तुम प्रेमी क्यों नहीं : क्या खरी उतरी नीरू

शेखर के लिए मन लगा कर चाय बनाई थी, पर बाहर जाने की हड़बड़ी दिखाते हुए एकदम झपट कर उस ने प्याला उठा लिया और एक ही घूंट में पी गया. घर से बाहर जाते वक्त लड़ा भी तो नहीं जाता. वह तो दिनभर बाहर रहेगा और मैं पछताती रहूंगी. ऐसे समय में उसे घूरने के सिवा कुछ कर ही नहीं पाती.

मैं सोचती, ‘कितना अजीब है यह शेखर भी. किसी मशीन की तरह नीरस और बेजान. उस के होंठों पर कहकहे देखने के लिए तो आदमी तरस ही जाए. उस का हर काम बटन दबाने की तरह होता है.’ कई बार तो मारे गुस्से के आंखें भर आतीं. कभीकभी तो सिसक भी पड़ती, पर कहती उस से कुछ भी नहीं.

शादी को अभी 3 साल ही तो गुजरे थे. एक गुड्डी हो गई थी. सुंदर तो मैं पहले ही थी. हां, कुछ दुबली सी थी. मां बनने के बाद वह कसर भी पूरी सी हो गई. आईने में जब भी अपने को देखती हूं तो सोचती हूं कि शेखर अंदर से अवश्य मुरदा है, वरना मुझे देख कर जरा सी भी प्रशंसा न करे, असंभव है. कालिज में तो मेरे लिए नारा ही था, ‘एक अनार सौ बीमार.’

दूसरी ओर पड़ोस में ही किशोर बाबू की लड़की थी नीरू. बस, सामान्य सी कदकाठी की थी. सुंदरता के किसी भी मापदंड पर खरी नहीं उतरती थी. परंतु वह जिस से प्यार करती थी वह उस की एकएक अदा पर ऐसी तारीफों के पुल बांधता कि वह आत्मविभोर हो जाती. दिनरात नीरू के होंठों पर मुसकान थिरकती रहती. कभीकभी उस की बहनें ही उस से जल उठतीं.

नीरू मुझ से कहती, ‘‘क्या करूं, दीदी. वह मुझ से खूब प्यार भरी बातें करता है. हर समय मेरी प्रशंसा करता रहता है. मैं मुसकराऊं कैसे नहीं. कल मैं उस के लिए गाजर का हलवा बना कर ले गई तो उस ने इतनी तारीफ की कि मेरी सारी मेहनत सफल हो गई.’’

वास्तव में नीरू की बात गलत न थी. अब कोई मेहनत कर के आग की आंच में पसीनेपसीने हो कर खाना बनाए और खाने वाला ऐसे खाए जैसे कोई गुनाह कर रहा हो तब बनाने वाले पर क्या गुजरती है, यह कोई भुक्तभोगी ही जान सकता है.

जाने शेखर ही ऐसा क्यों है. कभीकभी सोचती हूं, उस की अपनी परेशानियां होंगी, जिन में वह उलझा रहता होगा. दफ्तर की ही क्या कम भागदौड़ है. बिक्री अधिकारी है. आज यहां है तो कल वहां है. आज इस समस्या से उलझ रहा है तो कल किसी दूसरी परेशानी में फंसा है. परंतु फिर यह तर्क भी बेकार लगता है. सोचती हूं, ‘एक शेखर ही तो बिक्री अधिकारी नहीं है, हजारों होंगे. क्या सभी अपनी पत्नियों से ऐसा ही व्यवहार करते होंगे?’

वैसे आर्थिक रूप से शेखर बहुत सुरक्षित है. उस का वेतन हमारी गृहस्थी के लिए बहुत अधिक ही है. वह एक भरेपूरे घर का ऐसा मालिक भी नहीं है कि रोज नईनई उलझनों से पाला पड़े. परिवार में पतिपत्नी के अलावा एक गुड्डी ही तो है. सबकुछ तो है शेखर के पास. बस, केवल नहीं हैं तो उस के होंठों में शब्द और एक प्रेमी अथवा पति का उदार मन. इस के साथ नीरू तो दो पल भी न रहे.

मुझे याद नहीं पड़ता कि कभी शेखर ने मुंह पर मेरे व्यवहार या सुंदरता की तारीफ की हो. मुझ पर कभी मुग्ध हो कर स्वयं को सराहा हो.

अब उस दिन की ही बात लो. नीरू ने गहरे पीले रंग की साड़ी पहन ली थी, जोकि उस के काले रंग पर बिलकुल ही बेमेल लग रही थी. परंतु रवि जाने किस मिट्टी का बना था कि वह नीरू की प्रशंसा में शेर पर शेर सुनाता रहा.

नीरू को तो जैसे खुशी के पंख लग गए थे. वह आते ही मेरी गोद में गिर पड़ी थी. मैं ने घबरा कर पूछा, ‘‘क्या हुआ नीरू, कोई बात हुई?’’

‘‘बात क्या होगी,’’ नीरू ने मेरी बांह में चिकोटी काट कर कहा, ‘‘आज क्या मैं सच में पीली साड़ी में कहर बरपा रही थी. कहो तो.’’

मैं क्या उत्तर देती. पीली साड़ी में वह कुछ खास अच्छी न लग रही थी, पर उसे खुश करने की गरज से कहा, ‘‘हां, सचमुच तुम आज बहुत सुंदर लग रही हो.’’

‘‘बिलकुल ठीक,’’ नीरू चहक उठी, ‘‘रवि भी ऐसा ही कहता था. बस, वह मुझे देखते ही कवि बन जाता है.’’

मुझे याद है, एक बार पायल पहनने का फैशन चल पड़ा था. ऐसे में मुझे भी शौक चढ़ा कि मैं भी पायल पहन लूं. मेरे पैर पायलों में बंध कर निहायत सुंदर हो उठे थे. जिस ने भी उन दिनों मेरे पैर देखे, बहुत तारीफ की. पर चाहे मैं पैर पटक कर चलूं या साड़ी उठा कर चलूं, पायलों का सुंदर जोड़ा चमकचमक कर भी शेखर को अपनी ओर न खींच पाया था. एक दिन तो मैं ने खीझ कर कहा, ‘‘कमाल है, पूरी कालोनी में मेरी पायलों की चर्चा हो रही है, पर तुम्हें ये अभी तक दिखाई ही नहीं दीं.’’?

‘‘ऐं,’’ शेखर ने चौंक कर कहा, ‘‘यह वही पायलों का सेट है न, जो पिछले महीने खरीदा था. बिलकुल चांदी की लग रही हैं.’’

अब कैसे कहती कि चांदी या पायलों को नहीं, शेखर साहब, मेरे पैरों के बारे में कुछ कहिए. असल बात तो पैरों की तारीफ की है, पर कह न पाई थी.

यह भी तो तभी की बात है. नीरू ने भी मेरी पसंद की पायलें खरीदी थीं. उन्हें पहन कर वह रवि के पास गई थी. बस, जरा सी ही तो उन की झंकार होती थी, मगर बड़ी दूर से ही वे रवि के कानों में बजने लगी थीं. रवि ने मुग्ध भाव से उस के पैरों की ओर देखते हुए कहा था, ‘‘तुम्हारे पैर कितने सुंदर हैं, नीरू.’’

कितनी छोटीछोटी बातों की समझ थी रवि में. सुनसुन कर अचरज होता था. अगर नीरू ने उस से शादी कर ली तो दोनों की जिंदगी कितनी प्रेममय हो जाएगी.

मैं नीरू को सलाह देती, ‘‘नीरू, रवि से शादी क्यों नहीं कर लेती?’’

पर नीरू को मेरी यह सलाह नहीं भाती. मुसकरा कर कहती, ‘‘रवि अभी प्रेमी ही बना रहना चाहता है, जब तक कि उस के मन की कविता खत्म न हो जाए.’’

‘‘कविता?’’ मैं चौंक कर रह जाती. रवि का मन कविता से भरा है, तभी उस से इतनी तारीफ हो पाती है. कितना आकुल रहता है वह नीरू के लिए. शेखर के मन में कविता ही नहीं बची है, वह तो पत्थर है, एकदम पत्थर. सामान्य दिनों को अगर मैं नजरअंदाज भी कर दूं तो भी बीमारी आदि होने पर तो उसे मेरा खयाल करना ही चाहिए. इधर बीमार पड़ी, उधर डाक्टर को फोन कर दिया. फिर दवाइयां आईं और मैं दूसरे दिन से ही फिर रसोई के कामों में जुट गई.

मुझे याद है, एक बार मैं फ्लू की चपेट में आ गई थी. शेखर ने बिना देर किए दवा मंगा दी थी, पर मैं जानबूझ कर अपने को बीमार दिखा कर बिस्तर पर ही पड़ी रही थी. शेखर ने तुरंत मायके से मेरी छोटी बहन सुलू को बुला लिया था. मैं चाहती थी कि शेखर नीरू के रवि की तरह ही मेरी तीमारदारी करे, मेरे स्वास्थ्य के बारे में बारबार पूछे, मनाए, हंसाए, मगर ऐसा कुछ न हुआ. बीमारी आई और भाग गई.

इतना ही नहीं, शेखर स्वयं बीमार पड़ता तो इस बात की मुझ से कभी अपेक्षा नहीं करता कि मैं उस की सेवाटहल में लगी रहूं. मैं जानबूझ कर उस के पास बैठ भी जाऊं तो मुझे जबरन उठा कर किसी काम में लगवा देता या अपने दफ्तरी हिसाब के जोड़तोड़ में लग जाता. ऐसी स्थिति में मैं गुस्से से उबल पड़ती. अगर कभी रवि बीमार होता तो उस की डाक्टर सिर्फ नीरू होती.

‘‘मैं रवि को पा कर कभी निराश नहीं होऊंगी, दीदी,’’ नीरू अकसर कहती, ‘‘उसे हमेशा मेरी चिंता सताती रहती है. मैं अगर चाहूं तो भी लापरवाह नहीं हो सकती. पहले ही वह टोक देगा. कभीकभी उस की याददाश्त पर मैं दंग हो जाती हूं. लगता है, जैसे वह डायरी या कैलेंडर हो.’’

याददाश्त के मामले में भी शेखर बिलकुल कोरा है. अगर कहीं जाने का कार्यक्रम बने तो वह अधिकतर भूल ही जाता है. सोचती हूं कि किसी दिन वह कहीं मुझे ही न भूल जाए.

एक दिन मैं ने शादी वाली साड़ी पहनी थी. शेखर ने देखा और एक हलकी सी मिठास से वह घुल भी गया, पर वह बात नहीं आई जो नीरू के रवि में पैदा होती. मुझे इतना गुस्सा आया कि मुंह फुला कर बैठ गई. घंटों उस से कुछ न बोली. शेखर को किसी भी चीज की जरूरत पड़ी तो गुड्डी के हाथों भिजवा दी. शेखर ने रूठ कर कहा, ‘‘अगर गुड्डी न होती तो आप हमें ये चीजें किस तरह से देतीं?’’

‘‘डाक से भेज देती,’’ मैं ने ताव खा कर कहा. शेखर हंसने लगा, ‘‘इतनी सी बात पर इतना गुस्सा. हमें पता होता कि बीवियों की हर बात की प्रशंसा करनी पड़ती है तो शादी से पहले हम कुछ ऐसीवैसी किताबें जरूर पढ़ लेते.’’

मैं ने भन्ना कर शेखर को देखा और बिलकुल रोनेरोने को हो आई, ‘‘प्रेमी होना हर किसी के बस की बात नहीं होती. तुम कभी प्रेमी न बन पाओगे. रवि को तो तुम ने देखा होगा?’’

‘‘कौन रवि?’’ शेखर चौंका, ‘‘कहीं वह नीरू का प्रेमी तो नहीं?’’

‘‘जी हां, वही,’’ मैं ने नमकमिर्च लगाते हुए कहा, ‘‘नीरू की एकएक बात की तारीफ हजार शब्दों में करता है. तुम्हारी तरह हर समय चुप्पी साधे नहीं रहता. बातचीत में भी इतनी कंजूसी अच्छी नहीं होती.’’

‘‘अरे, तो मैं क्या करूं. बिना प्रेम का पाठ पढ़े ही ब्याह के खूंटे से बांध दिए गए. वैसे एक बात है, प्रेमी बनना बड़ा आसान काम है समझीं, मगर पति बनना बहुत मुश्किल है.

‘‘जाने कितनी योग्यताएं चाहिए पति बनने के लिए. पहले तो उत्तम वेतन वाली नौकरी जिस से लड़की का गुजारा भलीभांति हो सके. सिर पर अपनी छत है या नहीं, घर कैसा है, उस के घर के लोग कैसे हैं, घर में कितने लोग हैं. लड़के में कोई बुराई तो नहीं, उस के अच्छे चालचलन के लिए पासपड़ोसियों का प्रमाणपत्र आदि चाहिए और जब पूरी तरह पति बन जाओ तो अपनी सुंदर पत्नी की बुराइयों को दूर करने का प्रयत्न करो. अपनेआप को ही लो. तुम्हें सोना, सजनासंवरना, गपें मारना, फिल्में देखना आदि यही सब तो आता था. नकचढ़ी भी कितनी थीं तुम. हमारे घर की सीमित सुविधाओं में तुम्हारा दम घुटता था.’’

अब शेखर बिलकुल गंभीर हो गया था, ‘‘तुम जानती ही हो कैसे मैं ने धीरेधीरे तुम्हें बिलकुल बदल दिया. व्यर्थ गपें मारना, फिल्में देखना सब तुम ने बंद कर दिया. फिर तुम ने मुझे भी तो बदला है,’’ शेखर ने रुक कर पूछा, ‘‘अब कहो, तुम्हें शेखर की भूमिका पसंद है या रवि की?’’

‘‘रवि की,’’ मैं दृढ़ता से बोली, ‘‘प्रेम ही जिंदगी है, यह तुम क्यों भूल जाते हो?’’

‘‘क्यों, मैं क्या तुम से प्रेम नहीं करता. हर तरह से तुम्हारा खयाल रखता हूं. जो बना कर देती हो, खा लेता हूं. दफ्तर से छुट्टी मिलते ही फालतू गपशप में उलझने के बजाय सीधा घर आता हूं. तुम्हें जरा सी छींक भी आए तो फौरन डाक्टर हाजिर कर देता हूं. क्या यह प्रेम नहीं है?’’

‘‘यह प्रेम है या कद्दू की सब्जी?’’ मैं बिलकुल झल्ला गई, ‘‘तुम्हें प्रेम करना रवि से सीखना पड़ेगा. दिनरात नीरू से जाने क्याक्या बातें करता रहता है. उस की तो बातें ही खत्म नहीं होतीं. नीरू कुछ भी ओढ़ेपहने, खाएपकाए रवि उस की प्रशंसा करते नहीं थकता. नीरू तो उसे पा कर किसी और चीज की तमन्ना ही नहीं रखती.’’

‘‘अच्छा तो यह बात है. तब तुम ने नीरू से कभी यह क्यों नहीं कहा कि वह रवि से शादी कर ले.’’

‘‘कहा तो है…’’

‘‘फिर वह विवाह उस से क्यों नहीं करता?’’

‘‘रवि का कहना है कि जब तक उस के अंदर की कविता शेष न हो जाए तब तक वह विवाह नहीं करना चाहता. विवाह से प्रेम खत्म हो जाता है.’’

‘‘सब बकवास है,’’ शेखर उत्तेजित हो कर बोला, ‘‘आदमी की कविता भी कभी मरती है? जिस व्यक्ति ने सभ्यता को विनाशकारी अणुबम दिया, उस के अंदर की भी कविता खत्म नहीं हुई थी. ऐसा होता तो वह कभी अपने अपराधबोध के कारण आत्महत्या नहीं करता, समझीं. असल में रवि कभी भी नीरू से शादी नहीं करेगा. यह सब उस का एक खेल है, धोखा है.’’

‘‘क्यों?’’ मैं ने घबरा कर पूछा.

‘‘असल में बात तो प्रेमी और पति बनने के अंतर की है, यह रवि का चौथा प्रेम है. इस से पहले भी उस ने 3 लड़कियों से प्रेम किया था.

‘‘जब पति बनने का अवसर आया, वह भाग निकला. प्रेमी बनना बड़ा आसान है. कुछ हुस्नइश्क के शेर रट लो. कुछ विशेष आदतें पाल लो…और सब से बड़ी बात अपने सामने बैठी महिला की जी भर कर तारीफ करो. बस, आप सफल प्रेमी बन गए.

‘‘जब भी शादी की बात आएगी, देखना कैसे दुम दबा कर भाग निकलेगा.

‘‘तुम देखती चलो, आगेआगे होता है क्या? अब भी तुम्हें शिकायत है कि मैं रवि जैसा प्रेमी क्यों नहीं हूं? और अगर है तो ठीक है, कल से मैं भी कवितागजल की पुस्तकें ला कर तैयारी करूंगा. कल से मेरी नौकरी बंद. गुड्डी की देखभाल बंद, तुम्हारे शिकवेशिकायतें सुनना बंद, बाजारघर का काम बंद. बस, दिनरात तुम्हारे हुस्न की तारीफ करता रहूंगा.’’

शेखर के भोलेपन पर मेरी हंसी छूट गई. अब मैं कहती भी क्या क्योंकि यथार्थ की जमीन पर आ कर मेरे पैर जो टिक गए थे.

टाइट अंडरवियर कर सकती है स्पर्म काउंट कम, जानें 4 तरीकों से कैसे

ऐसा देखा जाता है की फैशन को फौलो करने के चक्कर में कपड़ो के साथ साथ अंडरगारमेंट्स भी अब पीछे नही है. मार्केट मे अलग अलग प्रकार के अंडरवियर आपको देखने को मिलेंगे. इन अंडरवियर को पहनने में जरुर अच्छा अनुभव होगा पर, क्या आप जानते है अंडरवियर का गलत चुनाव आपको पिता बनने से रोक सकता है. हाल ही में औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च से पता चलता है की कि टाइट अंडरवियर पहनने से पुरुषों में स्पर्म काउंट कम सकती है. जिसके कारण लड़के भविष्य में पिता बन नही पाते.

1. तेजी से बड़ रही है स्पर्म काउंट और क्वालिटी की समस्या

दुनियाभर के युवाओं में इन दिनों स्पर्म काउंट और क्वालिटी दोनों घटे हैं. इसका एक बड़ा कारण पुरुषों का अंडरवियर हो सकता है. पुरुषों के लिए बाजार में 2 तरह के अंडरवियर उपलब्ध हैं- ब्रीफ और बौक्सर. हम काफी इन अंतर पर ज्यादा ध्यान नही देते और फैशन के चक्कर में टाइट अंडरवियर पहनना पसंद करते है. जिससे हमें लगता है की इससे अच्छा शेप नजर आएंगा.

2. ढीले अंडरवियर क्यों है सही

आपको जानकर हैरानी होगी पर जो लोग ढीले-ढाले अंडरवियर पहनते हैं, उनके स्पर्म की क्वालिटी उन पुरुषों से बेहतर होती है, जो टाइट अंडरवियर पहनते हैं. ये रिसर्च औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रकाशित Human Reproduction नामक जर्नल में छापी गई है. पिछले काफी समय से इस बारे में रिसर्च की जा रही थी कि पुरुषों के अंडरवियर का उनकी सेहत पर क्या प्रभाव पड़ता है. खराब स्पर्म क्वालिटी या कम काउंट के कारण पुरुषों के पिता बनने की क्षमता प्रभावित होती है. पुरुषार्थ से जुड़ी ऐसी कई समस्या है जो अंडरगारमेंट्स के कारण देखी जाती है.

3. कैसी अंडरवियर है सही?

पुरुषों के लिए बौक्सर अंडरवियर की शुरुआत 19’s में हुई थी. ये अंडरवियर जांघों के पास से ढीले होते हैं. इसके लगभग एक दशक बाद ब्रीफ अंडरवियर की शुरुआत हुई. ब्रीफ की खास बात ये थी कि ये बिकनी की तरह त्वचा से चिपकी रहती थीं. ब्रीफ का आकार छोटा होने, फिटिंग अच्छी होने के कारण कुछ लोगों को आज भी ये बौक्सर के मुकाबले ज्यादा स्टाइलिश लगता है.

4. कैसे होता है स्पर्म काउंट प्रभावित

स्पर्म का निर्माण टेस्टिस में होता है. ये बेहद संवेदनशील अंग है, जो तापमान से प्रभावित होता है. यह तो आप भी जानते हैं कि हमारे शरीर का अंदरूनी तापमान ज्यादा होता है. अंडकोषों को हेल्दी स्पर्म बनाने के लिए आपके शरीर के वास्तविक तापमान से 2-4 डिग्री सेल्सियस कम का तापमान होना जरूरी है. शायद यही कारण है कि प्रकृति ने पुरुषों के इस अंग को शरीर के बाहर एक अलग जगह दी है, ताकि इस अंग को पर्याप्त ठंडक मिल सके. ये व्यवस्था सिर्फ इंसानों ही नहीं, बल्कि ढेर सारे स्तनधारी जीवों में प्रकृति ने स्वयं की है. जब कोई व्यक्ति टाइट अंडरवियर पहनता है, तो शरीर से निकलने वाली गर्मी के कारण अंडकोष भी गर्म हो जाते हैं और स्पर्म के सेहतमंद प्रोडक्शन में बाधा पहुंचती है. वहीं जब कोई व्यक्ति ढीले-ढाले अंडरगारमेंट्स पहनता है, तो शरीर की गर्मी बाहर निकलती रहती है और ताजी हवा का प्रवेश भी त्वचा तक आसानी से हो जाता है. इसलिए जब आप अब मार्केट अंडरवियर खरीदने जाएंगे तो इस बात पर जरुर ध्यान दे की आप ऐसी अंडरवियर खरीदे को इतनी ढिली हो की उससे हवा पास होती रहे.

हसबैंड के लिए तैयार करें 5 तरीके का लंच बौक्स

कामकाजी लाइफ में लंच बौक्स हमारे लिए बहुत अहम है. लंच बौक्स को आमतौर पर हम डिब्बा, टिफिन बौक्स कहते है. जिसे काम पर या स्कूल में ले जाया जाता है और इसका सबसे बड़ा चैलेंज घर की महिलाओं के लिए या वाइफ के लिए होता है क्योकि उनके लिए ये जरूरी है कि वे अपने हसबैंड को लंच में ऐसा क्या तैयार करके दें, जिससे पति का खाने में भी मन लगे और काम में भी. तो आज हम कुछ ऐसे लंच बौक्स में तेयार करने के लिए खाना बताएंगे. जिन्हे आप सिर्फ लंक बौक्स में अपने पति को बनाकर दें.

 

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राजमा चावल

राजमा चावल आपके डाइट में शामिल करने के लिए सबसे सही है, खासकर शाकाहारियों के लिए. ये लंच में हेसबैंड को तैयार करके देने का सही विकल्प खाना है. जिसे पेट भर कर खाया जा सकता है साथ ही बताया जाता है कि राजमा चावल वेट लौस करने में मददगार साबित होता है.

पालक बिरयानी

झटपट तैयार होने वाली पालक बिरयानी  हेल्थ में फायदेमंद है साथ ही टेस्ट भी इसका लाजवाब होता है. यकीन मानिए आपके हसबैंड डब्बा पूरा साफाचट कर के ही आएंगे.

शाही पनीर विद नान

दिल्ली की बटर नान और शाही पनीर खाने में बहुत टेस्टी लगता हैं नान को मैदा से बनाया जाता है और पनीर और नान घर में भी सबको बहुत पसन्द आते हैं बच्चो को तो बहुत ही पसंद आते हैं रोटी खाने का मन ना हो तो पनीर के साथ नान बच्चेबहुत खुश हो कर खाते हैं.

पराठा दही

गर्मियों के सीजन में दही पराठा  का स्वाद अलग ही मज़ा देता है. आपने पराठे की तो कई वैराइटीज़ ट्राई की होंगी लेकिन क्या कभी दही पराठा का मजा लिया है.

मिक्ड वेज और चपाती

मिक्स वेज सबकी पसंदीदा डिश है यह सब्जी ज्यादातर लोग चपाती के साथ ही खाना पसंद करते है. शादी पार्टियों की तो मिक्स वेज एक फेवरेट फूड डिश है.तो इसे अगर आप हसबैंड को लंच में देंगी तो काने वाला अंगूली चाटता रह जाएगा.

जरूर देखें ये 5 भोजपुरी फिल्में, एंटरटेनमेंट का है तड़का

फिल्मी दुनिया में भोजपुरी बौलीवुड के मुकाबले कम हो, लेकिन इनकी फिल्में और गानों के लोग आज भी शौकीन है. भोजपुरी इंडस्ट्री के फैंस कम नहीं हैं. भोजपुरी फिल्मों और गानों को लेकर भी क्रेज बढ़ता जा रहा है. खास बात ये है कि किसी भी शादी फंक्शन में ऐसा नहीं होता है जहां भोजपुरी गानें न बजते हो या फिल्मों के जिक्र न होता हो. लेकिन भोजपुरी सिनेमा कहीं न कहीं दर्शकों के बीच अश्लीलता फैलाता है इस तरह के आरोप भी लगते रहते है. हालांकि भोजपुरी की कई ऐसी फिल्में भी है जिन्होंने पारिवारिक और मनोंजन फैलाने का काम किया है. जिन्हे भोजपुरी की आइकोनिक फिल्में कहा जाता है.

 

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आइए आपको बताते हैं भोजपुरी की 5 ऐसी फिल्में जिनमें एक्शन इमोशन और ड्रामा देखने लायक है. यह सभी पारिवारिक फिल्में हैं जिन्हें आप घर में अपनी फैमिली के साथ बैठकर देख सकते हैं.

ससुरा बड़ा पैसा वाला

अब बीजेपी के सांसद और राजनीति में नामी चेहरा बन चुके मनोज तिवारी की फिल्म ससुरा बड़ा पईसावाला भोजपुरी की बेस्ट फिल्म मानी जाती है. मनोज तिवारी के साथ अभिनेत्री रानी चटर्जी थीं. ये फिल्म ब्लौकबस्टर साबित हुई थी. फिल्म ने 35 करोड़ रुपये की कमाई की थी. यह एक पारिवारिक फिल्म है. 2004 में रिलीज हुई इस फिल्म को अगर आपने अब तक नहीं देखा तो जरूर देखिए.

नदिया के पार

फिल्म नदिया के पार भोजपुरी की बेहतरीन फिल्मों में से एक है. ये फिल्म पूरी तरह पारिवारिक फिल्म थी, जिसे आज भी बड़े चाव से देखा जाता है. जब ये फिल्म रिलीज हुई थी तब टिकट खिड़की पर घंटों खड़े होकर लोग इस फिल्म के टिकट के लिए मशक्कत करते थे. यह फिल्म न केवल उत्तर प्रदेश और बिहार में, बल्कि पूरे देश में ब्लौकबस्टर साबित हुई.

धरती कहे पुकार के

साल 2006 में आई फिल्म धरती कहे पुकार के आज भी भोजपुरी की पसंदीदा फिल्मों में से एक मानी जाती है. इस फिल्म में मनोज तिवारी के अलावा बौलीवुड के एक्शन हीरो अजय देवगन भी है. फिल्म को असलम शेख ने डायरेक्ट किया था. ये फिल्म बेहद ही इमोश्नल फिल्म है.

गंगा देवी

बड़े सितारों से सजी फिल्म ‘गंगा देवी’ साल 2006 में रिलीज हुई थी. फिल्म में अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी, नगमा, निरहुआ, गुलशन ग्रोवर जैसे बड़े कलाकार शामिल थे और फिल्म ने करीब 35 करोड़ का बिजनेस किया था.

निरहुआ हिंदुस्तानी

‘निरहुआ हिंदुस्तानी’ दिनेश लाल यादव की 50वीं फिल्म थी. सतीश चंद्र जैन निर्देशित इस फिल्म में वे पहली बार आम्रपाली दुबे के साथ नजर आए थे. साल 2014 में आई इस फिल्म ने 14 करोड़ रुपये का ​व्यवसाय किया था.

Ex लवर्स के साथ इन क्रिकेटर्स की मसालेदार लव स्टोरी, दीपिका को दिल दे बैठे थे धोनी और युवराज

क्रिकेटर्स अपने खेलों को लेकर हमेशा ही लाइमलाइट में रहते हैं लेकिन उसे कहीं ज्यादा उनके लव अफेयर्स के चर्चे लोगों के लिए मसाला बन जाते हैं. उनके फैंस ये जानने के लिए हमेशा बेताब रहते हैं कि उनके फेवरेट क्रिकेटर्स किसको डेट कर रहे हैं.

 

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जानेमाने क्रिकेटर्स की लव लाइफ के किस्से तो खूब हुए हैं. इनमें ज्यादातर बौलीवुड हसीनाओं के साथ अपने रिलेशनशिप में रहे हैं. हालांकि अब वही क्रिकेटर्स किसी न किसी ओर के साथ शादी के बंधन में बंध चुके हैं. इस लिस्ट में युवराज सिंह से लेकर विराट कोहली की लव लाइफ की स्टोरी धमाकेदार रही है, तो किसी की रोमांटिक तो किसी की दर्दभरी दास्तां.

विराट कोहली और इजाबेल लीट

विराट कोहली भले ही अब अनुष्का शर्मा के साथ विवाह कर चुके हैं जो बौलीवुड अभिनेत्री हैं, लेकिन उनसे पहले विराट कोहली का नाम कई लड़कियों से जुड़ा जिनमें से एक ब्राजील की मौडल और बौलीवुड अभिनेत्री इज़ाबेल लीट भी रही हैं. हालांकि विराट कोहली के अफेयर्स के चर्चे कई और महिलाओं के साथ भी रहे, लेकिन एक्स की लिस्ट में सबसे पहला नाम इजाबेल लीट का ही आता है.

रोहित शर्मा और सोफिया हयात

इंडियन कप्तान और भारत के तेज बल्लेबाज रोहित शर्मा की भी एक्स लव लाइफ रही है. उनका एक समय में बौलीवुड मौडल और एक्ट्रेस सोफिया हयात के साथ लव रिलेशन था. लेकिन कभी उन्होंने खुलकर इस रिश्ते पर बात नहीं की. ये रिश्ता ज्यादा दिन नहीं चला. मीडिया की खबरों के मुताबिक ये भी बताया जाता है कि सोफिया ने रोहित के स्टारडम का खूब फायदा उठाया.

युवराज सिंह ने एक नहीं दो को किया डेट

युवराज सिंह का नाम पहले किम शर्मा के साथ जुड़ा था. युवराज सिंह और किम शर्मा का रिलेशनशिप काफी आरसे तक चला. ये स्टार क्रिकेटर किम से शादी भी करने वाला था की अचानक दोनों एक दूसरे से अलग हो गए. इसके अलावा युवराज सिंह का अफेयर बौलीवुड एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण के साथ भी रहा. एक जमाना था जब दीपिका पादुकोण और युवराज की नजदीकियों को लेकर खूब गौसिप्स हुआ करते थे. कहते थे कि दोनों का बहुत ही सीरियस रिलेशनशिप में थे, लेकिन कुछ अनबन के चलते दोनों ने ब्रेकअप कर लिया.

सुरैश रैना और श्रुति हसन

बताया जाता है कि अपनी शादी से दो दिन पहले तक भी सुरेश रैना बौलीवुड और साउथ इंडियन एक्ट्रेस श्रुति हसन को डेट कर रहे थे पर ये रिश्ता टूट गया. दोनों एक दूजे के नहीं हो सके. अभिनेत्री सुरेश रैना से चेन्नई सुपर किंग्स (सीएसके) की आईपीएल पार्टी में मिली थी. तभी दोनों एक दूसरे के करीब आ गए थे.

एम एस धोनी और दीपिका का अफेयर

भारत के सक्सेसफुल कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी बौलीवुड हीरोईन दीपिका पादुकोण के साथ डेट को लेकर चर्चा में रहे. आपको बता दें कि जब दीपिका बौलीवुड में अपना करियर लौन्च करने वाली थीं, तभी से धोनी का क्रश थी. पर ये रिश्ता भी ज्यादा दिन नहीं चल पाया. मीडिया खबरों की माने तो दीपिका और धोनी, दोनों सगाई भी करने वाले थे लेकिन इसके बाद दीपिका की लाइफ में युवराज सिंह की एंट्री हो गई. जिसके बाद धोनी खुद ही पीछे हट गए. कहा जाता है कि युवराज के साथ अपनी दोस्ती बचाने के लिए धोनी ने ऐसा फैसला लिया था.

श्रीसंत और रिया सेन

भारत के पूर्व तेज गेंदबाज श्रीसंत भी लव अफेयर को लेकर खूब सुर्खियों में रहे थे. वही, बौलीवुड पर दिल दे बैठे थे. खुद को बौलीवुड की खूबसूरती से दूर नहीं रख पाएं और ये भी बौलीवुड एक्ट्रेस रिया सेन के साथ लम्बे रिलेशनशिप में रहे है. लेकिन इसके बाद दोनों अलग हो गए.

झांसी की रानी : जब मां ने दिखाई अपनी ताकत

‘‘पापा, आप हमेशा झांसी की रानी की तसवीर के साथ दादी का फोटो क्यों रखते हैं?’’ नवेली ने अपने पापा सुप्रतीक से पूछा था.

‘‘तुम्हारी दादी ने भी झांसी की रानी की तरह अपने हकों के लिए तलवार उठाई थी, इसलिए…’’ सुप्रतीक ने कहा.

सुप्रतीक का ध्यान मां के फोटो पर ही रहा. चौड़ा सूना माथा, होंठों पर मुसकराहट और भरी हुई पनियल आंखें. मां की आंखों को उस ने हमेशा ऐसे ही डबडबाई हुई ही देखा था. ताउम्र, जो होंठों की मुसकान से हमेशा बेमेल लगती थी.

एक बार सुप्रतीक ने देखा था मां की चमकती हुई काजल भरी आंखों को, तब वह 10 साल का रहा होगा. उस दिन वह जब स्कूल से लौटा, तो देखा कि मां अपनी नर्स वाली ड्र्रैस की जगह चमकती हुई लाल साड़ी पहने हुए थीं और उन के माथे पर थी लाल गोल बिंदी. मां को निहारने में उस ने ध्यान ही नहीं दिया कि कोईआया हुआ है.

‘सुप्रतीक देखो ये तुम्हारे पापा,’ मां ने कहा था.

‘पापा, मेरे पापा,’ कह कर सुप्रतीक ने उन की ओर देखा था. इतने स्मार्ट, सूटबूट पहने हुए उस के पापा. एक पल को उसे अपने सारे दोस्तों के पापा याद आ गए, जिन्हें देख वह कितना तरसा करता था.

‘मेरे पापा तो उन सब से कहीं ज्यादा स्मार्ट दिख रहे हैं…’ कुछ और सोच पाता कि पापा ने उसे बांहों में भींच लिया.

‘ओह, पापा की खुशबू ऐसी होती है…’

सुप्रतीक ने दीवार पर टंगे मांपापा के फोटो की तरफ देखा, जैसे बिना बिंदी मां का चेहरा कुछ और ही दिखता है, वैसे ही शायद मूंछें उगा कर पापा का चेहरा भी बदल गया है. मां जहां फोटो की तुलना में दुबली लगती थीं, वहीं पापा सेहतमंद दिख रहे थे.

सुप्रतीक देख रहा था मां की चंचलता, चपलता और वह खिलखिलाहट. हमेशा शांत सी रहने वाली मां का यह रूप देख कर वह खुश हो गया था.

कुछ पल को पापा की मौजूदगी भूल कर वह मां को देखने लगा. मां खाना लगाने लगीं. उन्होंने दरी बिछा कर 3 प्लेटें लगाईं.

‘सुधा, बेटे का क्या नाम रखा है?’ पापा ने पूछा था.

‘सुप्रतीक,’ मां ने मुसकराते हुए कहा.

‘यानी अपने नाम ‘सु’ से मिला कर रखा है. मेरे नाम से कुछ नहीं जोड़ा?’ पापा हंसते हुए कह रहे थे.

‘हुं, सुधा और घनश्याम को मिला कर भला क्या नाम बनता?’ सुप्रतीक सोचने लगा.

‘आप यहां होते, तो हम मिल कर नाम सोचते घनश्याम,’ मां ने खाना लगाते हुए कहा था.

‘घनश्याम हा…हा…हा… कितने दिनों के बाद यह नाम सुना. वहां सब मुझे सैम के नाम से जानते हैं. अरे, तुम ने अरवी के पत्ते की सब्जी बनाई है. सालों हो गए हैं बिना खाए,’ पापा ने कहा था.

सुप्रतीक ने देखा कि मां के होंठ ‘सैमसैम’ बुदबुदा रहे थे, मानो वे इस नाम की रिहर्सल कर रही हों.

सुप्रतीक ने अब तक पापा को फोटो में ही देखा था. मां दिखाती थीं. 2-4 पुराने फोटो. वे बतातीं कि उस के पापा विदेश में रहते हैं. लेकिन कभी पापा की चिट्ठी नहीं आई और न ही वे खुद. फोन तो तब होते ही नहीं थे. मां को उस ने हमेशा बहुत मेहनत करते देखा था. एक अस्पताल में वे नर्स थीं, घरबाहर के सभी काम वे ही करती थीं.

जिस दिन मां की रात की ड्यूटी नहीं होती थी, वह देखता कि मां देर रात तक खिड़की के पास खड़ी आसमान को देखती रहती थीं. सुप्रतीक को लगता कि मां शायद रोती भी रहती थीं.

उस दिन खना खाने के बाद देर तक वे तीनों बातें करते रहे थे. सुप्रतीक ने उस पल में मानो जमाने की खुशियां हासिल कर ली थीं. सुबह उठा, तो देखा कि पापा नहीं थे.

‘मां, पापा किधर हैं?’ सुप्रतीक ने हैरानी से पूछा था.

‘तुम्हारे पापा रात में ही होटल चले गए, जहां वे ठहरे हैं.’

मां का चेहरा उतरा हुआ लग रहा था. माथे की लकीरें गहरी दिख रही थीं. आंखों में काजल की जगह फिर पानी था. थोड़ी देर में फिर पापा आ गए, वैसे ही खुशबू से सराबोर और फ्रैश. आते ही उन्होंने सुप्रतीक को सीने से लगा लिया. आज उस ने भी कस कर भींच लिया था उन्हें, कहीं फिर न चले जाएं.

‘पापा, अब आप भी हमारे साथ रहिएगा,’ सुप्रतीक ने कहा था.

‘मैं तुम्हें अपने साथ अमेरिका ले जाऊंगा. हवाईजहाज से. वहीं अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा. बड़ा आदमी बनाऊंगा…’ पापा बोल रहे थे.

सुप्रतीक उस सुख के बारे में सोचसोच कर खुश हुआ जा रहा था.

‘पर, तुम्हारी मम्मी नहीं जा पाएंगी, वे यहीं रहेंगी. तुम्हारी एक मां वहां पहले से हैं, नैंसी… वे होटल में तुम्हारा इंतजार कर रही हैं,’ पापा को ऐसा बोलते सुन सुप्रतीक जल्दी से हट कर सुधा से सट कर खड़ा हो गया था.

‘मैं कल से ही तुम्हारे आने की वजह समझने की कोशिश कर रही थी. एक पल को मैं सच भी समझने लगी थी कि तुम सुबह के भूले शाम को घर लौटे हो. जब तुम्हारी पत्नी है, तो बच्चे भी होंगे. फिर क्यों मेरे बच्चे को ले जाने की बात कर रहे हो?’ सुधा अब चिल्लाने लगी थी, ‘एक दिन अचानक तुम मुझे छोड़ कर चले गए थे, तब मैं पेट से थी. तुम्हें मालूम था न?

‘एक सुबह अचानक तुम ने मुझ से कहा था कि तुम शाम को अमेरिका जा रहे हो, तुम्हें पढ़ाई करनी है. शादी हुए बमुश्किल कुछ महीने हुए थे. तुम्हारी दहेज की मांग जुटाने में मेरे पिताजी रास्ते पर आ गए थे. लेकिन अमेरिका जाने के बाद तुम ने कभी मुझे चिट्ठी नहीं लिखी.

‘मैं कितना भटकी, कहांकहां नहीं गई कि तुम्हारे बारे में जान सकूं. तुम्हारे परिवार वालों ने मुझे ही गुनाहगार ठहराया. अब क्यों लौटे हो?’ मां अब हांफ रही थीं.

सुप्रतीक ने देखा कि पापा घुटनों के बल बैठ कर सिर झुकाए बोलने लगे थे, ‘सुधा, मैं तुम्हारा गुनाहगार हो सकता हूं. सच बात यह है कि मुझे अमेरिका जाने के लिए बहुत सारे रुपयों की जरूरत थी और इसी की खातिर मैं ने शादी की. तुम मुझे जरा भी पसंद नहीं थीं. उस शादी को मैं ने कभी दिल से स्वीकार ही नहीं किया.

‘बाद में मैं ने नैंसी से शादी की और अब तो मैं वहीं का नागरिक हो गया हूं. लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद हम मांबाप नहीं बन सके. यह तो मेरा ही खून है. मुझे मेरा बेटा दे दो सुधा…’

अचानक काफी बेचैन लगने लगे थे पापा.

‘देख रहा हूं कि तुम इसे क्या सुख दे रही हो… सीधेसीधे मेरा बेटा मेरे हवाले करो, वरना मुझे उंगली टेढ़ी करनी भी आती है.’

सुप्रतीक देख रहा था उन के बदलते तेवर और गुस्से को. वह सुधा से और चिपट गया. तभी उस के पापा पूरी ताकत से उसे सुधा से अलग कर खींचने लगे. उस की पकड़ ढीली पड़ गई और उस के पापा उसे खींच कर घर से बाहर ले जाने लगे कि अचानक मां रसोई वाली बड़ी सी छुरी हाथ में लिए दौड़ती हुई आईं और पागलों की तरह पापा पर वार करने लगीं.

पापा के हाथ से खून की धार निकलने लगी, पर उन्होंने अभी भी सुप्रतीक का हाथ नहीं छोड़ा था.

चीखपुकार सुन कर अड़ोसपड़ोस से लोग जुटने लगे थे. किसी ने इस आदमी को देखा नहीं था. लोग गोलबंद होने लगे, पापा की पकड़ जैसे ही ढीली हुई, सुप्रतीक दौड़ कर सुधा से लिपट गया.

लाल साड़ी में मां वाकई झांसी की रानी ही लग रही थीं. लाललाल आंखें, गुस्से से फुफकारती सी, बिखरे बाल और मुट्ठी में चाकू. सुप्रतीक ने देखा कि सड़क के उस पार रुकी टैक्सी में एक गोरी सी औरत उस के पापा को सहारा देते हुए बिठा रही थी.

‘‘नवेली, तुम्हारी दादी बहुत बहादुर और हिम्मत वाली थीं,’’ सुप्रतीक ने अपनी बेटी से कहा. सुप्रतीक की निगाहें फिर से मां के फोटो पर टिक गई थीं.

उड़ान : कांता के सपने

‘‘मैं  ने कह दिया न कि मैं तुम्हारे उस गिरिराज से शादी नहीं करूंगी. सब कहते हैं कि वह दिखने में मुझ से छोटा लगता है. फिर वह करता भी क्या है… लोगों की गाडि़यों की साफसफाई ही न?’’ कांता ने दोटूक शब्दों में कह दिया.

‘‘उस से नहीं करेगी, तो क्या किसी नवाब से शादी करेगी? अरी, तू बिरादरी में हमारी नाक कटाने पर क्यों तुली है. तू सोचती है कि तेरे कहने से हम तय की हुई शादी तोड़ देंगे? इस भुलावे में मत रहना.

‘‘मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि मैं शादियांसगाइयां वगैरह जोड़तीतोड़ती रहूं. अभी तो मेरे पास शादी के लिए दोदो लड़कियां और बैठी हैं,’’ पत्नी देवकी को बोलते देख कर पति मुरारी भी पास आ गया था.

कांता के छोटे भाईबहन, जो बाप की रेहड़ी के पास खड़े हो कर सुबहसुबह कुछ पैसा कमाने के जुगाड़ में प्रैस कर रहे थे, भी वहां आ गए थे.

मुरारी ने बेटी कांता को सुनाते हुए अपनी पत्नी देवकी से कहा, ‘‘कह दे अपनी छोरी से, इतना हल्ला न मचाए. ब्यूटीपार्लर में काम क्या करने लगी है, अपनेआप को हेमामालिनी समझने लगी है. ज्यादा बोलेगी, तो घर से बाहर कर दूंगा. ज्यादा चबरचबर करना मुझे अच्छा नहीं लगता है.’’

मां के सामने तो कांता शायद थोड़ी देर बाद चुप भी हो जाती, पर उन दोनों की तकरार में बाप के आते ही वह गुस्से में आ गई और बोली, ‘‘अच्छा बापू, यह तुम कह रहे हो. शाम को शराब पी कर जो तमाशा तुम करते हो, वह याद नहीं है तुम्हें?

‘‘अभी कल शाम को ही तो तुम ने मुझ से शराब के लिए 20 रुपए लिए थे. तुम्हें तो अपनी शराब से ही फुरसत नहीं है. मैं अपना कमाती हूं. मुझे तो यहां पर रहते हुए भी शर्म आती है. कुछ ज्यादा पैसा मिलने लगे, तो मैं खुद ही यहां से कहीं दूर चली जाऊंगी.’’

जब से कांता ब्यूटीपार्लर में नौकरी करने जाने लगी थी, तब से उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

वैसे, गलीगली में खुल गए ब्यूटीपार्लर इन्हीं झुग्गीझोंपडि़यों की लड़कियों के बल पर ही चल रहे हैं. इन से जितना मरजी काम ले लो. ये खुश भी रहती हैं और ग्राहक की जीहुजूरी भी खूब कर लेती हैं.

कांता ब्यूटीपार्लर में पिछले 6 महीने से काम कर रही है. शुरूशुरू में वहां की मालकिन अलका मैडम ने उस से बस मसाज वगैरह का काम ही कराया था, पर अब तो वह भौंहों की कटाईछंटाई और बाल भी काट लेती है.

कांता बातूनी है और टैलीविजन पर आने वाले गानों के साथ सारासारा दिन गुनगुनाती रहती है. जब से उस की नौकरी लगी है, तब से छुट्टी वाले दिन भी वह छुट्टी नहीं करती है. जिस दिन दूसरी लड़कियां नहीं आतीं, उस दिन भी अकेली कांता के दम पर ब्यूटीपार्लर खुला रहता है.

अलका मैडम कांता से बहुत खुश हैं और वह उन की इतनी भरोसेमंद हो गई है कि वे अपना कैश बौक्स भी उसे सौंप जाती हैं.

पर आज सुबह से ही कांता का मूड खराब था. चहकने से सुबह की शुरुआत करने वाली कांता आज गुमसुम थी. ब्यूटीपार्लर पहुंच कर न तो उस ने अपने नए तरीके से बाल बनाए थे, न ही अलका मैडम से कहा था, ‘मैडम, जब तक कोई ग्राहक नहीं आता, तब तक मैं आप के बालों में मेहंदी लगा दूं या फेसियल कर दूं…’

कांता की चुप्पी को तोड़ने के लिए अलका मैडम ने ही पूछ लिया, ‘‘क्या हुआ कांता?’’

1-2 बार पूछने पर कांता ने सारी रामकहानी अलका मैडम को सुना दी और लगी रोने. रोतेरोते उस ने कहा, ‘‘मैडम, आप मुझे अपने घर में क्यों नहीं रख लेतीं? बदले में मुझ से अपने घर का कुछ भी काम करा लेना. घर वालों को कुछ तो मजा चखा दूं. मैं अपने साथ जोरजबरदस्ती बरदाश्त नहीं करूंगी.’’

‘‘ठीक है, पर मुझे सोचने के लिए थोड़ा सा समय तो दे. और सुन, यह मत भूलना कि मांबाप बच्चों का बुरा नहीं चाहते हैं. उन के नजरिए को भी समझने की कोशिश कर. दूसरों के कहने पर क्यों जाती है. क्या तू ने अपना मंगेतर देखा है?’’ अलका मैडम ने पूछा.

‘‘हां देखा था, अपनी सगाई वाले दिन. लेकिन मुझे उस का चेहरा जरा भी याद नहीं है.’’

अभी वे दोनों बातें कर ही रही थीं कि साफसफाई करने वाली शीला ने कहा, ‘‘बाहर कोई लड़का कांता को पूछ रहा है.

‘‘लड़का…’’ कांता चौंकी, ‘‘कहीं गिरिराज तो नहीं?’’

‘‘मैं किसी गिरिराज को नहीं पहचानती,’’ शीला ने जवाब दिया.

‘‘जो भी है, उस से कह दो कि यह औरतों का ब्यूटीपार्लर है, मैं लड़कों के बाल नहीं काटती,’’ कांता बोली.

‘‘अरे, इतनी देर में उस से मिल क्यों नहीं लेती?’’ अलका मैडम ने कहा.

कांता बाहर आई, तो उस ने देखा कि सीढि़यों पर एक खूबसूरत सा नौजवान चश्मा लगाए, जींसजैकेट पहने खड़ा था.

‘कौन है यह? शायद किसी ग्राहक के लिए मुझे लेने या समय तय करने के लिए आया हो,’ कांता ने सोचा और बोली, ‘‘आप को जोकुछ पूछना है, अंदर आ कर मैडम से पूछ लो.’’

‘‘मैं तो आप ही के पास आया हूं,’’ वह नौजवान मुसकराते हुए बोला, ‘‘कहीं बैठाओगी नहीं?’’

‘‘मैं तुम… आप को पहचानती नहीं,’’ कांता ने सकपकाते हुए कहा.

‘‘मैं गिरिराज हूं.’’

‘‘हाय…’’ कांता झेंपी, ‘‘तुम… मेरा मतलब आप यहां?’’ थोड़ी देर तक तो उस से कुछ बोला नहीं गया. पहले वह जमीन की तरफ देखती रही, फिर आंख उठा कर उस ने उस नौजवान की तरफ देखा, तो वह भी एकटक उस की ही तरफ देख रहा था.

कांता फिर झेंप गई. बातूनी होने पर भी उस से बोल नहीं फूट रहे थे, तभी बाहर का हालचाल जानने के लिए अलका मैडम भी बाहर निकलीं.

कांता की पीठ अलका मैडम की तरफ थी और वह उन के रास्ते में खड़ी थी. रास्ता रुका देख कर गिरिराज ने कांता की बांह पकड़ कर एक तरफ खींचते हुए कहा, ‘‘देखो, ये मैडम जाना चाहती हैं. तुम एक तरफ हट जाओ.’’

गिरिराज के हाथ की छुअन के रोमांच पर कांता मन ही मन खुश होते हुए भी ऊपर से गुस्सा कर बोली, ‘‘तुम मुझे हाथ लगाने वाले कौन होते हो?’’ इसी बीच अलका मैडम वापस अंदर चली गईं.

‘‘अरे, अभी तक नहीं पहचाना? मैं गिरिराज हूं, तुम्हारा गिरिराज. मां और बाबूजी कल तुम्हारे यहां शादी की तारीख तय करने के लिए गए थे.

‘‘मैं ने उन से कह दिया था कि मुझ से बिना पूछे कोई तारीख पक्की मत कर आना. सोचा था कि तुम से मिल कर ही तारीख तय करूंगा.

‘‘इसी बहाने एकदो बार मिल तो लेंगे. चलो, छुट्टी ले लो. चाहे तो शाहरुख खान की नई फिल्म देख लेंगे या फिर किसी रैस्टोरैंट में पिज्जा खिला लाऊं?’’ गिरिराज ने अपनी बात रखी.

कांता के मन में लड्डू फूट रहे थे. अच्छा हुआ कि वह सुबह गुस्से में अलका मैडम के घर रहने नहीं पहुंच गई.

‘‘मैं घर पर तो बता कर के नहीं आई हूं,’’ कांता ने नरम होते हुए कहा.

‘‘तो क्या हुआ? चोरीछिपे मिलने  का मजा ही कुछ और है. और फिर मेरे साथ चलने में तुम्हें कैसी हिचक? देखती नहीं, सब फिल्मों में हीरोहीरोइन मांबाप को बिना बताए ही घूमते हैं, गाते हैं, नाचते हैं,’’ गिरिराज बोला.

कांता ने इतरा कर बालों को पीछे फेंका और तिरछी नजर से उसे देखते हुए बोली, ‘‘मैं जरा बालों को ठीक

कर आऊं, तब तक तुम अलका मैडम से जाने की इजाजत ले लो,’’ फिर जातेजाते वह रुकते हुए बोली, ‘‘तुम… आप कुछ ठंडागरम लेंगे?’’

‘‘वैसे तो जब से आया हूं, तुम्हारे रूप को पी ही रहा हूं, फिर भी तुम जो पिला दोगी, पी लूंगा. पीने के लिए ही तो आया हूं.’’

कांता के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. नशे की सी हालत में वह लड़खड़ा कर गिरने ही वाली थी कि गिरिराज ने उसे लपक कर अपनी बांहों में समेट लिया.

उधर ब्यूटीपार्लर के टैलीविजन पर एक प्यार भरा गीत आ रहा था, ‘मुझ को अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही…’ और इधर गिरिराज कांता को संभालते हुए मानो गा रहा था, ‘आ, गले लग जा…’

जैसे ही वे दोनों अंदर पहुंचे, सबकुछ समझते हुए अलका मैडम ने उन के बोलने से पहले ही कहा, ‘‘हांहां जाओ, मौज करो. पर मुझे अपनी शादी में बुलाना मत भूलना.’’

‘‘मैडम, क्यों इतनी जल्दी आप हमें शादी की चक्की में पीस देना चाहती हैं. हमें कुछ दिन और मौजमजा कर लेने दीजिए, तब तक छुट्टी मनाने के लिए आप की इजाजत की जरूरत पड़ती रहेगी,’’ गिरिराज ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं.’’

‘‘शुक्रिया मैडम.’’

कांता देख रही थी कि वह जिसे छोटा सा समझ रही थी, वह तो पुराना अमिताभ बच्चन निकला. क्या बढि़या अंदाज में मैडम से बात कर रहा था. कांता सोच रही थी, ‘मां जो तारीख कहेंगी, उसी तारीख के लिए मैं हामी भर दूंगी. तब तक मेरा हीरो इधर आता ही रहेगा.’ गिरिराज कांता को देख रहा था और कांता गिरिराज को. हालांकि उन्होंने बाहर जाने के लिए सीढि़यों से पैर नीचे रखे थे, मगर उन्हें लग रहा था कि वे दोनों उड़ रहे हैं.

घर वापसी : लड़कियों का बेरहम दलाल

नैशनल हाईवे 33 पटना को रांची से जोड़ता है. रांची से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर बसा एक गांव है सिकदिरी. इसी गांव में फूलन रहता था. उस के परिवार में पत्नी छमिया के अलावा 3 बच्चे थे. बड़ा लड़का पूरन और उस के बाद 2 बेटियां रीमा और सीमा.

फूलन के कुछ खेत थे. खेतों से तो परिवार का गुजारा मुश्किल था, इसलिए वह कुछ पैसा मजदूरी से कमा लेता था. कुछ कमाई उस की पत्नी छमिया की भी थी. वह भी कभी दूसरों के खेतों में मजदूरी करती, तो कभी अमीर लोगों के यहां बरतन मांजने का काम करती थी.

फूलन के तीनों बच्चे गांव के स्कूल में पढ़ते थे. बड़े बेटे पूरन का मन पढ़ने में नहीं लगता था. वह मिडिल पास कर के दिल्ली चला गया था. पड़ोसी गांव का एक आदमी उसे नौकरी का लालच दे कर अपने साथ ले गया था.

पूरन वहां छोटामोटा पार्टटाइम काम करता था. कभी स्कूटर मेकैनिक के साथ हैल्पर, तो कभी ट्रक ड्राइवर के साथ  क्लीनर का काम, पर इस काम में पूरन का मन लग गया था. ट्रक के साथ नएनए शहर घूमने को जो मिलता था.

इस बीच एक बार पूरन गांव भी आया था और घर में कुछ पैसे और एक मोबाइल फोन भी दे गया था.

ट्रक ड्राइवर अपना दिल बहलाने के लिए कभीकभी रंगरलियां भी मनाते थे, तो एकाध बार पूरन को भी मौका मिल जाता था. इस तरह धीरेधीरे वह बुरी संगत में फंस गया था.

इधर गांव में रीमा स्कूल में पढ़ रही थी. अपनी क्लास में अच्छे नंबर लाती थी. वह अब 10वीं जमात में पहुंच गई थी. उस की छोटी बहन सीमा भी उसी स्कूल में 7वीं जमात में थी.

इधर सिकदिरी और आसपास  के गांवों से कुछ नाबालिग लड़कियां गायब होने लगी थीं. गांव के ही कुछ मर्द और औरतें ऐसी लड़कियों को नौकरी का लालच दे कर दिल्ली, चंडीगढ़ वगैरह शहरों में ले जाते थे.

शुरू में तो लड़कियों के मातापिता को कुछ रुपए एडवांस में पकड़ा देते थे, पर बाद में कुछ महीने मनीऔर्डर भी आता था, पर उस के बाद उन का कुछ अतापता नहीं रहता था.

इधर शहर ला कर इन लड़कियों से बहुत कम पैसे में घर की नौकरानी बना कर उन का शोषण होता था. उन को ठीक से खानापीना, कपड़ेलत्ते भी नहीं मिलते थे. कुछ लड़कियों को जबरन देह धंधे में भेज दिया जाता था.

इन लोगों का एक बड़ा रैकेट था.  पूरन भी इस रैकेट में शामिल हो गया था.

एक दिन अचानक गांव से एक लड़की गायब हो गई, पर इस बार उस के मातापिता को कोई रकम नहीं मिली और न ही किसी ने कहा कि उसे नौकरी के लिए शहर ले जाया गया है.

इस घटना के कुछ दिन बाद पूरन के पिता फूलन को फोन आया कि गायब हुई वह लड़की दिल्ली में देखी गई है.

2 दिन बाद फूलन को फिर फोन आया. उस ने कहा कि तुम्हारा बेटा पूरन आजकल लड़कियों का दलाल बन गया है. उसे इस धंधे से जल्दी ही निकालो, नहीं तो बड़ी मुसीबत में फंसेगा.

यह सुन कर फूलन का सारा परिवार सकते में आ गया था. बड़ी बेटी रीमा

ने सोचा कि इस उम्र में पिताजी से कुछ नहीं हो सकता, उसे खुद ही कुछ उपाय सोचना होगा.

रीमा ने अपने मातापिता को समझाया कि वह दिल्ली जा कर भाई को वापस लाने की पूरी कोशिश करेगी.

चंद दिनों के अंदर रीमा रांची से ट्रेन पकड़ कर दिल्ली पहुंच गई थी. वह वहां अपने इलाके के एक नेता से मिली और सारी बात बताई.

नेताजी को पूरन की जानकारी उन के ड्राइवर ने दे रखी थी.

वह ड्राइवर एक दिन नेताजी के किसी दोस्त को होटल छोड़ने गया था, तो वहां पूरन को किसी लड़की के साथ देखा था.

ड्राइवर भी पड़ोस के गांव से था, इसलिए वह पूरन को जानता था.

ड्राइवर ने रीमा से कहा, ‘‘मैं ने ही तुम्हारे घर पर फोन किया था. तुम घबराओ नहीं. तुम्हारा भाई जल्दी ही मिल जाएगा.

‘‘मैं कुछ होटलों और ऐसी जगहों को जानता हूं, जहां इस तरह के लोग मिलते हैं. मैं जैसा कहता हूं, वैसा करो.’’

रीमा बोली, ‘‘ठीक है, मैं वैसा ही करूंगी. पर मुझे करना क्या होगा?’’

‘‘वह मैं समय आने पर बता दूंगा. तुम साहब को बोलो कि यहां का एक एसपी भी हमारे गांव का है. जरूरत पड़ने पर वह तुम्हारी मदद करे.

‘‘वैसे, मैं पूरी कोशिश करूंगा कि पुलिस की नजर में आने के पहले ही तुम अपने भाई को इस गंदे धंधे से निकाल कर अपने गांव चली जाओ.’’

इधर ड्राइवर ने भी काफी मशक्कत के बाद पूरन का ठिकाना ढूंढ़ लिया

था. वह पूरन से बोला, ‘‘एक नईनवेली लड़की आई है. लगता है, वह तुम्हारे काम आएगी.’’

पूरन ने कहा, ‘‘तुम मुझे उस लड़की से मिलाओ.’’

ड्राइवर ने शाम को पूरन को एक जगह मिलने को कहा, इधर ड्राइवर रीमा को बुरका पहना कर शाम को उसी जगह ले गया.

चूंकि रीमा बुरके में थी, इसलिए पूरन उसे पहचान न सका था. ड्राइवर वहां से हट कर दूर से ही सारा नजारा देख रहा था.

पूरन ने रीमा से पूछा, ‘‘तो तुम मुसलिम हो?’’

‘‘हां, तो क्या मैं तुम्हारे काम की नहीं?’’ रीमा ने पूछा.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. मेरे काम में कोई जातपांत, धर्म नहीं पूछता. पर तुम अपना चेहरा तो दिखाओ. इस से मुझे तुम्हारी उम्र और खूबसूरती का भी अंदाजा लग जाएगा.’’

‘‘ठीक है, लो देखो,’’ कह कर रीमा ने चेहरे से नकाब हटाया. उसे देखते ही पूरन के होश उड़ गए.

रीमा ने भाई पूरन से कहा, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती, लड़कियों की दलाली करते हो. वे भी तो किसी की बहन होगी…’’

रीमा ने कहा, ‘‘तुम्हें पता है कि अगले हफ्ते ‘सरहुल’ का त्योहार है. पहले तुम इस त्योहार को दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती से मनाते थे. इस बार तुम्हारी घर वापसी पर हम सब मिल कर ‘सरहुल’ का त्योहार मनाएंगे.’’

तब तक ड्राइवर भी पास आ गया था. रीमा ने जब अपने गांव से लापता लड़की के बारे में पूछा, तो उस ने कहा कि उस में उस का कोई हाथ नहीं है. लेकिन वह लड़की एक घर में नौकरानी का काम कर रही है.

ड्राइवर और पूरन के साथ जा कर रीमा ने उस लड़की को भी बचाया.

रीमा अपने भाई पूरन को ले कर गांव आ गई. सब ने उसे समझाया कि सुबह का भूला अगर शाम को घर आ जाए, तो उसे भूला नहीं कहा जाता.

पूरन को अपनी गलती पर पछतावा था. उस की घर वापसी पर पूरे परिवार ने गांव वालों के साथ मिल कर ‘सरहुल’ का त्योहार धूमधाम से मनाया.

अब पूरन गांव में ही रह कर परिवार के साथ मेहनतमजदूरी कर के रोजीरोटी कमा रहा था.

आखिरी बाजी: असद अपनी पत्नी की क्यों उपेक्षा करता था

सकीना बानो ने घबरा कर घर के बाहर देखा. दूरदूर तक कोई दिखाई नहीं पड़ रहा था. उस ने दरवाजा बंद कर दिया और लौट कर जोहरा के पास आ गई. जोहरा बिस्तर पर पड़ी प्रसवपीड़ा से तड़प रही थी. कभीकभी उस की कराहटें तीव्र हो जाती थीं. ऐसे में सकीना का कलेजा मुंह को आने लगता. उस से जोहरा की तकलीफ देखी नहीं जा रही थी.

उसे बारबार असद पर क्रोध आ रहा था. वह कह कर गया था कि शाम तक लौट आएगा, लेकिन रात हो आने पर भी उस का कहीं पता नहीं था. घर में असद ने इतने पैसे भी नहीं छोड़े थे कि वह स्वयं ही किसी डाक्टर को बुला लाती. अब तो यह सोचने के सिवा और कोई चारा नहीं था कि जो कुछ होगा उस से निबटना ही पडे़गा.

तभी अचानक लगा कि दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी है. वह तेजी से दरवाजे की ओर बढ़ी. दरवाजा खोला, पर बाहर  कोई नहीं था. उसे अपने ऊपर क्रोध आ गया.

जैसेजैसे अंधेरा बढ़ता जा रहा था, उस के हृदय की धड़कनें भी बढ़ती जा रही थीं. असद के न आने पर उस ने मजबूरन पड़ोस के लड़के शमीम को असद को बुलाने भेजा था.

अब तो शमीम को गए भी 1 घंटा बीत चुका था, लेकिन अभी तक न असद का पता था न शमीम का.

बेचैनी से टहलती वह जोहरा के पास पहुंची और बोली, ‘‘सब्र और हिम्मत से काम ले, बेटी, थोड़ी ही देर में असद आ जाएगा.’’

‘‘अम्मी,’’ जोहरा तड़प उठी, ‘‘मुझे यकीन है, वह आज भी नहीं आएंगे. कहीं जुआ खेलने बैठ गए होंगे.’’

‘‘बहू, ऐसी औलाद या ऐसा खाविंद मिलने पर इनसान अपनेआप को कोसने के अलावा और कर ही क्या सकता है?’’ सकीना की आवाज से दर्द भरी मायूसी साफ झलक रही थी.

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कुछ ही देर में शमीम आ गया. आते ही बोला, ‘‘भाईजान का तो कहीं पता नहीं चला, वह जहांजहां बैठते थे, सब जगह देख आया.’’

शमीम के आते ही सकीना ने अपनी बेटी नजमा को बुला कर कहा, ‘‘तू अपनी भाभी के पास बैठ. मैं बन्नो दाई को बुला कर लाती हूं,’’ यह कह कर सकीना बुरका ओढ़ कर घर से बाहर निकल गई.

फजर (तड़के) की नमाज के वक्त जोहरा ने एक सुंदर लड़के को जन्म दिया. सकीना प्रसन्नता से खिल उठी, लेकिन जोहरा की आंखें आंसुओं से भरी थीं. वह सोच रही थी, कैसा दुख भरा जीवन है उस का कि उस के पहले बच्चे के जन्म के समय उस का शौहर सब कुछ जानते हुए भी उस के पास नहीं है.

सकीना उस दर्द को समझती थी. इसीलिए उस ने उसे समझाया, ‘‘बहू, रंज मत करो, बुरे वक्त को भी हंस कर गुजार देना चाहिए. तुम्हारे मियां की तो अक्ल ही मारी गई है, फिर कोई क्या कर सकता है. मैं तो उसे समझासमझा कर हार गई. घर में जवान बहन बैठी है, फिर भी उस पर कोई असर नहीं. कहां से करूं बेटी की शादी? मुझे तो रातदिन उस की ही फिक्र खाए जाती है.’’

दूसरे दिन शाम को कहीं जा कर असद ने घर में प्रवेश किया. बच्चा पैदा होने के बावजूद घर में बजाय खुशी के सन्नाटा छाया हुआ था. वैसे वह ऐसे माहौल का आदी हो चुका था. अकसर हर शनिवार को वह गायब हो जाता था और दूसरे दिन शाम को लौट कर आता था.

सकीना ने जब उसे बताया कि वह एक बेटे का बाप बन चुका है तो वह सिर्फ मुसकरा कर रह गया.

जब असद जोहरा के पास पहुंचा तो जोहरा ने उसे देख कर मुंह फेर लिया. असद हलके से मुसकरा दिया और बोला, ‘‘लगता है, मुझ से बहुत नाराज हो. भई, क्या बताऊं, रात एक दोस्त ने रोक लिया. उस के यहां दावत थी. सुबह सो कर उठा तो बोला, दोपहर का खाना खा कर जाना. इसलिए देर हो गई. लाओ, मुन्ने को मुझे दे दो, देखूं तो किस पर गया है.’’

जोहरा ने पटकने वाले अंदाज में बच्चे को असद की ओर बढ़ा दिया. असद ने बच्चे को गोद में लिया तो वह रोने लगा, ‘‘अरे…अरे, रोता है. बिलकुल अपनी अम्मी पर गया है,’’ असद ने हंस कर कहा और बच्चे को जोहरा की ओर बढ़ा दिया. जोहरा ने बच्चे को ले लिया.

असद ने हंस कर जोहरा की ओर देखा और बोला, ‘‘लगता है, आज बेगम साहिबा ने न बोलने की कसम खा रखी है.’’

‘‘पूरी रात तकलीफ से छटपटाती रही पर आप को तो अपने दोस्तों और जुए से ही फुरसत नहीं थी. हार कर अम्मी को ही जा कर दाई को बुला कर लाना पड़ा. आप की बला से, मैं मर भी जाती तो आप को क्या फर्क पड़ता?’’ कह कर जोहरा सिसक पड़ी.

‘‘लेकिन मैं ने जुआ कहां

खेला?’’ असद ने अपनी सफाई पेश करनी चाही, ‘‘मैं तो दोस्तों के साथ दावत में था.’’

‘‘दावत में थे तो वे 500 रुपए कहां हैं जो कल आप मुझ से झूठ बोल कर ले गए थे,’’ जोहरा ने पूछा.

‘‘वे…वे…मैं तो…’’ असद का रंग सफेद पड़ गया. फिर वह तुरंत ही संभल गया और कड़क कर बोला, ‘‘तुम कौन होती हो पूछने वाली?’’

‘‘मैं…’’ जोहरा कुछ कहना ही चाहती थी कि अचानक सकीना ने खांस कर कमरे में प्रवेश किया. सास को देख कर जोहरा चुप हो गई. सकीना जोहरा के निकट आ कर बोली, ‘‘बहू, मुन्ने का अच्छी तरह ध्यान रखना. बाहर बड़ी ठंडी हवा चल रही है. मैं अभी थोड़ी देर में तुम्हारे लिए खाना लाती हूं,’’ फिर एक नजर उस ने असद पर डाली और बोली, ‘‘जाओ, असद, तुम भी खाना खा लो.’’

असद चुपचाप कमरे से निकल गया. जोहरा उदास नजरों से अपने शौहर को जाते देखती रही.

सकीना ने अपने पोते का नाम जफर रखा था. जफर 2 माह का हो गया था. उस ने हाथपैर चलाने के साथसाथ मुंह टेढ़ा करना भी सीख लिया था. उस की इस हरकत से घर के सब लोग हंस पड़ते थे.

असद तो जैसे मुन्ने के लिए दीवाना सा रहता था. दफ्तर से आते ही वह मुन्ने से खेलने लगता. जुआ तो उस ने खेलना बंद नहीं किया था लेकिन उस का रातरात भर गायब रहना अब तकरीबन बंद सा हो गया था.

एक दिन जब असद मुन्ने से खेल रहा था तो जोहरा बोली, ‘‘सुनिए, मुन्ने के लिए बाजार से कुछ कपडे़ ला दीजिए. अभी तक आप ने मुन्ने के लिए कुछ भी नहीं खरीदा. आप को कल ही तनख्वाह मिली है, लेकिन अभी तक आप ने अपनी तनख्वाह अम्मी को भी नहीं दी. अम्मी पूछ रही थीं, कहीं आप तनख्वाह को भी जुए में तो नहीं हार आए?’’ बोलते हुए जोहरा का हृदय जोरों से धड़क रहा था.

‘‘मुझे क्या करना है, क्या नहीं, यह सोचना मेरा काम है. न ही मैं इस बात के लिए पाबंद हूं कि दूसरों के सवालों का जवाब देता फिरूं,’’ असद ने क्रोध भरे स्वर में कहा और मुन्ने को सोफे पर लिटा कर जोहरा को घूर कर देखा.

फिर कुछ क्षण चुप रहने के बाद बोला, ‘‘मैं देख रहा हूं, तुम्हारा दिमाग दिनबदिन खराब होता जा रहा है. तुम मेरे हर काम में दखल देने लगी हो. आखिर तुम्हें क्या हक है मुझ से हिसाबकिताब मांगने का?’’ असद क्रोध से कांपने लगा था.

‘‘मैं आप की बीवी हूं. मुझे यह जानने का पूरा हक है कि आखिर आप ने अम्मी को अपनी तनख्वाह क्यों नहीं दी,’’ जोहरा गुस्से से बिफर कर बोली, ‘‘मैं कोई भगा कर लाई गई औरत नहीं हूं जो आप के जुल्म बरदाश्त करती रहूंगी. मेरा आप के साथ निकाह हुआ है. जितनी जिम्मेदारी आप पर है उतनी ही मुझ पर भी है.’’

‘‘जोहरा, तुम अपनी हद से आगे बढ़ रही हो. तुम भूल रही हो कि मैं तुम्हारा शौहर हूं. शौहर के सामने बात करने की तमीज सीखो.’’

‘‘शौहर को भी तो यह तमीज होनी चाहिए कि वह अपनी बीवी से कैसे पेश आए.’’

‘‘तुम मेरी गैरत को ललकार रही हो, जोहरा,’’ असद आपे से बाहर हो गया था.

‘‘आप में गैरत है कहां?’’ जोहरा तेज स्वर में बोली.

‘‘मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा,’’ असद चीखा.

‘‘फिर देते क्यों नहीं तलाक? अपनी इस नापाक जबान से 3 बार तलाक, तलाक, तलाक कहिए और निकाल दीजिए घर से धक्के दे कर. आप मर्दों ने औरत को समझ क्या रखा है, सिर्फ एक खिलौना? जब जी भर गया, उठा कर फेंक दिया. आप की नजरों में औरत का जन्म शायद मर्दों के जुल्म सहने के लिए ही हुआ है.’’

‘‘जोहरा,’’ असद इतनी जोर से चीखा कि उस के गले की नसें तक तन गईं, ‘‘मैं ने तुम्हें तलाक दिया, मैं ने तुम्हें तलाक दिया, मैं ने तुम्हें तलाक दिया.’’

जोहरा अवाक् फटीफटी आंखों से असद को देखती रही. फिर अचानक ही बेहोश हो कर नीचे गिर पड़ी. सकीना और नजमा उस समय घर में नहीं थीं. वे अभीअभी एक रिश्तेदार से मिल कर लौटी थीं. दोनों ने असद के अंतिम शब्द सुन लिए थे.

सकीना ने असद की ओर क्रोध से देखा और बोली, ‘‘असद, यह तू ने बहुत बुरा किया.’’

असद बुत की तरह स्थिर खड़ा था. सकीना ने असद को झंझोड़ा तो उस ने चौंक कर अपनी अम्मी को देखा और तेजी से घर से बाहर निकल गया. सकीना उसे आश्चर्य से जाते देखती रही.

फिर सकीना ने नजमा की मदद से जोहरा को चारपाई पर लिटाया और उसे होश में लाने की कोशिश करने लगी. उधर नजमा रोते हुए मुन्ने को गोद में ले कर उसे बहलाने की कोशिश करने लगी.

शाम को जब असद ने घर में प्रवेश किया तो घर में छाई खामोशी ने उसे अंदर तक कचोट दिया. एक आशंका ने उसे कंपा दिया. कमरे में घुसते ही उस की नजर सोफे पर बैठी अपनी अम्मी पर पड़ी, जो गुमसुम सी कहीं खोई हुई थीं.

असद ने धड़कते हृदय के साथ पूछा, ‘‘जोहरा कहां है, अम्मी?’’

‘‘जोहरा,’’ अचानक ही सकीना ने चौंक कर असद की ओर देखा और बोली, ‘‘अपने मायके चली गई है. मैं ने बहुत रोका, लेकिन वह बोली कि अब उस का इस घर से क्या रिश्ता है? उन्होंने मुझे तलाक दे दिया है. अब उन के पास मेरा रहना हराम होगा.’’

यह सुन कर असद अवाक् रह गया. उस का सिर घूमने लगा. उसे उम्मीद न थी कि वह क्रोध में यह सब कर बैठेगा. उस ने भर्राए स्वर में पूछा, ‘‘अब क्या होगा, अम्मी? मैं जोहरा के बिना नहीं रह सकता. मुझे नहीं मालूम था कि मैं इस जुए के चक्कर में अपने जीवन की सब से बड़ी बाजी हार जाऊंगा.’’

‘‘तुम ने बहुत देर कर दी, बेटे. ऐसी शरीफ और नेक बहू ढूंढे़ से भी नहीं मिलेगी. तुम उस पर जुल्म करते रहे लेकिन उस ने कभी उफ तक न की. मगर आज तो तुम ने वह काम किया जो कोई खूनी इनसान ही कर सकता है. तुम ने औरत की अहमियत को नहीं समझा. उसे पैर की जूती समझ कर निकाल फेंका,’’ सकीना ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘अम्मी, तुम कल ही जा कर जोहरा को बुला लाओ. मैं अपने किए की माफी मांग लूंगा,’’ असद ने उम्मीद के साथ अपनी अम्मी की तरफ देखा.

‘‘अब ऐसा नहीं हो सकता,’’ सकीना बोली, ‘‘हमारा मजहब इस बात की इजाजत नहीं देता. हमारे मजहब ने मर्द को इतनी आसानी से तलाक देने का हक दे कर औरत को इतना कमजोर बना दिया है कि निर्दोष होते हुए भी उस की जरा सी भूल उसे धूल में मिला देती है. हमारे मजहब के मुताबिक इन हालात में ‘हलाला’ होना जरूरी है. अब जोहरा का तुम से दोबारा निकाह तभी हो सकता है जब उस का किसी दूसरे मर्द के साथ निकाह हो और वह मर्द जोहरा को एक रात अपने साथ रख कर तलाक दे दे.’’

‘‘मैं इस के लिए भी तैयार हूं, अम्मी. तुम जोहरा से बात तो करो,’’ असद ने डूबे स्वर में कहा.

‘‘अभी 1-2 महीने रुक जाओ, मैं कोशिश करूंगी,’’ सकीना बोली.

इस के बाद असद कुछ नहीं बोला.  वह गुमसुम सा चारपाई पर जा कर

लेट गया. उस की आंखों के सामने जोहरा की सूरत घूम गई. उस के दफ्तर से आते ही वह उस का कोट उतार कर टांग देती थी. उस के जूतों के तसमे खोल कर जूते उतारती थी. उस के आते ही उसे चाय देती थी. उस के जरा से उदास हो जाने पर स्वयं भी उदास हो जाती थी.

उसे ध्यान आया, एक बार जब वह बीमार पड़ गया था तो जोहरा ने रातदिन जाग कर उस की खिदमत की थी.

जोहरा की खिदमत और मुहब्बत का उस ने कितना अच्छा सिला दिया, उस के जरा से क्रोध पर उसे घर से निकाल दिया. असद का मन आत्मग्लानि से भर उठा.

असद के दिन अब बड़ी खामोशी  से गुजरने लगे थे. दफ्तर से आते ही वह घर में गुमसुम सा पड़ा रहता. कहीं आताजाता भी नहीं था. जुआ तो दूर की बात थी, उस दिन से उस ने ताश के पत्तों को छुआ तक नहीं था.

एक दिन अख्तर ने असद से जुआ खेलने को कहा तो असद ने उस को पीट दिया. उस दिन से असद और अख्तर में अनबन हो गई थी.

जोहरा से उस ने कई बार मिल कर माफी मांगने की कोशिश भी की लेकिन सफल नहीं हो सका. आखिर मजबूर हो कर उस ने अम्मी को जोहरा के मांबाप के पास भेजने का निश्चय किया.

सकीना को जोहरा से मिलने के लिए गए हुए 2 दिन हो चुके थे लेकिन वह अभी तक नहीं लौटी थी, ये 2 दिन असद ने बड़ी मुश्किल से काटे थे.

तीसरे दिन शाम को जब सकीना लौटी तो असद दौड़ादौड़ा अम्मी के पास आया और बोला, ‘‘क्या कहा जोहरा ने, अम्मी?’’

सकीना खामोश रही तो असद का हृदय धड़क उठा. बेचैन हो कर उस ने दोबारा पूछा, ‘‘अम्मी, तुम बतातीं क्यों नहीं?’’

‘‘फिक्र क्यों करता है, बेटे, मैं तेरी दूसरी शादी कर दूंगी,’’ सकीना का स्वर बुझाबुझा सा था, ‘‘अभी कौन सी तेरी उम्र निकल गई? लोग तो बुढ़ापे में शादियां करते हैं.’’

‘‘अम्मी, मैं जो तुम से पूछ रहा हूं, उस का जवाब क्यों नहीं देतीं,’’ असद बोला.

‘‘जोहरा ने इनकार कर दिया, बेटे. वह किसी भी हालत में तुम्हारे साथ रहने को तैयार नहीं है.’’

‘‘अम्मी,’’ असद का स्वर कांप कर रह गया. उस की आंखें शून्य में टिक गईं. जुए की आखिरी बाजी ने उस की सारी प्रसन्नताएं हर ली थीं. असद थकेथके कदमों से चलता अपने कमरे में आ गया. सकीना और नजमा कुछ कहना चाह कर भी कुछ न कह सकीं.   द्य

मैं एक लड़की को पसंद करता हूं लेकिन वह मुझे भाव नहीं देती है, क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 28 साल है. मुझे जल्दी कोई लड़की पसंद नहीं आती. मैं ने थोड़े दिनों पहले अपनी जौब चेंज की है और वहां मुझे एक लड़की बहुत ज्यादा पसंद आ गई है. कह सकते हैं कि मैं उस का दीवाना हो गया हूं. लेकिन वह मु झे भाव नहीं देती. बहुत एटीट्यूट दिखाती है. लगता है वह मु झ से इम्प्रैस नहीं हो पाएगी. बहुत उदास रहने लगा हूं क्योंकि मु झे पता है कि वह लड़की अच्छी है, अच्छी फैमिली से है. सब के साथ उस का व्यवहार अच्छा है. उस का कोई बौयफ्रैंड भी नहीं है. पता नहीं क्यों मु झ से भाव खाती है. क्या उस का खयाल दिल से निकाल दूं या और कोशिश कर के देखूं?

जवाब

आप 28 साल के हैं. पढ़ेलिखे हैं, अच्छी जौब में हैं तो उस लड़की से आप सीधेसीधे अपने दिल की बात कह सकते हैं. यदि उस के दिल में आप के लिए थोड़ा भी कुछ होगा तो वह सोचने के लिए कुछ वक्त मांगेगी और यदि उसे आप पसंद ही नहीं तो साफ इनकार कर देगी.

अब आप को वह लड़की पसंद आ गई तो जरूरी तो नहीं कि वह भी आप को पसंद करे. इसलिए उस के पीछे अपना वक्त बरबाद मत कीजिए. कोई और लड़की ढूंढि़ए और अपना घर बसाइए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  सरस सलिल- व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem
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