दादी अम्मा : आखिर कहां चली गई थी दादी अम्मा- भाग 2

सुलेमान बेग युवावस्था में रोजगार पाने की गरज से अपनी बीवी सकीना बेगम को ले कर इस शहर में आ गए थे. उस समय उन के पास एक संदूकिया और पुराना बिस्तर था. उन का पुश्तैनी घराना निर्धन था. यही मजबूरी उन्हें यहां ले आई थी. किसी मिलने वाले ने सुझाव दिया था कि यहां साहबों के बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर गुजरबसर कर सकते हैं. साहब खुश हो गए तो नौकरी भी मिल सकती है.

उस की बात सही निकली. सुलेमान बेग की मेहनत, लगन और सहयोगी व्यवहार से प्रभावित हो कर एक साहब ने 1 साल बीततेबीतते उन की तहसील में तीसरे दरजे की नौकरी भी लगवा दी. कुछ दिनों में सरकारी क्वार्टर भी मिल गया.

नौकरी और क्वार्टर मिलने की खुशी सुलेमान बेग से संभाली नहीं जा रही थी. पहले दिन क्वार्टर में घुसते ही सकीना बेगम को उन्होंने सीने से लगा लिया, ‘बेगम, मेरी जिंदगी में तुम्हारे कदम क्या पड़े, कामयाबी का पेड़ लग गया.’

‘यह सब आप की मेहनत का फल है. मैं तो यही चाहती हूं कि आप सलामत रहें. मेरी उम्र भी आप को लग जाए,’ भावावेश में सकीना बेगम की आंखों में आंसू छलक आए.

‘ऐसा न कहो, तुम हो तो यह घर है. नहीं तो कुछ भी नहीं होता,’ कहते हुए सुलेमान बेग ने उन का माथा चूम लिया.

सुलेमान बेग के 4 बच्चे हुए. 1 बेटी और उस के बाद 3 बेटे. वेतन कम होने से घर का खर्च बमुश्किल चल पाता था. दोनों पतिपत्नी ने अपना पेट काट कर बच्चों की परवरिश की थी. अपने शौकों को दबा कर बच्चों की ख्वाहिशें पूरी करने में लगे रहे. तबादले होते रहने की स्थिति में एक स्थायी निवास के लिए सुलेमान बेग ने जोड़तोड़ कर के 4 कमरों का घर बना लिया.

सुलेमान बेग का तबादला इधरउधर होता रहा. बच्चों के लिए घर पैसे भेजने के वास्ते किराए के एक कमरे में रहते, मलयेशिया के बने सस्ते कपड़े पहनते और स्वयं तवे पर दो रोटी डाल कर गुजरबसर करते. लेकिन इस का बुरा असर यह हुआ कि वे जबतब बीमार रहने लगे थे.

उन की अनुपस्थिति में सकीना बेगम ही बच्चों को बटोरे रहतीं. वे स्वयं ही घर का सारा कामकाज करतीं. चूल्हे पर सब का खाना बनातीं. कपड़े और बरतन धोतीं. पौ फटते ही उठ जातीं, गाय की सानी करतीं फिर साफसफाई करने के बाद बच्चों को रोटी और साग खिला कर स्कूल भेजतीं. कम वेतन में भी उन के त्याग ने घर को खुशियों से भर रखा था. कुछ बातें वे खुद ही सह लेतीं, पति और बच्चों पर जाहिर नहीं होने देतीं.

एक बार ईद के मौके पर पैसे की कुछ ज्यादा ही तंगी थी. लेकिन बच्चे इस से बेखबर नए कपड़ों की जिद करने लगे, ‘अम्मा, सभी संगीसाथी नएनए कपड़ों की शेखी बघार रहे हैं. हम उन से कम थोड़े ही हैं, ऐसे कपड़े बनवाएंगे कि सब देखते रह जाएंगे. है न अम्मीजान.’

सकीना बेगम को काटो तो खून नहीं. पिछले दिनों लाल गेहूं के पैसे भी कहां दिए थे दुकानदार को. बाद में कुछ और किराने का सामान भी उधार ही आया था. पति की बीमारी, बच्चों की पढ़ाई से आर्थिक तंगी और बढ़ चली थी. नकद सामान आता भी कहां से. बड़ी खुशामद के बाद किराने वाले ने मुंह बिगाड़ते हुए 1 किलो सेंवइयां दी थीं. ऐसे में कपड़ों के बारे में तो वे सोच भी नहीं सकती थीं. सोचा था, नील डाल कर कपड़े फींच देंगी, बच्चे गौर नहीं करेंगे, ऐसे ही टल जाएगी ईद. लेकिन…

बच्चों की बात सुन कर अपने को संयत कर उन्होंने दिलासा दी, ‘क्यों नहीं, हम क्या किसी से कम हैं. सब के कपड़े बनेंगे, आखिर सालभर में एक ही बार तो मीठी ईद आती है.’ बड़ी मुश्किल से उन्होंने बेटी के विवाह के लिए अपनी शादी में चढ़े चांदी के 2 जेवर बचा कर रखे थे. बिना किसी को बताए वे उन्हें गिरवीं रख कर स्वयं को छोड़ सब के कपड़े खरीद लाईं. सुलेमान बेग ने जब उन के कपड़ों के बारे में पूछा तो हंसती हुई बोलीं, ‘अरे, मैं तो घर में ही रहती हूं, मुझे किसी को दिखाना थोड़े ही है.’

सुलेमान बेग की नौकरी के चलते घर में न रहने और वेतन बहुत कम होने के बीच बड़ी कक्षाओं में आने पर 2 बड़े लड़के दूसरे शहर में ट्रेन से जा कर पढ़ने लगे तो उन पर और भार पड़ गया. बच्चों के बड़े होने पर जैसेतैसे जोड़गांठ कर जब उन्होंने बेटी का विवाह कर दिया तो कुछ चैन की सांस ली. तीनों बेटे भी बड़े थे, लेकिन धन के अभाव में उन के लिए रोटियां सेंकनी पड़तीं. चूल्हे में जब वे लोहे की फूंकनी से कंडों को सुलगाने के लिए फूंकतीं तो उन की सांस तो फूल ही जाती, साथ में धुएं और राख से आंखें भी लाल हो जातीं.

वैसे तो वे सहती रहतीं लेकिन उन का सब्र उस समय जवाब दे जाता जब गीली लकडि़यां सुलगने में बहुत देर लगातीं और फूंकनी फूंकतेफूंकते उन की जान कलेजे को आ जाती. ‘पता नहीं कब मुझे आराम नसीब होगा. लगता है मर कर ही चैन मिलेगा,’ कहते हुए वे देर तक बड़बड़ाती रहतीं.

बेटे उच्च शिक्षा तो नहीं ले पाए फिर भी सुलेमान बेग ने 2 बड़े बेटों को शहर में ही तृतीय श्रेणी की नौकरियों पर लगवा दिया और छोटे लड़के को मैडिकल स्टोर खुलवा दिया. आर्थिक स्थिति कुछ सुधरने पर जैसेतैसे जब बड़े बेटे रेहान की शादी हुई तो सकीना बेगम को लगा कि अब उन्हें रातदिन कोल्हू के बैल जैसी जिंदगी से छुटकारा मिल जाएगा. लेकिन जैसा सोचा था वैसा हुआ नहीं.

उदास क्षितिज की नीलिमा: आभा को बहू नीलिमा से क्या दिक्कत थी- भाग 1

‘यह नीलिमा भी कहां जा कर मर जाती है. कितनी बार कहा है कि नीरू के औफिस जाते ही हमें निकलना होगा. दिन चढ़ने से भगवान की सुबह की अर्चना खराब हो जाती है,’ यह बुदबुदाती 55 वर्षीया आभा अपनी बहू पर गरजतीबरसती पूजा की डलिया लिए दरवाजे पर तैयार खड़ी थीं.

पहले ही इन की पूजाअर्चना कुछ कम नहीं थी. घर में आधा दिन पूजापाठ, फिर नियमित मंदिर जाने की आदत से कई बार इन के पति झल्ला जाते थे. अब जब 2 साल पहले पति की मृत्यु और 6 महीने पहले इकलौते बेटे 30 साल के निरूपम के ब्याह हो जाने से इन की व्यस्तता कुछ कम हो गई है, तो पूजापाठ और कर्मकांड दोगुने हो गए हैं.

ये लोग रांची के पहाड़ी मंदिर के पास रहते हैं. नजदीक के विशाल पहाड़ पर स्थित शिव का मंदिर आभा के नित्य दर्शन का केंद्र है. अब पैरों में दर्द की वजह से रोजाना 700 सीढ़ियां चढ़ कर मंदिर तक पहुंचना संभव नहीं होता, इसलिए वे मंदिर प्रांगण में नीचे बरगद के चबूतरे पर बैठ बहू के पूजा कर के कर वापस आने का इंतजार करती हैं. और तब तक पंडित सेवाराम उन के साथ गपशप करते हुए उन की परेशानियां खरोंच कर निकालते व अगली किसी पूजा के लिए उन्हें तैयार करते रहते.

बहु नीलिमा तैयार हो कर अपने कमरे से बाहर आ गई थी. 22 साल की आकर्षक युवती जींस और टीशर्ट में बहुत प्यारी लग रही थी.

सास आभा बहू नीलिमा को देखते ही फट पड़ीं, “यह क्या पहन लिया तुम ने? अब तक तो साड़ी पहन कर ही चल रही थी. मंदिर जा रही हो, कोई डिस्को क्लब नहीं. बेशर्म, जाओ जल्दी, साड़ी पहन कर आओ.”

“मां, भगवान भी ड्रैस देख कर आशीष देते हैं क्या? ड्रैस में बदलाव तो खुद की खुशी के लिए है.”

“सास से जबान लड़ाती है, यही सिखा कर भेजा है तुम्हारे घर वालों ने? जल्दी साड़ी पहन कर आओ. लगता है निरूपम से तुम्हारी शिकायत करनी ही पड़ेगी.”

नीलिमा साड़ी पहन कर आ तो गई लेकिन रोजरोज की यह मुसीबत उसे भारी पड़ने लगी थी.

वह सोचती जा रही थी, कितनी उबाऊ दिनचर्या हो गई है उस की शादी के बाद.

सुबह से लगपड़ कर 9 बजे के अंदर पति को नाश्ता व खाना दे कर औफिस भेजो, रसोई और घर को व्यवस्थित कर नहाने जाओ, ब्याहता सा श्रृंगार कर हर दिन पहाड़ी पर मंदिर जाओ, फिर वापस भी इस जल्दी में आओ कि बरतन धोने वाली दीदी न चली जाए वापस. वरना घर आ कर बरतन, कपड़ा धोना, पोंछना… तब भी चैन कहां, आएदिन सास मंडली और उन के भजन कीर्तन… नाश्ता, खाना, साफसफाई में ही शाम हो आती.

उधर, पति भी चिलगोजे के बीज, मां के दुमछल्ले. दिमाग नाम की कोई चीज तो जैसे उस के पास है ही नहीं. 30 साल की उम्र है, साधारण नाकनक्श में आम सा दिखता इंसान कम से कम अगर दिमाग से पैदल न होता तो भी वह इस शादी को ले कर इतनी निराश न होती.

पति जब कुढ़मगज, तो सास के इस तरह की समय की बरबादी वाली नित्य क्रिया से छुट्टी कैसे मिले उसे.

किसी तरह औफिस का बंधाबंधाया काम निबटा कर जब निरूपम  घर आता तो मां के हुक्म बजाने और लोगों की मीनमेख निकालने में मां का साथ देने के सिवा वह करता भी क्या था.

मां ने पत्नी की उलटीसीधी शिकायत की नहीं कि, आव देखे न ताव पत्नी पर पड़े बरस.

फिर अगर पत्नी बिस्तर पर साथ देने को रुचि न दिखाए, तो दूसरी सुबह कमअक्ल इस बात की भी शिकायत मां के पास ले जाता.

अरे, कुछ बातें सिर्फ पतिपत्नी के बीच ही रहती हैं, इतनी भी समझ नहीं जिसे, उस से दिल जुड़े भी तो कैसे.

पूजा की थाली लिए साड़ी में लटपटाती नीलिमा 700 सीढ़ियां चढ़तीचढ़ती एक खाली पड़ी कील अपनी चप्पल में गड़वा बैठी. चप्पल से होते हुए कील के पैर के तलवे में चुभने से पैर में चोट के साथ मोच आ गई, सो अलग. ऊपर पहाड़ी मंदिर पहुंच कर वह जैसेतैसे नलके पर पहुंची.

विश्वास: क्या थी कहानी शिखा की – भाग 1

फोन पर ‘हैलो’ सुनते ही अंजलि ने अपने पति राजेश की आवाज पहचान ली.

राजेश ने अपनी बेटी शिखा का हालचाल जानने के बाद तनाव भरे स्वर में पूछा, ‘‘तुम यहां कब लौट रही हो?’’

‘‘मेरा जवाब आप को मालूम है,’’ अंजलि की आवाज में दुख, शिकायत और गुस्से के मिलेजुले भाव उभरे.

‘‘तुम अपनी मूर्खता छोड़ दो.’’

‘‘आप ही मेरी भावनाओं को समझ कर सही कदम क्यों नहीं उठा लेते हो?’’

‘‘तुम्हारे दिमाग में घुसे बेबुनियाद शक का इलाज कर ने को मैं गलत कदम नहीं उठाऊंगा…अपने बिजनेस को चौपट नहीं करूंगा, अंजलि.’’

‘‘मेरा शक बेबुनियाद नहीं है. मैं जो कहती हूं, उसे सारी दुनिया सच मानती है.’’

‘‘तो तुम नहीं लौट रही हो?’’ राजेश चिढ़ कर बोला.

‘‘नहीं, जब तक…’’

‘‘तब मेरी चेतावनी भी ध्यान से सुनो, अंजलि,’’ उसे बीच में टोकते हुए राजेश की आवाज में धमकी के भाव उभरे, ‘‘मैं ज्यादा देर तक तुम्हारा इंतजार नहीं करूंगा. अगर तुम फौरन नहीं लौटीं तो…तो मैं कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे दूंगा. आखिर, इनसान की सहने की भी एक सीमा…’’

अंजलि ने फोन रख कर संबंधविच्छेद कर दिया. राजेश ने पहली बार तलाक लेने की धमकी दी थी. उस की आंखों में अपनी बेबसी को महसूस करते हुए आंसू आ गए. वह चाहती भी तो आगे राजेश से वार्तालाप न कर पाती क्योंकि उस के रुंधे गले से आवाज नहीं निकलती.

शिखा अपनी एक सहेली के घर गई हुई थी. अंजलि के मातापिता अपने कमरे में आराम कर रहे थे. अपनी चिंता, दुख और शिकायत भरी नाराजगी से प्रभावित हो कर वह बिना किसी रुकावट के कुछ देर खूब रोई.

रोने से उस का मन उदास और बोझिल हो गया. एक थकी सी गहरी आस छोड़ते हुए वह उठी और फोन के पास पहुंच कर अपनी सहेली वंदना का नंबर मिलाया.

राजेश से मिली तलाक की धमकी के बारे में जान कर वंदना ने उसे आश्वासन दिया, ‘‘तू रोनाधोना बंद कर, अंजलि. मेरे साहब घर पर ही हैं. हम दोनों घंटे भर के अंदर तुझ से मिलने आते हैं. आगे क्या करना है, इस की चर्चा आमने- सामने बैठ कर करेंगे. फिक्र मत कर, सब ठीक हो जाएगा.’’

वंदना उस के बचपन की सब से अच्छी सहेली थी. उस का व उस के पति कमल का अंजलि को बहुत सहारा था. उन दोनों के साथ अपने सुखदुख बांट कर ही पति से दूर वह मायके में रह रही थी. अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए अंजलि जो बात अपने मातापिता से नहीं कह पाती, वह इन दोनों से बेहिचक कह देती.

राजेश से फोन पर हुई बातचीत का ब्योरा अंजलि से सुन कर वंदना चिंतित हो उठी तो उस के पति कमल की आंखों में गुस्से के भाव उभरे.

‘‘अंजलि, कोई चोर कोतवाल को उलटा नहीं धमका सकता है. राजेश को तलाक की धमकी देने का कोई अधिकार नहीं है. अगर वह ऐसा करता है तो समाज उसी के नाम पर थूथू करेगा,’’ कमल ने आवेश भरे लहजे में अपनी राय बताई.

‘‘मेरी समझ से हमें टकराव का रास्ता छोड़ कर राजेश से बात करनी चाहिए,’’ चिंता के मारे अपनी उंगलियां मरोड़ते हुए वंदना ने अपने मन की बात कही.

‘‘राजेश से बातचीत करने को अगर अंजलि उस के पास लौट गई तो वह अपने दोस्त की विधवा के प्रेमजाल से कभी नहीं निकलेगा. उस पर संबंध तोड़ने को दबाव बनाए रखने के लिए अंजलि का यहां रहना जरूरी है.’’

‘‘अगर राजेश ने सचमुच तलाक की अर्जी कोर्ट में दे दी तो क्या करेंगे हम? तब भी तो अंजलि

को मजबूरन वापस लौटना पडे़गा न.’’

‘‘मैं नहीं लौटूंगी,’’ अंजलि ने सख्त लहजे में उन दोनों को अपना फैसला सुनाया, ‘‘मैं 2 महीने अलग रह सकती हूं तो जिंदगी भर को भी अलग रह लूंगी. मैं जब चाहूं तब अध्यापिका की नौकरी पा सकती हूं. शिखा को पालना मेरे लिए समस्या नहीं बनेगा. एक बात मेरे सामने बिलकुल साफ है. अगर राजेश ने उस विधवा सीमा से अपने व्यक्तिगत व व्यावसायिक संबंध बिलकुल समाप्त नहीं किए तो वह मुझे खो देंगे.’’

वंदना व कमल कुछ प्रतिक्रिया दर्शाते, उस से पहले ही बाहर से किसी ने घंटी बजाई. अंजलि ने दरवाजा खोला तो सामने अपनी 16 साल की बेटी शिखा को खड़ा पाया.

‘‘वंदना आंटी और कमल अंकल आए हुए हैं. तुम उन के पास कुछ देर बैठो, तब तक मैं तुम्हारे लिए खाना लगा लाती हूं,’’ भावुकता की शिकार बनी अंजलि ने प्यार से अपनी बेटी के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘मेरा मूड नहीं है, किसी से खामखां सिर मारने का. जब भूख होगी, मैं खाना खुद ही गरम कर के खा लूंगी,’’ बड़ी रुखाई से जवाब देने के बाद साफ तौर पर चिढ़ी व नाराज सी नजर आ रही शिखा अपने कमरे में जा घुसी.

अंजलि को उस का अचानक बदला व्यवहार बिलकुल समझ में नहीं आया. उस ने परेशान अंदाज में इस की चर्चा वंदना और कमल से की.

‘‘शिखा छोटी बच्ची नहीं है,’’ वंदना की आंखों में चिंता के बादल और ज्यादा गहरा उठे, ‘‘अपने मातापिता के बीच की अनबन जरूर उस के मन की सुखशांति को प्रभावित कर रही है. उस के अच्छे भविष्य की खातिर भी हमें समस्या का समाधान जल्दी करना होगा.’’

‘‘वंदना ठीक कह रही है, अंजलि,’’ कमल ने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम शिखा से अपने दिल की बात खुल कर कहो और उस के मन की बातें सहनशीलता से सुनो. मेरी समझ से हमारे जाने के बाद आज ही तुम यह काम करना. कोई समस्या आएगी तो वंदना और मैं भी उस से बात करेंगे. उस की टेंशन दूर करना हम सब की जिम्मेदारी है.’’

उन दोनों के विदा होने तक अपनी समस्या को हल करने का कोई पक्का रास्ता अंजलि के हाथ नहीं आया था. अपनी बेटी से खुल कर बात करने के  इरादे से जब उस ने शिखा के कमरे में कदम रखा, तब वह बेचैनी और चिंता का शिकार बनी हुई थी.

‘‘क्या बात है? क्यों मूड खराब है तेरा?’’ अंजलि ने कई बार ऐसे सवालों को घुमाफिरा कर पूछा, पर शिखा गुमसुम सी बनी रही.

‘‘अगर मुझे तू कुछ बताना नहीं चाहती है तो वंदना आंटी और कमल अंकल से अपने दिल की बात कह दे,’’  अंजलि की इस सलाह का शिखा पर अप्रत्याशित असर हुआ.

‘‘भाड़ में गए कमल अंकल. जिस आदमी की शक्ल से मुझे नफरत है, उस से बात करने की सलाह आज मुझे मत दें,’’  शिखा किसी ज्वालामुखी की तरह अचानक फट पड़ी.

कच्ची गली: खुद को बदलने पर मजबूर हो गई दामिनी- भाग 2

सृष्टि ने उस के जन्मदिन की तैयारी शुरू कर दी. पार्टी पौपर्स, हैप्पी बर्थडे स्ट्रिंग, दिल की शेप के गुब्बारे और मेहमानों की एक लिस्ट. दामिनी के 50वें जन्मदिन को वाकई खास बनाना चाहती थी उस की बेटी. विपिन का भी पूरा सहयोग था. केवल धनदान से ही नहीं, बल्कि श्रमदान से भी विपिन साथ दे रहे थे.

अगली सुबह दामिनी थोड़ी देर से उठी. आज फिर उसे माइग्रेन अटैक आया था. सुबह उठने के साथ ही सिर में दर्द शुरू हो गया था. ऐसे में अकसर उस की इंद्रियां उस का पूरा साथ नहीं निभाती थीं, सो हर काम थोड़ा धीमी गति से होता था.

‘‘क्या हुआ मेरी प्यारी मम्मा को?’’ सृष्टि उस का उतरा चेहरा देख कर पूछने लगी.

‘‘बेटा, फिर वही सिरदर्द,’’ दामिनी अपना माथा सहलाती हुई बोली.

‘‘उफ, आप दवाई ले कर रैस्ट करो. हमारे जाने के बाद कोई काम मत करना.’’

सृष्टि की बात मान कर विपिन और उस के चले जाने के बाद दामिनी दवा खा कर कुछ देर सो गई.

फोन की घनघनाहट से दामिनी की आंख खुली, ‘‘हैलो,’’ टूटी हुई आवाज में वह बोली.

‘‘दामिनी, मैं रजत बोल रहा हूं. मेरे सहकर्मी को अपनी बेटी के दाखिले के सिलसिले में सृष्टि से कुछ पूछना है पर न जाने क्यों उस का सैलफोन स्विचऔफ आ रहा है. जरा उसे बुला कर अपने फोन से बात करवा दो.’’

‘‘सृष्टि, सृष्टि कालेज से अभी लौटी कहां है. आज तबीयत थोड़ी ढीली लग रही थी, इसलिए आंख लग गई. क्या समय हुआ है?’’

‘‘रात के 8 बज रहे हैं. सृष्टि अभी तक नहीं लौटी,’’ विपिन के स्वर में चिंता के भाव घुलने लगे.

समय सुन कर दामिनी भी हड़बड़ा कर उठ बैठी, ‘‘इतनी देर सृष्टि को कभी नहीं होती. उस पर उस का फोन भी औफ आ रहा है. ऐसा क्या हो गया होगा,’’ कहती हुई दामिनी के पसीने छूट गए.

‘‘क्या तुम उस की सहेलियों के घर जानती हो?’’ विपिन ने पूछा.

‘‘हां, कुछ सहेलियां पास में ही रहती हैं. मैं फौरन जा कर पूछ आती हूं. तुम कहां हो?’’ दामिनी बोली.

‘‘मैं औफिस से घर के लिए चल दिया हूं. सृष्टि के कालेज के रास्ते में हूं. मैं पूरा रास्ता उसे देखता आऊंगा,’’ विपिन काफी घबरा कर बोल रहे थे.

‘‘मैं भी पासपड़ोस, अपने महल्ले व हाईवे तक सृष्टि को देख कर आती हूं,’’ दामिनी ने जल्दबाजी में अपनी चुन्नी उठाई और सड़क की ओर दौड़ पड़ी.

सब से पहले दामिनी ने सृष्टि की सब से पास रहने वाली  सहेली का दरवाजा खटखटाया, तो उस ने बताया, ‘‘आंटी, आज मैं कालेज गई ही नहीं. क्या हुआ, आप इतनी परेशान क्यों हैं?’’

मगर दामिनी के पास उत्तर देने का समय न था. वह भागती हुई दूसरी सहेली के घर पहुंची. फिर  तीसरी. पड़ोस में केवल इतनी ही लड़कियां सृष्टि के कालेज में पढ़ती थीं. कहीं भी सृष्टि की खबर न पा कर दामिनी की चिंता बढ़ती जा रही थी.

‘‘दामिनी अब हाईवे की ओर चलने लगी. तीव्र गति से कदम बढ़ाती दामिनी अब सुबकने लगी कि पता नहीं मेरी बच्ची कहां होगी. इतनी देर कभी नहीं हुई उसे. फोन क्यों स्विचऔफ है. कम से कम एक फोन कर देती. आएगी तो बहुत डांटूंगी. यह भी कोई तरीका हुआ. मन ही मन में बड़बड़ाती अपने आंसुओं को पोंछती हुई दामिनी हाईवे पर चली जा रही थी. कभी दुकान पर बैठे चाय पी रहे लोगों से पूछती तो कभी सड़क पर जा रहे लोगों को अपने फोन पर सृष्टि का फोटो दिखा कर उस के बारे में जानकारी हासिल करने का प्रयास करती.

उधर विपिन जगहजगह अपनी कार रोक कर सृष्टि को खोजने में प्रयत्नशील थे. घर निकट आता जा रहा था, किंतु सृष्टि का कुछ पता नहीं चल रहा था. विपिन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी. कार चलाते हुए अब वे हाईवे पर पहुंच चुके थे. रात काफी हो चुकी थी. गाडि़यां तेज रफ्तार से अपने गंतव्य स्थान को दौड़ी जा रही थीं. कार चलाते हुए विपिन अब घर के निकट पहुंचने लगे लेकिन सृष्टि का कोई अतापता न चला था. विपिन किसी अनिष्ट की आशंका से घबरा रहे थे.

तभी उन्होंने सड़क के किनारे किसी को औंधेमुंह गिरा देखा. तेजी से गाड़ी को साइड में लगाते हुए विपिन उतरे और उस ओर बढ़ चले. वह किसी स्त्री का शरीर था जिस के कपड़े बेतरतीब अवस्था में थे. करीब 10 फर्लांग दूर चुन्नी पड़ी हुई थी. विपिन बेहद घबरा गए कि कहीं यह सृष्टि तो नहीं… आज क्या पहना था सृष्टि ने, यह भी विपिन को नहीं पता क्योंकि सृष्टि उन के औफिस जाने के बाद ही अपने कालेज जाया करती है. लगभग भागते हुए विपिन उस की तरफ बढ़े और कंधे से पकड़ कर उस का चेहरा अपनी ओर मोड़ा.

उस के बाद जो उन्होंने देखा, उन के चेहरे पर विषादपूर्ण भाव उभर आए. पलभर को मानो उन्हें काठ मार गया.

‘‘यह तो दामिनी है,’’ उन के मुंह से अस्फुट बोल निकले. दामिनी से दूर गिरी उस की चुन्नी, कंधे से सरका हुआ उस का कुरता, खुली हुई सलवार जो उस के घुटनों तक गिरी हुई थी और दुख व तकलीफ में लिपटा उस का चेहरा आदि सबकुछ साफसाफ दर्शा रहा था कि उस के साथ क्या बीत चुका है. जिस अनहोनी की आशंका दोनों मातापिता अपनी नवयौवना बेटी के लिए कर रहे थे, यथार्थ में वही दुर्घटना दामिनी के साथ घट चुकी थी.

‘‘यह क्या हुआ, तुम यहां कैसे, इस हालत में… उठो दामिनी,’’ कहते हुए विपिन सहारा दे कर दामिनी को उठाने लगे.

दामिनी मूर्च्छित सी अवस्था में उठने का प्रयास करने लगी. सृष्टि को ढूंढ़ते हुए वह यहां एक सुनसान कोने में पहुंच गई थी. सृष्टि का नाम पुकारती वह यहांवहां भटक रही थी कि सड़क से गुजरती एक गाड़ी में सवार कुछ लड़कों की गंदी नजर उस पर पड़ गई. अकेली औरत, चिंता में बेहाल, रुकी हुई गाड़ी की ओर बेध्यानी में बढ़ती चली गई और कुछ सशक्त हाथों ने उसे गाड़ी के भीतर घसीट लिया.

फिर इन्हीं सड़कों पर, चलती गाड़ी में उस के साथ वही अपमानजनक, अनहोनी दुर्घटना घट गई जैसी खबरें अखबार में पढ़ते हुए विपिन का मन परेशान हो जाया करता. कौन सोच सकता था कि जवान लड़की की मां को भी वही खतरा है जिस का डर अकसर मातापिता को अपनी युवा बेटियों के लिए लगता है. जमाना सेफ्टी पिन का हो या पैपरस्प्रे का औरतों के लिए सुनसान गलियां हमेशा से खतरा रहीं और आज भी हैं.

‘‘उठो दामिनी, हिम्मत करो. घर चलो,’’ विपिन दामिनी को दिलासा देने लगे.

क्या औरतों के लिए घर की देहरी लांघना सदा ही लक्ष्मणरेखा का प्रश्न रहेगा? किसी भी उम्र की औरत हो, कोई भी शहर हो, कोई भी जमाना हो कब तक औरत की इज्जत के लिए हर गली कच्ची रहेगी? कब तक हर औरत को रेप जैसे अपमानजनक अपराध के बाद ऐसे मुंह छिपाना पड़ेगा मानो वह इस की शिकार नहीं बल्कि असली गुनहगार है? केवल दामिनी नाम रख देने से औरत में शक्ति नहीं आती. वह फिर भी निर्बल, भेद्य, आलोचनीय, अशक्त रहती है. कब होगी वह सुबह जो सच्चा सवेरा लाएगी? कब बिखरेंगी वे किरणें जो सच्चा उजाला फैलाएंगी? दामिनी सुन्न दिलदिमाग लिए, लंगड़ाती हुई, विपिन के कंधे का सहारा लिए अपनी कार में बैठ गई.

‘‘विपिन…’’ कह दामिनी रोने लगी, ‘‘देखो न, यह क्या हो गया,’’ फिर स्वयं को समेटती हुई बोली, ‘‘पुलिस स्टेशन चलो, मुझे एफआईआर लिखवानी है.’’

विपिन ने गाड़ी को सड़क के एक ओर लगाया और  दामिनी के सिर पर हाथ फेर कर उसे शांत करने लगे, ‘‘जो होना था सो हो गया. अब इन बातों से क्या होगा? इतनी रात को, यहां सुनसान कोने में कौन सी गाड़ी थी, कौन लोग थे, क्या तुम पहचान पाओगी? क्या तुम ने गाड़ी का नंबर देखा? पुलिस सब पूछेगी, तुम से सुबूत मांगेगी. उस पर जब यह खबर समाज में फैल जाएगी तो हमारे परिवार की इज्जत का क्या होगा? सब रिश्तेदार क्या कहेंगे? सृष्टि पर क्या बीतेगी… आगे चल कर उस की शादी के समय… कुछ सोचो दामिनी. भलाई इसी में है कि इस बात को यही खत्म कर दिया जाए. आने वाले कल के बारे में विचार करो.’’

मोक्ष: क्या गोमती मोक्ष की प्राप्ति कर पाई? – भाग 2

‘‘मैं इन रुपयों का क्या करूंगी? तू है तो मेरे पास. फिर 5-10 रुपए हैं मेरे पास,’’ गोमती ने मना किया. ‘‘वक्तबेवक्त काम आएंगे. तुम्हारा ही कुछ लेने का मन हो या कहीं मेले में मेरी जेब ही कट जाए तो…’’ श्रवण के समझाने पर गोमती ने रुपए ले लिए. गोमती ने रुपए संभाल कर रख लिए. उन्हें ध्यान आया कि ऐसे मेलों में चोर- उचक्के खूब घूमते हैं. लोगों को बेवकूफ बना कर हाथ की सफाई दिखा कर खूब ठगते हैं. श्रवण चला गया और गोमती थैला सिर के नीचे लगा बिछी चादर पर लेट गईं. उन का मन आह्लादित था. श्रवण ने खूब ध्यान रखा है. लेटेलेटे आंखें झपक गईं. जब खुलीं तो देखा कि सूरज ढलने जा रहा है और श्रवण अभी लौटा नहीं है. उन्हें चिंता हो आई. अनजान जगह, अजनबी लोग, श्रवण के बारे में किस से पूछें? अपना थैला टटोल कर देखा. सब- कुछ यथास्थान सुरक्षित था. कुछ रुपए एक रूमाल में बांध कर चुपचाप कपड़ों के साथ थैले में डाल लाई थीं. सोचा था पता नहीं परदेश में कहां जरूरत पड़ जाए. उसी रूमाल में श्रवण के दिए रुपए भी रख लिए. वह डेरे से बाहर आ कर इधरउधर देखने लगीं. आदमियों का रेला एक तरफ तेजी से भागने लगा. वह कुछ समझ पातीं कि चीखपुकार मच गई. पता लगा कि मेले में हाथी बिगड़ जाने से भगदड़ मच गई है. काफी लोग भगदड़ में गिरने के कारण कुचल कर मर गए हैं. सुन कर गोमती का कलेजा मुंह को आने लगा. कहीं उन का श्रवण भी…क्या इसी कारण अभी तक नहीं आया है? उन्होंने एक यात्री के पास जा कर पूछा, ‘‘भैया, यह किस समय की बात है?’’ ‘‘मांजी, शाम 4 बजे नागा साधु हाथियों पर बैठ कर स्नान करने जा रहे थे और पैसे फेंकते जा रहे थे.

उन के फेंके पैसों को लूटने के कारण यह कांड हुआ. जो जख्मी हैं उन्हें अस्पताल पहुंचाया जा रहा है और जो मर गए हैं उन्हें सरकारी गाड़ी से वहां से हटाया जा रहा है. आप का भी कोई है?’’ ‘‘भैया, मेरा बेटा 2 बजे घूमने निकला था और अभी तक नहीं लौटा है.’’ ‘‘उस का कोई फोटो है, मांजी?’’ यात्री ने पूछा. ‘‘फोटो तो नहीं है. अब क्या करूं?’’ गोमती रोने लगीं. ‘‘मांजी, आप रोओ मत. देखो, सामने पुलिस चौकी है. आप वहां जा कर पता करो.’’ गोमती ने चादर समेट कर थैले में रखी और पुलिस चौकी पहुंच कर रोने लगीं. लाउडस्पीकर से कई बार एनाउंस कराया गया. फिर एक सहृदय सिपाही अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर गोमती को वहां ले गया जहां मृतकों को एकसाथ रखा गया था. 1-2 अस्थायी बने अस्पतालों में भी ले गया, जहां जख्मी पड़े लोग कराह रहे थे और डाक्टर उन की मरहमपट्टी करने में जुटे थे. श्रवण का वहां कहीं भी पता न था. तभी गोमती को ध्यान आया कि कहीं श्रवण डेरे पर लौट न आया हो और उन का इंतजार कर रहा हो या उन्हें डेरे पर न पा कर वह भी उन्हीं की तरह तलाश कर रहा हो. हालांकि पुलिस चौकी पर वह अपने बेटे का हुलिया बता आई थीं और लौटने तक रोके रखने को भी कह आई थीं. गोमती ने आ कर मालूम किया तो पता चला कि उन्हें पूछने कोई नहीं आया था. वह डेरे पर गईं. वहां भी नहीं. आधी रात कभी डेरे में, कभी पुलिस चौकी पर कटी. जब रात के 12 बज गए तो पुलिस वालों ने कहा, ‘‘मांजी, आप डेरे पर जा कर आराम करो. आप का बेटा यहां पूछने आया तो आप के पास भेज देंगे.’’

पुत्र के लिए व्याकुल गोमती उसे खोजते हुए डेरे पर लौट आईं. चादर बिछा कर लेट गईं लेकिन नींद आंखों से कोसों दूर थी. कहां चला गया श्रवण? इस कुंभ नगरी में कहांकहां ढूंढ़ेंगी? यहां उन का अपना है कौन? यदि श्रवण न लौटा तो अकेली घर कैसे लौटेंगी? बहू का सामना कैसे करेंगी? खुद को ही कोसने लगीं, व्यर्थ ही कुंभ नहाने की जिद कर बैठी. टिकट ही तो लाया था श्रवण, यदि मना कर देती तो टिकट वापस भी हो जाते. ऐसी फजीहत तो न होती. फिर गोमती को खयाल आया कि कोई श्रवण को बहलाफुसला कर तो नहीं ले गया. वह है भी सीधा. आसानी से दूसरों की बातों में आ जाता है. किसी ने कुछ सुंघा कर बेहोश ही कर दिया हो और सारे पैसे व घड़ीअंगूठी छीन ली हो. मन में उठने वाली शंकाकुशंकाओं का अंत न था. दिन निकला. वह नहानाधोना सब भूल कर, सीधी पुलिस चौकी पहुंच गईं. एक ही दिन में पुलिस चौकी वाले उन्हें पहचान गए थे. देखते ही बोले, ‘‘मांजी, तुम्हारा बेटा नहीं लौटा.’’ रोने लगीं गोमती, ‘‘कहां ढूंढू़ं, तुम्हीं बताओ. किसी ने मारकाट कर कहीं डाल दिया हो तो. तुम्हीं ढूंढ़ कर लाओ,’’ गोमती का रोतेरोते बुरा हाल हो गया. ‘‘अम्मां, धीरज धरो. हम जरूर कुछ करेंगे. सभी डेरों पर एनाउंस कराएंगे. आप का बेटा मेले में कहीं भी होगा, जरूर आप तक पहुंचेगा. आप अपना नाम और पता लिखा दो. अब जाओ, स्नानध्यान करो,’’ पुलिस वालों को भी गोमती से हमदर्दी हो गई थी.

मेरी भाभी ने मेरे साथ जबरन संबंध बनाया है और अब फिर से करीब आना चाहती हैं, क्या करूं?

सवाल
मेरे भाई की शादी के 20 साल बाद भी कोई औलाद नहीं हुई. भाभी ने मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाया, तो एक लड़की पैदा हुई, पर वह 3 दिन बाद ही गुजर गई. लड़की मरने के 4 महीने बाद भाभी फिर से मेरे साथ हमबिस्तरी करना चाहती हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप ने एक बार गुनाह किया है, तो उसे दोहरा भी सकते हैं. लेकिन इस में बहुत खतरा है. पता चलने पर आप की जिंदगी बरबाद हो सकती है.

किसी दूसरे मर्द के साथ शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत भारत की संस्कृति नही देती, फिर भी ये कारण हैं जो महिलाओं को गैर मर्द की तरफ आर्कषित करते है.

अकेलापन

अक्सर काम करने वाले लोग ज्यादा समय तक घर से बाहर रहते है. वह उतना समय अपनी पत्नी को नही दे पाते जितना वह चाहती है. इसलिए वह दूसरे मर्द का सहारा लेती है.

पैसे की चाहत

जब महिलाओं को अपने पति द्वारा ऐसी ऐसो आराम की जिंदगी नही मिलती तो वह किसी दूसरे मर्द की तरफ आर्कषित हो जाती है.

सेक्स संबंधित समस्याएं

कभी-कभी महिलाएं अपने पति के साथ सेक्स संबंध बना कर संतुष्ट नही हो पाती है. उनकी यह असंतुष्टी उने दूसरे मर्द के साथ संबंध बनाने के लिए प्रेरित करती हैं.

पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव

पश्चिमी देशों में शादी के बाद भी एक दूसरे को छोड़ किसी से भी शादी करने की संस्कृति है. ऐसा करना वहां आम बात है , लेकिन भारत में यह अभी आम नही हुई है. यही कारण है कि महिलाएं पश्चिमी सभ्यता की ओर आकर्षित होकर ऐसे कदम उठाती हैं.

बड़े उम्र का जीवनसाथी

कभी कभी अपनी चाहत से ज्यादा या कम उम्र के लड़के के साथ शादी होना भी महिलाओं को दूसरे मर्द के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए प्रेरित करती है.

लाइफ इज गुड फिल्म रिव्यू: जिंदगी जीना सिखाने वाली फिल्म, जैकी श्राफ का शानदार अभिनय

रेटिंग: साढ़े तीन स्टार

निर्माताः आनंद शुक्ला

निर्देशकः अनंत नारायण महादेवन

कलाकारः जैकी श्राफ,रजित कपूर,सुनीता सेनगुप्ता , दर्शन जरीवाला , मोहन कपूर और सानंद वर्मा व अन्य.

अवधिः एक घंटा चालिस मिनट

कोरोना महामारी के दौरान लोगो ने बहुत अवसाद झेला है.कइयों ने अपनो को खोया है.अपनों को खोने के बाद कईयों को अपनी जिंदगी ही निरर्थक व बोझ लगने लगी.लोग अभी भी अपने घावों से उभरने के प्रयास में लगे हुए हैं.ऐसे ही दौर में निर्माता आनंद षुक्ला और निर्देशक अनंत नारायण महादेवन फिल्म ‘‘लाइफ इज गुड’’ लेकर आए हैं,जो कि इंसान को हर मुसीबत व संकट के वक्त जिंदगी जीने की सीख देती है.

यह फिल्म कहती है कि किसी अपने को खोकर अपनी जिंदगी को खत्म मत कीजिए,बल्कि अपने आस पास के लोगों से प्यार कीजिए,जिंदगी के हर छोटे लमहे का आनंद लीजिए.यॅूं तो यह फिल्म कुछ वर्ष पहले प्रदर्षित होने वाली थी,मगर ऐन वक्त पर इसका प्रदर्षन टल गया था.फिर भी यह फिल्म सही समय पर आयी है.यह फिल्म लोगों को जिंदगी के असल मायने और रिष्तों की अहमियत समझाती है.

कहानीः

फिल्म ‘लाइफ इज गुड‘ की कहानी उत्त्र भारत की सुरम्य पहाड़ियो में बसे षांत प्रकृति वाली जगह में पोस्ट आफिस में कार्यरत रामेश्वर (जैकी श्राफ) की है, जो अपनी मां की मौत के बाद अकेला हो जाता है.वह अपनी मां से बहुत प्यार करता था.इसलिए अब उसे लगता है कि उसकी जिंदगी में कुछ नही बचा.किसी काम में मन नहीं लगता.नौकरी भी ठीक से नही करता. और एक दिन वह अपनी जीवन लीला समाप्त करने का प्रयास करता है.पर ऐन वक्त पर एक छह साल की बच्ची मिस्टी (अनन्या) की गेंद से रामेश्वर के मकान का कांच टूट जाता है,और वह जिन दवाओं को खाकर अपनी जिंदगी खत्म करना चाह रहा था,वह जमीन पर गिर जाती हैं.

मिस्टी अपनी गेंद लेन आती है.और मिस्टी की वजह से रामेश्वर की जिंदगी ही बदल जाती है. उसकी अद्भुत भावना और जीवन के लिए उत्साह रामेश्वर को आकर्षित करता है.रामेश्वर को पता चलता है कि मिस्टी की मां की तीन साल की उम्र में ही मौत हो गयी थी.उसके पिता(मोहन कपूर) ने भी उसे छोड़कर किसी अन्य से षादी कर ली थी.अब वह अपनी मौसी के साथ रहती है.फिर भी जिंदगी को लेकर उसके अंदर एक अलग जोश है. रामेश्वर को मिस्टी अपना दोस्त बना लेती है.देखते ही देखते 15 साल बीत जाते हैं.

मिस्टी अपने प्रेमी से षादी कर अमरीका चली जाती है.उसका कन्यादान भी रामेश्वर करते हैं.हर दिन स्काइप पर बात करते हैं.लेकिन एक दिन खबर मिलती है कि एक बेटी को जन्म देते समय मिस्टी की मौत हो गयी.एक बार फिर रामेश्वर अकेला हो जाता है.खुद को अपने घर के अंदर कैद कर लेते हैं.एक दिन मिस्टी का पति व मिस्टी की मौसी, मिस्टी की बेटी को लेकर रामेश्वर के पास पहुॅचती है.उस नन्ही सी बालिका को छूते ही रामेश्वर को एक बार फिर जिंदगी जीने का मसकद मिल जाता है.

निर्देशनः

पत्रकार से अभिनेता,फिर लेखक व निर्देशक बने अनंत नारायण महादेवन हमेषा सामाजिक विशयों पर संवेदनषीलता के साथ फिल्में बनाते आए हैं.फिर चाहे वह ‘मीसिंधुताई सकपाल‘ हो, ‘स्टेइंग एलाइव’ हो,,‘अनामिका ’ हो मशहूर स्वतंत्रता सेनानी पर बनाई फिल्म ‘गौरहरि दास्तां‘ हो या ‘माईघाट‘ व ‘बिटर स्वीट‘ जैसी फिल्में हों.

अनंत नारायण महादेवन की फिल्मों को व्यावसायिक नही माना जाता,मगर उनकी फिल्में लोगों के दिलों को दू जाती है और अब उनकी फिल्म ‘लाइफ इज गुड’ भी लोगों के दिलों को छुएगी. इस फिल्म में भावनाओं का सैलाब है.फिल्म की गति जरुर धीमी है.मगर यदि आप जिंदगी के हर लम्हे को जीना चाहते हंै,हर लम्हे का लुत्फ उठाना चाहते हैं,तो भागमभाग वाली जिंदगी की बजाय ठहर कर चलना ही ठीक रहेगा.

बतौर निर्देशक अनंत नारायण महादेवन ने बहुत बेहतरीन काम किया है. संगीतकार अभिषेक रे कर्णप्रिय गीत व संगीत भी फिल्म का प्लस प्वांइट है.

अभिनयः

रामेश्वर के किरदार में जैकी श्राफ ने षानदार अभिनय किया है.वैसे भी निजी जिंदगी में मस्त मौला और आडंबर विहीन इंसान हैं.जैकी श्राफ का मानना रहा है कि जिंदगी खूबसूरत होती है और जिंदगी के हर एक एक पल को शिद्दत से जीना चाहिए.जब उन्हे अपनी सोच के अनुरूप वाले किरदार को निभाने का अवसर मिला,तो उन्होेने इस किरदार को बाखूबी जिया है.

रजित कपूर,मोहन कपूर व दर्षन जरीवाला अपने छोटे किरदारो में भी छाप छोड़ जाते हैं.

बाल कलाकार अनन्या,सनाया व अंकिता भी अपने अभिनय से मोह लेती हैं.मिस्टी की मौसी के किरदार में सुनीता सेन गुप्ता का अभिनय भी ठीक ठाक है.

ब्लर फिल्म रिव्यू: तापसी पन्नू की इस फिल्म में रहस्य और रोमांच बरकरार नहीं रहता

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः विशाल राणा, तापसी पन्नू, जीस्टूडियो, प्रांजल खढांडिया, टोनी डिसूजा,प्रदीप शर्मा व मानव दुर्गा

निर्देशकः अजय बहल

कलाकारः तापसी पन्नू,गुलशन देवैया,अभिलाश थपलियाल, कृतिका देसाई,नित्या माथुर,राजा सेवक,सुमित निजवान,एस एम जहीर व अन्य.

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

अवधि: दो घंटे 12 मिनट

इन दिनों हर कलाकार अभिनय के अलावा निर्माण या निर्देशन के क्षेत्र में कदम रख रहा है.कुछ दिन पहले अभिनेत्री हुमा कुरेशी व अभिनेता साकिब सलीम की बतौर निर्माता फिल्म ‘‘डबल एक्स एल’’ आयी थी. अब बतौर निर्माता तापसी पन्नू अपनी पहली सस्पेंस,हाॅरर थ्रिलर फिल्म ‘‘ब्लर’’ लेकर आयी हैं,जो कि नौ दिसंबर पर ‘जी 5’ पर स्ट्रीम हो रही है.

इस फिल्म में तापसी पन्नू ने ही मुख्य किरदार निभाया है.यह कोई मौलिक फिल्म नही है.बल्कि 2010 में प्रदर्शित सफलतम स्पैनिश डार्क फिल्म ‘‘जुलियाज आईज’’ का भारतीय करण है.शायद तापसी पन्नू को स्पैनिश फिल्मों से कुछ ज्यादा ही मोह हो गया है.उनकी पिछली फिल्म ‘दो बारा ’ भी स्पैनिा फिल्म ‘मिराज’ की ही रीमेक थी.

कहानीः
फिल्म ‘ब्लर’ की कहानी के केंद्र में दो बहने गौतमी(तापसी पन्नू ) व गायत्री( तापसी पन्नू ) हैं.आदिवासी लोगों के साथ छह माह बिताने के बाद गायत्री अपने पति नील (गुलषन देवैया) के पास दिल्ली लौटी है.गायत्री की आॅंखो की रोशनी धीरे धीरे कम होती जा रही है.रात में गायत्री सपना देखती है कि गौतमी की हत्या हो गयी है.वह उठकर अपनी दृष्टिहीन बहन गौतमी को फोन लगाती है,जो कि एक पहाड़ी शहर नैनीताल में अकेले रह रही है.पर गौतमी फोन नहीं उठाती.तब नील के मना करने के बावजूद गायत्री रात में ही गौतमी से मिलने के लिए निकलती है.तो स्वाभाविक तौर पर नील ही कार चलाता है.दोनों जब गौतमी के घर पहुॅचते हैं,तो गौतमी फांसी के फंदे पर झूलती हुई मिलती है.उसकी मौत हो चुकी होती है.

पुलिस अपनी जांच करती है.पर षक की कोई गुंजाइष नजर नहीं आती.पुलिस इसे आत्महत्या कह कर केस बंद कर देती है.नील भी चाहता है कि अब वापस चला जाए.मगर गायत्री मानने को तैयार नही होती कि उसकी बहन गौतमी ने आत्महत्या की है.गायत्री अपने तरीके ेसे जांच पड़ताल शुरू करती है.तो कई तथ्य सामने आते हैं.यह बात भी सामने आती है कि डाॅ. रमन( राजा सेवक) ने उसकी आंखों का सफल आपरेशन किया था.

गायत्री को गौतमी आदि के बारे में भी पता चलता है.और शक की सुई नील तक पहुॅचती है.पर अचानक नील की भी हत्या हो जाती है.उसके बाद गायत्री सर्तक होकर अपने अभियान में जुट जाती है.इस बीच उसकी आंखों की रोशनी जाती रहती है.डाॅ. रमन ही गायत्री की आंखों का सफल आपरेशन करते हैं.कई घटनाक्रम तेजी से घटित होते हैं और अंततः कातिल पकड़ा जाता है.

निर्देशनः
‘‘बी ए पास’’ और ‘‘सेक्षन 375’’ जैसी फिल्मों के निर्देशक अजय बहल ने ही ‘ब्लर’ का निर्देशन किया है.मगर उनकी पिछली फिल्मों के मुकाबले इस फिल्म में उनका निर्देशन काफी सुस्त है.वह बहुत जल्द फिल्म पर से अपनी पकड़ खो देते है.फिल्म में अंत तक सस्पेंस और रोमांच बरकरार नहीं रहता है. कहानी में नयापन भी नही है.इस तरह की मर्डर मिस्ट्री की तमाम फिल्में बन चुकी हैं.मूल फिल्म ‘‘जूलियास आईज’’ के मुकाबले काफी कमजोर है.फिल्म को बेवजह बहुत ही ज्यादा डार्क बना दिया गया है.गौतमी अंधी हुई थी,तो वही बीमारी गायत्री को भी हो यह लाॅजिक भी गलत है.मिसेस राधा सोलंकी के किरदार को ठीक से विकसित ही नही किया गया है.

फिल्म की पटकथा काफी कमजोर व विखरी हुई हैं.दर्षक समझ ही नहीं पाता यह क्यों हो रहा है.किसी भी दृष्य की अपनी कोई लाॅजिक ही नही है.एक दृष्य में जब गायत्री पुलिस को फोन करती ळै तो पुलिस से मदद की ही गुहार लगाती रहती है,पर पुलिस को यह नही बताती कि वह किस जगह पर है? यह लेखक व निर्देशक दोनों की कमजोरी का परिणाम है. फिल्म का क्लायमेक्स तो घटिया है.कुल मिलाकर तापसी पन्नू का निर्माता बनने का यह प्रयास बुरी तरह से असफल ही कहा जाएगा.

अभिनयः
तापसी पन्नू उन अभिनेत्रियों  में से है,जिन्हे सफलता के लिए किसी सुपर स्टार की जरुरत नही पड़ती.वह एक बेहतरीन अदाकारा हैं,इस बात को वह कई बार साबित कर चुकी हैं.इतना ही नही वह पिछले कुछ समय से लगातार ‘बदला’,‘गेम ओवर’,‘हसीन दिलरूबा’,‘लूप लपेटा’,व ‘दो बारा’ जैसी रोमांचक फिल्में ही करती आ रही हैं.

इस फिल्म में गौतमी व गायत्री के दोहरे किरदार में तापसी पन्नू ने संजीदगी से निभाया है.पर इस फिल्म में उनका अभिनय स्वाभाविक कम बनावटी ज्यादा लगता है.जब आप लगातार एक ही जाॅनर की फिल्में करती रहेंगी,तो बनावटी पन आना स्वाभाविक है.

नील के किरदार में गुलशन देवैया का अभिनय शानदार है,पर उन्हे कुछ करने का ज्यादा मौका ही नही मिला.अभिलाश थपलियाल को पहली बार दीपक के रूप में एक बड़ा किरदार निभाने का अवसर मिला है और उन्होने अपने किरदार के साथ न्याय भी किया है.

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