गुनहगार पति: भाग 2

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अब तक पुलिस टीम को दिव्या की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई थी. रिपोर्ट के मुताबिक दिव्या की मौत सिर में गंभीर चोट लगने से हुई थी. उस का गला भी कसा गया था. बलात्कार की पुष्टि नहीं हुई थी, फिर भी स्लाइड बना ली गई थी.

पुलिस टीम को मृतका के पति पर शक था. अत: पुलिस टीम ने अजितेश और दिव्या के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवा कर गहनता से छानबीन की तो पता चला अजितेश 4 मोबाइल नंबरों पर ज्यादा बातें करता था, जिस में एक नंबर उस की पत्नी दिव्या का था, दूसरा उस के पिता प्रमोद मिश्रा का था. तीसरे और चौथे नंबर संदिग्ध थे.

इन संदिग्ध नंबरों के विषय में पूछने पर अजितेश ने बताया कि ये नंबर एफएम टीवी न्यूज चैनल में उस के साथ काम करने वाली भावना आर्या तथा दोस्त अखिल कुमार के हैं. इस में भावना आर्या के फोन पर अजितेश की लगभग हर रोज बातें होती थीं.

टीवी चैनल की मेकअप आर्टिस्ट से था चक्कर

कहीं भावना व अजितेश के बीच नाजायज संबंधों का मकड़जाल तो नहीं? इस की जानकारी करने पुलिस टीम 16 अक्तूबर, 2019 को एफएम टीवी न्यूज चैनल के सेक्टर-63 नोएडा स्थित औफिस पहुंची और कई लोगों से पूछताछ की. पता चला कि भावना आर्या और अजितेश के बीच कुछ ज्यादा ही गहरे प्रेम संबंध हैं.

इन संबंधों के कारण पतिपत्नी के बीच तनाव बढ़ गया था. अखिल दोनों के प्यार की धुरी बना हुआ था. यह जानकारी भी मिली कि अजितेश की पत्नी दिव्या अखिल को अपना मुंहबोला भाई मानती थी और उसे राखी बांधती थी.

यह पता चलते ही पुलिस टीम ने भावना आर्या और अखिल कुमार को उन के कार्यालय से हिरासत में ले लिया और उन्हें ले कर इटावा आ गई. पुलिस ने सिविल लाइंस कोतवाली में अजितेश को भी बुलवा लिया. अजितेश का सामना भावना आर्या और अखिल से हुआ तो उस का चेहरा फीका पड़ गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले अखिल से पूछताछ की. अखिल पहले तो पुलिस टीम को बरगलाता रहा और कहता रहा कि दिव्या उस की मुंहबोली बहन थी. भला एक भाई अपनी बहन की हत्या कैसे कर सकता है.

लेकिन जब पुलिस टीम ने उस पर सख्ती की तो वह टूट गया. उस ने दिव्या की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि हत्या का षडयंत्र अजितेश और उस की प्रेमिका भावना आर्या ने रचा था. पैसों का लालच दे कर उसे दिव्या की हत्या के लिए इटावा भेजा गया था. अखिल ने स्वीकार कर लिया कि दिव्या की हत्या उस ने ही की थी.

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अखिल के बाद अजितेश और भावना ने भी जुर्म कबूल कर लिया. भावना ने बताया कि वह अजितेश से प्यार करती थी. दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन अजितेश की पत्नी दिव्या उस के प्यार में बाधक थी, इसलिए षडयंत्र रच कर उस को मरवा दिया.

अजितेश ने बताया कि उस की शादी को 3 वर्ष बीत चुके थे, लेकिन दिव्या संतान सुख नहीं दे पाई, जिस से वह उस से दूर भागने लगा. इसी बीच साथ काम करने वाली भावना से उस की दोस्ती हुई. दोस्ती प्यार में बदल गई और दोनों शादी करने को राजी हो गए. लेकिन इस में पत्नी दिव्या दीवार बन गई थी, इसलिए उसे रास्ते से हटा दिया गया.

न्यूज एंकर और उस की प्रेमिका ने स्वीकारा जुर्म

पुलिस टीम ने दिव्या हत्याकांड का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा को दे दी. मिश्राजी ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित कर अभियुक्तों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. प्रैसवार्ता में एसएसपी ने घटना का खुलासा करने वाली टीम को 15 हजार रुपए पुरस्कार देने की भी घोषणा की.

चूंकि कातिलों ने हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, अत: पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी के तहत अजितेश मिश्रा, भावना आर्या तथा अखिल कुमार सिंह को नामजद कर के उन्हें विधिसम्मत बंदी बना लिया. पुलिस जांच से पति द्वारा पत्नी की हत्या किए जाने की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई.

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाना अंतर्गत एक मोहल्ला कटरा बलसिंह पड़ता है. शहर के बीचोंबीच स्थित इस मोहल्ले में प्रमोद कुमार मिश्रा अपने परिवार के साथ रहते थे.

उन के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा 3 बेटे थे, जिस में अजितेश सब से छोटा था. प्रमोद कुमार मिश्रा कर्वा खेड़ा जनता माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे, किंतु अब रिटायर हो चुके थे. मोहल्ले में उन की अच्छी प्रतिष्ठा थी. उन का अपना 3 मंजिला मकान था. उन की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी.

प्रमोद कुमार मिश्रा स्वयं उच्चशिक्षा प्राप्त थे, अत: उन्होंने तीनों बेटों को उच्चशिक्षा दिलाई थी. उन के 2 बेटे पढ़लिख कर नासिक में नौकरी करने लगे थे. उन्होंने दोनों बेटों की शादी भी अच्छे घरानों में की थी. होली दीवाली जैसे बड़े त्यौहारों पर बेटेबहू इटावा आते थे और घर में खुशियां मनाते थे.

अजितेश अपने अन्य भाइयों की अपेक्षा ज्यादा स्मार्ट तथा तेजतर्रार था. अजितेश पढ़लिख कर एफएम टीवी न्यूज चैनल नोएडा में काम करने लगा था. वह वहां न्यूज एंकर था. अजितेश कमाने लगा तो प्रमोद मिश्रा ने उस की शादी इटावा की ही फ्रैंड्स कालोनी निवासी राजीव तिवारी की बेटी दिव्या से सन 2015 में कर दी. दिव्या एमए की पढ़ाई कर रही थी. दिव्या बेहद खूबसूरत थी.

खूबसूरत पत्नी पा कर जहां अजितेश खुश था, वहीं उस के मातापिता भी फूले नहीं समा रहे थे. दिव्या ने ससुराल आते ही घर संभाल लिया था. वह पति का तो खयाल रखती ही थी, सासससुर की सेवा में भी कोई कोरकसर नहीं छोड़ती थी. वह अपनी ददिया सास का भी पूरा खयाल रखती थी.

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दिव्या कुछ महीने ससुराल में रही, उस के बाद नोएडा चली गई और पति अजितेश के साथ रहने लगी. दिव्या और अजितेश का वैवाहिक जीवन सुखमय बीतने लगा. अजितेश को जब समय मिलता, वह दिव्या को सैरसपाटे के लिए भी ले जाता था.

दिव्या अखिल को मानती थी भाई

दिव्या के नोएडा स्थित घर पर अखिल कुमार सिंह का आनाजाना लगा रहता था. अखिल कुमार दिव्या के पति अजितेश के साथ चैनल में काम करता था. दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी.

अखिल दिव्या को बहन मानता था. दिव्या ने भी उसे मुंहबोला भाई बना लिया था. अखिल मूलरूप से अमर नगर, फरीदाबाद का रहने वाला था और अजनारा हाउस, ग्रेटर नोएडा में रहता था. दिव्या अखिल को अपना विश्वासपात्र मानती थी.

सुखमय जीवन व्यतीत करते 3 साल कब बीत गए, इस का अजितेश और दिव्या को पता ही नहीं चला. लेकिन इन 3 सालों में दिव्या मां नहीं बन सकी थी. जहां दिव्या के मन में गोद सूनी होने का दर्द था तो वहीं अजितेश के मन में भी मलाल था कि वह अभी तक बाप नहीं बन सका.

ऐसा नहीं था कि दिव्या ने अपना इलाज न कराया हो पर वह संतान सुख प्राप्त नहीं कर सकी थी. दिव्या जब भी ससुराल जाती तो सास उसे टोकती, ‘‘बहू, तू खुशखबरी कब देगी. खुशखबरी सुनने के लिए मेरे कान तरस रहे हैं.’’

दिव्या लजातेसकुचाते हुए सास को जवाब दे देती. धीरेधीरे अजितेश के मन में यह बात घर कर गई कि शायद दिव्या अब कभी मां नहीं बन पाएगी. इस टीस ने दोनों के प्यार में दरार पैदा कर दी. अब अजितेश दिव्या से दूर भागने लगा. मन ही मन वह उस से नफरत करने लगा.

अजितेश और भावना इस तरह आए नजदीक

उन्हीं दिनों अजितेश की नजर खूबसूरत भावना आर्या पर पड़ी. भावना आर्या के पिता ललित नारायण आर्या नई दिल्ली स्थित नैशनल स्टेडियम में नौकरी करते थे. भावना आर्या उन की लाडली बेटी थी. वह पढ़ीलिखी और तेजतर्रार थी. भावना भी एमएम टीवी न्यूज चैनल में मेकअप आर्टिस्ट थी. अजितेश और भावना एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते थे. अकसर दोनों के बीच बातें होती रहती थीं.

इन्हीं बातों के चलते अजितेश भावना को चाहने लगा. वैसे तो वह कई सालों से उसे देखता आ रहा था, लेकिन उस के मन में भावना के प्रति प्यार तब जागा, जब संतान न होने पर पत्नी से उस की दूरियां बढ़ीं.

टीवी चैनल में मेकअप आर्टिस्ट होने की वजह से भावना का रहनसहन और व्यवहार उसी तरह का हो गया था. वह बनसंवर कर घर से आती थी तो देर रात को ही घर लौटती.

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भावना की खूबसूरती अजितेश को अपनी ओर आकर्षित करने लगी थी. दिल के हाथों मजबूर अजितेश भावना का सामीप्य पाने को बेचैन रहने लगा था. इस के लिए वह भावना से नजदीकियां बढ़ाने लगा था, लेकिन वह उस से दिल की बात कह नहीं पा रहा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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गुनहगार पति: भाग 1

उस दिन अक्तूबर 2019 की 14 तारीख थी. इटावा कोतवाली प्रभारी निरीक्षक अनिलमणि त्रिपाठी अपने कार्यालय में बैठे थे. शाम करीब 4 बजे एक उम्रदराज व्यक्ति उन के पास आया. उस के चेहरे से भय व दुख साफ झलक रहा था. त्रिपाठी ने उसे सामने पड़ी कुरसी पर बैठने का इशारा किया फिर पूछा, ‘‘आप कुछ परेशान दिख रहे हैं. बताइए, क्या बात है?’’

‘‘सर, मेरा नाम प्रमोद कुमार मिश्रा है और मैं शहर के कटरा बलसिंह मोहल्ले में रहता हूं. मेरी बहू दिव्या मिश्रा की किसी ने हत्या कर दी है.’’ उस ने बताया.

शहर के बीचोंबीच स्थित मोहल्ले में दिनदहाड़े महिला की हत्या की बात सुन कर कोतवाल अनिलमणि त्रिपाठी चौंक पड़े. उन्होंने महिला की हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी, फिर आवश्यक पुलिस के साथ कटरा बलसिंह मोहल्ला स्थित प्रमोद कुमार मिश्रा के मकान पर पहुंच गए.

उस समय घर के बाहर भीड़ जुटी थी. प्रमोद कुमार मिश्रा कोतवाल को तीसरी मंजिल पर स्थित उस कमरे में ले गए, जहां उन की बहू दिव्या की लाश पड़ी थी. लाश खून से लथपथ थी.

उस के सिर के पिछले भाग में चोट का गहरा निशान था. लाश के पास ही चीनी मिट्टी का बना फूलदान टूटा पड़ा था. संभवत: उसी गुलदस्ते से प्रहार कर उस की हत्या की गई थी. कमरे का सामान अस्तव्यस्त था. देखने से प्रतीत होता था कि दिव्या ने हत्यारे से संघर्ष किया था.

कोतवाल अनिलमणि त्रिपाठी अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एएसपी (सिटी) डा. रामयश सिंह, एएसपी (ग्रामीण) रामबदन सिंह तथा सीओ चंद्रपाल सिंह वहां आ गए. पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक तथा डौग स्क्वायड टीम को भी मौके पर बुला लिया.

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पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. इसी दौरान अधिकारियों ने मृतका की देह में कुछ हरकत महसूस की. जीवित होने की संभावना पर दिव्या को आननफानन में जिला अस्पताल भेजा गया, लेकिन डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया.

फोरैंसिक टीम ने जहां घटनास्थल की गहन जांच कर फिंगरप्रिंट लिए, वहीं खोजी कुत्ता घटनास्थल पर पड़े खून को सूंघ कर कमरे में चक्कर लगाता रहा फिर मकान के नीचे उतरा और लडैती भवन तक गया. उस के बाद वापस आ गया. खोजी कुत्ता मददगार साबित नहीं हुआ.

पुलिस अधिकारियों को पूछताछ से पता चला कि दिव्या मिश्रा, टीवी एंकर अजितेश मिश्रा की पत्नी थी. घटना के समय अजितेश मिश्रा नोएडा में था. पिता प्रमोद मिश्रा ने फोन कर के उसे दिव्या की मौत की सूचना दे दी.

प्रमोद ने दिव्या के मायके वालों को भी उस की मौत की खबर दे दी थी. खबर पा कर दिव्या का भाई, पिता, नानी आदि जिला अस्पताल पहुंच गए. सब दिव्या की मौत पर आंसू बहा रहे थे.

जिला अस्पताल में सिटी मजिस्ट्रैट सत्येंद्र नाथ पांडेय की उपस्थिति में दिव्या के शव का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया. रात 10 बजे शव का पोस्टमार्टम डा. पल्लवी दीक्षित, डा. उदय प्रताप तथा डा. ऋषि यादव ने किया. लेकिन पोस्टमार्टम के बाद शव परिजनों को नहीं सौंपा गया. क्योंकि पुलिस को अभी कुछ और जांच करनी थी. हालांकि शव लेने मृतका का पति अजितेश आ गया था.

दरअसल, उस दिन एसएसपी संतोष कुमार मिश्रा विभाग की लखनऊ में आयोजित की गई क्राइम मीटिंग में गए थे. वापस आने पर उन्हें हत्याकांड की जानकारी हुई तो वह रात 10 बजे घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने पुन: फोरैंसिक टीम को बुलाया और जांच कराई.

मिश्रा रात 2 बजे तक घटनास्थल पर रहे और एकएक बिंदु की बारीकी से जांच की. जांच प्रभावित न हो इसलिए दिव्या का शव परिजनों को नहीं सौंपा गया था. उन के द्वारा जांच कराए जाने के बाद शव परिजनों को सौंप दिया गया.

शव का दाह संस्कार करने के बाद प्रमोद कुमार मिश्रा सिविल लाइंस कोतवाली पहुंचे और अज्ञात के खिलाफ बहू की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई. एसएसपी ने इस हाईप्रोफाइल केस की जांच के लिए सीओ (सिटी) चंद्रपाल सिंह के नेतृत्व में एक विशेष टीम बनाई. विशेष टीम में कोतवाल अनिलमणि त्रिपाठी, स्वाट टीम प्रभारी सत्येंद्र सिंह यादव के अलावा तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का एक बार फिर से निरीक्षण किया, फिर घर के मुखिया प्रमोद कुमार मिश्रा से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि वह कर्वा खेड़ा जनता माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे, जहां से एक साल पहले सेवानिवृत्त हुए थे. घर में पत्नी के अलावा बहू दिव्या मिश्रा तथा बूढ़ी मां रहती थी. पत्नी कुछ दिन पहले बड़े बेटे के पास चली गई थी.

स्कूल से सेवानिवृत्त होने के बाद प्रमोद कुमार सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहने लगे थे. वह सुबह 11 बजे नाश्ता कर के घर से निकलते, फिर डेढ़दो बजे तक घर वापस आते थे. शाम को फिर 5 बजे घर से निकलते और रात 8 बजे घर वापस आ जाते थे. उन के कमरे का दरवाजा बाहर की ओर खुलता था. उसी से वह आतेजाते थे. मकान के मुख्य दरवाजे से उन का ज्यादा वास्ता नहीं रहता था.

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14 अक्तूबर, 2019 को वह 11 बजे नाश्ता कर के घर से कर्वा खेड़ा स्कूल जाने को निकले. स्कूल स्टाफ ने उन्हें किसी जरूरी काम के लिए बुलाया था. स्कूल का काम निपटा कर वह अपराह्न लगभग 2 बजे घर आए. उन्होंने खाना देने हेतु बहू दिव्या को आवाज लगाई, लेकिन बहू ने कोई जवाब नहीं दिया. फिर उन्होंने उस से मोबाइल पर बात करने की कोशिश की, लेकिन उस ने मोबाइल रिसीव नहीं किया. इस से उन्हें लगा कि शायद बहू सो गई है. वह भी आराम करने लगे.

लगभग 3 बजे उन की आंखें खुलीं तो निगाह मेनगेट पर चली गई, जो खुला हुआ था. वह समझ गए कि घर में किसी का आनाजाना हुआ है. घर में कौन आयागया, यह पता लगाने के लिए वह तीसरी मंजिल पर पहुंचे. बहू दिव्या का कमरा खुला था. उन्होंने आवाज लगाई. लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. तब उन्होंने कमरे में प्रवेश किया.

कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. बहू दिव्या फर्श पर खून से लथपथ पड़ी थी. फूलदान टूटा हुआ था. चिल्लाते हुए वह बाहर आए और पड़ोसियों को जानकारी दी. उस के बाद वह थाने पहुंचे.

प्रमोद मिश्रा की बात सुनने के बाद सीओ चंद्रपाल सिंह ने पूछा, ‘‘आप को किसी पर शक है? या फिर आप के घर किसी विशेष व्यक्ति का आनाजाना था?’’

‘‘सर, दिव्या किसी अनजान व्यक्ति के लिए गेट नहीं खोलती थी. मेरी गैरमौजूदगी में अगर कोई आता भी था तो वह यह कह कर वापस कर देती थी कि पापा घर पर नहीं हैं.’’

‘‘हत्या कहीं लूट के इरादे से तो नहीं की गई?’’ सीओ चंद्रपाल सिंह ने उन से पूछा.

‘‘नहीं सर, घर में लूट नहीं हुई. घर का कीमती सामान, आभूषण तथा नकदी सब सुरक्षित है. मैं ने सब चैक कर लिया है.’’ प्रमोद मिश्रा ने बताया.

पति आया शक के दायरे में घर में घटना के समय प्रमोद मिश्रा की वृद्ध मां मौजूद थीं. वह चलनेफिरने और बोलनेचालने में भी लाचार थीं. उन्हें दिखाई भी कम देता था. ऐसी स्थिति में पुलिस ने उन से पूछताछ करना उचित नहीं समझा.

पुलिस टीम ने प्रमोद मिश्रा के पड़ोसियों से भी पूछताछ की. लेकिन हत्या के संबंध में वह कोई जानकारी नहीं दे सके. टीम ने मृतका दिव्या के भाई सचिन कुमार तथा अन्य परिजनों से पूछताछ की, लेकिन वह भी कोई खास जानकारी नहीं दे पाए.

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दिव्या का पति अजितेश मिश्रा पुलिस टीम को जांच में सहयोग नहीं कर रहा था. टीम के सदस्य जब भी उस से पूछताछ करने की कोशिश करते, वह बेहोश हो जाने का नाटक करता. उस के इस नाटक से पुलिस टीम को शक हुआ. वैसे भी पुलिस टीम को किसी करीबी पर ही शक था.

अत: पुलिस टीम ने कुछ सख्त रुख अपनाया. तब वह बोला, ‘‘सर, दिव्या को मैं बेहद प्यार करता था. वह भी मुझे बहुत चाहती थी. वह मेरे साथ नोएडा में ही रहती थी. कुछ दिनों पहले मेरी मां जब बड़े भाई के पास नासिक चली गईं, तब मैं ने ही दिव्या को अपनी दादी और पापा की देखभाल के लिए नोएडा से घर भेज दिया था. पता नहीं मैं ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उन्होंने मेरी पत्नी को मुझ से छीन लिया. पत्नी के जाने के बाद मेरा तो जीवन ही बरबाद हो गया.’’

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आखिर मिल ही गए गुनहगार : भाग 1

घटना दिल्ली के एक थाने की थी, जो मुझ पर थोपी गई थी, जबकि वहां का थानेदार पहले ही जांच कर रहा था.

मुझे आदेश मिला कि 2 सप्ताह में पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचो, वहां का एक पुलिस इंसपेक्टर जांच में तुम्हारा साथ देगा. दोनों को एक एंग्लोइंडियन लड़की की हत्या की जांच करनी है. वह विश्वयुद्ध का समय था. अंगरेजों का फौजी हैडक्वार्टर और एयर हैडक्वार्टर दिल्ली में ही थे. इस केस का संबंध सेना से था, जो मेरे लिए एक नया अनुभव था.

दिल्ली में एक एंग्लोइंडियन लड़की की हत्या हुई थी. थाना पुलिस ने जांच की, लेकिन 2 सप्ताह बीतने पर भी हत्यारे का पता नहीं लगा. अंगरेज सरकार में वायसराय के औफिस ने इस केस की जांच थाने से हटा कर स्पैशल स्टाफ को दे दी थी और हत्यारे का शीघ्र पता लगा कर अदालत में पेश करने का आदेश दिया था.

मैं हैडक्वार्टर पहुंचा तो मेरा परिचय इंसपेक्टर मैक्डोनाल्ड से कराया गया, जिस के साथ मुझे काम करना था. मृतका के बारे में बताया गया कि उस का पिता आर्मी मैडिकल कोर में कर्नल है, जो डाक्टर भी है. उन दिनों वह कलकत्ता में था जबकि उस की मृतका बेटी दिल्ली में सेना में लेफ्टिनेंट थी.

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युद्ध के दौरान औरतों की एक सेना बनाई गई थी, जो डब्ल्यूसीए (वूमन औक्सिलियरी कौर्प्स औफ इंडिया) के नाम से जानी जाती थी. उसे वीकी या विकाई कहते थे. विकाई की अधिकतर औरतें जवान होती थीं, जो सैनिक कार्यालयों में काम करती थीं.

इन में अधिकतर महिलाएं ईसाई होती थीं. उन का काम सेना के अधिकारियों को हर तरह से खुश करना होता था. जो अधिक सुंदर होती थीं, उन की पहुंच जनरलों तक होती थी. वे क्लबों में जाती थीं, औफिसर्स मेस में शराब और डांस में भाग लेती थीं.

मृतका भी जवान और सुंदर थी. उस की हत्या की बात सुन कर उस का पिता कलकत्ता से दिल्ली आया. उस ने जांच को देखा तो अनुमान लगाया कि यह काम थाने के वश का नहीं है. उस ने ही जीएचक्यू में अपनी पहुंच का प्रयोग कर के इस घटना की जांच स्पैशल स्टाफ को दिलवाई थी.

मैं और मैक्डोनाल्ड संबंधित थाने गए. थानेदार को हम ने बताया कि इस केस की जांच हम करेंगे, तो वह बहुत खुश हुआ. थाने में उस लड़की की फोटो देख कर मैक्डोनाल्ड बोला कि इस लड़की के लिए मैं वायसराय तक की हत्या कर सकता हूं.

मैं ने फोटो को ध्यान से देख कर कहा, ‘‘हत्यारा पागल था या लड़की ने उसे अस्थाई रूप से पागल कर दिया था. मुझे हैरानी है कि इस के साथ एक और आदमी की हत्या क्यों नहीं हुई.’’

थानेदार बोला, ‘‘हत्या 40 मील प्रतिघंटा की रफ्तार से दौड़ती जीप कार में हुई थी और फायर उसी रफ्तार से दौड़ती कार से किया गया था. लड़की अगली सीट पर बैठी थी. जीप एक हिंदुस्तानी मेजर चला रहा था. पीछे से एक कार आई, उस में से रिवौल्वर की 2 गोलियां चलीं. गोलियां चलने के बाद कार आगे निकल गई.’’

थानेदार ने कहा, ‘‘दूसरी गोली शायद उस ने मेजर पर चलाई थी, लेकिन दोनों गोलियां लड़की को लग गईं.’’

थानेदार ने हमें उस मेजर का बयान भी सुनाया. हम ने पोस्टमार्टम की रिपोर्ट देखी और पूरा केस समझने के बाद कहा, ‘‘इस केस की जांच कोई हिंदुस्तानी थानेदार नहीं कर सकता, क्योंकि इस केस में फौजी अधिकारियों से मिलना होगा, जो हिंदुस्तानियों को अपना गुलाम समझते हैं. वे लोग केस में सहयोग भी नहीं कर रहे.

रौयल एयर फोर्स के अधिकारी ने थानेदार को डांट भी लगा दी थी. जीएचक्यू ने थानेदार को 2 गोरे दे दिए थे, जिस में एक सार्जेंट और दूसरा कारपोरल था. लेकिन भाषा की समस्या की वजह से वे भी सहयोग नहीं कर रहे थे. क्योंकि थानेदार अंगरेजी समझ तो लेता था, लेकिन बोल नहीं सकता था.’’

हत्या से संबंधित जो चीजें थाने में रखी थीं, उन में एक जीप, रिवौल्वर के 2 बुलेट जो मृतका के शरीर से पार हो कर जीप में गिरे थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक, मृतका को बाईं ओर 2 गोलियां लगीं थीं और पार निकल गई थीं, जिस से उस की मौत हो गई थी. हत्या से पहले उस के साथ कोई मारपीट नहीं हुई थी. वह शराब पिए हुए थी, खाना उस ने 2 घंटे पहले खाया था.

हम ने थानेदार से जरूरी बातें पूछीं और तय किया कि हम थानेदार की रिपोर्ट पर ध्यान नहीं देंगे बल्कि अपनी अलग जांच करेंगे.

मैक्डोनाल्ड ने स्कौटलैंड यार्ड की ट्रेनिंग ली थी. मैं ने भी उस से बहुत कुछ सीखा. हम ने मिलिट्री पुलिस का सहयोग लिया और उन से कहा, ‘‘हमें एक ऐसा आदमी चाहिए जो होशियार हो और रातों को भी जाग सके.’’

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प्रोवोस्ट मार्शल ने हमें एक अंगरेज वारंट औफिसर दिया, जो मेहनती और बुद्धिमान था. इस के अतिरिक्त हमें फौजी छावनी में मिलिट्री पुलिस का एक अलग कमरा दिया गया, जिसे हम ने अपना औफिस बना लिया.

हम ने सब से पहले जीप अपने कब्जे में ले कर उस मेजर को बुलाया. जो घटना के समय जीप चला रहा था. मौके का गवाह वही था. मिलिट्री इंटेलिजेंस का वह अधिकारी मेजर डोगरा था. मैं अब तक देहातियों से पूछताछ करता रहा था, यह पहला अवसर था कि एक मिलिट्री इंटेलिजेंस अधिकारी से पूछताछ करनी थी. मेरे साथी इंसपेक्टर ने उस डोगरा मेजर से कहा, ‘‘आप मिलिट्री इंटेलिजेंस के अधिकारी हैं. घटना की कहानी इस तरह सुनाएं, जैसी आप किसी अपराधी से उम्मीद रखते हैं.’’

उस ने मृतका के बारे में बताया कि वह आजाद विचारों वाली अतिसुंदर एंग्लोइंडियन लड़की थी. वह अंगरेजी फौजी अधिकारियों में बहुत मशहूर थी. उस की रातें किसी न किसी क्लब या औफिसर्स मेस में गुजरती थीं. निर्लज्जता के साथसाथ वह चालाक भी थी.

हत्या की रात मृतका एक क्लब में किसी पार्टी में थी, वहां पर ज्यादातर अंगरेज और सिविल अफसर थे. डोगरा भी उसी पार्टी में था. शराब के साथ डांस चल रहा था. आधी रात के समय डोगरा मेजर बाहर निकला. अंदर चहलपहल थी, बाहर वीराना. उस ने देखा मृतका तेज चलती हुई उसी की ओर आ रही थी. तभी एक कमरे से रौयल एयर फोर्स का एक अफसर निकला, जो लड़की के पीछे आ रहा था.

लड़की डोगरा मेजर के पास आ कर बोली, ‘‘एक अफसर बातोंबातों में मुझे कमरे में ले गया और बोला मैं तुम्हारे साथ शादी करना चाहता हूं. मैं ने इनकार किया तो उस ने मुझे सोफे पर गिरा दिया. लेकिन मैं जैसेतैसे उस से बच कर निकल आई. वह बहुत शराब पिए हुए था.’’

मृतका डोगरा को कहानी सुना रही थी कि वह अफसर लड़खड़ाता हुआ आ गया और बोला, ‘‘तुम इंडियन हो, इस लड़की को मुझ से बचाने की कोशिश मत करो, नहीं तो मेरे हाथों मारे जाओगे. मैं यहां का सर्वेसर्वा हूं.’’

डोगरा ने कहा, ‘‘तुम इस समय इंडिया के राजा नहीं, पूरी दुनिया के राजा हो. यह लड़की सेना में लेफ्टिनेंट है, तुम इस के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते.’’

वह बोला, ‘‘अगर यह आर्मी में फील्ड मार्शल भी होती तो मेरा मुकाबला नहीं कर पाती. हम इंडिया के मालिक हैं.’’

लड़की बोली, ‘‘मैं तुम्हारे मुंह पर थूकती हूं. तुम्हारी यूनिट के बड़ेबड़े अफसर मेरे दोस्त हैं. तुम तो साधारण स्क्वाड्रन लीडर हो.’’

डोगरा ने उसे समझाया कि एक अधिकारी को ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए. उस ने कहा, ‘‘तुम क्या समझते हो, मैं इंग्लैंड से इंडिया को जापान से बचाने आया हूं. मैं इस देश के लिए मरने आया हूं लेकिन यहां की लड़की मुझे दुत्कार रही है. मैं इसे जान से मार दूंगा.’’

उस ने डोगरा के मुंह पर घूंसा मारा, फिर दोनों में हाथापाई शुरू हो गई. लड़की ने कहा, ‘‘तुम यहां से निकल जाओ, यह अंगरेज है, तुम्हारे ऊपर मनगढ़ंत आरोप लगा देगा.’’

डोगरा ने कहा, ‘‘तुम भी चली जाओ.’’

वह बोली, ‘‘मेरे पास गाड़ी नहीं है.’’

डोगरा मेजर ने जीप में लड़की को अगली सीट पर बिठाया और जीप को खुद ही ड्राइव कर के ले गया.

चलती जीप से उस ने पीछे देखा, एक गाड़ी उस का पीछा करती हुई आ रही थी. वह गाड़ी जीप के पास आ गई. उस गाड़ी की लाइट बुझ गई, इसी के साथ 2 गोलियां चलीं. लड़की की चीख सुनाई दी. वह बोली, ‘‘ही हैज शाट मी.’’

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इतनी देर में गाड़ी की लाइटें जलीं और वह आगे निकल गई. मेजर ने देखा वह प्राइवेट कार थी. उस ने कार के नंबर देखे आखिर के 2 नंबर याद थे जो 66 थे. पहले 2 नंबर उसे याद नहीं रहे. शायद 23 थे या 83. वह लड़की को ले कर तुरंत अस्पताल पहुंचा, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

सेना पुलिस आई. लेकिन उस ने कोई सहायता नहीं की. उस ने केस सिविल पुलिस को दे दिया. थानेदार ने स्क्वाड्रन लीडर से कोई बयान नहीं लिया, क्योंकि उस ने थानेदार को डांट कर भगा दिया था.

हम ने डोगरा से पूछा, ‘‘क्या उस लीडर के पास रिवौल्वर था? उस ने आखिरी शब्द क्या बोले थे.’’

मेजर ने कहा, ‘‘मैं ने देखा नहीं कि उस के पास रिवौल्वर था. उस ने कहा था कि तुम दोनों को जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

‘‘आप जब अपनी जीप की ओर आ रहे थे तो वह स्क्वाड्रन लीडर आप के पीछे था?’’

उस ने बताया, ‘‘वह बरामदे में खड़ा था और वहां 2-3 बैरे खड़े थे.’’

‘‘आप उस लड़की को अच्छी तरह जानते थे. उस लड़की से कोई शादी के लिए कहता होगा.’’

वह बोला, ‘‘ऐसी लड़कियों से कौन शादी करेगा. सब को पता है कि ये चरित्रहीन होती हैं.’’

‘‘आप इंटेलिजेंस अफसर हैं. आप ने ध्यान दिया होगा कि हत्यारा कौन हो सकता है.’’

वह बोला, ‘‘स्क्वाड्रन लीडर के अलावा और कोई नहीं हो सकता.’’

‘‘आप जरा दिमाग पर जोर दे कर बताएं, कोई ऐसा विवाहित जोड़ा है, जिन में पुरुष मृतका को चाहता हो और पत्नी ने उस की हत्या करवा दी हो.’

वह बोला, ‘‘ऐसा हो सकता है लेकिन मैं ऐसे किसी आदमी को नहीं जानता.’’

अगले दिन हम ने पुलिस हैडक्वार्टर से कहा कि पूरे शहर की कारों के नंबर देखे, जिस के आखिर में 66 हो, उस के मालिक का नाम और घर का पता नोट कर लें. डोगरा मेजर ने बताया था कि कार फोर्ड थी, लेकिन मौडल उसे याद नहीं रहा.

दूसरा काम हम ने यह किया कि एयर हैडक्वार्टर से उस स्क्वाड्रन लीडर का पता लिया, बताया गया कि वह पालम एयरपोर्ट के उस भाग में मिलेगा, जहां एयरफोर्स के जहाज रखे जाते हैं. हम एयर हैडक्वार्टर गए. वहां पता लगा कि वह स्क्वाड्रन लीडर अभी एक महीने पहले ही आया है लेकिन उसे कोई काम नहीं दिया गया. क्योंकि वह मानसिक रोग से पीडि़त है और एक अंगरेज डाक्टर उस का इलाज कर रहा है.

हम पहले उस डाक्टर से मिले और बताया कि हम एक लड़की की हत्या की जांच कर रहे हैं जो सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर थी. वह डाक्टर अपना काम छोड़ कर हमारे पास बैठ गया. मैक्डोनाल्ड ने उसे डोगरा मेजर का बयान सुना कर स्क्वाड्रन लीडर के इलाज के बारे में पूछा.

डाक्टर से पता चला कि वह स्क्वाड्रन लीडर लंदन में एक लड़ाका स्क्वाड्रन का कमांडिंग औफिसर था और उस ने अनगिनत जरमन जहाज गिराए थे. आखिरी लड़ाई में उस के जहाज में गोली लगी और उस जहाज से निकल नहीं सका. संयोग से उस का जहाज पानी में गिरा पर डूबा नहीं. लेकिन वह जहाज पानी में इतने तेज झटके से गिरा कि उस के दिमाग में चोट आ गई और वह जहाज से निकल कर तैरने लगा.

अगले दिन उसे एक ब्रिटिश गश्ती नाव ने बचा लिया. लंदन के एक अस्पताल में उस का इलाज हुआ. अस्पताल में कुछ दिन इलाज के बाद उस की यह कह कर छुट्टी कर दी गई कि यह शारीरिक तौर पर तो ठीक है, लेकिन कभीकभी उस का दिमाग थोड़ी देर के लिए अपना नियंत्रण खो देता है.

जब वह अपने घर गया तो उस का मकान खंडहर हो चुका था. उस की पत्नी और बच्चा मारे गए थे. वह अपनी यूनिट में नौकरी पर वापस आ गया, वहां उस ने कुछ ऐसे गलत काम किए जो अनदेखे नहीं किए जा सकते थे. पूछने पर उस ने बताया कि उस का दिमाग थोड़ी देर के लिए खराब हो जाता है.

मानसिक रोगों के डाक्टर ने कुछ दिन उस का इलाज किया फिर कह दिया कि कुछ देर के लिए उस का दिमाग काम नहीं करता, उसे यह भी पता नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है.

इस का कारण घरेलू समस्या थी. उसे इलाज के लिए भारत भेजा गया. लेकिन यहां उसे कोई काम नहीं दिया गया, उसे मौजमस्ती की खुली छूट दी गई, लेकिन यहां भी कुछ देर के लिए उस का दिमाग खराब रहने लगा.

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हम ने पूछा, ‘‘क्या बिगड़ी हालत में हत्या भी कर सकता है?’’

उस ने कहा, ‘‘कुछ कह नहीं सकते. लेकिन इस हालत में उसे अगर गुस्सा दिला दिया जाए तो वह हत्या भी कर सकता है.’’

‘‘औरत के मामले में उस का रवैया कैसा है?’’

‘‘जितने हवाबाज होते हैं, जब छुट्टी पर आते हैं तो शारीरिक संबंध बहुत बनाते हैं और इस में भी यह आदत है.’’

मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘हम उस से मिल रहे हैं. आप से अनुरोध है कि आप उस से इस तरीके से बात करें कि वह हत्या के बारे में कुछ बता दे.’’

डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं उस से हत्या का पता लगा लूंगा और अगर उस ने हत्या की है तो मैं उसे बचा भी लूंगा.’’

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

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आखिर मिल ही गए गुनहगार : भाग 3

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हम अंदर गए तो वहां ब्रिगेडियर बैठा था, हम ने उसे अपना परिचय दिया तो उस ने तपाक से हमारा स्वागत किया और बोला, ‘‘मुझे पता है कि आप हत्या के केस की जांच कर रहे हैं.’’

मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘हमारी जांच की लाइन बदल गई है. हमें पता लगा है कि मृतका का बाप और चाचा जासूसी में पकडे़ गए हैं.’’

वह चौंक कर बोला, ‘‘आप को कैसे पता लगा?’’

मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘हम स्पैशल स्टाफ के अधिकारी हैं, किसी की गिरफ्तारी को हम गुप्त रख सकते हैं. आप निश्चिंत रहें, हम से कोई गलत काम नहीं होगा. हम यहां यह पता करने आए हैं कि मृतका की उस के ही गिरोह के किसी आदमी ने हत्या कर दी है.’’

उस ने कहा, ‘‘यह इंटेलिजेंस का मामला है, जो गुप्त होता है.’’

हम ने उन्हें विश्वास दिलाया कि हम किसी को नहीं बताएंगे.

उस ने बताया, ‘‘कर्नल डाक्टर के भाई पर हमें पहले से शक था. कलकत्ता की सीआईडी उस के पीछे लगी थी. उसे भी पता लग गया और वह चौकस हो गया. हमें उस की कुछ बातें पता लग चुकी थीं. हम ने उस लड़की की निगरानी शुरू कर दी. 2 मेजरों को उस के पीछे लगा दिया.’’

हम ने उस से कहा आप उन के नाम बता सकते हैं?

उस ने कहा कि एक तो डोगरा मेजर है और दूसरा एक मुसलमान मेजर है. ब्रिगेडियर ने हमें इजाजत दे दी कि इन दोनों का सहयोग ले सकते हैं.

जब हम अपने औफिस आए तो मिलिट्री औफिस के वारंट औफिसर ने हमें एक नोट दिया जिस में एक कार का नंबर लिखा गया था, लेकिन वह कार दिल्ली से बाहर की थी. हम तुरंत डोगरा मेजर और उस वारंट औफिसर को ले कर उस शहर की ओर चल दिए. उस शहर में पहुंच कर उस हवेली पर गए.

वहां वह कार खड़ी थी. डोगरा मेजर ने पहचान कर कहा कि यही कार है. हम ने दरवाजे पर दस्तक दी, 2 आदमी बाहर आए. जिन में एक की उम्र 30 और दूसरे की 35 होगी. ये दोनों जागीरदार लग रहे थे.

मैं ने उन से पूछा, ‘‘यह कार किस की है?’’

वह बोला, ‘‘हमारी है.’’

उन में से एक ने कहा, ‘‘यह चोरी की तो नहीं है.’’

मैं ने आगे बढ़ कर धीरे से कहा, ‘‘अभी हम ने आप से कुछ नहीं कहा और आप चोरी की कहने लगे. मैं पुलिस अधिकारी हूं, यह अंगरेज अधिकारी हैं. वह फौज का मेजर है और इस के साथ सेना पुलिस का अधिकारी है. तुम्हें इतनी भी तमीज नहीं है कि तुम हमें अंदर बैठने को कहो. अगर तुम यही चाहते हो तो हम जिस काम के लिए आए हैं, वह यही सब के सामने शुरू कर दें.’’

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उस ने हमें अंदर बिठाया. मैं डोगरा मेजर के साथ बाहर आ कर कार को देखने लगा. डोगरा ने मडगार्ड के किनारे पर अंगुली रख कर देखने के लिए कहा. मैं ने देखा वहां से एक गोली की तरह चिपका हुआ लग रहा था. मैं ने टायर को देखा, एक जगह टायर के ऊपरी भाग में एक निशान था, जैसे गोल रेती से रगड़ा गया हो. यह गोली का निशान लग रहा था.

मैं ने डोगरा मेजर से कहा, ‘‘गाड़ी को थोड़ा पीछे धकेलो.’’

हम दोनों धक्का लगा कर गाड़ी को उस पिचके हुए निशान के बराबर में ले आए जो मडगार्ड पर था. मैं ने पीछे खड़े हो कर देखा, वहां से मुझे मडगार्ड का वह भाग दिखाई दिया जो टायर के सामने होता है.

वहां कीचड़ जमा हुआ था. वहां मुझे एक चमकती हुई चीज दिखाई दी. मैं ने हाथ अंदर कर के देखा तो गोली का खोखा धंसा हुआ मिला. उसे देख कर मैं उछल पड़ा, जैसे मैं अपनी जांच में सफल हो गया हूं.

मैं दौड़ता हुआ अंदर गया और सब से कहा, ‘‘बाहर आओ और ऐसी कोई चीज लाओ, जिस से मडगार्ड की मिट्टी हटाई जा सके.’’

उन में से एक जाने लगा तो मैं ने उसे बाजू से पकड़ कर रोक लिया और उस से कहा, ‘‘तुम यहीं रहो, नौकर को आवाज दो.’’

नौकर खुरपा लाया. मैं ने धीरेधीरे मडगार्ड की मिट्टी हटाई. वह चीज साफ दिखाई देने लगी. मैं ने मैक्डोनाल्ड से देखने के लिए कहा. उस ने छू कर देखा और मेजर की ओर देख कर कहा, ‘‘आप का निशाना ठीक था. टायर को आप ने मिस नहीं किया. एक इंच का अंतर रह गया था.’’

मैं ने कार के मालिकों से कहा, ‘‘तुम्हें पता नहीं था कि जीप से तुम्हारी कार पर फायर किया गया था.’’

दोनों के रंग उड़ गए और कोई जवाब नहीं दे पाए. मैं ने उन दोनों को वे निशान दिखाए. वे फिर भी चुप रहे, मैं ने धीरे से पूछा, ‘‘क्या तुम दोनों थे?’’

मैं ने वहां एक सम्मानित व्यक्ति को बुला कर वे निशान दिखाए और कहा कि आप को इस की गवाही देनी है. दूसरा गवाह मैं ने डोगरा मेजर को बनाया. मैं ने कार वालों से पूछा, ‘‘तुम्हारा रिवौल्वर कहां है?’’

छोटा बोला, ‘‘हमारे पास रिवौल्वर नहीं है.’’

मैं ने कहा, ‘‘मैं मकान की तलाशी लूं, इस से पहले तुम खुद ही निकाल दो.’’

उन में से एक बोला, ‘‘चलो, अंदर चलो. बाकी लोग बाहर ही रहें.’’

मैं अंदर चला गया. मेरी पैंट में रिवौल्वर था. मैं ने अपनी जेब में हाथ डाल कर रिवौल्वर अपने हाथ में ले लिया. लेकिन उस ने अंदर जाते ही कहा, ‘‘आप जितनी रकम चाहो, ले लो और इन लोगों को वापस ले जाओ. अगर तुम ने इधरउधर किया तो बाहर वालों की लाशें भी नहीं मिलेंगी. बोलो, क्या चाहते हो?’’

कमरे में एक पलंग था, उस पर सुंदर चादर पड़ी थी. छोटे भाई ने चादर हटाई तो उस के नीचे एक रिवौल्वर दिखाई दिया. वह उठाने के लिए हाथ बढ़ा ही रहा था, मैं ने एक गोली चला दी, जो पलंग पर लगी और दूसरी गोली मैं ने उस के पैर पर मारी.

बाहर वालों ने गोली चलने की आवाज सुनी तो वे दौड़ कर अंदर आ गए. सब के हाथों में रिवौल्वर थे. मेरी गोलियों ने दोनों अपराधियों को वश में कर लिया. मैं ने कांस्टेबलों से कहा, ‘‘इन्हें हथकड़ी लगाओ.’’

मैं ने कागज तैयार किए और गवाहों में डोगरा मेजर और उस सम्मानित व्यक्ति के हस्ताक्षर करा लिए. डोगरा ने कहा, ‘‘ये जासूस गिरोह के लोग हो सकते हैं, इसलिए मकान की तुरंत तलाशी ले कर सील करना जरूरी है.’’

मैं पुलिस स्टेशन गया और वहां से दिल्ली इंटेलिजेंस के ब्रिगेडियर को फोन कर सूचना दी, पुलिस हैडक्वार्टर को भी बता दिया. पुलिस स्टेशन से मुझे 2-3 कांस्टेबल मिल गए, जिन्हें मैं ने मकान के अंदर और बाहर खड़ा कर दिया. वहां की पुलिस ने मेरी यह सहायता की कि एक मजिस्ट्रैट को भेज दिया.

यह केस इसलिए विशेष हो गया था कि इस में जासूसी का मामला था. कुछ ही देर में दिल्ली पुलिस की नफरी आ गई. साथ में ब्रिगेडियर भी था. मजिस्ट्रैट के सामने मकान की तलाशी ली गई लेकिन गहन तलाशी पर भी कुछ नहीं मिला.

मैं ने दोनों अपराधियों से पूछा, ‘‘तुम दोनों अपराधी हो या दोनों में से एक.’’

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वे बोले दोनों हैं. दिल्ली ला कर दोनों को सेना के क्वार्टर गार्ड में बंद कर दिया. अपने कमरे पर जा कर आराम करने के लिए मैं लेटा ही था कि डोगरा मेजर एक व्यक्ति को ले कर आया. वह इंटेलिजेंस का मुसलमान मेजर था. उस ने बताया कि मेरे से ज्यादा उस लड़की को यह जानते हैं.

उस ने कहा, ‘‘मृतका मुझे बरबाद कर गई. आप ने जिन 2 आदमियों को गिरफ्तार किया है, वे मेरे साले हैं. मैं ने उन से क्वार्टर गार्ड में मिल कर कहा है कि वे अपना अपराध स्वीकार कर लें.

लेकिन जासूसी के मामले में उन का दूर का भी वास्ता नहीं है. वे दोनों अपनी कहानी खुद सुनाएंगे, मैं तो आप को उस केस की मोटी बातें सुना देता हूं.’’

उस ने बताया कि मैं भी उसी जगह का रहने वाला हूं, जहां के ये लोग हैं. मेरी शादी उन के घराने में हुई है. मैं चूंकि इंटेलिजेंस में हूं, इसलिए मैं घर से कईकई दिनों तक गायब रहता था. मेरी पत्नी मेरे ऊपर शक करने लगी.

मैं ने उस का शक दूर करने की बहुत कोशिश की लेकिन उस का शक दूर नहीं हुआ. घर में क्लेश रहने लगा. पत्नी कहती थी कि आप बड़े अधिकारी हो, सुंदर लड़कियां आप के पास आती होंगी. मैं ने बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानी. उस के भाइयों ने भी मुझे धमकियां दीं.

एक दिन मैं ने ससुराल में कहला दिया कि अगर पत्नी का यही व्यवहार रहा तो मैं उसे छोड़ दूंगा. इस पर तो ससुराल वालों ने कहा कि अगर छोड़ोगे तो तुम्हारी हत्या हो जाएगी.

लेकिन मैं उसे वास्तव में छोड़ना नहीं चाहता, क्योंकि मुझे अपनी पत्नी से बहुत प्यार था. इसी बीच मुझे मेरे हैडक्वार्टर से आदेश मिला कि मृतका लड़की का ध्यान रखो, बल्कि उस से दोस्ती का संबंध बनाओ. मेरा यह डोगरा मेजर दोस्त उस से पहले ही संबंध बना चुका था. बाद में पता चला कि वह लड़की जासूस गिरोह की है.

हमें उस लड़की के खानपान के लिए औफिस से अच्छी रकम मिलती थी. मैं उसे ऊंचे होटलों में ले गया, शिमला की सैर कराई, उस से जासूसी की बातें भी कीं लेकिन उस ने अपना भेद नहीं दिया. एक दिन दिल्ली में उस लड़की के साथ मेरे सालों ने मुझे देख लिया और मेरे घर आ कर मुझे धमकी दी.

मैं ने उन्हें बहुत समझाया कि उस लड़की से संबंध मैं ने सरकार के कहने पर बनाए हैं और उस के साथ रहना मेरी ड्यूटी में शामिल है. लेकिन उन की समझ में नहीं आया. मैं जानता था कि यह लड़की जो जनरलों तक को अपनी अंगुली पर नचाती है, मेरे इतने करीब क्यों आ रही है. वह जानती थी कि मैं इंटेलिजेंस का अधिकारी हूं, इसलिए वह मुझे अंधेरे में रखना चाहती थी.

डोगरा और मैं आगे की काररवाई के बारे में सोच ही रहे थे कि उस लड़की की हत्या हो गई. लेकिन मैं समझ रहा था कि हत्या किस ने की है.

उस के बाद से मेरे साले दिखाई नहीं दिए. मैं ने यह बात डोगरा मेजर को भी नहीं बताई. मैं ने उस की हत्या की बात अपनी पत्नी से भी नहीं की. मैं ने आप को पूरी बात बता दी है और अपने सालों से भी कह दिया है कि वे अपना अपराध स्वीकार कर लें.

उन दोनों भाइयों ने अपराध स्वीकार कर लिया और वही कहानी सुनाई जो इंटेलिजेंस अफसर ने सुनाई थी. उन्होंने अपने बयान में यह भी बताया कि अगर इंटेलिजेंस अधिकारी उन की बहन को तलाक देता, तो उस लड़की की और अपने जीजा की हत्या कर देते. लेकिन उन्होंने यह तय किया कि लड़की की हत्या कर दें तो उन की बहन का घर उजड़ने से बच जाएगा.

हत्या कर के जब वे घर आए तो उन्होंने कार को अच्छी तरह से देखा कि उस पर कहीं कोई गोली का निशान तो नहीं है, लेकिन इतनी बारीकी से नहीं देखा, जितना मैं ने देखा था. काफी दिन बीतने पर भी जब कुछ नहीं हुआ तो वे समझे मामला खत्म हो गया है. इस की खुशी तो थी लेकिन साथ में इस बात की भी खुशी थी कि अगर उन्हें फांसी भी हो गई तो उन की बहन का सुहाग तो बना रहेगा.

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इंटेलिजेंस ने बहुत छानबीन की लेकिन वे जासूसी का केस साबित नहीं कर सके. हत्या के मामले में उन दोनों को आजीवन कारावास की सजा हुई. उन के जीजा मेजर ने दिल्ली का एक योग्य वकील कर लिया, जिस ने हाईकोर्ट में अपील दायर कर दी और उस ने संदेह का लाभ दिला कर दोनों को दोषमुक्त करा लिया.

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आखिर मिल ही गए गुनहगार : भाग 2

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उसी दिन हम ने स्क्वाड्रन लीडर को मिलिट्री पुलिस के वारंट द्वारा बुलवाया. मैक्डोनाल्ड ने उसे अपना और मेरा परिचय दिया. मुझ से उस ने हाथ मिलाया और बोला, ‘‘हिंदुस्तानियों में यह आदत है कि वे अंगरेजी नहीं जानते. आप से पहले इंसपेक्टर को मैं ने डांट दिया था, इसलिए यह केस आप को दिया गया है.’’

मैक्डोनाल्ड ने उस से बहुत सी बातें करने के बाद पूछा, ‘‘आप कब ऐबनौर्मल होते हैं?’’

उस ने कहा, ‘‘मुझे जब बातें करने वाला या सुनने वाला नहीं मिलता तो मेरे शरीर में चींटी सी चलने लगती है, फिर मैं खुद ऊपर से नियंत्रण खो देता हूं और मुझे यह याद नहीं रहता कि मैं ने क्या कहा.’’

मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘इस का मतलब यह हुआ कि लड़की की हत्या से पहले आप ने क्या कहा और क्या किया था. आप को याद नहीं?’’

वह बोला, ‘‘मुझे सब कुछ याद है, आप पूछें लेकिन उस थानेदार की तरह यह मत कह देना कि मैं ने एक लड़की की गोली मार कर हत्या कर दी है.’’

‘‘हम बात तो यही कहेंगे लेकिन ऐसे नहीं जो आप को गुस्सा आ जाए.’’ मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘मैं यह मान नहीं सकता कि आप ने हत्या की है.’’

वह बोला, ‘‘पूछें, आप क्या पूछते हैं, मुझे गुस्सा नहीं आएगा.’’

उस ने अपनी वही कहानी सुनाई थी. उस ने बताया कि जब वह लड़की को कमरे में ले गया और उस के साथ जबरदस्ती की तो वह उसे धक्का दे कर बाहर निकल आई. उस के बाद जो कुछ हुआ था, वह मेजर डोगरा सुना चुका था.

मैं ने कहा, ‘‘जब आप को लड़की ने धक्का दिया तो आप को गुस्सा आया होगा.’’

वह बोला, ‘‘गुस्सा आया, लेकिन मैं ने नियंत्रण नहीं खोया था.’’

मैं ने पूछा, ‘‘आप के कितने मित्र हैं, उन में से किसी के पास तो कार होगी?’’

‘‘मेरा कोई मित्र नहीं है. मुझे यहां आए अभी कुछ ही दिन हुए हैं.’’ वह बोला.

‘‘आप के पास रिवौल्वर है?’’ मैक्डोनाल्ड ने पूछा.

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उस ने कहा, ‘‘मेरा निजी रिवौल्वर .38 का है, जो मेरे कमरे में रखा हुआ है.’’

मृतका की. 38 से ही हत्या की गई थी. उसे अपना रिवौल्वर आर्मरी में रखनी चाहिए था. इस से हम शक में पड़ गए.

‘‘आप ने यहां आ कर किसी को रिवौल्वर के बारे में बताया था?’’

वह बोला, ‘‘मुझ से किसी ने नहीं पूछा.’’

हम उस से सवाल करते रहे वह जवाब देता रहा. उस का मूड अच्छा था, वह हमें अपने कमरे पर ले गया. हम ने रिवौल्वर और कागज देखे. रिवौल्वर बिलकुल साफ था, उस में तेल लगा था. वह थानेदार को रिवौल्वर अपने कब्जे में ले कर जांच के लिए भेजना चाहिए था.

मैक्डोनाल्ड ने जांच के लिए भेजने हेतु वह रिवौल्वर अपने कब्जे में ले लिया और उस से यह सवाल किया, ‘‘आप ने इस रिवौल्वर से आखिरी गोली कब चलाई थी?’’

मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘यह सवाल बहुत खतरनाक है. आप खूब सोचसमझ कर जवाब दें, यह रिवौल्वर फोरैंसिक लैब में जांच के लिए जा रहा है. इस की नली भी साफ नहीं है.’’

उस ने मैक्डोनाल्ड के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘मैं ने इस से किसी की हत्या नहीं की. मैं ने ढाई साल पहले एक खरगोश पर गोली चलाई थी.’’

मैं ने मैक्डोनाल्ड से अपनी भाषा में कहा, ‘‘इसे गरमा कर देखते हैं.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘सोच कर जवाब दो, ढाई साल पहले या ढाई सप्ताह पहले?’’

उस ने गरमी से कहा, ‘‘साल…साल…’’

मैं ने उसे और गुस्सा दिलाने के लिए कहा, ‘‘ढाई साल या ढाई सप्ताह में इतना अंतर होता है, जितना मौत और जिंदगी में. मैं आप के गुस्से की परवाह नहीं करूंगा. मेरा अनुभव है कि यह रिवौल्वर ढाई सप्ताह पहले चला था. आप झूठ बोल रहे हैं.’’

वह सोचता रहा और कुछ देर के लिए बाहर चला गया. आधे घंटे बाद आ कर उस ने शराब पी. मैक्डोनाल्ड ने पूछा, ‘‘आप बाहर क्यों चले गए थे?’’

उस ने हैरानी से कहा, ‘‘मैं बाहर चला गया था? मैं तो यह समझा कि मैं पलंग पर लेटा हूं.’’

हम ने उस से पूछा कि वह क्लब से किस समय और किस के साथ आया था? उस ने बताया, ‘‘एयरफोर्स की एक जीप में 7 अधिकारी आ रहे थे, मैं उन के साथ गया था.’’

हम ने उस का रिवौल्वर लिया और वापस अपने औफिस आ गए.

हम उस स्क्वाड्रन लीडर से मिले, जिस के साथ वह आया था. उस ने पुष्टि कर दी कि वह लीडर उस के साथ आया था. हम ने उस से यह भी पूछा कि क्या वह क्लब से डेढ़ घंटे के लिए कहीं चला गया था, उस ने कहा नहीं.

उस रात हम ने एक इंतजाम यह किया कि एक हिंदुस्तानी हवलदार को क्लब के नौकरों में शामिल कर दिया ताकि वह उस कार पर नजर रखे जिस के नंबर के आखिर में 66 हो.

दूसरे दिन हम ने जीप को फिर ध्यान से देखा. वह जगह देखी, जहां गोलियां मृतका के शरीर से निकल कर लगी थी. हम ने डोगरा मेजर को बुला कर पूछा, ‘‘आप ने कार के बैकव्यू मिरर से यह देखने की कोशिश की कि अगली सीट पर एक आदमी हैं या 2?’’

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‘‘मैं ने कोशिश की थी लेकिन मेरी जीप की रोशनी कार पर पड़ रही थी, इसलिए कुछ दिखाई नहीं दिया.’’

‘‘यह नैचुरल है कि जब आप ने बाईं ओर से गोलियां चलने की आवाज सुनी तो उसी ओर देखा होगा. आप को कार की सीट पर आदमी दिखाई दिया होगा. याद कर के बताओ वे आदमी फौजी थे या सिविलियन? आप गुप्तचर सेवा में हैं, आप को तो हर चीज ध्यान से देखनी चाहिए थी.’’

‘‘मेरा ध्यान लड़की पर था. उस की चीख से मैं घबरा गया था.’’

‘‘अगर आप अनपढ़ गंवार होते तो मैं मान लेता कि आप ने कार के अंदर नहीं झांका. गाड़ी बाईं ओर घूमी और उस का पूरा दृष्य आप के सामने था. आप उस पर फायर कर सकते थे. आप फौजी हैं, आप को अच्छा टारगेट मिला, लेकिन आप ने फायर नहीं किया.’’

यह सुन कर उस का रंग बदल गया, वह बोला, ‘‘मेरा ध्यान दूसरी ओर था,’’

उस ने दबी आवाज में कहा, ‘‘मेरी जगह आप होते तो आप भी ऐसा ही करते. मैं मानता हूं कि हत्यारे मेरी कमी के कारण निकल गए, अगर मुझे पीछा करते समय पता लग जाता कि लड़की मर गई है तो मैं उन का पीछा करता. मैं लड़की को बचाना चाहता था.’’

मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘सुनो मेजर, क्या आप को पता है कि हम आप से ये सवाल क्यों कर रहे हैं? हम आप को लड़की का हत्यारा समझ रहे हैं. आप यह साबित करें कि आप हत्यारे नहीं हैं.’’

उस ने भड़क कर कहा, ‘‘फिर तो आप की जांच पूरी हो गई. आप अपना समय बरबाद न करें.’’ वह बोला, ‘‘मेरे पास हत्या का कोई कारण नहीं है. मैं न तो उस को चाहता था, न ही मैं मृतका के चाहने वाले का प्रतिद्वंदी था. वह सुंदर अवश्य थी लेकिन मैं उसे उच्चसोसायटी की वेश्या समझता था.

‘‘मैं मानता हूं कि उस के साथ मेरे संबंध थे. मैं यह भी जानता हूं कि एक मेजर चाहे वह हिंदुस्तानी हो या अंगरेज, उस से दोस्ती कर ही नहीं सकता था, क्योंकि वह बहुत महंगी लड़की थी. उस की मांग बहुत ऊंची थी. वह राजामहाराजा या ब्रिगेडियर के अलावा किसी से दोस्ती पसंद नहीं करती थी.’’

‘‘फिर आप ने उस के साथ संबंध कैसे बनाए?’’

वह बोला, ‘‘इस के लिए मुझे अलग से पैसा मिलता था. आप देख रहे हैं मैं एक हिंदुस्तानी मेजर हूं और एक हिंदुस्तानी को इतना वेतन नहीं मिलता कि वह इतने महंगे क्लबों में जा कर इतनी महंगी लड़कियों से दोस्ती करे. जब भी क्लब में कोई पार्टी होती है, मैं सरकारी ड्यूटी पर जाता हूं.’’

उस ने आगे कहा, ‘‘मैं ने उस लड़की को अपनी ड्यूटी के बारे में नहीं बताया था. भले ही वह मुझे कोई राजामहाराजा समझती रही हो. एक रात उस ने मेरे गले लगते हुए कहा था कि मुझे आप जैसे अधिकारी से मोहब्बत है. मैं खुश हो गया कि मुझे दूसरे जासूसों को पकड़ने में एक हथियार मिल गया है.’’

‘‘आप को उस के मरने का दुख है?’’

वह बोला, ‘‘केवल इतना कि एक जासूस मर गई. अगर वह जिंदा रहती और मैं उसे मौके पर पकड़ता तो मेरी तरक्की हो जाती.’’

स्क्वाड्रन लीडर से बात करने के बाद मृतका का डाक्टर बाप आ गया और आते ही बोला, ‘‘लाओ, मुझे दिखाओ तुम ने स्क्वाड्रन लीडर से क्या बात की.’’

मैक्डोनाल्ड को गुस्सा आ गया, ‘‘मैं बिल्कुल परवाह नहीं करूंगा कि आप कर्नल हैं. आप इसी समय कमरे से निकल जाएं और आगे से हम से बात करने की कोशिश न करें.’’

वह उस समय चला गया और अगले दिन फिर आ गया और बोला, ‘‘मैं एडजुटेंट जनरल से मिला था. उस ने जांच पर नजर रखने के लिए कहा है.’’

मैं ने उस से कहा, ‘‘मैं जांच इसी समय खत्म कर के वायसराय को रिपोर्ट दे दूंगा कि हमारे काम में विघ्न डाला जा रहा है.’’ उस के बाद मैक्डोनाल्ड भी उस पर बरस पड़ा.

वह फिर दिखाई नहीं दिया. अगले दिन डोगरा मेजर हांफताकांपता आया और बोला, ‘‘मृतका जासूस थी. उस का बाप कर्नल गिरफ्तार हो गया है.’’

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पूरी बात पूछने पर उस ने बताया, ‘‘पिछली रात कलकत्ता मिलिट्री इंटेलिजेंस से फोन आया कि इस एंग्लोइंडियन कर्नल को गिरफ्तार कर के मिलिट्री पुलिस को दे दिया जाए.’’

सुबह भोर में डोगरा मेजर और फिर उस के साथी को जगा कर कहा गया कि अमुक होटल के अमुक कमरे को मिलिट्री पुलिस ने सील कर दिया है, कर्नल भी गिरफ्तार हो गया. आप जा कर कमरे की और कर्नल के सामान की तलाशी लो.

डोगरा मेजर अपने साथी के साथ चला गया. कर्नल के सामान की तलाशी में कुछ ऐसे कागज मिले, जिस से जासूसी का पता चला, और भी कई संदिग्ध चीजें मिलीं. कलकत्ता इंटेलिजेंस ने खबर दी कि कर्नल का पूरा परिवार कलकत्ता में था. कर्नल का छोटा भाई जासूसी करते पकड़ा गया.

उस की पिटाई हुई तो उस ने बताया कि वह जरमनों का जासूस है और उस का कर्नल भाई भी जासूस है. वे जापानियों की जासूसी करते थे. कर्नल की बेटी, जिस की हत्या हुई, वह भी इस गिरोह में शामिल थी. डोगरा मेजर जल्दी में था, इतना कह कर वह भाग गया.

उस के जाने के बाद हम दोनों ने सलाह की. मैक्डोनाल्ड ने कुछ सोच कर कहा, ‘‘मुझे हत्या का कारण भी बदला हुआ लगता है. हो सकता है, मृतका के गिरोह के किसी आदमी ने उस की हत्या कर दी हो, क्योंकि उन्हें संदेह था कि मृतका लड़की होने के नाते पूरे गिरोह को पकड़वा सकती है.’’

मैक्डोनाल्ड ने कहा, ‘‘अगर मेरी बात में कुछ जान है तो हमें मिलिट्री इंटेलिजेंस से मिल कर जांच करनी चाहिए.’’

उस दिन हमें ट्रैफिक पुलिस से 2 कारों के नंबर मिले, जिन के आखिर में 66 नंबर थे. दोनों के पते दिल्ली के थे. हम ने डोगरा मेजर को बुलाया कि वह हमारे साथ कार की जांच के लिए चले, क्योंकि उस ने ही कार देखी थी. वह हमारे साथ चलने को तैयार हो गया. हम ने रास्ते में उस से पूछा कि कर्नल के मामले में और क्या प्रगति हुई है तो उस ने कहा, ‘‘यह मामला गुप्त रखा गया है, किसी को कुछ बताने की इजाजत नहीं है.’’

हम दोनों कार के मालिकों के पते पर पहुंचे, जिन की कार के नंबर के आखिर में 66 था, लेकिन वहां से भी कुछ पता नहीं लगा. हमें डोगरा मेजर ने बताया कि आप हमारे अफसर से मिलें, शायद वह कुछ बता दे. डोगरा मेजर हमें अपने चीफ के औफिस ले गया और गायब हो गया.

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पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 3

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इंसपेक्टर मुनीष प्रताप को लगा कि हो न हो इसी झगडे़ में हमले की वजह छिपी हो सकती है. पुलिस टीम ने तब तक राजीव के फोन की काल डिटेल्स निकाल कर उस में उन तमाम लोगों से पूछताछ कर चुकी थी जो नंबर संदिग्ध लगे. लेकिन इस पूरी कवायद में कोई अहम जानकारी नहीं मिली.

लिहाजा इंसपेक्टर मुनीष प्रताप ने राजीव की पत्नी शिखा के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाल कर उस की छानबीन शुरू करा दी क्योंकि उन्हें  लग रहा था कि पति से झगडे़ की वजह से भी शिखा ऐसी किसी साजिश को अंजाम दे सकती है.

शिखा के मोबाइल पर आनेजाने वाले नंबरों की जांचपड़ताल शुरू हुई तो घर परिवार वालों के अलावा केवल एक ही ऐसा अंजान नंबर था जिस पर अकसर बात होती थी और वाट्सएप मैसेज और किए जाते थे.

जब जानकारी ली गई तो पता चला कि यह नंबर बुराड़ी में ही चंदन विहार कालोनी के रहने वाले रोहित कश्यप का है. हालांकि काल डिटेल्स से कोई शक करने वाली बात सामने नहीं आई थी. ये नंबर राजीव वर्मा की काल डिटेल्स में भी सामने आया था तभी पता चला था कि राजीव वर्मा और उस की पत्नी शिखा रोहित कश्यप के जिम में वर्क आउट करने जाते थे. राजीव सुबह जाता था जबकि शिखा उस वक्त जाती थी. जब भी उसे वक्त मिलता था.

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यानी एक तरह से रोहित कश्यप वो शख्स था जो पतिपत्नी की जिंदगी में कामन था. दोनों ही उस के जिम में वर्क आउट करने जाते थे. इसलिए स्वाभाविक था कि वे दोनों ही उस से किन्हीं कारणों से फोन पर बात करते होंगे. लेकिन शिखा उस से वाट्सएप चैट और काल करती थी. ये सवाल गौर करने लायक था.

शिखा को ले कर इंसपेक्टर मुनीष के मन में संदेह का कीड़ा तो पहले ही कुलबुला रहा था. इसलिए उन्होंने रोहित के बारे में विस्तार से जानने के लिए उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर छानबीन शुरू कर दी. बस छानबीन होते ही महत्त्वपूर्ण क्लू पुलिस के हाथ लग गया.

दरअसल जिस दिन राजीव वर्मा पर हमला हुआ उस दिन और उस से एक दिन पहले रोहित कश्यप के मोबाइल की लोकेशन उसी जगह मिली थी जहां राजीव पर हमला हुआ. ये जानकारी महज संयोग नहीं हो सकती थी. दिलचस्प बात ये थी कि वारदात से पहले और बाद में शिखा के फोन से रोहित कश्यप के फोन पर वाट्सएप काल भी की गई थी. बस इंसपेक्टर मुनीष के लिए इतना सबूत काफी था.

प्रेमी-प्रेमिका हुए गिरफ्तार

उन्होंने 11 अगस्त, 2019 को एक विशेष टीम का गठन किया. एसआई सरिता मलिक शिखा को उस के घर से और एसएसआई दिलीप सिंह ने अपनी टीम के साथ रोहित कश्यप को उस के जिम से हिरासत में ले लिया. दोनों को सूरजपुर थाने लाया गया. सीओ तनु उपाध्याय के सामने दोनों से सारे सबूत दिखा कर कड़ी पूछताछ की गई तो वे अपना गुनाह कबूल करने से बच नहीं सके.

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शिखा ने बता दिया कि उसी ने अपने जिम ट्रेनर प्रेमी के प्यार में पड़ कर अपने पति की हत्या करने के लिए रोहित को 1 लाख 20 हजार रुपए की सुपारी दी थी.

पुलिस ने दोनों से विस्तृत पूछताछ के बाद अगली सुबह रोहित के दोस्त गोविंदपुरी (दिल्ली) निवासी रोहन उर्फ मनीष को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों से पूछताछ में राजीव वर्मा शूटआउट केस का सनसनीखेज खुलासा हो गया.

शादी के बाद एक बेटा होने के बाद भी शिखा की खूबसूरती में कोई कमी नहीं आई थी लेकिन घर में कामकाज करने के कारण उस का फिगर बेडौल हो गया था. शरीर पर काफी चर्बी चढ़ने लगी थी, जिस कारण वह मोटी हो गई.

राजीव हालांकि पत्नी को बेहद प्यार करता था लेकिन शिखा के लगातार बढ़ रहे मोटापे के कारण पत्नी के प्रति उस का आकर्षण कम हो रहा था.

अब राजीव शिखा को अपने साथ दोस्तों के यहां अथवा किसी पार्टी में ले जाने से कतराने लगा था. राजीव अकसर शिखा पर उस का वजन बढ़ने के कारण कमेंट करता रहता था कि क्या वो खुद को शीशे में नहीं देखती, कितनी मोटी हो गई है.

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इन कमेंट्स से तंग आ कर शिखा ने वजन कम करने का फैसला कर लिया था. राजीव की सलाह पर उसने भी नजदीक के चंदन विहार मोहल्ले में स्थित उसी जिम को जौइन कर लिया जहां राजीव जाता था.

शिखा अकसर दोपहर बाद या शाम को जिम में जाती थी. जिम का ट्रेनर रोहित उसे प्यार भरी नजरों से देखता था. एक तरफ जहां पति की नजरों में शिखा को तिरस्कार दिखता था तो रोहित की प्यार भरी नजरों के कारण वह जल्द ही उसके आकर्षण में बंध गई.

रोहित कश्यप वैसे तो 8वीं पास था लेकिन उस का शरीर बेहद आकर्षक था कोई लड़की अगर एक बार उस के चेहरे और सुडौल बदन को देख ले तो उस के मोहपाश में फंसे बिना नहीं रह सकती थी. हालांकि 9 साल पहले रोहित ने भी एक बाल्मिकी लड़की से प्रेम विवाह किया था, जो आईटीओ पर एक संस्था में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी है.

खुद रोहित पहले भिवानी के एक जिम में ट्रेनर की नौकरी करता था लेकिन 2 साल पहले उसने बुराड़ी में अपना जिम खोल लिया था. लेकिन अब अपनी पत्नी से उस का भी अकसर झगड़ा होता रहता था.

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जब रोहित ने देखा कि शिखा धीरेधीरे उस के मोहपाश में बंध रही है तो उसने एक और कदम आगे बढ़ाया और वह वर्कआउट कराते वक्त न सिर्फ उस के नाजुक अंगों को सहला देता बल्कि अकसर उस के फिगर और उस की खूबसूरती की तारीफ भी कर देता. बस यही वो खूबी थी जिस के कारण धीरेधीरे शिखा रोहित के प्यार में डूबती चली गई.

जिम में वर्कआउट करतेकरते कब दोनों की नजदीकी प्यार में बदली और कब दोनों के बीच अवैधसंबध कायम हो गए पता ही नहीं चला. बहकी हुई औरत को जब किसी गैरमर्द के शरीर की गंध लग जाती है तो उस का विवेक भी गलत दिशा में चल पड़ता है. दोनों के नाजायज रिश्ते को एक साल से ज्यादा हो गया था.

वर्कआउट करने के बावजूद शिखा का मोटापा कम नहीं हो रहा था. पति राजीव के ताने अब और ज्यादा बढ़ गए थे. जिस कारण दोनों में अकसर झगड़ा भी हो जाता था. पति के ताने अब शिखा को शूल की तरह चुभने लगे थे. जब ताने बरदाश्त से बाहर हो गए तो 2 महीना पहले एक दिन शिखा ने मन की बात रोहित से कह दी. शिखा ने रोहित से कहा कि अगर वह उस से प्यार करता है तो किसी भी तरह राजीव को उस की जिदंगी से निकालना होगा.

शिखा के इरादे जानकर रोहित सहम गया.  राजीव से बदला लेने और अपने रास्ते से हटाने की ठान ली. इस के लिए उसने रोहित को 1 लाख 20 हजार रुपए दिए. रोहित ने अपने पहचान वाले आदमी से एक पिस्तौल खरीदी. उस ने अपने एक दोस्त रोहन को भी इस प्लान में शामिल किया.

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शिखा ने बताया कि उसने ही राजीव को मारने की प्लानिंग की थी. उस ने कहा कि जिस दिन राजीव ग्रेटर नोएडा स्थित साइट पर जाता था, वहां दोस्तों के साथ खाना शेयर करने के चलते उस दिन अपनी मनपसंद का अधिक खाना पैक करा कर ले जाता था और नोएडा की साइट पर जाने पर खाना कम पैक कराता. लंच बौक्स से ही जानकारी मिल जाती थी कि वह किस दिन कौन सी साइट पर जा रहा है. 23 जुलाई को राजीव ने कम खाना पैक कराने पर शिखा समझ गई कि राजीव नोएडा जाएगा. इस पर लोकेशन की जानकारी उस ने अपने प्रेमी रोहित को दे दी. रोहित अपने दोस्त के साथ बाइक से पीछा कर ग्रेटर नोएडा आया और घटना को अंजाम दिया.

पुलिस ने आरोपियों के कब्जे से घटना में इस्तेमाल की गई पल्सर मोटरसाइकिल व एक पिस्तौल और कारतूस बरामद कर लिए. रोहित और शिक्षा से पूछताछ के बाद पुलिस ने तीसरे आरोपी रोहन को भी गिरफ्तार कर लिया. तीनों आरोपियों को पुलिस ने गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

कथा लिखे जाने तक राजीव का अस्पताल में इलाज चल रहा था. उस की हालत खतरे से बाहर थी.

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पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 1

मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के रहने वाले धर्मवीर सिंह की नौकरी जब दिल्ली पुलिस में लगी तो वह दिल्ली  में ही रहने लगे थे. बाद में उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र की हरित विहार कालोनी में उन्होंने एक आलीशान मकान बना लिया. यहीं पर

रहते हुए वह 3 बच्चों  के पिता बने.  राजीव वर्मा उन के तीनों बच्चों  में सब से बड़ा बेटा था, उस से छोटा उपेंद्र और फिर इकलौती बेटी मीनाक्षी थी. तीनों बच्चों को पढ़ालिखा कर वह उन की शादी कर चुके थे.

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धर्मवीर सिंह भी 5 साल पहले दिल्ली  पुलिस से सब इंसपेक्टर पद से सेवानिवृत्तहो चुके थे. रिटायर होने के बाद उन्होंने बुराड़ी क्षेत्र में ही प्रोपर्टी डीलिंग का काम शुरू कर दिया था. छोटा बेटा उपेंद्र दिल्ली की आजादपुर मंडी में आढ़त का कारोबार करता है. जबकि बड़ा बेटा राजीव वर्मा एनसीआर के जानेमाने ओएसिस बिल्डर के यहां मार्केटिंग मैनेजर की नौकरी करता था.

राजीव ने मार्केटिंग का कोई कोर्स तो नहीं किया था लेकिन ग्रैजुएशन करने के बाद उस ने गाजियाबाद के कई बिल्डरों के यहां प्रोडक्शन से ले कर मार्केटिंग तक का काम किया था.

कई कंपनियों में तजुर्बा लेने के बाद पिछले कई साल से ओएसिस बिल्डर कंपनी में काम कर रहा था. अपनी मेहनत और तजुर्बे के कारण राजीव मार्केटिंग मैनेजर की पोस्ट तक पहुंच गया था.

राजीव वर्मा (38) की जिंदगी बेहद खुशगवार गुजर रही थी. परिवार में खूबसूरत पत्नी थी जिस का नाम था शिखा (34) और उन का एक बेटा था आकाश जिस की उम्र 14 साल थी. आकाश बुराड़ी के ही एक स्कूल में 9वीं कक्षा में पढ़ रहा था.

राजीव और शिखा ने करीब 16 साल पहले प्रेम विवाह किया था. ये उन दिनों की बात है जब राजीव गाजियाबाद में एक रियल एस्टेट कंपनी के औफिस में मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव की नौकरी करता था. उन्हीं दिनों उस की मुलाकात शिखा से हुई थी.

शिखा मूल रूप से मेरठ के रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार की लड़की थी. उस के पिता की मौत हो चुकी थी. 2 भाइयों के बीच वह इकलौती बहन थी.  मेरठ में उस के परिवार का नामचीन मिष्ठान भंडार है, जिसे शिखा के भाई संभालते हैं.

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शिखा अपने मामा के पास रह कर गाजियाबाद के एक कालेज से ग्रैजुएशन की पढ़ाई कर रही थी. एक दिन किसी दोस्त के परिवार में शादी समारोह के लिए प्रगति मैदान के विवाह मंडप में गई थी. संयोग से वहीं पर उस की मुलाकात राजीव से हुई.

राजीव आकर्षक व्यक्तित्व का युवक था जबकि छरहरे बदन और तीखे नयन नख्शके कारण शिखा भी उस वक्त यौवन के ऐसे उभार पर थी कि पहली नजर में कोई देख ले तो दीवाना हो जाए. पहली ही मुलाकात में दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया. फोन नंबर का लेनदेन हो गया और इस के बाद अकसर फोन पर बातें होने लगीं.

जल्दी ही बात मुलाकातों तक पहुंच गई. यही मुलाकातें बाद में प्यार में बदल गई और दोनों का प्यार इस मुकाम पर पहुंच गया कि राजीव और शिखा ने शादी करने का फैसला कर लिया. लेकिन एक परेशानी थी कि दोनों की जाति अलग थी. शिखा एक रूढि़वादी ब्राह्मण परिवार की लड़की थी. इसलिए दोनों ने परिवार वालों को बताए बिना पहले आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली उस के बाद उन्होंने परिवार वालों को शादी के बारे में बताया.

आमतौर पर अगर प्रेम विवाह में लड़का या लड़की किसी नीची जाति के न हों तो थोडे़बहुत विरोध के बाद परिवार वाले ऐसे शादी के बंधन को स्वीकार कर लेते हैं. परिजनों और शिखा की शादी को भी दोनों के परिवार ने थोडे़ विरोध के बाद मान्यता दे दी. राजीव अच्छा कमाता था, खूबसूरत था, इधर शिखा भी सुंदर थी और अच्छी संपन्न परिवार की लड़की थी, लिहाजा सब कुछ ठीक हो गया.

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अचानक आ गई मुसीबत

शिखा राजीव जैसे हैंडसम पति को पा कर खुश थी. बेटा होने के बाद तो उस की खुशियों में चारचांद लग गए. ऐसे ही हंसीखुशी से उन की जिंदगी बीत रही थी कि अचानक एक ऐसा हादसा हुआ कि इस परिवार की खुशियों को जैसे ग्रहण लग गया.

राजीव एक बड़ी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर था इसलिए अब उस की जिम्मेदारियां भी बढ़ गई थीं. उस की कंपनी का कार्पोरेट औफिस नोएडा के सेक्टर 2 में है लेकिन ग्रेटर नोएडा में 2 अलगअलग साइटों पर उस की कंपनी के प्रोजेक्ट का काम चल रहा था. दोनों साइटों पर ही मार्केटिंग का काम राजीव वर्मा ने संभाल रखा था.

वह कभी औद्योगिक क्षेत्र साइट-सी तिलपता के पास 130 मीटर रोड के किनारे बने ओएसिस वेनेसिया हाइट्स वाली साइट के दफ्तर जाता तो कभी एक्सप्रैस वे पर बन रहे प्रोजेक्ट वाली साइट पर.

23 जुलाई, 2019 की दोपहर करीब साढे़ 12  बजे का वक्त था. राजीव वर्मा अपनी सफेद रंग की क्रीटा कार में सवार हो कर कंपनी की साइट के लिए निकला दफ्तर के बाहर बनी पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर के दरवाजा खोल कर वह कार से बाहर निकला ही था कि तभी पार्किंग के समीप एक मोटरसाइकिल आ कर रुकी. बाइक पर 2 लोग थे. उन में से एक राजीव के नजदीक पहुंच गया और उस ने राजीव पर गोलियां बरसानी शुरू की दीं. जो युवक गोली चला रहा उस ने अपने मुंह पर रूमाल बांधा हुआ था, जबकि बाइक पर बैठा युवक हैलमेट लगाए हुए था.

एक के बाद एक ताबड़तोड़ 5 गोलियां चलीं जिन में से 4 गोलियां राजीव को जबकि एक गोली कार पर जा कर लगी. सब कुछ इतनी जल्दी हुआ था कि किसी को कुछ समझ नहीं आया.

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साइट के गेट पर बने औफिस में दरवाजे के भीतर शुभम और योगपाल नाम के 2 कर्मचारी खडे़ थे उन्होंने गोलियां चलती देखीं तो बाहर निकले और 2 हमलावरों को हाथ में पिस्तौल लिए देख वे उन्हें पकड़ने के लिए आगे बढ़े तो हमलावारों ने पिस्तौल का रुख उन की ओर कर धमकी दी कि अगर कोई आगे बढ़ा तो वे उसे भी गोली मार देंगे.

लिहाजा दोनों कर्मचारी वहीं खड़े हो कर शोर मचाने लगे. तब तक गोलियां लगने के बाद राजीव खून से लथपथ लहरा कर जमीन पर गिर चुका था.

दोनों बदमाशों ने जब देखा कि राजीव खून से लथपथ हो कर जमीन पर गिर चुका है और जल्दी भीड़ एकत्र हो सकती है तो उन्होंने वहां से मोटरसाइकिल दौड़ा दी. चंद मिनटों में ही हमलावर वारदात को अंजाम दे कर आंखों से ओझल हो गए.

शुभम और योगपाल उन के हाथ में थमी पिस्तौल के कारण हाथ मलते रह गए. उन के फरार होते ही दोनों ने चीखपुकार मचा कर साइट पर काम करने वाले कुछ दूसरे कर्मचारियों को एकत्र किया.

कुछ लोगों ने खून से लथपथ पडे़ राजीव कुमार को उन्हीं की गाड़ी में डाला, 2-3 लोग गाड़ी में और सवार हुए और तत्काल उसे ग्रेटर नोएडा के ही कैलाश अस्पताल ले गए. लेकिन उस की स्थिति ऐसी नहीं थी वहां उपचार हो पाता इसलिए डाक्टर ने राजीव को नोएडा वाले कैलाश अस्पताल में रेफर कर दिया गया. इस दौरान योगपाल नाम के कर्मचारी ने 100 नंबर पर काल कर के इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी.

चूंकि जिस जगह वारदात हुई थी वह इलाका सूरजपुर कोतवाली के अंतर्गत आता है. पीसीआर की गाड़ी चंद मिनटों में ही घटनास्थल पर पहुंच गई. पीसीआर को सारी घटना की जानकारी मिली तो उन्होंने आगे की काररवाई के लिए कोतवाली सूरजपूर को इस घटना की इत्तला दे दी.

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सूचना मिलते ही सूरजपुर कोतवाली के एसएचओ मुनीष प्रताप सिंह एसएसआई दिलीप सिंह और एसआई विकास को ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंचने के बाद जब ये पता चला कि हमले में घायल राजीव कुमार को नोएडा के कैलाश अस्पताल ले जाया गया है तो पुलिस टीम भी कैलाश अस्पताल पहुंच गई.

पुलिस जुट गई जांच में

वारदात की सूचना मिलने के बाद क्षेत्राधिकारी तनु उपाध्याय, एसपी देहात रणविजय सिंह और एसएसपी वैभव कृष्ण भी कैलाश अस्पताल पहुंच गए.

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पति का टिफिन पत्नी का हथियार: भाग 2

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खबर पा कर राजीव के पिता धर्मवीर सिंह, भाई उपेंद्र , पत्नी शिखा समेत अन्य परिजन भी अस्पताल पहुंच गए. चिकित्सकों ने बताया कि राजीव कुमार को 4 गोलियां लगी हैं. उन की जान तो बच जाएगी लेकिन खून ज्यादा बहने के कारण उन के शरीर में फंसी चारों गोलियों को निकालने में वक्त लगेगा.

इस वारदात को सब से पहले कंपनी के 2 कर्मचारियों योगपाल और शुभम ने देखा था. लिहाजा सब से पहले पुलिस ने उन से ही पूछताछ कर घटना की जानकारी ली. उन से पूछताछ के बाद राजीव के परिजनों से पूछताछ का सिलसिला शुरू हुआ. जिस के पास जो भी जानकारी थी सबने पुलिस को दे दी.

लेकिन न तो कंपनी का कोई कर्मचारी और न ही कोई परिजन ये बता सके कि राजीव पर ये हमला किसने किया अथवा जान लेने की कोशिश किसने की. परिजन ये भी नहीं बता सके कि राजीव की किसी से कोई रंजिश थी. पुलिस के आला अधिकारियों ने अस्पताल के बाद घटनास्थल का भी निरीक्षण किया.

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बिल्डर और वहां काम करने वाले दूसरे कर्मचारियों से भी पूछताछ की लेकिन कोई भी घटना के पीछे के कारणों या फिर राजीव की किसी से रंजिश के बारे में जानकारी नहीं दे पाया. इंसपेक्टर मुनीष प्रताप सिंह को अब तक की छानबीन से इस बात का आभास जरूर हो गया था कि बदमाशों ने जिस तरीके से घटना को अंजाम दिया, उस से लगता था कि वे पेशेवर हैं.

उन्हें ये भी आशंका लग रही थी कि हो सकता है वारदात को अंजाम दिलाने के लिए भाडे़ के बदमाशों का इस्तेमाल किया गया हो. क्योंकि बदमाशों ने अपने चेहरे पूरी तरह ढक रखे थे और उन्हें राजीव के साइट पर पहुंचने की सटीक जानकारी थी, इसलिए वे शायद पहले ही बाइक से आ कर वहां खड़े हो गए होंगे.

ब्लाइंड मर्डर का नहीं मिला सुराग

मुनीष प्रताप ने बिल्डर की साइट के आसपास के लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि बदमाश शायद पहले से ही कुछ दूरी पर घात लगा कर राजीव के आने का इंतजार कर रहे थे. तभी तो राजीव के कार से उतरते ही उस पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाई थीं. राजीव जब गाड़ी से उतरा तो उस के एक हाथ में मोबाइल और दूसरे में लंच बौक्स का बैग था.

एसएचओ मुनीष प्रताप ने मृतक राजीव के भाई उपेंद्र की शिकायत पर अज्ञात बदमाशों के खिलाफ भादंस की धारा हत्या के प्रयास की धारा 307 में मुकदमा दर्ज कर लिया. इस की विवेचना की जिम्मेदारी एसएसआई दिलीप सिंह को सौंप दी गई.

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चूंकि केस पूरी तरह ब्लाइंड था, न तो परिजनों ने और न ही राजीव के औफिस वालों ने किसी पर शक जाहिर किया था इसलिए मामले का खुलासा करने के लिए एसएचओ मुनीष प्रताप सिंह ने 3 टीमों का गठन कर दिया.

एक टीम की अगुवाई खुद वे कर रहे थे जिस में उन्होंने एसआई विकास और हैडकांस्टेबल विनय को शामिल किया. दूसरी टीम में जांच अधिकारी एसएसआई दिलीप सिंह के साथ हैडकांस्टेबल साहब सिंह और सतीश शर्मा को रखा था. जबकि महिला एसआई सरिता सिंह को सर्विलांस टीम के कांस्टेबल नीरज के साथ राजीव वर्मा के मोबाइल की सीडीआर निकालकर इसे खंगालने के काम पर लगाया गया.

इस दौरान चश्मदीदों से पूछताछ करने पर पता चला था कि हमले के दौरान राजीव कुमार ने गोली चलाने वाले बदमाश से जान बख्शने की गुहार लगाते हुए कहा था ‘अरे भाई मुझे क्यों मार रहे हो, लगता है तुम को कोई गलतफहमी हो गई है. जिसे आप मारना चाहते हो वह मैं नहीं हूं.’

लेकिन इस के बावजूद बदमाश नहीं रुके और उन पर 3 गोलियां और दागी थीं. ये पता चलने के बाद एसएचओ मुनीष प्रताप को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बदमाशों का निशाना कोई और हो और गलती से उन्होंने राजीव को गोली मार दी हो. इस शक की एक खास वजह ये थी कि राजीव के पास सफेद रंग की क्रेटा कार थी और उन के बिल्डर मालिक के पास भी उसी रंग की क्रेटा कार थी.

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इसीलिए इंसपेक्टर मुनीष को लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने कारोबारी रंजिश, लेनदेन के विवाद अथवा किसी दूसरे कारण से बिल्डर को मारने के लिए बदमाश भेजे हों और कार एक जैसी होने के कारण बिल्डर की जगह हमलावरों ने राजीव को निशाना बना लिया हो.

अपनी शंका का निवारण करने के लिए इंसपेक्टर मुनीष प्रताप ने बिल्डर को बुला कर कई बार उस से कुरेदकुरेद कर पूछताछ की. लेकिन उन्हें कहीं से भी ये जानकारी नहीं मिली कि ये मामला पहचान की गफलत में हुए हमले से जुड़ा है.

पुलिस को जांच में ये भी पता चला था कि बदमाशों ने जिस जगह वारदात को अंजाम दिया है, वहां सीसीटीवी कैमरा तो लगा था लेकिन वो कैमरा खराब था. अगर कैमरा काम कर रहा होता तो हमलावरों की पहचान करना आसान हो जाता.

इस जानकारी के बाद पुलिस को शंका हुई कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हमले में कंपनी का ही कोई आदमी शामिल हो और उसी ने सीसीटीवी कैमरा घटना से कुछ समय पहले बंद कर दिया हो. जांच पड़ताल की गई तो साफ हो गया कि कैमरा काफी दिनों से बंद था.

लेकिन एक बात साफ लग रही थी कि बदमाशों को इस बात की पक्की जानकारी थी कि राजीव वर्मा किस समय साइट पर आते हैं. ऐसे में मुनीष कुमार को ये भी शक हुआ कि कहीं बदमाश दिल्ली से ही तो राजीव की कार का पीछा नहीं कर रहे थे. हो सकता है उन्हें रोड पर वारदात करने का मौका न मिला हो. जिस के चलते उन्होंने साइट पर पहुंच कर कार से उतरते समय घटना को अंजाम दिया हो.

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लिहाजा मुनीष प्रताप ने उसी दिन दिल्ली  से बिल्डर साइट की तरफ आने वाले कई रास्तों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगालवाई, लेकिन इस में कहीं से भी संदिग्ध  हमलावरों को पकड़ने का कोई सुराग नहीं लग सका.

कई दिन गुजर चुके थे. सीओ तनु उपाध्याय लगातार हमले की इस घटना की जांच पर नजर रख रही थीं. इस मामले में राजीव की किसी से रंजिश या लेनदेन के विवाद की कोई जानकारी सामने नहीं आई थी. इस के बाद पुलिस ने दूसरे बिंदुओं पर भी जांच शुरू कर दी.

पुलिस ने तफ्तीश की बदली थ्यौरी

आमतौर पर हत्या या हत्या के प्रयास की किसी वारदात में अगर पुरानी रंजिश या विवाद का कोई कारण सामने नहीं आता है तो पुलिस पुरानी पद्धति से तफ्तीश शुरू करती है. यानि जर, जोरू और जमीन की थ्यौरी को जांच का आधार बनाती है. मुनीष प्रताप ने भी इसी थ्यौरी से जांच को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया.

इंसपेक्टर मुनीष  महिला एसआई सरिता मलिक व कुछ दूसरे स्टाफ को ले कर खुद ही पड़ताल करने के लिए राजीव वर्मा के बुराड़ी स्थित घर पहुंच गए.

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इंसपेक्टर मुनीष ने राजीव के परिवार के प्रत्येक सदस्य के अलावा आसपड़ोस के लोगों से भी कुरेदकुरेद कर पूछताछ की. इस पूछताछ में कई महत्त्वपूर्ण जानकारी हाथ लग गई. दरअसल जिस दिन राजीव पर हमला हुआ, उस से अगले दिन उस के अपने इकलौते बेटे का बर्थडे मनाने के लिए पहले से ही एक बडे़ समारोह की योजना बनाई हुई थी.

होना तो ये चाहिए था कि राजीव के अस्पताल में होने के कारण इस समारोह को टाल देना चाहिए था. लेकिन राजीव की पत्नी  शिखा ने पति के अस्पताल में होने के बावजूद अगले दिन बड़े जोश के साथ धूमधाम से बेटे का जन्मदिन मनाया था. ये जानकारी काफी हैरान करने वाली थी.

इस के साथ ही ये भी पता चला कि एक डेढ़ साल से राजीव के अपनी पत्नी शिखा से संबध ठीक नहीं थे. दोनों के बीच अकसर झगड़ा होता था. हालांकि राजीव के परिजनों ने ऐसी किसी जानकारी से इनकार किया लेकिन आसपड़ोस के लोगों ने बताया कि राजीव वर्मा शिखा से सीधे मुंह बात नहीं करता था और उसे अकसर डांटता रहता था.

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