मैं पिछले 2 वर्षों से दिल्ली में अपनी चाची के यहां रह कर पढ़ाई कर रही हूं. चाची का घर इसलिए कहा क्योंकि घर में चाचू की नहीं, बल्कि चाची की चलती है. मेरे अलावा घर में 7 साल का गोलू, 14 साल का मोनू और 47 साल के चाचू हैं. गोलू और मोनू चाचू के बेटे यानी मेरे चचेरे भाई हैं.

मार्च 2020 की शुरुआत में जब कोरोना का खौफ समाचारों की हैडलाइन बनने लगा तो हमारी चाचीजी के भी कान खड़े हो गए. वे ध्यान से समाचार पढ़तीं और सुनती थीं. कोरोना नाम का वायरस जल्दी ही उन का जानी दुश्मन बन गया जो कभी भी चुपके से उन के हंसतेखेलते घर की चारदीवारी पार कर हमला बोल सकता था. इस अदृश्य मगर खौफनाक दुश्मन से जंग के लिए चाची धीरेधीरे तैयार होने लगी थीं.

‘‘दुश्मन को कभी भी कमजोर मत समझो. पूरी तैयारी से उस का सामना करो,’’ अखबार पढ़ती चाची ने अपना ज्ञान बघारना शुरू किया तो चाचू ने टोका, ‘‘कौन दुश्मन? कैसा दुश्मन?’’

‘‘अजी, अदृश्य दुश्मन जो पूरी फौज ले कर भारत में प्रवेश कर चुका है. हमले की तैयारी में है. चौकन्ने हो जाओ. हमें डट कर सामना करना है. उसे एक भी मौका नहीं देना है. कुछ समझे?’’

‘‘नहीं श्रीमतीजी. मैं कुछ नहीं समझा. स्पष्ट शब्दों में समझाओगी?’’

‘‘चाचू, कोरोना. कोरोना हमारा दुश्मन है. चाची उसी के साथ युद्ध की बात कर रही हैं.’’ मुसकराते हुए मैं ने कहा तो चाची ने हामी भरी, ‘‘देखो जी, सब से पहला काम, रसद की आपूर्ति करनी जरूरी है. मैं लिस्ट बना कर दे रही हूं. सारी चीजें ले आओ.’’

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