1 जनवरी, 1994 को हरियाणा के हिसार जिले के एक गांव बुढ़ाना में जनमी पूजा ढांडा के पांव उन के एथलीट पिता अजमेर सिंह ने पालने में ही पहचान कर इस कहावत को गलत साबित कर दिया था कि सिर्फ पूत के पांव ही पालने में पहचाने जा सकते हैं.

बाद में इस बात को पूजा ढांडा ने भी सच साबित किया. उन्होंने पहले मिट्टी के अखाड़े में और बाद में मैट पर भी अपनी पहलवानी का ऐसा जलवा दिखाया कि दुनिया वाहवाह करने लगी. वे साल 2019 में स्पेन की राजधानी मैड्रिड में हुए कुश्ती के ग्रांप्री इंटरनैशनल टूर्नामैंट में 57 किलोग्राम भारवर्ग में सिल्वर मैडल विजेता थीं. उन्होंने साल 2018 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में सिल्वर मैडल जीता था. इतना ही नहीं, उन्होंने साल 2018 में ही बुडापेस्ट में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रौंज मैडल हासिल किया था.

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अपनी इस कामयाबी का राज खोलते हुए पूजा ढांडा बताती हैं, ‘‘मुझे लड़कों के साथ कुश्ती की प्रैक्टिस करना अच्छा लगता है, क्योंकि उन में ज्यादा ताकत, दमखम और रफ्तार होती है, जिस से मुझे अपना खेल सुधारने में मदद मिलती है.’’

परिवार ने बढ़ाया हौसला

पूजा ढांडा बताती हैं, ‘‘मुझे शुरू से ही खेलों से लगाव रहा है. बचपन में मैं अपने पिता के साथ सुबह दौड़ने जाती थी. जब मैं कुश्ती खेलने लगी तो गांव में बहुत से लोगों ने मुझे ताने मारे थे. पिता को भी लगता था कि अगर मुझे ज्यादा गंभीर चोट लग गई, तो मेरी शादी करने में दिक्कतें आ सकती हैं.

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