लेखक- रोहित   

जिस बिंदु की तरफ ज्यादातर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा वह अनप्रोडक्टिव वर्क कल्चर को बढ़ावा दे रहा है. समस्या यह है कि समाज ने उसे नैतिकअनैतिक की बहस में उलझा कर रखा हुआ है, जबकि वह किसी भी तरह से प्रोडक्टिव नहीं है. ‘‘चौराहे पर लगे ट्रैफिक सिगनल यातायात को सुचारु रूप से चलाए रखने के लिए निर्णायक हैं.

अब अगर कुछ बाइकसवार यातायात के बने इन नियमों की अवहेलना करते हुए रैडलाइट जंप कर दें, तो क्या इस अपराध को रोकने के लिए ट्रैफिक सिगनल से रैडलाइट ही हटा देना उचित कदम होगा?’’ यह सवाल करते हुए अशोक ने एक अनबुझ पहेली मेरे सामने रख दी. दरअसल, कुछ दिनों पहले आईपीएल मैच देखते हुए भारत में औनलाइन गैंबलिंग के बढ़ते चलन को ले कर मेरी अपने मित्र अशोक से चर्चा चल रही थी. और यह सवाल उस ने मेरे उस बात के प्रतिउत्तर में दागा था जिस में मैं ने उस से कहा कि गैंबलिंग को वैधानिकता मिलने से इस से जुड़े छिपे गैरकानूनी धंधों में कमी आएगी, सबकुछ सामने होगा और सरकार को टैक्स के तौर पर रैवेन्यू में भारीभरकम रकम प्राप्त होगी.

अशोक का इस मसले पर सीधा सोचना था कि ‘‘अगर गैंबलिंग की वैधानिकता से सरकार को टैक्स का फायदा होता है तो ड्रग्स, कालेधन, स्मगलिंग, ट्रैफिकिंग जैसे दो नंबरी धंधों को कानूनी बना कर उन से भी भारीभरकम टैक्स कमाने में क्या बुराई है, ये धंधे भी वैधानिक कर दिए जाने चाहिए?’’ उस के सवाल तीखे थे, लेकिन जिज्ञासा जगा रहे थे. मैं ने गाजियाबाद में रह रहे अपने एक अन्य मित्र 28 वर्षीय प्रदीप (बदला नाम) को फोन मिलाया. दरअसल, मुझे जानकारी थी कि प्रदीप ने पिछले साल से ही औनलाइन गैंबलिंग में हिस्सा लेना शुरू किया था. वैसे तो इसे सीधेसीधे गैंबलिंग कोई स्वीकार नहीं करता लेकिन प्रदीप ने सीधेतौर पर बताया कि यह एक तरह का सट्टा या जुआ ही है. जो जुआ आप मटका या औफलाइन छिपेतौर पर खेल रहे थे, बस, अब वह पूरी मान्यता के साथ खेला जा रहा है.   प्रदीप लौकडाउन से पहले गुरुग्राम स्थित एक एमएनसी में काम कर रहा था. उस की नौकरी 2 साल पहले लगी थी. उस ने शुरू से ही कंप्यूटर लाइन चुनी थी.

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