बिग बॉस 16 : टास्क के दौरान प्रियंका पर यूं चिल्लाए अंकित, देखें वीडियो

बिग बॉस 16: घर में नए कप्तान बने अंकित गुप्ता ने अपना खेल पूरी तरह से बदल दिया है और उनके प्रशंसकों को अभिनेता के इस नए वर्ज़न से प्यार हो गया है. और अब लैटस्ट प्रोमो में, हम अंकित गुप्ता को प्रियंका चाहर चौधरी पर चिल्लाते हुए देखते हैं, जब हर कोई एक-दूसरे पर टूट पड़ता है और प्रियंका मंडली के खिलाफ जाती है. निमृत कौर अहलूवालिया ने अंकित को निशाना बनाते हुए  दावा किया कि वह प्रियंका की वजह से कभी फेयर नहीं खेलेंगे। टास्क के दौरान आप सभी को एक-दूसरे पर कूदते हुए देख सकते हैं और प्रियंका अपनी ऊंची आवाज में अंकित को मंडली की गलती समझाने के लिए आती है.

नए प्रोमो में अंकित गुप्ता ने प्रियंका चौधरी पर भड़के: 

 

 

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अंकित सभी को शांत करने की कोशिश करता है क्योंकि वह यह समझने के लिए कार्य का संचालक है कि क्या गलत हुआ लेकिन प्रियंका चिल्लाती रहती है और अंकित गुस्से में उससे कहता है कि अगर वह अपना मुंह बंद रख सकती है तो ही वह कुछ कह सकता है और यह जवाब अंकित को पसंद आया है शो के दर्शक और वे पहली बार गुस्सा होते देख खुश हैं. अंकित गुप्ता ने अपना खेल 360 डिग्री बदल दिया है और दर्शक उन्हें पसंद कर रहे हैं। लेकिन क्या यह अंकित गुप्ता और प्रियंका चाहर चौधरी की दोस्ती का अंत है?

निराश हुए फैंस: 

 

कुछ दिनों से अंकित गुप्ता और प्रियंका के बीच काफी झगड़े हो रहे हैं और प्रियंका के फैंस उनकी लगातार लड़ाई को देखकर बेहद निराश, और केवल उम्मीद कर रहे हैं कि उनके रिश्ते में सब कुछ बेहतर हो. बिग बॉस के साथ इमोशनल कन्फेशन के दौरान प्रियंका को दिल खोलकर रोते हुए देखा गया था और उन्हें चिंता थी कि अंकित के लिए ओवर प्रोटेक्टिव नेचर बाहरी दुनिया में उनकी छवि कैसे खराब कर रहा है.

सौतेली मां: क्या था अविनाश की गलती का अंजाम- भाग 3

अविनाश उसे अच्छा तो लग रहा था, पर 40 की उम्र में ब्याह करना उसे खलने लगा था. बालबच्चों वाला एक परिवार…साथ में बड़ों की छत्रछाया और एक समझदार आदमी का जिंदगी भर का साथ…उस ने हामी भर दी और इस अनजान घर में आ गई. पहले से परिचय की क्या जरूरत है, अविनाश ने मना कर दिया था.

उस ने कहा था, ‘‘जानती हो संविधा, अचानक आक्रमण से विजय मिलती है. अगर पहले से बात करेंगे तो रुकावटें आ सकती हैं. बच्चे भी पूर्वाग्रह में बंध जाएंगे. तुम एक बार किसी से मिलो और उसे अच्छी न लगो, ऐसा नहीं हो सकता. यह अलग बात है कि तुम्हें मेरे बच्चे न अच्छे लगें.’’

तब संविधा ने खुश हो कर कहा था, ‘‘तुम्हारे बच्चे तो अच्छे लगेंगे ही.’’

‘‘बस, बात खत्म हो गई. अब शादी कर लेते हैं.’’ अविनाश ने कहा.

फिर दोनों ने शादी कर ली.

संविधा ने पहला दिन तो अपना सामान लाने और उसे रखने में बिता दिया था पर चैन नहीं पड़ रहा था. बच्चे सचमुच बहुत सुंदर थे, पर उस से बिलकुल बात नहीं कर रहे थे. चौकलेट भी नहीं ली थी. बड़ी बेटी ने स्थिर नजरों से देखते हुए कहा था, ‘‘मेरे दांत खराब हैं.’’

संविधा ढीली पड़ गई थी. अविनाश से शिकायत करने का कोई मतलब नहीं था. वह बच्चों से बात करने के लिए कह सकता है. बच्चे बात तो करेंगे, पर उन के मन में सम्मान के बजाए उपेक्षा ज्यादा होगी. ऐसे में कुछ दिनों इंतजार कर लेना ज्यादा ठीक रहेगा. पर बाद में भी ऐसा ही रहा तो? छोड़ कर चली जाएगी.

रोजाना कितने तलाक होते हैं, एक और सही. अविनाश अपनी बूढ़ी मां और बच्चों को छोड़ कर उस के साथ तो रहने नहीं जा सकता. आखिर उस का भी तो कुछ फर्ज बनता है. ऐसा करना उस के लिए उचित भी नहीं होगा. पर उस का क्या, वह क्या करे, उस की समझ में नहीं आ रहा था. वह बच्चों के लिए ही तो आई थी. अब बच्चे ही उस के नहीं हो रहे तो यहां वह कैसे रह पाएगी.

दूसरा दिन किस्सेकहानियों की किताबें पढ़ कर काटा. मांजी से थोड़ी बातचीत हुई. पर बच्चों ने तो उस की ओर ताका तक नहीं. फिर भी उसे लगा, सब ठीक हो जाएगा. पर ठीक हुआ नहीं. पूरे दिन संविधा को यही लगता रहा कि उस ने बहुत बड़ी गलती कर डाली है. ऐसी गलती, जो अब सुधर नहीं सकती. इस एक गलती को सुधारने में दूसरी कई गलतियां हो सकती हैं.

दूसरी ओर बच्चे अपनी जिद पर अड़े थे. जैसेजैसे दिन बीतते गए, संविधा का मन बैठने लगा. अब तो उस ने बच्चों को मनाने की निरर्थक चेष्टा भी छोड़ दी थी. उसे लगने लगा कि कुछ दिनों के लिए वह भाई के पास आस्ट्रेलिया चली जाए. पर वहां जाने से क्या होगा? अब रहना तो यहीं है. कहने को सब ठीक है, पर देखा तो बच्चों की वजह से कुछ भी ठीक नहीं है. फिर भी इस आस में दिन बीत ही रहे थे. कभी न कभी तो सब ठीक हो ही जाएगा.

उस दिन शाम को अविनाश को देर से आना था. उदास मन से संविधा गैलरी में आ कर बैठ गई. अभी अचानक उस का मन रेलिंग पर सिर रख कर खूब रोने का हुआ. कितनी देर हो गई उसे याद ही नहीं रहा. अचानक उस के बगल से आवाज आई, ‘‘आप रोइए मत.’’

संविधा ने चौंक कर देखा तो अनुष्का खड़ी थी. उस ने हाथ में थामा चाय का प्याला रखते हुए कहा, ‘‘रोइए मत, इसे पी लीजिए.’’

ममता से अभिभूत हो कर संविधा ने अनुष्का को खींच कर गोद में बैठा कर सीने से लगा लिया. इस के बाद उस के गोरे चिकने गालों को चूम कर वह सोचने लगी, ‘अब मैं मर भी जाऊं तो चिंता नहीं है.’

तभी अनुष्का ने संविधा के सिर पर हाथ रख कर सहलाते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारी मम्मी ही तो हूं, इसलिए तुम मम्मी कह सकती हो.’’

‘‘पर दीदी ने मना किया था,’’ सकुचाते हुए अनुष्का ने कहा.

‘‘क्यों?’’ मन का बोझ झटकते हुए संविधा ने पूछा.

‘‘दीदी, आप से और पापा से नाराज हैं.’’

‘‘क्यों?’’ संविधा ने फिर वही दोहराया.

‘‘पता नहीं.’’

‘‘तुम मान गई न, अब दीदी को भी मैं मना लूंगी.’’ खुद को संभालते हुए बड़े ही आत्मविश्वास के साथ संविधा ने कहा.

संविधा की आंखों में झांकते हुए अनुष्का ने कहा, ‘‘अब मैं जाऊं?’’

‘‘ठीक है, जाओ.’’ संविधा ने प्यार से कहा.

‘‘अब आप रोओगी तो नहीं?’’ अनुष्का ने पूछा.

‘‘नहीं, तुम जैसी प्यारी बेटी को पा कर भला कोई कैसे रोएगा.’’

छोटेछोटे पग भरती अनुष्का चली गई. नन्हीं अनुष्का को बेवफाई का मतलब भले ही पता नहीं था, पर उस के मन में एक बोझ सा जरूर था. उस ने बहन से वादा जो किया था कि वह दूसरी मां से बात नहीं करेगी. पर संविधा को रोती देख कर वह खुद को रोक नहीं पाई और बड़ी बहन से किए वादे को भूल कर दूसरी मां के आंसू पोंछने पहुंच गई.

जाते हुए अनुष्का बारबार पलट कर संविधा को देख रही थी. शायद बड़ी बहन से की गई बेवफाई का बोझ वह सहन नहीं कर पा रही थी. इसलिए उस के कदम आगे नहीं बढ़ रहे थे.

बिग बॉस 16: अर्चना ने ’50 शेडस ऑफ ग्रे’ के हीरो से की अंकित की तुलना

बिग बॉस 16 गेम में 360 डिग्री का बदलाव देखा गया है. लंबे समय बाद चार लोगों की टीम में से कोई घर का कप्तान बना है. अंकित गुप्ता ने कप्तानी का कार्य जीता और घर के नए राजा बने.  वह अब राज करने जा रहे है. बिग बॉस 16 में अंकित गुप्ता का सफर धीमा और स्थिर रहा है, अब वह खुलने लगे  है. उन्हे इतना पसंद किया जा रहा है की अर्चना गौतम ने उनकी तुलना 50 शेड्स ऑफ ग्रे के जेमी डोनर्न से भी कर दी.

 

 

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अर्चना को लगता की अंकित जेमी डोनर्न की तरह दिखते है:

ऐसा तब होता है जब अर्चना गौतम और प्रियंका चाहर चौधरी, अंकित गुप्ता के बारे में चर्चा कर रही होती है. अर्चना कहती है की अगर उन्हे अंकित जैसा आदमी उनकी जिंदगी में मिले तो वह क्या करेंगी. वह इसे सुनती है और कहती है की अगर ऐसा हर रात होता है तो वे नशे में हो जाएंगे और शरारती बात करेंगे. वह ऐसा कार्य करता है जैसे वह चाबुक मार रहा हो. इसके बाद अर्चना इसमे शामिल हो जाती है. वह कहती है, ‘मैं इसके साथ ठरकी हो रखी हु’ और खूब हस्ती हूं.

 

 

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घरवालों पर भड़कीं अर्चना:

बिग बॉस के घर का एक वीडियो सोशल मीडिया के चक्कर काट रहा है. इस वीडियो के मुताबिक, अर्चना घरवालों की क्लास लगाती नजर आ रही है. अर्चना सभी को रोटियां बर्बाद करने को लेकर डांट रही हैं. अर्चना ने रूम में आकर सभी पर उंगली उठाते हुए कहा- रोटियां रखी हुई हैं, कम से कम ये देख लेना कि आप जो लोग रोटी बचाते हो, वो कितनी बेकार तरीके से रखी हुई है. किसी-किसी को रोटियां मिलती भी नहीं है. यहां तक कि दाल सबकुछ रखी हुई है

बिग बॉस 16: परेशान होकर घर छोड़ेंगे Mc स्टेन, 2 करोड़ रुपए देने के लिए तैयार!

टीवी का सबसे विवादित रीऐलिटी शो बिग बॉस 16 में आए दिन कुछ नया देखने को मिल रहा है. सलमान खान के इस शो में अब अंकित गुप्ता का राज कायम हो गया है. बीते दिन कैप्टन्सी को लेकर एक टास्क हुआ जिसमे शालिन भनोट, प्रियंका चाहर चौधरी, अंकित गुप्ता और सुंबुल तौकीर खान ने हिस्सा लिया. वहीं बाकी घरवालों ने इन सभी की मदद की. इस दौरान शालिन, प्रियंका और अंकित ने ग्रुप बनाकर पहले राउन्ड में सुंबुल तौकीर को टार्गेट किया और उन्हे इस कार्य से बाहर कर दिया. बता दे लास्ट में अंकित गुप्ता ने सभी को हराकर कप्तानी अपने नाम कर ली. इस बीच एमसी स्टेन अपने एक बयान की वजह से चर्चा में आ गए है. उन्होंने शो को लेकर ऐसी बात कह दी है की उनके फैंस परेशान हो गए है.

 

 

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बिग बॉस छोड़ देंगे एमसी स्टेन:

दरअसल, निमृत कौर, शिव ठाकरे, अबदू रोजिक एक दूसरे से बात कर रहे थे. इस दौरान एमसी स्टेन, निमृत से कहते है की वो ये शो छोड़ देंगे. उनका यहां मन नहीं लग रहा है. उन्होंने कहा की वो 2 करोड़ रुपए देकर इस शो से बाहर हो जाएंगे. इस दौरान निमृत उन्हे समझाती नजर आई. बता दे की इससे पहले भी कई बार एमसी स्टेन शो छोड़ेंने की बात कर चुके है. हालंकि अभी तक ये साफ नहीं हुआ की वो बिग बॉस 16 को छोड़ेंगे या नहीं.

अंकित गुप्ता ने तोड़ा सौन्दर्या शर्मा का दिल:

 

अंकित गुप्ता की वजह से सौन्दर्या शर्मा का दिल टूट गया है. दरअसल, कप्तान बनने के बाद अंकित को किसी दो सदस्य को नॉमिनटीऑन से बचाना था. इस दौरान उन्होंने प्रियंका चाहर और साजिद खान का नाम लिया. वहीं अंकित का ये फैसला सौन्दर्या को बिल्कुल भी पसंद नहीं आया. सौन्दर्या ने कहा की अंकित को कप्तान का टास्क जीतने में बहुत मेहनत की थी. इसके बाद भी अंकित ने नॉमिनटीऑन से उन्हे सेफ नहीं किया.

मैं अपनी गर्लफ्रैंड से शादी करना चाहता हूं पर उसे थोड़ा टाइम चहिए, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 28 वर्षीय आकर्षक युवक हूं. कई गर्लफ्रैंड्स रहीं लेकिन अब मैं लाइफ में सैटल होना चाहता हूं. पड़ोस का घर खाली था. वहां नई फैमिली आई है. उन से मेरी दोस्ती हो गई. उन के बच्चों को पढ़ाने ट्यूटर आती है और उस से भी दोस्ती हो गई जो प्यार में बदल गई. अब मैं जल्द से जल्द उस से शादी करना चाहता हूं लेकिन वह थोड़ा टाइम चाहती है. मैं उसे खोना नहीं चाहता. डर लगता है कहीं उस का मन बदल न जाए. ऐसा क्या करूं कि उसे मुझ पर, मेरे प्यार पर भरोसा हो जाए और झट से शादी के लिए हां कर दे?

जवाब

वैसे तो आप को अपने प्यार पर भरोसा होना चाहिए. प्यार दोनों तरफ से होता है. फिलहाल, वह लड़की भी आप को पसंद करती है, प्यार करती है लेकिन शादी करने से पहले आप को अच्छी तरह जांचपरखना चाहती है, इसलिए उसे अभी थोड़ा टाइम चाहिए.

देखिए, आप को उन गलतियों को करने से बचना है जो रिश्ते को कमजोर बना सकती हैं. उन आदतों से बचने की सलाह हम आप को दे रहे हैं जो आप के पार्टनर को परेशान कर सकती हैं. पहली, लगातार फोन और मैसेज कर के परेशान करना, ऐसा करना आप के पार्टनर को नाराज कर सकता है. हर किसी को अपनी पर्सनल स्पेस की जरूरत होती है.

दूसरी, पास्ट के बारे में सवाल करने की आदत से बचें. आप उस के अतीत के बारे में जितना जानते हैं, उतने में संतुष्ट रहें.

तीसरी, बातबात पर उसे ताना न मारें. यदि उस ने आप की कोई इच्छा पूरी न की हो तो ताना मार कर इस बात का बारबार एहसास न कराएं.

चौथी, अगर आप हर बात पर पैसे को ले आते हैं तो आप के बीच चीजें बिगड़ सकती हैं. प्यार अपनी जगह है और पैसा अपनी.

पांचवीं, पारिवारिक चर्चाओं को कम करें. पहले एकदूसरे को बेहतर तरीके से जानने की कोशिश करें और साथ में समय बिताएं.

इन बातों के अलावा अपने पार्टनर को स्पैशल फील कराएं. उस की समस्या को समझें और उस का साथ दें. कभीकभी उस की तारीफ भी करें.

सम्मान: क्यों आसानी से नही मिलता सम्मान- भाग 3

हम सभी दर्शक दीर्घा में बैठे जब तालियां बजाने में सुस्ती दिखाते तो वे जोर से कहते, ‘‘जोरदार तालियां होनी चाहिए?’’ फिर भी करतल ध्वनि उन के हिसाब से नहीं बजती तो वे कह उठते, ‘भारत माता की’  सब को ‘जय’ कहना ही पड़ता.

अंत में उन्होंने लेखकों की निरंतर बढ़ती जनसंख्या पर हर्ष व्यक्त करते हुए कहा कि वे सौ सम्मान और बढ़ाएंगे जो हिंदी व इंग्लिश के लेखकों, देश के तमाम प्रधानमंत्रियों के नाम पर दिए जाएंगे. हां, बढ़ती महंगाई के कारण उन्होंने प्रविष्टि शुल्क बढ़ाने पर जोर दिया और इसे संस्था की मजबूरी बताया. उन्होंने लेखकों से सहयोग शुल्क, चंदा, आर्थिक सहयोग भेजते रहने की अपील की ताकि पुरस्कार पाने के इच्छुक (लालची) लेखकों की यह संस्था अनवरत चलती रहे.

उन्होंने पूरी बेशर्मी के साथ यह भी कहा कि पुरस्कार पाने के लिए संस्था पर दबाव न डालें. हम निष्पक्ष हो कर श्रेष्ठता के आधार पर चयन करते हैं. आर्थिक सहयोग दे कर अपनी उदारता दिखाएं.

मैं बैठा सोच रहा था कि पैसा कमाने की कला हो, तो लोग साहित्यकारों की जेब से भी पैसा निकाल कर कमा लेते हैं. सम्मान की भूख ने कितनी सारी दुकानें खुलवा दीं. दुकानदारों को तो शर्म आने से रही. हम लेखक हो कर इतने बेशर्म कैसे हो सकते हैं? अंत में उन्होंने यही कहा कि पढ़ने वालों की कमी है. यह चिंता का विषय है. कुछ सरकार को कोसते रहे. कुछ सिनेमा और टीवी को दोष देते रहे. इस तरह प्रत्येक मुख्य अतिथि कम से कम 45 मिनट बोलता रहा और दर्शक दीर्घा में बैठे लेखक ताली बजाबजा कर थक चुके थे, जिन में एक मैं भी था.

अब शहर के व शहर के बाहर के एकदो लेखकों, जोकि नए थे और जिन की पुस्तक का प्रकाशन इसी संस्था ने किया था, की पुस्तकों के विमोचन का कार्य आरंभ हुआ. 2 नवोदित लेखिकाएं मंच पर आईं. उन की पुस्तकों के विमोचन के साथ संस्था के सभी सदस्य फोटो खिंचवाते रहे काफी देर तक. फिर संस्था के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, उपसचिव, कोषाध्यक्ष और संस्था के अन्य लोगों ने अपने विचार रखे या कहें कि हम पर थोपे. वे बोलते रहे. हम सब सुनते रहे. वे जानते थे कि हम कहीं नहीं जाएंगे क्योंकि हम सब सम्मान लेने के लिए बैठे थे.

अब हम लेखकों को संबोधित करते हुए कहा गया कि यदि आप सम्मान लेते हुए अपना फोटो चाहें तो कोषाध्यक्ष जोकि मंच पर एक कोने में बैठे हैं प्रति फोटो उन के पास सौ रुपए जमा कर दें. फोटो आप के पते पर भेज दी जाएगी.

समय अधिक होने के कारण मुख्य अतिथि एकएक कर के बहाना बना कर निकलने लगे थे. और फिर हम सब के नाम पुकारे जाने लगे. एक लेखक सम्मानित होने के लिए मंच पर पहुंच नहीं पाता कि दूसरे का नाम ले लिया जाता. लग रहा था कि संस्था ने जितने समय के लिए स्कूल का सभागृह किराए पर लिया था, वह पूर्ण होने वाला था या हो चुका था. एक वयोवृद्ध लेखक को यह कह कर रोक लिया गया था कि आप सम्मान करने में सहयोग करें, फिर आप का सम्मान भी होगा.

करीब 15 मिनट में ही दर्शक दीर्घा में बैठे 50 लेखकों का सम्मान निबटा दिया गया. शौल, फूलमाला स्मृतिचिह्न हाथ में थमा दिया गया और दूसरे हाथ में प्रमाणपत्र दे कर तीव्र गति से कैमरामैन फोटो खींचता व इतने में दूसरेतीसरे लेखक मंच पर खड़े हो कर अपनी प्रतीक्षा करते. फिर हम सब को बैठने को कहा गया…भागने के लिए जगह नहीं थी वरना तो कब का निकल कर भाग चुके होते.

हमें बधाई देते हुए आगे भी सहयोग बनाए रखने की अपील की गई. इस के बाद वयोवृद्ध लेखक का सम्मान किया गया. कार्यक्रम तेजी से समाप्त हो गया. बैनर, पोस्टर, कुरसियां तेजी से उठाई जाने लगीं.

मैं अंत में बाहर निकला. मुझे संस्था अध्यक्ष और सचिव की बातें सुनाई दीं. उन्हें मैं दिखाई नहीं दिया.

‘‘कितना बचा? आपस में बांटने पर सब को कितना मिलेगा.’’

‘‘2-2 हजार रुपए सब के हिस्से आएंगे. 20 हजार रुपए बचे हैं. आज रात को जबरदस्त पार्टी होगी. है न बढि़या धंधा. नाम का नाम, पैसे के पैसे. उस पर साहित्यिक संस्था चलाने से शहर के बड़ेबड़े लोगों से परिचय. उन में अपनी धाक.’’

‘‘यार, अगली बार सम्मानित करने वालों से रजिस्ट्रेशन शुल्क ज्यादा लो.’’

‘‘जैसेजैसे सम्मान के इच्छुक बढ़ेंगे, राशि भी बढ़ा देंगे.’’

‘‘लेखक लोग देंगे बड़ी राशि? इतने में ही तो बहस करते हैं वे.’’

‘‘लेखकों की कोई कमी थोड़े ही है. ढेर मिलते हैं. सम्मान किसे नहीं चाहिए होता है?’’

‘‘और जिन्हें मंच पर बोलने का शौक है वे भी दान, चंदा देते हैं. अपने दुश्मनों के विरुद्ध बोलते हैं. अपने व्यवसाय, व्यक्तित्व का बढ़चढ़ कर ब्योरा देते हैं. उन्हें ऐसा मंच कहां मिलेगा?’’

मैं इतना ही सुन पाया. थकाहारा होटल पहुंचा. वहां से स्टेशन पहुंचा. ट्रेन में धक्के खाते घर पहुंचा. घर में, दोस्तों में, सम्मान मिलने पर तारीफ हुई. मुझे समझ नहीं आया कि मेरा सम्मान हुआ था या अपमान.

सम्मान की भूख से कलम चलाने वालों के सम्मान के नाम पर कितने सारे लोग अपनी साहित्यिक दुकानें चला रहे हैं. जहां भूख होती है वहां ढाबे अपनेआप खुल जाते हैं. सेवा की आड़ ले कर व्यापार किया जा सकता है. जब तक हम जैसे सम्मान के भूखे लेखक जिंदा हैं, व्यापारियों की साहित्य सेवा की दुकानें चलती रहेंगी. अच्छा होगा कि लेखक, खासकर नए लिखने वाले, सम्मान लेने, सम्मानपत्रों की संख्या बढ़ाने के बजाय अपने लेखन पर ध्यान दें ताकि सच्चा लेखन हो सके.

अपने अपमान के और लोगों के साहित्यिक ढाबे चलाने के जिम्मेदार हम खुद हैं. आनेजाने का खर्चा, लौज में रुकने का खर्चा, भोजन, प्रविष्टि शुल्क मिला कर 5 हजार रुपए खर्च हो गए और हाथ आया एक व्यापारी द्वारा दिया हुआ सम्मानपत्र, वह भी हमारे ही पैसों से. कई दिन मन खराब रहा और बहुत विचार के बाद मैं ने अपनी आत्मग्लानि दूर करने के लिए सम्मानपत्र उठा कर पास की नदी में फेंक दिया.

अब जब भी ऐसे लुभावने सम्मान के पत्र, एसएमएस, फोन आते हैं तो गालियां देने को मन करता है. जी तो करता है कि सामने मिल जाएं तो कूट दूं सालों को. लेकिन मैं चुप रह कर आए पत्रों को तुरंत फाड़ कर फेंकता हूं. इस के बाद भी कोई मुझे जानवर समझ कर, कसाई बन कर पकड़ लेता है तो फिर मैं आवाज बदल कर कहता हूं कि जिन को आप पूछ रहे हैं, पिछले हफ्ते ही मर चुके हैं वे. उस तरफ से बिना शोक व्यक्त किए कहा जाता है कि आप चाहें तो अपने पिता की स्मृति में सम्मान दे सकते हैं. आप स्वयं सम्मान चाहें तो भी हम दे सकते हैं. ऐसे में मैं गुस्से से मोबाइल पटक देता हूं जोर से.

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