उर्फी जावेद की ट्रांसपेरन्ट ड्रेस पर बोले लोग- ‘ये तो मच्छरदानी है’

बिग बॉस फेम उर्फी जावेद ने एक बार नए तरफ की ड्रेस पहनकर लोगों को चौंका दिया है. उर्फी की नई ड्रेस वाली फोटो देखकर लोग कमेन्ट कर रहे है. उर्फी जावेद के ड्रेसिंग सेंस का कोई जवाब नहीं है. वह कब क्या पहनकर कहां आ जाए कोई अंदाजा नहीं लगा सकता है. उर्फी जावेद ने इस बार भी अपनी नई ड्रेस से लोगों को चौंका दिया है. दरअसल, वह ऐसी ड्रेस पहनकर आई जिसे लोगों ने शायद पहले कभी देखा ना हो. इस ड्रेसिंग सेंस इंटरनेट में बहुत तेजी से वायरल हो रही है. लोगों ने जमकर कमेन्ट किया और इसमे पाज़िटिव और नेगेटिव दोनों ही कमेन्ट आ रहे है.

 

 

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बदन पर उर्फी जावेद ने लपेटा जालीदार कपड़ा:

सोशल मीडिया सेंसेशन उर्फी जावेद अपने बोल्ड लुक और अपने अंतरंगी आउटफिट को लेकर हमेशा ही चर्चोओं में बनी रहती है. हर बार वो अपने एक अलग अंदाज से फैंस को दीवाना बना देती हैं, तो वही कई बार कपड़ो के चलते एक्ट्रेस ट्रोल भी होती रहती हैं. अब इसी बीच ऊर्फी कई के नया वीडियो खुब वायरल हो रहा है, जिसमें उर्फी ने हरे रंग का जालीदार कपड़ा अपने बदन पर लेपटा हुआ है . लोग उनकी इस ड्रेस को देख नागराज से तुलना कर रहे हैं. उर्फी जिस कातिलाना लुक में कैमरे के सामने पोज दे रही है हर किसी की निगाहे उन्हीं पर टिक गई है. आप भी देखिए उर्फी जावेद का बोल्ड लुक.

 

 

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मेरे कपड़ों से मुकाबला नहीं कर सकते:

सनी लियोनी ने उर्फी जावेद के कपड़े देख उनकी तारीफ की. उन्होंने कहा, ‘उर्फी आपका आउट्फिट कमाल का है और बीच पर पहनने के लिए एकदम परफेक्ट है. मुझे आपकी आउट्फिट चॉइस काफी पसंद है और ये बेमिसाल लग रहा है.’ सनी की इस बात के जवाब में उर्फी ने कहा, ‘मुझे अपने दूसरों से अलग ड्रेसिंग सेंस के लिए जाना जाता है. आप मुझसे मुकाबला कर सकते हैं, लेकिन मेरे आउट्फिट से नहीं, क्योंकि ये हमेशा दूसरों की सोच से आगे के होते हैं.

YRKKH: आरोही नहीं अक्षरा होगी प्रेग्नेंट लेकिन अभिमन्यु होगा इसके खिलाफ

ये रिश्ता क्या कहलाता है के निर्माता, फैंस और दर्शकों को हर्षद चोपड़ा, प्रणाली राठौड़ और करिश्मा सावंत स्टारर टीवी शो से जोड़े रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. पिछले कुछ हफ्तों में शो में कई नाटकीय मोड़ आए. आरोही ने नील से की शादी. वह नील, अभीरा और परिवार के अन्य सदस्यों के बीच गलतफहमियां पैदा करने लगी. हमने अक्षरा की मेडिकल कन्डिशन के बारे में भी जाना, जिसमें उसे गर्भावस्था संबंधी दिक्कत हैं. इसी वजह से आरोही ने अभिमन्यु को ब्लैकमेल किया.

 

शो में नया ट्विस्ट:

ये रिश्ता क्या कहलाता है के लैटस्ट एपिसोड के अनुसार, करिश्मा सावंत उर्फ ​​आरोही का हृदय परिवर्तन हुआ है. उसने अक्षरा की प्रेग्नन्सी में दिक्कत के बारे में जान लिया था और बिरला हाउस और अस्पताल में उसके और नील के लाभ के लिए अभिमन्यु को ब्लैकमेल करने के लिए इसका इस्तेमाल किया. अक्षरा को उसी पर शक हुआ और उसने आरोही को चेतावनी दी जिसके बाद आरोही ने अक्षरा को अपनी प्रेग्नन्सी में दिक्कत के बारे में बताया। जबकि अक्षरा का दिल टूट गया है, आरोही अभिमन्यु और अक्षरा के जीवन में अब और दखल नहीं देने का वादा करती है.

 

 

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आरोही और अक्षरा के लिए शॉकर:

ये रिश्ता क्या कहलाता है के लैटस्ट एपिसोड में, हम देखेंगे की आरोही अपने प्रेग्नन्सी का नाटक कर रही है, वह प्रेग्नन्ट नहीं है. और यह कि यह एक झूठा अलार्म था. आरोही अपने दोस्त को फिर से फोन करती है और रिपोर्ट के बारे में पूछती है कि वह गर्भवती नहीं है. उसे तब झटका लगता है जब उसकी सहेली इसकी पुष्टि करती है और कहती है कि यह एक झूठा अलार्म था. यह रिश्ता क्या कहलाता है की अगले भाग में, अक्षरा बेहोश हो जाएगी और अस्पताल पहुंचेगी जहां उसे पता चलता है कि वह प्रेग्नन्ट है.

अभिमन्यु अक्षरा के प्रेग्नन्ट होने के खिलाफ है:

ये रिश्ता क्या कहलाता है के अपकमिंग एपिसोड में हम हर्षवर्धन बिरला परिवार को खुशखबरी देते हुए देखेंगे कि हालिया मेडिकल रिसर्च में पाया गया है कि अक्षरा की प्रेग्नेंसी में होने वाली काम्प्लकैशन को 90% से 10% तक कम किया जा सकता है। हर्ष मेडिकल रिसर्च पेपर ​​अभिमन्यु को सौंप देता है जो उन्हें फाड़ देता है.  अभिमन्यु का कहना है कि अक्षरा की बात आने पर वह 0.0000% मौका भी नहीं लेंगे.

सौतेली मां: क्या था अविनाश की गलती का अंजाम

अनोखा बदला : निर्मला ने कैसे लिया बहन और प्रेमी से बदला

निर्मला से सट कर बैठा संतोष अपनी उंगली से उस की नंगी बांह पर रेखाएं खींचने लगा, तो वह कसमसा उठी. जिंदगी में पहली बार उस ने किसी मर्द की इतनी प्यार भरी छुअन महसूस की थी.

निर्मला की इच्छा हुई कि संतोष उसे अपनी बांहों में भर कर इतनी जोर से भींचे कि…

निर्मला के मन की बात समझ कर संतोष की आंखों में चमक आ गई. उस के हाथ निर्मला की नंगी बांहों पर फिसलते हुए गले तक पहुंच गए, फिर ब्लाउज से झांकती गोलाइयों तक.

तभी बाहर से आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘दीदी, चाय बन गई है…’’

संतोष हड़बड़ा कर निर्मला से अलग हो गया, जिस का चेहरा एकदम तमतमा उठा था, लेकिन मजबूरी में वह होंठ काट कर रह गई.

नीचे वाले कमरे में छोटी बहन उषा ने नाश्ता लगा रखा था. चायनाश्ता करने के बाद संतोष ने उठते हुए कहा, ‘‘अब चलूं… इजाजत है? कल आऊंगा, तब खाना खाऊंगा… कोई बढि़या सी चीज बनाना. आज बहुत जरूरी काम है, इसलिए जाना पड़ेगा…’’

‘‘अच्छा, 5 मिनट तो रुको…’’ उषा ने बरतन समेटते हुए कहा, ‘‘मुझे अपनी एक सहेली से नोट्स लेने हैं. रास्ते में छोड़ देना. मैं बस 5 मिनट में तैयार हो कर आती हूं.’’

उषा थोड़ी देर में कपड़े बदल कर आ गई. संतोष उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा कर चला गया.

उधर निर्मला कमरे में बिस्तर पर गिर पड़ी और प्यास अधूरी रह जाने से तड़पने लगी.

निर्मला की आंखों के आगे एक बार फिर संतोष का चेहरा तैर उठा. उस ने झपट कर दरवाजा बंद कर दिया और बिस्तर पर गिर कर मछली की तरह छटपटाने लगी.

निर्मला को पहली बार अपनी बहन उषा और मां पर गुस्सा आया. मां चायनाश्ता बनाने में थोड़ी देर और लगा देतीं, तो उन का क्या बिगड़ जाता. उषा कुछ देर उसे और न बुलाती, तो निर्मला को वह सबकुछ जरूर मिल जाता, जिस के लिए वह कब से तरस रही थी.

जब पिता की मौत हुई थी, तब निर्मला 22 साल की थी. उस से बड़ी कोई और औलाद न होने के चलते बीमार मां और छोटी बहन उषा को पालने की जिम्मेदारी बिना कहे ही उस के कंधे पर आ पड़ी थी.

निर्मला को एक प्राइवेट फर्म में अच्छी सी नौकरी भी मिल गई थी. उस समय उषा 10वीं जमात के इम्तिहान दे चुकी थी, लेकिन उस ने धीरेधीरे आगे पढ़ कर बीए में दाखिला लेते समय निर्मला से कहा था, ‘‘दीदी, मां की दवा में बड़ा पैसा खर्च हो रहा है. तुम अकेले कितना बोझ उठाओगी…

‘‘मैं सोच रही हूं कि 2-4 ट्यूशन कर लूं, तो 2-3 हजार रुपए बड़े आराम से निकल जाएंगे, जिस से मेरी पढ़ाई के खर्च में मदद हो जाएगी.’’

‘‘तुझे पढ़ाई के खर्च की चिंता क्यों हो रही है? मैं कमा रही हूं न… बस, तू पढ़ती जा,’’ निर्मला बोली थी.

अब निर्मला 30 साल की होने वाली है. 1-2 साल में उषा भी पढ़लिख कर ससुराल चली जाएगी, तो अकेलापन पहाड़ बन जाएगा.

लेकिन एक दिन अचानक मौका हाथ आ लगा था, तो निर्मला की सोई इच्छाएं अंगड़ाई ले कर जाग उठी थीं.

उस दिन दफ्तर में काम निबटाने के बाद सब चले गए थे. निर्मला देर तक बैठी कागजों को चैक करती रही थी. संतोष उस की मदद कर रहा था. आखिरकार रात के 10 बजे फाइल समेट कर वह उठी, तो संतोष ने हंस कर कहा था, ‘‘इस समय तो आटोरिकशा या टैक्सी भी नहीं मिलेगी, इसलिए मैं आप को मोटरसाइकिल से घर तक छोड़ देता हूं.’’

निर्मला ने कहा था, ‘‘ओह… एडवांस में शुक्रिया?’’

निर्मला को उस के घर के सामने उतार कर संतोष फिर मोटरसाइकिल स्टार्ट करने लगा, तो उस ने हाथ बढ़ा कर हैंडल थाम लिया और कहने लगी, ‘‘ऐसे कैसे जाएंगे… घर तक आए हैं, तो कम से कम एक कप चाय…’’

‘‘हां, चाय चलेगी, वरना घर जा कर भूखे पेट ही सोना पड़ेगा. रात भी काफी हो गई है. मैं जिस होटल में खाना खाता हूं, अब तो वह भी बंद हो चुका होगा.’’

‘‘आप होटल में खाते हैं?’’

‘‘और कहां खाऊंगा?’’

‘‘क्यों? आप के घर वाले?’’

‘‘मेरा कोई नहीं है. मैं मांबाप की एकलौती औलाद था. वे दोनों भी बहुत कम उम्र में ही मेरा साथ छोड़ गए, तब से मैं अकेला जिंदगी काट रहा हूं.’’

संतोष ने बहुत मना किया, लेकिन निर्मला नहीं मानी थी. उस ने जबरदस्ती संतोष को घर पर ही खाना खिलाया था.

अगले दिन शाम के 5 बजे निर्मला को देख कर मोटरसाइकिल का इंजन स्टार्ट करते हुए संतोष ने कहा था, ‘‘आइए… बैठिए.’’

निर्मला ने बिना कुछ बोले ही पीछे की सीट पर बैठ कर उस के कंधे पर हाथ रख दिया था. घर पहुंच कर उस ने फिर चाय पीने की गुजारिश की, तो संतोष ने 1-2 बार मना किया, लेकिन निर्मला उसे घर के अंदर खींच कर ले गई थी.

इस के बाद रोज का यही सिलसिला हो गया. संतोष को निर्मला के घर आने या रुकने के लिए कहने की जरूरत नहीं पड़ती थी, खासतौर से छुट्टी वाले दिन तो वह निर्मला के घर पड़ा रहता था. सब ने उसे भी जैसे परिवार का एक सदस्य मान लिया था.

एक दिन अचानक निर्मला का सपना टूट गया. उस दिन उषा अपनी सहेली के यहां गई थी. दूसरे दिन उस का इम्तिहान था, इसलिए वह घर पर बोल गई थी कि रातभर सहेली के साथ ही पढ़ेगी, फिर सवेरे उधर से ही इम्तिहान देने यूनिवर्सिटी चली जाएगी.

उस दिन भी संतोष निर्मला के साथ ही उस के घर आया था और खाना खा कर रात के तकरीबन 10 बजे वापस चला गया था.

उस के जाने के बाद निर्मला बाहर वाला दरवाजा बंद कर के अपने कमरे में लौट रही थी, तभी मां ने टोक दिया, ‘‘बेटी, तुझ से कुछ जरूरी बात करनी है.’’

निर्मला का मन धड़क उठा. मां के पास बैठ कर आंखें चुराते हुए उस ने पूछा, ‘‘क्या बात है मां?’’

‘‘बेटी, संतोष कैसा लड़का है. वह तेरे ही दफ्तर में काम करता है… तू तो उसे अच्छी तरह जानती होगी.’’

निर्मला एकाएक कोई जवाब नहीं दे सकी.

मां ने कांपते हाथों से निर्मला का सिर सहलाते हुए कहा, ‘‘मैं तेरे मन का दुख समझती हूं बेटी, लेकिन इज्जत से बढ़ कर कुछ नहीं होता, अब पानी सिर से ऊपर जा रहा है, इसलिए…’’

निर्मला एकदम तिलमिला उठी. वह घबरा कर बोली, ‘‘ऐसा क्यों कहती हो मां? क्या तुम ने कभी कुछ देखा है?’’

‘‘हां बेटी, देखा है, तभी तो कह रही हूं. कल जब तू बाजार गई थी, तब दो घड़ी के लिए संतोष आया था. वह उषा के साथ कमरे में था.

‘‘मैं भी उन के साथ बातचीत करने के लिए वहां पहुंची, लेकिन दरवाजे पर पहुंचते ही मैं ने उन दोनों को जिस हालत में देखा…’’

निर्मला चिल्ला पड़ी, ‘‘मां…’’ और वह उठ कर अपने कमरे की ओर भाग गई.

निर्मला के कानों में मां की बातें गूंज रही थीं. उसे विश्वास नहीं हुआ. मां को जरूर धोखा हो गया है. ऐसा कभी नहीं हो सकता. लेकिन यही हो रहा था.

अगले दिन निर्मला दफ्तर गई जरूर, लेकिन उस का किसी काम में मन नहीं लगा. थोड़ी देर बाद ही वह सीट से उठी. उसे जाते देख संतोष ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

निर्मला ने भर्राई आवाज में कहा, ‘‘मेरी एक खास सहेली बीमार है. मैं उसे ही देखने जा रही हूं.’’

‘‘कितनी देर में लौटोगी?’’

‘‘मैं उधर से ही घर चली जाऊंगी.’’

बहाना बना कर निर्मला जल्दी से बाहर निकल आई. आटोरिकशा कर के वह सीधे घर पहुंची. मां दवा खा कर सो रही थीं. उषा शायद अपने कमरे में पढ़ाई कर रही थी. बाहर का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. इस लापरवाही पर उसे गुस्सा तो आया, लेकिन बिना कुछ बोले चुपचाप दरवाजा बंद कर के वह ऊपर अपने कमरे में चली गई.

इस के आधे घंटे बाद ही बाहर मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज सुनाई पड़ी. निर्मला को समझते देर नहीं लगी कि जरूर संतोष आया होगा.

निर्मला कब तक अपने को रोकती. आखिर नहीं रहा गया, तो वह दबे पैर सीढि़यां उतर कर नीचे पहुंची. मां सो रही थीं.

वह बिना आहट किए उषा के कमरे के सामने जा कर खड़ी हो गई और दरवाजे की एक दरार से आंख सटा कर झांकने लगी. भीतर संतोष और उषा दोनों एकदूसरे में डूबे हुए थे.

उषा ने इठलाते हुए कहा, ‘‘छोड़ो मुझे… कभी तो इतना प्यार दिखाते हो और कभी ऐसे बन जाते हो, जैसे मुझे पहचानते नहीं.’’

संतोष ने उषा को प्यार जताते हुए कहा, ‘‘वह तो तुम्हारी दीदी के सामने मुझे दिखावा करना पड़ता है.’’

उषा ने हंस कर कहा, ‘‘बेचारी दीदी, कितनी सीधी हैं… सोचती होंगी कि तुम उन के पीछे दीवाने हो.’’

संतोष उषा को प्यार करता हुआ बोला, ‘‘दीवाना तो हूं, लेकिन उन का नहीं तुम्हारा…’’

कुछ पल के बाद वे दोनों वासना के सागर में डूबनेउतराने लगे. निर्मला होंठों पर दांत गड़ाए अंदर का नजारा देखती रही… फिर एकाएक उस की आंखों में बदले की भावना कौंध उठी. उस ने दरवाजा थपथपाते हुए पूछा, ‘‘संतोष आए हैं क्या? चाय बनाने जा रही हूं…’’

संतोष उठने को हुआ, तो उषा ने उसे भींच लिया, ‘‘रुको संतोष… तुम्हें मेरी कसम…’’

‘‘पागल हो गई हो. दरवाजे पर तुम्हारी दीदी खड़ी हैं…’’ और संतोष जबरदस्ती उठ कर कपड़े पहनने लगा.

उस समय उषा की आंखों में प्यार का एहसास देख कर एक पल के लिए निर्मला को अपना सारा दुख याद आया.

मां के कमरे के सामने नींद की गोलियां रखी थीं. उन्हें समेट कर निर्मला रसोईघर में चली गई. चाय छानने के बाद वह एक कप में ढेर सारी नींद की गोलियां डाल कर चम्मच से हिलाती रही, फिर ट्रे में उठाए हुए बाहर निकल आई.

संतोष ने चाय पी कर उठते हुए आंखें चुरा कर कहा, ‘‘मुझे बहुत तेज नींद आ रही है. अब चलता हूं, फिर मुलाकात होगी.’’

इतना कह कर संतोष बाहर निकला और मोटरसाइकिल स्टार्ट कर के घर के लिए चला गया.

दूसरे दिन अखबारों में एक खबर छपी थी, ‘कल मोटरसाइकिल पेड़ से टकरा जाने से एक नौजवान की दर्दनाक मौत हो गई. उस की जेब में मिले पहचानपत्रों से पता चला कि संतोष नाम का वह नौजवान एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था’.

जब मां की अय्याशी का फल एक बेटी ने भुगता

सीमा के पिता रेलवे में नौकरी करते थे, सो वे ज्यादातर दौरे पर रहते थे. सीमा की मां सारा दिन कालोनी में यहांवहां घूमती रहती थीं. सीमा घर पर होती तो उस की मां का रिश्तेदार चंदू आ जाता. चंदू तबीयत से दिलफेंक मिजाज का था और इस की वजह से उस की बीवी उसे छोड़ चुकी थी. वह प्राय: इधरउधर लड़कियों के पीछे घूमता रहता. सीमा की मां के लिए शहर से उपहार लाता तो वे खुश हो जातीं. एक दिन वह सीमा को शहर घुमाने के बहाने ले गया और उसे बहलाफुसला कर उस से संबंध बना लिए. सीमा को जब तक कुछ समझ में आता, उसे अनचाहा गर्भ ठहर चुका था.

अब चूंकि चंदू तो मतलब साध कर निकल गया, लेकिन जैसेजैसे सीमा पर दिन चढ़े तो उन की पड़ोसिन को संदेह हुआ. गांव में रहने के कारण मामला गंभीर था. अगर किसी को भनक लग गई तो पूरे गांव में बदनामी हो जाएगी.

अब सीमा की मां को कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करें? क्योंकि 3-4 माह का गर्भ हो चुका था. यदि वे पति को बतातीं तो पति तो उन्हें ही बदचलन कह कर छोड़ देता. सीमा की मां अपनी पड़ोसिन के साथ पास के गांव की दाई रजिया के पास गई. रजिया ने यह काम आसानी से करने का भरोसा दिलाया और बतौर मेहताना मोटी रकम मांगी. वक्त तय हुआ रात 12 बजे का. सीमा के पिता नाइट ड्यूटी पर चले गए तब रजिया व पड़ोसिन सीमा के घर आए. उस ने सीमा को लिटाया. बिना किसी दवा व इंजैक्शन के रजिया ने सीमा की योनि से उस के गर्भ में एक कमची जैसी पतली लकड़ी डाली, जैसे हरे बांस की छड़ी होती है. उस पतली लकड़ी के भीतर डाले जाने से सीमा चीखने लगी. वह असहाय दर्द से बिलबिला उठी तो रजिया ने कहा कि उस का हाथ पकड़ कर रखो साथ ही मुंह भी दबा दो.

रजिया ने लकड़ी को गर्भाशय में आघात से चलाना शुरू किया व उस की मां व पड़ोसिन ने सीमा के हाथ कस कर पकड़े रखे और मुंह भी कपड़े से बांध दिया ताकि वह चीख न सके.

लकड़ी के तेज आघात से सीमा का गर्भाशय क्षतविक्षत हो गया और जब ब्लीडिंग होने लगी तो सीमा की मां घबरा गई. रजिया बोली, ‘‘गर्भ गिर गया है. सुबह तक होश आ जाएगा.’’ वह पैसे ले कर चली गई. लेकिन न तो ब्लीडिंग रुकी और न ही सीमा होश में आई. वह असहनीय पीड़ा से तड़पतड़प कर प्राण गवां चुकी थी.

सीमा की मां को सुबह पता चला कि सीमा का प्राणांत हो चुका है. कमरा सीमा के खून से भर चुका था. पुलिस ने जांच की तो रजिया की करतूत पता चली. सीमा की मां की रंगीनमिजाजी उस की बेटी को लील गई. इतना ही नहीं, चंदू की ऐयाशी अभी भी जारी रही क्योंकि वह पकड़ से दूर जा चुका था.

चुकंदर खाने से कम होता है हाई ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्राल, जानें 5 फायदे

चुकंदर का टेस्ट भले ही आपको पसंद न हो पर इससे होने वाले फायदे आपको जरूर हैरान कर देंगे. जी हां, चुकंदर का टेस्ट हर किसी को पसंद नहीं आता है. लेकिय ये आपके सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है. तो आइए जानते हैं, चुकंदर खाने के क्या लाभ है.

  1. कैंसर से बचा सकता है चुकंदर

चुकंदर के जूस में बेटालेन होता है जो एक घुलनशील एंटीआक्सीडेंट हैं. एक शोध के अनुसार, बेटालेन में कीमो-निवारक प्रभाव होते हैं जो कैंसर की घातक कोशिकाओं को फैलने से रोकते हैं. बेटालेन फ्री रेडिकल्स पर भी काम करता है.

2. वजन कम करता है

चुकंदर के जूस में कैलोरी बहुत कम होती है और फैट बिल्कुल भी नहीं होता है. ये वजन को बढ़ने नहीं देता है. सुबह की शुरूआत चुकंदर के जूस से करने से आप पूरे दिन एक्टिव रहते हैं.

3. ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करता है

चुकंदर का जूस हाई ब्लड प्रेशर को कम करने में मदद करता है. शोधकर्ताओं ने पाया है कि जो लोग रोजाना 250 मिलीलीटर चुकंदर का जूस पीते हैं, उनका सिस्टोलिक और डायस्टोलिक ब्लड प्रेशर दोनों कम होता है. चुकंदर के रस मे नाइट्रेट होता है जो रक्त वाहिकाओं को फैलाता है जिससे खून का दबाव कम पड़ता है.

4. कोलेस्ट्राल को कम करता है

अगर आपका कोलेस्ट्राल ज्यादा रहता है तो अपनी डाइट में चुकंदर का जूस जरूर शामिल करें. चुकंदर के जूस में फ्लेवोनोइड्स और फाइटोन्यूट्रिएंट्स होते हैं जो बैड कोलेस्ट्राल को कम करते हैं और गुड कोलेस्ट्राल को बढ़ाते हैं.

5. लिवर को ठीक रखता है

लिवर को ठीक रखता है- खराब लाइफस्टाइल, शराब के अत्यधिक सेवन से और ज्यादा जंक फूड खाने से लिवर खराब हो डाता है. चुकंदर में बीटेन एंटीआक्सीडेंट होता है जो लिवर में फैट जमा होने से रोकता है. ये लिवर को विषाक्त पदार्थों से भी बचाता है.

सहारे की तलाश: क्या प्रकाश को जिम्मेदार बना पाई वैभवी? – भाग 2

‘‘उफ,’’ वैभवी का सिर भन्ना गया. प्रकाश के तर्क इतने अजीबोगरीब होते हैं कि जवाब में कुछ भी कहना मुश्किल है. संवेदनहीनता की पराकाष्ठा तक चला जाता है. दिल घायल हो गया. पिताजी के 2 अपंग सहारे प्रकाश और भैया जिन पर पिताजी ने अपना सबकुछ लुटा दिया, जिन्हें पिताजी ने अपना आधार स्तंभ समझा, आज कैसा बदल गए हैं. इस के बाद उस ने प्रकाश से कोई बात नहीं की. चुपचाप अपना रिजर्वेशन करवाया और जाने की तैयारी करने लगी. प्रकाश के तने हुए चेहरे की परवा किए बिना वह चंडीगढ़ चली गई. उस की बेटी इंजीनियर थी और जौब कर रही थी. 2 दिन बाद वह कुछ दिनों की छुट्टी में घर आ रही थी. वैभवी ने उसे वस्तुस्थिति से अवगत करवाया और चंडीगढ़ चली गई. मां ने वैभवी को देखा तो उन्हें थोड़ा सुकून मिला.

वैभवी को देख मां ने कहा, ‘‘दामाद जी नहीं आए?’’

‘‘तुम्हारा बेटा आया जो दामाद आता,’’ वह चिढ़ कर बोली, ‘‘बेटी काफी नहीं है तुम्हारे लिए?’’

मां चुप हो गईं. एक वाक्य से ही सबकुछ समझ में आ गया था. पिताजी ने कुछ नहीं पूछा. दुनिया देखी थी उन्होंने. फिर कुछ पूछना और उस पर अफसोस करने का मतलब था पत्नी के दुख को और बढ़ाना. सबकुछ समझ कर भी ऐसा दिखाया जैसे कुछ हुआ ही न हो. पिताजी का जिस डाक्टर से इलाज चल रहा था उन से जा कर वह मिली. औपरेशन का दिन तय हो गया. उस ने प्रकाश व भाई को औपचारिक खबर दे दी. डरतेडरते उस ने पिताजी का औपरेशन करवा दिया. मन ही मन डर रही थी कि कोई ऊंचनीच हो गई तो क्या होगा. पर पिताजी का औपरेशन सहीसलामत हो गया, उस की जान में जान आई. पिताजी को जिस दिन अस्पताल से घर ले कर आई, मन में संतोष था कि वह उन के कुछ काम आ पाई. पिताजी को बिस्तर पर लिटा कर, लिहाफ उढ़ा कर उन के पास बैठ गई. उन के चेहरे पर उस के लिए कृतज्ञता के भाव थे जो शायद बेटे के लिए नहीं होते. आज समाज में बेटी को पिता की जायदाद में हक जरूर मिल गया था लेकिन मातापिता अपना अधिकार आज भी बेटे पर ही समझते हैं.

पिताजी ने आंखें बंद कर लीं. वह चुपचाप पिताजी के निरीह चेहरे को निहारने लगी. दबंग पिताजी को उम्र ने कितना बेबस व लाचार बना दिया था. भैया व प्रकाश, पिताजी के 2 सहारे कहां हैं? वह सोचने लगी, उसे व भैया को पिताजी ने कितने प्यार से पढ़ायालिखाया, योग्य बनाया, वह लड़की होते हुए भी अपने पति की इच्छा के विरुद्ध अपने पिता की जरूरत पर आ गई. लेकिन भैया, वह पुरुष होते हुए भी अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध अपने पिता के काम नहीं आ पाए. सच है रिश्ते तो स्त्रियां ही संभालती हैं, चाहे फिर वह मायके के हों या ससुराल के. लेकिन पुरुष, वह ससुराल के क्या, वह तो अपने सगे रिश्ते भी नहीं संभाल पाता और उस का ठीकरा भी स्त्री के सिर फोड़ देता है. पिताजी कुछ दिन बिस्तर पर रहे. उन की तीमारदारी मां और वह दोनों मिल कर कर रही थीं. भैया ने पापा की चिंता इतनी ही की थी कि एक दिन फुरसत से मां व पिताजी से फोन पर बातचीत करने के बाद मुझ से कहा, ‘‘कुछ जरूरत हो तो बता देना, कुछ रुपए भिजवा देता हूं.’’

‘‘उस की जरूरत नहीं है, भैया,’’ रुपए का तो पिताजी ने भी अपने बुढ़ापे के लिए इंतजाम किया हुआ है. उन्हें तो तुम्हारी जरूरत थी. उस ने कुछ कहना चाहा पर रिश्तों में और भी कड़वाहट घुल जाएगी, सोच कर चुप्पी लगा गई और तभी फोन कट गया.

वैभवी 15 दिन रह कर घर वापस आ गई. प्रकाश का मुंह फूला हुआ था. उस ने परवा नहीं की. चुपचाप अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गई. प्रकाश ने पिताजी की कुशलक्षेम तक नहीं पूछी पर उस की सास का फोन उस के लिए भी और उस के मांपिताजी के लिए भी आया, उसे अच्छा लगा. सभी बुजुर्ग शायद एकदूसरे की स्थिति को अच्छी तरह से समझते हैं. उस की बेटी वापस अपनी नौकरी पर चली गई थी. पिताजी की हालत में निरंतर सुधार हो रहा था, इसलिए वह निश्ंिचत थी. उस के सासससुर देहरादून में रहते थे. सबकुछ ठीक चल रहा था कि तभी एक दिन उस की सास का बदहवास सा फोन आया. उस के ससुरजी की तबीयत अचानक बिगड़ गई थी और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा था. वे दोनों तुरंत देहरादून के लिए निकल पड़े. प्रकाश का भाई अविनाश, जो पुणे में रहता था, अपनी पत्नी के साथ देहरादून पहुंच गया. पता चला कि प्रकाश के पापा को दिल का दौरा पड़ा था. एंजियोग्राफी से पता चला कि उन की धमनियों में रुकावट थी. अब एंजियोप्लास्टी होनी थी.

अविनाश की पत्नी छवि स्कूल में पढ़ाती थी, वह 2-4 दिन की छुट्टी ले कर आई थी. पापा को तो एंजियोप्लास्टी और उस के बाद की देखभाल के लिए लंबे समय की जरूरत थी. प्रकाश के पापा अभी अस्पताल में ही थे. छवि की छुट्टियां खत्म हो गई थीं. वह वापस जाने की तैयारी करने लगी.

‘‘मैं भी चलता हूं, भैया,’’ अविनाश बोला, ‘‘छवि अकेले कैसे जाएगी?’’

‘लेकिन अविनाश, पापा को लंबी देखभाल और इलाज की जरूरत है. कुछ दिन हम रुक लेते हैं, कुछ दिन तुम छुट्टी ले कर आ जाओ,’’ प्रकाश बोला.

‘‘भैया, हम दोनों की तो प्राइवेट नौकरी है, इतनी लंबी छुट्टियां नहीं मिल पाएंगी और मम्मीपापा को पुणे भी नहीं ले जा सकता, छवि भी नौकरी करती है,’’ कह कर उन्हें कुछ कहने का मौका दिए बिना दोनों पतिपत्नी पुणे के लिए निकल गए.

अब प्रकाश पसोपेश में पड़ गया. बड़ा भाई होने के नाते वह अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग सकता था. उस ने सहारे के लिए वैभवी की तरफ देखा. पर वहां तटस्थता के भाव थे. मौका पा कर धीरे से बोला, ‘‘वैभवी, मम्मीपापा को अपने साथ ले चलते हैं, वहां आराम से इलाज और देखभाल हो जाएगी. यहां तो हम इतना नहीं रुक पाएंगे. या फिर एंजियोप्लास्टी करवा कर मैं चला जाता हूं, तुम रुक जाओ, मैं आताजाता रहूंगा.’’

‘‘क्यों? मैं क्यों रुकूं, फालतू हूं क्या? नौकरी नहीं कर रही हूं? तो क्या मेरी ही ड्यूटी हो गई, छवि या अविनाश नहीं रह सकता यहां?’’

‘‘लेकिन जब वे दोनों जिम्मेदारियां नहीं उठाना चाह रहे हैं तो पापा को ऐसे तो नहीं छोड़ सकते हैं न. किसी को तो जिम्मेदारी उठानी ही पड़ेगी.’’

‘‘हां तो, जिम्मेदारी उठाने के लिए सिर्फ हम ही रह गए. और सेवा करने के लिए सिर्फ मैं. कल को पापा की संपत्ति तो दोनों के बीच ही बंटेगी, सिर्फ हमें तो नहीं मिलेगी, मुझ से नहीं होगा.’’ कह कर पैर पटकती हुई वैभवी कमरे से बाहर निकल गई. बाहर लौबी में सास बैठी हुई थीं, उदास सी. उन का हाथ पकड़ कर किचन में ले गई वैभवी. उन्होंने सबकुछ सुन लिया था, उन के चेहरे से ऐसा लग रहा था. आंखों में आंसू डबडबा रहे थे. चेहरे पर घोर निराशा थी.

‘‘मां,’’ वह उन का चेहरा ऊपर कर के बोली, ‘‘खुद को कभी अकेला मत समझना, हम हैं आप के साथ और आप की यह बेटी आप की सेवा करने के लिए है, मुझ पर विश्वास रखना, मैं प्रकाश के साथ सिर्फ नाटक कर रही थी, मैं उन्हें कुछ एहसास दिलाना चाहती थी, मुझे गलत मत समझना. आप के पास कुछ भी न हो, तब भी आप के बच्चों के कंधे बहुत मजबूत हैं, वे अपने मातापिता का सहारा बन सकते हैं.’’

सास रो रही थीं. उस ने उन्हें गले लगा लिया. सास को सबकुछ मालूम था, इसलिए सबकुछ समझ गई थीं. मांबेटी जैसा रिश्ता कायम कर रखा था वैभवी ने अपनी सास के साथ. और हर प्यारे रिश्ते का आधार ही विश्वास होता है. उस की सास को उस पर अगाध विश्वास था.

TMKOC: अब टप्पू ने भी कहा शो को अलविदा, देखे पोस्ट

साल 2008 में टीवी के मशहूर शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ की शुरूआत हुई थी. तब से लेकर आज तक ये कॉमेडी शो दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर रहा है. हालांकि, बीते कुछ सालों में शो से कई स्टार्स ने किनारा किया है. वहीं, लिस्ट में अब एक और एक्टर का नाम जुड़ गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, तारक मेहता का उल्टा चश्मा में ‘टप्पू’ (Tappu) का किरदार निभाने वाले एक्टर राज अनादकट (Raj Anadkat) ने शो छोड़ने का फैसला कर लिया है. ये खबर उनके फैंस के लिए काफी शॉकिंग है.

 

 

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नहीं आएंगे टप्पू शो में नजर:

दरअसल, पिछले कुछ महीनों से ऐसी खबर आ रही थी कि राज अनादकट ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ शो छोड़ने वाले हैं. हालांकि, हर बार राज ने इन खबरों को सिर्फ अफवाह बताकर टाल दिया. लेकिन इस बार खुद राज अनादकट (Raj Anadkat) ने सोशल मीडिया पर शो छोड़ने की अनाउंसमेंट की है. हाल ही में एक्टर ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर किया है जिसमें उन्होंने लिखा- ‘समय आ गया है कि अब सभी सवालों पर फुल स्टॉप लगा दिया जाए. ऑफिशियली अब तारक मेहता का उल्टा चश्मा के साथ मेरा कॉन्ट्रेक्ट खत्म हो रहा है.’

राज ने लिखा ईमोशनल नोट: 

 

 

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राज अनादकट ने पॉपुलर कॉमेडी शो के बारे में लिखा- ‘मैंने अच्छे दोस्त बनाए और बहुत कुछ सीखा. इस जर्नी में जो मेरे साथ थे मैं उन सबका थैंक्यू करूंगा. ये मेरे करियर के बेहतरीन साल रहे. आप सभी लोगों का धन्यवाद कि आपने मुझे टप्पू के रूप में एक्सेप्ट किया. पूरी टीम को फ्यूचर के लिए ऑल द बेस्ट’. आपको बता दें कि राज अनादकट साल 2017 में ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ का हिस्सा बने थे. उनसे पहले शो में ‘टप्पू’ का किरदार भव्य गांधी ने निभाया था. दोनों ही एक्टर को लोगों ने टप्पू के रूप में खूब प्यार दिया. खैर, ये बात तो तय है कि फैंस इस किरदार को जरूर मिस करेंगे.

मेकर्स से विवाद के बाद शैलेश ने छोड़ा था शो:
दरअसल, शो छोड़ने का कारण मेकर्स असित मोदी के साथ शैलेश लोढ़ा का विवाद ही बताया जा रहा है हालांकि अभी तक असल वजह क्या थी किसी ने भी इसके बारे में कुछ नहीं कहा लेकिन कहा जाता है कि शैलेश किसी और शो से भी जुड़ना चाहते थे लेकिन असित मोदी को ये रास नहीं आया लिहाजा जब शैलेश ने शो छोड़ने की बात कही तो उन्होंने उन्हें रोक नहीं बल्कि शो से जाने दिया.

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