केजरीवाल, जेल की दुनिया और लोकतंत्र, पर भाजपा क्यों हलकान

देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक मुख्यमंत्री अपने पद पर रहते हुए जेल में है. इस पर जहां दुनियाभर में बात हो रही है, वहीं अरविंद केजरीवाल ने इतिहास में अपना नाम लिखवा लिया है. आने वाले समय में यह साफ होगा कि सचमुच अरविंद केजरीवाल ने शराब घोटाले में रुपए कमाए या फिर उन पर केंद्र सरकार के इशारे पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने झूठी कार्यवाही की थी.

दरअसल, अरविंद केजरीवाल जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ मुखर हुए हैं और कांग्रेस से गठबंधन किया है, तब से सत्ता में बैठी हुई भाजपा सरकार और उस के मुखौटे मानो अरविंद केजरीवाल के पीछे पड़ गए हैं, जिस का अंत शायद अरविंद केजरीवाल को 10-20 साल जेल में सजा दिलाने और आप पार्टी को खत्म करने के बाद ही होगा.

पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अरविंद केजरीवाल शराब घोटाले में एक आरोपी हैं और अभी उन पर या आप पार्टी के किसी भी नेता पर आरोप साबित नहीं हुए हैं, मगर उन के साथ बरताव कुछ इस तरह किया जा रहा है मानो वे देशदुनिया के सब से बड़े अपराधी हों.

केंद्र में सत्ता में आने के बाद नरेंद्र मोदी के समयकाल में विरोधी नेताओं और राजनीतिक पार्टियों के साथ जैसा बरताव किया जा रहा है, वह याद दिलाता है जब सिकंदर ने राजा पोरस को कैद कर लिया था और पूछा था कि बताओ तुम्हारे साथ कैसा बरताव किया जाए?

तब सिकंदर की कैद में राजा पोरस ने कहा था कि वैसा ही बरताव, जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है, मगर नरेंद्र मोदी और उन के सलाहकार यह भूल गए हैं कि देश में लोकतंत्र है और अगर सत्ता में बैठे हुए किसी मुख्यमंत्री के साथ अपराधियों जैसा बरताव होगा, तो इस का संदेश जनजन में अच्छा नहीं जाएगा और आने वाले समय में जब इतिहास लिखा जाएगा तब नरेंद्र मोदी एक ऐसे ‘विचित्र’ प्रधानमंत्री के रूप में चित्रित किए जाएंगे, जिन्होंने अपने विरोधियों को बिला वजह परेशानहलकान किया और शायद इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं कर पाएगा.

यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी ने आम आदमी पार्टी के प्रमुख और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर तीखा प्रहार करते हुए कहा है कि आबकारी नीति में घोटाला जैसा शर्मनाक काम कर के जेल गया आदमी जेल से सरकार चलाना चाहता है.

भाजपा के नेता और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि केजरीवाल में नैतिकता नाम की चीज नहीं है. वे पहले एनजीओ बना कर फिर राजनीति में केवल जेबें भरने आए थे. उन्होंने एक भ्रष्ट सरकार चलाई और यही वजह है कि उन के तमाम मंत्री, सांसद और यहां तक कि वे खुद जेल में हैं.

अरविंद केजरीवाल दिल्ली सरकार की आबकारी नीति में कथिततौर पर गलत तरीके से धन लेने के आरोप में 28 मार्च, 2024 तक प्रवर्तन निदेशालय की हिरासत में हैं और उन के सहयोगियों की ओर से उन का एक कथित पत्र जारी किया गया है, जिस में उन्होंने दिल्ली में पानी और सीवर की व्यवस्था में सुधार के लिए काम करने निर्देश दिए हैं.

दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल के जेल जाने की खबर पर बहुत दूर जरमनी तक बात हुई है, जिस से केंद्र में बैठी हुई भारतीय जनता पार्टी की सरकार को बड़ी पीड़ा हुई है. केंद्र सरकार ने जरमनी की बात पर कहा है कि यह उस का अपना आंतरिक मामला है और अदालत में चल रहा है, पर भाजपा यह भूल जाती है कि दुनिया में बहुत सारे मामलों में भारत सरकार भी अपना पक्ष रखती है और यह दुनिया के हित के लिए होता है. ऐसी बातों को सकारात्मक ढंग से लिया जाना चाहिए.

इस तरह अरविंद केजरीवाल ने एक तरह से जेल से सरकार चलाना शुरू कर दिया है, जो अपनेआप में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को रास नहीं आ रहा है. भाजपा को मानो अरविंद केजरीवाल और आप पार्टी से निजी लड़ाई है और भाजपा यह चाहती है कि आप पार्टी नेस्तनाबूद हो जाए, मगर लोकतंत्र में हर विचारधारा को अपना काम करने और जनता के बीच जाने का अधिकार है, यह बात सत्ता में बैठे हुए भाजपा के कर्ताधर्ता भूल जाते हैं. वे यह भी भूल जाते हैं कि पहले आप सत्ता में नहीं थे और विपक्ष में जाते हुए आप को सत्ता में बैठे हुए लोगों ने एक माहौल दिया, तो आप का भी कर्तव्य है कि आप विपक्ष का सम्मान करें और उसे अपनी विचारधारा को लोगों को बताने का मौका मिलना चाहिए. इसी में देश और लोकतंत्र का भला है.

प्यार की त्रासदी : फिर तेरी कहानी याद आई..!

प्यार की पींगे भरकर  एक व्यक्ति ने एक युवती को ऐसा धोखा दिया कि वह युवती ने घर की रही न घाट की. जैसा कि अक्सर होता है एक बार फिर वही सब कुछ घटित हो गया. जी हां! प्रेम के अगले पायदान में युवक ने विवाह का प्रस्ताव रखा और चालाकी से शारीरिक संबंध स्थापित कर लिया . आगे बड़ी नाटकीयता के साथ नोटरी के शपथपत्र के माध्यम से विवाह रचाकर धोखा देता रहा और अंत में पल्ला झाड़ लिया. युवती को जब एहसास हुआ कि वह तो बर्बाद हो चुकी है, तब प्रेमी युवक के खिलाफ प्रेमिका की शिकायत पर पुलिस द्वारा अपराध दर्ज कर आरोपी को  जेल भेज दिया गया .जी हां! मगर थोड़ा रूकिए पीड़ित लड़की की आपबीती अभी खत्म नहीं हुई है.आगे कहानी में एक बार फिर ट्विस्ट है.

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जमानत पर जेल से छूटने के बाद आरोपी पुनः युवती को मीठी चुपड़ी बातें करके अपनी हवस का शिकार बनाता है. वह अपनी गलतियां स्वीकार करता है और आश्वस्त करता है कि मैं विवाह तो तुम्हीं से करूंगा, युवती उसके प्रेम जाल के भुलावे में फंस जाती है. मगर जब सच्चाई खुलती जाती है तो वह अपने को पुनः लूटा हुआ पाती है.पीड़िता की दोबारा शिकायत पर पुलिस “बलात्कार” का अपराध दर्ज करती है. अब आज की हकीकत यह है कि युवक फरार हो गया है और युवती को फोन पर लगातार जान से मारने की धमकी दे रहा है.पीडिता अपनी आपबीती पुलिस को बताती है थाने के लगातार चक्कर लगा रही है लेकिन पुलिस आरोपी की खोजबीन कर गिरफ्तार करने की कागजी कोशिश कर रही है.भयभीत व परेशान युवती का  कहना है कि यदि पुलिस एक सप्ताह के भीतर आरोपी को गिरफ्तार नही करती है तो वह आत्महत्या करने को मजबूर रहेगी.जिसकी सारी जवाबदारी पुलिस प्रशासन की होगी.

युवती ने “वीडियो” जारी किया

अक्सर इस तरह की घटनाएं सुर्खियों में रहती हैं. युवा वर्ग प्रेम प्यार और शारीरिक आकर्षण में फंस कर एक ऐसे भंवर जाल में फंसते चले जाते हैं कि आगे जीवन में सिर्फ अंधकार होता है. और ताजिंदगी अवसाद के अलावा कुछ नहीं मिलता. अक्सर फिल्मों में कहानियों में यही तथ्य और कथ्य रहता है जिसमें विस्तार से बताया जाता है कि किस तरह कोई युवक ठाट बाट और पैसों की झलक दिखा कर युवतियो को अपने जाल में फांस लेता है और  धोखा देकर शारीरिक संबंध बनाता है. और फिर गायब हो जाता हैं. “हरि अनंत हरि कथा अनंता” की तरह यह बानगी वर्षों वर्षों से चली आ रही है. मगर अब समय आ गया है कि इस आधुनिक 21 वी शताब्दी के समय में जब ज्ञान के अनेक स्रोत हमारे पास हैं पुस्तकें हैं, नेट है अगर आज भी स्त्री और पुरुष का यह छलावा चल रहा है तो ठहर कर सोचने की बात है कि आखिर चूक कहां है?

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भ्रम और मानसिक यंत्रणा की कहानी

ऊपर वर्णित घटनाक्रम छत्तीसगढ़ जिला के कोरबा के कटघोरा थानांतर्गत ग्राम कसनिया का है. जहाँ निवासरत युवती रजनी (बदला हुआ नाम) को  कटघोरा पुरानी बस्ती निवासी आसीम खान पिता अकरम सेठ अपने प्रेमजाल में फंसा लेता है और शादी करने का झांसा देते हुए लगातार लंबे समय तक शारीरिक संबंध स्थापित करता है.इस बीच रजनी द्वारा शादी का दबाव बनाए जाने पर तीन दिसंबर 2019 को आरोपी द्वारा शपथपत्र करके विवाह का भ्रमजाल फैलाया गया. लेकिन शादी के तीन दिन पश्चात छः दिसंबर 2019 को शारीरिक एवं मानसिक यातना देते हुए नाटकीय ढंग से पुनः शपथपत्र के माध्यम से दबावपूर्वक संबंध विच्छेद कर लेता है. पीड़िता इस मामले की शिकायत कटघोरा थाना में करती है. शिकायत के आधार पर पुलिस आरोपी के विरुद्ध भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश करती है जहां से आरोपी को जेल चला जाता है.

आरोपी जमानत पर जेल से छूटने पश्चात पीड़िता को बार-बार फोन करके अश्लील गाली-गलौज व मारने- पीटने की धमकी देने लगता है और एक रात  आरोपी प्रेमी, युवती के घर आ धमकता है तथा अकेलेपन का फायदा उठाकर जेल भेजे जाने की बात कहते हुए गाली-गलौज के अलावा मारपीट करते हुए बलपूर्वक शारीरिक संबंध स्थापित करता है.पीड़िता द्वारा  कटघोरा थाना पहुँचकर इस बाबत लिखित शिकायत दी जाती है.लेकिन पुलिस कोई कार्यवाही नही करती. आगे एक जुलाई 2020 को पीड़िता पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुँचकर अपनी शिकायत पत्र सौंप उचित कार्यवाही एवं न्याय की मांग करती है.जिसके बाद आरोपी युवक के विरुद्ध  कटघोरा पुलिस द्वारा  धारा 376, 506 के तहत अपराध दर्ज किया गया है.

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लेकिन अपराध दर्ज होने के बाद आरोपी फरार हो जाता है.जिसे पुलिस अभी तलक फरार बता रही है.जबकि पीड़िता का कथन है कि आरोपी आए दिन फोन पर जान से मारने की धमकी दे रहा है.धमकी से भयभीत हो इस बीच कई बार वह कटघोरा थाना पहुँचकर पुलिस को अपनी आपबीती सुनाते हुए आरोपी की जल्द गिरफ्तारी की मांग भी कर चुकी है.लेकिन फरार आरोपी की खोजबीन कर उसे गिरफ्तार करने की प्रक्रिया को लेकर पुलिस सुस्त बनी  है.मामले में पुलिस के सुस्ती भरे रवैये को लेकर भय के माहौल में जीवन व्यतीत कर रही पीड़िता ने  अब एक वीडियो क्लिप  जारी कर‌ सनसनी  पैदा कर कहा है कि फरार आरोपी कभी भी उसके साथ गंभीर घटना को अंजाम दे सकता है.यदि पुलिस एक सप्ताह के भीतर आरोपी की तलाश कर गिरफ्तार नही करती है तो वह “आत्महत्या” के लिए मजबूर  होगी, जिसकी सारी जवाबदारी  पुलिस प्रशासन की रहेगी.

पुलिस वालों की दबंगई

हिंदी फिल्म ‘दबंग’ में हीरो सलमान खान को इतना बेखौफ दिखाया गया है कि वह हर बुरा काम करने वाले के लिए शामत बन कर उस के होश ठिकाने लगा देता है. इस सब के बावजूद उस में रत्तीभर भी घमंड नहीं होता है और न ही वह अपनी खाकी वरदी का गलत इस्तेमाल करता है.

पर क्या असली जिंदगी में भी ऐसा होता है? शायद नहीं, तभी तो मीडिया में तमाम ऐसी खबरें आती रहती हैं, जिन में पुलिस वाले ही आम जनता का खून चूसने वाले बन जाते हैं. कभीकभार तो इतने जालिम हो जाते हैं कि वे खूनखराबे पर उतर आते हैं.

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देश का दिल दिल्ली को ही ले लीजिए. यहां के अलीपुर इलाके में रविवार, 27 सितंबर ?की शाम को दिल्ली पुलिस के एक सबइंस्पैक्टर संदीप दहिया ने अपनी एक महिला दोस्त को गोली मार दी.

यह कांड सबइंस्पैक्टर संदीप दहिया की सर्विस रिवाल्वर से चलती कार में हुआ. उस महिला को 3 गोलियां मारी गईं. इस वारदात को अंजाम देने के बाद संदीप दहिया अपनी कार से फरार हो गया, जबकि बाद में गंभीर रूप से घायल उस महिला को लोकल लोगों ने अस्पताल पहुंचाया.

इस के बाद भी सबइंस्पैक्टर संदीप दहिया का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ. रविवार, 27 सितंबर को उस ने दिल्लीहरियाणा बौर्डर पर एक राह चलते आदमी सतबीर के पैर में गोली मार दी और फिर सोमवार, 28 सितंबर की सुबह रोहतक जिले के गांव बैंसी में अपने ससुर रणबीर सिंह के माथे पर गोली मार कर उन की जान ले ली. संदीप दहिया का काफी समय से अपनी पत्नी से विवाद चल रहा है.

एक और मामले में दिल्ली पुलिस के एक इंस्पैक्टर के खिलाफ देश के प्रधानमंत्री से गुहार लगाई गई. हुआ यों कि भलस्वा डेरी थाने के एसएचओ रहे इंस्पैक्टर के खिलाफ करोड़ों रुपए की जमीन कब्जाने का मुकदमा इसी थाने में दर्ज हुआ.

उस इंस्पैक्टर पर आरोप लगाया गया कि उस ने जबरन उगाही और करोड़ों रुपए के प्लाट और दूसरी जमीन पर कब्जा कर के अपने रिश्तेदारों के नाम करा ली. जिस पीडि़त सुजीत कुमार की एफआईआर पर यह मामला उछला, उस का आरोप है कि वह इंस्पैक्टर पीडि़त का 100 गज का प्लाट कब्जाने की कोशिश कर रहा है.

पीडि़त सुजीत कुमार ने पुलिस महकमे के ऊंचे अफसरों तक यह मामला पहुंचाया, पर कोई सुनवाई नहीं हुई. बाद में थकहार कर सुजीत कुमार ने प्रधानमंत्री को संबंधित दस्तावेज के साथ अपनी लिखित शिकायत भेजी, जिस में लिखा था, ‘मैं शिकायतें देदे कर थक चुका हूं और मजबूरन मुझे आप के पास शिकायत करनी पड़ रही है. आप के दफ्तर पर मुझे भरोसा है कि इंसाफ मिलेगा और आरोपी को कानून के शिकंजे में ले कर सख्त कार्यवाही की जाएगी, जिस से बाकी भ्रष्ट अफसरों को सबक मिल सके.’

उस पुलिस इंस्पैक्टर पर यह भी आरोप लगाया गया है कि उस ने दिल्ली के स्वरूप नगर में 300 गज का डेढ़ करोड़ रुपए का एक गोदाम बना लिया है और गलीप्लाट वगैरह पर कब्जा करने की कोशिश करते हुए तकरीबन 1,500 गज जमीन में बिना पार्किंग के एक मैरिज होम बना लिया है, जिस की बाजार कीमत तकरीबन 10 करोड़ रुपए है.

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पीडि़त का यह भी आरोप है कि मुकुंदर में उस इंस्पैक्टर के रिश्तेदारों के नाम 40 बीघा जमीन में कई बड़े प्लाट हैं. इतना ही नहीं, बुराड़ी थाने के सामने 100 फुटा रोड पर ग्राम सभा की जमीन पर 350 गज और उसी से लगती हुई जमीन पर 300 गज जगह भी कब्जा ली है. इन की कीमत भी 12 करोड़ रुपए के आसपास बताई जा रही है.

मुंबई में ड्रग्स और फिल्मी सितारों के रिश्तों को ले कर हड़कंप मचा हुआ है, पर दिल्ली के जहांगीरपुरी पुलिस स्टेशन के 4 पुलिस वालों के खिलाफ पकड़े गए गांजे को खुद ही बेच देने का आरोप लगा. उन के खिलाफ भ्रष्टाचार के तहत मामला दर्ज करने के साथ एसएचओ को निलंबित कर दिया गया.

दरअसल, कुछ दिनों पहले जहांगीरपुरी थाना पुलिस ने 160 किलो गांजा बरामद किया था, लेकिन सरकारी रिकौर्ड में पुलिस ने गांजे की बड़ी खेप की एक किलो से भी कम 920 ग्राम की बरामदगी दिखाई और बाकी खेप खुद ही ब्लैक में बेच दी.

जब इस गोलमाल की जानकारी पुलिस के बड़े अफसरों तक पहुंची, तो शुरुआती जांच में 2 सबइंस्पैक्टर और 2 हैडकांस्टेबल पर गाज गिरी थी, पर इस के बाद एसएचओ को भी निलंबित कर दिया गया.

ड्रग पैडलर अनिल को छोड़ने के बाद आरोपी पुलिस वालों ने गांजा बेचने से आई रकम आपस में बांट ली थी.

ये तो चंद किस्से हैं पुलिस की करतूतों के, फेहरिस्त तो बहुत लंबी है. पर ऐसा होता क्यों है? क्यों जनता की हिफाजत करने वाले उसी को सताने लग जाते हैं, अपराध कर के खाकी वरदी को दागदार करते हैं?

यह सब इसलिए होता है, क्योंकि पुलिस के पास बहुत ज्यादा ताकत होती है. वह कानून के बारे में जानती है तो उस से खिलवाड़ करने के दांवपेंच भी बखूबी समझती है. आम आदमी तभी तो थाने में दाखिल होने से डरता है, क्योंकि उसे पता होता है कि वहां किसी न किसी बहाने से उस की खाल उतारी जाएगी.

वरदी की यही गरमी और जनता का डर पुलिस को तानाशाह बना देता है, तभी तो कोई पुलिस वाला अपनी महिला साथी से नाराज होने पर उसे सरेआम गोलियों से भून कर फरार हो जाता है या फिर कोई दूसरा पुलिस वाला अपने इलाके में इतना आतंक मचा देता है कि गैरकानूनी तौर पर जमीन हथियाने लगता है. रहीसही कसर पुलिस की वे धांधलियां पूरी कर देती हैं, जहां वह नशीली चीजों की बरामदगी में ही घपला कर देती है.

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इस तरह की घटनाओं से एक बात और उभरती है, इस से पुलिस और जनता के बीच दूरियां बढ़ जाती हैं. कोई भी शरीफ आदमी पुलिस और थाने से बचने लगता है. यह सभ्य समाज के लिए बेहद खतरनाक है.

दुख तो इस बात से होता है कि ऐसे अपराधी पुलिस वालों के खिलाफ उन के ही बड़े अफसर भी कोई कार्यवाही नहीं करते हैं. अगर ऐसा होता तो पीडि़त सुजीत कुमार को प्रधानमंत्री के पास जा कर गुहार नहीं लगानी पड़ती.

शहीद सिपाही रतन लाल क्यों रखते थे अभिनंदन जैसी मूंछें

दिल्ली के गोकुलपुरी (Gokulpuri) में तैनात दिल्ली पुलिस (Delhi Police) के कौंस्टेबल रतन लाल (Ratan Lal) न सिर्फ जिंदादिली में जीते थे, उन में गजब का साहस था.

24 फरवरी को वे अपने अन्य पुलिस कर्मियों के साथ ड्यूटी पर थे. दिल्ली के गोकुलपुरी क्षेत्र में तब सीएए के विरोध में प्रदर्शन चल रहा था. तभी उपद्रवियों ने तोङफोङ और पत्थरबाजी शुरू कर दी.

डटे रहे पर हटे नहीं

रतन लाल मुस्तैदी से डटे रहे. उन्होंने शांति से काम लिया और गुस्साई भीङ को समझाने की असफल कोशिश की. तभी एक उपद्रवी ने पीछे से उन के ऊपर पत्थर से हमला कर दिया. इस पत्थरबाजी में रतन लाल शहीद हो गए.

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हमला इतना सुनियोजित था कि उन्हें संभलने का मौका तक नहीं मिला.

इस घटना में अनेक पुलिसकर्मी घायल हुए हैं और एसीपी को गंभीर अवस्था में अस्पताल में भरती कराया गया है.

एक जाबांज सिपाही

नौर्थ ईस्ट, दिल्ली के ऐडिशनल डीसीपी बिजेंद्र यादव ने कहा,”रतन एक जाबांज सिपाही थे. वे साहसी थे और कठिन परिस्थितियों में भी मुसकराते रहते थे.”

राजस्थान के सीकर में जन्मे रतन लाल अपने 3 भाईबहनों में सब से बङे थे. उन्होंने साल 1998 में दिल्ली पुलिस में बतौर कौंस्टेबल जौइन किया था.

अपने बच्चों के काफी करीब थे

अपने परिवार के साथ वे दिल्ली के बुराङी स्थित अमृत विहार कालोनी में रहते थे. रतन लाल की 2 बेटियां और 1 बेटा है. उन्होंने अपने बच्चों से वादा किया था कि इस होली में वे सब के साथ राजस्थान अपने गांव जाएंगे पर बच्चों को क्या मालूम कि उन के पिता अब इस वादे को पूरा करने के लिए कभी नहीं आएंगे.

घर में गृहिणी बीवी का रोरो कर बुरा हाल है.

अभिनंदन जैसी ही रखते थे मूंछें

रतन लाल के भाई दिनेश लाल बताते हैं,”भैया देशभक्त थे और जब से अभिनंदन वर्धमान ने पाकिस्तान का जेट विमान मार गिराया था तब से भैया अभिनंदन के जबरदस्त फैन बन गए थे. उन्होंने अपनी मूंछें भी अभिनंदन की तरह ही रख ली थीं.”

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रतन लाल के मूछों की तारीफ कोई करता तो वे फूले नहीं समाते और मूंछों पर ताव देना नहीं भूलते.

दिल्ली पुलिस के ही उन के एक करीबी दोस्त ने बताया,”रतन को अभिनंदन पर नाज था, जिस ने पाकिस्तान के लड़ाकू विमान को मार गिराने के बाद पाकिस्तान से भी सकुशल लौट आए थे. रतन अकसर कहता था कि एक जाबांज सिपाही को देश के लिए समर्पित रहना चाहिए.”

वे कहते हैं,”रतन अपने परिवार के काफी नजदीक था और अकसर गांव भी आताजाता रहता था. बच्चों के लिए वह हमेशा कुछ न कुछ ले कर जरूर जाता था.”

परिवार के एक सदस्य ने बताया,”रतन भैया शहीद हुए तो इस बात की जानकारी मां को नहीं दी जल्दी. वे पूछती रहीं पर हम बताते भी तो कैसे?”

पुलिस को फटकार

दिल्ली की जिला अदालत ने भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर को जमानत पर रिहा करने का आदेश तो दिया पर जो फटकार पुलिस को लगाई वह मजेदार है. आजकल पुलिस की आदत बन गई है कि किसी पर भी शांति भंग करने, देशद्रोह, भावनाएं भड़काने का आरोप लगा दो और जेल में बंद कर दो. आमतौर पर मजिस्ट्रेट पुलिस की बात बिना नानुकर किए मान जाते हैं और कुछ दिन ऐसे जने को जेल में यातना सहनी ही पड़ती है.

जिला न्यायाधीश कामिनी लाऊ ने पुलिस के वकील से पूछा कि क्या जामा मसजिद के पास धरना देना गुनाह है? क्या धारा 144 जब मरजी लगाई जा सकती है और जिसे जब मरजी जितने दिन के लिए चाहो गिरफ्तार कर सकते हो? क्या ह्वाट्सएप पर किसी आंदोलन के लिए बुलाना अपराध हो गया है? क्या यह संविधान के खिलाफ है? क्या बिना सुबूत कहा जा सकता है कि कोई भड़काऊ भाषण दे रहा था? पुलिस के वकील के पास कोई जवाब न था.

दलितों के नेता चंद्रशेखर से भाजपा सरकार बुरी तरह भयभीत है. डरती तो मायावती भी हैं कि कहीं वह दलित वोटर न ले जाए. छैलछबीले ढंग से रहने वाला चंद्रशेखर दलित युवाओं में पसंद किया जाता है और भाजपा की आंखों की किरकिरी बना हुआ है. वे उसे बंद रखना चाहते हैं.

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सहारनपुर का चंद्रशेखर धड़कौली गांव के चमार घर में पैदा हुआ था और ठाकुरों के एक कालेज में छुटमलपुर में पढ़ा था. कालेज में ही उस की ठाकुर छात्रों से मुठभेड़ होने लगी और दोनों दुश्मन बन गए. जून, 2017 में उसे उत्तर प्रदेश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और महीनों तक बेबात में जेल में रखा और कानूनी दांवपेंचों में उलझाए रखा. कांग्रेस ने उसे सपोर्ट दी है और प्रियंका गांधी उस से मिली भी थीं, जब वह जेल के अस्पताल में था. उसे बहुत देर बाद रिहा किया गया था और फिर नागरिक कानून पर हल्ले में पकड़ा गया था.

पुलिस का जिस तरह दलितों और पिछड़ों को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, यह कोई नया नहीं है. हार्दिक पटेल भी इसी तरह गुजरात में महीनों जेल में रहा था. नागरिकता संशोधन कानून के बारे में सरकार ने मुसलिमों के साथ चंद्रशेखर की तरह बरताव की तैयारी कर रखी थी, पर जब असल में हिंदू ही इस के खिलाफ खड़े हो गए और दलितपिछड़ों को लगने लगा कि यह तो संविधान को कचरे की पेटी में डालने का पहला कदम है तो वे उठ खड़े हुए हैं. चंद्रशेखर को पकड़ कर महीनों सड़ाना टैस्ट केस था. फिलहाल उसे जमानत मिल गई है, पर कब उत्तर प्रदेश या कहीं और की पुलिस उस के खिलाफ नया मामला बना दे, कहा नहीं जा सकता.

सरकारों के खिलाफ जाना आसान नहीं होता.

जब पूर्व गृह मंत्री व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम को 100 दिन जेल में बंद रखा जा सकता है तो छोटे नेताओं को सालों बंद रखने में क्या जाता है. अदालतें भी आमतौर पर पुलिस की मांग के आगे झुक ही जाती हैं.

देश दिवालिएपन की ओर

देश के छोटे व्यापारियों को किस तरह बड़े बैंक, विदेशी पूंजी लगाने वाले, सरकार, धुआंधार इश्तिहारबाजी और आम जनता की बेवकूफी दिवालिएपन की ओर धकेल रही है, ओला टैक्सी सर्विस से साफ है. उबर और ओला 2 ऐसी कंपनियां हैं, जो टैक्सियां सप्लाई करती हैं. कंप्यूटरों पर टिकी ये कंपनियां ग्राहकों को कहीं से भी टैक्सी मंगाने के लिए मोबाइल पर एप देती हैं और इच्छा जाहिर करने के 8-10 मिनट बाद कोई टैक्सी आ जाती है, जिस का नंबर पहले सवारी तक पहुंच जाता है और सवारी का मोबाइल नंबर ड्राइवर के पास.

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पर यह सेवा सस्ती नहीं है. बस, मिल जाती है. इस ने कालीपीली टैक्सियों का बाजार लगभग खत्म कर दिया है और आटो सेवाओं को भी धक्का पहुंचाया है. इन्होंने जवान, मोबाइल में डूबे, अच्छे जेबखर्च पाने वालों का दिल जीत लिया है. वे अपनी खुद की बाइक को भूल कर अब ओलाउबर पर नजर रखते हैं.

अब इतनी बड़ी कंपनियां हैं तो इन्हें मोटा मुनाफा हो रहा होगा? नहीं. यही तो छोटे व्यापारियों के लिए आफत है. ओला कंपनी ने 2018-19 में 2,155 करोड़ रुपए का धंधा किया, पर उस को नुकसान जानते हैं कितना है? 1,158 करोड़ रुपए. इतने रुपए का नुकसान करने वाले अच्छेअच्छे धन्ना सेठ दिवालिया हो जाएं पर ओलाउबर ही नहीं अमेजन, फ्लिपकार्ट, बुकिंगडौटकौम, नैटफिलिक्स जैसी कंपनियां भारत में मोटा धंधा कर रही हैं, जबकि भारी नुकसान में चल रही?हैं. उन का मतलब यही है कि भारत के व्यापारियों, धंधे करने वालों, कारीगरों, सेवा देने वालों की कमर इस तरह तोड़ दी जाए कि वे गुलाम से बन जाएं.

ओलाउबर ने शुरूशुरू में ड्राइवरों को मोटी कमीशनें दीं. ज्यादा ट्रिप लगाने पर ज्यादा बोनस दिया. ड्राइवर 30,000-40,000 तक महीना कमाने लगे, पर जैसे ही कालीपीली टैक्सियां बंद हुईं, उन्होंने कमीशन घटा दी. अब 10-12 घंटे काम करने के बाद भी 15,000-16,000 महीना बन जाएं तो बड़ी बात है.

यह गनीमत है कि आटो और ईरिकशा वाले बचे हैं, क्योंकि उस देश में हरेक के पास क्रेडिट कार्ड नहीं है और यहां अभी भी नकदी चलती है. ओलाउबर मोबाइल के बिना चल ही नहीं सकतीं. आटो, ईरिकशा 2 या 4 की जगह 6 या 10 जनों तक बैठा सकते हैं और काफी सस्ते में ले जा सकते है. यही हाल आम किराने की दुकानों का है. जो सस्ता माल, चाहे कम क्वालिटी का हो, हाटबाजार में मिल सकता है वह अमेजन और फ्लिपकार्ट पर नहीं मिल सकता, पर ये अरबों नहीं खरबों का नुकसान कर के छोटे दुकानदारों को सड़क पर ला देना चाहते हैं और सड़कों से अपना आटो और ईरिकशा चलाने वाले लोगों को भगा देना चाहते हैं.

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यह अफसोस है कि सरकार गरीबों की न सोच कर मेढकों की तरह छलांग लगाने के चक्कर में देश को साफ पानी तक पहुंचाने की जगह लूट और बेईमानी के गहरे गड्ढे में धकेलने में लग गई है.

दिल्ली की आग से देश की आंखें नम, पढ़िए आग की नौ बड़ी घटनाएं

नई दिल्ली: लुटियंस दिल्ली के लोग इस काली सुबह को कभी भूल नहीं पाएंगे. सर्दी के मौसम में सुबह पांच बजे लोग आराम से सो रहे होते हैं. लेकिन उनको क्या पता था कि जब उनकी आंखे खुलेगी तो सामने आग की लपटों पर लिपटे जिस्म की चीखें सुनाई देंगी. कुछ ऐसा ही हुआ. दिल्ली में अनधिकृत बैग मैन्युफैक्चरिंग फैक्टरी में रविवार को लगी आग में 43 लोगों की मौत हो गई और बहुत से दूसरे लोग अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. यह घटना बीते 25 सालों में देश में हुई आग दुर्घटनाओं में सबसे गंभीर है.

देश में आग की नौ बड़ी घटनाएं

8 दिसंबर, 2019

लुटियंस दिल्ली में अनधिकृत बैग मैन्युफैक्चरिंग फैक्टरी में रविवार को लगी आग में 43 लोगों की मौत हो गई और बहुत से दूसरे लोग अपने जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं. जिनके साथ ये हादसा हुआ अगर उनकी जुबानी सुनें तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं. यह घटना बीते 25 सालों में देश में हुई आग दुर्घटनाओं में सबसे गंभीर है.

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23 दिसंबर, 1995-डबवाली-हरियाणा

स्कूल के वार्षिक दिवस समारोह के बाद आग व भगदड़ मचने से 442 लोगों की मौत हो गई, जिसमें 225 स्कूली बच्चे थे. हॉल परिसर में 1500 लोग एक शामियाने में जमा थे, जिसके गेट बंद थे.

23 फरवरी 1997-बारिपदा-ओडिशा

यह आग एक संप्रदाय के धार्मिक कार्यक्रम के दौरान लगी और भगदड़ के बाद बारिपदा में 23 फरवरी 1997 को 206 लोगों की मौत हो गई. यह आग हताहतों की संख्या के मामले में दूसरी सबसे बड़ी आग त्रासदी थी. इसके अतिरिक्त भगदड़ में 200 लोगों को चोटें आई, जब भक्त आग से बचने की कोशिश कर रहे थे.

10 अप्रैल 2006-मेरठ-उत्तर प्रदेश

यहां एक उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स मेले के दौरान लगी भीषण आग से 100 लोगों की मौत हो गई. आग लगने का कारण शॉर्ट सर्किट था.

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16 जुलाई, 2004-कुंभकोणम-तमिलनाडु

एक अस्थायी मिडडे मील रसोई घर में लगी आग से 94 स्कूली बच्चों की मौत हो गई. रसोई घर की आग की लपटें पहली मंजिल की कक्षाओं तक पहुंच गई जहां 200 छात्र मौजूद थे.

9 दिसंबर, 2011-कोलकाता-पश्चिम बंगाल

इमारत के बेसमेंट में इलेक्ट्रिक शॉर्ट सर्किस से आग लग गई और इससे आग व धुआं एएमआरआई अस्पताल तक पहुंच गई और 89 लोगों की मौत हो गई.

13 जून, 1997-उपहार सिनेमा

आग की यह भयावह घटना बॉलीवुड फिल्म ‘बॉर्डर’ की स्क्रिनिंग के दौरान हुई, जिसमें 59 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हो गए.

5 सितंबर 2012-शिवकाशी-तमिलनाडु

यह हादसा शिवकाशी में पटाखा मैन्युफैक्चरिंग के दौरान मजदूरों के रासायनों के मिलाने की वजह से विस्फोट से हुआ और आग लग गई, जिसमें 54 लोग मारे गए और 78 लोग घायल हो गए.

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23 जनवरी, 2004-श्रीरंगम-तमिलनाडु

शादी के समारोह के दौरान आग लगने से 50 लोगों की मौत हो गई और 40 लोग घायल हो गए.

15 सितंबर, 2005-खुसरोपुर-बिहार

तीन अनधिकृत पटाखा मैन्युफैक्चरिंग ईकाई में विस्फोट से आग लगने से 35 लोगों की मौत हो गई और 50 से ज्यादा लोग घायल हुए.

सुरक्षित चलें और सुरक्षित रहें

हमारे देश में यातायात के साधनों में नित्य प्रगति आ रही है, जीवन में  शहरों से गाँव की दूरियां निरंतर घाट रही है ,लेकिन इसके साथ यातायात में होने वाले दुर्घटनाओं की संख्या में भी निरंतर वृद्धि हो रहा है.  हमें समाज में जागरूपता लेकर तय समय के अंदर इस दुर्घटनाओं को रोकना होगा.  ताकि हम सुरक्षित चले और  सुरक्षित रहे. सड़क सुरक्षा के लिए यातायात पुलिस तो अपना काम कर रही रही है , हमें भी जगरूप रहना होगा. यातायात नियमों और कानूनों का पालन करें और सड़क दुर्घटनाओं से खुद को और अपने परिवारों को बचाएं. अन्य लोगों को भी सड़क सुरक्षा नियमों से अवगत कराना हमारी सड़कों को सुरक्षित बना सकता है.

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यातायात नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि हर मनुष्य की जान अपने परिवार के लिए बहुत जरूरी है देश के लिए जरूरी है कई सारी सड़क दुर्घटनाओं में हमारे देश के ऐसे महान व्यक्तित्व भगवान को प्यारे हो गए हैं. जिनकी क्षतिपूर्ति आज तक कोई नहीं कर पाया है . इसलिए सड़क दुर्घटनाओं में प्रत्येक महा कई हजार की संख्या में इंसानों की जान जा रही है .

तेज गति से वाहन चलाना शराब पीकर वाहन चलाना सीट बेल्ट ना लगाना दो पहिया वाहन पर हेलमेट ना लगाना यातायात नियमों का पालन करना इन सब कारणों से कई घरों के दिए बुझ गए हैं . जो मनुष्य के लिए पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं छोड़ जाते इसलिए मेरा अपना मानना है. यातायात नियमों का पालन कानून से डर के नहीं बल्कि स्वयं की जिम्मेदारी समझकर अपना फर्ज समझते हुए ,ठीक उसी प्रकार करना चाहिए जैसे मनुष्य भगवान की भक्ति अपना फर्ज समझकर करता है.

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ड्रिंक और  ड्राइव

हमारे देश में शराब पी कर गाड़ी चलना आम बात लगता है. लेकिन इससे होने वाले दुर्घटनाओं का आकंड़ा चौकाने वाला  हैं. आंकड़ों से पता चलता है कि‍ एक्‍सि‍डेंट का सबसे प्रमुख कारण शराब पीकर ड्राइविंग करना है. भारत में इसका आंकड़ा दुनि‍या में सबसे ज्‍यादा है, जहां हर साल करीबन डेढ़ लाख लोग रोड एक्‍सि‍डेंट में मारे जाते हैं. इसमें से 70 फीसदी  मामलों में इसकी वजह शराब पीकर गाड़ी चलाना रहता है.

ड्रिंक करने के उपरांत मनुष्य का मस्तिष्क एवं उसका शरीर ड्राइव करने के लायक नहीं रहता हैं , डिसबैलेंस रहता है ,इसलिए दुर्घटना के प्रबल चांस रहते हैं.  मुख्य कारण यही है, कि  इंसान को जब अपनी जान प्यारी है ,तो उसे सामने वाले की जान की भी उतनी ही वैल्यू समझनी चाहिए. इसलिए कभी भी ड्रिंक करने के उपरांत ड्राइवर नहीं करनी चाहिए.  मनुष्य की जान अनमोल हैं.

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सीट बेल्ट और सुरक्षित ड्राइव

सीट बेल्ट लगाना वाहन चलाते समय नितांत आवश्यक है, जिससे वाहन में बैठे चालक एवं सवारियों की जान सुरक्षित है यदि सड़क दुर्घटना होती है तो मनुष्य अर्थात उसमे बैठा व्यक्ति सीट बेल्ट के कारण सीट से ही चिपका रहता है अचानक से झटका लगने के कारण वह व्यक्ति आगे डेस्क बोर्ड अथवा सीसे में नहीं लगता उसके सीने एवं सिर में चोट आने से बस जाती है जिससे मनुष्य की जान सड़क दुर्घटना में बचने के प्रबल चांस रहते हैं

ओवर स्पीड से बचे

ओवर स्पीड से बचना कोई लापरवाही नहीं बल्कि समझदारी का परिचायक हैं.  समझदार इंसानों ने कहा है ,दुर्घटना से देर भली अर्थात हम अपने मंजिल पर कुछ समय विलंब से पहुंच जाएं,  परंतु सुरक्षित पहुंच जाएं.  यह जरूरी है ,सुरक्षित पहुंचना बहुत आवश्यक हैं.  दुर्घटना ओवर स्पीड के कारण अक्सर होती हैं.  जिनसे वाहन में बैठे व्यक्तियों की जान तक चली जाती है.

अपना वाहन क्षतिग्रस्त हो जाता है , सामने वाले व्यक्ति की जान को भी खतरा रहता है. उनकी भी जान चली जाती है,  हर  इंसान के जान की वैल्यू है.   इसलिए ओवर स्पीड चलना, स्वयं की जान को खतरे में डालना एवं दूसरों की जान से खेलना बिल्कुल अनुचित है.

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वाहन चलाते समय मोबाइल का प्रयोग न करे

वाहन चलाते समय मोबाइल का प्रयोग करना अपनी और  सामने वाले की जान से खेलना है. किसी भी सूरत में वाहन चलाते समय मोबाइल फोन पर बातें न करे और नहीं  ईयर फोन लगाकर सॉन्ग सुनने.  इससे मनुष्य अथवा वाहन चालक अपनी सामने वाले की जान से खेलता है, क्योंकि ईयर फोन लगाने से मनुष्य का ध्यान उस सॉन्ग के वर्णन एवं ख्यालों में रहता है, पीछे वह सामने से आने वाले वाहन के होरन पर ध्यान नहीं रहता है . जिससे सड़क दुर्घटनाएं बढ़ती है.  जान तक चली जाती हैं.

वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करने से भी मनुष्य का ध्यान वाहन चलाने से हट जाता है एवं मोबाइल पर चल रही बातों एवं सामने से जो दूसरा व्यक्ति दूसरी तरफ से मोबाइल पर बात कर रहा होता है. उस पर चला जाता है,उसकी बातों पर ध्यान चला जाता है चालक वाहन तो चला रहा होता है, परंतु हमारा मस्तिष्क पूर्णरूपेण हमारे शरीर के साथ नहीं रहता है, इसलिए सड़क दुर्घटना होने के प्रबल चांस रहते हैं और ऐसी घटनाएं बहुत सारी हुई है. जिनका उदाहरण भारतीय इतिहास में लिखा जा चुका है.

अभी हाल में ही  उत्तरप्रदेश के सहारनपुर में बस ड्राइवर द्वारा मोबाइल पर बात करते समय, बस को खाई में गिरा देना.  जिससे कई व्यक्तियों की मृत्यु हुई.  ऐसी कई सारी उत्तर प्रदेश में अन्य राज्यों में दुर्घटनाएं हुई है मात्र एक व्यक्ति चालक की लापरवाही से कई सारे जाने चली गई है प्रत्येक जान अनमोल है इसलिए कभी भी स्वयं की व अन्य व्यक्ति की जान से ना खेले. वाहन चलाते समय मोबाइल का प्रयोग बिलकुल न करें.

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(हर एक जीवन का महत्व हैं. सड़क सुरक्षा उपायों का अभ्यास करना पूरे जीवन में सभी लोगों के लिए बहुत अच्छा और सुरक्षित है. सड़क पर चलते या चलते समय सभी को दूसरों का सम्मान करना चाहिए और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए. -उत्तर प्रदेश पुलिस  के सब इंस्पेक्टर वरुण पँवार )

सर्विलांस: पुलिस का मारक हथियार

मोबाइल क्रांति ने पुलिस को ऐसा हथियार दे दिया है, जिसे वह कभी खोना नहीं चाहेगी. छोटेबड़े अपराधों की गुत्थी सुलझाने में सर्विलांस का रोल बेहद अहम हो गया है. निगरानी करने और अपराधी तक पहुंचने में इस से बड़ा जरीया कोई दूसरा नहीं है.

वैसे, सर्विलांस को लोगों की निजता में सेंध मान कर विरोध का डंका भी पिटता रहा है कि कानून व सिक्योरिटी के नाम पर पुलिस कब और किस की निगरानी शुरू कर दे, इस बात को कोई नहीं जानता. लेकिन पुलिस न केवल डकैती, हत्या, लूट, अपहरण व दूसरे अपराधों को इस से सुलझाती है, बल्कि अपराधी इलैक्ट्रोनिक सुबूतों के चलते सजा से भी नहीं बच पाते हैं.

क्या है सर्विलांस

आम भाषा में मोबाइल फोन को सैल्युलर फोन व वायरलैस फोन भी कहा जाता है. यह एक इलैक्ट्रोनिक यंत्र है. अपराधियों तक इस की पहुंच आसान हो जाती है. उन की लोकेशन को ट्रेस करने में सब से अहम रोल सर्विलांस का होता है. किसी अपराधी की इलैक्ट्रोनिक तकनीक के जरीए निगरानी करना ही सर्विलांस कहा जाता है.

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80-90 के दशक तक पुलिस अपनी जांच के लिए मुखबिरों पर निर्भर रहती थी, लेकिन साल 1998 में आपसी संचार के लिए मोबाइल कंपनियों के आने के साथ ही अपराधियों ने वारदातों में मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया. पुलिस ने भी इस दिशा में कदम बढ़ाए और सर्विलांस का दौर शुरू हो गया.

इस से निगरानी और अपराध की जांच का तरीका बदल गया. कई बड़ी वारदातों को सर्विलांस के जरीए आसानी से सुलझाया गया, तो यह पुलिस के लिए मारक हथियार साबित हुआ. इस के बाद पुलिस वालों को सर्विलांस के लिए ट्रेनिंग दी जाने लगी.

सर्विलांस ऐसे करता काम

किसी भी अपराध के होने पर सब से पहले पुलिस पीडि़त व संदिग्ध लोगों के मोबाइल नंबरों की मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियों से काल की डिटेल निकलवाती है. इस से कई तरह की जानकारियां मिल जाती हैं यानी कब, कहां व किस से बात की गई. इस के जरीए काल या एसएमएस के समय का पता लगा लिया जाता है.

सभी मोबाइल कंपनियां ऐसा डाटा महफूज रखती हैं. इन कंपनी के मेन स्विचिंग सैंटर (एमसीए) में यह सब डाटा जमा रहता है. सिक्योरिटी संबंधी नियमों का सख्ती से पालन किया जाता है. इतना ही नहीं, वारदात के वक्त कौन कहा था, इस का भी पता चल जाता है.

अगर इस से भी बात नहीं बनती है, तो पुलिस वारदात वाले इलाके के उन सभी मोबाइल नंबरों का पता लगा लेती है जो उस वक्त मोबाइल टावर के संपर्क में थे. यह जरूरी नहीं कि काल की जाए, बिना काल के भी मोबाइल की सक्रियता का पता लगाया जा सकता है.

दरअसल, नैटवर्क सबस्टेशन के मुख्य भाग पब्लिक स्विचिंग टैलीफोन नैटवर्क (पीसीटीएन) की तरंगें मोबाइल फोन पर लगातार पड़ती रहती हैं जिन के जरीए नैटवर्क की तारतम्यता बनी रहती है. वौइस चैनल लिंक का काम टावर ही करता है. ट्रांसीवर के जरीए काल का लेनादेना होता है. डाटा से पता चल जाता है कि किस वक्त कितने मोबाइल टावर के संपर्क में थे. वारदात से पहले या बाद के सक्रिय मोबाइल फोन पर खास नजर होती है.

इस के बाद संदिग्ध नंबरों की निशानदेही कर ली जाती है. यह पता किया जाता है कि नंबर को किस आदमी के एड्रैस प्रूफ पर कंपनी ने अलौट किया है. हालांकि पुलिस के लिए यह काम कई बार भूसे के ढेर से सूई निकालने के समान होता है. हजारों नंबरों में से संदिग्ध नंबरों को ढूंढ़ना आसान काम नहीं होता है. ऐक्सपर्ट इस में दिनरात एक करते हैं. नामपता निकलवा कर संबंधित लोगों से पूछताछ की जाती है.

पुलिस से बचने के लिए बहुत से अपराधी गलत नामपते पर मोबाइल सिमकार्ड खरीदते हैं. नियमों की सख्ती के बाद अब सिमकार्ड खरीदना इतना आसान नहीं रहा. सरकार ने इस के लिए सख्त गाइडलाइंस बना दी हैं.

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सर्विलांस के दूसरे चरण में पुलिस के सर्विलांस ऐक्सपर्ट की टीम संदिग्ध नंबर को ट्रेस कर उसे सर्विलांस पर लगा देती है. सर्विलांस पर लगने के बाद वह कहां आताजाता है, इस का पता पुलिस को चलता रहता है. संभावित ठिकानों और उस की गतिविधियों समेत 6 तरह के खास बिंदुओं से पुलिस अनजान नहीं होती. पुलिस उन के मोबाइल पर हर आनेजाने वाली काल सुनती है. उस की लोकेशन को आसानी से ट्रेस कर अपराधियों तक पहुंच जाती है.

इलैक्ट्रोनिक सुबूतों को झुठलाना किसी के लिए आसान भी नहीं होता. अपराधी शातिराना अंदाज दिखा कर कई बार सब्सक्राइबर आइडैंटिफाई मौड्यूल (सिमकार्ड) बदल लेते हैं, पर हर मोबाइल का अपना इंटरनैशनल मोबाइल इक्यूपमैंट आइडैंटिटी (आईएमईआई) नंबर होता है. सिमकार्ड के बदलते ही उस की इंफोर्मेशन सेवा देने वाली कंपनी तक पहुंच जाती है.

इतना ही नहीं, यह भी पता लगा लिया जाता है कि किस मोबाइल पर कब और कितने नंबरों का इस्तेमाल किया गया. सारा डाटा मिलने पर अपराधियों तक पुलिस की पहुंच हो जाती है.

मोबाइल कंपनियां इस काम में पुलिस को भरपूर सहयोग करती हैं. भारत सरकार द्वारा इस संबंध में सभी मोबाइल कंपनियों को नियमावली दी गई?है. पुलिस को चकमा देने के लिए अपराधी इस में भी हथकंडे अपनाते हैं. वे सिमकार्ड के साथ मोबाइल भी बदलते रहते हैं.

सर्विलांस अपराध और अपराधी दोनों पर ही लगाम लगाता है. मोबाइल फोन चोरी होने की दशा में आईएमईआई नंबर के जरीए ही पुलिस मोबाइल को खोजती है. यह एक ऐसी पहचान है, जिसे किसी भी दशा में मिटाया नहीं जा सकता.

बच नहीं पाते अपराधी

देश के बड़े मामलों की बात करें, तो संसद पर आतंकी हमला, शिवानी भटनागर हत्याकांड व फिरौती के लिए किए गए अपहरण के बड़े मामलों में पुलिस सर्विलांस के जरीए ही खुलासे व गिरफ्तारियां करने में कामयाब रही.

शिवानी भटनागर हत्याकांड में काल डिटेल के आधार पर पुलिस आरोपियों तक पहुंची. संसद हमले में जांच एजेंसी ने पाया कि आतंकवादियों का प्लान पहले से बनाया हुआ था.

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सर्विलांस की उपयोगिता को नकारने वाला कोई नहीं है. पुलिस के लिए यह किसी संजीवनी से कम नहीं है. ट्रेनिंग के दौरान पुलिस वालों को अब ट्रेनिंग सैंटरों में ऐसी तमाम तकनीकों का पाठ भी पढ़ाया जाता है.

मोबाइल के जरीए होने वाले अपराध में अपराधियों के खिलाफ अदालत में सुबूत पेश करना आसान होता है. उन्हें झुठलाना आसान नहीं होता है.

संसद हमले में फैसला देते हुए कोर्ट ने आतंकवादियों से संबंधित मोबाइल फोन के आईएमईआई नंबर व काल डिटेल को अहम सुबूत माना था. सुबूतों के तौर पर मोबाइल व सिमकार्ड की फोरैंसिक ऐक्सपर्ट से जांच भी कराती है, ताकि सुबूत मजबूत हो सकें.

सीमित है अधिकार

ग्लोबल वैब इंडैक्स के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 88.6 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास मोबाइल हैं. 70 फीसदी से ज्यादा आबादी मोबाइल उपभोक्ता हैं.

ये आंकड़े साल 2014 के हैं. यह तादाद लगातार बढ़ती जा रही है. वर्तमान दौर में 10 में से 3 लोगों के पास मोबाइल फोन हैं.

लेकिन किसी के व्यापारिक हितों, निजी जिंदगी में ताकझांक व राजनीतिक दुश्मनी के चलते मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लेना तकनीक के साथसाथ अधिकारों का गलत इस्तेमाल है. पकड़े जाने पर ऐसे पुलिस वालों को सजा देने का नियम है. इस के लिए बने ऐक्ट व संविधान के अनुच्छेद पुलिस को इस की इजाजत नहीं देते.

पुलिस को देश के किसी भी नागरिक का मोबाइल टेप करने का अधिकार नहीं होता. इंटरनल सिक्योरिटी ऐक्ट, पोस्ट ऐंड टैलीग्राफ ऐक्ट और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के जरीए आपराधिक गतिविधियों में लिप्त लोगों के नंबर पुलिस सर्विलांस पर ले सकती है. इस के लिए भी आला अफसरों व शासन की इजाजत लिया जाना अनिवार्य होता है. मोबाइल फोन सेवादाता कंपनी को लिखित प्रस्ताव देना होता है और उचित कारण भी बताया जाता है.

मोबाइल कंपनियां इस के बाद जरूरी डाटा मुहैया कराने के साथ ही उपभोक्ता के मोबाइल के सिगनल पुलिस के मोबाइल पर डायवर्ट कर देती हैं. एक बार नंबर के सर्विलांस पर लगने के बाद न सिर्फ रोजाना की उस की लोकेशन मिल जाती है, बल्कि उस के मोबाइल पर आनेजाने वाली काल को सुनने के साथ टेप भी किया जा सकता है.

निगरानी रखना भी जरूरी

आतंक और अपराध से दोदो हाथ करते देश में सरकार का सैंट्रल मौंनिटरिंग सिस्टम, खुफिया एजेंसियां, सुरक्षा एजेंसियां व पुलिस की विभिन्न यूनिट ला ऐंड और्डर व सुरक्षा के चलते शक होने पर निगरानी करती रहती हैं. उन्हें चंद औपचारिकताओं के बाद यह अधिकार है.

सुरक्षा और गोपनीयता के मद्देनजर इस तकनीक को विस्तृत रूप से और आंकड़ों को उजागर नहीं किया जा सकता. एजेंसियों के ऐसा करते रहने से कई बार बड़ी वारदातों के साथ देश भी खतरों से बचता है.

एक इलैक्ट्रोनिक जासूस हमारे इर्दगिर्द होता है. कई बार पुलिस वाले अपने पद का गलत इस्तेमाल कर किसी के नंबर की काल डिटेल्स निकलवाने के साथ ही फोन टैप कर लेते हैं. इस तरह के चंद मामले सामने आने के बाद अब यह इतना आसान नहीं है. अब उचित कारण बता कर इस की इजाजत बड़े अफसरों से लेनी होती है. गंभीर मामलों में सरकार इस की इजाजत देती है. प्राइवेसी के मद्देनजर सख्त गाइडलाइंस हैं.

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हाईटैक होगी देश की पुलिस

भारतीय पुलिस को ज्यादा से ज्यादा हाईटैक बनाने की कोशिशें लगातार जारी हैं. देश में क्राइम कंट्रोल टैकिंग नैटवर्क सिस्टम (सीसीटीएनएस) लागू करने की योजना है. इस सिस्टम के सक्रिय होते ही अपराधियों को पकड़ना पुलिस के लिए और भी ज्यादा आसान हो जाएगा.

इस योजना के जरीए देश के सभी थाने इंटरनैट के जरीए आपस में जुड़ जाएंगे. किसी अपराधी का पूरा प्रोफाइल औनलाइन मिलने के साथ ही उस की गतिविधियों पर तीखी नजर रखने ब्योरा आपस में लिया व दिया जा सकेगा.

कुछ राज्यों में यह योजना शुरू भी हो चुकी है. उत्तराखंड के सभी थाने सीसीटीएनएस से लैस हैं. उत्तर प्रदेश में भी इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाने लगा है.

अफसरों की राय

ला ऐंड और्डर व राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर सरकारी तंत्र को सक्रिय रहना ही पड़ता है. तकनीक के विकास में हम दावे से कह सकते हैं कि पुलिस हाईटैक हो चुकी है. सर्विलांस पुलिस के लिए निश्चित ही अब एक बड़ा हथियार है.

-जीएन गोस्वामी, पूर्व आईजी उत्तराखंड पुलिस.

संचार क्रांति के दौर में अपराधियों से लड़ने के लिए तकनीकी रूप से और अधिक मजबूत करने के लिए पुलिस वालों को लगातार ट्रेनिंग दी जा रही है.

पुलिस का काम हर हाल में जनता की सुरक्षा करना है. किसी तरह से नियमों का उल्लंघन न हो, इस बात का भी खास खयाल रखा जाता है.

-रमित शर्मा, आईजी उत्तर प्रदेश पुलिस.

हम गृह मंत्रालय की गाइडलाइंस के मुताबिक ही काम करते हैं. समयसमय पर इस बाबत विभाग को निर्देश भी मिलते रहते हैं. गंभीर मामलों में उचित जांचपड़ताल कर के पुलिस को सहयोग किया जाता है. सर्विलांस की प्रक्रिया इतनी आसान नहीं होती.

-आशीष घोष, अफसर, बीएसएनएल.

किसी शख्स को लगता है कि पुलिस व मोबाइल कंपनी द्वारा उस के निजी अधिकारों का हनन हो रहा है, तो वह कानूनी लड़ाई लड़ सकता है. सर्विलांस की पुष्टि होने पर वह शख्स कोर्ट के अलावा मानवाधिकार आयोग भी जा सकता है.

-राजेश कुमार दुबे, वकील इलाहाबाद हाईकोर्ट.

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चालान का डर

छोटेछोटे गुनाहों पर भारी रकम वसूल करना आज किसी भी कोने में खड़े वरदीधारी के लिए वैसा ही आसान हो गया है जैसा पहले सूनी राहों में ठगों और डकैतों के लिए हुआ करता था.

ट्रैफिक को सुधारने की जरूरत है, इस में शक नहीं है पर ट्रैफिक सुधारने के नाम पर कागजों की भरमार करना और किसी को भी जब चाहे पकड़ लेना एक आपातकाल का खौफ पैदा करना है. नियमकानून बनने चाहिए क्योंकि देश की सड़कों पर बेतहाशा अंधाधुंध टेढ़ीमेढ़ी गाडि़यां चलाने वालों ने अपना पैदायशी हक मान रखा था पर जिस तरह का जुर्माना लगाया गया है वह असल में उसी सोच का नतीजा है जिस में बिल्ली को मारने पर सोने की बिल्ली ब्राह्मण को दान में देने तक का विधान है.

ट्रैफिक कानून को सख्ती से लागू करना जरूरी था पर इस में फाइन बढ़ाना जरूरी नहीं. पहले भी जो जुर्माने थे वे कम नहीं थे और यदि उन्हें लागू किया जाता तो उन से ट्रैफिक संभाला जा सकता था, पर लगता है नीयत कुछ और है. नीयत यह है कि हर पुलिस कौंस्टेबल एक डर पैदा कर दे ताकि उस के मारफत घरघर में सरकार के बारे में खौफ का माहौल पैदा किया जा सके. यह साजिश का हिस्सा है.

इस की एक दूरगामी साजिश यह भी है कि ट्रक, टैंपो, आटो, टैक्सी, ट्रैक्टर, बस ड्राइवरों को इस तरह गरीब रखा जाए कि वे कभी न तो चार पैसे जमा कर सकें और न ही अपनी खुद की गाडि़यों के मालिक बन सकें. उन्हें आधा भूखा रखना ऐसे ही जरूरी है जैसे सदियों तक देश के कारीगरों को साल में 2 बार अनाज और कपड़े ही वेतन के बदले दिए जाते थे.

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पहले भी गाड़ीवानों, ठेला चलाने वालों, तांगा चलाने वालों, घोड़े वालों को बस इतना मिलता था कि वे घोड़े पाल सकें. मालिक तो कोई और ही होते थे. ये जुर्माने इतने ज्यादा हैं कि अगर सख्ती से लागू किए गए तो देश फिर पौराणिक युग में पहुंच जाएगा. यह गाज आम शहरी पर कम, उन पर ज्यादा पड़ेगी जो दिन में 10-12 घंटे गाडि़यां चलाते हैं.

आजकल इन कमर्शियल ड्राइवरों के लिए गाड़ी चलाते हुए मोबाइल पर बात करना जरूरी हो गया है ताकि ग्राहक मिलते रहें. ट्रैफिक फाइन ज्यादातर उन्हीं से वसूले जाएंगे या फिर हफ्ता चालू कर दिया जाएगा जैसा शराब के ठेकों, वेश्याओं के कोठों, जुआघरों में होता है. एक इज्जत का काम सरकार ने बड़ी चालाकी से अपराध बना दिया है ताकि एक पूरी सेवादायी कौम को गुलाम बना कर रखा जा सके. यही तो हमारे पुराणों में कहा गया है.

दलितों की अनसुनी

देश का दलित समुदाय आजकल होहल्ला तो मचा रहा है कि उस के हकों पर डाके डालने की तैयारी हो रही है पर यह हल्ला सामने नहीं आ रहा क्योंकि न अखबार, न टीवी और न सोशल मीडिया उन की बातों को कोई भाव दे रहे हैं. दलितों में जो थोड़े पढ़ेलिखे हैं वे देख रहे हैं कि देश किस तरफ जा रहा है पर अपनी कमजोरी की वजह से वे वैसे ही कुछ ज्यादा नहीं कर पा रहे जैसे अमेरिका के काले नहीं कर पा रहे जिन्हें ज्यादातर गोरे आज भी गुलामों की गुलाम सरीखी संतानें मानते हैं. दलितों का हल्ला अनसुना करा जा रहा है.

1947 के बाद कम्यूनिस्ट या समाजवादी सोच के दलितों को थोड़ी जगह देनी शुरू की थी क्योंकि तब गिनती में ज्यादा होने के बावजूद उन का कोई वजूद नहीं था. धीरेधीरे आरक्षण के कारण उन्हें कुछ जगह मिलने लगी तो ऊंची जातियों को एहसास हुआ कि सदियों से जो सामाजिक तौरतरीका बनाया गया है वह हाथ से निकल रहा है.

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उन्होंने मंडल कमीशन लागू करवा कर पिछड़ों को उन गरीब दलितों से अलग किया जो पहले जातिभेद के बावजूद साथ गरीबी में रहते थे और फिर इन पिछड़ों को भगवाई रस पिला कर अपनी ओर मिला लिया. यह काम बड़ी चतुराई और चुपचाप किया गया. लाखों ऊंची जातियों के कर्मठ और अपना पैसा लगाने वाले अलग काम करते हुए, अलग पार्टियों में रहते हुए धीरेधीरे उस समाज की सोच फिर से थोपने लगे जिस में खाइयां सिर्फ गरीबअमीर की नहीं हैं, जाति और वह भी जो जन्म से मिली है और पिछले जन्मों के कर्म का फल है, चौड़ी होने लगीं.

मजे की बात है कि दलितों और पिछड़ों ने इन खाइयों को बचाव का रास्ता मान लिया और खुद गहरी करनी शुरू कर दीं. आज इस का नतीजा देखा जा सकता है कि मायावती को भारतीय जनता पार्टी के पाले में बैठने को मजबूर होना पड़ रहा है और सभी पार्टियों के ऊंची जातियों के लोग बराबरी, आजादी, मेहनत वगैरह के हकों की जगह धर्म का नाम ले कर बहुतों की आवाज दबाने में अभी तो सफल हो रहे हैं.

जातिगत भेदभाव का सब से बड़ा नुकसान यह है कि उस से वे ताकतवर हो जाते हैं जो करतेधरते कम हैं और वे अधपढ़े आलसी हो जाते हैं जिन पर देश बनाने का जिम्मा है. हमारे समाज में खेती, मजदूरी, सेना, कारीगरी हमेशा उन हाथों में रही है जिन के पास न पढ़ाई है, न हक है. आज की तकनीक का युग हर हाथ को पढ़ालिखा मांगता है और जो पढ़ालिखा होगा वह हक भी मांगेगा. दलितों की आवाज दबा कर ऊंची जातियां खुश हो लें पर इस खमियाजा देश को भुगतना होगा. देश के किसान, मजदूर, कारीगर, सैनिक, छोटे काम करने वाले बहुत दिन चुप नहीं रहेंगे. वे या तो देश की जड़ें खोखली कर देंगे या कुछ करने के लिए खुल्लमखुल्ला बाहर आ जाएंगे.

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वैध पार्किंग में ही रखें अपना वाहन, नहीं तो होगा भारी नुकसान

देश में हाल ही में नए ट्रैफिक नियमों को इतना सख्त किया गया कि आम आदमी का चालान के नाम पर पसीना ही छूटने लगा. किसी शख्स का 35,000 रुपए का चालान कटा तो किसी का 52,000 रुपए का. एक शख्स ने तो चालान से बचने के लिए अपनी मोटरसाइकिल में ही आग लगा ली, भले ही बाद में इस करतूत का अंजाम भुगतना पड़ा हो.  वहीं दिल्ली में एक लड़की स्कूटी के पुख्ता कागजात न होने पर पुलिस वालों को आत्महत्या करने तक की धमकी देने लगी. अभी इस ट्रैफिक नियमों की समस्या से जूझ ही रहे थे कि राजधानी वालों को एक और नई परेशानी ने घेर लिया है.

जी हां, राजधानी नई दिल्ली में सड़कों पर अवैध रूप से वाहन खड़े करने पर अब भारी जुर्माना देना पड़ सकता है. इसके अलावा वाहन मालिक को चालान के अलावा अधिक टोइंग यानी वाहन को उठा कर ले जाने वाला शुल्क व उसे रखे जाने का शुल्क अलग से देना होगा.

नई पार्किंग नीति के तहत यह शुल्क वाहनों की अलगअलग कैटेगरी  के हिसाब से 200 रुपए से ले कर 2,000 रुपए तक होगा.

यदि मालिक अपने वाहन को छुड़ाने के लिए आगे नहीं आता है तो 90 दिन के बाद वाहन को नीलाम कर दिया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक, नई पार्किंग नीति 30 सितंबर से पहले  लागू की जाएगी.

मतलब, दिल्ली सरकार दिल्ली मेंटेनेंस एंड मैनेजमेंट औफ पार्किंग रूल्स 2017 के नाम से तैयार की गई पार्किंग नीति को 30 सितंबर से पहले हर हाल में अधिसूचित कर देगी.

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यह नीति जहां लोगों को जाम से छुटकारा दिलाएगी, वहीं सड़कों पर गलत तरीके से खड़े वाहनों से होने वाली समस्या को भी दूर करेगी.

इस नीति के अनुसार 60 फुट से अधिक चौड़ी सड़कों पर अवैध पार्किंग के मामले में यातायात पुलिस को वाहनों को उठाने का अधिकार होगा. वहीं इस से कम चौड़ी सड़कों पर वाहनों को उठाने और जुर्माना लगाने की जिम्मेदारी संबंधित सिविक एजेंसी की होगी.

कोई भी खटारा वाहन जो 60 फुट से कम चौड़ी सड़क पर खड़ा मिलेगा,  उसे सिविक एजेंसी जब्त करेगी.

ऐसे वाहन 60 फुट या इस से अधिक चौड़ी सड़कों पर खड़े मिलेंगे तो उसे यातायात पुलिस और सिविक एजेंसी की टीम जब्त करेगी. वाहन को उठा कर ले जाने का शुल्क भी पहले से अधिक वसूला जाएगा.

कार का पहले टोइंग शुल्क 200 रुपए था, जोकि नई नीति के तहत 400 रुपए होगा. वाहन को रखे जाने का शुल्क उसे उठाए जाने के 48 घंटे बाद शुरू होगा और इस के बाद प्रतिदिन के हिसाब से शुल्क वसूला जाएगा.

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यदि वाहन नो पार्किंग में खड़ा किया गया है तो संबंधित एजेंसी उसे उठा कर ले जाएगी. इस पर चालान के अलावा टोइंग शुल्क और वाहन को रखे जाने का शुल्क प्रतिदिन के हिसाब से देना होगा.

वहीं, एक सप्ताह से ज्यादा समय तक वाहन रखे जाने पर जुर्माना राशि दोगुनी हो जाएगी. यदि जब्त किया गया वाहन 90 दिन के अंदर नहीं छुड़ाया जाता है तो वाहन मालिक को नोटिस दिया जाएगा कि 15 दिन के अंदर वाहन छुड़ा लें.  यदि मालिक नियत समय पर वाहन को छुड़ाने में असफल रहता है तो वाहन की नीलामी कर दी जाएगी.

सचेत हो जाइए, नया नियम कमरतोड़ महंगाई में और ज्यादा कमर तोड़ देगा.

आप की जेब पर अब डाका डालने का दूसरा प्लान है. कितना बचोगे सरकार की पैनी नजरों से.

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