मुझे मेकअप करना बहुत पसंद है पर मेरे होने वाले पति को पसंद नहीं है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 27 वर्षीया युवती हूं. लौकडाउन से पहले मेरी शादी के लिए एक लड़के से बातचीत चल रही थी. हम एकदूसरे से मिलते, इस से पहले लौकडाउन हो गया. लौकडाउन के दौरान हम ने एकदूसरे से फोटो शेयर की, वीडियो कौलिंग करते थे. वह मेरी सुंदरता की तारीफ करता. मैं जब भी उस से वीडियो पर बात करती थी, अच्छी तरह मेकअप में होती थी. जबकि उसे लगता कि यह मेरा नैचुरल लुक है. अब वह मुझ से मिलना चाहता है. मुझे डर है, जब हम मिलेंगे और उसे मेरा मेकअप करना पसंद नहीं आया और मुझ से शादी के लिए इनकार कर दिया तो… मैं उसे बहुत पसंद करने लगी हूं और खोना नहीं चाहती. बताइए मैं क्या करूं?

जवाब

अपनी सुंदरता को निखारने के लिए मेकअप करना, ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना बुरी बात नहीं है. रही बात उस लड़के की जो आप की ब्यूटी को नैचुरल समझता है, तो इस में घबराने की क्या बात है. सुंदर आप हैं, तभी वह आप की सुंदरता की तारीफ करता है. आप मेकअप से अपनी सुंदरता को और निखारती हैं. आप चाहें तो नैचुरली भी अपने में ग्लो ला सकती हैं.

जिस तरह हमारे शरीर को हर तरह के कामों, तनाव से ब्रेक लेने की जरूरत होती है, ठीक उसी तरह से हमारी स्किन को भी 1-2 दिन के लिए फास्ंिटग मोड पर अकेला छोड़ देना चाहिए. इसे स्किनफास्ं’टिंग कहते हैं.  इस से स्किन पर नैचुरली ग्लो आता है. स्किन अंदर से डिटौक्स होती है. आप नैचुरल प्रोडक्ट्स को यूज करें. आप खुद फर्क महसूस करेंगी. मेकअप नहीं भी करेंगी, तब भी चेहरे पर ग्लो रहेगा और आप की समस्या का हल हो जाएगा.

डाक्यूमेंट्री फिल्म- ‘‘नाम था कन्हैयालाल: एक सरहानीय प्रयास…’’

निर्माताः ‘कन्हैयालाल प्रोडक्शन’ के बैनर तले हेमा सिंह

निर्देषकः पवन कुमार और मुकेश सिंह

अवधिः एक घंटा 13 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म: एम एक्स प्लेअर

अमूमन हर फिल्म कलाकार बातचीत के दौरान दावा करता है कि वह उन फिल्मों का हिस्सा बनने का प्रयास करते हैं,जिन फिल्मों में उनके अभिनय को देखकर हर आम इंसान व भावी पीढ़ी उन्हें उनके इस दुनिया को अलविदा कहने के बाद भी याद रखें. लेकिन कलाकार की यह सोच मृगमरीचिका व छलावा के अलावा कुछ नही है. इस बात को समझने के लिए हर इंसान को  ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘एम एक्स प्लेअर ’पर स्ट्रीम  हो रही अभिनेता स्व. कन्हैलाल पर बनायी गयी डाक्यूमेंट्ी फिल्म ‘‘नाम था कन्हैयालाल’’ एक बार जरुर देखनी चाहिए.

इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘मदर इंडिया’’ में दुष्ट साहूकार सुखीलाला,जो विधवा औरत पर बुरी नजर रखता है, का किरदार निभाकर अपने अभिनय से पूरे विश्व को हिलाकर रख देने वाले अभिनेता स्व. कन्हैयालाल को नई पीढ़ी के कलाकार व आज की पीढ़ी तक नहीं जानती.इस फिल्म में नरगिस,सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार,राज कुमार,कुमकुम, मुकरी जैसे कलाकारों ने भी अभिनय किया था. ज्ञातब्य है कि उस वक्त फिल्म ‘मदर इंडिया’ महज एक वोट के चलते आॅस्कर अवार्ड पाने से वंचित रह गयी थी.यह एक सुखद बात है कि अब कन्हैयालाल पर उनकी बेटी हेमा सिंह ने डाक्यूमेंट्ी  फिल्म ‘‘नाम था कन्हैयालाल’ का निर्माण किया है.

कहानीः

वाराणसी में दस दिसंबर 1910 को जन्में कन्हैयालाल के पिता भैरोदत्त चैबे ‘सनातन धर्म नाटक समाज’ के मालिक थे. और वह कई षहरों व गांवो में घूम घूमकर नाटक किया करते थे. कन्हैयालाल अपने पिता के  साथ जाते थे और स्टेज के पीछे  के कामो में हाथ बंटाया करते थे.सोलह साल की उम्र में कन्हैयालाल ने नाटक व गीत लिखने शुरू किए. पिता की मौत के बाद भाईयों ने कुछ समय तक नाटक कंपनी को चलाने का प्रयास किया. इस बीच बड़े भाई  संकटाप्रसाद चतुर्वेदी का विवाह हो गया था.एक दिन घर में किसी को बिना बताए संकटाप्रसाद मंुबई पहुॅच गए. उनकी तलाश कर उन्हें वापस वाराणसी ले जाने के लिए कन्हैयालाल को भेजा गया.

पर मुंबई  पहुॅचकर जब कन्हैयालाल ने अपने भाई को फिल्मों में अभिनय करते पाया,तो वह भी मुंबई  में रूक गए. उनके भाई संकटा प्रसाद ने मूक फिल्मों में बतौर अभिनेता अपनी एक जगह बना ली थी. कन्हैयालाल ने पहले कुछ फिल्मों के गीत व कुछ नाटक लिखे.उनका मकसद लेखक व निर्देशक बनना था. स्व लिखित नाटक ‘‘ 15 अगस्त’’ का मंचन भी किया. 1939 में फिल्म ‘एक ही रास्ता’ के सेट पर एक कलाकार के न पहुॅचने पर कन्हैयालाल ने बांके का किरदार निभाया. इसके बाद उनकी अभिनय की दुकान चल पड़ी. 1940 में महबूब खान ने अपनी फिल्म ‘‘औरत’’ में साहूकार सुखीलाला का किरदार निभाने का अवसर दिया. महबूब खान, कन्हैयालाल के अभिनय से इस कदर प्रभावित हुए कि जब  17 साल बाद जब महबूब खान ने ‘औरत’ का ही रीमेक फिल्म ‘मदर ंइडिया’ बनायी,तो सुखीलाला के किरदार के लिए उन्होेने कन्हैयालाल को ही याद किया. एक बार महबूब खान ने स्वयं बताया था कि लेखक वजाहत मिर्जा ने ही सलाह दी थी कि सुखीलाला के किरदार के लिए कन्हैयालाल को बुलाया जाए. 1939 से अभिनय में व्यस्त हो गए कन्हैयालाल अपनी जड़ों से जुड़े रहे. इसी कारण उन्होेने अपनी बुआ के कहने वाराणसी जाकर जावंती देवी से विवाह रचाया. कन्हैयालाल ने भूक (1947),बहन, गंगा जमुना, राधिका,लाल हवेली, सौतेला भाई, गृहस्थी, गोपी, उपकार, अपना देश, जनता हवलदार, दुश्मन, बंधन, भरोसा, हम पांच, तीन बहूरानियां, गांव हमारा देश तुम्हारा, दादी मां, गृहस्ती, हत्यारा, पलकों की छांव में, हीरा, दोस्त, धरती कहे पुकार के सहित कुल 115 फिल्मों में अभिनय किया.फिल्म ‘साधना’ के संवाद व गीत लिखे थे. 1982 में प्रदर्शित फिल्म ‘‘हथकड़ी’’ उनके कैरियर की अंतिम फिल्म थी.

कन्हैयालाल भले ही फिल्मोें में अभिनय कर रहे थे,पर वह पूरी तरह से पारिवारिक इंसान थे. वह अपने बड़े बेटे को सबसे अधिक चाहते थे. बेटे के असामायिक मौत के बाद वह टूट गए थे. अंततः 14 अगस्त 1882 को 72 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया.

समीक्षाः

1982 में कन्हैयालाल के इंतकाल के बाद फिल्म इंडस्ट्री ने पूरी तरह से उन्हे भुला दिया.कम से कम मैने अपनी 40 वर्ष की फिल्म पत्रकारिता के दौरान फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े किसी भी फिल्मी हस्ती के मंुह से कन्हैयालाल का नाम नहीं सुना. यह एक सुखद बात है कि कन्हैयालाल की मौत के 40 वर्ष बाद उनकी बेटी हेमा सिंह ने उन्ही के नाम प्रोडक्शन हाउस का नाम ‘कन्हैयालाल प्रोडक्शन’ रखकर अपने पिता पर यह डाक्यूमेंट्ी फिल्म बनायी है. इस डाक्यूमेंट्ी फिल्म में अमिताभ बच्चन,सलीम खान,जावेद अख्तर,बीरबल,अनुपम खेर,बोमन इरानी,गोविंदा,पंकज त्रिपाठी,पेंटल सहित लगभग बीस फिल्मी हस्तियों ने कन्हैयालाल पर बात की है.

मगर  इनमें से किसी ने भी कन्हैयालाल के अभिनय पक्ष या इंसान के तौर पर कुछ खास नही कहा.कुछ लोगों ने बेवजह एक वोट से फिल्म ‘मदर इंडिया’ के  आॅस्कर अवार्ड से वंचित हो जाने को ही तूल दिया.इस डाक्यूमेंट्ी में आम इंसान ही नही नई पीढ़ी के कुछ कलाकार यह कहते नजर आते हैं कि वह कन्हैयालाल को नही जानते.कन्हैयालाल ने 115 में से लगभग हर फिल्म में बेहतरीन अभिनय किया था.मगर इस डाक्यूमेंट्ी में ‘मदर इंडिया’ के अलावा अन्य फिल्मों का जिक्र नही है.जबकि मैंने कहीं पढ़ा था कि खुद कन्हैयालाल ने एक पत्रकार को बताया था कि उन्हे 1972 में प्रदर्शित जेमिनी की फिल्म ‘‘गृहस्थी’’ में उनके द्वारा निभाए गए स्टेशन मास्टर के किरदार को काफी सराहना मिली थी और इस फिल्म से उन्हे काफी संतुष्टि मिली थी.फिल्म ‘औरत’ में दुष्ट साहूकार का किरदार निभाने के बाद फिल्म ‘‘बहन’’ में अच्छे स्वभाव वाले जेब कतरे का किरदार निभाया था.

इतना ही नहीं कन्हैयालाल के अभिनय से उस वक्त के कई कलाकार ठर्राटे थे.इतना ही नही कुछ फिल्मी हस्तियों ने कन्हैयालाल की शराब की आदत को लेकर काफी कुछ कहा है,जिसे इस फिल्म से हटाया जा सकता था.शराब तो लगभग हर इंसान की कमजोरी सी बन गयी है.किसी ने यह जिक्र नहीं किया कि कन्हैयालाल किन परिस्थितियों में शराब का सेवन किया करते थे.काश,लोगो ने उनका चरित्र हनन करने की बनिस्बत उनकी अभिनय प्रतिभा व उनके व्यवहार को लेकर कुछ बताया होता,तो अच्छा होता. इतना ही नही इस डाक्यूमेंट्ी में कन्हैयालाल ने जीवित रहते हुए जो इंटरव्यू पत्र पत्रिकाओं को दिए थे,उनका भी कहंी कोई जिक्र नहीं है.जबकि ऐसे इंटरव्यू की तलाश कर उन्हें इस डाक्यूमेंट्ी का हिस्सा बनाया जाना चाहिए था.

कुछ कमियों के बावजूद हेमा सिंह के इस कदम को सुखद ही कहा जाएगा कि उन्होने चालिस वर्ष बाद ही सही पर अपने पिता स्व. कन्हैयालाल को लेकर इस डाक्यूमेंट्ी फिल्म को लेकर आयी है.फिल्म मेें हेमा सिंह और उनकी बेटी प्रियंका सिंह के अलावा कन्हैयालाल की वाराणसी मे रह रही रिष्तेदार रेखा त्रिपाठी ने कन्हैयालाल के जीवन पर कुछ अच्छी रोषनी डाली है.यह डाक्यूमेंट्ी होेते हुए भी मनोरंजक है.सूत्रधार के रूप में कृप कपूर सूरी ने बेहतरीन काम किया है.

अनुपमा के सेट पर मनाया गया गौरव खन्ना का बर्थडे, रूपाली ने खिलाया केक

टीवी सीरियल अनुपमा के लीड स्टार गौरव खन्ना का बर्थडे हाल ही में इस टीवी सीरियल के सेट पर मनाया गया. जिसके बाद गौरव खन्ना के बर्थडे सेलिब्रेशन की फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं.अनुपमा इन दिनों टीआरपी की लिस्ट में खूब धूम मचा रहा है. लगातार ये टीवी सीरियल अपने दिलचस्प कंटेट की वजह से दर्शकों को खींच रहा है. इधर, टीवी सीरियल अनुपमा के किरदार भी खूब चर्चा बटोर रहे हैं. अब इस टीवी सीरियल में अनुज कपाड़िया के किरदार को निभा रहे एक्टर गौरव खन्ना भी फैंस का दिल जीत रहे हैं. हाल ही में गौरव खन्ना ने अपना बर्थडे टीवी सीरियल अनुपमा के सेट पर बनाया गया. जिसकी तस्वीरें अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होने लगी हैं.

 

 

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अनुज कपाड़िया के बर्थडे पर अनुपमा की पोस्ट:

शो में अनुपमा का रोल प्ले करने वाली ऐक्ट्रिस रूपाली गांगुली ने लिखा- बिना इस अनुज कपाड़िया के अनुपमा क्या करती और बिना तुम्हारी हायपर ऐक्टिविटी के मैं क्या करती. दुआ करूंगी कि तुम्हारा ये पागलपन जारी रहे और सभी को खुशियां बांटना रहे. तुम्हें ढेर सारी खुशियां स्वास्थ और वो सब कुछ मिले जिसकी तुमने ईश्वर से दुआ की है. धूम मचाते रहो और बहुत खुश रहो.

 

 

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दर्शकों को लग सकता है बड़ा झटका

दर्शकों के लिए यह एक बहुत बड़ा झटका हो सकता है, लेकिन आपको बता दें कि ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है. वीडियो के अंत में आप देखेंगे कि रुपाली, गौरव की टांग खींचती नजर आ रही हैं. शो में अभी भी गौरव, अनुज की भूमिका में नजर आएंगे. आने वाले एपिसोड में आप देख सकेंगे कि अनुपमां औप अनुज दोनों ही बिजनेस पार्टनर बन जाते हैं. अनुपमां, वनराज को तलाक दे देती हैं. वनराज, काव्या संग शादी रचा लेते हैं.

 

बिग बॉस 16: घर में कप्तान बनने की जंग, साजिद की मंडली के हाथ में आया पूरा खेल

टीवी का कॉन्ट्रोवर्शियल रियलिटी शो ‘बिग बॉग’ का 16वां सीजन चल रहा है और रोजाना इस शो में किसी न किसी वजह से हंगामा देखने को मिल रहा है. शो के नौ हफ्ते पूरे हो गए हैं और अब घर में दो नए वाइल्ड कार्ड कंटेस्टेंट्स की एंट्री भी हो गई है. इस वजह से खेल और थोड़ा सख्त हो गया है. घर में सभी की नजरें ट्रॉफी पर तो बनी हुई हैं लेकिन घर में अब हर कोई कंटेस्टेंट कैप्टन भी बनना चाहता है. बीते हफ्ते घर में अंकित गुप्ता कैप्टन बने और इस हफ्ते कैप्टेंसी के टास्क में काफी सारा बवाल देखने को मिलेगा. हैरानी की बात यह है कि इस बार ‘बिग बॉस’ के घर में तीन कैप्टन होंगे और इस टास्क की कमान साजिद की मंडली के हाथ में होगी.

 

 

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इन पांच के बीच हुआ कैंप्टेंसी टास्क

दरअसल, शो के मेकर्स ने अपकमिंग एपिसोड का प्रोमो शेयर किया है, जिसमें ‘बिग बॉस’ की तरफ से घरवालों को कैप्टेंसी का टास्क दिया गया है और इस टास्क के जरिए पहली बार घर में तीन कैप्टन होंगे. मजेदार बात यह है कि कैप्टन का चुनाव साजिद खान और शिव ठाकरे की मंडली मिलकर करती है. प्रोमो में देखा जा सकता है कि कैप्टेंस का टास्क घर के पांच सदस्यों के बीच होता है, जिसमें सुंबुल, शालीन, सौंदर्य, प्रियंका और टीना होते हैं. इन पांचों को घरवाले अपने वोट के आधार पर चुनते दिख रहे हैं.

 

 

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साजिद खान की मंडली के हाथ में पूरा खेल

इस टास्क की शुरुआत में एमसी स्टैन, सुंबुल, शालीन और टीना का नाम लेते हैं. वहीं, निमृत और अब्दु, प्रियंका को कैप्टन नहीं बनाने की बात करते हैं. इसके बाद आगे अर्चना आती हैं और वह कैप्टेंसी के लिए प्रियंका, सौंदर्या और शालीन का नाम लेती हैं, जिस वजह से सुंबुल भड़क जाती हैं.  इसके बाद सुंबुल और अर्चना के बीच जमकर बहस होती है। सोशल मीडिया पर ‘बिग बॉस’ का यह लेटेस्ट प्रोमो तेजी से वायरल हो रहा है. कई लोगों ने इस टास्क में बिग बॉस को बायस्ड तक बताया है.

सहारे की तलाश: क्या प्रकाश को जिम्मेदार बना पाई वैभवी?- भाग 3

‘‘मां, चलने की तैयारी कर लो चुपचाप. यहां लंबा रहना संभव नहीं हो पाएगा. आप और पापा हमारे साथ चलिए, दिल्ली में अच्छी चिकित्सा सुविधा मिल जाएगी और पापा की देखभाल भी हो जाएगी, आप बिलकुल भी फिक्र मत करो, मां. सारी जिम्मेदारी हमारे ऊपर डाल कर निश्ंिचत रहो. पापा की देखभाल हमारी जिम्मेदारी है.’’ सास का मन बारबार भर रहा था. वे चुपचाप अपने कमरे में आ गईं. वैभवी भी अपने कमरे में गई और अटैची में कपड़े डालने लगी. प्रकाश सिटपिटाया सा चुपचाप बैठा था. वह स्वयं जानता था कि वह वैभवी को कुछ भी बोलने का अधिकार खो चुका है. अटैची पैक करतेकरते वैभवी चुपचाप प्रकाश को देखती रही. अपनी अटैची पैक कर के वैभवी प्रकाश की तरफ मुखातिब हुई, ‘‘तुम्हारी अटैची भी पैक कर दूं.’’

‘‘वैभवी, एक बार फिर से सोच लो, पापा को ऐसे छोड़ कर नहीं जा सकते हम. मुझे तो रुकना ही पड़ेगा, लेकिन नौकरी से इतनी लंबी छुट्टी मेरे लिए भी संभव नहीं है. मांपापा को साथ ले चलते हैं, वरना कैसे होगा उन का इलाज?’’

प्रकाश का गला भर्राया हुआ था. वह प्रकाश की आंखों में देखने लगी, वहां बादलों के कतरे जैसे बरसने को तैयार थे. अपने मातापिता से इतना प्यार करने वाला प्रकाश, आखिर उस के मातापिता के लिए इतना संवेदनहीन कैसे हो सकता है?

पिताजी की याद आते ही उस का मन एकाएक प्रकाश के प्रति कड़वाहट और नकारात्मक भावों से भर गया. लेकिन उस के संस्कार उसे इस की इजाजत नहीं देते थे. वह अपने सासससुर के प्रति ऐसी निष्ठुर नहीं हो सकती. कोई भी इंसान जो अपने ही मातापिता से प्यार नहीं कर सकता, वह दूसरों से क्या प्यार करेगा. और जो अपने मातापिता से प्यार करता हो, वह दूसरों के प्रति इतना संवेदनहीन कैसे हो सकता है? उसे अपनेआप में डूबा देख कर प्रकाश उस के सामने खड़ा हो गया, ‘‘बोलो वैभवी, क्या सोच रही हो, पापा को साथ ले चलें न? उस ने प्रकाश के चेहरे पर पलभर नजर गड़ाई, फिर तटस्थता से बोली, ‘‘टैक्सी बुक करवा लो जाने के लिए.’’

कह कर वह बाहर निकल गई. प्रकाश कुछ समझा, कुछ नहीं समझा पर फिर घर के माहौल से सबकुछ समझ गया. पर वैभवी उसे कुछ भी कहने का मौका दिए बगैर अपने काम में लगी हु थी. तीसरे दिन वे मम्मीपापा को ले कर दिल्ली चले गए. पापा की एंजियोप्लास्टी हुई, कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद पापा घर आ गए. उन की देखभाल वैभवी बहुत प्यार से कर रही थी. प्रकाश उस के प्रति कृतज्ञ हो रहा था. पर वह तटस्थ थी. उस के दिल का घाव भरा नहीं था. प्रकाश को तो उस के पिताजी की सेवा करने की भी जरूरत नहीं थी. उस ने तो सिर्फ औपरेशन के वक्त रह कर उन को सहारा भर देना था, जो वह नहीं दे पाया था. उस के भाई के लिए भलाबुरा कहने का भी प्रकाश का कोई अधिकार नहीं था. जबकि उस ने अपना भी हिस्सा ले कर भी अपना फर्ज नहीं निभाया था. ये सब सोच कर भी वैभवी के दिल के घाव पर मरहम नहीं लग पा रहा था. पापा की सेवा वह पूरे मनोयोग से कर रही थी, जिस से वह बहुत तेजी से स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे. उस के सासससुर उस के पास लगभग 3 महीने रहे. उस के बाद सास जाने की पेशकश करने लगीं पर उस ने जाने नहीं दिया, कुछ दिनों के बाद उन्होंने जाने का निर्णय ले लिया. प्रकाश और वैभवी उन्हें देहरादून छोड़ कर कुछ दिन रुक कर, बंद पड़े घर को ठीकठाक कर वापस आ गए.

सबकुछ ठीक हो गया था पर उस के और प्रकाश के बीच का शीतयुद्ध अभी भी चल रहा था, उन के बीच की वह अदृश्य चुप्पी अभी खत्म नहीं हुई थी. प्रकाश अपराधबोध महसूस कर रहा था और सोच रहा था कि कैसे बताए वैभवी को कि उसे अपनी गलती का एहसास है. उस से बहुत बड़ी गलती हो गई थी. वह समझ रहा था कि इस तरह बच्चे मातापिता की जिम्मेदारी एकदूसरे पर डालेंगे तो उन की देखभाल कौन करेगा. कल यही अवस्था उन की भी होगी और तब उन के बेटाबेटी भी उन के साथ यही करें तो उन्हें कैसा लगेगा. एकाएक वैभवी की तटस्थता को दूर करने का उसे एक उपाय सूझा. वह वैभवी को टूर पर जाने की बात कह कर चंडीगढ़ चला गया. प्रकाश को गए हुए 2 दिन हो गए थे. शाम को वैभवी रात के खाने की तैयारी कर रही थी, तभी दरवाजे की घंटी बज उठी. उस ने जा कर दरवाजा खोला. सामने मांपिताजी खड़े थे.

‘‘मांपिताजी आप, यहां कैसे?’’ वह आश्चर्यचकित सी उन्हें देखने लगी.

‘‘हां बेटा, दामादजी आ गए और जिद कर के हमें साथ ले आए, कहने लगे अगर मुझे बेटा मानते हो तो चल कर कुछ महीने हमारे साथ रहो. दामादजी ने इतना आग्रह किया कि आननफानन तैयारी करनी पड़ी.’’

तभी उस की नजर टैक्सी से सामान उतारते प्रकाश पर पड़ी. वह पैर छू कर मांपिताजी के गले लग गई. उस की आंखें बरसने लगी थीं. पिताजी के गले मिलते हुए उस ने प्रकाश की तरफ देखा, प्रकाश मुसकराते हुए जैसे उस से माफी मांग रहा था. उस ने डबडबाई आंखों से प्रकाश की तरफ देखा, उन आंखों में ढेर सारी कृतज्ञता और धन्यवाद झलक रहा था प्रकाश के लिए. प्रकाश सोच रहा था उस के सासससुर कितने खुश हैं और उस के खुद के मातापिता भी कितने खुश हो कर गए हैं यहां से. जब अपनी पूरी जवानी मातापिता ने अपने बच्चों के नाम कर दी तो इस उम्र में सहारे की तलाश भी तो वे अपने बच्चों में ही करेंगे न, फिर चाहे वह बेटा हो या बेटी, दोनों को ही अपने मातापिता को सहारा देना ही चाहिए.

जो बीत गई सो बात गई- भाग 3

कुछ दिन बाद नंदिता ने फिर विशाल को फोन कर मिलने की बात की. विशाल ने स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि वह उस से मिलना नहीं चाहता. नंदिता ने सोचा विशाल को नाराज होने का अधिकार है, जल्द ही वह उसे मना लेगी.

फिर एक दिन वह अचानक उस के औफिस के नीचे खड़ी हो कर उस का इंतजार करने लगी.

विशाल आया तो नंदिता को देख कर चौंक गया, वह गंभीर बना रहा. बोला, ‘‘अचानक यहां कैसे?’’

नंदिता ने कहा, ‘‘विशाल, कभीकभी तो हम मिल ही सकते हैं. इस में क्या बुराई है?’’

‘‘नहीं नंदिता, अब सब कुछ खत्म हो चुका है. तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मेरा जीवन तुम्हारे अनुसार चलेगा. पहले बिना यह सोचे कि मेरा क्या होगा, चुपचाप विवाह कर लिया और आज जब मुझे भूल नहीं पाई तो मेरे जीवन में वापस आना चाहती हो. तुम्हारे लिए दूसरों की इच्छाएं, भावनाएं, मेरा स्वाभिमान, सम्मान सब महत्त्वहीन है. नहीं नंदिता, मैं और नीता अपने जीवन से बेहद खुश हैं, तुम अपने परिवार में खुश रहो.’’

‘‘विशाल, क्या हम कहीं बैठ कर बात कर सकते हैं?’’

‘‘मुझे नीता के साथ कहीं जाना है, वह आती ही होगी.’’

‘‘उस के साथ फिर कभी चले जाना, मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही थी, प्लीज…’’

नंदिता की बात खत्म होने से पहले ही पीछे से एक नारी स्वर उभरा, ‘‘फिर कभी क्यों, आज क्यों नहीं, मैं अपना परिचय खुद देती हूं, मैं हूं नीता, विशाल की पत्नी.’’

नंदिता हड़बड़ा गई. एक सुंदर, आकर्षक युवती सामने मुसकराती हुई खड़ी थी. नंदिता के मुंह से निकला, ‘‘मैं नंदिता, मैं…’’

नीता ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जानती हूं, विशाल ने मुझे आप के बारे में सब बता रखा है.’’

नंदिता पहले चौंकी, फिर सहज होने का प्रयत्न करती हुई बोली, ‘‘ठीक है, आप लोग अभी कहीं जा रहे हैं, फिर मिलते हैं.’’

नीता ने गंभीरतापूर्वक कहा, ‘‘नहीं नंदिता, हम फिर मिलना नहीं चाहेंगे और अच्छा होगा कि आप भी एक औरत का, एक पत्नी का, एक मां का स्वाभिमान, संस्कारों और कर्तव्यों का मान रखो. जो कुछ भी था उसे अब भूल जाओ. जो बीत गया, वह कभी वापस नहीं आ सकता, गुडबाय,’’ कहते हुए नीता आगे बढ़ी तो अब तक चुपचाप खड़े विशाल ने भी उस के पीछे कदम बढ़ा दिए.

नंदिता वहीं खड़ी की खड़ी रह गई. फिर थके कदमों से गाड़ी में बैठी तो ड्राइवर ने गाड़ी आगे बढ़ा दी.

वह अपने विचारों के आरोहअवरोह में चढ़तीउतरती रही. सोच रही थी जिस की छवि उस ने कभी अपने मन से धूमिल नहीं होने दी, उसी ने अपने जीवनप्रवाह में समयानुकूल संतुलन बनाते हुए अपने व्यस्त जीवन से उसे पूर्णतया निकाल फेंका था.

जिस रिश्ते को कभी जीवन में कोई नाम न मिल सका, उस से चिपके रहने के बदले विशाल को जीवन की सार्थकता आगे बढ़ने में ही लगी, जो उचित भी था जबकि वह आज तक उसी टूटे बिखरे रिश्ते से चिपकी थी जहां से वह विशाल से 5 साल पहले अलग हुई थी.

नंदिता अपना विश्लेषण कर रही थी, आखिरकार वह क्यों भटक रही है, उसे किस चीज की कमी है? एक सुसंस्कृत, शिक्षित और योग्य पति है जो अच्छा पिता भी है और अच्छा इंसान भी. प्यारी बेटी है, घर है, समाज में इज्जत है. सब कुछ तो है उस के पास फिर वह खुश क्यों नहीं रह सकती?

घर पहुंचतेपहुंचते नंदिता समझ चुकी थी कि वह एक मृग की भांति कस्तूरी की खुशबू बाहर तलाश रही थी, लेकिन वह तो सदा से उस के ही पास थी.

घर आने तक वह असीम शांति का अनुभव कर रही थी. अब उस के मन और मस्तिष्क में कोई दुविधा नहीं थी. उसे लगा जीवन का सफर भी कितना अजीब है, कितना कुछ घटित हो जाता है अचानक.

कभी खुशी गम में बदल जाती है तो कभी गम के बीच से खुशियों का सोता फूट पड़ता है. गाड़ी से उतरने तक उस के मन की सारी गांठें खुल गई थीं. उसे बच्चन की लिखी ‘जो बीत गई सो बात गई…’ पंक्ति अचानक याद हो आई.

जिस गली जाना नहीं: क्या हुआ था सोम के साथ- भाग 2

चाची का रुंधा स्वर बहुत याद आता है उसे. उस के बाद चाची से मिला ही कब. उन की मृत्यु का समाचार मिला था. चाचा से अफसोस के दो बोल बोल कर साथ कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी. इतना तेज भाग रहा था कि रुक कर पीछे देखना भी गवारा नहीं था. मोहममता को नकार रहा था और आज उसी मोह को तरस रहा है. मोहममता जी का जंजाल है मगर एक सीमा तक उस की जरूरत भी तो है. मोह न होता तो उस की चाची उसे सदा खुश रहने का आशीष कभी न देती. उस के उस व्यवहार पर भी इतना मीठा न बोलती. मोह न हो तो मां अपनी संतान के लिए रातभर कभी न जागे और अगर मोह न होता तो आज वह भी अपनी संतान को याद करकर के अवसाद में न जाता. क्या नहीं किया था सोम ने अपने बेटे के लिए.

विदेशी संस्कार नहीं थे, इसलिए कह सकता है अपना खून पिलापिला कर जिसे पाला वही तलाक होते

ही मां की उंगली पकड़ चला गया. मुड़ कर देखा भी नहीं निर्मोही ने. उसे जैसे पहचानता ही नहीं था. सहसा उस पल अपना ही चेहरा शीशे में नजर आया था.

‘जिस गली जाना नहीं उस गली की तरफ देखना भी क्यों?’

उस के हर सवाल का जवाब वक्त ने बड़ी तसल्ली के साथ थाली में सजा कर उसे दिया है. सुना था इस जन्म का फल अगले जन्म में मिलता है अगर अगला जन्म होता है तो. सोम ने तो इसी जन्म में सब पा भी लिया. अच्छा ही है इस जन्म का कर्ज इसी जन्म में उतर जाए, पुनर्जन्म होता है, नहीं होता, कौन जाने. अगर होता भी है तो कर्ज का भारी बोझ सिर पर ले कर उस पार भी क्यों जाना. दीवाली और नजदीक आ गई. मात्र 5 दिन रह गए. सोम का अजय से मिलने को बहुत मन होने लगा. मां और बाबूजी उसे बारबार पोते व बहू से बात करवाने को कह रहे हैं पर वह टाल रहा है. अभी तक बता ही नहीं पाया कि वह अध्याय समाप्त हो चुका है.

किसी तरह कुछ दिन चैन से बीत जाएं, फिर उसे अपने मांबाप को रुलाना ही है. कितना अभागा है सोम. अपने जीवन में उस ने किसी को सुख नहीं दिया. न अपनी जन्मदाती को और न ही अपनी संतान को. वह विदेशी परिवेश में पूरी तरह ढल ही नहीं पाया. दो नावों का सवार रहा वह. लाख आगे देखने का दावा करता रहा मगर सत्य यही सामने आया कि अपनी जड़ों से कभी कट नहीं पाया. पत्नी पर पति का अधिकार किसी और के साथ बांट नहीं पाया. वहां के परिवेश में परपुरुष से मिलना अनैतिक नहीं है न, और हमारे घरों में उस ने क्या देखा था चाची और मां एक ही पति को सात जन्म तक पाने के लिए उपवास रखती हैं. कहां सात जन्म तक एक ही पति और कहां एक ही जन्म में 7-7 पुरुषों से मिलना. ‘जिस गली जाना नहीं उस गली की तरफ देखना भी क्यों’ जैसी बात कहने वाला सोम आखिरकार अपनी पत्नी को ले कर अटक गया था. सोचने लगा था, आखिर उस का है क्या, मांबाप उस ने स्वयं छोड़ दिए  और पत्नी उस की हुई नहीं. पैर का रोड़ा बन गया है वह जिसे इधरउधर ठोकर खानी पड़ रही है. बहुत प्रयास किया था उस ने पत्नी को समझाने का.

‘अगर तुम मेरे रंग में नहीं रंग जाते तो मुझ से यह उम्मीद मत करो कि मैं तुम्हारे रंग में रंग जाऊं. सच तो यह है कि तुम एक स्वार्थी इंसान हो. सदा अपना ही चाहा करते हो. अरे जो इंसान अपनी मिट्टी का नहीं हुआ वह पराई मिट्टी का क्या होगा. मुझ से शादी करते समय क्या तुम्हें एहसास नहीं था कि हमारे व तुम्हारे रिवाजों और संस्कृति में जमीनआसमान का अंतर है?’

अंगरेजी में दिया गया पत्नी का उत्तर उसे जगाने को पर्याप्त था. अपने परिवार से बेहद प्यार करने वाला सोम बस यही तो चाहता था कि उस की पत्नी, बस, उसी से प्रेम करे, किसी और से नहीं. इस में उस का स्वार्थ कहां था? प्यार करना और सिर्फ अपनी ही बना कर रखना स्वार्थ है क्या?

स्वार्थ का नया ही अर्थ सामने चला आया था. आज सोचता है सच ही तो है, स्वार्थी ही तो है वह. जो इंसान अपनी जड़ों से कट जाता है उस का यही हाल होना चाहिए. उस की पत्नी कम से कम अपने परिवेश की तो हुई. जो उस ने बचपन से सीखा कम से कम उसे तो निभा रही है और एक वह स्वयं है, धोबी का कुत्ता, घर का न घाट का. न अपनों से प्यार निभा पाया और न ही पराए ही उस के हुए. जीवन आगे बढ़ गया. उसे लगता था वह सब से आगे बढ़ कर सब को ठेंगा दिखा सकता है. मगर आज ऐसा लग रहा है कि सभी उसी को ठेंगा दिखा रहेहैं. आज हंसी आ रही है उसे स्वयं पर. पुन: उसी स्थान पर चला आया है जहां आज से 10 साल पहले खड़ा था. एक शून्य पसर गया है उस के जीवन में भी और मन में भी.

शाम होते ही दम घुटने लगा, चुपचाप छत पर चला आया. जरा सी ताजी हवा तो मिले. कुछ तो नया भाव जागे जिसे देख पुरानी पीड़ा कम हो. अब जीना तो है उसे, इतना कायर भी नहीं है जो डर जाए. प्रकृति ने कुछ नया तो किया नहीं, मात्र जिस राह पर चला था उसी की मंजिल ही तो दिखाई है. दिल्ली की गाड़ी में बैठा था तो कश्मीर कैसे पहुंचता. वहीं तो पहुंचा है जहां उसे पहुंचना चाहिए था.

छत पर कोने में बने स्टोररूम का दरवाजा खोला सोम ने. उस के अभाव में मांबाबूजी ने कितनाकुछ उस में सहेज रखा है. जिस की जरूरत है, जिस की नहीं है सभी साथसाथ. सफाई करने की सोची सोम ने. अच्छाभला हवादार कमरा बरबाद हो रहा है. शायद सालभर पहले नीचे नई अलमारी बनवाई गई थी जिस से लकड़ी के चौकोर तिकोने, ढेर सारे टुकड़े भी बोरी में पड़े हैं. कैसी विचित्र मनोवृत्ति है न मुनष्य की, सब सहेजने की आदत से कभी छूट ही नहीं पाता. शायद कल काम आएगा और कल का ही पता नहीं होता कि आएगा या नहीं और अगर आएगा तो कैसे आएगा.

4 दिन बीत गए. आज दीवाली है. सोम के ही घर जा पहुंचा अजय. सोम से पहले वही चला आया, सुबहसुबह. उस के बाद दुकान पर भी तो जाना है उसे. चाची ने बताया वह 4 दिन से छत पर बने कमरे को संवारने में लगा है.

‘‘कहां हो, सोम?’’

चौंक उठा था सोम अजय के स्वर पर. उस ने तो सोचा था वही जाएगा अजय के घर सब से पहले.

‘‘क्या कर रहे हो, बाहर तो आओ, भाई?’’

ऐताहासिक कहानी: वंश की मर्यादा- भाग 3

हरावल में रहने की जिम्मेदारी हर किसी को नहीं मिल सकती, इसलिए आप को पूरी जिम्मेदारी निभानी है. मातृभूमि के लिए मरने वाले अमर हो जाते हैं अत: मरने से किसी को डरने की कोई जरूरत नहीं. अब खींचो अपने घोड़ों की लगाम और चढ़ा दो मराठा

सेना पर.’’

माजीसा ने भी अन्य वीरों की तरह एक हाथ से तलवार उठाई और दूसरे हाथ से घोड़े की लगाम खींच घोड़े को एड़ लगा दी. युद्ध शुरू हुआ, तलवारें टकराने लगीं. खच्चखच्च कर सैनिक कटकट कर गिरने लगे. तोपों, बंदूकों की आवाजें गूजने लगीं. हरहर महादेव के नारों से यह भूमि गूंज उठी.

माजीसा भी बड़ी फुरती से पूरी तन्मयता के साथ तलवार चला दुश्मन के सैनिकों को काटते हुए उन की संख्या कम कर रही थीं कि तभी किसी दुश्मन ने पीछे से उन पर भाले का एक वार किया. भाला उन की पसलियां चीरता हुआ निकल गया और तभी माजीसा के हाथ से घोड़े की लगाम छूट गई और वे धम्म से नीचे गिर गईं.

 

सांझ हुई तो युद्ध बंद हुआ और साथी सैनिकों ने उन्हें अन्य घायल सैनिकों के साथ उठा कर वैद्यजी के शिविर में इलाज के लिए पहुंचाया. वैद्यजी घायल माजीसा की मरहमपट्टी करने ही लगे थे कि उन के सिर पर पहने लोहे के टोपे से निकल रहे लंबे केश दिखाई दिए.

वैद्यजी देखते ही समझ गए कि यह तो कोई औरत है. बात राणाजी तक पहुंची, ‘‘घायलों में एक औरत! पर कौन? कोई नहीं जानता. पूछने पर अपना नाम व परिचय भी नहीं बता रही.’’

सुन कर राणाजी खुद चिकित्सा शिविर में पहुंचे. उन्होंने देखा कि औरत जिरह वस्त्र पहले खून से लथपथ पड़ी थी. पूछा, ‘‘कृपया बिना कुछ छिपाए सचसच बताएं. आप यदि दुश्मन खेमे से भी होंगी, तब भी मैं आप का अपनी बहन के समान आदर करूंगा.

अत: बिना किसी डर और संकोच के

सचसच बताएं.’’

घायल माजीसा ने जबाब दिया, ‘‘कोसीथल ठाकुर साहब की मां हूं अन्नदाता.’’

सुनकर राणाजी आश्चर्यचकित हो गए, ‘‘आप युद्ध में क्यों आ गईं?’’

‘‘अन्नदाता का हुक्म था कि सभी जागीरदारों को युद्ध में शामिल होना है और जो नहीं होगा, उस की जागीर जब्त कर ली जाएगी. कोसीथल जागीर का ठाकुर मेरा बेटा अभी मात्र 2 साल का है अत: वह अपनी फौज का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं, सो अपनी फौज का नेतृत्व करने के लिए मैं युद्ध में शामिल हुई.

‘‘यदि अपनी फौज के साथ मैं हाजिर नहीं होती तो मेरे बेटे पर देशद्रोह व हरामखोरी का आरोप लगता और उस की जागीर भी जब्त होती. यह हमारे वंश की मर्यादा के अनुकूल नहीं होता. इस कारण वंश की मर्यादा की रक्षा के लिए मुझे युद्ध में भाग लेना पड़ा.’’

माजीसा के वचन सुन कर राणाजी के मन में उठे करुणा व अपने ऐसे सामंतों पर गर्व के लिए आंखों में आंसू छलक आए. खुशी से गदगद हो राणा बोले, ‘‘धन्य हैं आप जैसी मातृशक्ति! मेवाड़ की आज बरसों से जो आनबान बची हुई है, वह आप जैसी देवियों के प्रताप से ही बची हुई है. आप जैसी देवियों ने ही मेवाड़ का सिर ऊंचा रखा हुआ है. जब तक आप जैसी देवी माताएं इस मेवाड़ भूमि पर रहेंगी, तब तक कोई माई का लाल मेवाड़ का सिर नहीं झुका सकता.

‘‘मैं आप की वीरता, साहस और देशभक्ति को नमन करते हुए इसे इज्जत देने के लिए अपनी ओर से कुछ ईनाम देना चाहता हूं. यदि आप की इजाजत हो तो. सो अपनी इच्छा बताएं कि आप को ऐसा क्या दिया जाए, जो आप की इस वीरता के लायक हो.’’

माजीसा सोच में पड़ गईं. आखिर मांगे तो भी क्या मांगें. आखिर वे बोलीं, ‘‘अन्नदाता, यदि कुछ देना ही है तो कुछ ऐेसा दें, जिस से मेरे बेटे कहीं बैठें तो सिर ऊंचा कर बैठैं.’’

राणाजी बोले, ‘‘आप को हुंकार की कलंगी बख्शी जाती है, जिसे आप का बेटा ही नहीं, उस की पीढि़यों के वंशज भी उस कलंगी को पहन अपना सिर ऊंचा कर आप की वीरता को याद रखेंगे.’’

सुन कर माजीसा बोलीं, ‘‘धन्य हो आप अन्नदाता, धन्य हो.’’

‘‘धन्य तो आप हैं जिस ने वंश की मर्यादा बचाने के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं की. आप से बढ़ कर वीर कोई नहीं.’’ राणाजी ने कहा.

माजीसा के वंशज उस कलंगी को पहन कर अपना सिर गर्व से ऊंचा रखते हैं. यह कलंगी की निशानी सैकड़ों वर्षों बाद आज भी माजीसा की वीरता की याद दिलाती है.

अंत भला तो सब भला- भाग 3

‘‘न… नो, सर. मैं रविवार की सुबह आप के घर आ जाऊंगी,’’ कहते हुए संगीता का पूरा शरीर ठंडे पसीने से नहा गया था. उस के साथ उमेश साहब के घर चलने के लिए हर कोई तैयार था पर संगीता सारे कागज ले कर वहां अकेली पहुंची. उन के घर में कदम रखते हुए वह शर्म के मारे खुद को जमीन में गड़ता महसूस कर रही थी. उमेश साहब की पत्नी शिखा का सामना करने की कल्पना करते ही उस का शरीर कांप उठता था. रवि के मुंबई जाने से कुछ दिन पूर्व ही वह शिखा से पहली बार मिली थी. उस मुलाकात में जो घटा था, उसे याद करते ही उस का दिल किया कि वह उलटी भाग जाए. लेकिन अपना काम कराने के लिए उसे उमेश साहब के घर की दहलीज लांघनी ही पड़ी.

अचानक उस दिन का घटना चक्र उस की आंखों के सामने घूम गया. उस दिन रवि शिखा को एक स्कूल में इंटरव्यू दिलाने ले जा रहा था. रवि का बैंक उस स्कूल के पास ही था. उसे बैंक में कुछ पर्सनल काम कराने थे. जितनी देर में शिखा स्कूल में इंटरव्यू देगी, उतनी देर में वह बैंक के काम करा लेगा, ऐसा सोच कर रवि कुछ जरूरी कागज लेने शिखा के साथ अपने घर आया था. संगीता उस दिन अपनी मां से मिलने गई हुई थी. वह उस वक्त लौटी जब शिखा एक गिलास ठंडा पानी पी कर उन के घर से अकेली स्कूल जा रही थी. वह शिखा को पहचानती नहीं थी, क्योंकि उमेश साहब ने कुछ हफ्ते पहले ही अपना पदभार संभाला था.

‘‘कौन हो तुम  मेरे घर में किसलिए आना हुआ ’’ संगीता ने बड़े खराब ढंग से शिखा से पूछा था.

‘‘रवि और मेरे पति एक ही औफिस में काम करते हैं. मेरा नाम शिखा है,’’ संगीता के गलत व्यवहार को नजरअंदाज करते हुए शिखा मुसकरा उठी थी.

‘मेरे घर मेें तुम्हें मेरी गैरमौजूदगी में आने की कोई जरूरत नहीं है… अपने पति को धोखा देना है तो कोई और शिकार ढूंढ़ो…मेरे पति के साथ इश्क लड़ाने की कोशिश की तो मैं तुम्हारे घर आ कर तुम्हारी बेइज्जती करूंगी,’’ उसे यों अपमानित कर के संगीता अपने घर में घुस गई थी. तब उसे रोज लगता था कि रवि उस के साथ उस के गलत व्यवहार को ले कर जरूर झगड़ा करेगा पर शिखा ने रवि को उस दिन की घटना के बारे में कुछ बताया ही नहीं था. अब रवि की दिल्ली में बदली कराने के लिए उसे शिखा के पति की सहायता चाहिए थी. अपने गलत व्यवहार को याद कर के संगीता शिखा के सामने पड़ने से बचना चाहती थी पर ऐसा हो नहीं सका.

उन के ड्राइंगरूम में कदम रखते ही संगीता का सामना शिखा से हो गया.

‘‘मैं अकारण अपने घर आए मेहमान का अपमान नहीं करती हूं. तुम बैठो, वे नहा रहे हैं,’’ उसे यह जानकारी दे कर शिखा घर के भीतर चल दी.

‘‘प्लीज, आप 1 मिनट मेरी बात सुन लीजिए,’’ संगीता ने उसे अंदर जाने से रोका.

‘‘कहो,’’ अपने होंठों पर मुसकान सजा कर शिखा उस की तरफ देखने लगी.

‘‘मैं…मैं उस दिन के अपने खराब व्यवहार के लिए क्षमा मांगती हूं,’’ संगीता को अपना गला सूखता लगा.

‘‘क्षमा तो मैं तुम्हें कर दूंगी पर पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो…यह ठीक है कि तुम मुझे नहीं जानती थीं पर अपने पति को तुम ने चरित्रहीन क्यों माना ’’ शिखा ने चुभते स्वर में पूछा.

‘‘उस दिन मुझ से बड़ी भूल हुई…वे चरित्रहीन नहीं हैं,’’ संगीता ने दबे स्वर में जवाब दिया.

‘‘मेरी पूछताछ का भी यही नतीजा निकला था. फिर तुम ने हम दोनों पर शक क्यों किया था ’’

‘‘उन दिनों मैं काफी परेशान चल रही थी…मुझे माफ कर…’’

‘‘सौरी, संगीता. तुम माफी के लायक नहीं हो. तुम्हारी उस दिन की बदतमीजी की चर्चा मैं ने आज तक किसी से नहीं की है पर अब मैं सारी बात अपने पति को जरूर बताऊंगी.’’

‘‘प्लीज, आप उन से कुछ न कहें.’’

‘‘मेरी नजरों में तुम कैसी भी सहायता पाने की पात्रता नहीं रखती हो. मुझे कई लोगों ने बताया है कि तुम्हारे खराब व्यवहार से रवि और तुम्हारे ससुराल वाले बहुत परेशान हैं. अपने किए का फल सब को भोगना ही पड़ता है, सो तुम भी भोगो. शिखा को फिर से घर के भीतरी भाग की तरफ जाने को तैयार देख संगीता ने उस के सामने हाथ जोड़ दिए, ‘‘मैं आप से वादा करती हूं कि मैं अपने व्यवहार को पूरी तरह बदल दूंगी…अपनी मां और बहन का कोई भी हस्तक्षेप अब मुझे अपनी विवाहित जिंदगी में स्वीकार नहीं होगा…मेंरे अकेलेपन और उदासी ने मुझे अपनी भूल का एहसास बड़ी गहराई से करा दिया है.’’

‘‘तब रवि जरूर वापस आएगा… हंसीखुशी से रहने की नई शुरुआत के लिए तुम्हें मेरी शुभकामनाएं संगीता…आज से तुम मुझे अपनी बड़ी बहन मानोगी तो मुझे बड़ी खुशी होगी.’’

‘‘थैंक यू, दीदी,’’ भावविभोर हो इस बार संगीता उन के गले लग कर खुशी के आंसू बहाने लगी थी. उमेश साहब के प्रयास से 4 दिन बाद रवि के दिल्ली तबादला होने के आदेश निकल गए. इस खबर को सुन कर संगीता अपनी सास के गले  लग कर खुशी के आंसू बहाने लगी थी. उसी दिन शाम को रवि के बड़े भैया उमेश साहब का धन्यवाद प्रकट करने उन के घर काजू की बर्फी के डिब्बे के साथ पहुंचे.

‘‘अब तो सब ठीक हो गया न राजेश ’’

‘‘सब बढि़या हो गया, सर. कुछ दिनों में रवि बड़ी पोस्ट पर यहीं आ जाएगा. संगीता का व्यवहार अब सब के साथ अच्छा है. अपनी मां और बहन के साथ उस की फोन पर न के बराबर बातें होती हैं. बस, एक बात जरा ठीक नहीं है, सर.’’

‘‘कौन सी, राजेश ’’

‘‘सर, संयुक्त परिवार में मैं और मेरा परिवार बहुत खुश थे. अपने फ्लैट में हमें बड़ा अकेलापन सा महसूस होता है,’’ राजेश का स्वर उदास हो गया.

‘‘अपने छोटे भाई के वैवाहिक जीवन को खुशियों से भरने के लिए यह कीमत तुम खुशीखुशी चुका दो, राजेश. अपने फ्लैट की किस्त के नाम पर तुम रवि से हर महीने क्व10 हजार लेने कभी बंद मत करना. यह अतिरिक्त खर्चा ही संगीता के दिमाग में किराए के मकान में जाने का कीड़ा पैदा नहीं होने देगा.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं, सर. वैसे रवि से रुपए ले कर मैं नियमित रूप से बैंक में जमा कराऊंगा. भविष्य में इस मकान को तोड़ कर नए सिरे से बढि़या और ज्यादा बड़ा दोमंजिला मकान बनाने में यह पैसा काम आएगा. तब मैं अपना फ्लैट बेच दूंगा और हम दोनों भाई फिर से साथ रहने लगेंगे,’’ राजेश भावुक हो उठा. ‘‘पिछले दिनों रवि को मुंबई भेजने और तुम्हारे फ्लैट की किस्त उस से लेने की हम दोनों के बीच जो खिचड़ी पकी है, उस की भनक किसी को कभी नहीं लगनी चाहिए,’’ उमेश साहब ने उसे मुसकराते हुए आगाह किया. ‘‘ऐसा कभी नहीं होगा, सर. आप मेरी तरफ से शिखा मैडम को भी धन्यवाद देना. उन्होंने रवि के विवाहित जीवन में सुधार लाने का बीड़ा न उठाया होता तो हमारा संयुक्त परिवार बिखर जाता.’’

‘‘अंत भला तो सब भला,’’ उमेश साहब की इस बात ने राजेश के चेहरे को फूल सा खिला दिया था.

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