Crime Story: माया के लिए किया गुनाह- भाग 1

सौजन्य-  सत्यकथा

8जनवरी, 2021 की बात है. सुबह के करीब 5 बजे थे. गुजरात के सूरत जिले के पुणा पुलिस थाने को एक अहम सूचना मिली. सूचना देने वाले व्यक्ति ने इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया को फोन पर बताया कि कुमारियां गांव के सर्विस रोड स्थित रघुवीर सिलियम मार्केट के सामने बुरी तरह जख्मी एक महिला पड़ी है. उस के सिर पर गहरी चोट है. मामला सड़क दुर्घटना का लगता है. आप शीघ्र काररवाई करें.

इस जानकारी को इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया ने गंभीरता से लिया. अपने सहायकों को साथ ले कर वह तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

घटनास्थल पुणा पुलिस थाने से लगभग एक किलोमीटर दूर था. पुलिस वहां मुश्किल से 10 मिनट में पहुंच गई. इस बीच घटना की जानकारी पूरे इलाके में फैल चुकी थी और वहां अच्छाखासा मजमा लग गया था.

पुलिस टीम जब वहां पहुंची तो खून ही खून फैला हुआ था. खून के अलावा वहां कुछ नहीं था. पुलिस टीम ने जब वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि उन के आने के पहले एक एंबुलैंस आई और उसे उठा कर इलाज के लिए पास ही के स्मीमेर अस्पताल ले गई.

इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया को मामला गंभीर लगा. उन्होंने यह जानकारी अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. इस के बाद उन्होंने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया.

निरीक्षण करने के बाद वह सीधे स्मीमेर अस्पताल पहुंचे. वहां पता चला कि उस महिला की उपचार के दौरान ही मौत हो गई थी. महिला को उस की ससुराल के लोग अस्पताल लाए थे. वह भी अस्पताल में ही मौजूद थे. थानाप्रभारी ने उन से पूछताछ की तो मालूम हुआ कि मृतक महिला का नाम शालिनी था. उस की मौत अस्पताल लाने के 20 मिनट बाद हुई थी.

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शालिनी के पति अनुज कुमार यादव उर्फ मोनू ने बताया कि वह अपनी पत्नी शालिनी के साथ सुबह 5 बजे अकसर उस रोड पर मौर्निंग वाक के लिए जाता था. एक घंटे की वाक के बाद वे अपने घर आ जाते थे.

घटना के समय टहलते हुए जब वह अपनी पत्नी से कुछ दूर आगे चल रहा था, तभी अचानक रेत से भरा एक ट्रक तेजी से आया और शालिनी को रौंदता हुआ वड़ोदरा की तरफ निकल गया. घबराहट में जब तक वह कुछ समझ पाता, तब तक ट्रक उस की आंखों से ओझल हो गया था.

सुनसान सड़क होने के कारण उसे जल्दी कोई मदद भी नहीं मिली. वह अपना फोन घर भूल आया था. जिस की वजह से मजबूरन उसे शालिनी को घायलावस्था में वहीं छोड़ कर एंबुलैंस लाने के लिए जाना पड़ा.

अस्पताल के डाक्टरों के बयानों के बाद पुलिस ने शालिनी के शव का बारीकी से मुआयना किया और उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भिजवा दिया.

थानाप्रभारी थाने लौट आए. शुरुआती जांचपड़ताल में जहां एक तरफ मामला हिट ऐंड रन का बन रहा था, वहीं दूसरी तरफ शालिनी की हत्या की साजिश से भी इनकार नहीं किया जा सकता था. बहरहाल, शालिनी के पति अनुज यादव की शिकायत पर पुलिस ने ड्राइवर और ट्रक के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया.

दूसरी ओर जब इस हादसे की खबर शालिनी के मायके वालों को मिली तो उन के पैरों तले से जमीन सरक गई. उन की बेटी शालिनी किसी हादसे का शिकार हो गई, यह बात उन के गले नहीं उतर रही थी. उन के पूरे परिवार में बेटी को ले कर कोहराम मच गया. उस की मां, बहनों और भाइयों का रोरो कर बुरा हाल था. शालिनी के पिता धनीराम यादव ने फोन पर इंसपेक्टर वी.यू. गड़रिया से बात की और दूसरे दिन शाम होतेहोते वह आगरा जिले में स्थित अपने गांव से सूरत आ गए.

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साजिश का संदेह

शालिनी के पिता धनीराम यादव ने शालिनी की मौत को एक सोचीसमझी साजिश बता कर उस की ससुराल वालों को संदेह के राडार पर खड़ा कर दिया. मायके वाले शालिनी के शव पर अपना दावा करते हुए उस का दाह संस्कार अपने गांव ले जा कर करना चाहते थे. साथ ही वे शालिनी की 2 वर्षीय बेटी को भी अपने संरक्षण में लेना चाहते थे. लेकिन इस के लिए शालिनी के ससुराल वाले तैयार नहीं थे. ससुराल वाले उस का शव हासिल करने की कोशिश में लगे थे.

जिस प्रकार शालिनी के पिता धनीराम यादव ने उस के पति और ससुराल वालों को शालिनी की मौत का जिम्मेदार ठहरा कर उन पर आरोप लगाया था, उस से मामला उलझ गया था. दोनों तरफ बातों में कितनी सच्चाई है, पुलिस अधिकारी इस का अध्ययन कर अपनी जांच की रूपरेखा तैयार कर ही रहे थे कि सूरत की सीबीसीआईडी के हाथों में चला गया.

पोस्टमार्टम के बाद शालिनी का शव उस के पिता धनीराम यादव को सौंप दिया गया. जो उसे अपने गांव ले गए. अपनी बेटी का दाह संस्कार करने के बाद धनीराम यादव ने सूरत के नए पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर से मुलाकात कर बेटी की मौत के मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की.

पुलिस कमिश्नर अजय कुमार तोमर इस मामले पर पहले से ही नजर बनाए हुए थे. उन्होंने शालिनी के केस को गंभीरता से लेते हुए उन्हें इंसाफ दिलाने का भरोसा दिया.

इस के पहले कि पुलिस अधिकारी केस की जांच को ले कर कोई काररवाई करते, शालिनी की मौत को ले कर पूरे शहर में सनसनी फैल गई.

हुआ यह कि शालिनी की मौत को ले कर कई दैनिक अखबारों ने दिलचस्पी लेते हुए उसे हाईलाइट कर दिया. जिस से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा भर गया. पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह लोगों को समझाया.

सीबीसीआईडी के प्रमुख आर.आर. सरवैया मामले की जांच करने में जुट गए. सरवैया काफी सुलझे हुए तेजतर्रार अधिकारी थे. उन की अपनी अलग पहचान थी.

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मामले की जिम्मेदारी लेते ही उन्होंने अपने स्टाफ के इंसपेक्टर प्रदीप सिंह बाला को साथ ले कर केस की जांच शुरू कर दी. उन्होंने अपने स्तर पर अस्पताल और घटनास्थल का दोबारा निरीक्षण किया. उन्होंने वहां लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज देखने के साथसाथ वहां के निवासियों के बयान लिए.

उन के बयानों का क्राइम ब्रांच अधिकारियों ने जब बारीकी से अध्ययन किया तो उन्हें दाल में कुछ काला नजर आया. जब उन्होंने मामले की जांच की तो पूरी दाल ही काली निकली. सुबहसुबह जिस रोड पर वह वाक करने जाते थे, उस समय वह रोड एकदम सुनसान रहती थी.

अगले भाग में पढ़ें- अनुज ने की परफेक्ट प्लानिंग

Crime Story: माया के लिए किया गुनाह- भाग 2

सौजन्य-  सत्यकथा

फिर इतनी सुबह उन के वहां मौर्निंग वाक पर जाने का क्या मतलब था. इस का मतलब शालिनी के पति अनुज कुमार यादव का बयान संदिग्ध था. जो आरोप शालिनी के पिता ने उस पर लगाया था, वह अपराध की श्रेणी में आता था. इस के साथ पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी रहस्यमय थी.

क्राइम ब्रांच अधिकारियों ने जब इस की तह में जाना शुरू किया तो शालिनी के ससुराल वाले कुछ इस प्रकार उलझे कि उन के हौसले पस्त हो गए और शालिनी हत्याकांड का सच बाहर आ गया. साजिश कितनी गहरी थी, यह जान कर जांच अधिकारी भी सन्न रह गए. पैसों की भूख ने शालिनी के ससुराल वालों को अपराध की दलदल में धकेल दिया था.

25 वर्षीय अनुज कुमार यादव उर्फ मोनू मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के रहने वाले सोहन सिंह यादव का एकलौता बेटा था. सोहन सिंह यादव कई साल पहले काम की तलाश में गुजरात के शहर सूरत आए थे और सूरत की एक सिक्योरिटी कंपनी में नौकरी करने लगे. जब वह सारे नियमकायदे जान गए तो उन्होंने खुद की सेवा सिक्योरिटी एजेंसी खोल ली.

थोड़े ही दिनों में उन की सिक्योरिटी एजेंसी अच्छी चल निकली और उन के पास 100-150 गार्ड हो गए. सूरत शहर में उन की कई शाखाएं खुल गईं. अच्छा पैसा आया तो उन्होंने अपने रहने के लिए कुमारियां

गांव स्थित सारथी रेजीडेंसी में अच्छा सा फ्लैट ले लिया.

सूरत में उन की और सिक्योरिटी एजेंसी की प्रतिष्ठा थी. वह सूरत के सम्मानित नागरिक बन गए थे. परिवार में उन की पत्नी और बेटे के अलावा एक बेटी पूजा उर्फ नीरू थी, जिस की शादी बुलंदशहर के सरपंच के बेटे रघुवेश यादव से हो गई थी. शादी के बाद भी पूजा अपनी ससुराल में कम और मायके में ज्यादा रहती थी.

अनुज उर्फ मोनू महत्त्वाकांक्षी था, वह पैसों का लोभी था. पढ़ाई खत्म करने के बाद उस का मन पिता की सिक्योरिटी एजेंसी में नहीं लगा. उस ने अपनी ट्रांसपोर्ट कंपनी खोल ली. उसे यह लुभावना सपना उस के नौकर मोहम्मद नईम उर्फ पप्पू ने दिखाया था, जो 5 साल पहले उस केपिता की सिक्योरिटी एजेंसी में गार्ड की सर्विस करता था. सिक्योरिटी की नौकरी छोड़ कर वह ट्रांसपोर्ट की लाइन में चला गया था.

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लालच की हद

अनुज उर्फ मोनू का ट्रांसपोर्ट का कारोबार जब ठीकठाक चलने लगा तो पिता सोहन सिंह यादव ने दिसंबर, 2017 में उत्तर प्रदेश के आगरा जिले के गांव जाफरापुर निवासी धनीराम यादव की बेटी शालिनी के साथ उस की शादी कर दी. धनीराम यादव गांव के जानेमाने काश्तकार थे. उन्होंने बेटी की शादी में अपनी हैसियत के अनुसार दानदहेज दिया.

शालिनी जिन सपनों को ले कर ससुराल आई थी, उस के उन सपनों की हकीकत जल्दी ही सामने आ गई. शादी के 4 महीने बाद ही ससुराल वाले उस के मायके वालों से 5 लाख रुपयों की मांग करने लगे. कुछ दिनों बाद वह शालिनी को प्रताडि़त भी करने लगे थे.

यह बात शालिनी के मायके वालों को पता लगी तो उन्हें बहुत दुख हुआ. उन्होंने अनुज को बुला कर 2 लाख रुपए दे दिए और बाकी 3 लाख रुपए आलू की फसल बेच कर देने का वादा कर लिया.

इतना करने के बाद भी शालिनी के प्रति जब ससुराल वालों का व्यवहार नहीं बदला तो वह जा कर शालिनी को मायके ले आए. लेकिन एक महीने बाद ही उस की ससुराल वाले उसे वापस अपने घर ले गए.

इस बीच शालिनी मां बनी और एक बच्ची को जन्म दिया. अनुज के परिवार वालों को बेटी पैदा होने की जरा भी खुशी नहीं हुई. शालिनी को बेटी होने की भी प्रताड़ना भी सहनी पड़ती थी. यहां तक कि शालिनी को अपने पास फोन तक रखने की इजाजत नहीं थी.

अनुज तो दहेज को ले कर शालिनी को तरहतरह से प्रताडि़त करता था. उस की बहन पूजा उर्फ नीरू, पिता सोहन सिंह यादव और उस के 2 चचेरे भाई गोपाल और गंगाराम यादव भी इस में पीछे नहीं रहते थे.

पैसों का भूखा अनुज अपने परिवार के साथ शालिनी पर अत्याचार तो करता ही था, उन की योजना बीमा कंपनियों को भी चूना लगाने की थी. ट्रांसपोर्ट के कारोबार में होने के कारण बीमे का फंडा उसे अच्छी तरह मालूम था. इसीलिए उस ने अपने पूरे परिवार के लिए नकली दस्तावेज दे कर जीवन बीमा पौलिसी करा ली थीं. पिता, बहन और पत्नी की पौलिसियों का वह स्वयं नौमिनी था और अपनी पौलिसी का नौमिनी उस ने अपने पिता को बनाया था.

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परफेक्ट प्लानिंग

जीवन बीमा की 3-4 किस्तें के बाद अनुज अपने पिता और बहन का फरजी डेथ सर्टिफिकेट लेने के लिए अपनी बहन के सरपंच ससुर के पास बुलंदशहर गया. मगर वहां पूजा के पति रघुवेश की वजह से वह अपनी योजना में सफल नहीं हुआ. इस पर भाईबहन ने मिल कर रघुवेश यादव को दहेज के आरोप में गिरफ्तार करवा दिया.

समय अपनी गति से चल रहा था. धीरेधीरे  शालिनी की शादी को 2 साल से अधिक समय हो गया. बेटी एक साल की हो गई थी. फिर भी शालिनी के प्रति उस की ससुराल वालों का व्यवहार नहीं बदला. इस से नाराज शालिनी के घर वालों ने सन 2019 में शालिनी के ससुराल वालों पर धावा बोल दिया और उन की अच्छी तरह पिटाई कर दी.

इस के बाद शालिनी का व्यवहार भी बदल गया. उस ने अपनी ससुराल वालों से डरना छोड़ दिया. ससुराल वालों का जबजब सुर बदलता, तबतब शालिनी उन्हें अपने मायके वालों की धमकी दे देती थी. इस का प्रतिकूल असर उस के पति अनुज पर पड़ता था, जिसे अनुज अपना अपमान समझता था.

इस अपमान की आग अनुज के दिल में ऐसी लगी कि उस ने शालिनी का अस्तित्व ही मिटा डालने का फैसला कर लिया. उस ने शालिनी और उस के मायके वालों से एक खौफनाक अंदाज में अपने अपमान का बदला लेने की ठान ली.

अगले भाग में पढ़ें- साजिश को दिया अंजाम

Serial Story: लव ऐट ट्रैफिक सिगनल- भाग 2

कंपनी ने दुबई के खूबसूरत जुमेरह बीच पर स्थित पांचसितारा होटल ‘मुवेन पिक’ में प्रोग्राम रखा था. उसी होटल में 2 बैड के एक कमरे में मुझे और मेरे इवैंट मैनेजर के ठहरने का इंतजाम था. होटल तो मैं दोपहर में ही पहुंच गया था, पर शाम को मैं रिसैप्शन पर प्रोग्राम के लिए होने वाली तैयारी की जानकारी लेने आया तो देखा रिसैप्शन पर एक लड़की बहस कर रही है. निकट पहुंचा तो देखा यह शोभना थी.

मैं ने पूछा कि वह दुबई में क्या कर रही है तो उस ने कहा, ‘‘मुझे कंपनी ने भेजा है और कहा कि मेरा कमरा यहां बुक्ड है. पर यह बोल रहा है कि कोई रूम नहीं है. बोल रहा कि कंपनी ने शेयर्ड रूम की बुकिंग की है.’’

मेरे रिसैप्शन से पूछने पर उस ने यही कहा कि शेयर्ड बुकिंग है इन की. मैं ने रूम पूछा तो उस ने चैक कर जो नंबर बताया, वह मेरा था. शोभना भी यह सुन कर चौंक गई थी. मैं ने उसे चैकइन कर मेरे रूम में चलने को कहा और बोला, ‘‘तुम रूम में चलो, मैं थोड़ी देर में इन की तैयारी देख कर आता हूं.’’

थोड़ी देर में जब वापस अपने रूम के दरवाजे पर नौक किया तो आवाज आई, ‘‘खुला है, कम इन.’’ मैं ने सोफे पर बैठते हुए पूछा, ‘‘तुम अचानक दुबई कैसे आई? कल शाम तो तुम साथ में थीं. तुम ने कुछ बताया नहीं था.’’

शोभना बोली, ‘‘तब मुझे पता ही कहां था? मैं हैदराबाद के इवैंट मैनेजमैंट कंपनी में काम करती हूं. मेरी कंपनी को इस इवैंट का कौन्ट्रैक्ट मिला है. मेरा मैनेजर आने वाला था. पर अचानक उस की पत्नी का ऐक्सिडैंट हो गया तो कंपनी ने मुझे भेज दिया. वह तो संयोग से मेरा यूएई का वीजा अभी वैलिड था तो आननफानन कंपनी ने मुझे भेज दिया.’’

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तब मेरी समझ में सारी बात आई और मैं ने उस से कहा, ‘‘यह कमरा मुझे तुम्हारे मैनेजर के साथ शेयर करना था. अब उस की जगह तुम आई हो, तो एडजस्ट करना ही है. वैसे, मैं कोशिश करूंगा पास के किसी होटल में रूम लेने को, अगर नहीं मिला तो मैं यहीं सोफे पर सो जाऊंगा.’’

शोभना बोली, ‘‘नहीं, नहीं. सोफे पर क्यों सोना है? दोनों बैड काफी अलगअलग हैं. काम चल जाएगा.’’ खैर, अगले दिन हमारा प्रोग्राम शुरू हुआ. सबकुछ पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार अच्छे से चल रहा था. मेरी कंपनी के प्रौडक्ट की सभी डैलीगेट्स ने प्रशंसा की थी. शोभना भी दिनभर काफी मेहनत कर रही थी. वह काले रंग के बिजनैस सूट में काफी स्मार्ट लग रही थी. सभी विदेशी डैलीगेट्स से एकएक कर मिली और पूछा कि वे संतुष्ट हैं या नहीं. दिनभर एक पैर पर खड़ी रही थी सभी मेहमानों का खयाल रखने के लिए.

पहले दिन का प्रोग्राम खत्म कर हम दोनों अपने रूम में आ गए और डिनर रूम में ही मंगवा लिया था. थोड़ी देर तक दूसरे दिन के प्रोग्राम पर कुछ बातें हुईं और हम अपनेअपने बैड पर जो गिरे तो सुबह ही आंखें खुलीं. जल्दीजल्दी तैयार हो दोनों नीचे हौल में गए जहां यह कार्यक्रम चल रहा था. डैलीगेट्स के आने से पहले पहुंचना था हमें.

इस दिन का प्रोग्राम भी संतोषजनक और उत्साहवर्धक रहा था. हमें कुछ स्पौट और्डर भी मिले, तो कुछ ने अपने देश लौट कर और्डर देने का आश्वासन दिया. शोभना आज गहरे नीले रंग के सूट में और निखर रही थी. वह सभी डैलीगेट्स को एकएक कर कंपनी की ओर से गिफ्ट पैकेट दे कर विदा कर रही थी.

प्रोग्राम समाप्त हुआ तो दोनों अपने रूम में आ गए थे. मैं ने पूछा कि विश्वविख्यात दुबई मौल घूमने का इरादा है तो वह बोली, ‘‘मुझे अकसर ज्यादा देर तक खड़े रहने से दोनों पैरों में घुटनों के नीचे भयंकर दर्द हो जाता है. मैं तो डर रही थी कि कहीं बीच में ही प्रोग्राम छोड़ कर न आना पड़े. अमित, आज का दर्द बरदाश्त नहीं हो रहा. जल्दी में दवा भी लाना भूल गई हूं. और सिर भी दर्द से फटा जा रहा है. प्लीज, मुझे यहीं आराम करने दो, तुम घूम आओ.’’

हालांकि थका तो मैं भी था, अंदर से मेरी भी इच्छा बस आराम करने की थी. मैं ने कहा, ‘‘मैं बाहर जा रहा हूं. दरवाजा बंद कर ‘डौंट डिस्टर्ब’ बोर्ड लगा दूंगा. तब तक तुम थोड़ा आराम कर लो.’’ मैं थोड़ी ही देर में होटल लौट आया था. थोड़ी दूर पर एक दवा दुकान से पेनकिलर, स्प्रे और सिरदर्द वाला बाम खरीद लाया था. धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर गया. शोभना नींद में भी दर्द से कराह रही थी. मैं ने धीरे से उस के दोनों पैर सीधे किए. तब तक उस की नींद खुल गई थी. उस ने कहा, ‘‘क्या कर रहे हो?’’

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मैं ने थोड़ा हंसते हुए कहा, ‘‘अभी तो कुछ किया ही नहीं, करने जा रहा हूं?’’

तभी उस ने सिरहाने पड़े टेबल से फोन उठा कर कहा, ‘‘मैं होटल मैनेजर को बुलाने जा रही हूं.’’

मैं ने पौकेट से दोनों दवाइयां निकाल कर उसे दिखाते हुए कहा, ‘‘पागल मत बनो. 2 रातों से तुम्हारे बगल के बैड पर सो रहा हूं. मेरे बारे में तुम्हारी यही धारणा है. लाओ अपने पैर दो. स्प्रे कर देता हूं, तुरंत आराम मिलेगा.’’

मैं ने उस के दोनों पैरों पर स्प्रे किया और एक टैबलेट भी खाने को दी.

स्प्रे से कुछ मिनटों में उसे राहत मिली होगी, सोच कर पूछा, ‘‘कुछ आराम मिला?’’ उस के चेहरे पर कुछ शर्मिंदगी झलक रही थी. वह बोली, ‘‘सौरी अमित. मैं नींद में थी और तुम ने अचानक मेरी टांगें खींचीं तो मैं डर गई. माफ कर दो. पैरों का दर्द तो कम हो रहा है पर सिर अभी भी फटा जा रहा है.’’

मैं सिरदर्द वाला बाम ले कर उस के ललाट पर लगाने जा रहा था तो उस ने मेरे हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहा, ‘‘अब और शर्मिंदा नहीं करो. मुझे दो, मैं खुद लगा लूंगी.’’

मैं ने लगभग आदेश देने वाले लहजे में चुपचाप लेटे रहने को कहा और बाम लगाने लगा. वह मेरी ओर विचित्र नजरों से देख रही थी और पता नहीं उसे क्या सूझा, मुझे खींच कर सीने से लगा लिया. हम कुछ पल ऐसे ही रहे थे, फिर मैं ने उस के गाल पर एक चुंबन जड़ दिया. इस पर वह मुझे दूर हटाते हुए बोली, ‘‘मैं ने इस की अनुमति नहीं दी थी.’’

मैं भी बोला ‘‘मैं ने भी तुम्हें सीने से लगने की इजाजत नहीं दी थी.’’

इस बार हम दोनों ही एकसाथ हंस पड़े थे. अगले दिन हम दुबई मौल, अटलांटिस और बुर्ज खलीफा घूमने गए. ये सभी अत्यंत सुंदर व बेमिसाल लगे थे. इसी दिन शाम की फ्लाइट से दोनों हैदराबाद लौट आए हैं. फ्लाइट में उस ने बताया कि पिछले 3 दिन उस की जिंदगी के सब से हसीं दिन रहे हैं. मेरी मां आने वाली हैं, हो सकता है मुझे कोई ब्रेकिंग न्यूज सुनाएं.

इधर 2 दिनों से शोभना नहीं दिखी पर फोन पर बातें हो रही थीं. मन बेचैन हो रहा है उस से मिलने को. शायद उस से प्यार करने लगा था. मैं ने उसे फोन कर मिलने को कहा तो वह बोली कि उस की मां आई हुई हैं. उन्होंने मुझे शाम को घर पर बुलाया है. इस के पहले हम कभी एकदूसरे के घर नहीं गए थे. शाम को शोभना के घर गया तो पहले तो मां से परिचय कराया और उन से मेरी तारीफ करने लगी.

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आम्रपाली दुबे को अपने असली साथी का है इंतजार, होनी चाहिए ये क्वालिटी  

भोजपुरी इंडस्ट्री की फेमस एक्ट्रेस आम्रपाली दुबे अपनी एक्टिंग के जरिये फैंस के दिलों पर राज करती हैं. तभी तो उनसे जुड़ी खबरों का फैंस को बेसब्री से इंतजार रहता है.

आम्रपाली दुबे (Amrapali Dubey) भले ही कई लोगों के सपनों की मल्लिका हो लेकिन उन्हें अब तक अपने सपनों का राजकुमार नहीं मिला है. जी हां सही सुना आपने. अब आम्रपाली दुबे ने अपनी शादी के बारे में चौंकाने वाला खुलासा किया है और बताया है कि वो अभी शादी करने के मूड में नहीं हैं.

 

खबर ये आ रही है कि आम्रपाली दुबे ने बताया है कि उन्हें अपने असली साथी का इंतजार है, जिसके लिए वो इंतजार करने के लिए तैयार हैं.

 

बताया जा रहा है कि आम्रपाली दुबे (Amrapali Dubey) ने बताया है कि  मेरे घरवाले यह सवाल खूब पूछते हैं और मैं कहती हूं कि मैं 40 साल से पहले शादी नहीं करने वाली हूं. उन्होंने ये भी बताया कि मेरे इस जवाब से मां चिढ़ जाती हैं लेकिन मैं सही इंसान के इंतजार में हूं.

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रिपोर्ट्स के अनुसार आम्रपाली दुबे ने बताया कि मुझे एक ईमानदार इंसान चाहिए. मैं पैसा कमा सकती हूं, घर का पूरा ध्यान रख सकती हूं लेकिन मुझे एक लॉयल पति चाहिए.

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लाइव सेशन के दौरान सुष्मिता सेन के ब्वॉयफ्रेंड रोहमन छिपा रहे थे अपना चेहरा, देखें Video

बॉलीवुड  एक्ट्रेस सुष्मिता सेन इन सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है. आए दिन वह अपने फैंस के साथ फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं. फैंस को भी उनके पोस्ट का बेसब्री से इंतजार रहता है.

बता दें कि हाल ही में उन्हें एक अवार्ड से नावाजा गया है. जिसका नाम है. चैम्पियन ऑफ चेंज. तो इसके लिए उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक लाइव सेशन किया. जहां उन्होंने अपने फैन्स से बातें की.

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सुष्मिता ने लाइव सेशन  के दौरान कहा कि ये अवार्ड सामाजिक कल्याण और महिला सशक्तिकरण के लिए मुझे मिला. उन्होंने आगे कहा कि मैं जानती हूं कि  मेरे पिता इस वक्त में बहुत गर्व महसूस करेंगे क्योंकि उन्होंने कई सालों तक भारतीय वायु सेना के एक अधिकारी के रूप में काम किया.

 

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और ये लाइव सेशन और भी दिलचस्प हो गया जब सुष्मिता के ब्वायफ्रेंड रोहमन ने हिस्सा लिया. रोहमन ने सेशन में आने के बाद सुष्मिता ने उनके साथ हुई एक घटना का किस्सा बताया.

 

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उन्होंने बताया कि, जब रोहमन सुबह शेव कर रहे थे.तो अचानक उन्होंने अपने बालों का कुछ हिस्सा भी शेव कर दिया. इस दौरान रोहमन सेशन में अपने चेहरे को हाथों से छिपा रहे थे. लेकिन सुष्मिता के कहने पर उन्होंने सभी को अपना लुक दिखा दिया. दोनों एक साथ काफी खुश नजर आ रहे थे.

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Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin: सई की याद में विराट का हुआ बुरा हाल, अपनी गलती के लिए मांगी माफी

स्टार प्लस का सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin)  काफी कम टाइम में दर्शकों के दिल में जगह बना ली है. सीरियल में इन दिनों नए-नए ट्विस्ट देखने को मिल रहा है जिससे दर्शकों का भरपूर मनोरंजन हो रहा है. तो आइए बताते हैं शो के लेटेस्ट ट्रैक के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि सई चौहान हाउस के बाहर खूब तमाशा कर रही है. तो वही दूसरी तरफ सई के लिए चौहान हाउस का दरवाजा बंद हो जाता है. देवयानी और पुलकित की शादी करवाने के बाद सई घर वापस आती है तो ना विराट और ना ही कोई और सदस्य उसके लिए दरवाजा खोलता है.

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तो वही सई चौहान हाउस छोड़कर चली जाएगी और वो विराट से ये भी कहती हुई नजर आएगी कि जल्द ही उसके सामने सच आएगा. तो दूसरी तरफ सई के जाने के बाद से विराट का बुरा हाल होगा. वह उसे खूब याद करेगा.

 

सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में ये दिखाया जाएगा कि विराट के सामने जल्द ही भवानी और पाखी की पोल खुलने वाली है कि उन दोनों ने मिलकर किस तरह देवयानी और सई को परेशान किया है. विराट को अपनी गलती का एहसास होगा कि उसने सई के साथ कितना गलत किया है.

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आप ये भी देखेंगे कि सई भवानी से कहेगी कि वो जल्द ही उसके घमंड को चूर-चूर करने वाली है. सई की बातों को भवानी हल्के में लेगी.

Serial Story: हार- भाग 1

आबादी इतनी बढ़ गई है कि सड़क के दोनों किनारों तक शनीचरी बाजार सिमट गया है. चारों ओर मकान बन गए हैं. मजार और पुलिस लाइन के बीच जो सड़क जाती है, उसी सड़क के किनारे शनीचरी बाजार लगता है. तहसीली के बाद बाजार शुरू हो जाता है, बल्कि कहिए कि तहसीली भी अब बाजार के घेरे में आ गई है.

शनीचरी बाजार के उस हिस्से में केवल चमड़े के देशी जूते बिकते हैं. यहीं पर किशन गौशाला का दफ्तर भी है. अकसर गौशाला मैनेजर की झड़प मोचियों से हो जाती है. मोची कहते हैं कि उन के पुरखे शनीचरी बाजार में आ कर हरपा यानी सिंधोरा, भंदई, पनही यानी जूते बेचते रहे. तब पूरा बाजार मोचियों का था. जाने कहां से कैसे गौसेवक यहां आ गए. अगर सांसद के प्रतिनिधि आ कर बीचबचाव न करते तो शायद दंगा ही हो जाता.

लेकिन सांसद का शनीचरी बाजार में बहुत ही अपनापा है इसलिए मोचियों का जोश हमेशा बढ़ा रहता है. अपनापा भी खरीदबिक्री के चलते है. सांसद रहते दिल्ली में हैं, मगर हर महीने तकरीबन 25-30 जोड़ी खास देशी जूते, जिसे यहां भंदई कहा जाता है, दिल्ली में मंगाते हैं.

भंदई के बहुत बड़े खरीदार हैं सांसद महोदय. मोची तो उन्हें पहचानते ही नहीं, क्योंकि वे खुद तो आ कर भंदई नहीं खरीदते, पर उन के लोग भंदई खरीद कर ले जाते हैं.

गौशाला चलाने वाले भी सांसद का लिहाज करते हैं. आखिर उन्हीं की मेहरबानी से गौशाला वाले नजदीक की बस्ती जरहा गांव में 20 एकड़ जमीन जबरदस्ती कब्जा सके थे.

किशन गौशाला शहर के करीब बसे जरहा गांव में है. इस गौशाला में सांसद कई बार जा चुके हैं. पहले गौशाला वालों ने 10 एकड़ जमीन गांव के किसानों से खरीदी. वहां कुछ गायों को रखा. कृष्ण जन्माष्टमी के दिन एक कार्यक्रम हुआ था, जिस में सांसद चीफ गैस्ट बने थे. सरपंच के दोस्तों ने दही लूटने का कमाल दिखाया, फिर अखाड़े का करतब हुआ.

गांव वाले बहुत खुश हुए कि चलो गांव में गौमाता के लिए एक ढंग का आसरा तो बना. सांसद ने उस दिन गांव के मोचियों को भी इस समारोह में बुलाया. जरहा गांव शहर से सट कर बसा है. गौशाला का दफ्तर शहर में है और गौशाला है जरहा गांव में.

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दफ्तर के पास जरहा गांव, बोरिद, अकोली के मोची चमड़े का सामान बेचने शनिवार को आते हैं, पर बाकी दिन वे गांव में भंदई बनाते हैं. जाने कब से यह सिलसिला इसी तरह चल रहा है.

लेकिन जब से सांसद भोलाराम भंदई खरीद कर दिल्ली ले जाने लगे हैं, तभी से मोचियों का कारोबार कुछ नए रंग पर आ गया है. ऊपर से सांसद ने अपनी सांसद निधि से जरहा गांव में मोची संघ के लिए पिछले साल 3 लाख रुपए दिए थे. वे गांवगांव में अलगअलग मंचों के लिए सांसद निधि से खूब पैसे देते हैं, मगर इन दिनों मंचों की धूम है.

इस इलाके में दलितों की तादाद ज्यादा?है, इसलिए सांसद अपने हिसाब से अपना भविष्य पुख्ता करते चल रहे हैं. मोची मंचों का भी लगातार फैलाव हो रहा है, तो गौशाला का भला हो रहा है.

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गौशाला के कर्ताधर्ता सब दूसरे राज्य के हैं. वे शहर के जानेमाने कारोबारी हैं. सब ने थोड़ाथोड़ा पैसा लगा कर 10 एकड़ जमीन ले ली और किशन गौशाला खोल कर गांव में घुस गए. वहां 2 दुकानें भी अब इसी तबके की खुल गई हैं. एक स्कूल भी जरहा गांव में चलता है, जिसे किशनशाला नाम दिया गया है.

इस स्कूल में सभी टीचर सेठों के  जानकार लोग हैं. सांसद सेठों और मोचियों में बराबर से इज्जत बनाए हुए हैं. सब को पार लगाते हैं, चूंकि सब उन्हें पार लगाते हैं.

लेकिन इधर जब से बाबरी मसजिद ढही है, जरहा गांव में दूसरा दल भी हरकत में आ गया है. सेठ सांसद के विरोधी दल को पसंद करते हैं. जिले में 2 ही झंडे असर में हैं, तिरंगा और भगवा. 2 ही चिह्न यहां पहचाने जाते हैं, पंजा और कमल.

गौप्रेमी सभी सेठ कमल पर विराजने वाली लक्ष्मी मैया के भगत हैं, वहीं मोची, लुहार, धोबी, कुम्हार, कुर्मी,  तेली, इन्हीं जातियों की तादाद इस इलाके में ज्यादा है, इसीलिए आजादी के बाद कांग्रेस को भी इलाके के लोगों ने अपना समर्थन दिया. लेकिन जब से बाबरी मसजिद को ढहा कर जरहा गांव का नौजवान गांव लौटा है, कमल की नई रंगत देखते ही बन रही है.

लेकिन सांसद भोलाराम परेशान नहीं होते. वे जानते हैं कि सेठों को इस लोक पर राज करने के लिए धंधा प्यारा है और परलोक सुधारने के लिए है ही किशन गौशाला. दोनों के फायदे में है कि वे कभी भोलाराम का दामन न छोड़ें. ये भोलाराम भी कमाल के आदमी हैं. एक बड़े किसान के घर में पैदा हुए. मैट्रिक पास कर आगे पढ़ना चाहते थे, लेकिन उन के पिताजी ने पैरों में बेड़ी पहनाने की ठान ली.

शादी की सारी तैयारी हो गई, लेकिन बरात निकलने के ठीक पहले दूल्हा अचानक ही गायब हो गया और प्रकट हुआ दिल्ली में.

यह बात साल 1946 की है. सालभर में भोलाराम ने दिल्ली के एक बडे़ अखबार में अपने लिए जगह बना ली. भोलाराम दल के लोग तो चुनाव के समय रोरो कर यह भी बताते हैं कि भोलारामजी तब रिपोर्टिंग के लिए गांधीजी की अंतिम प्रार्थना सभा में भी गए थे. नाथूराम ने जब गोलियां चलाईं, तो गांधीजी ‘हे राम’ कह कर भोलारामजी की गोद में ही गिरे थे.

भोलाराम के खास लोग तो यह भी कहते हैं कि भोलारामजी का खून से सना कुरता आज भी गांधी संग्रहालय में हैं. जिसे देखना हो दिल्ली जा कर देख आए.

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समुद्र का खारा होना, धरती के लिए अभिशाप नहीं वरदान है!

कभी आपने सोचा कि अगर समुद्र का पानी खारा नहीं होता तो क्या होता? जी हां, यह मजाक नहीं है, अगर समुद्र का पानी खारा न होता तो शायद धरती में इंसान का अस्तित्व ही न होता. समुद्र का खारापन मानव के लिए अभिशाप नहीं बल्कि किसी वरदान से कम नहीं है. इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर समुद्र का जलस्तर बढ़ जाता है और उसका पानी सूखी जमीन पर फैल जाता है, तो जहां जहां ये पानी फैलता है, वह जमीन रेगिस्तान बन जाती है.  लेकिन खारे पानी के इस ज्ञात नुकसान के मुकाबले हमें फायदे बहुत ज्यादा हैं. समुद्र का खारापन इंसान के लिए बहुत महत्वपूर्ण व उपयोगी है. गौरतलब है कि समुद्र के पानी के खारा होने का मुख्य कारण, ठोस सोडियम क्लोराइड है. हालांकि समुद्र के खारे पानी में पोटेशियम और मैग्नीशियम के क्लोराइड व विभिन्न रासायनिक तत्व भी करीब करीब हर जगह पाए जाते हैं.

जैसा कि हम जानते हैं कि गर्म हवाएं हल्की होती हैं और ठंडी हवाएं भारी. इस कारण ठंडी के मुकाबले गर्म हवा का घनत्व कम होता है. जब समुद्र की सतह में किसी जगह गर्म होकर हवा ऊपर उठती है, तो उस स्थान विशेष की लवणता में यानी उसमें मौजूद नमक में और आसपास की दूसरी जगहों की लवणता में फर्क आ जाता है. इस कारण वाष्प के जरिये समुद्र से उठे जल को गति मिलती है. यह पानी उस दिशा में आगे बढ़ता है, जहां की हवा ठंडी होती है. इसे यूं समझिये कि बंगाल की खाड़ी से उठी ऐसी ही गर्म हवाएं अपने साथ संघनित बादल लेकर इसी वजह से उत्तर भारत की तरफ चल पड़ती हैं क्योंकि यहां की हवाएं ठंडी होती हैं. इसे ही हम ‘मानसून का आगमन कहते हैं.’ मतलब यह कि समुद्र के खारेपन के कारण ही मानसून बनता है, बारिश होती है और बारिश है तो जीवन है.

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क्योंकि इसी बारिश से, जो कि खारे पानी का नतीजा है-मौसम हैं, कुदरत है, कुदरत में रंगों की विविधता है,और इसी के चलते पृथ्वी में जलवायु की विविधता है. जैसा कि हम जानते हैं कि ठंडा जल, गर्म जल की तुलना में अधिक घनत्व वाला होता है. इस कारण गर्म जल की धाराएं ठंडे क्षेत्रों की ओर बहती है और ठंडा जल उष्ण और कम उष्ण प्रदेशों की तरफ बहता है यानी समुद्री धाराओं के बहाव का  मुख्य कारण भी समुद्र के पानी का खारा होना ही है. कल्पना करिये पूरे समुद्र में मीठा पानी होता तो क्या होता? समुद्र में जल धाराएं न होतीं. इसका नतीजा यह होता कि ठंडे प्रदेश बहुत ठंडे रहते और गर्म प्रदेश बहुत अधिक गर्म. क्या तब पृथ्वी पर जीवन इतना ही सहज होता? एक और बात जान लीजिये धरती की असीम जैव विविधता का सबसे बड़ा कारण समुद्र के पानी का खारा होना है.

यह तो हुई समुद्र के खारे पानी की बात. अब जरा एक क्षण को सोचिये की समुद्र ही न होते तो क्या होता? क्या समुद्रों के बिना धरती में जीवन संभव है? इस प्रश्न के उत्तर की तलाश में गहरे तक जाएं तो खुद ब खुद पता चल जाएगा कि धरती के 70 प्रतिशत भू-भाग पर फैली 97 प्रतिशत विशाल समुद्री जलराशि का हमारे जीवन में कितना महत्व है. महासागरों में 10 लाख से अधिक विविध जीव प्रजातियों का बसेरा है. समुद्र की यही जैव समृद्धता ही धरती में जीवन का आधार है. यदि धरती में समुद्र के रूप में पानी की इतनी विशाल जलराशि न होती, तो दुनिया दहकता अंगारा बन जाती और जीवन नष्ट हो जाता. दरअसल यह समुद्र की अपार जलराशि ही है, जो सूर्य से आने वाली ऊष्मा का एक बड़ा हिस्सा अपने भीतर जज्ब कर लेती है. समुद्र के अन्दर मौजूद ज्वालामुखी इस जज्ब की हुई ऊष्मा का ही एक रूप हैं, जिनसे अब जापान बिजली बनाने लगा है. इस तरह ज्वालामुखी अब विनाश के कारण नहीं बल्कि स्वच्छ भू-तापीय ऊर्जा के विशालतम भंडार बनने जा रहे हैं.

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भविष्य में हम भी इनसे बिजली बनायेंगे. समुद्र के भीतर मौजूद विशाल ईधन भंडारों के बारे में हम जानते ही हैं. समुद्र न हों तो सूर्य से आने वाली ऊष्मा के कारण पृथ्वी का वायुमंडल बेहद गर्म हो जाय. महासागरों में मौजूद विविध जैविकी में कार्बन को अवशोषित करने की अपार क्षमता होती है. इस क्षमता के कारण ही पर्यावरण को तापमान को संतुलित रखने की सबसे सक्षम प्राकृतिक प्रणाली माना जाता है. तमाम तरह के ईंधन जलाकर हम जीवन के लिए जिन घातक गैसों का प्रतिशत वायुमंडल में बढ़ाते हैं, समुद्र उसे घटाते हैं. इस तरह देखा जाए तो समुद्र से बड़ा और महत्वपूर्ण प्रदूषण नियंत्रक इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं है. यदि आज पृथ्वी पर जीवन है, तो इसमें समुद्र की बहुत बड़ी भूमिका है.

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Serial Story: हार- भाग 2

इलाके के लोगों में वह कुरता देखने की कभी दिलचस्पी नहीं रही. भोलाराम लगातार आगे बढ़ते गए और दिल्ली में एक नामी पत्रकार हो गए. एक दिन इंदिरा गांधी ने उन्हें इस इलाके का सांसद बना दिया. इस इलाके के लोग नेताओं की बात नहीं टालते.

इंदिरा गांधी ने पहली चुनावी सभा में कहा, ‘‘यह इलाका भोलेभाले लोगों का है. यहां भोलाराम ही सच्चे प्रतिनिधि हो सकते हैं.’’

इंदिरा गांधी से आशीर्वाद ले कर भोलाराम भी उस दिन जोश से भर गए. उन्होंने मंच पर ही कहा, ‘‘इंदिरा गांधी की बात हम सभी को माननी है. अगर विरोधियों के भालों से बचना है, तो भोले को समर्थन जरूर दीजिए.’’

भोले और भाले का ऐसा तालमेल इंदिरा गांधी को भी भा गया. उन्होंने मुसकरा कर भोलाराम को और अतिरिक्त अंक दे दिया.

तब से लगातार 5 बार भोलाराम ही यहां के सांसद बने. वे इलाके के बड़े लोगों की बेहद कद्र करते हैं, इसीलिए भोलाराम की बात भी कोई नहीं टालता.

महीनाभर पहले शनीचरी बाजार में हंगामा मच गया. हुआ यह कि भोलाराम अपने टोपीधारी विशेष प्रतिनिधि के साथ बाजार आए. चैतराम मोची की दुकान बस अभी लगी ही थी कि दोनों नेता उस के आगे जा कर खड़े हो गए.

चैतराम ने इस से पहले कभी भोलाराम को देखा भी नहीं था. वह केवल साथ में आए गोपाल दाऊ को पहचानता था.

गोपाल दाऊ ने ही चैतराम को भोलाराम का परिचय दिया. खादी का कुरतापाजामा और गले में लाल रंग का  गमछा. भोलाराम तकरीबन 70 बरस के हैं, मगर चेहरा सुर्ख लाल है. चुनाव जीतने के बाद उन का सूखा चेहरा लाल होता गया और वे 2 भागों में बंट गए.

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भोलाराम दिल्ली में रहते तो सूटबूट पहनते. गले में लाल रंग का गमछा तो खैर रहा ही. दिल्ली में रहते तो दिल्ली वालों की तरह खातेपीते, लेकिन अपने संसदीय इलाके में मुनगा, बड़ी, मछरियाभाजी, कांदाभाजी ही खाते.

अपने इलाके में भंदई पे्रमी सांसद भोलाराम को सामने पा कर चैतराम को कुछ सूझा नहीं. भोलाराम ने उस के कंधे पर हाथ रख दिया.

चैतराम ने भोलाराम के पैरों में अपने हाथों की बनी भंदई रख दी. भंदई छत्तीसगढ़ी सैंडल को कहते हैं. मोची गांव में मरे मवेशियों के चमड़े से इसे बनाते हैं. सूखे दिनों की भंदई अलग होती है, जबकि बरसाती भंदई अलग बनती है.

अपने हाथ की बनी भंदई पहने देख भोलाराम के सामने चैतराम झुक गया. भोलाराम ने कहा, ‘‘भाई, मुझे पता लगा है कि तुम्हीं मुझे भंदई बना कर देते हो, इसलिए मिलने चला आया. इस बार 100 जोड़ी भंदई चाहिए.’’

‘‘100 जोड़ी…’’ चैतराम का मुंह खुला का खुला रह गया. भोलाराम ने कहा, ‘‘हां, 100 जोड़ी. दिल्ली में अपने दोस्तों को तुम्हारे हाथ की भंदई बहुत बांट चुका हूं. इस बार विदेशी दोस्तों का साथ होने वाला है.

‘‘मैं जब भी विदेश जाता हूं, तो वहां भंदई पर सब की नजर गड़ जाती है. सोचता हूं कि इस बार एकएक जोड़ी भंदई उन्हें भेंट करूं. बन जाएगी न?’’

चैतराम ने पूछा, ‘‘कब तक चाहिए मालिक?’’

‘‘2 महीने में.’’

‘‘2 महीने में… मालिक?’’

‘‘हांहां, 2 महीने में तुम्हें देनी है. मैं खुद आऊंगा तुम्हारे गांव में भंदई ले जाने के लिए.’’

‘‘मालिक, गांवभर के सारे मोची मिलजुल कर बनाएंगे. मैं गांव जा कर सब को तैयार करूंगा.’’

‘‘तुम जानो तुम्हारा काम जाने. मुझे तो भंदई चाहिए बस.’’

इतना सुनना था कि पास में दुकान लगाए उसी गांव के 2 और मोची एकसाथ बोल पड़े, ‘‘दाऊजी, आप की मेहरबानी से सब ठीकठाक है. हम सब मिल कर बना देंगे भंदई.

‘‘मगर मालिक, ये गौशाला वाले गांव में 20 एकड़ जमीन पर कब्जा कर के बैठ गए हैं. पिछले 2 साल से यहां के किसान अपने जानवरों को रिश्तेदारों के पास पहुंचाने लगे हैं.

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‘‘हुजूर, यह जगह जानवरों के चरने के लिए थी, मगर सेठ लोगों ने घेर कर कब्जा कर लिया है.

‘‘2 साल से हम सब लोग फरियाद कर रहे हैं, पर कोई सुनता ही नहीं. अब आप आ गए हैं, तो कुछ तो रास्ता निकालिए. छुड़ाइए गायभैंसों के लिए उस 20 एकड़ जमीन को. गौशाला के नाम से सेठ लोग गाय के चरने की जगह को ही लील ले गए साहब. अजब अंधेर है.’’

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