औकात से ज्यादा – भाग 3 : क्या करना चाहती थी निशा

पापा तो निशा के जाने से पहले ही काम पर निकल जाते थे, इसलिए नए खरीदे कपड़े पहन कर औफिस जाती निशा का सामना उन से नहीं हुआ. मगर मम्मी तो उसे देख भड़क गईं, ‘‘तू ये कपड़े पहन कर औफिस जाएगी? कुछ शर्मोहया भी है कि नहीं?’’‘‘क्यों? इन कपड़ों में कौन सी बुराई है?’’ निशा ने तपाक से पूछा. ‘‘सारे जिस्म की नुमाइश हो रही है और तुम को इस में कोई बुराई नजर नहीं आ रही. उतारो इन्हें और ढंग के दूसरे कपड़े पहनो,’’ निशा की नौकरी को ले कर पहले से ही नाखुश मम्मी ने कहा. ‘‘मेरे पास इतना वक्त नहीं मम्मी कि दोबारा कपड़े बदलूं. इस समय मैं काम पर जा रही हूं. शाम को इस बारे में बात करेंगे,’’ मम्मी के विरोध की अनदेखी करते निशा घर से बाहर निकल आई. उस दिन घर से औफिस को जाते निशा को लगा कि उस को पहले से ज्यादा नजरें घूर रही हैं. ऐसा जरूर कपड़ों में से दिखाई पड़ने वाले उस के गोरे मांसल जिस्म की वजह से था. शर्म आने के बजाय निशा को इस में गर्व महसूस हुआ. उधर, अपने बदले रंगरूप की वजह से निशा को औफिस में भी खुद के प्रति सबकुछ बदलाबदला सा लगा. बिजलियां गिराती निशा के बदले रंगरूप को देख काम करने वाली दूसरी लड़कियों की आंखों में हैरानी के साथसाथ ईर्ष्या का भाव भी था. यह ईर्ष्या का भाव निशा को अच्छा लगा. यह ईर्ष्याभाव इस बात का प्रमाण था कि वह उन के लिए चुनौती बनने वाली थी.

निशा के अपना रंगरूप बदलते ही निशा के लिए औफिस में भी एकाएक सबकुछ बदलने लगा. अपने केबिन की तरफ जाते हुए संजय की नजर निशा पर पड़ी और इस के बाद पहली बार उस को अकेले केबिन में आने का इंटरकौम पर हुक्म भी तत्काल ही आ गया. केबिन में आने का और्डर मिलते ही निशा के बदन में सनसनाहट सी फैल गई. उस को इसी घड़ी का तो इंतजार था. केबिन में जाने से पहले निशा ने गर्वीले भाव से एक बार दूसरी लड़कियों को देखा. वह अपनी हीनभावना से उबर आई थी. अकेले केबिन में एक लड़की होने के नाते उस के साथ क्या हो सकता था, उस की कल्पना कर के निशा मानसिक रूप से इस के लिए तैयार थी. दूसरे शब्दों में, केबिन की तरफ जाते हुए निशा की सोच बौस के सामने खुद को प्रस्तुत करने की थी. निशा को इस बात से भी कोई घबराहट नहीं थी कि अपने बौस के केबिन में से बाहर आते समय उस के होंठों की लिपस्टिक का रंग फीका पड़ सकता था. वह बिखरी हुई हालत में नजर आ सकती थी. निशा मान रही थी कि बहुत जल्दी बहुतकुछ हासिल करना हो तो उस के लिए किसी न किसी शक्ल में कोई कीमत तो अदा करनी ही पड़ेगी.

निशा जब संजय के केबिन में दाखिल हुई तो उस की आंखों में खुले रूप से संजय के सामने समर्पण का भाव था. संजय की एक शिकारी वाली नजर थी. निशा के समर्पण के भाव को देख वह अर्थपूर्ण ढंग से मुसकराया और बोला, ‘‘तुम एक समझदार लड़की हो, इसलिए जानती हो कि कामयाबी की सीढ़ी पर तेजी से कैसे चढ़ा जाता है? अपने बौस और क्लाइंट को खुश रखो, यही तरक्की का पहला पाठ है. मेरा इशारा तुम समझ रही हो?’’

‘‘यस सर,’’ निशा ने बेबाक लहजे से कहा.

‘‘गुड, तुम वाकई समझदार हो. तुम्हारी इसी समझदारी को देखते हुए मैं इसी महीने से तुम्हारी सैलरी में 2 हजार रुपए की बढ़ोतरी कर रहा हूं,’’ निशा के गदराए जिस्म पर नजरें गड़ाते संजय ने कहा.

‘‘थैंक्यू सर, इस मेहरबानी के बदले में मैं आप को कभी भी और किसी भी मामले में निराश नहीं करूंगी,’’ उसी क्षण खुद को संजय के हवाले कर देने वाले अंदाज में निशा ने कहा. इस पर उस को अपने करीब आने का इशारा करते हुए संजय ने कहा, ‘‘तुम आज के जमाने की हकीकत को समझने वाली लड़की हो, इसलिए तेजी से तरक्की करोगी.’’ इस के बाद कुछ समय संजय के साथ केबिन में बिता कर  अपने होंठों की बिखरी लिपस्टिक को रुमाल से साफ करती निशा बाहर निकली तो वह नए आत्मविश्वास से भरी हुई थी. औकात से अधिक मिलने को ले कर मम्मी जिस आशंका से इतने दिनों से आशंकित थीं उस में से तो निशा गुजर भी गई थी. औकात कम होने पर तरक्की करने का यही तो सही रास्ता था. इसलिए संजय के केबिन के अंदर जो भी हुआ था उस के लिए निशा को कोई मलाल नहीं था.

सैलरी में 2 हजार रुपए की बढ़ोतरी हुई तो बिना देरी किए निशा ने सवारी के लिए स्कूटी भी किस्तों पर ले ली. अपनी स्कूटी पर सवार हो नौकरी पर जाते निशा का एक और बड़ा अरमान पूरा हो गया था. वह जैसे हवा में उड़ रही थी. इस के साथ ही निशा ने घर में यह ऐलान भी कर दिया कि अब से वह अपने काम से देरी से वापस आया करेगी. पापा कुछ नहीं बोले, किंतु मम्मी के माथे पर कई बल पड़ गए, पूछा, ‘‘इस देरी से आने का मतलब?’’

‘‘ओवरटाइम मम्मी, ओवरटाइम.’’

मम्मी ने दुनिया देखी थी, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘मुझ को तुम्हारा देर से घर आना अच्छा नहीं लगेगा.’’ ‘‘तुम को तो मेरा नौकरी पर जाना भी कहां अच्छा लगा था मम्मी, मगर मैं नौकरी पर गई. अब भी वैसा ही होगा. एक बात और, तुम को मुझे मेरी औकात से ज्यादा मिलने पर ऐतराज था. मगर मुझ को 2 महीने में ही मिलने वाली तरक्की ने साबित कर दिया कि मेरी कोई औकात थी.’’ बड़े अहंकार से कहे गए निशा के शब्दों पर मम्मी बोलीं, ‘‘हां, मैं देख रही हूं और समझ भी रही हूं. सचमुच बाहर तेरी औकात बढ़ गई है. मगर मेरी नजरों में तेरी औकात पहले से कम हो गई है.’’ मम्मी के शब्दों की गहराई में जाने की निशा ने जरूरत नहीं समझी. इस के बाद घर देर से आना निशा के लिए रोज की बात हो गई. काफी रात हुए घर आना अब निशा की मजबूरी थी. अपने बौस के साथसाथ क्लाइंट को भी खुश करना पड़ता था. औफिस में निशा की अहमियत बढ़ रही थी मगर घर में स्थिति दूसरी थी. मम्मी लगातार निशा से दूर हो रही थीं, किंतु निशा की कमाई के लालच में पापा अब भी उस के करीब बने हुए थे. निशा के देरसबेर घर आने को वे अनदेखा कर जाते थे. दिन बीतते गए. एक दिन निशा को ऐसा लगा कि अपनी लालसाओं के पीछे भागते हुए वह इतनी दूर निकल आई थी जहां से वापसी मुश्किल थी. अपने फायदे के लिए संजय ने निशा का खूब इस्तेमाल किया था. इस के बदले में उस को मोटी सैलरी भी दी थी. निशा ने बहुतकुछ हासिल किया था, किंतु एक औरत के रूप में बहुतकुछ गंवा कर.

कभीकभी यह चीज निशा को सालती भी थी. ऐसे में उस को मम्मी की कही हुई बातें भी याद आतीं. लेकिन जिस तड़कभड़क वाली जिंदगी जीने की निशा आदी हो चुकी थी उस को छोड़ना भी निशा के लिए अब मुश्किल था. वापसी के रास्ते बंद थे. औफिस की दूसरी लड़कियों के सीने में जलन और ईर्ष्या जगाती निशा काफी समय तक अपने बौस संजय की खास और चहेती बनी रही और सैलरी में बढ़ोतरी करवाती रही. फिर एक दिन अचानक ही निशा के लिए सबकुछ नाटकीय अंदाज में बदला. एक खूबसूरत सी दिखने वाली लीना नाम की लड़की नौकरी हासिल करने के लिए संजय के केबिन में दाखिल हुई और इस के बाद निशा के लिए केबिन में से बुलावा आना कम होने लगा. लीना ने सबकुछ समझने में निशा की तरह 2 महीने का लंबा समय नहीं लिया था और कुछ दिनों में ही संजय की खासमखास बन गई थी. लीना की संजय के केबिन में एंट्री के बाद उपेक्षित निशा को अपनी स्थिति किसी इस्तेमाल की हुई सैकंडहैंड चीज जैसी लगने लगी थी. लेकिन उस के पास इस के अलावा कोई चारा नहीं था कि वह अपनी सैकंडहैंड वाली सोच के साथ समझौता कर ले.

राजकुमारी- भाग 1: क्या पूरी हो सकी उसकी प्रेम कहानी

उस का नाम ही राजकुमारी था. वैसे तो वह कहीं की राजकुमारी नहीं थी, लेकिन वह सचमुच राजकुमारी लगती थी. उस की खूबसूरती, रखरखाव, बातचीत करने का अंदाज और उस की शाही चाल उसे वाकई राजकुमारी बनाए हुए थे, जबकि वह एक मामूली घर की लड़की थी. जब उस ने पहले दिन दफ्तर में कदम रखा, तो न केवल कुंआरों के, बल्कि शादीशुदा लोगों के दिलों की धड़कनें भी तेज हो गई थीं. ‘चांदी जैसा रूप है तेरा सोने जैसे बाल, एक तू ही धनवान है गोरी बाकी सब कंगाल’, जैसी गजल उन के सामने आ गई थी. सपनों की हसीन शहजादी उन के सामने थी.

दफ्तर की दूसरी लड़कियों और औरतों ने भी जलन और तारीफ भरी नजरों से देखा था उसे. वह सब से अलग नजर आ रही थी. उस पर जवानी ही कुछ ऐसी टूट कर बरस रही थी कि दफ्तर में सभी चौंक पड़े थे. लंबा कद, घने बाल, भरी छातियां, पतली कमर और चाल में कोमलता. लेकिन वह वहां नौकरी करने आई थी, इश्क करने नहीं. उसे औरों से ज्यादा अपने काम से लगाव था. उस ने किसी की तरफ नजर भर कर मुसकरा कर भी नहीं देखा. उस के चेहरे पर खामोशी छाई रहती थी और आंखों में चिंता तैरती रहती थी. ऐसा लगता था कि वह बहुत सी परेशानियों से एकसाथ लड़ रही है. वह एक मामूली साड़ी बांधे हुए थी, लेकिन दूसरी औरतों और लड़कियों के मुकाबले उस की वह मामूली साड़ी भी खूब जंच रही थी उस पर. कई दिन बीत गए. वह सिर्फ अपने काम से काम रखती.

यदि वह किसी की माशूका न होती तो किसी न किसी को अपना दिल दे बैठती. खूबसूरत नौजवानों की इस दफ्तर में भी कमी नहीं थी. आमतौर पर उस तरह की खूबसूरत लड़कियां सहयोगियों पर दाना फेंक कर अपना काम निकालती हैं, पर राजकुमारी उन में से न थी. यह ऐसा सैंटर था, जिस में छोटीछोटी सैकड़ों मेजें लगी थीं. इस कंपनी का मालिक था निर्मल कुमार. अच्छीखासी दौलत होने के बावजूद उस ने अभी तक शादी नहीं की थी. अपनी पसंद की लड़की उसे अभी तक नहीं मिली थी. वह रोशन खयाल और गहरी सोच रखने वाला इनसान था. उस की उम्र 32 साल की थी. वह लंदन से पढ़ कर लौटा था.  उस ने आज तक वहां काम कर रही किसी लड़की की ओर ध्यान नहीं दिया था.

तकरीबन 4 साल से बड़ी सूझबूझ और लगन से वह कंपनी को चला रहा था. उस की कई दोस्त थीं, पर वह किसी से भी प्रेम नहीं करता था, क्योंकि उस की सब दोस्त लड़कियां खुले विचारों की थीं और कितनों के साथ रह चुकी थीं. निर्मल कुमार खुद भी कभी किसी के साथ नहीं सोया था उसे ऐसी लड़की चाहिए थी, जो कहीं भी मुंह मार ले. निर्मल कुमार ने जब पहली बार राजकुमारी को देखा था, तो उस का दिल भी धड़का था. आखिर वह उस के हुस्न की खुशबू से कैसे बच सकता था? वह लाखों में एक थी. निर्मल कुमार पहले मर्द था, मालिक बाद में. राजकुमारी जब भी किसी काम से निर्मल कुमार के सामने जाती, तो वह दो नजर भर देखे बगैर नहीं रह सकता था. इस से पहले भी उस की मुलाकात कई खूबसूरत पढ़ीलिखी ऊंचे घराने वालियों से होती रही थी. लंदन और मुंबई में भी वह कई हसीन लड़कियों से मिल चुका था, लेकिन उस ने उन में से किसी एक के लिए भी अपने दिल में तड़प महसूस नहीं की थी. उसे लगा कि राजकुमारी उतनी ही साफ थी जितना दिखती थी.

उस ने कभी काम के अलावा कुछ बात करने की कोशिश नहीं की, जबकि उस के स्टार्टअप में हर लड़की हर दूसरेतीसरे हफ्ते कोई पर्सनल प्रौब्लम लिए खड़ी होती थी. राजकुमारी में उस ने जैसे कोई खास बात महसूस की थी. वह दिन में 2-3 बार उसे जरूर बुलाता. राजकुमारी की मौजूदगी उसे तड़पाने लगती थी. जब वह कमरे से चली जाती तो उस की पीड़ा और बढ़ जाती. वह अपनी मेज  पर सिर टेक देता और आंखें बंद हो जातीं. फिर वह सोचता कि यह उसे क्या  होता जा रहा है, वह क्यों दीवानगी के खयाल पालने लगा है? इसी तरह कई हफ्ते बीत गए. राजकुमारी को भी अब महसूस होने लगा था कि निर्मल कुमार उस में दिलचस्पी लेने लगा है. लेकिन वह जल्दी ही दिमाग से यह बात निकाल देती. वह अपने और निर्मल कुमार के बीच के फासले को जानती थी.

वह 12,000 रुपए पाने वाली मामूली नौकर थी और निर्मल कुमार करोड़ों का मालिक था. उस के दिल में निर्मल कुमार को पाने या अपनाने की कोई ख्वाहिश नहीं थी, क्योंकि उस का राजकुमार तो राजेश था, जो उस के दिल का मालिक था. उस का और राजेश का साथ उसी समय से था, जब वह 10वीं में पढ़ती थी. लगभग 10 साल पहले की सी ताजगी थी. फिलहाल दोनों ही अपनीअपनी जिंदगी की परेशानियों में उलझे हुए थे. इसी कारण वे अपने सपनों की दुनिया को आबाद नहीं कर सके थे. राजेश भी बहुत सुंदर और गठीला नौजवान था. वह जहां काम करता था, वहां उस की बड़ी इज्जत थी. फैक्टरी का मालिक भी उस पर बहुत मेहरबान था. राजकुमारी और राजेश रोजाना शाम को किसी छोटे से ढाबे या पार्क में मिलते थे. वे देर तक बातें करते रहते थे. हर रोज एक ही परेशानी उन के सामने होती थी.

वे दोनों बातें कर के दिल की भड़ास निकाल लेते थे और अपने दुखों को जैसे बांट लेते थे.  ऐसा करने से उन को बड़ी शांति मिलती थी. कभीकभार जब मौका मिलता, तो दोनों एकदूसरे के साथ रातभर रहते, पर दोनों ने वादा कर रखा था कि वे पक्का शादी करेंगे. दोनों एक ही जाति के थे और घर वाले मंजूर कर लेंगे. यह भी उन्हें मालूम था. निर्मल कुमार ने एक रोज अपने दफ्तर के साथी लोगों को रात के खाने की दावत दी. नवंबर का महीना था. सर्दी शुरू हो चुकी थी. राजकुमारी पार्टी में आई, तो बादामी रंग की साड़ी पहने हुए थी. उस पर चौकलेटी रंग का शाल देखने वालों को बड़ी भली मालूम हो रही थी.  उस के अंगअंग से जवानी उबल रही थी. जब वह हंसती थी तो देखने वालों का कलेजा मुंह को आ जाता था.

बौडी टोंड तो स्ट्रौंग होगा बौंड

लड़का हो या लड़की या फिर औरत हो या मर्द, सभी के लिए ऐक्सरसाइज करना फायदेमंद रहता है. ऐक्सरसाइज पुराने रोगों की रोकथाम से ले कर मौडर्न लाइफस्टाइल को ठीक करने तक में लाभदायक होती है. यह तनाव और घबराहट से मुक्ति दिलाती है. ऐक्सरसाइज आप के वजन पर भी नियंत्रण रखती है.

अगर आप रोज 30 मिनट तक  ऐक्सरसाइज करें तो उस के आप को ये लाभ होंगे :

  • दिल का दौरा पड़ने का खतरा कम होगा.
  •  वजन नियंत्रण में रहेगा.
  • ऐक्सरसाइज कोलैस्ट्रौल को नियंत्रित रखेगी.
  • टाइप टू डायबिटीज और कई तरह के कैंसर के खतरे को कम करेगी.
  • ब्लडप्रैशर कम होगा.
  • हड्डियां मजबूत होंगी और मांसपेशियों के कमजोर होने का खतरा कम होगा.
  • अधिक ऊर्जा महसूस करेंगे, खुश रहेंगे और नींद अच्छी आएगी.

तनाव से मुक्ति

इस के अलावा वर्कआउट नकारात्मक विचारों और टैंशन को भी कम करता है. अगर आप फिट हैं तो मन भी खुश रहेगा.

ऐक्सरसाइज सैरोटोनिन, ऐंडोर्फिन और स्ट्रैस के प्रभाव को कम कर मस्तिष्क के रसायन स्तर को संतुलित करती है.

जब आप ऐक्सरसाइज करते हैं तो आप का शरीर फिट रहने के साथसाथ सही आकार में भी रहता है, जिस से आप के पार्टनर का ध्यान आप की ओर सहजता से खिंचता है.

आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी

पूरे दिन की थकान के बाद जब आप ऐक्सरसाइज करते हैं, तो आप रिलैक्स हो जाते हैं. इस से सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास बढ़ता है.

जिस तरह दांतों को ठीक रखने के लिए ब्रश करना जरूरी होता है उसी तरह फिट बौडी और सकारात्मक सोच के लिए कम से कम सप्ताह में 5 दिन 30 मिनट तक ऐक्सरसाइज करना आवश्यक है.

शारीरिक रूप से फिट व्यक्ति की सैक्सुअल लाइफ भी अच्छी रहती है, क्योंकि ऐक्सरसाइज से आप की मांसपेशियां टोंड रहती हैं.

एक शोध में पता चला है कि रोज ऐक्सरसाइज करने वाले दंपती का आपसी रिश्ता अधिक मजबूत होता है. अधिक उम्र तक वे एकदूसरे को आकर्षक मानते हैं.

इस तरह के ऐक्सरसाइज में ऐरोबिक, कुछ दूर पैदल चलना सब से अधिक प्रभावशाली होती है. ऐक्सरसाइज से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और व्यक्ति काफी समय तक अपनेआप को युवा महसूस करता है. पूरे दिन में आप आसानी से 30 मिनट ऐक्सरसाइज के लिए निकाल सकते हैं.

लड़कियों के लिए तो ऐक्सरसाइज खासतौर पर फायदेमंद रहती है. इस से तनाव, ब्लडप्रैशर, कोलैस्ट्रौल जैसी कई समस्याओं से राहत मिलती है.

औकात से ज्यादा – भाग 2 : क्या करना चाहती थी निशा

संजय के औफिस में केवल लड़कियां ही काम करती दिखती थीं. पूरे मेकअप में एकदम अपटूडेट लड़कियां, खूबसूरत और जवान. किसी की भी उम्र 22-23 वर्ष से अधिक नहीं. औफिस में संजय ने अपने बैठने के लिए एक अलग केबिन बना रखा था. केबिन का दरवाजा काले शीशों वाला था. किसी भी लड़की को अपने केबिन में बुलाने के लिए वह इंटरकौम का इस्तेमाल करता था. काफी ठाट में रहने वाला संजय चैनस्मोकर भी था. सिगरेट लगभग हर समय उस की उंगलियों में ही दबी रहती थी. नौकरी के पहले दिन सिगरेट का कश खींच संजय ने गहरी नजरों से निशा को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला, ‘‘दिल लगा कर काम करना, इस से तरक्की जल्दी मिलेगी.’’ ‘‘यस सर,’’ संजय की नजरों से खुद को थोड़ा असहज महसूस करती हुई निशा ने कहा. कल के मुकाबले में संजय की नजरें कुछ बदलीबदली सी लगीं निशा को. फिर उसे लगा कि यह उस का वहम भी हो सकता था. तनख्वाह के मुकाबले में औफिस में काम उतना ज्यादा नहीं था. उस पर सुविधाएं कई थीं. औफिस टाइम के बाद काम करना पड़े तो उस को ओवरटाइम मान उस के पैसे दिए जाते थे. किसी न किसी लड़की का हफ्ते में ओवरटाइम लग ही जाता था. निशा नई थी, इसलिए अभी उसे ओवरटाइम करने की नौबत नहीं आती थी.

शायद इसलिए अभी उसे ओवरटाइम के लिए नहीं कहा गया था क्योंकि अभी वह काम को पूरी तरह से समझी नहीं थी. उस के बौस संजय ने भी अभी उसे किसी काम से अपने केबिन में नहीं बुलाया था. केबिन के दरवाजे के शीशे काले होने की वजह से यह पता नहीं चलता था कि केबिन में बुला कर संजय किसी लड़की से क्या काम लेता था. कई बार तो कोई लड़की काफी देर तक संजय के केबिन में ही रहती. जब वह बाहर आती तो उस में बहुतकुछ बदलाबदला सा नजर आता. किंतु निशा समझ नहीं पाती कि वह बदलाव किस किस्म का था. एक महीना बड़े मजे से, जैसे पंख लगा कर बीत गया. एक महीने के बाद तनख्वाह की 20 हजार रुपए की रकम निशा के हाथ में थमाई गई तो कुछ पल के लिए तो उसे यकीन ही नहीं आया कि इतने सारे पैसे उसी के हैं. पहली तनख्वाह को ले कर घर की तरफ जाते निशा के पांव जैसे जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे. निशा की तनख्वाह के पैसों से घर का माहौल काफी बदल गया था. 20 हजार रुपए की रकम कोई छोटी रकम नहीं थी. एक प्राइवेट फर्म में मुनीम के रूप में 20 वर्ष की नौकरी के बाद भी उस के पापा की तनख्वाह इस रकम से कुछ कम ही थी.

निशा की पहली तनख्वाह से उस की नौकरी का विरोध करने वाले पापा के तेवर काफी नरम पड़ गए. मम्मी पहले की तरह ही नाराज और नाखुश थीं. निशा की तनख्वाह के पैसे देख उन्होंने बड़ी ठंडी प्रतिक्रिया दी. जैसी कि पहली तनख्वाह के मिलने पर निशा का एक टच स्क्रीन मोबाइल लेने की ख्वाहिश थी, उस ने वह ख्वाहिश पूरी की. इस के बाद रोजमर्रा के खर्च के लिए कुछ पैसे अपने पास रख निशा ने बाकी बचे पैसे मम्मी को देने चाहे, मगर मम्मी ने उन्हें लेने से साफ इनकार करते हुए कहा, ‘‘घर का सारा खर्च तुम्हारे पापा चलाते हैं, इसलिए ये पैसे उन्हीं को देना.’’ ‘‘लगता है तुम अभी भी खुश नहीं हो, मम्मी?’’ निशा ने कहा.

‘‘एक मां की अपनी जवान बेटी के लिए दूसरी कई चिंताएं होती हैं, वह पैसों को देख उन चिंताओं से मुक्त नहीं हो सकती. मगर मेरी इन बातों का मतलब तुम अभी नहीं समझोगी. जब समझोगी तब तक बड़ी देर हो जाएगी. उस वक्त शायद मैं भी तुम्हारे लिए कुछ नहीं कर सकूंगी.’’ मम्मी की बातों को निशा ने सुना अवश्य किंतु गंभीरता से नहीं लिया. पहली तनख्वाह के मिलने के बाद उत्साहित निशा के सपने जैसे आसमान को छूने लगे थे. सारी ख्वाहिशें भी मुट्ठी में बंद नजर आने लगी थीं. दूसरी तनख्वाह के पैसों से घर की हालत में साफ एक बदलाव आया. मम्मीपापा जिस पुराने पलंग पर सोते थे वह काफी जर्जर और कमजोर हो चुका था. पलंग मम्मी के दहेज में आया था और तब से लगातार इस्तेमाल हो रहा था. अब पलंग में जान नहीं रही थी. पापा लंबे समय से एक सिंगल बड़े साइज का बैड खरीदने की बात कह रहे थे मगर पैसों की वजह से वे ऐसा कर नहीं सके थे. अब जब निशा की तनख्वाह के रूप में घर में ऐक्स्ट्रा आमदनी आई थी तो पापा ने नया बैड खरीदने में जरा भी देरी नहीं की थी. नए बैड के साथ ही पापा उस पर बिछाने के लिए चादरों का एक जोड़ा भी खरीद लाए थे. नए बैड और उस पर बिछी नई चादर से पापा और मम्मी के सोने वाले कमरे का जैसे नक्शा ही बदल गया था. पापा खुश थे, किंतु मम्मी के चेहरे पर आशंकाओं के बादल थे. वे चाहती हुई भी हालात के साथ समझौता नहीं कर पा रही थीं.

इधर, निशा के सपनों का संसार और बड़ा हो रहा था. जो उस को मिल गया था वह उस से कहीं ज्यादा हासिल करने की ख्वाहिश पाल रही थी. अपनी ख्वाहिशों के बीच में निशा को कई बार ऐसा लगता था कि उस की भावी तरक्की का रास्ता उस के बौस के केबिन से हो कर ही गुजरेगा. मगर औफिस में काम करने वाली दूसरी लड़कियों की तरह अभी बौस ने उसे एक बार भी अकेले किसी काम से अपने केबिन में नहीं बुलाया था. हालांकि औफिस में काम करते हुए उस को 2 महीने से अधिक हो चुके थे. बौस के द्वारा एक बार भी केबिन में न बुलाए जाने के कारण निशा के अंदर एक तरह की हीनभावना जन्म लेने लगी थी. वह सोचती थी दूसरी लड़कियों में ऐसा क्या था जो उस में नहीं था? जब उक्त सवाल निशा के जेहन में उठा तो उस ने औफिस में काम करने वाली दूसरी लड़कियों पर गौर करना शुरू किया. गौर करने पर निशा ने महसूस किया कि औफिस में काम करने वाली और बौस के केबिन में आनेजाने वाली लड़कियां उस से कहीं अधिक बिंदास थीं. इतना ही नहीं, वे अपने रखरखाव और ड्रैस कोड में भी निशा से एकदम जुदा नजर आती थीं. औफिस की दूसरी लड़कियों को देख कर लगता था कि वे अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा अपने मेकअप और कपड़ों पर ही खर्च कर डालती थीं और ब्यूटीपार्लरों में जाना उन के लिए रोज की बात थी.

लड़कियां जिस तरह के कपड़े पहन औफिस में आती थीं, वैसे कपड़े पहनने पर तो शायद मम्मी निशा को घर से बाहर भी नहीं निकलने देतीं. उन वस्त्रों में कटाव व उन की पारदर्शिता में से जिस्म का एक बड़ा हिस्सा साफ नजर आता था. कई बार तो निशा को ऐसा भी लगता था कि बौस के कहने पर औफिस में काम करने वाली लड़कियां औफिस से बाहर भी क्लाइंट के पास जाती थीं. क्यों और किस मकसद से, यह अभी निशा को नहीं मालूम था. मगर तरक्की करने के लिए उसे खुद ही सबकुछ समझना था और उस के लिए खुद को तैयार भी करना था. वैसे बौस के केबिन में कुछ वक्त बिता कर बाहर आने वाली लड़कियों के अधरों की बिखरी हुई लिपस्टिक को देख निशा की समझ में कुछकुछ तो आने ही लगा था. निशा को उस की औकात और काबिलीयत से अधिक मिलने पर भी मम्मी की आशंका सच भी हो सकती थी, किंतु भौतिक सुखों की बढ़ती चाहत में निशा इस का सामना करने को तैयार थी. आगे बढ़ने की चाह में निशा की सोच भी बदल रही थी. उस को लगता था कि कुछ हासिल करने के लिए थोड़ी कीमत चुकानी पड़े तो इस में क्या बुराई है. शायद यही तो कामयाबी का शौर्टकट था. बौस के केबिन से बुलावा आने के इंतजार में निशा ने खुद को औफिस में काम करने वाली दूसरी लड़कियों के रंग में अपने को ढालने के लिए पहले ब्यूटीपार्लर का रुख किया और इस के बाद वैसे ही कपड़े खरीदे जैसे दूसरी लड़कियां पहन कर औफिस में आती थीं.

प्रेम और रोमांस एक सिक्के के दो पहलू

रोमांस का मतलब केवल प्यारमुहब्बत और दैहिक सुख प्राप्त करना ही नहीं है, बल्कि रोमांस का अर्थ है दो युवा दिलों का एकसाथ धड़कना, एकदूसरे की भावनाओं को सम झना. जिस प्रेम में निष्ठा हो उस में ही रोमांस प्राप्त होता है. विद्वानों का भी मत है कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए निष्ठा व प्रेम बहुत जरूरी है. कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य में तभी कामयाबी पाता है जब उस के मन में कुछ कर पाने की इच्छा और लगन होगी.

रोमांस यानी अपने प्यार को दिलोजान से पाने की कल्पना. कोई ऐसा साथी मिले जो प्यारी सी मीठी कोई बात या फिर छेड़छाड़ करे जो तनमन में स्पंदन जगा कर रोमरोम को पुलकित कर दे. आज भी इस की मीठी व पुरानी तान मन में जोश और उत्साह भर देती है. यों कहें कि रोमांस एक खूबसूरत एहसास भर देता है.

एक मल्टीनैशनल कंपनी में कार्यरत सुजाता का मानना है कि रोमांस के बिना जिंदगी अधूरी होती है. मैं नहीं जानती कि रोमांस की उत्पत्ति कब और कहां हुई, पर मैं इतना जरूर कहूंगी कि रोमांस चाहत के साथसाथ अपने प्यार के प्रति दीवानगी को बढ़ाता है. इसलिए तो रोमांस को एक कल्पना कहा गया है. प्यार की कल्पना करना ही रोमांस से अधिभूत हो जाना होता है.

आकर्षण

महिला सामाजिक संगठन की राष्ट्रीय महासचिव जया की मानें तो रोमांस ऐसा आकर्षण है जो अपने प्रिय को अपनी ओर आकर्षित करता है. जो कम समय में ही, खासकर, अपने प्यार को अपने सम्मोहन में जकड़ लेता है.

अकेलेपन की उदासियों में रोमांस जीवन में रंग भरने का काम करता है. एकदूसरे का सामीप्य रोमांस की संभावनाओं को और बढ़ा देता है या यों कहें कि रोमांस ने बिजी लाइफ स्टाइल को भी मानवीय जीवन का अनिवार्य हिस्सा बना दिया है, क्योंकि रोमांस के बिना सबकुछ अधूराअधूरा सा लगता है.

एक सिक्के के दो पहलू

प्रेम और रोमांस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. एक निजी स्कूल संचालिका गीता का कहना है, ‘‘रोमांस के बिना प्यार संभव ही नहीं है, क्योंकि ये दोनों ही व्यक्ति को प्यार की राह पर आगे बढ़ने को मजबूर कर देते हैं.’’

वे आगे कहती हैं, ‘‘प्यार अगर मंजिल है तो रोमांस उस तक पहुंचाने का रास्ता है. बिना रोमांस के प्यार को परवान तक पहुंचा पाना मुश्किल होता है. रोमांस प्रेम में तभी बदलता है, जब एकदूसरे के प्रति रोमांस के भाव उत्पन्न हों. यहां हम यह कह सकते हैं कि रोमांस दो प्रेमपथिकों को एकदूसरे से जोड़ने का सरल व सुंदर माध्यम है.

उत्साह

रोमांस में उत्साह का होना बहुत जरूरी है. बिना उत्साह के इस का रसपान करना संभव नहीं है. उत्साह ही रोमांस को जोशीला बनाता है. तनमन की गहराइयों का एहसास कराता है. सुरेश और संगीता अपने रोमांस को ले कर काफी उत्साहित थे. इसीलिए आज वे दोनों रोमांस करने के बाद अच्छे साथी बन कर एक सफल गृहस्थ जीवनयापन कर रहे हैं. आज भी दोनों अपनेआप को पहली बार रोमांस करने वाला सम झते हैं. उत्साह ने जोश के साथ जीने की इच्छा बढ़ा दी है.

वास्तविकता

प्रेम और रोमांस में वास्तविकता होनी बहुत जरूरी है. प्रेम में खुशबू है और खुशबू की तरह प्रेम को भी छिपाया नहीं जा सकता है. दो युवा दिल अपने बदन की खुशबू को बखूबी पहचानते हैं, महसूस करते हैं. खुशबूरूपी वास्तविकता प्यार में ताजगी बनाए रखती है, इसलिए प्रेम में वास्तविकता संजीवनी का काम करती है. फिर कहा भी जाता है कि प्रेम में अमीरीगरीबी नहीं देखी जाती.

एहसास

रोमांस एक एहसास है, जिस की गहराई महसूस की जा सकती है. अपने चाहने वाले के लिए जिस प्रकार दिल की धड़कनें रुकने का नाम नहीं लेतीं, ठीक उसी प्रकार प्यार में रोमांस के बिना मजा किरकिरा हो जाता है. किसी अपने चहेते को, जो दिल ही दिल आप को चाहता है, उस से मिलने की इच्छा तीव्र हो जाती है. प्रिय से निगाहें मिलने पर तनमन में स्पंदन सा महसूस होता है और तब प्यार के सागर में डुबकी लगाने को मन करता है. यही तो है रोमांस आप का. मैं तो यही कहूंगा कि रोमांस तभी आनंदित करता है जब उस में एकदूसरे का एहसास हो.

जहां प्रेम में केवल एहसास होता है, रोमांस में कुछ आगे बढ़ कर करना होता है. लव में गिफ्ट्स की नीड नहीं है, रोमांस में है. लव में एकदूसरे का साथ काफी है, रोमांस में हाथ पकड़ना, बांहों में लेना, गोदी में लेटना भी शामिल है. रोमांस में लव का एक्सप्रैशन भी हो.

वैसे, आज जब विवाह पूर्व सैक्स आम है, लव और रोमांस के बीच खिंची अनदिखी लाइन न के बराबर है. रोमांस शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. रोमांस का भाव स्थायी नहीं, संचारी होता है, क्योंकि यह प्रेमियों के तनमन में संचारित होता रहता है. प्रेम और रोमांस की समान महत्ता अपना प्यार पाने में सफल बनाती है.

जानें सिक्स पैक की बैलेंस्ड डाइट

आज के वक्त में लोग अपनी फूड हैबिट्ज को ले कर काफी सचेत हो गए हैं. लो फैट, फैट फ्री, डाइट फूड इसी नए ट्रैंड की देन है. लेकिन अब हम इस से भी एक कदम आगे आ चुके हैं और वह है सिक्स पैक डाइट. बौलीवुड की कुछ चर्चित हस्तियों ने पूरी सोसाइटी को सिक्स पैक ऐब्स की तरफ रुख करने की दिशा दी है. पहले जहां केवल कसा हुआ शरीर और मांसपेशियों को दर्शाती बौडी ही काफी थी, वहीं अब तराशे हुए ऐब्स का चलन बढ़ा है.

इंसानी शरीर में ऐबडोमिनल एरिया की जो मांसपेशियां होती हैं उन्हें ऐब्स कहा जाता है. ऐब्स गिनती में 2 से ले कर 4, 6, 8 तक होते हैं. ऐसा नहीं है कि ऐब्स केवल कुछ ही लोगों के होते हैं. हर इंसानी शरीर में ऐब्स मौजूद होते हैं, लेकिन वसा यानी फैट की परत के चलते वे ढक जाते हैं. लेकिन कसरत और अच्छी डाइट से उन्हें तराश कर उभारा जा सकता है, बशर्ते आप के पास सही ऐक्सरसाइज और बैलेंस डाइट पर परफैक्ट प्लान हो.

इस वक्त डाइट से जुड़े ढेरों प्लान मौजूद हैं. डाक्टर से ले कर इंटरनैट तक से आप अपनी फूड डाइट के बारे में प्लानिंग कर सकते हैं. लेकिन जरूरी है यह जानना कि आखिर आप का लक्ष्य क्या है और आप के लिए सही क्या है. लेकिन असल परेशानी है कि जब आप बिना जाने अपने शरीर के साथ चीजों को ट्राई करना शुरू करते हैं तो आप सही लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाते और हो सकता है कि आप अपने शरीर से ही खिलवाड़ कर बैठें.

सिक्स पैक के लिए डाइट कई मानो में एक आम बैलेंस डाइट से अलग होती है. सब से पहले जानते हैं कि आखिर डाइट का मतलब क्या है? ज्यादातर लोग डाइट या डाइटिंग को भूखे रहने से जोड़ कर देखते हैं. जबकि ऐसा नहीं है, क्योंकि भूखे रह कर आप शायद रिकौर्ड दिनों में कई किलो तक वजन कम कर लें लेकिन यह कोई लंबा रास्ता नहीं है. क्योंकि इस से शरीर में कमजोरी रहती है, साथ ही इच्छाशक्ति में बेहद कमी आती है. इस तरह शारीरिक और मानसिक दोनों ही तरह का बुरा प्रभाव शरीर पर पड़ता है.

सिक्स पैक के लिए बैलेंस डाइट हर आदमी के लिए अलग है. किसी के लिए यह एक फैशन है तो दूसरे के लिए फिट रहने का जरिया. बिना डाइट पर कंट्रोल किए सिक्स पैक पाना बेहद मुश्किल काम है. लेकिन डाइट का मतलब भूखे रहना नहीं है, बल्कि सही खानपान से है. सिक्स पैक बैलेंस डाइट में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट आदि बेहद नपेतुले तरीके से लिए जाते हैं ताकि फायदा सही जगह दिखाई दे.

ज्यादातर लोग आज फैट फ्री चीजों की तरफ जा रहे हैं. वे फैट फ्री चीजें खा कर सम?ाते हैं कि शरीर में वसा की मात्रा नहीं बढ़ेगी. लेकिन यह जान लेना जरूरी है कि अगर आप लगातार फैट फ्री चीजें खाने में ले रहे हैं लेकिन उस से मिलने वाली कैलोरीज को बर्नआउट नहीं कर रहे हैं तो भी आप का शरीर फैट को इकट्ठा करने लगेगा. ऐसे में आप के सिक्स पैक रेजोल्यूशन पर असर पड़ सकता है.

सिक्स पैक ऐब्स पर काम करते वक्त ध्यान रखें कि खाने में बहुत ज्यादा गैप न रहे. दिनभर में 5-6 बार मिनी मील्स लें, यानी थोड़ाथोड़ा खाएं. दिनभर में 2 से 3 चम्मच ही तेल इस्तेमाल में लाएं. अगर कुछ तलाभुना खाने का दिल भी हो तो हफ्ते में एक बार स्नैक्स के तौर पर ले सकते हैं, लेकिन बेहद कम मात्रा में. इस के अलावा अंडे का सफेद हिस्सा भी लिया जा सकता है जो प्रोटीन का अच्छा स्रोत है. रेशेदार यानी फाइबर वाली चीजें, दालें, कच्ची सब्जियां भी सिक्स पैक डाइट का अहम हिस्सा हैं.

काफी लोग यह भी मानते हैं कि सिक्स पैक के लिए वर्कआउट करते वक्त कैलोरीज से दूर रहना चाहिए. जबकि, बौडी में एनर्जी बनाए रखने के लिए ऊर्जा जरूरी है जो कैलोरीज से मिलती है. सिक्स पैक के लिए अगर आप हैवी वर्कआउट करते हैं तो यही एनर्जी आप को मानसिक ताकत देगी. लेकिन कैलोरी का जरिया क्या है, यह ज्यादा जरूरी है क्योंकि जो कैलोरीज जंक फूड से आएंगी वे अभी भी अच्छी ऊर्जा का स्रोत नहीं बन सकतीं.

प्रोटीन डाइट भी यहां बेहद जरूरी है. प्रोटीन में एक तरह का थरमल इफैक्ट होता है जो फैट और कार्बोहाइड्रेट्स को बर्न करने में सहायता करता है. इस के लिए अंडा, सालमन मछली, दालें, कौटेज चीज, बादाम आदि कारगर हैं, जो मैटाबोलिज्म की गति को सही रखता है.

पुरुषों और महिलाओं की जहां तक बात है तो यह उन के बीएमआर यानी बैसल मैटाबोलिक रेट पर निर्भर करता है कि कौन सी चीज किस के लिए सही है. महिलाओं को आयरन के लैवल को मैंटेन रख सकने वाले फूड आइटम्स लेने की सलाह दी जाती है.

डाइट में हरी सब्जियों को प्रयोग में लाएं. हरी सब्जियां जिनोएस्ट्रोजंस के असर को कम करती हैं जो कि एबडोमिनल एरिया में फैट को बढ़ने में मदद करता है. सिक्स पैक डाइट के वक्त पानी की मात्रा को भी बढ़ा देना चाहिए क्योंकि पानी शरीर को स्वाभाविक तरीके से साफ कर उसे कई बीमारियों से बचाता है. दूसरी बात यह भी है कि पानी डिहाइड्रेशन से भी बचाता है और पाचन प्रणाली को सही रखता है.

ज्यादातर लोगों को स्ट्रिक्ट डाइट पर रहना होता है क्योंकि यह वह वक्त होता है जब व्यक्ति को अपने ऊपर काफी कंट्रोल करना पड़ता है. वर्कआउट के वक्त एक स्टेज ऐसी भी आती है जब नमक पर भी काफी कंट्रोल करना पड़ता है. सिक्स पैक पर काम करते वक्त ट्रेनर को भी पूरी मेहनत करनी होती है. उसे ध्यान देना होता है कि क्लाइंट सही डाइट फौलो कर रहा है या नहीं.

असल परेशानी यह होती है कि वर्कआउट के वक्त ही क्लाइंट एक घंटे के लिए ट्रेनर के साथ होता है बाकी 23 घंटे वह क्या खातापीता है, यह उस पर ही निर्भर है. इसलिए सैल्फ मोटिवेशन और सैल्फ कंट्रोल के जरिए ही सिक्स पैक पाए जा सकते हैं. कुछ लोग स्टेरौयड का भी इस्तेमाल करने लगते हैं. इस से रिजल्ट तो जल्दी दिखाई देता है लेकिन इस का असर बहुत ही घातक हो सकता है.

इस के अलावा अल्कोहल यानी शराब आप की सारी मेहनत खराब कर सकता है. अल्कोहल पैक्स को मैल्ट कर उन की शेप शराब कर देता है. हफ्ते में एक बार अल्कोहल लेने पर भी आप की कई दिनों की मेहनत बरबाद हो सकती है.

18 से 35 साल के बीच का कोई भी इंसान सिक्स पैक बना सकता है. लेकिन इस के बाद परेशानी आ सकती है. ऐसा नहीं है कि बढ़ती उम्र में सिक्स पैक नहीं बनाए जा सकते. लेकिन इस के लिए व्यक्ति के पैशन और डिवोशन दोनों काम करते हैं.

अब बात आती है मेंटिनैंस की तो यह जान लेना जरूरी है कि सिक्स पैक को बनाए रखना भी बेहद मुश्किल है. पैक्स बनने के बाद भी आप को अपना डाइट प्लान फौलो करते रहना होता है. इसे लगभग एक से 2 महीने तक लगातार फौलो करना होता है. इस के साथ ही साथ वर्कआउट भी बेहद जरूरी हिस्सा है. एक हफ्ते में लगभग 3 दिन, 30 से 45 मिनट का वर्कआउट भी आप को सिक्स पैक मैंटेन करने में सहायता दे सकता है. अब अगर आप भी चाहते हैं सिक्स पैक लुक तो बैलेंस डाइट को फौलो करें और फिट रहें.

पंजाब: भगवंत सिंह मान- बचाएं अपनी इमेज

इस घटना का पंजाब की राजनीति पर खासा असर नजर आया. सारे विरोधी नेताओं ने इस की आलोचना शुरू कर दी. पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रताप बाजवा ने कहा कि भगवंत सिंह मान की हालत ऐसी थी कि वे जहाज में बैठने लायक नहीं थे, इसलिए उन्हें नीचे उतार दिया गया और उन का सामान भी जहाज से निकाल दिया गया. प्रताप बाजवा ने केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से इस मामले की जांच की मांग की.

कांग्रेस नेता सुखपाल खैरा ने कहा कि अरविंद केजरीवाल को यह बताना चाहिए कि राजनीति में पियक्कड़ों को बढ़ावा देने से उन्हें क्या फर्क पड़ रहा है? क्या यही भारत में बदलाव की उन की राजनीति है? किसी भी सीएम ने राजनीति में नैतिकता की मर्यादा ऐसे कभी नहीं गिराई, जैसे भगवंत मान बारबार कर रहे हैं.

शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि पंजाब के सीएम भगवंत सिंह मान को लुफ्थांसा फ्लाइट से उतारा गया, क्योंकि वे बहुत नशे में थे और इस से उड़ान में 4 घंटे की देरी हुई. इस घटना ने पंजाबियों को शर्मिंदा किया.

चुनावी मुद्दा था नशाखोरी

पंजाब में नशाखोरी एक बड़ी समस्या के रूप में उभरी है. महाराष्ट्र के बाद पंजाब में ड्रग्स का इस्तेमाल सब से ज्यादा मात्रा में होता है. इस की एक वजह पंजाब के लोगों का विदेशों में रहना है. पंजाब में पैसे की कमी नहीं है, जिस के चलते वहां हर किस्म का महंगा नशा मिल जाता है.

पंजाब में पंजाबी फिल्म और म्यूजिक की बड़ी इंडस्ट्री है. पंजाबी सिंगर पूरी दुनिया में छाए हुए हैं. उन के गानों में भी नशे का जम कर प्रचार होता है. पंजाब के नशा कारोबार पर ‘उड़ता पंजाब’ नाम से फिल्म भी बनी थी. पंजाब विधानसभा चुनाव में नशाखोरी हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रही है.

शायद यही वजह थी कि इस बार के विधानसभा चुनाव में पंजाब की जनता ने कांग्रेस, अकाली दल और भाजपा से ज्यादा आम आदमी पार्टी को वोट दिए. आम आप पार्टी ने भगवंत मान को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया.

भगवंत सिंह मान पेशे से कलाकार रहे हैं. अब वे पंजाब में आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल के प्रमुख सहयोगी हैं. ऐसे में उन के मुख्यमंत्री बनने में कोई दिक्कत नहीं थी. लेकिन जिस तरह से भगवंत मान की इमेज खराब हो रही है, वह पंजाब और आम आदमी पार्टी दोनों के हित में नहीं है.

कौन हैं भगवंत सिंह मान

49 साल के भगवंत सिंह मान पंजाब के 17वें मुख्यमंत्री हैं. वे पंजाब के ही संगरूर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से 17वीं लोकसभा के निर्वाचित सदस्य रह चुके हैं. इस के पहले वे 16वीं लोकसभा में भी इसी क्षेत्र से साल 2014 के चुनाव में सांसद चुने गए थे. फिलहाल, वे आम आदमी पार्टी के सदस्य हैं.

भगवंत सिंह मान ने साल 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव धुरी सीट से लड़ा था, जहां उन की 58,206 वोटों से ऐतिहासिक जीत हुई थी.

उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत मनप्रीत सिंह बादल की पार्टी पंजाब पीपल्स पार्टी से की थी, लेकिन बाद में मनप्रीत सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए थे और भगवंत सिंह मान आम आदमी पार्टी में आ गए थे.

भगवंत सिंह मान का जन्म पंजाब के संगरूर जिले के सतौज गांव में हुआ था. उन के पिता एक अध्यापक थे. भगवंत मान ने अपनी प्राइमरी तालीम चीमा गांव के सरकारी स्कूल से हासिल की थी. उन्होंने सुनाम के शहीद ऊधम सिंह महाविद्यालय से वाणिज्य विषय में स्नातक की डिगरी हासिल की थी. उन्होंने साल 2011 में राजनीति में कदम रखा था.

राजनीति में आने से पहले भगवंत सिंह मान के कई मशहूर कौमेडी शो मशहूर रहे थे. उन्होंने पंजाबी फिल्मों में भी काम किया था.

भगवंत सिंह मान ने अपनी पहली पत्नी इंद्रप्रीत कौर से साल 2015 में तलाक लिया था. वे अमेरिका में रहती हैं. उन के 2 बच्चे एक लड़का और एक लड़की हैं. बेटे का नाम दिलशन मान है और बेटी का नाम सीरत कौर है.

भगवंत सिंह मान की दूसरी पत्नी का नाम डाक्टर गुरप्रीत कौर है. दोनों ने 7 जुलाई, 2022 को शादी की थी. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल परिवार समेत इस शादी में शामिल हुए थे.

डाक्टर गुरप्रीत कौर भगवंत सिंह मान से उम्र में 16 साल छोटी हैं. दोनों की मुलाकात तकरीबन 4 साल पहले हुई थी. भगवंत मान पंजाब के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए शादी की है.

इमेज की राजनीति

आज के सोशल मीडिया के दौर में राजनीति में इमेज की अहमियत बहुत ज्यादा है. पंजाब में तेजी से अपने पैर फैलाने के लिए बेचैन नजर आ रही भारतीय जनता पार्टी दूसरे दलों के नेताओं की इमेज खराब करने में माहिर है.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को ‘पप्पू’, समाजवादी पाटी के नेता अखिलेश यादव को ‘टोंटी चोर’ और अरविंद केजरीवाल को ‘मफलर वाला’ कह कर खूब प्रचारित किया जाता है. दिल्ली सरकार में भ्रष्टाचार को ले कर भाजपा ने आम आदमी पार्टी के नेताओं पर तेज हमला बोला है, जिस से उन की साफसुथरी इमेज को नुकसान पहुंचाया जा सके.

भगवंत सिंह मान पर नशेड़ी होने का आरोप लगा कर उन की और पार्टी की इमेज को खराब किया जा सकता है. कांग्रेसी और पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके कैप्टन अमरिंदर सिंह ने अब खुद को भाजपाई बना लिया है.

इस से यह तो साफ है कि भाजपा अब पंजाब में उन्हें आगे कर के राजनीति करेगी. साथ ही, भगवंत सिंह मान की इमेज को नुकसान पहुंचा कर भाजपा वहां चुनावी लड़ाई जीतने की कोशिश करेगी. ऐसे में भगवंत सिंह मान को अपनी इमेज बचा कर रखनी होगी, जिस से विरोधियों को फायदा न मिल सके.

बेरोजगारी: चायपकौड़े ही बेचने हैं तो डिगरी की क्या जरूरत

प्रियंका गुप्ता चाय वाली. अब आप पूछेंगे कि इस में क्या खास बात है? खास बात यह है कि बिहार की राजधानी पटना में महिला कालेज के सामने पूर्णिया जिले की रहने वाली प्रियंका गुप्ता टपरी पर चाय तो बेचती है, पर अगर उस की पढ़ाईलिखाई की बात करें तो वह बीएचयू, बनारस से इकोनौमिक्स से ग्रेजुएशन कर चुकी है.

प्रियंका गुप्ता 2 साल तक पटना में रह कर प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रही थी. जब उसे लगा कि वह किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा में बैठ नहीं पाएगी, क्योंकि सालों से किसी भी प्रतियोगिता में बैठने का मौका ही नहीं मिल पा रहा है और बिहार समेत पूरे देश में नौकरी की रिक्तियां ही नहीं निकल रही हैं, तब उसे अनुभव हुआ कि समय खराब करने से कोई फायदा नहीं. तो वह बिना समय गंवाए अपनेआप को चाय बेचने के लिए तैयार कर पाई.

पर प्रियंका गुप्ता को बैंक में चक्कर लगाने के बाद भी 30,000 रुपए तक का लोन नहीं मिल पाया. लिहाजा, वह अपने एक दोस्त से उधार ले कर महिला कालेज के सामने चाय की दुकान लगाने लगी.

जब से एक पढ़ीलिखी लड़की ने चाय की दुकान की शुरुआत की, तब से मीडिया वाले खासकर सोशल मीडिया पर अपना चैनल चलाने वालों का उस के मुंह में माइक घुसेड़ कर इंटरव्यू लेने वालों का तांता लगने लगा. सारे मीडिया वाले बड़े गर्व से चिल्लाचिल्ला कर बताने लगे कि देखो, एक पढ़ीलिखी लड़की ने चाय की टपरी लगाई है.

अरे भाई, प्रियंका गुप्ता को एक अदना सी नौकरी नहीं मिल पाई, तो वह चाय बेचने को मजबूर हो गई. किसी भी लड़केलड़की को ग्रेजुएशन तक पढ़ने में तकरीबन 15 साल बीत जाते हैं. अगर उस के बाद भी नौकरी नहीं मिली, तो उन की 15 साल की तपस्या बेकार चली जाती है. यह सब मीडिया वाले क्यों नहीं बताते हैं?

यह क्यों नहीं बताया जा रहा है कि यह प्रियंका गुप्ता की नाकामी नहीं, बल्कि मोदी सरकार की नाकामी है, जो अब ऊंची डिगरी वालों से भी चायपकौड़े बिकवा रही है? देशभर में सरकारी नौकरियों को खत्म किया जा रहा है. इस बात को मीडिया जगत में जगह नहीं दी जा रही है.

जब देश के पढ़ेलिखे बेरोजगार नौजवानों को रोजगार नहीं दिया जाता है, तो चायपकौड़े बेचने का नैरेटिव सैट किया जाता है, ताकि नौजवान नौकरी से डाइवर्ट हो कर फालतू के रोजीरोजगार कर सड़कों पर खाक छानें और जब चुनाव का समय आए तो उन से रामलला के नारे लगवाए जाएं, मंदिरमसजिद के नाम पर अंधभक्ति कराई जाए.

सब से बड़ा सवाल यह है कि जब चाय की दुकान ही लगानी है, तो इतनी बड़ी डिगरी की क्या जरूरत है? दरअसल, देश में रोजगार की कमी हो गई है. दिनोंदिन बेरोजगारों की फौज बढ़ती जा रही है. पढ़ेलिखे लोग नौकरी के लिए मारेमारे फिर रहे हैं. उन में निराशा बढ़ती जा रही है.

इस सब के बावजूद मीडिया इस बारे में ज्यादा गंभीरता से बात नहीं कर रहा है. वह जानता है, अगर विरोध करेगा भी, तो अंधभक्तों द्वारा देशद्रोही होने का सर्टिफिकेट दिया जा सकता है.

कुछ समय पहले ही देशभर के नौजवानों द्वारा रेलवे की परीक्षा की गलत नीतियों का विरोध किया गया था. पटना और लखनऊ से ले कर दिल्ली तक इस का असर पड़ा था. जानबूझ कर कोचिंग संस्थानों को भी आंदोलन भड़काने का आरोप लगाया गया था.

आखिर लाखों रुपए कोचिंग संस्थानों से कमाने वाले शिक्षकों की रौनक लड़केलड़कियों से ही हो पाती है. लेकिन नौकरी नहीं निकलने के चलते उन के बिजनैस पर बुरा असर पड़ रहा है. लड़केलड़कियां भी कोचिंग सैंटरों में दाखिला लेने से पहले सौ बार सोचते हैं.

आज के गरीब तबके के लड़केलड़कियां किसी भी काम को करने से पहले अपने मांबाप की माली हैसियत का भी जरूर खयाल रखते हैं. ज्यादातर लड़केलड़कियां बेकार में पैसा बरबाद नहीं करना चाहते हैं. वे कोचिंग भी तभी करना पसंद करते हैं, जब नौकरी के इश्तिहार आने शुरू होते हैं. तभी वे पढ़ने की रणनीति भी बना पाते हैं.

क्या प्रियंका गुप्ता दुनिया की पहली महिला हैं, जो चाय की टपरी चला रही है? फिर जो पहले से औरतें और लड़कियां चाय बेचने पर मजबूर हैं, उन्हें पब्लिसिटी क्यों नहीं मिल रही है? जो औरतें और लड़कियां चाय बेचने पर मजबूर हुई हैं, उन की खोजखबर क्यों नहीं की जा रही है? वे आखिर किन हालात में ऐसा करने को मजबूर हुई हैं या हो रही हैं?

दरअसल, आज वर्तमान सरकार द्वारा नौकरी के लिए रिक्तियां निकालनी कम कर दी गई हैं और सरकारी संस्थाओं को निजीकरण की ओर धकेला जा रहा है. जबकि एक समय ऐसा था, जब निजी संस्थानों का सरकारीकरण किया जाता था, ताकि सरकार ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा कर सके. तब लोगों को लगता था कि पढ़लिख लेने के बाद कहीं न कहीं नौकरी मिल ही जाएगी.

वे लोग भले ही प्रतियोगिता परीक्षा में कामयाबी हासिल नहीं कर पाते थे, लेकिन फिर भी वे खुद को चायपकौड़े बेचने के लिए अपनेआप को तैयार नहीं कर पाते थे. बेरोजगार रहने पर कोई अच्छा सा कारोबार करने के बारे में सोचते थे.

लेकिन आज नौकरी की रिक्तियां नहीं निकलने के चलते ज्यादातर बेरोजगार प्रियंका गुप्ता की तरह ही निराश और हताश हैं. कुछ लोग निराशा में छोटेमोटे कामधंधे करने के लिए राजी हो रहे हैं, पर शौक से ऐसा करने वालों की तादाद न के बराबर है.

इस के बावजूद मीडिया का एक धड़ा यह बताने पर आमादा है कि पढ़ेलिखे लोग चायपकौड़े बेचने के लिए बड़े शौक से राजी हैं. दरअसल, जब से मीडिया के एक धड़े ने मोदी मौडल पर काम करना शुरू कर दिया है, तब से कुछ लोगों द्वारा यह सलाह दी जा रही है कि पढ़ेलिखे भी चायपकौड़े बेच सकते हैं.

अब पढ़ेलिखे लोग चायपकौड़े बेचने लगेंगे, तो कम पढ़ेलिखे लोग कौन सा धंधा करेंगे? क्या उन के हकों को नहीं मारा जा रहा है? लिहाजा, पत्रकारों और मीडिया वालों द्वारा बेरोजगारों की समस्याओं को प्रमुखता देने की जरूरत है.

समाज के बुद्धिजीवी वर्ग, सामाजिक चिंतन करने वालों को भी इस समस्या के प्रति सोचने की सख्त जरूरत है, वरना आने वाले समय में इन नौजवानों की बेरोजगारी की समस्या से देश में बड़ा संकट पैदा हो सकता है.

धीरज कुमार

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