पुलिसके अत्याचारों के खिलाफ आम लोगों के हाथ में आज सब से बड़ा हथियार मोबाइल है. सैकड़ों वीडियो क्लिप्स आज सोशल मीडिया में घूम रही हैं जिन में पुलिस वालों को किसी को बेरहमी से पीटते, किसी से रिश्वत लेते, लोगों से जोरजबरदस्ती करते देखा जा रहा है. इस बीच, पुलिस वाले चौकन्ने हो गए हैं, वे ऐसे मोबाइलों को तोड़ने की कोशिश करने लगे हैं.

मोबाइलों से खींची या बनाई गईं वीडियो क्लिप्स कोई असर डालती हैं, इस बारे में कोई आंकड़ा तो जमा नहीं किया गया पर पुलिस वालों को इस से फर्क जरूर पड़ता है. कई बार जब ये क्लिप्स टीवी चैनलों में पहुंच जाती हैं और चैनल सरकारी भोपू न हों और चुप न रहने की हिम्मत रखते हों, तो पुलिस की आमजन के प्रति क्रूरता जगजाहिर हो जाती है.

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आज युवा ज्यादा उत्साह दिखाते हैं जो गलत बातों का विरोध करते हैं. उन के लिए पुलिस के डंडों से बचने का यह एक उपाय है. पर फ्रांस में एक कानून बनने वाला है जिस में इस तरह की वीडियो बनाना ही अपराध घोषित कर दिया जाएगा. ऐसी एक वीडियो क्लिप हमारे देश भारत में किसान आंदोलन के दौरान एक वृद्ध सिख पर पुलिस वाले का डंडा बरसाने की बनाई गई थी जिस पर राहुल गांधी की टिप्पणी पर भाजपा आईटी सैल ने ट्विटर पर एक अधूरा वीडियो डाला था. ट्विटर कंपनी ने भाजपा के अमित मालवीय के इस प्रतिउत्तर  वाले ट्वीट को गलत ठहराया है. फ्रांस तो उसे पकड़ लेगा जिस ने पुलिस वाले का वीडियो बनाया था. फ्रांस में बन रहे कानून के खिलाफ वहां देशभर में  1 दिसंबर से प्रदर्शन होने लगे हैं. लोग कहते हैं कि उन्हें पुलिस की ज्यादतियों का वीडियो लेने का मौलिक अधिकार है. पुलिस कानून को हाथ में नहीं ले सकती.

वह जबरन किसी को पीट नहीं सकती. नागरिकों के पास अकेला हथियार उस समय उस के साथी या आसपास के लोगों द्वारा बनाए गए वीडियो ही हैं. पुलिस किस तरह हमारे देश भारत में थानों में अत्याचार करती है, यह जगजाहिर है. दिसंबर के पहले सप्ताह में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि सारे थानों में सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं ताकि थानों के भीतर पुलिस के अत्याचार कम हो सकें.  ये सीसीटीवी कैमरे लग तो जाएंगे पर पहले ही दिन से खराब रहेंगे.

सुप्रीम कोर्ट हर थाने में थोड़े ही मौजूद रहेगा? वहां तो आरोपी के रिश्तेदार ही होंगे और यदि उन के पास पूछताछ के समय वीडियो बनाने का अधिकार हो तो पुलिस अपनी बर्बरता से उन्हें वीडियो बनाने से रोक सकती है. दुनिया के हर देश को पुलिस की जरूरत है पर हर देश में पुलिस अपनेआप में आपराधिक गिरोह बन जाती है. जो किसी वजह या बेवजह पकड़ा गया, वह पुलिस अत्याचारों का शिकार रहा था या नहीं, यह कभी पता नहीं चल सकता.  सरकारें पुलिस पर रोक लगाने के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि सत्ता में बैठे नेता अपने विरोधियों को इसी पुलिस के सहारे कुचलते हैं.

वैसे, मार खाने वालों में ज्यादातर युवा ही होते हैं, वे चाहे राजनीतिकविरोधी हों या समाज के प्रति असल गुनाहगार. एमेजौन का वर्चस्व  दुनियाभर में नवंबर का आखिरी शुक्रवार औफर्स का मनभावन दिन होता है जब बड़े स्टोर अपना बचा माल बहुत सस्ते दामों पर बेचते हैं. इसे ‘ब्लैक फ्राइडे’ कहते हैं. अमेरिका से शुरू हुआ यह तमाशा अब दुनिया के सभी समृद्ध देशों के स्टोर मनाते हैं और औनलाइन स्टोरों, जैसे एमेजौन आदि ने भी ब्लैक फ्राइडे मनाना शुरू कर दिया है.  इस बार इसी दिन एमेजौन के खिलाफ एक आंदोलन शुरू हुआ है.

ऊपर से तो यही कहा जा रहा है कि एमेजौन अपने कर्मचारियों को पूरे पैसे नहीं देता और बहुत से देशों में टैक्स नहीं देता, पर असली वजह यह है कि लोग इस की बढ़ती मोनोपौली से घबरा रहे हैं. एमेजौन अब आप को अपनी मरजी का सामान बेचता है और जो जरूरत नहीं, वह भी मनमाने दामों में बेच डालता है.  मोबाइल या कंप्यूटर पर खरीदारी एक तरह से जुए की शक्ल लेने लगी है जिस में लोग फोटो या वीडियो देख कर सस्ती चीजों को खरीदते हैं और फिर इंतजार करते हैं कि पासा उन के पक्ष में पड़ा या नहीं. एमेजौन जुआघर बनने लगा है. इस में लोगों को घर बैठे सस्ते सामान का लालच दे कर जुआ खेलने की आदत डाली जा रही है. यह काम आप के घर के करीब की दुकानें नहीं कर सकतीं. एमेजौन छोटे बिजनैसों को हड़प रहा है और आज के या भविष्य के लाखों छोटे व्यापारी अब डिलीवरीमैन बने जा रहे हैं.

एमेजौन ने बुद्धिहीन डिलीवरीमैनों की आर्मी खड़ी कर ली जो एक भाषा, एक सा व्यवहार, एक सी पोशाक पहन रहे हैं. यही नहीं, वे जल्द से जल्द सामान पहुंचाने के लिए ट्रैफिक का वह जोखिम ले रहे हैं जो सीमा पर दुश्मन से लड़ने के लिए सैनिक लेते हैं. आम किसी कंपनी का घरेलू सामान आज बिक ही नहीं सकता अगर एमेजौन का वरदहस्त न हो.

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चीनी कंपनी अलीबाबा भी वैसी ही है, पर एमेजौन तो उस से 8-9 गुना बड़ी है. कोई बड़ी बात नहीं होगी जो कभी रहस्य खुले कि अमेरिकाचीन संबंध एमेजौन के कारण खराब हुए थे जो अलीबाबा को आगे बढ़ने नहीं देना चाहती. यह संभव है कि आज एक कंपनी अमेरिका और चीन की सरकारों को प्रभावित कर ले.  बहरहाल, शिकार हर हालत में आज के युवा ही होंगे जो या तो फालतू सामान खरीदेंगे या फिर फालतू टिकटौक  पर नाचेंगे.

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