इतिश्हारी लत ने दीवाना बना दिया,

तसवीर खिंचाने का बहाना बना दिया.

खैरात से भी ज्यादा के ढोल बज गए,

लोगों ने गरीबी को फसाना बना दिया.

गरीबों की मदद के नाम पर बढ़ते प्रचार के बारे में ये लाइनें बड़ी मौजूं लगती हैं. दरअसल, गरीबी की समस्या हमारे देश में आज भी बहुत भयंकर है.

हालांकि आजादी के बाद से ‘गरीबी हटाओ’ का नारा व गरीबों के लिए चली सरकारी स्कीमों में पानी की तरह पैसा बहाया गया है, लेकिन हिस्साबांट के चलते गरीबी बरकरार है. साल 2016 में 37 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से नीचे थे. गांव हों या शहर, गरीब लोग हर जगह बहुत बड़ी तादाद में मिल जाते हैं.

ऐसे में बहुत से लोग पुण्य लूटने की गरज से गरीबों की मदद करते हैं. गरीबों को मुफ्त सामान का लालच दे कर बुलाते व रिझाते हैं और उन्हें सामान देते हुए अपना फोटो खिंचाते हैं. इतना ही नहीं, उन फोटो का इस्तेमाल अपनी दरियादिली के प्रचार में करते हैं.

दरअसल, जिस दान में प्रचार खूब किया जाए वह पाखंड है, जो दानदक्षिणा का माहौल बनाने के लिए किया जाता है. इन में पंडितों के फोटो तो लिए नहीं जाते, क्योंकि पंडित अब दान नहीं लेता. वह तो उलटे दान देने वाले को पुण्य कमाने का मौका व पुण्य लाभ देता है.

ऐसे में दान देने वाला लाभार्थी हो जाता है. वक्त के साथ दान देने के तौरतरीके भी बदल गए हैं. ज्यादा से ज्यादा दान इकट्ठा करने की गरज अब तिरुपति बालाजी, वैष्णो देवी व काशी विश्वनाथ वगैरह बहुत से मंदिरों द्वारा भक्तों के लिए घर बैठे औनलाइन व ईवालेट से दान देने की सहूलियतें मुहैया कराई गई हैं.

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