  टोन  ही ऐसा तो  मैं  क्या  करूं.  इसके  बाद  अंकित  प्रियंका  को  प्यार  से  सॉरी  भी  बोल  देते  हैं  और  बाद  में  गले  भी  लगाते हैं.

जल समाधि: आखिर क्यूं परेशान था सुशील? भाग 1

राममोहन पंचायत के जिला अध्यक्ष थे. उन्होंने जनता की भलाई के लिए अनेक काम करवाए थे और हमेशा ही सरकार की नई योजनाओं को आम जनता तक पहुंचाने के लिए आगे रहते थे, इसलिए जनता के बीच उन की इमेज भी अच्छी थी.

60 साल की उम्र में भी खानेपीने के शौकीन राममोहन के चेहरे पर एक हलकी सी मुसकराहट हमेशा ही फैली रहती थी, पर यह मुसकराहट तब न जाने कहां गायब हो जाती थी, जब उन का सामना अपने एकलौते बेटे सुशील से होता था. उसे देखते ही वे मुंह घुमा लेते थे. इस मनमुटाव की वजह यह थी कि सुशील के 2 बेटियां ही थीं. राममोहन को अपने वंश के खत्म हो जाने का डर सता रहा था. सुशील अपने एक दोस्त के साथ मिल कर एक एनजीओ चलाता था, जो अनाथ बच्चों को आश्रय देने और उन की पढ़ाई वगैरह का खर्च चलाती थी.

पिछली 2 बार से जब भी सुशील की बीवी रीता को बच्चा ठहरा था, तो उस ने पेट में पल रहे भ्रूण के लिंग की जांच करवाई थी. पेट में पल रहा बच्चा लड़की है, यह जानने के बाद सुशील और रीता ने पेट गिरा दिया और समय बीतने के बाद कहीं न कहीं सुशील के मन में यह बात घर कर गई थी कि उस के अंदर लड़का पैदा करने की ताकत नहीं है. लिहाजा, अब सुशील खुश भी नहीं रह पाता था. शाम को जल्दी ही खाना खा कर चादर ओढ़ कर सो जाता, न बेटियों के साथ हंसनाखेलना और न ही रीता के साथ कोई बातचीत. पर आज पता नहीं कैसे उस ने रीता से उस का हालचाल पूछ ही लिया, ‘‘क्या बात है रीता, इतनी टैंशन में क्यों रहती हो आजकल?’’

‘‘अब टैंशन मैं न लूं तो कौन ले… एक तो 2-2 लड़कियां और पिताजी को अपने वंश की चिंता… ताने तो मुझे सुनने पड़ते हैं न…’’ रीता ने कहा. रीता अपनी बेटियों के बारे में इसलिए भी चिंतित थी कि उन दोनों का रंग सांवला था और आजकल लोग गोरे रंग की लड़कियों से ही शादी करना पसंद करते हैं. लेकिन आज जैसे ही रीता ने टैलीविजन पर गोरा बनाने वाली क्रीम का इश्तिहार देखा, तो वह नुक्कड़ की दुकान पर क्रीम लेने चली गई.

इस दुकान पर प्रकाश नाम का एक 40 साल का दिलफेंक आदमी बैठता था. वह जाति से ब्राह्मण था और अपनी दुकान पर भी उस ने देवीदेवताओं की तसवीरें लगा रखी थीं. अपने गोरे चेहरे पर एक लंबा सा टीका लगा कर वह धार्मिक होने का दिखावा करता था. धर्म की आड़ ले कर ही तो बड़ेबड़े ओछे काम किए जाते हैं. जैसे ही रीता दुकान पर पहुंची, तो प्रकाश की आंखें उस के गदराए बदन का ऐक्सरे करने में जुट गईं. ‘‘अरे, आइए रीताजी, आप मेरी दुकान में आईं, तो इस दुकान के भाग्य  खुल गए…’’ रीता प्रकाश की यह बात सुन कर मुसकराए बिना न रह सकी और बिना कुछ कहे उस ने गोरा होने वाली क्रीम मांग ली. ‘‘आप तो इतनी खूबसूरत हैं, आप को भला किसी क्रीम की क्या जरूरत…’’

अपनी तारीफ सुनना तो हर औरत को अच्छा लगता है. रीता के मन में भी यह सुन कर एक गुदगुदी सी हुई थी. प्रकाश से क्रीम लेने के बाद रीता जैसे ही वापस मुड़ी, तो प्रकाश ने उसे अपनी दुकान का कार्ड देते हुए उसे बताया कि कार्ड पर उस का मोबाइल नंबर है. अगर उसे किसी भी चीज की जरूरत हो, तो वह उस प्रोडक्ट का नाम लिख कर भेज दे, तो वह ‘होम डिलीवरी’ करवा देगा, वह भी एकदम मुफ्त.

अपनी दोनों बेटियों के गालों पर रोजाना क्रीम लगाने के बाद रीता को महसूस हुआ कि उन की रंगत में कुछ सुधार तो जरूर हुआ है, इसलिए उस ने सोचा कि क्यों न एकाध क्रीम और मंगवा ले. उस ने मोबाइल से प्रकाश को क्रीम भेजने के लिए मैसेज कर दिया. मैसेज देखने के कुछ देर बाद ही खुद प्रकाश रीता के घर पहुंच गया. साथ ही, वह रीता की बेटियों के लिए चौकलेट और बिसकुट ले जाना नहीं भूला था. इस के बाद तो अगली सुबह से ही रीता के मोबाइल पर प्रकाश के गुड मौर्निंग वाले मैसेज आने लगे. बदले में रीता ने भी जवाब देना शुरू कर दिया था.

कुछ दिनों के बाद प्रकाश ने रीता को चुटकुले भेजने शुरू किए, तो रीता उन्हें पढ़ कर हंसती थी. धीरेधीरे वे चुटकुले नौनवैज चुटकुलों में बदल गए और रीता के मन को गुदगुदाने लगे. धीरेधीरे प्रकाश ने एक गंदी तसवीर भी रीता को भेजी और जैसे ही रीता ने उसे देखा, तो थोड़ी ही देर बाद प्रकाश ने उसे ‘डिलीट फौर एवरीवन’ की मदद से डिलीट कर दिया और माफी मांगते हुए अगला मैसेज कर दिया कि गलती से चला गया था. लेकिन कहीं न कहीं प्रकाश की यह गलती रीता को भी मन ही मन अच्छी तो लग ही रही थी.

एक सुबह की बात है. राममोहन अपने आंगन में आरामकुरसी पर बैठे हुए लोगों की समस्याएं सुलझा रहे थे कि तभी प्रकाश भी वहां आया और राममोहन के पैर छूने के बाद उस ने उन्हें बातोंबातों में बता दिया कि वह रीताजी के लिए कुछ ब्यूटी प्रोडक्ट्स लाया है. सुशील उस समय घर में नहीं था, फिर भी राममोहन ने उसे अंदर जाने की इजाजत दे दी. रीता और उस की बेटियों के साथ कुछ समय बिता कर प्रकाश वापस चला गया, मगर उस दिन के बाद से वह अकसर रीता के घर आनेजाने लगा और कई बार तो वह राममोहन के सामने ही घर आया, मगर राममोहन ने न तो कभी रीता के चरित्र पर शक किया और न ही प्रकाश को आने से रोका.

आज सुशील जल्दी ही बाहर चला गया था. दोनों बेटियां पास के घर में खेलने चली गई थीं कि तभी प्रकाश बेझिझक हो कर आ गया. रीता भी उसे देख कर नहीं चौंकी. ‘‘इस बार गेहूं की फसल बिलकुल भी अच्छी नहीं हुई,’’ प्रकाश के बैठते ही रीता ने कहा. ‘‘फसल तो तब अच्छी होगी, जब बीज अच्छा होगा… खाली खेत में हल चलाने से कुछ नहीं होगा,’’ प्रकाश ने रीता को ऊपर से नीचे की ओर घूरते हुए कहा. उन दोनों के बीच अब तक एक अलग ही रिश्ता पनप रहा था, जिसे मन ही मन में दोनों समझ रहे थे. प्रकाश ने  हाथ धोने के लिए जाते समय रीता के पास से गुजरते हुए अपनी कुहनी का दबाव उस के सीने पर बढ़ा दिया और जैसी कि प्रकाश को उम्मीद थी, रीता ने इस बात का कोई विरोध नहीं किया.

Tips For Happy Family Life: 4 ईजी टिप्‍स से जाने हैप्‍पी फैमिली लाइफ

हर किस के जीवन में फैमिली की अहम भूमिका होती है. और फैमिली में यूनिटी होना बेहद जरूरी होता है. आपको फैमिली के साथ जो खुशी मिलती है, वह और कहीं नहीं मिलती.

ऐसा कहा जाता है कि एक घर तब घर कहलाता है, जब उसमें आपका परिवार रहता है. परिवार और उसकी खुशी के आगे सारी चीजें छोटी लगती है. फैमिली में हर एक सदस्य को आपस में सहेज कर रखना आपकी जिम्मेदारी है. तो आइए जानते हैं, हैप्पी फैमिली लाइफ के लिए आपको क्या करना चाहिए.

1. एक साथ बैठकर खाना खाएं

एक साथ खाना खाने से भी आपका रिश्‍ता मजबूत होता है और परिवार में प्‍यार बढ़ता है. भले ही किसी दिन आपको अलग खाना पड़ जाए, लेकिन आप कोशिश करें कि परिवार के साथ बैठकर खाना खाएं.

2. अच्‍छी चीजों की करें तारीफ 

जब कभी आपको लगे कि परिवार के किसी सदस्‍य या बच्‍चे ने कुछ अच्‍छा किया है, तो आप उनकी सराहना करें.  ऐसा करने से उन्‍हें खुशी मिल सकती है. इससे आपके परिवार में करीबियां बढ़ेंगी.

3. वीकेंड ट्रिप पर जाएं

जरूरी नहीं कि परिवार होने के बाद आपका हर वीकेंड घर के काम काजों में ही बीते. आप अपने बच्‍चों के साथ मिलकर एक वीकेंड ट्रिप का प्‍लान करें. जिसमें आप कहीं घूमने, मूवी देखने, पिकनिक मनाने या फिर अन्‍य कुछ प्‍लान कर सकते हैं. यह आपके बच्‍चों और परिवार के लोगों को एक-दूसरे को करीब लाने में मदद करेगा.

4. प्रोफेशनल और प्रसनल लाइफ के बीच बिठाएं तालमेल

आप कोशिश करें कि अपने काम को इस हिसाब से मैनेज करें कि आप परिवार को भी समय दे पाएं. ऐसा न हो कि हर बार परिवार की जरूरतों या चाहतों के सामने आपका काम रोड़ा बनकर आए. पर्सनल या प्रोफेशनल लाइफ में से किसी एक को भी नजरअंदाज करना आपकी फैमिली लाइफ पर बुरा असर डाल सकता है.

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