गहरी पैठ

किसानों की मांगों को न मान कर भारतीय जनता पार्टी एक ऐसी भूल कर रही है जिस के लिए उसे लंबे समय तक पछताना पड़ेगा. यह सोच कर भारतीय जनता तो हिंदूमुसलिम, राम मंदिर, यज्ञशालाओं, पाखंडी पूजापाठों से बहकाई जा सकती है, एक छलावा है. किसानों को दिख गया है कि भारतीय जनता पार्टी के कृषि कानूनों से उन को कोई फायदा नहीं होगा और इसीलिए धीरेधीरे ही सही, यह आंदोलन हर जगह पनप रहा है.

भाजपा को अगर खुशी है कि सारे देश में एकदम सारे किसान उठ खड़े नहीं हुए तो यह बेमतलब की बात है. किसानों के लिए किसी आंदोलन में भाग लेना आसान नहीं क्योंकि उन के लिए खेती जरूरी है और 10-20 दिन धरने पर बैठ कर या जेल में बंद रह कर फसल की देखभाल नहीं की जा सकती, इसलिए हर गांव के कुछ लोग ही आंदोलन में हिस्सा लेते हैं और वे भी हर रोज नहीं, केवल तभी जब उन के आसपास हो रहा है.

वैसे सरकार ने इस कानून को ठंडे बस्ते में डाल रखा है और न मंडियां तोड़ी गई हैं और न न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी बंद हुई है. मंच पर चढ़ कर तो नेता यही कह रहे हैं कि उन्होंने रिकौर्ड खरीद की है. अगर रिकौर्ड खरीद की होती और किसानों के हाथों में पैसा होता तो 90 करोड़ लोगों को 4 माह तक मुफ्त 5 किलो अनाज देने की जरूरत ही नहीं पड़ती.

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अगर गांवों में बरकत हो रही होती तो अमेरिका की तरह यहां मजदूरों का अकाल पड़ रहा होता. यहां तो बेरोजगारी बढ़ रही है जिन में अगर शहरी पढ़ेलिखे युवा हैं तो गांव के अधपढ़े भी करोड़ों में क्यों हैं? किसानों को दिख रहा है कि किस तरह मोटे पैसे से आज टैक कंपनियों ने कितने ही क्षेत्रों में मोनोपौली खड़ी कर ली है. आज छोटी कंपनियों का सामान बिक ही नहीं रहा. एमेजन और फ्लिपकार्ड ने किराने की दुकानों के सामने संकट खड़ा कर दिया है. ओला ने छोटे टैक्सी स्टैंडों की टैक्सियों का सफाया कर डाला है.

अडानीअंबानी चाहे न आएं और हजारों दूसरे व्यापारी भी आएं, किसान कानून छोटे किसानों, छोटे आढ़तियों, छोटे व्यापारियों को लील ले जाएंगे, यह दिख रहा है. इन के पास केवल पीठ पर सामान लाद कर घरघर पहुंचाना रह जाएगा और पैसा भी नहीं दिखेगा.

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किसानी बीघाओं में हजारों एकड़ों में होगी जैसी चाय की होती है, जहां पहले से बहुत बड़ी कंपनियों ने अंगरेजों से पहाड़ खरीदे थे.

किसान कानून मुनाफे वाली सारी उपज अमीरों के हाथों में पहुंचा सकते हैं और सस्ती उपजों को गरीब किसान और गरीब व्यापारी तक ही बांध सकते हैं. इस कानून का समर्थन सिर्फ पूजापाठी लोग कर रहे हैं क्योंकि उन्हें मोदी सरकार हर हालत में बचानी है जो मंदिर के धंधे को और जाति की ऊंचनीच को बनाए रखे. भाजपा अपने आज के मतलब के लिए समाज को इस तरह बांट रही है कि जब लूट हो तो कोई एकदूसरे की तरफदारी करने न आए.

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पंजाब से चला यह आंदोलन आज सिख किसानों के बाद उत्तर प्रदेश के किसानों में बुरी तरह फैल गया है. अब तो भाजपा को रैलियों में लोग मिलने बंद हो गए हैं क्योंकि पहले किसानों को बस की सवारी और 4 बार हलवापूरी के नाम पर हांक कर ले आया जा सकता था. अब वे 100 रुपए लिटर के डीजल को खर्च कर के टेढे़मेढे़ रास्तों से टै्रक्टरों पर इधर से उधर आंदोलन के लिए जा रहे हैं तो इस में दम है, बहुत दम है.

मेरा पति सिर्फ मेरा है- भाग 3: अनुषा ने अपने पति को टीना के चंगुल से कैसे निकाला?

रोती हुई अनुषा बाथरूम में जा कर मुंह धोने लगी तो सास ने दबी आवाज में कहा, ‘‘मैं समझती हूं तुम्हारा दर्द. देखो मैं एक बाबा को जानती हूं. बहुत पहुंचे हुए हैं. वे भभूत दे देंगे या कोई उपाय बता देंगे. सब ठीक हो जाएगा. तुम चलो कल मेरे साथ.’’

अनुषा को बाबाओं और पंडितों पर कोई विश्वास नहीं था. मगर सास समझाबुझा कर जबरन उसे बाबा के पास ले गई. शहर से दूर वीराने में उस बाबा का आश्रम काफी लंबाचौड़ा था. आंगन में भक्तों की भीड़ लगी थी. बाबा की आंखें अनुषा को नशीली लग रही थीं. उस पर बारबार बाबा का भक्तों पर झाड़ू फिराना फिर अजीब सी आवाजें निकालना… अनुषा को बहुत कोफ्त हो रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि टीना को उस की जिंदगी से दूर करने में भला बाबा की क्या भूमिका हो सकती है? इस के लिए तो उसे ही कुछ सोचना होगा. वह चुपचाप बैठ कर आगे का प्लान दिमाग में बनाने लगी.

कुछ समय में उस का नंबर आ गया. बाबा ने वासनाभरी नजरों से उस की तरफ देखा और फिर उस के हाथों को पकड़ कर पास बैठने का इशारा किया. अनुषा को यह छुअन बहुत घिनौनी लगी. वह मुंह बना कर बैठी रही. सास ने समस्या बताई. बाबा ने झाड़ू से उस की समस्या झाड़ देने का उपक्रम किया.

फिर बाबा ने उपाय बताते हुए कहा, ‘‘बच्ची, तुम्हें 18 दिन केवल एक वक्त खा कर रहना होगा और वह भी नमकीन नहीं बल्कि केवल मीठा. इस के साथ ही 18 दिन का गुप्त अनुष्ठान भी चलेगा. काली बाड़ी के पास वाले मंदिर में रोजाना 11 बजे मैं एक पूजा करवाऊंगा. इस में करीब क्व90 हजार का खर्च आएगा.’’

‘‘जी बाबाजी जैसा आप कहें,’’ सास ने हाथ जोड़ कर कहा.

अनुषा उस वक्त तो चुप रही, मगर घर आते ही बिफर पड़ी, ‘‘मांजी, मुझे ऐसे उलजलूल उपायों पर विश्वास नहीं. मैं कुछ नहीं करने वाली. अब मैं अपने कमरे में जा रही हूं ताकि कोई बेहतर उपाय ढूंढ़ सकूं.’’

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अनुषा का गुस्सा देख कर सास चुप रह गई. इधर अनुषा देर रात तक सोचती रही. वह इतनी जल्दी अपनी परिस्थितियों से हार मानने को तैयार नहीं थी. काफी सोचविचार करने पर उसे रास्ता नजर आ ही गया.

अनुषा ने पहले टीना के बारे में अच्छी तरह खोजखबर ली ताकि उस की कमजोर नस पकड़ सके. सारी जानकारी एकत्र की. जल्द ही उसे पता लग गया कि टीना का पति रैडीमेड कपड़ों का व्यापारी है और पास की मार्केट में उस की काफी बड़ी शौप भी है. बस फिर क्या था अनुषा ने अपनी योजना के हिसाब से चलना शुरू कर दिया.

सब से पहले एक ड्रैस खरीदने के बहाने वह उस दुकान में गई. दुकान का मालिक यानी टीना का पति विराज करीब 40 साल का एक सीधासाधा सा आदमी था. सिर पर बाल काफी कम थे. वैसे पर्सनैलिटी अच्छी थी. अनुषा ने बातों ही बातों में बता दिया कि वह भी विराज के शहर की है. फिर क्या था विराज उस पर अधिक ध्यान देने लगा.

अनुषा ने एक महंगा सूट खरीदा और घर चली आई. 2-3 दिन बाद वह फिर उसी दुकान में पहुंची और कुछ कपड़े लिए. विराज ने उस के लिए स्पैशल चाय मंगवाई तो अनुषा भी बैठ कर उस से ढेर सारी बातें करने लगी. धीरेधीरे उस ने यह भी बता दिया कि उस का पति भुवन टीना के औफिस में काम करता है. विराज टीना और भुवन के रिश्ते के बारे में पहले से जानता था. इसलिए अनुषा से और भी ज्यादा जुड़ाव महसूस करने लगा.

अनुषा अब अकसर विराज की शौप पर जाने लगी और उस से देर तक बातें

करती. जल्द ही विराज से उस की दोस्ती इतनी गहरी हो गई कि विराज ने उसे घर आने को भी आमंत्रित कर दिया.

अगले ही दिन अनुषा टीना की गैरमौजूदगी में विराज और टीना के घर पहुंच गई. विराज ने उस की काफी आवभगत की और दोनों ने दोस्त की तरह साथ समय व्यतीत किया. चलते समय अनुषा ने जानबूझ कर टीना के बैड पर कोने में अपना हेयर पिन रख दिया. रात में जब टीना ने वह हेयर पिन देखा तो बौखला गई और विराज से सवाल करने लगी. विराज ने किसी तरह बात को टाल दिया.

मगर 2 दिन बाद ही अनुषा फिर विराज के घर पहुंच गई. इस बार वह बाथरूम में अपना दुपट्टा लटका आई थी.

टीना ने जब लेडीज दुपट्टा बाथरूम में देखा तो आपे से बाहर हो गई और विराज पर उंगली उठाने लगी, ‘‘वह दुपट्टा किस का है विराज, बताओ किस के साथ रंगरलियां मना रहे थे तुम?’’

‘‘पागल मत बनो टीना. मैं तुम्हारी तरह किसी के साथ रंगरलियां नहीं मनाता,’’ विराज का गुस्सा भी फूट पड़ा.

‘‘तुम्हारी तरह? क्या कहना चाहते हो तुम? भूलो मत मेरे पिता के पैसों पर पल रहे हो. मुझे धोखा देने की बात सोचना भी मत.’’

‘‘देखा टीना मैं मानता हूं एक महिला से मेरी दोस्ती हुई है. अनुषा नाम है उस का. मगर वह घर पर सिर्फ चाय पीने आई थी. यकीन मानो हमारे बीच ऐसा कुछ नहीं है जिसे तुम रंगरलियां मनाना कह सको.’’

अब टीना थोड़ी सावधान हो गई थी. उसे महसूस होने लगा था कि बदला लेने के लिए अनुषा उस के पति पर डोरे डाल रही है. टीना ने अब भुवन के घर आनाजाना कम कर दिया मगर उस के साथ वक्त बिताना नहीं छोड़ा.

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इधर अनुषा फिर से विराज के घर पहुंची. इस बार वह विराज के लिए खूबसूरत सा गिफ्ट ले कर आई थी. यह एक खूबसूरत कविताओं का संग्रह था. विराज को कविताओं का बहुत शौक था. 2-3 घंटे दोनों कविताओं पर चर्चा करते रहे. इस बीच योजनानुसार अनुषा ने अपनी इस्तेमाल की हुई एक सैनिटरी नैपकिन टीना के बाथरूम की डस्टबिन में डाल दी. फिर विराज से इजाजत ले कर घर लौट आई.

अनुषा को अंदेशा हो गया था कि आज रात या कल सुबह टीना कोई न कोई ड्रामा जरूर करेगी. हुआ भी यही. सुबहसुबह टीना अनुषा के घर आ धमकी.

वह बाहर से ही चिल्लाती आ रही थी, ‘‘मेरे पति पर डोरे डाले तो अच्छा नहीं होगा अनुषा. मेरा पति सिर्फ मेरा है.’’

हंसती हुई अनुषा किचन से बाहर निकली और बोल पड़ी, ‘‘मान लो मैं तुम्हारे पति पर डोरे डाल रही हूं… बताओ क्या करोगी तुम? मेरे पति पर डोरे डालोगी? वह तो तुम पहले ही कर चुकी हो. आगे बताओ और क्या करोगी?’’

अनुषा का सवाल सुन कर वह बिफर पड़ी. चीखती हुई बोली, ‘‘खबरदार अनुषा जो पति की तरफ आंख उठा कर भी मत देखा. वरना तुम्हारे पति को नौकरी से निकाल दूंगी.’’

‘‘तो निकाल दो न टीना. मैं भी यही चाहती हूं कि वह तुम्हारे चंगुल से आजाद हो जाए. हंसी आती है तुम पर… मेरे पति के साथ गलत रिश्ता रखने में तुम्हें कोई दिक्कत नहीं. मगर तुम्हारे पति की ओर कोई देख भी ले तो तुम्हें समस्या हो जाती है. कैसी औरत हो तुम जो औरत का दर्द ही नहीं समझ सकती? दर्द तुम नहीं सह सकती वह दूसरों को क्यों देती हो?’’

दूर खड़ा भुवन दोनों की बातें सुन रहा था. उस की आंखें खुल गई थीं. मन ही मन अनुषा

की तारीफ कर रहा था कि कितनी सचाई से उस ने गलत के खिलाफ आवाज उठाई थी.

अब तक टीना भी सब के आगे अपना मजाक बनता देख संभल चुकी थी. अनुषा की बातों का असर हुआ था या फिर खुद पर जब बीती तो उस जलन के एहसास ने टीना को सोचने पर विवश कर दिया. उस के पास कोई जवाब नहीं था.

घर लौटते समय वह फैसला कर चुकी

थी कि आज के बाद भुवन पर अपना कोई हक नहीं रखेगी.

Satyakatha- ऊधमसिंह नगर में: धंधा पुराना लेकिन तरीके नए- भाग 1

सौजन्य- सत्यकथा

सदियों पहले उस दौर की बात है, जब देश में राजेरजवाड़ों का अपना साम्राज्य हुआ करता था. समूचे इलाके में उन की तूती बोलती थी. उन के मनोरंजन के 2 ही मुख्य साधन हुआ करते थे. एक, जंगली जानवरों का शिकार करना और दूसरा, सुंदर स्त्री की लुभावनी अदाओं के नाचगाने का आनंद उठाने के अलावा यौनाचार में लिप्त हो जाना.

ऐसा ही कुछ आज के उत्तराखंड स्थित ऊधमसिंह नगर के काशीपुर में था. तब काशीपुर के कई मोहल्ले तो इस के लिए दूरदूर तक विख्यात थे. उस मोहल्ले की मुख्य सड़क के दोनों ओर वेश्याएं रहती थीं.

देह व्यापार में लिप्त ऐसी औरतें अब वैश्या कहलाना पसंद नहीं करतीं, उन्हें सैक्स वर्कर कहा जाता है. यहां पर कई छोटेबड़े नगरों के लोग अपनी कामपिपासा शांत करने आते थे. बाद में ऐसी औरतों की संख्या बढ़ने पर उन के धंधे को जबरन बंद करवाना पड़ा.

सामाजिक दबाव और प्रशासन की सख्ती के आगे इन वेश्याओं को नगर छोड़ कर जाने पर मजबूर होना पड़ा था. उस के बाद उन्होंने मेरठ शहर के लिए पलायन कर लिया था. उन्हीं में कुछ वेश्याएं ऐसी भी थीं, जिन्होंने नगर के आसपास रह कर गुप्तरूप से चोरीछिपे धंधे में लिप्त रहीं. वही सिलसिला बदस्तूर आज भी जारी है.

पुलिस समयसमय पर उन के ठिकानों पर छापामारी करती रहती है. उन्हें हिरासत में ले कर नारी सुधार गृह या जेल भेज दिया जाता है.

बात 30 जुलाई की है. पुलिस को जानकारी मिली थी कि काशीपुर के ढकिया गुलाबो मोहल्ले का एक दोमंजिला मकान काफी समय से देह व्यापार का ठिकाना बना हुआ है. इस जानकारी को ध्यान में रखते हुए सीओ अक्षय प्रह्लाद कोंडे के निर्देश पर एक पुलिस टीम गठित की गई.

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टीम में महिला इंसपेक्टर धना देवी, कोतवाली एसएसआई देवेंद्र गौरव, टांडा चौकी इंचार्ज जितेंद्र कुमार, कांस्टेबल भूपेंद्र जीना, देवानंद, कांस्टेबल गिरीश कांडपाल, दीपक, मुकेश कुमार शामिल थे.

पुलिस टीम ने काफी सावधानी से छापेमारी को अंजाम दिया. सभी पुलिसकर्मी सादे कपड़ों में थे. छापेमारी में उन्हें बताए गए ठिकाने से 4 महिलाएं और 2 पुरुषों को धर दबोचने में सफलता मिली.

वे मकान के अलगअलग कमरों में आपत्तिजनक स्थिति में पाए गए थे. देह व्यापार मामले में आरोपी को रंगेहाथों पकड़ना जरूरी होता है. वरना वे संदेह के आधार पर आसानी से छूट जाते हैं. इस छापेमारी में देहव्यापार की सरगना फरार हो गई. पकड़े गए आरोपियों को पूछताछ के बाद जेल भेज दिया गया.

वैसे काशीपुर में इस तरह की छापेमारी पहली बार नहीं हुई थी. पहले भी कई बार इलाके में देह व्यापार के ठिकानों पर छापेमारी हो चुकी थी. देह के गंदे धंधे में लगे लोग हमेशा अड्डा बदलते रहते हैं.

देह व्यापार के धंधे में आधुनिकता और बदलाव कई रूपों में सामने आया है, जिस का एक मामला हल्द्वानी पुलिस के सामने 3 अगस्त को आया. पुलिस को सूचना मिली कि हाइडिल गेट स्थित स्पा सेंटर में काफी समय से देह व्यापार का खुला खेल चल रहा है.

इस सूचना के आधार पर हल्द्वानी सीओ शांतनु पराशर ने एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की टीम को साथ ले कर स्पा सेंटर पर छापा मारा. छापेमारी के दौरान एक युवक को युवती के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा गया.

स्पा सेंटर में पुलिस की रेड पड़ते ही हलचल मच गई. सेंटर की संचालिका दिल्ली निवासी सुमन और स्वाति वर्मा फरार हो गईं. जबकि सेंटर के मैनेजर पश्चिम बंगाल के वरुणपारा वारूईपुरा, निवासी नादिया पकड़े गए.

छापेमारी के दौरान स्पा सेंटर से देह व्यापार से संबंधित कई आपत्तिजनक वस्तुएं भी बरामद हुईं. यहां तक कि उस के बेसमेंट से 9 लड़कियां निकाली गईं.

उन में 2 उत्तर प्रदेश, एक मध्य प्रदेश, एक मणिपुर, 2 पश्चिम बंगाल और 3 हरियाणा की थीं. पकड़ा गया युवक आशीष उनियाल काठगोदाम का रहने वाला निकला. वह एक निजी कंपनी में काम करता था.

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स्पा सेंटर में सुनियोजित तरीके से देह व्यापार का धंधा चलाया जा रहा था. धंधेबाजों ने बड़े पैमाने पर मसाज की आड़ में यौनाचार के सारे इंतजाम कर रखे थे.

वहां से पकड़ी गई सभी युवतियों के रहने की व्यवस्था सेंटर के बेसमेंट में की गई थी. उन के खानेपीने की पूरी सुविधाएं वहीं की गई थीं.

ग्राहक को स्पा सेंटर आने से पहले ही वाट्सऐप पर युवती की फोटो दिखा कर उस का सौदा कर लिया जाता था. ग्राहक को युवतियों के टाइम के हिसाब से अपौइंटमेंट तय किया जाता था.

स्पा सेंटर आते ही ग्राहक को रिसैप्शन पर बाकायदा बिल चुकाना होता था, जो स्पा से संबंधित होते थे. उस के बाद उसे कमरे में बने केबिन में जाने की इजाजत मिलती थी.

अपने फिक्स टाइम पर ग्राहक स्पा सेंटर पहुंच जाता था. उन्हें स्पीकर पर आवाज लगाई जाती थी. उस के साथ फिक्स युवती को इस की सूचना पहले होती थी और कुछ समय में ही अपने ग्राहक के पास चली जाती थी. एक युवती को एक दिन में 3 सर्विस देनी होती थी.

अगले भाग में पढ़ें- क्या  देह व्यापार का धंधा बंद हुआ?

इंतजार- भाग 3: क्यों सोमा ने अकेलापन का सहारा लिया?

महेंद्र पढ़ालिखा तो था ही, वह अब पूरे एरिया का इंस्पैक्टर बन गया था.

प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत एक घर के लिए सोमा का नाम निकल आया था. उस के लिए

एक लाख रुपए जमा करने थे. नाम उस का निकला था पैसे भी उसी के नाम पर जमा होने थे. लेकिन महेंद्र ने निसंकोच पलभर में पैसे उस के नाम पर दे दिए. अब उस का अपना मकान हो गया था.

मकान मिलते ही वे दोनों बस्ती से दूर इस कालोनी में आ कर रहने लगे थे.

सोमा को अपने जीवन में सूनापन लगता. जब उस से सब अपने पति या बच्चों की बात करतीं, तो उस के दिल में कसक सी उठती थी कि काश, उस का भी पति होता, परिवार और बच्चे हों. लेकिन महेंद्र ने उस से दूरी बना कर रखी थी. उस ने लालची निगाहों से कभी उस की ओर देखा भी नहीं था.

जबकि सोमा के सजनेसंवरने के शौक को देखते हुए महेंद्र बालों की क्लिप, नेलपौलिश, लिपस्टिक आदि लाता रहता था. कभी सूट तो कभी साड़ी भी ले आता था. एक दिन लाल साड़ी ले कर आया था, बोला, ‘सोमा, यह साड़ी पहन, तेरे पर लाल साड़ी खूब फबेगी.’

‘साड़ी तो तू सच में बड़ी सुंदर लाया है. लेकिन इसे भला पहनूंगी कहां, बता?’

‘हम दोनों इतवार को पिक्चर देखने चलेंगे, तब पहनना.’ वह शरमा गई थी.

दोनों के बीच पतिपत्नी का रिश्ता नहीं था, लेकिन दोनों साथसाथ एक ही घर में रहते थे.

वह कमरे में सोती तो महेंद्र बाहर बरामदे में. उस के अपने घर की खबर मिलते ही सूरज जाने कहां से प्रकट हो गया और पूरी कालोनी में महेंद्र की रखैल कह कर गालीगलौज करते हुए पति का हक जमाने लगा.

महेंद्र को बोलने की जरूरत ही नहीं पड़ी थी. सोमा अकेले ही सूरज का सामना करने के लिए काफी थी. उस की गालियों के सामने उस की एक नहीं चली थी और हार कर वह लौट गया था.

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कई बार रात के अंधेरे में वह करवटें बदलती रह जाती थी. समाज की ऊलजलूल बातें और लालची मर्दों की कामुक निगाहें, मानो वह कोई ऐसी मिठाई है, जिस का जो चाहे रसास्वादन कर सकता है.

महेंद्र के साथ रहने से वह अपने को सुरक्षित महसूस करती थी. बैंक में अकाउंट हो या कोई भी फौर्म, पति के नाम के कौलम को देखते ही उस के गले में कुछ अटकने लगता था.

वह महेंद्र की पहल का मन ही मन इंतजार करती रहती थी.

महेंद्र अपनी बात का पक्का निकला था, उस ने भी सोमा का मान रखा था.

दोनों साथ रहते, खाना खाते, घूमने जाते लेकिन आपस में एक दूरी बनी  हुई थी.

‘सोमा, कल काम की छुट्टी कर लेना.’

‘क्यों?’

‘कल आर्य कन्या स्कूल में आधार कार्ड के लिए फोटो खिंचवाने चलना है. फोटो खींची जाएगी, अच्छे से तैयार हो कर चलना.’

वह मुसकरा उठी थी.

अगले दिन उस ने महेंद्र की लाई हुई साड़ी पहनी, कानों में ?ामके पहने थे. उस ने माथे पर बिंदिया लगाई. फिर आज उस के हाथ मांग में सिंदूर सजाने को मचल रहे थे.

हां, नहीं, हां, नहीं, सोचते हुए उस ने अपनी मांग में सिंदूर सजा लिया था. हाथों में खनकती हुई लाल चूडि़यां, आज वह नवविवाहिता की तरह सज कर तैयार हुई थी. आईने में अपना अक्स देख वह खुद शरमा गई थी.

महेंद्र उस को देख कर अपनी पलकें ?ापकाना ही भूल गया था. वह बोला, ‘क्या सूरज की याद आ गई तुम्हें?

वह इतरा कर बोली, ‘चलो, फोटो निकलवाने चलना है कि नहीं?’

सोमा को इतना सजाधजा देख महेंद्र उस का मंतव्य नहीं सम?ा पा रहा था.

वह चुपचाप उस के साथ चल दिया था. वहां फौर्म भरते समय जब क्लर्क ने पति का नाम पूछा तो एक क्षण को  वह शरमाई, फिर मुसकराती हुई  तिरछी निगाहों से महेंद्र को देखते  हुए उस का हाथ पकड़ कर बोली  थी, ‘महेंद्र’.

महेंद्र के कानों में मानो घंटियां बज उठी थीं. इन्हीं शब्दों का तो वह कब से इंतजार कर रहा था. वह अभी भी विश्वास नहीं कर पा रहा था कि सोमा ने उसे आज अपना पति कहा है.

रात में वह रोज की तरह अपने कमरे में जा कर लेट गया था. आज खुशी से उस का दिल बल्लियों उछल रहा था. लेकिन वह आज भी अपनी खुशी का इंतजार कर रहा था.

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आज नवविवाहिता के वेश में सजधज कर अपनी मधुयामिनी के लिए सोमा आ कर अपने प्रेमी की बांहों में सिमट गई थी.

अब उस के मन में समाज का कोई भय नहीं था कि महेंद्र जाट है और वह वाल्मीकि. अब वे केवल पतिपत्नी हैं. वह मुसकरा उठी थी.

महेंद्र की आवाज से वह वर्तमान में लौटी थी, ‘‘सोमा, दरवाजा तो खोलो, मैं कब से इंतजार कर रहा हूं.’’

रिचा चड्ढा और अली फजल बनाएंगे पॉलिटिकल थ्रिलर वेब सीरीज

अभिनेत्री रिचा चड्ढा और उनके निजी जीवन के प्रेमी व अभिनेता अली फजल अक्सर सामाजिक मुद्दो पर मुखरता के साथ अपनी बात कहते रहते हैं. इतना ही नही रिचा चड्ढा और अली फजल ने मिलकर अपना खुद को प्रोडक्शन हाउस ‘‘पुशिंग बटनंस स्टूडियो’’ की स्थापना कर सामाजिक मुद्दों पर विचारोत्तेजक कहानियां परोसने का निर्णय लिया है. इसी के तहत रिचा चड्ढा व अली फजल पहली फिल्म कामुकता की वर्जनाओं को चुनौती देने वाली फिल्म बना रही हैं, जिसका नाम ‘‘गर्ल्स विल बी गर्ल्स’’.

इस फिल्म का निर्देशन शुचि तलाती करने वाली हैं. फिल्म की कहानी उत्तर भारत के पहाड़ी इलाके में स्थित एक आवासीय विद्यालय की 16 वर्षीय छात्रा के इर्द गिर्द घूमती है. इस फिल्म की शूटिंग शुरू करने की सारी तैयारियं पूरी हो गयी हैं. तो वहीं अब रिचा और अली फजल ने अपने प्रोडक्शन हाउस के तहत ही राजनीतिक रोमांचक वेब सीरीज बनाने की तैयारी शुरू कर दी है.

सूत्रों की माने तो यह बहुत लंबी और कई सीजन तक चलने वाली राजनीतिक वेब सीरीज होगी. इस वेब सीरीज में लालच, महत्वाकांक्षा और असीमित शक्ति की कहानी है. सूत्रो की माने तो इस वेब सीरीज से अभिनेत्री मनिषा कोईराला लंबे समय बाद वापसी करेंगी, जो कि इसमें मुख्य भूमिका निभाएंगी. इसका लेखन विशाल पॉल और अंगशुमान बिस्वास कर रहे हैं.

कुछ समय पहले प्रदर्शित राजनीतिक फिल्म ‘‘मैडम चीफ मिनिस्टर’’ में दलित मुख्यमंत्री का किरदार निभा चुकी अभिनेत्री रिचा चड्ढा अभी इस संबंध में कुछ भी बताने को तैयार नही है, मगर सूत्रों का दावा है कि इस अनाम वेब सीरीज की कहानी का केंद्र एक दलित महिला है, जो कि पहली राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनने के बाद बड़ी तेजी से कुशल राजनीतिज्ञ के तौर पर उभरती है. यूं तो इसकी कहानी काल्पनिक है, मगर कुछ वास्तविक घटनाक्रम भी जोड़े जा रहे हैं. कहानी में उसकी राजनेता के तौर पर क्षमता के साथ भावनात्मक उत्थान की दास्तान है.

वैसे तो पिछले कुछ समय में भारतीय राजनीति को लेकर कुछ वेब सीरीज आयी हैं और कुछ अन्य निर्माणाधीन हैं, मगर रिचा चड्ढा के करीबियों का दावा है कि यह वेब सीरीज सभी राजनीतिक फिल्मों व राजनीतिक वेब सीरीज से जुदा किस्म की होगी.

कश्मीर के 100 सालों के इतिहास पर बन रही है वेब सीरीज ‘‘कश्मीर-एनिग्मा ऑफ पैराडाइज‘’

बौलीवुड के फिल्मकार कश्मीर की वादियों में अपनी फिल्म के गाने फिल्माते रहे हैं, मगर अब तक किसी भी फिल्मकार ने कश्मीर, कश्मीर के इतिहास व वहां के लोगों को लेकर कोई फिल्म नहीं बनायी. अब पहली बार पत्रकार से फिल्मकार बने अतुल अग्रवाल ने कश्मीर के 1920 से 2020 यानी कि सौ वर्ष के इतिहास को वेब सीरीज ‘‘कश्मीर: एनिग्मा ऑफ पैराडाइज’’ के माध्यम से पेश करने का बीड़ा उठाया है.

यह एक मेगा वेब सीरीज प्रोजेक्ट है,जिसके पहले सीजन में 45 मिनट के 10 एपिसोड होंगे. 18 सितंबर से कश्मीर में फिल्मायी जा रही इस वेब सीरीज में रजनीश दुग्गल, इनामुलहक, सज्जाद डेलाफ्रूज, इहाना ढिल्लों, आकांक्षा पुरी, डेलबर आर्य, महेश बलराज जैसे कलाकार अभिनय कर रहे हैं.

पहले शिड्यूल में 1947 में कश्मीर पर कबाइली हमले के युद्ध के दृश्यों का फिल्मांकन किया जा रहा है और इन युद्ध के दृश्यों का निर्देशन एक्शन डायरेक्टर सुनील रॉड्रिग्स कर रहे हैं. अतुल अग्रवाल निर्देशित वेब सीरीज ‘‘कश्मीरः एनिग्मा आफ पैराडाइज’’ का निर्माण ‘वन इंडिया मूवी एंटरटेनमेंट’ के बैनर तले राकेश पटेल, राकेश लाहोटी, कौशल पटेल, संजय दत्ता और हिमांशु भाई शाह कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश निवासी अतुल अग्रवाल ने एम.फिल. की डिग्री हासिल करने के बाद पत्रकार के रूप में अपने कैरियर की शुरूआत की थी. आजतक, काल चक्र समाचार पत्रिका, जनसत्ता और एनबीटी जैसे विभिन्न मीडिया कंपनी में काम करने के बाद उन्होंने प्रोडक्शन और निर्देशन में जाने का फैसला किया और जी एंटरटेनमेंट नेटवर्क पर टेलीविजन श्रृंखला ‘भारत एक दर्शन‘ का निर्देशन किया. उन्होंने टेलीविजन विज्ञापनों के साथ-साथ कई दक्षिण फिल्मों और बौलीवुड फिल्मों का निर्देशन भी किया है.

इस वेब सीरीज के संदर्भ में अतुल अग्रवाल कहते हैं- ‘‘हमने 18 सितंबर 200 क्रू मेंबर्स के साथ लगातार 120 दिन शूटिंग करने की योजना बनाकर काम शुरू किया है. मैं इस वेब सीरीज को लेकर अति उत्साहित हूं. कश्मीर भारत के स्वर्ग के रूप में जाना जाता है और अतीत में कई फिल्में कश्मीर की पृष्ठभूमि के रूप में बनाई गई हैं. हमारी वेब श्रृंखला सुंदर राज्य और उसमें रहने वाले लोगों के इर्द-गिर्द बुनी गई कहानियों पर केंद्रित होगी.‘‘

अपने हिस्से की जिंदगी- भाग 3: क्यों कनु मोबाइल फोन से चिढ़ती थी?

Writer- Er. Asha Sharma

कनु अपने साधारण मोबाइल में नैट यूज नहीं करती है, इसीलिए न तो व्हाट्सऐप पर वह दिखाई देती है और न ही किसी और सोशल साइट पर उस का कोई अकाउंट है. उस की कोई पर्सनल मेल आईडी भी नहीं है. हां एक औफिसियल मेल आईडी जरूरी है जिस की जानकारी सिर्फ उस के स्टाफ मैंबर्स को ही है और उसे वह अपने लैपटौप पर ही इस्तेमाल करती है. बहुत मना करने पर भी निमेश उस पर अकसर पर्सनल मैसेज डाल देता है, मगर पढ़ने के बाद भी कनु उसे कोई जवाब नहीं देती.

अगले दिन जैसे ही कनु कौल सैंटर पहुंची, निमेश तुरंत उस के पास आया और बोला, ‘‘कनु तुम से कोई जरूरी बात करनी है.’’

‘‘फ्री हो कर करती हूं,’’ कह कनु ने उसे टाल दिया. पूरा दिन निमेश उस के फ्री होने का इंतजार करता रहा, मगर कनु उसे नजरअंदाज करती रही और शाम को चुपचाप वहां से निकल गई. अभी उसे घर पहुंचे 1 घंटा ही हुआ था कि निमेश भी पीछेपीछे आ गया. क्या करती कनु. घर आए मेहमान को अंदर तो बुलाना ही था. मगर उस एक कमरे के घर में उसे बैठाने की जगह भी नहीं थी.

‘चलो अच्छा ही हुआ… आज हकीकत अपनी आंखों से देख लेगा तो इस के इश्क का बुखार उतर जाएगा…’ सोचती हुई कनु उसे भीतर ले गई. कमरे में 3 चारपाइयां लगी थीं. एक पर सोनू और एक पर दादी सो रहे थे.

तीसरी शायद कनु की थी. निमेश खाली चारपाई पर चुपचाप बैठ गया. कनु चाय बना कर ले आई. दादी को सहारा दे कर तकिए के सहारे बैठा कर उस ने एक कप दादी को थमाया और एक निमेश की तरफ बढ़ा दिया. निमेश चुपचाप चाय पीता रहा. सोच कर तो बहुत आया था कि कनु से यह कहूंगा, वह कहूंगा, मगर यहां आ कर तो उस की जबान तालू से ही चिपक गई थी. एक भी शब्द नहीं निकला उस के मुंह से. चाय पी कर निमेश ने ‘चलता हूं’ कह कर उस से बिदा ली.

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1 सप्ताह हो गया कनु को निमेश कहीं नजर नहीं आया. मन ही मन सोचा कि निकल गई न इश्क की हवा… फिर सोचा कि इस में बेचारे निमेश की क्या गलती है… कुदरत ने मेरी जिंदगी में प्यार वाला कौलम ही खाली रखा है. निमेश ठीक ही तो कर रहा है… अब कोई जानबूझ कर जिंदा मक्खी कैसे निगल सकता है… सपने देखने की उम्र में कोई जिम्मेदारियों के लबादे भला क्यों ओढ़ेगा?

शाम को अचानक पापा को घर आया देख कर कनु को बहुत आश्चर्य हुआ. ‘2 साल से सोनू बिस्तर पर है, मगर पापा ने कभी आ कर देखा तक नहीं कि वह किस हाल में है… यहां तक कि उन की अपनी मां के चोटिल होने तक की खबर सुन कर भी उन्होंने उन की कोई खैरखबर नहीं ली… आज जरूर कुछ सीरियस बात है जो पापा को यहां खींच लाई है… क्या बात हो सकती है…’ कनु का दिल तेजी से धड़कने लगा.

‘‘कनु, मुझे माफ कर दे बेटी. मैं सिर्फ अपनी खुशियां ही तलाश करता रहा, तेरी खुशियों के बारे में जरा भी नहीं सोचा… धिक्कार है मुझ जैसे बाप पर… मुझे तो अपनेआप को पिता कहते हुए भी शर्म आ रही है… भला हो निमेश का जिस ने मेरी आंखें खोल दी वरना पता नहीं और कितने गुनाहों का भागी बनता मैं…’’ पापा ने कनु के  हाथ अपने हाथ में लेते हुए भर्राए गले से कहा.

‘‘अच्छा तो ये सब निमेश का कियाधरा है… उसे कोई अधिकार नहीं है इस तरह उस के घरेलू मामले में दखल देने का…’’ पापा के मुंह से निमेश का नाम सुनते ही कनु का पारा चढ़ गया. उस ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, ‘‘पापा, आप हमारी फिक्र न करें… हम सब ठीक हैं… सोनू और दादी की देखभाल मैं कर सकती हूं… बोझ नहीं हैं वे दोनों मेरे लिए…’’ बरसों से मन के भीतर दबी कड़वाहट धीरेधीरे पिघल कर बाहर आ रही थी.

‘‘मैं अपने किए पर पहले ही बहुत पछता रहा हूं, मुझे और शर्मिंदा मत करो कनु. मां और सोनू तुम्हारी नहीं बल्कि मेरी जिम्मेदारी है…’’ पापा ने ग्लानि से कहा.

तभी कनु ने निमेश को आते हुए देखा तो नाराजगी से अपना मुंह फेर लिया. कनु के पापा ने भी उसे देख लिया था. बोले, ‘‘सोनू और मां को तो मैं अपने साथ ले जाऊंगा, मगर एक और बड़ी जिम्मेदारी है मुझ पर पिता होने की… उस से अगर मुक्ति मिल जाती तो मैं गंगा नहा लेता.’’ कनु ने प्रश्नवाचक नजरों से उन की तरफ देखा.

‘‘कनु, निमेश बहुत ही अच्छा जीवनसाथी होगा… तुम्हें बहुत खुश रखेगा…. तुम्हें राजी करने के लिए इस ने क्याक्या पापड़ नहीं बेले… तुम बस हां कर दो… इसे इस के प्यार का प्रतिदान दे दो,’’ पापा ने निमेश की वकालत करते हुए कनु से मनुहार की.

‘‘अगर आप सोनू और दादी को अपने साथ ले जाएंगे तो क्या आप की पत्नी को एतराज नहीं होगा?’’ कनु ने अपनी कड़वाहट जाहिर की.

‘‘कौन पत्नी… कैसी पत्नी? वह औरत तो 2 साल पहले ही मुझे यह कह कर छोड़ गई थी कि जो अपनी मां और बच्चों का नहीं हुआ वह मेरा कैसे हो सकता है… वैसे सही ही कहा था उस ने… मुझे आईना दिखा दिया था उस ने… मगर मुझ में ही हिम्मत नहीं बची थी तुम्हारा सामना करने की… क्या मुंह ले कर आता तुम्हारे पास… मैं एहसानमंद हूं निमेश का जिस ने मुझे हिम्मत बंधाई और अपनी जिम्मेदारी निभाने का हौसला दिया…’’ कनु के पापा की आंखों से आंसू बह चले.

कनु ने प्यार से निमेश की तरफ देखा तो वह शरारत से मुसकरा रहा था. बोला, ‘‘कनु, मैं बेशक छोटी सी नौकरी करता हूं, ज्यादा पैसा नहीं हैं मेरे पास… मगर मैं तुम से वादा करता हूं कि तुम्हें कोई कमी नहीं रहने दूंगा… तुम्हारे हिस्से की जिंदगी अब खुशियों से भरपूर होगी.’’

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‘‘मैं सोनू और मां के लिए ऐंबुलैंस मंगवाता हूं. तुम तब तक अपना जरूरी सामान पैक कर लो,’’ कनु के पापा ने उसे लाड़ से कहा. फिर निमेश की तरफ मुड़ कर बोले, ‘‘तुम इस रविवार अपने घर वालों को हमारे यहां ले कर आओ… रिश्ते की बात घर के बड़ों के बीच हो तो ही अच्छा लगता है.’’

अपने आंसू पोंछते हुए कनु बोली, ‘‘एक शर्त पर मैं आप सब की बात मान सकती हूं… आप सभी को मुझ से वादा करना होगा कि कोई भी अनावश्यक रूप से मोबाइल का उपयोग नहीं करेगा… इसे जरूरत पर ही इस्तेमाल किया जाएगा, शौक के लिए नहीं…’’

‘‘वादा’’ सब ने एकसाथ चिल्ला कर कहा और फिर घर में हंसी की लहर दौड़ गई.

Manohar Kahaniya: बच्चा चोर गैंग- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

विनोद कुमार ने सीसीटीवी कैमरे की ओर हाथ उठाते हुए आगे कहा, ‘‘तुम लोगों के कारनामे का मेरे पास पूरा सबूत है. तुम्हारे घर के आसपास की पूरी वीडियो रिकौर्डिंग है. तुम लोगों ने किसकिस से फोन पर क्या बातें कीं, उस की भी हमारे पास रिकौर्डिंग का आ चुकी है.’’

उस के बाद थानाप्रभारी ने तीनों युवकों के चेहरों से गमछा हटाते हुए कहा, ‘‘… और सब से बड़े सबूत के तौर पर हम ने आज ही इन शातिरों को पकड़ा है, जिसे तुम लोगों ने चोरी का बच्चा बेचा था. गलती यह हुई कि उसे लड़की दे दी, जबकि उस की मांग लड़के की थी. इसी बात को ले कर ही तीनों का तुम से झगड़ा हुआ था.’’

इस खुलासे के बाद बच्चा चोरी की वारदातों के ले कर जो बातें सामने आईं, वह काफी चौंकाने वाली निकलीं—

हफ्तों तक राजा और रेखा पतिपत्नी बन बच्चा चोरी की शिकायत के साथ थाने का चक्कर लगाते रहे. यहां तक कि उन्होंने एसएसपी से मिल कर भी अपना बच्चा चोरी होने की जानकारी दी. एसएसपी कलानिधि नैथानी ने दोनों को तसल्ली दी और बच्चा बरामदगी का पूरा यकीन दिलाया. उस के 2 दिन बाद क्राइम मीटिंग में भी एसएसपी नैथानी ने बच्चा चोरी के मामले की चर्चा की. पता चला कि 2 बच्चे इसी तर्ज पर और चोरी हुए हैं, जो बहुत ही गरीब बंजारों के हैं.

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बच्चा चोरी के मामले के खुलासे के लिए एक टीम गठित कर दी गई. इस में एसआई धर्मेंद्र कुमार के साथ सर्विलांस टीम और एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट को भी जोड़ दिया गया. इन के कोऔर्डिनेशन व समीक्षा के लिए एसपी (सिटी) कुलदीप गुनावत व सीओ (तृतीय) श्रेताभ पांडेय को जिम्मेदारी सौंपी गई.

सभी आरोपी धर दबोचे

पुलिस ने आसपास के सारे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज खंगाल निकाली. सैकड़ों मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया. मुखबिरों का जाल भी बिछा दिया. इस तरह बच्चा चोरी मामले का काफी डेटा पुलिस टीम के पास एकत्रित हो गया.

25 जुलाई, 2021 की देर रात मुखबिर की सटीक सूचना पर थानाप्रभारी विनोद कुमार महुआखेड़ा में मय फोर्स के वोरना तिराहे पर पहुंच गए. श्रेताभ पांडे भी टीम के साथ थे. सूचना के आधार पर 3 सवारों वाली बाइक को विशेष रूप से रोकरोक कर चैकिंग किया जाने लगा. कुछ देर में ही शिकार हाथ लग गया. 3 सवारों वाली एक बाइक को रोका तो उस के चालक ने भागने का प्रयास किया. लेकिन वह पुलिस टीम से घिर चुका था.

नतीजा तीनों भाग नहीं पाए. पुलिस ने उन्हें दबोच लिया. पुलिस ने पूछताछ की तो बच्चा चोर गिरोह का खुलासा हुआ.

पकड़े गए 3 लोगों में एक का नाम दुर्योधन दूसरे का नाम अनिल तीसरे का नाम शुभम बताया गया. दुर्योधन ठाकुरदास का बेटा है. गंगानगर कालोनी गांधी पार्क अलीगढ़ में रहता है. वह अनारपुर थाना मिरहची एटा का है. अनिल मूलत: मध्य प्रदेश में जिला सागर स्थित बजरिया गडरिया का है. शुभम हसायन हाथरस का निवासी है.

तीनों की दोस्ती जब दिल्ली में हुई थी, तब वे एक फैक्ट्री में काम किया करते थे. दुर्योधन की मुलाकात बबली से हुई. बातोंबातों में बबली ने एक दिन कहा कि उन के एक दूर के रिश्तेदार बहुत अमीर हैं. उन के कोई बच्चा नहीं है, अगर उन्हें कोई बच्चा मिल जाए तो वह मोटी रकम मुझे देंगे. दुर्योधन ने अनिल और शुभम से संपर्क किया और बच्चा चोरी की योजना बनाई. उन्हें यह धंधा काफी लाभकारी लगा. बच्चे के खरीदार एक बच्चे के ही लाखों रुपए देने को तैयार थे. बच्चों की चोरी कर ये अमीर घरानों के लोगों को बेचने लगे. बच्चे गरीब परिवारों के चुराए जाते थे. उन्होंने रेखा और राजा को भी इस काम के लिए तैयार कर लिया था. दोनों बंजारा समुदाय के थे.

अलगअलग क्षेत्र और जिले से 5 बच्चे पुलिस ने बरामद किए. इन बच्चों को बेचने में सहयोग करने और खरीदने वालों की पुलिस ने धरपकड़ शुरू कर दी. इस तरह पुलिस ने 16 लोगों को गिरफ्तार किया. इन में महिलाएं भी थीं. महिलाओं में बबली, नेहा, चांदनी और रेखा इस गिरोह में शामिल थीं.

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सभी से पूछताछ करने के बाद गंगानगर कालोनी निवासी बबली के घर से 2 बच्चे , बाबा कालोनी निवासी आकाश के पास से एक बच्चा, खैर के संजय गोयल से एक बच्चा, दिल्ली गेट जाहिद के घर से एक बच्चा बरामद किया गया. एक बच्चे को मुंबई में बेचने की जानकारी मिली. पुलिस ने मुंबई जा कर छानबीन की, लेकिन बताए गए स्थान पर बच्चा बरामद नहीं हो सका.

पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मां जल्दी आना- भाग 2: विनीता अपनी मां को क्यों साथ रखना चाहती थी?

अनंत मांबाबूजी की कमजोर नस थी सो उन के पास और कोई चारा भी तो नहीं था. खैर गाजेबाजे के साथ हम सब यामिनी को हमारे घर की बहू बना कर ले आए थे. सांवली रंगत और बेहद साधारण नैननक्श वाली यामिनी गोरेचिट्टे, लंबे कदकाठी और बेहद सुंदर व्यक्तित्व के स्वामी अनंत के आसपास जरा भी नहीं ठहरती थी पर कहते हैं न कि ‘‘दिल आया गधी पे तो परी क्या चीज है?’’

एक तो बड़ा जैनरेशन गैप दूसरे प्रेम विवाह तीसरे मांबाबूजी की बहू से आवश्यकता

से अधिक अपेक्षा, इन सब के कारण परिवार के समीकरण धीरेधीरे गड़बड़ाने लगे थे. बहू के आते ही जब मांबाबूजी ने ही अपनी जिंदगी से अपनी ही पेटजायी बेटियों को दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका था तो बेटेबहू के लिए तो वे स्वत: ही महत्वहीन हो गई थी. कुछ ही समय में बहू ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे.

अनंत और उस की पत्नी यामिनी को परिवार के किसी भी सदस्य से कोई मतलब नहीं था. कुछ समय पूर्व ही यामिनी की डिलीवरी होने वाली थी तब मांबाबूजी गए थे अनंत के पास. नवजात पोते के मोह में बड़ी मुश्किल से एक माह तक रहे थे दोनों तभी अनंत ने मुझ से उन्हें वापस भोपाल आने का उपाय पूछा था. मैं ने भी येनकेन प्रकारेण उन्हें दिल्ली से भोपाल वापस आने के लिए राजी कर लिया था.

अभी उन्हें आए कुछ माह ही हुए थे कि अचानक एक दिन बाबूजी को दिल का दौरा पड़ा और वे इस दुनिया से ही कूच कर गए पीछे रह गई मां अकेली. लोकलाज निभाते हुए अनंत मां को अपने साथ ले तो गया परंतु वहां के दमघोंटू वातावरण और यामिनी के कटु व्यवहार के कारण वे वापस भोपाल आ गईं और अब तो पुन: दिल्ली जाने से साफ इंकार कर दिया. सोने पे सुहागा यह कि अनंत और यामिनी ने भी मां को अपने साथ ले जाने में कोई रुचि नहीं दिखाई. मनुष्य का जीवन ही ऐसा होता है कि एक समस्या का अंत होता है तो दूसरी उठ खड़ी होती है.

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अचानक एक दिन मां बाथरूम में गिर गईं और अपना हाथ तोड़ बैठीं. अनंत ने इतनी छोटी सी बात के लिए भोपाल आना उचित नहीं समझा बस फोन पर ही हालचाल पूछ कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली. दोनों बड़ी बहनें तो विदेश में होने के कारण यूं भी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त थीं. बची मैं सो अनंत का रुख देख कर मेरे अंदर बेटी का कर्त्तव्य भाव जाग उठा. फ्रैक्चर के बाद जब मां को देखने गई तो उन्हें अकेला एक नौकरानी के भरोसे छोड़ कर आने की मेरी अंतआर्त्मा ने गवाही नहीं दी और मैं मां को अपने साथ मुंबई ले कर आ गई. मैं कुछ और आगे की यादों में विचरण कर पाती तभी मेरे कानों में अमन का स्वर गूंजा.

‘‘कहां हो भाई खानावाना मिलेगा… 9 बजने जा रहे हैं.’’ मैं ने अपने खुले बालों का जूड़ा बनाया और फटाफट किचन में जा पहुंची. देखा तो मां ने रात के डिनर की पूरी तैयारी कर ही दी थी बस केवल परांठे बनाने शेष थे. मैं ने फुर्ती से गैस जलाई और सब को गरमागरम परांठे खिलाए. सारे काम समाप्त कर के मैं अपने बैडरूम में आ गई. अमन तो लेटते ही खर्राटे लेने लगे थे पर मैं तो अभी अपने विगत से ही बाहर नहीं आ पाई थी. आज भी वह दिन मुझे याद है जब मां को देखने गई मैं वापस मां को अपने साथ ले कर लौटी थी. मुझे एअरपोर्ट पर लेने आए अमन ने मां के आने पर उत्साह नहीं दिखाया था बल्कि घर आ कर तल्ख स्वर में बोले,’’ ये सब क्या है विनू मुझ से बिना पूछे इतना बड़ा निर्णय तुम ने कैसे ले लिया.

‘‘कैसे मतलब… अपनी मां को अपने साथ लाने के लिए मुझे तुम से परमीशन लेनी पड़ेगी.’’ मैं ने भी कुछ व्यंग्यात्मक स्वर में उतर दिया था.

‘‘क्यों अब क्यों नहीं ले गया इन का सगा बेटा इन्हें अपने साथ जिस के लिए इन्होंने बेटी तो क्या दामादों तक को सदैव नजरंदाज किया.’’

‘‘अमन आखिर वे मेरी मां हैं… वह नहीं ले गया तभी तो मैं ले कर आई हूं. मां हैं वो मेरी ऐसे ही तो नहीं छोड़ दूंगी.’’ मेरी बात सुन कर अमन चुप तो हो गए पर कहीं न कहीं अपनी बातों से मुझे जता गए कि मां का यहां लाना उन्हें जंचा नहीं. इस के बाद मेरी असली परीक्षा प्रारंभ हो गई थी. अपने 20 साल के वैवाहिक जीवन में मैं ने अमन का जो रूप आज तक नहीं देखा था वह अब मेरे सामने आ रहा था.

घर आ कर सब से बड़ा यक्षप्रश्न था हमारे 2 बैडरूम के घर में मां को ठहराने का. 10 वर्षीय बेटी अवनि के रूम में मां का सामान रखा तो अवनि एकदम बिदक गई. अपने कमरे में साम्राज्ञी की भांति अब तक एकछत्र राज करती आई अवनि नानी के साथ कमरा शेयर करने को तैयार नहीं थी. बड़ी मुश्किल से मैं ने उसे समझाया तब कहीं मानी पर रात को तो अपना तकिया और चादर ले कर उस ने हमारे बैड पर ही अपने पैर पसार लिए कि ‘‘आज तो मैं आप लोगों के साथ सोउंगी भले ही कल से नानी के साथ सो जाउंगी.’’

पर जैसे ही अमन सोने के लिए कमरे में आए तो अवनि को बैडरूम में देख कर चौंक गए.

‘‘लो अब प्राइवेसी भी नहीं रही.’’

‘‘आज के लिए थोड़ा एडजस्ट कर लो कल से तो अवनि नानी के साथ ही सोएगी.’’ मैं ने दबी आवाज में कहा कि कहीं मां न सुन लें.

‘‘एडजस्ट ही तो करना है, और कर भी क्या सकते हैं.’’ अमन ने कुछ इस अंदाज में कहा मानो जो हो रहा है वह उन्हें लेशमात्र भी पसंद नहीं आ रहा पर उन्हें इग्नोर करने के अलावा मेरे पास कोई चारा भी नहीं था. मां को सुबह जल्दी उठने की आदत रही है सो सुबह 5 बजे उठ कर उन्होंने किचन में बर्तन खड़खड़ाने प्रारंभ कर दिए थे. मैं मुंह के ऊपर से चादर तान कर सब कुछ अनसुना करने का प्रयास करने लगी. अभी मेरी फिर से आंख लगी ही थी कि अमन की आवाज मेरे कानों में पड़ी.

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‘‘विनू ये मम्मी की घंटी की आवाज बंद कराओ मैं सो नहीं पा रहा हूं.’’ मैं ने लपक कर मुंह से चादर हटाई तो मां की मंदिर की घंटी की आवाज मेरे कानों में भी शोर मचाने लगी. सुबह के सर्दी भरे दिनों में भी मैं रजाई में से बाहर आई और किसी तरह मां की घंटी की आवाज को शांत किया. जब से मां आईं मेरे लिए हर दिन एक नई चुनौती ले कर आता. 2 दिन बाद रात को जैसे ही मैं सोने की तैयारी कर रही थी कि अवनि ने पिनपिनाते हुए बैडरूम में प्रवेश किया.

‘‘मम्मी मैं नानी के पास तो नहीं सो सकती, वे इतने खर्राटे लेती हैं कि

मैं सो ही नहीं पाती.’’ और वह रजाई तान कर सो गई. अमन का रात का कुछ प्लान था जो पूरी तरह चौपट हो गया था और वे मुझे घूरते हुए करवट ले कर सो गए थे बस मेरी आंखों में नींद नहीं थी. अगले दिन अमन को जल्दी औफिस जाना था पर जैसे ही वे सुबह उठे तो बाथरूम पर मां का कब्जा था उन्हें सुबह जल्दी नहाने का आदत जो थी. बाथरूम बंद देख कर अमन अपना आपा खो बैठे.

‘‘विनू मैं लेट हो जाऊंगा मम्मी से कहो हमारे औफिस जाने के बाद नहाया करें उन्हें कौन सा औफिस जाना है.’’

‘‘अरे औफिस नहीं जाना है तो क्या हुआ बेटा चाय तो पीनी है न और तुम जानते हो कि मैं बिना नहाए चाय भी नहीं पीती.’’ मां ने बाथरूम से बाहर निकल कर सफाई देते हुए कहा. जिंदगीभर अपनी शर्तों पर जीतीं आईं मां के लिए स्वयं को बदलना बहुत मुश्किल था और अमन मेरे साथ कोऔपरेट करने को तैयार नहीं थे. इस सब के बीच मैं खुद को तो भूल ही गई थी. किसी तरह तैयार हो कर लेटलतीफ बैंक पहुंचती और शाम को बैंक से निकलते समय दिमाग में बस घर की समस्याएं ही घूमतीं. इस से मेरा काम भी प्रभावित होने लगा था. मेरी हालत ज्यादा दिनों तक बैंक मैनेजर से छुपी नहीं रह सकी और एक दिन मैनेजर ने मुझे अपने केबिन में बुला ही भेजा.

‘‘बैठो विनीता क्या बात है पिछले कुछ दिनों से देख रही हूं तुम कुछ परेशान सी लग रही हो. यदि कोई ऐसी समस्या है जिस में मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं तो बताओ. अपने काम में सदैव परफैक्शन को इंपोर्टैंस देने वाली विनीता के काम में अब खामियां आ रही हैं इसीलिए मैं ने तुम्हें बुलाया.’’

‘‘नहीं मैम ऐसी कोई बात नहीं है बस कुछ दिनों से तबियत ठीक नहीं चल रही है. सौरी अब मैं आगे से ध्यान रखूंगी.’’ कह कर मैं मैडम के केबिन से बाहर आ गई. क्या कहूं मैडम से कि बेटियां कितनी भी पढ़ लिख लें, आत्मनिर्भर हो जाएं पर अपने मातापिता को अपने साथ रखने या उन की जिम्मेदारी उठाने के लिए पति का मुंह ही देखना पड़ता है.

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