अंधविश्वास को बढ़ावा : बिहार में ‘कोरोना माई’ की पूजा

तकरीबन हर साल जूनजुलाई  महीने में बिहार के गांवों में कोई न कोई अफवाह फैलती है. किसी साल कोई ‘लकड़सुंघवा’ बच्चों को लकड़ी सुंघा कर बेहोश कर के चुराता है, तो किसी साल कोई ‘मुंहनोचवा’ छत पर या बाहर सोए लोगों का रात में आ कर मुंह नोच लेता है, तो किसी साल ‘चोटीकटवा’ का हल्ला होता है, जिस में सोई हुई लड़कियों के रात में बाल कट जाते हैं और लड़की बेहोश हो जाती है.

इस साल ‘कोरोना माई’ के बिगड़ने की अफवाह उतरी, बिहार के छपरा, गोपालगंज और सिवान जिले में यह अफवाह फैलाई गई. इस सिलसिले में वीडियो बना कर एंड्रायड मोबाइल फोन से वायरल किया गया. नतीजतन, दलित और निचले तबके की औरतें ‘कोरोना माई’ की पूजा कर रही हैं. लोगों को यकीन है कि इस से बिगड़ी ‘कोरोना माई’ का गुस्सा शांत होगा और इस बीमारी में कमी आएगी.

इस संबंध में एक औरत वीडियो के जरीए एक कहानी बताती है कि एक खेत में 2 औरतें घास काट रही थीं. वहीं बगल में एक गाय घास चर रही थी. कुछ देर के बाद वह गाय एक औरत बन गई. इस के बाद घास काट रही औरतें डर कर भागने लगीं.

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तब गाय से औरत ने कहा, ‘तुम लोग डरो नहीं. हम कोरोना माता हैं. अभी हम नाराज हैं, जिस का ही प्रकोप आजकल कोरोना के रूप में देखा जा रहा है. देश में मेरा प्रचारप्रसार करो और सोमवार और शुक्रवार को मेरी पूजा करो. इस से हम खुश हो जाएंगे. अगर इसे कोई मजाक में लेता है या हंसता है, तो इस का अंजाम बहुत ही बुरा होगा…’

वीडियो में पूजा करने की पूरी विधि भी बताई गई. इस वीडियो के वायरल होते ही कई गांवों में औरतें पूजा करते देखी गईं.

एक तरफ कोरोना के इस संकट से निकलने के लिए पूरी दुनिया में इस का इलाज ढूंढ़ने के लिए वैज्ञानिक रातदिन लगे हुए हैं, वहीं बिहार के गांवों में ‘कोरोना माई’ की पूजा की जा रही है और इस तबके को विश्वास है कि इस से कोरोना जरूर खत्म हो जाएगा. इस दौरान सोशल डिस्टैंसिंग का भी खयाल नहीं रखा जा रहा है. मास्क का भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है.

सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिस में एक औरत बता रही है कि कोरोना कोई वायरस नहीं, बल्कि देवी का एक रूप है. रजंती देवी, मालती देवी, संगीता देवी जैसी औरतें बताती हैं कि अगर ‘कोरोना माई’ की पूजा की जाएगी तो इन का प्रकोप कम हो जाएगा और देवी खुश हो कर लौट जाएंगी. इस अफवाह ने इतना जोर पकड़ा कि छपरा, गोपालगंज और सिवान से  औरतों की पूजा करने की खबरें आने लगीं. ऐसी औरतें 9 लड्डू, उड़हुल के 9 फूल और 9 लौंग से ‘कोरोना माई’ की पूजा कर रही हैं. औरतें पहले एक फुट गड्ढा खोद रही हैं और उस में 9 जगह सिंदूर लगाया जा रहा है और फिर 9 लड्डू, 9 लौंग और उड़हुल के 9 फूल उस में डाल कर मिट्टी से भर दिया जा रहा है.अगरबती जलाई जा रही है. कहींकहीं तो लड्डू की माँग इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि दुकान में लड्डू तक नहीं मिल रहे हैं.

पहले अफवाह एकदूसरे से बातचीत के जरीए फैलती थी, पर आजकल अफवाहें सोशल मीडिया के जरीए फैलाई जा रही हैं. डिजिटल इंडिया का इस्तेमाल इन अफवाहों को फैलाने में किया जा रहा है. डिजिटल इंडिया पर हम गर्व तो नहीं पर इस तरह की घटनाओं से शर्म ही कर सकते हैं. सरकार और हुक्मरान चाहते तो वीडियो बनाने वाली औरत को गिरफ्तार किया जा सकता था. अफवाह फैलाने के जुर्म में उसे सजा दी जा सकती थी, लेकिन सरकार भी यही चाहती है कि इस देश का निचला तबका इन्हीं चीजों में उलझा रहे, दूसरी समस्याओं की तरफ उस का ध्यान नहीं जाए. पढ़ेलिखे लोग भी इन औरतों को समझा नहीं रहे हैं. इस की वजह से इस अंधविश्वास का रूप और बढ़ता जा रहा है.

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सरकार विज्ञान को बढ़ावा देने का झूठा राग जितना भी अलाप ले, उस का अंतिम हश्र यही होता है कि जनता झाड़फूंक और अंधविश्वास में ही लिप्त हो जाती है. इस कोरोना काल में इन देवीदेवताओं और मंदिरमसजिद से बहुत लोगों का विश्वास जब उठने लगा तो सरकार की तरफ से तत्काल मंदिरों को खोलने का आदेश जारी किया गया. पूरे देश के कई हिस्सों में कोरोना से नजात पाने के लिए हवन और पूजा करने की भी खबरें आ रही हैं. मौलाना लोग नमाज पढ़ कर कोरोना के खत्म होने की दुआ मांग रहे हैं. और ये लोग ही बोलते हैं कि जब पूजापाठ और हवन से ही इस बीमारी से मुक्ति मिल सकती है तो दवा की बात क्यों करते हो? इस देश में लोगों को अंधविश्वास और धार्मिक जाल में उलझा कर देश के हुक्मरान अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में कामयाब हो रहे हैं.

सामाजिक सरोकारों से जुड़े गालिब साहब ने कहा कि हम जैसा समाज बनाएंगे, वैसा ही उस का नतीजा भी सामने आएगा. वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने की तो बात छोड़ ही दीजिए. सरकार द्वारा अंधविश्वास और धार्मिक नफरत फैलाने की साजिश बड़े पैमाने पर लगातार जारी है.

जानिये इस Lockdown में क्या कर रहीं है लोक गायिका मैथिली ठाकुर

सोशल मीडिया को जरिया बना कर बेहद ही कम उम्र में लोक गायन में छा जानें वाली मैथिली ठाकुर (Maithili Thakur) को आज देश का बच्चा –बच्चा जानता हैं. मैथिली नें देश के लगभग सभी बड़े मंचों और कार्यक्रमों में अपनी प्रस्तुति दी है. मैथिली जब मंच पर लोक गायन कर रहीं होती हैं तो लोग मंत्रमुग्ध से हो उनके गानों में खो जाते हैं, या यह कह लिया जाए की उनके गाने की शैली के लोग मुरीद हैं.

मैथिली ठाकुर की आज जो भी पहचान है वह उन्हें केवल सोशल मीडिया (Social Media) के जरिये मिली है. शुरूआती दौर में मैथिली ठाकुर और उनके भाई मैथिली के गाये गानों को अपने मोबाइल से रिकार्ड कर फेसबुक पर अपलोड करते थे. जिस पर उनके वीडियोज को पसंद करनें वालों की तादाद इस कदर बढ़ी की आज मैथिली ठाकुर (Maithili Thakur), और उनके दोनों भाइयों  ऋषभ ठाकुर (Rishabh Thakur) व  अयाची ठाकुर (Ayachi Thakur) के लाखों फालोवर  है. मैथिली के साथ उनके दोनों भाई ऋषभ ठाकुर (Rishabh Thakur) तबले पर और ठाकुर (Ayachi Thakur) ताली व कोरस के जरिये सपोर्ट करते हैं. इन तीनों की जोड़ी ही मैथिली के सफलता का कारण हैं.

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लौक डाउन (Lockdown) के पहले मैथिली ठाकुर का सेड्यूल इतना व्यस्त रहता था की वह अपने कार्यक्रमों के सिलसिले में अक्सर बाहर ही रहा करतीं थी. लेकिन इन दिनों जब लौक डाउन है तो निश्चित ही मैथिली के शो पर लगाम लग गया है. ऐसे में मैथिली ठाकुर फिर से घर बैठ सोसल मीडिया के जरिये लोगों का अपने लोक गायन के जरिये मनोरंजन करती नजर आ रहीं हैं. इस दौरान उनकी इंटरनेट लोकप्रियता और भी रहीं हैं. लौक डाउन (Lockdown) के दौरान मैथिली द्वारा अपलोड किये जा रहें वीडियोज उनके यूट्यूब (YouTube), फेसबुक (Facebook) और इन्स्टाग्राम (Instagram)पर लाखों बार देखें जा रहें हैं. वह हर रोज एक से दो वीडियोज अपने सोशल मीडिया एकाउंट पर अपलोड कर रहीं हैं.

इस लौक डाउन में मैथिली लोक गायन के साथ ही भजन, गजल, कव्वाली, सहित तमाम विधाओं से जुड़े गीत अपलोड कर रहीं हैं जिस पर उन्हें काफी तारीफ भी मिल रही हैं. उनके द्वारा सोशल मीडिया और यूट्यूब पर अपलोड किये जा रहे इन वीडियोज पर लाखों लाइक्स और ब्युअर्स मिल रहें हैं.

कोरोना पर गीत के जरिये जागरूक कर बटोर चुकीं हैं सुर्खियां

दूसरे चर्चित गायकों की तरह मैथिली ठाकुर नें भी जानलेवा कोरोना वायरस पर बना पैरोडी सॉंग गाकर लोगों को कोरोना से बचाव के लिए जागरूक किया. यह गाना उन्होंने फिल्म ‘कुर्बानी’ के ‘लैला ओ लैला’ की तर्ज पर गाया. 46 सेकंड के इस विडियो में अंत में मैथिली ने लोगों से सुरक्षित रहने और घर पर रहने की सलाह भी दी.

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कोरोना पर मैथली का गाया –

इन्स्टाग्राम पर अपलोड किये गए वीडियोज के लिंक-

 

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New Video on Rishav’s YouTube Channel. Link in my Story.

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Is Shaan-E-Karam ka Kya kehna. Full Video on YouTube.🙏 @rishavthakur.official @ayachithakur

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Ekla cholo re ❤️ . #maithilians

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बताब पहुना, फेर कहिया ले अइब 🙏 . . #maithilians #maithilithakur

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जनता तो अब चंदन ही घिसेगी

वर्तमान सरकार की नीतियों से सब गङबङ हो गया, अब तो ऐसा ही लगता है. पहले नोटबंदी ने आम लोगों से ले कर गृहिणियों तक को परेशान किया और फिर जीएसटी के मकङजाल में व्यापारी ऐसे उलझे कि उन्हें इस कानून को समझने में वैसा ही लगा जैसे किसी क्रिकेट प्रेमियों को डकवर्डलुइस के नियम को समझने में लगता है.

नोटबंदी ने मारा कोरोना ने रूलाया

एक के बाद एक लागू कानूनों से पहले सरकार ने मौकड्रिल करना जरूरी नहीं समझा. परिणाम यह हुआ कि देश में असमंजस की स्थिति बन गई. नोटबंदी के समय तो आलम यह था कि लोग अपने ही कमाए पैसे मनमुताबिक निकाल नहीं सकते थे.

तब आर्थिक विशेषज्ञों ने भी माना था कि आगे चल कर देश को इस से नुकसान होगा. निवेश कम होंगे तो छोटे और मंझोले व्यापार पर इस का तगङा असर पङेगा. और हुआ भी यही. छोटेछोटे उद्योगधंधे बंद हो गए या बंदी के कगार पर पहुंच गए. बेरोजगारी चरम पर पहुंच गई.

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मगर उधर सरकार कोई ठोस नतीजों पर पहुंचने की बजाय धार्मिक स्थलों, मूर्तियों और स्टैचू बनाने में व्यस्त रही.

परिणाम यह हुआ कि निवेश कम होते गए, किसानों को प्रोत्साहन न मिलने से वे खेती के प्रति भी उदासीन होते गए और रहीसही कसर अब कोरोना ने पूरी कर दी.

कोरोना वायरस के बीच देश में लागू लौकडाउन भी सरकारी उदासीनता की भेंट चढ़ गया और इस से सब से अधिक वही प्रभावित हुए जो देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहे जाते हैं.

विश्व बैंक की रिपोर्ट और भारतीय अर्थव्यवस्था

सरकारी उदासीनता और लापरवाही का नतीजा भारत की अर्थव्यवस्था पर तेजी से पङा. हाल के दिनों में छोटेबङे उद्योगधंधे या तो बंद हो गए या बंदी के कगार पर जा पहुंचे. लाखों नौकरियां खत्म हो गईं. और अब तो भारतीय अर्थव्यवस्था को ले कर विश्व बैंक ने जो कहा है वह चिंता बढ़ाने वाली बात है.

विश्व बैंक ने हाल ही में यह कहा है कि कोरोना संकट से दक्षिण एशिया के 8 देशों की वृद्धि दर सब से ज्यादा प्रभावित हो सकती है, जिस में भारत भी एक है.

40 सालों में सब से खराब स्थिति

विश्व बैंक का यह कहना कि भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देश 40 सालों में सब से खराब आर्थिक दौर में हैं, तो जाहिर है आगे हालात और भी बदतर दौर में बीतेंगे.

‘दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था पर ताजा अनुमान : कोविड-19 का प्रभाव’ रिपोर्ट पेश करते हुए विश्व बैंक ने कहा है कि भारत समेत दक्षिण एशियाई देशों में 40 सालों में सब से खराब आर्थिक विकास दर दर्ज की जा सकती है. दक्षिण एशिया के क्षेत्र, जिन में 8 देश शामिल हैं, विश्व बैंक का अनुमान है कि उन की अर्थव्यवस्था 1.8% से लेकर 2.8% की दर से बढ़ेगी जबकि मात्र 6 महीने पहले विश्व बैंक ने 6.3% वृद्धि दर का अनुमान लगाया था.

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भारत के बारे में विश्व बैंक का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में यहां वृद्धि दर 1.5% से लेकर 2.8% तक रहेगी.

विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया कि 2019 के आखिर में जो हरे निशान के संकेत दिख रहे थे उसे वैश्विक संकट के नकारात्मक प्रभावों ने निगल लिया है.

जाहिर है, इस से आने वाले दिनों में हालात बिगङेंगे ही. उधर सरकार के पास इस से निबटने और आर्थिक प्रगति के अवसर को आगे बढ़ाने में भयंकर दिक्कतों का सामने करना पङ सकता है.

मुश्किल में कारोबारी और मजदूर

कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के उपायों के कारण पूरे दक्षिण एशिया में सप्लाई चैन प्रभावित हुई, तो कामगाज ठप्प पङ गए.

सरकार की खामियों की वजहों से लौकडाउन भी पूरी तरह असफल हो गया. देश में फिलहाल 2 लाख से अधिक कोरोना पीङितों की संख्या है और इस का फैलाव भी अब तेजी से होने लगा है.

उधर भारत में तालाबंदी के कारण सवा सौ करोङ लोग घरों में बंद हैं, करोङों लोग बिना काम के हैं और हालात इतने बदतर होते जा रहे कि कुछ बाजारों के खुलने के बावजूद कारोबार चौपट है. इस से बड़े और छोटे कारोबार बेहद प्रभावित हैं.

शहरों में रोजीरोटी मिलनी मुश्किल हो गई तो लाखों प्रवासी मजदूर शहरों से अपने गांवों को लौट चुके हैं और यह पलायन बदस्तूर जारी है.

विश्व बैंक ने किया आगाह

रिपोर्ट में यह आगाह किया गया है कि यह राष्ट्रीय तालाबंदी आगे बढ़ती है तो पूरा क्षेत्र आर्थिक दबाव महसूस करेगा. अल्पकालिक आर्थिक मुश्किलों को कम करने के लिए विश्व बैंक ने क्षेत्र के देशों से बेरोजगार प्रवासी श्रमिकों का समर्थन करने के लिए वित्तीय सहायता देने और व्यापारियों और व्यक्तियों को ऋण राहत देने को कहा है.

मगर भारत में जहां की राजनीति हर कामों पर भारी पङती है, वहां लोगों व व्यापारियों को आसानी से ॠण मिल जाएगा, इस में संदेह ही है. भारतीय बैंक की हालत पहले ही बङेबङे घोटालों की वजह से पतली है. भ्रस्टाचार ऊपर से नीचे तक है और यह भी सरकार की नीतियों को आगे ले जाने में बाधक है.

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उधर, सरकार के पास कोई माकूल रोडमैप भी नहीं है जिन से बहुत जल्दी देश में आर्थिक असमानता को दूर किया जा सके. सरकार के अधिकतर सांसद व मंत्री एसी कमरों में बैठ कर सरकार चलाना चाहते हैं.

जनता सरकार के कामकाज से संतुष्ट नहीं दिखती. पर जैसाकि हमेशा से होता आया है, वही आगे भी होगा. देश को धर्म और जाति पर बांटा जाएगा फिर वोट काटे जाएंगे.

जनता जनार्दन क्या करे, सरकार के पास कहने के लिए तो है ही- प्रभु के श्रीचरणों में रहो, वही बेङापार करेंगे. यानी अब तो सिर्फ चंदन ही घिसते रहो…

इस Lockdown में हों रहें हैं बोर तो घर बैठें देखें यह Comedy फिल्में

काम के सिलसिले में हर वक्त बिजी रहनें वाले लोगों के लिए यह समय बहुत ही बोरियत वाला साबित हो रहा हैं. कई लोगों का कहना है की अगर ऐसा ही रहा तो वह मानसिक बिमारियों का शिकार भी हो सकतें हैं. ऐसी स्थिति में दिमाग को फ्रेस रखना बहुत ही जरुरी हो जाता है. इस समय हम घर पर कुछ क्रिएटिव सोच सकतें हैं, कुछ पुराने खेलों को खेल सकतें हैं, अगर लेखन का शौक है तो लिख भी सकतें हैं.

फिर भी अगर आप यह भी नहीं कर सकें तो आप बौलीवुड की बेहतरीन कौमेडी फिल्मों को देख कर अपनी बोरियत और दिमागी परेशानी को दूर करने कर सकतें हैं. तो अपने समय की बौलीवुड की बेहतरीन 10 फिल्मों के बारे में हम बता रहें हैं जिसे देख कर आप फुल एंटरटेनमेंट का मजा ले सकतें हैं. यह सभी फिल्में यूट्यूब पर हाई डेफिनेशन (HD) क्वालिटी में फ्री में देखे जाने के लिए उपलब्ध हैं.

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मुन्नाभाई एमबीबीएस…

https://www.youtube.com/watch?v=9AgLLF16ttw

वर्ष 2003 में प्रदर्शित हुई इस फुल कौमेडी फिल्म को दर्शकों ने खूब पसंद किया था. इस फिल्म में कौमेडी के साथ-साथ सिस्टम और समाज के लिए सन्देश भी था. फिल्म के निर्देशक राज कुमार हीरानी, निर्माता   विधु विनोद चोपड़ा थे. फिल्म में संजय दत्त का जबरदस्त अभिनय देखने को मिला था. इसके अलावा,अरशद वारसी,सुनील दत्त,ग्रेसी सिंह,बोमन ईरानी, जिमी शेरगिल नें भी लोगों पर अमिट छाप छोड़ी थी.

गरम मसाला…

3 नवंबर, 2005 को प्रदर्शित हुई इस फिल्म के निर्देशक प्रियदर्शन थे. फिल्म में जौन अब्राहम, अक्षय कुमार, परेश रावल, रिमी सेन, राजपाल यादव, नेहा धूपिया, नीतू चन्द्रा, असरानी, लक्ष्मी पंडित, मनोज जोशी, विजू खोटे, की जबरदस्त कौमेडी देखने को मिली थी.

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धमाल…

वर्ष 2007 में प्रदर्शित हुई इस फिल्म नें अपनी कौमेडी के जरिये लोगों का खूब मनोरंजन किया था.  फिल्म में अभिनेता संजय दत्त, अरशद वारसी, जावेद जाफरी और असरानी नें अपने कौमेडी से लोगों को खूब हंसाया था. इस फिल्म का निर्देशन इन्द्र कुमार नें किया था और निर्माता भी इंद्र कुमार ही थे.

पीके…

इस फिल्म का निर्देशन राजकुमार हिरानी ने किया और इस फिल्म के निर्माता राजकुमार हिरानी के साथ-साथ विधु विनोद चोपड़ा और सिद्धार्थ रौय कपूर थे. फिल्म का प्रदर्शन वर्ष 2014 में हुआ था. इस फिल्म में आमिर खान, अनुष्का शर्मा, संजय दत्त, बोमन ईरानी और सुशांत सिंह राजपूत ने मुख्य भूमिका निभाई थी. इस फिल्म ने 642 करोड़ का बिजनेस किया था. जिस आधार पर यह फिल्म भारत की सबसे सफल फिल्मों की लिस्ट में शुमार है.

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गोलमाल…

वर्ष 2006में प्रदर्शित इस फिल्म का निर्देशन रोहित शेट्टी ने किया है. फिल्म में अजय देवगन, अरशद वारसी, तुषार कपूर नें मुख्य भुमिका निभाई थी. इस फिल्म नें फुल कौमेडी के जरिये लोगों को खूब हंसाया था. इस फिल्म की तीन और सीक्वेल भी बन चुकी है. यह फिल्म भी कमाई के मामले में अव्वल रही थी.

एंटरटेनमेंट…

https://www.youtube.com/watch?v=LXXkiUKDK4w

वर्ष 2014 में प्रदर्शित इस फिल्म में अक्षय कुमार और तमन्ना भाटिया ने मुख्य भूमिका निभाई हैं. इसके साथ ही मिथुन चक्रवर्ती, जॉनी लीवर, सोनू सूद, प्रकाश राज और कृष्णा अभिषेक भी अपनी कॉमेडी के जरिये दर्शकों पर छाप छोडनें में कामयाब रहे थे. फिल्म का निर्देशन साजिद-फ़रहाद द्वारा किया गया था.

हेराफेरी…

फिल्म का निर्देशन निर्देशक प्रियदर्शन नें किया था और निर्माता ऐ जी नाडियावाला नें किया. फिल्म में मुख्य भूमिका परेश रावल, अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी, तब्बू नें निभाई थी.

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फिर हेराफेरी…

https://www.youtube.com/watch?v=DGzBufpSO1w

फिल्म का प्रदर्शन वर्ष 2006 में हुआ था फिल्म की मुख्य भूमिकाओं में भूमिका परेश रावल, अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी, रहे थे.

वेलकम…

https://www.youtube.com/watch?v=bOqFGkFO3Lo

निर्देशक अनीस बज़मी के निर्देशन में बनीं इस फिल्म नें दर्शकों को खूब गुदगुदाया था. फिल्म में अक्षय कुमार,नाना पाटेकर,अनिल कपूर,मल्लिका शेरावत,कैटरीना कैफ़,फ़िरोज़ ख़ान,परेश रावल,मलाइका अरोरा, विजय राज़, नें मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं, यह फिल्म वर्ष 2007 में प्रदर्शित हुई थी.

भागम भाग…

वर्ष  2006 में प्रदर्शित होने वाली इस फिल्म नें अपनी कॉमेडी के जरिये लोगों को खूब गुदगुदाया था. फिल्म का निर्देशन प्रियदर्शन ने और निर्माण सुनील शेट्टी ने किया था. इस फिल्म में गोविंदा, अक्षय कुमार और परेश रावल मुख्य भूमिकाओं में रहे थे.इनके अलावा इस फिल्म में लारा दत्ता, जैकी श्रॉफ और अरबाज़ ख़ान भी नें भी बेहतरीन अभिनय किया था.

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Lockdown में बढ़े घरेलू हिंसा पर रोक लगाने के लिए सामने आए ये बड़े कलाकार, देखें Video

कोरोना (Corona Virus) कहर के बीच लगाए गए लौक डाउन (Lockdown) के बीच महिलाओं के ऊपर घरेलू हिंसा के मामलों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखनें को मिल रही है. घर के भीतर रह रहीं महिलाओं के ऊपर शारीरिक हिंसा के साथ ही आर्थिक, मानसिक और यौनिक हिंसा के मामले भी बढे हैं. हाल ही में राष्ट्रीय महिला आयोग नें भी लॉक डाउन में बढ़ रहे घरेलू हिंसा के मामलों को लेकर चिंता व्यक्त की है. क्यों की राष्ट्रीय महिला आयोग में लौक डाउन के बीच घरेलू हिंसा को लेकर शिकायतों की संख्या में बड़ा इजाफा देखनें को मिल रहा है.

23 मार्च से 16 अप्रैल के बीच राष्ट्रीय महिला आयोग को घरेलू हिंसा की 587 शिकायतें मिली हैं, जबकि 27 फरवरी से 22 मार्च के बीच केवल 396 मामले ही उसके सामने आए थे.

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लौकडाउन के बीच बढ़े घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी के कारण को लेकर विशेषज्ञों का कहना है की पुरुषों में लौक डाउन के चलते नौकरियों को खोने की चिंता बढ़ी है. इससे लोगों में तनाव बढ़ रहा है जो घरेलू हिंसा के रूप में सामने आ रहा है.

 

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Lets put a #LockDownOnDomesticViolence !! #Dial100 @CMOMaharashtra @DGPMaharashtra @AUThackeray @aksharacentre

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लौक डाउन में बढे घरेलू हिंसा को लेकर खेल जगत के साथ ही फिल्म जगत काफी गंभीर है और घरेलू हिंसा पर रोक लगाने के लिए फिल्म और खेल से जुडी कई हस्तियां आगे आईं हैं. इसको लेकर इन हस्तियों नें एक वीडियो जारी कर घरेलू हिंसा पर भी लौकाउन लगाने की मांग की है.

वीडियो को अक्षरा सेंटर द्वारा महराष्ट्र सरकार महिला एवं बाल विकास विभाग के स्पेशल सेल के साथ मिल कर बनाया गया है इसमें साथ दिया है टाटा इंस्टीट्यूट औफ सोशल साइंस (Tata Institue of Social Science) नें. साथ ही महराष्ट्र सरकार और महराष्ट्र पुलिस नें भी इसमें सहयोग किया है. इस वीडियों में फिल्म जगत से अनुष्का शर्मा (Anushka Sharma), दीया मिर्जा (Dia Mirza), माधुरी दीक्षित (Madhuri Dixit), विद्या बालन (Vidya Balan), फरहान अख्तर (Farhan Akhtar), करण जौहर (Karan Johar), और राहुल बोस (Rahul Bose) जैसे बड़े सितारे दिखाई दे रहे हैं. वहीं खिलाड़ियों में मिताली राज (Mithali Raj), विराट कोहली (Virat Kohli) और रोहित शर्मा (Rohit Sharma) ने भी इस मुहिम को अपना समर्थन दिया है.

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इस वीडियो से जुड़े सभी सेलेब्रेटीज ने इसे अपने सोशल मीडिया पर शेयर भी किया है और इस पर अपने तरफ से भी कैप्शन में घरेलू हिंसा को लेकर ढेर सारी बातें लिखीं है. इस वीडियों में उन्होंने सभी से अपील करते हुए कहा है की “सभी पुरषों को हम कहते हैं यही समय है हिंसा के खिलाफ बोलने का, महिलाओं से हम कहना चाहते हैं यही समय है अपनी चुप्पी तोड़ने का. अगर आप घेरलू हिंसा का शिकार हैं, फिर चाहे वो घर पर हों, आपको रिपोर्ट करना चाहिए. घरेलू हिंसा पर भी लौकडाउन लगाया जाए.”

उड़ता बिहार

धनबाद और बोकारो जिले की सरहद के पास बसे अमलाबाद इलाके में बिहार से आ कर रह रहे पासियों की लौकडाउन में लौटरी ही लग गई है. धनबाद में शराब की तमाम दुकानें बंद होने के चलते शराबियों को आसानी शराब नहीं मिल रही है. अगर शराब मिल भी रही है, तो उन्हें चोरीछिपे इसे खरीदने के लिए मोटी कीमत चुकानी पड़ रही है. पहले 500 रुपए में मिलने वाली शराब के लिए उन्हें अब 1,000 से 1,200 रुपए देने पड़ रहे हैं, जिस का सीधा असर उन की जेब पर पड़ रहा है. साथ ही, इतनी मोटी रकम चुकाने के लिए शराबी तैयार भी नहीं दिखते.

बढ़ी ताड़ी की मांग

शराबबंदी के चलते अब कई शराबी शराब की जगह ताड़ी पीने को मजबूर हो गए हैं. यह ताड़ी उन्हें कम पैसे में मिल रही है. नशेड़ियों का मानना है कि जो नशा 500 रुपए की शराब में होता था, वही नशा 40 रुपए की ताड़ी में होता है.

इन लोगों का यह भी कहना है कि लौकडाउन के चलते 500 रुपए की शराब 1,200 रुपए तक में मिलने लगी है. इस वजह से लोग शराब छोड़ कर ताड़ी पीने लगे हैं. अमलाबाद से सटे भौंरा, सुदामडीह, डिगवाडीह के रहने वाले लोग सुबह दामोदर नदी पार कर पैदल ही अमलाबाद पहुंच जाते हैं. इन्हें लौकडाउन की भी कोई परवाह नहीं होती और न ही इन पर किसी तरह की ठोस कार्यवाही की जा रही है.

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गोली का गोलमाल

अचानक से बढ़ी ताड़ी की मांग को देख ताड़ी बेचने वाले पासी भी जम कर फायदा उठा रहे हैं और ताड़ी में ज्यादा नशा करने के लिए वे एक दिन या 2 दिन पुरानी ताड़ी और उस में नशे की कोई गोली मिला कर लोगों को दे रहे हैं, जिस वजह से इन दिनों ताड़ी पीने वाले लोगों के लिए भी खतरा बढ़ गया है.

इधर नशा न मिलने पर बिहार का रहने वाला कमल दवा की दुकानों व दूसरी दुकानों पर भटकता फिर रहा है, पर उसे कहीं नशा नहीं मिल पा रहा. वह कहता है, ‘‘आप की कोई पहचान वाला हो तो दिलवा दो भाई साहब, क्योंकि अब मुझ से नशे के बिना रहा नहीं जा रहा है.”

कमल का आगे कहना है कि उस के जैसे कई लोग हैं जो नशे के लिए भटक रहे हैं. चाहो तो शहर की बस्तियों में सर्वे करवा लो. एक स्टडी के मुताबिक, कोरोना संक्रमण के डर से, अकेलेपन से घबरा कर, आनेजाने की मनाही से बड़ी तादाद में लोगों ने खुदकुशी की है. मिसाल के तौर पर विड्रोल सिम्टम्स से ठीक तरह से निकल पाने के साथ लोगों ने आफ्टर शेव लोशन या सैनेटाइजर पी लिया, जिस से कइयों की जान भी जा चुकी है.

कोरोना के चलते लौकडाउन होने से मुजफ्फरपुर समेत 11 जिलों में मानसिक रोगियों की तादाद बढ़ रही है. बेचैनी, घबराहट, चिंता, माइनिया व डिप्रैशन के मरीजों की तादाद में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इन में कई ऐसे हैं जिन में खुदकुशी करने की सोच की शिकायत मिली है और कइयों ने नशा का रुख अपना लिया है.

नशे के मामले में बिहार भी पंजाब की राह पर चल पड़ा है. राजधानी पटना और आसपास के इलाकों  में ड्रग्स का कारोबार तेजी से फैल रहा है. हेरोइन, ब्राउन शुगर और गांजा जैसी नशीली चीजों के सौदागरों की लगातार गिरफ्तारी से इस बात की तसदीक हो रही है कि बिहार में ड्रग्स के जब्त किए जाने का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है.

दरअसल, यह ग्राफ सरकार ही दिखा रही है और यह भी बता रही है कि कैसे ट्रेन और हवाईजहाज से अब नशीली चीजें बिहार पहुंच रही हैं. बिहार सरकार ने भले ही शराब के कारोबारियों के अरमानों पर बुलडोजर चला दिया हो, लेकिन बिहार में नशे के सौदागरों की जड़ें और मजबूत हो गई हैं.

सरकार भले ही दावा करती है कि बिहार में शराबियों की तादाद अब कम हो गई है, लेकिन हकीकत यह है कि बिहार अब उड़ता पंजाब की तरह उड़ता बिहार बन चुका है, जहां राजधानी पटना से ले कर हर शहर, कसबे तक में नशे के सौदागरों का जाल बिछ गया है. चाहे पड़ोसी देश नेपाल का ड्रग माफिया हो या मुंबई से ले कर कोलकाता तक के नशे के सौदागर, सभी का नैटवर्क बिहार में फैला हुआ है. सरकारी रिपोर्ट की ही मानें तो शराबबंदी के बाद बिहार में नशीली चीजों की बरामदगी का आंकड़ा 1000 गुना बढ़ गया है. ब्राउन शुगर, अफीम, गांजा, चरस और हेरोइन से ले कर नशे की दवाओं का सेवन इस कदर बढ़ा है कि शराबियों की तादाद भी पीछे छूट गई है.

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आखिर क्या हो रहा है ? बिहार में ऐसी चीजों की तस्करी एकाएक कैसे बढ़ गई? कैसे बिहार में नशे का कारोबार रोजाना फलफूल रहा है? यह सब पुलिस के लिए भी परेशानी का सबब बना हुआ है.

पटना में बड़ा गिरोह

साल 2016 में पटना पुलिस ने थाईलैंड से आई हेरोइन पकड़ी थी. चूंकि इस की कीमत ब्राउन शुगर से ज्यादा होती है, इसलिए तस्करों ने इसे बेचना शुरू कर दिया. पिछले 6 महीने में डीआरआई (डायरैक्टोरेट औफ रेवेन्यू इंटैलिजैंस) और बिहार पुलिस ने 30 क्विंटल से ज्यादा गांजा जब्त किया है. वहां साढ़े 6 किलो चरस, 15 किलो ब्राउन शुगर और हेरोइन बरामद की जा चुकी है.

पटना में ब्राउन शुगर ने भी पैर पसार लिए हैं. भाभीजी उर्फ राधा का गिरोह बड़े पैमाने पर यह काम कर रहा है. पुलिस ने उसे 10 लाख रुपए और एक किलोग्राम ब्राउन शुगर के साथ गर्दनीबाग से दबोचा था, वह इन रुपयों से नशे का स्टॉक करने जा रही थी.

इस के बाद अभिमन्यु नामक एक शख्स को 4 किलोग्राम ब्राउन शुगर के साथ पकड़ कर जेल भेजा गया. बेउर जेल में रहने के बावजूद भाभीजी ने धंधा जारी रखा. इस राज पर से परदा तब उठा, जब 3 दिन पहले पोस्टल पार्क से उस के गुरगे सुदामा की गिरफ्तारी हुई. सुदामा के कमरे में पुलिस ने 2.111 किलोग्राम गांजा और 80,000 की नकदी बरामद की थी.

सुदामा ने बताया कि भाभीजी जेल से उसे फोन से बताती है कि कब, कहां और किस के पास माल लेना है. माल (ब्राउन शुगर) ले कर वह कमरे में आता था, एक ग्राम पुड़िया तैयार करता था, जिसे वह एजेंट को 400 रुपए में बेच देता था.

एजेंट नशे के आदी लोगों को 100 रुपए मुनाफे पर एक पुड़िया बेचता था. केवल सुदामा के जरीए भाभीजी उर्फ राधा जेल में रहते हुए 50 लाख रुपए का कारोबार कर लेती थी. उस के जैसे कितने लोग भाभीजी के लिए काम कर रहे हैं , यह उसे नहीं पता.

नैटवर्क दूसरे राज्यों तक

हेरोइन की खरीद और बिक्री के लिए आरा शहर का गंगा इलाका भी बदनाम हो रहा है. यहां के तस्करों का नैटवर्क बिहार की राजधानी पटना से ले कर, झारखंड, कोलकाता और दिल्ली तक फैला हुआ है. भोजपुर का बिहिया और शाहपुर इलाका भी इस की जद में है.

बिहार के बक्सर जिले के कई इलाकों के अलावा शहर के शांतिनगर को हेरोइन की उपलब्धता के लिए चिन्हित  किया गया है. 28 मार्च, 2019 को बिहार की भोजपुर पुलिस ने झारखंड के जसीडीह इलाके के गिधनी गांव के बाशिंदे सिकंदर को गिरफ्तार किया था. उस के पास से ब्राउन शुगर की 300 पुड़िया बरामद की गई थी. पूछताछ में पता चला कि बरामद ब्राउन शुगर आरा शहर के गंगाजी इलाके से खरीदने के बाद झारखंड में बेचा जाता है.

अब तक की पूछताछ से पुलिस को जो जानकारी मिली है उस के मुताबिक बक्सर जिले से हेरोइन की तस्करी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर से संचालित की जाती है. वहां से माल बक्सर आता है, फिर बक्सर से दूसरे ब्लौकों में रहने वाले तस्करों को इस की सप्लाई की जाती है.

बिहार में पूरी तरह से नशाबंदी है. इस के लिए कठोर कानून भी लागू है, जिस के तहत बिहार में शराब बेचना, पीना और रखना कठोर दंडनीय अपराध है, लेकिन शराबबंदी कानून के लागू होने के बाद भी बिहार के लोग खासकर नौजवान पीढ़ी नशे के लिए तरहतरह की नशीली चीजों का सेवन करने लगे हैं. शराबबंदी के बाद बिहार ड्रग माफिया के लिए बड़े मार्केट में तबदील होता जा चला गया और लोग नशे की तलाश में नएनए रास्ते तलाशते चले गए, जिस में चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन के बाद सांप के जहर का भी खूब इस्तेमाल होने लगा.

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नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के पटना जोन के मुताबिक, ओपियम और हाशिश जैसी ड्रग्स के जब्ती मामले में बिहार देश में अव्वल है. गांजा जब्ती में आंध्र प्रदेश के बाद बिहार दूसरे नंबर पर है. सब से खास बात यह है कि साल 2015 के बाद बिहार में ड्रग्स की जब्ती में 1000 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी. साल 2015 में 14.4 किलो ग्राम गांजा जब्त हुआ, साल 2016 में यह 10,800 किलोग्राम हो गया और साल 2017 में 28,888 किलोग्राम की जब्ती यह बताने को काफी है कि शराब का विकल्प गांजा बना.

साल 2015 में बिहार में हशिश जैसे नशीली चीज की कोई जब्ती नहीं हुई, जबकि साल 2017 में यह 244 किलोग्राम हो गया, 2015 में 1.7 किलोग्राम ओपियम जब्त हुआ, जबकि साल 2016 में 14 किलोग्राम और साल 2017 में यह आंकड़ा 329 किलोग्राम पहुंच गया.

नशे के बाजार की पड़ताल

राजधानी पटना की सड़कों पर जब न्यूज 18 ने एक खबर शुरू की तो महज 10 साल के बच्चे ने सब के होश फाख्ता कर दिए और राज्य सरकार की तमाम बंदिशों को ठेंगा दिखाते हुए बताया कि हर दुकान में इन दिनों नशे का कारोबार चल रहा है. जब न्यूज 18 ने इस जाल में फंसे लोगों की नजात में जुटे पटना के सब से बड़े अस्पताल ‘पीएमसीएच’ में जानकारी लेनी चाही तो डाक्टर के साथ मरीज के सवालों ने भी सब को चौंका दिया.

नशे के मकड़जाल में फंसे लोगों को इस जाल से निकालने में जुटी संस्थाओं की भी मानें तो इन संस्थाओं में भी मरीजों की तादाद में इजाफा हुआ.

बिहार के मुख्यमंत्री भी ड्रग्स के इस फैलते जाल से हैरान थे. इधर विपक्ष ने भी शराबबंदी को ही मुख्य मुद्दा बना डाला. राजद के एक नेता का कहना था कि नीतीश सरकार ने जब शराबबंदी का ऐलान किया था, तो यह आत्ममुग्धता वाला कदम था. कोई फ्रेमवर्क नहीं था. कोई तैयारी नहीं थी, इसलिए नशाबंदी में कोई कमी नहीं आई, जिस का नतीजा बिहार भुगत रहा है.

तस्कर नएनए तरीकों से ड्रग्स की तस्करी में जुटे हैं. पटना में गांजा की खेप पकड़ी गई. यह तस्करों का खेल बड़े ही शातिर दिमाग के साथ खेला जा रहा है. सरकार के डाक महकमे के जरीए तस्करी की जा रही है.

बिहार एसटीएफ एसओजी-एक की टीम ने पटना जंक्शन पर बनी रेल मेल सर्विस यानी आरएमएस से तकरीबन डेढ़ क्विंटल गांजे को जब्त किया था. रेलवे पोस्टल महकमे के दफ्तर में रखी गई 7 बोरियों को जब खोला गया तो उस में 13 बंडल मिले और हर बंडल में 10-10 किलोग्राम गांजा रखा था. गांजे के इन बंडलों की पैकिंग इस अंदाज में की गई थी कि किसी को भी भनक न लगे.

जानकारों के मुताबिक, यह गांजे की तस्करी का बिलकुल ही नया तरीका सामने आया. 130 किलोग्राम गांजे की इस खेप को त्रिपुरा से हाजीपुर के लिए बुक कराया गया था. लेकिन यह जान कर हैरानी होगी कि यह खेप सीधे सड़क या ट्रेन से नहीं, बल्कि फ्लाइट के जरीए पटना लाई गई था और फिर ट्रेन से उसे जगहजगह पहुंचाया गया था. इतना ही नहीं, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ ) की एक टीम ने सांप के 1.87 किलोग्राम जहर पाउडर के साथ 3 लोगों को गिरफ्तार किया था.

आंकड़ों में नशे का कारोबार

जुलाई, 2017 के जो आंकड़े सामने आए हैं, वे काफी चौंकाने वाले थे. शराबबंदी के बाद कुल दर्ज मामले, 25,528 थे, जबकि कुल गिरफ्तारियां 35,414 तक थीं. इस में देशी शराब की जब्ती 3,85,719 लिटर थी और विदेशी शराब की जब्ती 5,961,172 लिटर थी. अप्रैल, 2016 से जून, 2017 तक 1,931 दोपहिया वाहनों को जब्त किया गया, जबकि 739 अन्य वाहन जब्त किए जिन में ट्रक भी शामिल थे. दिलचस्प बात यह है कि ऐसे ही एक ट्रक की 8.5 लाख रुपए में नीलामी की गई थी. 284 निजी भवन या भूखंडों को सील किया गया था और 59 कमर्शियल भवनों मसलन होटल वगैरह पर ताला लगाया गया था.

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शराब नष्ट करने का आंकड़ा देखें तो जून, 2017 तक 97,714 लिटर देशी शराब और 15,8,829 लिटर विदेशी शराब नष्ट की गई थी. शराबबंदी के बाद, बिहार के अलगअलग हिस्सों में साल 2015-16 में 2,492 किलोग्राम गांजा, 17 किलोग्राम चरस, 19 किलोग्राम अफीम, 205 ग्राम हेरोइन के अलावा नशीली दवाओं की 462 गोलियां बरामद की गईं, वहीं साल 2016-17 में 13,884 किलोग्राम गांजा, 63 किलोग्राम चरस, 95 किलोग्राम अफीम और 71 किलोग्राम हेरोइन के साथ नशीली दवाओं की 20,308 गोलियां जब्त की गईं. हालांकि, यह आंकड़ा सरकारी है, लेकिन विभागीय सूत्रों की मानें, तो बरामदगी इस से कहीं ज्यादा थी.

इंटरस्टेट सिंडीकेट ड्रग्स के कारोबार में सक्रिय है और बिहार में धड़ल्ले से ब्राउन शुगर, सांप के जहर और चरस को असम, त्रिपुरा, ओडिशा और दूसरे राज्यों से लाया जाता है.

खोखला करता नशे का कारोबार

बिहार में नशे का कारोबार तेजी से फलफूल रहा है और शराबबंदी के बाद तो इस में और भी तेजी देखी जा रही है, लेकिन दुखद बात यह है कि नशे के इस दुष्चक्र में किशोर और युवा वर्ग के लोग दिनप्रतिदिन फंसते जा रहे हैं. एक तरह से कहें तो जिस तरह चीन में ब्रिटेन ने अफीम युद्ध शुरू किया, ठीक उसी तरह प्रशासनिक अनदेखी ने देश के किशोर और युवाओं को नशे के दलदल में धकेलने का काम किया है. बिहार के कई इलाकों में नशा करने वाले, जुआ खेलने वाले हर चौकचौराहे पर नजर आ जाएंगे. पुराने खंडहरनुमा मकान, गंदी जगह, टूटीफूटी झोंपड़पट्टी या सुनसान जगहों पर धंसी हुई आंखें, पिचके गाल और बेतरतीब बिखरे हुए बाल के साथ हिलते हुए शरीर इन की पहचान हैं. ये नौजवान ब्राउन शुगर, अफीम, चरस और गांजे का सेवन करते हैं. कुछ तो फोर्टविन नामक इंजैक्शन के आदी भी बन गए हैं.

युवा मन को जोश और उमंग की उम्र कहा जाता है. यही उम्र का वह पड़ाव होता है जब वे अपने भविष्य के सपने बुनते हैं और उन्हें आकार देते हैं, पर आज कुछ युवाओं की नसों में जोश कम और नशा ज्यादा दौड़ रहा है. नशा का कारोबार बढ़ता ही जा रहा है और युवा पीढ़ी नशे की आदी होती जा रही है. जिस युवा पीढ़ी के बल पर भारत विकास के पथ पर प्रगतिशील होने का दंभ भर रहा है, उस युवा पीढ़ी में नशे की सेंध लग रही है, जो दिन पर दिन युवा पीढ़ी में अपने पैर पसार रही है. युवाओं में नशा इस कदर हावी हो गया है कि नशा अब मौजमस्ती की नहीं, बल्कि आज की युवा पीढ़ी की जरूरत बन गया है.

अगर हम आंकड़ों की बात करें तो चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 65 फीसदी युवा नशाखोरी से ग्रस्त हैं, जिन की उम्र 18 साल से भी कम है. सरकारी आंकड़ों के हिसाब से देश की 70 से 75 फीसदी आबादी किसी न किसी तरह का नशा करती है, जिस में सिगरेट, शराब व गुटका की ओर युवा सब से ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं और 3 में से एक युवा किसी न किसी तरह के नशे का आदी है.

एक सर्वे के मुताबिक, देश में हर रोज तकरीबन 5,500 युवा तंबाकू से बनी चीजों का सेवन करने वालों की श्रेणी में आते हैं. तंबाकू का इस्तेमाल 48 फीसदी चबाने, 38 फीसदी बीड़ी और 14 फीसदी सिगरेट के रूप में होता है. उस में सब से ज्यादा 86 फीसदी तंबाकू खैनी, जर्दा के रूप में इस्तेमाल होता है.

औरतें भी पीछे नहीं

भारत में 12 करोड़ से भी ज्यादा लोग धूम्रपान करते हैं, जिस में 20 फीसदी औरतें धूम्रपान करती हैं. सिगरेट पीने के मामले में भारत की लड़कियां और औरतें अमेरिका के बाद पूरी दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं.

वाशिंगटन यूनिवर्सिटी ने साल 1980 से साल 2012 तक 185 देशों में सिगरेट पीने वालों पर एक रिसर्च करने के बाद बताया कि औरतों के धूम्रपान के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है. साल 1980 में भारत में तकरीबन 53 लाख औरतें सिगरेट पी रही थीं, जिन की तादाद साल 2012 में बढ़ कर 1 करोड़, 27 लाख तक पहुंच गई.

इस के अलावा शराब का सेवन भी भारतीय युवाओं में तेजी से फैल रहा है जिस में औरतें भी अछूती नहीं हैं. पैरिस की और्गनाइजेशन फोर इकोनौमिक कारपोरेशन ऐंड डवलपमैंट नामक एनजीओ द्वारा अमेरिका, चीन, जापान, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस और जरमनी समेत 40 देशों में शराबखोरी के हानिकारक असर संबंधी स्टडी में यह बात सामने आई है कि साल 1992 से साल 2012 तक महज 20 सालों में ही भारत में शराब के उपयोग में 55 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. 20 साल पहले जहां 300 लोगों में से एक आदमी शराब का सेवन करता था, वहीं आज 20 में से एक से ज्यादा आदमी शराब का सेवन कर रहा है. पर औरतों में इस प्रवृत्ति का आना समस्या की गंभीरता को दिखाता है. पिछले 20 सालों में मद्यपान करने वाली औरतों की तादाद में तेजी से बढ़ोतरी हुई है खासकर अमीर और मध्यम वर्ग की औरतों में यह एक फैशन के रूप में शुरू हुआ और फिर धीरेधीरे आदत में शुमार होता चला गया.

औरतों में मद्यपान की बढ़ती प्रवृत्ति के संबंध में किए गए सर्वे दिखाते हैं कि तकरीबन 40 फीसदी औरतें इस की गिरफ्त में आ चुकी हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, तकरीबन 30 फीसदी भारतीय शराब पीने की लत के शिकार हैं और इन में से 50 फीसदी बुरी तरह शराबखोरी की लत के शिकार हैं. अगर सरकारी आंकड़ों की बात करें तो देश में 50 लाख युवा हेरोइन जैसे नशे के आदी हैं. हेरोइन की तरह युवाओं में नशीली दवाओं का सेवन भी नशे के रूप में तेजी से बढ़ रहा है.

भारतीय राष्ट्रीय सर्वेक्षण की रिपोर्ट की मानें, तो भारत की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा नशीली दवाओं का सेवन ही नहीं करता, बल्कि इस का पूरी तरह से आदी हो चुका है, जिस में पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत कई राज्यों में बड़ी तादाद के लोग शामिल हैं.

भारत में नशे का कारोबार बहुत बड़ा है और यह दिन पर दिन एक विकराल रूप लेता जा रहा है. भारत में हर साल इस का 181 अरब रुपए का कारोबार होता है. राज्यों की बात करें तो इस में पंजाब सब से पहले नंबर पर है. एक गैरसरकारी संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब में इस समय 75,000 करोड़ रुपए का ड्रग्स की खपत हर साल हो रही है. यही नहीं, विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, तंबाकू के इस्तेमाल के चलते दुनियाभर में 54 लाख लोग हर साल अपनी जान गंवाते हैं, जिस में से 19 लाख मौतें केवल भारत में होती हैं. प्रतिदिन हमारे देश में 2,500 लोग तंबाकू की वजह से मौत के मुंह में जा रहे हैं, वहीं शराब के चलते हर साल लाखों लोग मर रहे हैं.

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अगर सरकार और प्रशासन ने इस दिशा में समय रहते कोई ठोस पहल नहीं की तो एक दिन पूरा देश और युवा भारत नशे की गिरफ्त में होगा, जो आने वाले समय के लिए खतरनाक संकेत है. इस के लिए समाज के सभी वर्गों को जागरूक रहने की जरूरत है, वरना यह देश खत्म होते समय नहीं लगेगा, क्योंकि जब युवा ही नहीं रहेगा, फिर देश का भविष्य क्या होगा, इसलिए सरकार को अपने राजस्व का लालच को छोड़ कर नशे के खिलाफ कोई गंभीर कदम उठाने चाहिए.

लौकडाउन के बीच…

बिहार के हाजीपुर में एक सबइंस्पैक्टर शराब के नशे में धुत्त सड़क किनारे पड़ा मिला जिसे स्थानीय युवकों ने उठाया और नगर थाने की पुलिस को इस की सूचना दी. उस ने खुद ही लोगों को बताया कि वह जहानाबाद टाउन थाने में सबइंस्पैक्टर के पद पर तैनात है. सड़क किनारे पड़े इस पुलिस वाले के कपड़े गीले थे और उस की हालत बेहाल दिखी.

उस पुलिस वाले का कहना था कि वह जहानाबाद से पहले मुजफ्फरपुर जिले के थाने में पोस्टेड था, इसलिए तनख्वाह लेने वहीं जाना पड़ता था. वहीं कुछ लोगों के साथ पार्टी में शराब पी ली थी. लेकिन उसे नहीं पता कि वह मुजफ्फरपुर से हाजीपुर कैसे पहुंच गया?

सोचने वाली बात है कि जब पुलिस ही नियमों को तोड़ रही है, तो आम जनता से क्या उम्मीद की जाए.

भूखे लोगों का बने सहारा

कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए लागू किए गए लौकडाउन में सब से ज्यादा दिक्कत फुटपाथ, रेलवे स्टेशन, बस अड्डे और गलीचौराहे पर घूमने वाले दिमागी या जिस्मानी तौर पर कमजोर और लोगों को हुई है. लोगों के घरों से बाहर न निकल पाने से इन बेघरबार लोगों को भूखे पेट ही रहना पड़ रहा है.

ऐसे लोगों के दर्द को महसूस किया है एक छोटे से कसबेनुमा छोटे शहर सालीचौका के एक नौजवान ने. पत्रकारिता से जुड़ा यह नौजवान उमेश पाली जब एक दिन लौकडाउन की खबरों की तलाश में निकला तो इस ने रेलवे स्टेशन के सूने पड़े प्लेटफार्म पर मैले और फटेहाल कपड़ों में 2 भूखेप्यासे लोगों को देखा. उन लोगों के खानेपीने का इंतजाम कर उमेश पाली ने ऐसे ही दूसरे जरूरतमंद लोगों की मदद करने की ठान ली.

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मदद करने के लिए पत्रकार उमेश पाली ने सोशल मीडिया में एक व्हाट्सएप ग्रुप ‘कोरोना आपदा सेवा ग्रुप’ बना कर शुरुआत में कुछ नौजवानों को अपने साथ जोड़ लिया और आपसी सहयोग से ये सब जरूरतमंदों तक खाना पहुंचाने लगे. धीरेधीरे कसबे के दूसरे लोगों ने भी इस काम में अपना सहयोग देना शुरू कर दिया और अब हालात ये हैं कि हर दिन तकरीबन 40 से 50 जरुरतमंद लोगों को खानेपीने का सामान पहुंचाने का काम इन जागरूक नौजवानों द्वारा किया जा रहा है.

सुबह के 11 बजते ही सालीचौका   के इस व्हाट्सएप ग्रुप पर  मोबाइल में मैसेज आने लगते हैं कि रोटीसब्जी तैयार है. फिर क्या, ग्रुप के सदस्य निकल पड़ते हैं और घरघर जा कर 5-5 रोटी जमा करने का सिलसिला शुरू हो जाता है और तकरीबन एक घंटे में 200 के आसपास रोटियां जमा हो जाती हैं.

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घर में बनी हुई रोटियों के साथ सब्जी, अचार या जो सामग्री घर में बनती है, वह ग्रुप के सदस्यों द्वारा जमा होती है. 30 से 40 परिवार से रोटियां जमा कर के एक जगह पर खाने के पैकेट तैयार किए जाते हैं. ठीक 12 बजे दालचावल या फिर सब्जीरोटी रख कर ग्रुप के सदस्य जरूरतमंद लोगो की तलाश में निकल पड़ते हैं. उन लोगों की सेवा देख कर कसबे के पुलिस थाने के पुलिस अफसर, मुलाजिम भी इस मुहिम से जुड़ गए हैं. पुलिस थाने के मुलाजिम भी अपनी गाड़ी में खानेपीने का सामान ले कर आते हैं और फिर शहर में भूखेप्यासे लोगों के पास जा जाकर भोजन बांट दिया जाता है. पुलिस प्रशासन की देखरेख में यह भोजन जरूरतमंद लोगों तक पहुंचाया जाता है.

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खुशियां मनाते इस तरह

लौकडाउन के चलते जहां किसी भी तरह के फंक्शन या पार्टी पर बंदिश लगी हुई है, ऐसे में शहर के लोग अपने परिवार वालों के जन्मदिन, शादी की सालगिरह गरीब और बेसहारा लोगों की मदद कर के मना रहे हैं. जरूरतमंद लोगों को खाना खिला कर इस ग्रुप के सदस्यों ने एक नई परंपरा शुरू कर दी है. जिस सदस्य का जन्मदिन या शादी की सालगिरह होती है, वह अपने घर से भोजन, नमकीन ,मिठाई पूरीसब्जी, पापड़ या घर में जो भी बनता है, वह लाता है और उसे जरूरतमंद लोगों में बांट दिया जाता है.

लौकडाउन के शुरुआती दिनों से ही ‘कोरोना आपदा सेवा ग्रुप’ की तरफ से काम रोज किया जा रहा है. जरूरत पड़ने पर ग्रुप के सदस्य आटा, गेहूं, चावल, तेल जैसी खाद्य सामग्री दान भी कर रहे हैं.

क्वारंटीन सैंटरों पर मिलता नाश्ता

लौकडाउन में जन सेवा का ढोंग करने वाले ज्यादातर नेता जनता से दूरी बनाए हुए हैं, वहीं नौजवानों का यह ग्रुप देश के दूसरे शहरों से आए गरीब और मजदूर तबके के लिए नाश्ते का इंतजाम भी कर रहा है. इसी ग्रुप द्वारा गोकुल पैलेस साली चौका में क्वारंटीन सैंटर’ बनाया गया है, जहां पर बाहर से आए हुए तकरीबन 50 लोग रह रहे हैं. उन के लिए सुबह पोहा का नाश्ता ग्रुप के सदस्यों की तरफ से दिया जा रहा है.

और भी संस्थाएं कर रही हैं मदद

लौकडाउन में गरीब, मजबूर और बुजुर्गों की मदद करने के लिए भले ही समाज के पूंजीपति, उद्योगपति और धन्ना सेठों ने मुंह फेर लिया हो, लेकिन निम्नमध्यम वर्ग के लोगों ने मदद के लिए हाथ खोल दिए हैं. नरसिंहपुर जिले की तेंदूखेड़ा तहसील की योगदान सेवा समिति ने आसपास के छोटेछोटे गांवदेहात में पहुंच कर भोजन के पैकेट, जरूरत का सामान और दवाएं तक लोगों को पहुंचाई हैं. पर्यावरण संरक्षण की सोच लिए योगदान समिति के अविनाश जैन वृक्षारोपण के कामों को पिछले 13 साल से करते आ रहे हैं. कोरोना आपदा के समय उन्होंने देखा कि जब सरकारी तंत्र लोगों की मदद करने के बजाय सख्ती से पेश आ रहा है, तो वे अपने साथियों के साथ लोगों की मदद करने के लिए गांवगांव जाने लगे.

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प्रवासी मजदूरों की आवाजाही शुरू होते ही योगदान समिति ने नैशनल हाईवे नंबर 12 पर  मजदूरों को खानेपीने की चीजों के साथ हिफाजत के लिए मास्क और सैनेटाइजर भी बांटे. जब सरकार से पुलिस टीम को पीपीई किट नहीं मिली तो डाक्टर शचींद्र मोदी की मदद से पीपीई किट का इंतजाम किया गया. ‘पैड वुमन’ माया विश्वकर्मा की ‘सुकर्मा फाउंडेशन’ नाम की गैरसरकारी संस्था तो सड़क पर कैंप लगा कर प्रवासी मजदूरों को भोजन कराने के बाद जूते, चप्पल, मास्क देने के साथ मजदूर औरतों की माहवारी की समस्याओं पर जानकारी दे कर सैनेटरी पैड भी बांट रही है. इसी तरह अध्यापक संघ के नगेंद्र त्रिपाठी ने शिक्षकों की मदद से पैसे जमा कर क्वारंटीन सैंटर और जिले की सीमाओं पर बनी चैक पोस्ट पर तैनात मुलाजिमों को मास्क, सैनेटाइजर और ग्लव्स दे कर उन की हिफाजत का ध्यान रखा है.

क्वारंटाइन कुत्ता

अजब मध्य प्रदेश की गजब कहानी, कोरोना का इतना खौफ कि मालिक के साथ कुत्ता भी हुआ क्वारेंटाइन, कोरोना का डर लोगों के मन में इस कदर बैठ गया है कि वे कोई भी रिस्क नहीं लेना चाहते हैं, यही वजह है कि प्रशासन द्वारा मालिक के साथ उसके कुत्ते को भी क्वारेंटाइन किया गया है.

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जी हां हम बात कर रहे है टीकमगढ़ जिले की जहां 16 मई को टीकमगढ़ शहर में दो सगी बहनों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने पर जहां उन्हें जिला अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में भर्ती किया गया, वही प्रशासन द्वारा उनकी सहेलियों व परिजन के साथ ही नौकर और दूधवाले सहित उनके पालतू कुत्ते शेरू को भी क्वारेंटाइन कर उन्हें जिला मुख्यालय से करीब 6 किलोमीटर दूर बने एक क्वारंटाइन सेंटर में रखा गया है.

दरअसल एक छोटे से वायरस कोरोना ने पूरी दुनिया को इतना बेबस कर दिया है कि जिसके आगे बड़े-बड़े नतमस्तक और भयाक्रांत है, प्रदेश में तेजी से बढते कोरोना के संक्रमण को लेकर आमजन के अलावा प्रशासन भी कोई कमी नही छोडना चाहता, और यही कारण है कि टीकमगढ़ में स्वास्थ्य विभाग ने दो सगी बहिनों के कोरोना पॉजिटिव पाये जाने पर उनके परिजनों के साथ ही उनके कुत्ते को भी क्वारेंटाइन किया है, जो शायद अब तक का पहला मामला है. जब संक्रमण के खतरे को देखते हुए किसी जानवर को क्वारेंटाइन किया गया है.

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क्वारेंटाइन सेंटर प्रभारी लवली सिंह का कहना है कि ऐसा पहली बार देखा गया है जब किसी कुत्ते को क्वारेंटाइन किया गया है, यहां कुत्ते को दूध, बिस्किट सहित मूलभूत सुविधाएं प्रोवाइड कराई जा रही है इसके साथ शेरू सेंटर की बाउंड्री के अंदर ही मालिक के साथ सुबह-शाम सैर करता है और यहां अपने मालिक के साथ ठाट से रहकर शासकीय सुविधाओ का लाभ ले रहा है.

भेड़बकरियों से भी बदतर हालात में प्रवासी मजदूर

महानगरों से प्रवासी मजदूरों का बिहार में आने का सिलसिला लगातार जारी है. ये मजदूर दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक समेत कई दूसरे राज्यों से अपने गांव पैदल, रिकशा, साइकिल, ठेला, ट्रक, बस, ट्रेन से आदमी की शक्ल में नहीं बल्कि किसी जानवर से भी बदतर हालात में अपने घर आ रहे हैं.

शहर तो गए थे अपना और परिवार का पेट पालने के लिए, लेकिन वहां तो रोजगार के साथसाथ रोटी के भी लाले पड़ने लगे. जो थोड़ेबहुत पैसे जमा थे सब खत्म हो गए. कंपनी के मालिक, मैनेजर, ठेकेदार ने हाथ खड़े कर दिए. मकान मालिक किराया लेने के लिए मजबूर करने लगा. किराना दुकानदार एक पैकेट बिसकुट भी उधार देने से इनकार करने लगा. ट्रेन, बस सब बंद. भूख से मरने के हालात पैदा होने लगे तो ये कर्मवीर मजदूर, कुछ ऐसे भी जो अपने बीवीबच्चे के साथ इन नगरों में रहते थे, पैदल, साइकिल और ठेला तक से चल दिए.

भूखप्यास से तड़पते, बिना चप्पलजूते के गरमी से तपती सड़कों पर लाखों की तादाद में लोग महानगरों से अपने घरों के लिए जान जोखिम में डाल कर निकल पड़े. ट्रकों ट्रॉलियों में भेड़बकरी की तरह लदे अपनी मंजिल की तरफ. जितने मजदूर उतनी तरह की अलगअलग परेशानियां.

बिहार लौटे कुछ मजदूरों की दिल दहला देने वाली दास्तां सुनिए. दरभंगा जिले के मोहन पासवान गुरुग्राम, हरियाणा में भाड़े का ईरिकशा चलाते थे. लौकडाउन के पहले वे एक हादसे का शिकार हो गए. खाने के लाले पड़ गए और रिकशा मालिक का दबाव बढ़ गया. अब उन्हें गुरुग्राम में रह कर मरने से अच्छा घर जाना उचित लगने लगा. कोई साधन नहीं था. थकहार कर उन की 15 साल की बेटी ज्योति ने साइकिल पर अपने पिता को बैठा कर 1,000 किलोमीटर की दूरी नाप दी और वे सहीसलामत घर पहुंच गए. लोग ताज्जुब करने लगे कि वाह बेटी हो तो ऐसी. लेकिन मरता क्या नहीं करता. इनसान हालात के हिसाब से कुछ ऐसा कर जाता है कि उस पर आसानी से यकीन भी नहीं होता. इस लड़की ने वह कर दिखाया जो बड़ेबड़े ताकतवर लोग भी नहीं कर सकते.

औरंगाबाद जिले के तहत बारुण ब्लॉक के हसनपुरा के रहने वाले जितेश कुमार अपने पत्नी और बेटी के साथ महाराष्ट्र के ठाणे जिले में रहते थे. वे लोहे की एक दुकान में मजदूरी का काम करता थे. लौकडाउन की वजह से काम बंद हो गया. खानेपीने की किल्लत होने लगी. कुछ दिन किसी तरह उधार पर काम चलाया. लेकिन अब उधार मिलना बंद हो गया तो उन के पास कोई रास्ता नहीं बचा. उन्होंने 850 रुपए में एक पुरानी साइकिल खरीदी, जरूरी सामान साथ में लिया और अपनी पत्नी सरिता देवी और 3 साल की बेटी को साइकिल पर बैठाया और अपने घर के लिए चल दिए.

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जितेश कुमार ने बताया कि सब से ज्यादा परेशानी नासिक में पहाड़ की घाटियों में हुई, क्योंकि पहाड़ की घाटियों में साइकिल पर  बोझ ले कर चलना बड़ा मुश्किल का काम है. रातभर और सुबह 10 बजे तक वे साइकिल चलाते, दोपहर में कहीं आराम करते और शाम 5 बजे से फिर चल देते. कई बार साइकिल खराब भी हो गई. कहींकहीं गांव वालों की मदद से साइकिल बनवाई और आगे बढ़ते रहे. रास्ते में चूड़ागुड़ खाया तो कहीं कुछ और खाने को मिला तो वह खा लिया.

अपने इस दर्दनाक सफर के बारे में सुनाते हुए जितेश कुमार रोने लगे. 12 दिनों तक बीवी और बेटी को साइकिल पर बैठा कर 1,700 किलोमीटर की दूरी तय कर वे अपने गांव हसनपुरा पहुंचे. वे अब किसी भी शर्त पर बाहर कमाने के लिए नहीं जाने की बात बोल रहे हैं.

दरभंगा जिले के आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले से 15 की तादाद में 1,600 किलोमीटर की दूरी पैदल तय कर रहे मजदूरों ने बताया कि वे मिर्च फैक्टरी में काम करते थे. लौकडाउन की वजह से कंपनी बंद हो गई. जब काम ही नहीं रहा और पैसे भी खत्म हो गए तो दानेदाने के लिए वे लोग मुहताज होने लगे. जब कोई उपाय नहीं निकला तो वे लोग पैदल ही चल पड़े. पैदल चलतेचलते इन के पैरों में छाले पड़ गए. पैर लहूलुहान और सूज गए. कई लोगों के चप्पलजूते टूट गए. वे लोग नंगे पैर ही तवे के समान जल रही सड़कों पर लगातार दिनरात चलते रहे.

मुजफ्फरपुर, बिहार का रहने वाला श्रवण कुमार गुरुग्राम, हरियाणा में सिलाईकढ़ाई का काम करता था. कामधंधा बंद हो गया. कुछ दिनों तक ट्रेन खुलने का इंतजार करते रहा, पर तबतक सारे पैसे खत्म हो गए. न इधर का रहा, न उधर का. मकान मालिक किराया मांगने लगा. घर से उस के मजदूर पिता ने कुछ पैसे भेजे. मकान मालिक को किराया दिया, बैग उठाया और चल दिया. अगर रास्ते में कोई गाड़ी मिली भी तो हाथ देता रहा, लेकिन रोका किसी ने नहीं. लगातार 10 दिनों से पैदल चलतेचलते उस का शरीर जवाब दे चुका है. पैरों में छाले पड़ गए हैं, फिर भी वह अपनी मंजिल के तरफ चलता जा रहा है.

बिहार के नवादा जिले के सूरज पासवान कोलकाता में कुली का काम करते थे. लौकडाउन की वजह से काम बंद हो गया. वे मजबूर हो कर कोलकाता से अपने गांव के लिए पैदल चल दिये. रास्ते में नवादा पहुंचाने के नाम पर 800 रुपए भी लोगों ने ठग लिए. बेगूसराय स्टेशन पहुंचते ही उन का शरीर जवाब दे गया और वे बेहोश हो कर गिर पड़े.

अभिषेक आनंद नामक एक शख्स, जो छात्र संगठन से जुड़े हुए हैं, उन्हें जब मालूम हुआ तो उन्होंने उन के खाने का इंतजाम किया और उन्हें घर तक भिजवाया.

इसी तरह हजारोंहजार लोग महानगरों से बिहार के अपने गांवों के लिए लगातार चल रहे हैं. इन मजदूरों का इन महानगरों से मन उचट गया. वे हर हाल में अपने गांवघर आना चाहते हैं. इन की चाहत है कि अब हम मर भी जाएं तो अपने लोगों के बीच. बहुत से लोग तो रास्ते में ही गाड़ियों से कुचल कर और भूखप्यास से दम तोड़ चुके हैं.

आफताब मुंबई में जरी का काम करता है. आफताब की पत्नी फातिमा ने बताया, “उन का काम बंद हो गया. जमा किए हुए पैसे भी खत्म हो गए. मेरे पास फोन किया. किसी तरह कुछ पैसों का इंतजाम कर अकाउंट पर भेजा. अपने कान की बाली गिरवी रख कर 2,000 रुपए भेजे हैं. किसी तरह वे मुंबई से अपने घर के लिए चल दिए हैं.”

हर मजदूर की एक अलग कहानी है. ट्रकों में कंटेनर को पूरी तरह तिरपाल से पैक कर मजदर 5,000 रुपए किराया दे कर भेड़बकरी की तरह आ रहे हैं. कभीकभी तो ऐसा लगता है मानो इन्होंने कहीं डकैती डाली है और अब लुकछिप कर अपनी मंजिल की तरफ जा रहे हैं.

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इतना ही नहीं, ये मजदूर जगहजगह पर पुलिसिया जुल्म के शिकार भी हुए हैं. थके पैर, शरीर जवाब दे रहा है. साथ में बीवी बच्चे भी हैं. बहुत से पुलिस वाले इन मजदूरों के साथ मारपीट, गालीगलौज और करते दिखे.हां, कहींकहीं मदद भी करते पाए गए.

मजदूर और छात्रों के साथ दोहरी नीति

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले तो बोले कि वे मजदूरों और छात्रों को दूसरे प्रदेशों से नहीं लाएंगे. लेकिन विपक्ष और दूसरे राजनीतिक दलों, समाजसेवियों, सोशल मीडिया से जब दबाव बढ़ने लगा तो आखिरकार वे तैयार हुए. कोटा से लाए गए छात्रों से भाड़ा नहीं लिया गया, जबकि इन छात्रों के मांबाप भाड़ा दे सकते थे. पर मजदूरों से भाड़ा लिया गया. ट्रेन में मजदूरों के लिए साधारण खाना और छात्रों के लिए बढ़िया क्वालिटी का खाना. पटनादानापुर स्टेशन पर भी 2 तरह का इंतजाम. मजदूर क्वारंटीन सैंटर में 14 दिन रहेंगे, जबकि छात्र अपनेअपने घरों में अलग कमरे में रहेंगे. इस से साफ हो गया कि बिहार की सरकार भी सिर्फ अमीरों के बारे में सोचती है, गरीबों के बारे में नहीं. लेकिन सरकार को यह मालूम होना चाहिए कि ये मजदूर अनदेखी के पात्र नहीं. ये इस देश की तरक्की में बुनियाद का काम करते हैं.

मजदूरों ने खींचा सरकार का ध्यान

महानगरों में फंसे मजदूर सरकार द्वारा जारी हैल्पलाइन पर फोन करते रहे, पर कोई उठाता ही नहीं था. अगर उठाया भी गया तो कोई नोटिस नहीं लिया गया. इन मजदूरों ने अपना दर्द वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाला. एक मजदूर ने एक गीत का वीडियो डाला जो सोशल मीडिया पर काफी मशहूर हो रहा है. :

‘हम मजदूरों को गांव हमारे भेज दो सरकार,

सूना पड़ा घरद्वार.

मजबूरी में हम सब मजदूरी करते हैं,

घरबार छोड़ कर के शहरों में भटकते हैं…’

मजदूरों की बेबस हालत को चित्रकारों ने कागजों पर भी उतार कर लोगों को ध्यान खींचा.

बिहार में क्वारंटीन सैंटरों का हाल

बाहर से आ रहे मजदूरों के लिए 14 दिन तक रहनेखाने का पूरा इंतजाम प्रवासी लोगों के लिए करना है. पर इन सैंटरों पर लूट का बाजार गरम है. सैंटरों के इंचार्ज पदाधिकारी ज्यादा से ज्यादा पैसे बचाने और घटिया इंतजाम करने में जुटे हुए हैं. कई केंद्रों पर मजदूरों द्वारा सड़क जाम करने तक की घटनाएं आएदिन घट रही हैं. बिहार में कई लोगों की मौत भी इन सैंटरों पर हो गई. कुछ जिलों में इन सैंटरों पर पत्रकारों को जाने पर रोक लगा दी गई है, ताकि सच को उजागर नहीं किया जा सके और लूट की छूट लगातार चलती रहे.

अब तो आलम यह हो गया है कि इन सैंटरों पर प्रवासी मजदूरों के लिए जगह नहीं है. गांव वाले लोग इन का अपने घरों में रहने का विरोध कर रहे हैं. ये मजदूर जाएं तो जाएं कहां?

रोहतास जिले के कर्मकीला गांव में दिल्ली से लौटे 2 प्रवासी लोगों का परिवार को क्वारंटीन सैंटर में जगह नहीं मिली. मजबूर हो कर दोनों परिवार के सदस्य बाहर रहने के लिए मजबूर हुए.

आखिर क्यों होता है पलायन

बिहार में उद्योगधंधे नहीं के बराबर हैं. उत्तरी बिहार में जहां लोग हर साल बाढ़ से परेशान होते हैं, वहीं दक्षिण बिहार के लोग सुखाड़ और सिंचाई के उचित साधन नहीं होने की वजह से मार झेलते रहते हैं. कृषक मजदूरों को सालभर काम नहीं मिल पाता. जो पढ़ेलिखे गरीब युवा हैं, वे भूस्वामियों के खेतों में काम करना पसंद इसलिए भी नहीं करते कि उन्हें नीचा देखा जाता है. छोटेमझोले किसानों की खेतीबारी से मुश्किल से लागत कीमत ही निकल पाती है. खेती करना घाटे का सौदा है. खेतीकिसानी में भी मजदूरों को सालभर काम नहीं है. कुछ खास सीजन रोपाईकटाई के समय में मजदूरों की मांग होती है, बाकी दिनों में नहीं, जिस से मजदूर महानगरों की तरफ रुख करते हैं.

नफरत से देखे जा रहे मजदूर

अपने ही गांवघरों में आ रहे महानगरों से इन मजदूरों से कोई बातचीत भी नहीं करना चाहता, बल्कि गांवों में तो लोग इन्हें ‘करोना’ के नाम से बुलाने लगे हैं. इस महामारी ने इन मजदूरों का कचूमर ही निकाल दिया. सरकार, कंपनी, मकान मालिक और अब तो अपनों ने भी दूरी बनानी शुरू कर दी है.

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हसपुरा क्वारंटीन सैंटर में रह रहे मुन्ना कुमार ने बताया, “लोग हम लोगों से नफरत कर रहे हैं. क्या हम लोग उस के पात्र हैं? क्या हम लोग इस बीमारी को विदेशों से लाए हैं? इस में हम लोगों का क्या कुसूर है? बाहर से आए जिन मजदूरों को एक महीने से भी ज्यादा हो गया है और वे पूरी तरह ठीक भी हैं, तो लोग उन्हें काम पर इसलिए नहीं लगा रहे हैं कि उस से कोरोना फैल जाएगा.”

किस तबके के लोग करते हैं पलायन

बिहार से पलायन तो सभी तबके के लोग करते हैं, लेकिन महानगरों की कंपनियों में ज्यादातर मजदूर दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के होते हैं. ऊंची जाति के लोग इंजीनियरिंग समेत दूसरी तरह की टैक्निकल डिगरी की वजह से कंपनियों में अच्छे पदों पर होते हैं. उन का कंपनियों में भी दबदबा चलता है. निचले तबके के लोगों का हर जगह शोषण होता है.

जो लोग टैक्निकल डिगरीधारी हैं और बड़े महानगरों में बड़ीबड़ी कंपनियों में काम करते हैं, उन्हें कंपनी का मालिक आज भी तनख्वाह दे रहा है. उन के पास सारी सुखसुविधाएं हैं. इस लौकडाउन में वे आज भी महफूज हैं.

गुजरात में फोर्ड कंपनी में इंजीनियर के पद पर काम कर रहे बिहार के औरंगाबाद जिले के सुधीर कुमार और प्रैस्टिसाइज कंपनी अंकलेश्वर, गुजरात में अकाउंट्स मैनेजर अनिल कुमार रंजन ने बताया कि जब तक लौकडाउन चलेगा तब तक कंपनी बैठा कर पेमेंट देगी. जल्द ही कंपनी चालू होने वाली है.

सरकार क्या चाहती है

सरकार चाहती है कि किसी तरह मजदूर रुक जाएं. फैक्टरी चालू हो जाएं, ताकि सरकार और पूंजीपतियों का गठजोड़ जारी रहे. लेकिन इन कंपनी मालिकों, मैनेजरों और ठेकेदारों की गलत मंशा की वजह से इन मजदूरों का मन उचट गया है. हर हाल में मजदूर अपने गांवघर आना चाहते हैं. इन का अब रुकना मुश्किल हो गया है. बहुत सारी कंपनियां चालू कर दी गई हैं. मजदूर कम होने की वजह से जो मजदूर काम में लगे हैं उन्हें ज्यादा काम करना पड़ रहा है. इसी बीच कई राज्यों में श्रम संशोधन कानून लागू कर मजदूरों से 8 घंटे की जगह 12 घंटे काम लेने की कवायद तेज हो गई है.

हिंदू राष्ट्र बनाने वाले कहां हैं

कोरोना महामारी के चलते देश जल रहा है. देश की जनता पर संकट का पहाड़ टूट पड़ा है. इस जनता की मेहनत की कमाई से मंदिर रोशन होते थे. मंदिरों में भगवानों का तरहतरह का सिंगार किया जाता था. आज ऐसे भगवान संकट की घड़ी में अवतार ले कर उन की मदद करने क्यों नहीं आ रहे हैं? इन मेहनतकशों की अरबोंखरबों की मेहनत की कमाई को पाखंडरूपी भगवानों की दुकानदारी से लूटने वाले आज कौन से बिल में घुस गए हैं? वे उन की मदद के लिए आगे क्यों नही आ रहे हैं? हाईवे पर हर किलोमीटर पर मंदिर हैं, लेकिन इन प्रवासियों को उन मंदिरों पर पानी पीने का इंतजाम नहीं है. जो अपने आप को स्वयंसेवक कहते हैं, अपने आप को हिंदुओं के रक्षक कहते हैं, आज वे कौन से बिल में घुस गए हैं? आज देश की करोड़ों जनता सड़क पर संकट से जूझ रही है. लोगों पर संकट का ऐसा पहाड़ टूटा है कि वे हर तरह से मजबूर हो चुके हैं .लेकिन देश को लूटने वाले ऐसे लोग जो अपने आप को देशभक्त कहते हैं, वे कहां हैं? आज लोग भूखेप्यासे तड़पतड़प कर सड़क पर दम तोड़ रहे हैं, पर इन पाखंडियों का दिल जरा सा भी नही पसीज रहा है .इस से पुष्टि होती है कि ये लोग भारतीय लोगों को अपने मतलब के लिए इस्तेमाल करते हैं. अगर यह संकट मंदिर, पुजारियों पर या उन से जुड़े दूसरे लोगों पर आता तो पूरा देश हिल जाता, पूरी सरकार हिल जाती, लेकिन इन गरीबों की मदद के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है. आगे वे लोग आ रहे हैं, जिन से उन का नाता कभी नही रहा है. जैन, बौद्ध और सिख लोग तनमनधन से इन गरीबों की मदद कर रहे हैं, लेकिन जो अपने आप को देशभक्त कहते थे, हिंदू राष्ट्र बनाने की बात करते थे, अपने आप को हिंदुओं के ठेकेदार कहते थे, वे राष्ट्रभक्त किस बिल में घुस गए हैं? इन मनुवादी लोगों में कोरोना का इतना डर घुस गया है कि ये लोग इन गरीबों को एक गिलास पानी तक देने के लिए तैयार नही हैं. रास्ते में ज्यादातर ढाबे और मंदिर इन्हीं के हैं, पर मजदूरों को मंदिर और ढाबों के पास तक नही फटकने दिया जा रहा है.

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हम कैसे कह सकते हैं कि ये ब्राह्मणी सोच के लोग और उन की सरकार भारत की जनता की शुभचिंतक है? इन के लोग जो विदेशों में पढ़ रहे थे और नौकरी या कारोबार कर रहे थे, उन को करोड़ों रुपए खर्च कर के सरकार ने विदेशों से तुरंत हवाईजहाज से लिवा लिया. इन्होंने मानव कल्याण हेतु काम कभी नहीं किए हैं, हमेशा जनता का शोषण किया है.

भगवान और अल्लाह भी नहीं आए काम

प्रबुद्ध भारत समाज के संस्थापक और भाकपा माले के विधायक रह चुके केडी यादव ने कहा कि कोरोना के कहर ने धार्मिक ढकोसलों को उजागर कर के रख दिया. काबा से ले कर काशी तक सभी धार्मिक स्थलों पर ताला जड़ दिया गया. जिन ईश्वर और अल्लाह को याद करने के लिए पूजापाठ, रोजानमाज सबकुछ करते थे, वे आज इन बुरे हालात में काम नहीं आए. अब तो इस देश के नेताओं की आंख की पट्टी खुलनी चाहिए. इस देश को धार्मिक स्थलों की नहीं, बल्कि बल्कि अस्पतालों और स्कूलों की जरूरत है.मंदिरोंमसजिदों को हमेशा के लिए बंद कर उन में स्कूल, लाइब्रेरी और अस्पताल खोल दिए जाएं. इन धार्मिक संस्थानों में बंद पड़े अकूत पैसे को गरीबों के बीच बांट दिया जाए. यह सभी लोग जानते हैं कि इस महामारी का इलाज भी विज्ञान के द्वारा ही मुमकिन है. जिस तरह से चेचक, प्लेग, हैजा जैसी महामारी पर हमारे वैज्ञनिकों ने कामयाबी हासिल की है, उसी तरह से कोविड 19 का भी निदान विज्ञान द्वारा ही मुमकिन है.

बिहार आए ज्यादातर मजदूर दोबारा लौट कर महानगरों में जाने के नाम पर इनकार करते हुए बोल रहे हैं कि किसी भी हाल में अब नहीं जाएंगे. लेकिन काफी तादाद में आए इन मजदूरों

को बिहार सरकार रोजगार दिलवा पाएगी? फिलहाल उम्मीद तो नहीं दिखती, लेकिन आने वाला समय ही बताएगा आगे क्या होगा?

जिन के खूनपसीने की कमाई से दुनिया की सारी बेशकीमती चीजें बनीं हैं. बड़ी इमारतें, लंबी सड़कें, पुल यानी आप जो भी विकास देख रहे हैं, उस में मजदूरों का बड़ा हाथ है. जिन हाथों ने दुनिया को खूबसूरत बनाया उन्हीं हाथों को तुम काटने पर उतारू हो गए. मजदूरों की अनदेखी का यह दंश इस देश को झेलना पड़ेगा.

इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि जब भी कोई महामारी या आपदा आई है, सब से ज्यादा प्रभावित यही गरीब तबका होता है. इस तबके के लोगों को भी इन चीजों से सीख ले कर नयापन लाने की जरूरत है. अगर नहीं सुधरे तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे.

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Lockdown में घर लौटती मजदूर औरतों की मुसीबत

लौकडाउन के चलते देश के बड़े शहरों से अपने गांव लौट रहे मजदूरों में सब से ज्यादा मुसीबतें  महिला मजदूरों को झेलना पड़ी हैं. दुधमुंहे बच्चों को अपनी छाती से चिपकाए चुभती धूप में महिलाएं यही आस लिए पैदल चल रही हैं कि जल्द अपने घर पहुंच सकें. सरकारों की बद‌इंतजामी और अनदेखी से इन महिला मजदूरों का दर्द तब और बढ़ जाता है जब उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं तक नहीं मिलती हैं.

14 म‌ई, 2020 को मध्य प्रदेश में गर्भवती मजदूर महिलाओं के प्रसव की घटनाओं ने तो सरकारी योजनाओं की पोल खोल कर रख दी. गुजरात से बस में आई बड़वानी जिले की सुस्तीखेड़ा गांव की महिला मजदूर को प्रसव पीड़ा होने पर एंबुलैंस और जननी सुरक्षा ऐक्सप्रैस वाहन का इंतजाम तक न हो सका. तहसील के एसडीएम की दरियादिली ने अपने वाहन से महिला को अस्पताल तो भेज दिया, पर दर्द से कराहती महिला को समय पर डाक्टर न मिलने से प्रसव वाहन में ही हो गया.

इसी तरह राजगढ़ जिले के ब्यावरा में मुंबई से उत्तर प्रदेश जा रही एक 30 साल की गर्भवती महिला कौशल्या ने ट्रक में ही बच्चे को जन्म दे दिया. उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिला बस्ती के मनोज कुमार मुंबई से पैदल तो निकल पड़े, लेकिन रास्ते में गर्भवती पत्नी की हालत देख कर ट्रक में किराया दे कर चले तो मध्य प्रदेश के ब्यावरा में दर्द बढ़ा तो ट्रक में ही महिला की डिलीवरी हो गई. जैसेतैसे मनोज पत्नी को बच्चे समेत अस्पताल  ले कर पहुंचे, लेकिन अस्पताल में कोई खास इंतजाम न होने से उन्हें  राजगढ़ के जिला अस्पताल रैफर किया गया.

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प्रदेश में स्वास्थ्य योजना का ढोल पीटने वाली सरकारों की जमीनी हकीकत यह है कि आजादी के 73 सालों के बाद भी वे गांवकसबों के अस्पतालों में महिला डाक्टर तक का इंतजाम नहीं कर पाई हैं.

महिला मजदूरों के लिए लौकडाउन ने जो मुश्किलें बढ़ाई हैं, वे भी किसी त्रासदी से कम नहीं हैं. ट्रक, लोडिंग वाहन,आटोरिकशा में भेड़बकरियों की तरह यात्रा के लिए मजबूर 2-4 महिला मजदूर अपने छोटे बच्चों के साथ 40-50 मर्दों के समूह में सफर करती हैं, तो उन की परेशानियाें को तवज्जूह ही नहीं मिलती. ड्राइवर अपनी तेज रफ्तार से गाडी भगाने की जल्दबाजी में रहता है, अगर महिला को पेशाब के लिए भी रुकना है तो संकोच के मारे नहीं कहेगी, क्योंकि उसे भी घर जल्दी पहुंचना है और एक अकेली महिला के लिए ड्राइवर गाड़ी रोकने की हिमाकत करता भी नहीं है.

जब कभी सड़क पर ट्रक रुकता भी है, तो जरूरी नहीं कि ऐसी जगह महिला शौचालय मिल ही जाए. कहीं भी किसी भी पेड़ के बगल में, खेत की मेंड़ पर सड़क के किनारे उन्हें बैठना पड़ता है. क‌ई बार ट्रक रुकते ही धड़ाधड़ सारे मर्द मजदूर उतरते हैं और शुरू हो जाते हैं, पर वे 2-4 महिलाएं सिकुड़ी सी उसी ट्रक या  बस के कोने में मन मसोस कर अपने वेग को रोके रखती हैं.

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ऐसे संकट के वक्त में अगर किसी महिला को माहवारी शुरू हो जाए तो परेशानी और भी बढ़ जाती है, क्योंकि उन के पास 2 जोड़ी कपड़े से ज्यादा कपड़े नहीं हैं. एक कपड़े की पोटली में ही सारी कमाई है.

महाराष्ट्र के गढ़चिरौली से मध्य प्रदेश के गांवों में लौट रही एक महिला मजदूर रामवती अपनी पीड़ा बताती है कि सफर में माहवारी के दौरान कितनी मुश्किल हुई थी, लेकिन नरसिंहपुर जिले के नांदनेर पहुंचते ही ‘पैडवुमन’ के नाम से मशहूर माया विश्वकर्मा ने सैनेटरी पैड दिए तो सारी परेशानी दूर हो गई. रामवती के मुताबिक माहवारी के चलते पति का सहयोग भी नहीं मिलता. पति उस की शारीरिक परेशानी को समझने के बजाय उसे रास्ते भर डांटडपट ही लगाता रहा. महिला मजदूरों की परेशानी यही है कि महीनेभर उस के शरीर को नोचने वाला खुद का पति भी माहवारी के 5 दिन उसे अछूत समझ कर झिड़कता रहता है.

प्रवासी भारतीय माया विश्वकर्मा बताती हैं कि पिछले 2 महीने से जबलपुरपिपरिया स्टेट हाईवे नंबर 22 पर उन की संस्था ‘सुकर्मा फाउंडेशन’ मजदूरों को भोजन पानी ,जूताचप्पल के साथ महिला मजदूर के लिए नो टैंशन सैनेटरी पैड का मुफ्त में इंतजाम कर रही है.

गुजरात के सूरत की कपड़ा मिल में काम करने वाली रुक्मिणी ने भी पति और बच्चों के साथ अपना आधा सफर पैदल ही तय किया है. 2 साल की बेटी और 6 महीने के बेटे की जिम्मेदारी के साथ रास्ते में लकड़ी बीन कर ईंटपत्थर का चूल्हा बना कर खाना पकाती है. मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले से एक ट्रक ने मंडला तक के लिए 1,500 रुपए सवारी के हिसाब से किराया वसूल किया. ट्रक ड्राइवर और क्लीनर ने उसे बच्चों के साथ आगे केबिन में बिठा लिया. रास्ते में सफर के दौरान उन की गंदी बातों और घूरती निगाहों का सामना करती जैसेतैसे वह घर पहुंच सकी.

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रुक्मिणी जैसी और भी कई महिला मजदूर ऐसी भी होंगी, जिन्हें रात के सफर में मर्दों द्वारा छेड़खानी के अलावा अपनी इज्जत भी गंवानी पड़ी हो. क्या पता घर पहुंचने की जद्दोजेहद में चुपचाप यह दर्द भी सहन करना उन की मजबूरी बन गया हो.

बहरहाल, सरकारी कोशिशों के दावों का सच तो मजदूरों को भी समझ आ गया है. जिस तरह चुनावी रैलियों में झंडा, बैनर पकड़ कर नारे लगाने के लिए जुटाई गई भीड़ में महिलाओं को दिनभर का मेहनताना, खाना देने वाले ‌नेता सड़कों पर कहीं ‌दिखे? प्रजातंत्र की हकीकत यही है कि एक बार जनता से ‌वोट की भीख मांगने वाले नेता पूरे 5 साल सोशल डिस्टैंसिंग यानी सामाजिक दूरी बना कर रखते हैं. नेता जानते हैं कि कम पढ़ेलिखे इन मजदूरों को नोट, कंबल और‌ शराब की बोतलें दे कर बरगलाना आसान काम है.

हमारे समाज में महिला मजदूरों के साथ आज भी बुरा बरताव किया जाता है. अपने परिवार का पेट भरने के लिए ठेकेदारों, राजमिस्त्री और साथी मर्द मजदूरों की बदसुलूकी का शिकार महिलाओं को बनना पड़ता है. महिला आयोग और मजदूर यूनियन में बैठी महिला प्रतिनिधि भी महिला मजदूरों की समस्याओं को साल में एक दिन किसी मीटिंग या सैमिनार में उजागर कर अपने फर्ज को पूरा होना मान लेती हैं. मौजूदा समय में जरूरत इस बात की है कि मर्दों के दबदबे वाली सोच में बदलाव के साथ महिलाओं को उन के हकों के प्रति जागरूक किया जाए तो ही महिलाओं की हालत में सुधार मुमकिन है.

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