कोरोना वायरस के फैलते संक्रमण के चलते देश में उत्पन्न संकट के वक्त हमारे तौर तरीकों और आचरण ने यह साबित कर दिया है कि हिन्दुस्तान में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के बजाय अंधविश्वास और धार्मिक रीति रिवाज कितने हावी हैं.
मध्यप्रदेश के अशोकनगर जिले के  ईसागढ़ के कंडेलगंज की चालीस वर्षीय शांतिबाई  की मौत भोपाल के एम्स  में कोरोना संक्रमण की वजह से हो गई. एम्स से सैंपल रिपोर्ट आने के बाद शांतिबाई की मौत की वजह कोरोना संक्रमण बताया गया. लेकिन इस रिपोर्ट के बाद भी मृतका का पति अजब सिंह इस मौत की वजह जादू-टोना बताता रहा. पड़ोसियों की मानें तो पत्नी के बीमार होने पर उसने घर में ही झाड़-फूंक भी कराया. लेकिन शांति बाई की हालत बिगड़ने के बाद उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन कोरोना संक्रमण से पीड़ित शांतिबाई को बचाया नहीं जा सका.
कहा जाता है कि सच जब तक जूते पहनता है, तब तक झूठ पूरी दुनिया का चक्कर लगा आता है. फिलहाल यह हाल  देश के गांव, कस्बों का है ,जहां कोरोना वायरस को लेकर तरह-तरह की अफवाहें फैल रही हैं. 19 मार्च को रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जैसे ही रविवार 22 मार्च को “जनता कर्फ्यू” के बाद देशवासियों से “थाली-ताली बजाने” की अपील की, वैसे ही  गांव देहातों में क‌ई प्रकार की अफवाहें तेजी से फैलने लगीं.
उत्तरप्रदेश के पिछड़े इलाके के एक गांव रामगढ़वा में अपनी ससुराल में  रह रही  वेदिका बताती कि शाम के समय गांव की महिलाएं स्नान कर पैरों में हल्दी लगाकर देहरी वाली दीवार के दोनों ओर पैरों की छाप लगाती है. और घर में जितने पुरुष सदस्य हैं, उतनी संख्या में दिया जलाती हैं.  घर की बड़ी-बूढ़ी औरतें आजकल हर रोज थाली बजाकर  “कोरोना” को भगाती हैं.
उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ जिले के गुरेथा गांव से गुड़ बनाने मध्यप्रदेश आये आत्माराम अब अपने गांव पहुंच गए हैं. मोबाइल फोन पर  हालचाल पूछने पर बताते है कि गांव के पंडित ने यहां लोगों से कहा है कि कोरोना से बचने के लिए घर में हर रोज नियमित पूजा पाठ करना चाहिए.नीम के पेड़ के पास दिया जलाना और पेड़ को दो लोटा जल चढ़ाना, घर की चौखट पर लोहबान (लोबान) और कपूर का दिया रखना है. यही नहीं  घर के बाहर गाय के गोबर से ऊँ नमः शिवाय लिखने और बुजुर्ग महिलाओं से हर शाम थाली बजाने को भी कहा जा रहा है.
मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के क‌ई गांवों में लोग कोरोना को देवी प्रकोप मान रहे हैं.जिले के नवापाड़ा,रोटला, कंजवानी, वागलाघाट, टिकड़ी जैसे दर्जनों गांवों की महिलाएं कोरोना की बीमारी से बचने के लिए देवी-देवताओं की मूर्तियों पर जल और फूल चढ़ा रही हैं . इतना ही नहीं ये महिलाएं पांच से लेकर ग्यारह दिन का उपवास भी रख रही है. दिन भर के उपवास के बाद शाम को महिलाओं द्वारा देवी स्थल पर जाकर बायरस के गांव में न आने की प्रार्थना की जाती है और तभी भोजन ग्रहण करती हैं. महिलाओं का कहना है कि देवी देवताओं को ठंडा रखेंगे तो कोरोना वायरस अपने आप ठंडा हो जायेगा.
राणापुर ब्लौक के मेडिकल आफिसर डॉ जी एस चौहान  इसे ग्रामीणों को अंधविश्वास बताते हुए कहते हैं कि आदिवासी महिलाएं अपने भोलेपन, अज्ञानता और शिक्षा के अभाव के चलते कही सुनी बातों पर जल्दी यकीन कर‌ लेती हैं.सच तो यह है कि जब धर्म की हिमायती सरकारों और  धर्म के ठेकेदार धर्म गुरुओं, मौलाओं , शंकराचार्यों, संत-महंतों द्वारा कोरोना से बचने जो दलीलें दी जा रही हैं ,उनका अनुकरण तो देश की भोली भाली जनता आखिर करेगी ही .
मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के एक इलाके में तो‌ पंडे पुजारियों ने‌ यह खबर फैला दी कि तुलसीदास के रामचरितमानस मानस की पुस्तक के सुंदरकांड के पन्नों को उलटाकर देखें. इन पन्नों पर उन्हें  हनुमान जी का बाल मिलेगा, उसे पानी में घोलकर पीने से कोरोना वायरस का कोई असर नहीं होगा . फिर क्या था भेड़ चाल का सिलसिला चला तो गांव के तमाम घरों में हनुमान जी के बालों की खोज शुरू हो गई. आज भी गांव कस्बों में मंगलवार, शनिवार को रामायण के सुंदरकांड का पाठ होता है ,सो रामायण के पन्नों पर पढ़ने वालों के बाल भी मिल गये. इस बाल को  हनुमान जी का प्रसाद मानकर कोरोना भगाने का अभियान शुरू हो गया.
राजस्थान के अजमेर में किशनगढ़ के गांव गुदली में तो एक पुजारी (भोपा) ने  झाड़ फूंक के जरिए कोरोना भगाने का धंधा शुरू कर दिया था. फिर क्या था गांव वालों की भीड़ कोरोना झड़वाने उसके पास आने लगी.यह पुजारी लोगों से दावा करता कि एक वार उसका झाड़ा लगने के बाद कोरोना किसी के पास तक नहीं फटकेगा .कोरोना की मार से जहां लोगों के काम धाम बंद होने से मंदी की मार पड़ रही थी ,वहीं पुजारी की झाड़ फूंक का धंधा चलने लगा और पुजारी को अच्छी खासी चढ़ोत्तरी मिलने लगी. झाड़ फूंक के चक्कर में पुजारी ने न तो लोगों से दूरी बनाई और न ही सुरक्षा उपायों की चिंता की. आखिरकार एक दिन पुजारी खुद ही कोरोना की चपेट में आ गया.जब हालत बिगड़ी तो दरगाह  पुलिस थाने में तैनात पुजारी के भाई ने उसे अजमेर के जवाहर लाल नेहरू अस्पताल के कोविड वार्ड में भर्ती कराया. जांज में यह पुजारी कोरोना पाज़ीटिव निकला तो पूरे गुदली गांव में प्रशासन ने कर्फू लगा दिया.
देश के बड़े-बड़े अस्पतालों में  जहां डाक्टर अपनी जान की परवाह किए विना कोरोना पीड़ितों की जान बचाने में लगे हैं और रिसर्च सेन्टरों में कोरोना की वैक्सीन खोजने का काम चल रह है , वहीं दूसरी ओर अंधविश्वास पंख लगाकर अपने पैर फैला रहा है. देश के इस तर के हालात देखकर तो नहीं लगता कि इस वैश्विक महामारी से जल्द छुटकारा भारत वासियों को मिलेगा.
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