गैस एजेंसी के नाम पर ‘दंश’!

गैस एजेंसी का इन दिनों बड़ा ही क्रेज बना हुआ है इसी तरह पेट्रोल पंप भी लगाने की सनक लोगों में इन दिनों कुछ ज्यादा ही देखी जा रही है. क्योंकि यह एक ऐसा व्यवसाय है, जिसमें एक दफा इन्वेस्ट करने के बाद ताजिंदगी आने वाली पीढ़ियां भी तरह जाती है. यही कारण है कि भोले भाले लोगों को “गैस एजेंसी” दिलाने के नाम पर ठगी का खेल जारी है. आइए! आपको सावधान करती इस रिपोर्ट में दिखाते हैं गैस एजेंसी का गहरा जख्म. जिसे आज भी लोग भूल नहीं पाए हैं और जो निरंतर बना हुआ है.

पहली घटना-

छत्तीसगढ़ के जिला मुंगेली में राम दास महंत से गैस एजेंसी दिलाने के नाम पर सात लाख रुपए लेकर एक शख्स धत्ता बता गायब हो गया. मामला पुलिस थाना पहुंचा. पुलिस जांच कर रही है.

दूसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में रामलोचन अग्रवाल ने गैस एजेंसी हेतु आवेदन भरा तो 1 दिन एक शख्स ने आ कर उसे ऐसा पाठ पढ़ाया की 10 लाख रुपए ले लिए. अंततः जब ठगी का अहसास होने पर मामला पुलिस के पास पहुंचा.

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तीसरी घटना-

छत्तीसगढ़ के आदिवासी जिला कांकेर में एक आदिवासी शख्स ने गैस एजेंसी हेतु ऑनलाइन अप्लाई किया 1 दिन मोबाइल पर फोन आया और धीरे-धीरे लाखों रुपए लेकर शख्स ने उसे ठेंगा बता दिया. एहसास होने पर मामला थाना पहुंचा.

ऐसे ही अन्य कुछ घटनाक्रम छत्तीसगढ़ में इन दिनों चर्चा में है. जिसका निष्कर्ष यही है कि गैस एजेंसी दिलाने के नाम पर लोगों को बेतरह ठगा गया है.

क्या आपने गैस एजेंसी हेतु आवेदन किया है?

राजधानी रायपुर में गैस एजेंसी दिलाने के नाम पर 8.77 लाख रुपए की ठगी का मामला प्रकाश में आया है. ये ठगी चंगोराभाठा निवासी चंद्रभान देवांगन के साथ हुई उसने हिंदुस्तान पेट्रोलियम के वेबसाइट पर ऑनलाइन गैस एजेंसी के लिए आवेदन किया था .

पुलिस नहीं हमारे संवाददाता को बताया रायपुर के चंगोराभाठा के रहने वाले चंद्रभान देवांगन ने कुछ समय पहले हिंदुस्तान पेट्रोलियम के वेबसाइट में ऑनलाइन आवेदन किया था विगत 18 फरवरी को एक मोबाइल नंबर से उसके पास फोन आया. कॉल करने वाले व्यक्ति ने अपना नाम कुसलाल बताते हुए पीड़ित से पूछा कि क्या आपने गैस एजेंसी के लिए आवेदन किया है? जिस पर प्रार्थी द्वारा हां कहा गया. और इसके बाद धीरे-धीरे शुरू हुआ ठगी का एक ऐसा खेल जिसके कारण चंद्रभान आज हतप्रभ है.

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मीठी चुपड़ी बातें और ठगी

गैस एजेंसी के लिए आवेदन करने वाले चंद्रभान को कथित रूप से कुसलाल नामक व्यक्ति ने गैस एजेंसी दिलाने की थोथे आश्वासन देकर अपनी गिरफ्त में ले लिया. जब चंद्रभान को यह साफ हो गया कि मुझे गैस एजेंसी अब मिल जाएगी और मैं आने वाले समय में मालामाल हो जाऊंगा तो उसने दोनों हाथों से रूपए लुटाना शुरू कर दिया.

चंदभान को एक दफा कथित ठग ने कहा कि मैं आपको आवेदन मेल और व्हाट्सएप कर रहा हूं, आप भरकर फिर से दस्तावेजो के साथ मेल आईडी पर मेल या व्हाट्सएप कर देना फिर देखना, मैं कैसे तुम्हारा काम जल्द से जल्द करवाता हूं. चंद्रभान कथित बातों में आ गया और मेल और व्हाट्सएप करने के बाद उसे एक एप्रूवल लेटर देकर 19500 रुपये देने की बात की गई. फिर ठग ने कभी अर्थराइजेशन के नाम पर, तो कभी सिलेंडर स्टॉक की अमानती राशि के नाम पर, पैसे मांगे गए. पीड़ित चंद्रभान ने कुल 8 लाख 77 हजार रुपये आरोपी द्वारा दिये गए खाते में जमा कराए है.

इतने पैसे देने के बाद भी जब एजेंसी नहीं मिली तो वह सर पीट कर रह गया. पुलिस इस मामले में अब बैंक खाते और मोबाइल ट्रेस कर आरोपी की तलाश कर रही है.

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Women’s Day Special- विद्रोह: भाग 1

सीमा को अपने मातापिता के घर में रहते हुए करीब 15 दिन हो चुके थे. इस दौरान उस का अपने पति राकेश से किसी भी तरीके का कोई संपर्क नहीं रहा था. उस शाम राकेश को अचानक घर आया देख कर वह हैरान हो गई.

‘‘बेटी, आपसी मनमुटाव को ज्यादा लंबा खींचना खतरनाक साबित हो जाता है. राकेश के साथ समझदारी से बातें करना,’’ अपनी मां की इस सलाह पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर किए बिना सीमा ड्राइंगरूम में राकेश के सामने पहुंच गई.

‘‘तुम्हें मेरे साथ घर चलना पडे़गा, सीमा,’’ राकेश ने बिना कोई भूमिका बांधे सख्त लहजे में कहा.

‘‘तुम्हारा घर मैं छोड़ आई हूं,’’ सीमा ने भी रूखे अंदाज में अपना फैसला उसे सुना दिया.

‘‘क्या हमेशा के लिए?’’ राकेश ने उत्तेजित हो कर सवाल किया.

‘‘ऐसा ही समझ लो,’’ सीमा ने विद्रोही स्वर में जवाब दिया.

‘‘बेकार की बात मत करो. मेरी सहनशक्ति का तार टूट गया तो पछताओगी,’’ राकेश भड़क उठा.

‘‘मुझे डरानेधमकाने का अब कोई फायदा नहीं है,’’ सीमा ने निडर हो कर कहा, ‘‘अगर तुम्हें और कोई बात नहीं कहनी है तो मैं अपने कमरे में जा रही हूं.’’

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राकेश ने अपनी पत्नी को अचरज भरी निगाहों से देखा.  उन की शादी को करीब 12 साल  हो चुके थे. इस दौरान उस ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि सीमा ऐसे विद्रोही अंदाज में उस से पेश आएगी.

उठ कर खड़ी होने को तैयार सीमा को हाथ के इशारे से राकेश ने बैठने को कहा और फिर  बताया कि कल सुबह मयंक और शिक्षा होस्टल से 10 दिनों की छुट्टियां बिताने घर पहुंच रहे हैं.

कुछ देर सोच में डूबी रहने के बाद सीमा ने व्याकुल स्वर में कहा, ‘‘उन दोनों को यहां मेरे पास छोड़ जाना.’’

‘‘तुम्हें पता है कि तुम क्या बकवास कर रही हो. वह दोनों यहां नहीं आएंगे,’’ राकेश गुस्से से फट पड़ा.

‘‘फिर जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं बच्चों से कहीं बाहर मिल लिया करूंगी,’’ सीमा ने थके से अंदाज में राकेश का फैसला स्वीकार कर लिया.

‘‘यह कैसी मूर्खता भरी बात मुंह से निकाल रही हो. तुम्हारे बच्चे 4 महीने बाद घर लौट रहे हैं और तुम उन के साथ घर रहने नहीं आओगी. तुम्हारा यह फैसला सुन कर मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा है.’’

‘‘अपने बच्चों के साथ कौन मां नहीं रहना चाहेगी,’’ सीमा का अचानक गला भर आया, ‘‘मैं अपने फैसले से मजबूर हूं. मुझे उस घर में लौटना ही नहीं है.’’

‘‘हम अपने झगडे़ बाद में निबटा लेंगे, सीमा. फिलहाल तो बच्चों के मन की सुखशांति के लिए घर चलो. तुम्हें घर में न पाने का सदमा वे दोनों कैसे बरदाश्त करेंगे? अब वे दोनों बहुत छोटे बच्चे नहीं रहे हैं. मयंक 10 साल का और शिखा 8 साल की हो रही है. उन दोनों को बेकार ही मानसिक कष्ट पहुंचाने का फायदा क्या होगा?’’ राकेश ने चिढे़ से अंदाज में उसे समझाने का प्रयास किया.

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‘‘एक दिन तो बच्चों को यह पता लगेगा ही कि हम दोनों अलग हो रहे हैं. यह कड़वी सचाई उन्हें इस बार ही पता लग जाने दो,’’ उदास सीमा अपनी जिद पर अड़ी रही.

‘‘ऐसा हुआ ही क्या है हमारे बीच, जो तुम यों अलग होने की बकवास कर रही हो?’’ राकेश फिर गुस्से से भर गया.

‘‘मुझे इस बारे में तुम से अब कोई बहस नहीं करनी है.’’

‘‘इस वक्त सहयोग करो मेरे साथ, सीमा.’’

सीमा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह सिर झुकाए सोच में डूबी रही.

राकेश ने अंदर जा कर अपने सासससुर को सारा मामला समझाया. मयंक और शिखा की खुशियों की खातिर वह अपनी नाराजगी व शिकायतें भुला कर राकेश की तरफ  हो गए.

सीमा पर ससुराल वापस लौटने के लिए अब अपने मातापिता का दबाव भी पड़ा. अपने बच्चों से मिलने के लिए उस का मन पहले ही तड़प रहा था. अंतत: उस ने एक शर्त के साथ राकेश की बात मान ली.

‘‘मैं तुम्हारे साथ बच्चों की मां के रूप में लौट रही हूं, पत्नी के रूप में नहीं. पतिपत्नी के टूटे रिश्ते को फिर से जोड़ने का कोई प्रयास न करने की तुम कसम खाओ, तो ही मैं वापस लौटूंगी,’’ बडे़ गंभीर हो कर सीमा ने अपनी शर्त राकेश को बता दी.

अपमान का घूंट पीते हुए राकेश को मजबूरन अपनी पत्नी की बात माननी पड़ी.

‘‘बच्चे कल आ रहे हैं, तो मैं भी कल सुबह घर पहुंच जाऊंगी,’’ अपना निर्णय सुना कर सीमा ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चली आई.

सीमा के व्यक्तित्व में नजर आ रहे जबरदस्त बदलाव ने उस के मातापिता व पति को ही नहीं, बल्कि उसे खुद को भी अचंभित कर दिया था.

उस रात सीमा की आंखों से नींद दूर भाग गई थी. पलंग पर करवटें बदलते हुए वह अपनी विवाहित जिंदगी की यादों में खो गई. उसे वे घटनाएं व परिस्थितियां रहरह कर याद आ रही थीं जो अंतत: राकेश व उस के दिलों के बीच गहरी खाई पैदा करने का कारण बनी थीं.

उस शाम आफिस से देर से लौटे राकेश की कमीज के पिछले हिस्से में लिपस्टिक से बना होंठों का निशान सीमा ने देखा. अपने पति को उस ने कभी बेवफा और चरित्रहीन नहीं समझा था. सचाई जानने को वह उस के पीछे पड़ गई तो राकेश अचानक गुस्से से फट पड़ा था.

‘हां, मेरी जिंदगी में एक दूसरी लड़की है,’ सीमा के दिल को गहरा जख्म देते हुए उस ने चिल्ला कर कबूल किया, ‘उस की खूबसूरती, उस का यौवन और उस का साथ मुझे वह मस्ती भरा सुख देते हैं जो तुम से मुझे कभी नहीं मिला. मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं, उसे नहीं.’

‘मेरे सारे गुण…मेरी सेवा और समर्पण को नकार कर क्या तुम एक चरित्रहीन लड़की के लिए मुझे छोड़ने की धमकी दे रहे हो?’ राकेश के आखिरी वाक्य ने सीमा को जबरदस्त मानसिक आघात पहुंचाया था.

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Women’s Day Special- विद्रोह: भाग 3

सीमा ने भी उस में ये सब परिवर्तन महसूस किए थे, पर उस से अलग रहने के निर्णय पर वह पूर्ववत कायम रही.

राकेश ने दोनों बच्चों को कपड़ों व अन्य जरूरी सामान की ढेर सारी खरीदारी खुशीखुशी करा कर उन का मन और ज्यादा जीत लिया.

बच्चों को उन के वापस होस्टल लौटने में जब 4 दिन रह गए तब सीमा ने राकेश से कहा, ‘‘मेरी सप्ताह भर की छुट्टियां अब खत्म हो जाएंगी. बाकी 4 दिन बच्चे नानानानी के पास रहें, तो बेहतर होगा.’’

‘‘बच्चे वहां जाएंगे, तो मैं उन से कम मिल पाऊंगा,’’ राकेश का स्वर एकाएक उदास हो गया.

‘‘बच्चों को कभी मुझ से और कभी तुम से दूर रहने की आदत पड़ ही जानी चाहिए,’’ सीमा ने भावहीन लहजे में जवाब दिया.

राकेश कुछ प्रतिक्रिया जाहिर करना चाहता था, पर अंतत: धीमी आवाज में उस ने इतना भर कहा, ‘‘तुम अपने घर बच्चों के साथ चली जाओ. उन का सामान भी ले जाना. वे वहीं से वापस चले जाएंगे.’’

नानानानी के घर मयंक और शिखा की खूब खातिर हुई. वे दोनों वहां बहुत खुश थे, पर अपने पापा को वे काफी याद करते रहे. राकेश उन के बहुत जोर देने पर भी रात को साथ में नहीं रुके, यह बात दोनों को अच्छी नहीं लगी थी.

अपने मातापिता के पूछने पर सीमा ने एक बार फिर राकेश से हमेशा के लिए अलग रहने का अपना फैसला दोहरा दिया.

‘‘राकेश ने अगर अपने बारे में तुम्हें सब बताने की मूर्खता नहीं की होती, तब भी तो तुम उस के साथ रह रही होंती. तुम्हें संबंध तोड़ने के बजाय उसे उस औरत से दूर करने का प्रयास करना चाहिए,’’ सीमा की मां ने उसे समझाना चाहा.

‘‘मां, मैं ने राकेश की कई गलतियों, कमियों व दुर्व्यवहार से हमेशा समझौता किया, पर वह सब मैं पत्नी के कर्तव्यों के अंतर्गत करती थी. उन की जिंदगी में दूसरी औरत आ जाने के बाद मुझ पर अच्छी बीवी के कर्तव्यों को निभाते रहने के लिए दबाव न डालें. मुझे राकेश के साथ नहीं रहना है,’’ सीमा ने कठोर लहजे में अपना फैसला सुना दिया था.

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अगले दिन बच्चे अपने पापा का इंतजार करते रहे पर वह उन से मिलने नहीं आए. इस कारण वे दोनों बहुत परेशान और उदास से सोए थे. सीमा को राकेश की ऐसी बेरुखी व लापरवाही पर बहुत गुस्सा आया था.

उस ने अगले दिन आफिस से राकेश को फोन किया और क्रोधित स्वर में शिकायत की, ‘‘बच्चों को यों परेशान करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं है. कल उन से मिलने क्यों नहीं आए?’’

‘‘एक जरूरी काम में व्यस्त था,’’ राकेश का गंभीर स्वर सीमा के कानों में पहुंचा.

‘‘मैं सब समझती हूं तुम्हारे जरूरी काम को. अपनी रखैलों से मिलने की खातिर अपने बच्चों का दिल दुखाना ठीक नहीं है. आज तो आओगे न?’’

‘‘अपनी रखैल से मिलने सचमुच आज मुझे नहीं जाना है, इसलिए बंदा तुम सब से मिलने जरूर हाजिर होगा,’’ राकेश की हंसी सीमा को बहुत बुरी लगी, तो उस ने जलभुन कर फोन काट दिया.

राकेश शाम को सब से मशहूर दुकान की रसमलाई ले कर आया. यह सीमा की सब से ज्यादा पसंदीदा मिठाई थी. वह नाराजगी की परवा न कर उस के साथ हंसीमजाक व छेड़छाड़ करने लगा. बच्चों की उपस्थिति के कारण वह उसे डांटडपट नहीं सकी.

राकेश दोनों बच्चों को बाजार घुमा कर लाया. फिर सब ने एकसाथ खाना खाया. सीमा को छोड़ कर सभी का मूड बहुत अच्छा बना रहा.

बच्चों को सोने के लिए भेजने के बाद वह राकेश से उलझने को तैयार थी पर उस ने पहले से हाथ जोड़ कर उस से मुसकराते हुए कहा, ‘‘अपने अंदर के ज्वालामुखी को कुछ देर और शांत रख कर जरा मेरी बात सुन लो, डियर.’’

‘‘डोंट काल मी डियर,’’ सीमा चिढ़ उठी.

‘‘यहां बैठो, प्लीज,’’ राकेश ने बडे़ अधिकार से सीमा को अपनी बगल में बिठा लिया तो वह ऐसी हैरान हुई कि गुस्सा करना ही भूल गई.

‘‘मैं ने कल पुरानी नौकरी छोड़ कर आज से नई नौकरी शुरू कर दी है. कल शाम मैं ने अपनी ‘रखैल’ से पूरी तरह से संबंध तोड़ लिया है और अपने अतीत के गलत व्यवहार के लिए मैं तुम से माफी मांगता हूं,’’ राकेश का स्वर भावुक था, उस ने एक बार फिर सीमा के सामने हाथ जोड़ दिए.

‘‘मुझे तुम्हारे ऊपर अब कभी विश्वास नहीं होगा. इसलिए इस विषय पर बातें कर के न खुद परेशान हो न मुझे तंग करो,’’ न चाहते हुए भी सीमा का गला भर आया.

‘‘अपने दिल की बात मुझे कह लेने दो, सीमा, सब तुम्हारी प्रशंसा करते हैं, पर मैं ने सदा तुम में कमियां ढूंढ़ कर तुम्हें गिराने व नीचा दिखाने की कोशिश की, क्योंकि शुरू से ही मैं हीनभावना का शिकार बन गया था. तुम हर काम में कुशल थीं और मुझ से ज्यादा कमाती भी थीं.

‘‘मैं सचमुच एक घमंडी, बददिमाग और स्वार्थी इनसान था जो तुम्हें डरा कर अपने को बेहतर दिखाने की कोशिश करता रहा.

‘‘फिर तुम ने मेरी चरित्रहीनता के कारण मुझ से दूर होने का फैसला किया. पहले मैं ने तुम्हारी धमकी को गंभीरता से नहीं लिया, क्योंकि तुम कभी मेरे खिलाफ विद्रोह करोगी, ऐसा मैं ने सपने में भी नहीं सोचा था.

‘‘पिछले दिनों मैं ने तुम्हारी आंखों में अपने लिए जो नाराजगी व नफरत देखी, उस ने मुझे जबरदस्त सदमा पहुंचाया. सीमा, मेरी घरगृहस्थी उजड़ने की कगार पर पहुंच चुकी है, इस सचाई को सामने देख कर मेरे पांव तले की जमीन खिसक गई.

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‘‘मुझे तब एहसास हुआ कि मैं न अच्छा पति रहा हूं, न पिता. पर अब मैं बदल गया हूं. गलत राह पर मैं अब कभी नहीं चलूंगा, यह वादा दिल से कर रहा हूं. मुझे अकेला मत छोड़ो. एक अच्छा पति, पिता व इनसान बनने में मेरी मदद करो.

‘‘तुम मां होने के साथसाथ मुझ से कहीं ज्यादा समझदार व सुघड़ स्त्री हो. औरतें घर की रीढ़ होती हैं. मेरे पास लौट कर हमारी घरगृहस्थी को उजड़ने से बचा लो, प्लीज,’’ यों प्रार्थना करते हुए राकेश का गला भर आया.

‘‘मैं सोच कर जवाब दूंगी,’’ राकेश के आंसू न देखने व अपने आंसू उस की नजरों से छिपाने की खातिर सीमा ड्राइंगरूम से उठ कर बच्चों के पास चली गई.

अपने बच्चों के मायूस, सोते चेहरों को देख कर वह रो पड़ी. उस के आंसू खूब बहे और इन आंसुओं के साथ ही उस के दिल में राकेश के प्रति नाराजगी, शिकायत व गुस्से के सारे भाव बह गए.

कुछ देर बाद राकेश उस से कमरे में विदा लेने आया.

‘‘आप रात को यहीं रुक जाओ कल बच्चों को जाना है,’’ सीमा ने धीमे, कोमल स्वर में उसे निमंत्रण दिया.

राकेश ने सीमा की आंखों में झांका, उन में अपने लिए प्रेम के भाव पढ़ कर उस का चेहरा खिल उठा. उस ने बांहें फैलाईं तो लजाती सीमा उस की छाती से लग गई.

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Women’s Day Special- विद्रोह: भाग 2

‘उस लड़की के लिए न कोई अपशब्द कभी मेरे सामने निकालना और न उसे छोड़ने की बात करना. तुम अपनी घरगृहस्थी और बच्चों में खुश रहो और मुझे भी खुशी से जीने दो,’ कहते हुए बड़ी बेरुखी दिखाता राकेश बाथरूम में घुस गया था.

वह रात सीमा ने ड्राइंगरूम में पडे़ दीवान पर आंसू बहाते हुए काटी थी. उस के दिलोदिमाग में विद्रोह के बीज को इन्हीं आंसुओं ने अंकुरित होने की ताकत दी थी.

उस रात सीमा ने अपने दब्बूपन व कायरता को याद कर के भी आंसू बहाए थे.

राकेश शादी के बाद से ही उसे अपमानित कर नीचा दिखाता आया था. घर व बाहर वालों के सामने बेइज्जत कर उस का मजाक उड़ाने का वह कोई मौका शायद ही चूकता था.

सीमा के सुंदर नैननक्श की तारीफ नहीं बल्कि उस के सांवले रंग का रोना वह अकसर जानपहचान वालों के सामने रोता.

घर की देखभाल में जरा सी कमी रह जाती तो उसे सीमा को डांटनेडपटने का मौका मिल जाता. उस का कोई काम मन मुताबिक न होता तो वह उसे बेइज्जत जरूर करता.

बच्चों के बडे़ होने के साथ सीमा की जिम्मेदारियां भी बढ़ी थीं. 2 साल पहले सास के निधन के बाद तो वह बिलकुल अकेली पड़ गई थी. उन के न रहने से सीमा का सब से बड़ा सहारा टूट गया था.

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राकेश के गुस्से से बच्चे डरेसहमे से रहते. उस के गलत व्यवहार को देख सारे रिश्तेदार, परिचित और दोस्त उसे एक स्वार्थी, ईर्ष्यालु व गुस्सैल इनसान बताते.

सीमा मन ही मन कभीकभी बहुत दुखी व परेशान हो जाती पर कभी किसी बाहरी व्यक्ति के मुंह से राकेश की बुराई सुनना उसे स्वीकार न था.

‘वह दिल के बहुत अच्छे हैं…मुझे बहुत प्यार करते हैं और बच्चों में तो उन की जान बसती है. मैं बहुत खुश हूं उन के साथ,’ सीमा सब से यह कहती भी थी और अपने मन की गहराइयों में इस विश्वास की जड़ें खुद भी मजबूत करती रहती थी.

घर में डरेसहमे से रह रहे मयंक व शिखा के व्यक्तित्व के समुचित विकास को ध्यान में रखते हुए वह उन्हें पिछले साल होस्टल में डालने को तैयार हो गई थी.

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उन की पढ़ाई व घर का ज्यादातर खर्चा वह अपनी तनख्वाह से चलाती थी. राकेश करीब 1 साल से घरखर्च के लिए ज्यादा रुपए नहीं देता था. यह सीमा को उस रात ही समझ में आया कि वह जरूर अपनी प्रेमिका पर जरूरत से ज्यादा खर्चा करने के कारण घर की जिम्मेदारियों से हाथ खींचने लगा है.

अगले दिन वह आफिस नहीं गई थी. घर छोड़ कर मायके जाने की सूचना उस ने राकेश को उस के आफिस जाने से पहले दे दी थी.

‘तुम जब चाहे लौट सकती हो. मैं तुम्हें कभी लेने नहीं आऊंगा, यह ध्यान रखना,’ उसे समझानेमनाने के बजाय उस ने उलटे धमकी दे डाली थी.

‘मैं इस घर में कभी नहीं लौटूंगी,’ सीमा ने अपना निर्णय उसे बताया तो राकेश मखौल उड़ाने वाले अंदाज में हंस कर घर से बाहर चला गया था.

राकेश चाहेगा तो वह उसे तलाक दे देगी, पर उस के पास अब कभी नहीं लौटेगी, सीमा की इस विद्रोही जिद को उस के मातापिता लाख कोशिश कर के  भी तोड़ नहीं पाए थे.

लेकिन एक मां अपने बच्चों के मन की सुखशांति व खुशियों की खातिर अपने बेवफा पति के घर लौटने को तैयार हो गई थी.

सीमा को अगले दिन उस के मातापिता राकेश के पास ले गए. उस ने वहां पहुंचते ही पहले घर की साफसफाई की और फिर रसोई संभाल ली. अपने बेटाबेटी के लिए वह उन की मनपसंद चीजें बडे़ जोश के साथ बनाने के काम में जल्दी ही व्यस्त हो गई थी.

राकेश और उस के बीच नाममात्र की बातें हुईं. दोनों बच्चों को स्टेशन से ले कर राकेश जब 11 बजे के करीब घर लौटा, तब घर भर में एकदम से रौनक आ गई. मयंक और शिखा के साथ खेलते, हंसतेबोलते और घूमतेफिरते सीमा के लिए समय पंख लगा कर उड़ चला. दोनों बच्चे अपने स्कूल व दोस्तों की बातें करते न थकते. उन के हंसतेमुसकराते चेहरों को देख कर सीमा फूली न समाती.

जब कभी सीमा अकेली होती तो उदास मन से यह जरूर सोचती कि अपने कलेजे के टुकड़ों को कैसे बताऊंगी कि मैं ने उन के पापा को छोड़ कर अलग रहने का फैसला कर लिया है. उन हालात को यह मासूम कैसे समझेंगे जिन के कारण मुझे इतना कठोर फैसला करना पड़ा है.

वह रात को बच्चों के साथ उन के कमरे में सोती. दिन भर की थकान इतनी होती कि लेटते ही गहरी नींद आ जाती और मन को परेशान या दुखी करने वाली बातें सोचने का समय ही नहीं मिलता.

राकेश इन तीनों की उपस्थिति में अधिकतर चुप रह कर इन की बातें सुनता. उस में आए बदलाव को सब से पहले मयंक ने पकड़ा.

‘‘मम्मी, पापा बहुत बदलेबदले लग रहे हैं इस बार,’’ मयंक ने घर आने के तीसरे दिन दोपहर में सीमा के सामने अपनी बात कही.

‘‘वह कैसे?’’ सीमा की आंखों में उत्सुकता के भाव जागे.

‘‘वह पहले की तरह हमें हर बात पर डांटतेधमकाते नहीं हैं.’’

‘‘और मम्मी आप से भी लड़ना बंद कर दिया है पापा ने,’’ शिखा ने भी अपनी राय बताई.

‘‘मुझे तो इस बार पापा बहुत अच्छे लग रहे हैं.’’

‘‘मुझे भी बहुत प्यारे लग रहे हैं,’’ शिखा ने भी भाई के सुर में सुर मिलाया.

अपने बच्चों की बातें सुन कर सीमा मुसकराई भी और उस की आंखों में आंसू भी छलक आए. राकेश की बेवफाई को याद कर उस के दिल में एक बार नाराजगी, दुख व अफसोस से मिश्रित पीड़ा की तेज लहर उठी. जल्दी ही मन को संयत कर वह बच्चों के साथ विषय बदल कर इधरउधर की बातें करने लगी.

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उस दिन शाम को राकेश बैडमिंटन खेलने के 4 रैकिट और शटलकौक खरीद लाया. दोनों बच्चे खुशी से उछल पड़े. उन की जिद के आगे झुकते हुए सीमा को भी उन तीनों के साथ बैडमिंटन खेलना पड़ा. यह शायद पहला अवसर था जब राकेश के साथ उस ने किसी गतिविधि में सहज व सामान्य हो कर हिस्सा लिया था.

उस रात सीमा बच्चों के कमरे में सोने के लिए जाने लगी तो राकेश ने उसे रोकने के लिए उस का हाथ पकड़ लिया था.

‘‘नो,’’ गुस्से और नफरत से भरा सिर्फ यह एक शब्द सीमा ने मुंह से निकाला तो राकेश की इस मामले में कुछ और कहने या करने की हिम्मत ही नहीं हुई.

बच्चों का मन रखने के लिए सीमा राकेश के साथ उस के दोस्तों के घर चायनाश्ते व खाने पर गई.

राकेश के सभी दोस्तों व उन की पत्नियों ने सीमा के सामने उस के पति के अंदर आए बदलाव पर कोई न कोई अनुकूल टिप्पणी जरूर की थी. उन के हिसाब से राकेश अब ज्यादा शांत, हंसमुख व सज्जन इनसान हो गया है.

क्या ‘जय श्रीराम’ के नारे से जनता की समस्याओं का हल किया जा सकता है ?

जब देश में महंगाई की डायन का साया चारों तरफ फैल रहा हो, बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ रही हो, कानूनों की मनमानी के खिलाफ देश के कितने हिस्सों में जनता उबाल पर हो, राजपाट करने वाले या तो प्रवचन करने में लगे हैं या धर्म का डंका बजा कर राज्य सरकारों को गिराने में लगे हैं.

पश्चिम बंगाल के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने जय श्रीराम का नारा लगा रखा है और खरीदफरोख्त कर के अब पुडुचेरी की कांग्रेस सरकार गिरा दी. राज करने वालों को या तो पौराणिक धर्म को बचाने की चिंता है या फिर उस के सहारे अपनी गलतियों को छिपाने की.

देश की जनता की मूल परेशानियों के बारे में भाजपा की सोच गायब सी हो गई है. जितने मंत्री हैं, सांसद हैं, राज्य सरकारों के मुख्यमंत्री हैं अगर भारतीय जनता पार्टी के हैं तो राम मंदिर के लिए चंदा जुटाने में लगे हैं या जनता को बहकाने में कि इसी से उन का कल्याण होगा, इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में पक्का. जो दूसरे दलों की सरकारें हैं वे सम झ नहीं पा रहीं कि वे जनता के हितों में काम करें या अपनी धोती में भाजपा की लगाई गई आग को बुझाने में.

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नुकसान जनता का है. जनता को जो मिलना चाहिए वह नहीं मिल रहा. हां 1940-45 की तरह बंगाल में आए अकाल की तरह देश की सड़कों पर भूखों की कतारें नहीं लग रहीं और गरीब और किसान भी जो कैमरों की लपेटों में आ रहे हैं, खातेपीते दिख रहे हैं, पर यह कमाल इस सरकार का नहीं, यह बिजली, पानी, कपड़ा, मकान की नई तकनीकों का है.

जो पैसा गांवों में दिख रहा है और शहरों की गरीब बस्तियों में दिख रहा है उस का बड़ा हिस्सा उन मजदूरों का है जो विदेशों में काम कर रहे हैं. 90 लाख तो खाड़ी के देशों में ही हैं. 80 लाख दूसरे देशों में हैं. लगभग सवा करोड़ भारतीय मजदूर 80,00,00,00,000 डौलर तो बैंकों के जरीए भारत में भेजते हैं. विदेशों में वे कोई ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने नहीं गए हैं. जो 90 लाख खाड़ी के देशों में हैं वे तो मुसलिम मालिकों के पास काम कर रहे हैं.

हमारे नेता इन मुसलिम मालिकों के यहां लगभग गुलामी कर के भेजे पैसे पर देश में 8,000-8,000 करोड़ के हवाईजहाज खरीदते हैं ताकि वे एक जगह से दूसरी जगह आराम से जा सकें. इस पैसे के बल पर राम मंदिर बन रहा है. इन मुसलिम मालिकों के बल पर कमाए पैसे से चारधाम की सड़कें बन रही हैं.

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देश में हिंदूमुसलिम कर रहे नेता आम जनता को भड़का और बहका रहे हैं कि धर्म की रक्षा ही सब से बड़ा काम है. ये वे ही लोग है जिन्हें सिखों में खालिस्तानी ही नजर आते हैं. ये नेता वे हैं जो विदेशी संबंधों के नाम पर किसी को भी जेल में ठूंस देते हैं. पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी हो या मध्य प्रदेश अगर भाजपा सरकारों को गिराने में लगी है न कि विदेशों से आए मजदूरों के पैसे का सही इस्तेमाल करने में तो यह जमींदारी से भी बदतर काम होगा. रातदिन खट कर हमारे मजदूर देश में भी और विदेश में भी जो कमाते हैं वह उन के सुखों के लिए है, भगवानों की मूर्तियों के लिए नहीं.

यह ठीक है कि धर्म के दुकानदारों के जबरदस्त प्रचार की वजह से हर देशवासी आज धर्म को काम से ज्यादा इंर्पोटैंस देने लगा है पर यह अपने लिए खुद गड्ढा खोदना है. किसी न किसी दिन चारों ओर फेंकी गई मिट्टी ढहेगी ही और खोदने वाले दबे पाए जाएंगे.

आंदोलन दंगा और मीडियागीरी

26जनवरी, 2021 से पहले दिल्ली के बौर्डर पर कुहरे की तरह जमा दिखने वाला किसान आंदोलन भीतर ही भीतर उबलते दूध सा खौल रहा था. ऊपर आई मलाई के भीतर क्या खदक रहा था, यह किसी को अंदाजा तक नहीं था.

गणतंत्र दिवस पर एक तरफ जहां देश परेड में सेना की बढ़ती ताकत से रूबरू हो रहा था, वहीं दूसरी तरफ किसानों की ‘ट्रैक्टर परेड’ दिल्ली में हलचल मचाने को उतावली दिख रही थी.

इस के बाद जो दिल्ली में हुआ, वह दुनिया ने देखा. लालकिला, आईटीओ और समयपुर बादली पर किसान और पुलिस आमनेसामने थे. किसान संगठनों ने पुलिस और पुलिस ने किसानों में घुसे दंगाइयों पर इलजाम लगाया.

‘ट्रैक्टर परेड’ की हिंसा पर दिल्ली पुलिस ऐक्शन में दिखी. 33 मुकदमों में दंगा, हत्या का प्रयास और आपराधिक साजिश की धाराएं लगाई गईं. किसान नेता राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव और मेधा पाटकर समेत कई लोगों को नामजद किया गया.

इतना ही नहीं, दिल्ली पुलिस की स्पैशल सैल ने सिख फौर जस्टिस के खिलाफ यूएपीए और देशद्रोह की धाराओं में मामला दर्ज किया.

इस किसान आंदोलन से एक सवाल भी उठा कि अगर लोकतंत्र में किसी को भी शांति के साथ अपनी बात आंदोलन के जरीए रखने का हक है, तो सरकार उसे कैसे हैंडल करती है? यह भी देखने वाली बात होती है कि इस सब से जुड़ी खबरों को जनता के पास कैसे पहुंचाना है, इस में मीडिया की कितनी और कैसी जिम्मेदारी होनी चाहिए?

किसी आंदोलन को दंगे में बदलते ज्यादा देर नहीं लगती है, यह दुनिया ने 26 जनवरी को दिल्ली में देखा. इस में गलती किस की थी, यह तो आने वाले समय में सामने आ जाएगा, पर इस या इस से पहले हुए किसी भी दंगे को मीडिया ने कैसे कवर किया, इस पर भी ध्यान देना बड़ा जरूरी है, क्योंकि यह बड़ा ही संवेदनशील मामला जो होता है. जरा सी चूक हुई नहीं कि खुद मीडिया ही दंगे में आग में घी डालने का काम कर देता है.

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ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 28 जनवरी, 2021 को तबलीगी जमात मामले में हुई मीडिया रिपोर्टिंग पर केंद्र सरकार की खिंचाई कर दी थी. उस ने कहा था कि उकसाने वाले टैलीविजन प्रोग्राम रोकने के लिए सरकार कुछ भी कदम नहीं उठा रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने 26 जनवरी पर 3 कृषि कानूनों के विरोध में हुई हिंसा के बाद इंटरनैट सेवा बंद किए जाने के मामले का जिक्र करते हुए कहा था कि निष्पक्ष और ईमानदार रिपोर्टिंग करने की जरूरत है. समस्या तब पैदा होती है, जब इस का इस्तेमाल उकसाने के लिए किया जाता है.

याद रहे कि लौकडाउन के दौरान तबलीगी जमात के बारे में हुई मीडिया रिपोर्टिंग पर जमीअत उलेमा ए हिंद ने याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि कुछ टैलीविजन चैनलों ने निजामुद्दीन मरकज की घटना से जुड़ी फर्जी खबरें दिखाई थीं.

कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार से कहा था कि वह बताए कि आखिर इस तरह की खबरों से निबटने के लिए वह क्या कदम उठाएगी.

जब से दुनियाभर में सोशल मीडिया ने अपनी जड़ें जमाई हैं, तब से मोबाइल फोन के कैमरों से ऐसेऐसे सच सामने आए हैं, जिन को जनता के सामने पेश होना भी चाहिए या नहीं, यह एक बड़ा गंभीर सवाल है. अब तो ‘औफ द रिकौर्ड’ वाली बात ही खबर है, क्योंकि वह सनसनीखेज ज्यादा होती है. पर यह सनसनी समाज के सामने कैसे पेश करनी है, इस की जिम्मेदारी कोई लेने को तैयार नहीं है.

कुछ समय पीछे जाएं तो पता चलेगा कि तब अखबारों और पत्रिकाओं में लिखे हुए शब्दों को लोग बड़ी गंभीरता से लेते थे. किसी आंदोलन और दंगे के समय तो प्रैस की आचार संहिता का कड़ाई से पालन किया जाता था. दंगे में हुई हिंसा में शामिल और शिकार समुदाय की पहचान और तादाद नहीं बताई जाती थी.

पर आज जैसे ही इन बातों का खुलासा होता है कि फलां जगह हुई हिंसा में एक समुदाय ने दूसरे समुदाय को इतना नुकसान पंहुचाया, उस से लोगों में बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया होती है. इस से दंगा खत्म होने के बजाय बढ़ जाता है या बढ़ने के चांस होते हैं.

हालिया रिंकू शर्मा हत्याकांड में दिल्ली में 2 समुदायों के बीच नफरत फैलाने में सोशल मीडिया में तैरते वे वीडियो भी कम कुसूरवार नहीं हैं, जिन में इस हत्याकांड से जुड़े फुटेज थे. ऐसे फुटेज पुलिस को मामले की तह में जाने के लिए तो मददगार साबित होते हैं, पर जब वे वीडियो मीडिया दुनिया को दिखाता है तो बात गंभीर हो जाती है.

मामला तब और ज्यादा पेचीदा हो जाता है, जब मीडिया और सरकार का गठजोड़ हो जाता है. इस में मीडिया वालों के अपने निजी फायदे, धार्मिक पूर्वाग्रह और सांप्रदायिक पक्षपात बड़ी तेजी से काम करते हैं.

यह ‘गोदी मीडिया’ शब्द सब के सामने यों ही नहीं आया है. दिल्ली के शाहीन बाग में धरने पर बैठे लोगों ने खास सोच के टैलीविजन चैनलों को अपने पास फटकने नहीं दिया था, क्योंकि उन के मुताबिक वे चैनल सरकारी एजेंडा के मद्देनजर उन के धरने को कमजोर करने की साजिश कर रहे थे. यही सब हालिया चल रहे किसान आंदोलन में भी देखने को मिला है.

कठघरे में खबरची

किसी संवेदनशील खबर को कैसे जनता के सामने पेश करना है और उस से जुड़े फोटो या वीडियो को दिखाना भी है या नहीं, इस की सम झ किसी पत्रकार को तभी आ सकती है, जब उसे इस बात की ट्रेनिंग मिली हुई हो. सब से पहले खबर देने के चक्कर में बड़ेबड़े पत्रकार भी इन बातों की अनदेखी कर देते हैं. सब से बड़ा जुर्म तो सुनीसुनाई बातों के आधार पर खबर बना देना होता है.

अगर आप को 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुआ आतंकी हमला याद है, तो यहां यह बता देना बड़ा जरूरी है कि इस में हजारों लोगों की जान चली गई थी. इस के बावजूद सीएनएन, बीबीसी, फौक्स न्यूज और दूसरे बड़े मीडिया चैनलों ने इस घटना में मारे गए लोगों की क्षतविक्षत लाशों को नहीं दिखाया था.

भारत में ऐसी संवेदनशीलता की कमी दिखती है. न्यायमूर्ति पीबी सावंत (आप भारतीय प्रैस परिषद के अध्यक्ष रहे थे) ने 23 मार्च, 2002 के राष्ट्रीय सहारा अखबार के ‘हस्तक्षेप’ में ‘दंगा और मीडिया’ विषय पर अपने एक लेख में गुजरात दंगे पर लिखा था, ‘गुजरात के ताजा हालात में गुजराती के कई अखबारों ने ऐसी खबरें छापीं, जिन से कम होने के बदले दंगा और बढ़ता गया.’

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गोधरा की घटना के बाद अखबारों ने सरकार के साथ मिल कर हिंदू समुदाय की भावनाओं को भड़काने में मुख्य भूमिका निभाई. वहां के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘स्टार’ चैनल की आलोचना की, क्योंकि यह चैनल सरकारी मशीनरी की विफलता और दंगों में स्थानीय पुलिस की भागीदारी को बेनकाब कर रहा था. दूसरी ओर ‘आजतक’ की तारीफ की, क्योंकि यह चैनल जिस कंपनी का है, वह इस समय दक्षिणपंथी रु झान को प्रश्रय दे रही है.’

इलैक्ट्रौनिक मीडिया में तो टीआरपी में कैसे सब को पछाड़ना है, यह सोच हावी हो जाती है. बड़े पत्रकार भी इस बीमारी से अछूते नहीं हैं. ‘रिपब्लिक टीवी’ के एडिटर इन चीफ अरनब गोस्वामी पर टीवी रेटिंग एजेंसी बार्क के सीईओ रह चुके पार्थ दासगुप्ता ने इलजाम लगाया था कि फर्जी टीआरपी मामले में उन्हें 40 लाख रुपए की रिश्वत दी गई थी.

सब से खतरनाक हालात तब होते हैं, जब कोई केस कोर्ट में चल रहा हो, तब मीडिया अपना खुद का विश्लेषण, गवाही और नतीजा बता कर एक समानांतर केस चलाने लगे, जिस आम जनता खुद आरोपियों को कुसूरवार या बेकुसूर मानने लगे, तो इसे ‘मीडिया ट्रायल’ कहा जाता है.

फिल्म कलाकार सुशांत सिंह राजपूत के खुदकुशी मामले में यह ‘मीडिया ट्रायल’ अपनी हद पर दिखा था. इस के चलते किसी शख्स को होने वाले नुकसान को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लेते हुए कहा कि इस पर अंकुश लगाने की जरूरत है.

आपराधिक मामलों में मीडिया की रिपोर्टिंग को ले कर दिशानिर्देश जारी करने पर भी बड़ी अदालत ने विचार करने का फैसला लिया है.

चीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि किसी आपराधिक मामले में एफआईआर दर्ज की जाती है और आरोपियों को गिरफ्तार किया जाता है. पुलिस संवाददाता सम्मेलन कर आरोपियों को मीडिया के सामने पेश करती है. इस आधार पर मीडिया में आरोपियों के बारे में खबरें चलती हैं, लेकिन अगर बाद में आरोपी बेकुसूर साबित हो जाता है, तब तक  उस शख्स की साख पर बट्टा लग चुका होता है.

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इस तरह की खबरें मीडिया की विश्वसनीयता को कम करती हैं. अपने फायदे के लिए खबरों को गढ़ना, उन में मिर्चमसाला लगाना, आंदोलनकारी को दंगाई दिखाना ऐसा अपराध है, जो समाज को बांटता है, उस में नफरत के बीज बोता है और देश को उस अराजकता की तरफ धकेल देता है, जो हर तरफ जहर ही फैलाती है.

याद रखिए कि मीडिया का काम समाज की त्रुटियों और विसंगतियों को जनता के सामने पेश करना होता है, पर उसे वक्त की नजाकत को भांप कर रिपोर्टिंग करनी चाहिए. सच को पेश करना भी एक कला है, जिस में पत्रकार की निडरता के साथसाथ उस की निष्पक्षता का तालमेल होना बहुत  जरूरी है. कम से कम संवेदनशील मामलों में तो इस बात का खास खयाल रखना चाहिए.

रश्मि देसाई का बोल्ड अंदाज देखकर बोले फैंस, Siddharth Shukla को बहुत पसंद आएगी ये फोटो!

छोटे पर्दे की फेमस एक्ट्रेस रश्मि देसाई (Rashami Desai)  इन दिनों अपनी ग्‍लैमरस लुक्‍स की वजह से चर्चा में बनी हुई है. आए दिन वह अपनी फोटोज और वीडियो सोशल मीडिया पर फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं. और फैंस को भी बेसब्री से एक्ट्रेस के पोस्ट का इंतजार रहता है.

अब उन्होंने येलो ड्रेस में अपनी फोटो सोशल मीडिया पर शेयर की है और फैंस को Women’s Day विश किया है. यह फोटो फैंस के बीच जमकर वायरल हो रहा है. और एक्ट्रेस की इस फोटो को खूब पसंद किया जा रहा है.

 

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इस तस्वीर में आप देख सकते हैं कि वह व्हाइट कोट में दिख रही है. डीप नेक कोट में उनकी अदाएं फैंस को बेताब कर रही है. साथ ही उन्होंने व्हाइट कलर का नेट स्कर्ट पहना हुआ है. फैंस को उनका ये लुक काफी पसंद आ रहा है.

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एक यूजर ने इस पोस्ट पर लिखा है कि सिद्धार्थ को बहुत पसंद आएगी ये फोटो. तो वहीं दूसरे यूजर ने लिखा, हॉट. इससे पहले रश्मि देसाई ने येलो कलर की स्‍ट्रीप्‍ड ड्रेस में अपनी तसवीरें शेयर की थी.

 

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वर्कफ्रंट की बात करे तो एक्ट्रेस ‘दिल से दिल तक’ सीरियल में नजर आईं थी जिसमें सिद्धार्थ शुक्ला संग उनकी जोड़ी को खूब पसंद किया गया था. उन्‍होंने नागिन 4 में भी अपनी एक्टिंग से फैंस का दिल जीतने में कामयाब रहीं.

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फिल्म एक्ट्रेस से शादी करेंगे Jasprit Bumrah, जानें कौन हैं ये

भारतीय क्रिकेट टीम के तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह (Jasprit Bumrah) इन दिनों सुर्खियों में छाये हुए हैं. खबर यह आ रही है कि  जसप्रीत बुमराह जल्द ही शादी के बंधन में बंधने वाले हैं. जी हां, सही सुना आपने.

हालांकि जसप्रीत बुमराह ने अभी तक इन खबरों पर कोई बयान नहीं दिया है लेकिन मिली जानकारी के अनुसार वह इसी हफ्ते स्पोर्ट ऐंकर संजना गणेशन (Sanjana Ganesan) के साथ 7 फेरे लेंगे.

 

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दरअसल बीसीसीआई के स्टेटमेंट के अनुसार, जसप्रीत बुमराह ने बीसीसीआई से चौथे टेस्ट मैच से पहले छुट्टी मांगी है. बताया जा रहा है कि जसप्रीत ने निजी कारणों के चलते इस छुट्टी की मांग की है. स्टेटमेंट के अनुसार जसप्रीत बुमराह की छुट्टी पास कर दी गई हैं और वो इंग्लैंड के खिलाफ चौथे टेस्ट मैच में नहीं खेलेंगे.

खबरों की माने तो जसप्रीत बुमराह ने ये छुट्टियां संजना गणेशन के साथ शादी के लिए ही ली हैं. बताया जा रहा है कि जसप्रीत बुमराह 14-15 मार्च के बीच संजना गणेशन के साथ गोवा में सात फेरे लेंगे.

 

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रिपोर्ट के अनुसार दोनों की शादी की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. संजना गणेशन एक जानी-मानी स्पोर्ट्स प्रेजेंटर हैं. बता दें कि इससे पहले ये भी खबर आई थी कि बुमराह दक्षिण भारतीय अभिनेत्री अनुपमा परमेश्वरन से शादी करने वाले हैं. लेकिन अनुपमा की मां ने मीडिया से बातचीत करते हुए इस बात को इनकार कर दिया था.

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