Busan Film Festival 2022 में पहुंची सत्यजीत रे की शार्ट फिल्म पर बनी ‘‘द स्टोरी टेलर’’  

जियो स्टूडियो द्वारा पर्पस एंटरटेनमेंट और क्वेस्ट फिल्म्स के सहयोग से निर्मित ‘‘द स्टोरी टेलर’’ का चयन ‘बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’, दक्षिण कोरिया के प्रतियोगिता खंड में किया गया है.

इस फिल्म फेस्टिवल में ‘द स्टोरी टेलर’ का विश्व प्रीमियर होगा. जबकि सह फिल्म सम्मानित ‘किम जिसियोक‘ पुरस्कार के लिए भी दावेदार है. 27वां बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल 5 अक्टूबर से 14 अक्टूबर 2022 तक संपन्न होगा. फिल्म के निमार्ताओं ने इस फिल्म के ‘बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में प्रदर्शन से पहले ही तीन अक्टूबर को फिल्म का टीजर जारी कर दिया.

अपनी खुशियां को जाहिर करते हुए नेशनल अवार्ड विनर फिल्म निर्देशक अनंत महादेवन ने कहा- ‘‘बुसान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ प्रतियोगिता खंड में ‘द स्टोरी टेलर’ का चयन होना वास्तव में गर्व की बात है. वैश्विक मानकों तक भारतीय सिनेमा को पहुंचाने की दिशा में ये बड़ा कदम है. सत्यजीत रे की मूल कहानी का फिल्मांकन करना चुनौतीपूर्ण था. अब जब हम उनकी शताब्दी जन्म मना रहे हैं, तो यह अपने गुरु को एक उचित श्रद्धांजलि होगी.‘‘

महान फिल्म निर्माता सत्यजीत रे की मौलिकता बनाम साहित्यिक चोरी पर लघु कहानी ‘‘गोलपो बोलिये तारिणी खुरो ’’ पर आधारित यह फिल्म एक धनी व्यवसायी की कहानी बयां करती है, जो अपनी अनिद्रा को दूर करने में मदद करने के लिए एक कहानीकार को काम पर रखता है. पर मसला अधिक पेचीदा हो जाता है. क्योंकि इसमें ट्विस्ट जुड़ जाते हैं. यह कहानी सत्यजीत रे द्वारा रचे गए रहस्यमय चरित्र तारिणी खुरो पर आधारित है.

सत्यजीत रे अपनी इस कहानी में एक बड़ा सवाल उठाया है- ‘‘क्या अधिक महत्वपूर्ण है – कहानी या कहानीकार?‘‘ इस फिल्म में परेश रावल, आदिल हुसैन, रेवती और तनिष्ठा चटर्जी जैसे कलाकारों के अहम किरदार हैं.

प्रसिद्ध लघु कहानी के फिल्म रूपांतरण पर अपने विचार साझा करते हुए निर्देशक अनंत नारायण महादेवन ने कहा, “कथा के जीवन और काम के आसपास समारोह के हिस्से के रूप में, हम अपनी विनम्र श्रद्धांजलि साझा करने के लिए बहुत खुश और सम्मानित हैं. द स्टोरी टेलर एक कालातीत कहानी है, जो लोगों की मानसिकता की पड़ताल करती है. इस के बारे में रे का सूक्ष्म व्यवहार वास्तव में, बदले की कहानी पर एक मुस्कान देता है.

बुद्धि, नाटक और यहां तक कि रहस्य का मिश्रण, फिल्म रे को एक ऐसी में लाने का एक प्रयास है जिसने केवल उनके बारे में सुना है या कभी-कभी उनके संग्रह से अवगत कराया गया है.’’

अनंत महादेवन ने अपने समय के मशहूर फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे की सभी फिल्में देखी हैं. वह सत्यजीत रे की पसंदीदा फिल्म के संबंध में कहते हैं- ‘‘ रे साब की एक फिल्म को इंगित करना मुश्किल है क्योंकि उनकी सभी फिल्में शानदार हैं. उनकी हर फिल्म का अपना सिनेमाई बयान होता है. लेकिन फिर भी, अगर मुझे किसी एक को चुनना है, तो वह ‘चारुलता’ होगी.’’

समस्या: ‘बूढ़ा’ के बगैर कैसे टूटेगी नक्सलियों की कमर

उम्र 80 साल. कई बीमारियों का शिकार. लकवा से पीडि़त. इस के बाद भी 4 राज्यों में नक्सली संगठनों की कमान. सिर पर एक करोड़ रुपए का इनाम. कई राज्यों में 200 से ज्यादा नक्सली वारदातों का आरोपी. हत्या के 100 से ज्यादा केस. 40 सालों से पुलिस को उस की तलाश.

प्रशांत बोस नाम का यह नक्सली कई सारे नामों से जाना जाता है. प्रशांत उर्फ किशन दा उर्फ मनीष उर्फ निर्भय मुखर्जी उर्फ काजल उर्फ महेश उर्फ बूढ़ा.

पिछले 40 सालों से पुलिस और 4 राज्यों की सरकार की नाक में दम करने वाला कुख्यात नक्सली प्रशांत बोस सैकड़ों नक्सली वारदातों का मास्टरमाइंड है. 12 नवंबर, 2021 को आखिरकार वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. झारखंड के जमशेदपुर जिला के कांद्रा नाका के पास से उसे स्कौर्पियो गाड़ी में दबोच लिया. उस के साथ उस की बीवी शीला मरांडी और 5 नक्सलियों को पकड़ा गया.

प्रशांत बोस भाकपा माओवादी नक्सली संगठन के पोलित ब्यूरो का सदस्य है और ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो का सचिव है. प्रशांत बोस ने कन्हाई चटर्जी के साथ मिल कर साल 1978 में माओवादी कम्यूनिस्ट सैंटर औफ इंडिया की बुनियाद रखी थी.

प्रशांत बोस के पास से पुलिस ने डेढ़ लाख रुपए नकद, एक पैन ड्राइव और

2 मैमोरी कार्ड बरामद किए थे. पुलिस ने पैन ड्राइव और मैमोरी कार्ड की जांच की, तो उस में कई नक्सलियों व नक्सली संगठनों के बारे में जानकारी के साथसाथ कई मीटिंगों की जानकारी भी मिली थी.

इस से पहले सीपीआई माओपादी संगठन के हार्डकोर नक्सली बैलून सरदार और सूरज सरदार ने रांची पुलिस के सामने सरैंडर किया था. उन्हीं से मिली जानकारी के आधार पर प्रशांत बोस को दबोचने में पुलिस को कामयाबी मिल सकी थी.

प्रशांत बोस नक्सली संगठन का थिंक टैंक है और पूरे देश के नक्सली संगठनों में उस की पैठ और अहमियत है. वह झारखंड के जंगलों और पहाडि़यों में ही रहता था. पुलिस को कई बार उस के हजारीबाग के जंगलों, बोकारो के झुमरा जंगल, सरांडा के जंगल और बूढ़ा पहाड़ में होने की जानकारी मिलती रही थी.

पुलिस ने घेराबंदी कर उसे पकड़ने की कोशिश भी की, लेकिन हर बार वह पुलिस को चकमा देने में कामयाब हो जाता था. सरांडा के जंगल में सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन से कई दफा उस की मुठभेड़ हुई, पर हर बार वह बच निकला.

प्रशांत बोस मूल रूप से पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के जादवपुर का रहने वाला है. उस की बीवी शीला मरांडी झारखंड के टुंडी ब्लौक के नावाटांड गांव की रहने वाली है.

प्रशांत बोस के पिता का नाम ज्योतिंद्र नाथ सन्याल था. प्रशांत बोस का मूल पता है 7/12 सी, विजयगढ़ कालोनी, जादवपुर, कोलकाता. उस की बीवी शीला मरांडी के पहले पति का नाम भादो हंसदा था. उस की मौत के बाद शीला ने प्रशांत बोस से शादी कर ली.

साल 1960 में प्रशांत बोस ने नक्सलियों से जुड़े एक मजदूर संगठन से जुड़ कर जमींदारों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. साल 1974 में वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया था और 1978 तक जेल की सलाखों के पीछे कैद रहा था.

रिहाई के कुछ समय बाद ही कन्हाई चटर्जी के साथ मिल कर उस ने एमसीसीआई (माओवादी कम्यूनिस्ट सैंटर औफ इंडिया) की बुनियाद रखी थी. उस के बाद उस ने गिरीडीह, धनबाद, हजारीबाग और बोकारो के जमींदारों के शोषण के खिलाफ आंदोलन तेज कर दिया था.

साल 2000 के आसपास प्रशांत बोस ने लोकल संथाल नेताओं के साथ मिल कर नक्सली संगठन को काफी मजबूत बना लिया था. साल 2004 में भाकपा माओवादी संगठन बनने के बाद प्रशांत बोस को केंद्रीय समिति और केंद्रीय सैन्य आयोग का सदस्य व पूर्वी क्षेत्रीय ब्यूरो का इंचार्ज बना दिया था.

साल 2007 में झारखंड मुक्ति मोरचा के महासचिव और जमशेदपुर के सांसद सुनील महतो की हत्या कर प्रशांत बोस ने सनसनी मचा दी थी. उस के अगले ही साल मंत्री रमेश मुंडा की हत्या कर एक बार फिर दहशत फैला दी थी. गृह रक्षा वाहिनी के शस्त्रागार को लूट कर उस ने पुलिस और सरकार को खुली चुनौती दे डाली थी. सरांडा के जंगल के 16 पुलिस वालों की हत्या का मास्टरमाइंड प्रशांत बोस ही था.

बिहार के जहानाबाद जेल बे्रक, महाराष्ट्र की कोकेगरांव हिंसा, छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में डेढ़ दर्जन जवानों की हत्या का सूत्रधार प्रशांत बोस ही था. ऐसे ही सैकड़ों मामलों में पुलिस उसे कई सालों से ढूंढ़ रही थी और हर बार पुलिस के जवानों की आंखों में धूल झोंकने में ‘बूढ़ा’ कामयाब हो जाता था.

मिली जानकारी के मुताबिक, प्रशांत बोस ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि 70 के दशक में वह पारसनाथ आया था. वहीं से वह लगातार नक्सली गतिविधियों का संचालन करता रहा. बीमारी और काफी उम्र हो जाने की वजह से उस ने कुछ दिन पहले ही फैसला लिया था कि जिंदगी का बाकी समय वह पारसनाथ की पहाडि़यों पर रह कर ही काटेगा.

प्रशांत बोस ने यह भी कहा कि सरांडा छोड़ने के बाद संगठन में फूट पड़ चुकी है. लोकल कैडर और नेतृत्व के बीच मतभेद काफी बढ़ चुका है. संगठन में मतभेद की वजह से ही पिछले कुछ महीनों में कई नक्सलियों ने सरैंडर किया है. नक्सलियों के लेवी वसूली में भी काफी कमी आ गई, जिस से संगठन चलाना बहुत ही मुश्किल हो गया है.

झारखंड के बड़े पुलिस अफसर कहते हैं कि तकरीबन 80 साल का प्रशांत बोस जिस्मानी तौर पर भले ही कमजोर हो चुका है, लेकिन दिमागी रूप से अभी भी बहुत शातिर है. अभी भी वह किसी का भी दिमाग घुमा कर नक्सली बना सकता है.

बुराई: जानलेवा नशा और नामचीन लोग

अभी कुछ दिन पहले जब गोवा में अचानक हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी की नेता और ‘टिकटौक’ पर अपने डांस से लोगों को दीवाना बना देने वाली सोनाली फोगाट के मरने की खबर आई थी, तो लोगों को लगा था कि इतनी फिट औरत कैसे अचानक हार्ट अटैक से मर सकती है? पर सोनाली फोगाट के घर वालों को उन की मौत पर शक हुआ और उन की फरियाद पर पुलिस ने दोबारा छानबीन की. फिर कुछ ऐसा पता चला, जो सोनाली फोगाट की मौत में ट्विस्ट ले आया.

इस सिलसिले में पुलिस ने सुधीर सागवान और सुखविंदर सिंह नाम के

2 लोगों को धरा और उन पर इलजाम लगाया कि उन्होंने कथित तौर पर पानी में नशीली चीज मिलाई थी और 22 और 23 अगस्त, 2022 की रात को कर्लीज रैस्टोरैंट में एक पार्टी के दौरान सोनाली फोगाट को इसे पीने के लिए मजबूर किया था.

अभी यह मामला सुर्खियों में ही था कि हालिया बर्मिंघम कौमनवैल्थ गेम्स में कांसे का तमगा जीतने वाली हरियाणा की एक पहलवान पूजा सिहाग नांदल के पति अजय नांदल की संदिग्ध हालत में मौत हो गई. वे रोहतक के मेहर सिंह अखाड़े के नजदीक कार में अपने 2 पहलवान दोस्तों के साथ पार्टी कर रहे थे.

गांव गढ़ी बोहर के बाशिंदे बिजेंद्र नांदल के 30 साल के बेटे अजय नांदल भी पहलवान थे. उन्हें कुश्ती के आधार पर ही सीआईएसएफ में नौकरी मिली थी. वे शनिवार, 27 अगस्त, 2022 को ही नौकरी कर के घर लौटे थे और उसी शाम को अपने 2 साथी पहलवान रवि और सोनू के साथ कार में पार्टी कर रहे थे.

पुलिस की शुरुआती जांच में सामने आया कि उन तीनों ने कुछ ऐसा पी लिया था, जिस के बाद उन की तबीयत बिगड़ने लगी थी. इस के बाद वे कार ले कर देव कालोनी में बने मेहर सिंह अखाड़े के पास पहुंचे, जहां और ज्यादा तबीयत खराब होने पर वे निजी अस्पताल में गए, वहां अजय नांदल की मौत हो गई.

अजय नांदल के पिता बिजेंद्र किसान हैं, जबकि मां सुनीता घरेलू औरत हैं. अजय और पूजा ने 28 नवंबर, 2021 को ही लव मैरिज की थी, जिस में दोनों के परिवारों की रजामंदी थी.

खबरों की मानें, तो पुलिस को कार में सिरिंज मिली थी और नशे में ओवरडोज का शक जताया जा रहा था, जबकि अजय नांदल के पिता बिजेंद्र ने रवि पर अजय को नशे की ओवरडोज दे कर मारने का आरोप लगाया.

अजय नांदल या सोनाली फोगाट को किसी ने नशे की ओवरडोज दी या वे खुद नशे के आदी थे, इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. फर्क इस बात से पड़ता है कि वे दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं और उन के सगेसंबंधी सारी उम्र इस दर्द के साथ गुजारेंगे कि नशे ने उन के अपनों की जान ले ली.

ऐसा नहीं है कि इस तरह के कांड पहले नहीं हुए हैं या इन से पहले नामचीन लोगों का नाम नशे के साथ नहीं जुड़ा है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में संजय दत्त, प्रतीक बब्बर, रणबीर कपूर, फरदीन खान, हनी सिंह, पूजा भट्ट, मनीषा कोइराला के अलावा और भी न जाने कितने नाम हैं, जो अपनी नशे की लत के बारे में खुल कर बोल चुके हैं.

संजय दत्त ने ‘इवैंट ऐंड ऐंटरटेनमैंट मैनेजमैंट एसोसिएशन’ के एक सालाना सम्मेलन में खुद खुलासा किया था, ‘‘नशीली दवाओं के सेवन के बारे में कुछ ऐसा है कि अगर आप इन का इस्तेमाल करना चाहते हैं, तो इन का इस्तेमाल करेंगे ही. एक बार जब आप इस की लत में पड़ जाते हैं, तो इसे छोड़ना बहुत मुश्किल होता है. दुनिया में कुछ भी इस से बुरा नहीं है. मैं तकरीबन 12 साल तक नशीली दवाओं का सेवन करता रहा.

‘‘दुनिया में ऐसी कोई ड्रग नहीं है, जिस का मैं ने सेवन न किया हो. जब मेरे पिता मुझे नशा मुक्ति के लिए अमेरिका ले गए, तो डाक्टर ने मुझे ड्रग्स की एक लिस्ट दी और मैं ने उस लिस्ट में लिखी हर ड्रग को टिक किया, क्योंकि मैं

उन सभी को पहले ही ले चुका था.

‘‘डाक्टर ने मेरे पिताजी से कहा था कि आप लोग भारत में किस तरह का खाना खाते हैं? इन्होंने जो ड्रग्स ली हैं, उन के मुताबिक इन्हें अब तक मर जाना चाहिए.’’

इसी तरह राज बब्बर और स्मिता पाटिल के बेटे प्रतीक बब्बर ने अपने नशे की लत पर कहा, ‘‘मेरी ड्रग्स की वजह से मेरा बचपन अशांत रहा. लगातार अंदरूनी कलह की वजह से, मेरे सिर में आवाजें गूंजती रहती थीं. मैं खुद से सवाल करता था कि मैं कहां हूं. केवल 13 साल की उम्र में मैं ने पहली बार ड्रग्स ली और फिर लती हो गया.

‘‘ड्रग्स के बिना मेरा बिस्तर से उठना तकरीबन नामुमकिन था. तकरीबन हर सुबह मेरा जी मिचलाता था. मेरे शरीर में दर्द होता था. मुझे कभी गरमी तो कभी सर्दी लगती थी.

‘‘जब मेरे पास कोई पसंदीदा

ड्रग नहीं होती थी, तो मैं किसी

भी ड्रग्स को अपना बना

लेता. जबकि यह मेरे

लिए बहुत ही हानिकारक था.’’

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री और राजनीतिक गलियारों में नशे से जुड़ी खबरों का जन्म लेना कोई नई बात नहीं है, पर अब खेल जगत में खासकर पहलवानी जैसे खेलों में ड्रग्स की ऐंट्री खतरे की घंटी है.

हरियाणा से लगते पंजाब में नशे ने जो कोहराम मचाया हुआ है, वह किसी सुबूत का मुहताज नहीं है. पंजाबी रैप सिंगर हनी सिंह भी इस बुराई से जूझ चुके हैं. पर हरियाणा के पहलवानों और दूसरे खिलाडि़यों में अगर ड्रग्स घुस चुकी है तो यह चिंता की बात है.

पर यह नशे की लत लोगों में बढ़ क्यों रही है? इस सिलसिले में लखनऊ की मांडवी पांडेय, जो ‘दार्जुव 9’ में इको एंटरप्रेन्योर हैं, ने बताया, ‘‘आज लोग वास्तविक जिंदगी से ज्यादा आभासी दुनिया में जी रहे हैं. उन का अपनों से मिलना कम हो चुका है. दुख और हैरत की बात है कि वर्चुअल दुनिया में लोगों को एकदूसरे से खुद को बेहतर दिखाने की होड़ लगी हुई है.

‘‘गांव हो या शहर, अब परिवार की भावना बिखर रही है. आभासी दुनिया के ‘लाइक ऐंड कमैंट’ पर दुनिया सिमटती जा रही है. इन्हीं सब से मानसिक अवसाद पैदा हो रहा है, जो लोगों को नशे की तरफ ले जा रहा है. यह खतरनाक है और इसीलिए आज नशे के खिलाफ जागरूकता फैलाने की बहुत जरूरत है. लोगों को अपने परिवार की अहमियत समझनी होगी. अकेलेपन से बचने का यह सब से कारगर तरीका है.’’

परिवार के साथसाथ यह अकेलापन किसी काम में रमने से भी कम किया जा सकता है, इसलिए काम का नशा कीजिए, जिंदगी जीने का उस से बढि़या कोई तरीका नहीं है.

गरम गोश्त के सौदागर: भाग 3

‘‘मिस्टर अरूप, मुझे विशाल ने आप का नंबर दिया है. मैं आप की सेवा मुफ्त में नहीं लूंगा. माल आप का होगा, कीमत अदा मैं करूंगा.’’

‘‘विशाल ने नंबर दिया है तो आप से मिलने और आप की खिदमत करना मैं अपना फर्ज समझूंगा. आप इस वक्त कहां खड़े हैं?’’

‘‘मैं पंचशील पार्क में अपने दोस्त के साथ खड़ा हूं.’’ कांस्टेबल सोहनवीर ने बताया.

‘‘ठीक है, मैं चंद मिनटों में पहुंच रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से कहा गया और संपर्क कट कर दिया गया.

और फिर थोड़ी ही देर में एजेंट मोहम्मद अरूप उस पार्क के गेट पर हाजिर हो गया.

कांस्टेबल सोहनवीर गर्मजोशी से उस से मिला. दोनों ने हाथ यूं मिलाए, जैसे एकदूसरे को बरसों से जानते हों.

‘‘आप किस प्रकार का एजौय चाहेंगे मिस्टर अभिषेक, मेरे गुलदस्ते में देशीविदेशी दोनों प्रकार के फूल हैं.’’ मोहम्मद अरूप ने पूछा.

‘‘देशी फूल तो इंडिया में मिल जाते हैं, विदेशी फूल की खुशबू सुंघाइए आप.’’ सोहनवीर ने मुसकरा कर कहा.

‘‘विदेशी फूल कीमती है जनाब.’’

‘‘आप रुपयों की चिंता मत कीजिए. बाई द वे, क्या कीमत होगी एक फूल की?’’

‘‘एक शौट 15 हजार रुपए का होगा, फुलनाइट के लिए 25 हजार कीमत है.’’

‘‘फिलहाल एक शौट ही बहुत होगा, फुल एंजौय अगली बार के लिए.’’ सोहनवीर हंस कर बोला, ‘‘हम 30 हजार दे देंगे, आप फूलों की झलक दिखाइए.’’

‘‘आप मेरे साथ आइए,’’ मोहम्मद अरूप ने इशारा किया.

दोनों उस के साथ चल पड़े. मोहम्मद अरूप उन्हें पंचशील विहार की आदर्श हास्पिटल वाली गली के एक फ्लैट बी-49 में लाया. यहां बड़ा लोहे का गेट लगा था. मोहम्मद अरूप ने घंटी बजा कर कोड भाषा में कुछ बोला तो गेट खुल गया.

सामने एजेंट चंदे साहनी उर्फ राजू खड़ा था. उस ने उन दोनों का स्वागत किया. वे चारों सीढि़यों द्वारा चौथी मंजिल पर आ गए. बाहर शानदार बैठक थी, जहां सोफे लगे थे. सोहनवीर और राजेश उन पर बैठ गए.

मोहम्मद अरूप ने ताली बजाई तो अंदर से 10 गोरी चमड़ी वाली विदेशी लड़कियां बाहर आ कर खड़ी हो गईं. जवान व खूबसूरत हसीनाएं. सब एक से बढ़ कर एक. वे मुसकरा रही थीं.

‘‘आप को इन में से जो पसंद हो, उसे लाइन से अलग कर लीजिए.’’ चंदे साहनी ने मुसकरा कर कहा.

कांस्टेबल सोहनवीर ने एक 19 साल की हसीना की कलाई पकड़ कर उसे लाइन से बाहर कर लिया. एएसआई ने भी अपना पार्टनर चुन लिया. शेष 8 वापस कमरों में लौट गईं.

‘‘लाइए, 30 हजार रुपए दीजिए.’’ मोहम्मद अरूप ने हथेली बढ़ाई.

कांस्टेबल सोहनवीर ने पर्स से डीसीपी के हस्ताक्षर किए हुए 5-5 सौ के 30 नोट निकाल कर मोहम्मद अरूप के हाथ में रख दिए.

‘‘यह तो आप के हुए…’’ मोहम्मद अरूप नोट गिनने के बाद बोला, ‘‘इन जनाब के 15 हजार भी दीजिए.’’

‘‘मैं कुछ देर में शौक करूंगा. मुझे पूरी तरह फिट होने के लिए 5 मिनट का वक्त चाहिए. अभिषेक तुम इसे ले कर कमरे में जाओ और मौज करो…’’ एएसआई राजेश आंख दबा कर बोले.

फिर मोहम्मद अरूप की तरफ देख कर बोले, ‘‘मुझे एक गोली खानी है, क्या एक गिलास पानी मिलेगा?’’

एएसआई ने जेब से एक लाल रंग का कैप्सूल निकाला.

‘‘क्यों नहीं,’’ अरूप ने चंदे साहनी को पानी लाने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘फिट होने की गोली है क्या जनाब?’’

‘‘हां,’’ एएसआई हंस कर बोले और चंदे साहनी से पानी का गिलास ले कर बालकनी में आ गए. वह कैप्सूल विटामिन का था. पानी के साथ उसे गले से नीचे उतार लेने के बाद गिलास दूसरे हाथ में ले कर एएसआई राजेश ने सिर पर हाथ फेरा. यह रेडिंग पार्टी के लिए इशारा था.

कुछ ही क्षण गुजरे होंगे कि पुलिस रेडिंग पार्टी धड़धड़ाती हुई इमारत में घुस आई. उन्हें देखते ही मोहम्मद अरूप अंदर की ओर भागा लेकिन एएसआई राजेश ने छलांग कर उसे दबोच लिया. चंदे साहनी पर कांस्टेबल सोहनवीर झपट चुका था. उसे भी काबू करते देर नहीं लगी.

कुछ ही देर में रेडिंग पार्टी ने 10 लड़कियां, उन से धंधा करवाने वाले इस देह धंधे के मालिक डोब अहमद और उस की पत्नी जुमायेवा, दोनों एजेंट मोहम्मद अरूप और चंदे साहनी तथा इन युवतियों को यहां दिल्ली लाने वाले अली शेर को गिरफ्तार कर लिया.

ये सभी लड़कियां उज्बेकिस्तानी थीं. अली शेर इन्हें अच्छी नौकरी का झांसा दे कर नेपाल के रास्ते दिल्ली ले कर आया था. यहां इन को इस सैक्स रैकेट के सरगना डोब अहमद के हवाले कर दिया गया था, जो इन के पासपोर्ट और वीजा अपने कब्जे में करने के बाद इन से जबरन देह का धंधा करवा रहा था. इस में इस की पत्नी जुमायेवा भी शामिल थी.

डोब अहमद तुर्कमेनिस्तान का निवासी था और वह अपनी पत्नी के साथ मालवीय नगर के इस पंचशील विहार के फ्लैट में किराया दे कर चौथी मंजिल पर यह सैक्स का धंधा चला रहा था.

दलाल चंदे साहनी वार्ड नंबर 6, नेरिया, पोस्ट सोनहन,थाना किओरी, दरभंगा, बिहार का निवासी था. मोहम्मद अरूप थाना पूर्णिया जिला कटिहार, बिहार से था. ये दोनों ग्राहक पटा कर यहां लाते थे. मोहम्मद अरूप को डोब अहमद 20 हजार रुपया महीना देता था. वह यहां का मैनेजर भी था.

इन सभी को थाना पुष्प विहार, क्राइम ब्रांच लाया गया. पकड़ी गई लड़कियों की तलाशी में पासपोर्ट और वीजा नहीं मिला. इस के लिए अवैध रूप से भारत आने और रहने के लिए मुकदमा दर्ज

किया गया.

इस प्रकरण को एसआई सुमन बजाज के द्वारा भादंवि की धारा 370(4), 34 और आईटीपी एक्ट की धारा 3, 4, 5 के अंतर्गत दर्ज करवाया गया.

डीसीपी विचित्रवीर (क्राइम ब्रांच) ने इस रैकेट का भंडाफोड़ करने वाली टीम को शाबासी दे कर उन का सम्मान किया. पुलिस ने सभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.द्य

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कोई नहीं: क्या हुआ था रामगोपाल के साथ

प्यार का रिश्ता: कौनसा था वह अनाम रिश्ता – भाग 3

रमेश का शराब का चसका इतना बढ़ गया था कि बक्से, अलमारी में उस का छिपाया हुआ पैसा, सब चुरा कर ले गया. रीना ने तकिए के अंदर अपनी सोने की अंगूठी और पायल छिपा कर सिल दी थी. वह भी नशे के लिए रमेश चुरा कर ले गया था. शराब के नशे में रमेश कभी नाली में पड़ा मिलता, तो कभी ठेके पर. जब चाल वाले रीना को खबर करते, तो वह पकड़ कर ले आती. लेकिन अब जब वह गाली देता तो वह भी चार सुनाती.

अगर मारने को वह हाथ उठाता, तो वह भी जो हाथ में आता उठा कर मार देती. जिस दिन रीना को पता लगा कि वह उस की अंगूठी, रुपए, पायल चुरा ले गया?है, उस दिन उस ने उसे चुनचुन कर गाली दी और धक्के मार कर घर से निकाल दिया था.

सरिता मैडम बैंक में काम करती थीं, उन्होंने रीना का अकाउंट बैंक में खुलवा दिया. उस की एक रैकरिंग की स्कीम भी चालू करवा दी. अब वह अपने पैरों पर खड़ी थी. इस के अलावा कपड़ेत्योहार वगैरह अलग मिल जाते थे. अब वह रमेश से नहीं डरती थी और न ही उस की परवाह करती थी. सोसाइटी में दूसरी बाइयों के साथ खूब बातें होतीं, सब की एक सी परेशानी रहती, लेकिन आपस में हंसीमजाक कर  के सब अपना दिल हलका कर लेती थीं. वहीं पर रीना की मुलाकात सुनील से हुई थी.

वह वहां पर प्लंबर था. छोटी सी आपसी मुसकान दोस्ती में बदल गई थी.  ‘‘काहे री छम्मकछल्लो, आज बड़ी सुंदर लग रही हो,’’ सुनील बोला. रीना मुसकरा कर शरमा गई. अभी वह 23-24 साल की ही तो थी. उस के मन में भी तो अरमान थे. इधर रमेश की हालत बिगड़ती चली जा रही थी. उस का लिवर खराब हो रहा था. वह उस के लिए दवा ले आती, लेकिन उस से कोई फायदा नहीं होता.

रीना और सासू मां दोनों मिल कर रमेश को ‘नशा मुक्ति सैंटर’ ले गईं. सुनील ने बताया था कि पहले वह भी शराब पीने लगा था, लेकिन वहां से इलाज करा कर ठीक हो गया. रमेश भी वहां भरती रहा. उस का नशा छूट भी गया था, लेकिन वहां से लौट कर आते ही उस ने फिर से शराब पीना शुरू कर दिया था. अब उस की हालत पहले से ज्यादा बिगड़ गई थी. रीना रमेश की हरकतों से तंग हो चुकी थी, इसलिए वह अपने काम पर खूब सजधज कर जाती.

सुनील उस के लिए चूड़ी ले आया था. वह पहन कर अपने हाथों को निहारती हुई निकल  रही थी. तभी रमेश गाली देते हुए चिल्लाया, ‘‘काम पर जाती है कि अपने यार  से मिलने जाती है. ऐसे सजधज कर निकलती है, जैसे मेला देखने जा रही हो.’’ ‘‘काहे गाली दे रहे हो. मुझे भरभर हाथ चूड़ी अच्छी लगती है तो पहनती हो. काहे को गुस्सा हो रहे हो. तुम्हारे नाम की ही तो चूड़ी पहनती हूं,’’ इतना कह कर रीना जल्दीजल्दी अपने काम पर जाते के लिए निकल पड़ी थी.

चाल में आतेजाते अखिल मिल जाता था. वह भी देवर बन कर उस से हंसीमजाक करता. पहले तो रमेश के डर से रीना बाहर निकलती ही नहीं थी. अब वह आराम से उस से भी बात करती.  ‘‘भाभीजी, बड़ी लाइट मार रही हो,’’ अखिल बोला. तारीफ भला किसे नहीं पसंद. वह भी उस के समय से ही निकलती. वह रमेश के सामने भी कई बार उस के घर चाय पीने आ जाता. ‘‘रमेश भैया, बड़े किस्मत वाले हो, जो ऐसी पत्नी मिली, घर भी संभाल रही है और बाहर भी,’’ अखिल जब यह बोलता, तब रमेश कुढ़ कर रह जाता. रीना खूब सजधज कर अपने काम पर जाया करती, जो रमेश को बहुत नागवार गुजरता, लेकिन अब वह उस की परवाह नहीं करती थी. दूसरा, वह शारीरिक रूप से बहुत कमजोर हो चुका था.

रमेश अपनी अम्मां से चुपचाप पैसा ले लेता और शराब पी आता. अब तो डाक्टर ने भी मना कर दिया था. रीना कभी डाक्टर के हाथ जोड़ती, तो अस्पताल भागती. उसे काम से भी छुट्टी लेनी पड़ती, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल रहा था. मैडम से रोजरोज छुट्टी मांगती तो वे चार बातें सुनातीं. इधर बच्चों की अलग स्कूल से शिकायत आई थी. रीना तो पढ़ीलिखी नहीं थी. उस ने सुनील के सामने अपनी समस्या रखी तो वह पढ़ाने को राजी हो गया. उस ने पैसे की बात पूछी, तो उस ने मना कर दिया. सुनील रोज सुबहसुबह बच्चों को पढ़ाने के लिए आने लगा. कभी वह तो कभी सासू मां सुबह उस को चायनाश्ता करवा देतीं. यह आपसी तालमेल अच्छा बन गया था.

बच्चों के इम्तिहान में नंबर अच्छे आए, तो उस का मन खुश हो गया था. रमेश की हालत बिगड़ती जा रही थी. वह समझ रही थी कि अब रमेश ज्यादा दिन नहीं रहेगा. एक दिन रीना काम पर गई हुई थी, तभी उस के फोन पर खबर आई कि तेरा रमेश हिचकी ले रहा है. वह भाग कर घर आई थी. पीछेपीछे सुनील भी आ गया था. रमेश सच में इस दुनिया से विदा हो गया था. फिर शुरू हो गया चाल की औरतों का जुड़ना, रिश्तेदारों का आना और रोनाधोना, सासू मां पछाड़ें खा रही थीं. दोनों बच्चे भी ‘पापापापा’ कह कर रो रहे थे.

मैं अपने प्रेमी से शादी करने वाली हूं पर अब मेरा पुराना प्रेमी वापस आ गया है, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं 24 वर्षीय युवती हूं. एक युवक से मैं पिछले 3 साल से प्रेम करती थी, लेकिन किसी कारण उस से ब्रेकअप हो गया. लेकिन मैं ने निराशा का दामन छोड़ आशा का मार्ग अपनाया और एक अन्य युवक से मेरा अफेयर हो गया अब हम शादी करने वाले हैं, लेकिन पिछले हफ्ते मेरा पुराना प्रेमी बाजार में मुझ से अचानक मिल गया और बोला कि मैं अब सुधर गया हूं तथा तुम्हारा साथ चाहता हूं. अब मैं क्या करूं?

जवाब
यह लड़का जो आप को छोड़ गया फिर आप ने बड़ी मुश्किल से खुद को संभाला और अब जब आप अपने जीवन को अपने दूसरे प्यार के साथ निभाने जा रही हैं तो वह सिर्फ आ कर माफी मांगता है और आप कन्फ्यूज हो जाती हैं कि क्या करूं?

अरे, उसे कहिए जा अब मेरी जिंदगी से. सोचिए, जब आप डिप्रैशन में थीं और ब्रेकअप के बाद बड़ी मुश्किल से खुद को संभाल रही थीं, वह कहां था. क्या वह तब आया आप से माफी मांगने? क्या उस के पास आप का कौन्टैक्ट नंबर, घर का पता, सहेली आदि के जरिए बातचीत करने का अवसर नहीं था. अगर वह चाहता तो तभी आप से माफी मांग एक नई शुरुआत कर सकता था, पर अब तो आप भी काफी आगे निकल चुकी हैं. उस के प्यार का कोई मतलब नहीं.

Tripling Season 3: वेब सीरीज ‘ट्रिपलिंग की 3 साल बाद ‘‘जी 5’’ पर वापसी

भारत के सबसे बड़े वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म ‘‘जी 5’’ पर  लोकप्रिय फ्रैंचाइजी ‘ट्रिपलिंग‘ की वापसी तीसरे सीजन के साथ 21 अक्टूबर से होने जा रही है. इस बार इसके पांच एपीसोड होंगे. ‘टीवीएफ’ के अरुणाभ कुमार निर्मित इस सीजन का निर्देशन नीरज उधवानी ने किया है. इसकी कहानी अरुणाभ कुमार और सुमित व्यास ने लिखी है. पटकथा सुमित व्यास ने इसकी पटकथा अकेले लिखी है, पर संवाद अब्बास दलाल के साथ मिलकर लिखे हैं.

इसे अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- सुमित व्यास, मानवी गगरू, अमोल पाराशर, कुमुद मिश्रा, शेरनाज पटेल और कुणाल रॉय कपूर. ट्रिपलिंग’ का पहला सीजन 2016 में और दूसरा सीजन 2019 में आया था. अब तीन साल बाद तीसरा सीजन आ रहा है.पहले की बनिस्बत दर्शकों ने दूसरे सीजन को कम पसंद किया था.लेकिन अरूणाभ का दावा है कि तीसरा सीजन सर्वाधिक पसंद किया जाएगा.

ट्रिपलिंग की कहानी के केंद्र में दो सगे भाई चंदन व चितवन व बहन चंचल है. इस बार इन तीनों की माता (चारू) चारु और पिता (चिन्मय) के अलग होने की खबरों के  इर्द-गिर्द ऐसी कहानी है, जिसके चलते  भाई बहनों यानी कि चंदन, चंचल और चितवन को एक नए रोमांच पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है. जील हां! अपने माता पिता के रिश्ते को ठीक करने के भाई बहन की यह तिकड़ी इस बार अपने पैतृक घर वापस जाएंगे और अपने परिवार और अपने घर को खोने के खतरे से जूझते हुए, भाईबहन अपने समान विलक्षण मातपिता के साथ छोटे परिवार के कारनामों की एक श्रृंखला में शामिल होंगे.

हाल ही में ट्रिपलिंग सीजन 3’’ के ट्ेलर लांच के अवसर पर लेखक व चंदन का किरदार निभा रहे अभिनेता सुमित व्यास ने कहा, ‘‘ट्रिपलिंग मेरी गोटू थेरेपी है जहां मुझे अवधारणा, पटकथा और संवाद लिखने, अभिनय करने, बड़ी तस्वीर में योगदान करने और बहुत कुछ करने का मौका मिलता है.हर सीजन के साथ, मैं पात्रों और कहानी कहने वाले आर्क के करीब होता जा रहा हूं.यह सीजन हम सभी के लिए एक पागल सवारी होगी. क्योंकि हम भाईबहनों को पता चलता है कि परिवार में‘पागल‘ चलता है.लेकिन एक बात जो मैं आपसे वादा कर सकता हूं, वह यह है कि यह एकदिल को छू लेने वाली कहानी होगी, इसलिए बेहतर देखने के अनुभव के लिए अपने पागलपरिवार को पास रखें.’’

बहन चंचल का किरदार निभा रही अभिनेत्री मानवी गगरू ने कहा,“हर बार ट्रिपलिंग की  शूटिंग करना हमारे लिए घर वापसी ही होती है हम सभी एकदूसरे के लक्षणों और विचित्रताओं से इतने परिचित हैं और एकदूसरे के साथ इतनी गर्मजोशी साझा करते हैं कि यह  लगभग एक वास्तविक परिवार होने जैसा है. साथ ही, हर सीजन में हमें लंबे शेड्यूल के लिए बाहर जाना पड़ता है और यह एक ऐसी चीज है जिसे हम सभी संजोते हैं. इस सीजन में, हम अधिक ड्रामा, अधिक भावनाओं और ढेर सारी हँसी और मस्ती के साथ वापस आ गए हैं.”

चितवन का किरदार निभा रहे अभिनेता अमोल पाराशर ने कहा,“मैं इस शो और इस टीम का हमेशा आभारी हूं कि उन्होंने मुझे मेरा सबसे पसंदीदा किरदार चितवन दिया. मुझे अभी तक अपने करियर में एक और किरदार नहीं मिला है,जिसने इस सनकी दोस्त से बड़ा प्रभाव छोड़ा है. हर सीजन के साथ, शो का फैनबेस बढ़ता रहता है और मुझे विश्वास हैकि इस सीजन के साथ भी, प्रशंसकों की वापसी होगी और दर्शकों की एक पूरी नई पीढ़ी भीआएगी क्योंकि वेब पर ट्रिपलिंग से बेहतर और कुछ भी नहीं है.’’

सुमित व्यास ने आगे कहा‘‘ इस शो में चंदन का किरदार निभाना मेरे लिए बहुत आसान होता है. कयोकि कहानी व पटकथा ही नही संवाद लिखते समय मैं चंदन को जीते हुए सहजता के साथ इस किरदार मेंखुद को समाहित करता रहता हूं. लेकिन हमारे दूसरे सहकलाकारों को उनके किरदार को निभाना आसान नही होता है.’’

ज्ञातब्य है कि ट्रिपलिंग’’ के पहले सीजन को जितना पसंद किया गया था,उतना इसके दूसरे सीजन को पसंद नहीं किया गया था. इस पर मानवी गगरू ने कहा‘‘ मेरी समझ से दूसरे सीजन में कोई कमी नही थी. फर्क इतना था कि दूसरे सीजन में शैली और कहानी कहने का तरीका बेहद अलग था. हम सभी ने सोचा कि यह अच्छा होगा. लॉगलाइन पूरी तरह से अलग था. शो में भाईबहनों के साथ बहुत कुछ करना था और निश्चित रूप से बहुत सारे दर्शकों से संबंधित होता. लेकिन मुझे यकीन नहीं है कि इसका दूसरे सीजन को देखकर लोग अपनेभाई बहन के साथ रोड ट्रिप पर जाने लगे.

मुझे लगता है कि नवीनता कारक उसके बाद अस्तित्व में आया.पर पहले सीजन का बेंचमार्क इतना ऊंचा था कि कई लोगों ने महसूस किया होगा कि दूसरा सीजन उनके निर्धारितअपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरा. दूसरी बात जब पहला सीजन आया था, उस समय ओटीटी बेहद नया था. मैंने सीजन 2 की शूटिंग के दौरान बहुत अच्छा समय बिताया था. और अब तीसरे सीजन की शूटिंग के दौरान उससे भी अधिक अच्छा समय बिताया. पहले सीजन से दूसरे सीजन तक पहुंचते पहुंचते मैने अहसास किया कि चितवन का किरदार निभा रहे अभिनेता अमोल पाराशर, चितवन की तरह बन गया है. उसकी आदतें और बात करने का तरीका, वह जिस तरह के चुटकुले सुनाता है, वह चितवन की तरह है.’’

दीवाली: राजीव और उसके परिवार को कौनसी मिली नई खुशियां

‘‘देखो, शालिनी, मैं तुम से कितनी बार कह चुका हूं कि यदि साल में एक बार तुम से पैसे मांगूं तो तुम मुझ से लड़ाई मत किया करो.’’ ‘‘साल में एक बार? तुम तो एक बार में ही इतना ज्यादा हार जाते हो कि मैं सालभर तक चुकाती रहती हूं.’’

शालिनी की व्यंग्यभरी बात सुन कर राजीव थोड़ा झेंपते हुए बोला, ‘‘अब छोड़ो भी. तुम्हें तो पता है कि मेरी बस यही एक कमजोरी है और तुम्हारी यह कमजोरी है कि इतने सालों में भी मेरी इस कमजोरी को तुम दूर नहीं कर सकीं.’’ राजीव के तर्क को सुन कर शालिनी भौचक्की रह गई. राजीव जब चला गया तो शालिनी सोचने लगी कि उस के जीवन की शुरुआत ही कमजोरी से हुई थी. एमए का पहला साल भी वह पूरा नहीं कर पाई थी कि उस के पिता ने राजीव के साथ उस की शादी की बात तय कर दी. राजीव पढ़ालिखा था और देखने में स्मार्ट भी था.

सब से बड़ी बात यही थी कि उस की 40 हजार रुपए महीने की आमदनी थी. शालिनी ने तब सोचा था कि वह अपने मातापिता से कहे कि वे उसे एमए पूरा कर लेने दें, पर राजीव को देखने के बाद उसे स्वयं ऐसा लगा था कि बाद में शायद ऐसा वर न मिले. बस, वहीं से शायद राजीव के प्रति उस की कमजोरी ने जन्म लिया था. उसे आज लगा कि विवाह के बाद भी वह राजीव की मीठीमीठी बातों व मुसकानों से क्यों हारती रही.

शादी के बाद शालिनी की वह पहली दीवाली थी. सुबहसुबह ही जब राजीव ने उस से कहा कि 10 हजार रुपए निकाल कर लाना तो शालिनी चकित रह गई थी कि कभी भी 1-2 हजार रुपए से ज्यादा की मांग न करने वाले राजीव ने आज इतने रुपए क्यों मांगे. शालिनी ने पूछा, ‘‘क्यों?’’

‘‘लाओ यार,’’ राजीव हंस कर बोला था, ‘‘जरूरी काम है. शाम को काम भी बता दूंगा.’’ राजीव की रहस्यपूर्ण मुसकराहट देख कर शालिनी ने समझा था कि वह शायद उस के लिए नई साड़ी लाएगा. शालिनी दिनभर सुंदर कल्पनाएं करती रही. पर जब शाम के 7-8 बजने पर भी राजीव घर नहीं लौटा तो दुश्चिंताओं ने उसे आ घेरा. तरहतरह के बुरे विचार उस के मन में आने लगे, ‘कोई दुर्घटना तो नहीं हो गई. किसी ने राजीव की बाइक के आगे पटाखे छोड़ कर उसे घायल तो नहीं कर दिया.’

8 बजने के बाद इस विचार से कि घर की दहलीज सूनी न रहे, उस ने 4 दीए जला दिए. पर उस का मन भयानक कल्पनाओं में ही लगा रहा. पूरी रात आंखों में कट गई पर राजीव नहीं आया. हड़बड़ा कर जब वह सुबह उठी थी तो अच्छी धूप निकल आई थी और उस ने देखा कि दूसरे पलंग पर राजीव सोया पड़ा है. उस के पास पहुंची, पर तुरंत ही पीछे भी हट गई. राजीव की सांसों से शराब की बू आ रही थी. तभी शालिनी को रुपयों का खयाल आया. उस ने राजीव की सभी जेबें टटोल कर देखीं पर सभी खाली थीं.

‘तो क्या किसी ने राजीव को शराब पिला कर उस के रुपए छीन लिए?’ उस ने सोचा. पर न जाने कितनी देर फिर वह वहीं खड़ीखड़ी शंकाओं के समाधान को ढूंढ़ती रही थी और आखिर में यह सोच कर कि उठेंगे तब पूछ लूंगी, वह काम में लग गई थी. दोपहर बाद जब राजीव जागा तो चाय देते समय शालिनी ने पूछा, ‘‘कहां थे रातभर? डर के मारे मेरे प्राण ही सूख गए थे. तुम हो कि कुछ बताते भी नहीं. क्या तुम ने शराब पीनी भी शुरू कर दी? वे रुपए कहां गए जो तुम किसी खास काम के लिए ले गए थे?’’

शालिनी ने सोचा था कि राजीव झेंपेगा, शरमाएगा, पर उसे धोखा ही हुआ. शालिनी की बात सुन कर राजीव मुसकराते हुए बोला, ‘‘धीरेधीरे, एकएक सवाल पूछो, भई. मैं कोई साड़ी खरीदने थोड़े ही गया था.’’ ‘‘क्या?’’ शालिनी चौंक कर बोली थी.

‘‘चौंक क्यों रही हो? हर साल हम एक दीवाली के दिन ही तो बिगड़ते हैं.’’ ‘‘तो तुम जुआ खेल कर आ रहे हो? 10 हजार रुपए तुम जुए में हार गए?’’ वह दुखी होते हुए बोली थी.

तब राजीव ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘‘अरे यार, सालभर में एक ही बार तो रुपया खर्च करता हूं. तुम तो साल में 5-6 हजार रुपयों की 4-5 साड़ीयां खरीद लेती हो.’’ शालिनी ने सोचा कि थोड़ी  ढील दे कर भी वह राजीव को ठीक कर लेगी, पर यही उस की दूसरी कमजोरी साबित हुई.

पहले 10 हजार रुपए पर ही खत्म हो जाने वाली बात 20 हजार रुपए तक पहुंच गई, जिसे चुकाने के लिए अगली दीवाली आ गई थी. पिछली बार तो उस ने छिपा कर बच्चों के लिए 10 हजार रुपए रखे थे, पर राजीव उन्हीं को ले कर चल दिया. जब राजीव रुपए ले कर जाने लगा तो शालिनी ने उसे टोकते हुए कहा था, ‘कम से कम बच्चों के लिए ही इन रुपयों को छोड़ दो,’ पर राजीव ने उस की एक न मानी.

उसी दिन शालिनी ने सोच लिया था कि अगली दीवाली पर इस मामले को वह निबटा कर ही रहेगी.

शाम को 5 बजे राजीव लौटा. बच्चों ने उसे खाली हाथ देखा तो निराश हो गए, पर बोले कुछ नहीं. शालिनी ने उन्हें बता दिया था कि पटाखे उन्हें किसी भी हालत में दीए जलने से पहले मिल जाएंगे. राजीव ने पहले कुछ देर तक इधरउधर की बातें कीं, फिर शालिनी से पूछा, ‘‘क्यों, हमारी मां के घर से आए हुए पटाखे यों ही पड़े हैं न?’’

शालिनी ने कहा, ‘‘पड़े थे, हैं नहीं.’’ ‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मैं ने कामवाली के बच्चों को दे दिए.’’ ‘‘पर क्यों?’’

‘‘उस के आदमी ने उस से रुपए छीन लिए थे.’’ राजीव ने कुछ सोचा, फिर बोला, ‘‘ओहो, तो यह बात है. घुमाफिरा कर मेरी बात पर उंगली रखी जा रही है.’’

‘‘देखो, राजीव, मैं ने आज तक कभी ऊंची आवाज में तुम्हारा विरोध नहीं किया. तुम्हें खुद ही मालूम है कि तुम्हारी आदतें क्याक्या गजब ढा सकती हैं.’’ शालिनी की बात सुन कर राजीव झुंझला कर बोला, ‘‘ठीक है, ठीक है. मुझे सब पता है. अभी तुम्हारा बिगड़ा ही क्या है? तुम्हें किसी के आगे हाथ तो नहीं फैलाना पड़ा है न?’’

शालिनी ने कहा, ‘‘यही तो डर है. कल कहीं मुझे कामवाली की तरह किसी और के सामने हाथ न फैलाना पड़े.’’ ऐसा कह कर शालिनी ने शायद राजीव की कमजोर रग पर हाथ रख दिया था. वह बोला, ‘‘बकवास बंद करो. पता भी है क्या बोल रही हो? जरा से रुपयों के लिए इतनी कड़वी बातें कह रही हो.’’ ‘‘जरा से रुपए? तुम्हें पता है कि साल में एक बार शराब पी कर बेहोशी में तुम हजारों खो कर आते हो. तुम्हें तो बच्चों की खुशियां छीन कर दांव पर लगाने में जरा भी हिचक नहीं होती. हमेशा कहते हो कि साल में एक बार ही तुम्हारे लिए दीवाली आती है. कभी सोचा है कि मेरे और बच्चों के लिए भी दीवाली एक बार ही आती है? कभी मनाई है कोई दीवाली तुम ने हमारे साथ?’’ शालिनी के मुंह से कभी ऐसी बातें न सुनने वाला राजीव पहले तो हक्काबक्का खड़ा रहा. फिर बिगड़ कर बोला, ‘‘अगर तुम मुझे रुपए न देने के इरादे पर पक्की हो तो मैं भी अपने मन की करने जा रहा हूं.’’ और जब तक शालिनी राजीव से कुछ कहती, वह पहले ही मोटरसाइकिल निकालने चला गया.

शालिनी सोचने लगी कि इन 11 सालों में भी वह नहीं समझ पाई कि हमेशा मीठे स्वरों में बोलने वाला राजीव इस तरह एक दिन में बदल सकता है. ‘कहीं राजीव दीवाली के दिन दोस्तों के सामने बेइज्जती हो जाने के डर से तो नहीं खेलता. लगता है अब कोई दूसरा ही तरीका अपनाना पड़ेगा,’ शालिनी ने तय किया.

उधर मोटरसाइकिल निकालने जाता हुआ राजीव सोच रहा था, ‘वह क्या करे? पटाखे ला कर देगा तो उस की नाक कट जाएगी. शालिनी रुपए भी नहीं देगी, उसे इस का पता था. अचानक उसे अपने मित्र अक्षय की याद आई. क्यों न उस से रुपए लिए जाएं.’ वह मोटरसाइकिल बाहर निकाल लाया. तभी ‘‘कहीं जा रहे हैं क्या?’’ की आवाज सुन कर राजीव चौंका. उस ने देखा, सामने से अक्षय की पत्नी रमा और उस के दोनों बच्चे आ रहे हैं.

‘‘भाभी, तुम? आज के दिन कैसे बाहर निकल आईं?’’ उस ने मन ही मन खीझते हुए कहा. ‘‘पहले अंदर तो बुलाओ, सब बताती हूं,’’ अक्षय की पत्नी ने कहा.

‘‘हां, हां, अंदर आओ न. अरे इंदु, प्रमोद, देखो तो कौन आया है,’’ मोटरसाइकिल खड़ी करते हुए राजीव बोला. इंदु, प्रमोद भागेभागे बाहर आए. शालिनी भी आवाज सुन कर बाहर आ गई, ‘‘रमा भाभी, तुम, भैया कहां हैं?’’

‘‘बताती हूं. पहले यह बताओ कि क्या तुम लोग एक दिन के लिए मेरे बच्चों को अपने घर में रख सकते हो?’’ शालिनी ने तुरंत कहा, ‘‘क्यों नहीं. पर बात क्या है?’’

रमा ने उदास स्वर में कहा, ‘‘बात यह है शालिनी कि तुम्हारे भैया अस्पताल में हैं. परसों उन का ऐक्सिडैंट हो गया था. दोनों टांगों में इतनी चोटें आई हैं कि 2 महीने तक उठ कर खड़े नहीं हो सकेंगे. और सोचो, आज दीवाली है.’’

राजीव ने घबरा कर कहा, ‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और आप ने हमें बताया तक नहीं?’’ रमा ने कहा, ‘‘तुम्हें तो पता ही है कि मेरे जेठजेठानी यहां आए हुए हैं. अब ये अस्पताल में पड़ेपड़े कह रहे हैं कि पहले ही मालूम होता तो उन्हें बुलाता ही नहीं. कहते हैं तुम लोग जा कर घर में रोशनी करो. मेरा तो क्या, किसी का भी मन इस बात को नहीं मान रहा.’’

राजीव और शालिनी दोनों ही जब चुपचाप खड़े रहे तो रमा ही फिर बोली, ‘‘अब मैं ने और उन के भैया ने कहा कि हमारा मन नहीं है तो वे कहने लगे, ‘‘मैं क्या मर गया हूं जो घर में रोशनी नहीं करोगी? आखिर थोड़ी सी चोटें ही तो हैं. बच्चों के लिए तो तुम्हें करना ही पड़ेगा.’’

‘‘मैं सोचती रही कि क्या करूं. तुम लोगों का खयाल आया तो बच्चों को यहां ले आई. तुम्हें कोई एतराज तो नहीं है?’’ इंदु, जो रमा की बातें ध्यान से सुन रही थी, राजीव से बोली, ‘‘पापा, आप राकेश, पिंकी के लिए भी पटाखे लाएंगे न?’’

राजीव चौंक कर बोला, ‘‘हां, हां. जरूर लाऊंगा.’’ राजीव ने कह तो दिया था, पर उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. वह इसी उधेड़बुन में था कि शालिनी अंदर से रुपए ला कर उस के हाथों में रखती हुए बोली, ‘‘जल्दी लौटिएगा.’’ तभी इंदु बोली, ‘‘पापा, आप को अपने दोस्त के घर जाना है न.’’

‘दोस्त के घर,’ राजीव ने चौंक कर इंदु की ओर देखा, ‘‘हां पापा, मां कह रही थीं कि आप के एक दोस्त के हाथ और पैर टूट गए हैं, वहीं आप उन के लिए दीवाली मनाने जाते हैं.’’ राजीव को समझ में नहीं आया कि क्या कहे. उस ने शालिनी को देखा तो वह मुसकरा रही है.

मोटरसाइकिल चलाते हुए राजीव का मन यही कह रहा था कि वह चुपचाप अपनी मित्रमंडली में चला जाए, पर तभी उसे अक्षय की बातें याद आ जातीं. राजीव सोचने लगा कि एक अक्षय है जो अस्पताल में रह कर भी बच्चों की दीवाली की खुशियों को ले कर चिंतित है और एक मैं हूं जो बच्चों को दीवाली मनाने से रोक रहा हूं. शालिनी भी जाने क्या सोचती होगी मेरे बारे में? उस ने बच्चों से उन के पिता की गलती छिपाने के लिए कितनी अच्छी कहानी गढ़ कर सुना रखी है. मोटरसाइकिल का हौर्न सुन कर सब बच्चे भाग कर बाहर आए तो देखा आतिशबाजियां और मिठाई लिए राजीव खड़ा है.

प्रमोद कहने लगा, ‘‘इंदु, इतनी सारी आतिशबाजियां छोड़ेगा कौन?’’ ‘‘ये हम और तुम्हारी मां छोड़ेंगे,’’ राजीव ने कहा और दरवाजे पर आ खड़ी हुई शालिनी को देखा जो जवाब में मुसकरा रही थी.

शालिनी ने शरारत से पूछा, ‘‘रुपए दूं, अभी तो रात बाकी है?’’ राजीव ने जब कहा, ‘‘सचमुच दोगी?’’ तो शालिनी डर गई. तभी राजीव शालिनी को अपने निकट खींचते हुए बोला, ‘‘मैं कह रहा था कि रुपए दोगी तो बढि़या सा एक खाता तुम्हारे नाम से किसी बैंक में खुलवा दूंगा.’’

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