दादी अम्मा : आखिर कहां चली गई थी दादी अम्मा- भाग 3

शादी के कुछ दिनों बाद से ही बहू का मुंह फूलना शुरू हो गया. फिर एक दिन उस ने रेहान से साफतौर पर कह दिया, ‘मेरी तबीयत ठीक नहीं रहती, ऊपर से पूरे कुनबे की नौकरानी बना कर रख छोड़ा है. अब मुझ से और नहीं होगा.’

एक साल बीततेबीतते उस ने मनमुटाव कर के अपने शौहर से घर में अपने हिस्से में दीवारें खिंचवा लीं. नतीजा यह हुआ कि सकीना बेगम जिस चूल्हाचक्की से निकलने की आस लगाए बैठी थीं, दोबारा फिर उसी में जा फंसीं. रेहान की बड़ी बेटी आरजू उस के अपने हिस्से में ही पैदा हुई. उस के जन्म लेते ही सकीना बेगम दादी अम्मा बन गईं.

अब आस थी दूसरे बेटों की बहुओं से. लेकिन यह आस भी जल्द ही टूट गई. जब जुबैर और फिर फैजान का विवाह हुआ तो नई आई दोनों बहुएं भी बड़ी के नक्शेकदम पर चल पड़ीं. बड़ी ने छोटियों के भी ऐसे कान भरे कि उन्होंने भी अपनेअपने शौहरों को अपने कब्जे में कर उस संयुक्त घर में ही अपनेअपने घर बना डाले. अपने हिस्से में रह गए सुलेमान बेग और दादी अम्मा. बदलती परिस्थितियों में उन की बेगम अकेली न रहें, इसलिए सुलेमान बेग ने समय से 2 साल पहले ही रिटायरमैंट ले लिया. लेकिन फिर भी वे अपनी बेगम का साथ ज्यादा दिन तक नहीं निभा सके. रिटायरमैंट के कोई डेढ़ साल बाद सुलेमान बेग हाई ब्लडप्रैशर के झटके को झेल नहीं पाए और दादी अम्मा को अकेला छोड़ गए.

दादी अम्मा शौहर की मौत के सदमे से दिनोंदिन और कमजोर होती गईं. बीमारियों ने भी घेर लिया, सो अलग. पति की पैंशन से ही रोजीरोटी और दवा का खर्चा चल रहा था.

बेटी बहुत दूर ब्याही थी, इसलिए कभीकभार ही वह 2-3 दिन के लिए आ पाती थी.

दादी अम्मा सारा दिन अपने कमरे और बरामदे में अकेली पड़ी रहतीं और हिलते सिर के साथ कंपकंपाते हाथों से जैसेतैसे अपनी दो जून की रोटी सेंक लेतीं. सामने बेटों के घरों से पकवानों की खुशबू तो आती लेकिन पकवान नहीं. वे तरस कर रह जातीं. ठंड में पुराने गरम कपड़ों, जिन के रोंए खत्म हो चुके थे, के बीच ठिठुरती रहतीं. 3 बेटों और बहुओं के होते हुए भी वे अकेली थीं. वे कभीकभार ही दादी अम्मा वाले हिस्से में आते, वह भी बहुत कम समय के लिए. आते भी तो खटिया से थोड़ी दूर पर ही बैठते. दादी अम्मा के पास आना उन्हें एक बोझ सा लगता. बस, बच्चे ही उन के साथी थे. वे ‘दादी अम्मा, दादी अम्मा’ कहते हुए आते, उन की गोदी में घुस जाते और कभी उन का खाना खा जाते. इस में भी दादी अम्मा को खुशी हासिल होती, जैसेतैसे वे फिर कुछ बनातीं. बच्चों में आरजू दादी अम्मा के पास ज्यादा आयाजाया करती थी और उन की मदद करती रहती थी. सही माने में आरजू ही उन के दुखदर्द की सच्ची साथी थी.

पिछली सर्दियों में हाड़ गला देने वाली ठंड पड़ी तो लगा कि कहीं दादी अम्मा भी दुनिया न छोड़ दें. किसी बड़े चिकित्सालय के बजाय बेटे महल्ले के झोलाछाप डाक्टर से उन का इलाज करवा रहे थे. इस से रोग और बढ़ता गया. एक दिन जब तबीयत ज्यादा बिगड़ी तो बेटे और बहुएं उन की चारपाई के आसपास बैठ गए. पता चलने पर दादी अम्मा के दूर के रिश्ते का भतीजा साजिद भी अपनी पत्नी मेहनाज के साथ आ गया. दोनों शिक्षित थे और दकियानूसी विचारों से दूर थे. दोनों सरकारी नौकरी पर थे और अवकाश ले कर अम्मा का हाल जानने आए थे.

आरजू के अलावा यही दोनों थे जो दूर रह कर भी उन का हालचाल पूछते रहते थे और मदद भी करते रहते थे.

‘बड़ी मुश्किल में हैं अम्मा. जान अटकी है. समझ में नहीं आता क्या करें,’ रेहान का गला भर आया.

‘सच्ची, अम्मा का दुख देखा नहीं जाता. इस से तो बेहतर है कि छुटकारा मिल जाए,’ बड़ी बहू ने अपने पति की हां में हां मिलाई.

‘अम्मा के मरने की बात कर रहे हैं, आप लोग. यह नहीं कि किसी अच्छे डाक्टर को दिखाया जाए,’ जब रहा नहीं गया तो साजिद जोर से बोल पड़ा.

बेटेबहुओं ने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन नाकभौं चढ़ा लिए.

साजिद और मेहनाज ने समय गंवाना उचित नहीं समझा. वे दादी  अम्मा को अपनी कार से उच्चस्तरीय नर्सिंग होम में ले गए और भरती करा दिया. बेटे दादी अम्मा के भरती होने तक नर्सिंग होम में रहे, फिर वापस आ गए, भरती होने में खर्चे को ले कर भी तीनों बेटे एकदूसरे को देखने लगे. रेहान बोला, ‘इस वक्त तो मेरा हाथ तंग है. बाद में दे दूंगा.’

‘मेरे घर में पैर भारी हैं, परेशानी में चल रहा हूं,’ कहते हुए जुबैर भी पीछे हट गया.

फैजान ने चुप्पी साधते हुए ही अपनी मौन अस्वीकृति दे डाली.

‘आप लोग परेशान न हों, हम हैं तो. सब हो जाएगा,’ मेहनाज ने सब को तसल्ली दे दी.

दादी अम्मा करीब 10 दिन भरती रहीं. बेटे वादा तो कर के गए थे बीचबीच में आने का, लेकिन ऐसे गए कि पलटे ही नहीं. बेटों ने अपने पास रहते हुए जब दादी अम्मा की खबर नहीं ली तो दूर जाने पर तो उन्होंने उन्हें बिलकुल ही भुला दिया. साजिद और मेहनाज ही उन के साथ रहे और एक दिन के लिए भी उन्हें छोड़ कर नहीं गए. दोनों पतिपत्नी ने अपनेअपने विभागों से छुट्टी ले ली थी. सही चिकित्सा और सेवा सुश्रूषा से दादी अम्मा की हालत काफी हद तक ठीक हो गई.

उदास क्षितिज की नीलिमा: आभा को बहू नीलिमा से क्या दिक्कत थी- भाग 2

नीचे सास आराम से बरगद पेड़ के नीचे बने चबूतरे पर बैठी पंडित जी से बतिया रही थीं.

आभा को डरने की बीमारी रही है शुरू से. जब से ब्याह कर आई थीं, इस मंदिर में शिव की पूजा कर के डर भगाने की कोशिश करती थीं. अब बहू है तो पूजा के लिए उसे ही ऊपर भेज पंडित जी से नाना तरह के डर भगाने के उपाय पूछा करती हैं. 10 सालों से सेवाराम पंडित इन के घर के पुरोहित हैं.

वे आएदिन इन्हें विधिविधान से पूजा बताते रहते और आभा नियम से  पंडित सेवाराम से पूजा करवाती रहतीं. भले ये लोग कुर्मी जाति से हैं, पंडित जी को इस घर से सेवामेवा खूब हासिल होता.

आजकल पंडित जी का बेटा ही ऊपर मंदिर में सुबह की पूजा देख लेता है. उस के औफिस चले जाने के बाद 11 बजे तक पंडित जी ऊपर जा कर दर्शनार्थियों की पूजा का भार संभालते. पत्नी रही नहीं, 25 साल का बेटा क्षितिज सुबह 7 बजे से मंदिर की साफसफाई और पूजा का दायित्व संभालता है. साढ़े 10 बजे नीचे अपने घर वापस आ कर जल्दी तैयार हो कर कचहरी निकलता है. कचहरी यानी उस का औफिस.

जिन सीनियर वकील के अंतर्गत वह जूनियर वकील की हैसियत से काम सीख रहा है और कानून की पढ़ाई के अंतिम वर्ष का समापन कर रहा है, उन रामेश्वर की एक बात वह कतई बरदाश्त नहीं कर पाता.

रामेश्वर उसे उस के नाम ‘क्षितिज’ से न बुला कर भरी सभा में ‘पंडी जी’ कहते हैं.

एक तो पंडित कहलाना उसे यों ही नागवार गुजरता, कम नहीं झेला था उस ने कालेज में, तिस पर सब के सामने पंडी जी. लगता है, धरती फटे और वह सब लोगों को उस गड्ढे में डाल गायब हो जाए.

शर्मिंदिगी यहीं खत्म होती, तो कोई बात थी.

रामेश्वर सर के क्लाइंट, कचहरी के लोगबाग जो भी सामने पड़े, ‘और, कैसी चल रही पूजापाठ पंडी जी?’ कह कर उस के आत्मविश्वास पर घड़ों पानी उलीच जाते. अरे, पूछना ही है तो क्षितिज के वकीली के बारे में पूछो, उस की जिंदगी और सपनों के बारे में पूछो. लेकिन नहीं. पूछेंगे पापा के काम यानी पूजापाठ और कर्मकांड.

क्या करे, इन्हें खफा भी नहीं कर पाता. मुक्का खा कर मुक्का छिपाने की आदत लगानी पड़ रही है क्षितिज को.

25 साल का क्षितिज गोरा, पौरुष से दमकते चेहरे वाला 5.9 फुट की हाइट का आकर्षक युवक है. वह आज का नवयुवक है, तार्किक भी, बौद्धिक भी. बस, जिस कमी के कारण वह अपनी जिंदगी खुशी से नहीं जी पा रहा है, वह है स्वयं के लिए आवाज उठाना, आत्मविश्वास से खुद को स्थापित करना.

रामेश्वर ठहरे धर्मकर्म से दूर के इंसान. बड़े दिनों से उन्हें क्षितिज की पूजापाठ की दिनचर्या पर टोकने की इच्छा थी. लेकिन क्षितिज जैसा होनहार युवक कहीं बुरा मान कर उन्हें छोड़ चला न जाए, वे सीधेमुंह उसे कुछ कह न पाते.

इधर क्षितिज से अब सहा नहीं जा रहा था. उस ने आखिर हिम्मत कर के कह ही डाली.

“सर, मुझे पंडी जी मत कहिए न, क्षितिज कहिए.”

“क्यों जनाब, बुरा लगता है? तो छोड़ दो न ये पंडी जी वाले काम. लोगों को अपनी भक्ति खुद ही करने दो न.  और भी काम हैं उन्हें करो. और तुम इतने होनहार हो…”

“सर, करूं क्या? मेरी तो बिलकुल भी इच्छा नहीं पंडिताई करने की. पापा की उम्र हो रही है, इसलिए मुझे उन के आधे से अधिक यजमानों की पूजा करवानी पड़ती है. एक तो पुराने घरों की प्रीत, दूसरे यजमानों से मिलने वाले सामानों व कमाई का मोह, पापा को काम छोड़ने नहीं देता.”

“अरे भाई, पापा से कहो उन से जो बन पड़े, करें. नई पीढ़ी को क्यों अकर्मण्यता वाले काम में झोंक रहे हैं? तुम जब तक हिम्मत नहीं करोगे, हम तो भाई तुम्हे पंडी जी ही कहेंगे, वह भी सब के सामने. अब तुम समझो कि कैसे निकलोगे इस पंडी जी की बेड़ी से.”

जब से रामेश्वर ने उस की सुप्त इच्छा में आग का पलीता लगाया है, दिल करता है वह पापा को मना ही कर दे. 12वीं क्लास पास करने के बाद से, बस, लालपीली धोतियां, पूजा, हवन, आरती, पूजा सामग्री, दान सामग्री आदि में उस की जिंदगी गर्क है. उस के सारे दोस्त अपनी जिंदगी में कितने खुश व मस्त हैं. वे एक सामान्य जिंदगी जीते हैं, कोई अपनी गर्लफ्रैंड और नौकरी में व्यस्त है, कोई नई शादी व व्यवसाय में.

उन्हें न तो यजमानों के घर दौड़ना पड़ता है, न यजमानों के दिए सामान बांध कर पीली धोती पहन स्कूटर से घर व मंदिर के बीच भागना पड़ता है. पापा से कहा भी था धोती पहन कर सड़क पर निकलने में उसे शर्म आती है, पूजा करवाने जाएगा भी, तो कुरतापजामा पहन कर. पापा ने साफ मना कर दिया. यजमानों को लगना चाहिए कि वह ज्ञानी पंडित हैं, वरना श्रद्धा न हुई तो अच्छे पैसे नही मिलेंगे. लेदे कर किसी तरह उस ने बालों में चोटी रखने को मना कर पाया, यह भी कम नहीं था.

दोस्त कहते, क्षितिज पर हमेशा उदासी क्यों छाई है. क्यों न रहे उदास वह. जब सारे दोस्त अपनी गर्लफ्रैंड के साथ जिंदगी का आनंद उठा रहे हैं, घूमफिर रहे हैं तब वह पापा के स्वार्थ के पीछे अपनी जिंदगी गंवा रहा है. यजमान देख लेंगे तो काम मिलना बंद हो जाएगा.

यहां तो सुबह से मंत्रतंत्र के पीछे किसी लड़की का ख्वाब भी क्या आए. कालेज के दिनों में  कभी किसी लड़की की ओर जरा साहस कर के आंख उठाई नहीं कि लड़कियां पंडित जी कह कर चिढ़ा देतीं, लड़के कहते, ‘तेरी ‘पूजा’ कहां है.’ वह मन में जब तक समझने की कोशिश करता, लड़के मौजूद लड़कियों के सामने ही कहते, ‘वही पूजा, जिसे तेरे पापा ने तुझे थमाई है.’

विश्वास: क्या थी कहानी शिखा की- भाग 2

‘‘क्यों है तुझे कमल अंकल से नफरत? अपने मन की बात मुझ से बेहिचक हो कर कह दे गुडि़या,’’ अंजलि का मन एक अनजाने से भय और चिंता का शिकार हो गया.

‘‘पापा के पास आप नहीं लौटो, इस में उस चालाक इनसान का स्वार्थ है और आप भी मूर्ख बन कर उन के जाल में फंसती जा रही हो.’’

‘‘कैसा स्वार्थ? कैसा जाल? शिखा, मेरी समझ में तेरी बात रत्ती भर नहीं आई.’’

‘‘मेरी बात तब आप की समझ में आएगी, जब खूब बदनामी हो चुकी होगी. मैं पूछती हूं कि आप क्यों बुला लेती हो उन्हें रोजरोज? क्यों जाती हो उन के घर जब वंदना आंटी घर पर नहीं होतीं? पापा बारबार बुला रहे हैं तो क्यों नहीं लौट चलती हो वापस घर.’’

शिखा के आरोपों को समझने में अंजलि को कुछ पल लगे और तब उस ने गहरे सदमे के शिकार व्यक्ति की तरह कांपते स्वर में पूछा, ‘‘शिखा, क्या तुम ने कमल अंकल और मेरे बीच गलत तरह के संबंध होने की बात अपने मुंह से निकाली है?’’

‘‘हां, निकाली है. अगर दाल में कुछ काला न होता तो वह आप को सदा पापा के खिलाफ क्यों भड़काते? क्यों जाती हो आप उन के घर, जब वंदना आंटी घर पर नहीं होतीं?’’

अंजलि ने शिखा के गाल पर थप्पड़ मारने के लिए उठे अपने हाथ को बड़ी कठिनाई से रोका और गहरीगहरी सांसें ले कर अपने क्रोध को कम करने के प्रयास में लग गई. दूसरी तरफ तनी हुई शिखा आंखें फाड़ कर चुनौती भरे अंदाज में उसे घूरती रहीं.

कुछ सहज हो कर अंजलि ने उस से पूछा, ‘‘वंदना के घर मेरे जाने की खबर तुम्हें उन के घर के सामने रहने वाली रितु से मिलती है न?’’

‘‘हां, रितु मुझ से झूठ नहीं बोलती है,’’ शिखा ने एकएक शब्द पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया.

‘‘यह अंदाजा उस ने या तुम ने किस आधार पर लगाया कि मैं वंदना की गैर- मौजूदगी में कमल से मिलने जाती हूं?’’

‘‘आप कल सुबह उन के घर गई थीं और परसों ही वंदना आंटी ने मेरे सामने कहा था कि वह अपनी बड़ी बहन को डाक्टर के यहां दिखाने जाएंगी, फिर आप उन के घर क्यों गईं?’’

‘‘ऐसा हुआ जरूर है, पर मुझे याद नहीं रहा था,’’ कुछ पल सोचने के बाद अंजलि ने गंभीर स्वर में जवाब दिया.

‘‘मुझे लगता है कि वह गंदा आदमी आप को फोन कर के अपने पास ऐसे मौकों पर बुलाता है और आप चली जाती हो.’’ 

‘‘शिखा, तुम्हें अपनी मम्मी के चरित्र पर यों कीचड़ उछालते हुए शर्म नहीं आ रही है,’’ अंजलि का अपमान के कारण चेहरा लाल हो उठा, ‘‘वंदना मेरी बहुत भरोसे की सहेली है. उस के साथ मैं कैसे विश्वासघात करूंगी? मेरे दिल में सिर्फ तुम्हारे पापा बसते हैं, और कोई नहीं.’’

‘‘तब आप उन के पास लौट क्यों नहीं चलती हो? क्यों कमल अंकल के भड़काने में आ रही हो?’’ शिखा ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘बेटी, तेरे पापा के और मेरे बीच में एक औरत के कारण गहरी अनबन चल रही है, उस समस्या के हल होते ही मैं उन के पास लौट जाऊंगी,’’ शिखा को यों स्पष्टीकरण देते हुए अंजलि ने खुद को शर्म के मारे जमीन मेें गड़ता महसूस किया.

‘मुझे यह सब बेकार के बहाने लगते हैं. आप कमल अंकल के कारण पापा के पास लौटना नहीं चाहती हो,’’ शिखा अपनी बात पर अड़ी रही.

‘‘तुम जबरदस्त गलतफहमी का शिकार हो, शिखा. वंदना और कमल मेरे शुभचिंतक हैं. उन दोनों का बहुत सहारा है मुझे. दोस्ती के पवित्र संबंध की सीमाएं तोड़ कर कुछ गलत न मैं कर रही हूं न कमल अंकल. मेरे कहे पर विश्वास कर बेटी,’’ अंजलि बहुत भावुक हो उठी.

‘‘मेरे मन की सुखशांति की खातिर आप अंकल से और जरूरी हो तो वंदना आंटी से भी अपने संबंध पूरी तरह तोड़ लो, मम्मी. मुझे डर है कि ऐसा न करने पर आप पापा से सदा के लिए दूर हो जाओगी,’’ शिखा ने आंखों में आंसू ला कर विनती की.

‘‘तुम्हारे नासमझी भरे व्यवहार से मैं बहुत निराश हूं,’’ ऐसा कह कर अंजलि उठ कर अपने कमरे में चली आई.

इस घटना के बाद मांबेटी के संबंधों में बहुत खिंचाव आ गया. आपस में बातचीत बस, बेहद जरूरी बातों को ले कर होती. अपने दिल पर लगे घावों को दोनों नाराजगी भरी खामोशी के साथ एकदूसरे को दिखा रही थीं.

शिखा की चुप्पी व नाराजगी वंदना और कमल ने भी नोट की. अंजलि उन के किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकी. वह कैसे कहती कि शिखा ने कमल और उस के बीच नाजायज संबंध होने का शक अपने मन में बिठा रखा था.

करीब 4 दिन बाद रात को शिखा ने मां के कमरे में आ कर अपने मन की बातें कहीं.

‘‘आप अंदाजा भी नहीं लगा सकतीं कि मेरी सहेली रितु ने अन्य सहेलियों को सब बातें बता कर मेरे लिए इज्जत से सिर उठा कर चलना ही मुश्किल कर दिया है. अपनी ये सब परेशानियां मैं आप के नहीं, तो किस के सामने रखूं?’’

‘‘मुझे तुम्हारी सहेलियों से नहीं सिर्फ तुम से मतलब है, शिखा,’’ अंजलि ने शुष्क स्वर में जवाब दिया, ‘‘तुम ने मुझे चरित्रहीन क्यों मान लिया? मुझ से ज्यादा तुम्हें अपनी सहेली पर विश्वास क्यों है?’’

‘‘मम्मी, बात विश्वास करने या न करने की नहीं है. हमें समाज में मानसम्मान से रहना है तो लोगों को ऊटपटांग बातें करने का मसाला नहीं दिया जा सकता.’’

मोक्ष: क्या गोमती मोक्ष की प्राप्ति कर पाई? – भाग 3

गोमती डेरे पर लौट आईं. गिरतीपड़ती गंगा भी नहा लीं और मन ही मन प्रार्थना की कि हे गंगा मैया, मेरा श्रवण जहां कहीं भी हो कुशल से हो, और वहीं घाट पर बैठ कर हर आनेजाने वाले को गौर से देखने लगीं. उन की निगाहें दूरदूर तक आनेजाने वालों का पीछा करतीं. कहीं श्रवण आता दीख जाए. गंगाघाट पर बैठे सुबह से दोपहर हो गई. कल शाम से पेट में पानी की बूंद भी न गई थी. ऐंठन सी होने लगी. उन्हें ध्यान आया, यदि यहां स्वयं ही बीमार पड़ गईं तो अपने श्रवण को कैसे ढूंढ़ेंगी? उसे ढूंढ़ना है तो स्वयं को ठीक रखना होगा. यहां कौन है जो उन्हें मनुहार कर खिलाएगा. गोमती ने आलू की सब्जी के साथ 4 पूरियां खाईं. गंगाजल पिया तो थोड़ी शांति मिली. 4 पूरियां शाम के लिए यह सोच कर बंधवा लीं कि यहां तक न आ सकीं तो डेरे में ही खा लेंगी या भूखा श्रवण लौटेगा तो उसे खिला देंगी. श्रवण का ध्यान आते ही उन्होंने कुछ केले भी खरीद लिए. ढूंढ़तीढूंढ़ती अपने डेरे पर पहुंच गईं. पुलिस चौकी में भी झांक आईं. देखते ही देखते 8 दिन निकल गए. मेला उखड़ने लगा. श्रवण भी नहीं लौटा. अब पुलिस वालों ने सलाह दी, ‘‘अम्मां, अपने घर लौट जाओ. लगता है आप का बेटा अब नहीं लौटेगा.’’ ‘‘मैं इतनी दूर अपने घर कैसे जाऊंगी. मैं तो अकेली कहीं आईगई नहीं,’’ वह फिर रोने लगीं. ‘‘अच्छा अम्मां, अपने घर का फोन नंबर बताओ. घर से कोई आ कर ले जाएगा,’’ पुलिस वालों ने पूछा. ‘‘घर से मुझे लेने कौन आएगा? अकेली बहू, बच्चों को छोड़ कर कैसे आएगी.’’ ‘‘बहू किसी नातेरिश्तेदार को भेज कर बुलवा लेगी. आप किसी का भी नंबर बताओ.’’ गोमती ने अपने दिमाग पर लाख जोर दिया, लेकिन हड़बड़ाहट में किसी का नंबर याद नहीं आया.

दुख और परेशानी के चलते दिमाग में सभी गड्डमड्ड हो गए. वह अपनी बेबसी पर फिर रोेने लगीं. बुढ़ापे में याददाश्त भी कमजोर हो जाती है. पुलिस चौकी में उन्हें रोता देख राह चलता एक यात्री ठिठका और पुलिस वालों से उन के रोने का कारण पूछने लगा. पुलिस वालों से सारी बात सुन कर वह यात्री बोला, ‘‘आप इस वृद्धा को मेरे साथ भेज दीजिए. मैं भी उधर का ही रहने वाला हूं. आज शाम 4 बजे टे्रन से जाऊंगा. इन्हें ट्रेन से उतार बस में बिठा दूंगा. यह आराम से अपने गांव पीपला पहुंच जाएंगी.’’ सिपाहियों ने गोमती को उस अनजान व्यक्ति के साथ कर दिया. उस का पता और फोन नंबर अपनी डायरी में लिख लिया. गोमती उस के साथ चल तो रही थीं पर मन ही मन डर भी रही थीं कि कहीं यह कोई ठग न हो. पर कहीं न कहीं किसी पर तो भरोसा करना ही पड़ेगा, वरना इस निर्जन में वह कब तक रहेंगी. ‘‘मांजी, आप डरें नहीं, मेरा नाम बिट्ठन लाल है. लोग मुझे बिट्ठू कह कर पुकारते हैं. राजकोट में बिट्ठन लाल हलवाई के नाम से मेरी दुकान है. आप अपने गांव पहुंच कर किसी से भी पूछ लेना. भरोसा रखो आप मुझ पर. यदि आप कहेंगी तो घर तक छोड़ आऊंगा. यह संसार एकदूसरे का हाथ पकड़ कर ही तो चल रहा है.’’ अब मुंह खोला गोमती ने, ‘‘भैया, विश्वास के सहारे ही तो तुम्हारे साथ आई हूं. इतना उपकार ही क्या कम है कि तुम मुझे अपने साथ लाए हो. तुम मुझे बस में बिठा दोगे तो पीपला पहुंच जाऊंगी. पर बेटे के न मिलने का गम मुझे खाए जा रहा है.’’ अगले दिन लगभग 1 बजे गोमती बस से अपने गांव के स्टैंड पर उतरीं और पैदल ही अपने घर की ओर चल दीं. उन के पैर मनमन भर के हो रहे थे. उन्हें यह समझ में न आ रहा था कि बहू से कैसे मिलेंगी. इसी सोचविचार में वह अपने घर के द्वार तक पहुंच गईं. वहां खूब चहलपहल थी. घर के आगे कनात लगी थीं और खाना चल रहा था. एक बार तो उन्हें लगा कि वह गलत जगह आ गई हैं. तभी पोते तन्मय की नजर उन पर पड़ी और वह आश्चर्य और खुशी से चिल्लाया,

‘‘पापा, दादी मां लौट आईं. दादी मां जिंदा हैं.’’ उस के चिल्लाने की आवाज सुन कर सब दौड़ कर बाहर आए. शोर मच गया, ‘अम्मां आ गईं,’ ‘गोमती आ गई.’ श्रवण भी दौड़ कर आ गया और मां से लिपट कर बोला, ‘‘तुम कहां चली गई थीं, मां. मैं तुम्हें ढूंढ़ कर थक गया.’’ बहू श्वेता भी दौड़ कर गोमती से लिपट गई और बोली, ‘‘हाय, हम ने सोचा था कि मांजी…’’ ‘‘नहीं रहीं. यही न बहू,’’ गोमती के जैसे ज्ञान चक्षु खुल गए, ‘‘इसीलिए आज अपनी सास की तेरहवीं कर रही हो और तू श्रवण, मुझे छोड़ कर यहां चला आया. मैं तो पगला गई थी. घाटघाट तुझे ढूंढ़ती रही. तू सकुशल है… तुझे देख कर मेरी जान लौट आई.’’ मांबेटे दोनों की निगाहें टकराईं और नीचे झुक गईं. ‘‘अब यह दावत मां के लौट आने की खुशी के उपलक्ष्य में है. सब खुशीखुशी खाओ. मेरी मां वापस आ गई हैं,’’ खुशी से नाचने लगा श्रवण. औरतों में कानाफूसी होने लगी, लेकिन फिर भी सब श्वेता और श्रवण को बधाई देने लगे. वे सभी रिश्तेदार जो गोमती की गमी में शामिल होने आए थे, गोमती के पांव छूने लगे. कोई बाजे वालों को बुला लाया. बाजे बजने लगे. बच्चे नाचनेकूदने लगे. माहौल एकदम बदल गया. श्रवण को देख कर गोमती सब भूल गईं. शाम होतेहोते सारे रिश्तेदार खापी कर विदा हो गए. रात को थक कर सब अपनेअपने कमरों में जा कर सो गए. गोमती को भी काफी दिन बाद निश्ंिचतता की नींद आई. अचानक रात में मांजी की आंखें खुल गईं, वह पानी पीने उठीं. श्रवण के कमरे की बत्ती जल रही थी और धीरेधीरे बोलने की आवाज आ रही थी. बातों के बीच ‘मां’ सुन कर वह सट कर श्रवण के कमरे के बाहर कान लगा कर सुनने लगीं. श्वेता कह रही थी, ‘तुम तो मां को मोक्ष दिलाने गए थे. मां तो वापस आ गईं.’ ‘मैं तो मां को डेरे में छोड़ कर आ गया था.

मुझे क्या पता कि मां लौट आएंगी. मां का हाथ गंगा में छोड़ नहीं पाया. पिछले 8 दिन से मेरी आत्मा मुझे धिक्कार रही थी. मैं ने मां को मारने या त्यागने का पाप किया था. मैं सारा दिन यही सोचता कि भूखीप्यासी मेरी मां पता नहीं कहांकहां भटक रही होंगी. मां ने मुझ पर विश्वास किया और मैं ने मां के साथ विश्वासघात किया. मां को इस प्रकार गंगा घाट पर छोड़ कर आने का अपराध जीवन भर दुख पहुंचाता रहेगा. अच्छा हुआ कि मां लौट आईं और मैं मां की मृत्यु का कारण बनतेबनते बच गया.’ बेटे की बातें सुन कर गोमती के पैरों तले जमीन कांपने लगी. सारा दृश्य उन की आंखों के आगे सजीव हो उठा. वह इन 8 दिनों में लगभग सारा मेला क्षेत्र घूम लीं. उन्होंने बेटे के नाम की जगह- जगह घोषणा कराई पर अपने नाम की घोषणा कहीं नहीं सुनी. इतना बड़ा झूठ बोला श्रवण ने मुझ से? मुझ से मुक्त होने के लिए ही मुझे इलाहाबाद ले कर गया था. मैं इतना भार बन गई हूं कि मेरे अपने ही मुझे जीतेजी मारना चाहते हैं. वह खुद को संभाल पातीं कि धड़ाम से वहीं गिर पड़ीं. सब झेल गईं पर यह सदमा न झेल सकीं. उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वह सचमुच मोक्ष…

मेरा बौयफ्रैंड मेरे साथ फिजिकल रीलेशन बनाना चाहता है, पर मुझे प्रेगनेन्ट होने से डर लगता है क्या करूं?

सवाल
मेरा बौयफ्रैंड मेरे साथ सोना चाहता है, पर मुझे पेट से होने का डर लगता है. मुझे उसे मना करना अच्छा नहीं लगता. ऐसे में क्या ठीक है?

जवाब

बौयफ्रैंड को सोने का मौका कतई न दें. आप पेट से हो गईं, तो वह किनारा कर लेगा. सिर्फ बातचीत तक ही सीमित रहें. हमबिस्तरी शादी के बाद ही करें. शादी तक सेक्‍स का इंतजार करना वास्‍तव में आपके लिए काफी मददगार हो सकता है.

आश्‍वस्‍त होना है जरूरी

किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाने से पहले यह बात पूरी तरह से तय कर लेनी जरूरी है कि वह आपके लिए बिलकुल ठीक है. एक बार संभोग करने के बाद उसे बदला नहीं जा सकता है. कई बार संबंध बनाने के बाद हमें अपराध बोध होता है, तो इसलिए जरूरी है कि जब तक पूरी तरह से आश्‍वस्‍त न हों, तब तक शारीरिक संबंध न ही बनाना बेहतर होगा. और अगर आप आश्‍वस्‍त नहीं हैं, तो ऐसा न करें. आपको बाद में अपनी यह बात सही ही लगेगी.

उत्‍सुकता बनी रहती है

जब आप अच्‍छी चीजें सही समय पर करते हैं, तो उसका आनंद ही अलग होता है. जब आप सेक्‍स पहले कर लेते हैं, तो इसे लेकर कोई उत्‍सुकता नहीं रहती. तो अगर सेक्‍स न करने से आपकी उत्‍सुकता बढ़ती रहती है, तो बेहतर है कि शादी तक सेक्‍स न किया जाए.

किशोर गर्भावस्‍था से बचाये

शादी से पहले सेक्‍स न करने से आप किशोर गर्भावस्‍था से बची रहती हैं. इससे आपको अनचाहे गर्भ के खतरे से निजात मिलती है. हालांकि बाजार में गर्भनिरोध के कई उपाय मौजूद हैं, लेकिन कई बार वे भी पूरी तरह सक्षम नहीं होते. इसके साथ ही यह गर्भ धारण करना आपको भावनात्‍मक रूप से भी तोड़ सकता है.

झूठे प्‍यार से रहेंगे दूर

सेक्‍स के लिए एक दूसरे के साथ भावनात्‍मक जुड़ाव होना बहुत जरूरी होता है. यह एक-दूसरे के लिए प्रेम को दर्शाने का शारीरिक तरीका माना जाता है. लेकिन, आज के दौर में प्रेम केवल शरीर तक ही सीमित रह गया है. कई महिलायें और पुरुष दोनों ही प्रेम को अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करने का तरीका मानते हैं. हर चलन हर शहर, हर गांव में देखा जा रहा है, और अगर आप इससे दूर रहेंगे तो आपका ही फायदा है. याद रखिए, ऐसे संबंध अधिक नहीं चलते.

यौन रोगों से बचाए

आखिर में, सेक्‍स में प्रति लापरवाही आपको यौन रोग होने का खतरा काफी बढ़ा देती है. जवानी के जोश में आप कंडोम को अधिक महत्‍व नहीं होते, उस समय आपकी प्राथमिकता अपनी शारीरिक आकांक्षाओं को पूरा करना होता है. और यही लापरवाही कई बार गंभीर बीमारियां दे सकता है.

सरकारी नौकरी या खुद का काम

बेरोजगार नौजवानों की फौज दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. जहां तक सरकारी नौकरी का सवाल है, चपरासी जैसे पद के लिए लाखों डिगरीधारी अर्जी देते हैं. आज का नौजवान तबका सरकारी नौकरी के लालच में रहता है, लेकिन खुद अपना काम करने की कोशिश नहीं करता.

काश, नौजवान अगर सरकारी नौकरी के बजाय खुद का कारोबार करने का रास्ता चुनें, तो सही समय पर उन के कैरियर की शुरुआत हो सकेगी, क्योंकि तब उन्हें नौकरी के लिए दरदर की ठोकरें नहीं खानी पड़ेंगी.

सरकारी नौकरी मिलना बच्चों का खेल नहीं है. अनेक नौजवान ऐसे हैं, जिन्हें 10-15 साल कोशिश करने के बाद भी सरकारी नौकरी नहीं मिली और अब वे ‘ओवर ऐज’ हो गए हैं, यानी अब उन्हें नौकरी नहीं मिल सकती. अगर वे सरकारी नौकरी का मोह छोड़ कर समय पर कारोबारी बनने की सोच लेते, तो आज नई ऊंचाइयों को छू रहे होते.

ऐसे लोगों से उन नौजवानों को सबक लेना चाहिए, जो आज भी सरकारी नौकरी की उम्मीद लगाए बैठे हैं और अपनी जिंदगी के अहम सालों को बेरोजगार रह कर बरबाद कर रहे हैं.

याद रखिए, बीता हुआ समय लौट कर नहीं आता. ऐसे में जितनी देर से आप कोई कारोबार शुरू करेंगे, उस में उतने ही पीछे रहेंगे, इसलिए सरकारी नौकरी का दामन थामने की इच्छा रखने के बजाय खुद इस लायक बनने की कोशिश करें कि आप दूसरों को अपने कारोबार में रोजगार दे सकें.

अगर सरकारी नौकरी को छोड़ कर निजी क्षेत्र की कंपनियों में नौकरी की बात करें, तो वहां सिर्फ डिगरी होने से काम नहीं चलता, बल्कि कोई हुनर भी होना चाहिए. क्योंकि वहां ‘कचरा’ नहीं चलता, बल्कि वे ‘क्रीम’ को छांटते हैं.

जाहिर है, जिन नौजवानों में ये गुण हैं, वे ही निजी क्षेत्र की कंपनियों में नौकरी की उम्मीद लगा सकते हैं.

निजी कंपनियां सालाना पैकेज भले ही खूब देती हैं, लेकिन उन के काम करने के घंटे और शर्तें बड़ी कठोर होती हैं. जो नौजवान मेहनती हैं, चुनौतियों को स्वीकार करने की हालत में हैं, उन्हें ही कंपनियां मौका देती हैं.

ऐसे में एक आम नौजवान क्या करे? क्यों न वह अपना कारोबार खुद लगाए? नौकर के बजाय वह मालिक क्यों न बने?

जी हां, आज सरकार और बैंकों की इतनी सारी योजनाएं हैं, जिन का फायदा उठा कर बेरोजगार नौजवान अपना खुद का कारोबार लगा सकते हैं.

नौजवान कारोबारियों के सामने सब से बड़ी समस्या पैसा लगाने की होती है. अमीर परिवार के नौजवान के लिए तो इस का समाधान है, लेकिन मध्यम और गरीब तबके के नौजवान कारोबार शुरू करने के लिए पैसा कहां से लाएं? कौन उन की मदद करेगा? नातेरिश्तेदार मुंह फेर लेते हैं. मांबाप के पास इतना पैसा नहीं होता कि वे अपनी औलाद को उस के पैरों पर खड़ा होने के लिए दे सकें.

ऐसे नौजवानों को निराश होने की जरूरत नहीं है. इस के लिए किसी भी सरकारी बैंक में जाइए और लोन के लिए उन की योजनाओं की जानकारी लें. वहां आप की बात बन सकती है.

नौजवान कारोबारियों के लिए सरकार अनेक साधन जुटाती है. इस में जमीन, पूंजी, शक्ति के साधन, कच्चा माल, यातायात, संचार वगैरह खास हैं.

अगर नौजवानों को कारोबार लगाने के लिए तकनीकी मदद की जरूरत होती है, तो सरकारी संस्थाएं उन्हें उचित सलाह देती हैं.

सरकार नए कारोबारियों को आकर्षित करने के लिए समयसमय पर अलगअलग कार्यशालाएं, सम्मेलन और विचार गोष्ठियां भी कराती है.

लड़कियों को कारोबार के क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से विशेष योजनाएं चलाई जा रही हैं. उन्हें स्वरोजगार के लिए ट्रेनिंग, सलाह व कर्ज संबंधी सुविधाएं दी जा रही हैं. उन्हें खासतौर पर रियायती दर पर कर्ज दिया जाता है.

लघु उद्योग सेवा संस्थान, लघु उद्योग व्यवसाय संगठन, जिला उद्योग केंद्र, भारतीय औद्योगिक विकास संगठन वगैरह इस दिशा में अच्छा काम कर रहे हैं. इस के अलावा राष्ट्रीय साहस विकास कार्यक्रम, लघु उद्योग विकास संगठन और राज्यस्तरीय परामर्श देने वाले संगठन भी नएनवेले कारोबारियों को ट्रेनिंग देने का काम बखूबी करते हैं.

सरकार द्वारा पिछड़े क्षेत्रों में कारोबारियों को बढ़ावा देने के लिए विशेष सुविधाएं और छूट दी जाती है. सरकार उन्हें अनुदान देती है, ताकि उन की सामान बनाने की लागत कम हो सके. उन्हें टैक्सों में भी कई तरह की छूट दी जाती है.

जब आप कारोबारी बनेंगे, तो आप के सामने तमाम चुनौतियां आएंगी, लेकिन निराश हो कर पीछे हटने के बजाय उन का डट कर सामना करने की कोशिश करें.

जिस दिन आप ऐसा करने के लायक हो जाएंगे, तब आप का दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास ही आप को कामयाबी की सीढ़ी पर आगे बढ़ने में मददगार होगा.

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टीवी की गोपी बहु देवोलीना बनी दुल्हन! देखें हल्दी- मेहंदी की फोटोज

स्टार प्लस के फेमस शो ‘साथ निभाना साथिया (Saath Nibhaana Saathiya)’ में ‘गोपी बहू’का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस देवोलिना भट्टाचार्जी (Devoleena Bhattacharjee) ने इंस्टाग्राम स्टोरी पर अपनी हल्दी और मेहंदी सेरेमनी की कुछ तस्वीरें शेयर की हैं, जिन्हें देखकर हर कोई हैरान है.  देवोलिना (Devoleena Bhattacharjee Haldi Photos) की इन तस्वीरों को देखकर लग रहा है कि बिग बॉस 13 (Bigg Boss 13) फेम जल्द ही शादी के बंधन में बंधने वाली हैं. हालांकि एक्ट्रेस की यह तस्वीर वायरल होने के बाद फैंस भी इस बात पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं कि देवोलिना शादी करने वाली हैं.

 

देवोलीना की हल्दी सेरेमनी फोटोज वायरल 

देवोलीना भट्टाचार्जी (Devoleena Bhattacharjee Haldi Ceremony Photos) की हल्दी सेरेमनी की फोटोज जमकर वायरल हो रही हैं. साथ ही एक वीडियो भी वायरल हो रहा है जिसमें टीवी एक्टर विशाल सिंह, देवोलीना  के गालों पर हल्दी लगाते नजर आ रहे हैं. दोनों इसके बाद वीडियो में क्लोज पोज करते हुए फोटो क्लिक करवा रहे हैं. इसके अलावा एक्ट्रेस ने अपनी हल्दी सेरेमनी की एक तस्वीर शेयर की है, जिसमें एक्ट्रेस हल्दी के आउटफिट में नजर आ रही हैं तो वहीं परिवार के सदस्य उन्हें हल्दी लगा रहे हैं. देवोलिना की इन तस्वीरों पर लोग खूब कमेंट कर रहे हैं और अपनी राय दे रहे हैं.

देवोलीना ने लगवाई पिया के नाम की मेहंदी! 

देवोलीना भट्टाचार्जी (Devoleena Bhattacharjee Mehndi Photos) ने हाल ही में अपने इंस्टाग्राम पर वीडियो स्टोरी अपलोड की थी, जिसमें वह अपने हाथ की मेहंदी को फ्लॉन्ट करती हुई नजर आ रही थीं. वीडियो में देवोलिना और उनका परिवार हाथों में मेहंदी लगाए नजर आ रहा है.

 

 

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क्या विशाल सिंह से कर रही हैं शादी?

देवोलीना भट्टाचार्जी को लेकर एक बार पहले भी अफवाहें फैल चुकी हैं कि एक्ट्रेस ने रूमर्ड बॉयफ्रेंड विशाल सिंह (Devoleena Bhattacharjee and Vishal Singh) से शादी कर ली थी लेकिन बाद में यह बात झूठी निकली. अब इस बार क्या सच में देवोलीना शादी कर रही हैं, या फिर इसबार भी कोई एड के प्रमोशन के लिए देवोलीना ने ब्राइडल लुक लिया है.

कपिल शर्मा ने सेलिब्रेट किया बेटी अनायरा का बर्थडे, देखें क्यूट फोटोज

कॉमेडी किंग कपिल शर्मा (Kapil Sharma) की लाडली बेटी अनायरा तीन साल की हो गई हैं. बेटी के जन्मदिन को कपिल शर्मा और उनकी पत्नी गिन्नी चतरथ ने बहुत ही खास अंदाज में मनाया. गिन्नी चतरथ ने बेटी अनायरा के लिए एक ग्रैंड पार्टी रखी थी. इस पार्टी में कपिल शर्मा की दोस्त भारती सिंह (Bharti Singh) और उनका बेटा गोला भी शिरकत करने पहुंचे थे. लाफ्टर क्वीन भारती सिंह ने अपने यूट्यूब चैनल पर वीडियो शेयर कर कपिल की राजकुमारी के बर्थडे पार्टी की झलक दिखाई है.

 

यूट्यूब वीडियो की शुरुआत में भर्ती बताती हैं कि ये उनके बेटे गोला की पहली बर्थडे पार्टी है. वीडियो में उनका बेटा इस पार्टी के लिए काफी उत्साहित नजर आ रहा है. भारती के व्लॉग में उनका बेटा बहुत ही प्यारा लग रहा है. उसकी मासूमियत देख फैंस फिदा हो रहे हैं.

3 साल की हुई कपिल की बेटी

भारती के व्लॉग में उनके बेटे गोला की मासूमियत देख फैंस फिदा हो रहे हैं. भारती ने अपने कपिल भाई की बेटी अनायरा को बर्थडे विश किया. पिकं एंड व्हाइट फ्रॉक में अनायरा क्यूट लगीं. अनायरा के बर्थडे सेलिब्रशन की तस्वीरें सोशल मीडिया पर देखने को मिल रही हैं. इन तस्वरों में अनायरा क्यूट सी फ्रॉक, हैडबैंड में नजर आईं. अनायरा की एक फोटो डैडी कूल कपिल शर्मा के साथ भी सामने आई है. इसमें कपिल बेटी को प्यारा सा पपी (डॉगी) पकड़ा रहे है.

 

अनायरा का बर्थडे सेलिब्रेशन    

अनायरा की मां गिन्नी संग फोटो वायरल हैं. गिन्नी ने बेटी संग ट्विनिंग की. मां-बेटी मैचिंग आउटफिट में नजर आएं. पिंक ड्रेस को गिन्नी ने ब्राउन बूट्स संग टीमअप किया. गिन्नी इन तस्वीरों में स्टनिंग लगीं. बेटी अनायरा को गोद में लिए गिन्नी की तस्वीरें मस्ट वॉच हैं. अनायरा की बर्थडे पार्टी की जंगल थीम रखी गई. भारती सिंह ने अपने व्लॉग में गिन्नी चतरथ की तारीफ की है. भारती के मुताबिक, गिन्नी जिस तरह से घर का, बच्चों का और कपिल शर्म का ख्याल रखती हैं वो काबिलेतारीफ है. पार्टी के लिए हर बार गिन्नी अलग अलग थीम रखती हैं, भारती उसकी भी मुरीद नजर आईं.

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