Serial Story- काश: भाग 2

रामशरण जी को अपनी सरकारी नौकरी के वे दिन याद आ गए जब उन के औफिस में आने वाला हर व्यक्ति उस महकमे के लिए शिकार समझा जाता था. जिसे काटना और आर्थिकरूप से निचोड़ना हर सरकारी कर्मचारी का प्रथम कर्तव्य था. दूसरों की क्या बातें करें, स्वयं

रामशरण जी प्रत्येक किए जाने वाले कार्य का दाम लगाया करते थे बिना यह जानेसमझे कि सामने वाला किस आर्थिक परिस्थिति का है, उस का कार्य समय पर न किए जाने की दशा में उस का कितना नुकसान हो सकता है.

सरकार की तरफ से मिलने वाला वेतन तो उन के लिए औफिस बेअरिंग चार्जेज जैसा ही था. बाकी जिस को जैसा कार्य करवाना हो उस के अनुसार भुगतान करना आवश्यक होता था.

रामशरण जी के औफिस का अपना नियम था- ‘देदे कर अपना काम करवाएं, न दे कर अपनी बेइज्जती करवाएं.’ और इसी नारे वाले सिद्धांत के तहत काम कर के उन्होंने वसूले गए पैसों से शहर में 5 आलीशान प्रौपर्टीज बना रखी हैं जिन का किराया ही लाखों रुपए में आता है और मिलने वाली पैंशन ज्यों की त्यों बैंक में जमा रहती है.

‘शाबाश बेटा. अपने सिद्धांतों पर सदा कायम रहो,’ रामशरण जी के मुंह से अचानक ही आशीर्वचन फूट पड़े. लेकिन मन ही मन कह रहे थे शादी होने के बाद बढ़ती जरूरतों के आगे सब सिद्धांत धरे के धरे रह जाएंगे.

टीटीई अगले कोच में चला गया और रामशरण जी अपनी बर्थ पर सो गए.

सुबह करीब 10 बजे रामशरण जी अपने गंतव्य स्थल पर पहुंच गए. अभी अपनी बर्थ से उठने का उपक्रम कर ही रहे थे कि लगभग 40 साल का व्यक्ति उन के सामने आ खड़ा हुआ.

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‘सर, आप रामशरण जी हैं?’ उस व्यक्ति ने नम्रता से पूछा.

‘जी, हां, मैं रामशरण ही हूं,’ उन्होंने जवाब दिया.

‘मैं ईरिकशा का ड्राइवर रहमत खान हूं. आप को आप की कैब एट जीरो एट जीरो तक छोड़ने के लिए निर्देशित किया गया हूं,’ वह व्यक्ति बोला.

‘लेकिन मैं ने तो ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया. खैर, बाहर तो जाना ही है, सो चलते हैं. कितने चार्जेज लेंगे आप?’ रामशरण जी ने पूछा.

‘आप जैसे बुजुर्गों के अनुभवों का लाभ उठाने और आशीर्वाद पाने के लिए यह सेवा मुफ्त है,’ रहमत खान बोला.

‘क्या बुजुर्गों का इतना सम्मान?’ रामशरण जी आश्चर्य से बोले. बोलने के साथ ही उन्हें यह भी याद आ गया कि एक बार उन के दफ्तर में एक बुजुर्ग किसी छोटे से काम के लिए आ गए थे. यद्यपि काम छोटा सा ही था और रामशरण जी चाहते तो उसे मिनटों में कर देते. लेकिन समस्या, बस, इतनी सी थी कि उसूले के पक्के उस बुजुर्ग ने ऊपर से ‘कुछ’ देने से इनकार कर दिया था. रामशरण जी ने तब उसे इतना परेशान कर दिया था कि भूख के मारे वह बूढ़ा गश खा कर गिर पड़ा था. बौस के हस्तक्षेप के बाद रामशरण जी को उस खूसट का काम मुफ्त

में करना पड़ा था.

‘जी, हां, आप तो हमारे देश कि धरोहर हैं. आप के अनुभवों से ही तो शिक्षा ग्रहण कर हमें आगे बढ़ना है,’ रहमत खान रिकशा चलाते हुए बोला, ‘लीजिए यह रही आप की टैक्सी कैब एट जीरो एट जीरो.’

‘इतनी भीड़ में से प्लेटफौर्म नंबर 5 से पार कर के यहां टैक्सी तक आना सचमुच एक दुष्कर कार्य था. आप का बहुतबहुत धन्यवाद. यह रहा आपका ईनाम,’ कहते हुए रामशरण जी ने ड्राइवर की तरफ 50 रुपए का एक नोट बढ़ा दिया.

‘जी धन्यवाद, मगर मैं इस तरह के ईनाम या बख्शिश को स्वीकार नहीं कर सकता. मैं अपनी कमाई से सुखी जीवन व्यतीत कर रह हूं. मुझे मेरी मेहनत का पर्याप्त पैसा मेरे नियोक्ता द्वारा दिया जा रहा है. वैसे भी, आप जो दे रहे हैं उसे साधारण भाषा में रिश्वत कहते है और उस का आधुनिक भारत में कोई स्थान नहीं है,’ ड्राइवर रहमत खान मुसकराते हुए बोला.

टीटीई के बाद एक छोटे से ड्राइवर की ईमानदारी ने रामशरण जी को सोचने पर विवश कर दिया. उन के लिए यह अनुभव बहुत ही शर्मिंदगीभरा था.

‘क्या यह टैक्सी एट जीरो एट जीरो भी फ्री है?’ रामशरण जी ने अचकचाते हुए रिकशा के ड्राइवर से पूछा.

‘जी, नहीं. मगर इस में आप को सिर्फ 30 फीसदी किराया ही देना होगा,’ रिकशा के ड्राइवर ने बतलाया.

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‘क्या आप ही रामशरण जी हैं?’ कैब के ड्राइवर ने टैक्सी का दरवाज़ा खोलते हुए पूछा.

‘जी, हां, मैं ही रामशरण हूं,’ जवाब में रामशरण जी ने बोला.

‘कृपया अपना आधारकार्ड दे दीजिए. उसे सिस्टम में अपडेट करना आवश्यक है,’ ड्राइवर बोला. डिटेल्स फीड होते ही कैब अपनी रफ़्तार से चल पड़ी. लगभग डेढ़ घंटे चलने के बाद कैब अपने गंतव्य स्थान पर थी. फेयर मीटर 930 रुपए का चार्ज बतला रहा था.

‘कितने पैसे हुए, भैया?’ रामशरण जी ने पूछा यद्यपि वे जानते थे कि उन्हें 30 फीसदी के हिसाब से 310 रुपए ही देना है.

‘279 रुपए, सर,’ कैब ड्राइवर कैलकुलेशन करने के बाद बोला.

‘अरे भैया, ठीक से कैलकुलेशन करो. 930 का थर्टी परसैंट 310 होता है, न कि 279. अपना नुकसान क्यों कर रहे हैं? आप को जेब से भरना पड़ेगा,’ रामशरण जी ने कहा.

‘जी, आप जैसे बाहर से आए हुए बुजुर्गों के लिए कैब कंपनी ने कुल बिल का 10 परसैंट डिस्काउंट औफर भी दिया हुआ है. सो 310 का 10 परसैंट 279 ही हुआ ना,’ कैब ड्राइवर मुसकराकर समझाता हुआ बोला.

‘अच्छा, अच्छा. यह लो 300 रुपए और बचे हुए पैसे अपने पास रख लो,’ रामशरण जी बोले.

Serial Story- काश: भाग 3

‘अरे जनाब, कमाल की बातें करते हैं आप. जिन पैसों पर मेरा हक नहीं, उन्हें कैसे ले लूं? क्या आप मेरे ईमान का इम्तिहान ले रहे हैं? कुदरत का करम है साहब हम पर. हमें अपनी मेहनत के अलावा नया पैसा भी नहीं चाहिए.’ स्पष्ट था कि कैब का ड्राइवर ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था,

मगर फालतू पैसे लेना उसे गवारा नहीं था.

‘लीजिए साहब, यह आप के  21 रुपए. यदि पैसा देना ही है तो किसी मांगने वाले फ़कीर को दे दीजिए,’ ड्राइवर पैसे वापस करता हुआ बोला.

रामशरण जी का यह लगातार 3 विभिन्न स्तर के व्यक्तियों द्वारा किया गया अपमान था.

इतनी ईमानदारी व खुद्दारी कि बातें सुन कर रामशरण जी को ऐसा लगा मानो वे भारत में नहीं, किसी और देश में आ गए हैं. वर्ष दो हज़ार पचास (2050) का भारत इतना ईमानदार, खुद्दार. भ्रष्टाचार जैसे शब्दों से कोसों दूर. उन्हें तो यह विश्वास ही नहीं हो रहा था.

इस भारत पर रामशरण जी मन ही मन गर्व कर रहे थे. साथ ही साथ, वे अपनेआप को धिक्कार रहे थे अपने द्वारा किए गए भ्रष्टाचारों के लिए. वे सोच में पड़ गए..काश, स्वयं उन्होंने भी इन युवाओं की भांति राष्ट्रहित को व्यक्तिगत हितों के ऊपर रखा होता तो देश मीलों आगे होता.

मगर इतना बदलाव हुआ कैसे? 2020 में ही तो उन्होंने रिटायरमैंट लिया है. 70 सालों में जो देश भ्रष्टाचार को ख़त्म नहीं कर पाया था, मात्र 30 सालों में भारत इतना परिवर्तित कैसे हो गया? रामशरण जी इस बदलाव का कारण जानने के लिए अतिउत्सुक थे.

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मृतक के अंतिम संस्कार के बाद सभी लोग हौल में बैठे हुए थे. माहौल थोड़ा हलका हो गया था. अपनी उम्र के लोगों के बीच बैठे रामशरण जी ने अपने साथ घटित हुई तीनों घटनाएं सुनाईं.

‘इस में आश्चर्य की क्या बात, अंकल जी. यह तो भारतवर्ष का पुनर्निर्माण चल रहा है. अब इस युवा पीढ़ी ने ठान लिया है कि भ्रष्टाचार नाम का शब्द हमारे शब्दकोष से हटाना ही है. इस भ्रष्टाचार के कारण न सिर्फ अपनों में, बल्कि अजनबियों और अंजानों में भी हमें नीचा देखना

पड़ा है,’ पास ही बैठा एक युवक बोल पड़ा जो इन लोगों की बातें सुन रहा था.

‘मगर यह हो किस की प्रेरणा से रहा है और इस के पीछे कारण क्या हैं?’ रामशरण जी ने कुतूहल से पूछा.

‘इस के पीछे किसी व्यक्तिविशेष की प्रेरणा नहीं है. बस, सब लोग अपने आत्मबल की प्रेरणा से अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए यह कार्य कर रहे है. विदेशियों द्वारा दिया गया भ्रष्ट भारतीय का तमगा इस युवा पीढ़ी को नागवार और अपमानित गुजरा. शायद यही कारण है

कि यहां के लोगों ने रिश्वत, नज़राना, उपहार, ईनाम और बख्शिश जैसे नामों से मिलने वाले पैसों का बहिष्कार पूरी नम्रता के साथ कर दिया है.

‘नई शिक्षा प्रणाली का भी इस में बड़ा योगदान है. आप लोगों के समय में आप लोग हमारे पिछले शासकों की वीरता, अंगरेजों से गुलामी मुक्ति की गाथा, सभ्यता का विकास और प्रेरणाशून्य कहानियां व कविताएं पढ़ा करते थे.

‘नई शिक्षा प्रणाली में पहली कक्षा से ही यह बतलाना शुरू कर दिया जाता है कि भ्रष्टाचार क्या है. भ्रष्टाचार के प्रकार और रूप क्याक्या हैं. भ्रष्टाचार से हमारे देश को क्याक्या नुकसान हैं. इस के कारण से हम प्रगति की रफ़्तार में किस सीमा तक पिछड़ रहे हैं. भ्रष्टाचार करने के बाद पकड़े गए लोगों को दी गई कड़ी सजा का भी पूरे विस्तार से वर्णन किया गया है.

‘इन कहानियों में भ्रष्टाचारियों को मिली सामजिक प्रताड़ना का जिक्र भी किया गया है तथा यह भी सुझाया गया है कि भ्रष्टाचारियों को आजीवन सामाजिक पृथक्करण जैसी सजाएं भी दी जानी चाहिए. इस तरह की कहानियों का आज की युवा पीढ़ी के बाल मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा है और उसी परिवर्तन को आप देख व महसूस कर रहे हैं.

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‘यही नहीं, ईश्वर क्या है? एक अनजाना, अज्ञात भय ही न? नई शिक्षा प्रणाली में भ्रष्टाचार के प्रति एक अनजाना भय पैदा करने कि सफल कोशिश भी की गई है ताकि लोग भ्रष्टाचार को दूर से ही सलाम करें,’ युवक ने एक ही सांस में अपनी पूरी बात कह दी.

‘काश, हमारे समय में भी शिक्षा प्रणाली ने इस तरह के परिवर्तन स्वीकार किए होते, तो शायद आज भारत की तसवीर भी बेदाग़ और साफ़ छवि वाली होती. हम लोग भी इस दलदल से मुक्त होते. भारत की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति कहीं और अधिक सुदृढ़

होती,’ रामशरण जी बोल उठे.

“अजी, सुबह के 7 बज गए हैं, आज औफिस जाने का मूड नहीं है क्या?” पत्नी उन के चेहरे से कम्बल हटाती हुई बोली.

‘ओह, तो यह एक सपना था,’ रामशरण जी बुदबुदाए.

कहते हैं, सुबह का सपना सच होता है. काश, यह सपना भी सच हो जाए. काश, हमारी शिक्षा प्रणाली में इस तरह के सकारात्मक परिवर्तन आ जाएं. रही बात मेरी स्वयं की, तो मैं स्वयं किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार न करने और अपने काम को पूरी ईमानदारी से करने की कसम खाता हूं.

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रामशरण जी ने मन ही मन प्रण किया और एक झटके में बिस्तर से बाहर आ गए.

काश…

भोजपुरी सिनेमा को दिलाई पहचान: बृजेश त्रिपाठी

भोजपुरी सिनेमा के शुरुआती दौर से जुड़े कलाकारों की जब भी बात आती है, तो उन में सब से ऊपर एक ही नाम आता है और वे हैं भोजपुरी के सब से सीनियर कलाकार बृजेश त्रिपाठी. वे भोजपुरी सिनेमा से उस दौर से जुड़े हुए हैं, जब भोजपुरी में गिनीचुनी फिल्में ही बनती थीं.

भोजपुरी सिनेमा के उस दौर से लेकर आज तक बृजेश त्रिपाठी ने सैकड़ों फिल्मों में काम कर के चरित्र कलाकार और खलनायक के रूप में अपनी अलग ही पहचान बनाई है. उन के बिना भोजपुरी की फिल्में अधूरी सी लगती हैं.

ऐसी थी शुरुआत

‘भोजपुरी के गौडफादर’ कहे जाने वाले बृजेश त्रिपाठी ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत 11 सितंबर, 1978 को हिंदी फिल्म ‘टैक्सी चोर’ से की थी, जिस में लीड रोल में मिथुन चक्रवती थे और हीरोइन थीं जरीना वहाब.

यह फिल्म साल 1980 में 29 अगस्त को रिलीज की गई थी. इस फिल्म में उन के रोल को इतना ज्यादा पसंद किया गया था कि उन्हें इस के बाद राज बब्बर के साथ दूसरी फिल्म में काम करने का मौका मिल गया था, जिस का नाम था ‘पांचवीं मंजिल’. इस फिल्म में भी जरीना वहाब ही हीरोइन थीं.

इस के बाद तो बृजेश त्रिपाठी सिनेमा के हो कर रह गए. इस दौरान उन्हें हिंदी के धारावाहिकों और फिल्मों में काम करने का मौका मिला, लेकिन उन की सही पहचान भोजपुरी फिल्मों से हुई. उन दिनों पद्मा खन्ना भोजपुरी की बहुत बड़ी हीरोइन हुआ करती थीं. उन के सैक्रेटरी शुभकरण अग्रवाल बृजेश त्रिपाठी के बहुत अच्छे दोस्त थे.

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उन्होंने बृजेश त्रिपाठी को साल 1979 में पहली भोजपुरी फिल्म ‘सइयां तोहरे कारन’ में काम दिलाया था, जिस में राकेश पांडेय हीरो थे और पद्मा खन्ना हीरोइन थीं. इस फिल्म में बृजेश त्रिपाठी ने एक बिगड़ैल लड़के का रोल किया था.

इस फिल्म के बाद बृजेश त्रिपाठी की हीरो राकेश पांडेय के साथ अच्छी दोस्ती हो गई थी. राकेश पांडेय ने जब साल 1982 में एक फिल्म बनाई थी, तो उस में बृजेश त्रिपाठी को मेन विलेन का रोल दिया गया था. उस फिल्म में पद्मा खन्ना और प्रेमा नारायण मुख्य भूमिकाओं में नजर आई थीं. इस के बाद उन का भोजपुरी फिल्मों  में ऐक्टिंग का कारवां आगे बढ़ा तो बढ़ता ही गया और वे भोजपुरी की कई कामयाब फिल्मों में मेन विलेन के रूप में नजर आए.

रवि किशन को लाए

बृजेश त्रिपाठी भोजपुरी के ऐसे चेहरे के रूप में स्थापित होने लगे थे, जो भोजपुरी के बड़े कलाकारों की इमेज पर भी भारी पड़ रहे थे. इस की खास वजह यह थी कि 90 के दशक में जब भोजपुरी की फिल्में बननी बंद हो गई थीं या कह लिया जाए कि इक्कादुक्का फिल्में ही बनती थीं, तब इस दौरान के सन्नाटे को तोड़ने के लिए भोजपुरी के बड़े डायरैक्टर मोहन जी. प्रसाद ने उन के सामने भोजपुरी और बंगला भाषा में एक फिल्म का औफर रखा. उन्होंने इस फिल्म का हीरो चुनने की जिम्मेदारी भी बृजेश त्रिपाठी के ऊपर छोड़ दी थी.

बृजेश त्रिपाठी ने उस समय रवि किशन को इस फिल्म में बतौर हीरो लिए जाने की सलाह दी, जो मोहन जी. प्रसाद को पसंद आ गई और आखिरकार भोजपुरी के तीसरे दौर की पहली कामयाब फिल्म ‘सईयां हमार’ में रवि किशन को बतौर लीड हीरो के रूप में काम करने का मौका मिल ही गया.

इस फिल्म में उदित नारायण और कुमार सानू ने गीत गए थे. गीत विनय बिहारी ने लिखे थे.

इस फिल्म ने कामयाबी का नया इतिहास रच दिया था. यहीं से भोजपुरी फिल्मों के बनने का नया दौर चल पड़ा और लगातार 14 कामयाब फिल्मों में रवि किशन हीरो और बृजेश त्रिपाठी विलेन रहे.

बढ़ती गई पहचान

बृजेश त्रिपाठी 2000 के दशक में भोजपुरी के बड़े विलेन के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे, लेकिन धीरेधीरे उम्र बढ़ने के साथसाथ विलेन के रूप में ऐक्शन फिल्मों को करने में कुछ मुश्किलें आने लगीं तो उन्होंने इमोशनल के साथ ही सीरियस और कैरेक्टर रोल भी करने का फैसला लिया और इस की शुरुआत उन्होंने मनोज तिवारी के साथ भोजपुरी फिल्म ‘धरतीपुत्र’ से की. यह फिल्म भी हिट साबित हुई.

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फिर क्या था, वे अपनी विलेन वाले इमेज से निकल कर एक और भोजपुरी फिल्म ‘पूरब’ में भी सीरियस रोल में नजर आए, जिस में उन के रोल को काफी सराहा गया.

इस के बाद तो भोजपुरी की ज्यादातर फिल्में बृजेश त्रिपाठी के साथ ही बनीं.

आज वे भोजपुरी सिनेमा के सब से उम्रदराज कलाकारों में शुमार हैं, इस के बावजूद उन का शैड्यूल इतना बिजी रहता है कि एक फिल्म खत्म होते ही उन की दूसरी फिल्म शुरू हो जाती है.

Serial Story- काश: भाग 1

रात के डेढ़ बज रहे थे. ट्रेन प्लेटफौर्म पर रुकी. 80-वर्षीय रामशरण जी सामने आए रिजर्वेशन कोच में चढ़ गए. उन के जाने का प्रोग्राम अचानक बना है और जाना अत्यंत जरूरी भी है. सो, वे बिना रिजर्वेशन के ही उस कोच में घुस गए थे.

उन्हें पूरा यकीन था कि अभी टीटीई आ कर उन्हें दसबीस खरीखोटी सुनाएगा और फिर जुर्माने का डर दिखला कर बिना रसीद दिए ही किसी सीट को एहसान के साथ अलौट कर देगा.

जिस कोच में रामशरण जी चढ़े थे, संयोग से उस मे उन्हें सामने वाली ही सीट खली दिखाई पड़ गई और वे उस पर जा कर बैठ गए. ट्रेन अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ गई. अभी कुछ मिनट ही गुजरे थे कि सामने टीटीई आ कर खड़ा हो गया. टीटीई तकरीबन 27-28 साल का नवयुवक था.

‘आप अपना टिकट दिखलाएंगे, अंकल,’ टीटीई बोला.

‘जी, यह देखिए मेरा टिकट. यह सामान्य श्रेणी का है. मेरे जाने का प्रोग्राम एकदम आकस्मिक बना, इसी कारण रिजर्वेशन नहीं करवा पाया. कृपया कोई बर्थ हो तो दे दीजिए,’ रामशरण जी अनुरोध करते हुए बोले.

‘क्या मैं आप के इस आकस्मिक कारण को जान सकता हूं?’ टीटीई के स्वर में अभी भी नरमी थी और रामशरण जी इस नरमी के मर्म को अच्छे से जानते थे. इस नरमी की आड़ में तगड़े पैसे खींचने की साजिश को भी वे अच्छे से जानते थे. वे स्वयं भी किसी ज़माने में सरकारी

अधिकारी रह चुके थे, सो, इन पैतरों को भलीभांति जानते थे.

‘जी, मेरे ताऊ जी के हमउम्र पुत्र का निधन हो गया है. वह मेरे काफी करीब था. इसी समाचार के कारण मुझे तुरंत निकलना पड़ा. चूंकि वह मेरी पीढ़ी का था, इसी कारण नई पीढ़ी के लोगों से उस का संपर्क नहीं के बराबर था. हम साथ खेलेबढे हुए हैं, सो, मैं ने स्वयं जाने का निर्णय

लिया. आप मुझे जो भी बर्थ उपलब्ध हो, दे दीजिए. जैसा भी कुछ होगा, हम एडजस्ट कर लेंगे,’ रामशरण जी संकेतों के माध्यम से अपने मंतव्य को समझाते हुए बोले.

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‘इस संदर्भ में क्या आप कोई प्रमाण प्रस्तुत कर सकते हैं?’ टीटीई ने प्रश्न किया.

‘जी, यह देखिए मेरे मोबाइल पर यह व्हाट्सऐप मैसेज. यह मुझे रात को 9 बजे मिला है,’ रामशरण जी अपना मोबाइल दिखाते हुए बोले.

‘जी, ठीक है,’ मैसेज चैक करते हुए टीटीई बोला.

‘क्या कुछ संभावनाए है बर्थ मिलने की?’ रामशरण जी ने आशाभरे स्वर में पूछा.

‘जी, निश्चिततौर पर आप को बर्थ मिल जाएगी. मैं एडजस्टमैंट देख कर आता हूं,’ कह कर टीटीई अगले कोच की तरफ बढ़ गया.

रामशरण जी की घनी सफ़ेद मूछों के बीच हलकी सी मुसकराहट फ़ैल गई. उन्हें गवर्नमैंट सर्विस से रिटायर हुए 20 वर्ष से अधिक गुजर चुके हैं मगर शिकार को फांसने के तरीके अभी भी वही सदियों पुराने ही हैं. नम्रता और शिष्टाचार जिस शब्द एडजस्टमैंट के नीचे दबे हुए  उस का प्रयोग टीटीई महोदय बड़ी चालाकी से कर के निकल गए हैं.

अभी 5-6 मिनट ही गुजरे थे कि वही टीटीई सामने से आता हुआ दिखाई दिया. उस का रटारटाया उत्तर रामशरण जी जानते थे. उन्हें पता था वह कहेगा बड़ी मुश्किल से एक बर्थ का जुगाड़ हुआ है. और अलौटमैंट के नाम पर टिकट चार्जेज के अलावा 5-6 सौ या कुछ और ज्यादा रुपए मांगेगा यह एहसास दिलाते हुए कि वह गलत कोच में चढ़ने का जुरमाना उन से नहीं ले रहा है.

‘अंकल जी, आप एस वन औब्लिग ओ कोच की 4 नंबर बर्थ पर चले जाइए,’ टीटीई ने रामशरण जी के पास आ कर नम्रता से कहा.

‘एस वन औब्लिग ओ? यह कौन सा कोच है? इस तरह का कोच तो मैं पहली बार सुन रहा हूं,’ रामशरण जी कुछ अविश्वसनीयता से बोले.

‘आधा कोच बुजुर्गों के लिए आरक्षित रहता है उस कोच में, इसी कारण उस में औब्लिग ओ का प्रयोग किया गया है. ओ का मतलब ओल्ड एज से है,’ टीटीई बोला, ‘यह हिस्सा यात्रा कर रहे उन बुजुर्गों के लिए है जोकि अकेले यात्रा कर रहे हैं. परिवार या पार्टी के साथ सफर कर रहे लोगों को उस में जगह नहीं दी जाती है.’

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‘ओह, रिटायरमैंट के बाद तो मैं ने अकेले सफर कभी किया ही नहीं. इसी कारण मुझे इस संदर्भ में कुछ भी मालूम नहीं,’ रामशरण जी झेंपते हुए बोले, ‘कितनी दूर है यह कोच?’

‘यहां से 5वां कोच है. चलिए, मैं आप को छोड़ देता हूं,’ टीटीई उसी नम्र अंदाज में बोला.

‘अरे, आप क्यों तकलीफ करते हैं. मैं खुद ही धीरेधीरे चला जाऊंगा,’ रामशरण जी बोले. वे यह भी जानते थे कि टीटीई कि नम्रता का अर्थ ईद के ठीक पहले काटे जाने वाले बकरे सा ही है.

‘इस में तकलीफ कैसी? यह मेरी ड्यूटी का एक हिस्सा ही है. आप को निर्धारित बर्थ तक पहुंचा कर मुझे ख़ुशी ही होगी,’ टीटीई धीमे से बोला.

रामशरण जी आश्चर्यचकित थे. इस युवा के विनम्रतापूर्वक भ्रष्टाचार कि रूपरेखा बनाने के. वरना उन के रिटायरमैंट के समय तो ‘पार्टी’ से पैसा भी लिया जाता था तो पूरी दबंगई के साथ. वहीं ‘पार्टी’ को दोचार गालियां उपहारस्वरूप दी जाती थीं अलग से.

नए कोच में जाते समय टीटीई रास्ते में रामशरण जी के परिवार के बारे में तथा मरने वाले व्यक्ति से संबंधों के बारे में विस्तार से पूछता रहा.

‘लीजिए अंकल जी, आप की बर्थ आ गई. आप आराम से लेटिए. कोई आप को डिस्टर्ब नहीं करेगा. और हां, उतरने के बाद आप को लेने कोई स्टेशन पर आएगा क्या?’

‘जी धन्यवाद. ऐसे माहौल में मुझे नहीं लगता कि कोई रिसीव करने के लिए आ पाएगा. वैसे भी, मैं ने अपने आने की सूचना किसी को दी ही नहीं है,’ रामशरण जी बोले.

‘यदि आप चाहें तो आप के लिए टैक्सी बुक की जा सकती है,’ टीटीई ने कहा.

ओह, तो अब इन लोगों का पेट सिर्फ टिकट के ऊपरी पैसों से नहीं भरता. टैक्सी तक में अपना कमीशन फिक्स कर लिया है. लेकिन टैक्सी की तो जरूरत पड़ेगी ही. सो, क्यों न टीटीई के माध्यम से ही करवा ली जाए ताकि इस पर भी कुछ एहसान रहे. यही सब सोच कर रामशरण जी बोले, ‘जी हां, करवा दीजिए.’

‘लीजिए आप की टैक्सी भी बुक हो गई है. आप को स्टेशन से बाहर निकलते ही ग्रीन लेन में टैक्सी नंबर एट जीरो एट जीरो में बैठना है,’ टीटीई की नम्रता की भाषा अभी भी कायम थी.

‘थैंक्यू बेटा,’ कह कर रामशरण जी ने टीटीई का कंधा थपथपा दिया. उन्हें आशा थी कि अब जाते समय वह अपना मुंह फाड़ेगा.

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‘कोई बात नहीं, अंकल. इट इज अ पार्ट औफ़ माय ड्यूटी,’ कह कर टीटीई ने अपने हाथ जोड़ लिए और वंहा से जाने लगा.

‘बेटा, कितने पैसे हुए तुम्हारे?’ बढ़ी हुई धड़कन के साथ आखिरकार रामशरण जी ने ही पूछ लिया.

‘किसी तरह के कोई पैसों कि आवश्यकता नहीं है,’ टीटीई एक बार फिर हाथ जोड़ कर बोला.

‘क्या, क्यों…’ रामशरण जी ने आश्चर्य से पूछा.

‘क्योंकि जिस कोच में आप बैठे हैं इस में से 10 बर्थ आपजैसे अकेले व आकस्मिकरूप से यात्रा करने वालों के लिए आरक्षित हैं. आपने जो टिकट लिया है उस में यह सब एडजस्ट हो चुका है,’ टीटीई ने बताया.

‘क्या… मगर वह तो साधारण दर्जे का था,’ रामशरण जी बोले.

‘जी, यह योजना पिछले 2 सालों से चल रही है. आपजैसे बुजुर्गों को जिन्हें कहीं आकस्मिक कारणों से जाना पड़ता है उन्हें साधारण दर्जे के किराए में मुफ्त सुरक्षित यात्रा रेलवे द्वारा करवाई जाती है,’ टीटीई ने विवरण दिया.

‘मगर इस यात्रा के वास्तविक कारणों का निर्धारण होता कैसे है?’ रामशरण जी ने उत्सुकता से पूछा.

‘आप के कारण की जांच आप के मोबाइल मैसेज द्वारा की गई है. इसी तरह हौस्पिटल की पर्ची या अन्य कोई भी प्रामाणिक प्रमाण जो मान्य हो के द्वारा कारण का निर्धारण होता है. यहां पर यह बतलाना आवश्यक है कि यह सुविधा सिर्फ अकेले व आकस्मिक कारणों से यात्रा करने वाले बुजुर्गों के लिए ही है. परिवार या पार्टी या ग्रुप में जा रहे लोगों के लिए नहीं,’ टीटीई ने बतलाया.

‘यह तो बड़ी ख़ुशी की बात है कि सरकार बुजुर्गों को इतना महत्त्व दे रही है,’ रामशरण जी खुश होते हुए बोले, ‘मगर इस तरह से बर्थ अलौट करते समय तुम मुझ से कुछ अतिरिक्त पैसे ले सकते थे. यह कुछ गलत भी नहीं है. सेवाशुल्क लेना तो आप का अधिकार बनता है.’ यह कहते हुए रामशरण जी ने 500 रुपए का नोट टीटीई की तरफ बढ़ाया.

‘जी धन्यवाद. मैं इसे ले नहीं सकता. मैं ने अपनी तरफ से कोई अतिरिक्त सुविधा आप को नहीं दी है. आप के आशीर्वाद से सरकार की तरफ से मुझे इतनी सैलरी मिल ही जाती है कि मुझे किसी तरह की बेईमानी नहीं करनी पड़ती है,’ टीटीई हाथ जोड़ कर नम्रता से बोला.

भोजपुरी सिनेमा के 60 साल का सुनहरा सफर

भले ही भोजपुरी फिल्मों पर तरहतरह के आरोप लगते रहे हों, पर यह भी सच है कि भोजपुरी सिनेमा में बन रही फिल्में रिलीज होने के पहले ही चर्चा में आ जाती हैं. यही वजह है कि भोजपुरी फिल्में तकरीबन 35 करोड़ लोगों के दिलों पर राज कर रही हैं.

भोजपुरी सिनेमा को यह मुकाम यूं ही नहीं मिला है, बल्कि इसकी शुरुआत 60 साल पहले भोजपुरी की पहली फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ से हो गई थी. भोजपुरी में बनी यह पहली फिल्म इतनी सुपरडुपर हिट रही थी कि इस फिल्म को देखने के लिए लोग बैलगाडि़यों पर लद कर सिनेमाघरों तक पहुंचे थे.

भोजपुरी सिनेमा का दौर

यह भोजपुरी सिनेमा का पहला दौर था, जिस ने इस फिल्म के रिलीज के साथ ही सुनहरे युग की शुरुआत कर दी थी.

इस फिल्म को तब के राष्ट्रपति  डा. राजेंद्र प्रसाद की प्रेरणा से बनाया गया था. वे चाहते थे कि दूसरी भाषाओं की तरह भोजपुरी में भी फिल्म बने. जब उन्होंने इस की इच्छा आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे नजीर हुसैन से जाहिर की, तो उन्होंने विधवा पुनर्विवाह पर आधारित भोजपुरी फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ की पटकथा लिखी.

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इस के बाद आरा के रहने वाले कारोबारी विश्वनाथ प्रसाद शाहाबादी ने इस फिल्म में अपना पैसा लगाने का ऐलान किया. फिर इस फिल्म को बनाने का काम शुरू हो गया.

फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ के डायरैक्शन का काम कुंदन कुमार ने किया था, तो इस में गाने को आवाज देने का काम लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी जैसे मशहूर गायकों ने किया था. फिल्म के गाने मशहूर गीतकार शैलेंद्र और भिखारी ठाकुर ने लिखे थे. इसी के साथ फिल्म में म्यूजिक देने का काम संगीतकार आनंदमिलिंद के पिता चित्रगुप्त ने किया था.

फिल्म में लीड रोल हिंदी फिल्मों की मशहूर हीरोइन कुमकुम ने किया था, जो भोजपुरी फिल्मों की पहली हीरोइन  बनी थीं.

इस के अलावा कुमकुम के अपोजिट असीम कुमार हीरो थे. फिल्म में विलेन का किरदार बिहार के रहने वाले रामायण तिवारी ने निभाई थी. इस फिल्म में पद्मा खन्ना, हेलेन, लीला मिश्रा, टुनटुन वगैरह भी प्रमुख भूमिकाओं में नजर आए थे.

यह फिल्म 22 फरवरी, 1963 को पटना के वीणा सिनेमा में रिलीज हुई थी, जिस ने कामयाबी के इतने ज्यादा रिकौर्ड तोड़े कि महीनों तक दर्शकों की लाइन ही नहीं टूटी.

इस फिल्म के बाद भोजपुरी में दूसरी फिल्म ‘लागी नाही छूटे राम’ आई थी. यह फिल्म भी साल 1963 में ही रिलीज हुई थी, जिस का डायरैक्शन कुंदन कुमार ने किया था और निर्माता रामायण तिवारी रहे थे. फिल्म में मुख्य भूमिका असीम कुमार, नसीर हुसैन और कुमकुम ने निभाई थी.

इस फिल्म के बाद फिल्म ‘बिदेसिया’ बनी थी, जिस के हीरो सुजीत कुमार और हीरोइन बेबी नाज थीं. साल 1964-65 में एसएन त्रिपाठी के डायरैक्शन में बनी यह फिल्म सुपरडुपर हिट रही थी. इस के बाद भोजपुरी में कुछ छिटपुट फिल्में बनीं, जो बहुत ज्यादा नहीं चल पाईं और यही भोजपुरी सिनेमा का पहला दौर खत्म सा हो गया. इस के बाद 10 साल तक भोजपुरी सिनेमा में सन्नाटा सा छाया रहा था.

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ऐसे टूटा सन्नाटा

10 साल के सूखे के बाद भोजपुरी सिनेमा के दूसरे दौर की शुरुआत नजीर हुसैन ने फिर से कर दी और उन्होंने उस समय की सब से बड़ी हिट फिल्म ‘बलम परदेसीया’ बनाई, जिस में मुख्य भूमिका राकेश पांडेय और पद्मा खन्ना ने निभाई थी.

बौलीवुड के जानेमाने म्यूजिक डायरैक्टर नदीमश्रवण ने भोजपुरी फिल्म ‘दंगल’ से अपने म्यूजिक कैरियर की शुरुआत की थी.

यह फिल्म साल 1977 में रिलीज  हुई थी. इस फिल्म में सुजीत कुमार  और प्रेमा नारायण समेत उस वक्त के कई भोजपुरी फिल्म कलाकारों ने काम  किया था.

यह फिल्म उस दौर की सुपरहिट फिल्म साबित हुई थी. इस फिल्म के प्रोड्यूसर बच्चू भाई शाह थे. इस फिल्म में म्यूजिक देने के बाद नदीमश्रवण बौलीवुड में छा गए थे.

इस के बाद भोजपुरी में कई सुपरहिट फिल्में बनी थीं, जिन में साल 1980 में बनी भोजपुरी फिल्म ‘धरती मैया’ से भोजपुरी के सुपरस्टार कुणाल सिंह की ऐंट्री हुई.

इस फिल्म में राकेश पांडेय और पद्मा खन्ना के साथ गौरी खुराना प्रमुख भूमिकाओं में नजर आए थे. इस के बाद ‘गंगा किनारे मोरा गांव’, ‘बसुरिया बाजे गंगा तीर’, ‘दूल्हा गंगा पार के’, ‘माई’ जैसी ब्लौकबस्टर फिल्में आई थीं.

भोजपुरी सिनेमा के दूसरे दौर में इन फिल्मों के अलावा दर्जनों फिल्में बनी थीं, लेकिन यह फिल्में चल नहीं पाईं और धीरेधीरे 90 का दशक आतेआते भोजपुरी सिनेमा सन्नाटे में चला गया.

बुलंदियों का तीसरा दौर

भोजपुरी सिनेमा के लिए साल 2000 का दशक बदलाव का दौर रहा. इस दौर ने भोजपुरी फिल्मों के क्षेत्र में क्रांति लाने का काम किया. रवि किशन और मनोज तिवारी जैसे भोजपुरी के कई सुपरस्टार इस दौर ने दिए, बल्कि भोजपुरी सिनेमा से पूरी तरह से कट चुके दर्शकों को जोड़ने का काम भी किया.

इस दौर की पहली फिल्म साल 2000 में आई, जिस का नाम था ‘सईयां हमार’, जिस में मुख्य भूमिका में रवि किशन थे. इस फिल्म में बृजेश त्रिपाठी मुख्य विलेन की भूमिका में नजर आए थे.

साल 2004 में मनोज तिवारी की फिल्म ‘ससुरा बड़ा पइसावाला’ बनी थी, जिस ने कमाई के सारे रिकौर्ड तोड़ दिए थे.

इस के बाद रवि किशन के लीड रोल में ही ‘सईयां से कर द मिलनवा हे राम’ और ‘पंडितजी बताई न बियाह कब होई’ फिल्में बनी थीं, जो साल 2005 की सब से बड़ी हिट फिल्में रही थीं.

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इस दौर की बड़ी हिट फिल्मों में ‘गंगा जइसन माई हमार’, ‘दरोगा बाबू आई लव यू’, ‘देहाती बाबू’, ‘धरतीपुत्र’, ‘दीवाना’, ‘लगल रहा हे राजाजी’, ‘देवरा बड़ा सतावेला’ वगैरह शामिल रहीं.

इन्होंने दी बड़ी पहचान

साल 2010 के बाद का दशक गायक से नायक बने कई ऐक्टरों के नाम रहा, जिस में दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’, पवन सिंह, खेसारीलाल जैसे दर्जनों नाम शामिल हैं. इन ऐक्टरों ने पिछले 10 सालों में सैकड़ों हिट फिल्में दी हैं. आज इन्हीं ऐक्टरों से भोजपुरी सिनेमा की पहचान है.

वहीं अगर ऐक्ट्रैस की बात की जाए, तो रानी चटर्जी, नगमा, आम्रपाली दुबे, काजल राघवानी जैसे कई नाम हैं, जिन के करोड़ों दीवाने हैं. भोजपुरी सिनेमा में कई हिट डायरैक्टरों के नाम है, जिन में राजकुमार आर. पांडेय, संजय श्रीवास्तव, पराग पाटिल जैसे दर्जनों नाम शामिल हैं. वहीं निगेटिव रोल में संजय पांडेय, अवधेश मिश्र, देव सिंह, सुशील सिंह, कौमेडी में संजय महानंद, धामा वर्मा, लोटा तिवारी जैसे सैकड़ों नाम  शामिल हैं.

आज के दौर में भोजपुरी में बन रही फिल्मों और दर्शकों की तादाद के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भोजपुरी आज दूसरी फिल्मों की अपेक्षा टौप पर है.

बनाया नया मुकाम

भोजपुरी फिल्मों की बढ़ती लोकप्रियता के बीच इस पर अश्लीलता फैलाने के आरोप भी लगते रहे हैं. लेकिन ये आरोप भोजपुरी सिनेमा के दर्शकों की तरफ से नहीं, बल्कि भोजपुरी सिनेमा को न देखने वालों की तरफ से लगाए जाते रहे हैं, जबकि आज की भोजपुरी फिल्में भोजपुरी बैल्ट के दर्शकों के मूड को देखते हुए ही बन रही हैं.

भोजपुरी बैल्ट के दर्शकों के हिसाब से जो भी फिल्में बन रही हैं, उतना हंसीमजाक भोजपुरी बैल्ट में आम  बात है.

दी कड़ी टक्कर

भोजपुरी सिनेमा के तीसरे दौर में बहुतकुछ बदल चुका है, जहां भोजपुरी की फिल्मों के कंटैंट पर अच्छाखासा ध्यान दिया जाने लगा है, वहीं इस में इस्तेमाल होने वाली टैक्नोलौजी में बहुत ज्यादा बदलाव आ चुका है.

इस दौर में आई फिल्मों में ‘निरहुआ रिकशावाला’, ‘निरहुआ हिंदुस्तानी’, ‘विवाह’, ‘कसम पैदा करने वाले की 2’, ‘दोस्ताना’, ‘जुगजुग जिया हो ललनवा’ जैसी सैकड़ों फिल्मों ने भोजपुरी फिल्मों के प्रति लोगों के नजरिए में बदलाव लाने का बड़ा काम किया है.

इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ से शुरू हुआ भोजपुरी सिनेमा का यह दौर बुलंदियों का दौर है, जहां कम बजट में अच्छी फिल्में बन रही हैं.

पोपुलैरिटी को देख कर बौलीवुड के नामचीन कलाकारों ने किया काम

भोजपुरी के तीसरे दौर में फिल्मों की पोपुलैरिटी और दर्शकों की बढ़ती तादाद को देखते हुए बौलीवुड के कई नामचीन कलाकार खुद को काम करने से रोक नहीं पाए.

साल 2013 में आई भोजपुरी फिल्म ‘देशपरदेश’ में धर्मेंद्र प्रमुख भूमिका में नजर आए थे. इसी के साथ भोजपुरी फिल्म ‘गंगा’ में रवि किशन और मनोज तिवारी के साथ अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी नजर आए तो दिनेशलाल यादव ‘निरहुआ’ की फिल्म ‘गंगा देवी’ में अमिताभ बच्चन और जया बच्चन ने काम कर के भोजपुरी सिनेमा की अहमियत को और भी बढ़ा दिया था.

इस के अलावा फिल्म ‘धरती कहे पुकार के’ में अजय देवगन, ‘बाबुल प्यारे’ में राज बब्बर, ‘भोले शंकर’ में मिथुन चक्रवर्ती, ‘हम हई खलनायक’ में जैकी श्रौफ, ‘एगो चुम्मा दे दा राजाजी’ में भाग्यश्री जैसे नामचीन कलाकारों ने काम किया. आज भी रजा मुराद, शक्ति कपूर, गुलशन ग्रोवर जैसे दर्जनों बौलीवुड कलाकार लगातार काम कर रहे हैं.

नेताओं ने बड़ा आयोजन बताया

28फरवरी, 2021 की शाम ‘अयोध्या महोत्सव’ को एक नया रंग देने वाली थी. खूबसूरत गुलाबी पंडाल में भारी तादाद में जमा हुए दर्शक अपने चहेते भोजपुरी कलाकारों को देखने के लिए उतावले हो रहे थे. जैसेजैसे ‘सरस सलिल भोजपुरी सिने अवार्ड 2020’ खुद को आकार दे रहा था, वैसेवैसे भीड़ का जोश बढ़ता जा रहा था.

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हरीश द्विवेदी थे, जो लगातार 2 बार से बस्ती, उत्तर प्रदेश से सांसद हैं. भाजपा की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उन्हें राष्ट्रीय मंत्री बनाया गया है. फेम इंडियाएशिया पोस्ट द्वारा किए गए सर्वे 2020 में वे देश के 25 बेहतरीन सांसदों में चुने गए थे. इतना ही नहीं, वे उत्तर प्रदेश यूनिट के भारतीय जनता युवा मोरचा के अध्यक्ष रहे हैं.

अपने स्वागत भाषण में सांसद हरीश द्विवेदी ने अवार्ड मिलने वाले सभी भोजपुरी कलाकारों को अग्रिम बधाई दी और कहा कि ‘सरस सलिल’ और दिल्ली प्रैस की दूसरी पत्रिकाएं उन्होंने खूब पढ़ी हैं और ‘सरस सलिल’ द्वारा भोजपुरी फिल्मों के कलाकारों और दूसरे लोगों को अवार्ड देना तारीफ का काम है. इस से भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री का दायरा बढ़ेगा और भविष्य में उसे काफी फायदा भी होगा.

इतना ही नहीं, सांसद हरीश द्विवेदी ने इस कार्यक्रम को काफी समय तक देखने का लुत्फ लिया और कलाकारों को अपने हाथों से अवार्ड दे कर उन्हें सम्मानित भी किया.

बिहार की लौरिया विधानसभा से  3 बार के विधायक विनय बिहारी ने भी इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई थी. नेता होने से पहले विनय बिहारी का नाम भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने के तौर पर भी याद किया जाता है.

जब साल 1990 से साल 2000 तक भोजपुरी सिनेमा अपने बुरे दौर से गुजर रहा था, तब उन्होंने ही अपने गीतों से भोजपुरी कला जगत को जिंदा रखा था.

विनय बिहारी ने ‘ससुरा बड़ा पइसावाला’, ‘पंडितजी बताई न बियाह कब होई’, ‘कन्यादान’ समेत 300 फिल्मों में बतौर गीतकार और 50 से ज्यादा फिल्मों में पटकथा लेखक, कहानीकार और संवाद लेखक का काम किया है.

विनय बिहारी इस कार्यक्रम से बेहद खुश दिखे और कहा कि उन्होंने इतने बड़े लैवल पर भोजपुरी का कोई अवार्ड शो नहीं देखा है. इस तरह के सम्मान से कलाकारों का मनोबल बढ़ता है. ऐसे कार्यक्रम जनता और कलाकारों के बीच पुल बांधने का काम करते हैं.

इस कार्यक्रम में उत्तर भारत के ही नहीं, बल्कि नेपाल के नेता भी आए थे. वहां से विधायक सहसराम यादव, पूर्व मंत्री दान बहादुर चौधरी और मेयर बजरंगी चौधरी ने भी शिरकत की थी.

उन नेताओं ने बताया कि नेपाल के तराई वाले इलाकों में जिसे मधेश इलाका भी कहा जाता है, हिंंदीभाषी लोग ज्यादा रहते हैं. वे ‘सरस सलिल’ पत्रिका पढ़ते हैं और भोजपुरी और हिंदी फिल्मों को बड़े चाव से देखते हैं. वहां भोजपुरी गाने भी सुने जाते हैं और कलाकारों को खूब पसंद किया जाता है.

विधायक सहसराम यादव ने नेपाल से बुलाए गए नेताओं की तरफ से ‘सरस सलिल’ का शुक्रिया अदा किया और इच्छा जाहिर कि भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रम होते रहेंगे.

इस कार्यक्रम में नेता ही नहीं, बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता भी मौजूद थे. बुंदेलखंड में ‘जलयोद्धा’ के नाम से मशहूर उमाशंकर पांडेय को इस कार्यक्रम में विशेष सम्मान दिया गया था. उन्होंने मेंड़बंदी जैसे पारंपरिक तरीके को अपना कर पानी की जो बचत की है, वह एक सराहनीय काम है.

‘जलयोद्धा’ उमाशंकर पांडेय दिल्ली प्रैस की पत्रिकाओं के हमेशा से मुरीद रहे हैं. उन्होंने इस अवार्ड शो को एक शानदार कदम बताया और उम्मीद जताई कि ऐसे आयोजन लोगों और भोजपुरी कलाकारों को एकदूसरे से जोड़ते हैं. अपने चहेते कलाकारों को सामने से देखने में जनता को जो खुशी मिलती है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है.

– सुनील 

Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin: सई देगी भवानी को मात! आएगा ये नया ट्विस्ट

स्टार प्लस का सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ इन दिनों दर्शकों को जबरदस्त एंटरटेनमेंट का तड़का मिल रहा है. इस सीरियल की कहानी में एक नया मोड़ ले रही है. आइए आपको बताते हैं, सीरियल के नए ट्विस्ट के बारे में.

शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया जा रहा है कि भवानी चौहान हाउस की मालकिन रहने के लिए कुछ भी करने को तैयार है और ऐसे में वह नहीं चाहती कि पुलकित और देवयानी की शादी हो. इस शादी को रोकने के लिए भवानी ने पुलकित को किडनैप कर लिया है.

तो वहीं विराट इस बात को मानने को तैयार नहीं है कि उसके किसी अपने ने पुलकित को किडनैप किया है. ऐसे में सई भवानी की पोल खोलने के लिए ठान ली है.उसने सोच लिया है कि भवानी का सच सबके सामने लाकर रहेगी.

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सीरियल के बीते एपिसोड में दिखाया गया था कि सच का पता लगाने के लिए सई, माधुरी से मिली थी. इस दौरान सई को भवानी के खिलाफ पुख्ता सबूत हाथ लग गया.

तो उधर ओमकार ने भवानी को ये बताया कि सई उसके खिलाफ सबूत जमा कर रही है. ऐसे में भवानी पुलकित का वॉइस नोट सई को भेजती है. तो सई इस झूठे सबूत पर यकीन कर लेती है. इस वॉइस नोट को सुनकर सई अपने कदम पीछे हटा लेती है. तो इसी बीच सई के हाथ पुलकित का वीडिय आता है, जिसमें यह पता चलता है कि पुलकित के किडनैपिंग के पीछे भवानी का हाथ और यह सबूत सई अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती है.

Imlie: देव को पगडंडिया में देखकर दंग रह जाएगी अनु तो क्या करेगी इमली

अब शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सई, विराट और पूरे परिवार के सामने भवानी की पोल खोलने वाली है.  जिसे सुनकर घरवालों को जोर का झटका लगने वाला है.

छत्तीसगढ़ः नक्सलियों का क्रूर चेहरा

छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद एक नासूर बन चुका है. लगभग 50 वर्षों से नक्सलवाद की घटनाएं कुछ इस तरह घट रही हैं, नक्सलवादी कुछ इस तरह पैदा हो रहे हैं मानो छत्तीसगढ़ में कानून और शासन नाम की चीज ही नहीं है. अगर कानून और सरकार अपना काम ईमानदारी से कर रहे होते तो क्या नक्सलवाद सर उठा कर छत्तीसगढ़ में अपने क्रूर तेवर दिखा पाता? शायद कभी नहीं.

यही कारण है कि अविभाजित मध्यप्रदेश हो अथवा सन 2000 में बना छत्तीसगढ़. यहां नक्सलवाद अपने उफान पर रहा है, कोई भी सरकार आई और चली गई, नेता, मंत्री आए और चले जाते हैं मगर नक्सलवाद एक ऐसी त्रासदी बन चुकी है जो छत्तीसगढ़ की रग रग में समाई हुई है.

नित्य प्रतिदिन नक्सलवादी घटनाएं छत्तीसगढ़ के बस्तर में घटित हो रही हैं, आए दिन मुठभेड़ हो रही है जनहानि धन हानि नित्य जारी है. मगर नक्सलवाद के खात्मे की कोई बात नहीं हो रही है. लाख टके का सवाल यह है कि जब सरकार के पास इतने वृहद संसाधन हैं इसके बावजूद नक्सलवाद समाप्त क्यों नहीं हो रहा.

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सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि जिस कांग्रेस ने अपने राष्ट्रीय स्तर के नेताओं को खोया हो जिनमें विद्याचरण शुक्ल पूर्व केंद्रीय मंत्री, तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार पटेल, बस्तर टाइगर के नाम से विख्यात महेंद्र कर्मा थे. इसके बावजूद कांग्रेस सत्ता में आने के बावजूद अखिर नक्सलवाद को खत्म क्यों नहीं कर पा रही है.

जवानों की जान जा रही है!

छत्तीसगढ़ में नक्सली और जवानों की मुठभेड़ जारी है. जैसा कि हमेशा होता है कभी नक्सली मारे जाते हैं तो कभी हमारे जवान शहीद हो रहे हैं. मगर चिंता का सबब यह है कि हमारे जवानों की जान ज्यादा जा रही है.

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले में 23 मार्च नक्सलियों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट कर सुरक्षा बलों के एक बस को उड़ा दिया. इस घटना में चार जवान शहीद हो गए हैं जबकि 14 जवान घायल हुए हैं.

बस्तर क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी ने हमारे संवाददाता को बताया नारायणपुर जिले के धौड़ाई थाना क्षेत्र के अंतर्गत कन्हरगांव—कड़ेनार मार्ग पर नक्सलियों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट कर सुरक्षा बलों के बस को उड़ा है. घटना में वाहन चालक समेत चार जवान शहीद हो गए हैं तथा 14 अन्य जवान घायल हो गए हैं.

सुंदरराज ने बताया, -‘‘डीआरजी के जवान नक्सल विरोधी अभियान में रवाना हुए थे.अभियान के बाद जवान एक बस में से नारायणपुर जिला मुख्यालय वापस लौट रहे थे. रास्ते में कन्हरगांव—कड़ेनार मार्ग नक्सलियों ने बारूदी सुरंग में विस्फोट कर दिया. घटना में चार जवान शहीद हो गए तथा 14 अन्य जवान घायल हो गए.’’

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पुलिस अधिकारी के मुताबिक घटना की जानकारी मिलने के बाद अतिरिक्त सुरक्षा बल को घटनास्थल के लिए रवाना किया गया तथा घायलों को वहां से निकाला गया। घायलों को बेहतर इलाज के लिए हेलीकॉप्टर से रायपुर भेजा जा रहा है उल्लेखनीय है कि बीते एक वर्ष के दौरान नक्सलियों ने डीआरजी के जवानों पर दूसरा बड़ा हमला किया है. इससे पहले 21 मार्च 2020 को नक्सलियों ने सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमला कर दिया था. इस हमले में डीआरजी के 12 जवानों समेत 17 जवान शहीद हो गए थे.

राज्य के नक्सल प्रभावित बस्तर क्षेत्र के जिलों में डीआरजी के जवान तैनात हैं. खास बात यह है कि डीआरजी के जवान स्थानीय युवक हैं और क्षेत्र के कोने-कोने से परिचित रहते हैं. मगर इसके बावजूद मुठभेड़ में जनहानि जारी आहे .

क्या नक्सलवाद का खात्मा हो पाएगा?

छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने नक्सलवाद में संभवत अपने सबसे बड़े नेताओं की हत्या देखी है. झीरम घाटी हत्याकांड भारतीय इतिहास में नक्सलवाद की भूमिका को लेकर एक “काला धब्बा” बन चुका है. जिसे शायद कभी नहीं भुलाया जा सकता.इस परिपेक्ष में कांग्रेस पार्टी की सरकार जब छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ हुई तो यह माना जा रहा था कि अब नक्सलियों का अंत समय आ गया है. क्योंकि जिस पार्टी ने अपने दर्जनों बड़े नेता नक्सलवाद की भेंट चढ़ा दिए जिन्हें क्रुर तरीके से नक्सलियों में मार डाला हो, ऐसी पार्टी सत्ता में आने के बाद नक्सलियों को आत्मसमर्पण कराने को विवश कर देगी.

ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था कि अब नक्सलियों का सफाया हो सकता है. मगर समय बीतता चला गया.आज लगभग कांग्रेस पार्टी का आधा कार्यकाल भी बीत चुका है मगर कहीं से भी नक्सलियों का अंत दिखाई नहीं देता. ऐसे में सवाल यही है कि क्या कांग्रेस पार्टी नक्सलियों को, उनके उन्मूलन को गंभीरता से नहीं ले रही है. क्या नक्सलवाद छत्तीसगढ़ की पहचान बनकर ही रह जाएगा. क्या इसी तरह मुठभेड़ में जनहानि होती रहेगी. प्रदेश और देश का हित इसी में है कि जितनी जल्द हो सके नक्सलवाद का खात्मा हो.

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दूसरी तरफ 23 मार्च को जब नारायणपुर जिला में जवान मारे गए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल असम में चुनाव प्रचार में व्यस्त थे. उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हमेशा की तरह एक दुखद घटना बताकर इतिश्री कर ली .

नाबालिगों के खून से “रंगे हाथ”!

जब कोई किसी की हत्या कर देता है तो समाज, कानून और हम सोच में पड़ जाते हैं. मगर जब कोई किशोर, नाबालिक किसी “अपने” की ही हत्या कर देता है तो एक गहरा सनाका खींच जाता है. एक चींटी को भी मारने से पहले कोई मनुष्य कई कई बार सोचता है. दरअसल, मानव का मनोविज्ञान ही शांति भाव से सहजीवन है. ऐसे में कुछ परिस्थितियां ऐसी विकट हो जाती है कि बड़े बूढ़े, जवान तो क्या कभी-कभी किसी नाबालिग के हाथों भी अपने अथवा गैर की हत्या जैसा नृशंस कांड घटित हो जाता है.जो समाज को यह सोचने पर मजबूर करता है कि आज डिप्रेशन… तनाव और छोटी-छोटी बातों पर क्रोध के कारण ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं. जो मानव समाज के लिए एक गंभीर शोध और चिंता का सबब है.

आज इस रिपोर्ट में हम ऐसे ही कुछ घटनाक्रमों पर दृष्टिपात कर रहे हैं और यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि ऐसा क्यों और किस लिए हो रहा है. और ऐसी घटनाओं को किस तरह रोका जा सकता है.

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पहला घटनाक्रम-

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के तेलीबांधा में एक 15 वर्ष के नाबालिक ने जब उसकी साइकिल एक पड़ोसी के हाथों क्षतिग्रस्त हो गई तो गुस्से में आकर पड़ोसी को मार डाला.

दूसरा घटनाक्रम-

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में एक 16 वर्ष के लड़के के हाथों अपने ही एक दोस्त की हत्या हो गई, क्योंकि वह उसे गाली गलौज कर रहा था उसकी मां को गाली दी थी.

तीसरा घटनाक्रम-

जिला कोरबा के पाली थाना अंतर्गत ग्राम नूनेरा में एक किशोर बालक में अपने ही चाचा की हत्या कर दी क्योंकि चाचा उसे कुछ सीख दे रहा था और डांट भी रहा था.

ऐसी ही अनेक घटनाएं हमारे आस पास अचानक ही घट जाती हैं और हम सन्नाटे में रह जाते हैं. आइए! देखते हैं कि ऐसी घटनाएं क्यों घट रही हैं, और कैसे रोका जा सकता है.

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गुस्से में दादी को मार डाला

छोटी उम्र में अगर कोई नशे का आदी हो जाता है तो यह उसके लिए भयंकर साबित हो सकता है. यह इस एक घटनाक्रम से स्पष्ट हो जाता है. सरगुजा जिले के सीतापुर थाना क्षेत्र के ग्राम पंचायत भिठुआ में 15 वर्षीय नाबालिग बालक के हाथ खून से रंग‌ गए. दरअसल, उसकी दादी ने उसे तंबाकू खाने से मना किया था, जिससे आहत होकर उसने यह कदम उठाया.

सीतापुर थाना जांच अधिकारी के अनुसार सीतापुर थाना क्षेत्र के ग्राम भिठुआ ढाबपारा निवासी एक बुजुर्ग ने जानकारी दी कि उसका नाती तम्बाकू का सेवन करता था. तम्बाकू सेवन करने से मना करने पर उसने गुस्से में आकर अपनी दादी फिरतीन बाई की हत्या कर दी

यहां यह महत्वपूर्ण है कि सरगुजा को एक अप्रैल से तंबाकू मुक्त बनाने जिला कलेक्टर व स्वास्थ्य विभाग के द्वारा लोगों को जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. लेकिन इस जागरूकता का असर ग्रामीण क्षेत्रों में दिखाई नहीं दे रहा है, जहां तंबाकू के सेवन से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का सामना करना पड़ता है. वही हत्या और आत्महत्या जैसी घटनाएं भी प्रकाश में आ रही हैं.

कैसे मिल सकती है निजात

दरअसल, पम्पहाउस नाबालिक बच्चों को सही मार्गदर्शन और संवेदना के साथ एक ऐसा बेहतर माहौल मिलना चाहिए जिससे उनमें मानवीय भावना और आपसी स्नेह का संचार हो, जब इन सब चीजों का अभाव होता है और घर और समाज में तनाव बढ़ने लगता है माता-पिता अन्य परिजन आपसी विवाद में घर को जबरन असहज बनाने लगते हैं तो धीरे धीरे छोटे बच्चों में इसका गंभीर असर होने लगता है. यही कारण है कि छोटे बच्चे जिनका समय शिक्षा एवं आपसी प्रेम में व्यतीत होना चाहिए वे भटक जाते हैं और क्रूर होने लगते हैं. परिणाम स्वरूप या तो छोटे बच्चे अवसाद में आकर आत्महत्या कर लेते हैं या फिर किसी की हत्या कर देते हैं. यह दोनों ही तो स्थितियां समाज के लिए चिंता का विषय है.

मनोविज्ञान के जानकार संगीत शिक्षक घनश्याम तिवारी का मानना है कि ऐसी परिस्थितियां इसलिए निर्मित होती है क्योंकि परिवार का माहौल असंवेदनशील होता है. नित्य माता पिता यानी पति पत्नी की तनावपूर्ण बातचीत व्यवहार का बच्चों में गंभीर असर होने लगता है और परिणाम स्वरूप बड़ी घटना घट जाती है.

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डॉक्टर गुलाब राय पंजवानी के मुताबिक घर का माहौल ही इसके लिए सबसे जिम्मेवार है अगर माता-पिता संवेदनशील है तो बच्चों में भी आपसी प्रेम की भावना उत्पन्न हो सकती है अन्यथा वे भटक सकते हैं.

पुलिस अधिकारी इंद्र भूषण सिंह के मुताबिक अनेक दफा ऐसे गंभीर मामले प्रकाश में आए हैं जब बच्चों अथवा नाबालिगों के द्वारा आत्महत्या या हत्या की घटना घटित हुई है जांच में यह तथ्य सामने आता है कि घर और आसपास के माहौल के कारण बच्चे दिशा से भटक गए.

Saat Kadam Review: Ronit Roy ने फैंस का जीता दिल

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माता: वियना मीडिया वर्क्स प्रा.लि.

लेखक व निर्देशक: के मोहित कुमार झा

कलाकारः अमित साध,रोनित रौय, दीक्षा सेठ, रोहिणी बनर्जी, शिल्पी रौय, अशोक सिंह, देवाशीष चौधरी, रीता चक्रवर्ती, करमवीर सिंह, विदिशा घोष व अन्य.

अवधिः चार एपीसोड, कुल अवधि दो घंटे दो मिनट

ओटीटी प्लेटफार्म : Eros Now

फुटबाल खेल के जुनून की पृष्ठ भूमि में पिता पुत्र के रिश्तों की भावना प्रधान व मार्मिक कहानी को वेबसीरीज ‘‘सात कदम’’में लेकर आए हैं लेखक व निर्देशक के मोहित कुमार झा,जिसे eros now पर देखा जा सकता है. इसमें पारिवारिक रिश्तों को भी खूबसूरत चित्रण है. यह फुटबॉल पिच पर लिखी अनसुलझे रिश्तों की ऐसी दास्तान हैं, जिसमें एक पिता का सपना अपने बेटे को एक पेशेवर फुटबॉल खिलाड़ी बनाना है तो वहीं बेटा अधिक से अधिक पैसा कमाने की ख्वाहिश रखता है.

कहानीः

कहानी के केंद्र में अरविंदो पाल (रोनित रौय) और उनका बेटा रवि पाल (अमित साध) है. अरविंदो को फुटबाल के खेल का जुनून है. वह बेहतरीन फुटबाल खिलाड़ी रह चुके हैं. अचानक तांग टूट जाने के कारण राष्ट्रीय टीम के लिए खेलने का उनका सपना अधूरा रह जाता है. अब वह इस सपने को अपने बेटे रवि के माध्यम से पूरा होते हुए देखना चाहते हैं. अरविंदो की पत्नी रश्मि (रोहिण बनर्जी ) को फुटबाल पसंद नहीं पर अरविंदो छिपकर रवि को फुटबाल की ट्रेनिंग देते रहते हैं. वह अच्छा खिलाड़ी बन चुका है. इस बात से रवि की बहने सलोनी (निहारिका रौय) व सपना (शिल्पी रौय) भी अनजान हैं. उधर सपना का रोमांस साहिल (देवाशीष चौधरी ) संग चल रहा है. जबकि रवि की प्रेमिका किरण बनर्जी (दीक्षा सेठ) है. एक दिन ‘आसनसोल ग्यारह’की फुटबाल टीम के मालिक प्रकाश अग्रवाल (करमबीर सिंह), अरविंदो के घर पहुंचकर अरविंदो को अपनी टीम का कोच बनने का आफर देते हैं. तभी घर में सभी के सामने राज खुलता है कि रवि अच्छा फुटबाल खिलाड़ी है और वह ‘आसनसोल ग्यारह’ की टीम का हिस्सा है. अब अरविंदो इस टीम के कोच बन जाते हैं. अरविंदो चाहते है कि रवि राष्ट्रीय टीम के लिए खेले. पर अचानक कहानी में मोड़ आता है, जब कल कत्ता बागान के मालिक बाबुल बनर्जी (अशोक सिंह) अपनी टीम से रवि को जोड़कर अरविंदो से पुराना बदला लेने का निर्णय लेते हैं. इसके चलते कहानी में कई मोड़ आते हैं.

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लेखन व निर्देशनः

कहानी बहुत ही बेहतरीन है. खेल के जुनून के साथ ही बाप बेटे के रिश्तों की कशमकश और आर्दशों के टकराव का खूबसूरत चित्रण करने में लेखक व निर्देशक कामयाब रहे हैं. मगर पटकथा को थोड़ा कसा जाना चाहिए  था. कई दृश्य काफी इमोशनल हैं. फिल्म का एक संवाद ‘‘गुस्सा और अहंकार के कारण क्या पाया और क्या खो दिया’’ हर इंसान को सोचने पर मजबूर करने वाला है. यह वेब सीरीज एक बेहतरीन संदेश देती है कि आपका लक्ष्य आपके द्वारा चुने गए कुछ कदमों की ही दूरी पर है. पूरी वेब सीरीज मे खेल व भावनाओं के बीच बेहतरीन संतुलन स्थापित किया गया है. निर्देशक मोहित झा कोलकाता शहर के सार को भी बेहतरीन तरीके से इसमें पिरोया है. इसके लिए उन्होने हिंदी के साथ कुछ बंगाली संवाद भी रखे हैं.

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अभिनयः

सपने के टूटने के बाद बिखरने के बावजूद विश्वास न खोने वाले आरविंदो के किरदार में रोनित रौय ने शानदार अभिनय किया है. पिता के सपनों को पूरा करने,पिता पुत्र के आदर्श को निभाने और ढेर सारा पैसा कमाने की कशकमश से घिरे युवक रवि के किरदार में अमित साध ने  खुद को  बेहतरीन अभिनेता साबित किया है. किरण बनर्जी के किरदार में दीक्षा सेठ का भोला प्रदर्शन  का ध्यान खींच ही लेता है. बहनों के किरदार में निहारिका रौय और शिल्पी रौय दोनों ठीक जमे हैं. अन्य कलाकार भी अपनी जगह सही हैं.

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