Mother’s Day Special- मां का साहस: भाग 2

एक दिन शाम को वनिता औफिस से घर लौटी तो उसे घर में सन्नाटा पसरा दिखा. आमतौर पर उस के घर आते ही गुडि़या उछल कर उस के सामने चली आती थी, मगर आज न तो उस का और न ही भुंगी का कोई अतापता था.

वनिता ने ससुर के कमरे में जा कर  झांका. वहां सास बैठी थीं और वे ससुर के तलवे पर तेल मल रही थीं.

‘‘आप ने गुडि़या को देखा क्या?’’ वनिता ने सवाल किया, ‘‘भुंगी भी नहीं दिखाई दे रही है.’’

‘‘वह अकसर उसे पार्क में घुमाने ले जाती है…’’ सास बोलीं, ‘‘आती ही होगी.’’

वनिता हाथमुंह धोने के बाद कपड़े बदल कर बाहर आई. अभी तक उन लोगों का कोई पता नहीं था. आमतौर पर औफिस से आने पर वह गुडि़या से बातें कर के हलकी हो जाती थी. तब तक भुंगी चायनाश्ता तैयार कर उसे दे देती थी.

वनिता उठ कर रसोईघर में गई. चाय बना कर सासससुर को दी और खुद चाय का प्याला पकड़ कर ड्राइंगरूम में टीवी के सामने बैठ गई.

थोड़ी देर बाद ही शेखर का फोन आया. औपचारिक बातचीत के बाद शेखर ने पूछा, ‘‘गुडि़या कहां है?’’

‘‘भुंगी उसे कहीं घुमाने ले गई है…’’ वनिता ने उसे आश्वस्त किया, ‘‘बस, वह आती ही होगी.’’

बाहर अंधेरा गहराने लगा था और अब तक न भुंगी का कोई पता था और न ही गुडि़या का. वनिता बेचैनी से उठ कर घर में ही टहलने लगी. पूरा घर जैसे सन्नाटे से भरा था. बाहर जरा सी भी आहट हुई नहीं कि वह उधर ही देखने लगती थी.

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अब वनिता ने पड़ोस में जाने की सोची कि वहीं किसी से पूछ ले कि गुडि़या को साथ ले कर भुंगी कहीं वहां तो नहीं बैठी है कि अचानक उस का फोन घनघनाया.

वनिता ने लपक कर फोन उठाया.

‘तुम्हारी बच्ची हमारे कब्जे में है…’ उधर से एक रोबदार आवाज आई, ‘बच्ची की सलामत वापसी के लिए 30 लाख रुपए तैयार रखना. हम तुम्हें 24 घंटे की मोहलत देते हैं.’

‘‘तुम कौन हो? कहां से बोल रहे हो… अरे भाई, हम 30 लाख रुपए का जुगाड़ कहां से करेंगे?’’

‘हमें बेवकूफ सम झ रखा है क्या… 5 लाख के जेवरात हैं तुम्हारे पास… 10 लाख की गाड़ी है… तुम्हारे बैंक खाते में 7 लाख रुपए बेकार में पड़े हैं… और शेखर के खाते में 12 लाख हैं. घर में बैठा बुड्ढा पैंशन पाता है. उस के पास भी 2-4 लाख होंगे ही.

‘‘हम ज्यादा नहीं, 30 लाख ही तो मांग रहे हैं. तुम्हारी गुडि़या की जान की कीमत इस से कम है क्या…

वनिता को धरती घूमती नजर आ रही थी. बदमाशों को उस के घर के हालात का पूरा पता है, तभी तो बैंक में रखे रुपयों और जेवरात की उन्हें जानकारी है. उस ने तुरंत अपने मम्मीपापा को फोन किया. इस के अलावा कुछ दोस्तों को भी फोन किया.

देखते ही देखते पूरा घर भर गया. शेखर के दोस्त राकेश ने वनिता को सलाह दी कि उसे शेखर को फोन कर के सारी जानकारी दे देनी चाहिए, मगर वनिता के दफ्तर में काम करने वाली सुमन तुरंत बोली, ‘‘यह हमारी समस्या है, इसलिए उन्हें डिस्टर्ब करना ठीक नहीं होगा. हम औरतें हैं तो क्या हुआ, जब हम औफिस की बड़ीबड़ी समस्याएं सुल झा सकती हैं तो इसे भी हमें ही सुल झाना चाहिए. जरा सब्र से काम ले कर हम इस समस्या का हल निकालें तो ठीक होगा.’’

‘‘मेरे खयाल से यही ठीक रहेगा,’’ राकेश ने अपनी सहमति जताई.

‘‘तो अब हम क्या करें?’’ वनिता अब खुद को संतुलित करते हुए बोली, ‘‘अब मु झे भी यही ठीक लग रहा है.’’

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‘‘सब से पहले हम पुलिस को फोन कर के सारी जानकारी दें…’’ सुमन बोली, ‘‘हमारे औफिस के ही करीम भाई के एक परिचित पुलिस में इंस्पैक्टर हैं. उन से मदद मिल जाएगी.’’

‘‘तो फोन करो न उन्हें…’’ राकेश बोला, ‘‘उन्हीं के द्वारा हम अपनी बात पुलिस तक पहुंचाएंगे.’’

वनिता ने करीम भाई को फोन लगाया तो वे आधी रात को ही वहां पहुंच गए.

‘‘मैं ने अपने कजिन अजमल को, जो पुलिस इंस्पैक्टर है, फोन कर दिया है. वह बस आता ही होगा,’’ करीम भाई ने कहा.

करीम भाई ने वनिता को हिम्मत बंधाते हुए कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो. तुम्हारी बेटी को अजमल जल्द ही ढूंढ़ निकालेगा.’’

पुलिस इंस्पैक्टर अजमल ने आते ही वनिता से कुछ जरूरी सवाल पूछे. नौकरानी भुंगी की जानकारी ली और सब को पुलिस स्टेशन ले गए.

एफआईआर दर्ज करने के बाद इंस्पैक्टर अजमल बोले, ‘‘वनिताजी, इस समय यहां एक रैकेट काम कर रहा है. यह वारदात उसी की एक कड़ी है. हम उन लोगों तक पहुंचने ही वाले हैं. दिक्कत बस यही है कि इसे राजनीतिक सरपरस्ती मिली हुई है, इसलिए हमें फूंकफूंक कर कदम रखना है. अभी आप घर जाएं और जब अपहरण करने वालों का फोन आए तो उन से गंभीरतापूर्वक बात करें.’’

वनिता की आंखों में नींद नहीं थी. इतना बड़ा हादसा हो और नींद आए तो कैसे. रात जैसे आंखों में कट गई. इतनी छोटी सी बच्ची कहां, किस हाल में होगी, पता नहीं. सासससुर का भी रोतेरोते बुरा हाल था. मां उसे अलग कोस रही थीं, ‘‘और कर ले नौकरी. मैं कह रही थी न कि बच्चों की देखभाल मां ही बेहतर कर सकती है. मगर इसे तो अपने समाज की इज्जत और रोबरुतबे का ही खयाल था.’’

वनिता ने अपने कमरे में जा कर अटैची निकाली. अलमारी खोल कर पैसे देखने लगी कि उस का मोबाइल फोन बजने लगा.

‘क्या हुआ…’

‘‘रुपयों का इंतजाम कर रही हूं…’’ वह बोली, ‘‘तुम कहां हो? जल्दी बोलो कि मैं वहां आऊं.’’

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‘अभी इतनी जल्दी क्या है,’ उधर से हंसने की आवाज आ कर बंद हो गई.

अचानक पुलिस इंस्पैक्टर अजमल उस के घर में आए और दोबारा जब उस से भुंगी के फोन और पते की बात पूछी तो वह घबरा गई.

‘‘वह तो इस महल्ले में कई साल से रहती थी.’’

Serial Story: जड़ों से जुड़ा जीवन- भाग 3

लेखक-  वीना टहिल्यानी

मिसेज ब्राउन ने अपने को पूरी तरह से काम में झोंक कर अपनी सेहत को खूब नकारा था. अचानक वह बीमार पड़ीं और डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि उन्हें कैंसर है और वह अंतिम स्टेज में है.

मिली ने सुना तो सकते में आ गई. लेकिन मौम बहादुर बनी रहीं. जौन मिलने आया तो उसे भी समझाबुझा कर वापस भेज दिया. उस की पीएच.डी. पूरी होने वाली थी. मां के लिए उस की पढ़ाई का हर्ज हो यह मिसेज ब्राउन को मंजूर न था.

मां के समझाने पर मिली सामान्य बनी रहती और रोज स्कूल जाती. बीमार अवस्था में भी मौम अपना और अपने दोनों बच्चों का भी पूरा खयाल रखतीं. डैड अपनेआप में ही रमे रहते. पीते और देर रात गए घर लौटते थे.

इधर मौम का इलाज चलता रहा. उधर अमेरिका के फ्लोरिडा विश्व- विद्यालय में पढ़ाई पूरी होते ही जौन को नौकरी मिल गई. यह जानने के बाद कि उसे फौरन नौकरी ज्वाइन करनी है, मौम ने उसे घर आने के लिए और अपने से मिलने के लिए साफ और सख्त शब्दों में मना करते हुए कह दिया कि उसे सीधा वहीं से रवाना होना है.

उस दिन बिस्तर में बैठेबैठे ही मौम ने पास बैठी मिली का हाथ अपने दोनों हाथों के बीच रख लिया फिर धीरे से बहुत प्रयास कर उसे अपने अंक में भर लिया. मिली डर गई कि मौम को अंत की आहट लग रही है. मिली ने भी मौम की क्षीण व दुर्बल काया को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘मर्लिन मेरी बच्ची, मैं तेरे लिए क्याक्या करना चाहती थी लेकिन लगता है सारे अरमान धरे के धरे रह जाएंगे. लगता है अब मेरे जाने का समय आ गया है.’’

‘‘नहीं, मौम…नहीं, तुम ने सबकुछ किया है…तुम दुनिया की सब से अच्छी मां हो…’’ रुदन को रोक, रुंधे कंठ से मिली बस, इतना भर बोल पाई और अपना सिर मौम के सीने पर रख दिया.’’

कांपते हाथों से मिसेज ब्राउन बेटी का सिर सहलाती रहीं और एकदूसरे से नजरें चुराती दोनों ही अपनेअपने आंसुओं को छिपाती रहीं.

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मिली भाई को बुलाना चाहती तो मौम कहतीं, ‘‘उसे वहीं रहने दे…तू है न मेरे पास, वह आ कर भी क्या कर लेगा. वह कद से लंबा जरूर है पर उस का दिल चूहे जैसा है…अब तो तुझे ही उस का ध्यान रखना होगा, मर्लिन.’’

मौम की हालत बिगड़ती देख अकेली पड़ गई मिली ने एक दिन घबरा कर चुपचाप भाई को फोन लगाया और उसे सबकुछ बता दिया.

आननफानन में जौन आ पहुंचा और फिर देखते ही देखते सबकुछ बीत गया. मौम चुपके से सबकुछ छोड़ कर इस दुनिया को अलविदा कह गईं.

उस रात मां के चेहरे पर और दिनों सी वेदना न थी. कैसी अलगअलग सी दिख रही थीं. मिली डर गई. वह समझ गई कि मौम को मुक्ति मिल गई है. मिली ने उन को छू कर देखा, वे जा चुकी थीं. मिली समझ ही न पाई कि वह हंसे या रोए. अंतस की इस ऊहापोह ने उसे बिलकुल ही भावशून्य बना दिया. हृदय का हाहाकार कहीं भीतर ही दब कर रह गया.

लोगों का आनाजाना, अंतिम कर्म, चर्च सर्विस, मिली जैसे सबकुछ धुएं की दीवार के पार से देख रही थी. होतेहोते सबकुछ हो गया. फिर धीरेधीरे धुंधलका छंटने लगा. कोहरा भी कटने लगा. मिली की भावनाएं पलटीं तो मां के बिना घर बिलकुल ही सूना लगने लगा था.

कुछ ही दिन के बाद डैड अपनी एक महिला मित्र के साथ कनाडा चले गए. जैसे जो हुआ उन्हें बस, उसी का इंतजार था.

सत्र समाप्ति पर था. मिली नियमित स्कूल जाती और मेहनत से पढ़ाई करती पर एक धुकधुकी थी जो हरदम उस के साथसाथ चलती. अब तो जौन भी चला जाएगा, फिर कैसे रहेगी वह अकेली इस सांयसांय करते सन्नाटे भरे घर में.

मौम क्या गईं अपने साथसाथ उस का सपना भी लेती गईं. सपना अपने देश जा कर अपने शहर कोलकाता देखने का था. सपना अपनी फरीदा अम्मां से मिल आने का था. टूट चुकी थी मिली की आस. अब कोई नहीं करेगा इंडिया जाने की बात. काश, एक बार, सिर्फ एक बार वह अपना देश और कोलकाता देख पाती.

स्कूल का सत्र समाप्त होने पर जौन उसे अपने साथ ले जाने की बात कर रहा था. अब वह कैसे उस से कहे कि मुझे इंडिया ले चलो. देश दिखा लाओ.

मौम के जाने पर ही भाईबहन ने जाना कि वह बिन बोले, बिन कहे कितना कुछ सहेजेसंभाले रहती थीं. अब वह चाहे जितना कुछ करते, कुछ न कुछ काम रह ही जाता.

उस दिन जौन मां के कागज सहेजनेसंभालने में व्यस्त था. बैंक पेपर, वसीयत, रसीदें, टैक्स पेपर तथा और भी न जाने क्या क्या. इतने सारे तामझाम के बीच जौन एकदम से बोल पड़ा, ‘‘मर्लिन, इंडिया चलोगी?’’

मिली हैरान, क्या कहती? ओज के अतिरेक में उस की आवाज ही गुम हो गई और आंखों में आ गया अविश्वास और आश्चर्य.

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‘‘यह देखो मर्लिन, मौम तुम्हारे भारत जाने का इंतजाम कर के गई हैं, पासपोर्ट, टिकट, वीसा और मुझे एक चिट्ठी भी, छुट्टियां शुरू होते ही बहन को इंडिया घुमा लाओ…और यह चिट्ठी तुम्हारे लिए.’’

मिली ने कांपते हाथों से लिफाफा पकड़ा और धड़कते दिल से पत्र पढ़ना शुरू किया:

‘‘प्यारी बेटी, मर्लिन,

कितना कुछ कहना चाहती हूं पर अब जब कलम उठाई है तो भाव जैसे पकड़ में ही नहीं आ रहे. कहां से शुरू करूं और कैसे, कुछ भी समझ नहीं पा रही हूं्. कुछ भावनाएं होती भी हैं बहुत सूक्ष्म, वाणी वर्णन से परे, मात्र मन से महसूस करने के लिए. कैसेकैसे सपनों और अरमानों से तुम्हें बेटी बना कर भारत से लाई थी कि यह करूंगी…वह करूंगी पर कितना कुछ अधूरा ही रह गया… समय जैसे यों ही सरक गया.

कभीकभी परिस्थितियां इनसान को कितना बौना बना देती हैं. मनुष्य सोचता कुछ है और होता कुछ है. फिर भी हम सोचते हैं, समय से सब ठीक हो जाएगा पर समय भी साथ न दे तो?

मैं तुम्हारी दोषी हूं मर्लिन. तुम्हें तुम्हारी जड़ों से उखाड़ लाई…तुम्हारी उमर देखते हुए साफ समझ रही थी कि तुम्हें बहलाना, अपनाना कठिन होगा पर क्या करती, स्वार्थी मन ने दिमाग की एक न सुनी. दिल तुम्हें देखते ही बोला, तुम मेरी हो सिर्फ मेरी. तब सोचा था तुम्हें तुम्हारे देश ले जाती रहूंगी और उन लोगों से मिलवाती रहूंगी जो तुम्हारे अपने हैं. पर जो चाहा कभी कर न पाई. तुम्हारे 18वें जन्मदिन का यह उपहार है मेरी ओर से. तुम भाई के साथ भारत जाओ और घूम आओ…अपनी जननी जन्मभूमि से मिल आओ. मैं साथ न हो कर भी सदा तुम्हारे साथ चलूंगी. तुम दोनों मेरे ही तो अंश हो. ऐसी संतान भी सौभाग्य से ही मिलती है. जीवन के बाद भी यदि कोई जीवन है तो मेरी कामना यही रहेगी कि मैं बारबार तुम दोनों को ही पाऊं. अगली बार तुम मेरी कोख में ही आना ताकि फिर तुम्हें कहीं से उखाड़ कर लाने की दोषी न रहूं.

तुम पढ़ोलिखो, आगे बढ़ो, यशस्वी बनो, अपने लिए अच्छा साथी चुनो. घरगृहस्थी का आनंद उठाओ, परिवार का उत्सव मनाओ. तुम्हारे सारे सुख अब मैं तुम्हारी आंखों से ही तो देखूंगी. इति…

मंगलकामनाओं के साथ तुम्हारी मौम.’’

नहीं रहीं शूटर दादी, कोरोना से हुआ निधन 

भारत में कोराना वायरस का कहर बढ़ता ही जा रहा है. अब खेल जगत से जुड़े लोग भी इस वायरस की चपेट में हैं. 2 दिन पहले ही भारतीय महिला हाकी टीम की कप्तान रानी रामपाल समेत 7 खिलाड़ी कोविड 19 पौजिटिव पाए गए और कल 30 अप्रैल, 2021 को दुनिया की सब से उम्रदराज और ‘शूटर दादी’ के नाम से मशहूर निशानेबाज चंद्रो तोमर की कोरोना संक्रमण के चलते मौत हो गई. वे 89 साल की थीं.

उत्तर प्रदेश के बागपत जिले की रहने वाली चंद्रो तोमर को कोरोना संक्रमण के बाद सांस लेने में परेशानी के चलते मेरठ के एक अस्पताल में भरती कराया गया था.

चंद्रो तोमर ने 65 साल की उम्र में निशानेबाजी शुरू की थी. दरअसल, एक दिन वे अपनी पोती शैफाली को ले कर भारतीय निशानेबाज डाक्टर राजपाल सिंह की शूटिंग रेंज पर गई थीं. 2 दिन की ट्रेनिंग में उन्होंने देखा कि शैफाली को गन लोड करना ही नहीं आया. तीसरे दिन दादी ने उस के हाथ से गन ले कर लोड की और निशाना लगा दिया. निशाना सटीक लगा.

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यह देख कर डाक्टर राजपाल सिंह हैरान रह गए और बोले, ‘दादी, तू भी शूटिंग शुरू कर दे.’ बच्चों ने भी उन्हें थोड़ा उकसाया और बोले कि दादी प्रैक्टिस शुरू कर, हम गांव में किसी से नहीं कहेंगे… और बस दादी शुरू हो गईं.

चंद्रो तोमर का निशानेबाजी का सिलसिला चल पड़ा. उन का निशाना लाजवाब था. यही वजह है कि बुजुर्ग चंद्रो तोमर ने निशानेबाजी में नैशनल और स्टेट लैवल पर कई मैडल अपने नाम किए. ‘शूटर दादी’ ने वरिष्ठ नागरिक वर्ग में कई पुरस्कार भी हासिल किए, जिन में ‘स्त्री शक्ति सम्मान’ भी शामिल है जिसे खुद राष्ट्रपति ने उन्हें भेंट किया था.

फिल्मकार अनुराग कश्यप ने फिल्‍म ‘सांड़ की आंख’ चंद्रो तोमर और उन की देवरानी प्रकाशी तोमर की असली जिंदगी पर ही बनाई थी. यह फिल्म काफी मशहूर हुई थी.

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फिल्म हीरो आमिर खान ने भी दोनों ‘शूटर दादी’ की कहानी से प्रभावित हो कर उन्‍हें अपने शो ‘सत्‍यमेव जयते’ में भी बुलाया था.

चंद्रो तोमर की देवरानी प्रकाशी भी दुनिया की उम्रदराज महिला निशानेबाजों में गिनी जाती हैं. अपनी जिंदगी में इन दोनों औरतों ने मर्द प्रधान समाज में कई रूढ़ियों को भी खत्म किया.

सरिता पत्रिका ने साल 2019 में चंद्रो तोमर पर लंबा लेख छापा था, जब उन पर बनी फिल्म ‘सांड़ की आंख’ रिलीज हुई थी. इस फिल्म मेम भूमि पेडनेकर ने चंद्रो तोमर का किरदार और तापसी पन्नू ने उन की देवरानी प्रकाशी तोमर का किरदार निभाया था.

Mother’s Day Special- सपने में आई मां: भाग 3

लेखिका- डा. शशि गोयल

तेल मल कर पट्टी बांध ली, पर श्यामा ताई को पता नहीं चला कि पट्टी में सत्ते ने 10-10 के 2 नोट बांध रखे हैं. एक प्लास्टिक की थैली में कुछ सिक्के बांध कर सामने चौराहे के बीच में लगी घनी झाड़ी के बीच में छिपाई थी. पर पता नहीं, वहां से भी किसी ने निकाल ली. जरूर सनी या जुगल ने उसे छिपाते हुए देखा होगा.

रुकमा सत्ते की राजदार थी, पर रुकमा ऐसा नहीं कर सकती थी. उसे भरोसा था कि जरूर सनी या जुगल का ही काम होगा. पट्टी रात में ढीली हो कर पैरों में सरक गई. सुबह अचकचा कर सत्ते ने उसे कस लिया. शाम को रुकमा के लिए गिलट के कान के झुमके ले आया.

रुकमा को अब सजनेसंवरने का शौक लगने लगा था, पर श्यामा ताई उस के बालों में मिट्टी लगा कर लट सी बना देती, ‘‘मुंडी काट दूंगी, जो फैशन बनाया… जवानी कुछ ज्यादा ही चढ़ रही है.

सत्ते को पता नहीं था कि जवानी क्या होती है, पर यह समझ गया कि रुकमा अब बड़ी हो रही है, टांड़ सी बढ़ती जा रही?है. फैशन करेगी तो ले उड़ेगी दुनिया. और हकीकत में एक दिन रुकमा कहीं नहीं दिखाई दी…

श्यामा ताई चारों ओर देख रही थी. उस दिन श्यामा ताई का लड़का भी दिन में ही दिखाई दिया… ‘बबलू भैया के…’

सत्ते ने कहना चाहा, पर लाललाल आंखों से लड़के ने सत्ते को चुप करा दिया और ‘चल ढूंढ़ें’ कहता हुआ बाहर ले गया.

‘‘क्या बोला, क्या बोला,’’ बबलू बोला, तो सत्ते हकला गया, ‘‘वह आप की मोपेड.’’

‘‘क्या मेरी मोपेड? एक चक्कर लगवा कर उसे यहीं छोड़ गया था. अम्मां के सामने जबान भी खोली तो काट डाल दूंगा…’’

2 दिन बाद मोपेड की जगह लड़का मोटरसाइकिल ले आया. उस के कपड़े भी महंगे हो गए थे. श्यामा ताई की आंखें जब तब उसे खोज लेतीं, लगता अभी आ कर कहेगी, ‘‘ताई, लो चाय पी लो.’’

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रुकमा धीरेधीरे बड़ा काम सहेजने लगी थी. छोरी सुख दे रही थी. बारबार मुंह धोने का शौक ले डूबा छोरी को.

चौराहे पर अब लंबीलंबी कतारें लगने लगी थीं और बस्तियों से मांगने वाले भी बढ़ गए थे. अब भागतेभागते टांगें दुखने लगतीं.

एक दिन जुगल को एक मेमसाहब पर्स खोल कर पैसे देने लगीं. हरी बत्ती हो गई. ड्राइवर ने गाड़ी बढ़ा दी. जुगल पीछे भागा. ट्रैफिक पर कोई नहीं रुकना चाहता है. पीछे से मोटरसाइकिल वाला भी निकलने की जल्दी में था और जुगल को भी जल्दी थी. वहीं मेमसाहब न निकल जाए. मोटरसाइकिल से बचने को जुगल सरका, पर उस का सिर डिवाइडर से टकराया. मोटरसाइकिल वाला भाग गया और फिर जुगल नहीं उठा. सत्ते ‘ताई जुगल…’ कहता भागा. श्यामा ताई भागी आई… फिर एकदम सत्ते को पकड़ कर पीछे खड़ी हो गई. सत्ते ‘जुगलजुगल’ चिल्लाया, तो ताई ने चुप करा दिया.

ट्रैफिक पुलिस आई. भीड़ बढ़ गई. फुटपाथ पर जुगल को रख दिया.

‘‘कौन है इस के साथ?’’ एक ट्रैफिक पुलिस वाला बोला.

कोई नहीं बोला. सत्ते बारबार ताई की ओर देख रहा था. सत्ते की समझ नहीं आया कि ताई कुछ कह क्यों नहीं रही.

सभी तो जानते हैं जुगल कौन है, फिर क्यों नहीं बता रहे हैं? ट्रैफिक पुलिस वाले ने श्यामा ताई से पूछा, ‘‘क्यों बुढि़या, यह तेरे साथ देखा था.’’

‘‘मुझे नहीं मालूम… मेरे पास कभीकभी भीख मांगने आ बैठता था. मैं नहीं जानती, ‘‘कह कर श्यामा ताई पीछे सरक गई. पुलिस ने लावारिस समझ कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

झोंपड़ी में आ कर सत्ते रोने लगा. सत्ते ने श्यामा ताई से पूछा… ‘‘ताई, तुम्हारा कोई नहीं था वह… इतने दिन से तो था. तुम ने कहा क्यों नहीं…’’

‘‘चुप रह. कौन काठीकफन करे. मोटरसाइकिल वाला भाग गया. वह पकड़ा जाता तो कुछ खर्चापानी मिल जाता. चुप रह… पता नहीं… पुलिस के चक्कर में कौन पड़े?’’ श्यामा ताई को यह फिक्र ज्यादा थी कि कहां से लाई बच्चे को. क्या जवाब देती. बच्चा चुराने के जुर्म में पुलिस जेल और भेज देती.

सत्ते को रोटीपानी कुछ अच्छा नहीं लगा. वह लेट गया… लेटेलेटे आंख लग गई… आंसू की धार सूख गई थी. न जाने क्या सपना आया कि वह मुसकराने लगा. सोतेसोते उस का चेहरा जैसे उजास से भर गया.

श्यामा ताई ने घड़ी देखी. मंगल का दिन है. यह पड़ापड़ा सो रहा है. सारी कमाई तो बंद हो गई है. उस ने सत्ते को हिलाया, ‘‘उठ…’’

सत्ते हकबका कर उठा… इधरउधर देखा. जोर से श्यामा ताई को मुक्के मारने लगा, ‘‘मुझे क्यों जगाया? मुझे क्यों जगाया.’’

‘‘अरे तो उठेगा नहीं… उठ टाइम निकला जा रहा है. चल थैली उठा.’’

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‘‘नहीं जाऊंगा, नहीं जाऊंगा,’’ वह खिसिया कर रो उठा, ‘‘मुझे क्यों जगाया…’’

‘‘उठ, बहुत नाटक हो गया.’’

‘‘नहीं… मेरी मां आई थी सपने में… मां आई थी… अब कब आएगी… मेरी मां आई थी,’’ कह कर वह जोरजोर से रोने लगा.

कसौटी जिंदगी के 2 फेम एक्टर Sahil Anand ने शेयर की बेटे की पहली तस्वीर, रखा ये नाम

सीरियल कसौटी जिंदगी के 2 (Kasautii Zindagii Kay 2) फेम एक्टर साहिल आनंद (Sahil Anand) के घर एक नये मेहमान ने  दस्तक दी है. जी हां, साहिल आनंद पापा बन गए हैं.

साहिल आनंद की पत्नी रंजीत मोंगा ने एक बेटे को जन्म दिया है. साहिल आनंद ने ये खुशखबरी खुद सोशल मीडिया पर शेयर की है. साहिल आनंद ने इंस्टाग्राम पर अपने बेटे की पहली तस्वीर फैंस के साथ शेयर की है.

 

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साहिल आनंद ने अपने बेटे की पहली तस्वीर इंस्टाग्राम पर शेयर करते हुए लिखा, हैलो… मैं शहराज आनंद हूं. मैं 14 अप्रैल 2021 को पैदा हुआ हूं. मेरे आने के बाद से मेरे माता पिता चांद पर पहुंच गए हैं. मेरे माता पिता का कहना है कि मुझसे अच्छा तोहफा उनको किसी ने नहीं दिया. मैं उनका बेस्ट गिफ्ट हूं. वो मुझे बहुत प्यार कर रहे हैं. मेरे चारों तरफ केवल प्यार की बहार है.

Imlie की होगी सरेआम बेईज्जती अब क्या करेगा आदित्य

 

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उन्होंने आगे लिखा, मैं इस समय खूब शोर मचाता हूं. जब मन करता है तब सो जाता हूं. मैं जमकर दूध पी रहा हूं. मैं खाना खाने के लिए बहुत उत्साहित हूं. हमारी फिर से मुलाकात जरूर होगी. बाय.

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तो वहीं साहिल आनंद की पत्नी ने भी अपने बेटे की प्यारी सी तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है. इस तस्वीर में साहिल आनंद, रंजीत मोंगा अपने बेटे का हाथ थामे दिख रहे हैं.

Imlie की होगी सरेआम बेईज्जती अब क्या करेगा आदित्य

स्टार प्लस का सीरियल ‘इमली’ में इन दिनों कहानी में एक नया मोड़ नजर आ रहा है. जिससे कहानी का एंगल और भी इंटरेस्टिंग होता जा रहा है. तो आइए जानते हैं सीरियल के नए अपडेट्स के बारे में.

सीरियल के बीते एपिसोड में ये दिखाया गया था कि मालिनी ने सुसाइड करने की कोशिश की और अपनी कलाई काट ली. तो वहीं इमली ने अपना खून देकर उसे नई जिंदगी दी है. लेकिन अब सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है.

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शो के लेटेस्ट ट्रैक के अनुसार मालिनी की मां अनु अस्पताल में आकर खूब हंगामा की. वह आदित्य और उसके परिवार को जमकर लताड़ लगाई. इतना ही नहीं, वह झमकी भी दी कि वह आदित्या को कहीं का नहीं छोड़ेगी.

अनु अपनी बेटी मालिनी को भी जमकर सुनाई. अनु ने मालिनी से कहा कि उसकी हिम्मत कैसे हुई अपनी जान लेने की. इसके अलावा उसने मालिनी से ये भी कहा कि वह पहले से ही जानती थी कि आदित्य उसके लायक नहीं है.

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शो के अपकमिंग एपिसोड में आप ये भी देखेंगे कि इमली मालिनी के लिए इमली जूस का ग्लास लेकर आएगी और फिर अनु का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाएगा.अनु इमली से जूस का ग्लास लेकर उसके वह उसके ऊपर ही फेंक देगी. और वह इमली को अस्ताल के कमरे से धक्के मारकर बाहर निकाल देगी. अब शो के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि आदित्य, इमली के लिए आवाज उठाता है या नहीं.

Mother’s Day Special: मोह का बंधन- भाग 2

जब सुशांत ने मां से कहा कि शादी उन के पैतृक निवास से ही होगी तो बीना को सुखद आश्चर्य हुआ था. शादी धूमधाम से संपन्न हो गई. अमृता शक्लसूरत से तो सामान्य थी पर व्यवहार से विनम्र और सुशील लगी थी. उस की शर्मीली मुसकान बीना को एक दुलहन के लिए स्वाभाविक ही लगी थी. फिर उस का संयमित व्यवहार शायद प्रेम विवाह के ढंग को मिटाने की एक कोशिश…इन्हीं विचारों ने बीना को तटस्थ बनाए रखा.

शादी के बाद बंगलौर से बेटाबहू के फोन अकसर आते रहते थे जिन में एक ही जिज्ञासा होती थी कि मां, हमारे पास आप कब आ रही हैं? अमृता की मीठी गुजारिश तो मात्र एक औपचारिकता थी क्योंकि इस प्रेममय बुलावे में बीना को उन की अनकही आस का आभास होता था. शायद मां को खुश कर उस के पैसे और मकान की इच्छा…इसी ऊहापोह में बीना उन के आग्रह को हर बार टाल जाती थीं पर इस बार जब सुशांत फोन पर भावुक हो उठा तो उन्होंने सोचा कि चलो, चल कर देख ही लिया जाए कि क्या होता है.

बंगलौर हवाई अड्डे पर सामान के साथ बीना जब बाहर निकलीं तो भीड़ में सुशांत हाथ हिलाता हुआ नजर आया पर अमृता कहीं दिखाई नहीं दी तो उन्होंने सोचा शायद आफिस से छुट्टी नहीं मिली होगी. फिर खयाल आया कि आज तो रविवार है, आफिस तो बंद होगा. यहीं से हो गई अवहेलना की पहली शुरुआत, सोचते हुए वह सुशांत के साथ कार की ओर बढ़ गईं.

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कार चलाते हुए सुशांत मां को बंगलौर के बारे में बताता जा रहा था. बीना ने महसूस किया कि उस की आवाज में बहुत उत्साह था. चलो, कुछ देर को ही सही, बेटा उसे देख कर खुश तो हुआ और यही सोच कर उन्हें अच्छा लगा. कुछ ही देर में गाड़ी गोल्डन अपार्टमेंट के गेट पर आ कर रुकी.

सुशांत का फ्लैट पहले तल पर था. सामान ले कर वह मां के साथ सीढि़यों की ओर चल पड़ा. बीना ऊपर पहुंचीं तो देखा काफी लोग जुटे थे ओर शोरगुल की आवाजें आ रही थीं. उन्होंने सोचा शायद किसी के यहां शादीब्याह का मौका होगा, तभी एक आवाज आई, ‘‘अरे देखो, आंटी आ गई हैं.’’ इतना सुनते ही सब लोग ‘स्वागतम् सुस्वागतम्’ का मंगलगान करने लगे. दरवाजे पर रंगोली सजी थी और अमृता आरती का थाल लिए खड़ी थी. ‘‘अपने घर में आप का स्वागत है, मांजी,’’ कहते हुए उस ने बीना के चरण स्पर्श किए और फिर आरती उतार कर घर में ले आई.

‘‘क्यों मांजी, कैसा रहा हमारा सरप्राइज?’’ सुशांत ने शरारत से कहा, ‘‘अमृता ने यह सारी तैयारी आप के शानदार स्वागत के लिए की थी.’’

बीना का मन पुलकित हो उठा. ऐसे स्वागत की तो उस ने कल्पना भी नहीं की थी. जी चाहा बहू का माथा चूम ले. फिर सहसा मन में खयाल आया कि यह सब तो पहले दिन का खुमार है, जल्दी ही उतर जाएगा. यही सोच कर उन्होंने खुद को संयमित किया और दोनों को आशीर्वाद दे कर आगे बढ़ गईं.

अमृता ने उन्हें उन का कमरा दिखाया. कमरा सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया था. सामने की ओर बालकनी थी जिस में आरामकुरसी पड़ी थी. बाथरूम में जरूरत का सब सामान करीने से लगा था. यह सब देख कर बीना को अच्छा लगा.

मुंहहाथ धो कर बीना बाहर आईं तो देखा अमृता ने मेज पर खाना लगा दिया था. खाने में सब चीजें उन्हीं की पसंद की थीं. तीनों ने साथ बैठ कर भोजन किया. उस के बाद बातों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो फिर बीना के कहने पर ही सब सोने के लिए उठे.

अगले दिन जब वह सुबह उठीं तो घड़ी 9 बजा रही थी. ‘आज तो उठने में बहुत देर हो गई. अब तक तो बच्चे आफिस के लिए निकल चुके होंगे,’ उन के मुंह से निकला. कमरे से बाहर आईं तो देखा सुशांत अखबार पढ़ रहा था और अमृता रसोई में थी.

‘‘गुडमार्निंग, मांजी,’’ कहते हुए अमृता ने आ कर उन के पैर छुए और बोली, ‘‘आप पहले चाय लेंगी या सीधे नाश्ता ही लगाऊं?’’

बीना ने कहा, ‘‘अरे, मैं नाश्ता खुद बना लूंगी, तुम लोग आफिस जाओ, तुम्हें बहुत देर हो जाएगी.’’

सुशांत रोनी सूरत बना कर कहने लगा, ‘‘मां, अमृता ने तो 10 दिन की छुट्टियां ले रखी हैं और मैं ने सोचा था कि आप को थोड़ा घुमा लाएं, फिर आफिस चला जाऊंगा. पर लगता है आप तो भूखे पेट ही आफिस भेज देंगी आज.’’

बेटे के मुंह से यह सुन कर बीना को एक सुखद आश्चर्य का अनुभव हुआ. पर फिर थोड़ा  गुस्सा भी आया. आखिर हद होती है दिखावे की भी. वह यहां किसी को तकलीफ देने नहीं आई हैं. यही सोच कर उन्होंने कहा, ‘‘देखो बहू, मैं कोई बच्ची थोड़े ही हूं. तुम जाना चाहो तो आराम से आफिस जा सकती हो. मुझे कोई तकलीफ नहीं होगी.’’

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‘‘पर मांजी मुझे तो होगी,’’ अमृता ने कहा, ‘‘मुझे तो आप के साथ रहने का मौका ही नहीं मिल पाया था इसलिए मैं ने आफिस से छुट्टी ले ली ताकि मैं आराम से अपना सारा समय आप के साथ बिता सकूं.’’

अमृता के शब्दों में एक अपनापन था और आंखों में प्यार की गरमाहट जिन्हें देख कर बरबस ही बीना के मुंह से आशीर्वाद निकल पड़ा.

नाश्ते के बाद सुशांत तो आफिस के लिए निकल गया और सासबहू में वार्त्तालाप शुरू हो गया. बातोंबातों में अमृता ने सास से उन की पसंदनापसंद, खानपान, सेहत, रीतिरिवाज आदि के बारे में जानकारी हासिल कर ली. शाम को दोनों पास के  पार्क में चली गईं.

रात को सुशांत के आने पर सब ने एकसाथ बैठ कर खाना खाया. बीना जब पानी लेने रसोई में जाने लगीं तो अमृता ने देखा कि वह ठीक से चल नहीं पा रही हैं.

सुशांत के पूछने पर बीना को बताना पड़ा कि शाम को घूमते हुए शायद पैर में मोच आ गई थी इसीलिए दर्द हो रहा था. यह सुनते ही अमृता दर्दनिवारक बाम उठा लाई. बीना के बहुत मना करने पर भी वह उन्हें कमरे में ले गई और उन के पैर में मालिश करनी शुरू कर दी. धीरेधीरे बीना को आराम आ गया और वह सो गईं.

सुबह उठने पर सुशांत ने पूछा, ‘‘मां, अब आप का पैर कैसा है? चलिए, जल्दी से तैयार हो जाइए, हमें अस्पताल जाना है.’’

बीना ने कहा, ‘‘अरे, तू तो नाहक ही परेशान हो रहा है. मामूली सी मोच होगी भी तो 1-2 दिन में ठीक हो जाएगी.’’

‘‘चलिए, फिर भी डाक्टर को दिखा लेने में क्या हर्ज है?’’ सुशांत बोला, ‘‘मां, इसी के साथ आप का पूरा हेल्थ चेकअप भी हो जाएगा.’’

‘‘अरे, अब इस की क्या जरूरत है? मैं तो बिलकुल ठीक हूं,’’ बीना ने हैरानी से कहा.

‘‘मां, कई बार जैसा दिखता है वैसा होता नहीं है. और फिर यह तो निशांत भैया का हुक्म था कि मां जैसे ही बंगलौर आएं उन का पूरा मेडिकल चेकअप होना चाहिए. मैं तो बस, भैया की आज्ञा का पालन कर रहा हूं.’’

दूर रह कर भी निशांत मां की सेहत के लिए फिक्रमंद था, यह जान कर बीना को अच्छा लगा.

अस्पताल पहुंच कर सुशांत ने सब से पहले बीना के पैर की जांच कराई. डाक्टर ने बताया कि मोच नहीं आई थी. बस, पैर हलका सा मुड़ गया था. उस ने दवा देते हुए आराम करने की सलाह दी. फिर बीना अलगअलग कमरों में अनेक प्रकार के परीक्षणों से गुजरीं. सुशांत ने हर डाक्टर से अलग से समय ले रखा था इसलिए कहीं कोई तकलीफ नहीं आई.

घर पहुंचतेपहुंचते बीना काफी थक गई थीं. अमृता ने सब का खाना मांजी के कमरे में ही लगा दिया. फिर बातें होने लगीं. साथ ही साथ अमृता ने बीना के पैर में डाक्टरों द्वारा दी गई दवा लगा दी. फिर उन्हें नींद ने आ घेरा.

इन 2-3 दिनों में ही वे अमृता की ओर झुकाव महसूस करने लगी थीं जबकि उन्होंने तो सुशांत के प्रति भी ज्यादा लगाव न रखने की सोची थी. क्या वह गलत थीं या अब गलती कर रही थीं? काफी देर तक ऐसी ही अनिश्चितता की स्थिति बनी रही.

Mother’s Day Special- सपने में आई मां: भाग 2

लेखिका- डा. शशि गोयल

‘‘चल री चल,’’ कह कर रानी काकी ने बच्चा ले लिया. वह तो पड़ोस की कांता का बच्चा था. वह बरतन करने जाती थी. कभीकभी वह रख लेती, ‘‘अरे, कहां लिए डोलेगी. छोड़ जा मेरे पास.’’

कांता को 2-3 घंटे लगते, तब तक वह चौराहे पर आ जाती. कभी देर हो जाती तो रानी काकी कांता से कह देती, ‘‘अरे, पार्क में ले गई थी. सब बच्चे खेल रहे थे.’’

आज की घटना से रानी काकी का दिल जोर से धड़क उठा. वह तो नक्षत्र सीधे थे, नहीं तो मर लेती. उसे अपने पास अफीम भी रखनी पड़ती थी, नहीं तो सारे दिन रिरियाते बच्चों को कहां तक संभाले. बच्चा सोता रहे. जरा सा हिलते ही जरा सी अफीम चटा दो… कई घंटे की हो गई छुट्टी.

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मगर, रानी काकी जब बच्चे को कंधे पर लगाएलगाए थक जाती है, तो श्यामा ताई की झोंपड़ी में ही सुस्ताने आ जाती है. वहीं सत्ते ने सुना कि क्वार्टर की मास्टरनी का बच्चा भी कभीकभी उस की नौकरानी दे देती है. मास्टरनी स्कूल में पढ़ाए और सारा दिन बच्चा रानी काकी की बहन के पास रहे. 1-2 दिन उसे भी रानी काकी लाई, पर उस का रंगरूप गरीबों का सा बनाना पड़ा. कुछ भी हो, इतने साफसुथरे रंगरूप का सलोना बच्चा ले कर पकड़ी जाती तो मैले कपड़े पहनाने, मिट्टी का लेप लगाना सब भारी पड़ता… और अब खुद का ही छठा महीना चल रहा है… बच्चा गोद ले कर चलने में उपदेश ज्यादा मिलते हैं, ‘‘एक पेट में, एक गोद में, भीख मांगती घूम रही है. शर्मलिहाज है कुछ… क्या भिखारी बनाएगी इन्हें भी…’’

अब पैसा देना हो तो दो, उपदेश चाहिए नहीं… सारा दिन हाड़ पेल के क्या दे दोगी 100 रुपए रोज, पर यहां तो 500 रुपए तक मिल जाते हैं. कपड़ेलत्ते अलग… सर्दी में कंबल, ऊनी कपड़े… ऐसी दयामाया तो रखती नहीं, उपदेश दे रही हैं.

एक बार तो श्यामा ताई फंस ही गई. सर्किल के मंदिर पर मकर संक्रांति पर एक के बाद एक दानदाता आ रहे थे. खिचड़ी की पोटली सरकाई कि फटने लगी. वह पीछे बैंच पर रख कर उन के नीचे कंबलकपड़े बांध कर सरका रही थी कि एक संस्था की बहनजी कंबल बांटती आईं और बोलीं, ‘‘अरे, यहां तो बहुत कंबल बंटे हैं. देखो, एकएक के पास कितने कंबल हैं.’

वे बहनजी मुंह फाड़े देख रही थीं. ‘कहांकहां’ कहते हुए श्यामा ताई ने ही बात संभाली, ‘‘अरे, सब के हैं. अकेले मेरे तो नहीं हैं. सब रखवा गए हैं…’’

श्यामा को एक बार में 5 कंबल मिल गए थे, जो एकदम दिख रहे थे. वे बहनजी तो चली गईं, पर सब भिखारी श्यामा पर पिल पड़े.

रात को श्यामा ताई का लड़का मोपेड पर आता था. जींस और टीशर्ट पहने हुए. सर्दी में जैकेट. उस की जेब में काला चश्मा रहता, जिसे कभीकभी सत्ते लगा कर देखता और झोंपड़ी में लटके आईने में अपनी शक्ल देखता. वह लड़का सारी चिल्लर और कपड़े ले जाता. खर्चे के लिए श्यामा ताई के पास कुछ पैसे छोड़ जाता. श्यामा देने में नानुकर करती, तो लड़का धमकाता कि कुटाई कर देगा और कई बार कर भी देता था और सब छीन कर ले जाता था.

सत्ते उस समय यही सोचता कि वह भी ऐसे कपड़े पहन कर घूमेगा. श्यामा ताई तो बूढ़ी हो जाएगी, इसलिए मन ही मन मनाता कि बूढ़ी के बेटे का ऐक्सिडैंट हो जाए तो हमारा पैसा हमारा होगा. कैसे वह मोपेड को तेजी से चलाता है. कभीकभी वह भी उस लड़के के साथ मोपेड पर घूम आता, पर अब फुरसत मुश्किल से मिलती है. कोई न कोई दिन रहता है देवीदेवताओं का तो श्यामा ताई शाम को भी सब को लाइन में बिठा देती?है. पहले बस मंगलवार को हनुमान के मंदिर जाते थे तो बूंदी से थैली भर जाती थी और बाकी दिन शाम 6 बजे के बाद नहाधो कर अच्छे कपड़े पहन कर सब पार्क में जाते थे और खेलते थे, पर अब तो हर दिन मंदिर में भीड़ रहती है.

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वीरवार को साईं बाबा की तसवीर तश्तरी पर लगा कर चौराहे पर भागते हैं. लोग हाथ तो जोड़ते ही हैं, श्रद्धा से पैसे भी चढ़ा देते हैं. सोमवार को शंकर या किसी देवी और बुधवार को गणेश के मंदिर में.

‘‘शनिवार को छोटीछोटी बालटी ले कर दौड़ते रहते हैं. तेल जमा करना होता है. श्यामा ताई थोड़ा तेल अपने पास रखती है, बाकी पास में ठेले पर समोसेकचौड़ी वाले को बेच आती है. पैसे उस ने गद्दे के नीचे जेब बना कर छिपाने शुरू कर दिए हैं.

रात को लड़का आ कर तेल मांगता तो श्यामा ताई थोड़े से तेल को दिखा देती, ‘‘अब क्या लोग तेल ले कर चलते हैं. वे तो मंदिर में चढ़ाते हैं. रखा है बालटी में.’’

भुनभुनाता लड़का बोतल में तेल डाल कर चिकनाए पैसे थैली में डाल कर चला जाता. पानी में डाल कर रखे सिक्कों को श्यामा ताई कपड़े से रगड़रगड़ कर पोंछ देती.

‘‘ताई, हलदीतेल देना,’’ कहते हुए सत्ते ने पैर की पट्टी खोली.

‘‘क्या हुआ?’’ श्यामा ताई ने कहते हुए हलदीतेल निकाल कर दिया, ‘किसी से टकरा गया क्या?’

Mother’s Day Special: सपने में आई मां

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