पश्चिम बंगाल में चलेगा ममता बनर्जी का जादू ?

भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को जीतने में कुछ ज्यादा बेचैन ही नजर आ रही है और इसलिए उस के पिछलग्गू इस बात पर तो खुश होंगे कि उन की राह में रोड़ा बनी ममता बनर्जी की टांग एक भीड़ के कुचले जाने की वजह से क्रैक कर गई और बाकी चुनाव में उन्हें ह्वीलचेयर पर बैठ कर बोलना और जगहजगह जाना पड़ेगा.

यह घटना हुई इसलिए कि ममता बनर्जी अपने और अपने वोटरों के बीच फासला नहीं रखतीं. इस देश में वैसे तो छूतअछूत का दौर आज भी चलता है और जब तक दूसरे की जाति पता नहीं हुई उसे छूने का परहेज ही किया जाता है. जो जितना बड़ा हिंदू कट्टरपंथी होगा वह उतना ज्यादा छुआछात बरतेगा और कहीं गंदा न हो जाए वह भीड़ में ही नहीं जाएगा. जो मंत्री है उसे तो भरपूर सरकारी बंदोबस्त मिलता है और प्रधानमंत्री के आसपास तो सिर्फ कैमरे वाले ही फटक सकते हैं. गनीमत है कि ममता बनर्जी ऐसी नहीं हैं.

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चुनावों में इस तरह पैर टूटने से काफी नुकसान हो सकता है क्योंकि ममता बनर्जी अब उतनी जगह नहीं जा पाएंगी जितनी वे चाहती थीं. भाजपा की हो सकती है इस वजह से लौटरी भी खुल जाए. दूसरी तरह यह भी हो सकता है कि पश्चिम बंगाल की जनता कहे, अरे यह नेता तो अपनी है, अपनों के साथ घुलतीमिलती है, सेहत तक का खयाल नहीं रखती. ऐसा हुआ तो फायदा हो भी सकता है.

वैसे पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी हारें या न हारें यह पक्का दिख रहा है कि कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों का सफाया होगा ही. वे मुंह दिखाने लायक सीटें भी नहीं जीतेंगे. वैसे भी वे नहीं चाहते कि जो भाजपा को पसंद नहीं करते उन की वोटें कटें. वे चाहते हैं कि चाहे वे हार जाएं पर भाजपा सरकार न बना पाए.

ऐसा लग नहीं रहा कि भाजपा को बड़ी जीत मिलने वाली है क्योंकि अभी भी ममता बनर्जी का जादू चालू है. पिछले सभी चुनावों में जहां भी कद्दावर विपक्ष का नेता है, भारतीय जनता पार्टी जीत नहीं पाई. पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, महाराष्ट्र इस बात का सुबूत हैं कि अब तक भाजपा कहीं भी कद्दावर नेता को हरा नहीं पाई है. दिल्ली के राज सिंहासन पर भी वह जीत इसीलिए रही है क्योंकि देश की जनता ढुलमुल नेताओं के साथ खुश नहीं है और नरेंद्र मोदीकी टक्कर का नेता कोई कहीं नहीं है. इस के बावजूद बहुत से राज्यों में लोकसभा चुनावों में भी भाजपा को न के बराबर की जीत मिली है.

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पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने क्या किया क्या नहीं यह अब सवाल ही नहीं रह गया है. ममता बनर्जी तो तब अच्छा रिपोर्टकार्ड दिखाएं जब सामने वाले के पास नारों, वादों के अलावा कोई रिपोर्टकार्ड हो. सामने वाले तो न अपनी डिगरी दिखाते हैं, न कोविड में जमा किए अरबों का हिसाब देने को तैयार हैं और न ही कोई उन से राम मंदिर के बनाने के लिए चंदों की लिस्ट मांगेगा. वे तो वैसे ही बातों के धनी हैं पर जनता समझती नहीं ऐसा भी नहीं. जहां चेहरा अच्छा होता है वहां पंजाब और दिल्ली के नगरनिकायों जैसे नतीजे आते हैं जहां भाजपा दूरदूर तक नजर नहीं आई थी.

भोजपुरी फिल्म ‘बेटी न.1’ का ट्रेलर देखकर फैंस हुए इमोशनल, देखें Viral Video

अक्सर लोग शिकायत करते है कि भोजपुरी सिनेमा का स्तर गिर रहा है. भोजपुरी सिनेमा सिर्फ अश्लीलता परोस रहा है और अब इसमें परिवार गायब हो चुका है.कुछ लोगों की शिकायत है कि भोजपुरी फिल्में परिवार के साथ देखने लायक नहीं रही.

इन सभी लोगों की शिकायतों को करारा जवाब देने के लिए ही यश कुमार एक
सामाजिक फिल्म ‘बेटी न.1′ लेकर आ रहे हैं, जिसका ट्रेलर जारी होते ही वायरल हो चुका है. फिल्म ‘बेटी नंबर 1′ के ट्रेलर का कंटेंट इतना सशक्त है कि इसे देखकर लोगों की आंखों से आंसू नही थम रहे हैं. जी हां! तीन मिनट 44 सेकंड
के इस ट्रेलर ने लोगों को रूला दिया है.

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वास्तव में फिल्म का ट्रेलर बेहद मार्मिक और दिल को झकझोरने वाला है. चाहे वह गाने हो, या बाप बेटी के बीच का दिल छूने वाला संवाद या फिर एक नन्हीं बच्ची का अपने माता-पिता के लिए किए गए प्रयास,पूरा ट्रेलर काफी भावनापूर्ण है.

‘यश कुमार एंटरटेनमेंट’ प्रस्तुत और निर्मित और बी 4 भोजपुरी के यूट्यूब चैनल रिलीज फिल्म ‘बेटी न.1‘ की कहानी एक ऐसी बच्ची की है,जिसके माता पिता के बीच तलाक हो जाता है.पिता को बेटी की कस्टडी मिलती है.दोनों साथ रहने लगते हैं. मगर जब उस पिता को पता चलता है कि उसकी बेटी को ब्लड कैंसर है और वह कुछ दिनों की मेहमान है, तब एक मजबूर पिता का मर्म,जो अपनी बेटी को किसी हालत में नहीं खोना चाहता है,उभर कर आता है.इसी बीच उसकी बेटी कुछ ऐसा कर देती है,जो धक से हर इंसान के दिल को छू लेती है.

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ट्रेलर के अनुसार यह भोजपुरी सिनेमा की चुनिंदा फिल्मों में से एक होने वाली है. यश कुमार और बाल कलाकार का किरदार बेहद संजीदा है,वहीं निधी झा यादगार भूमिका में नजर आ रही हैं.

यश कुमार की फिल्म ‘बेटी न.1’ की मेकिंग किसी बॉलीवुड की बड़ी
फिल्मों से कम नहीं नजर आ रही है. भोजपुरी सिनेमा पर इसके कंटेंट के लिए जो भी सवाल करते हैं, उन्हें यह फिल्म अपने परिवार के सदस्यों व दोस्तों के साथ मिलकर जरूर देखनी चाहिए.

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फिल्म में यश कुमार, निधि झा, बेबी कियारा सोनी, करण पांडेय, प्रेरणा
सुषमा, प्रिया सिंह, राधे कुमार, नौषाद शेख, मनोज मोहन और सपना त्रिपाठी लीड रोल में हैं.फिल्म के संगीतकार मुन्ना दुबे,गीतकार विनय बिहारी, मुन्ना दुबे व राजेश मिश्रा हैं.फिल्म की कहानी खुद यश कुमार ने एस के चैहान के साथ मिलकर लिखी है.पटकथा और संवाद लेखक एस के चैहान हैं.

Ek Hazaaron Mein Meri Behna Hai फेम करण टेकर इस हसीना संग लेंगे सात फेरे, जानें कौन हैं ये

टीवी इंडस्ट्री में शादियों का सीजन दस्तक दे दिया है. जी हां, अब खबर ये आ रही है ‘Ek Hazaaron Mein Meri Behna Hai’ लीड एक्टर करण टेकर अपनी गर्लफ्रेंड श्रेया चौधरी (Shreya Chaudhry) के संग सात फेरे लेने वाले हैं.

मिली जानकारी के अनुसार करण टेकर कई महीनों से श्रेया चौधरी को डेट कर रहे हैं. हालांकि दोनों शादी को लेकर कोई औफिशियली एनाउंसमेंट नहीं किया गया है. लेकिन खबरों के अनुसार दोनों ने दिसम्बर 2021 में शादी करने का फैसला किया है.

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बताया जा रहा है कि करण टेकर और श्रेया चौधरी अपने रिश्ते को शादी के बंधन में बंधना चाहते हैं. खबर तो ये भी आ रही है कि करण टेकर ने श्रेया के लिए एक स्पेशल डायमंड रिंग बनवाई है, जिसे वो दिसम्बर में श्रेया के हाथ में पहनाएंगे.

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वर्कफ्रंट की बात करें तो श्रेया चौधरी को अमेजन प्राइम वीडियो की ‘बंदिश बैंडिट्स’ से दर्शकों के बीच पहचान मिली है, जो सीरीज बहुत हिट रही थी,  तो वहीं करण टेकर को दर्शकों ने टीवी पर धमाका करने के बाद हॉटस्टार की ‘स्पेशल ओप्स’ वेब सीरीज में देखा गया था. यह सीरीज भी काफी हिट रही.

 

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Imlie: देव को पगडंडिया में देखकर दंग रह जाएगी अनु तो क्या करेगी इमली

स्टार प्लस का सीरियल ‘इमली’ में इन दिनों लगातार महाट्विस्ट देखने को मिल रहा है. जिससे दर्शक इस सीरीयल से खूब एंटरटेन कर रहे हैं. हालांकि इस सीरियल को ऑनएयर हुए ज्यादा टाइम नहीं हुआ है पर इस शो ने अपनी कहानी से दर्शकों के दिल में जगह बना ली है. तो आइए बताते हैं इस सीरियल के करेंट ट्रैक के बारे में.

हाल ही में इस सीरियल में दिखाया गया कि देव अपने घर पर मुंबई जाने की बात कहकर निकलता है लेकिन अनु को शक हो जाता है कि देव मुंबई नहीं बल्कि कहीं और जा रहा है. तो कहानी में अब एक दिलचस्प मोड़ आया है.

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शो के करेंट ट्रैक की बात करे तो आदित्य तीन दिन से पगडंडिया में रहकर इमली के घरवालों के साथ ठहरा हुआ है. पगडंडिया में आखिरी दिन आदित्य, इमली और उसके घरवालों को रेस्टोरेंट में खाना खिलाने ले जाता है और यहीं पर देव की धमाकेदार एंट्री होती है.

तो वहीं शो में आपने देखा था कि देव ने पहले ही सोच लिया था कि आने वाले दिनों में वो इमली की मां से अपने किए की सजा मांगेगा और इमली को अपना नाम देने की बात कहेगा.

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देव की ये सारी बातें सुनकर इमली हैरान हो जाती है. तो वहीं शो में दिखाया जाएगा कि जब इमली देव (Indraneel Bhattacharya) से कुछ कहेगी कि तभी अनु पगडंडिया पहुंच जाएगी.

अनु पहले देव को पगडंडिया में देखकर हैरान रह जाएगी लेकिन जैसे ही उसकी नजर आदित्य पर पड़ेगी, उसके होश ही उड़ जाएंगे, अनु को समझ नहीं आएगा कि आखिर आदित्य वहां पर क्या कर रहा है. तो उधर अनु इमली को खरी खोटी सुनाएगी और तभी आदित्य का गुस्सा फूट पड़ेगा.

अब इस सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में दर्शकों को नए-नए ट्विस्ट देखने को मिलने वाला है. मेकर्स ने इस ट्रैक को दिलचस्प बनाने के लिए काफी तैयारी की है.

Crime Story: मेरी नहीं तो किसी की नहीं- भाग 1

लेखक- विजय पांडेय/श्वेता पांडेय

सौजन्य- सत्यकथा

प्यार एक अहसास है, जब होता है तो अनूठी अनुभूति होती है. ऐसा न हो तो समझ लीजिए महज आकर्षण है. चंद्रशेखर रूपा के आकर्षण को प्यार समझ बैठा, यही उस की भूल थी और इसी भूल में उस ने वह कर डाला जो…

रूपा परेशान थी. सड़क किनारे खड़ी वह कभी सड़क पर आतीजाती गाडि़यों को देखती

तो कभी कलाई घड़ी की ओर. जैसेजैसे घड़ी की सुइयां आगे को सरक रही थीं, उस की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी. परेशान लहजे में वह स्वयं ही बड़बड़ाई, ‘लगता है, आज फिर लेट हो जाऊंगी कालेज के लिए.’

उस के चेहरे पर झुंझलाहट के भाव नुमाया हो रहे थे. एक बार फिर उस ने उम्मीद भरी निगाहों से दाईं ओर देखा. कोई चार पहिया मार्शल गाड़ी आ

रही थी. रूपा ने इशारा कर के गाड़ी रुकवा ली.

ड्राइवर ने उस से पूछा, ‘‘कहां जाना है?’’

‘‘मैं कालेज जाने को लेट हो रही हूं. कोई साधन नहीं मिल रहा. अगर आप मुझे लिफ्ट दे देंगे तो मेहरबानी होगी.’’ रूपा बोली.

‘‘हां हां, मैं कालेज की ओर ही जा रहा हूं. आओ, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा.’’ कहते हुए ड्राइवर ने गेट खोल दिया.

रूपा तनिक झिझकी फिर ड्राइवर की बगल वाली सीट पर जा बैठी.

बेलसोंडा से उस का कालेज करीब 8 किलेमीटर दूर महासमुंद में था. वह करीब 10 मिनट में अपने कालेज पहुंच गई.

कालेज के सामने पहुंचते ही ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी. उतर कर रूपा थैंक यू कह कर तेज कदमों से चली ही थी कि ड्राइवर ने उसे आवाज दी, ‘‘सुनो…’’

सुनते ही रूपा ने ड्राइवर की तरफ पलट कर देखा तो ड्राइवर ने रुमाल उठा कर रूपा की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘ये शायद आप का है.’’

गुलाबी रंग के उस रुमाल के एक किनारे पर सफेद रंग के थागे से कढ़ाई की गई थी. उस पर रूपा लिखा हुआ था.

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‘‘हां, मेरा ही है.’’ रूपा उस से रुमाल लेते हुए बोली.

‘‘आप का नाम रूपा है?’’ ड्राइवर ने पूछा. रूपा ने हौले से सिर हिला दिया और मुसकरा कर कालेज की तरफ चली गई.

ड्राइवर तब तक रूपा को देखता रहा जब तक वह दिखाई देती रही. रूपा के ओझल होते होने के बाद ही वह वहां से गया. युवक ड्राइवर का नाम चंद्रशेखर था और वह नदी मोड़ घोड़ारी का रहने वाला था. रूपा से वह बहुत प्रभावित हुआ.

इस रूट पर उस का अकसर आनाजाना होता था. इस के बाद वह रूपा के आनेजाने के समय उस रोड पर चक्कर लगाने लगा.

जब भी रूपा उसे मिलती, वह ऐसा जाहिर करता मानो अचानक उस से मुलाकात हो गई हो. वह रूपा को कार से उस के कालेज तक और कभी कालेज से उस के घर के पास तक छोड़ देता.

रूपा इस बात को समझने लगी थी कि इत्तफाक बारबार नहीं होता.

महीने में वह कई बार महासमुंद से बेलसोंडा और बेलसोंडा से महासमुंद आईगई होगी.

सफर भले ही 10 मिनट का होता था लेकिन दोनों को सुकून चौबीस घंटे के लिए मिल जाया करता था. इस बीच दोनों एकदूसरे के बारे  में काफी कुछ जान चुके थे. इस छोटी सी यात्रा के दरमियान दोनों एकदूसरे से खुल गए थे. धीरेधीरे दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं और कभीकभी वे गाड़ी से लंबी दूरी के लिए घूमने निकलने लगे.

एक दिन चंद्रशेखर लौंग ड्राइव पर निकला तो मार्शल गाड़ी के मालिक ने उसे देख लिया. मालिक ने उस समय तो कुछ नहीं कहा लेकिन शाम को उस ने चंद्रशेखर से पूछा, ‘‘तुम गाड़ी में किस लड़की को बिठा कर घूमते हो?’’

‘‘साहब, किसी को ले कर नहीं घूमता. बस एकदो बार बेलसोंडा की रहने वाली एक लड़की को उस के कालेज तक छोड़ा था. इस से ज्यादा कुछ नहीं.’’

चंद्रशेखर ने आगे कहा, ‘‘साहब,मैं पूरी ईमानदारी के साथ आप की सेवा करता रहा हूं. आप के हर आदेश पर मैं ने तुरंत अमल किया है और आप इतनी सी बात को ले कर मुझ पर नाराज हो रहे हैं.’’

मार्शल के मालिक ने साफसाफ कह दिया, ‘‘तुम्हारे लिए यह इतनी सी बात होगी लेकिन कल को कोई ऊंचनीच हो गई तो जवाबदेही तो मेरी होगी. अगर तुम्हें नौकरी करनी है तो ठीक से करो. सैरसपाटे के इतने ही शौकीन हो तो खुद की गाड़ी खरीद लो. फिर जहां चाहो, जिसे चाहो बिठा कर घूमते रहना.’’ मालिक ने दोटूक कह दिया.

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चंद्रशेखर को मालिक की बात चुभ गई. उस ने बिना किसी पूर्वसूचना के नौकरी छोड़ दी. दूसरेतीसरे दिन वह रूपा से एक निश्चित जगह पर मिलने पहुंचा. वह अपनी बाइक से गया था. बाइक की सीट पर बैठा वह रूपा का इंतजार कर रहा था.

कुछ देर बाद रूपा वहां पहुंची. रूपा के बोलने से पहले ही चंद्रशेखर ने कहा, ‘‘बाइक पर बैठो.’’

रूपा बाइक पर बैठ गई तो वह बाइक ले कर चल दिया. उस वक्त उस की बाइक का रुख महासमुंद की ओर न हो कर रायपुर जाने वाली सड़क की ओर था. रूपा को यह पता नहीं था कि उस के प्रेमी ने नौकरी छोड़ दी है.

अगले भाग में पढ़ें- क्या रूपा और चंद्रशेखर का प्यार खत्म हो गया

Crime Story: मेरी नहीं तो किसी की नहीं- भाग 3

लेखक- विजय पांडेय/श्वेता पांडेय

सौजन्य- सत्यकथा

उस ने चंद्रशेखर की आवाज को कोई तरजीह नहीं दी. फिर वह उस ओर चला गया, जहां एक पेड़ के नीचे उस की बाइक खड़ी थी. सोचों का बवंडर चंद्रशेखर को झकझोरने लगा था. रूपा आखिर इतनी निर्मोही, बेमुरव्वत कैसे हो गई. वह अपने गांव की ओर बढ़ चला.

2 पखवाड़े बाद उस ने रूपा से मिलने का मंसूबा बनाया. किसी तरह से वह रूपा से मिलने में कामयाब भी रहा. अब की बार वह रूपा से मिल कर ठोस निर्णय लेने के पक्ष में था. वह उस स्थान पर खड़ा रहा, जहां पर रूपा से

मिलना था.

रूपा वहां आई, काफी इंतजार करवाने के बाद वह चंद्रशेखर से मिली. चंद्रशेखर ने किसी तरह की भूमिका नहीं बांधी. वह सीधे मुद्दे पर आ गया, ‘‘रूपा, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

रूपा ने उसी अंदाज में जवाब दिया, ‘‘मैं तुम से शादी नहीं कर सकती.’’

चंद्रशेखर रूपा की ओर टकटकी लगा कर देखता हुआ बोला, ‘‘आखिर, तुम मुझ से शादी क्यों नहीं कर सकतीं? अच्छाभला कमा लेता हूं. घर से भी संपन्न हूं. अपनी हैसियत से बढ़ कर तुम्हें वह सब कुछ देने का प्रयास करूंगा, जिस की तुम ख्वाहिश रखती होगी.’’

‘‘चंद्रशेखर, मैं साफसाफ बता देती हूं कि मैं तुम से किसी भी कीमत पर शादी नहीं कर सकती.’’

चंद्रशेखर कुछ बोलने वाला ही था कि रूपा ने हाथ उठा कर चुप रहने का इशारा किया, ‘‘मेरे घर के लोग मेरी शादी जहां करेंगे, मुझे मंजूर होगा. उन की इच्छा के विरुद्ध मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी. मैं पहले ही कह चुकी हूं कि मैं तुम से प्यार नहीं करती. और हां, अभी तक जो कुछ तुम ने मुझे दिया है. जस के तस लौटा रही हूं.’’ रूपा ने एक कैरीबैग चंद्रशेखर की ओर बढ़ा दिया.

‘‘अपने पास ही रखो इसे, मैं दी हुई चीज वापस नहीं लेता.’’

‘‘तुम्हारी मरजी. और हां, यह खयाल रखना कि आइंदा मुझ से मिलने की कोशिश मत करना.’’

रूपा जाने को हुई तो चंद्रशेखर ने धमकी दी, ‘‘रूपा, तुम्हारी शादी होगी तो सिर्फ मुझ से होगी. मैं तुम्हें किसी और की दुलहन बनते नहीं देख सकता. तुम मेरी नहीं हो सकतीं तो किसी और की भी नहीं बन पाओगी, याद रखना.’’

कुछ दिनों तक चंद्रशेखर के हवास पर रूपा का इनकार डंक मारता रहा. जलन की आग ने चंद्रशेखर को बुरी तरह सुलगा रखा था. उसे करार तभी आता जब या तो रूपा उस की हो जाती या वह रूपा के वजूद को मिटा देता.

उस पर पागलपन काबिज हो चुका था. दिमागी संतुलन खोता जा रहा था. आखिर उस ने एक योजना बना ली. उसी के तहत वह रूपा की रैकी करने लगा.

11 फरवरी, 2021 को दोपहर करीब सवा बजे रूपा अपनी बहन हेमलता के साथ दवा लेने एक मैडिकल स्टोर पर पहुंची. चंद्रशेखर कई दिनों से रूपा की टोह में लगा था.

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किसी छलावे की तरह चंद्रशेखर रूपा के सामने पहुंच गया. उस के साथ बाइक पर उस के 2 दोस्त भरत निषाद और गोपाल यादव भी थे. अप्रत्याशित रूप से अपने सामने चंद्रशेखर को देख कर रूपा घबरा गई.

चंद्रशेखर ने दोनों को अपने साथ इसलिए रखा था कि किसी तरह का व्यवधान आने पर भरत निषाद और गोपाल यादव उस की मदद करेंगे.

तभी फुरती से देशी तमंचा निकाल कर चंद्रशेखर रूपा की ओर तानते हुए बोला, ‘‘रूपा, तुम मेरी नहीं तो किसी की नहीं.’’

चंद्रशेखर का खूंखार चेहरा देख कर रूपा ने डर कर भागना चाहा तभी चंद्रशेखर ने उस की कलाई पकड़ ली. उस की बड़ीबहन हेमलता ने बीचबचाव करने की कोशिश की. जब तक वह कामयाब होती तब तक गोली रूपा की कनपटी के बाहर हो चुकी थी.

गोली लगते ही रूपा जमीन पर गिर पड़ी. किसी को कुछ समझ में नहीं आया. वे तीनों बाइक पर बैठ कर वहां से भाग गए.

चंद्रशेखर के कहने पर उस के दोस्तों ने उसे नदी मोड़ के पास बाइक से उतार दिया. वारदात को अंजाम देने के बाद दोपहर सवा 2 बजे चंद्रशेखर सीधे थाना सिटी कोतवाली, महासमुंद पहुंचा और आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस को उस ने रूपा की हत्या करने की बात बता दी.

थानाप्रभारी ने उसे हिरासत में ले लिया और पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. थानाप्रभारी ने यह सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में एडिशनल एसपी मेघा टेंभुरकर साहू, एसपी प्रफुल्ल ठाकुर के अलावा पुलिस अधिकारी शेर सिंह बंदे, यू.आर. साहू, संजय सिंह राजपूत (साइबर सेल प्रभारी) योगेश कुमार सोनी, टीकाराम सारथी आदि भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने मृतका के घर वालों से पूछताछ करने के बाद रूपा की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

Crime Story: अपनों की दुश्मनी

इस के बाद उसी दिन शाम के समय आरोपी भरत निषाद और गोपाल यादव को उन्हीं के गांव मुडैना से गिरफ्तार कर लिया गया.

तीनों आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर 15 फरवरी तक पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि पूरी होने से पहले ही पुलिस ने उन्हें फिर से कोर्ट में पेश कर महासमुंद जेल भेज दिया.

Crime Story: मेरी नहीं तो किसी की नहीं- भाग 2

लेखक- विजय पांडेय/श्वेता पांडेय

सौजन्य- सत्यकथा

रास्ते में उस ने एक पेड़ के नीचे बाइक खड़ी की. फिर रूपा को मालिक से हुई तकरार के बारे में बताया. सुन कर रूपा गंभीर हो गई. वह बोली, ‘‘उन्होंने जो कुछ कहा, वह अपनी जगह सही है. अच्छाखासा काम हाथ से निकल गया.’’

‘‘तुम क्यों परेशान हो रही हो रूपा, काम चला गया तो क्या हुआ. हाथपैर और मेरा हुनर थोड़े ही चला गया है.’’ चंद्रशेखर ने उसे समझाया, ‘‘काम करना है तो कहीं भी कर लेंगे. तुम पर ऐसी दरजनों गाडि़यां और नौकरियां कुरबान.’’

फिर चंद्रशेखर जेब के अंदर हाथ डाल कर बंद मुट्ठी निकाल कर बोला, ‘‘गेस करो रूपा, इस मुट्ठी में क्या है?’’

‘‘मुझे क्या मालूम.’’ वह बोली.

‘‘सोचो न.’’

‘‘टौफी है क्या?’’ रूपा ने पूछा.

‘‘नहीं…और कुछ, बताओ.’’

रूपा ने दिमाग पर जोर डाला. फिर उस ने अनभिज्ञता से कंधे उचकाए. तभी चंद्रशेखर बोला, ‘‘चलो, अपनी आंखें बंद करो…और हाथ आगे बढ़ाओ.’’

रूपा ने आंखें बंद कर के अपनी हथेलियां उस के सामने खोल दीं. तभी चंद्रशेखर ने रूपा की हथेली पर कुछ रख कर कहा, ‘‘अब अपनी आंखें खोलो.’’

रूपा ने आंखें खोलीं. एक अंगूठी थी जो अमेरिकन डायमंड की थी और जगमगा रही थी.

अंगूठी पर पेड़ के पत्तों से छन कर आती हुई सूर्य की किरणें पड़ रही थीं. और रिफ्लेक्ट हो कर सात रंगों की किरणें बिखर रही थीं. अंगूठी देख कर रूपा बहुत खुश हुई.

‘‘कैसा लगा?’’ चंद्रशेखर ने पूछा.

‘‘बहुत सुंदर…बहुत ही प्यारा है.’’

‘‘पहन कर दिखाओ जरा.’’

‘‘जब लाए ही हो तो तुम्हीं पहना दो न.’’ कहती हुई रूपा ने अपना हाथ चंद्रशेखर की ओर बढ़ा दिया. रूपा के हाथ से अंगूठी ले कर रूपा को पहना दी. उस की अंगुली में अंगूठी अच्छी लग रही थी.

सड़क के किनारे गन्ने का एक खेत था. चंद्रशेखर ने उस ओर इशारा किया तो रूपा बोली, ‘‘गन्ना खाना चाहते हो तो जाओ ले आओ.’’

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‘‘ऐसा करते हैं दोनों वहीं खेत में चलते हैं.’’

‘‘नहीं…नहीं मुझे गन्ने के झुरमुटों से डर लगता है. मैं नहीं जाऊंगी.’’

चंद्रशेखर ने जिद की तो रूपा को झुकना पड़ा. फिर दोनों गन्ने के खेत की ओर बढ़े और खेत में भीतर घुस गए. दोचार कदम चलने के बाद रूपा ठिठकी. तो चंद्रशेखर बोला, ‘‘अरे, आओ न… आओ, आती क्यों नहीं. अच्छा सा गन्ना तोडें़गे.’’

डरतीझिझकती रूपा चंद्रशेखर के पीछे चलने लगी. गन्ने के सूखे भूरे पत्ते पैरों में दब कर चर्रमर्र की आवाज कर रहे थे. जब दोनों काफी भीतर घुस गए तब चंद्रशेखर ने अपनी बाइक और सड़क की ओर देखा. लेकिन झुरमुटों की वजह से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. अचानक चंद्रशेखर ठिठका. उसे ठिठकते देख कर रूपा भी ठिठक पड़ी.

चंद्रशेखर उस की ओर देखते हुए मुसकराया, ‘‘रूपा, यहां तक चली आई. गन्ना ही खाना होता तो इतनी दूर आने की क्या जरूरत थी. पहले ही न तोड़ लेता.’’

‘‘फिर क्यों आए इतनी दूर? मैं अभी भी नहीं समझी.’’

चंद्रशेखर के होंठों पर शरारत उभर आई. वह रूपा के करीब पहुंचा

और उस के हाथों को अपने हाथ में ले लिया, ‘‘रूपा…’’

चंद्रशेखर ने तर्जनी अंगुली को अंगुली पर रखा तो रूपा बोली, ‘‘ओह… इसलिए मुझे यहां इतनी दूर लाए हो.’’

‘‘हां, तुम तो जानती हो कि वहां तो ऐसा कुछ कर नहीं पाते, जगह भी मुफीद नहीं थी. यहां भला हमें कौन देखेगा.’’ कह कर चंद्रशेखर ने रूपा को अपने बाहुपाश में लेना चाहा. वह कोई ठोस निर्णय ले पाता कि उस ने देखा रूपा उस के पीछे देख रही है.

वह पीछे पलटा तो एक गाय तेजी से दौड़ती आ रही थी. गाय के पीछे से रखवाली करने वाले किसान की हा…हू.. की आवाज उन दोनों के कानों तक पहुंची. रूपा बोली, ‘‘चलो, यहां से. गाय आ रही है. लगता है, किसान गांव के पीछेपीछे आ रहा है.’’

फिर कई गायों का झुंड गन्ने में घुस आया. किसान की आवाज भी करीब आती जा रही थी. फिर रूपा वहां नहीं ठहरी. वह हाथों से गन्ने के पत्तों को अलग करती हुई वहां से भागी. चंद्रशेखर भी हड़बड़ाए अंदाज में बाइक की ओर भागा.

रूपा हांफ रही थी. वह हांफती हुई बोली, ‘‘खा लिए गन्ने? ऊपर से देखो…’’ उस के सैंडिल की पट्टी एक ओर से उखड़ गई थी. पत्तों से हाथपैर अलग छिल गए थे.

रूपा बोली, ‘‘कहां ला कर फंसा दिया.’’

फिर दोनों वहां ठहरे नहीं. बाइक पर बैठ कर चले गए.

इस के बाद दोनों की मेलमुलाकातों की चर्चाएं पहले कानाफूसी में तब्दील हुईं. फिर बेलसोंडा में दोनों की मुलाकात और प्यार की चर्चाएं होने लगीं. यह बात रूपा के पिता सुरेंद्र और मां जमुना के कानों तक भी पहुंची.

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चूंकि लड़की बालिग हो चुकी थी और बगावत पर उतर सकती थी. इसलिए सुरेंद्र ने रूपा को अपनी बड़ी बेटी हेमलता की ससुराल में उस के पास भेज दिया. रूपा हेमलता के यहां 20-25 दिन रह कर पिता के घर आ गई.

इस बीच चंद्रशेखर ट्रक चलाने लगा था. गुजरे हुए समय में रूपा और चंद्रशेखर ने सैकड़ों ख्वाब देखे थे. गांव आने के बाद कुछ समय तक सब कुछ ठीक चलता रहा.

20-25 दिनों की जुदाई के बाद चंद्रशेखर और रूपा की मुलाकात हुई. चंद्रशेखर ने उस से शिकायत की, ‘‘रूपा, तुम अपनी बहन के पास रायपुर जा कर इतनी मशगूल हो गईं कि एक फोन तक नहीं किया.’’

‘‘मेरे पास फोन था ही कहां,’’ रूपा सफाई में बोली.

‘‘क्यों, कहां गया तुम्हारा फोन?’’

‘‘घर वालों ने ले लिया था.’’

‘‘नंबर तो जानती हो. फोन किसी से मांग लेती.’’

‘‘मैं दीदी की देखभाल में थी.’’

‘‘यह क्यों नहीं कहतीं कि मैं याद ही नहीं रहा तुम्हें.’’ चंद्रशेखर ने कहा.

‘‘नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है. हमारा मिलना और हमारा प्यार गांव वालों की नजरों में आ चुका है. अब ऐसा लगता है कि हमें एकदूसरे से नहीं मिलना चाहिए.’’ रूपा बोली.

‘‘रूपा…तुम मिलने की बात पर अटकी हो, मैं तो तुम से शादी करना चाहता हूं.’’ चंद्रशेखर बोला.

‘‘हमारे चाहने से क्या होगा? घर वालों और समाज की मंजूरी भी जरूरी है.’’ रूपा तनिक चिढ़ गई.

‘‘रूपा, तुम्हारी यह बात गलत है. बताओ, जब तुम ने मुझ से प्यारर किया था तो क्या घर, समाज और परिवार से पूछ कर किया था?’’

‘‘नहीं, उस वक्त मुझ पर घरपरिवार और समाज का दबाव नहीं था. और आज मैं इन तीनों की निगाहों में हूं. मुझ में इतनी ताकत नहीं है कि मैं इन से लड़ कर विद्रोह कर सकूं.’’ रूपा ने कहा.

‘‘यह बात तुम्हें उस वक्त सोचनी चाहिए थी, जब प्यार की डगर पर चंद कदम ही बढ़ी थीं. अब तो हम बहुत दूर निकल आए हैं रूपा. इस का मतलब, तुम मेरा साथ नहीं दोगी?’’

‘‘माना कि हम दोनों साल भर साथ रहे, दोस्त की तरह. लेकिन इस अपनेपन को प्यार का नाम नहीं दिया जा सकता.’’

कुछ पलों तक हैरानगी, बेचारगी से रूपा की ओर देख कर चंद्रशेखर बोला, ‘‘ऐसा मत कहो रूपा. हमारी चाहत को अपनेपन का लबादा मत ओढ़ाओ. मैं ने तुम्हें और खुद को ले कर ढेरों ख्वाब देखे हैं. तुम्हारे विचार जान कर जी चाहता है कि इसी सड़क पर किसी वाहन के नीचे कुचल कर मर जाऊं.’’

वह गहरी सांस ले कर फिर बोला, ‘‘सचमुच मैं बहुत दूर निकल आया हूं तुम्हारे साथ, अब वापस लौटना मुमकिन नहीं.’’

‘‘सड़क पर सिर पटक कर मरना चाहते हो, ऐसा कर के क्या यह जाहिर करना चाह रहे हो कि तुम मेरे बिना जी नहीं सकते?’’ रूपा तीखे शब्दों में बोली.

चंद्रशेखर रूपा की बात सुन कर पहली बार आपे से बाहर होता हुआ बोला, ‘‘मत भूलो रूपा कि जिस सड़क पर मैं स्वयं को फना करने का माद्दा रखता हूं. यहीं इस सड़क पर तुम्हारे साथ भी कर सकता हूं.’’

वह फिर गिड़गिड़ाया, ‘‘प्लीज रूपा, ऐसा मत कहो.’’

‘‘चंद्रशेखर, तुम समझने का प्रयास नहीं कर रहे हो या फिर समझना नहीं चाहते.’’

‘‘रूपा, तुम क्या समझाना चाह रही हो? और मैं क्या नहीं समझ रहा हूं?’’

‘‘तो सुनो, फिर कह रही हूं कि जिसे तुम प्यार समझ रहे हो, वह प्यार नहीं. सिर्फ दोस्ती थी.’’ इस के बाद चंद्रशेखर के होंठों से बेबसी में शब्द निकले, ‘‘रूपा, जिस प्यार को तुम दोस्ती का नाम दे रही हो, इस से अच्छा है कि इसे बेनाम ही रहने दो. मैं देख रहा हूं तुम्हारा व्यवहार बदल रहा है.’’

चंद्रशेखर अभी कुछ और बोलने ही जा रहा था कि रूपा यह कहते हुए वहां से चली गई कि तुम्हें जो समझना है, समझते रहो. इतना मान कर चलो कि अब मैं तुम से कभी नहीं मिलूंगी.

अगले भाग में पढ़ें- चंद्रशेखर ने रूपा पर किया हमला

Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah में कभी नहीं लौटेंगी दया बेन! पढ़ें खबर

सब टीवी का फेमस शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) दर्शकों के बीच काफी मशहूर है. घर-घर में इस शो को खूब पसंद किया जाता है. अब इस शो से जुड़ी एक बड़ी खबर आ रही है कि दया बेन यानी दिशा वकानी ने शो को अलविदा कह दिया है.

जी हां, सही सुना आपने. इस शो में दयाबेन का किरदार निभाने वालीं दिशा वकानी (Disha Vakani) ने हमेशा के लिए शो को बाय-बाय कह दिया है.

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दयाबेन के शो छोड़ने की खबर से फैन्स काफी दुखी हैं और इससे आने वाले दिनों में शो की टीआरपी पर भी बुरा असर पड़ सकता है.

हालांकि दिशा वकानी 2017 में ही शो से मैटरनिटी ब्रेक लिया था लेकिन फैंस को उनके वापसी का बेसब्री से इंतजार था. लेकिन अब बताया जा रहा है कि वह हमेशा के लिए इस शो से ब्रेक ले चुकी हैं.

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एक रिपोर्ट के अनुसार,  मैटरनिटी ब्रेक के बाद दिशा वकानी के साथ मेकर्स की बात चल रही थीं ताकि वह शो में आ जाएं. उनकी एंट्री को लेकर सही टाइम और कहानी भी बुनी जा रही थी. लेकिन अब ये कहा जा रहा है कि दिशा वकानी ने ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ को हमेशा के लिए अलविदा कहने का फैसला कर लिया है.

ये भी बताया जा रहा है कि 2019 में दिशा वकानी ने शो के लिए एक सीन की भी शूटिंग की थी. और इस सीन में वह अपने परिवार यानी जेठालाल, बेटे और गोकुलधाम के अन्य पड़ोसियों को आश्वासन दे रही थीं कि वह जल्द ही गोकुलधाम वापस आएंगी.

Bhabiji Ghar Par Hain की अनिता भाभी ने अपने पति के हेटर्स को लगाई लताड़, कही ये बात

भाभी जी घर पर है (Bhabiji Ghar Par Hain)  एक्ट्रेस नेहा पेंडसे यानी अनिता भाभी इन दिनों सुर्खियों में छायी हुई हैं. अब उन्होंने अपने पति के हेटर्स को करारा जवाब दिया है.

दरअसल नेहा पेंडसे (Nehha Pendse) ने 5 जनवरी 2020 को अपने बॉयफ्रेंड शार्दुल ब्यास से शादी की. और उनके पति तलाकशुदा हैं. यह बात अनिता भाभी के फैंस को बर्दाश्त नहीं हो रही है.  हालांकि दोनों की शादी को एक साल हो गए लेकिन आज भी फैंस नेहा पेंडसे के पति को ट्रोल करते रहते हैं.

 

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ऐसे में नेहा पेंडसे ने ट्रोलर्स को मुंहतोड़ जवाब दी हैं. रिपोर्ट के अनुसार नेहा पेंडसे यानी अनिता भाभी ने अपने पति के बारे में खुलकर बात की. उन्होंने कहा, मुझे लगता है कि मेरी वजह से लोग मेरे पति को नापसंद करने लगे हैं. लोगों को लगता है कि मैंने इतना बड़ा फैसला कैसे ले लिया, परिवार ने इस शादी के लिए हां कैसे बोल दी.

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उन्होंने आगे कहा लोग इतनी आजादी से अपनी जिंदगी के फैसले नहीं ले पाते. मैं लंबे समय से इंडस्ट्री में काम कर रही हूं. मुझे लेकर आज तक कोई विवाद नहीं हुआ है. शादी के बाद से मुझे नेगेटिव पब्लिसिटी मिल रही है. मुझे विवादों में रहने की आदत नहीं है.

इतना ही नहीं अनिता भाभी ने ट्रोलर्स के लिए ये भी कहा, लोगों को लगता है कि किसी फिट अदाकारा का पति मोटा कैसे हो सकता है, मैं ट्रोलर्स से जानना चाहती हूं कि क्या फिटनेस को शादी का मापदंड माना जा सकता है. इंसान फिट होना चाहिए भले ही उन्हें 2 पैसे की अक्ल न हो.

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मिली जानकारी के अनुसार, नेहा पेंडसे ने कहा, लोगों की सोच घटिया है. ट्रोलिंग के बाद मुझे इस बात का एहसास हुआ कि मैंने कितना बड़ा कदम उठाया है. शादी की वजह से लोग मुझसे नफरत करने लगे हैं. लोग अपनी सोच में बदलाव ही नहीं लाना चाहते. सब यही सोचते हैं कि तलाकशुदा के साथ शादी कर ली तो समाज क्या सोचेगा. सोसाइटी की वजह से लोग फैसला नहीं ले पाते.

वर्कफ्रंट की बात करे तो नेहा टीवी का मशहूर कॉमेडी सीरियल ‘भाभी जी घर पर हैं’ में अनिता भाभी का किरदार निभा रही हैं, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं.

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