मैंने अपनी 26 साल की मौसेरी बहन के साथ संबंध बनाए है पर अब वह मुझ से प्यार करने लगी है, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं 19 साल का हूं. मैं ने 26 साल की अपनी मौसेरी बहन के साथ हमबिस्तरी की है. अब वह मुझ से प्यार करने लगी है. मैं क्या करूं?

जवाब
मौसी की लड़की के साथ हमबिस्तरी कर के आप ने अच्छा नहीं किया है. घर वालों को पता चलेगा तो आप की फजीहत होगी. आइंदा आप यह गलती न करें.

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प्रेमी सहेली के साथ पकड़ा जाए

आशा और सुरेश का एक साल पहले अफेयर शुरू हुआ था. आशा ने सुरेश के साथ जीनेमरने की जाने कितनी कसमें खाईं, साथ रहने के सपने देखे लेकिन उस के ये सपने तब धराशायी हो गए जब एक दिन वह अपने रूम में कालेज से जल्दी आ गई और दरवाजा खोलते ही अपनी रूममेट और सब से अच्छी सहेली रोमा को अपने ही बौयफ्रैंड सुरेश के साथ हमबिस्तर पाया. यह उस की वही सहेली थी जो इन दोनों के प्यार की गवाह थी और उन के बीच होने वाली हर छोटीबड़ी बात जानती थी. यह सिर्फ आशा की ही कहानी नहीं है बल्कि यह अकसर सुनने में आता है कि एक सहेली ने दूसरी सहेली के बौयफ्रैंड को छीन लिया या अपना बना लिया.

वैसे तो ऐसा करना गलत है, लेकिन अगर ऐसा हो भी गया है तो रोनेधोने से काम नहीं चलेगा, बल्कि समझदारी से काम लेते हुए इस सिचुएशन को हैंडल करने की जरूरत है. आइए, जानें इस सिचुएशन से कैसे निकलें बाहर :

प्रेमी की असलियत सामने आई

यह तो अच्छी बात है कि प्रेमी की पोल आप के सामने जल्दी ही खुल गई वरना ये सब आप के घर में पता चल जाता तब आप उन की नजरों में भी गिर जातीं. अभी तो बात सहेली के सामने ही है और वह भी कोई आप की सगी नहीं है बल्कि उस ने तो आप की पीठ पीछे वार किया है, आप के प्रेमी को अपना बना कर. अच्छा हुआ, उस के करैक्टर के बारे में पहले ही पता चल गया. जो लड़का आप की सहेली पर बुरी नजर रख सकता है कल वह आप की बहन के साथ क्या करता, आप सोच भी नहीं सकतीं.

सहेली भी धोखेबाज निकली

वह सहेली चाहे बरसों से आप की कितनी भी अच्छी दोस्त क्यों न रही हो, लेकिन अब आप के साथ उस ने जो किया उस के बाद आप की जिंदगी में उस की कोई जगह नहीं होनी चाहिए. ऐसी दोस्त बनाने से अच्छा है आप अकेली ही रह लें.

जिंदगी का बड़ा सबक सीख लिया

इस रिलेशनशिप से आप जिंदगी का गहरा सबक लें. अब आप आगे जो भी कदम उठाएंगी सोचसमझ कर ही उठाएंगी. यह गम लंबे समय तक तंग करेगा लेकिन आप को इस से लड़ कर बाहर आने की हिम्मत लानी होगी, इस से आप को जीवन में आए दुखों से लड़ने की ताकत मिलेगी.

पढ़ाई पर ध्यान लगाएं

इस हादसे से आप अपना एक नुकसान कर चुकी हैं, अब पढ़ाई में पिछड़ कर दूसरा नुकसान न करें. अपने जीवन में सब से ज्यादा अहमियत पढ़ाई को ही दें, इस से अपनी स्टै्रंथ बना लें और ध्यान से पढ़ाई करने में जुट जाएं.

आप बदनाम होने से बच गईं

प्रेमी की फितरत ही धोखा देने की थी, तभी तो उस ने आप को चीट किया. एक तरह से देखा जाए तो अच्छा ही हुआ. ऐसे दोगले इंसान से आप को जल्दी छुटकारा मिल गया, वह भी अपना कोई नुकसान किए बिना. वह लड़का सही नहीं था. हो सकता है कि वह आगे चल कर आप को ब्लैकमेलिंग आदि के जाल में फंसाने की कोशिश करता. ऐसे लोगों से दूर होना ही बेहतर है.

ध्यान दें

  • परदे में रहने दो

जी हां, हर बात सहेली को बताई जाए यह जरूरी तो नहीं. अपने और प्रेमी के बीच की बातों को सहेली के साथ डिसकस करना ठीक नहीं. फिर चाहे वह कितनी भी अच्छी क्यों न हो या कितनी ही गहरी मित्र क्यों न हो. आप की बातों और प्रेमी की इतनी तारीफ से हो सकता है कि सहेली का मन पलट जाए और वह प्रेमी की तरफ आकर्षित हो कर उसे फंसाने में लग जाए. ऐसे में प्रेमी के साथसाथ सहेली से भी आप को हाथ धोना पड़ सकता है.

  • ब्रेकअप का रोना न रोती रहें

जिन लोगों को इस रिलेशनशिप के बारे में पता था उन्हें हर बार यही बात कह कर न पकाएं. आप दुनिया में पहली नहीं हैं जिस का ब्रेकअप हुआ है, ऐसा कर के आप खुद को हंसी और बेचारगी का पात्र बना लेंगी. यह आप का गम है और इसे अकेले ही भूलना होगा.

  • विश्वास करना न छोड़ें

माना यह थोड़ा मुश्किल है, लेकिन अगर एक सहेली ने पीठ पीछे धोखा दिया है तो इस का मतलब यह कतई नहीं है कि आप अपनी सारी सहेलियों से मुंह मोड़ कर अकेली हो जाएंगी. अपनी बाकी सहेलियों के टच में रहें.

  • बच के रहना रे बाबा

आप ने किसी एक से नहीं बल्कि अपने दो अजीजों से धोखा खाया है. इस का मतलब चूक कहीं न कहीं आप से भी हुई है, जो आप ने अपनी जिंदगी में ऐेसे प्रेमी और सहेली को जगह दी इसलिए इस से सीख लें व जांचपरख कर ही किसी से रिलेशन बनाएं. किसी भी युवक को बौयफै्रंड बनाने से पहले उस के बारे में अच्छी तरह से तहकीकात कर लें. अगर थोड़ा भी शक हो तो उस के साथ रिलेशनशिप बनाने की जरूरत नहीं है.

कोई नहीं- भाग 3: क्या हुआ था रामगोपाल के साथ

उधर बबिता के भाइयों नंद कुमार और नवल कुमार तथा उन की पत्नियों को दूसरी चिंता ने घेर लिया कि बबिता यदि उन के घर में आ कर रहने लगी तो भविष्य में वह पापामम्मी की संपत्ति में दावेदार हो जाएगी और उसे उस का हिस्सा भी देना पडे़गा. इसलिए दोनों भाइयों ने आपस में सुलह कर बबिता से कहा कि दिनेश ने तलाक की बात कही है तो तुम उसे तलाक के लिए आवेदन करने दो. अपनी तरफ से बिलकुल आवेदन मत करना.

‘भैया, मेरा भी उस घर में दम घुट रहा है,’ बबिता बोली, ‘मैं खुद तलाक लेना चाहती हूं और अपनी मरजी का जीवन जीना चाहती हूं. इस अपमान के बाद तो मैं हरगिज वहां नहीं रह सकती.’

नंद कुमार ने कठोर स्वर में कहा, ‘ऐसी गलती कभी मत करना. तुम खुद तलाक लेने जाओगी तो ससुराल से कुछ भी नहीं मिलेगा. दिनेश तलाक लेना चाहेगा तो उसे तुम्हें गुजाराभत्ता देना पडे़गा.’

‘गुजाराभत्ता की मुझे जरूरत नहीं,’ बबिता बोली, ‘मैं पढ़ीलिखी हूं, कोई नौकरी ढूंढ़ लूंगी और अपना खर्च चला लूंगी पर दोबारा उस घर में वापस नहीं जाऊंगी.’

‘नहीं, अभी तुम्हें वहीं जाना होगा और वहीं रहना भी होगा,’ इस बार नवल कुमार ने कहा.

बबिता ने आश्चर्य से छोटे भाई की ओर देखा. फिर बारीबारी से मम्मीपापा व भाभियों की ओर देख कर अपने स्वर में दृढ़ता लाते हुए वह बोली, ‘दिनेश ने तलाक की बात कह कर मेरा अपमान किया है. इस अपमान के बाद मैं उस घर में किसी कीमत पर वापस नहीं जाऊंगी.’

समझाने के अंदाज में पर कठोर स्वर में नंद कुमार ने कहा, ‘तुम अभी वहीं उसी घर में रहोगी, जब तक  कि तुम्हारे तलाक का फैसला नहीं हो जाता. तुम डरती क्यों हो? सभी तुम्हारे साथ हैं. शादी के बाद से कानूनन वही तुम्हारा घर है. देखता हूं, तुम्हें वहां से कौन निकालता है.’

बडे़ भैया की बातों में छिपी धमकी से आहत बबिता ने अपनी मम्मी की ओर इस उम्मीद से देखा कि वही उस की मदद करें. मम्मी ने बेटी की आंखों में व्याप्त करुणा और दया की याचना को महसूस करते हुए नंद कुमार से कहा, ‘बबिता यहीं रहे तो क्या हर्ज है?’

‘हर्ज है,’ इस बार दोनों भाइयों के साथ उन की पत्नियां भी बोलीं, ‘ब्याही हुई बेटी का घर ससुराल होता है, मायका नहीं. बबिता को अपने पति या ससुराल वालों से कोई हक हासिल करना है तो वहीं रह कर यह काम करे. मायके में रह कर हम लोगों की मुसीबत न बने.’

मां ने सिर नीचे कर लिया तो बबिता ने अपने पापा की ओर देखा. बेटी को अपनी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देख कर उन्हें मुंह खोलना ही पड़ा. उन्होेंने कहा, ‘तुम्हारे भाई लोग ठीक ही कह रहे हैं बबिता. बेटी का विवाह करने के बाद पिता समझता है कि उस ने एक बड़ी जिम्मेदारी से मुक्ति पा ली. पर इस के बाद भी उसे बेटी की चिंता ढोनी पडे़ तो उस के लिए इस से बड़ी दूसरी पीड़ा नहीं हो सकती.’

बबिता पढ़ीलिखी थी. उस में स्वाभिमान था तो अहंकार भी था. उस ने अपने भाइयों और मम्मीपापा की बातों का अर्थ समझ लिया था. इस के पश्चात उस ने किसी से कुछ नहीं कहा. वह उठी और चली गई. उस को जाते हुए किसी ने नहीं रोका.

अचानक फोन की घंटी फिर बजने लगी तो रामगोपालजी चौंके और लपक कर फोन उठा लिया.

दिनेश की घबराहट भरी आवाज थी, ‘‘पापा, आप लोग जल्दी आ जाइए न. बबिता ने अपने शरीर पर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा ली है.’’

रामगोपाल का सिर घूमने लगा. फिर भी उन्होंने फोन पर पूछा, ‘‘कैसे हुआ यह सब? अभी तो कुछ समय पहले ही वह यहां से गई है.’’

‘‘मुझे नहीं मालूम,’’ दिनेश की आवाज आई, ‘‘वह हमेशा की तरह आप के घर से लौट कर अपने कमरे में चली गई थी और उस ने भीतर से दरवाजा बंद कर लिया था. अंदर से धुआं निकलता देख कर हमें संदेह हुआ. दरवाजा तोड़ कर हम अंदर घुसे तो देखा, वह जल रही थी. क्या वहां कुछ हुआ था?’’

इस सवाल का जवाब न दे कर रामगोपाल ने सिर्फ इतना कहा, ‘‘हम लोग तुरंत आ रहे हैं.’’

लक्ष्मी ने बिस्तर पर लेटेलेटे ही पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘दिनेश का,’’ रामगोपाल ने घबराहट भरे स्वर में कहा, ‘‘बबिता ने आग लगा ली है.’’

इतना सुनते ही लक्ष्मी की चीख निकल गई. मम्मी की चीख सुन कर नंद कुमार और नवल कुमार भी वहां पहुंच गए.

नंद कुमार ने पूछा, ‘‘क्या हुआ है?’’

रामगोपाल ने जवाब दिया, ‘‘बबिता ने यहां से लौटने के बाद शरीर पर मिट्टी का तेल उड़ेल कर आग लगा ली है, दिनेश का फोन आया था,’’ इतना कह कर रामगोपाल सिर थाम कर बैठ गए, फिर बेटों की तरफ देख कर बोले, ‘‘ससुराल से अपमानित बेटी ने मायके में रहने की इजाजत मांगी थी. तुम लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए उसे यहां रहने नहीं दिया. यहां से भी अपमानित होने के बाद उस ने आत्महत्या कर ली.’’

‘‘चुप कीजिए,’’ बडे़ बेटे नंद कुमार ने जोर से अपने पिता को डांटा, ‘‘आप ऐसा बोल कर खुद भी फंसेंगे और साथ में हम सब को भी फंसा देंगे. बबिता ने खुदकुशी नहीं की है, उसे मार डाला गया है. बबिता के ससुराल वालों ने दहेज के खातिर मिट्टी का तेल उडे़ल कर उसे जला डाला है.’’

रामगोपाल ने आशा की डोर पर झूलते हुए कहा, ‘‘चलो, पहले देख लें, शायद बबिता जीवित हो.’’

‘‘पहले आप थाने चलिए,’’ नंद कुमार ने फैसले के स्वर मेंकहा, ‘‘और तुम भी चलो, मम्मी.’’

रामगोपाल का परिवार जिस समय गिरधारी लाल के मकान के सामने पहुंचा, वहां एक एंबुलेंस और पुलिस की एक गाड़ी खड़ी थी. मकान के सामने लोगों की भीड़ जमा थी. जली हुई बबिता को स्ट्रेचर पर डाल कर बाहर निकाला जा रहा था. गाड़ी रोक कर रामगोपाल, लक्ष्मी, नंद कुमार तथा नवल कुमार नीचे उतरे. सफेद कपडे़ में ढंकी बबिता के चेहरे की एक झलक देखने के लिए रामगोपाल लपके पर नंद कुमार ने उन्हें रोक लिया.

थोड़ी देर बाद ही पुलिस के 4 सिपाही और एक दारोगा गिरधारी लाल, दिनेश, सुलोचना और राजेश को ले कर बाहर निकले. उन चारों के हाथों में हथकडि़यां पड़ी हुई थीं. दिनेश, बबिता को बचाने की कोशिश में थोड़ा जल गया था. रामगोपाल की नजर दामाद पर पड़ी तो जाने क्यों उन की नजर नीची हो गई.

क्यों दूर चले गए: भाग 3

‘मैं क्या कहूं, मैं ने तो अपनी बेटी आप को दी है. आप जैसा उचित समझें, करें,’ वह बेहद भावुक हो कर बोलीं.

‘आप इसे कुछ दिनों के लिए अपने साथ ले जाइए. वहां थोड़ा इस का मन तो बहल जाएगा,’ मम्मी ने कुछ सोचते हुए कहा.

‘नहीं, मम्मीजी, मैं इस घर को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी. मैं इस घर में बहू बन कर आई थी और यहीं से मेरी अंतिम विदाई भी होगी,’ भाभी धीरे से बोलीं.

‘तुम्हें यहां से कौन भेज रहा है बहू. मैं तो कह रही हूं कि कुछ दिनों के लिए मायके चली जाओ. वैसे तुम इस बात को भी ध्यान से सोचना कि तुम्हारे सामने सारी उम्र पड़ी है. तुम पहाड़ जैसा जीवन किस के सहारे काटोगी.’

‘मुन्ना है न, उसी में मैं उन का रूप देखती हूं,’ कहतेकहते भाभी की आंखें भर आईं.

‘बेटी, मुझे अपने बेटे के खोने से ज्यादा गम तुम्हारा है, क्योंकि मुझे तुम से हमदर्दी भी है और आत्मीयता भी. हम भला कब तक तुम्हारा साथ देंगे. एकल परिवारों की अपनी जन्मजात मुश्किलें हैं. कल अंकित की शादी होगी. उस की अपनी गृहस्थी बनेगी. हमारे जाने के बाद कौन कैसा व्यवहार करेगा…’

‘बहनजी, वैसे तो यह आप का पारिवारिक मामला है पर यदि अंकित की कहीं और बात नहीं चली हो तो संगीता भी तो…घर की बात घर में ही बन जाएगी और आप भी चिंतामुक्त हो जाएंगी. आप सोच लीजिए…’

उन के यह शब्द सुन कर मैं एकदम सकते में आ गया. मुझे लगा यदि मैं ने कोई कदम फौरन नहीं उठाया तो शायद किसी परेशानी में न फंस जाऊं.

‘आंटी, यह आप क्या कह रही हैं? मैं अपनी ही भाभी से…’ मैं ने कहा.

‘बेटा, जब भाई ही नहीं रहा तो यह रिश्ता कैसा,’ मम्मी ने कहा. जैसे वह भी इस रिश्ते को स्वीकार कर के बैठी थीं.

‘लेकिन मम्मी…’ मैं ने चौंक कर कहा.

‘ठीक है, तो सोच कर बता देना,’ मम्मी बोलीं, ‘हम ने तो बिना झिझक एक बात कही है. बाकी तुम जैसा उचित समझो, बता देना.’

मेरे लिए अब वहां का माहौल बेहद बोझिल होता जा रहा था. मुझ से और देर तक वहां बैठा नहीं गया और मैं उठ कर चला गया.

मेरे लिए अब बेहद जरूरी हो गया था कि मैं घर पर अपनी स्थिति स्पष्ट कर दूं, पर भाभी की उपस्थिति में मैं कोई बात नहीं करना चाहता था. इधर मुझ पर लगातार खुशी का दबाव बढ़ता जा रहा था.

एक दिन भाभी किसी काम से बाजार गई हुई थीं. मम्मीपापा बाहर बरामदे में बैठे थे. उचित अवसर देख कर मैं ने बिना कोई भूमिका बांधे कहा, ‘मम्मी, मैं एक लड़की को पसंद करता हूं. पिछले कई सालों से मेरा उस के साथ परिचय है और हम शादी करना चाहते हैं.’

‘ये प्रेमप्यार सब बेकार की बातें हैं. तुम जिसे प्रेम कहते हो वह महज कुछ ही दिनों का बुखार होता है,’ पापा ने एक तरह से मेरा प्रस्ताव ठुकरा दिया.

‘नहीं, यह बात नहीं है,’ मैं ने मजबूती से कहा.

‘बेटा, हम तुम्हारा कोई बुरा थोड़े ही चाहेंगे,’ मम्मी ने गरमाए माहौल की तीव्रता को कम करने की कोशिश की, ‘संगीता को इस घर में रहते हुए लगभग 2 साल हो चुके हैं. अब वह हम सब को अच्छी तरह जान चुकी है और हम उसे. नई लड़की इस घर में कैसे एडजेस्ट करेगी, यह कौन जानता है. इस हादसे के बाद तो वह इस घर में पूरी तरह समर्पित रहेगी. संगीता और तुम हमउम्र हो. तुम ने दुनियादारी को अभी ठीक से जाना नहीं है. आज जिसे तुम अपनी पत्नी बना कर लाना चाहते हो, क्या पता वह संगीता के साथ कैसा व्यवहार करे और तुम्हारा संगीता से मिलना उसे कितना उचित लगे. ऐसा नहीं है कि संगीता के मातापिता के कहने के बाद हम ने ऐसा निर्णय लिया है. सोच तो हम लोग पहले से रहे थे पर यह सब कहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे. अब अगर उस के घर वालों की भी ऐसी इच्छा है तो हमें कोई एतराज नहीं है.’

‘लेकिन मम्मी, मैं जिसे भाभी मानता आया हूं उसे पत्नी बनाने के बारे में कैसे सोच सकता हूं. यह शादी आप की नजरों में नैतिक हो सकती है पर युक्तिसंगत नहीं. मेरे भी अपने कुछ अरमान हैं, फिर मेरे उस लड़की के प्रति वादे और कसमें…’

‘अरे, बेटा, यह प्रेमप्यार कुछ दिनों का बुखार होता है. वह अपने घर में एडजेस्ट हो जाएगी और तुम अपने घर में,’ पापा ने अपनी बात फिर से दोहराई.

मैं ने उन्हें लाख समझाने की कोशिश की पर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा.

मेरे पास अब 2 ही विकल्प बचे थे. मैं या तो संगीता भाभी से विवाह करूं या इस घर को छोड़ कर अपनी इच्छानुसार गृहस्थी बसा लूं. भैया की मौत के बाद अब मैं ही उन का सहारा था. मुझ से अब उन की सारी आशाएं बंधी थीं. हर हाल में वज्रपात मुझ पर ही होना था. यह तो सच था कि इस विवाह से न तो मैं सुखी रह सकता, न संगीता भाभी को खुश रख सकता और न ही खुशी ही सुखी रहती.

परिस्थितियां धीरेधीरे ऐसी बनती गईं कि मैं घर में तटस्थ होता चला गया और अंतर्मुखी भी.

हार कर इस घर की भलाई और मातापिता के फर्ज को निभाने के लिए मुझे ही अपनी कामनाओं के पंख समेटने पडे़. मुझे नहीं पता था कि नियति मेरे साथ ही ऐसा खेल क्यों खेल रही है. कहने को सब अपने थे पर अपनापन किसी में नहीं था.

मैं ने खुशी को कई बार फोन करने की कोशिश की मगर हर बार नाकामयाबी हाथ लगी. मैं उस की हालत भी अच्छी तरह जानता था. मैं ने उसे सचमुच कहीं का नहीं छोड़ा था. उस का गम मेरे गम से काफी गहरा था. आज मुझे उस की और उसे मेरी सख्त जरूरत थी पर वह मुझ से बहुत दूर जा चुकी थी. मैं ने भी समझ लिया कि मुझ पर अब जिंदगी कभी मेहरबान नहीं हो सकती. मेरे सारे सपने पलकों में ही लरज कर रह गए और सारी हसरतें सीने में ही दफन हो कर रह गईं.

अचानक घर से संगीता भाभी का फोन आया तो मैं चाैंक पड़ा. मैं सपनों की जिस दुनिया में घूम रहा था, उस से बाहर निकल कर मोबाइल को कान से लगा लिया.

‘‘सौरी, मैं ने तुम्हें इस समय फोन किया. क्या तुम अभी घर पर आ सकते हो?’’

मैं एकदम घबरा गया. मुझे लगा मेरे लिए एक और आघात प्रतीक्षा कर रहा है. मैं ने पूछा, ‘‘क्या बात है. सब ठीक तो है?’’

‘‘सब ठीक नहीं है. बस, तुम घर आ जाओ,’’ इस बार भाभी का निवेदन आदेश में बदल गया.

‘‘बात क्या है?’’ मैं ने फिर पूछा.

‘‘सच बात तो यह है कि मैं ठीक से जानना चाहती हूं कि तुम इस विवाह से खुश हो या नहीं. मैं चाहती हूं कि तुम इसी समय घर पर आ जाओ. मम्मीपापा घर पर नहीं हैं. ऐसे में तसल्ली से बैठ कर बात हो सकेगी ताकि हम कोई निर्णय ले सकें.’’

मुझे लगा शायद यही ठीक होगा. जो औरत मेरी जिंदगी का हिस्सा बनना चाहती है उसे मैं सबकुछ बता दूंगा पर खुशी की बात को छिपा जाऊंगा ताकि उस के भविष्य में कोई बाधा न पहुंचे.

मैं ने जैसे ही घर में कदम रखा, सामने खुशी बैठी थी. मेरा तनबदन एकदम सिहर उठा. पता नहीं, खुशी क्या कह चुकी होगी.

‘‘इसे पहचानते हैं, इस का नाम खुशी है,’’ भाभी ने भेद भरी नजरों से मुझे देखा, ‘‘मैं ने ही इसे यहां बुलाया है. मुझे इतना कमजोर और स्वार्थी मत समझना. तुम्हारे हावभाव से मैं समझ चुकी थी कि तुम किसी को बहुत चाहते हो. मुझे लगा, ऐसे घुटघुट कर जीने से क्या फायदा. जिंदगी जीने और काटने में बड़ा फर्क होता है अंकित, और तुम्हारी जिंदगी तो खुशी है, फिर परिस्थितियों से डट कर मुकाबला क्यों नहीं कर सकते. जब किसी से कोई सच्चा प्यार करता है तो उस के दिल में हमेशा वही बसा रहता है, फिर तुम मुझे कैसे खुश रख सकोगे?

‘‘मैं ने बड़ी मुश्किल से इस का नंबर तुम्हारे मोबाइल से ढूंढ़ा था. अपनी इस गलती के लिए मैं तुम से माफी मांगती हूं. जब मैं ने तुम्हारी सारी स्थिति खुशी के सामने रखी तो इस ने फौरन मुझ से मिलने की इच्छा जाहिर की.’’

‘‘मम्मीपापा मानेंगे क्या?’’ मैं ने अपनी शंका रखी.

‘‘जानते हो, वे दोनों खुशी के घर ही गए हैं इस का हाथ मांगने और यह पूरी की पूरी तुम्हारे सामने खड़ी है,’’ कहतेकहते भाभी की आंखें भर आईं और वह भीतर चली गईं.

मैं ने खुशी को कस कर अंक में भींच लिया. खुशी मुझ से अलग होते हुए बोली, ‘‘तुम मेरा सबकुछ ले कर क्यों दूर चले गए थे.’’

‘‘तुम ने भी तो जल्दी हार मान ली थी,’’ कहतेकहते मैं रो पड़ा.

तब तक भाभी मेरे लिए पानी ले कर आ गईं. मैं ने पूछा, ‘‘लेकिन भाभी, आप ने अपने बारे में क्या सोचा है?’’

‘‘मैं ने तो तुम्हारे भैया के गुजर जाने के बाद ही दोबारा शादी न करने का फैसला कर लिया था,’’ यह कह कर  भाभी ने जैसे दिल का सारा दर्द आंखों से उडे़ल कर रख दिया.

प्यार का रिश्ता : कौनसा था वह अनाम रिश्ता – भाग 2

रमेश उस की हथेलियों को पकड़ कर बैठा हुआ मीठीमीठी बातें कर रहा था. रीना सजधज कर अपनेआप को महारानी से कम नहीं समझती थी. अब वह रमेश के लौटने का इंतजार करती, क्योंकि उस की प्यारभरी छेड़छाड़ उसे अच्छी लगती थी. यहां पर रीना के घर में गैस का चूल्हा था, टैलीविजन था और पानी ठंडा करने वाली मशीन भी थी. गांव में तो लकड़ी जला कर रोटी बनाती तो धुएं  के मारे रोतेरोते उस की आंखें लाल हो जाती थीं.

जब रीना को अपनी अम्मां की याद आती, तो रमेश अपने फोन से अपने बापू से बात करवा देता था. फिर रीना पेट से हो गई थी. सासू मां भी खुश थीं और रमेश भी बहुत खुश था. वह उस के इर्दगिर्द घूमता रहता. कभी काम पर जाता, कभी नहीं जाता. कभी उसे फिल्म दिखाने ले जाता, कभी बाजार ले जाता. वह बहुत खुश थी. सासू मां भी कोठी से उस के खाने के लिए कुछ न कुछ जरूर ले कर आतीं. रमेश की एक बात से रीना को गुस्सा आता था कि वह उसे किसी से बात करते हुए नहीं देख पाता था. वह कहीं भी किसी औरत से भी बात करे तो वह नाराज हो जाता था.

रीना ने परेशान हो कर एक दिन सासू मां से पूछा, तो उन्होंने बताया कि रमेश की पहली बीवी किसी दूसरे के चक्कर में पड़ कर उस के साथ भाग गई थी, इसीलिए वह हर समय उसे अपनी आंखों के सामने रखना चाहता था. समय आने पर रीना छोटी सी उम्र में जुड़वां बच्चों की मां बन गई. अस्पताल में आपरेशन और दवा में काफी खर्चा आया. 2 नन्हें बच्चों के दूध, दवा, डाक्टर, रोज के खर्चे बहुत बढ़ गए. वह बच्चों के साथ ज्यादा बिजी रहती. कमजोरी के चलते जल्दी थक जाती थी. अब वह रमेश की ओर ध्यान नहीं दे पाती थी. वह बातबात पर चिड़चिड़ाने लगा था.

रीना समझ गई थी कि रमेश शराब पी कर आने लगा है, क्योंकि वह उस के साथ भी जब जाता था तो कुछ चुपचाप से पी कर आता था. जब वह पूछती, तो कह देता कि यह उस की ताकत की दवा है. लेकिन रीना जानती थी कि रमेश शराब पीता है, क्योंकि नशा करने के बाद वह जानवर की तरह उस पर टूट पड़ता था और अब जबकि वह बच्चों के चलते उस के काबू में नहीं आती तो वह गालीगलौज और उस के कुछ बोलने पर पिटाई करने के लिए हाथ उठाने लगा था. रीना के सपने और खुशियां दफन होने लगी थीं. एक तरफ 2 नन्हें बच्चे तो दूसरी तरफ रमेश का रोजरोज नशा करना. वह कभी काम पर जाता, कभी नहीं जाता. पैसे की तंगी होने लगी. घर का माहौल बिगड़ने लगा. लड़ाईझगड़ा, कलह, गालीगलौज और मारपीट रोज की कहानी हो गई थी.

एक दिन रमेश नशा कर के घर आया, तो सासू मां ने उसे डांटा. उस ने बिगड़ कर खाने की थाली उठा कर फेंक दी और जब रीना रोने लगी तो उस ने उसे जोर से धक्का दे दिया था, ‘‘टेसुए बहाती है, मेरा पैसा?है, तुम कौन होती हो मुझे रोकने वाली?’’ उस दिन रीना को अपनी अम्मां की बहुत याद आई थी. वह तो कह भी नहीं सकती थी कि अम्मां के घर जाना है. वहां तो खाने का भी ठिकाना नहीं था. तकरीबन महीनाभर हो गया था, रमेश दिनभर घर पर पड़ा रहता और चार समय खाना मांगता.  ‘‘काम पर क्यों नहीं जाता है?’’ ‘‘बस… मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’ ‘‘नशा करने के समय तबीयत ठीक हो जाती है. एक पैसा दे नहीं रहे हो, चार समय रोटी खाने को चाहिए, कहां से आएगी रोटी?’’ ‘‘मेरी रोटी गिनती है,’’ फिर गाली देते हुए रमेश बोला, ‘‘तेरे चलते ही मैं बरबाद हो गया. बैंक वालों की किस्त नहीं दे पाया तो वे लोग मेरा आटोरिकशा उठा कर ले गए. तुझे खुश करने के लिए कभी सिनेमा ले जाता, तो कभी आइसक्रीम खिलाता. ‘आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया’.

बस अब तो ठनठन गोपाला.’’ रमेश गुस्से में पैर पटकता हुआ घर से चला गया था. बच्चे 4 साल के हो गए थे, उन्हें स्कूल भेजना था. रीना ने मन ही मन काम करने का निश्चय कर लिया. अब वह रमेश की एक भी न सुनेगी. अगले दिन से ही सोसाइटी में उसे 3 घरों में काम मिल गया था. एक अंकल तो बुजुर्ग थे. वे घर में बिलकुल अकेले रहते थे. उन के यहां उसे खाना, झाड़ूबरतन, कपड़ा सब करना था. उन्होंने 10,000 रुपए महीना देने को बोला, तो उस की तो बांछें खिल गई थीं. इसी तरह से 2 घरों में और उसे काम मिल गया. मुंबई के छोटेछोटे घर, साफसुथरे, उन घरों में काम करने में उसे मजा आता. अब रीना जितनी देर घर से बाहर रहती, वहां के झंझट और कलहक्लेश से दूर रहती. वहां जा कर मैडम मान्या के 2 छोटेछोटे बच्चे थे. उन को देख कर, उसे अपने फटेहाल बच्चे आंखों के सामने घूम जाते.

लेकिन रीना चुपचाप अपना काम करती थी. जैसे ही उन्हें पता लगा कि उस के 2 बच्चे हैं, वह चौंक उठी थीं, ‘‘तुम तो लड़की सी लगती हो. तुम्हारे बच्चे हैं?’’ उन्हें बड़ी हैरानी हुई थी. मैडम मान्या ने अपने कई सूट निकाल कर दे दिए थे. जब बच्चे की बात सुनी तो बच्चे के भी कपड़े दे दिए. अंकल के यहां से खाना तय था वह उस के बच्चों के काम आता. महीनेभर में ही रीना की हालत सुधर गई. अब उस ने रमेश की फिक्र करना बिलकुल बंद कर दिया. उन दोनों के बीच बस अब एक ही रिश्ता बचा था. वह नशे में उस के शरीर पर टूट पड़ता और अपनी भूख मिटा कर बेहोशी की नींद सो जाता. अब वह रमेश को एक देह ही समझती, उस के मन के कोने में उस के लिए नफरत बढ़ती जा रही थी.

अंधविश्वास की शिकार औरतें

देश के एक समाचारपत्र समूह द्वारा किए गए सर्वे में यह बात निकल कर आई है कि हमारे देश में हर तीसरे दिन एक मौत जादूटोना और अंधविश्वास की वजह से होती है.

साल 2001 से साल 2014 तक की 14 साल की रिपोर्ट में यह देखा गया कि भारत में 2,290 औरतों की मौत की वजह जादूटोना और अंधविश्वास है. इन 14 सालों में मध्य प्रदेश में 234 मौतें दर्ज की गईं. इन मौतों की वजह भी समाज के सभी तबकों में फैला अंधविश्वास ही है.

एक ऐसा ही मामला जबलपुर शहर की एक पढ़ीलिखी औरत के साथ हुआ. जबलपुर के गढ़ापुरवा में भद्रकाली दरबार के बाबा संजय उपाध्याय के परचे पूरे जबलपुर शहर में बांटे जाते थे.

परचे में छपे इश्तिहार में दावा किया गया था कि दरबार में एक नारियल चढ़ा कर सभी तरह की समस्याओं का समाधान किया जाता है.

संजय बाबा के इसी गलत प्रचारप्रसार के झांसे में जबलपुर शहर की 52 साल की एक औरत अनीता (बदला नाम) भी आ गई. अनीता का अपने पति से अलगाव चल रहा था, जिस की वजह से वह मानसिक रूप से परेशान रहती थी. बाबा द्वारा किए जा रहे प्रचारप्रसार के चक्कर में आ कर वह नवंबर, 2019 में भद्रकाली दरबार में पहुंची थी.

दरबार के पंडे संजय उपाध्याय ने उन्हें बताया कि पूजापाठ और मंत्र जाप करने से तुम्हारा पति तुम्हारे वश में हो जाएगा. इस तरह हैरानपरेशान अनीता को तांत्रिक संजय बाबा ने अपने झांसे में ले लिया.

संजय बाबा द्वारा बताए गए दिन जब अनीता मंदिर पहुंची, तो पूजापाठ के बहाने संजय महाराज उसे दरबार के नीचे बने एक ऐसे कमरे में ले गया, जो एकांत में होने के साथ आलीशान सुखसुविधाओं से सजा हुआ था.

संजय बाबा ने पूजापाठ के पहले उसे  जल पीने के लिए दिया. जल में कुछ नशीली चीज मिली हुई थी, जिस के चलते वह बेहोशी की हालत में चली गई. उसी दौरान संजय बाबा ने उस के साथ दुराचार कर मोबाइल फोन से वीडियो भी बना लिया.

इस घटना के बाद संजय बाबा अनीता को वीडियो दिखा कर ब्लैकमेल करने लगा. इस के बाद तो बाबा का जब मन होता, वह अनीता को वीडियो वायरल करने की धमकी देते हुए उसे अपने पास बुला लेता.

संजय बाबा द्वारा अनीता का कई बार शारीरिक शोषण किया गया. इस दुराचार से परेशान हो कर वह गुमसुम रहने लगी. परिवार के लोगों ने जब उस से वजह पूछी, तो अनीता ने अपने साथ हुए गलत बरताव की पूरी कहानी बता दी.

अनीता के परिवार वालों ने उसे हिम्मत बंधाते हुए 22 जुलाई, 2020 की रात जबलपुर के कोतवाली पुलिस थाने ले जा कर पूरी कहानी बताई और उस के साथ संजय बाबा द्वारा किए गए दुराचार की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने सक्रियता से जब मामले की जांच की, तो संजय उपाध्याय की काली करतूत सामने आ गई. बाबा लेता था हर महीने पैसे जबलपुर के कोतवाली थाना प्रभारी के मुताबिक, तांत्रिक संजय उपाध्याय अनीता से हर महीने उस के पति को वीडियो भेजने की धमकी दे कर 20,000 रुपए रखवा लेता था. परेशान अनीता को वह अपने दरबार में काम के लिए भी घंटों बैठाए रखता था.

इस तांत्रिक के खिलाफ पहले भी कई औरतों ने शिकायत की थी और वीडियो भी वायरल हुए थे. इस के बाद भी तांत्रिक अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा था. एक लड़की के मातापिता ने तो संजय उपाध्याय पर लिखित में भी गंभीर आरोप लगाए थे, लेकिन हर बार वह अपने संपर्कों का सहारा ले कर बच जाता था.

क्यों जाल में फंसती हैं

समाज में आज भी ऐसे बाबाओं, पीरफकीरों की कमी नहीं है, जो बीमारी के इलाज के नाम पर, तो कहीं औरतों की सूनी गोद भरने के नाम पर उन्हें बहलाफुसला कर अपनी हवस मिटाते हैं.

आखिर औरतों को यह बात समझ में क्यों नहीं आती है कि औलाद होने के लिए पतिपत्नी के बीच सैक्स संबंधों का होना जरूरी है? औरतों को इस बात पर विचार करना चाहिए कि पति को प्यार और विश्वास से मना कर उस के दिल पर राज किया जा सकता है.

एक तरफ तो औरतें बाबाओं और तांत्रिकों को अपना सबकुछ सौंपने के लिए तैयार हो जाती हैं, पर पति और उस के परिवार की खुशियों के लिए अपने अहम को सब से ऊपर रख कर पति की बात मानने के लिए तैयार नहीं होती हैं.

इसी तरह शारीरिक और मानसिक परेशानियों का इलाज भी डाक्टरी सलाह और दवाओं से किया जा सकता है. लिहाजा, औरतों को सोचसमझ कर ऐसे ढोंगी बाबाओं के चक्कर में फंसने से बचना होगा.

नेता फैला रहे अंधविश्वास

देश के नेता मौजूदा दौर में अंधविश्वास को पनपने में मददगार बने हुए हैं. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बारबार धार्मिक स्थलों पर जा कर साधुसंन्यासियों से मिलना तो यही दिखाता है.

महाकाल की नगरी उज्जैन में रात्रि विश्राम करने पर राजा का राजपाठ चले जाने का अंधविश्वास उन्हें कभी उज्जैन में रात को नहीं रुकने देता. कुरसी जाने के डर से वे अशोकनगर नहीं जाते हैं, तो नर्मदा नदी के उद्गम स्थल अमरकंटक जाने के लिए वे हैलीकौप्टर से नदी पार नहीं करते हैं.

मध्य प्रदेश के गृह मंत्री भूपेंद्र सिंह अपने धार्मिक गुरु से पूछे बिना कोई काम नहीं करते हैं. उन की पत्नी राजयोग सदा बने रहने के लिए सुहागिनों को सिंगार का सामान बांटती हैं.

मध्य प्रदेश की एक राज्यमंत्री ललिता यादव बुंदेलखंड में अच्छी बारिश के लिए मेढकमेढकी की शादी रचा कर अंधविश्वास फैलाने का काम करती हैं, तो मंत्री गोपाल भार्गव रोजाना नंगे पैर चल कर गणेश मंदिर में पूजापाठ करते हैं.

मंत्री नरोत्तम मिश्रा पीतंबरा देवी के दर्शन के बिना कोई काम नहीं करते हैं. कांग्रेस के दिग्विजय सिंह शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के चेला हैं. वे भी बिना साधुसंतों की सलाह के कोई कदम नहीं उठाते हैं.

परंपरा के नाम पर फैला अंधविश्वास आज भी समाज में अपनी जड़ें इतनी गहरी जमाए बैठा है कि 21वीं सदी का मौडर्न कहा जाने वाला इनसान इस के बुरे नतीजों से बच नहीं पा रहा है.

मध्य प्रदेश का गोटमार मेला और हिंगोट युद्ध इस की जीतीजागती मिसाल है, जिस में हर साल परंपरा के नाम पर सैकड़ों लोग घायल होते हैं और कभीकभी तो उन की जान पर भी बन आती है. ऐसे कार्यक्रमों में शराब के नशे में होश खो चुके लोग पत्थरबाजी के साथ हिंसक हो जाते हैं और प्रशासन मूकदर्शक बन कर हाथ पर हाथ धरे बैठा रहता है.

अंधविश्वास के प्रसारप्रचार में धर्म के ठेकेदारों की भूमिका काफी अहम रही है. अपनी दुकानदारी जमाने के लिए धार्मिक किताबों में लोगों को धर्म का डर दिखा कर कर्मकांड के नाम पर अंधभक्ति का बीज बोने वाले पंडेपुजारी आज अंधविश्वास की फसल काट कर उसे ही अपनी कमाई का जरीया बनाए हुए हैं.

हमारे देश में साक्षरता की दर बढ़ने और सामाजिक जीवन में विज्ञान के आविष्कारों के आने के बावजूद लोगों का मोह अंधविश्वासों से भंग नहीं हुआ है, बल्कि नएनए अंधविश्वास समाज में जन्म ले रहे हैं. विज्ञान के प्रयोग और सरकारी कार्यक्रम भी अंधविश्वास भगाने में कामयाब नहीं हो पाए हैं.

देश के नेता मौजूदा दौर में अंधविश्वास को पनपने में सहायक बने हुए हैं. कुरसी पाने के लिए मठमंदिरों में मत्था टेकने और साधुसंतों की शरण में जाने वाले समाज के बड़े लोगों के आचरण आम जनता में अंधश्रद्घा फैलाने का काम कर रहे हैं. राजनीतिक पार्टियों के नेता ऐसे मठाधीशों, बाबाओं और प्रवचनकर्ताओं के साथ हैं, जिन के पीछे बड़ी तादाद में भक्तों की भीड़ हो.

जब इसरो के वैज्ञानिक चंद्रयान की कामयाबी के लिए नारियल फोड़ने और मंदिरों में पूजापाठ के भरोसे हों और धर्मनिरपेक्ष देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह राफेल लड़ाकू विमान को फ्रांस से लाने के बाद उस पर ‘ओम’ लिख कर, नारियल चढ़ा कर विमान के पहियों के नीचे नीबू रखते हों, तो जनता का तो अंधविश्वासी होना लाजिमी है.

गरम गोश्त के सौदागर: भाग 1

तुर्कमेनिस्तान के रहने वाले डोब अहमद ने दिल्ली में जिस्मफरोशी का अड्डा बना रखा था. उस के यहां देशी ही नहीं, विदेशी कालगर्ल्स भी रहती थीं. इस काम में उस की पत्नी जुमायेवा भी शरीक थी. क्राइम ब्रांच ने उस के अड्डे से 10 विदेशी लड़कियों को पकड़ा तो…

जुलाई का महीना था. वातावरण में काफी उमस थी. बदन चिपचिपा हुआ जा रहा था. कूलर की हवा भी शरीर में ठंडक नहीं पहुंचा पा रही थी. इस झुलसा देने वाले मौसम में भी रविकांत पूरी बांह की कमीज, जींस पहने हुए था. हद तो यह थी कि उस ने एक तकिया इस प्रकार सीने से भींच रखा था जैसे वह उस की माशूका हो और वह पूरी गर्मजोशी से सीने से लगा कर उसे प्यार कर रहा हो.

रविकांत शादीशुदा था. 3 महीने पहले ही उस की शादी कुसुम के साथ हुई थी. वह कंप्यूटर औपरेटर था और 15 हजार की सैलरी पर एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. मकान किराए का था, 7 हजार रुपया किराया, कुछ खर्च खुद के, शेष रुपयों में वह अपनी गृहस्थी की गाड़ी खींच रहा था.

वह इस से संतुष्ट तो नहीं था लेकिन दिल्ली जैसे महानगर में इतना मिलना भी बहुत था क्योंकि यहां आसपास के क्षेत्र से काम की तलाश में आए युवा 2 वक्त की रोटी पाने के लिए कैसी भी नौकरी करने को तैयार रहते हैं. ऐसे में जो लग गया, वह खुद को भाग्यशाली मानता है और जो नहीं लगा वह नौकरी के लिए भटक रहा है.

रवि 15 हजार की सैलरी वाली नौकरी छोड़ना नहीं चाहता था. हां, आगे बढ़ने के लिए वह हाथपांव जरूर मार रहा था.

शादी के बाद कुसुम के साथ 3 महीने उस ने पूरी मौजमस्ती की थी. उस के बदन की सोंधीसोंधी खुशबू को उस ने अपनी सांसों में समाहित किया था.

कुसुम के गुदाज और रेशमी बदन के एकएक हिस्से को उस ने चूमाचाटा था. 3 महीने में उस ने छक कर कुसुम की दहकती जवानी का रस पीया था. उस की हसरतें उफान पर थीं कि कुसुम की मां की बीमारी का फोन आ गया. मन मसोस कर उसे कुसुम को मायके भेजना पड़ा.

अब उसी की याद में वह पलंग पर पड़ा तड़प रहा था. मन बहुत परेशान था. कुसुम की गोरी देह उसे बारबार याद आ रही थी और वह क्षण भी याद आ रहे थे जब वह कुसुम को बांहों में ले कर पूरी गर्मजोशी से प्यार करता था.

इसलिए उस दिन वह कुसुम की जगह तकिया सीने से भींच कर उन पलों को जीने की कोशिश कर रहा था, जो कुसुम की नग्न देह की गरमाहट से उसे रोमांचित कर डालते थे.

उस की सांसें अनियंत्रित हो चुकी थीं. वह पूरी मस्ती से तकिया सीने से लगा कर उसे यूं भींच रहा था, जैसे उस की बांहों में कुसुम की नग्न देह हो.

एकाएक मोबाइल की घंटी बजी तो उस के रोमांचक क्षणों को झटका लगा. वह बुरा सा मुंह बना कर पलंग पर उठ बैठा. उस का मोबाइल टेबल पर रखा घनघना रहा था.

हाथ बढ़ा कर उस ने मोबाइल उठाया. उस की स्क्रीन पर हरीश शर्मा नाम देख कर उस के चेहरे पर रौनक आ गई. हरीश उस का बहुत गहरा दोस्त था. शादी से पहले हरीश शर्मा के साथ उस ने बहुत सी धंधा करने वाली औरतों के जिस्मों का स्वाद चखा था.

हरीश शर्मा इस रूमानी खेल का गुरु था. उस ने घाटघाट का पानी पी रखा था. उसी ने रविकांत को स्त्री के जिस्म के भेद समझाए थे और उसे स्त्री की देह का स्वाद भी चखाया था.

इस वक्त जब वह कुसुम के लिए तड़प रहा था, हरीश की काल आना उसे सुखद और फायदेमंद लगा. क्योंकि हरीश शर्मा उस की तनहाई को खत्म करने के लिए कोई न कोई जुगाड़ बैठा सकता था.

उस ने तुरंत हरीश शर्मा की काल अटेंड की, ‘‘हैलो शर्मा, तूने यार ठीक वक्त पर फोन किया है. मुझे तेरी ही जरूरत थी.’’

‘‘क्यों? क्या कुसुम भाभी की जगह बिस्तर पर मुझे मुरगी बनाएगा तू?’’ हरीश ने दूसरी ओर मुंह बिगाड़ा हो जैसे.

‘‘क्या बकवास करता है यार. मैं तेरे लिए ऐसा क्यों सोचने लगा?’’

‘‘क्योंकि कुसुम भाभी को तूने मायके भेज दिया है और इस समय तू उन्हें याद कर के बिस्तर पर कलाबाजियां खा रहा होगा.’’

‘‘वाह! तू तो अंतरयामी भी है यार,’’ रविकांत हंस कर बोला, ‘‘सचमुच मैं कुसुम की याद में तकिया सीने से भींच कर बिस्तर पर करवटें बदल रहा था.’’

‘‘मुझे तेरी रगरग का पता है. जानता था आज संडे है और तू घर में पड़ा बिस्तर पर करवटें बदल रहा होगा. इसलिए मैं ने तुझे फोन किया है.’’

‘‘अच्छा किया, अब यह बता मेरी मचलती हसरतों को शांत करने की कोई दवा है तेरे पास?’’

‘‘है,’’ हरीश शर्मा का स्वर राजदाराना हो गया, ‘‘सुन, मुझे पता चला है कि जिस्म की गरमी शांत करने के लिए यहां गोरी चमड़ी वाली विदेशी युवतियां भी मिलती हैं.’’

‘‘विदेशी? वाव.’’ रवि के होंठ गोल सिकुड़ गए, ‘‘यार ऐसी युवती का सान्निध्य मिल जाए तो जन्म लेना सफल हो जाए. जल्दी बता, कहां मिलेंगी ये गोरी चमड़ी वाली मेम?’’

‘‘मालवीय नगर चलना होगा.’’

‘‘यार हम रोहिणी में रह रहे हैं. यहां से मालवीय नगर दूर पड़ेगा.’’

‘‘अब मालवीय नगर दिल्ली में है,हमें उस के लिए सिंगापुर नहीं जाना है. तू झटपट तैयार हो कर मुझे पांडेय पान वाले की गुमटी पर मिल, मैं बाइक ले कर आधा घंटे में वहां पहुंच रहा हूं. और हां, 5-7 सौ रुपए जेब में डाल लेना.’’

‘‘ठीक है, तू पहुंच मैं भी फटाफट तैयार हो कर आ रहा हूं.’’ रविकांत ने कहा और मोबाइल का स्विच दबा कर पलंग पर रखने के बाद वह टावल उठा कर बाथरूम में घुस गया.

हरीश शर्मा के साथ रविकांत मालवीय नगर पहुंच गया. एक पार्क के गेट पर एजेंट उन का इंतजार कर रहा था. हरीश शर्मा ने पीली शर्ट और काली जींस पहन रखी थी क्योंकि एजेंट ने उसे पहचान के लिए ऐसे ही कपड़े पहन कर आने को कहा था.

हरीश रविकांत को साथ ले कर पार्क के गेट पर आ गया. एजेंट ने उसे गहरी नजर से देखा, फिर तसल्ली हो जाने के बाद उन के पास आ गया.

‘‘आप ने ही मुझ से फोन पर संपर्क किया था?’’ उसे एजेंट ने पूछा.

‘‘जी हां, अगर आप का नाम रूपेश है तो मैं ने ही आप से फोन पर संपर्क किया था.’’ हरीश ने बताया.

‘‘आप को मेरा नंबर किस से मिला?’’

‘‘मेरा परिचित है संजीव, उसी ने आप का नंबर दिया था.’’

‘‘ठीक है, अब आप बताइए आप की चौइस क्या है, देशी या विदेशी गोश्त खाना पसंद करेंगे आप?’’

‘‘देशी का स्वाद तो हमें मिलता रहता है, हम विदेशी मुरगी का स्वाद चखना चाहते हैं.’’

‘‘उस की कीमत ज्यादा है…’’

‘‘कितनी?’’ शर्मा ने बेफिक्री से पूछा.

‘‘एक शौट का 15 हजार और पूरी नाइट बैठोगे तो 30 हजार रुपए लगेंगे.’’

हरीश शर्मा का जोश झाग की तरह नीचे बैठ गया. रविकांत ने भी गहरी सांस छोड़ी. इतनी मोटी रकम उस की पौकेट में नहीं थी. फिर इतनी महंगी आइटम उसे चाहिए भी नहीं थी.

हरीश शर्मा पूरा घाघ था. मालूम था उसे, उस की हैसियत क्या है लेकिन फिर भी गरदन झटक कर बोला, ‘‘आप की इतनी डिमांड वाली हसीना की क्या मैं सूरत देख सकता हूं?’’

कोई नहीं- भाग 2: क्या हुआ था रामगोपाल के साथ

एक दिन बबिता ने उसे बताया कि वह गाड़ी चलाना सीखने के लिए ड्राइविंग स्कूल में एडमिशन ले कर आ रही है. उस ने दिनेश को एडमिशन का फार्म भी दिखाया. हुआ यह कि बबिता के बडे़ भाई नंद कुमार ने उस से कहा कि रोजरोज बस या टैक्सी से आनाजाना न कर के वह अपनी कार से आए और इस के लिए ड्राइविंग सीख ले. आखिर पापा ने दहेज में कार किसलिए दी है.

बबिता को यह बात जंच गई. पर दिनेश इस पर आगबबूला हो गया. अपनी नाराजगी और गुस्से को वह रोक भी नहीं पाया और बोल पड़ा, ‘तुम्हारे पापा ने कार मुझे दी है.’

‘हां, पर वह मेरी कार है, मेरे लिए पापा ने दी है.’

दिनेश बबिता का जवाब सुन कर दंग रह गया. उस ने अपने गुस्से पर काबू करते हुए विवाद को तूल न देने के लिए समझौते का रुख अपनाते हुए कहा, ‘ठीक है पर ड्राइविंग सीखने की क्या जरूरत है. गाड़ी पर ड्राइवर तो है?’

‘मुझे किसी ड्राइवर की जरूरत नहीं. मैं खुद चलाना सीखूंगी और मुझे कोई भी रोक नहीं सकेगा. मैं तुम्हारी खरीदी हुई गुलाम नहीं हूं.’

दिनेश ने इस के बाद एक शब्द भी नहीं कहा. बबिता को कुछ कहने के बजाय उस ने अपने पिता को ये बातें बता दीं. गिरधारी लाल ने तुरंत रामगोपाल को फोन मिलाया और उस से बबिता के व्यवहार की शिकायत की तो उधर से उन की समधिन लक्ष्मी का जवाब आया, ‘भाईसाहब, आप के लड़के से बेटी ब्याही है, कोई बेच नहीं दिया है जो उस पर हजार पाबंदियां लगा रखी हैं आप ने. यह मत करो, वह मत करो, पापामम्मी से बातें मत करो, उन के घर मत जाओ, क्या है यह सब? हम ने तो अपने ही शहर में इसीलिए बेटी की शादी की थी कि वह हमारे पास आतीजाती रहेगी, हमारी नजरों के सामने रहेगी.’

‘पर समधिनजी,’ फोन पर गिरधारी लाल ने जोर दे कर अपनी बात कही, ‘यदि आप की बेटी बराबर आप के घर का ही रुख किए रहेगी तो वह अपना घर कब पहचानेगी? संसार का तो यही नियम है कि बेटी जब तक कुंआरी है अपने बाप की, विवाह के बाद वह ससुराल की हो जाती है.’

‘यह पुरानी पोंगापंथी बातें हैं. मैं इसे नहीं मानती. रही बात बबिता की तो वह जब चाहेगी यहां आ सकती है और वह गाड़ी चलाना सीखना चाहती है तो जरूर सीखे. इस से तो आप लोगों के परिवार को ही फायदा होगा.’

गिरधारी लाल ने इस के बाद फोन रख दिया. उन के चेहरे पर चिंता की गहरी रेखा खिंच आई थीं. परिवार वाले चिंतित थे कि इस स्थिति का परिणाम क्या होगा?

दिनेश ने भी इस घटना के बाद चुप्पी साध ली थी. सास सुलोचना ने सब से पहले बहू से बोलना बंद किया था, उस के बाद गिरधारी लाल भी बबिता से सामना होने से बचने का प्रयत्न करते. राजेश को भाभी से बातें करने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. उस की जरूरतें मां, नौकर और नौकरानी से पूरी हो जाती थीं.

दिनेश और बबिता के बीच सिर्फ कभीकभार औपचारिक शब्दों का संबंध रह गया था. आफिस से छुट्टी के बाद वह ज्यादा समय बाहर ही गुजारता, देर रात में घर लौटता और खाना खा कर सो जाता.

इस बीच बबिता ने गाड़ी चलाना सीख लिया था. वह सुबह ही गाड़ी ले कर मायके चली जाती और रात में देर से लौटती. कभी उस का फोन आता, ‘आज मैं आ नहीं सकूंगी.’ बाद में इस तरह का फोन आना भी बंद हो गया.

कानूनी और सामाजिक तौर पर बबिता गिरधारी लाल के परिवार की सदस्य होने के बावजूद जैसे उस परिवार की ‘कोई नहीं’ रह गई थी. यह एहसास अंदर ही अंदर गिरधारी लाल और उन की पत्नी सुलोचना को खाए जा रहा था कि उन के बेटे का दांपत्य जीवन बबिता के निरंकुश एवं दायित्वहीन आचरण तथा उस के ससुराल वालों की हठवादिता से नष्ट हो रहा है.

आखिर एक दिन दिनेश ने दृढ़ स्वर में बबिता से कहा, ‘हम दोनों विपरीत दिशाओं में चल रहे हैं. इस से बेहतर है तलाक ले कर अलग हो जाएं.’

दिनेश को तलाक लेने की सलाह उस के पिता गिरधारी लाल ने दी थी. वह अपने बेटे के बिखरते वैवाहिक जीवन से दुखी थे. उन्होंने यह सलाह भी दी थी कि यदि बबिता उस के साथ अलग रह कर अपनी अलग गृहस्थी में सुखी रह सकती है तो वह ऐसा ही करे. पर दिनेश को यह प्रस्ताव स्वीकार नहीं था कि वह अपने मातापिता को छोड़ कर अलग हो जाए.

दिनेश के मुंह से तलाक की बात सुन कर बबिता सन्न रह गई. उसे जैसे इस प्रकार के किसी प्रस्ताव की अपेक्षा नहीं थी. इस में उसे अपना घोर अपमान महसूस हुआ.

मायके आ कर बबिता ने अपने मम्मीपापा और भाइयों को दिनेश का प्रस्ताव सुनाया तो सभी भड़क उठे. रामगोपाल को जहां इस चिंता ने घेर लिया कि इतना अच्छा घरवर देख कर और काफी दानदहेज दे कर बेटी की शादी की, वहां इतनी जल्दी तलाक की नौबत आ गई. समाज और बिरादरी में उन की क्या इज्जत रहेगी? पर लक्ष्मी काफी उत्तेजित थीं. वह चीखचीख कर बारबार एक ही वाक्य बोल रही थीं, ‘उन की ऐसी हिम्मत…उन्हें इस का मजा चखा कर रहूंगी.’

 

Anupamaa: किंजल का हाथ थामेंगे जैन इमाम? एक्टर ने तोड़ी चुप्पी

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ लगातार टीआरपी लिस्ट में टॉप पर है. शो में दिखाए जा रहे ट्विस्ट एंड टर्न दर्शकों को कॉफी पसंद आ रहा है.  ‘अनुपमा’ में  आपने देखा था कि कुछ दिन पहले ही किंजल ने पारितोष को तलाक देने का फैसला किया था. इसके बाद अटकलें लगनी शुरू हो गई थी कि  किंजल की जिंदगी में जल्द ही किसी शख्स की एंट्री होगी.  खबर आई थी एक्टर जैन इमाम शो में एंट्री करने वाले हैं. अब जैन ने खुद इस मामले पर चुप्पी तोड़ी है.

एक इंटरव्यू के अनुसार, एक्टर ने  बताया कि वह खुद ही इस बात से अंजान थे. जब उन्हें ‘अनुपमा’ के बारे में पता चला तो वह हैरान भी रह गए. जैन इमाम ने इस बारे में बात करते हुए कहा कि मुझे प्रोडक्शन हाउस से इस सिलसिले में कुछ नहीं बताया गया है. मैं खुद भी हैरान रह गया था जब मुझे इस बारे में पता चला. मैं हाल ही में ‘फना’ शो से निपटा हूं जिसने काफी अच्छा परफॉर्म किया है.

 

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एक्टर ने ये भी कहा कि मैं तुरंत किसी शो के साथ नहीं जुड़ सकता हूं. उन्होंने साफ कर दिया है कि वो अनुपमा में नहीं नजर आने वाले हैं.

 

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शो के लेटेस्ट एपिसोड में  दिखाया गया था कि  किंजल ने पारितोष  को दूसरा मौका देने के लिए तैयार हो गई है. लेकिन उसने तोषु को माफ नहीं किया है.   ‘अनुपमा’ में आज आप देखेंगे कि  अनुपमा और बा, पाखी-अधिक को होटल रूम में पकड़ लेगी. शो में बा का रिएक्शन देखना दिलचस्प होगा.

 

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