भोलाराम को इस बेजा कब्जे की जानकारी तो थी, मगर वे यही सोच रहे थे कि सेठ लोग सब संभाल लेंगे. यहां तो पासा ही पलट सा गया है. भंदई का शौक अब उन्हें भारी पड़ रहा था. फिर भी उन्होंने चैतराम को पुचकारते हुए कहा, ‘‘मैं देख लूंगा. तुम लो ये एक हजार रुपए एडवांस के.’’
‘‘इस की जरूरत नहीं है मालिक,’’ हाथ जोड़ कर चैतराम ने कहा.
‘‘रख लो,’’ भोलाराम ने कहा.
चैतराम ने रखने को तो अनमने ढंग से एक हजार रुपए रख लिए, मगर सौ जोड़ी भंदई बना पाना उसे आसान नहीं लग रहा था.
गांव जा कर उस ने अपने महल्ले के लोगों को इकट्ठा किया. 4 लोगों ने 25-25 जोड़ी भंदई बनाने का जिम्मा ले लिया. चैतराम का जी हलका हुआ.
लेकिन सेठों को भी खबर लग गई कि गांव के मोची किशन गौशाला का विरोध सांसद भोलाराम से कर रहे थे. वे बहुत भन्नाए. उन्होंने गांव के अपने पिछलग्गू सरपंच, पंच और कुछ खास लोगों से बात की और गांव में बैठक हो गई. सरपंच ने मोची महल्ले के लोगों के साथ गांव वालों को भी बुलवाया.
सरपंच ने कहा, ‘‘देखो भाई, आज की बैठक बहुत खास है. गाय की वजह से बैठी है यह सभा.’’
चैतराम ने कहा, ‘‘मालिक, गाय का चारागाह सब गौशाला वाले दबाए बैठे हैं. चारागाह नहीं रहेगा, तो गौधन की बढ़ोतरी कैसे होगी?’’
चैतराम का इतना कहना था कि बाबरी मसजिद तोड़ने गई सेना में शामिल हो कर लौटे जरहा गांव का एकलौता वीर सुंदरलाल उठ खड़ा हुआ. उस ने कहा, ‘‘वाह रे चैतराम, तू कब से हो गया गौ का शुभचिंतक?’’
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सुंदरलाल का इतना कहना था कि चैतराम के साथ उस के महल्ले के सभी लोग उठ खड़े हुए. उस ने कहा, ‘‘मालिक हो, मगर बात संभल कर नहीं कर सकते. हम मरे हुए गायभैंसों का चमड़ा उतारते हैं, आप लोग तो जीतीजागती गाय की जगह दबाने वालों के हाथों खेल गए.’’
ऐसा सुन कर सुंदरलाल सिटपिटा सा गया. तभी भोलाराम दल के एक जवान रामलाल ने कहा, ‘‘राजनीति करो, मगर धर्म बचा कर. आदिवासियों को गाय बांटने का झांसा तुम लोग देते हो और गांव की जमीन, जिस में गाएं चरती थीं, उसे पैसा ले कर बाहर से आए सेठों को भेंट कर देते हो.’’
सुंदरलाल ने कहा, ‘‘100 जोड़ी भंदई के लिए गायों को जहर दे कर मरवाओगे क्या…?’’
उस का इतना कहना था कि ‘मारोमारो’ की आवाज होने लगी और लाठीपत्थर चलने लगे. गांव में यह पहला मौका था, जब बैठक में लाठियां चल रही थीं.
3 मोचियों के सिर फट गए. चैतराम का बायां हाथ टूट गया. अखबार में खबर छप गई. सांसद भोलाराम ने जरहा गांव का दौरा किया. उन्होंने मोचियों से कहा, ‘‘तुम लोग एकएक घाव का हिसाब मांगने का हक रखते हो. यह गुंडागर्दी नहीं चलेगी. मैं सब देख लूंगा.’’
भाषण दे कर जब भोलाराम अपनी कार में बैठ रहे थे, तभी उन्हीं की उम्र के एक आदमी ने उन्हें आवाज दे कर रोका. भोलाराम ने पूछा, ‘‘कहो भाई?’’
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उस आदमी ने कहा, ‘‘भोला भाई, अब आप न भोले हैं, न भाले हैं. मैं पहले चुनाव से आप का संगी हूं. जहां भाला बनना चाहिए, वहां आप भोला बन जाते हैं. जहां भोला बनना चाहिए, वहां भाला, इसलिए सबकुछ गड्डमड्ड हो गया.‘‘भाई मेरे कोई जिंदा गाय की राजनीति कर रहा है, तो कोई मरी हुई गाय की चमड़ी का चमत्कार बूझ रहा है. हैं दोनों ही गलत. मगर हमारी मजबूरी है कि 2 गलत में से एक को हर बार चुनना पड़ता है. इस तरह हम ही हर बार हारते हैं.’’