मेरे पति किसी दूसरी औरत से प्रेम करते हैं, क्या करूं?

सवाल

मैं 42 साल की एक शादीशुदा औरत हूं और 2 बच्चों की मां भी. पिछले कुछ समय से मेरा पति किसी दूसरी औरत के चक्कर में पड़ कर अपनी कमाई उस पर लुटाने लगा है. मैं ने कई बार उसे अपने प्यार और परिवार का वास्ता दिया हैपर वह नहीं मान रहा है.

कभीकभी तो मेरा मन करता है कि अपने बच्चों समेत मायके चली जाऊंपर इस से भी बच्चों और मेरा ही नुकसान होगा. क्या कोई ऐसा तरीका हैजिस से मुझे इस समस्या से छुटकारा मिल जाए?

जवाब

भागना इस समस्या का हल नहीं है. मुमकिन हैजब कभी घर वापस आएंतो वह औरत घर की मालकिन और आप की सौत बन कर बैठी मिलेफिर तो बात और उलझ जाएगी.

पति का मन घर में लगाने का जतन करेंघर को साफसुथरा रखेंबनठन कर रहेंसैक्स जम कर करें. पति को हर चीज हाथोंहाथ देंअच्छा जायकेदार खाना बनाएं और घर का माहौल अच्छा रखें.

अगर पति का मन इस के बाद भी घर में न लगेतो उस औरत से मिल कर बात करें और यह भी देखें कि उस में ऐसी क्या बात हैजो आप में नहीं है.

नौकर बीवी: शादी के बाद शीला के साथ क्या हुआ?

प्रेमी की खातिर पति को मौत का संदेश

नीलम किशोरावस्था से ही स्कूल के दोस्त रोहित राजपूत को प्यार करती थी. दोनों ने जीवनसाथी बनने की भी कसमें खाईं लेकिन घर वालों ने दबाव डाल कर नीलम का विवाह संपन्न परिवार के लकी पांचाल से कर दिया. विवाह के 5 माह बाद ही नीलम ने मायके से पति को ऐसा संदेशा भेजा, जिस में…

हर पटवारी बेईमान होता है!

हमारे देश के कितने ही गांव, शहर, कसबे, जाति के लोग बेईमान माने जाते हैं. इन लोगों को बारबार जन्मजात बेईमान बताया जाता है. गालियां देते समय इन की जाति, शहर या राज्य का नाम ले कर कहा जाना आम है कि तुम तो वहां के हो, इसलिए बेईमान होगे ही.

भारतीय जनता पार्टी की सरकार अपने खिलाफ राजनीति में जुड़े हर जने पर ईडी, सीबीआई, पीएमएलए, एनआईए, पुलिस को लगा कर अपना उल्लू तो सीधा कर रही है पर इस चक्कर में खुदको भी गहरा काला पोत रही है. यह सोच हरेक के मन में पक्की होती जा रही है कि जिस के पास सत्ता है, पावर है, कुछ कर सकता है, वह ऊपर की भरपूर कमाई कर रहा है, उस के यहां तो कमरे भरे पड़े हैं.

अगर वह भारतीय जनता पार्टी में है तो उस पर रेड न होने की वजह से जनता उसे शरीफ मान लेगी, यह नामुमकिन है. जब बहुत से मंत्री, मुख्यमंत्री, अफसर, उद्योगपति, ठेकेदार चपेट में आ चुके हों तो कुछ बचे होंगे, यह भी पक्का माना जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी का हर मंत्री भी बेईमान होगा.

कोई ऐसे ही केवल दिल बदलने से वर्षों पुरानी पार्टी से नाता नहीं तोड़ता. उसे मंत्री पद का लालच भी तभी दिया जा सकता है जब वह मंत्री न हो. यहां तो भाजपा दूसरी पार्टी के मंत्रियों को अपने में मिला कर मंत्री बना रही है तो मतलब साफ है कि उन्हें मंत्री बनने के साथसाथ कुछ और मिला होगा. यह वही कुछ और जिसे ढूंढ़ने के अवसर भाजपा सरकार अपने विरोधियों की पार्टी वालों को भेज रही है.

जनमानस में यह तो हमेशा से था कि हरेक पार्टी बेईमान है पर कांग्रेस महाबेईमान है, यह 2014 तक विनोद राय जैसे कंपट्रोलर जनरल ने नकली, झूठी, विश्वासघात करने वाली साजिशों भरी रिपोर्टें दे कर साबित कर दिया था. जिस तरह 2014 में जीतने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने उसे हाथोंहाथ लिया, साबित हो गया कि वह नितांत बेईमानी वाली रिपोर्ट थी और आज जिस तरह वे ऊंचे पद पर बैठे हैं उस से भी साबित है कि इनाम भी मिला.

हमारे देश में शराफत को भाव कभी अच्छा नहीं मिला. धर्म हमेशा कहता रहा कि हर जजमान तो पाप करता ही रहता है और जब तक दानदक्षिणा न दो इस पाप से मुक्ति नहीं मिलेगी. गोदान इसी पाप से मरने के बाद पिंड को यमराज के प्रेतों के जुल्मों से बचाने के लिए किया जाता है. गरुड़ पुराण भरा है उन कष्टों के बखानों से जो यम के दूत देते हैं और उन तरीकों से भी जो दान की वजह से मिलते हैं, पर इस से क्या दान लेने वाला बेईमान नहीं हो जाता?

जो लोग पापी से दान लेते हैं वे पापी के पार्टनर हुए न. अगर 20 नेताओं के यहां रेड पड़ती है, 2-3 के यहां करोड़ों मिलते हैं, 18 के मामले बरसों चलते रहते हैं तो क्या साबित नहीं होता कि सभी नेता चाहे किसी पार्टी के हैं, बेईमान हैं? आज सत्ता में सब से ज्यादा नेता भाजपा के हैं, सब से ज्यादा सरपंच भाजपा के हैं, सब से ज्यादा जिला अध्यक्ष भाजपा के हैं, सब से ज्यादा विधायक भाजपा के हैं, सब से ज्यादा सांसद भाजपा के हैं, सब से ज्यादा मंत्री भाजपा के हैं. वे शराफत के पुतले होंगे जबकि उन के जैसे दूसरी हर पार्टी के विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री काले हैं, यह तो सोचना ही गलत है. भाजपा अपना नुकसान ज्यादा कर रही है. भाजपा हर सुबह बता देती है कि किसी विधायक, मंत्री, सांसद पर भरोसा न करो, उस ने जनता का पैसा खाया होगा.

हर नेता पटवारी की तरह का है क्योंकि यह मान लिया गया है कि हर पटवारी बेईमान होता है.

मेरी पत्नी बच्चों का ध्यान नहीं रखती है, क्या करूं?

सवाल

मैं 40 साल का एक शादीशुदा मर्द हूं और 2 बच्चों का पिता भी. मेरी समस्या यह है कि अब मेरी पत्नी छोटेछोटे बहाने बना कर घर के कामों से दूर भागने लगी है. इतना ही नहींवह बच्चों का भी ध्यान नहीं रखती हैजिस से हमेशा घर फैला रहता है. मैं छुट्टी के दिन तो उस का घरेलू कामों में हाथ बंटा देता हूंपर बाकी के दिन वही क्लेश जारी रहता है.

मेरे बच्चे अभी इतने बड़े और समझदार नहीं हुए हैं कि घर के कामों में अपनी मां की मदद कर दें. इस बात से घर में हमेशा तनाव बना रहता है. मेरी समझ में नहीं आता कि क्या करूं?

जवाब

लगता हैआप की पत्नी आलसी हो गई है. आप को कुछ दिन अक्ल और सब्र से काम लेना होगा. अकसर घर के सारे छोटेबड़े काम औरतों को ही करने पड़ते हैंइसलिए भी उन की दिलचस्पी घर के कामों से खत्म होने लगती है.

आप घर के कामों का बंटवारा कर लें. शुरू में पत्नी आलस खाएतो उसे उस के हिस्से के काम के लिए उकसाएं और जितना हो सके उस की मदद भी करें. सुबहशाम उसे घुमाने ले जाएं और कसरत भी करवाएं. वह काम न करेतो भी उस की झूठी तारीफ करते रहें.

भाजपा की कमजोर कड़ी है पश्चिमी इलाका

उत्तर प्रदेश  भाजपा की   शैलेंद्र सिंह  कमजोर कड़ी है  पश्चिमी इलाका भारतीय जनता पार्टी को यह पता है कि अगर वोट जातीय आधार पर पड़ेंगे, तो उसे नुकसान होगा. ऐसे में उस की पहली कोशिश यह रहती है कि वोट धर्म के आधार पर पड़ें. साथ ही, वह जातियों में भी एकजुटता नहीं रहने देना चाहती है.  उत्तर प्रदेश में जाट बिरादरी ऐसी है, जिस के पास केवल लोकदल का सहारा रहता है. अब भाजपा इस में सेंधमारी करने की कोशिश कर रही है. इस योजना के तहत भाजपा ने अपना प्रदेश अध्यक्ष और प्रदेश संगठन मंत्री पश्चिमी उत्तर प्रदेश में रहने वालों को बनाया है.

भारतीय जनता पार्टी ने 2022 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीत कर लगातार दूसरी बार बहुमत की सरकार बनाने में कामयाबी हासिल कर ली थी. इस के बाद भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश को ले कर उस के मन में डर बैठा हुआ है.  भाजपा को इस बात का भरोसा नहीं है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश का जाट समाज भाजपा के पक्ष में ही वोट देगा. भाजपा की बहुत सारी कोशिशों के बाद भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जिस में जाट बिरादरी का बहुमत ज्यादा है, को वह अपने पक्ष में खड़ा नहीं देख रही है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल की साख बनी हुई है. चौधरी अजित सिंह के बाद उन के बेटे जयंत चौधरी ने जाट समाज पर अपनी मजबूत पकड़ बना रखी है. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में लोकदल और समाजवादी पार्टी गठबंधन ने अपना असर दिखा दिया था.

अगर बहुजन समाज पार्टी ने विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका सही से दिखाई होती, तो भाजपा का जीतना मुश्किल हो जाता. भाजपा साल 2024 के लोकसभा चुनावों में कोई ऐसा खतरा नहीं मोल लेना चाहती, जिस से उसे किसी दूसरे दल पर निर्भर रहना पड़े. राजनीति में कोई भी स्थायी दोस्त या दुश्मन नहीं होता. विपक्षी एकता के असर में अगर बसपा, सपा और लोकदल एक ही मंच पर आ गए और दलितपिछड़ों में यादव और जाटव समाज के साथ दूसरी जातियां भी एक मंच पर खड़ी हो गईं, तो भाजपा के लिए दिक्कत हो सकती है. जाट बिरादरी को खुश करने के लिए ही भारतीय जनता पार्टी ने चौधरी भूपेंद्र सिंह को प्रदेश अध्यक्ष बनाया है. वैसे, वे पहले योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे.

उन्होंने साल 1991 में भाजपा का साथ पकड़ा था और मेहनती नेता कहलाते हैं. खराब हालात में भी उन की मेहनत से साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा इस बैल्ट की 126 सीटों में से  85 सीटें जीतने में कामयाब हो गई थी. अब साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उत्तर प्रदेश की सभी लोकसभा 80 सीटें जितने का लक्ष्य रख रही है. ऐसे में पश्चिमी उत्तर प्रदेश को खुश करना सब से ज्यादा जरूरी है. इस के लिए ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के रहने वाले चौधरी भूपेंद्र सिंह को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. पश्चिम से ही हैं संगठन मंत्री भाजपा ने प्रदेश संगठन मंत्री के रूप में सुनील बंसल की जगह पर बिजनौर जिले की नगीना तहसील के रहने वाले धर्मपाल सिंह को जिम्मेदारी दी है. इस का मतलब यह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही भाजपा ने अपना प्रदेश  अध्यक्ष चौधरी भूपेंद्र सिंह को बनाया है और यहीं से धर्मपाल सिंह को संगठन मंत्री बना दिया है.  भाजपा में संगठन मंत्री का पद बहुत खास पद होता है. इस की वजह यह है कि भाजपा का संगठन मंत्री राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का पूर्णकालिक सदस्य होता है. इस पद पर वही रहता है, जो संघ का सदस्य हो. इस के पहले यह पद सुनील बंसल के पास था, जिन को ‘सुपर सीएम’ कहा जाता था.

सत्ता के इसी असर की वजह से सुनील बंसल और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच संबंध सहज नहीं रहते थे. भाजपा के मंत्री और नेता योगी आदित्यनाथ से ज्यादा सुनील बंसल को अहमियत देते थे.  इस से भाजपा में संगठन मंत्री की ताकत को समझा जा सकता है. यह पद ऐसा है, जिस पर संघ तबादले करता है. धर्मपाल सिंह इस के पहले झारखंड भाजपा के प्रदेश संगठन मंत्री थे. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अहमियत को बढ़ाने के लिए भाजपा ने अपना प्रदेश अध्यक्ष और संगठन मंत्री दोनों ही एक इलाके से दे दिए हैं. इस दांव से वह जाट बिरादरी के बीच अपनी पैठ और मजबूत करना चाहती है.  पश्चिमी उत्तर प्रदेश का असर केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं, बल्कि इस की सीमा से लगे दिल्ली और हरियाणा तक भी होता है. ऐसे में ये दोनों ही नेता काफी असरदार साबित हो सकते हैं. इन को संगठन का अनुभव भी है. इस वजह से ये अच्छा चुनाव लड़ा सकते हैं, जिस से भाजपा को पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ज्यादा लोकसभा सीटें मिल सकती हैं.

Bigg Boss 16: टीना दत्ता ने किया अब्दु रोजिक से फ्लर्ट, देखें Video

कलर्स टीवी का  रियलिटी शो ‘बिग बॉस 16’ (Bigg Boss 16)  का इंतजार दर्शकोंं को बेसब्री से था और ये इंतजार खत्म हो गया है. इस शो का आगाज 1 अक्टूबर से हो चुका है. बिग बॉस के घर में आए सभी कंटेस्टेंट में से एक अब्दु रोजिक (Abdu Rozik) सभी का ध्यान अपनी ओर खींच रहे हैं. जी हां, अब्दु रोजिक की उम्र 19 साल है लेकिन देखने में ये 4 साल के बच्चे की तरह लगते हैं. शो में उन्होंने बताया कि कैसे उन्हें बीमारी का सामना करना पड़ा और लोग उनका मजाक बनाते हैं.

बता दें कि अब्दु रोजिक ऑडियंस के साथ ही अपने साथी कंटेस्टेंट का भी जमकर मनोरंजन कर रहे हैं. इतना ही नहीं, उन्हें बिग बॉस हाउस का मोस्ट एलिजिबल बैचलर भी कहा जाने लगा है और उन्हें बताया गया कि उनका स्वयंवर कराया जाएगा तो वह चौंक गये.

 

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टीना दत्ता भी अब्दु रोजिक के साथ फ्लर्ट करती नजर आयी. इससे जुड़ा एक वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इस वीडियो में आप देख सकते हैं  कि टीना दत्ता अनाउंस करती है, हम इसका स्वंयवर कर रहे हैं. इस पर अब्दु रोजिक हैरान होकर कहते हैं, क्या. टीना दत्ता कहती हैं, हम तुम्हारी शादी करा देंगे.

 

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टीना आगे पूछती हैं कि क्या मैं आपको डेट कर सकती हूं? क्या मैं आपकी गर्लफ्रेंड बन सकती हूं? आपके गाल काफी प्यारे हैं. मुझे आपकी स्माइल भी पसंद है. इस पर अब्दु रोजिक शरमा जाते हैं और कहते हैं, तुम भी क्यूट हो. इस पर टीना दत्ता खुश हो जाती हैं.

 

आपको बता दें कि  सिंगर अब्दु रोजिक तजाकिस्तान के रहने वाले हैं. वे हिंदी नहीं बोल पाते हैं तो बिग बॉस ने साजिद खान को उनका ट्रांसलेटर बनने की जिम्मेदारी दी है.  बिग बॉस हाउस में अब्दु रोजिक और साजिद खान की अच्छी बॉन्डिंग देखने को मिल रही है और सबके साथ मस्ती करते नजर आते हैं.

दलित घरों में विधवा की शादी

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के रम्पुरा गांव में रहने वाली अनीता का कुसूर केवल इतना था कि वह एक ब्राह्मण के घर पैदा हुई थी. 18 साल की होते ही वह 12वीं जमात पास हुई, तो उस की शादी कर्मकांड करने वाले एक पंडित के बेटे से करा दी गई. पंडित होने की वजह से जन्म कुंडली का मिलान कर शुभ मुहूर्त में शादी की रस्में निभाई गईं.

अनीता ससुराल में कुल 4 महीने ही रह पाई थी कि उस के पति की एक सड़क हादसे में मौत हो गई. ससुराल वाले उसे इस बात के लिए ताना देते कि उस के कदम घर में पड़ते ही उन का बेटा दुनिया छोड़ गया.

ससुराल वालों के तानों से परेशान हो कर अनीता अपने पिता के घर पर रहने लगी. उस की हालत देख कर मां के मन में कई बार अपनी लड़की की फिर से शादी करने का विचार आता, पर वे अनीता के पिता से कभी इस का जिक्र नहीं कर सकीं.

अनीता की मां जानती थीं कि जातिबिरादरी की दकियानूसी परंपराओं के चलते अनीता के पिता कभी उस की दोबारा शादी के लिए तैयार नहीं होंगे.

इस घटना को 20 साल हो चुके हैं. तब से ले कर अब तक अनीता अपने पिता के घर पर अपनी पहाड़ सी जिंदगी बिताने को मजबूर है. दिनभर वह नौकरों की तरह घर के काम में लगी रहती है और अपनी कोई ख्वाहिश किसी के सामने जाहिर नहीं होने देती.

अनीता जैसी न जाने कितनी विधवा लड़कियां हैं, जो सामाजिक रीतिरिवाजों के चलते जिंदगी की खुशियों से दूर हैं. ऊंची जातियों में फैली इन कुप्रथाओं को देख कर तो लगता है कि जिन जातियों को समाज में नीचा समझा जाता है, वे इन मामलों में कहीं बेहतर हैं.

हमारे देश में चल रही वर्ण व्यवस्था में ऊंची जाति के ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य भले ही दलितों को हिकारत की नजर से देखते हों, पर कम पढ़ेलिखे इन दलितों की सोच पढ़ेलिखे ऊंची जाति के ठेकेदारों से कहीं अच्छी है.

16 फरवरी, 2021 को संत रैदास जयंती पर दलित समाज के लोगों द्वारा  कराई गई एक शादी की चर्चा करना बेहद जरूरी है.

मध्य प्रदेश के गाडरवारा में रहने वाले छिदामी लाल अहिरवार की 26 साल की बेटी ज्योति के पति की मौत अप्रैल, 2021 में कोरोना की तीसरी लहर में हो गई थी.

ज्योति के पति राजन प्राइवेट स्कूल में टीचर थे. उन की मौत के बाद ज्योति अपने बेटे को ले कर अपने पिता के पास रहने लगी.

पिता छिदामी लाल पेशे से सरकारी स्कूल में चपरासी हैं, पर उन की सोच बड़ी है. उन्हें अपनी बेटी के भविष्य की चिंता थी. उन्होंने सोचसमझ कर समाज के लोगों के बीच उस की दूसरी शादी की चर्चा की, तो शिक्षक वंशीलाल अहिरवार, मानक लाल मनु ने छिदामी लाल की इस पहल की तारीफ की.

समाज के लोगों के बीच हुई चर्चा में पता चला कि चीचली के पास हीरापुर गांव के शिवदास त्रिपालिया के 33 साल के बेटे हेमराज की पत्नी विनीता की मौत आज से 5 साल पहले हो चुकी थी. विनीता और उस के होने वाले बच्चे की मौत जचगी के दौरान ही हो गई थी.

हेमराज साइंस में ग्रेजुएट और कंप्यूटर में पीजीडीसीए की डिगरी ले कर एक निजी स्कूल में पढ़ाता है. दोनों पक्षों की रजामंदी से ज्योति और हेमराज की दूसरी शादी का फैसला हुआ और हेमराज ज्योति के बेटे के साथ उसे दुलहन बना कर अपने घर ले आया.

दलित समाज में होने वाला विधवा विवाह कोई नई बात नहीं है. दलित समाज में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है. विधवा या विधुर की दूसरी के लिए इस तबके के लोग पंडितपुरोहितों से इजाजत लेने के बजाय लड़कालड़की की रजामंदी को तवज्जुह देना ज्यादा जरूरी समझते हैं.

मनुवादी सोच भी जिम्मेदार

समाज में विधवा की बुरी हालत के लिए मनुवादी सोच और व्यवस्था भी कम जिम्मेदार नहीं है. ‘मनुस्मृति’ में विधवा की दूसरी शादी का कोई विधान नहीं लिखा गया है. मनुवादी विधवा को कठोर जीवन जीने का आदेश दे कर उन से पाकसाफ आचरण की उम्मीद रखते हैं.

‘मनु विधि संहिता’ के अनुसार, पति के मर जाने के बाद औरत पवित्र पुष्प, कंद और फल के आहार से शरीर को क्षीण कर और व्यभिचार की भावना से दूसरे मर्द का नाम भी न ले. एक पतिव्रता धर्म चाहने वाली औरत जिंदगीभर क्षमायुक्त नियम से रहने वाली और मदिरा, मांस और मधु को छोड़ कर ब्रह्मचर्य से जीवन बिताए.

मनुवादी पापपुण्य का डर दिखा कर केवल यह चाहते हैं कि पति के मरने के बाद औरत मन, वचन, कर्म से संयत जीवन जिएगी, तो सीधे स्वर्ग की टिकट की अधिकारी हो जाएगी.

आज भी गांवकसबों में किसी विधवा के साथ उस के परिवार के लोग गलत बरताव करते हैं. जिस घर में वह अपने पति के जीवित रहते घर की मालकिन हो कर रहती थी, वहां उसे अब एक नौकरानी की तरह जिंदगी जीने के लिए मजबूर किया जाता है.

यही नहीं, विधवा अपने बच्चों के अलावा और सभी के द्वारा अशुभ मानी जाती थी. उस होने भर से उस के चारों ओर उदासी छा जाती थी. वह घर के मांगलिक समारोहों में शामिल नहीं हो सकती थी.

मनुवादियों ने समाज में यह गलत धारणा फैला दी है कि विधवा सभी लोगों के लिए दुर्भाग्य की वजह बनती है. विधवा औरत को घर के नौकरचाकर तक भाग्यहीन मानते हैं. सामाजिक तौर पर विधवा औरत समाज के कड़वे तानों का शिकार होती है.

विधवा को इज्जत नहीं

आज के दौर में लोग इस बात की दुहाई देते हैं कि अब लड़कियां किसी से कम नहीं हैं. वे मर्दों की तरह ही सब काम करती हैं और आजाद हैं, लेकिन आएदिन जब रेप जैसी वारदात सामने आती हैं, तब ये सब बातें बेमानी सी लगती हैं. शादीशुदा हो या कुंआरी, उसे हमेशा मर्द के साथ की जरूरत महसूस करवाई जाती है और जब किसी वजह से मर्द का साथ उस से छूट जाता है, तो उन्हें जिन हालात का सामना करना पड़ता है, वे बदतर होते हैं.

औरतों को इज्जत दिलवाने की पैरवी तो की जाती है, लेकिन अगर वाकई ऐसा होता तो आज ‘विधवाएं’ किसी आश्रम में अपने मरने का इंतजार न करतीं. सच तो यह है कि उन्हें समाज द्वारा कड़े बंधनों में बांध कर रखा गया है. समाज ने उन के पहनावे से ले कर खानपान तक के नियम तय कर रखे हैं.

धर्म और शास्त्र हैं वजह

औरत की आजादी और तरक्की में सब से बड़ी बाधा हमारे धर्मग्रंथ हैं, जिन में लिखी बातें मर्दों को तमाम तरह की छूट देते हैं, पर औरतों की आजादी पर पहरा बिठाने की वकालत करते हैं. सादा रहना और सफेद साड़ी पहनना तो जैसे एक विधवा की पहचान बन गई है. यह शास्त्रों में लिखा गया नियम है, जिस के आधार पर जिस औरत के पति की मौत हो जाए, उसे अपने खानपान और पहनावे में बदलाव कर लेना चाहिए.

धर्मशास्त्रों के अनुसार, पति की मौत के 9वें दिन सफेद वस्त्र धारण करने का नियम है, जिसे निभाना बहुत जरूरी माना गया है. स्त्री को उस के पति की मौत के कुछ सालों बाद तक केवल सफेद कपड़े ही पहनने होते हैं और उस के बाद अगर वह रंग बदलना चाहे तो भी बेहद हलका कपड़ा ही पहनना होगा.

शास्त्रों की मानें, तो एक विधवा को बिना लहसुनप्याज वाला भोजन करना चाहिए और साथ ही उन्हें मसूर की दाल, मूली व गाजर से भी परहेज रखना चाहिए. सिर्फ इतना ही नहीं, उन के लिए भोजन में मांसमछली परोसना घोर अपमान व पाप के समान है. उन का खाना पूरी तरह सात्विक होना चाहिए.

धर्म के ठेकेदारों की मनुवादी सोच साफतौर पर यह बात जाहिर करती है कि वे औरत का गुलाम बना कर रखने की वकालत करते हैं. धर्म की यह पितृ सत्तात्मक सोच औरतों की तरक्की में सब से बड़ी बाधा है.

इन्होंने की शुरुआत

आज से 165 साल पहले 1856 में 16 जुलाई के दिन भारत में विधवा की दूसरी शादी करने को कानूनी मंजूरी मिली थी. अंगरेज सरकार से इसे लागू करवाने में समाजसेवी ईश्वरचंद विद्यासागर का बड़ा योगदान था. उन्होंने विधवा विवाह को हिंदू समाज में जगह दिलवाने का काम शुरू किया था.

इस सामाजिक सुधार के प्रति उन की प्रबल इच्छाशक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खुद विद्यासागर ने अपने बेटे की शादी भी एक विधवा से ही कराई थी.

इस के अलावा सावित्री बाई फुले ने भी अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ समाजसेवा करने का बीड़ा उठाया था. उन दोनों ने साल 1848 में पुणे में देश का पहला बालिका स्कूल खोला था और स्कूल में बालिकाओं को पढ़ाने वाली वे पहली महिला शिक्षका बनी थीं.

सावित्री बाई फुले जब पढ़ाने के लिए स्कूल जाती थीं, तो विरोध में लोग उन पर कीचड़ और गोबर तक फेंक देते थे. ऐसे में वे एक साड़ी अपने थैले में रख कर स्कूल जाती थीं.

सावित्री बाई फुले ने औरतों को पढ़ाने के साथ ही विधवा विवाह, छुआछूत मिटाने, बाल विवाह, युवा विधवाओं के मुंडन के खिलाफ भी अपनी आवाज बुलंद की थी.

साल 1854 में उन्होंने एक आश्रय खोला था, जिस में उन लाचार औरतों और विधवाओं को आसरा मिला था, जिन्हें उन के परिवार वालों ने छोड़ दिया था.

सावित्री बाई ने ही विधवा की दूसरी शादी की परंपरा भी शुरू की थी और उन की संस्था के द्वारा ऐसी पहली शादी 25 दिसंबर, 1873 को कराई गई थी. सावित्री बाई ने एक विधवा के बेटे यशवंतराव को गोद भी लिया था.

आज देश में बड़ी आबादी दलित और तबके के लोगों की है, मगर ऊंची जातियों के दबंग उन पर रोब जमाते हैं और पंडेपुजारी उन्हें धर्म की घुट्टी पिलाते हैं.

मौजूदा दौर में पढ़ेलिखे दलित तबके के लोगों को संविधान में बनाए गए नियमकानूनों को जानसमझ कर सामाजिक कुप्रथाओं को रोकने के लिए आगे आना होगा, तभी औरतों को उन का वाजिब हक और इज्जत हासिल हो सकेगी.

चित्तशुद्धि- भाग 3: क्यों सुकून की तलाश कर रही थी आभा

वह मौन हो कर सुन रही थी. पर मैं सम झ रही थी कि उसे यह अच्छा नहीं लग रहा था. मैं ने अपनी बात जारी रखी, ‘‘तुम्हारी मां भी तुम्हारे पिता के वर्ण से ब्राह्मण हैं, और दादी भी तुम्हारे दादा के वर्ण से ब्राह्मण थीं. इस से पहले की पीढि़यों के बारे में भी जहां तक तुम्हें याद है, वहीं तक बता सकती हो. उस के बाद वह भी नहीं.’’

मैं ने आगे कहा, ‘‘तू ऋतु को तो जानती होगी. अभी पिछले महीने उस की किन्हीं प्रोफैसर शर्मा से शादी हुई है.’’

‘‘इस में अचरज क्या है?’’ अब उस ने पूछा.

‘‘सरला, अचरज यह है कि ऋतु की मां ब्राह्मण नहीं थीं. रस्तोगी जाति की थीं, जिसे शायद सुनार कहते हैं. फिर वह एक शूद्रा की बेटी हुई कि नहीं? पर चूंकि उस के पिता भट्ट थे, इसलिए वह भी ब्राह्मण है. अब उस के बच्चे भी भट्ट ब्राह्मण कहलाएंगे, क्योंकि दूसरी पीढ़ी में वह ब्राह्मण हो गई. इसलिए सरला, यह ब्राह्मण का भूत दिमाग से निकाल दे.’’

पर हार कर भी सरला हार मानने को तैयार नहीं थी. उस ने गुण का सवाल खड़ा कर दिया, ‘‘तो क्या ब्राह्मण का कोई गुण नहीं होता?’’

अनजाने में यह उस ने एक अच्छा प्रश्न उठा दिया था. मु झे उसे निरुत्तर करने का एक और अवसर मिल गया. मैं ने कहा, ‘‘इस का मतलब है, तू ने यह मान लिया कि ब्राह्मण गुण से होता है?’’

‘‘बिलकुल, इस में क्या शक है?’’

‘‘गुड, अब यह बता, ब्राह्मण के गुण क्या हैं?’’

‘‘ब्राह्मण के गुण?’’

‘‘हां, ब्राह्मण के गुण?’’

‘‘क्या तू नहीं जानती?’’

‘‘हां, मैं नहीं जानती. तू बता?’’ फिर मैं ने कहा, ‘‘अच्छा छोड़, यह बता, ब्राह्मण के कर्म क्या हैं.’’

‘‘वेदों का पठनपाठन और दान लेना.’’

‘‘गुड, और ब्राह्मणी के?’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि यह कर्म जो तू ने बताए हैं, वे तो ब्राह्मण के कर्म हैं. ब्राह्मणी के कर्म क्या हैं?’’

‘‘ब्राह्मण और ब्राह्मणी एक ही बात है.’’

‘‘एक ही बात नहीं है, सरला. स्त्री के रूप में ब्राह्मणी वेदों का पठनपाठन नहीं कर सकती. उस का कोई संस्कार भी नहीं होता. वह यज्ञ भी नहीं कर सकती. एक ब्राह्मणी के नाते क्या तू यह सब कर्म करती है?’’

‘‘नहीं, मेरी इस में कोई रुचि नहीं है.’’

‘‘वैरी गुड. अब तू ने सही बात कही. यार, तबीयत खुश कर दी. अब मैं तु झे बताती हूं कि शास्त्रों में ब्राह्मण का गुण भिक्षाटन कर के जीविका कमाना है. तू नौकरी क्यों कर रही है? यह तो ब्राह्मण का गुण नहीं है.’’

‘‘यार, तेरी बातें तो अब मु झे सोचने पर मजबूर कर रही हैं. मैं इतनी पढ़ीलिखी, क्यों भीख मांगूंगी? यह तो व्यक्ति की क्षमताओं का तिरस्कार है.’’

‘‘व्यक्ति की क्षमताओं का ही नहीं, गुणों का भी.

‘‘हर व्यक्ति में ब्राह्मण है, क्षत्रिय है, वैश्य है और शूद्र है. गुण के आधार पर वह स्त्री ब्राह्मण है, जिसे तू ने शूद्रा मान कर मारपीट कर निकाल दिया. उसे अगर पढ़नेलिखने का अवसर मिलता और बौस बन कर तेरे ऊपर बैठी होती, तो क्या तू तब भी उस से नफरत करती? लेकिन मैं जानती हूं, तू तब भी करती. तेरे जैसे अशुद्ध चित्त वाले जातीय अभिमानी लोग ही समाज को रुढि़वादी बनाए हुए हैं.’’

वह गुमसुम बैठी थी. मैं ने कहा, ‘‘यार, तू ने तो चाय भी नहीं पिलाई. चल, आज मैं ही तु झे चाय बना कर पिलाती हूं.’’ यह कह कर मैं उस के किचन में चली जाती हूं.

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