लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
उस दिन रानी वापस तो आई, पर उस का मन जैसे कहीं छूट सा गया था. बारबार उस के मन में आ रहा था कि वह जा कर चंद्रिका से खूब बातें करे, उस के साथ में जीने का एहसास पहली बार हुआ था उसे.
इस बीच रानी कभीकभी अकेले ही अस्तबल चली जाती. एक दिन उस ने चंद्रिका का एक अलग ही रूप देखा.
‘‘बस, कुछ दिन और बादल… मु?ो बस इस बार के मेले में होने वाली दौड़ का इंतजार है, जिस में मुखिया से मेरा हिसाब बराबर हो जाएगा… मु?ो इस मुखिया ने बहुत सताया है.’’
‘‘यह चंद्रिका आज कैसी बातें कर रहा है? कैसा हिसाब…? और मुखियाजी ने क्या सताया है तुम्हें?’’ एकसाथ कई सवाल सुन कर घबरा गया था चंद्रिका.
‘‘जाने दीजिए… हमें इस बारे में कुछ नहीं कहना है.’’
‘‘नहीं, तुम्हें बताना पड़ेगा… तुम्हें हमारी कसम,’’ चंद्रिका का हाथ पकड़ कर रानी ने अपने सिर पर रखते हुए कहा था. न चाहते हुए भी चंद्रिका को बताना पड़ा कि वह अनाथ था. मुखियाजी ने उसे रहने की जगह और खाने के लिए भोजन दिया. उन्होंने ही चंद्रिका की शादी भी कराई और फिर चंद्रिका को बहाने से शहर भेज दिया और उस के पीछे उस की बीवी की इज्जत लूटने की कोशिश की, पर उस की बीवी स्वाभिमानी थी. उस ने फांसी लगा ली…
बस, तब से चंद्रिका हर 8 साल बाद होने वाले इस मेले का इंतजार कर रहा है, जब वह बग्घी दौड़ में मुखियाजी को बग्घी से गिरा कर मार देगा और इस तरह से अपनी पत्नी की मौत का बदला लेगा.
रानी को सम?ाते देर न लगी कि ऊपर से चुप रहने वाला चंद्रिका अंदर से कितना भरा हुआ है. वह कुछ न बोल सकी और लौट आई.
रानी के मन में चंद्रिका की मरी हुई पत्नी के लिए श्रद्धा उमड़ रही थी. अपनी इज्जत बचाने के लिए उस ने अपनी जिंदगी ही खत्म कर दी.
इस के जिम्मेदार तो सिर्फ मुखियाजी हैं… तब तो उन्हें सजा जरूर मिलनी चाहिए… पर कैसी सजा…? किस तरह की सजा…? मुखियाजी को कुछ ऐसी चोट दी जाए, जिस का दंश उन्हें जिंदगीभर ?ोलना पड़े… और वे चाह कर भी कुछ न कर सकें… आखिरकार रानी को उस के पति से अलग करने का जुर्म भी तो मुखियाजी ने ही किया है.
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अगली सुबह रानी सीधा अस्तबल पहुंची और चंद्रिका से कुछ बातें कीं, जिन्हें सुन कर चंद्रिका परेशान सा दिखाई दिया था.
वापस आते समय रानी चंद्रिका से काले घोड़े की नाल भी ले आई थी… यह कहते हुए कि देखते हैं कि तुम्हारे इस अंधविश्वास में कितनी सचाई है और वह काले घोड़े की नाल उस ने मुखियाजी के कमरे के बाहर टांग दी थी.
रात में रानी ने घर का सारा कीमती सामान और नकदी एक बैग में रखी और अस्तबल पहुंच गई. रानी और चंद्रिका दोनों बादल की पीठ पर बैठ कर शहर की ओर जाने वाले थे, तभी चंद्रिका ने पूछा, ‘‘पर, इस तरह तुम को भगा ले जाने से मेरे बदले का क्या संबंध…?’’
‘‘मैं ने अपने पति को एक चिट्ठी लिखी है, जिस में उसे अपनी पत्नी का ध्यान न रख पाने का जिम्मेदार ठहराया है… वह तिलमिलाता हुआ आएगा और मुखियाजी से सवाल करेगा…
‘‘दोनों भाइयों में कलह तो होगी ही, साथ ही साथ पूरे गांव में मुखियाजी की बहू के उन के घोड़ों के नौकर के साथ भाग जाने से उन की आसपास के सात गांव में जो नाक कटेगी, उस का घाव जिंदगीभर रिसता रहेगा… यह होगा हमारा असली बदला,’’ रानी की आंखें चमक रही थीं.
रानी ने उसे यह भी बताया, ‘‘माना कि मुखियाजी को वह मार सकता है, पर भला उस से क्या होगा? एक ?ाटके में वह मुक्त हो जाएगा और फिर उस पर हत्या का इलजाम भी लग सकता है और फिर मुखिया भले ही बहुत बुरा आदमी है, पर मुखियाइन का भला क्या दोष? उस के जिंदा रहने से उस की जिंदगी जुड़ी हुई है और फिर उसे मार कर बेकार पुलिस के पचड़े में पड़ने से अच्छा है कि उसे ऐसी चोट दी जाए, जो जिंदगीभर सालती रहे.
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‘‘और हां… अब तो मानते हो न कि तुम्हारी वह बुरे वक्त से बचाने वाली काले घोड़े की नाल वाली बात एक कोरा अंधविश्वास के अलावा कुछ भी नहीं है… क्योंकि मुखियाजी का बुरा वक्त तो अब शुरू हुआ है, जिसे कोई नालवाल बचा नहीं सकती.’’
रानी की बात सुन कर चंद्रिका के चेहरे पर एक मुसकराहट फैल गई. उस ने बड़ी जोर से ‘हां’ में सिर को हिलाया और बादल को शहर की ओर दौड़ा दिया.