खेल: डोपिंग का खेल, खिलाड़ी हुए फेल

गुजरात में 29 सितंबर, 2022 से 12 अक्तूबर, 2022 तक 36वें नैशनल गेम्स हुए थे. इन में 36 खेलों में तकरीबन 15,000 खिलाडि़यों ने हिस्सा लिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे खेल उत्सव की तरह मनाने को कहा था.

ऐसा हुआ भी, पर उसी दौरान नैशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) की ओर से खिलाडि़यों की सैंपलिंग की गई थी. फिर आए कुछ चौंकाने वाले नतीजे, जिन्होंने खेल और खिलाडि़यों को शर्मसार कर दिया.

दरअसल, नैशनल डोप टैस्ट लैबोरेटरी की टैस्टिंग में 2 वेटलिफ्टर, 2 बार की कौमनवैल्थ गेम्स की गोल्ड मैडलिस्ट संजीता चानू, चंडीगढ़ की वीरजीत कौर डोप टैस्ट में फंस गई थीं. इन दोनों ने गुजरात में हुए नैशनल गेम्स में सिल्वर मैडल जीते थे.

इस के अलावा कुश्ती में 97 किलो में गोल्ड मैडल जीतने वाले हरियाणा के दीपांशु और सिल्वर मैडल जीतने वाले रवि राजपाल स्टेरौयड मिथेंडियोनौन के सेवन के लिए, 100 मीटर में कांसे का तमगा जीतने वाली महाराष्ट्र की डियांड्रा स्टेरौयड स्टेनोजोलौल के सेवन के लिए, लौन बौउल में सिंगल का सिल्वर मैडल जीतने वाले पश्चिम बंगाल के सोमेन बनर्जी डाइयूरेटिक्स, एपलेरेनौन के सेवन के लिए और फुटबाल का कांसे का मैडल जीतने वाली केरल की टीम के सदस्य विकनेश बीटा-2 एगोनिस्ट टरब्यूटालाइन के सेवन लिए पौजिटिव पाए गए थे.

मैडल जीतने वाले 7 विजेताओं के अलावा साइकिलिस्ट रुबेलप्रीत सिंह, जुडोका नवरूप कौर और वूशु खिलाड़ी हर्षित नामदेव भी डोप टैस्ट में फंसे थे. इन 10 में से 8 खिलाडि़यों पर टैंपरेरी बैन लगा दिया गया.

विकनेश और सोमेन बनर्जी पर टैंपरेरी बैन नहीं लगा. उन के नमूने में वाडा की स्पैसीफाइड सूची में शामिल स्टीमुलैंट और बीटा-2 एगोनिस्ट पाए गए थे.

इन सब खिलाडि़यों में सब से ज्यादा चौंकाने वाला नाम दीपा करमाकर था, जिन पर 21 महीने का बैन लगाया गया. दीपा करमाकर को बैन की गई दवा हाइजेनामाइन लेने का दोषी पाया गया.

इंटरनैशनल टैस्टिंग एजेंसी ने अपने बयान में कहा कि दीपा करमाकर के नमूने 11 अक्तूबर, 2022 को लिए गए थे और उन पर यह बैन 10 जुलाई, 2023 तक जारी रहेगा.

दीपा करमाकर भारत की ऐसी पहली जिम्नास्ट थीं, जिन्होंने साल 2016 में रियो ओलिंपिक गेम्स में चौथा स्थान हासिल किया था. इस से पहले उन्होंने साल 2014 के ग्लास्गो कौमनवैल्थ गेम्स में कांसे का तमगा जीता था. ऐसा करने वाली वे पहली भारतीय महिला जिम्नास्ट थीं.

दीपा करमाकर ने एशियन जिम्नास्टिक चैंपियनशिप में भी कांसे का तमगा जीता था और साल 2015 की वर्ल्ड आर्टिस्टिक जिम्नास्टिक चैंपियनशिप में 5वां स्थान हासिल किया था.

क्या बला है डोपिंग

ऐसा माना जाता है कि साल 1968 में मैक्सिको में हुए ओलिंपिक गेम्स में पहली बार डोप टैस्ट हुए थे, लेकिन इंटरनैशनल एथलैटिक्स फैडरेशन पहली ऐसी संस्था थी, जिस ने साल 1928 में डोपिंग को ले कर नियम बनाए थे.

इसी तरह साल 1966 में इंटरनैशनल ओलिंपिक काउंसिल ने डोपिंग को ले कर एक मैडिकल काउंसिल बनाई थी, जिस का काम डोप टैस्ट करना था.

डोपिंग में आने वाली दवाओं को 5 अलगअलग कैटेगरी में बांटा गया है, जैसे स्टेरौयड, पैप्टाइड हार्मोन, नार्कोटिक्स, डाइयूरेटिक्स और ब्लड डोपिंग.

स्टेरौयड हमारे शरीर में पहले से ही मौजूद होता है, जैसे टैस्टेस्टेरौन. खिलाड़ी अपने शरीर में मांसपेशियां बढ़ाने के लिए स्टेरौयड के इंजैक्शन लेते हैं, जो शरीर में मांसपेशियां बढ़ा देता है.

पैप्टाइड हार्मोन भी शरीर में मौजूद होते हैं. इंसुलिन नाम का हार्मोन डायबिटीज के मरीजों के लिए जरूरी हार्मोन है, लेकिन किसी सेहतमंद इनसान को इंसुलिन दिया जाए तो इस से शरीर से फैट घटने लगता है और मसल्स बनती हैं.

ब्लड डोपिंग में खिलाड़ी कम उम्र के लोगों का ब्लड खुद को चढ़ाते हैं. वजह, कम उम्र के लोगों के ब्लड में रैड ब्लड सैल्स ज्यादा होते हैं, जो ज्यादा औक्सिजन खींच कर ताकत देते हैं.

खेल के दौरान दर्द का अहसास होने पर अकसर खिलाड़ी नार्कोटिक्स जैसी दर्दनाशक दवाएं लेते

हैं, जो उन्हें तुरंत राहत देती हैं.

डाइयूरेटिक्स शरीर से पानी को बाहर निकाल देता है. इसे जल्दी से जल्दी वजन कम करने वाले खिलाड़ी इस्तेमाल करते हैं, ताकि ज्यादा वजन के चलते वे गेम से ही न बाहर हो जाएं.

ऐसे होता है डोप टैस्ट

खेलों में बैन की गई दवाओं के चलन को रोकने के लिए 10 नवंबर, 1999 को स्विट्जरलैंड के लुसेन शहर में वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) बनाई गई थी. इस के बाद हर देश में नैशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) बनाई जाने लगी थीं. इस में दोषी पाए जाने वाले खिलाडि़यों को 2 साल की सजा से ले कर जिंदगीभर के लिए बैन तक सजा दी जा सकती है.

ताकत बढ़ाने वाली दवाओं के इस्तेमाल को पकड़ने के लिए डोप टैस्ट किया जाता है. किसी भी खिलाड़ी का किसी भी वक्त डोप टैस्ट लिया जा सकता है. ऐसे टैस्ट नाडा या वाडा या फिर दोनों की ओर से किए जा सकते हैं. इस के लिए खिलाडि़यों के पेशाब के सैंपल लिए जाते हैं. नमूना एक बार ही लिया जाता है.

पहले चरण को ‘ए’ और दूसरे चरण को ‘बी’ कहते हैं. ‘ए’ पौजीटिव पाए जाने पर खिलाड़ी को बैन कर दिया जाता है. अगर खिलाड़ी चाहे तो एंटी डोपिंग पैनल से ‘बी’ टैस्ट सैंपल के लिए अपील कर सकता है. अगर खिलाड़ी ‘बी’ टैस्ट सैंपल में भी पौजिटिव आ जाए, तो उस पर बैन लगा दिया जाता है.

वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी हर साल खिलाडि़यों के लिए नए डोपिंग कोड बनाती है. इस डोपिंग कोड के मुताबिक, 500 से 600 तरह की दवाएं पूरी तरह से बैन हैं.

खिलाड़ी वाडा की वैबसाइट पर जा कर बैन की गई दवाओं वगैरह की लिस्ट देख सकते हैं. खिलाड़ी एंटी डोपिंग टीम से भी बैन की गई दवाओं की जानकारी ले सकते हैं.

अगर दवा खिलाड़ी के लिए बेहद जरूरी है, तो पहले उसे संबंधित स्पोर्ट्स डिपार्टमैंट या वाडा को इस की जानकारी देनी होगी, उस के बाद ही खिलाड़ी उस दवा का सेवन कर सकते हैं.

खेल का मैदान: कहीं जीता दिल, कहीं किया शर्मसार

शनिवार, 12 जून, 2021 को फुटबाल के ‘यूरो कप’ में अपने पहले मुकाबले में कमजोर फिनलैंड ने डैनमार्क को 1-0 से हरा दिया. पर इस फुटबाल मैच की जो सब से अहम घटना थी, वह डैनमार्क के शानदार खिलाड़ी क्रिश्चियन ऐरिक्सन से जुड़ी थी. दरअसल, मैच के हाफ टाइम से ठीक पहले वे मैदान में अचानक गिर कर बेहोश हो गए थे.

क्रिश्चियन ऐरिक्सन डैनमार्क के आक्रामक मिडफील्डर के तौर पर मशहूर हैं और उन्हें मैदान पर ऐसे पड़ा देख कर उन की टीम के सदस्य रोने लगे थे. डैनमार्क के फैन भी गमगीन थे.

यह हादसा देख कर अचानक खयाल आया कि 29 साल का इतना ज्यादा फिट इनसान देखतेदेखते कैसे उन हालात में जा सकता है कि उस के बचने की उम्मीद अचानक धुंधली पड़ती जाए? पर वहां मौजूद डाक्टरों की टीम ने कमाल का काम किया.

इसी बीच डैनमार्क के खिलाडि़यों ने घेरा बना कर जमीन पर पड़े ऐरिक्सन का मानो सुरक्षा कवच बना लिया था, हालांकि उन के चेहरे क्रिश्चियन ऐरिक्सन की विपरीत दिशा में थे.

डाक्टरों ने तो मानो अपना पूरा जोर लगा दिया था. उन्होंने क्रिश्चियन ऐरिक्सन की जोरजोर से छाती दबाई… और भी कई जरूरी तरीके अपनाए, पर डैनमार्क टीम के खिलाडि़यों के आंसू बता रहे थे कि हालात बेहद चिंताजनक हैं. लेकिन सब से अच्छी बात तो यह थी कि दर्शकों और मैदान पर जमा दूसरे लोगों ने घटनास्थल के पास कोई मजमा नहीं लगाया.

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वहां से थोड़ी दूर एक महिला भी मैदान पर थीं, जिन्हें डैनमार्क के कुछ खिलाड़ी दिलासा दे रहे थे. वे शायद क्रिश्चियन ऐरिक्सन की पत्नी थीं और रोए जा रही थीं. यह एक ऐसा सीन था, जिसे खेल के मैदान पर कोई नहीं  देखना चाहेगा.

उधर डाक्टरों की टीम अपने काम में जुटी हुई थी. चिकित्सा का पूरा ताम झाम डाक्टर ले आए थे, पर जब उन्हें लगा कि अब क्रिश्चियन ऐरिक्सन को अस्पताल ले जाना पड़ेगा, तो उन्होंने वही किया. तब तक क्रिश्चियन ऐरिक्सन बेहोश थे और मैडिकल इमर्जेंसी के चलते मैच को निलंबित कर दिया गया था.

काफी देर के बाद टूर्नामैंट के आयोजक यूईएफए ने जानकारी दी कि क्रिश्चियन ऐरिक्सन को होश आ गया है और उन की हालत फिलहाल ‘स्थिर’ है. यह खबर सुखद थी.

दोनों टीमों से बात कर के कुछ देर बाद मैच फिर से शुरू हुआ. पर तब तक शायद डैनमार्क के खिलाडि़यों की लय बिगड़ चुकी थी, जिस के चलते यह मैच फिनलैंड ने 1-0 से अपने नाम कर लिया.

मैच खत्म होने के बाद डैनमार्क की टीम के हैड कोच कैस्पर हेजुलमैन ने कहा, ‘‘यह टीम के लिए बेहद मुश्किल शाम थी, जब हम सभी को इस बात का अहसास हुआ कि जिंदगी में सब से अहम चीज रिश्ते हैं. हम ऐरिक्सन और उन के परिवार के साथ हैं.’’

यूईएफए के अध्यक्ष एलैक्जैंडर चैफरीन ने कहा, ‘‘इस तरह के वाकिए आप को एक बार फिर जिंदगी के बारे में सोचने का मौका देते हैं. इस तरह के वाकिए बताते हैं कि फुटबाल खेल के परिवार में कितनी एकता है. मैं ने सुना दोनों टीमों के फैंस ऐरिक्सन का नाम ले रहे थे. ऐरिक्सन बेहतरीन खिलाड़ी हैं और बेहतरीन फुटबाल खेलते हैं.

‘‘पर, मैं साथ में उन डाक्टरों की टीम की तारीफ भी करूंगा, जिस ने बिना देरी किए ऐरिक्सन को बचाने के लिए हर मुमकिन तरीका अपनाया और एक बेहतरीन खिलाड़ी को नई जिंदगी दी.’’

पर एक और टीम खेल क्रिकेट में हुई एक घटना ने क्रिकेट प्रेमियों को शर्मिंदा कर दिया. हुआ यों कि क्रिकेट की ढाका प्रीमियर लीग में शुक्रवार, 11 जून, 2021 को खेले गए एक ट्वैंटी20 मैच के दौरान बंगलादेशी खिलाड़ी शाकिब अल हसन अंपायर से भिड़ पड़े थे और गुस्से में स्टंप्स पर भी लात मारते हुए दिखाई दिए थे.

इस घटना के गवाह एक वीडियो  में दिखा कि शाकिब अल हसन ने  दूसरी टीम के बल्लेबाज मुशफिकुर रहीम के खिलाफ अपनी गेंदबाजी पर एलबीडब्ल्यू की अपील की और जब अंपायर ने नौटआउट करार दिया, तो उन्होंने पहले स्टंप्स पर लात मारी और फिर अंपायर से भी भिड़ गए.

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लेकिन बाद में शाकिब हल हसन को ही यह सब करना भारी पड़ गया. उन के खराब बरताव के लिए उन्हें ढाका प्रीमियर लीग में 4 मैचों के लिए बैन कर दिया गया और 4 लाख रुपए से ज्यादा का जुर्माना भी लगाया गया.

हालांकि, शाकिब अल हसन ने अपने इस बरताव के लिए माफी मांगते हुए सोशल मीडिया पर लिखा था, ‘प्रिय फैंस और फौलोवर, मैं अपना आपा खोने और इस तरह से सभी से मैच को बरबाद करने के लिए माफी मांगता हूं, खासतौर पर उन लोगों से जो घर पर बैठ कर यह मुकाबला देख रहे थे.

‘मेरे जैसे एक अनुभवी खिलाड़ी को इस तरह का बरताव नहीं करना चाहिए, लेकिन कभीकभी दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से ऐसा हो जाता है. मैं टीमों से, मैनेजमैंट से, टूर्नामैंट के औफिशिल्स से और टूर्नामैंट के आयोजकों से इस भूल के लिए माफी मांगता हूं. उम्मीद है कि भविष्य में मैं इस तरह का बरताव फिर कभी नहीं करूंगा. धन्यवाद और सभी को प्यार.’

माना कि खेल के मैदान पर हारजीत के तनाव में खिलाड़ी आपा खो देते हैं, पर शाकिब अल हसन का गुस्सा होना और वह भी इस हद तक कि पहले विकेट पर लात दे मारी और फिर अंपायर पर ही चढ़ गए, कहीं से जायज नहीं था. उन का बाद में माफी मांगना यह साबित करता है कि उन की हरकत स्कूली क्रिकेट के किसी खिलाड़ी की तरह बचकानी थी, जो विकेट न मिलने पर ऐसा बरताव करे.

फुटबाल और क्रिकेट जैसे टीम खेल में अपने साथियों के साथसाथ विरोधी टीम के खिलाडि़यों और मैदान पर मौजूद अंपायर या रैफरी के साथ अच्छा बरताव करना बहुत जरूरी होता है.

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आपा खोया नहीं कि लेने के देने पड़ जाते हैं. अगर क्रिश्चियन ऐरिक्सन वाले मामले में डाक्टरों की टीम भी अपना आपा खो देती तो शायद वह एक उम्दा खिलाड़ी की जान नहीं बचा पाती, जो खेल जगत के लिए कभी न भर पाने वाला नुकसान होता.

दक्षिण अफ्रीका के खेल वैज्ञानिक श्यामल वल्लभजी कर रहे हैं प्रीति जिंटा की तारीफ, पढ़ें खबर

दक्षिण अफ्रीका के खेल वैज्ञानिक, सेलिब्रिटी कोच और ‘ब्रीथ बिलीव बैलेंस’ पुस्तक के लेखक श्यामल वल्लभजी (Shayamal Vallabhjee) इंडियन प्रीति जिंटा (Preity Zinta) की तारीफ करते हुए नहीं थक रहे हैं. मजेदार बात यह है कि वह प्रीति जिंटा (Preity Zinta) की तारीफ उस वक्त कर रहे हैं जबकि आईपीएल के क्रिकेट मैचों की शुरुआत हो चुकी है. वह यह भी मानते है कि इनके पास प्रत्येक व्यक्ति के लिए जीवन की योजना है तथा उनका सर्वश्रेष्ठ आना अभी बाकी है.

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जी हां! दक्षिण अफ्रीका के खेल वैज्ञानिक वल्लभजी (Shayamal Vallabhjee) ने कहते हैं “मुझे  प्रीति  जिंटा की कार्यशैली बहुत अच्छी लगी. मैंने उनकी टीम और उनकी ताकत जानने में उनके शोध की गहराई की प्रशंसा की है. मेरे लिए किंग्स इलेवन के साथ काम करना एक शानदार अनुभव था.

सहवाग, हॉज, गेल, अश्विन, वेंकटेश प्रसाद और अन्य से सीखना अविश्वसनीय था. उन्होंने मुझे खेल मनोविज्ञान में नए विचारों और दृष्टिकोण का परीक्षण करने का अवसर दिया.  मुझे लगता है कि एक मंच के रूप में आईपीएल में प्रदर्शन के मामले में वृद्धि की उल्लेखनीय क्षमता है. क्योंकि हमने अभी तक कुछ विज्ञानों की सतह को खरोंचने की शुरुआत नहीं की है. जो शिखर प्रदर्शन की ओर ले जाते हैं – नींद विश्लेषण, द्रव निगरानी, बायोमैकेनिक्स, उपकरण संशोधन, मनोविज्ञान जैसे विज्ञान, मांसपेशी शरीर क्रिया विज्ञान और अधिक.”

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डैरेन सैमी बोले मुझ से माफी मांगो

क्रिकेट बंद है, पर क्रिकेटर पूरी हलचल में हैं खासकर सोशल मीडिया पर. कोई विदेशी खिलाड़ी अपनी फैमिली के साथ ‘टिक-टौक’ पर हिंदी गानों पर ठुमके लगा कर वाहवाही लूट रहा है, तो कोई देशी खिलाड़ी अपनी प्रेमिका के बेबी बंप से सुर्खियां बटोर रहा है. घर में खाली बैठे हैं, तो एकदूसरे को कोई भी चैलेंज दे कर बहुत से क्रिकेट खिलाड़ी टाइमपास कर रहे हैं.

इस में कोई बुराई नहीं है, पर चूंकि दुनिया में कोरोना के साथसाथ और भी बहुतकुछ ऐसा हो रहा है, जिस ने दुनिया का तापमान बढ़ा दिया है, तो उस का असर अब क्रिकेटरों पर भी देखने को मिल रहा है.

अमेरिका में एक अश्वेत नागरिक जौर्ज फ्लायड की जिस निर्मम तरीके से पुलिस के हाथों मौत हुई थी, उस के बाद तो मानो दुनियाभर के अश्वेत लोगों के दिलों में वह दबी चिनगारी भड़क गई थी, जो काले रंग के चलते उन्हें गोरे लोगों से कमतर होने का एहसास कराती है.

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इस के बाद तो एक धमाका सा हुआ हुआ और पूरी दुनिया इस नस्लभेद की लड़ाई में अश्वेत लोगों के साथ खड़ी नजर आई. नतीजतन, कहीं पुलिस ने उन से सार्वजिक तौर पर  माफी मांगी, तो कहीं लोगों का गुस्सा इस कदर फूटा कि बड़ेबड़े नेता अपने बख्तरबंद बंकरों में जा छिपे.

इसी बीच क्रिकेट जगत से ऐसी खबर आई, जो हैरान कर देने वाली थी. वैस्टइंडीज क्रिकेट टीम के एक खिलाड़ी और कप्तान रह चुके डेरेन सैमी ने एक सनसनीखेज खुलासा किया कि साल 2014 के इंडियन प्रीमियर लीग में जब वे सनराइजर्स हैदराबाद टीम की तरफ से खेलते थे, तब ड्रैसिंग रूम में कुछ लोग उन्हें उस शब्द से पुकारते थे, जो अपमानजनक था.

डेरेन सैमी के इन आरोपों के बीच भारतीय क्रिकेटर ईशांत शर्मा का 14 मई, 2104 का एक पोस्ट वायरल है , जिस में उन्होंने डेरेन सैमी के लिए उन की त्वचा के रंग से जुड़ा एक शब्द लिखा था.

इस सिलसिले में डेरेन सैमी कहा कि उन्हें जिस शब्द से संबोधित किया गया था, तब उन्हें इस का मतलब नहीं पता था, लेकिन जब से पता चला है तो वे बड़े निराश हैं. दरअसल, डेरेन सैमी ने कहा कि तब उन्हें ‘कालू’ कह कर बुलाया जाता था, लेकिन अब उन्हें इस शब्द का मतलब पता चल गया है. यह शब्द नस्लीय भेदभाव का प्रतीक है और अपमानजनक है.

इस मसले पर डेरेन सैमी इस हद तक दुखी और गुस्साए लग रहे हैं कि उन्होंने लिखा, ‘जो भी मुझे उस नाम से बुलाता था, उसे खुद ही यह पता है. मुझ से संपर्क करो, बात करो. मैं उन सभी लोगों को मैसेज भेजूंगा. आप सब को खुद के बारे में पता है. मैं यह स्वीकार करता हूं कि उस समय मुझे इस शब्द का मतलब नहीं पता था.’

डेरेन सैमी यहीं पर नहीं रुके, बल्कि उन्होंने कहा कि वे सब खिलाड़ी उन से माफी मांगे, नहीं तो वे उन सब के नाम उजागर कर देंगे.

यह पहली बार नहीं हुआ है, जब क्रिकेट में खिलाड़ियों के बीच नस्लीय टिप्पणी की गई है. भारत के लिए क्रिकेट खेल चुके तेज गेंदबाज इरफान पठान ने भी हालिया कहा कि अलग धर्म या आस्था के चलते आप को किसी सोसाइटी में घर नहीं मिलता है तो यह भी एक तरह का नस्लवाद है.

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इसी तरह वैस्टइंडीज के ही धाकड़ बल्लेबाज क्रिस गेल ने इस नस्लीय भेदभाव पर अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर लिखा, ‘किसी और की तरह अश्वेत की जिंदगी के भी माने हैं… सभी नस्लवादी लोग, अश्वेत लोगों को बेवकूफ समझना बंद करो. यहां तक हमारे ही कुछ अश्वेत लोग भी दूसरों को ऐसा करने का मौका देते हैं. खुद को नीचा समझने का यह सिलसिला रोको. मैं ने दुनियाभर में यात्राएं की हैं और नस्लीय टिप्पणियों का अनुभव किया है, क्योंकि मैं अश्वेत हूं. मेरा भरोसा कीजिए, यह लिस्ट लंबी है.’

क्रिस गेल साफ कहते हैं कि नस्लवाद सिर्फ फुटबाल में ही नहीं है, बल्कि क्रिकेट में भी है.

वैस्टइंडीज के ही एक और खिलाड़ी ड्वेन ब्रावो ने आज के हालात और नस्लवाद पर कहा, ‘हम चाहते हैं कि हमारे भाई और बहन यह जानें कि हम ताकतवर और खूबसूरत हैं. आप दुनिया के कुछ महान लोगों पर गौर कीजिए, चाहे वे नेल्सन मंडेला हों, मोहम्मद अली या माइकल जोर्डन. हमारे पास ऐसा नेतृत्व रहा है जिन्होंने हमारे लिए मार्ग प्रशस्त किया.’

ड्वेन ब्रावो की बात में दम है कि उन जैसे लोग ताकतवर ही नहीं बहुत खूबसूरत भी हैं, तभी तो जब क्रिकेट के मैदान पर क्रिस गेल अपने बल्ले से छक्के पर छक्के जमाते हैं, तो हर रंग का उन का फैन दीवाना हो कर खूब तालियां बजाता है, उन का एक आटोग्राफ पाने को तरस जाता है.

क्रिकेट : बिना मैच खेले कैसे गंवाया भारत ने नंबर-1 का ताज

कोरोना वायरस महामारी की मार खेलों पर भी पड़ा है और चाहे क्रिकेट हो या फुटबौल, हौकी हो या बेसबौल या फिर कोई अन्य खेल, पूरी तरह बंद हैं. इस बीच खबर है कि आईसीसी क्रिकेट रैंकिंग के एक ताजा सर्वे में भारत बिना मैच खेले ही शीर्ष स्थान गंवा चुका है. यह ताज आस्ट्रेलिया ने भारत से छिन लिया है और वह शीर्ष स्थान पर पहुंच चुका है. भारत तीसरे स्थान पर खिसक गया है जबकि न्यूजीलैंड को दूसरा स्थान मिला है.

भारत 1 मई को आईसीसी टेस्ट क्रिकेट रैंकिंग में आस्ट्रेलिया से शीर्ष स्थान गंवा चुका है और अब तीसरे स्थान पर आ गया है. रैंकिंग में गिरावट इसलिए आई है क्योंकि 12 टेस्ट मैचों में भारत की जीत और 2016-2017 में सिर्फ 1 हार वार्षिक अद्यतन से समाप्त हो गई थी.

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नवीनतम अपडेट ने मई 2019 के बाद से खेले गए मैचों को 100% और पिछले 2 वर्षों के मैचों को 50% पर रेट किया है.

आईसीसी ने एक बयान जारी कर कहा,”भारत मोटे तौर पर सीढ़ी में गिरा क्योंकि 12 टेस्ट जीत और 2016-17 में सिर्फ 1 टेस्ट हार का रिकौर्ड हटा दिया गया था.”

कहां है विराट की टीम

कप्तान विराट कोहली की टीम उस अवधि के दौरान आस्ट्रेलिया और इंगलैंड के खिलाफ सभी 5 श्रृंखलाएं जीती थीं. दूसरी ओर आस्ट्रेलिया उसी अवधि में भारत के साथसाथ दक्षिण अफ्रीका से हार गया था.

नवीनतम अपडेट मई 2019 के बाद से खेले गए सभी मैचों को 100% और पिछले 2 सालों के 50% पर रेट करते हैं.

ऑस्ट्रेलिया न केवल टेस्ट रैंकिंग में शीर्ष पर पहुंच गया, बल्कि पहली बार टी- 20 आईसीसी सूची में नंबर- 1 पर कब्जा कर लिया, जबकि इंगलैंड ने वार्षिक अद्यतन के बाद पुरुषों की वनडे रैंकिंग का नेतृत्व करना जारी रखा, जो 2016-17 के परिणामों को समाप्त करता है.

आस्ट्रेलिया के अब 116 अंक हैं और उस के बाद न्यूजीलैंड (115) और भारत (114) हैं.

केवल 2 अंकों के साथ उन्हें अलग करने के बाद यह शीर्ष 3 टीमों में से दूसरा निकटतम है, क्योंकि 2003 में टेस्ट रैंकिंग शुरू की गई थी.

दक्षिण अफ्रीका को 8 अंकों की सब से बड़ी रेटिंग में गिरावट का सामना करना पड़ा है, जो उन्हें श्रीलंका से छठे स्थान पर गिराता है.

उन्होंने इस अवधि में 3 सीरीज़ जीतीं, जबकि फरवरी 2019 के बाद श्रीलंका, भारत और इंगलैंड के खिलाफ खेलते हुए 9 में से 8 टेस्ट हारे.

वनडे टीम रैंकिंग में विश्व चैंपियन इंगलैंड (127) ने भारत पर अपनी बढ़त 6 से 8 अंक तक बढ़ा दी है.

भारत से 3 अंक पीछे न्यूजीलैंड तीसरे स्थान पर है. शीर्ष 10 रैंकिंग अपरिवर्तित बनी हुई हैं.

इस के विपरीत अद्यतन T20 टीम रैंकिंग में बहुत सारे बदलाव देखने को मिलते हैं. रैंकिंग पेश किए जाने के बाद पहली बार ऑस्ट्रेलिया (278) अंक के साथ शीर्ष पर है.

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पाकिस्तान जोकि जनवरी 2018 में शीर्ष स्थान पर पहुंचने के लिए न्यूजीलैंड से आगे निकल गया था और फिर वहां 27 महीने बिताए थे, अब 260 अंकों के साथ चौथे स्थान पर है.

इंगलैंड 268 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर आ गया है, जबकि भारत 1 तीसरे स्थान पर है यानी सिर्फ 2 अंक पीछे.

अफगानिस्तान 7वें से 10वें स्थान पर है.

यह भी जानिए

  • आस्ट्रेलिया ने टेस्ट रैंकिंग में एक शीर्ष स्थान हासिल किया और साथ ही पहली बार टी 20 सूची में नंबर 1 स्थान हासिल किया.
  • इंगलैंड ने वार्षिक अद्यतन के बाद पुरुषों की एकदिवसीय रैंकिंग में अपनी बढ़त जारी रखी जो 2016-2017 के परिणामों को समाप्त कर दिया.
  • टेस्ट रैंकिंग में आस्ट्रेलिया 116 अंकों के साथ न्यूजीलैंड 115 अंकों के साथ भारत और 114 अंकों के साथ शीर्ष पर है.
  • केवल 2 अंकों के अंतर के साथ यह दूसरा निकटतम है कि शीर्ष टीमों को 2003 में टेस्ट रैंकिंग जारी की गई थी.
  • शीर्ष 3 टीमें जनवरी 2016 में निकटतम थीं जब भारत आस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका से 1 अंक से आगे चल रहा था
  • टेस्ट रैंकिंग में दक्षिण अफ्रीका को 8 अंकों की सब से बड़ी गिरावट का सामना करना पड़ा है और श्रीलंका के नीचे 6ठे स्थान पर छोड़ने का नेतृत्व किया.
  • दक्षिण अफ्रीका ने चयनित अवधि में 3 सीरीज़ जीती हैं और फरवरी 2019 के बाद से भारत, श्रीलंका और इंगलैंड के खिलाफ खेलते हुए 9 में से 8 टेस्ट हारे हैं.

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वनडे टीम रैंकिंग

  • वनडे टीम रैंकिंग में शीर्ष 10 रैंकिंग अपरिवर्तित रहे.
  • इंगलैंड ने वनडे टीम रैंकिंग में भारत पर अपनी बढ़त 6 से 8 अंक तक बढ़ा दी है.
  • न्यूजीलैंड अभी भी तीसरे स्थान पर है और भारत से 3 अंक पीछे है.

T20 टीम रैंकिंग

  • 278 अंक के साथ आस्ट्रेलिया पहली बार सूची में शीर्ष पर है.
  • पाकिस्तान जो जनवरी 2018 में शीर्ष स्थान पर पहुंच गया था और न्यूजीलैंड से आगे निकल गया था, अब 260 अंकों के साथ चौथे स्थान पर आ गया है.
  • 268 अंकों के साथ इंगलैंड दूसरे स्थान पर आ गया है जबकि भारत 1 स्थान ऊपर तीसरे स्थान पर है, जो सिर्फ 2 अंक पीछे है.
  • अफगानिस्तान 7 वीं से 10वीं रैंकिंग में गिर गया है.

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पूजा ढांडा : कुश्ती की नई दबंग

1 जनवरी, 1994 को हरियाणा के हिसार जिले के एक गांव बुढ़ाना में जनमी पूजा ढांडा के पांव उन के एथलीट पिता अजमेर सिंह ने पालने में ही पहचान कर इस कहावत को गलत साबित कर दिया था कि सिर्फ पूत के पांव ही पालने में पहचाने जा सकते हैं.

बाद में इस बात को पूजा ढांडा ने भी सच साबित किया. उन्होंने पहले मिट्टी के अखाड़े में और बाद में मैट पर भी अपनी पहलवानी का ऐसा जलवा दिखाया कि दुनिया वाहवाह करने लगी. वे साल 2019 में स्पेन की राजधानी मैड्रिड में हुए कुश्ती के ग्रांप्री इंटरनैशनल टूर्नामैंट में 57 किलोग्राम भारवर्ग में सिल्वर मैडल विजेता थीं. उन्होंने साल 2018 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में सिल्वर मैडल जीता था. इतना ही नहीं, उन्होंने साल 2018 में ही बुडापेस्ट में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रौंज मैडल हासिल किया था.

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अपनी इस कामयाबी का राज खोलते हुए पूजा ढांडा बताती हैं, ‘‘मुझे लड़कों के साथ कुश्ती की प्रैक्टिस करना अच्छा लगता है, क्योंकि उन में ज्यादा ताकत, दमखम और रफ्तार होती है, जिस से मुझे अपना खेल सुधारने में मदद मिलती है.’’

परिवार ने बढ़ाया हौसला

पूजा ढांडा बताती हैं, ‘‘मुझे शुरू से ही खेलों से लगाव रहा है. बचपन में मैं अपने पिता के साथ सुबह दौड़ने जाती थी. जब मैं कुश्ती खेलने लगी तो गांव में बहुत से लोगों ने मुझे ताने मारे थे. पिता को भी लगता था कि अगर मुझे ज्यादा गंभीर चोट लग गई, तो मेरी शादी करने में दिक्कतें आ सकती हैं.

‘‘सब से बड़ी समस्या तो यह है कि आज भी लड़कियों के लिए गांवदेहात में हालात ज्यादा सुधरे नहीं हैं. उन्हें अपनी जिंदगी के फैसले लेने की आजादी नहीं मिली है. उन्हें अगर परिवार का सहयोग मिल भी जाता है, तो समाज कई तरह के रोड़े अटका देता है, पर इन सब बातों से उठ कर ही कोई लड़की देशदुनिया में नाम कमा सकती है.

‘‘मुझे इस मुकाम तक लाने में मेरी मां कमलेश का बहुत बड़ा योगदान है. उन्होंने मुझे कभी अपने सपने पूरे करने से नहीं रोका. उन्होंने मेरी डाइट का खयाल रखा और दूसरी सभी चीजों का भी ध्यान रखा. खेलने के लिए जब कभी मुझे गांव या शहर से बाहर जाना होता था, तो उन्होंने कभी मना नहीं किया.’’

कोच बहुत जरूरी

पूजा ढांडा का मानना है कि किसी खिलाड़ी को बनाने में कोच का बड़ा योगदान होता है. अगर बड़े लैवल पर किसी महिला पहलवान को कोई पुरुष कोच मिल जाता है, तो इस में घबराने की बात नहीं होती है. बस, कोच के साथ तालमेल जरूर बिठाना पड़ता है.

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पूजा ढांडा बताती हैं, ‘‘सब से पहली चीज है अपने कोच पर भरोसा करना. बड़े लैवल पर महिला पहलवानों को कोचिंग देने वाले पुरुष कोच बड़े अनुभवी होते हैं. उन का फोकस हमारे खेल को सुधारने पर रहता है.’’

यही वजह है कि आज जब भी पूजा ढांडा कुश्ती के मैट पर उतरती हैं, तो फौलाद में बदल जाती हैं और सामने वाली पहलवान को धूल चटा देती हैं. वे नई पीढ़ी को खासकर लड़कियों को संदेश देते हुए कहती हैं, ‘‘कभी भी हिम्मत न हारें. लड़कियों को फिट और हिम्मती बनाने में खेलों का बड़ा अहम योगदान है. इस से आत्मविश्वास बढ़ता है और नाम भी बनता है.’’

कहकशां अंसारी – फुटबाल ने बदल दी जिंदगी

लेखिका- निभा सिन्हा

24 दिसंबर, 1994 को गोरखपुर की बसंत नरकटिया नामक जगह पर कहकशां अंसारी ने जन्म लिया, तो सब से ज्यादा मायूस अब्बा मोहम्मद खलील अंसारी हुए थे.

वजह, लड़कियों का क्या, वे तो भारी खर्च करा कर शादीब्याह कर के दूसरे का घर आबाद करेंगी. बेटा होता तो बड़ा हो कर उन के काम में हाथ बंटाता.

मोहम्मद खलील अंसारी गीता प्रैस गोरखपुर में काम करते थे, पर घरखर्च चलाने के लिए अरबी भाषा की ट्यूशन भी लेते थे.

नन्ही कहकशां बचपन से ही चंचल, हठी और बातूनी थी. एक बार जो ठान लिया, उसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ती थी. उस के घर या आसपास की लड़कियां जब सिर पर दुपट्टा रख गुड्डेगुडि़यों का खेल खेलती थीं, मेहंदी लगवाने या नई चूडि़यां पहनने की जिद करती थीं, तब कहकशां इधरउधर ऊधम मचाती फिरती थी या हमउम्र दोस्तों को चिढ़ाया करती थी.

कहकशां को गेंद से खेलना बहुत भाता था. गेंद से खेलतेखेलते कब उसे फुटबाल से लगाव हो गया, पता ही नहीं चला, पर फुटबालर बनना उस के लिए इतना आसान भी नहीं था. स्कूल में उसे सिर्फ गेम्स पीरियड में ही खेलने का मौका मिल पाता था.

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कहकशां के हुनर और लगन को देखते हुए 7वीं जमात में उस का चयन अपने स्कूल ‘इमामबाड़ा मुसलिम गर्ल्स इंटर कालेज, गोरखपुर’ की फुटबाल टीम में हो गया था. यह उस के लिए बड़ी खुशी की बात थी, पर घर के बड़ेबुजुर्गों ने इस की पुरजोर खिलाफत की थी.

कहकशां पहले 2-3 दिनों तक तो चुप ही रही, फिर उस ने हिम्मत और अक्ल से काम लिया. वह सीधे पहुंच गई फुटबाल कोच आरडी पौल के पास. उन्हें अपना दुखड़ा सुनाया और अगले दिन उन्हें अपने घर ले कर पहुंच गई.

कोच आरडी पौल ने अम्मीअब्बू से बात की, कहकशां के हुनर और मजबूत इरादों से परिचित करा कर उन्हें राजी तो कर लिया, पर संयुक्त परिवार के दूसरे कई सदस्यों की खिलाफत फिर भी जारी रही.

अम्मीअब्बू के हां कहने के बाद तो कहकशां की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा. उस ने अपनी मेहनत दोगुनी कर दी. बेटी की उपलब्धि ने अब्बू का दिल भी जीत लिया था. बेटी के सपनों को पूरा करने में अब वे भी साथ देने लगे. गरमी के दिनों में सुबह साढ़े 4 बजे और सर्दियों में सुबह साढ़े 5 बजे उसे उठाते, अपने साथ ले जा कर ग्राउंड में छोड़ते और वहीं से मसजिद चले जाते.

सुबह के 8 बजे तक कहकशां प्रैक्टिस करती, घर आ कर अम्मी के काम में थोड़ा हाथ बंटाती और फिर तैयार हो कर स्कूल पहुंच जाती, शाम को फिर अभ्यास. यही दिनचर्या बन गईर् थी उस की.

कहकशां की मेहनत रंग लाई और अगली बार ही उस का चयन सबजूनियर नैशनल फुटबाल टीम में हो गया. अब्बू खुश थे, पर इस बार अम्मी अड़ गईं कि वे उसे बाहर नहीं जाने देंगी. बड़ी मुश्किलों के बाद किसी तरह अम्मी को राजी कर लिया गया.

अपनी तरफ से कहकशां कोशिश करती कि अच्छा खेले, पर कई बार गलतियां हो जाती थीं. कमियों को दूर करने के लिए कोच द्वारा बुरी तरह डांट भी पड़ती थी. साधन सीमित थे और मंजिल दूर, उसे महसूस हुआ कि अच्छे इंटरनैशनल खिलाडि़यों के खेल देख कर वह अपनी कमियों को दूर कर सकती है.

घर में टैलीविजन नहीं था. जिस दिन फुटबाल मैच देखना होता, वह शाम को थोड़ी दूरी पर रहने वाली अपनी बूआ के घर पहुंच जाती. वहां थोड़ा पढ़लिख कर बूआ के कामों में हाथ बंटाती और रात में मैच देखती, फिर वहीं से सुबह प्रैक्टिस करने समय पर गाउंड में पहुंच जाती.

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अब कहकशां के हुनर को रफ्तार मिल गई. उस ने सबजूनियर नैशनल, जूनियर नैशनल सभी खेला. 2008 में अंडर 14 में बिहार वुमंस चैंपियनशिप में उत्तर प्रदेश की तरफ से कहकशां ने प्रतिनिधित्व किया. उस की टीम जीती. उसे बैस्ट कैप्टन और बैस्ट प्लेयर घोषित किया गया. साल 2010 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा गोरखपुर में ‘पूर्वांचल सम्मेलन समारोह’ में सम्मानित करते हुए सर्टिफिकेट दिया गया.

एक तरफ कहकशां को फुटबालर बनने की तमन्ना थी, तो वहीं दूसरी तरफ पढ़ने का हौसला भी रखती थी. स्कूल तक की पढ़ाई तो पूरी हो गई, पर आगे की पढ़ाई जारी रखने में माली चुनौतियां सामने थीं. स्कूल के दिनों में ही बीमारी के चलते अब्बू को नौकरी छोड़नी पड़ी थी.

पर कहते हैं न कि ‘लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती’, डरना तो कहकशां जानती ही नहीं थी, बस उस का भी समाधान निकाल लिया इस हठी लड़की ने. कालेज की पढ़ाई के बाद लाइब्रेरी में जा कर पढ़ती और उस के बाद कई घरों में ट्यूशन पढ़ा कर रात 9 बजे तक घर लौटती, ताकि समय से फीस भरी जा सके.

आज कहकशां अपनी लगन और मेहनत के बल पर गे्रजुएशन के साथसाथ बैचलर औफ फिजिकल ऐजूकेशन का कोर्स पूरा कर चुकी है और संफोर्ट वर्ल्ड स्कूल, ग्रेटर नोएडा में फुटबाल कोच के रूप में काम करती है.

कहकशां के अब्बू अब इस दुनिया में नहीं हैं. उन के बाद अम्मी व 5 छोटे भाईबहनों की पढ़ाईलिखाई की जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए स्कूल खत्म होने के बाद शाम को ‘बाइचुंग भूटिया फुटबाल स्कूल, ग्रेटर नोएडा’ में 2 घंटे बच्चों को फुटबाल खेलने की ट्रेनिंग देती है.

अपनी जद्दोजेहद के बारे में पूछने पर कहकशां कहती है, ‘‘अभी लहरों के बीच नौका में पतवार चलानी शुरू की है. मंजिल तो अभी बाकी है, दूर है… पर नामुमकिन नहीं.’’

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कहकशां का फिजिकल ऐजूकेशन में मास्टर डिगरी और पीएचडी कर के अपनी अकादमी शुरू करने का इरादा है, ताकि भारतीय फुटबाल टीम के लिए और भी कहकशां पैदा की जा सकें.

तुम रोको, हम तो खेलेंगी फुटबाल

जब कभी हम किसी गलत सोच के विरोध की बात करते हैं तो हाथ में किताब या हथियार उठाने को कहते हैं, पर कुछ संथाली लड़कियों ने विरोध के अपने गुस्से की फूंक से फुटबाल में ऐसी हवा भरी है जो उन की एक लात से उस सोच को ढेर कर रही है, जो उन्हें फुटबाल खेलने से रोकती है.

मामला उस पश्चिम बंगाल का है, जहां आप को फुटबाल हर अांगन में उगी दिखाई देगी, पर जब इन बच्चियों ने इस की नई पौध लगाने की सोची तो कट्टर सोच के कुछ गांव वालों को लगा कि घुटने के ऊपर शौर्ट्स पहने हुई ये बालिकाएं उन के रिवाजों की घोर बेइज्जती कर रही हैं. इस बेइज्जती के पनपने से पहले ही उन्होंने लड़कियों में ऐसा खौफ पैदा करने की सोची कि दूसरे लोग भी सबक ले कर ऐसी ख्वाहिश मन में न पाल लें.

पर वे लड़कियां ही क्या, जो मुसीबतों से घबरा जाएं. पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के पिछड़े आदिवासी संथाल समाज की इन लड़कियों में से एक है 16 साल की हांसदा. 5 भाईबहनों में सब से छोटी इस बच्ची के पिता नहीं हैं और मां बड़ी मुश्किल से रोजाना 300 रुपए कमा पाती हैं.

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ऐसे गरीब परिवार की 10वीं जमात में पढ़ने वाली हांसदा फुटबाल खेल कर अपने समाज और देश का नाम रोशन करना चाहती है. वह पहलवान बहनों गीताबबीता की तरह साबित करना चाहती है कि संथाली लड़कियां किसी भी तरह किसी से कमजोर नहीं हैं. वह पति की गुलाम पत्नी बन कर अपनी जिंदगी नहीं बिताना चाहती है कि बच्चों की देखभाल करो और घुटो घर की चारदीवारी के भीतर.

इसी तरह किशोर मार्डी भी मानती है कि वह फुटबाल से अपनी जिंदगी बदल सकती है. वह तो डंके की चोट पर कहती है कि ऐसे किसी की नहीं सुनेगी, जो उसे फुटबाल खेलने से रोकने की कोशिश करेगा.

गांव गरिया की 17 साला लखी हेम्ब्रम ने बताया कि 2 साल पहले उस का फुटबाल को ले कर जुनून सा पैदा हो गया था. एक गैरसरकारी संगठन उधनाऊ ने उसे खेलने के लिए बढ़ावा दिया था. तब ऐसा लगा था कि फुटबाल उस के परिवार को गरीबी से ऊपर उठा सकती है. पर कुछ गांव वालों के इरादे नेक नहीं थे. जब कुछ जवान लड़कों ने इन लड़कियों को शौर्ट्स में खेलते देखा तो उन्होंने इन पर बेहूदा कमैंट किए.

हद तो तब हो गई, जब नवंबर, 2018 को गांव गरिया में फुटबाल की प्रैक्टिस कर रही इन लड़कियों पर गांव के कुछ लोगों ने धावा बोल दिया. उन्होंने फुटबाल में पंचर कर के अपनी भड़ास निकाली. लेकिन जब लड़कियां नहीं मानीं तो उन सिरफिरों ने लातघूंसों से उन्हें पीटा. साथ ही, धमकी भी दी कि अगर फुटबाल खेलना नहीं छोड़ोगी तो इस से भी ज्यादा गंभीर नतीजे होंगे.

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ये गंभीर नतीजे क्या हो सकते हैं, इस का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि लड़कियां नहीं मानीं तो उन का रेप हो सकता है, तेजाब से मुंह झुलसा दिया जा सकता है या फिर जान से ही मार दिया जा सकता है.

पर क्या इस से लड़कियों के बीच डर का माहौल बना? नहीं. वे अब जगह बदल कर फुटबाल की प्रैक्टिस करती हैं. उन के पास गांव वालों की नफरत तो खूब है, पर फुटबाल से जुड़ी बुनियादी जरूरतें नहीं हैं. वे जंगली बड़ी घास और झाडि़यों से घिरी जमीन पर फुटबाल खेलती हैं, जहां रस्सियों से बंधे बांस गोलपोस्ट के तौर पर खड़े कर दिए जाते हैं.

ऐसे उलट हालात में फुटबाल खेलती रामपुरहाट ब्लौक की गरिया और भलका पहाड़ा गांव की रहने वाली ये संथाली लड़कियां आत्मविश्वास से भरी हैं और मानो पूरे समाज से पंगा ले रही हैं कि तुम कितना भी विरोध कर लो, एक दिन हमारी लगन साबित कर देगी कि हम ने जो देखा है, उस सपने को पूरा कर के रहेंगी.

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अलविदा 2019: इस साल क्रिकेट की दुनिया में रहा इन महिला खिलाड़ियों का बोलबाला

भारतीय महिला क्रिकेट टीम के चर्तित युवा महिला क्रिकेटर जो किसी स्तर पर पुरुष क्रिकेटर से कम नहीं है, तो आइये 2019 के कुछ प्रसिद्ध क्रिकेटरों के बारे में जानते है .

* मिताली राज :- भारतीय कप्तान मिताली राज 200 वनडे इंटरनेशनल क्रिकेट मैच खेलने वाली पहली महिला क्रिकेटर बन गई, लेकिन इस धुरंधर खिलाड़ी के लिए 200 वनडे महज एक आंकड़ा है. मिताली ने जनवरी 1999 में इंग्लैंड के खिलाफ वनडे क्रिकेट में डेब्यू किया था. कप्तानी करने उतरी मिताली ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपना 20वां साल पूरा किया.

* स्मृति मंधाना :- स्मृति मंधाना को मिली आईसीसी महिला वनडे और टी20 टीम ऑफ द ईयर में बनाया है. वनडे क्रिकेट में स्मृति मंधाना का रिकॉर्ड काफी जबरदस्त है. उन्होंने 51 वनडे मुकाबलों में 43.08 की प्रभावी औसत से 2,025 रन बनाए हैं. इसमें उनके नाम चार शतक और 17 अर्धशतक उनके नाम है.

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All set for the home series against South Africa 😇 See you soon Surat!! 🤩

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*झूलन गोस्वामी :- यह वुमन टीम इंडिया की कपिल देव हैं . पिछले कई सालों से लगातार बेहतरीन गेंदबाजी करके कई रिकौर्ड अपने नाम किया है. 225 वनडे विकेट, 321 इंटरनेशनल विकेट का महान रिकौर्ड भी उन्हें नाम है. इस साल आईसीसी ने महिला वनडे और टी20 टीम ऑफ द ईयर में उन्हें भी स्थान दिया है.

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* पूनम यादव- भारतीय महिला क्रिकेट टीम की लेग स्पिनर पूनम यादव को इस वर्ष का अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया. वह इस वर्ष आईसीसी महिला वनडे और टी20 टीम ऑफ द ईयर स्थान बनाने में कमयाब हुई है.

* शिखा पांडे :- शिखा पांडे भारतीय महिला सीनियर क्रिकेटर में मशहूर नाम में एक है. . उन्होंने 9 मार्च 2014 को बांग्लादेश के खिलाफ खेलते हुए अपने अंतरराष्ट्रीय ट्वेंटी 20 की शुरुआत किया था . कई रिकॉर्ड इनके नाम है. शिखा पांडे ने इस महिला विश्व कप में अपनी गेंदबाजी से सभी का दिल जीत लिया था. इस वर्ष आईसीसी महिला वनडे और टी20 टीम औफ द ईयर की सूची में इनका भी नाम है.

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* दीप्ति शर्मा: भारतीय महिला क्रिकेट टीम की स्पिनर दीप्ति शर्मा ने इस एक अद्भुत रिकॉर्ड अपने अपने नाम किया है. चार ओवर के स्पैल में 8 रन देकर तीन विकेट चटकाए. इसके साथ ही वह एक टी-20 मैच में इतने मेडन डालने वाली पहली भारतीय हैं. इस साल आईसीसी महिला टी20 टीम की सूची में दीप्ति शर्मा इकलौती भारतीय महिला क्रिकेटर हैं.

 

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Feeling energetic after today’s training at NCA

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पहली बार पुरूष वनडे क्रिकेट में जीएस लक्ष्मी बनेंगी अंपायर, शारजाह का मैदान बनेगा गवाह

लक्ष्मी आठ दिसंबर से शुरू हो रहे तीसरे आईसीसी पुरुष क्रिकेट वर्ल्ड कप लीग दो के दौरान यूएई और अमरीका के बीच शारजाह में खेले जाने वाले वनडे मैच में बतौर मैच रेफ़री उतर कर इतिहास रचेंगी. आईसीसी पुरुष क्रिकेट वर्ल्ड कप लीग दो इस साल अगस्त में शुरू हुआ था और जनवरी 2022 तक चलेगा. इस दौरान इसमें कुल 126 मैच खेले जाएंगे.

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इसकी शीर्ष तीन टीमें आईसीसी पुरुष क्रिकेट वर्ल्ड कप क्वालिफायर 2022 में खेलेंगी. इसी के आधार पर भारत में 2023 में खेले जाने वाले वाले विश्व कप के लिए आईसीसी क्वालीफायर टीम का चयन होना है. आईसीसी इंटरनेशनल पैनल ऑफ मैच रेफरी में नियुक्ति के बाद यह लक्ष्मी की इस साल दूसरी महत्वपूर्ण उपलब्धि है. 51 वर्षीय लक्ष्मी 2008-09 के घरेलू महिला क्रिकेट में पहली बार मैच रेफरी बनी थीं.

अब तक लक्ष्मी महिलाओं के तीन अंतरराष्ट्रीय वनडे मैचों, महिलाओं के सात टी-20 इंटरनेशनल और पुरुषों के सोलह टी-20 इंटरनेशनल में बतौर मैच रेफरी उतर चुकी हैं.

एक इंटरव्यू में जीएस लक्ष्मी ने कहा कि उन्होंने कभी क्रिकेटर बनने के बारे में नहीं सोचा था. उन्होंने कहा, “अपनी पढ़ाई के जरिए मैं कॉलेज में एडमिशन पाने में असफल रही थी. तब प्रिंसिपल ने मुझसे पूछा कि क्या तुम्हारे पास कोई अन्य प्रतिभा है. मैं अपने भाइयों के साथ क्रिकेट खेल रखी थी. मेरे इस कौशल को देखा गया. मुझमें गेंदबाजी की प्रतिभा थी. इसकी बदौलत मुझे कॉलेज में एडमिशन मिल गया.” 18 सालों तक घरेलू क्रिकेट खेली लक्ष्मी ने बताया कि इसके बाद वो क्रिकेट की कोचिंग देने लगीं. फिर राज्य स्तरीय टीम की सेलेक्टर बनीं.

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इस दौरान बीसीसीआई महिलाओं को मैच अधिकारी के रूप में क्रिकेट से जोड़ने का नया प्रावधान लेकर आई. लक्ष्मी उन पांच सदस्यों में से थी जिन्हें बीसीसीआई की तरफ से चयन किया गया.

लक्ष्मी ने कहा, “बतौर मैच रेफ़री चुना जाना मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है. भारत में एक क्रिकेटर और मैच रेफ़री के रूप में मेरा लंबा करियर रहा है. उम्मीद है कि मैं एक खिलाड़ी और मैच अधिकारी के रूप में अपने अनुभव का यहां अच्छा उपयोग करूंगी.”

आंध्र प्रदेश में जन्मीं लक्ष्मी बिहार के जमशेदपुर में बड़ी हुईं. वहां उनके पिता कार्यरत थे. बतौर तेज गेंदबाज वे रेलवे के लिए खेलीं. गेंदबाज़ी में आउट स्विंग पर उनकी अच्छी पकड़ थी. 1999 में इंग्लैंड के दौरे पर भारतीय टीम की सदस्य भी रह चुकी हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए उन्हें खेलने का मौका कभी नहीं मिला.

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