Mother’s Day Special- सपने में आई मां: भाग 1

लेखिका- डा. शशि गोयल

सुबह 10 बजे के आसपास वे सब सड़क के नुक्कड़ के पेड़ के नीचे बनी तिरपाल वाली झोंपड़ी में आ जाते थे. वे उस के अंदर रखे फटे और गंदे कपड़े पहनते थे.

श्यामा ताई एक कटोरे में कोयला पीस कर मिलाई मिट्टी तैयार रखती थी. वे अपने हाथपैरों में मल कर सूखे कपड़े से पोंछ लेते तो संवलाया, मटमैला सा शरीर हो जाता और सभी अपनेअपने ठिकानों पर पहुंच जाते.

सत्ते के हाथ में गंदा सा फटा कपड़ा रहता. बड़ा चौराहा था. चौराहे पर जो बच्चों वाली गाड़ी दिखती, उस पर जाना उसे अच्छा लगता. गाड़ी पर कपड़ा फेरता, रिरियाती हुई आवाज निकालता, ‘‘देदे… मां कुछ पैसे… भैयाजी…’’

कोईकोई तो उसे झिड़क भी देता, ‘‘गाड़ी और गंदी कर देगा, भाग…’’ तो वह सारी दीनता चेहरे पर ला कर… गाड़ी में देखता जाता… उत्सुकता रहती कि बच्चे क्या कर रहे हैं, उन्होंने कैसे कपड़े पहने हैं.

ज्यादातर बच्चे मोबाइल फोन पर लगे होते. उस की ओर एक आंख देखते और फिर उन की उंगलियां तेजी से मोबाइल फोन पर चलने लगतीं.

सत्ते का हाथ बारबार माथे को छू कर उन्हें सलाम करता. कभीकभी बच्चों के हाथ में अधखाए चिप्स के पैकेट होते, जिन्हें खाखा कर वे अघाए होते तो उसे पकड़ा देते. कभीकभी बर्गर वगैरह भी मिल जाते, जिन्हें वह झाड़ी के पास बैठ कर खा जाता. श्यामा ताई न देख ले. सनी, जुगल, रुकमा उस के दोस्त थे, वे भी आ जाते.

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श्यामा ताई वहीं पेड़ के नीचे से उन पर निगाह रखती थी. कम से कम 50 गज की दूरी थी, पर वह देख लेती कि किस ने नोट दिया या सिक्के. पांचों लड़कों पर निगाह रखती, ‘‘टांग तोड़ दूंगी. अपाहिज बना कर बिठा दूंगी. कोशिश भी मत करना मुझे धोखा देने की.’’

श्यामा ताई जब चाहती, साहबों की सी बोली बोलने लगती और चाहे जब वह झोंपड़पट्टी की बोली बोलने लगती. उस में चुनचुन कर गालियां होतीं. साथ ही, सत्ते की मरी मां के लिए भी न जाने कितनी बद्दुआएं होतीं कि अपना बोझा उस के सिर छोड़ गई और बदले में उसे पालना पड़ रहा है.

सत्ते को नहीं याद कि वह कब और कैसे श्यामा ताई के पास आया और उस ने अपने को जुगल, नन्हे, सन्नी, रुकमा के साथ पाया. वे सब भी उसी झोंपड़ी में सोते थे.

नन्हे पता नहीं कहां चला गया. श्यामा ताई ने उस का चूल्हे की लकड़ी से हाथ जला दिया था. उस ने समझा, श्यामा ताई देख नहीं रही है और सच

में ताई कुछ देर झोंपड़ी में लेट गई थी, पर उसे पता नहीं था कि वह लेटी जरूर थी, पर बदकिस्मती थी नन्हे की या खुशकिस्मती कि उस ने 5 रुपए वाली स्टिक वाली आइसक्रीम खरीद कर वहीं झाड़ी के पीछे बैठ कर खाई थी. पर श्यामा ताई फटरफटर चप्पल सरकाती आ पहुंची और खींच कर ले गई झोंपड़ी में, ‘‘चमड़ी उधेड़ दूंगी… रोटी कौन खिलाएगा,’’ गुस्से में जलती लकड़ी नन्हे के हाथ पर धर दी, ‘‘काट डालूंगी… अगर आगे से ऐसा किया.’’

बिलबिला कर रहा गया नन्हे. उस की चीख सुन कर जुगल, सनी, रुकमा और सत्ते एकदूसरे से चिपक कर रो रहे थे. जब दोबारा उस की पीठ की ओर लकड़ी उठाई तो चारों श्यामा ताई से चिपक कर रोने लगे थे, ‘ताई नहीं, ताई नहीं, अब नहीं खाएगा.’

पर, दूसरे दिन नन्हे सुबह से ही नहीं दिखा. उस के बाद कभी नहीं दिखा. कभीकभी सत्ते उसे ढूंढ़ता गाडि़यों में झांकता रहता कि शायद कोई साहब या मेमसाहब उसे ले गई हों. वह साहब के बच्चों के साथ हो. कभी तो वह उसे ही साहब बना देखता. सपने तो अपने लिए भी कभीकभी वह देखता था. कभी मोटरसाइकिल का, कभी लंबी गाड़ी में बैठा श्यामा ताई को भीख देता.

रानी काकी पीछे बस्ती में से आती थी. ज्यादातर गोद में बच्चा होता. गंदे कपड़ों से ढके उस बच्चे के लिए वह पैसे मांगती. सत्ते हैरानी से देखता कि रानी काकी की गोद का बच्चा बदलता रहता था. एक दिन तो रुकमा को भी बच्चा दिया. रानी काकी ने बच्चे को ले कर भीख मांगना सिखाया… साहब, मेरा कोई नहीं है. हमारी मैया मर गई है. यह भूखा है. दूध के लिए पैसे चाहिए…’’

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सच में रुकमा को कई बार अपनी अम्मां याद आई. उसे अपने गांवघर की एक झलक याद है. उस के घर के सामने पीपली देवी का मंदिर था, बस इतना याद है. घर में कई लोग थे. बूआ थी, दादी थी, अम्मां लंबा घूंघट निकाले रहती थी. इतना ही याद है. बूआ और दादी के साथ पीपली देवी के मेले में झूला झूलतेझूलते कब वह श्यामा ताई की गोद में पहुंच गई, उसे याद नहीं… ‘अम्मांअम्मां’ चिल्लाती रह जाती. ज्यादा रोती तो श्यामा ताई दवा चटा कर सुला देती.

अब तो कई साल हो गए. उसे बस धुंधली सी याद है.

जिस दिन रुकमा बच्चे को ले कर घूमी, उस दिन उसे काफी पैसे मिल गए, पर साथ ही बड़ी मुश्किल हो गई. पता नहीं, एक बहनजी को रुकमा पर ज्यादा ही दया आ गई, ‘‘चल, नन्हे से बच्चे को कैसे पालेगी. चल, आश्रम में चल. वहां तेरा भी इंतजाम हो जाएगा और बच्चे का भी. बैठ गाड़ी में,’’ कहते हुए बहनजी ने गाड़ी किनारे कर ली.

रुकमा सिटपिटा गई. उस का मन हुआ कि बैठ जाए गाड़ी में. श्यामा ताई से तो अच्छी रहेगी, पर पता नहीं कब रानी काकी आ खड़ी हुई, ‘‘कौन तू? क्यों ले जा रही है छोरी को तू… मैं सब जानती हूं. अनाथ से धंधा कराएगी.’’

कहां बहनजी पुलिस को सूचना दे कर उसे ले जाना चाहती थी, कहां लेने के देने पड़ रहे थे. रानी काकी बहनजी को पुलिस में ले जाने लगी. बहनजी की दयामाया काफूर हो गई. वह चुपचाप गाड़ी में बैठ चली गई.

कोरोना: फौजी की तरह ड्युटी पर लगे “रोबोट” की मौत!

शिक्षक ज्ञान की ज्योति फैलाता है, उसका समाज में सबसे अहम महत्व होना चाहिए मगर, चाहे मध्यप्रदेश हो या छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश हो या बिहार लगभग देश भर की तस्वीर यह है कि  प्रदेश सरकारों की हठधर्मिता के कारण “कोरोना ड्यूटी” करते हुए जाने कितने शिक्षक मौत का ग्रास बन रहे हैं, जिसकी तदाद दिन प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही है. आज भयावह समय में शिक्षक मानो एक सैनिक की तरह अपना फर्ज निभाते हुए कोरोनावायरस योद्धा बने हुए हैं. मगर सरकार अपनी भूमिका से मुंह छुपा रही है और शिक्षक कोरोना संक्रमण के कारण मर रहे हैं.

वस्तुत: सरकार के लिए शिक्षक महज एक “रोबोट” बना दिया  गया है. चाहे चुनाव हो, जनगणना हो या कोई भी सरकारी काम काज  या फिर आज का “कोरोना संक्रमण काल”, हर जगह   शिक्षक को तैनात किया जा रहा है और शिक्षक वर्ग की भलमनसाहत देखिए ! शिक्षक बिना ना नुकुर  किए सरकार के हर एक आदेश का पालन कर रहा है.

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लाख टके का सवाल सरकार से यह है कि क्या शिक्षक इंसान नहीं है क्या कोई वह यंत्र है रोबोट है कि उस पर कोरोना वायरस कोविड-19 का संक्रमण नहीं होगा? जब वह बिना सुरक्षा कवच के, दवाइयों के, सैनिटाइजर के गली गली ड्यूटी करेगा और घर आएगा तो क्या वह और उसका परिवार सुरक्षित रहेगा?

आज कोरोना संक्रमण के इस भयावह समय में शिक्षक शासन के आदेशानुसार, घर में लाक डाउन रहने की जगह अपना फर्ज निभा रहा है और पुलिस, चिकित्सक, नर्सिंग स्टाफ की भांति कोरोना संक्रमण से अपनी जान गंवा रहा है.

शिक्षक राजेश चटर्जी ने हमारे संवाददाता से बातचीत में बताया कि छत्तीसगढ़ सामान्य प्रशासन विभाग में प्रस्तुत किये आँकड़ो के अनुसार कोरोना के करण कुल मौत का कुल आंकड़ा 689 हो गया है जिसमें से अकेले शिक्षा विभाग में अब तक 370 शिक्षकों  ने जान गँवाई है. जो चिंता का सबब बना हुआ है. शिक्षकों का निर्धारित काम पाठशाला स्कूलों में बच्चों को शिक्षा देना है मगर सरकार की हठधर्मिता देखिए स्वास्थ्य विभाग की प्राथमिक जानकारी से भी अनजान है उसे कोरोना काल में गली-गली घूमने पर मजबूर किया गया है. शिक्षक की सुरक्षा और भविष्य की चिंता किसी को नहीं है.

सुरक्षा उपायों में लापरवाही

दरअसल,  छत्तीसगढ़ सरकार ने शिक्षकों की ,कोरना के इस समय में ड्यूटी चेक पोस्ट, वैक्सीनेशन, रेल्वे स्टेशन, क्वारेंटाइन सेंटर्स व टेस्टिंग जैसे संवेदनशील काम में लगा रही है और  ड्यूटी में लगने से शिक्षक लगातार संक्रमितों की चपेट में आ रहे है. और बीमार हो रहे है. बीमार शिक्षक को शासन से मदद भी नहीं मिल रही और वो खुद के खर्चे से अपना इलाज करवाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. और कोरोना महामारी के रोकथाम में शिक्षकोंको डयुटी पर  लगाना बदस्तूर जारी है. गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए कोई सुरक्षात्मक उपाय किये बिना ही,जिला प्रशासन ने शिक्षकों की मनमाने डयूटी,कोरोना महामारी के रोकथाम एवं नियंत्रण में लगा दिया. विभाग के जिला एवं ब्लॉक के अधिकारी कोरोना संबंधित डयूटी से इंकार करने वाले शिक्षकों को,वेतन रोकने की धमकी दे कर मजबूर कर रहे हैं. परिणाम स्वरूप शिक्षकों की जान जा रही है, उनका परिवार बेसहारा हो रहा है और विभाग के उच्च अधिकारी आंखें मूंदे हुए हैं.

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सच्चाई यह है कि कोरोना संक्रमित हो रहे शिक्षकों के त्वरित इलाज का कोई प्रबंध सरकार नहीं कर रही है. संक्रमित शिक्षक त्वरित इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं.विभाग रोज नए फरमान जारी कर रहा है. जिससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि, शासन प्रशासन को निरीह शिक्षकों की जान की परवाह नहीं है.

छत्तीसगढ़ राज्य के 29 जिलों में शिक्षक कोरोना कार्य जैसे ग़ैर-शिक्षाकीय कार्य में शहीद हुए हैं.  समाज में ज्ञान का प्रकाश फैलाने  वाले शिक्षक,खुद अंधेरे में खो गया हैं रिपोर्ट लिखे जाने तलक  चार सौ के लगभग शिक्षकों की मौत हो गई है. आखिर शिक्षकों को मुँह में धकेलने का दोषी कौन है ?

यह कि शिक्षा विभाग में तृतीय श्रेणी के पदों में सहायक शिक्षक के पद रिक्त हैं ऐसे में राज्य सरकार  दिवंगत शिक्षक के परिवार के एक सदस्य को तत्काल अनुकंपा नियुक्ति देनी चाहिए.कोरोना महामारी के दृष्टिगत,दिवंगत शिक्षकों के परिवार के एक सदस्य  को सांत्वना स्वरूप अनुकंपा नियुक्ति मानवीय आधार पर शीघ्र दी जानी चाहिए.

Short Story: कोरोना का खौफ

मैं पिछले 2 वर्षों से दिल्ली में अपनी चाची के यहां रह कर पढ़ाई कर रही हूं. चाची का घर इसलिए कहा क्योंकि घर में चाचू की नहीं, बल्कि चाची की चलती है. मेरे अलावा घर में 7 साल का गोलू, 14 साल का मोनू और 47 साल के चाचू हैं. गोलू और मोनू चाचू के बेटे यानी मेरे चचेरे भाई हैं.

मार्च 2020 की शुरुआत में जब कोरोना का खौफ समाचारों की हैडलाइन बनने लगा तो हमारी चाचीजी के भी कान खड़े हो गए. वे ध्यान से समाचार पढ़तीं और सुनती थीं. कोरोना नाम का वायरस जल्दी ही उन का जानी दुश्मन बन गया जो कभी भी चुपके से उन के हंसतेखेलते घर की चारदीवारी पार कर हमला बोल सकता था. इस अदृश्य मगर खौफनाक दुश्मन से जंग के लिए चाची धीरेधीरे तैयार होने लगी थीं.

‘‘दुश्मन को कभी भी कमजोर मत समझो. पूरी तैयारी से उस का सामना करो,’’ अखबार पढ़ती चाची ने अपना ज्ञान बघारना शुरू किया तो चाचू ने टोका, ‘‘कौन दुश्मन? कैसा दुश्मन?’’

‘‘अजी, अदृश्य दुश्मन जो पूरी फौज ले कर भारत में प्रवेश कर चुका है. हमले की तैयारी में है. चौकन्ने हो जाओ. हमें डट कर सामना करना है. उसे एक भी मौका नहीं देना है. कुछ समझे?’’

‘‘नहीं श्रीमतीजी. मैं कुछ नहीं समझा. स्पष्ट शब्दों में समझाओगी?’’

‘‘चाचू, कोरोना. कोरोना हमारा दुश्मन है. चाची उसी के साथ युद्ध की बात कर रही हैं.’’ मुसकराते हुए मैं ने कहा तो चाची ने हामी भरी, ‘‘देखो जी, सब से पहला काम, रसद की आपूर्ति करनी जरूरी है. मैं लिस्ट बना कर दे रही हूं. सारी चीजें ले आओ.’’

‘‘तुम्हारे कहने का मतलब राशन है?’’

‘‘हां, राशन भी है और उस के अलावा भी कुछ जरूरी चीजें ताकि हम खुद को लंबे समय तक मजबूत और सुरक्षित रख सकें.’’

इस के कुछ दिनों बाद ही अचानक लौकडाउन हो गया. अब तक कोरोना वायरस का खौफ चाची के दिमाग तक चढ़ चुका था. अखबार, पत्रिकाएं, न्यूज चैनल और दूसरे स्रोतों से जानकारियां इकट्ठी कर चाची एक बड़े युद्ध की तैयारी में लग गई थीं.

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वे दुश्मन को घुसपैठ का एक भी मौका देना नहीं चाहती थीं. इस के लिए उन्होंने बहुत से रास्ते अपनाए थे. आइए आप को भी बताते हैं कि कितनी तैयारी के साथ. वे किसी सदस्य को घर से बाहर भेजती और कितनी आफतों के बाद किसी सदस्य को या बाहरी सामान को घर में प्रवेश करने की इजाजत देती थीं.

सुबहसुबह चाचू को टहलने की आदत थी जिस पर चाची ने बहुत पहले ही कर्फ्यू लगा दिया था. मगर चाचू को सुबह मदर डेयरी से गोलू के लिए गाय का खुला दूध लेने जरूर जाना पड़ता है.

चाचू दूध लाने के के लिए सुबह ही निकलते तो चाची उन्हें कुछ ऐसे तैयार होने की ताकीद करतीं, ‘‘पाजामे के ऊपर एक और पाजामा पहनो. टीशर्ट के ऊपर कुरता डालो. पैरों में मोजा और चेहरे पर चश्मा लगाना मत भूलना. नाक पर मास्क और बालों को सफेद दुपट्टे से ढको. इस दुपट्टे के दूसरे छोर को मास्क के ऊपर कवर करते हुए ले जाओ.’’

चाची को डर था कि कहीं मास्क के बाद भी चेहरे का जो हिस्सा खुला रह गया है वहां से कोरोना नाम का दुश्मन न घुस जाए. इसलिए डाकू की तरह पूरा चेहरा ढक कर उन्हें बाहर भेजतीं.

जब चाचू लौटते तो उन्हें सीधा घर में घुसने की अनुमति नहीं थी. पहले चाचू का चीरहरण चाची के हाथों होता. ऊपर पहनाए गए कुरतेपाजामे और दुपट्टे को उतार कर बरामदे की धरती पर एक कोने में फेंक दिया जाता. फिर मोजे भी उतरवा कर कोने में रखवाए जाते. अब सर्फ का झाग वाला पानी ले कर उन के पैरों को 20 सैकंड तक धोया जाता. फिर चप्पल उतरवा कर अंदर बुलाया जाता.

इस बीच अगर उन्होंने गलती से परदा टच भी कर दिया तो चाची तुरंत परदा उतार कर उसी कोने में पटक देतीं.

अब चाचू के हाथ धुलाए जाते. पहले 20 सैकंड डिटौल हैंडवाश से ताकि कहीं किसी भी कोने में वायरस के छिपे रह जाने की गुंजाइश भी न रह जाए. इस के बाद उन्हें सीधे गुसलखाने में नहाने के लिए भेज दिया जाता.

अगर चाचू बिना पूछे कुछ ला कर कमरे या फ्रिज में रख देते, तो वे हल्ला करकर के पूरा घर सिर पर उठा लेतीं.

चाचू जब दुकान से दूध और दही के पैकेट खरीद कर लाते तो चाची उन्हें भी कम से कम दोदो बार 19-20 सैकंड तक साबन से रगड़रगड़ कर धोतीं.

एक बात और बता दूं, घर के सभी सदस्यों के लिए बाहर जाने के चप्पल अलग और घर के अंदर घूमने के लिए अलग चप्पल रखवा दी गई थीं. मजाल है कि कोई इस बात को नजरअंदाज कर दे.

सब्जी वाले भैया हमारी गली के छोर पर आ कर सब्जियां दे जाते थे. सब्जी खरीदने का काम चाची ने खुद संभाला था. इस के लिए पूरी तैयारी कर के वे खुद को दुपट्टे से ढक कर निकलतीं.

कुछ समय पहले ही उन्होंने प्लास्टिक के थैलों के 2-3 पैकेट खरीद लिए थे. एक पैकेट में 40-50 तक प्लास्टिक के थैले होते थे. आजकल यही थैले चाची सब्जियां लाने के काम में ला रही थीं.

सब्जी खरीदने जाते वक्त वे प्लास्टिक का एक बड़ा थैला लेतीं और एक छोटा थैला रखतीं. छोटे थैले में रुपएपैसे होते थे जिन्हें वे टच भी नहीं करती थीं. सब्जी वाले के आगे थैला बढ़ा कर कहतीं कि रुपए निकाल लो और चेंज रख दो.

अब बात करते हैं बड़े थैले की. दरअसल चाची सब्जियों को खुद टच नहीं करती थीं. पहले जहां वे एकएक टमाटर देख कर खरीदा करती थीं, अब कोरोना के डर से सब्जी वाले को ही चुन कर देने को कहतीं और खुद दूर खड़ी रहतीं. सब्जीवाला अपनी प्लास्टिक की पन्नी में भर कर सब्जी पकड़ाता तो वे उस के आगे अपना बड़ा थैला कर देती थीं जिस में सब्जी वाले को बिना छुए सब्जी डालनी होती थी.

सब्जी घर ला कर चाची उसे बरामदे में एक कोेने में अछूतों की तरह पटक देतीं. 12 घंटे बाद उसे अंदर लातीं और वाशबेसिन में एक छलनी में डाल कर बारबार धोतीं. यहां तक कि सर्फ का झाग वाला पानी 20 सैकंड से ज्यादा समय तक उन पर उड़ेलती रहतीं. काफी मशक्कत के बाद जब उन्हें लगता कि अब कोरोना इन में सटा नहीं रह गया और ये सब्जियां फ्रिज में रखी जा सकती हैं, तो धोना बंद करतीं. सब्जी बनाने से पहले भी हलके गरम पानी में नमक डाल कर उन्हें भिगोतीं.

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दिन में कम से कम 50 बार वे अपना हाथ धोतीं. अखबार छुआ तो हाथ धोतीं, सब्जी छू ली तो हाथ धोतीं. दरवाजे का कुंडा या फ्रिज का हैंडल छुआ तो भी हाथ धोतीं. हाथ धोने के बाद भी कोई वायरस रह न जाए, इस के लिए सैनिटाइजर भी लगातीं.

नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिनों में उन के हाथों की त्वचा ड्राई और सफेद जैसी हो गई. उन्हें चर्म रोग हो गया था. इधर पूरे दिन कपड़ों और बरतनों की बारात धोतेधोते उन्हें सर्दी लग गई. नाक बहने लगी, छींकें भी आ गईं.

अब तो चाची ने घर सिर पर उठा लिया. कोरोना के खौफ से वे एक कमरे में बंद हो गईं और खुद को ही क्वारंटाइन कर लिया. डर इतना बढ़ गया कि बैठीबैठी रोने लगतीं. 2 दिन वे इसी तरह कमरे में बंद रहीं.

तब मैं ने समझाया कि हर सर्दीजुकाम कोरोना नहीं होता. मैं ने उन्हें कुछ दवाइयां दीं और चौथे दिन वे बिल्कुल स्वस्थ हो गईं. मगर कोरोना के खौफ की बीमारी से अभी भी वे आजाद नहीं हो पाई हैं.

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Crime Story: 45 लाख का खेल- भाग 3

सौजन्य- सत्यकथा

पार्थ व्यास को हवाला कारोबार के बारे में सब कुछ जानकारी थी. कब और कैसे रकम आती है. कंपनी का क्या काम है? कैसे रुपयों का लेनदेन होता है. रकम की क्या सुरक्षा व्यवस्था है? कंपनी के औफिस में कौनकौन लोग काम करते हैं? पार्थ व्यास को इन सब बातों का पता था. भांजे प्रियांशु के इसी फर्म में नौकरी पर लग जाने से उसे ताजा जानकारियां भी मिल गईं.

इस के बाद हंसा, पार्थ व्यास और प्रियांशु मिल कर इस हवाला कंपनी से रकम लूटने की योजना बनाने लगे. ये लोग फोन पर बात कर योजना बनाते. बीच में एकदो बार पार्थ व्यास गुजरात से जयपुर भी आया था. आखिर इन्होंने रकम लूटने का फैसला कर लिया.

तय योजना के अनुसार, पार्थ व्यास अहमदाबाद से 10 मार्च को सुबह 6 बजे जयपुर पहुंच गया. वह सुबह करीब 8 बजे वैशाली नगर में बहन के घर गया. वहां उसे बहन हंसा, भांजे प्रियांशु और रवि मिले. इन्होंने मिल कर योजना बनाई कि किस तरह वारदात करनी और कैसे भागना है.

सारी बातें तय हो जाने पर प्रियांशु उर्फ बंटी सुबह 9 बजे अपनी नौकरी पर खूंटेटों का रास्ता स्थित हवाला कंपनी चला गया. कंपनी का दूसरा कर्मचारी पार्थ भी अपने तय समय पर औफिस आ गया. पार्थ वैसे तो हवाला कंपनी के मैनेजर रोहित का साला था, लेकिन कर्मचारी के रूप में काम करता था.

बाद में पार्थ व्यास ओला बाइक बुक कर वैशाली नगर से किशनपोल बाजार पहुंचा. इस दौरान उस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. बाद में उस ने चेहरे पर मास्क लगाया और हाथों में दस्ताने पहने और सिर पर हेलमेट लगा कर वह पैदल चल कर हवाला कंपनी के औफिस पहुंचा और 45 लाख रुपए से भरा बैग लूट कर चला गया. यह कहानी आप शुरू में पढ़ चुके हैं.

पार्थ व्यास पैदल ही किशनपोल बाजार पहुंचा. वहां से आटो फिर 2 बसें बदल कर वह अजमेर पुलिया पहुंचा, यह फुटेज पुलिस को तीसरे दिन मिल गए थे. अजमेर पुलिया पर प्रियांशु की मां हंसा शर्मा, दोस्त मोहित और ड्राइवर हनुमान सहाय बुन कर उसे लेने के लिए आए थे.

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शातिर पार्थ व्यास पुलिस को गुमराह करने के लिए वारदात के समय 2 शर्ट पहन कर आया था. हंसा के साथ कार में बैठने के दौरान अजमेर पुलिया के पास उस ने एक शर्ट उतार कर रेल की पटरियों पर फेंक दी.

पार्थ व्यास हंसा व मोहित के साथ कार से प्रियांशु के घर पहुंचा. वहां पार्थ व्यास और प्रियांशु की मां हंसा ने लूटी गई रकम का आधाआधा बंटवारा किया. हंसा ने साढ़े 22 लाख रुपए खुद रख लिए और साढ़े 22 लाख रुपए पार्थ व्यास को दे दिए.

पार्थ व्यास उसी दिन 2 सौ फुट बाइपास से बस में सवार हो कर गुजरात चला गया. उस ने गुजरात पहुंच कर लूट की रकम अपने घर में जमीन में गाड़ कर छिपा दी थी. जबकि हंसा शर्मा ने लूट की रकम में से 50 हजार रुपए अपने घर में बने मंदिर में चढ़ा दिए थे.

सीसीटीवी फुटेज के सहारे पुलिस हंसा के मकान के आसपास तक पहुंच गई. इस बीच, हवाला कंपनी के कर्मचारियों पार्थ व प्रियांशु से पुलिस लगातार पूछताछ करती रही.

चौथे दिन प्रियांशु ने लूट की वारदात की सारी कहानी बता दी. पुलिस को प्रियांशु पर पहले से शक था. उसी ने अपने साथी कर्मचारी और हवाला कंपनी मैनेजर रोहित के साले पार्थ को पुलिस को सूचना देने से रोका था.

पुलिस जब हंसा के मकान पर पहुंची, तो वह परिवार के साथ गुजरात भागने की तैयारी में थी, लेकिन पालतू कुत्ते के कारण फंस गई थी. वारदात के बाद से ही वह अपने पालतू कुत्ते को किसी के यहां छोड़ कर जाने की सोच रही थी, लेकिन ऐसे किसी परिवार का इंतजाम नहीं हो सका, जो कुछ दिनों के लिए उन के कुत्ते को रख लेता.

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गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने पार्थ व्यास की निशानदेही पर अजमेर पुलिया के पास रेल की पटरियों से उस की फेंकी हुई शर्ट बरामद की. हंसा के घर में बने मंदिर से 50 हजार रुपए भी बरामद हो गए. हंसा के पास राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक एवं मानवाधिकार संस्था के फरजी आईकार्ड भी मिले. इन में उसे स्टेट सेक्रेटरी बताया गया था.

बहरहाल, रिश्तों के विश्वासघात ने मां और 2 बेटों सहित 6 आरोपियों को जेल पहुंचा दिया. पार्थ व्यास ने बदला लेने और प्रियांशु ने लालच में अपने मामा के भरोसे को तोड़ दिया था. इस वारदात से रिश्तों के साथ मालिक और कर्मचारी के भरोसे की दीवार भी दरक गई.

Crime Story: 45 लाख का खेल- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

तीनों पुलिस टीमों ने वारदातस्थल खूंटेटों का रास्ता से किशनपोल बाजार, अजमेरी गेट, अहिंसा सर्किल, गवर्नमेंट प्रेस चौराहा, विशाल मेगामार्ट, अजमेर पुलिया और 2 सौ फुट बाइपास तक सैकड़ों सीसीटीवी फुटेज खंगाले. इन मार्गों पर चलने वाले आटो चालकों, मिनी व लो फ्लोर बस चालकों और कंडक्टरों से पूछताछ की गई.

दूसरे दिन फुटेज देखने से पता चला कि लुटेरा किशनपोल बाजार से आटो में सवार हो कर अहिंसा सर्किल तक गया. तीसरे दिन देखी गई फुटेज से पता चला कि लुटेरा अहिंसा सर्किल से मिनी बस में सवार हो कर पुलिस कमिश्नरेट तक गया. वहां से दूसरी बस में बैठ कर वह अजमेर पुलिया पहुंचा.

हेलमेट, मास्क व दस्ताने पहन कर वारदात करने और इस के बाद बारबार वाहन बदलने से पुलिस को यह अहसास जरूर हो गया कि लुटेरा बहुत शातिर है. चौथे दिन पुलिस को कुछ और सुराग मिले.

इस बीच, पुलिस अधिकारी हवाला औफिस के दोनों कर्मचारियों पार्थ व प्रियांशु को रोजाना थाने बुला कर पूछताछ करते रहे.

आखिर पुलिस ने 14 मार्च को हवाला कंपनी के औफिस से हुई 45 लाख रुपए की लूट का खुलासा कर 6 लोगों को गिरफ्तार कर लिया.

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इन में गुजरात के पाटन जिले के चानस्मा थाना इलाके के कंबोई गांव का रहने वाला प्रियांशु शर्मा उर्फ बंटी, उस का भाई रवि शर्मा, इन की मां हंसा शर्मा उर्फ पूजा के अलावा गुजरात के पाटन जिले के चंद्रूमाणा गांव के रहने वाले पार्थ व्यास, जयपुर के भांकरोटा इलाके में केशुपुरा का रहने वाला हनुमान सहाय बुनकर और जयपुर के चित्रकूट इलाके में गोविंद नगर डीसीएम का रहने वाला मोहित कुमावत शामिल थे.

इनमें प्रियांशु अपनी मां हंसा उर्फ पूजा और भाई रवि शर्मा के साथ आजकल जयपुर में चित्रकूट थाना इलाके के वैशाली नगर में सेल बी हौस्पिटल के पास रहता था. प्रियांशु शर्मा उर्फ बंटी इसी हवाला कंपनी में करता था. लुटेरे ने प्रियांशु और दूसरे कर्मचारी पार्थ को धमका कर टेप से उन के मुंह बंद कर दिए और हाथ बांध दिए थे.

आरोपी पार्थ व्यास को गुजरात के पाटन और बाकी 5 अपराधियों को जयपुर से पकड़ा गया. पुलिस ने इन आरोपियों से लूट की पूरी 45 लाख रुपए की रकम बरामद कर ली.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों से पुलिस की पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह रिश्तों में विश्वासघात का किस्सा था.

गुजरात के पाटन जिले के चानस्मा थाना इलाके में आने वाले गांव कंबोई की रहने वाली हंसा देवी शर्मा उर्फ पूजा का पति कैलाश चंद शर्मा लेबर कौन्ट्रैक्ट का काम करता था. मार्च, 2020 में कोरोना के कारण हुए लौकडाउन के दौरान उस का काम ठप हो गया. मजदूर अपने गांव चले गए.

लौकडाउन खुलने के बाद भी वह परेशानी से नहीं उबर पाया. उसे लेबर कौन्ट्रैक्ट का काम मिलना कम हो गया. इस से कैलाश के परिवार को आर्थिक परेशानी होने लगी.

इस से पहले कैलाश और हंसा ने मिल कर जयपुर की वैशाली नगर कालोनी में लोन पर एक फ्लैट ले लिया था. पहले लौकडाउन और फिर आई आर्थिक परेशानी के कारण उन के सामने फ्लैट के लोन की किश्तें चुकाना मुश्किल हो गया था. फ्लैट की कुर्की की नौबत आने लगी थी. उन पर बाजार का कर्ज भी चढ़ गया था.

हंसा देवी के 2 बेटे हैं. एक रवि और दूसरा प्रियांशु. इन में रवि शर्मा प्राइवेट नौकरी कर रहा था, लेकिन उसे तनख्वाह कम मिलती थी. दूसरा बेटा प्रियांशु कोई काम नहीं कर रहा था. परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा था.

परेशानी की इस हालत में हंसा को पता चला कि गुजरात के पाटन का रहने वाला रोहित शर्मा जयपुर में हवाला कंपनी केडीएम एंटरप्राइजेज का मैनेजर है. रोहित शर्मा दूरदराज के रिश्ते में हंसा का भाई लगता था. उस ने रोहित से रिश्तेदारी निकाल कर फरवरी में बेटे प्रियांशु को उस की हवाला कंपनी में नौकरी पर लगवा दिया.

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गुजरात के ही रहने वाले पार्थ व्यास ने जयपुर की ही एक हवाला फर्म में नौकरी की थी. करीब एकडेढ़ साल पहले उसे किसी बात पर नौकरी से हटा दिया गया था. पार्थ व्यास भी रिश्ते में प्रियांशु का मामा और हंसादेवी का भाई लगता था.

पार्थ व्यास नौकरी से हटाए जाने से खफा था. उसे शक था कि केडीएम एंटरप्राइजेज के मालिक और उस के रिश्तेदार रोहित तथा दूसरे लोगों के कहने से ही उसे हवाला कंपनी से नौकरी से हटाया गया था. वह इस का बदला लेना चाहता था. जब उसे पता चला कि उस के भांजे प्रियांशु ने रोहित की हवाला फर्म में नौकरी कर ली है, तो वह अपनी बहन हंसा के जरिए इस फर्म को लूटने की योजना बनाने लगा.

अगले भाग में पढ़ें- पार्थ व्यास और प्रियांशु की  ने लूटी गई रकम का  क्या किया

Crime Story: 45 लाख का खेल- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

राजामहाराजाओं का बसाया हुआ जयपुर शहर सैकड़ों साल पुराना है. कभी इस शहर के चारों ओर परकोटा हुआ करता था. अब ये परकोटे टूट चुके हैं. फिर भी पुराने शहर को परकोटा ही कहते हैं. इसी परकोटे में किशनपोल बाजार है. इस बाजार में एक खूंटेटों का रास्ता है.

खूंटेटों का रास्ता की एक संकरी गली में भूतल पर केडीएम एंटरप्राइजेज कंपनी का औफिस है. इसे कंपनी का औफिस भले ही कह लें, लेकिन यह पुराने शहर के एक मकान का कमरा है. कमरे में 2-4 कुर्सियां और एक काउंटर आदि रखे हैं. दरअसल, यह एक

हवाला कंपनी का औफिस है. आजकल हवाला कंपनी को मनी ट्रांसफर कंपनी भी कहते हैं.

इस औफिस में न तो बिक्री लायक कोई सामान है और न ही यहां ग्राहक आते हैं. दिनभर में यहां 10-20 लोग आते हैं. वे कोई पर्ची या मोबाइल में सबूत दिखाते हैं और औफिस में काम करने वाले कर्मचारी उस की पहचान कर पर्ची या मोबाइल में मौजूद सबूत के आधार पर रकम गिन कर दे देते हैं.

हवाला का कामकाज ऐसे ही चलता है. हवाला का काम सभी बड़े शहरों में होता है. यह काम बैंकों जैसा ही है. फर्क बस इतना है कि बैंकों में लिखापढ़ी और नियमकानून हैं. जबकि हवाला में कोई नियमकानून नहीं है. हवाला को आप घरेलू बैंक भी कह सकते हैं. इस के जरिए मामूली कमीशन पर एक से दूसरी जगह पैसे भेजे जाते हैं.

एक पर्ची पर रकम लिख कर दे दी जाती है. यह पर्ची दिखाने पर जहां रकम भेजी जाती है, वहां से ली जा सकती है. हवाला के जरिए कितनी भी रकम भेजी जा सकती है. 10-20 हजार से लेकर 10-20 लाख और 10-20 करोड़ रुपए तक. कानून की नजर में यह काम अवैध है, फिर भी यह धंधा बहुत सालों से चल रहा है. केवल भारत में ही नहीं, विदेशों में भी.

बात इसी 10 मार्च की है. केडीएम एंटरप्राइजेज कंपनी के 2 कर्मचारी प्रियांशु उर्फ बंटी और पार्थ औफिस में बैठे थे. दोनों के पास कोई खास काम तो था नहीं, इसलिए मोबाइल पर वाट्सऐप चैटिंग कर रहे थे. दोपहर के तकरीबन साढ़े 12 बज चुके थे. उन्हें भूख लगने लगी थी.

कंपनी के इस औफिस में कोई लंच ब्रेक नहीं होता. इसलिए भूख लगने पर वे एक ही मेज पर टिफिन खोल कर घर से लाया भोजन कर लेते थे. कभी कुछ खाने या किसी दूसरी चीज की जरूरत होती, तो उन में से एक कर्मचारी बाजार जा कर जरूरत की चीज ले आता था.

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प्रियांशु और पार्थ लंच बौक्स लाए थे. वे लंच करने के लिए आपस में बात कर रहे थे, तभी एक युवक सीढि़यां चढ़ कर औफिस में आया. उस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. सफेद रंग की शर्ट और जींस के अलावा उस के पैरों में स्पोर्ट्स शूज थे. सिर पर हेलमेट लगा होने के कारण उस का चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था. युवक के कंधे पर एक बैग लटक रहा था.

पार्थ और प्रियांशु ने युवक को आया देख सोचा कि वह रकम लेने आया होगा. वे दोनों उस से कुछ कहते या पूछते, इस से पहले ही उस ने फुरती से अपने बैग से एक पिस्तौल निकाली और दोनों को धमकाते हुए कहा, ‘‘चिल्लाना मत, वरना ठोक दूंगा.’’

पिस्तौल देख और युवक की धमकी सुन कर दोनों कर्मचारी सहम गए. दोनों को धमकाते हुए युवक ने उन के मुंह पर सेलो टेप चिपका दी ताकि वे शोर ना मचा सकें. सेलो टेप वह अपनी जेब में डाल कर लाया था.

उसी सेलो टेप से उस ने दोनों कर्मचारियों के हाथ भी बांध दिए. हाथ बांधने के बाद युवक ने उन से पूछा कि रकम कहां रखी है? पार्थ और प्रियांशु के मुंह पर टेप चिपकी थी, वे कैसे बोलते? दोनों चुप रहे, तो युवक ने खुद ही काउंटर की दराजें खोल कर देखी.

एक दराज में रुपयों से भरा बैग था. उस बैग में 45 लाख रुपए थे. वह बैग युवक ने अपने बैग में डाला और दोनों कर्मचारियों को धमकाते हुए चला गया.

3 मिनट में 45 लाख रुपए लूट की वारदात कर वह युवक वापस चला गया. उस गली और औफिस में इक्कादुक्का लोगों की आवाजाही रहती है. इसलिए न तो किसी ने उसे आते देखा और न ही जाते हुए.

लुटेरे के जाने के काफी देर बाद तक पार्थ और प्रियांशु डर के मारे चुपचाप बैठे रहे. बाद में उन्होंने अपने हाथों और मुंह पर बंधी चिपकी टेप हटाई. फिर मकान मालिक राधावल्लभ शर्मा को वारदात के बारे में बताया, शोर मचाया. आसपास के लोगों ने इधरउधर देखा भी, लेकिन लुटेरे का कुछ पता नहीं चला.

बाद में कर्मचारियों ने कंपनी के मैनेजर रोहित कुमार शर्मा को वारदात के बारे में बताया. रोहित ने औफिस पहुंच कर दोनों से लूट के बारे में पूछा.

वारदात के करीब ढाई घंटे बाद दोपहर करीब 3 बजे पुलिस को सूचना दी गई. जयपुर के प्रमुख बाजार से दिनदहाड़े हवाला कंपनी के औफिस से 45 लाख रुपए लूटे जाने की वारदात की बात सुन कर पुलिस अफसर भी हैरान रह गए.

सूचना मिलने पर पुलिस कमिश्नरेट और नौर्थ पुलिस जिले के अधिकारी मौके पर पहुंचे. पुलिस ने हवाला कंपनी के दोनों कर्मचारियों पार्थ और प्रियांशु से पूछताछ की. डीसीपी (क्राइम) दिगंत आनंद ने भी मौके पर पहुंच कर उन दोनों से पूछताछ की.

पुलिस अधिकारियों ने आसपास के सीसीटीवी फुटेज दिखवाए. इन में हेलमेट लगाए हुए एक युवक पैदल आ कर हवाला औफिस में जाता हुआ दिखा. युवक ने हेलमेट के नीचे मुंह पर मास्क भी लगाया हुआ था. हाथों में

दस्ताने पहन रखे थे. वारदात के बाद लुटेरा किशनपोल बाजार तक पैदल जाता दिखा.

पूछताछ में पता चला कि गुजरात के पाटन जिले के रहने वाले रोहित कुमार शर्मा ने एक महीने पहले ही राधावल्लभ के मकान में यह औफिस किराए पर लिया था. फरवरी में बसंत पंचमी पर औफिस का मुहूर्त किया गया था.

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औफिस में पार्थ और प्रियांशु ही काम करते थे. यही औफिस खोलते और लेनदेन करते थे. रोहित इस कंपनी का मैनेजर था. रोहित की कंपनी के देश के विभिन्न शहरों में करीब 15 औफिस हैं. इन सभी औफिसों में मनी ट्रांसफर का ही काम होता है.

मौके के हालात और पूछताछ में मिली जानकारियों से पुलिस अधिकारियों के गले कई बातें नहीं उतर रही थीं. सब से बड़ी बात यह थी कि 45 लाख की लूट होने के बावजूद दोनों कर्मचारी न तो चिल्लाए और न ही लुटेरे का पीछा किया. पुलिस को 3 घंटे देरी से सूचना देने के बारे में भी वे लोग संतोषजनक जवाब नहीं दे सके.

पुलिस अधिकारियों को शुरुआती जांच में यह अहसास हो गया कि वारदात में किसी नजदीकी आदमी का हाथ हो सकता है. इस का कारण यह था कि इस औफिस को खुले एक महीना भी नहीं हुआ था. इसलिए कोई बाहरी आदमी इतनी आसानी से वारदात नहीं कर सकता था.

पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज के आधार पर लुटेरे की तलाश शुरू कर दी. फुटेज में लुटेरा किशनपोल बाजार तक पैदल जाता हुआ दिखाई दिया. इस के बाद उस के फुटेज नहीं मिले. इस से अनुमान लगाया गया कि वह आगे किसी वाहन से भागा होगा.

पुलिस ने हुलिए के आधार पर रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और जयपुर से बाहर जाने वाले रास्तों पर नाकेबंदी करा दी, लेकिन शाम तक कोई सुराग नहीं मिला.

इस बीच, गुजरात के पाटन जिले के हारिज बोरतवाड़ा निवासी हवाला कंपनी के मैनेजर रोहित कुमार शर्मा ने जयपुर नौर्थ पुलिस जिले के कोतवाली थाने में इस लूट का मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने मुकदमा आईपीसी की धारा 392 के तहत दर्ज कर लिया.

पुलिस के सामने हेलमेट से चेहरा छिपाए हुए लुटेरे को तलाश करना बड़ा चुनौती भरा काम था. इस का कारण यह था कि सीसीटीवी फुटेज में लुटेरे का चेहरा हेलमेट और मास्क लगा होने के कारण नजर नहीं आ रहा था. केवल उस की कदकाठी का ही अनुमान लग रहा था. हवाला कंपनी के कर्मचारियों और आसपास के लोगों से पूछताछ में भी कोई ऐसा क्लू नहीं मिला, जिस से लुटेरे का पता चलता.

लुटेरे का पता लगाने के लिए पुलिस कमिश्नर आनंद श्रीवास्तव और अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर (प्रथम) अजयपाल लांबा के निर्देश पर 3 टीमों का गठन किया गया. एक टीम में एडिशनल डीसीपी धर्मेंद्र सागर और प्रशिक्षु एसीपी कल्पना वर्मा के सुपरविजन में कोतवाली थानाप्रभारी विक्रम सिंह चारण और नाहरगढ़ थानाप्रभारी मुकेश कुमार को रखा गया.

दूसरी टीम में डीसीपी (क्राइम) दिगंत आनंद के सुपरविजन में एडिशनल डीसीपी सुलेश चौधरी और सीएसटी प्रभारी रविंद्र प्रताप सिंह को शामिल किया गया. तीसरी टीम में डीएसटी नौर्थ प्रभारी जयप्रकाश पूनिया के नेतृत्व में डीएसटी टीम को लिया गया. इन तीनों टीमों में 50 से ज्यादा पुलिसवाले शामिल किए गए.

अगले भाग में पढ़ें- पार्थ क्यों गुस्सा था

Salman khan के साथ Seeti Maar गाने पर ठुमके लगाना चाहती है यह भोजपुरी एक्ट्रेस, पढ़ें खबर

भोजपुरी इंडस्ट्री की मशहूर एक्ट्रेस अंजना सिंह ने सलमान खान के साथ ‘सीटी मार’ गाने पर डांस करना चाहती हैं. जी हां, एक्ट्रेस ने एक इंटरव्यू में कहा है कि मैं सलमान खान की बहुत बड़ी फैन हूं. मैं खुद को खुशकिस्मत मानती हूं कि मैंने पहले ही इसी टाइटल के साथ गाना किया है.

बताया जा रहा है कि अंजना सिंह ने कहा है, मैंने और रवि किशन ने लखनऊ में हमारे भोजपुरी गीत ‘सिट्टी मार’ के लिए फिल्म के लिए शूटिंग की है. अब अगर हम अल्लू अर्जुन की ‘सीटी मार’ गाने की बात करें तो इस गाने में कुछ स्टेप्स एक जैसे ही हैं.

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खबरों के अनुसार उन्होंने ये भी कहा कि हम अपने इस गाने की तुलना किसी और गाने के साथ नहीं करना चाहते हैं लेकिन तीनों सुपरस्टार को एक ही टाइटल के साथ गाने पर डांस करते हुए देखना काफी दिलचस्प होगा.

 

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उन्होंनो आगे ये भी कहा कि मुझे खुशी है कि इस वजह से सलमान खान के गाने के साथ हमारा गाना भी ट्रेंड कर रहा है. बता दें कि हाल ही में सलमान खान की फिल्म ‘राधे: योर मोस्ट वांटेड भाई’  का ट्रेलर बीते हफ्ते ही  रिलीज किया गया है.

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जानें क्यों अनिता हसनंदानी को यूजर्स ने जमकर लगाई लताड़, सोशल मीडिया पर किया अनफॉलो

टीवी एक्ट्रेस अनीता हसनंदानी इन दिनों सोशल मीडिया पर  काफी एक्टिव है. कुछ महिनों पहले ही वह मां बनी है. और आए दिन वह अपने बेटे की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं. फैंस उनके पोस्ट पसंद करते हैं पर अब उनके लेटेस्ट फोटोशूट को लेकर यूजर्स का गुस्सा फूट पड़ा है. जी हां आइए बताते है क्या है पूरा मामला.

अनीता हसनंदानी ने इंस्टाग्राम पर अपने नए फोटोशूट को शेयर किया है. इस तस्वीर में एक्ट्रेस फ्लोरल प्रिंट के ऑर्गेंजा काफ्तान में नजर आ रही हैं. अनीता हसनंदानी ने ये फोटोशूट अपनी बिल्डिंग के छत पर ही करवाया है.

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सोशल मीडिया पर एक्ट्रेस को ट्रोल किया जा रहा है. एक यूजर ने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए अनीता की जमकर लताड़ लगाई है. यूजर ने लिखा है, एक पब्लिक फिगर होने के नाते मैंने इस पेंडमिक में आपको कुछ भी करते हुए नहीं देखा है. कम से कम आपको संवेदनशील तो होना चाहिए.

उस यूजर ने आगे ये भी लिखा,  ‘इस वक्त हमें बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ता है कि आपको कितने गुडी बैग मिले हैं या आपने कितने शूट्स किए हैं. खैर..ख्याल रखिए…आपको अनफॉलो कर रहा हूं… आप ऐसा कुछ भी नहीं कर रही हैं कि आपको फॉलो किया जाए.

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अब ये देखना दिलचस्प होगा कि एक्ट्रेस इस यूजर को क्या जवाब देती हैं. आपको बता दें कि अनीता हसनंदानी ने हाल ही में अपना 40वां बर्थडे सेलिब्रेट किया है. सेलिब्रेशन की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हई थी.

शादी के 10 साल बाद Mohit Malik बने पापा, पत्नी अदिति शिरवाइकर ने दिया बेटे को जन्म

सीरियल कुल्फी कुमार बाजेवाला फेम एक्टर मोहित मलिक पापा बन गए हैं. जी हां, यह खुशखुबरी सोशल मीडिया से मिली है. मोहित मलिक की पत्नी अदिति शिरवाइकर एक बेटे को जन्म दिया है.

यह गुड न्यूज मोहित मलिक ने खुद सोशल मीडिया पर फैंस के साथ शेयर किया है. एक्टर ने बहुत क्यूट तस्वीर शेयर कर बताया कि वह पापा बन गए हैं. मोहित मलिक ने अपने बेटे की पहली तस्वीर फैंस के साथ शेयर की है.

 

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आपको बता दें कि इस तस्वीर में मोहित मलिक ने अपनी पत्नी का हाथ थाम रखा है. तो पालने में बेबी लेटा हुआ नजर आ रहा है. मोहित मलिक की ये पोस्ट सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है.

 

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एक्टर ने इस तस्वीर को शेयर करते हुए लिखा, ‘डीयर यूनिवर्स… मुझे ये आशीर्वाद देने के लिए आपका शुक्रिया… मुझे मिड नाइट क्राइज देने के बहुत धन्यवाद… मैं इस समय बहुत ही भाग्यशाली महसूस कर रहा हूं. मेरे घर पर एक बेटे ने दस्तक दी है.

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उन्होंने आगे लिखा कि हमारी जिंदगी में इसे भेजने का शुक्रिया. मेरे लिए पिता बनना एक मैजिक की तरह है. हम हमेशा खुश रहेंगे. मोहित मलिक की पत्नी अदिति शिरवाइकर ने भी अपने बेटे की तस्वीर शेयर की है. फैंस उन्हें लगातार बधाईयां और शुभकामनाएं दे रहे हैं.

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