फेरी वालों के फरेब में फंसते लोग

‘ले लो बाबू. 10 कालीन हैं. बहुत ही कम दाम में मिल जाएंगे… हजारों रुपए का सामान बहुत ही कम कीमत पर देंगे. ऐसा मौका बारबार नहीं मिलेगा… हम लोगों को जरूरी काम से घर जाना है, इसलिए कम कीमत पर बेचना पड़ रहा है…’

इस तरह की बातें कहते फेरी वाले घरों और दफ्तरों के आसपास घूमते रहते हैं और कम कीमत पर इतने कालीन या कोई और सामान मिलता देख लोगों का लालची होना लाजिमी है. फेरी वालों की इस मार्केटिंग ट्रिक के  झांसे में लोग खासकर औरतें आसानी से फंस जाती हैं. लोगबाग पैसे जुटा कर फेरी वालों के कहे मुताबिक रुपयों का इंतजाम करते हैं. उन्हें अपनी औकात दिखाते हुए अकड़ के साथ रुपए थमा देते हैं और मन ही मन खुश होते हैं कि काफी कम कीमत पर ढेर सारा सामान मिल गया.

पटना की एक बड़ी कंपनी में काम करने वाले जितेंद्र सिंह कहते हैं कि एक दिन जब वे अपने दफ्तर में बैठ कर काम निबटा रहे थे तो कंधे पर कई चादर और दरी लादे एक नौजवान पहुंचा. उस ने पूछा कि चादर और दरी लेनी है? पहले तो जितेंद्र ने कहा कि नहीं भाई नहीं लेनी है. फेरी वाले ने कहा कि ले लो सस्ते में दे देंगे.

जितेंद्र ने जब पूछा कि कितने की है तो फेरी वाले ने कहा कि ये सब 4,000 रुपए की हैं, अगर 3,000 रुपए दे, तो वह सारी चादरें और दरियां दे देगा.

जितेंद्र ने कहा कि 2,000 रुपए में दोगे तो सोचेंगे. फेरी वाले ने कुछ देर नानुकर करने के बाद कहा कि अगर तुम्हारी जेब में 2,000 हैं तो निकाल दो और ले लो सारा सामान.

जितेंद्र ने कहा कि इतने रुपए फिलहाल उन के पास नहीं हैं, पर वे इंतजाम कर सकते हैं. फेरी वाले ने उन्हें उकसाते हुए कहा कि हो गया न चेहरा पीला. जेब में रुपया रहता नहीं है और चले हैं हजारों का सामान खरीदने.

जितेंद्र और फेरी वाले की बात को पास बैठा स्टाफ चुपचाप सुन रहा था. उस ने जितेंद्र को आगाह करते हुए कहा कि वे फेरी वाले के जाल में फंस रहे हैं. इस के बाद भी जितेंद्र फेरी वाले से सौदा पटाने में लगे रहे. आखिर में फेरी वाला जितेंद्र की औकात बताने लगा. दफ्तर में बेइज्जती होते देख पूरा स्टाफ उस फेरी वाले को मारने दौड़ा. अपनी चाल उलटी पड़ती देख वह फेरी वाला अपना सामान फेंक जान बचा कर भाग खड़ा हुआ.

मुजफ्फरपुर में रहने वाली अर्चना सिन्हा अपनी आपबीती सुनाते हुए कहती हैं कि एक दिन एक फेरी वाला उन के घर पर कालीन देख लेने की गुहार लगाने लगा. पहले तो उन्होंने फेरी वाले से कहा कि उन्हें कालीन की जरूरत नहीं है, पर वह बारबार कालीन देख लेने की जिद करने लगा. मन मार कर वे कालीन देखने लगीं.

कालीन अच्छे लगे और 2,000 रुपए में 10 कालीन देने की बात तय हो गई. फेरी वाले को रुपए दे कर उन्होंने नौकर से कहा कि कालीन अंदर ले आए. रुपए ले कर वह कालीन वाला दरवाजे से बाहर निकल गया.

थोड़ी देर बाद अर्चना सिन्हा ने कालीन का गट्ठर खोल कर देखा तो उस में 4 कालीन ही निकले, वे भी चादर की तरह पतले थे. 2,000 रुपए में 10 कालीन खरीद कर चालाकी भरा सौदा करने की खुशी काफूर हो गई. घटिया क्वालिटी की 4 चादरें देख कर उन की सम झ में आ गया कि वे ठगी जा चुकी हैं. उन्होंने नौकर को बाहर दौड़ाया और फेरी वाले को पकड़ने को कहा, पर वह कहां हाथ आने वाला था.

इस तरह के कालीन, चादर, दरी वगैरह अपने कंधे पर लाद कर कई फेरी वाले यहांवहां घूमते दिखाई देते हैं और आम लोगों को अपनी बातों में फंसा कर ठगते हैं.

मनोविज्ञानी रमेश देव बताते हैं कि ऐसे फेरी वाले आम आदमी की साइकोलौजी को पकड़ते हैं. उन्हें औकात की दुहाई दे कर दिल और दिमाग पर चोट करते हैं और उतावला हो कर और अपने को पैसे वाला साबित करने के चक्कर में लोग आसानी से उन की ठगी का शिकार बन जाते हैं.

ऐसे ठग फेरी वाले 3-4 चादरें, दरियां या कालीन को अपने कंधे पर इस तरह चालाकी और सलीके से सजा कर रखते हैं कि वे 8-10 नजर आते हैं.

कई बार जब कम पैसे में ज्यादा सामान खरीद लेने के अहसास के साथ फेरी वाले के जाने के बाद लोग गट्ठर खोलते हैं तो असलियत का पता चलता है. एक तो सामान कम होता है, साथ ही उस की क्वालिटी भी काफी बेकार होती है.

डीएसपी अशोक कुमार सिन्हा कहते हैं कि ऐसे फेरी वालों को खास तरह की ट्रेनिंग दी जाती है. इस तरह के धंधेबाजों का खासा नैटवर्क चलता है. वे लोग आम आदमी की औकात को ठेस पहुंचा कर अपना मतलब साधते हैं. 500-700 रुपए के सामान को 2-3 हजार रुपए में बेच लेते हैं.

कई मामलों में यह भी देखा गया है कि लोगों को फेरी वालों से सामान लेने की चाहत नहीं होती है, पर जब फेरी वाला उन्हें उन की औकात बताने लगता है तो लोग इज्जत का सवाल बना कर अपनी मेहनत की जमापूंजी को बिना सोचेसम झे उसे दे देते हैं. उस के बाद सामान की घटिया क्वालिटी को देख कर माथा पीटने के अलावा उन के पास कोई चारा नहीं रह जाता है.

फेरी वालों से सामान लेते समय सावधान रहें-

* जिस चीज की जरूरत न हो, कभी भी उस तरह का सामान ले कर आए फेरी वालों से बात न करें.

* फेरी वाला अपनी बातों में फंसा कर अपना उल्लू सीधा करता है, इसलिए उस से फालतू के ज्यादा सवालजवाब न करें.

* इस सोच को खत्म करें कि फेरी वाला सस्ते में अच्छा सामान देता है.

* फेरी वाले कम कीमत की चीजों का भी कई गुना ज्यादा पैसा ऐंठ लेते हैं. उतने पैसे में बाजार से अच्छी क्वालिटी की चीजें मिल जाती हैं. दुकानों में सामानों की रेंज भी अच्छी होती है और सामान की गारंटी भी मिलती है.

* औकात बताने पर उतर आए फेरी वालों को सबक सिखाने के लिए आसपास के लोगों को चिल्ला कर बुला लें. इस से ठग फेरी वाले भाग खड़े होंगे.

* कीमत को ले कर फेरी वालों से ज्यादा बक झक न करें. अगर चीज पसंद नहीं है तो उसे कम कीमत पर भी क्यों लें.

* फेरी वालों की ओट में बहुत बार चोरउचक्के भी घर में घुस कर लूटपाट कर लेते हैं, इसलिए अगर औरतें घर में अकेली हों तो वे फेरी वालों को न बुलाएं.

गांव की लड़की और शादी से पहले सेक्स

‘‘तुझे कुछ पता है कि नहीं, डौली और सुरेश का काफी दिनों से चक्कर चल रहा है.’’

‘‘सच में…?’’

‘‘हां, सच में. और उन दोनों के बीच बहुतकुछ हो चुका है. समझ रही है न तू? वह सब भी हो चुका है दोनों के बीच.’’

‘‘हायहाय, शर्म नाम की तो चीज ही नहीं रही है आजकल. यह सब, वह भी शादी से पहले. बिलकुल बदचलन लड़की है वह.’’

‘‘हां, पर हमें क्या करना है. मैं तो जो करूंगी शादी के बाद ही करूंगी. वैसे भी मुझ में आग नहीं लगी है उस डौली की तरह.’’

सेक्स को ले कर अकसर हमारे आसपास कुछ इस तरह की ही बातें होती हैं. वह लड़की जिस ने शादी से पहले सेक्स किया हुआ हो, समाज की नजर में कुलटा से ज्यादा कुछ नहीं होती. हां, शादी के 2 महीने बाद ही पेट से हो जाए तो उस में कोई शर्म नहीं है, क्योंकि शादी तो एक तरह से सेक्स करने का परमिट है. जितना करना है, जैसे करना है, करते रहो, लेकिन शादी से पहले न बाबा न.

बिहार के गांवों में एम्स, पटना के डाक्टरों द्वारा मई, 2019 में किए गए एक सर्वे से पता चला है कि कम से कम 30 फीसदी लड़कों और 15 फीसदी लड़कियों ने माना कि उन्होंने शादी से पहले सेक्स किया था.

सर्वे में यह भी पता चला कि बहुत से लड़के-लड़कियां गांव से बाहर जा कर सेक्स का मजा लेते हैं.

उन सर्वे करने वालों में आलोक रंजन, प्रज्ञा कुमार, शमशाद अहमद, संजय पांडे, रोजर शामिल थे.

सर्वे करने वालों को यह भी पता चला कि बहुत सी बड़ी उम्र वाली औरतें किशोर लड़कों के साथ सेक्स करती हैं.

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शादी से पहले सेक्स को ले कर समाज की सोच और इस सोच से पैदा हुआ डर ही उन मुश्किलों की वजह बनता है, जिन से लड़कियों को गुजरना पड़ता है.

छत्तीसगढ़ के एक गांव पुलना की 16 साल की एक लड़की को जब पेट में तेज दर्द उठने लगा तो उसे डाक्टर के पास ले जाया गया. वहां उसे बताया गया कि वह मां बनने वाली है.

यह जान कर उस के मांबाप की आंखें फटी रह गईं. घर वालों ने मारमार कर उस का हाल तो बुरा किया ही, साथ ही, उस की पढ़ाईलिखाई छुड़वा कर घर बैठा दिया.

वैसे तो गांवदेहात में आज भी 18 साल की उम्र होते ही लड़की को ससुराल विदा कर दिया जाता है. लड़कों के लिए शादी की उम्र कम से कम 21 साल मानी जाती है, लेकिन जब मोबाइल फोन और टैलीविजन पर इतनी हौट लड़कियों को ये लड़के देखते हैं तो इन का मन सेक्स करने के लिए मचलने लगता है.

चेन्नई के ‘हिंदू’ अखबार की साल 2010 की एक रिपोर्ट में कहा गया कि स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट में बताया गया है कि 6 में से एक लड़के और एक लड़की का शादी से पहले सेक्स हुआ था. ज्यादातर की उम्र सेक्स के समय 18 साल से कम थी.

देश में 25 करोड़ लड़के लड़कियों का सेक्स की चाहत से इनकार करना मुश्किल है, लेकिन कट्टरपंथी सरकारें सेक्स के बारे में कुछ भी स्कूलों में बताने की इजाजत नहीं देतीं कि कहीं पंडेपुजारी नाराज न हो जाएं. वे सेक्स करते हैं, पर मानना नहीं चाहते हैं.

‘लड़के तो होते ही ऐसे हैं’ की तर्ज पर ‘तुझे शर्म नहीं आई ऐसा करते हुए’, ‘मुंह काला कर के आ गई’, ‘तुझ जैसी लड़की को तो पैदा होते ही मार देना चाहिए था’ जैसी बातें लड़की को ही सुनाई जाती हैं. सेक्स करते तो लड़का लड़की दोनों हैं, लेकिन ठीकरा लड़की के सिर फूटता है, इसलिए शादी से पहले अगर लड़कियां सेक्स करना चाहती हैं, तो कुछ बातें अच्छे से जान और समझ लें.

लड़के की सोच क्या

जिस लड़के के साथ सेक्स करने जा रही हैं, उस की सोच असल में सेक्स खासकर लड़कियों के साथ शादी से पहले सेक्स करने को ले कर क्या है, जान लें. कहने को तो वह यही कहेगा कि ‘डार्लिंग, सब करते हैं, हम भी कर लेते हैं. आखिर शादी के बाद भी तो करना ही है’, लेकिन यही लड़का अपनी बहन का गला काटने के लिए भी तैयार हो जाएगा, अगर उसे पता चलेगा कि उस ने शादी से पहले सेक्स किया है.

साथ ही, सेक्स करते समय लड़के को यह उम्मीद रहती है कि जिस लड़की के साथ वह सेक्स करने जा रहा है, वह कुंआरी ही होनी चाहिए. कुंआरी मतलब, जिस की हाइमन झिल्ली फटी न हो, जो भारतीय संस्कृति के मुताबिक पाकसाफ हो, जिसे उस के अलावा पहले किसी ने छुआ न हो.

जिस लड़के के साथ आप सेक्स कर रही हैं, वह यह देखे कि बिस्तर पर खून नहीं है और आप कुंआरी नहीं हैं, चाहे आप कुंआरी हों, पर फिर भी अगर उसे ऐसा लगा और उस ने आप की बदनामी की तो आप जानती हैं कि घरपरिवार आप का न जाने क्या हाल करेगा.

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जगह का ध्यान रखें

शादी से पहले सेक्स घर में तो कर नहीं सकते और न ही आसपास ऐसा कोई बड़ा होटल है, जिस में आप जा सकें और न इतने पैसे हैं तो जगह क्या बची? खेत? स्कूल? तबेला? आधी रात में घर के पीछे? पर इस का अंजाम बहुत बुरा हो सकता है.

तमिलनाडु के एक सरकारी स्कूल में छुट्टी होने के बाद वहां के टीचर को आंगनबाड़ी की एक औरत के साथ सेक्स करते पकड़े जाने पर लोगों ने उन दोनों की पिटाई की और साथ ही उन्हें पूरे गांव के आगे शर्मसार किया गया.

गांवदेहात में लड़की चाहे पढ़ीलिखी ही क्यों न हो, शहर की लड़की जितनी खुली नहीं होती, कम से कम सेक्स के मामले में तो नहीं. शादी से पहले सेक्स करते अगर वह पकड़ी जाती है तो शायद वह खुद भी नहीं जानती है कि उस के साथ क्या हो सकता है, इसलिए यह समझ लेना जरूरी है कि सेक्स की जगह ऐसी हो, जहां पकड़े जाने की नौबत ही न आए.

मुसीबत में न डालें

जिस लड़के के साथ लड़की सेक्स कर रही है, वह उस का बौयफ्रेंड भी हो सकता है, रिश्तेदार या पड़ोसी हो सकता है, बहन का देवर हो सकता है या भाई का दोस्त भी हो सकता है. लड़की सेक्स प्यार में भी कर सकती है और सिर्फ मजे के लिए भी. लेकिन, हमारे समाज में सेक्स को ले कर मजा करने की छूट सिर्फ लड़कों को मिली हुई है, लड़कियों के हिस्से में सजा ही आती है.

सेक्स करते समय अगर लड़का कहे कि कुछ नया ट्राई करते हैं, बिलकुल वैसे ही जैसे कि ब्लू फिल्मों में होता है, तो लड़की को कुछ भी करने से पहले सोच लेना चाहिए.

पौपुलेशन काउंसिल के 2,500 लोगों के सर्वे से साफ है कि सिर्फ 7 फीसदी लोग ही कंडोम का इस्तेमाल करते हैं, जबकि वे शादी से पहले जाने अनजाने के साथ सेक्स करते हैं.

अगर लड़के के कहने पर लड़की बिना कंडोम के सेक्स करती है तो मां भी बन सकती है, उसे कोई इंफैक्शन या एड्स जैसी गंभीर बीमारी भी हो सकती है, नए पोज ट्राई करने के चक्कर में अंग पर चोटें भी आ सकती हैं.

किसी को न बताएं

सेक्स करने पर खुशी तो होती ही है और लड़कियां अकसर आपस में सेक्स को ले कर खूब बातें भी करती हैं. शादी के बाद तो सब लड़कियां ग्रुप बना कर बैठ जाती हैं और एकदूसरे को छेड़ती भी हैं, ‘बता न कल रात क्या हुआ’, ‘कितनी बार किया’, ‘तू ने वह भी किया था क्या, मैं तो नहीं करती’ वगैरह.

लेकिन, शादी से पहले सेक्स करने पर शायद ही कोई लड़की चाहेगी कि उस के परिवार या किसी और को भी इस बात का पता चले. लेकिन पेट में बात पचती नहीं है और लड़की अपनी करीबी सहेली या किसी पड़ोस की भाभी को यह बात बता देती है कि उस ने सेक्स कर लिया है.

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पर, जैसे सेक्स करने वाले के पेट में यह बात नहीं रखी गई तो भला सुनने वाले के पेट में कैसे रखी जाएगी. वह आज नहीं तो कल यह बात किसी न किसी को जरूर बताएगी.

तो अगर आप नहीं चाहती हैं कि सभी को आप के सेक्स के बारे में पता चले, तो बेहतर रहेगा कि इसे अपने और अपने प्रेमी तक ही रखें.

लड़के ध्यान दें

लड़कों की सोच साफतौर पर सेक्स को ले कर बहुत अलग होती है. सेक्स करने के लिए वह झूठ का सहारा भी ले लेते हैं और अपनी प्रेमिका पर दबाव भी डालते हैं.

कई बार बात बिलकुल उलट होती है, जिस में लड़की लड़के को सेक्स के लिए उकसाती है. लेकिन, इन सब में लड़के की सोच बहुत माने रखती है.

सोहन ने अपने पड़ोस में रहने वाली पिंकी को बहुत मनाया. वह उसे ‘बस एक बार कर ले न, एक बार में कुछ नहीं होता और किसी को पता भी नहीं चलेगा’ कहा करता था. पिंकी ने हां कर दी. दोनों ने छिप कर सेक्स कर लिया.

सेक्स करने के बाद से ही सोहन पिंकी से दोबारा सेक्स करने के लिए कहने लगा. वे दोनों एकदूसरे से मोबाइल फोन पर चैट करते थे.

एक दिन सोहन ने पिंकी से कहा कि क्या वह उस से पहले भी किसी के साथ सेक्स कर चुकी है?

पिंकी के इनकार करने पर सोहन का कहना था कि कोई भी लड़की पहली बार सेक्स करने पर इतनी ‘मस्त’ नहीं होती.

यह सुन कर पिंकी ने फिर कभी भी सोहन के साथ सेक्स करने से मना कर दिया. इस पर सोहन अपने हर एक दोस्त को यह बताने लगा कि पिंकी बड़ी चालू लड़की है.

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जो सोहन ने किया, वह कोई भी लड़का कर सकता है, लेकिन लड़कों को यह समझने की जरूरत है कि लड़कियां भी खुशी से सेक्स कर सकती हैं और इस के प्रति खुलापन रख सकती हैं. जरूरी नहीं कि लड़की डरेसहमे, घबराए या फिर डरनेघबराने का नाटक करे. उसे भी खुशी से सेक्स करने का हक है और इस बाबत वह बदनामी की हकदार नहीं हो जाती.

चुनाव और लालच : रोग बना महारोग

सुरेश चंद्र रोहरा

चुनाव का सीधा मतलब अब कोई न कोई लालच देना हो गया है. तकरीबन सभी राजनीतिक पार्टियां वोटरों को ललचाने का काम कर रही हैं और यह सीधासीधा फायदा नकद रुपए और दूसरी तरह के संसाधनों का है, जिसे सारा देश देख रहा है और संवैधानिक संस्थाएं तक कुछ नहीं कर पा रही हैं.

क्या हमारे संविधान में कोई ऐसा प्रावधान है कि राजनीतिक दल देश के वोटरों को किसी भी हद तक लुभाने के लिए आजाद हैं और वोटर अपनी समझ गिरवी रख कर के अपने वोट ऐसे नेताओं को बेच देंगे, जो सत्तासीन हो कर 5 साल तक उन्हें भुला बैठते हैं?

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क्या यह उचित है कि चुनाव जीतने के लिए लैपटौप, स्कूटी, मोबाइल, रुपएपैसे दिए जाना जरूरी हो? क्या अब विकास का मुद्दा पीछे रह गया है? क्या देश के दूसरे अहम मसले पीछे रह गए हैं कि हमारे नेताओं को रुपएपैसे का लौलीपौप वोटरों को देना जरूरी हो गया है या फिर यह सब गैरकानूनी है?

अब देश के सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर ऐक्शन ले लिया है और अब देखना यह है कि आगेआगे होता है क्या? क्या रुपएपैसे के लोभलालच पर अंकुश लग जाएगा या फिर और बढ़ता चला जाएगा? यह सवाल आज हमारे सामने खड़ा है.

25 जनवरी, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘चुनाव में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाएं देने के वादे करना एक गंभीर मद्दा है.’

चीफ जस्टिस एनवी रमण, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने इस मामले को ले कर देश में चुनाव कराने वाली संवैधानिक संस्था भारतीय चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर दिया है.

चुनाव में ‘माले मुफ्त दिल ए बेरहम’ जैसी हरकतें कर रहे राजनीतिक दलों  की मान्यता रद्द करने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने यह कदम उठाया. इस के बाद अब यह बहुतकुछ मुमकिन है कि आने वाले समय में कोई ठोस नतीजा सामने आ जाए.

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आप को यह बताते चलें कि सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमण ने कहा, ‘अदालत जानना चाहती है कि इसे कानूनी रूप से कैसे नियंत्रित किया जाए? क्या ऐसा इन चुनावों के दौरान किया जा सकता है या इसे अगले चुनाव के लिए किया जाए? निश्चित ही यह एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि मुफ्त बजट तो नियमित बजट से भी तेज है.’

दरअसल, देश की चुनाव व्यवस्था और राजनीतिक दलों की मुफ्त घोषणाओं पर यह सुप्रीम कोर्ट का खास और गंभीर तंज है.

नींद में चुनाव आयोग

लंबे समय से देश में चुनाव आयोग वोटरों को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों द्वारा की जा रही घोषणाओं पर एक तरह से चुप्पी साध कर बैठा हुआ है. लोकसभा हो या विधानसभा चुनाव उसे निष्पक्ष तरीके से पूरा कराने की जिम्मेदारी देश के संविधान ने चुनाव आयोग को सौंपी है और यह चुनाव आयोग केंद्र सरकार की मुट्ठी में रहा है.

ऐसे में राजनीतिक दलों द्वारा किए जा रहे असंसदीय बरताव और कानून की नजर से गलतसलत बरताव को देखते हुए भी अनदेखा करता रहा है, वरना तकरीबन 40 साल पहले शुरू हुए वोटरों को लुभाने की कोशिशों पर शुरुआत में ही अंकुश लगाया जा सकता था.

दक्षिण भारत के बड़े नेता अन्नादुरई ने बहुत सस्ते में वोटरों को चावल देने की घोषणा के साथ इस चुनावी लालच के सफर की शुरुआत की थी, जिस के बाद एनटी रामाराव ने आंध्र प्रदेश में इस चलन को आगे बढ़ाया.

वर्तमान में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में, जो अपने शबाब पर है, अखिलेश यादव ने वोटरों को लुभाने के लिए घोषणाओं की झड़ी लगा दी है कि अगर हमारी सरकार आई तो हम यह देंगे, वह देंगे. इसी तरह कांग्रेस की चुनाव कमान संभालने वाली प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी उत्तर प्रदेश चुनाव में वोटरों को कांग्रेस की सरकार बनने पर बहुतकुछ फ्री में देने का ऐलान कर दिया है.

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पंजाब में कांग्रेस के नवजोत सिंह सिद्धू ने भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और फ्री में बहुतकुछ देने की योजनाएं जारी कर दी हैं. अब यह रोग देशभर में महारोग बन चुका है. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लिया है.

आप को यह बताते चलें कि चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों के साथ एक बैठक कर उन से उन के विचार जानने चाहे थे और फिर यह मुद्दा ठंडे बस्ते में चला गया था.

सुप्रीम कोर्ट में वोटरों को लालच देने के मुद्दे वाली यह याचिका भारतीय जनता पार्टी के नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने दायर की है. याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों के चुनाव के समय मुफ्त चीजें देने की घोषणाएं वोटरों को गलत तरीके से प्रभावित करती हैं. इस से चुनाव प्रक्रिया भी प्रभावित होती है और यह निष्पक्ष चुनाव के लिए ठीक नहीं है.

पीठ ने सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के सुब्रह्मण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार मामले के एक पुराने फैसले का भी जिक्र किया. उस में अदालत ने कहा था कि चुनावी घोषणापत्र में किए गए वादों को जन प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 123 के तहत भ्रष्ट आचरण के रूप में नहीं माना जा सकता है.

इस बारे में अदालत ने चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों की सलाह से आदर्श आचार संहिता में शामिल करने की सलाह दी थी.

याचिकाकर्ता की तरफ से एक सीनियर वकील ने दलील दी कि इस मामले में केंद्र सरकार से हलफनामा तलब करना चाहिए. राजनीतिक दल किस के पैसे के बल पर रेवडि़यां बांटने के वादे कर रहे हैं. कैसे राजनीतिक दल मुफ्त उपहार की पेशकश कर रहे हैं. हर पार्टी एक ही काम कर रही है.

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इस पर चीफ जस्टिस एनवी रमण ने उन्हें टोका और पूछा कि अगर हर पार्टी एक ही काम कर रही है, तो आप ने अपने हलफनामे में केवल 2 पार्टियों का ही नाम क्यों लिया है.

जवाब में उन वकील ने कहा कि वे पार्टी का नाम नहीं लेना चाहते. पीठ में शामिल जस्टिस हिमा कोहली ने उन से पूछा कि आप के बयानों में काफीकुछ स्पष्ट है. याचिकाकर्ता के वकील का सुझाव था कि इस तरह की गतिविधि में शामिल पार्टी को मान्यता नहीं देनी चाहिए.

अब देखिए कि आगे क्या होता है. क्या सुप्रीम कोर्ट के इस कदम से देश में आने वाले चुनाव में वोटरों को ललचाने का खेल बंद होगा या फिर यह बढ़ता ही चला जाएगा?

किन्नर: समाज के सताए तबके का दर्द

 देवेंद्रराज सुथार

पिछले दिनों कोलकाता पुलिस में इंस्पैक्टर की भरती के इम्तिहान का इश्तिहार निकला, तो पल्लवी ने भी इस इम्तिहान में बैठने का मन बना लिया. जब उस ने आवेदनपत्र डाउनलोड किया, तो उस में जैंडर के केवल 2 ही कौलम थे, एक पुरुष और दूसरा महिला.

पल्लवी को मजबूरन हाईकोर्ट की शरण में जाना पड़ा. अपने वकील के जरीए उस ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और साल 2014 के ट्रांसजैंडर ऐक्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए अपनी दलील रखी.

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हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के एडवोकेट से इस मामले पर राय पेश करने को कहा. अगली तारीख पर राज्य सरकार के एडवोकेट ने हाईकोर्ट को बताया कि सरकार आवेदन के ड्राफ्ट में पुरुष और महिला के साथसाथ ट्रांसजैंडर कौलम रखने के लिए रजामंद हो गई है.

अब पल्लवी पुलिस अफसर बने या न बने, उस ने भारत के ट्रांसजैंडरों के लिए एक खिड़की तो खोल ही दी है.

ऐसे ही पुलिस में भरती होने वाली देश की पहली ट्रांसजैंडर और तमिलनाडु पुलिस का हिस्सा पृथिका यशनी की एप्लीकेशन रिक्रूटमैंट बोर्ड ने खारिज कर दी थी, क्योंकि फार्म में उस के जैंडर का औप्शन नहीं था. ट्रांसजैंडरों के लिए लिखित, फिजिकल इम्तिहान या इंटरव्यू के लिए कोई कटऔफ का औप्शन भी नहीं था.

इन सब परेशानियों के बावजूद पृथिका यशनी ने हार नहीं मानी और कोर्ट में याचिका दायर की. उस के केस में कटऔफ को 28.5 से 25 किया गया. पृथिका हर टैस्ट में पास हो गई थी, बस 100 मीटर की दौड़ में वह एक सैकंड से पीछे रह गई. मगर उस के हौसले को देखते हुए उस की भरती कर ली गई.

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मद्रास हाईकोर्ट ने साल 2015 में तमिलनाडु यूनिफार्म्ड सर्विसेज रिक्रूटमैंट बोर्ड को ट्रांसजैंडर समुदाय के सदस्यों को भी मौका देने के निर्देश दिए. इस फैसले के बाद से फार्म के जैंडर में 3 कौलम जोड़े गए.

तमिलनाडु में ही क्यों, राजस्थान में भी यही हुआ था. जालौर जिले के रानीवाड़ा इलाके की गंगा कुमारी ने साल 2013 में पुलिस भरती का इम्तिहान पास किया था. हालांकि, मैडिकल जांच के बाद उन की अपौइंटमैंट को किन्नर होने के चलते रोक दिया गया था. गंगा कुमारी हाईकोर्ट चली गई और 2 साल की जद्दोजेहद के बाद उसे कामयाबी मिली.

ये फैसले बताते हैं कि जरूरत इस बात की है कि समाज के हर शख्स का नजरिया बदले, नहीं तो कुरसी पर बैठा अफसर अपने नजरिए से ही समुदाय को देखेगा.

साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, हमारे देश में तकरीबन 5 लाख ट्रांसजैंडर हैं. अकसर इस समुदाय के लोगों को समाज में भेदभाव, फटकार और बेइज्जती का सामना करना पड़ता है. ऐसे ज्यादातर लोग भिखारी या सैक्स वर्कर के रूप में अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं.

15 अप्रैल, 2014 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने थर्ड जैंडर को संवैधानिक अधिकार दिए और सरकार को इन अधिकारों को लागू करने का निर्देश दिया. उस के बाद 5 दिसंबर, 2019 को राष्ट्रपति से मंजूरी मिलने के बाद थर्ड जैंडर के अधिकारों को कानूनी मंजूरी मिल गई.

हर तरह के जैंडर पर सभी देशों में चर्चा होती है, उन्हें समान अधिकार और आजादी दिए जाने की वकालत होती है, बावजूद इस के जैंडर के आधार पर सभी को बराबर अधिकार और आजादी अभी भी नहीं मिल पाई है.

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साल 2011 की जनगणना बताती है कि महज 38 फीसदी किन्नरों के पास नौकरियां हैं, जबकि सामान्य आबादी का फीसद 46 है. साल 2011 की जनगणना यह भी बताती है कि केवल 46 फीसदी किन्नर पढ़ेलिखे हैं, जबकि समूचे भारत की पढ़ाईलिखाई की दर 76 फीसदी है.

किन्नर समाज जोरजुल्म का शिकार है. इसे नौकरी और तालीम पाने का अधिकार बहुत कम मिलता है. ऐसे लोगों को अपनी सेहत की सही देखभाल करने में भी दिक्कत आती है.

दक्षिण भारत के 4 राज्यों तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के आंकड़े बताते हैं कि कुल एचआईवी संक्रमण में से 53 फीसदी किन्नर समुदाय का हिस्सा है.

किन्नर समुदाय भेदभाव के चलते ही अपनी भावनाओं को छिपाता है, क्योंकि वे लोग इस बात से डरे होते हैं कि कहीं वे अपने परिवारों द्वारा घर से निकाल न दिए जाएं.

किन्नरों के परिवारों में कम से कम एक शख्स ऐसा जरूर होता है, जो यह नहीं चाहता कि ट्रांसजैंडर होने के चलते समाज किसी से भी बात करे. किसी के किन्नर होने की जानकारी होने पर

समाज के लोग उस शख्स से दूरी बनाने लगते हैं.

विकास के इस दौर में किन्नर समाज आज भी हाशिए पर खड़ा है. किन्नर समुदाय के विकास की अनदेखी एक गंभीर मुद्दा है. सभी समुदायों के अधिकारों के बारे में चर्चा की जाती है, लेकिन किन्नर समुदाय के बारे में चर्चा तक नहीं होती. हर किन्नर पल्लवी जितने मजबूत मन का भी नहीं होता कि लड़ कर अपना हक ले ले.

सवाल यह है कि आखिर वह समय कब आएगा, जब समाज के सामान्य सदस्यों की तरह इन्हें भी आसानी से इन का हक मुहैया रहेगा? कानून के बावजूद भी उन की समान भागीदारी से बहुतकुछ बदल पाने की उम्मीद तब तक बेमानी है, जब तक कि सामाजिक लैवल पर नजरिया बदलता नहीं. जब तक सामाजिक ढांचे में उन की अनदेखी की जाती रहेगी, तब तक कानूनी अधिकार खोखले ही रहेंगे.

अब यह जरूरी है कि समान अधिकारों के साथसाथ समाज में भी समान नजरिया हो, तभी बदलाव आएगा. कानून एक खास पहलू है, लेकिन समाज के नजरिए को बदलना भी कम खास नहीं है, इसलिए इस जद्दोजेहद का खात्मा कानून के पास होने से नहीं होता, बल्कि यहीं से सामाजिक रजामंदी के लिए एक नई जद्दोजेहद शुरू होती है.

किन्नर ट्रेनों, बसों या सड़क पर लोगों के सिर पर हाथ फेरते हुए दुआ देते हैं और पैसे मांगते हैं. बद्दुआ का डर कुछ लोगों को पैसे देने के लिए मजबूर करता है, लेकिन यह उन की समस्या का हल नहीं है.

किन्नर के रूप में पैदा होने में उन का कोई कुसूर नहीं है. इन की जिंदगी बदलना भी हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन हम अपनी सोच तो कम से कम बदल ही सकते हैं.

हमारी सोच बदलेगी, तो किन्नर भी मुख्यधारा से जुड़ सकते हैं और बेहतर जिंदगी जी सकते हैं. आईपीएस, आईएएस अफसर ही नहीं, बल्कि सेना में शामिल हो कर देश की हिफाजत के लिए अपनी जान भी लड़ा सकते हैं.

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देश का उच्चतम न्यायालय और नरेंद्र दामोदरदास मोदी

नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार की परतें प्याज के छिलके की तरह उच्चतम न्यायालय में उघरने लगी हैं. पेगासस जासूसी मामले में देश की उच्चतम न्यायालय में जो कुछ हुआ उसे देखकर कहा जा सकता है कि जो तथ्य सामने आ रहे यह एक उदाहरण है जो बताता है कि “नोटबंदी” से लेकर “काले धन” और सारी नीतियों पर मोदी सरकार का “सच” क्या है.

सुप्रीम कोर्ट का अहम आदेश आया है. इसमें कहा गया है कि पेगासस जासूसी मामले की जांच एक्सपर्ट कमेटी करेगी. इसे 8 हफ्ते में रिपोर्ट देनी है.  कोर्ट में दायर याचिकाओं में स्वतंत्र जांच की मांग की गई थी. उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमणा, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने इसपर फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि लोगों की “विवेकहीन जासूसी” बिल्कुल मंजूर नहीं है.

जैसा कि सभी जानते हैं पेगासस मामले में मोदी सरकार जांच कतई नहीं चाहती और विपक्ष खासतौर पर राहुल गांधी और देश की बौद्धिक वर्ग के महत्वपूर्ण लोग चाहते हैं कि दूध का दूध और पानी का पानी होना ही चाहिए.

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यही कारण है कि राहुल गांधी मोदी सरकार पर लगातार हमला कर रहे हैं और पेगासस पर जांच चाहते हैं सारे तथ्य सार्वजनिक होना चाहिए  वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार चाहती है कि “राष्ट्रीय सुरक्षा” की आड़ पर पेगासस मामला बंद कर दिया जाए. यही रस्साकशी विगत कई माह से देश में चल रही है. जिसका पटाक्षेप उच्चतम न्यायालय ने यह कर कर दिया है कि हर मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ कर आप अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकते और इस पर कोई हम समझौता नहीं करना चाहते.

अब सुप्रीम कोर्ट ने रिटायर्ड जस्टिस आरवी रवींद्रन की अगुवाई में कमेटी का गठन किया गया है. जस्टिस रवींद्रन के साथ आलोक जोशी और संदीप ओबेरॉय इस कमेटी का हिस्सा होंगे. एक्सपर्ट कमेटी में साइबर सुरक्षा, फारेंसिक एक्सपर्ट, आईटी और तकनीकी विशेषज्ञों से जुड़े लोग होंगे. आशा की जानी चाहिए कि सारे तथ्य सामने आ जाएंगे की अखिल इस जासूसी का मकसद क्या था इसमें कितना राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय सुरक्षा जुड़ी हुई थी और कितनी सत्ता में बैठे लोगों के लिए मलाई या लाभदायक थी.

उच्चतम न्यायालय में- “पहला फांस”

संभवत लगभग 7 सालों में यह पहली बार हुआ है कि जब देश के सुप्रीम कोर्ट में नरेंद्र मोदी सरकार का पसीना निकल आया है. क्योंकि सरकार चाहती थी कि पेगासस मामले में जांच ना हो और मामला खत्म कर दिया जाए. मगर उच्चतम न्यायालय ने इसे जिस गंभीरता से लिया है उससे मोदी सरकार को दिक्कत हो सकती है.

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यहां यह भी सच सामने आ गया है कि नरेंद्र मोदी सरकार कई मामलों में “राष्ट्रीय सुरक्षा” का ट्रंप कार्ड खेल करके संवेदनशील मामलों पर पर्दा डालने का काम करती रही है. जब भी कोई पेंच फंसता है तो मोदी और उनके नुमाइंदों को पाकिस्तान, चीन भारत का विश्व गुरु होना याद आने लगता है या फिर राम मंदिर की शरण.

शायद नरेंद्र मोदी सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा कह कर के  सब कुछ  मुट्ठी में रहना चाहती है और वह जैसा चाहेगी वही होगा. यह कि देश की बाकी संवैधानिक संस्थाएं  उसके खींसे में हो.

यही कारण है कि देश में लोकतांत्रिक सरकार एक 5 साल के लिए चुनी हुई सरकार की अपेक्षा मोदी सरकार का व्यवहार कुछ ऐसा है जैसे मानो आजीवन सरकार चुनी गई है. और देश का हर अंतिम फैसला वह करना चाहते हैं मगर भूल जाते हैं कि इन्हें सिर्फ 5 वर्ष का कार्यकाल और देश चलाने का जिम्मा देश की जनता ने सौंपा है. देश की जनता के दुख दर्द और विकास के लिए काम करना है ना कि व्यक्तिगत अथवा पार्टी हित ही देखना है.

पेगासस जांच एक गंभीर मसला

जैसा कि देश का कानून है कि आप किसी की जासूसी नहीं कर सकते फोन टैपिंग नहीं की जा सकती. मगर ऐसा हुआ है यह सच सारी दुनिया जान चुकी है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 13 सितंबर को मामले पर अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि वह केवल यह जानना चाहती है कि क्या केंद्र ने नागरिकों की कथित जासूसी के लिए अवैध तरीके से पेगासस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया या नहीं?

कोर्ट ने कहा कि जासूसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रहरी के रूप में प्रेस की भूमिका पर गलत प्रभाव डाल सकती है. कहा गया कि एजेंसियों द्वारा एकत्र की गई जानकारी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बेहद जरूरी होती हैं. लेकिन निजता के अधिकार में तभी हस्तक्षेप हो सकता है जब राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए यह बहुत जरूरी हो.

पेगासस केस की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर केंद्र सरकार का कहना था कि यह सार्वजनिक चर्चा का विषय नहीं है और न ही यह ‘राष्ट्रीय सुरक्षा के हित’ में है.

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कुल मिलाकर पेगासस जासूसी मामले में निष्पक्ष जांच के लिए 15 याचिकाएं दायर की गई थीं. ये याचिकाएं वरिष्ठ पत्रकार एन राम, सांसद जॉन ब्रिटास और यशवंत सिन्हा समेत कई लोगों ने दायर की थीं.

दुनिया के मीडिया समूह ने खबर दी थी कि करीब 300 प्रमाणित भारतीय फोन नंबर हैं, जो पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये जासूसी के संभावित “निशाना” थे. आने वाले समय में नरेंद्र मोदी सरकार की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं और सच सामने आ सकता है.

मोबाइल वीडियो एक मजबूत हथियार 

पुलिसके अत्याचारों के खिलाफ आम लोगों के हाथ में आज सब से बड़ा हथियार मोबाइल है. सैकड़ों वीडियो क्लिप्स आज सोशल मीडिया में घूम रही हैं जिन में पुलिस वालों को किसी को बेरहमी से पीटते, किसी से रिश्वत लेते, लोगों से जोरजबरदस्ती करते देखा जा रहा है. इस बीच, पुलिस वाले चौकन्ने हो गए हैं, वे ऐसे मोबाइलों को तोड़ने की कोशिश करने लगे हैं.

मोबाइलों से खींची या बनाई गईं वीडियो क्लिप्स कोई असर डालती हैं, इस बारे में कोई आंकड़ा तो जमा नहीं किया गया पर पुलिस वालों को इस से फर्क जरूर पड़ता है. कई बार जब ये क्लिप्स टीवी चैनलों में पहुंच जाती हैं और चैनल सरकारी भोपू न हों और चुप न रहने की हिम्मत रखते हों, तो पुलिस की आमजन के प्रति क्रूरता जगजाहिर हो जाती है.

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आज युवा ज्यादा उत्साह दिखाते हैं जो गलत बातों का विरोध करते हैं. उन के लिए पुलिस के डंडों से बचने का यह एक उपाय है. पर फ्रांस में एक कानून बनने वाला है जिस में इस तरह की वीडियो बनाना ही अपराध घोषित कर दिया जाएगा. ऐसी एक वीडियो क्लिप हमारे देश भारत में किसान आंदोलन के दौरान एक वृद्ध सिख पर पुलिस वाले का डंडा बरसाने की बनाई गई थी जिस पर राहुल गांधी की टिप्पणी पर भाजपा आईटी सैल ने ट्विटर पर एक अधूरा वीडियो डाला था. ट्विटर कंपनी ने भाजपा के अमित मालवीय के इस प्रतिउत्तर  वाले ट्वीट को गलत ठहराया है. फ्रांस तो उसे पकड़ लेगा जिस ने पुलिस वाले का वीडियो बनाया था. फ्रांस में बन रहे कानून के खिलाफ वहां देशभर में  1 दिसंबर से प्रदर्शन होने लगे हैं. लोग कहते हैं कि उन्हें पुलिस की ज्यादतियों का वीडियो लेने का मौलिक अधिकार है. पुलिस कानून को हाथ में नहीं ले सकती.

वह जबरन किसी को पीट नहीं सकती. नागरिकों के पास अकेला हथियार उस समय उस के साथी या आसपास के लोगों द्वारा बनाए गए वीडियो ही हैं. पुलिस किस तरह हमारे देश भारत में थानों में अत्याचार करती है, यह जगजाहिर है. दिसंबर के पहले सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि सारे थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं ताकि थानों के भीतर पुलिस के अत्याचार कम हो सकें.  ये सीसीटीवी कैमरे लग तो जाएंगे पर पहले ही दिन से खराब रहेंगे.

सुप्रीम कोर्ट हर थाने में थोड़े ही मौजूद रहेगा? वहां तो आरोपी के रिश्तेदार ही होंगे और यदि उन के पास पूछताछ के समय वीडियो बनाने का अधिकार हो तो पुलिस अपनी बर्बरता से उन्हें वीडियो बनाने से रोक सकती है. दुनिया के हर देश को पुलिस की जरूरत है पर हर देश में पुलिस अपनेआप में आपराधिक गिरोह बन जाती है. जो किसी वजह या बेवजह पकड़ा गया, वह पुलिस अत्याचारों का शिकार रहा था या नहीं, यह कभी पता नहीं चल सकता.  सरकारें पुलिस पर रोक लगाने के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि सत्ता में बैठे नेता अपने विरोधियों को इसी पुलिस के सहारे कुचलते हैं.

वैसे, मार खाने वालों में ज्यादातर युवा ही होते हैं, वे चाहे राजनीतिकविरोधी हों या समाज के प्रति असल गुनाहगार. एमेजौन का वर्चस्व  दुनियाभर में नवंबर का आखिरी शुक्रवार औफर्स का मनभावन दिन होता है जब बड़े स्टोर अपना बचा माल बहुत सस्ते दामों पर बेचते हैं. इसे ‘ब्लैक फ्राइडे’ कहते हैं. अमेरिका से शुरू हुआ यह तमाशा अब दुनिया के सभी समृद्ध देशों के स्टोर मनाते हैं और औनलाइन स्टोरों, जैसे एमेजौन आदि ने भी ब्लैक फ्राइडे मनाना शुरू कर दिया है.  इस बार इसी दिन एमेजौन के खिलाफ एक आंदोलन शुरू हुआ है.

ऊपर से तो यही कहा जा रहा है कि एमेजौन अपने कर्मचारियों को पूरे पैसे नहीं देता और बहुत से देशों में टैक्स नहीं देता, पर असली वजह यह है कि लोग इस की बढ़ती मोनोपौली से घबरा रहे हैं. एमेजौन अब आप को अपनी मरजी का सामान बेचता है और जो जरूरत नहीं, वह भी मनमाने दामों में बेच डालता है.  मोबाइल या कंप्यूटर पर खरीदारी एक तरह से जुए की शक्ल लेने लगी है जिस में लोग फोटो या वीडियो देख कर सस्ती चीजों को खरीदते हैं और फिर इंतजार करते हैं कि पासा उन के पक्ष में पड़ा या नहीं. एमेजौन जुआघर बनने लगा है. इस में लोगों को घर बैठे सस्ते सामान का लालच दे कर जुआ खेलने की आदत डाली जा रही है. यह काम आप के घर के करीब की दुकानें नहीं कर सकतीं. एमेजौन छोटे बिजनैसों को हड़प रहा है और आज के या भविष्य के लाखों छोटे व्यापारी अब डिलीवरीमैन बने जा रहे हैं.

एमेजौन ने बुद्धिहीन डिलीवरीमैनों की आर्मी खड़ी कर ली जो एक भाषा, एक सा व्यवहार, एक सी पोशाक पहन रहे हैं. यही नहीं, वे जल्द से जल्द सामान पहुंचाने के लिए ट्रैफिक का वह जोखिम ले रहे हैं जो सीमा पर दुश्मन से लड़ने के लिए सैनिक लेते हैं. आम किसी कंपनी का घरेलू सामान आज बिक ही नहीं सकता अगर एमेजौन का वरदहस्त न हो.

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चीनी कंपनी अलीबाबा भी वैसी ही है, पर एमेजौन तो उस से 8-9 गुना बड़ी है. कोई बड़ी बात नहीं होगी जो कभी रहस्य खुले कि अमेरिकाचीन संबंध एमेजौन के कारण खराब हुए थे जो अलीबाबा को आगे बढ़ने नहीं देना चाहती. यह संभव है कि आज एक कंपनी अमेरिका और चीन की सरकारों को प्रभावित कर ले.  बहरहाल, शिकार हर हालत में आज के युवा ही होंगे जो या तो फालतू सामान खरीदेंगे या फिर फालतू टिकटौक  पर नाचेंगे.

औनलाइन गैंबलिंग यूज फिर मिस यूज   

लेखक- रोहित   

जिस बिंदु की तरफ ज्यादातर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा वह अनप्रोडक्टिव वर्क कल्चर को बढ़ावा दे रहा है. समस्या यह है कि समाज ने उसे नैतिकअनैतिक की बहस में उलझा कर रखा हुआ है, जबकि वह किसी भी तरह से प्रोडक्टिव नहीं है. ‘‘चौराहे पर लगे ट्रैफिक सिगनल यातायात को सुचारु रूप से चलाए रखने के लिए निर्णायक हैं.

अब अगर कुछ बाइकसवार यातायात के बने इन नियमों की अवहेलना करते हुए रैडलाइट जंप कर दें, तो क्या इस अपराध को रोकने के लिए ट्रैफिक सिगनल से रैडलाइट ही हटा देना उचित कदम होगा?’’ यह सवाल करते हुए अशोक ने एक अनबुझ पहेली मेरे सामने रख दी. दरअसल, कुछ दिनों पहले आईपीएल मैच देखते हुए भारत में औनलाइन गैंबलिंग के बढ़ते चलन को ले कर मेरी अपने मित्र अशोक से चर्चा चल रही थी. और यह सवाल उस ने मेरे उस बात के प्रतिउत्तर में दागा था जिस में मैं ने उस से कहा कि गैंबलिंग को वैधानिकता मिलने से इस से जुड़े छिपे गैरकानूनी धंधों में कमी आएगी, सबकुछ सामने होगा और सरकार को टैक्स के तौर पर रैवेन्यू में भारीभरकम रकम प्राप्त होगी.

अशोक का इस मसले पर सीधा सोचना था कि ‘‘अगर गैंबलिंग की वैधानिकता से सरकार को टैक्स का फायदा होता है तो ड्रग्स, कालेधन, स्मगलिंग, ट्रैफिकिंग जैसे दो नंबरी धंधों को कानूनी बना कर उन से भी भारीभरकम टैक्स कमाने में क्या बुराई है, ये धंधे भी वैधानिक कर दिए जाने चाहिए?’’ उस के सवाल तीखे थे, लेकिन जिज्ञासा जगा रहे थे. मैं ने गाजियाबाद में रह रहे अपने एक अन्य मित्र 28 वर्षीय प्रदीप (बदला नाम) को फोन मिलाया. दरअसल, मुझे जानकारी थी कि प्रदीप ने पिछले साल से ही औनलाइन गैंबलिंग में हिस्सा लेना शुरू किया था. वैसे तो इसे सीधेसीधे गैंबलिंग कोई स्वीकार नहीं करता लेकिन प्रदीप ने सीधेतौर पर बताया कि यह एक तरह का सट्टा या जुआ ही है. जो जुआ आप मटका या औफलाइन छिपेतौर पर खेल रहे थे, बस, अब वह पूरी मान्यता के साथ खेला जा रहा है.   प्रदीप लौकडाउन से पहले गुरुग्राम स्थित एक एमएनसी में काम कर रहा था. उस की नौकरी 2 साल पहले लगी थी. उस ने शुरू से ही कंप्यूटर लाइन चुनी थी.

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उस ने पहले बीसीए किया, फिर जौब करते हुए अपनी एमसीए की पढ़ाई भी पूरी की. जिस कंपनी में वह कार्यरत था वहां उसे 25 हजार रुपए प्रतिमाह सैलरी मिलती थी. इसलिए उस ने घर से दूर लेकिन औफिस के नजदीक ही गुरुग्राम में कहीं अपने कुछ सहकर्मियों के साथ किराए के फ्लैट में रहने का फैसला किया था. परिवार की जिम्मेदारी संभालते हुए वह नियमिततौर पर सैलरी का एक हिस्सा घर भिजवाता रहा. वहां रह कर उस ने परिवार की आर्थिक स्थिति को संतुलित किया, और साथ ही अपने लिए कुछ सेविंग्स भी की. लेकिन इस बीच धीरेधीरे वह अपने दोस्तों के साथ औनलाइन गेमिंग की जकड़ में भी फंसता गया. शुरूआत मजे से हुई लेकिन धीरेधीरे यह उस की आदत का हिस्सा बनता चला गया.  देश में तालाबंदी हुई तो शुरुआती डेढ़ महीना वह अपने सहकर्मियों के साथ फ्लैट में ही फंसा रहा. वहां वह अधिकतर खाली समय औनलाइन गेम खेलता रहा. तालाबंदी के तुरंत बाद ही कंपनी ने छंटनी कर उसे काम से निकाल दिया. प्रदीप वापस अपने घर गाजियाबाद में आ तो गया, लेकिन धीरेधीरे वह अपने ही फ्रैंड सर्कल में शौर्टकट तरीके से पैसे कमाने के लिए छोटीछोटी औनलाइन बैट यानी शर्त लगाने लगा. इस बीच, आईपीएल क्रिकेट टूर्नामैंट शुरू होने के बाद उस ने ‘ड्रीम 11’ पर खेलना (बैट लगाना) शुरू किया. हालांकि इस से पिछले साल वह इसे खेल चुका था लेकिन इस साल, उस के कथनानुसार, उस ने अपनी की हुई सेविंग से लगभग 36 हजार रुपए गंवा दिए हैं. लेकिन, उस का मानना है कि औनलाइन गेमिंग से वह इसे जल्द ही रिकवर कर लेगा, अपने नुकसान की भरपाई कर लेगा. वहीं, यूपीएससी की प्रतियोगिता की तैयारी कर रहे प्रखर लौकडाउन के बाद से ही अपने होमस्टेट बिहार चले गए थे.

वे कम से कम इस साल तो कोरोना के चलते दिल्ली का रुख नहीं करना चाहते. वे कहते हैं, ‘मैं ने पिछले साल से ही आईपीएल पर की जाने वाली औनलाइन सट्टेबाजी में हिस्सा लेना शुरू किया. पिछले साल ‘ड्रीम 11’ पर खेल कर लगभग 2,200 रुपए जीते थे. लेकिन इस साल मैं हारा हूं.’ हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि वे किसी दूसरे औनलाइन गेम से इस नुकसान की भरपाई कर लेंगे.  इस साल के जून माह में ही आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में स्थित पंजाब नैशनल बैंक के भीतर एक फोरजरी का मामला सुर्खियों में था. बैंक के कैशियर रवि तेजा ने औनलाइन गेम (रम्मी) में होने वाली गैंबलिंग में फंस कर पहले अपना पैसा बरबाद किया, फिर कर्ज ले कर गेम खेलने लगा. जब कर्ज का बो?ा बढ़ा और कर्ज लेने वाले घर के इर्दगिर्द तकाजा करने लगे, तो उस ने बैंक में जमा लोगों के पैसों को अपने अकाउंट में ट्रांसफर करना शुरू कर दिया. अंत में जब बैंक औडिट हुआ तो पता चला लगभग 1 करोड़ 57 लाख रुपए की कमी पाई गई है. इस की जांच की गई.

जांच में पता चला, यह सारा पैसा कैशियर के अकाउंट में ट्रांसफर हुआ था. फिर वहां से कैशियर द्वारा औनलाइन गेमिंग साइट्स पर ट्रांसफर किया गया. ये ही कुछ मामले नहीं हैं, बल्कि पिछले कुछ वर्षों में औनलाइन गेमिंग के जरिए गैंबलिंग करने के ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं. कई मामले ऐसे हैं जिन में सट्टे की रकम न चुकाने की स्थिति में व्यक्ति द्वारा सुसाइड करने की नौबत आ चुकी है. भारत में गैंबलिंग के अवैध होने के बावजूद सरकार और न्यायालयों के सामने या यों कहें कि उन की परामर्श या मंजूरी के बाद ही इस धंधे का क्षेत्रफल विशालकाय होता जा रहा है.  स्किल और चांस के बीच वैधअवैध का खेल? इस साल आईपीएल में औनलाइन जुआ से संबंधित गेम्स को खूब प्रमोट किया गया. कल तक जिस पेटीएम पर गूगल ने सट्टेबाजी को ले कर प्रतिबंध लगाया था, उसे मात्र 4 घंटे के भीतर ही समझौता कर गूगल ने वापस ले लिया.

इसी प्रकार गैंबलिंग से जुड़े गेम्स इस साल काफी बड़े स्तर पर देखने को मिले हैं. इस का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस साल आईपीएल क्रिकेट लीग को ‘ड्रीम 11’ ने स्पौंसर किया. वहीं, माय सर्किल 11, एमपीएल जैसे औनलाइन गैंबलिंग से संबंधित एकसाथ कई ऐसे गेम्स की बाढ़ सी आ गई है. ये खुलेतौर पर लोगों से पैसा लगाने का आह्वान कर रहे हैं. यह आह्वान, खासकर, उन युवाओं को सीधे लुभा रहा है जिन के पास एंड्रौयड फोन है और जो बेरोजगारी के मौजूदा दौर में शौर्टकट तरीके से पैसे कमाने की जुगत में लगे हैं. किंतु इन सारी चीजों के बावजूद बड़ा सवाल यह है कि भारत में जब जुआ या सट्टे से जुड़े कारोबार पर पाबंदी है तो यह खुलेआम इतने बड़े लैवल पर कैसे सुचारु रूप से चल रहा है? भारत में इस समय पब्लिक गैंबलिंग एक्ट 1867 लागू है.

इस के अनुसार, कोई भी घर, जो दीवारों से घिरा या बंद हो और वहां कार्ड्स, डाइस, टेबल और गेम के अन्य यंत्र रखे हों जिन का इस्तेमाल किसी व्यक्ति, फिर चाहे वह मकानमालिक ही क्यों न हो, द्वारा लाभ कमाने की मंशा से किया जा रहा हो, इस कानून की श्रेणी में आता है.’’ इस परिभाषा के अनुसार, किसी गैंबलिंग को गैंबलिंग मानने के लिए 3 चीजों की जरूरत है- संभावना, आपसी सहमति, दांव पर लगने वाली कीमत (गिफ्ट). लेकिन, यह जितना आसान दिखता है उतना है नहीं. इस के भीतर कई उठापटक हैं. इस एक्ट के सैक्शन 12 में यह कहा गया कि जिन गेम्स में संभावना कम और स्किल, हुनर या कौशल की मात्रा अधिक होती है, वे  पनिशेबल नहीं हैं.

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यानी, वे गैंबलिंग की श्रेणी में नहीं आते हैं. यह कानून ब्रिटिश समय से ही भारत में लागू है, इसे ले कर भारतीय न्यायिक मामले में अलगअलग समय 3 डिसीजन लिए गए. पहला 1957 में, जब आरएमडी चमरबउगवाला वर्सेस यूनियन औफ इंडिया के मामले के तहत अपैक्स कोर्ट ने कहा, जिन गेम्स में स्किल्स की जरूरत होती है उन्हें गैंबलिंग से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता. दूसरा 1967 में, आंध्र प्रदेश वर्सेस के सत्यनारायण मामले में जब सुप्रीम कोर्ट ने 13 पत्तों वाले ‘रम्मी गेम’ को यह कहते हुए उन क्लब्स या संस्थाओं में खेलने की आज्ञा दी, जहां यह लाभ कमाने के उद्देश्य से न हो. कथनानुसार, ‘‘रम्मी खेल, तीन पत्ती गेम की तरह ‘गेम औफ चांस’ नहीं है. रम्मी में एक प्रकार का स्किल चाहिए होता है क्योंकि इस में अपने पत्तों को बनाने के लिए कार्ड्स को गिराने, उठाने और सजाने के लिए विशेष ध्यान देना पड़ता है.’’ जिस के बाद इसे ‘गेम औफ स्किल’ कहा गया.

इसी तौर पर तीसरा 1996 में, जहां अपैक्स कोर्ट ने के आर लक्ष्मण वर्सेस स्टेट औफ तमिलनाडु मामले में हौर्स रेसिंग गेम को गैंबलिंग के दायरे से दूर रखते हुए इस में खुली सट्टेबाजी की वैधानिकता प्रदान की. हालांकि, भारत के संविधान, 1950, लिस्ट 2 के 7वें शैड्यूल के एंट्री 34 और 62 में सभी राज्यों को यह ताकत दी गई है कि राज्य विधानसभाएं अपने अधीन गैंबलिंग और बैटिंग के मैटर पर विधेयक बना सकती हैं. इसी के तहत, देश में 3 राज्यों (गोवा, सिक्किम, दमन) को छोड़ कर सभी ने गैंबलिंग या बैटिंग से जुड़े किसी भी प्रारूप पर पाबंदी लगाई हुई है.  गोवा ने भी 1996 में अनुमति दी. इस के बाद दमन एंड दीव ने ‘पब्लिक गैंबलिंग एक्ट 1976’ में संशोधन के बाद पांचसितारा होटलों में इस की अनुमति दी. फिर सिक्किम ने भी तय किया कि सिक्किम रेगुलेशन औफ गैंबलिंग (अमैंडमैंट) एक्ट 2005 के तहत इसे लीगल किया. वर्ष 2013 में  सरकारी आंकड़ों के हवाले से रिपोर्ट आई थी कि अकेले गोवा राज्य में चलने वाले कैसीनों से 2012-13 में 135 करोड़ रुपए का रैवेन्यू सरकार को प्राप्त हुआ. यानी, देखा जाए तो खेलों में होने वाली सट्टेबाजी को 2 कैटेगरी में बांटा गया है, एक- ‘गेम औफ स्किल्स’ दूसरा- ‘गेम औफ चांस’. इसी अनुसार कोई सट्टा वैध है अथवा अवैध, इस की वैधानिकता इस बात पर निर्धारित होती है कि वह कितना स्किल्स पर निर्भर है या कितना संभावना पर.

औनलाइन सट्टेबाजी का बढ़ता चलन देश में चूंकि डिजिटलीकरण के चलते चीजें बहुत तेजी से बदलीं, तो एंड्रौयड फोन और इंटरनैट ने 5-7 सालों के भीतर काफी तेजी से इस इंडस्ट्री पर भी अपना प्रभाव छोड़ा. पहले जो चीजें छिपछिपा कर गैरकानूनी तरीके से डार्क साइड में चला करती थीं, उन्हें अंतर्राष्ट्रीय तौर पर अब पहले की अपेक्षा सुसंगठित करने व नई पहचान देने में डिजिटलीकरण ने भारी योगदान दिया. ‘औनलाइन गेमिंग इन इंडिया 2021’ रिपोर्ट में बताया गया कि भारत का औनलाइन गेमिंग उद्योग जो 2016 में 29 करोड़ डौलर का था वह 2021 तक 1 अरब डौलर तक पहुंच जाएगा. और इस में 19 करोड़ गेम्स शामिल हो जाएंगे. इन यूजर्स में उन लोगों को शामिल किया गया है जो गेम के नाम पर जुआ खेल रहे हैं या फैंटेसी स्पोर्ट के नाम पर उन्हें खिलाया जा रहा है.

वर्ष 2013 में फिक्की ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में यह कहा था कि भारत में गेमिंग इंडस्ट्री से सरकार को लगभग 7,200 करोड़ रुपए का टैक्स प्राप्त होता है. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह कितने बड़े स्केल पर आज चल रहा है. औनलाइन रम्मी का प्रचलन पिछले कुछ समय से बढ़ता ही जा रहा है. देश में औनलाइन रम्मी उद्योग के मौजूदा समय में करीब 5 करोड़ खिलाड़ी हैं. और लौकडाउन के दौरान घर में बैठे लोगों के बीच इस का प्रचलन और भी बढ़ा है. फरवरीमार्च में गेमिंग साइट्स और ऐप इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या में 24 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. इस के प्रचलन बढ़ने के साथसाथ बात इस की सेफ्टी पर भी आ गई है. इस साल के अगस्त माह में हैदराबाद कमिश्नर औफ पुलिस और उन की टीम ने ऐसे ही एक बड़े औनलाइन गैंबलिंग घोटाले का भंडाफोड़ किया. पुलिस के अनुसार, पूरे प्रकरण में 1,100 करोड़ रुपए के लेनदेन की बात सामने आई. जिस में पुलिस का कहना था कि कई युवा इस गैंबल घोटाले में अपने लाखों रुपए गंवा चुके हैं. हैरानी वाली बात यह सामने आई कि पुलिस ने कई युवाओं के इस के चलते आत्महत्या करने की बात भी बताई.

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इन मसलों के बाद भारत में सट्टेबाजी और गैंबलिंग को ले कर एक नई बहस छिड़ गई है. यह बहस इसे पूरी तरह से वैधानिकता दिए जाने या इस पर सख्ती से पाबंदी लगाए जाने को ले कर है. इस पूरी बहस में 2 सवाल केंद्रबिंदु बन गए हैं. पहला, क्या इतने पुराने समय से चले आ रहे कानून को बदल कर गैंबलिंग को वैधानिक करने का समय आ गया है? दूसरा, सरकार अगर इस अपराध को रोक नहीं पा रही तो क्या इस के सामने घुटने टेक देना इस का समाधान है? हालांकि, भारत सरकार किसी प्रकार से औनलाइन सट्टेबाजी को ले कर किसी प्रकार का रोडमैप बनाने में फिलहाल असफल रही है, जिस के चलते औनलाइन चलने वाली गैंबलिंग काफी कंफ्यूजन से भरी हुई है. इसे टैक्निकल भाषा में ‘ग्रे एरिया’ कहा जा रहा है. यानी, जिस जगह पर ‘हां और ना’ या ‘काला और सफेद’ दोनों की स्थिति बनी हुई है. जैसा कि देखा सकता है कि एक तरफ कर्नाटक हाईकोर्ट पोकर गेम को ‘गेम और स्किल’ मान रही है, जबकि दूसरी तरफ गुजरात हाईकोर्ट ने इसे ‘गेम औफ चांस’ माना. स्किल-चांस की नैतिकता-अनैतिकता जुआ किसी भी समाज में कभी भी नैतिक तौर पर स्वीकृत नहीं रहा है.

सभ्यताओं के बनने से ही जुआ लोगों को लुभाते जरूर रहे हैं, चाहे इस के उदाहरण महाभारत में पाए गए हों या अन्य धार्मिक ग्रंथों में लेकिन जुए में ‘जर, जोरू और जमीन’ गंवाने की मिसाल सदियों से आज तक कायम है. महाभारत में जुए की लत को बहुत ही सरलता से दर्शाया गया. जब युधिष्ठिर, धर्मराज और सचाई के राजा, ने अपने भाइयों की संपत्ति और पत्नी द्रौपदी सहित सबकुछ जुए में खो दिया. कहने वाले कहते हैं, यही संपत्ति का विवाद आगे चल कर धर्मयुद्ध में कन्वर्ट हुआ, जिसे महाभारत कहा गया. जुआ किसी भी समाज में खेलने वालों के प्रति न्यायिक नहीं रहा. एक की हार से ही दूसरे की जीत संभव है.

हालांकि, इस की नकारात्मकता पर बाद में आया जाएगा लेकिन यह तय है कि यह नैतिक तौर पर समाज द्वारा कभी स्वीकृत नहीं हो पाया. फिर क्या यह प्रश्न बन सकता है कि इसे अब तक अवैध किए जाने के पीछे इस की अवांछनीयता रही है? जी हां, एक पल के लिए कानूनों के वैधअवैध ठहराए जाने में कुछ अपवादों को छोड़ कर 2 बातें देखी जा सकती हैं. पहली, हर अनैतिक कार्य अवैध नहीं. दूसरी, हर अवैध कार्य हो सकता है अनैतिक हो. मसलन, झूठ बोलना अनैतिक है, लेकिन जरूरी नहीं कि हर मामले में अपराध हो.

जब तक किसी कृति का परिणाम अधिसंख्य लोगों को विपरीत प्रभावित न करे तब तक वह अपराध की श्रेणी में नहीं आता. फिर सवाल यह है कि औनलाइन चाहे औफलाइन गैंबलिंग तो यह बड़े हिस्से को प्रभावित करती है, खासकर इस की जकड़ में युवा अधिक संख्या में हैं, तो फिर वह बिंदु कहां छूट रहा है कि जहां राज्य कहे कि ‘अब बस, आप यह कार्य नहीं कर सकते.’ 2017 में सपोर्ट फैंटेसी ‘ड्रीम 11’ के एक प्लयेर वरुण गुम्बर, जो लगभग 50 हजार रुपए इस खेल (बैटिंग) में गंवा चुका था, ने फैसला किया कि इस मामले को ले कर वह पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में शिकायत दर्ज कराएगा. वरुण ने अपनी पिटीशन में चैलेंज किया कि यह फैंटेसी लीग ‘गेम औफ स्किल’ नहीं है. जिस के बाद जस्टिस अमित रावल की सिंगल जज बैंच ने इस मामले को औब्जर्व करते हुए पाया कि इस में यूजर सपोर्ट की जानकारी के साथ ‘‘पिछले परफौर्मैंस, डाटा, प्लेयर की चल रही फौर्म के आधार पर इस में पैसे लगाता है. जिस के बाद निर्णय लिया गया कि यह ‘गेम औफ स्किल’ के भीतर आने वाली गतिविधि है, और वरुण की कंप्लेंट खारिज कर दी गई.

भारत में औनलाइन फैंटेसी के तौर पर चल रहे गेम्स के लिए यह बहुत बड़ी जीत और टर्निंग पौइंट था. यह पहला मामला था जब किसी कोर्ट ने इस तरह के फैंटेसी लीग वाले खेलों को गेम औफ स्किल में डाला. जिस के बाद ‘ड्रीम 11’ के कोफाउंडर और सीईओ हर्ष जैन ने सैल्फ रेगुलेटेड ‘इंडियन फैडरेशन औफ स्पोर्ट्स गेमिंग’ की इसी साल स्थापना की. इस समय ‘ड्रीम 11’ के लगभग साढ़े 4 करोड़ यूजर्स हैं, जिन में से 15 प्रतिशत यूजर्स पैसों के लिए खेलते हैं. यही यूजर्स हैं जो ड्रीम 11 के लिए रैवेन्यू जनरेट करते हैं.

ज यह कंपनी आईसीसी, द बिग बेश, कैरिबियन सुपर लीग, प्रो कबड्डी, एफआईएच इत्यादि की औफिशियल पार्टनर है. यहां तक कि यह देखा जा सकता है कि कंपनी को अपने प्रचार में एम एस धौनी को एंबैसडर बनाया गया जिस का स्लोगन ‘खेलो दिमाग से’ था. हालांकि, इस के बाद भी वरुण गुम्बर ने अगस्त 2017 में सुप्रीम कोर्ट में इस मामले के लिए एप्रोच किया, जिस के बाद सितंबर माह में सुप्रीम कोर्ट के डिविजनल बैंच के जस्टिस रोहितो और जस्टिस संजय किशन कौल द्वारा इस पिटीशन को खारिज कर दिया गया. वैधअवैध के अपनेअपने तर्क में ‘ग्रे एरिया’ सट्टा बाजार, गैंबलिंग या जुआ को वैधअवैध किए जाने को ले कर काफी समय से बहस चली आ रही है. इस के पक्षविपक्ष में लगातार दलीलें दी जाती रही हैं. दोनों तरफ के लोगों की अपनीअपनी दलीलें हैं. इसे वैधानिक किए जाने वाले जानकारों का कहना है कि यूरोप के कई देशों में सट्टेबाजी के लिए कानून बदले जा चुके हैं. कई देशों ने तो इसे पूरी तरह वैधानिक कर दिया है, जैसे इंग्लैंड, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, कनाडा, इत्यादि. वहीं, कुछ देशों ने कुछ शर्तों के साथ अपने कुछ राज्यों को विशेष छूट दी.

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उदाहरण के तौर पर यूएसए है जहां के ‘लास वेगास’ को जाना ही इसी के लिए जाता है.  इस के पक्ष में जो सब से बड़ा तर्क दिया जा रहा है वह अवैध तरीके से होने वाले इस धंधे की दो नंबरी कमाई है, जिस का कोई हिसाब सरकार के सामने नहीं आ पाता. वहीं, इस के अवैध होने के चलते, टैक्स के दायरे में नहीं आने से सरकार की आय का एक बड़ा स्रोत खत्म हो जाता है.

भारत समेत पूरी दुनिया में गैंबलिंग कारोबार (औनलाइन व औफलाइन) पहले ही काफी ज्यादा ग्रोथ पर था, लेकिन लौकडाउन के बाद इस में तेजी से उछाल आया है. आंकड़ों की मानें, तो भारत के 80 प्रतिशत युवा किसी भी रूप के गैंबलिंग में हर साल में कम से कम एक बार जुड़ जाते हैं. इस का पूरा बाजार लगभग 60 बिलियन डौलर का बताया जा रहा है. फिर ऐसे में सवाल इस की कमाई को ले कर होने लगे हैं, यह पैसा कहां लग रहा है, किसे फेसिलिटेट कर रहा है इत्यादि?  इस में एक तर्क इस के 150 साल पुराने हो चुके कानून को ले कर है. यह कहा जा रहा है कि जिन अंगरेजों ने यह कानून बनाया, उन्होंने इसे अपने देश में रैगुलेट कर लिया है.

साथ ही, यह भी कहा जा रहा है कि इस के रैगुलेट होने और वैधानिक किए जाने से इस पूरे प्रोसैस में पारदर्शिता आएगी. इस पर ईसिस्टम के जरिए नजर रखी जा सकती है और ट्रैक किया जा सकता है. इस में खेलने और खिलाने के लिए नियमावली रखी जाए. किंतु इस के विपक्ष में दी जाने वाली दलीलें भी कई हैं. सरकार अगर इस अपराध को रोकने में असफल है, तो इस कारण इसे लीगल किए जाने वाली दलीलें देश के संविधान पर नकारात्मक असर डालेंगी. संवैधानिक तौर पर इस से मिलतेजुलते अपराधों को भी लीगल करने की बात आएगी, जिन्हें सरकार रोक नहीं पा रही.

यही बात ड्रग्स को लीगल करने को ले कर कही जा रही है. वहीं इस के माध्यम से कालेधन को सफेद करने की वैधानिकता प्राप्त हो जाएगी, जिसे रोजगार कहा जा रहा है. तो फिर इस से कई युवा जुए की खराब लत के शिकार होंगे. ऐसे में क्राइम और सुसाइड की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी होगी. इस से खेल की शुद्धता और सुचिता पर भारी खतरा होने की आशंका होगी. ऐसे ही स्पौट फिक्ंसिंग का उदाहरण हम आईपीएल में पीछे देख चुके हैं. 2018 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस के लीगल-इललीगल पर बहस चली, जिस के बाद विधि आयोग को इस पर एग्जामिन कर अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा गया. यह तब जब लोडा कमेटी ने रिकमैंड किया कि बैटिंग को रैगुलेट किया जाना चाहिए. विधि आयोग ने इस पर अपना स्टैंड लेने के बजाय इसे ‘ग्रे एरिया’ में ही रख दिया, यानी इसे ‘इफ एंड बट’ वाली स्थिति पर छोड़ दिया. इस से होने वाले फायदे और नुकसान गिना कर रिपोर्ट सैंट्रल गवर्नमैंट को सौंप दी गई. फिक्की के स्टेक होल्डर ने भी इस पर अपनी राय रखी.

ऐसे में इस क्षेत्र में कमर्शियल पहलू हावी होने लगे हैं. देशीविदेशी कंपनियों का भी इस में बड़ा रोल देखने को मिल रहा है. चूंकि यह एक बड़ा व्यवसाय बन चुका है तो बड़े पूंजीपतियों और सरकार दोनों ही इस में अपने फायदे तलाश रहे हैं. जाहिर है, इस में बड़ा आरोप इस बात का लग रहा है कि बदलते स्वरूप में इस के वैधानिक होने की बहस का कारण बड़े पूंजीपतियों और कौर्पोरेटरों का संगठित तौर पर इस में मुनाफे के लिए कूद पड़ना है. कई लोगों का तर्क है कि यह गेमिंग के नाम पर चलाए जाने वाला मात्र जुआ है, जो कानून के लूप होल्स के साथ खेला जा रहा है. फिर इस के विपक्ष में एक तर्क यह भी है कि राज्य सरकार की भूमिका ऐसे मामलों में ‘गार्जियन स्टेट’ की होती है. स्टेट को देखना है कि उस की जनता के लिए यह कितना वांछनीय है अथवा कितना नहीं.

किसी भी कानून को लाने के लिए सरकार का उद्देश्य यह होता है कि वह कानून राज्यवासियों के लिए कितना उपयोगी है. खेलों में भारी सट्टेबाजी से यह जरूर है कि इस का खेलों पर प्रतिकूल ही असर पड़ेगा. 2013 आईपीएल मैचों के दौरान राजस्थान रौयल्स और सीएसके को 2 साल का बैन उठाना पड़ा है. वहीं उन के मालिकों राजकुंद्रा, मय्यापन, एन श्रीनिवासन पर खेल से दूर रहने की आजीवन पाबंदी लगा दी गई. एन श्रीनिवासन को तो अपनी बीसीसीआई की कुरसी तक गंवानी पड़ी, जिस ने खेल की सुचिता पर बड़े प्रश्न खड़े किए हैं. अनप्रोडक्टिव वर्क कल्चर को बढ़ावा जिस बिंदु की तरफ ज्यादातर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा वह इस के अनप्रोडक्टिव वर्क कल्चर के बढ़ावा होने का है. समस्या यह है कि फिलहाल इसे नैतिकअनैतिक की बहस में उलझ कर रखा हुआ है. जबकि, इस तरह के काम किसी भी तरीके से प्रोडक्टिव नहीं हैं. ‘इस की टोपी, उस के सिर’ के बीच अपना कट लेती कंपनी के मुनाफे का यह सारा खेल सदियों से चल रहा है. ऐसे कामों में ज्यादातर मामले बरबाद होने के ही देखे गए हैं.  समस्या इस के गैरउत्पादन काम को ले कर है. समाज में हर तबका किसी न किसी तरीके से खुद के स्वार्थ को पूरा कर, समाज के हितों की पूर्ति करता है.

उदाहरण के तौर पर, फैक्ट्री में काम करने वाला मजदूर अगर कोई कमीज सिलता है तो उस से वह तनख्वाह पाता है, साथ ही, समाज के किसी व्यक्ति के लिए उत्पादन भी करता है. रोड बनाता है तो दिहाड़ी पाता है और समाज के चलने लायक रास्ता तैयार करता है. वहीं, कोई किसान खेती करता है तो खुद के हित के साथ समाज के हित भी पूरे करता है. इसी तौर पर सर्विस से जुड़े कामों में भी यही बात लागू होती है.  लेकिन जुए से जुड़ा धंधा किसी प्रकार से सामाजिक हितों की पूर्ति नहीं करता. यह प्रोडक्टिव वर्क भी नहीं है. रही बात टैक्स कमाने की, सरकार को ऐसे कामों के पीछे छिप कर टैक्स कमाने की मंशा खुद ही सवालिए निशाने पर ले जाती है.

कल को हवाला के पैसों से भी सरकार भारीभरकम टैक्स कमा सकती है. इस से समाज का नवयुवक तबका न सिर्फ जुए की फंतासी में फंस रहा है, बल्कि साथ ही संभवतया भविष्य में उस के वर्क कल्चर के हैबिट में नकारात्मक बदलाव देखने को मिल सकते हैं.  बिना मेहनत शौर्टकट पैसे कमाने की होड़ और उस से हुए नुकसान से क्रिमिनल ऐक्टिविटी में भी बढ़ावा होने का अंदेशा है. ऐसे कई उदाहरण हमारे आसपास देखने को मिल सकते हैं जब लोगों ने सट्टे, जुए के चक्कर में घर, संपत्ति तक गिरवी रखवा दिए. कानून में यह स्किल और चांस का मायाजाल जरूर बुना गया है लेकिन इसे खेलने वाले लोग भी और खिलाने वाले उद्योगपति भी बखूबी जानते होंगे कि वे क्या कर रहे हैं.

जहरीली कच्ची शराब का कहर

पूरा उत्तर भारत प्रदूषण के अटैक से बेहाल है. दमघोंटू धुआं दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के इनसानी फेफड़ों को कमजोर कर रहा है. दिल्ली के डाक्टरों का कहना है कि जिस लैवल पर इस समय प्रदूषण है, उस में अगर कोई सांस लेता है तो वह 30 सिगरेट जितना धुआं बिना सिगरेट पिए ले रहा है.

इतने बुरे हालात के बावजूद बहुत से लोग सोशल मीडिया पर चुटकी लेना नहीं भूलते. किसी ने मैसेज डाल दिया कि अब अगर चखना और शराब का भी इंतजाम हो जाए तो मजा आ जाए. सिगरेट के मजे मुफ्त में मिल रहे हैं, तो शराब की डिमांड करने में क्या हर्ज है?

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पर शराब की यह डिमांड कइयों पर भारी पड़ जाती है. इतनी ज्यादा कि वे फिर कभी ऐसी डिमांड नहीं कर पाते हैं. हरियाणा में पानीपत का ही किस्सा ले लो. वहां के सनौली इलाके के एक गांव धनसौली में कथित तौर पर जहरीली शराब पीने से एक बुजुर्ग समेत 4 लोगों की मौत हो गई. वे सभी लोग तामशाबाद की एक औरत से 80 से 100 रुपए की देशी शराब खरीद कर लाए थे.

इसी तरह हरियाणा के ही बल्लभगढ़ इलाके के छायंसा गांव में चरण सिंह की भी जहरीली शराब पीने से मौत हो गई, जबकि उस के साथी जसवीर की हालत गंभीर थी.

आरोप है कि चरण सिंह ने जिस संजीव से शराब खरीदी थी, वह गैरकानूनी शराब बेचने का धंधा करता है. यह भी सुनने में आया है कि कोरोना काल में इस इलाके के यमुना नदी किनारे बसे गांवों में कच्ची शराब बेचने का धंधा जोरों पर है.

इसी साल अप्रैल महीने में पुलिस ने एक मुखबिर की सूचना पर छायंसा गांव के रहने वाले देवन उर्फ देवेंद्र को उस के घर के सामने से गिरफ्तार किया था. वह घर के बाहर ही कच्ची शराब से भरी थैलियां बेच रहा था. उस के कब्जे से कच्ची शराब से भरी 12 थैलियां बरामद की गई थीं.

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इतना ही नहीं, जब हरियाणा के सारे नेता बरोदा उपचुनाव में अपनी ताकत झोंक रहे थे तब उन्हीं दिनों सोनीपत जिले में कच्ची या जहरीली शराब पीने से कुल 31 लोगों की जान जा चुकी थी. फरीदाबाद में एक आदमी और पानीपत में भी 6 लोगों की माैत हो गई थी.

इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि हरियाणा में लौकडाउन में शराब घोटाले और जहरीली शराब पीने से तथाकथित 40 लोगों की हुई मौत के मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार को घेरा और कहा कि प्रदेश में शराब माफिया सक्रिय है और इसे सरकारी सरपरस्ती हासिल है, जबकि हरियाणा के गृह मंत्री ने सदन में दावा किया कि जहरीली शराब पीने से 40 लोगों की नहीं, बल्कि 9 लोगों की मौत हुई है.

नेताओं की यह नूराकुश्ती चलती रहेगी और लोग सस्ती के चक्कर में कच्ची और जहरीली शराब गटक कर यों ही अपनी जान देते रहेंगे और अपने परिवार को दुख के पहाड़ के नीचे दबा देंगे.

कच्ची शराब जानलेवा क्यों बन जाती है? दरअसल, माहिर डाक्टरों की मानें तो बीयर और व्हिस्की में इथेनौल होता है, लेकिन देशी और कच्ची शराब में मिथेनौल मिला दिया जाता है. इस की मात्रा कम हो ज्यादा, दोनों ही रूप में यह खतरनाक है. 500 मिलीग्राम से ज्यादा इथेनौल की मात्रा होने पर शराब जानलेवा बन जाती है.

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शराब में आमतौर पर तय मात्रा में इथेनौल का ही इस्तेमाल होता है, लेकिन कच्ची और देशी शराब को  ज्यादा नशे के लिए उस में मिथेनौल मिला दिया जाता है. कई बार अंगूर या संतरा ज्यादा सड़ जाने से भी इथेनौल बढ़ जाता है.

गन्ने की खोई और लकड़ी से मिथेनौल एल्कोहल बनने की संभावनाएं ज्यादा होती है. अगर 80 मिलीग्राम मिथेनौल एल्कोहल शरीर के अंदर चला जाए तो शराब जानलेवा होती है. यह कैमिकल सीधा नर्वस सिस्टम पर अटैक करता है और पीने वाले की मौत हो जाती है.

बहुत सी जगह कच्ची शराब को बनाने के लिए औक्सीटोसिन, नौसादर और यूरिया का इस्तेमाल किया जाता है. जहरीली शराब मिथाइल अल्कोहल कहलाती है. कोई भी अल्कोहल शरीर के अंदर जाने पर लिवर के जरीए एल्डिहाइड में बदल जाती है, लेकिन मिथाइल अल्कोहल फौर्मेल्डाइड नामक के जहर में बदल जाता है. यह जहर सब से पहले आंखों पर असर डालता है. इस के बाद लिवर को प्रभावित करता है. अगर शराब में मिथाइल की मात्रा ज्यादा है तो लिवर काम करना बंद कर देता है और पीने वाले की मौत हो जाती है.

जब लोगों को पता होता है कि कच्ची शराब उन के लिए जानलेवा होती है तो वे क्यों पीते हैं? इस की एक ही वजह है शराब पीने के लत होना. लोग लाख कहें के वे अपना तनाव दूर करने या खुशियों का मजा लेने के लिए शराब पीते हैं, लेकिन सच तो यह है वे इस के आदी हो चुके होते हैं.

पहले वे, ज्यादातर गरीब लोग, कानूनी तौर पर बिकने वाली शराब पीते हैं, फिर जब लती हो जाते हैं तो जो शराब मिल जाए, उसी से काम चलाते हैं. अपराधी किस्म के लोग उन की इस लत का फायदा उठाते हुए और ज्यादा मुनाफे के चक्कर में गैरकानूनी तौर पर बनाई गई कच्ची शराब उन्हें परोस देते हैं, जो उन्हें मौत के मुंह तक ले जाती है.

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समाजसेवी और रोहतक कोर्ट में वकील नीरज वशिष्ठ का कहना है, “यह खेल सिर्फ कच्ची शराब का नहीं है, बल्कि नकली शराब का भी है. बहुत से शराब ठेकेदार ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में कैप्सूल मिला कर नकली शराब बना देते हैं. यह और भी ज्यादा खतरनाक है.

“सब से पहले सरकार को शराब की बिक्री बंद करनी चाहिए, क्योंकि शराब तो होती ही है जानलेवा, चाहे जहरीली हो या नकली आया फिर कोई और.

“आज कम उम्र के बच्चों से ले कर बुजुर्गों तक को शराब ने बरबाद किया है. जब देश का भविष्य ही नशेड़ी होगा तो हम सोच सकते हैं कि आने वाला समय कैसा होगा. किसी भी देश की तरक्की में नौजवानों का बहुत अहम रोल होता है, पर यहां तो सरकार ही अपने भविष्य से खिलवाड़ कर रही है.

“एक तरफ सरकार कहती है कि शराब बुरी चीज है, दूसरी तरफ इस बुरी चीज को बेचने के लिए हर गलीमहल्ले में दुकान खोल रही है.”

यह देशभर का हाल है. लौकडाउन में जब शराब की दुकानें खुली थीं, तब ठेकों के बाहर लगी शराबियों की लाइनों पर बहुत मीम बनाए गए थे, लोगों ने खूब मखौल उड़ाया था, पर जरा उन परिवारों से पूछो, जिन के घर का कोई शराब के चलते इस दुनिया से ही रुखसत हो चुका है. याद रखिए, शराब जानलेवा है और रहेगी, जिस ने इस सामाजिक बुराई से पीछा छुड़ा लिया, वह बच गया.

हरियाणा में खोखले महिला सुरक्षा के दावे

सोमवार, 26 अक्तूबर को राजधानी नई दिल्ली से सटे राज्य हरियाणा के बल्लभगढ़ (फरीदाबाद) इलाके से एक दिल दहला देने वाली हत्या की वारदात सामने आई है. अग्रवाल कालेज से बीकौम फाइनल ईयर की 21 साल की छात्रा निकिता तोमर को 2 नौजवानों तौसीफ और रेहान ने दिनदहाड़े पिस्तौल से शूट कर के जान से मार डाला.

यह कालेज बल्लभगढ़ के नाहर सिंह मैट्रो स्टेशन से महज एक किलोमीटर की दूरी पर है. यह वारदात तब हुई जब निकिता अपना बीकौम फाइनल ईयर का एग्जाम दे कर घर लौट रही थी. आरोपियों ने उसे कालेज के बाहर ही घेर लिया. कुछ देर चली जोरजबरदस्ती और किडनैप करने की नाकाम कोशिश के बाद आरोपी ने देशी तमंचे से 2 फुट की दूरी से निकिता के माथे पर गोली मार दी.

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गोली लगने के तुरंत बाद घायल निकिता को बल्लभगढ़ के ‘मानवता अस्पताल’ में ले जाया गया जहां डाक्टरों ने उसे मरा हुआ बता दिया.

इस घटना के बाद सिर्फ बल्लभगढ़ में ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य में सन्नाटा पसर चुका है और यह मामला एक बार फिर पूरे देश में लचर होती महिला सिक्योरिटी पर सवालिया निशान लगा गया है.

आरोपी और पीड़िता की जानपहचान

हत्या का मुख्य आरोपी तौसीफ खानपुर इलाके से संबंध रखता है. यह इलाका मेवात जिले की नूह तहसील में पड़ता है. मेवात जिला भारत के कुल 739 जिलों में से सब से ज्यादा पिछड़े जिलों में आता है. यहां की बहुसंख्यक आबादी अल्संख्यक समुदाय से है व यहां के वर्तमान विधायक आफताब अहमद हैं जो खुद आरोपी के खास रिश्ते में लगते हैं. कहा जाता है कि आरोपी परिवार के लोगों का राजनीतिक और सामाजिक तौर पर खासा दबदबा है. वहीं, इस हत्याकांड में मारी गई निकिता तोमर का घर ‘अपना घर सोसाइटी’ में था. यह सोसाइटी बल्लभगढ़ के सैक्टर 52 के पास सोहना रोड़ बनी है. इस इलाके के भीतर कई निजी अपार्टमैंट्स हैं, जो पूरी तरह से लोगों के रहने के लिए बनाए गए हैं.

इस वारदात के सामने आने के बाद कुछ लोगों से बात कर के पता चला कि आरोपी और पीड़िता एकदूसरे को पहले से जानते थे. दोनों ने एक ही स्कूल में पढ़ाई की थी. तौसीफ स्कूल समय से ही कथिततौर पर पीड़िता को परेशान करता रहा था. निकिता और आरोपी तौसीफ दोनों की स्कूली पढ़ाई बल्लभगढ़ में सोहना रोड पर बने एक प्राइवेट ‘रावल स्कूल’ से हुई थी. स्कूल के समय में साल 2018 में एक दफा तौसीफ पर निकिता के अपहरण और परेशान करने का मामला भी दर्ज हुआ था, जिसे बाद में दोनों पक्षों की आपसी रजामंदी के बाद मामला पंचायत में ही निबटा दिया गया. हालांकि इस मामले को ले कर पीड़ित पक्ष का कहना है कि उस दौरान आरोपी के राजनीतिक रसूख और इलाकाई दबदबे के दबाव में उन्हें यह फैसला लेना पड़ा.

गिरफ्त में आरोपी

यह पूरी वारदात सीसीटीवी में कैद हुई है, जो काफी तेजी से वायरल भी हो रही है. वीडियो के बाहर आने के बाद स्थानीय जनाक्रोश भड़कता दिखाई दे रहा है. इसी का नतीजा यह रहा कि मंगलवार, 27 अक्तूबर को पीड़ित परिजन और स्थानीय लोगों ने सैकड़ों की तादाद में जमा हो कर मथुरा नैशनल हाईवे पर फ्लाईओवर के नजदीक चक्का जाम किया. उसी दिन देर शाम अधिकारियों द्वारा मिले आश्वासन के बाद ही लोग वहां से हटे और हाईवे का रास्ता खोला गया. निकिता के पार्थिव शरीर का देर शाम बल्लभगढ़ के सैक्टर 55 के श्मशान घाट पर किया गया.

वारदात के बाद ही उसी दिन देर रात तक पुलिस द्वारा मुख्य आरोपी 21 साला तौसीफ को गिरफ्तार कर लिया गया था. उस के सहयोगी आरोपी रेहान को 24 घंटों के भीतर गिरफ्तार किया गया. इन हुई गिरफ्तारियों को पुलिस और राज्य सरकार अपनी मुस्तैदी से जोड़ कर बता रही हैं.

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पुलिस द्वारा बताई जानकारी के मुताबिक आरोपी तौसीफ गुरुग्राम के सोहना रोड का रहने वाला है, जबकि रेहान हरियाणा के नूह जिले का रहने वाला है. गिरफ्तारी के बाद तौसीफ ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया है, जिस के बाद आगे की जांच जारी रखी गई है. हालांकि राज्य सरकार द्वारा यह मामला एसआईटी को सौंपा जा चुका है और इस मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी भेजा जा चुका है, जिस के चलते दोनों आरोपियों को फिलहाल हाईकोर्ट ने 2 दिन की पुलिस रिमांड पर रखने को कहा है.

इलाके में दहशत व गुस्सा

इस वारदात के बाद से इलाके में दहशत और गुस्से दोनों तरह का माहौल बना हुआ है. मैट्रो स्टेशन से बाहर निकलते ही लोगों के बीच दबी जबान में इस मामले को ले कर बातें होने लगीं. उसी कालेज से बीएससी सैकंड ईयर की पढ़ाई कर रहे हिमांशु बताते हैं, ‘अग्रवाल कॉलेज की 2 ब्रांच हैं. यह वारदात कालेज के मेन गेट से थोड़ी सी दूरी पर हुई थी. मुझे इस वारदात के बारे में रात को तब पता चला, जब मेरे फोन पर यह वायरल वीडियो आया था. मैं पूरी तरह घबरा गया था, क्योंकि यह मेरे कालेज का मामला था. अब उस एरिया के आसपास जाने में अजीब सी कसमसाहट होने लगी है. मेरे मातापिता को जब इस बारे में पता चला तो वे भी घबरा गए. दिनदहाड़े इस तरह की वारदात होना किसी भी छात्र के लिए डरने वाली बात है.’

हिमांशु के साथ आई उन की दोस्त अनु (बदला नाम) का कहना है, ‘इस तरह की वारदात अगर घटेगी तो कोई लड़की कैसे पढ़ पाएगी. वैसे ही लड़कियां बहुत कम बाहर निकल कर पढ़ाई या काम कर पाती हैं, ऊपर से अगर इस तरह की वारदातें सामने आती हैं तो हम तो उन परिवारों में से हैं जहां मांबाप सीधे पढ़ाई छुड़वा देते हैं.’

जहां एक तरफ इस वारदात से दहशत का माहौल पनपा है, वहीं दूसरी तरफ लोगों में इसे ले कर गुस्सा भी देखने को मिला. काफी तादाद में लोगों ने बल्लभगढ़ नैशनल हाईवे को पूरे दिन जाम कर के रखा था. कांग्रेस व भाजपा के कई स्थानीय नेता इस में शामिल हुए थे. मौजूदा हरियाणा के कैबिनेट मंत्री मूल चंद शर्मा भी थे, पर उन्हें भी नाराज प्रदर्शनकारियों ने वहां से जाने को कह दिया. इन्हीं के बीच पीड़ित परिजन दोषियों को तुरंत फांसी दिए जाने या एनकाउंटर की बात कर रहे थे.

लव जिहाद का आरोप

धरने पर बैठी निकिता की मां से जब पूछा गया कि उन की सरकार से क्या मांग हैं, तो उन का साफ कहना है, ‘जो मेरी बेटी के साथ हुआ है उन का (आरोपियों) भी पुलिस वाले एनकाउंटर करें मेरे सामने. मैं बेटी को अग्नि तब दूंगी जब उस का एनकाउंटर हो जाएगा.’

निकिता के भाई ने कहा, ‘2018 में पहले भी आरोपी तौसीफ के खिलाफ हम ने शिकायत दर्ज करवाई थी. उस समय मामला निकिता के अपहरण का था. पुलिस ने उस समय आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया था. लेकिन उस के बाद हमारा (दोनों पक्षों का) बैठ कर पंचायत में समझौता हो गया था. हम ने केस वापस ले लिया था.’

2 अगस्त, 2018 को पीड़ित परिजन (पिता) द्वारा आरोपी के खिलाफ पुलिस में पहले भी शिकायत दर्ज की गई थी, जिस में निकिता को आरोपी द्वारा लगातार परेशान किए जाने और लड़की के लापता होने की बात आई थी. कुछ ही समय में पुलिस ने लड़की को छुड़वा लिया था.

हालांकि अब निकिता की हत्या के बाद पीड़ित परिजन ने आरोपियों पर यह आरोप भी लगाया है कि निकिता की हत्या लव जिहाद और धर्मांतरण को नकारने के चलते की गई है.

निकिता के मामा अदल सिंह ने इस मामले पर हम से बात करते हुए कहा, ‘यह लव जिहाद है. वह लड़की से जबरदस्ती शादी कर रहा था, तो क्या इस का मतलब है, बताइए आप? इन का (मुसलिमों) यह है कि हिंदुओं की लड़की को खत्म करो, हिंदुओं की लड़कियों को भगाओ, फिर बाहर विदेशों में बेच देते हैं.’

जारी राजनीतिक उठापटक

मामले के चर्चा में आने के बाद दक्षिणपंथी संगठन इस मामले पर सक्रिय हो गए हैं. इसे ले कर वहां शामिल धार्मिक संगठन, देव सेना, के कथित राष्ट्रीय अध्यक्ष बृजभूषण सैनी, जिन के कंधे पर सवा फुट की कृपाण टंगी थी, का कहना है, “यह कोई पहला मामला नहीं है इस देश में, बल्कि हर राज्य और है जिले में हिंदुओं को टारगेट किया जा रहा है. बेटी हिंदुओं की अपहरण करने वाले, लव जिहाद करने वाले सारे जिहादी हैं. पूरे देश में साजिश के तहत इन की लौबी काम कर रही है, जिस में हिंदुओं को अपहरण कर के ले जाने की कोशिश थी मेवात में’

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‘सरकार चाहे भाजपा की हो या कांग्रेस की, तुष्टिकरण की नीति हर कोई अपनाता है. वोट इन्हें हिंदुओं के चाहिए, लेकिन काम इन्हें मुसलमानों के करने हैं.’

इस मसले पर फरीदाबाद पुलिस कमिश्नर ओपी सिंह ने अधिकारिक तौर पर जो बयान दिया, उस में उन्होंने कहा, ‘इस मामले को ले कर हम काफी संजीदा हैं. एक युवती के साथ घिनौना अपराध हुआ है, जिस कारण इसे क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर कर दिया गया है. इस के ऊपर एक एसआईटी बनाया है और एक राज्यपद अधिकारी इस की जांच करेंगे, जिस में तमाम सुबूतों को जमा कर जिस में वीडियो फुटेज, चश्मदीद गवाह, डिजिटल व फोरैंसिक सुबूतों को जमा कर के केस बनाया जाएगा.’

फिलहाल इस मामले को ले कर आरोपी पक्ष की तरफ से मिली जानकारी के मुताबिक जो बात सामने आई है वह यह कि उस ने निकिता तोमर की हत्या बदला लेने के मकसद से की था, जिस में पुलिस जांच के दौरान आरोपी ने बताया कि उस ने बदला इसलिए लिया, क्योंकि 2018 की घटना के बाद वह अपनी पढ़ाई नहीं कर पाया था और निकिता किसी और से शादी करने जा रही थी.

आरोपियों के खिलाफ फिलहाल सैक्शन 302 (हत्या), 34 (क्रिमिनल ऐक्ट डन बाई सैवेरल पर्सन) आईपीसी और सैक्शन 25 (गैरकानूनी हथियार रखने) के तहत मामला दर्ज किया गया है. हालांकि पीड़ित परिजन एफआईआर में कुछ बातें शामिल करने की बात कर रहे हैं, जिन में लव जिहाद का पहलू जुड़वाना शामिल है.

राजनीति गरमाने लगी

इस हत्याकांड के आरोपी तौसीफ के दादा कबीर अहमद 2 बार  विधायक रह चुके हैं. दादा के भाई खुर्शीद अहमद हरियाणा से गृह मंत्री भी रह चुके हैं. वहीं चचेरा भाई भी विधायक रहे हैं, साथ ही हुड्डा सरकार में परिवहन मंत्री भी रहे हैं. चाचा जावेद अहमद ने इस साल बसपा से चुनाव लड़ा था, पर वे हार गए थे.

जहां एक तरफ कांग्रेस पार्टी के आरोपी के परिवार से राजनीतिक संबंध के चलते वह रडार पर है, वहीं भाजपा राज में बढ़ते गुंडाराज और खराब होती कानून व्यवस्था से भी लोग खासा नाराज हैं.

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस मसले पीड़ित परिवार को इंसाफ दिलाने का आश्वासन दिया. उन्होंने अपना बचाव करते हुए कहा, ‘अपराधी को पूरी सजा दी जाएगी. अपराध होने के बाद पुलिस ने 24 घंटे में ही आरोपी को पकड़ लिया.’

कांग्रेस के हरियाणा के मुख्य नेता व प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला इस मसले पर मुख्यमंत्री पर जम कर बरसे. उन्होंने हरियाणा में महिलाओं की सुरक्षा को ले कर सवाल किए, ‘क्या बेटियां इसी प्रकार से सुरक्षित रहेंगी खट्टर साहब? हरियाणा में पिछले 2 साल में महिला अपराधों में 45 फीसदी बढ़ोतरी हुई है. हरियाणा गैंगरेप में नंबर 1 पर है.’

इस के अलावा उन्होंने दोषियों को 30 दिन के सीमित समय में सजा दिए जाने की बात कही.

फिलहाल इस मामले में एसीपी अनिल कुमार की अगुआई में एसआईटी का गठन किया गया है, जो पीड़ित परिवार से मिलने उन के घर पहुंचा. फरीदाबाद के सांसद और मंत्री कृष्ण पाल गुर्जर भी पीड़ित परिवार से मिले थे.

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पुलिस ने अपराध के दौरान इस्तेमाल की गई कार का भी पता लगा लिया है जिस का लिंक दिल्ली से बताया जा रहा है. अपराध के दौरान इस्तेमाल किए गए हथियार को भी बरामद कर लिया गया है.

चिंता की बात

खैर, अब यह देखना है कि पीड़ित परिजन को इस मामले में कितने दिन में इंसाफ मिलता है. भले सरकार में बैठे पदाधिकारी अपनी पीठ यह कह कर ठपथपा रहे हों कि उन्होंने आरोपियों को जल्द से जल्द पकड़ने की कोशिश की है, पर सवाल यह है कि आखिर ऐसी नौबत आई ही क्यों? आखिर क्यों जब पुलिस के संज्ञान में यह मामला 2018 से आ चुका था, तो निकिता को सुरक्षा मुहैया करने में कोताही क्यों की गई?

2018 की एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि हरियाणा में क्राइम रेट पहले से 45 फीसदी बढ़ा है. पहले जो आंकड़े 9,839 थे वे बढ़ कर औसतन 15,336 हो गए हैं. हरियाणा उन 4 टौप राज्यों में है जहां रैप के बाद मर्डर की अधिकाधिक वारदातें हुई हैं. ‘हरियाणा स्टेट कमीशन फौर वीमेन’ की इस साल की रिपोर्ट अनुसार लौकडाउन में हरियाणा के अंदर रिकौर्ड 78 फीसदी महिला विरोधी अपराधों में वृद्धि हुई है.फिर सवाल यह कि महिला सुरक्षा के नाम पर सरकारें बेदम क्यों हैं? जगह बदल जाती है, पर अपराध वही रहता है और शिकार भी औरत समाज ही बनता है. यह देश के रहनुमाओं लिए शर्मनाक बात है.

प्यार की त्रासदी : फिर तेरी कहानी याद आई..!

प्यार की पींगे भरकर  एक व्यक्ति ने एक युवती को ऐसा धोखा दिया कि वह युवती ने घर की रही न घाट की. जैसा कि अक्सर होता है एक बार फिर वही सब कुछ घटित हो गया. जी हां! प्रेम के अगले पायदान में युवक ने विवाह का प्रस्ताव रखा और चालाकी से शारीरिक संबंध स्थापित कर लिया . आगे बड़ी नाटकीयता के साथ नोटरी के शपथपत्र के माध्यम से विवाह रचाकर धोखा देता रहा और अंत में पल्ला झाड़ लिया. युवती को जब एहसास हुआ कि वह तो बर्बाद हो चुकी है, तब प्रेमी युवक के खिलाफ प्रेमिका की शिकायत पर पुलिस द्वारा अपराध दर्ज कर आरोपी को  जेल भेज दिया गया .जी हां! मगर थोड़ा रूकिए पीड़ित लड़की की आपबीती अभी खत्म नहीं हुई है.आगे कहानी में एक बार फिर ट्विस्ट है.

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जमानत पर जेल से छूटने के बाद आरोपी पुनः युवती को मीठी चुपड़ी बातें करके अपनी हवस का शिकार बनाता है. वह अपनी गलतियां स्वीकार करता है और आश्वस्त करता है कि मैं विवाह तो तुम्हीं से करूंगा, युवती उसके प्रेम जाल के भुलावे में फंस जाती है. मगर जब सच्चाई खुलती जाती है तो वह अपने को पुनः लूटा हुआ पाती है.पीड़िता की दोबारा शिकायत पर पुलिस “बलात्कार” का अपराध दर्ज करती है. अब आज की हकीकत यह है कि युवक फरार हो गया है और युवती को फोन पर लगातार जान से मारने की धमकी दे रहा है.पीडिता अपनी आपबीती पुलिस को बताती है थाने के लगातार चक्कर लगा रही है लेकिन पुलिस आरोपी की खोजबीन कर गिरफ्तार करने की कागजी कोशिश कर रही है.भयभीत व परेशान युवती का  कहना है कि यदि पुलिस एक सप्ताह के भीतर आरोपी को गिरफ्तार नही करती है तो वह आत्महत्या करने को मजबूर रहेगी.जिसकी सारी जवाबदारी पुलिस प्रशासन की होगी.

युवती ने “वीडियो” जारी किया

अक्सर इस तरह की घटनाएं सुर्खियों में रहती हैं. युवा वर्ग प्रेम प्यार और शारीरिक आकर्षण में फंस कर एक ऐसे भंवर जाल में फंसते चले जाते हैं कि आगे जीवन में सिर्फ अंधकार होता है. और ताजिंदगी अवसाद के अलावा कुछ नहीं मिलता. अक्सर फिल्मों में कहानियों में यही तथ्य और कथ्य रहता है जिसमें विस्तार से बताया जाता है कि किस तरह कोई युवक ठाट बाट और पैसों की झलक दिखा कर युवतियो को अपने जाल में फांस लेता है और  धोखा देकर शारीरिक संबंध बनाता है. और फिर गायब हो जाता हैं. “हरि अनंत हरि कथा अनंता” की तरह यह बानगी वर्षों वर्षों से चली आ रही है. मगर अब समय आ गया है कि इस आधुनिक 21 वी शताब्दी के समय में जब ज्ञान के अनेक स्रोत हमारे पास हैं पुस्तकें हैं, नेट है अगर आज भी स्त्री और पुरुष का यह छलावा चल रहा है तो ठहर कर सोचने की बात है कि आखिर चूक कहां है?

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भ्रम और मानसिक यंत्रणा की कहानी

ऊपर वर्णित घटनाक्रम छत्तीसगढ़ जिला के कोरबा के कटघोरा थानांतर्गत ग्राम कसनिया का है. जहाँ निवासरत युवती रजनी (बदला हुआ नाम) को  कटघोरा पुरानी बस्ती निवासी आसीम खान पिता अकरम सेठ अपने प्रेमजाल में फंसा लेता है और शादी करने का झांसा देते हुए लगातार लंबे समय तक शारीरिक संबंध स्थापित करता है.इस बीच रजनी द्वारा शादी का दबाव बनाए जाने पर तीन दिसंबर 2019 को आरोपी द्वारा शपथपत्र करके विवाह का भ्रमजाल फैलाया गया. लेकिन शादी के तीन दिन पश्चात छः दिसंबर 2019 को शारीरिक एवं मानसिक यातना देते हुए नाटकीय ढंग से पुनः शपथपत्र के माध्यम से दबावपूर्वक संबंध विच्छेद कर लेता है. पीड़िता इस मामले की शिकायत कटघोरा थाना में करती है. शिकायत के आधार पर पुलिस आरोपी के विरुद्ध भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धाराओं के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश करती है जहां से आरोपी को जेल चला जाता है.

आरोपी जमानत पर जेल से छूटने पश्चात पीड़िता को बार-बार फोन करके अश्लील गाली-गलौज व मारने- पीटने की धमकी देने लगता है और एक रात  आरोपी प्रेमी, युवती के घर आ धमकता है तथा अकेलेपन का फायदा उठाकर जेल भेजे जाने की बात कहते हुए गाली-गलौज के अलावा मारपीट करते हुए बलपूर्वक शारीरिक संबंध स्थापित करता है.पीड़िता द्वारा  कटघोरा थाना पहुँचकर इस बाबत लिखित शिकायत दी जाती है.लेकिन पुलिस कोई कार्यवाही नही करती. आगे एक जुलाई 2020 को पीड़िता पुलिस अधीक्षक कार्यालय पहुँचकर अपनी शिकायत पत्र सौंप उचित कार्यवाही एवं न्याय की मांग करती है.जिसके बाद आरोपी युवक के विरुद्ध  कटघोरा पुलिस द्वारा  धारा 376, 506 के तहत अपराध दर्ज किया गया है.

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लेकिन अपराध दर्ज होने के बाद आरोपी फरार हो जाता है.जिसे पुलिस अभी तलक फरार बता रही है.जबकि पीड़िता का कथन है कि आरोपी आए दिन फोन पर जान से मारने की धमकी दे रहा है.धमकी से भयभीत हो इस बीच कई बार वह कटघोरा थाना पहुँचकर पुलिस को अपनी आपबीती सुनाते हुए आरोपी की जल्द गिरफ्तारी की मांग भी कर चुकी है.लेकिन फरार आरोपी की खोजबीन कर उसे गिरफ्तार करने की प्रक्रिया को लेकर पुलिस सुस्त बनी  है.मामले में पुलिस के सुस्ती भरे रवैये को लेकर भय के माहौल में जीवन व्यतीत कर रही पीड़िता ने  अब एक वीडियो क्लिप  जारी कर‌ सनसनी  पैदा कर कहा है कि फरार आरोपी कभी भी उसके साथ गंभीर घटना को अंजाम दे सकता है.यदि पुलिस एक सप्ताह के भीतर आरोपी की तलाश कर गिरफ्तार नही करती है तो वह “आत्महत्या” के लिए मजबूर  होगी, जिसकी सारी जवाबदारी  पुलिस प्रशासन की रहेगी.

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