17 अक्तूबर, 2019 की शाम का वक्त था. हिंदूवादी नेता 50 साल के कमलेश तिवारी लखनऊ के खुर्शेदबाग स्थित अपने औफिस में बैठे थे. औफिस के ऊपर ही उन का आवास भी था, जिस में वह पत्नी किरन और बेटे ऋषि के साथ रहते थे. घर के नीचे कार्यकर्ताओं और दूसरे लोगों के बैठने की व्यवस्था थी. उसी समय उन के मोबाइल पर एक फोन आया जिस पर बात करने वाले ने कहा, ‘हम लोग आप से मिलने कल आ रहे हैं.’

इस के बाद कमलेश तिवारी ने अपनी पत्नी को बुलाया और बोले, ‘‘कल गुजरात से कुछ लोग मिलने आ रहे हैं. औफिस वाला कमरा साफ कर देना. उन लोगों को चाय के साथ खाने में ‘दही वड़ा’ तैयार कर देना. कार्यकर्ता हैं, इतनी दूर से आ रहे हैं.’’

पत्नी ने कमलेश के कहे अनुसार दूसरे दिन की पूरी तैयारी कर ली.

18 अक्तूबर को करीब पौने 12 बजे 2 युवक हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए कमलेश तिवारी के घर पंहुचे. वे दोनों ही भगवा रंग के कुरते और डेनिम जींस पहने हुए थे. उन के पैरों में स्पोर्ट्स शूज थे. दोनों की उम्र 25 साल के करीब रही होगी. उन लोगों ने हिंदू समाज पार्टी के कार्यकर्ता सौराष्ठ सिंह को बताया कि कमलेश तिवारी से मिलने के लिए आए हैं. सौराष्ठ ने औफिस में बैठे कमलेश तिवारी से उन्हें मिलवा दिया.

कमलेश तिवारी उस समय औफिस में ही थे. वह उन्हीं दोनों का इंतजार कर रहे थे. कमलेश तिवारी सामने कुरसी पर थे. बीच में बड़ी सी मेज थी और सामने लोगों के बैठने के लिए कुछ कुरसियां पड़ी थीं. युवकों ने आते ही कमलेश तिवारी से अयोध्या मसले पर बात करनी शुरू की और कहा, ‘‘आप को बधाई, अब जल्दी ही फैसला आ जाएगा.’’

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