सयाना इश्क: क्यों अच्छा लाइफ पार्टनर नही बन सकता संजय- भाग 2

”कुछ तो है, गेस करो.‘’

”तुम ही बताओ.‘’

”तुम्हारी बेटी को शायद प्यार हो गया है.‘’

विनय जोर से हंसे, ”इतनी खुश हो रही हो. उस ने खुद बताया है या अंदाजा लगाती घूम रही हो.‘’

”नहीं, उस ने तो नहीं बताया, मेरा अंदाजा है.”

”अच्छा, उस ने नहीं बताया?”

”नहीं.‘’

”तो फिर पहले उसे बताने दो.‘’

”नहीं, मैं सही सोच रही हूं.‘’

”देखते हैं.‘’

पर बात इतनी सरल रूप में भी सामने नहीं आई जैसे नंदिता और विनय ने सोचा था. एक संडे पीहू ने सुबह कहा, ”मम्मी, पापा, आज मेरा एक दोस्त घर आएगा.‘’

नंदिता और विनय ने एकदूसरे को देखा, नंदिता ने आंखों ही आंखों में जैसे विनय से कहा, देखा, मेरा अंदाजा!”

विनय मुसकराए, ”अच्छा, कौन है?”

”संजय, वह भी सीए कर रहा है. बस, में ही साथ आतेजाते दोस्ती हुई. मैं चाहती हूं आप दोनों उस से मिल लें.‘’

नंदिता मुसकराई, ”क्यों नहीं, जरूर मिलेंगे.”

इतने में पीहू का फोन बजा तो नंदिता ने कनखियों से देखा, ‘माय लव’ का ही फोन था. वह विनय को देख हंस दी, पीहू दूसरे रूम में फोन करने चली गई.

शाम को संजय आया. नंदिता तो पीहू के फोन में उस दिन किचन में ही इस ‘माय लव’ की फोटो देख चुकी थी. संजय जल्दी ही नंदिता और विनय से फ्री हो गया. नंदिता को वह काफी बातूनी लगा. विनय को ठीक ही लगा. बहुत देर वह बैठा रहा. उस ने अपनी फेमिली के बारे में कुछ इस तरह बताया, ”पापा ने जौब छोड़ कर अपना बिजनैस शुरू किया है. किसी जौब में बहुत देर तक नहीं टिक रहे थे. अब अपना काम शुरू कर दिया है तो यहां तो उन्हें टिकना ही पड़ेगा. मम्मी को किट्टी पार्टी से फुरसत नहीं मिलती, बड़ी बहन को बौयफ्रैंड्स से.’’

नंदिता और विनय इस बात पर एकदूसरे का मुंह देखने लगे. पर संजय जो भी था, मेहमान था, पीहू उसे कुर्बान हो जाने वाली नजरों से देखती रही थी. चायनाश्ते के साथ गपें चलती रहीं. संजय के जाने के बाद पीहू ने नंदिता के गले में बांहें डाल दीं, ”मम्मी, कैसा लगा संजय?”

”ठीक है.‘’

”मम्मी, मैं चाहती हूं आप एक बार उस के पेरैंट्स से भी जल्दी मिल लें.‘’

”क्यों?”

”मैं उस से शादी करना चाहती हूं.‘’

अब नंदिता को एक झटका लगा, ”अभी तो सीए फाइनल के एक्जाम्स बाकी हैं, बहुत मेहनत के दिन हैं ये तो. और अभी उम्र ही क्या है तुम्हारी.”

”ओह्ह, मम्मी, पढ़ाई तो हम साथ रह कर भी कर लेंगे. आप को तो पता ही है मैं अपने कैरियर को ले कर सीरियस हूं.‘’

”सीरियस हो तो बेटा, इस समय सिर्फ पढ़ाई के ही दिन हैं, अभी शादी के लिए रुका जा सकता है.‘’

”पर संजय अभी शादी करना चाहता है, और मैं भी. मम्मी, आप को पता है, लड़कियां उस के कूल ऐटिट्यूड की दीवानी हैं, सब जान देती हैं उस के बेफिक्र नेचर पर.’’

”चलो, अभी तुम कुछ पढ़ लो, फिर बात करते हैं,” किसी तरह अपने गुस्से पर कंट्रोल रखते हुए नंदिता कह कर किचन की तरफ चली गई.

अब तक विनय बिलकुल चुप थे. वे अल्पभाषी थे. अभी मांबेटी के बीच में बोलना उन्हें ठीक नहीं लगा. नंदिता पीहू से बात कर ही रही है, तो ठीक है. दोनों एकसाथ शुरू हो जाएंगे तो बात बिगड़ सकती है. यह सोच कर वे बस अभी तक सुन ही रहे थे. अब जब नंदिता किचन में और पीहू पैर पटकते अपने रूम में चली गई तो वे किचन में गए और कुछ बिना कहे बस अपना हाथ नंदिता के कंधे पर रख दिया. नंदिता इस मौन में छिपे हुए उन के मन के भाव भी समझ गई.

अब पीहू अलग ही मूड में रहती. कभी भी ज़िद करने लगती कि आप लोग संजय के पेरैंट्स से कब मिलोगे, जल्दी मिल कर हमारी शादी की बात करो. संजय भी कभी कभी घर आने लगा था. पीहू उस के आने पर खिलीखिली घूमती. अकेले में विनय ने नंदिता से कहा, ”हमें पीहू की पसंद पर कोई आपत्ति नहीं है, पर पहले पढ़ तो ले. सीए की फाइनल परीक्षा का टाइम है, इसे क्या हो गया है, कैसे पढ़ेगी, ध्यान इतना बंट गया है.”

विनय की चिंता जायज थी. नंदिता ने मन ही मन बहुतकुछ सोचा और एक दिन बहुत हलकेफुलके मूड में पीहू के पास जा कर लेट गई. पीहू भी अच्छे मूड में थी. नंदिता ने बात शुरू की, ”पीहू, हमें संजय पसंद है, पर तुम भी हमारी इकलौती बेटी हो और तुम आज तक अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे कर अपना कैरियर बनाने की बात करती रही हो जो हमें गर्व से भर देता था. संजय को पसंद करना, उस से शादी करने की इच्छा होना, इस में कुछ भी गलत नहीं.” फिर नंदिता ने अपने उसी ख़ास स्टाइल में मजाक करना शुरू किया जिस स्टाइल से मांबेटी अब तक बात करती आई थीं, ”तुम्हारी उम्र में प्यार नहीं होगा तो क्या हमारी उम्र में होगा. मेरी बेटी को प्यार फाइनली हो ही गया किसी से, इस बात को तो मैं एंजौए कर रही हूं पर पीहू, मेरी जान, इस हीरो को भी तो अपने पैरों पर खड़े हो जाने दो. अपने पापा से पैसे मांग मांग कर थोड़े ही तुम्हारे शौक पूरे करेगा और अभी तो उस के पापा ही सैट नहीं हुए,” नंदिता के यह कहने के ढंग पर पीहू को हंसी आ गई. नंदिता ने आगे कहा, ”देखो, हम संजय के पेरैंट्स से जल्दी ही जरूर मिलेंगे. तुम जहां कहोगी, हम तुम्हारी शादी कर देंगे. पर तुम्हें हमारी एक बात माननी पड़ेगी.‘’

पीहू इस बात पर चौकन्नी हुई तो नंदिता हंस दी. पीहू ने पूछा, ”कौन सी बात?”

”अभी सब तरफ से ध्यान हटा कर सीए की तैयारी में लगा दो, बैठ जाओ पढ़ने. फिर जो कहोगी, हो जाएगा. सीए करते ही शादी कर लेना, हम खुश ही होंगे.‘’

पीहू ने इस बात पर सहमति दे दी तो नंदिता ने चैन की सांस ली और विनय को भी यह बातचीत बताई तो उन की भी चिंता कम हुई. पीहू फिर सचमुच रातदिन पढ़ाई में जुट गई. वह हमेशा यही कहती थी कि वह एक ही बार में सीए क्लियर करने के लिए जीतोड़ मेहनत करेगी, बारबार वही चीज नहीं पढ़ती रहेगी. नंदिता ने सुना, पीहू फोन पर कह रही थी

गरम लोहा: बबीता ने क्यों ली पति व बच्चों के साथ कहीं न जाने की प्रतिज्ञा?- भाग 1

अपूर्व और बच्चों को मेरी टांग खींचने का अच्छा मौका मिल गया था. सब से पहले छोटे बेटे ऋतिक ने मोबाइल हाथ में लेते हुए कहा, ‘‘लाओ मम्मा, मैं नानी को फोन कर के बता देता हूं कि आप मामा की शादी में नहीं आ पाएंगी, क्योंकि आप ने भीष्म प्रतिज्ञा की है कि आप हम लोगों के साथ अब कहीं नहीं जाओगी.’’

ऋतिक की बात पूरी होते ही अपूर्व ने उस के हाथ से फोन लेते हुए कहा, ‘‘अरे बेटा, मेरे होते हुए तुम नानी से बात करो यह मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा है. लाओ फोन मुझे दो. मैं नानी को ठीक से समझा देता हूं कि वे साले साहब की शादी की सारी तैयारी अकेले ही कर लें, क्योंकि उन की लाडली ने कहीं भी न जाने की प्रतिज्ञा कर ली है.’’

मेरे दिमाग के गरम पारे पर मां के फोन से पानी की जो ठंडी फुहार पड़ी थी वह पुन: इन लोगों की चुहलबाजी से ज्वलंत होने लगी.

हुआ यों था कि शिमला में 1 सप्ताह तक छुट्टियां बिता कर हम बस घंटा भर पहले ही घर आए थे. घर में घुसते ही अपूर्व और बच्चे एसी और टीवी औन कर के बैठ गए और फिर 1-1 कर के फरमाइशें शुरू कर दीं, ‘‘बबीता, फटाफट 1 कप चाय पिलाओ… होटल की चाय पी कर मन खराब हुआ पड़ा है.’’

‘‘मम्मा, प्लीज साथ में प्याज के पकौड़े भी बना देना. रास्ते में कहीं पकौड़े बन रहे थे. उन की महक मेरी नाक में ऐसी समाई कि मैं ने वहीं तय कर लिया था कि घर पहुंच कर सब से पहले मम्मा से पकौड़े बनवाऊंगा, बड़े बेटे गौरव ने अपनी इच्छा जताई.’’

‘‘मम्मा, आप ने मुझ से वादा किया था कि घर पहुंचते ही मुझे नूडल्स खिलाओगी. अब मुझ से सब्र नहीं हो रहा है. फटाफट अपना वादा पूरा करो,’’ छोटे बेटे ऋतिक ने भी उन दोनों के सुर में सुर मिलाया.

मेरे कानों में उन तीनों की बातें पड़ तो रही थीं पर ध्यान घर में बिखरे काम पर था.

बालकनी में सप्ताह भर के पेपर्स के बंडल बिखरे पड़े थे, जिन्हें हमारी गैरमौजूदगी में भी पेपर वाला डालता गया था, क्योंकि उसे हम मना करना भूल गए थे. उन्हें उठा कर खोल कर अलमारी में रखना था. सामने और पीछे दोनों तरफ की बालकनियों के गमलों के पौधे 1 सप्ताह में पानी के अभाव में झुलस से गए थे. उन में पानी डालना था. घर में इतनी धूल दिखने लगी थी कि फर्श पर चप्पलों के निशान बन रहे थे. कामवाली तो कल सुबह ही आएगी. अत: झाड़ूपोंछा भी करना ही पड़ेगा. सारे कमरों की बैडशीटें बदलनी हैं. किचन समेत पूरे घर की डस्टिंग करनी पड़ेगी. सूटकेस और बैग्स को खाली कर के धूप दिखा कर ऊपर की अलमारी में रखना है. सब से बढ़ कर तो गंदे कपड़ों के अंबार से निबटना है. कपड़े मशीन में धुलने डालने हैं. धुलने के बाद सूखने डालना और फिर सूखने के बाद उठा कर अंदर लाने हैं.

इस सब के अलावा सप्ताह भर बाहर का खाना खा कर ऊब चुके अपूर्व और बच्चों की दिली तमन्ना कि आज घर का बना स्वादिष्ठ खाना खाने को मिलेगा, बिना कहे ही मैं समझ रही थी.

2-4 दिन के लिए भी घर छोड़ कर कहीं चले जाओ तो आने के बाद काम का अंबार देख कर मन इतना घबरा जाता है कि यह सोचने लग जाती हूं कि गई ही क्यों? अपूर्व और बच्चे तो बस सूटकेस और बैग्स को घर के अंदर पहुंचा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं. उन्हें किसी और काम से मतलब नहीं रह जाता. मैं अकेली सारे काम निबटातेनिबटाते अधमरी हो जाती हूं.

अपूर्व और बच्चे तो अपनीअपनी फरमाइशें मुझे सुना कर टीवी के सामने बैठ गए और मैं किचन में खड़ी सोचने लगी कि कहां से काम शुरू करूं.

मुझे पता था कि जब तक तीनों की खानेपीने की फरमाइशें पूरी नहीं कर दूंगी तब तक ये शोर मचाते रहेंगे और मैं कोई भी काम ढंग से नहीं कर पाऊंगी. हालांकि लंबे सफर से आने के बाद नहाए बिना कुछ करने का मन नहीं कर रहा था, पर नहाने का इरादा त्याग कर जल्दीजल्दी प्याज काटने में जुट गई. गैस पर एक तरफ 2 कप चाय चढ़ा दी और दूसरी तरफ भगौने में नूडल्स बनने रख दी. तीसरे आंच पर कड़ाही में तेल गरम होते ही फटाफट पकौड़े तल कर सारा सामान ट्रे में लगा कर उन के पास पहुंच गई.

सब के साथ खुद भी सफर की थकान कम करने के इरादे से बैठ कर मैं ने भी चाय पी और उस के बाद पल्लू कमर में ठूंस कर काम निबटाने उठ गई.

सोचा सब से पहले कपड़ों को मशीन में डाल दूं. मशीन में कपड़े अपनेआप धुलते रहेंगे और मैं उस दौरान दूसरे काम करती रहूंगी.

मशीन लगाने के नाम पर मुझे पानी का खयाल आया कि पता नहीं टंकी में कितना पानी है? पर जब मैं ने ऋतिक से कहा कि जा कर देख कर आ कि टंकी में कितना पानी है ताकि मैं अपना काम उसी हिसाब से शुरू करूं तो वह मुंह तक चादर ओढ़ कर सो गया और अपने बड़े भाई की ओर इशारा कर के मुझे सलाह दे डाली कि इसे भेज दो.

उस की हरकत पर गुस्सा तो बहुत आया पर मैं बिना कुछ कहे चुपचाप वहां से बाहर निकल आई.

गौरव ने शायद मेरी नाराजगी को महसूस कर लिया. अत: उस ने बिना मेरे कुछ कहे ही उठते हुए कहा, ‘‘मम्मा, मैं देख कर आता हूं.’’

‘शुक्र है, किसी को तो दया आई मुझ पर,’ सोचते हुए मैं ने सूटकेस और बैग खाली करना शुरू कर दिए.

‘‘मम्मा, टंकी पूरी भरी हुई है… अब प्लीज कम से कम 1 घंटे तक आप मुझ से कोई काम करने को मत कहिएगा,’’ कहते हुए वह फिर से टीवी के सामने बैठ गया.

मैं अकेली इतने सारे कामों को ले कर परेशान हो रही हूं पर मेरे पति और बच्चों को इस की कोई परवाह नहीं है. कोई झूठमूठ भी मदद के लिए नहीं उठ रहा है. कहीं जाने का प्रोग्राम बनाने में तो तीनों ही बहुत तेज रहते हैं पर जाने से पहले की तैयारी में न कोई हाथ बंटाने को तैयार होता है और न ही वापस आने के बाद फैले कामों को समेटने में.

‘बस अब बहुत हो गया. ये सब मेरे सीधेपन का ही नतीजा है. मैं तो हरेक की सुविधा के लिए खटती रहती हूं पर इन्हें मेरी रत्ती भर भी परवाह नहीं रहती. अब तो इन्हें इन की गलती का और घर के प्रति जिम्मेदारियों का एहसास कराना ही पड़ेगा,’ यह सोचते हुए मैं कमरे में पहुंच गई.

फिल्म रिव्यू ‘होटल मर्डर केस- बेहतरीन मर्डर मिस्ट्री वाली फिल्म बनने से कुछ दूर रही

रेटिंगः दो स्टार

निर्माता: संजीवनी मीडिया एंड टेक्नाॅलाजीज प्रा. लिमिटडढ

निर्देषकः नवीन कुमार सिन्हा

लेखकःसंजय कुमार कंुदन

कलाकारः अभिजीत सिन्हा,कृतिन अजितेष,बिनीता सिंह,अपर्णा राज,आदर्ष केसरी,राजबीर गंुजन, लाड़ली राय,अनुभव के सिन्हा व अन्य

अवधि: एक घंटा बीस मिनट

प्लेटफार्म: यूट्यूब

एक तरफ बड़े बड़े बजट की हिंदी फिल्में बाक्स आफिस पर अपनी लागत नही वसूल कर पा रही हैं,तो दूसरी तरफ कम लागत में बनने वाली फिल्मों को सिनेमाघर या ओटीटी प्लेटफार्म पर भी जगह नहीं मिल पा रही है.ऐसे में कई फिल्मकार मजबूरन अपनी फिल्मों को यूट्यूब पर रिलीज कर रहे हैं.ऐसी ही एक मर्डर मिस्ट्ी’ फिल्म ‘‘होटल मर्डर केस’’ है.जिसे निर्माता ने मजबूरन यूट्यूब पर डाल दिया और इस फिल्म ने महज बारह घंटे में ही चार हजार से अधिक व्यूज प्राप्त कर लिए.

कहानीः

फिल्म ‘‘होटल मर्डर केस’’ की कहानी के केंद्र में बिहार का बोधगया षहर है,जो कि देश विदेश के पयर्टकों के लिए एक अद्भुत शहर है.लोग देष विदेष से यहाँ घूमने आते हैं.एक हसीन जोड़ा मोहिनी अरोड़ा ( बिनीता सिंह) और रोहित सक्सेना(आदर्ष केसरी ) भी शहर के एक आलीशान होटल में अगल बगल का कमरा लेकर ठहरता है.एक दिन दोनों देर रात नशे की हालत में होटल वापस आते हैं और सीधे रेस्टोरेंट में पहुँचते हैं.वेटर प्रकाष को खाने का आर्डर देते हैं,मगर जब वेटर प्रकाष खाना लेकर आता है,तो वेटर को दोनों अपने टेबल पर मृत मिलते हंै. होटल के वेटर से सूचना मिलने पर जांच करने के लिए पुलिस इंस्पेक्टर शमशाद शेख अपनी टीम व फोरंासिक जांच टीम के साथ पहुँचते हैं और फौरन अपनी टीम के साथ तफ्तीश शुरू करते है.शहर के चर्चित होटल में इस तरह की रहस्मय कत्ल पुलिस विभाग के लिए बहुत चिंता की वजह थी.इसकी खास वजह यह थी कि देष विदेश के हजारों सैलानियों का जत्था उस वक्त शहर में मौजूद था.इंस्पेक्टर शमशाद शेख की पहचान षहर में कानून व्यवस्था बनाए रखने वाले सख्त अफसर के रूप में होती है. मगर मोहिनी अरोड़ा व रोहित सक्सेना की मौत से रहस्य बढ़ जाता है. षमषाद षेख व डाक्ठर की भी समझ में मौत की वजह नही आती?सवाल उठते है कि इनकी मौत कैसे हुई? क्या किसी ने इनका कत्ल किया है?पर खून बहा नही,षरीर पर चोट के निषान भी नहीं है. आखिर इन्हे किसने,कब और कैसे मारा?रात में रेस्टारेंट में कोई अन्य षख्स भी बाहर से नहीं आया? आखिर यह दोनों हैं कौन? और इनके बीच रिष्ता क्या था ?कौन इनकी जान का दुश्मन था ? षमषाद षेख को तफ्तीश से पता चलता है कि मोहिनी अपने पति व संघर्ष रत कलाकार नवनीत अरोड़ा (राजबीर गंुजन ) को धोखा दे रही थी,जो एक जमाने में उसका प्यार था.वहीं रोहित सक्सेना(आदर्ष केसरी ) अपनी पत्नी स्मृति सक्सेना (लाडली राय ) को धोखा दे रहा था.दोनों षादियां टूटने के कगार पर थीं.पर अहम सवाल था कि मोहिनी और रोहित की मौत से किसको फायदा था? आखिर कौन दोनों को मार सकता था?इन्हे मारने का मौका कातिल को कब मिला? यह दो मौतें कैसे हुईं?जब षमषाद षेख कातिल को बेनकाब करते हैं,तो दर्षक भी सकते में आ जाता है.

लेखन व निर्देषनः

लेखक ने रहस्य को लगातार गहराने की कोषिष की है.अंत तक दर्षक अनुमान नहीं लगा पाता कि कातिल कौन है? मगर पटकथा काफी कमजोर हैं.रहस्य का रोमांच पैदा नही होता.इसके अलावा कैमरामैन व निर्देषक की कमजोरी के चलते कुछ दृष्य डार्क फिल्माए गए हैं.एक दृष्य में जब पुलिस इंस्पेक्टर षमषद षेख, रोहित सक्सेना की पत्नी स्मृति सिन्हा को फोन करात है?उस वक्त जिस बिस्तर पर स्मृति बैठी हुई है,उस बिस्तर पर अच्छी खासी रोषनी है,मगर स्मृति के चेहरे पर रोषनी का अभाव है.इसी तरह कई दृष्यों में प्रीति सिंन्हा के चेहरे पर भी अंधेरा ही नजर आता है.रोहित सक्सेना व स्मृति सक्सेना के रिष्ते को ठीक से रेख्ंााकित ही नही किया गया.सब इंस्पेक्टर प्रीति सिंन्हा ( अपर्णा राय ) और लेखक विक्रम सिंह (कृतिन अजितेष ) की प्रेम कहानी भी ठीक से विकसित नही की गयी है.फिल्म की गति भी धीमी है.यदि लेखक व निर्देषक ने थोड़ी सूझबूझ दिखाने क ेसाथ मेहनत की हाती तो यह फिल्म एक बेहतरीन मर्डर मिस्ट्ी वाली बन सकती थी.

अभिनयः

अमीर,कुटिल व चालाक महिला स्मृति सक्सेना के किरदार में लाड़ली राय निराया करती हैं.पुलिस इंस्पेक्टर षमषाद षेख के किरदार में अभिजीत सिन्हा का अभिनय षानदार है.दृष्यों की मंाग के अनुरूप उनके चेहरे के भाव और उसी के अनुरूप उनकी बौडी लैंगवेज बदलती हैं.सब इंस्पेक्टर प्रीति के किरदार में अपर्णा राय का अभिनय कुछ दृष्यांे में ही प्रभावित करता है.उन्हें अभी काफी मेहनत करने की जरुरत है.मोहिनी अरोड़ा के किरदार में बिनीता सिंह सिर्फ संुदर नजर आयी हैं.पर उनका अभिनय बोलता नही है.अन्य कलाकार ठीक ही हैं.

राजकुमारी- भाग 2: क्या पूरी हो सकी उसकी प्रेम कहानी

चारों ओर एक आह सी निकलती महसूस होती थी. पार्टी में जितने भी लोग थे, सभी उसी को घूर रहे थे. दावत खत्म होने के बाद निर्मल कुमार जब अपने कमरे में पहुंचा तो खुद को बहुत थकाथका सा महसूस करने लगा. उसे बिस्तर पर पड़ेपड़े बहुत देर हो गई. करवटें बदलतेबदलते रात के 3 बज गए. रहरह कर उसे राजकुमारी का मासूम चेहरा दिखाई देता. आज उसे अपने अंदर अधूरेपन का एहसास हो रहा था. बहुतकुछ होते हुए भी वह अपनेआप को बहुत गरीब समझ रहा था. उस की यह गरीबी एक औरत ही दूर कर सकती थी. और वह मालदार औरत थी राजकुमारी.

उस के दिल में कहीं से एक सदमे की लहर आई, जिस ने उसे अपने लपेटे में ले लिया. उसे ऐसा लगा जैसे वह इस दुनिया में अकेला है. उसे कोई चाहने वाला नहीं, प्यार करने वाला नहीं, उस की जवानी को अपनी बांहों में भरने वाला कोई नहीं है. निर्मल कुमार अपनेआप को एक बड़े कैदखाने में बंद पा रहा था, जिस से बाहर निकलने का एक ही रास्ता था, लेकिन वह भी बंद था. फिर उसे अपनेआप में शोर सुनाई देने लगा. पहली बार यह शोर गूंजा था. कितनी ही देर वह इस शोर को सुनता रहा.

क्या राजकुमारी को वह अपना जीवनसाथी बना सकता है? वह सोच रहा था, ‘वह इनकार तो नहीं कर देगी? वह किसी और से तो प्यार नहीं करती? अगर वह किसी से मुहब्बत करती है तो क्या हुआ, मेरे पास तुरुप के पत्ते हैं. मैं अपना सबकुछ उस हुस्न की मलिका के कदमों में डाल दूंगा.’  सोचतेसोचते वह बिस्तर पर लेट गया. अब वह बहुत खुश था. जैसे उस ने राज को पा लिया हो.  अगले दिन उस ने राजकुमारी का शाम को अपनी गाड़ी में पीछा किया. वह रिकशे में 10 लोगों के साथ जहां उतरी, वह कच्चेपक्के मकानों की बस्ती थी. दूसरे दिन पार्क की बैंच पर बैठते हुए राजेश ने कहा, ‘‘कल कहां थी राज? तुम घर पर भी नहीं थी.’’ ‘‘हां, मैं परसों तुम को बताना भूल गई थी… हमारे मालिक ने दफ्तर के तमाम लोगों को खाने पर बुलाया था,’’ राजकुमारी ने राजेश की ओर देखते  हुए कहा. ‘‘अरे भई, निर्मल सेठ?है, जवान है. उस की पार्टी हो तो हमारी गुंजाइश कहां, हम ठहरे गरीब आदमी…’’ सुन कर राजकुमारी ने फौरन कहा, ‘‘यह बात तो है… निर्मल बहुत अमीर है, लेकिन उस में जरा सा भी घमंड नहीं है.’’

राजेश ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘फिर मैं ऐसा समझूं कि मेरी 3,650 दिनों की तपस्या बेकार गई, कहीं तुम्हारा इरादा…’’ ‘‘नहीं…’’ राजकुमारी बोली, ‘‘सब से पहली बात तो यह है कि कहां निर्मल कुमार और कहां मैं. मेरा उस के बारे में सोचना ही बेकार है.’’ ‘‘तुम कितनी मालदार हो, तुम्हें नहीं मालूम…’’ राजेश बोला, ‘‘बस एक बात है, 100 साल पहले मुझे तुम से प्यार था, आज भी है और कल भी रहेगा…’’ राजकुमारी ने खड़े होते हुए कहा, ‘‘मालूम है बाबा, अब उठो.’’ अगले दिन जब निर्मल कुमार के कमरे में राजकुमारी आई, तो वह अपनी कुरसी से खड़ा हो गया और बोला, ‘‘आओ राजकुमारी, मैं तुम्हें बुलाने ही वाला था.’’  वह उसे कुरसी की ओर इशारा करते हुए आगे बोला, ‘‘बैठोबैठो.’’ निर्मल कुमार के इस तरह बोलने पर वह जरा हैरान हुई और ‘जी’ कहती हुई बैठ गई. ‘‘कहो, तुम्हें हमारी पार्टी कैसी लगी?’’

निर्मल कुमार की आंखों में एक खास चमक देखते हुए राजकुमारी ने कहा, ‘‘पार्टी बहुत शानदार रही.’’  वह सोच रही थी कि राजेश उस के दिल में बसा हुआ है तो क्या हुआ, खूबसूरत मर्द तो अपने अंदर चुंबक का असर रखते हैं. वह निर्मल कुमार को गौर से देखने लगी. फिर आंखें झुका कर वह बोली, ‘‘जी कहिए, क्या हुक्म है?’’ ‘‘हुक्म नहीं, गुजारिश है… वह यह है कि आज शाम मैं तुम से एक खास बात करना चाहता हूं. तुम कल साढ़े  7 बजे होटल डिलाइट में मुझ से मिलना. अब तुम जा सकती हो. लेकिन ध्यान रहे, मुलाकात का किसी को पता न चले, समझीं?’’ राजकुमारी ‘ठीक है’ कहते हुए कमरे से बाहर चली गई. उस के दिमाग में कितने ही सवाल उठ खड़े हुए. उसे महसूस हो गया था कि निर्मल कुमार उस पर डोरे डाल रहा है.  उस पार्टी की रात की पार्टी में भी वह उस की निगाहों के इशारे को पढ़ चुकी थी. और उसे वह यकीन भी हो गया कि उस का मालिक ऐयाश नहीं है.

वह अपनी जवानी की आग नहीं बुझाना चाहता, वह जीवनसाथी चाहता है. फिर एक और डर भी उसे परेशान कर रहा था कि अमीर मर्द एक गरीब लड़की को अपनी बीवी कैसे बना सकता है?  शाम को वह राजेश से मिली, तो कुछ खिंचीखिंची सी थी. राजेश ने उस का मन रखने को कहा ‘‘चलो, तुम्हारे कमरे में चलते हैं. वहां बैठ कर बात करेंगे.’’ उधर निर्मल कुमार बेचैन था, पर अगले दिन का इंतजार नहीं करना चाहता था. वह उसी बस्ती तक चला गया और राजकुमारी के कमरे के सामने भी चाय की दुकान में बैठ कर राजकुमारी के दर्शन का इंतजार करने लगा. उस ने उन 2-3 घंटों में बहुतकुछ देख लिया, पर उस का राजकुमारी ने प्रति लगाव कम नहीं हुआ था.

जब अगले दिन दोनों शाम को मिले, तो राजकुमारी ने सिर उठाया और उस से कोई बात नहीं छिपाई. लेकिन जानबूझ कर राजेश के बारे में कुछ नहीं बताया. बाकी सबकुछ सचमुच बता दिया कि मातापिता हैं, 2 बहनें हैं, मकान गिरवी रखा है, दोनों बहनों की शादी बड़ी उलझन बनी हुई है, क्योंकि शादी करने के लिए रकम नहीं है, और हजारों रुपए का कर्ज भी चढ़ा हुआ है, जिसे अपनी पगार से बचा कर वह उतारने की कोशिश कर रही है. उस की कहानी सुन कर निर्मल कुमार वैसे तो दिल ही दिल में बहुत खुश हुआ. पर अब उसे राजेश के बारे में पता करना था. इस हुस्न की मलिका को खरीदने के लिए वह ज्यादा जरूरी था. उस ने बड़ी आसानी से राजेश के बारे में पता कर लिया था. फिर भी उसे भरोसा था कि राजकुमारी और राजेश की सिर्फ दोस्ती है और वह उस की अच्छी साथी बन सकती है, चाहे गरीब घर की क्यों न हो.

मेरे पड़ोस की भाभी से अवैध संबंध हैं उनके पति ये जानते हैं लेकिन भाभी मुझे छोड़ना नहीं चाहती, क्या करूं?

सवाल
मैं 21 साल का हूं. पड़ोस वाली भाभी 32 साल की हैं और उन के 3 बच्चे भी हैं. एक बार उन के पति गांव गए थे, तो मेरे और उन के बीच जिस्मानी संबंध बन गए, जो लगातार चल रहे हैं. एक दिन उन के पति ने हम दोनों को रंगेहाथ पकड़ भी लिया. इस के बावजूद वे अपनी बीवी को साथ ले जाने को तैयार हैं, पर वह मुझे छोड़ना नहीं चाहती. क्या करूं?

जवाब
3 बच्चों की मां को तलाक दिला कर उस से शादी करना आसान काम नहीं है. लिहाजा, आप उसे समझा कर पति के साथ जाने को कहें. उस का पति बेहद भला है, वरना कोई भी ऐसी हरकत बरदाश्त नहीं कर सकता. आप ने मुफ्त की मलाई खूब चाट ली, अब उस से किनारा करने में ही भलाई है.

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जेंटस पार्लरों में चलता गरम जिस्म का खेल

बिहार की राजधनी पटना के हर इलाके में जेन्टस पार्लर की भरमार है. चमचमाते और रंग बिरंगे पार्लर मनचले युवकों और मर्दों को खुलेआम न्यौता देते रहते हैं. पार्लर के आस-पास गहरे मेकअप किए इठलाती, बलखाती और मचलती लड़कियां मोबाइल फोन पर बातें करती दिख जाती हैं. अपने परमानेंट कस्टमरों को सेक्सी बातों से रिझाती-पटाती नजर आ ही जाती है. इन पार्लर में हर तरह की ‘सेवा’ दी जाती है.

कुर्सी के हेडरेस्ट के बजाए लड़कियों के सीने पर सिर रख कर शेव बनाने और फेस मसाज का आनंद लीजिए या फिर लड़कियों के गालों पर चिकोटियां काटते हुए मसाज का मजा लीजिए. फेस मसाज, हाफ मसाज से लेकर फुल मसाज की सर्विस हाजिर है. जैसा काम, वैसी फीस. याने पैसा फेंकिए और केवल तमाशा मत देखिए, बल्कि खुद भी तमाशों में शामिल होकर दैहिक सुख का भरपूर आनंद उठाइए.

जेंटस पार्लरों में कस्टमर से मनमाने रेट वसूले जाते हैं. शेव बनाने की फीस 500 से 1000 रूपए हैं. फेस मसाज कराना है तो 1000 से 2000 तक ढीले करने होंगे. हाफ बौडी मसाज के लिए 3000 से 5000 रूपए डाउन करने पड़ेगें और फुल बौडी मसाज की तो रेट नहीं है. जैसा कस्टमर वैसी फीस और सुंदर ‘मसाजर’ को तो मनमाना फीस देने को कस्टमर लाइन लगाए रहते हैं.

पटना के बोरिंग रोड, फ्रेजर रोड, एक्जीविशन रोड, डाकबंगला रोड, कदमकुंआ, पीरबहोर, मौर्यलोक कम्प्लेक्स, स्टेशन रोड, राजा बाजार, कंकड़बाग, एसके नगर आदि इलाकों में जेन्टस या मेंस मसाज पार्लर की भरमार है. पिछले कुछ महीनों से पुलिस की छापामारी से जेंटस पार्लरों का धंधा कुछ मंदा तो हुआ है, पर पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है. थानों के मिलीभगत से जेंटस पार्लरों का खेल चल रहा है.

कुछ साल पहले तक मसाज पार्लरों  में नेपाली और बांग्लादेशी लड़कियों की भरमार थी, पर अब उनकी संख्या कम हुई है और बिहार और उत्तर प्रदेश की ज्यादातर लड़किया उनमें काम कर रही है. इनमें ज्यादातर गरीब घरों की लड़किया ही होती हैं, जो पेट की आग बुझाने के लिए लोगों के सेक्स की आग को बुझाने का धंधा करने को मजबूर हैं.

फ्रेजर रोड के एक पार्लर में काम करने वाली सलमा बताती हैं कि उसका शोहर उसे छोड़ कर मुंबई भाग गया. अपनी और 7 साल की बेटी को पालने के लिए उसे मसाज पार्लर में काम करना पड़ा. उसी तरह पति की मौत के बाद ससुराल वालों की मार-पीट की वजह से रोहतास से भाग कर पटना पहुंची सोनी काम की खोज में बहुत भटकी पर उसे कोई काम नहीं मिला. उसकी सहेली ने उसे जेन्टस पार्लर में काम दिलाया. वह बताती है कि पहले तो उसे मर्दों की सेक्सी आंखों और हरकतों से काफी शर्म आती थी. कई बार यह काम छोड़ने का मन किया, पर मरता क्या न करता. अब इन सबकी आदत हो गई है. सर, सारी, थैंक्यू, मोस्ट बेलकम, नौटी ब्वाय आदि सीख गई हूं. समाज सेवक प्रवीण सिन्हा कहते हैं कि पार्लर में काम करने वाली ज्यादातर लड़कियों और औरतों के पीछे बेबसी और मजबूरी की कहानी होती हैं. कुछेक लड़कियां ही ऐसी होती हैं जो ऐश-मौज करने और मंहगे शौकों को पूरा करने के लिए मसाज करने और जिस्म बेचने का काम करती हैं.

आसपास के लोगों की कई शिकायतों के बाद कभी-कभार पुलिस जागती है और एक साथ कई मसाज पार्लर पर छापामारी कर कई लड़कियों, पार्लर संचालिकाओं और दर्जनों कस्टमरों को पकड़ कर ले जाती है. पुलिस देह का धंधा करने के आरोप में लड़कियों और ग्राहकों की धरपकड़ करती है. 2-3 दिन तो पार्लर पर ताला दिखता है और फिर  पुलिस, कानून और समाज के ठेकेदारों को ठेंगा दिखाते हुए धंधा चालू हो जाता है और बेधड़क चलता रहता है. पता नहीं पुलिस की इस ड्रामेबाजी का मतलब क्या है?

पुलिस के एक आला अफसर कहते हैं कि जिस्मानी धंधे की शिकायत मिलने के बाद पुलिस छापामारी करती है. प्रिवेंशन आफ इममारल ट्रैफिक एक्ट के तहत शिकायतों के बाद छापामारी की जाती है. पार्लर से पकड़ी गई लड़कियां या औरतें यह नहीं बताती हैं कि उन्हें जर्बदस्ती या लालच देकर या टार्चर कर काम कराया जा रहा है. वह तो पुलिस को यही बयान देती है कि वह अपनी मर्जी से काम कर रही है. अगर वह देह बेचने को मजबूर नहीं की गई है तो प्रिवेंशन आफ इममारल ट्रैफिक एक्ट बेमानी हो जाता है. इससे कानून कुछ कर नहीं पाता है.

पुलिस के एक रिटायर्ड औफिसर की मानें तो पार्लर पर छापामारी पुलिस के पैसा उगाही का जरिया भर है. पुलिस को पता है कि ऐसे मसाज पार्लर पर कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकती है, वह महज रौब-धौंस दिखा कर ‘वसूली’ कर लड़कियों और संचालकों को छोड़ देती है. जो पार्लर सही समय पर थानों में चढ़ावा नहीं चढ़ाते हैं, वहीं छापामारी भी की जाती है. पटना हाई कोर्ट के वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि जिस्म के धंधे और यौन शोषण की शिकायत पर कानूनी कार्रवाई तभी हो सकती है, जब वह दबाब में हो. जब किसी महिला को जबरन या खरीद-बिक्री के लिए यौन शोषण नहीं किया जा रहा है, तो वह कानूनन वेश्यावृत्ति नहीं माना जाएगा. पार्लर से पकड़ी गई लड़कियां कभी यह नहीं कहती है कि उससे जबरन कोई काम कराया जा रहा है. फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि पार्लर में जिस्मफरोशी का धंधा चलता है?

प्यार में खलल डालने वाली सीक्रेट वाइफ

जब बहन निचली जाति में ब्याह कर ले

बात कुछ साल पुरानी है, पर आज भी हालात ज्यादा बदले नहीं हैं. सुनीता रक्षाबंधन से कुछ दिन पहले डाकघर गई थी. उस ने राखी का लिफाफा तो बना लिया था, पर अपने भाई के नाम चिट्ठी नहीं लिखी थी. लिहाजा, वह डाकघर में ही बैठ कर चिट्ठी लिखने लगी.

सुनीता के साथ की सीट पर मालती नाम की एक और औरत बैठी थी और वह समझ गई कि सुनीता क्या और क्यों लिख रही है. यह देख कर मालती फूटफूट कर रोने लगी.

जब सुनीता ने रोने की वजह पूछी, तो मालती ने अपने जज्बातों पर काबू रखते हुए बताया, ‘‘मैं भी आप की तरह अपने भाइयों को राखी भेजने आई हूं, पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही है.’’

‘‘पर क्यों? इस में दिक्कत क्या है? क्या तुम्हारे पास पैसे नहीं हैं?’’ सुनीता ने मालती का हाथ पकड़ कर पूछा.

‘‘वह बात नहीं है. आज से 5 साल पहले मैं ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ शादी कर ली थी. लड़का छोटी जाति का था. हम घर वालों के गुस्से से बचने के लिए गांव छोड़ कर दिल्ली आ गए थे.

‘‘उस समय मेरे पिताजी ने मुझे मरा हुआ कह दिया था. मेरे तीनों भाई भी मुझ से नाराज हो गए थे. पिछले साल ही मेरे पिताजी की मौत हो गई थी. अब मैं अपने भाइयों को राखी भेजना चाहती हूं. पता नहीं, उन्हें मेरी राखी से मेरी याद भी आएगी या नहीं,’’ मालती ने अपनी कहानी बताई.

सुनीता ने मालती का हौसला बढ़ाते हुए कहा, ‘‘बिलकुल भेजो. अब तक तो तुम्हारे भाई पुरानी सारी बातें भूल गए होंगे.’’

मालती ने वैसा ही किया और राखी भेज कर वह अपने घर चली गई.

रक्षाबंधन के दिन मालती हैरान रह गई, जब उस के तीनों भाई उस के दरवाजे पर खड़े थे. वह खुशी के मारे उछल पड़ी और तीनों भाइयों को राखी बांधी. भाइयों ने भी उस का खूब मान रखा और अपने जीजा को घर आने का न्योता दिया.

मालती ने मन ही मन सुनीता का शुक्रिया अदा किया, क्योंकि उसी के बढ़ावा देने पर उस ने राखी भेजी थी.

रक्षाबंधन के साथसाथ भाई दूज भाईबहन के रिश्ते को मजबूत करने वाला त्योहार है. मांबाप के बाद भाईबहन ही कई साल एकसाथ जिंदगी गुजारते हैं. बचपन से ले कर शादी होने तक उन दोनों के बीच इतना ज्यादा गहरा रिश्ता बन जाता है कि वे एकदूसरे के सुखदुख में भागीदार बन जाते हैं. चूंकि आजकल अमूमन 2 ही बच्चे पैदा करने का चलन है, तो यह रिश्ता और भी ज्यादा गहरा हो जाता है.

ऐसा नहीं है कि शादी के बाद इस रिश्ते में कम गहराई हो जाती है, पर कुछ वजहों से खटास पैदा होने का खतरा जरूर बन जाता है. मालती के साथ यही हुआ था. निचली जाति में शादी करने के बाद वह अपने परिवार से कट गई थी. पिता के गुस्से और नाराजगी की वजह से मालती के भाई भी उस से खुन्नस खाए हुए थे, लिहाजा मालती ने भी चुप्पी साध ली थी, पर वह अपने भाइयों के बगैर घुटघुट कर जी रही थी.

पिता के न रहने पर उस के मन में उम्मीद की किरण जगी और सुनीता के बढ़ावा देने पर उस ने अपने भाइयों को राखी भेज दी, जिस का नतीजा बेहद सुखद रहा.

यह हमारे लिए शर्मनाक बात है कि आजादी के 75 साल बाद भी कोई लड़की अपनी पसंद का लड़का ढूंढ़ कर उसे अपना जीवनसाथी नहीं बना सकती है. और अगर वह लड़का निचली जाति का है तो घरसमाज में भूचाल आ जाता है. पिता तो लड़की को मरा हुआ मान लेते हैं, जबकि भाई मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं.

गुजरात के अहमदाबाद जिले के वारमोर गांव में 9 मई, 2019 को 8 लोगों ने मिल कर दलित नौजवान हरेश सोलंकी पर तलवार, चाकू, छड़ और डंडे से हमला बोला और उसे मार डाला. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इन लोगों की अगुआई लड़की के पिता दशरथ सिंह जाला कर रहे थे.

लड़की का नाम उर्मिला था और जिस समय उस के पति की हत्या हुई, उस समय उस के पेट में 2 महीने का बच्चा पल रहा था. तकरीबन 6 महीने पहले हरेश और उर्मिला ने शादी की थी.

इस वारदात से कुछ दिनों पहले तेलंगाना में एक कारोबारी पिता ने अपनी गर्भवती बेटी अमृता के पति की किराए के गुंडों से सरेआम हत्या करा दी थी, क्योंकि लड़की ने अपने पिता की मरजी के खिलाफ एक दलित लड़के प्रणय से शादी कर ली थी. यह हत्या लड़की की आंखों के सामने हुई थी.

ये तो वे वारदातें हैं, जिन में अति कर दी गई थी, पर ज्यादातर मामलों में लड़की को अपने परिवार से नाता तोड़ना पड़ जाता है और वह न चाहते हुए भी अपने भाई से दूर हो जाती है. लेकिन भाइयों को इस सिलसिले में पहल करनी चाहिए और रक्षाबंधन और भाई दूज जैसे त्योहार इस टूटे रिश्ते को जोड़ने का काम करते हैं.

सब से पहले तो भाई को यह समझ लेना चाहिए कि उस की बहन ने सोचसमझ कर ही अपना जीवनसाथी चुना होगा. अगर उस समय कोई गुस्सा था भी, तो रक्षाबंधन और भाई दूज के दिन तो भाई अपनी बहन के घर जा कर यह देख सकता है कि वह सुखी तो है.

अगर मालती की तरह उस की शादी को कई साल हो गए हैं, तो यकीनन वह मां भी बन गई होगी और किसी भी मामा के लिए उस के भानजाभानजी दिल के टुकड़े होते हैं, फिर वह उन्हें अपने स्नेह से कैसे दूर रख सकता है.

भाई और बहन तो एकदूसरे के लिए संबल होते हैं. मांबाप के न रहने के बाद सब से ज्यादा नजदीकी रिश्ता उन्हीं का होता है. समझदार भाईबहन कभी भी एकदूसरे को अकेलेपन का एहसाह नहीं होने देते हैं.

उन्होंने अपनी जिंदगी के कई साल उस घर में बिताए होते हैं, जो उन के मांबाप का सपनों का घरौंदा होता है. वहां उन की खट्टीमीठी, अच्छीबुरी यादें बीती होती हैं. फिर एक निचली जाति के लड़के से शादी करने के बाद इस मजबूत रिश्ते में दरार आने की कोई वजह नहीं है. और ऐसा हो भी गया है, तो रक्षाबंधन और भाई दूज पर उस दरार को भरा जा सकता है. यही इस त्योहार का असली मकसद भी है.

बहन के जिंदा होते हुए किसी भाई की कलाई कभी सूनी नहीं रहनी चाहिए और भाई दूज पर भाई को अपने स्नेह का तिलक लगाना हर बहन का हक होता है, इसलिए पुरानी कड़वी यादों को भूलें और बहन को फिर से अपने परिवार में शामिल कर लें.

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