Ravi Kishan ने भोजपुरी फिल्मों में अश्लील कंटेंट को बैन करने की मांग की, लिखा बिहार के सीएम को लेटर

भोजपुरी इंडस्ट्री में इन दिनों अश्लील गानों को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. इसी बीच भोजपुरी सुपरस्टार और उत्तर प्रदेश से भाजपा सांसद रवि किशन ने गानों में अश्लील कंटेंट को बैन करने की मांग की हैं.

रवि किशन (Ravi Kishan)  ने बिहार के सीएम को पत्र लिख कर अश्लील कंटेंट को रोकने की मांग की है. इसके अलावा उन्होंने केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री सहित उत्तर प्रदेश के सीएम को भी पत्र लिखा है.

 

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उन्होंने पत्र में लिखा है, कि  भोजपुरी सिनेमा का स्वर्णिम इतिहास और विरासत तेजी से खत्म हो रही है. भोजपुरी फिल्मों में इस तरह का कंटेंट प्रोड्यूस किया जा रहा है, जिसे आप अपनी परिवार के साथ बैठकर नहीं देख सकते हैं. इससे सबसे ज्यादा युवा पीढ़ी प्रभावित हो रही है. इसलिए सिनेमा में दिखाए जाने वाले कंटेंट को विनियमित करने के लिए एक मजबूत कानून लाया जाए.

 

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रिपोर्ट्स के अनुसार रवि किशन ने  इस बारे में बात करते हुए कहा है कि  ‘एक अभिनेता के तौर पर मैं चाहता हूं ये इंडस्ट्री भी अच्छा कंटेंट पेश करे. यह देखकर काफी दुख होता है कि इंडस्ट्री में इतनी मेहनत करने के बाद ही इसे केवल अश्लील कंटेंट के लिए ही याद किया जाता है.

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उन्होंने आगे कहा कि जिस तरह बंगाली फिल्म इंडस्ट्री ने कई पुरस्कार जीते हैं और ऑस्कर तक पहुंच गई है. उन्होंने ये भी कहा कि मुझे उम्मीद है कि किसी दिन मेरी इंडस्ट्री भी ऐसा ही मुकाम हासिल करेगी.

करण मेहरा ने पत्नी से विवाद के बाद किया पहला पोस्ट, बेटे कविश को दी जन्मदिन की बधाई

ये रिश्ता क्या कहलाता है (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) फेम नैतिक यानी करण मेहरा (Karan Mehra) घरेलू विवाद के कारण चर्च में हैं. इसी बीच उन्होंने अपने बेटे को बर्थडे विश किया है. करण मेहरा ने सोशल मीडिया पर पोस्ट पर कविश को बधाई दी है. आइए बताते हैं, करण ने अपने बेटे के लिए क्या लिखा है.

करण मेहरा ने जेल से वापस आने के इतने दिनों बाद अपने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट किया है. इस पोस्ट में करण मेहरा ने अपने बेटे कविश को जन्मदिन की बधाई दी है. करण मेहरा ने बेटे की तस्वीर शेयर की है.

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करण ने इस फोटो को शेयर करते हुए लिखा है कि ‘जन्मदिन की बधाई कविश बेटा, भगवान तुम पर हमेशा अपनी कृपा बनाए रखें और तुम्हारी रक्षा करें. मुझे याद है कि तुम कैसे मुझसे कहते थे कि तुम्हें मुझसे बहुत सारा प्यार है. मैं हमेशा तुम्हारे दिल में रहूंगा और प्यार करता रहूंगा. खूब आगे बढ़ना कविश.

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कुछ दिन पहले ही खबर आई थी कि करण की पत्नी निशा रावल ने आरोप लगाया है कि एक्टर का किसी के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चल रहा है. जबकि करण का कहना है कि निशा उन पर झूठा इल्जाम लगा रही हैं. उन्होंने ये भी कहा था कि निशा मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं और वे उन्हें फंसा रही हैं.

 

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आपको बता दें कि करण और निशा की शादी को नौ साल हो चुके हैं और वे एक-दूसरे को 14 साल से जानते हैं. एक इंटरव्यू में, करण मेहरा ने कहा था कि निशा के साथ उनके रिश्ते इस हद तक तनावपूर्ण हो गए थे कि उनके मन में आत्महत्या के विचार आने लगे थे.

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सब टीवी का पॉपुलर शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah) फेम दयाबेन यानी दिशा वकानी इन दिनों सुर्खियों में छायी हुई है. दिशा वकानी को फैंस खूब पसंद करते हैं. हालांकि काफी टाइम से वह इस शो में नजर नहीं आ रही है. लेकिन फैंस को दयाबेन का बेसब्री से इंतजार कर रहे है.

तो इसी बीच दिशा वकानी का एक डांस वीडियो सामने आया है, जो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इस डांस वीडियो में दिशा का हॉट अंदाज फैंस को खूब पसंद आ रहा है. उनका अलग ही लुक देखने को मिल रहा है. आप देख सकते हैं कि दयाबेन कमाल का डांस करती नजर आ रही है.

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इस वीडियो में दिशा वकानी ‘दरिया किनारे एक बंगलो’ पर डांस करती नजर आ रही हैं. फैन्स भी दयाबेन  का ऐसा रूप देख हैरान हैं. एक्ट्रेस इस गाने में मछुआरों के साथ डांस करती नजर आ रही हैं.

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वर्कफ्रंट की बात करे तो दिशा वकानी (Disha Vakani) अभी ऐक्टिंग से दूर हैं, लेकिन फैन्स उन्हें बहुत मिस करते हैं. दिशा के फैन्स इस इंतजार में हैं कि वह कब ‘तारक मेहता’ में वापसी करेंगी. साल 2008 में दिशा वकानी ने ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’  साइन किया और ‘दयाबेन’ बनकर छा गईं.

 

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आपको बता दें कि दिशा वकानी ने गुजराती थिअटर से करियर की शुरुआत की थी. वह ‘देवदास’ और ‘जोधा अकबर’ जैसी फिल्मों में भी नजर आई थीं.

 

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Satyakatha: दो नावों की सवारी- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

राहुल अस्के और नवीन अस्के ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था. इंदौर पुलिस दोनों आरोपितों को जबलपुर से ले कर इंदौर पहुंची. यहां पुलिस ने रामदुलारी अपार्टमेंट में दबिश दे कर जितेंद्र को गिरफ्तार कर लिया.

खैर, पूजा अस्के उर्फ जाह्नवी हत्याकांड में तीनों आरोपियों जितेंद्र अस्के, जितेंद्र के भाई राहुल अस्के और नवीन अस्के को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था.

तीनों आरोपियों से की गई गहन पूछताछ में पूजा हत्याकांड की कहानी ऐसे सामने आई—

35 वर्षीय जितेंद्र अस्के मूलरूप से जबलपुर के धार इलाके का रहने वाला था. मांबाप के अलावा उस के परिवार में एक भाई और एक बहन थी. इन में जितेंद्र सब से बड़ा था. बचपन से ही उसे पुलिस की नौकरी अच्छी लगती थी. बड़ा हो कर वह फौज में भरती होना चाहता था.

जितेंद्र को पता था कि फौज में भरती होने के लिए मजबूत और कसरती बदन का होना जरूरी है. अपने धुन का पक्का जितेंद्र पुलिस में भरती होने के लिए अपने खानपान और शरीर पर विशेष ध्यान देता था और उस ने खुद को पुलिस में भरती होने वाला मजबूत और गठीला जिस्म बना लिया था. आखिरकार वह मध्य प्रदेश पुलिस में भरती हो गया. वर्तमान में वह कंपनी कमांडर था.

जितेंद्र एक बड़ा पुलिस अफसर बन गया था. उस की शादी के लिए अच्छेअच्छे रिश्ते आने लगे थे. घर वालों ने धार के रिश्ते को अपनी मंजूरी दे अन्नू के संग रिश्ता जोड़ कर उस की गृहस्थी बसा दी थी. पढ़ीलिखी, गुणी और संस्कारी अन्नू को पत्नी के रूप में पा कर वह बेहद खुश था.

जितेंद्र और अन्नू की गृहस्थी बड़े मजे और खुशहाली से कट रही थी. उस के घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. मजे से दोनों के दिन कट रहे थे. समय से 2 बच्चे भी पैदा हुए. बच्चों की किलकारियों से जितेंद्र के आंगन का कोनाकोना महक उठा था.

इसी बीच जितेंद्र अस्के ट्रांसफर हो कर इंदौर आ गया था. मांबाप के साथ पत्नी और बच्चे धार में ही रहते थे. इंदौर के आनंद बाजार में किराए का एक कमरा ले कर वह रहने लगा था. घर से ड्यूटी और ड्यूटी से घर, यही उस की दिनचर्या थी. वह कभीकभार आनंद बाजार जाता था.

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एक दिन की बात है. जितेंद्र आनंद बाजार कुछ खरीदारी के लिए आया था. जिस दुकान से वह अपने लिए सामान खरीद रहा था, उसी के बगल में एक बेहद खूबसूरत युवती खड़ी सामान खरीद रही थी. अनजाने में उस युवती की कलाई कंपनी कमांडर जितेंद्र के हाथ से छू गई थी. उस युवती की कलाई के स्पर्श से जितेंद्र के जिस्म में अजीब सी लहर दौड़ गई थी.

उस के बाद जितेंद्र ने पलट कर उस युवती की ओर देखा. गोरी रंगत वाली उस युवती कोे देख वह उस पर मुग्ध सा हो गया था. पलभर के लिए उस की नजरें उस के सुंदर चेहरे पर जा टिकी थीं. अपलक उसे देखते युवती भी मुसकरा पड़ी. सामान ले कर वह युवती वहां से चली गई. जितेंद्र उसे तब तक निहारता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई.

बाद में जितेंद्र ने अपने स्तर से पता लगा ही लिया कि उस युवती का नाम पूजा उर्फ जाह्नवी है और वह इसी आनंद बाजार मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहती थी. यह घटना से करीब 3 साल पहले की बात थी.

खैर, उस दिन के बाद एक दिन बाजार में फिर से पूजा से उस की मुलाकात हो गई. इस के बाद तो अकसर दोनों की मुलाकात बाजार में हो जाया करती थी. धीरेधीरे यह मुलाकात दोस्ती के जरिए प्यार में बदल गई. कंपनी कमांडर जितेंद्र अस्के और पूजा प्यार की डोर में बंध गए थे. पुलिस अफसर जितेंद्र के मन में इश्क की ऐसी लगन लगी थी कि उस का तन और मन धधक रहा था.

बाद में वे दोनों लिवइन रिलेशन में रहने लगे. पूजा को उस ने अपने आनंद बाजार वाले किराए के कमरे में रखा था. उस ने अपनी शादीशुदा जिंदगी को पूजा से छिपा लिया था. जितेंद्र ने खुद को कुंवारा बताया था.

जितेंद्र के कुंवारा होने से पूजा के घर वाले बेहद खुश थे कि उस की लाडली बेटी ने अपने लिए कितना बढि़या वर चुना है.

पूजा के घर वाले बेटी के ऐसे लिवइन रिलेशन के रिश्ते से खुश नहीं थे. वे चाहते थे कि दोनों शादी कर के रहें, जिस से कोई उन की बेटी के चरित्र पर अंगुली न उठाए. पूजा के घर वालों के दबाव से जितेंद्र कोर्ट मैरिज करने के लिए तैयार नहीं हुआ, अलबत्ता मंदिर में जा कर उस ने पूजा से विवाह कर लिया और उसे साथ ले कर रहने लगा.

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जितेंद्र कानून का जानकार था. वह जानता था कि अगर पूजा को उस की पहली शादी वाली बात पता चल गई तो कोर्ट मैरिज सर्टिफिकेट को आधार बना कर वह उस के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है, इसीलिए उस ने रजिस्टर्ड विवाह के बजाय मंदिर में शादी की थी, ताकि इस मैरिज का उस के पास कोई सबूत न बचे.

पूजा से शादी रचाने के बाद जितेंद्र ने आनंद बाजार वाला किराए का कमरा छोड़ दिया. उस ने मल्हारगंज इलाके के रामदुलारी अपार्टमेंट में 3 कमरों वाला फ्लैट किराए पर ले लिया और ठाठ से वहां पूजा के साथ रहने लगा था.

अगले भाग में पढ़ें- जितेंद्र ने दिया पूज को धोखा

Satyakatha: अधेड़ औरत के रंगीन सपने- भाग 2

सौजन्य- सत्यकथा

बालकराम के घर आतेजाते संतराम कब सुशीला की तरफ आकर्षित हो गया, उसे पता ही नहीं चला. बात तब बढ़नी शुरू हुई, जब सुशीला ने उस के कुंआरेपन को ले कर 1-2 बार ऐसे मजाक कर डाले जो एक औरत की मर्यादा से बाहर के थे.

जाहिर है जब सुशीला खुली तो संतराम ने उसी खुलेपन से उस के साथ हंसीमजाक शुरू कर दिया. इस दौरान दोनों एकदूसरे की तरफ इस कदर आकर्षित हो गए कि बालकराम की गैरमौजूदगी में भी संतराम उस के घर आनेजाने लगा और सुशीला के साथ उस के नाजायज संबध बन गए.

गांवदेहात में ऐसी बातें किसी से छिपती नहीं हैं. लिहाजा जल्द ही गांव में दोनों के संबधों की चर्चा चौपाल तक पर होने लगी. बालकराम को इस की भनक लगी तो उस ने सुशीला के साथ मारपीट की और संतराम का अपने घर आनाजाना बंद करा दिया.

कहते हैं कुंआरे इंसान को एक बार औरत के शरीर की गंध लग जाए तो फिर वह बहुत दिनों तक उस का स्वाद चखे बिना रह नहीं पाता. संतराम ने अब चोरीछिपे सुशीला से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. लेकिन यह बात भी जल्द ही बालकराम को पता चल गई. इस के बाद तो उस के घर में आए दिन का क्लेश रहने लगा.

सुशीला चंचल स्वभाव ही नहीं, जिस्मानी रूप से एक मर्द से खुश रहने वाली औरत नहीं थी. 5 बच्चे पैदा करने के बाद उस ने ख्वाहिशों की उड़ान भरनी नहीं छोड़ी.

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संतराम भी अब उस के प्यार में बुरी तरह पागल हो चुका था. लिहाजा सुशीला व संतराम ने फैसला किया कि वह बालकराम को छोड़ कर बच्चों को ले कर संतराम के साथ शाहजहांपुर से चली जाएगी.

आए दिन के झगड़ों से तंग आ कर जब बालकराम ने सुशीला से इस झगड़े के समाधान का उपाय पूछा तो सुशीला ने साफ कह दिया कि अब वह संतराम के साथ रहना चाहती है. लिहाजा यह तय हुआ कि बालकराम का बड़ा बेटा उसी के पास रहेगा जबकि बाकी के 4 बच्चों को ले कर सुशीला गांव से संतराम के साथ चली जाएगी.

यह बात करीब 18 साल पहले की है. संतराम सुशीला व उस के 4 बच्चों को ले कर नोएडा आ गया. यहां आ कर उस ने राजमिस्त्री का काम शुरू कर दिया. संयोग से यहां उसे अच्छी आमदनी होने लगी. कुछ साल बाद उस ने सुशीला की बड़ी बेटी मंजू की शादी कर दी. जिस की उम्र इस वक्त करीब 32 साल है और वह 2 बच्चों की मां है.

बाद में संतराम ने सुशीला के बड़े बेटे राजू की भी शादी कर दी, जो शादी के बाद अपनी पत्नी व छोटे बहनभाई के साथ गाजियाबाद में रहने लगा. राजू भी राजमिस्त्री  का काम करता है. पिछले 5 साल से संतराम सुशीला के साथ ककराला गांव में किराए का मकान ले कर रहता था. अब वह राजमिस्त्री के काम के साथ मकानों को बनाने के लिए छोटेमोटे ठेके भी लेने लगा था.

संतराम व सुशीला की कुंडली खंगालने के बाद पुलिस को अब तक जो जानकारी मिली थी, उस से यह बात तो साफ थी कि सुशीला एक चंचल स्वभाव की महिला थी, जिस के चरित्र पर भरोसा नहीं किया जा सकता था. वैसे भी पहले ही दिन से पुलिस की नजर में वह संदिग्ध थी.

गांव में सक्रिय मुखबिरों के जरिए 2 अहम जानकारी जांच अधिकारी उपाध्याय को लगीं. पहली यह कि संतराम के पड़ोस में रहने वाला मनोज, जो अपने भाई आकाश व राजेश के साथ किराए पर रहता था, संतराम की हत्या के अगले ही दिन अपना कमरा छोड़ कर कहीं दूसरी जगह चला गया. वह कहां है, इस का किसी को कुछ नहीं पता.

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दूसरे यह कि मनोज का संतराम के घर जरूरत से ज्यादा आनाजाना था. उस के घर में आने को ले कर अकसर सुशीला व संतराम के बीच झगड़ा होता था. कई बार संतराम ने सुशीला के साथ मारपीट भी की थी.

दोनों ही जानकारियां बेहद काम की थीं. पुलिस ने सुशीला के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर जब उस की पड़ताल की तो उस में एक ऐसा नंबर था, जिस पर सब से अधिक काल होती थी. उस नंबर को खंगाला गया तो पता चला कि वह मनोज का नंबर है. पुलिस ने उस नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया.

सर्विलांस की मदद से आखिरकार 27 मई, 2021 को पुलिस टीम ने दादरी कट के पास छापा मार कर मनोज, उस के भाई आकाश व उस के रिश्तेदार राजेश को हिरासत में ले लिया. वे तीनों शहर छोड़ कर भागने की तैयारी कर रहे थे. दादरी कट के पास उन्होंने किराए की एक कार मंगाई थी, लेकिन कार के आने से पहले ही पुलिस ने उन्हें दबोच लिया.

थाने ला कर जब पुलिसिया अंदाज में मनोज से पूछताछ की तो उस ने सच उगल दिया. मनोज कोई शातिर अपराधी तो था नहीं, इसलिए थोड़ी सख्ती के बाद ही उस ने संतराम की हत्या का गुनाह कबूल कर लिया और हत्याकांड की पूरी कहानी सुनाता चला गया.

मनोज मूलरूप से गुलाबगंज गनपाई थाना कादरचौक, जिला बदायूं, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. 23 साल का मनोज अपने छोटे भाई आकाश व मौसेरे भाई राजेश के साथ पिछले 2 साल से गौतमबुद्ध नगर के ककराला गांव में रहता था.

अगले भाग में पढ़ें- क्या मनोज ने हत्याकांड की जानकारी दी?

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आगे वीरप्रतापी सेनापति जोरावर सिंह और उन के पीछे तमाम फौज थी. आकाश जयकारों से गूंज रहा था. सोनार दुर्ग गर्व से माथा उठाए खड़ा था. पश्चिम की तरफ झुक आया चौदहवीं का चांद किले पर सुहागन के माथे की बिंदी की तरह प्रतीत हो रहा था. ऊंट और घोड़ों पर साजोसामान से लदी फौज को रवाना करते हुए लोगों के सीने उत्साह और जोश से भरे हुए थे.

लश्कर रवाना कर के महारावल को सोचने की फुरसत मिली. जोरावर वीर और साहसी था. यह बात महारावल जानते थे. इस कारण वह निश्चिंत थे कि जोरावर सिंह युद्ध जीत कर ही लौटेगा. फौज जिस गांव से गुजरती, घोड़ों की टापें उस से पहले पहुंचतीं.

गांव की औरतें, बच्चे उत्सुकता के साथ देखते. लोग जोश से भर कर फौज का स्वागत करते. खानेपीने की व्यवस्था करते. हर गांव से कुछ युवक अपने हथियार, घोड़ा, ऊंट कुछ भी ले कर साथ हो लेते. इस से फौज का मनोबल और बढ़ता. बीजोराई गांव तक पहुंचतेपहुंचते शाम हो गई और लड़ाकों की संख्या 300 तक पहुंच गई.

गांव की सरहद से पहले वे रुक गए. पूर्णिमा का चांद निकल आया था. थोड़ी देर सभी ने आराम किया. रात बढ़ने पर वे गांव के करीब पहुंचे. विस्थापित ग्रामीणों ने हर्ष के साथ उन का स्वागत किया. जोरावर सिंह ने सेना को 4 टुकड़ों में बांट कर गांव को चारों तरफ से घेर लिया. जगहजगह आग जला कर नाकेबंदी कर दी, जिस से दुश्मन भागने न पाए.

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गांव खाली था. खाली घरों में अब जोधपुर रियासत के सैनिक रह रहे थे. गांव में कहींकहीं चिमनी टिमटिमा रही थी. सारे गांव में सन्नाटा था. घर पूर्णिमा की चांदनी में दूध की तरह लग रहे थे. गांव के आसपास उतरी फौज के शोर ने जंगल में मंगल कर दिया.

300 की फौज, दोढाई सौ ग्रामीण, कुछ बीजोराई के कुछ आसपास के, स्त्रीपुरुष, बच्चे. घोड़े, ऊंट, बकरियां. गांव के बाहर जंगल में गांव बसा था. इस के समाचार अंदर बीजोराई में भी मिल चुके थे. मेहता सिंघवी ने सारे सिपाहियों को एक जगह बुला कर सचेत कर दिया था. कहीं आक्रमण रात में न हो जाए.

गांव के चारों तरफ टिमटिमाती रोशनियों से यह अदांजा नहीं लग पा रहा था कि जैसलमेर की फौज कितनी है.

बीजोराई गांव के लोगों ने सेनापति को अपने दुखड़े सुनाए कि अचानक आ कर जोधपुर की फौज ने उन्हें घेर लिया. फौज ने घर से निकाल कर स्त्रियों और बच्चों के सामने लोगों को मारापीटा. उन के घरों को लूट लिया. कुछ की हत्या कर दी. कइयों को कैद कर लिया. बूढ़े, स्त्रियों और बच्चों को गांव से खदेड़ दिया.

कुछ लोग जान बचा कर निकल भागे. जोरावर सिंह ने उन्हें ढांढस दिया. उन के नुकसान की पूर्ति का आश्वासन दिया. इस के बाद रात में ही योजना के अनुसार वार्ता के बहाने मेहता सिंघवी से जैसलमेर फौज के सेनापति जोरावर सिंह अपने साथियों के साथ मिलने गए. मेहता सिंघवी बोला, ‘‘जोरावर सिंह जी, आप की वीरता के बड़े किस्से सुने हैं, आज दर्शन हो गए.’’

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‘‘सिंघवीजी, जोधपुर की नाराजगी वाजिब है. इस बात को हमारे दाता भी मानते हैं. हम ने आप के महाराज कुमार भीमसिंह को शरण दे कर भूल की है. मगर यह तो हमारा धर्म है जिसे आप भी समझते हैं. दाता ने खुद मुझे आप की सेवा में भेजा है कि मैं आप से अर्ज करूं कि आप गांवों पर कब्जा करने की जगह हम से बात करें.’’

‘‘जोरावर सिंह जी, आप खुद पधारे इसलिए मानना पड़ेगा कि महारावल सा सचमुच पछता रहे हैं. मैं आप की अर्ज अपने दाता तक जोधपुर पहुंचा दूंगा. आगे हमें क्या करना होगा, यह फैसला तो वह ही करेंगे.’’

इस के बाद जोरावर ने समझाया कि अगर वह जान सलामत चाहते हैं तो गांव खाली कर वापस लौट जाएं. मेहता सिंघवी ने गांव खाली करने से साफ मना किया तो उसी समय जोरावर सिंह ने कटार सिंघवी के सीने में उतार दी. यह सब पलक झपकते ही हो गया.

जोरावर के साथियों ने तलवारें खींच लीं. मेहता सिंघवी कातर दृष्टि से देखता हुआ वहीं लुढ़क गया. उसे ऐसे हमले का जरा भी गुमान नहीं था. तभी जोरावर ने अन्य सैनिकों को चेताया कि मेहता सिंघवी मारा जा चुका है, सब हथियार डाल दें वरना वे भी मारे जाएंगे.

जोरावर ने कटार वापस खोंस ली और तलवार उठा ली. जोधपुर के सैनिक जैसे भी थे, जिस हाल में थे, हथियार ले कर बाहर निकल पड़े. सिंघवी का शव देख कर वे हताश हो गए. फिर भी जोरावर सिंह और उन की सेना पर टूट पड़े. मगर तब तक फौज आ पहुंची. एक तो सिंघवी की लाश को देख कर जोधपुर के सिपाहियों की हिम्मत टूट चुकी थी, ऊपर से वह अचानक हुए इस हमले के लिए तैयार भी नहीं थे. उन्हें तो सिंघवी ने निश्चिंत कर दिया था. वह शांतिपूर्वक कोई रास्ता निकल आने के मुगालते में थे.

जोधपुर सैनिक संख्या में कम होने के कारण ज्यादा देर टिक नहीं पाए और शीघ्र ही युद्ध हार गए. बंदी सैनिकों को एक घर में निशस्त्र कर के रखा गया. घायलों का उपचार हुआ. शहीदों के पार्थिव शरीर ससम्मान उन के गांव भेजने की व्यवस्था की गई. लड़ाई खत्म होने के बाद बीजोराई गांव वाले अपनेअपने घरों में आए. सारा वातावरण विजय की खुशी और जयकारों से गूंज उठा.

उस समय महाराज कुंवर भीमसिंह पोकरण ठाकुर सवाईसिंह के साथ मूलसागर में थे. उन्हें पता चला, मगर वह फौज के रवाना होने तक जैसलमेर नहीं आए. बाद में आ कर उन्होंने महारावल मूलराज से क्षमा मांगी. महारावल ने कहा, ‘‘महाराजकुमार सा, आप को लज्जित होने की कोई जरूरत नहीं है, ऐसा तो होता ही है.’’

‘‘हुकुम, मेरे कारण यह मुसीबत आई है. मैं आप को परेशानी में नहीं डालना चाहता. मैं कहीं और चला जाऊंगा.’’

‘‘नहीं, कुमारसा. आप हमारे सर के मोड़ हैं. आप इस तरह जाएंगे तो हम इतिहास को क्या मुंह दिखाएंगे. जब तक जैसलमेर में एक भी आदमी जीवित है, आप को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. आप हमारे मेहमान हैं और यहीं रहेंगे. आप की सेवा में कोई कमी हो तो हुकुम करें.’’

महारावल मूलराज से मिल कर कुंवर भीम सिंह आश्वस्त हुए. वह वापस मूलसागर चले गए. जैसलमेर की जीत की खबर सुन कर उन के मन का बोझ हलका हुआ. मगर वह स्वागत समारोह में शामिल नहीं हुए और पोकरण ठाकुर सवाईसिंह के साथ मूलसागर में ही रहे.

जैसलमेर फौज की जोधपुर पर जीत की खबर पहुंचते ही जैसलमेर में खुशी की लहर दौड़ गई. लोगों में जोश भर गया. खबर देने वाले हलकारे को महारावल ने मोतियों का हार ईनाम में दिया. जैसलमेर की जीत कर लौटी सेना का भव्य स्वागत हुआ. जीत का समारोह कई दिन तक चला.

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इस के बाद सब कुछ पहले की तरह सामान्य हो गया. उन दिनों जोधपुर महाराज कुमार भीमसिंह मूलसागर में रहते थे, मगर अकसर राजमहल आते रहते थे. राजमहल आते तो रनिवास में भी चले जाते थे. इस दरम्यान उन की नजर नागरकुंवर पर पड़ी.

नागरकुंवर महारावल मूलराज की पोती और राजकुमार रायसिंह की पुत्री थी. रायसिंह महारावल मूलराज को राजगद्दी से हटा कर खुद महारावल बन गए थे. मगर थोड़े समय बाद ही जोरावर सिंह और अन्य राजपूत ठाकुरों ने मिल कर रायसिंह को राजगद्दी से हटा कर मूलराज को फिर से महारावल की राजगद्दी पर बिठा दिया था. तब महारावल मूलराज ने अपने बेटे कुमार रायसिंह को देश निकाला दे दिया था.

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सौजन्य- मनोहर कहानियां

ऐसे में कांग्रेस के इस खेमे से हरीश कंवर की दूरी बनती चली गई और हरीश कंवर खुल कर छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री रहे अजीत कुमार जोगी के स्थानीय झंडाबरदार बन गए. दूसरे खेमे ने हरीश कंवर को तवज्जो देनी बंद कर दी. आगे चल कर जब अजीत जोगी ने ‘जनता कांग्रेस जोगी’ पार्टी का गठन किया तो हरीश कंवर इस पार्टी में ग्रामीण अध्यक्ष, कोरबा बन कर शामिल हो गए और क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने लगे.

पूरे परिवार की धमक थी राजनीति में

दूसरी तरफ प्यारेलाल कंवर के अनुज श्यामलाल कंवर जो पुलिस में डीएसपी पद से सेवानिवृत्त हो चुके थे, वह कांग्रेस नेता डा. चरणदास महंत के क्षेत्रीय खेमे से जुड़ गए थे. इस तरह परिवार में भी खेमेबाजी सामने आ चुकी थी.

श्यामलाल कंवर सन 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से विधायक निर्वाचित हुए थे. इधर हरीश कंवर अजीत जोगी के पक्ष में चले गए और उन्होंने उन का झंडा थाम लिया था.

सन 2018 के विधानसभा चुनाव में श्यामलाल कंवर को फिर विधानसभा का प्रत्याशी कांग्रेस पार्टी ने बनाया. दूसरी तरफ अजीत प्रमोद कुमार जोगी ने भी अपना प्रत्याशी फूल सिंह राठिया को खड़ा कर दिया. कांग्रेस के इस झंझावात में श्यामलाल कंवर चारों खाने चित हो गए और तीसरे नंबर में आ कर ठहर गए.

प्यारेलाल कंवर का परिवार राजनीति से अब दूर हो चुका था और सामान्य जीवन व्यतीत कर रहा था. अजीत कुमार जोगी की पार्टी के धराशाई होने के बाद हरीश कंवर राजनीति के हाशिए पर आ गए थे और अपने गांव भैंसमा में उन्होंने खाद, बीज की एक दुकान खोल ली थी.

मूलरूप से काश्तकार परिवार प्यारेलाल कंवर के वंशज अपना जीवनयापन शांतिपूर्वक कर रहे थे. इसी बीच भैंसमा में एक ऐसा नृशंस हत्याकांड हुआ, जिसे कोरबा के इतिहास में कभी भी भुलाया नहीं जा सकेगा.

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धनकंवर को थी धन की लालसा

दरअसल, हरभजन कंवर की पत्नी धनकंवर ने जब सुना कि हरीश कंवर ने पैतृक संपत्ति पर लगभग अपना कब्जा स्थापित कर लिया है तो उस ने पति हरभजन के कान भरने शुरू कर दिए.

एक दिन वह मौका देख कर बोली, ‘‘ऐसे कैसे चलेगा, तुम क्या सब कुछ छोटे (हरीश) को दे दोगे, क्या हमारा उस पर कोई हक नहीं है.’’

हरभजन ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम्हें किस बात की कमी है, मैं तो किसान हूं. हमें चाहिए क्या, 2 वक्त की रोटी मिल ही जाती है. हमारे 2 बेटे हैं, फिर हमें क्या चिंता है.’’

पत्नी ने यह सुन कर कहा, ‘‘आप बहुत भोलेभाले हो. भोपाल की, यहां की करोड़ों रुपए की संपत्ति क्या अकेले हरीश की हो जाएगी, हमारा भी तो उस पर अधिकार है.’’

हरभजन ने समझाया, ‘‘अभी संपत्ति का कोई बंटवारा तो पिताजी ने किया नहीं था, सब कुछ हरीश की देखरेख में है, कहां कुछ कोई ले जाएगा.’’

पत्नी धनकंवर तड़प कर बोली, ‘‘ सचमुच आप बहुत ही भोले हो. वह सारी धान की  पैदावार को भी बेच देता है. लाखों रुपए का बोनस अपनी तिजोरी में भर रहा है और तुम भोलेभंडारी बन कर बैठे रहो. एक दिन हम लोगों को यह हरीश धक्के मार के घर से भी निकाल देगा, तब तुम पछताओगे.’’

यह सुन कर हरभजन ने नाराज होते हुए कहा, ‘‘तो मैं क्या करूं, तुम ही बताओ, हम ने उसे गोद में खिलाया है, मेरा सगा भाई है वह. उसे मैं क्या बोलूं और कैसे बोलूं.’’

पत्नी धनकुंवर ने कहा, ‘‘पैसों और जमीन जायजाद के मामले में मैं ने देखा है कि कोई किसी का नहीं होता, बड़े भैया के निधन के बाद क्या उन के परिवार वालों को मानसम्मान की जिंदगी मिल रही है? तुम खुद देखो हरीश सिर्फ अपने बीवीबच्चों की खुशी में ही लगा रहता है.

अगर उसे अपने भाई के परिवार के प्रति जरा भी संवेदना होती तो क्या उस के परिवार की हालत इतनी खराब होती? अभी भी समय है बंटवारा कर लो…’’

‘‘मैं क्या छोटे को बंटवारे के बारे में कहूंगा. उस का रंगढंग तो तुम जानती ही हो, वह किसी की बात कहां सुनता है और सुन कर दूसरे कान से निकाल देता है.’’ हरभजन कंवर ने कहा.

‘‘मगर यह कैसे चल सकता है, मैं यह सब बरदाश्त नहीं कर सकती,’’ उफनती नदी की धारा की तरह कहती धनकुंवर अपने रोजाना के कामकाज में लग गई.

इधर रोजरोज के वादविवाद से त्रस्त  अंतत: हरभजन कंवर ने हथियार डाल दिए और कहा, ‘‘ठीक है, तुम्हें जैसा अच्छा लगे बताओ.’’

धनकंवर ने अपने भाई परमेश्वर कंवर, जोकि पास ही के गांव फत्तेगंज में रहता था और अकसर भैंसमा आया करता था, से धीरेधीरे बातचीत कर के उसे अपने मन मुताबिक बना लिया.

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भाई के साथ रची साजिश

धनकंवर ने एक दिन उस से कहा, ‘‘भाई, तुम बहन की कोई मदद नहीं कर रहे, ऐसा भाई भी किस काम का.’’

इस पर परमेश्वर ने कहा, ‘‘बहन आखिर तुम क्या चाहती हो, मुझे बताओ.’’

परमेश्वर की जानकारी में जमीनजायदाद का विवाद पहले ही आ चुका था. उसे लगता था कि जरूर यही कोई बात होगी जो बहन कहने वाली है.

…और हुआ भी यही. बहन धनकुंवर ने कहा, ‘‘छोटे (हरीश) ने सारी संपत्ति पर अधिकार जमा लिया है. क्या कुछ ऐसा करें कि बात बन जाए. तुम कोई ऐसा वकील देखो, जो हमें न्याय दिला सके.’’

परमेश्वर ने कहा, ‘‘वकील और कोर्ट कचहरी के चक्कर में तो न जाने कितना समय लग जाएगा. क्यों न हम…’’ कह कर परमेश्वर चुप हो गया. बहन धनकंवर ने परमेश्वर के मौन होने पर कहा, ‘‘चुप क्यों हो गए? क्या कहना चाहते हो?’’

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Manohar Kahaniya: जब थाना प्रभारी को मिला प्यार में धोखा- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

पुलिस अफसरों ने मौकामुआयना किया. रूपा ने फांसी लगा कर खुदकुशी कर ली थी. अफसरों ने कमरे की तलाशी ली. चीजों को उलटपुलट कर देखा, ताकि कुछ पता चल सके कि रूपा ने यह कदम क्यों उठाया, लेकिन न तो कोई सुसाइड नोट मिला और न ही ऐसी कोई बात पता चली, जिस से रूपा के आत्महत्या करने के कारणों पर कोई रोशनी पड़ती. पुलिस अफसर समझ नहीं पाए कि ऐसा क्या कारण रहा कि रूपा ने खुदकुशी कर ली? अविवाहित रूपा 2018 बैच की तेजतर्रार महिला सबइंसपेक्टर थी.

अफसरों ने रूपा के परिवार वालों को फोन कर के इस घटना की सूचना दी. रूपा के परिजन झारखंड की राजधानी रांची के पास रातू गांव के कांटीटांड में रहते थे. रूपा के फांसी लगाने की बात सुन कर उस के मातापिता अवाक रह गए.

रात ज्यादा हो गई थी. पुलिस ने रूपा का शव फांसी के फंदे से उतरवा कर पोस्टमार्टम के लिए सदर अस्पताल भिजवा दिया.

दूसरे दिन 4 मई को रूपा के परिवार वाले साहिबगंज पहुंच गए. रूपा की मां पद्मावती उराइन ने पुलिस को बताया कि 3 मई को दोपहर करीब 3 बजे रूपा से उन की बात हुई थी. तब रूपा ने कहा था कि वह जो पानी पी रही है, वह दवा जैसा कड़वा लग रहा है. बेटी की इस बात पर मां ने उस से तबीयत के बारे में पूछा. रूपा ने मां को बताया कि उस की तबीयत ठीक है. इस पर मां ने उसे आराम करने की सलाह दी थी.

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महिला थानाप्रभारी बनने पर रूपा को जब पुलिस की सरकारी गाड़ी मिली तो दोनों उसे ज्यादा टार्चर करने लगी थीं. दोनों ने कुछ दिन पहले रूपा को किसी हाईप्रोफाइल केस को मैनेज करने के लिए एक नेता पंकज मिश्रा के पास भी भेजा था. पंकज मिश्रा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का नजदीकी रहा है.

परिवार वालों ने कहा कि रूपा ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है. मां ने बेटी की हत्या का आरोप लगाते हुए साहिबगंज एसपी को तहरीर दी. उन्होंने इस मामले में कमेटी गठित कर पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की. उन्होंने कहा कि उस की बेटी के क्वार्टर के सामने रहने वाली एसआई मनीषा कुमारी और ज्योत्सना महतो हमेशा रूपा को टार्चर करती थीं. वे उस से जलती थीं और हमेशा उसे नीचा दिखाने की कोशिश करती थीं.

एक तेजतर्रार पुलिस अफसर के तथाकथित रूप से आत्महत्या करने की बात रूपा के गांव में किसी के गले नहीं उतर रही थी. उस के पिता सीआईएसएफ जवान देवानंद उरांव और मां पद्मावती सहित सभी घर वालों का आरोप था कि रूपा की हत्या किसी साजिश के तहत की गई है और इसे आत्महत्या का नाम दिया जा रहा है.

रूपा 2018 में पुलिस एसआई बनने से पहले बैंक औफ इंडिया में काम करती थी. उस ने रांची के सेंट जेवियर कालेज से पढ़ाई पूरी की थी. उसे नवंबर 2020 में ही साहिबगंज में महिला थानाप्रभारी बनाया गया था. उस ने यह जिम्मेदारी संभालने के बाद महिला उत्पीड़न रोकने के लिए कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए थे.

मामला गंभीर था. रूपा की 2 बैचमेट महिला सबइंसपेक्टरों और मुख्यमंत्री के करीबी नेता पंकज मिश्रा पर आरोप लग रहे थे. रूपा की मौत को हत्या मानते हुए लोगों ने सोशल मीडिया पर ‘जस्टिस फौर रूपा’ शुरू कर दिया.

रूपा के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए झारखंड के कई प्रमुख नेता भी आगे आ गए. भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने रूपा की मौत को मर्डर मिस्ट्री बताते हुए इस की सीबीआई से जांच कराने की मांग की. उन्होंने कहा कि रूपा के परिवार वालों के आरोप से यह मामला संदेहास्पद है. मरांडी ने कहा कि ऐसे राजनीतिक प्रभावशाली व्यक्ति पर आरोप लगे हैं, जो मौजूदा सरकार में कुख्यात रहा है.

प्रदेश भाजपा महिला मोर्चा ने भी सीबीआई जांच की मांग करते हुए राज्यपाल को औनलाइन ज्ञापन भेजा. मांडर के विधायक बंधु तिर्की ने मुख्यमंत्री को पत्र लिख कर कहा कि रूपा किसी बड़ी साजिश की शिकार हुई है. इसलिए इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए.

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बोरियो से सत्तारूढ़ गठबंधन के झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक लोबिन हेंब्रम ने भी इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग उठाई. राज्यसभा सांसद समीर उरांव ने कहा कि मामले में आरोपी पंकज मिश्रा पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का हाथ है. मिश्रा साहिबगंज में सब तरह के वैधअवैध काम करता है.

एसआईटी को सौंपी जांच

मामला तूल पकड़ता जा रहा था. जिस पंकज मिश्रा पर आरोप लगाए गए, वह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का साहिबगंज में प्रतिनिधि है. आरोपों से घिरने पर सफाई देते हुए मिश्रा ने कहा कि वह पिछले महीने मधुपुर चुनाव में व्यस्त था. इस के बाद कोरोना पौजिटिव होने पर रांची के मेदांता अस्पताल में भरती थे.

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कोरोना काल और सांसों से जुड़े चंद फिल्मी नगमे

कोरोना से हर तरफ हाहाकर सा मचा है. सब से ज्यादा दिक्कत उन लोगों को हो रही है, जो औक्सीजन की कमी के चलते अपनी सांसों से बेहाल हैं.

सांस… यह छोटा सा शब्द हमारी जिंदगी में कितनी ज्यादा अहमियत रखता है, यह कोरोना ने बता दिया है. अब तो सोशल मीडिया पर लोग ज्यादा से ज्यादा पेड़पौधे लगाने की बात करने लगे हैं.

हमारे फिल्मी गाने भी सांस शब्द से अछूते नहीं हैं. बहुत से गानों में हीरोहीरोइन ने एकदूसरे की सांसों में समाने से ले कर उन की खुशबू का बखान किया है. ऐसे अनगिनत गाने हैं, जिन में सांसों का जिक्र हुआ है, पर हम कुछ खास गानों की बात करते हैं कि कैसे फिल्मी गाने भी बिना सांसों के नहीं चल पाते हैं.

सब से पहले जिक्र करते हैं फिल्म ‘बदलते रिश्ते’ के गाने ‘मेरी सांसों को जो महका रही है, ये पहले प्यार की खुशबू है, जो तेरी सांसों से शायद आ रही है…’

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साल 1978 में आई इस फिल्म को रघुनाथ झालानी ने डायरैक्ट किया था. जितेंद्र, ऋषि कपूर और रीना राय के प्रेम त्रिकोण से सजी फिल्म के इस नगमे को लता मंगेशकर और महेंद्र कपूर ने अपनी मधुर आवाज दी थी.

साल 1979 में दिग्गज फिल्म डायरैक्टर यश चोपड़ा ने धनबाद की एक कोयला खदान में हुए एक हादसे को फिल्म ‘काला पत्थर’ के रूप में बड़े परदे पर उतारा था.

अमिताभ बच्चन, राखी, शशि कपूर, परवीन बौबी, शत्रुघ्न सिन्हा और नीतू सिंह जैसे बड़े कलाकारों ने इस फिल्म में अपनी अदाकारी का जलवा दिखाया था.

वैसे तो फिल्म ‘काला पत्थर’ में कोयले की कालिख और अमिताभ बच्चन और शत्रुघ्न सिन्हा की गरमी का मसाला भरा गया था, पर इस में शशि कपूर और परवीन बौबी का रोमांटिक एंगल भी था. उन्हीं का एक गाना ‘बांहों में तेरी मस्ती के घेरे, सांसों में तेरी खुशबू के डेरे…’ फिल्म को हलका और रोमांटिक बनाता है.

मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर ने इस गीत को अपनी आवाज दे कर कर्णप्रिय बना दिया था.

सांसों की बात हो, महेश भट्ट की फिल्म ‘आशिकी’ का जिक्र न आए, यह कैसे हो सकता है. 1990 में आई इस म्यूजिकल ब्लौकबस्टर फिल्म के सारे गाने हिट हुए थे, पर ‘सांसों की जरूरत है जैसे जिंदगी के लिए, बस एक सनम चाहिए आशिकी के लिए…’ गाने ने तो धमाल मचा दिया था.

हीरो राहुल राय पर फिल्माए गए इस गाने को कुमार सानू ने गाया था, जो बाद में बहुत बड़े गायक बन गए थे और आज भी फिल्म इंडस्ट्री में जमे हुए हैं.

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साल 1996 में राज कंवर ने ‘जीत’ नाम से एक फिल्म बनाई थी, जिस में सनी देओल, सलमान खान, करिश्मा कपूर और तब्बू ने काम किया था.

इस फिल्म के 2 गाने सांसों से जुड़े थे. पहला गाना ‘सांसों का चलना, दिल का मचलना…’ को अलका याग्निक और उदित नारायण ने अपनी आवाज दी थी, जबकि दूसरे गाने ‘अभी सांस लेने की फुरसत नहीं है कि तुम मेरी बांहों में हो…’ को सोनू निगम ने अलका याग्निक के साथ गाया था.

फिल्म ‘कोयला’ तो आप को याद होगी ही. साल 1997 में आई राकेश रोशन की फिल्म का दर्शकों को बड़ी बेसब्री से इंतजार था, क्योंकि इस में शाहरुख खान और माधुरी दीक्षित की जोड़ी जो जमी थी.

फिल्म उम्मीद के मुताबिक नहीं चल पाई थी, पर इस का एक गाना सांसों से जुड़ा था. गीत के बोल थे, ‘सांसों की माला पे सिमरू मैं पी का नाम, प्रेम के पथ पर चलतेचलते मैं हो गई बदनाम…’ जिसे माधुरी दीक्षित पर फिल्माया गया था, जबकि गाया अलका याग्निक ने था.

साल 1997 में ही फिल्म ‘और प्यार हो गया’ आई थी. राहुल रवैल के डायरैक्शन में बनी इस फिल्म में बौबी देओल और ऐश्वर्या राय की रोमांटिक जोड़ी बड़े परदे पर दिखाई दी थी.

इस फिल्म का गाना ‘मेरी सांसों में बसा है तेरा ही इक नाम, तेरी याद हमसफर सुबहोशाम…’ काफी मशहूर हुआ था. इस गाने को उदित नारायण और अलका याग्निक ने गाया था.

हिंदी फिल्मों की बात हो और करन जौहर का जिक्र न आए, यह कैसे हो सकता है. साल 2001 में उन की मैगास्टार फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’  काफी चर्चित रही थी. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, शाहरुख खान, काजोल, रितिक रोशन और करीना कपूर ने काम किया था.

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इस फिल्म का खास नगमा ‘मेरी सांसों में तू है समाया, मेरा जीवन तो है तेरा साया…’ आज भी लोग खूब सुनते हैं. इस गाने को लता मंगेशकर ने अपनी मधुर आवाज दी थी.

सांसों से भरे एक गीत की और बात करते हैं. सिल्वर स्क्रीन पर रोमांस का जादू दिखाने वाले डायरैक्टर यश चोपड़ा ने साल 2012 में फिल्म ‘जब तक है जान’ बनाई थी.

शाहरुख खान और कैटरीना कैफ पर फिल्माए गए गाने ‘सांस में तेरी सांस मिली तो मुझे सांस आई, मुझे सांस आई…’ में गजब की रोमानियत थी. इस गाने को श्रेया घोषाल और मोहित चौहान ने गाया था.

इस तरह हिंदी फिल्मों में बहुत से गानों में सांसों का जिक्र हुआ है, पर आज कोरोना काल में जब लोगों को वाकई सांसों की जरूरत पड़ रही है तो ये कुछ चुनिंदा गाने याद आ गए, जो कभी न कभी आप ने भी सुने होंगे.

कोरोना के कहर से कराह रहे गांव

आजकल वैश्विक महामारी कोरोना का कहर गांवदेहात के इलाकों में तेजी से बढ़ रहा है, फिर वह चाहे उत्तर प्रदेश हो, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश या फिर कोई दूसरा राज्य ही सही, जबकि राज्य सरकारों का दावा

है कि कोरोना महामारी का संक्रमण गांवों में बढ़ने से रोकने के लिए ट्रैकिंग, टैस्टिंग और ट्रीटमैंट के फार्मूले पर कई दिन से सर्वे किया जा रहा है यानी अभी तक सिर्फ सर्वे? इलाज कब शुरू होगा?

खबरों के मुताबिक, राजस्थान के जिले जयपुर के देहाती इलाके चाकसू में एक ही घर में 3 मौतें कोरोना के चलते हुई हैं.

यही हाल राजस्थान  के टोंक जिले का है. महज 2 दिनों में टोंक के अलगअलग गांवों में कई दर्जन लोगों की एक दिन  में मौत की कई खबरें थीं. इस के बाद शासनप्रशासन हरकत में आया.

जयपुर व टोंक के अलावा कई जिलों के गांवों में बुखार से मौतें होने की सूचनाएं आ रही हैं. राजस्थान के भीलवाड़ा में भी गांवों में बहुत ज्यादा मौतें हो रही हैं. इसी तरह दूसरे गांवों में भी कोरोना महामारी के बढ़ने की खबरें आ रही हैं. हालांकि सब से ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के गांवों में हो रही हैं, उस से कम गुजरात, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश में मौतें हो रही हैं.

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कोरोना की पहली लहर में गांव  बच गए थे, लेकिन इस बार गांवों से बुखारखांसी जैसी समस्याएं ही नहीं, बल्कि मौतों की लगातार खबरें आ रही हैं. पिछली बार शहर से लोग भाग कर गांव गए थे, लेकिन इस बार गांव के हालात भी बदतर होते जा रहे हैं.

गौरतलब है कि पिछले साल कोरोना बड़े शहरों तक ही सीमित था, कसबों और गांवों के बीच कहींकहीं लोगों के बीमार होने की खबरें आती थीं. यहां तक कि पिछले साल लौकडाउन में तकरीबन डेढ़ करोड़ प्रवासियों के शहरों से देश के गांवों में पहुंचने के बीच कोरोना से मौतों की सुर्खियां बनने वाली खबरें नहीं आई थीं, लेकिन इस बार कई राज्यों में गांव के गांव बीमार पड़े हैं, लोगों की जानें जा रही हैं. हालांकि, इन में से ज्यादातर मौतें आंकड़ों में दर्ज नहीं हो रही हैं, क्योंकि टैस्टिंग नहीं है या लोग करा नहीं रहे हैं.

राजस्थान में जयपुर जिले की चाकसू तहसील की ‘भावी निर्माण सोसाइटी’ के गिर्राज प्रसाद बताते हैं, ‘‘पिछले साल मुश्किल से किसी गांव से किसी आदमी की मौत की खबर आती थी, लेकिन इस बार हालात बहुत बुरे हैं. मैं आसपास के 30 किलोमीटर के गांवों में काम करता हूं. गांवों में ज्यादातर घरों में कोई न कोई बीमार है.’’

गिर्राज प्रसाद की बात इसलिए खास हो जाती है, क्योंकि वे और उन की संस्था के साथी पिछले 6 महीने से कोरोना वारियर का रोल निभा रहे हैं.

राजस्थान के जयपुर जिले में कोथून गांव है. इस गांव के एक किसान  44 साला राजाराम, जो खुद घर में आइसोलेट हो कर अपना इलाज करा रहे हैं, के मुताबिक, गांव में 30 फीसदी लोग कोविड पौजिटिव हैं.

राजाराम फोन पर बताते हैं, ‘‘मैं खुद कोरोना पौजिटिव हूं. गांव में ज्यादातर घरों में लोगों को बुखारखांसी की दिक्कत है. पहले गांव में छिटपुट केस थे, फिर जब 5-6 लोग पौजिटिव निकले तो सरकार की तरफ से एक वैन आई और उस ने जांच की तो कई लोग पौजिटिव मिले हैं.’’

जयपुरकोटा एनएच 12 के किनारे बसे इस गांव की जयपुर शहर से दूरी महज 50 किलोमीटर है और यहां की आबादी राजाराम के मुताबिक तकरीबन 4,000 है.

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गांव में ऐसा क्या हुआ कि इतने लोग बीमार हो गए? इस सवाल के जवाब में राजाराम बताते हैं, ‘‘सब से पहले तो गांव में 1-2 बरातें आईं, फिर 23-24 अप्रैल, 2021 को यहां बारिश आई थी, जिस के बाद लोग ज्यादा बीमार हुए.

‘‘शुरू में लोगों को लगा कि मौसमी बुखार है, लेकिन लोगों को दिक्कत होने पर जांच हुई तो पता चला कि कोरोना  है. ज्यादातर लोग घर में ही इलाज करा रहे हैं.’’

जयपुर में रहने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ता और जनस्वास्थ्य अभियान से जुड़े आरके चिरानियां फोन पर बताते हैं, ‘‘कोरोना का जो डाटा है, वह ज्यादातर शहरों का ही होता है. गांव में तो पब्लिक हैल्थ सिस्टम बदतर है. जांच की सुविधाएं नहीं हैं. लोगों की मौत हो भी रही है, तो पता नहीं चल रहा. ये मौतें कहीं दर्ज भी नहीं हो रही हैं.

‘‘अगर आप शहरों के हालात देखिए, तो जो डाटा हम लोगों तक आ रहा है, वह बता रहा है कि शहरों में ही मौतें आंकड़ों से कई गुना ज्यादा हैं. अगर ग्रामीण भारत में सही से जांच हो, आंकड़े दर्ज किए जाएं तो यह नंबर कहीं ज्यादा होगा.’’

ग्रामीण भारत में हालात कैसे हैं, इस का अंदाजा छोटेछोटे कसबों के मैडिकल स्टोर और इन जगहों पर इलाज करने वाले डाक्टरों (जिन्हें बोलचाल की भाषा में झोलाछाप कहा जाता है) के यहां जमा भीड़ से लगाया जा सकता है.

गांवकसबों के लोग मैडिकल स्टोर पर इस समय सब से ज्यादा खांसीबुखार की दवाएं लेने आ रहे हैं. एक मैडिकल स्टोर के संचालक दीपक शर्मा बताते हैं, ‘‘रोज के 100 लोग बुखार और बदन दर्द की दवा लेने आ रहे हैं. पिछले साल इन दिनों के मुकाबले ये आंकड़े काफी ज्यादा हैं.’’

कोविड 19 से जुड़ी दवाएं तो अलग बात है, बुखार की गोली, विटामिन सी की टैबलेट और यहां तक कि खांसी के अच्छी कंपनियों के सिरप तक नहीं मिल रहे हैं. ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में एक बड़ी दिक्कत यह भी है कि खांसी और बुखार को लोग सामान्य फ्लू मान कर चल रहे हैं.

जयपुर जिले के चाकसू उपखंड से 7-8 किलोमीटर की दूरी पर छांदेल कलां गांव है. इस गांव में तकरीबन 200 घर हैं और हर घर में कोई न कोई बीमार है. पिछले दिनों यहां एक बुजुर्ग की बुखार के बाद मौत भी हो गई थी, जो कोरोना पौजिटिव भी थे.

कोरोना से मां को खो चुके और पिता का इलाज करा रहे बेटे ने बताया, ‘‘मैं  2 लाख रुपए से ज्यादा का उधार ले चुका हूं. अब तो रिश्तेदार भी फोन नहीं उठाते.’’

उस बेटे की आवाज और चेहरे की मायूसी बता रही थी कि वह हताश है. हो भी क्यों न, उस के घर से एक घर छोड़ कर एक बुजुर्ग की मौत हुई थी.

रमेश और उन की पत्नी 15 दिनों से बीमार हैं. जिन के यहां मौत हुई, वे  इन के परिवार के ही थे. हाल पूछने पर रमेश कहते हैं, ‘‘

15 दिन से दवा चल रही है. कोई फायदा ही नहीं हो रहा, अब क्या कहें…’’

रमेश की बात खत्म होने से पहले उन से तकरीबन 15 फुट की दूरी पर खड़े 57 साल के लोकेश कुमावत बीच में ही बोल पड़ते हैं, ‘अरे, बीमार तो सब हैं, लेकिन भैया यहां किसी को भी कोरोना नहीं है और जांच कराना भी चाहो तो कहां जाएं, अस्पताल में न दवा है और न ही औक्सीजन. घर में रोज काढ़ा और भाप ले रहे हैं, बुखार की दवा खाई है, अब सब लोग ठीक हैं. और मौत आती है तो आने दो, एक बार मरना तो सभी को है.’’

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गांवों के हालात कैसे हैं? लोग जांच क्यों नहीं करवा रहे हैं? क्या जांच आसानी से हो रही है? इन सवालों पर सब के अलगअलग जवाब हैं, लेकिन कुछ चीजें बहुत सारे लोगों में बात करने पर सामान्य नजर आती हैं.

‘‘गांवदेहातों में मृत्युभोजों और शादीबरातों ने काम खराब किया है. लोग देख रहे हैं कि सिर पर मौत नाच रही है, लेकिन फिर भी वे अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं,’’ ग्रामीण इलाके के एक मैडिकल स्टोर संचालक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया.

एक सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सा प्रभारी गांव में बुखार और कोविड 19 के बारे में पूछने पर कहते हैं, ‘‘कोविड के मामलों से जुड़े सवालों के जवाब सीएमओ (जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी) साहब ही दे पाएंगे, बाकी बुखारखांसी का मामला है कि इस  बार के बजाय पिछली बार कुछ नहीं था.

कई गांवों से लोग दवा लेने आते  हैं. फिलहाल तो हमारे यहां तकरीबन 600 ऐक्टिव केस हैं.’’

इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीन 42 ग्राम पंचायतें आती हैं यानी तकरीबन 250 गांव शामिल हैं. चिकित्सा प्रभारी आखिर में कहते हैं, ‘‘अगर सब की जांच हो जाए, तो 40 फीसदी लोग कोरोना पौजिटिव निकलेंगे. गांवों के तकरीबन हर घर में कोई न कोई बीमार है, लक्षण सारे कोरोना जैसे, लेकिन न कोई जांच करवा रहा है और न सरकारों को चिंता है.’’

यह महामारी बेकाबू रफ्तार से ग्रामीण इलाकों पर अपना शिकंजा कसती जा रही है. हालात ये हैं कि ग्रामीण इलाकों के कमोबेश हर घर को संक्रमण अपने दायरे में ले चुका है. लगातार हो रही मौतों से गांव वाले दहशत में हैं. इस के बावजूद प्रशासन संक्रमण की रफ्तार थाम नहीं पा रहा है. यहां तक कि कोरोना जांच की रफ्तार भी बेहद धीमी है.

कोरोना की पहली लहर में ग्रामीण इलाके महफूज रहे थे, लेकिन दूसरी लहर ने शहर की पौश कालोनियों से ले कर गांव की पगडंडियों तक का सफर बेकाबू रफ्तार के साथ तय कर लिया है.

दूसरी लहर में ग्रामीण इलाकों में कोरोना वायरस के संक्रमितों की तादाद में बेतहाशा रूप से बढ़ोतरी हुई है. हालात ये हैं कि कमोबेश हर घर में यह महामारी अपनी जड़ें जमा चुकी है. संक्रमितों की मौत के बाद मची चीखपुकार गांव की शांति में दहशत घोल देती है.

ग्रामीण इलाकों में हाल ही में सैकड़ों लोगों को यह महामारी मौत के आगोश में ले चुकी है. ग्रामीणों के घर मरीजों की मौजूदगी की वजह से ‘क्वारंटीन सैंटरों’ में तबदील होते जा रहे हैं. गलियों में सन्नाटा पसरा रहता है और चौपालें दिनभर सूनी पड़ी रहती हैं.

ज्यादातर ग्रामीण सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित हैं. ऐसे में मजबूरी में उन्हें अपना इलाज खुद करना पड़ रहा है. मैडिकल स्टोरों से दवा खरीद कर वे कोरोना से जंग लड़ रहे हैं, जो सरकार के लिए शर्मनाक बात है.

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