कालाधन रोकने के लिए नोटबंदी कानून

मारे देश में न्यायपालिका का बुनियादी सिद्धांत है कि सौ अपराधी छूट जाएं, लेकिन एक भी निरपराध को सजा न हो. यह मुहावरा कानून के क्षेत्र में बहुत सुननेपढ़ने को मिलता है, लेकिन क्या वास्तविकता में ऐसा है? देखा जाए तो इस सिद्धांत के विपरीत सरकार द्वारा बनाए गए कानून ही कितने निरपराधियों को अपराधी घोषित कर के उन्हें दंड का भागी बना देते हैं, जिस के परिणामस्वरूप बेगुनाहों को कितनी मानसिक, आर्थिक और सामाजिक यातनाओं से गुजरना पड़ता है, यह सिर्फ भुक्तभोगी ही बता सकता है.

आइए, जानते हैं किन कानूनों के तहत निरपराधियों को बिना किसी अपराध के अपराधियों के समान दंड भुगतना पड़ा.

8 नवंबर, 2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक राष्ट्र को संबोधन कर के कालेधन पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से पूरे देश में 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने का ऐलान किया था. इस की वजह से अरबों निरपराधों को सजा भुगतनी पड़ी.

प्रधानमंत्री ने स्वयं स्वीकार किया है कि देश में 5 लाख के अंदर ही ऐसे लोग होंगे, जिन के पास कालाधन है. फिर उन लोगों पर सीधी काररवाई न कर के ऐसा करने से निर्दोष जनता को भी इन के लपेटे में आ कर इस का खामियाजा भुगतना पड़ा. इस के तहत देश के प्रत्येक नागरिक को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक यंत्रणा से गुजरना पड़ा, यह सर्वविदित है. इस के कुछ उदाहरण हैं

घोषणा के तुरंत बाद ही बैंकों के बाहर लोगों की लंबीलंबी कतारें लग गईं. सागर जिले में नोट बदलने के लिए बैंक की कतार में लगे सेवानिवृत्त कर्मचारी विनोद पांडेय (70 साल) चक्कर खा कर गिर पड़े. उन्हें हार्टअटैक की गंभीर हालत में अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

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मुरैना जिले में नए नोट के अभाव में दवा न खरीद पाने की वजह से एक महिला ने फांसी लगा कर जान दे दी. इसी तरह न जाने कितने लोग समय से पैसा न मिलने से डाक्टर को दिखाने अस्पताल नहीं जा सके. अस्पताल से भी दवा न मिलने की वजह से उन्होंने दम तोड़ दिया.

भोपाल में 13 नवंबर, 2016 की शाम रातीबड़ शाखा के 45 साल के वरिष्ठ कैशियर पुरुषोत्तम व्यास बैंक के काउंटर पर कैश गिन रहे थे. इसी दौरान अचानक वह टेबल पर बेहोश हो कर गिर गए. काम का अधिक बोझ होने की वजह से दिल का दौरा पड़ने से उन की मौत हो गई. उस दिन नोटबंदी की वजह से रविवार को भी बैंक खुले थे. सुबह से ही बैंक के बाहर लंबीलंबी लाइनें लगी थीं.

बुलंदशहर, खुर्जा कोतवाली नगर क्षेत्र में रिक्शा चलाने वाला एक युवक 500-500 के 4 नोट बदलने के लिए बैंक के 4 दिनों से चक्कर लगा रहा था. बैंक की लाइन में लगने के बाद भी न तो नोट ही बदले जा सके और न ही वह रिक्शा चला सका. घर में पैदा हुए आर्थिक संकट से मजबूर हो कर उस ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली.

बरनाला में नोटबंदी का असर शादियों पर भी देखने को मिला. शादीविवाहों के सीजन में ज्वैलरी, मैरिज पैलेस, होटल, कपड़े की दुकानों, ब्यूटीपार्लर व कैटरिंग की बहुत डिमांड होती है. विवाह वाले घर में खुशी का माहौल होता है और इस खुशी में लोग ज्यादा से ज्यादा पैसे खर्च करते हैं. परंतु 5001000 रुपए की नोटबंदी ने विवाहों का पूरा मजा ही किरकिरा कर दिया.

ये नोटबंदी नहीं, कामबंदी थी, भुखमरी जैसे हालात थे.कई कारखाना मालिकों का कहना था कि कारीगरों को वेतन देने के लिए उन के पास पैसे कम पड़ रहे थे. नतीजतन कारीगरों की छंटनी हुई या फिर उन्हें छुट्टी पर भेजा गया. कारीगरों को दिहाड़ी मिलने में दिक्कत तो हो ही रही थी, साथ ही अगर कोई काम दे भी दे तो मजदूरी 500 और 1000 के पुराने नोटों में दे रहा था.

मजदूरों का कहना था कि सरकार को इस फैसले पर अमल करने से पहले उन के बारे में सोचना चाहिए था. ज्यादातर मजदूरों का अपना बैंक खाता नहीं था और वे इस के लिए भी दूसरों पर निर्भर थे. वे डाकघरों के जरिए अपना पैसा घर भेजते थे.

महिलाओं के लिए दहेज उत्पीड़न विरोधी एकाधिकार कानून

सरकार द्वारा बनाए गए दहेज उत्पीड़न विरोधी कानून की धारा 498ए के तहत किसी विवाहित महिला के मजिस्ट्रैट जज के सामने इतना कहने मात्र से कि उसे ससुराल वालों ने दहेज के लिए प्रताडि़त किया है या किसी प्रकार की यातना दी है तो बिना किसी जांचपड़ताल के ही महिला की ससुराल वालों को तुरंत जेल में डाल दिया जाएगा.

धारा 498ए निर्दोष वरपक्ष के लोगों को परेशान करने का सब से आसान तरीका है. अनेक मामलों में पति के साथसाथ उस के अशक्त दादादादी, विदेश में दशकों से रहने वाली उन की बहनों तक को भी गिरफ्तार किया गया है. इस कानून का पत्नियों द्वारा जम कर दुरुपयोग किया जा रहा है. असंतुष्ट पत्नियां इसे कवच के बजाय अपने पतियों के विरुद्ध हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं. यह वरपक्ष के लोगों को डराने वाला शस्त्र बन गया है. इस के कुछ उदाहरण देखें

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के जानकीपुरम सेक्टर-सी के रहने वाले पुष्कर सिंह को दहेज कानून की धारा 498, 323 और 508 के तहत जेल जाना पड़ा. उन की पत्नी विनीता ने शादी के 2 साल बाद उन के परिवार के खिलाफ दहेज के रूप में 14 लाख रुपए मांगने का झूठा मुकदमा दर्ज कराया था. इस मुकदमे के चलते उन का पूरा परिवार तबाह हो गया. आर्थिक तंगी के शिकार हो गए. उन का मकान तक बिक गया, जिस की वजह से 6 फरवरी, 2008 को पुष्कर ने फांसी का फंदा गले में डाल कर खुदकुशी कर ली.

मुंबई के किशोर वर्मा की शादी दिल्ली की मीरा से सन 2011 में हुई थी. शादी के कुछ दिनों बाद ही मीरा ने किशोर से दिल्ली में रहने की जिद की. उन के न मानने पर विनीता ने पति और उस के घर वालों पर दहेज उत्पीड़न का झूठा मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा वापस लेने के लिए मीरा 25 लाख रुपए मांग रही थी.

महिलाओं के लिए बलात्कार विरोधी एकाधिकार कानून

बलात्कार मामले में भी स्त्रियों का एकाधिकार कानून होने के कारण उन के द्वारा कितने ही बेगुनाहों पर झूठे आरोप लगा कर उन्हें दंड के साथसाथ मानसिक रूप से प्रताडि़त किया गया.

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश निवेदिता अनिल शर्मा ने रेप केस के एक आरोपी को बरी करते हुए कहा भी है कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए जो कानून बना है, उन में से कुछ का महिलाओं द्वारा अपने स्वार्थ के लिए दुरुपयोग हो रहा है. कुछ उदाहरण इस तरह हैं

सौफ्टवेयर कर्मचारी आलोक वर्मा का कहना है कि वह देश के नए बलात्कार विरोधी कानून के बेगुनाह पीडि़त हैं. 29 साल के आलोक को तब अपनी नौकरी गंवानी पड़ी, जब उन की प्रेमिका के मातापिता ने उन के खिलाफ यौन उत्पीड़न का झूठा आरोप दर्ज करा दिया. उन्हें नई नौकरी मिलने में महीनों लग गए और उन की प्रतिष्ठा पर जो दाग लगा, वह अब तक नहीं छूटा है. आज भी उसे के पिता का सिर शर्म से झुका है.

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बुरहानपुर जिले के परेठा गांव के 38 साल के जनशिक्षक रामलाल अखंडे पर गांव की एक महिला ने बलात्कार का झूठा मामला दर्ज करा दिया था. आरोप लगने के बाद रामलाल के लिए सब कुछ बदल गया. उन्हें जो लोग सम्मान से देखा करते थे, उन की ही नजरों में अब उन के लिए घृणा टपक रही थी.

8 अप्रैल, 2016 आकाश ने हाल ही में अपनी कंपनी शुरू की थी. बड़े जतन से वह अपने सपने को पूरा करने की कोशिश कर रहे थे. अपने सभी कर्मचारियों को आकाश परिवार के सदस्य की तरह मानते थे. लेकिन अचानक कुछ ऐसा हुआ, जिस ने आकाश के कैरियर और प्रतिष्ठा को बरबाद कर के रख दिया. औफिस की एक महिला कर्मचारी ने आकाश पर बलात्कार का आरोप लगा दिया. दरअसल, वह लड़की आकाश को पसंद करती थी. आकाश के मना करने पर उसे पाने की चाहत में उस लड़की ने यह घिनौना कदम उठाया.

संदेह के आधार पर गिरफ्तारी

कानून के अनुसार, यदि पुलिस को किसी पर शक हो कि उस ने गंभीर अपराध, जैसे कि हत्या, यौन अपराध, दंगाफसाद इत्यादि को अंजाम दिया है तो ऐसे व्यक्ति को केवल शक के आधार पर बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है, क्योंकि इस प्रकार के अपराध में पुलिस द्वारा तुरंत काररवाई करनी जरूरी होती है. इस मामले में पुलिस मजिस्ट्रैट की आज्ञा के बिना ही चार्ज ले सकती है.

इस कानून के तहत पुलिस ने अपना काम जल्दी समाप्त करने के लिए या वास्तविक अपराधी द्वारा मोटी रकम मिलने के कारण निरपराध लोगों को अपराधी घोषित कर के गिरफ्तार करने का कार्य किया है, जो उस के स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का हनन है. बाद में उसे इतनी शारीरिक यंत्रणा दी जाती है कि वह निरपराधी होते हुए भी अपराध कबूल कर लेता है, इस का ज्वलंत उदाहरण है

16 सितंबर, 2017 गुरुग्राम रायन इंटरनैशनल स्कूल में प्रद्युम्न हत्याकांड के कुछ ही घंटे बाद हरियाणा पुलिस ने शक के आधार पर बस कंडक्टर अशोक को आरोपी बना दिया था. उसे हिरासत में इतनी शारीरिक यंत्रणा दी गई कि वह हत्या का जुर्म कबूल करने के लिए मजबूर हो गया. लेकिन कुछ दिनों बाद अशोक ने कहा कि उसे फंसाया जा रहा है. उस ने हत्या नहीं की है. वकील ने भी पुलिस पर अशोक को टौर्चर करने और हिरासत के दौरान नशे के इंजेक्शन देने का दावा किया है.

उधर हरियाणा पुलिस की इस काररवाई पर प्रद्युम्न के घर वालों को भरोसा नहीं था, इसलिए उन्होंने सीबीआई जांच की मांग की. 15 सितंबर को केस सीबीआई को सौंप दिया गया. हत्याकांड के ठीक 2 महीने बाद सीबीआई ने उसी स्कूल में पढ़ने वाले सीनियर छात्र को आरोपी बताया. सीबीआई के मुताबिक, आरोपी छात्र ने एग्जाम और पीटीएम टलवाने के लिए प्रद्युम्न की हत्या की थी.

गनीमत रही कि इस हत्या की जांच सीबीआई के पास चली गई, वरना बेचारा कंडक्टर बेगुनाह हो कर भी जिंदगी भर जेल में सड़ता रहता. उस का परिवार जिल्लत की जिंदगी जीने को मजबूर हो जाता. दूसरी ओर असली आरोपी मजे से स्कूल जाता और फिर ऐसी किसी घटना को अंजाम देता.

यह मामला बहुत गंभीर है. हर मामले में तो सीबीआई जांच होती नहीं. कानून के रखवाले ही बिक जाएंगे तो फिर इंसाफ कहां से मिलेगा? इस में सरकार द्वारा शक के आधार पर गिरफ्तारी कानून पर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है. दुख इस बात का है कि ऐसे कितने ही केस होंगे, जिन में पुलिस की गलती या फिर लालच की सजा की कीमत किसी बेगुनाह ने जेल में जिंदगी बिता कर चुकाई होगी. यह कैसा कानून है कि करे कोई और भरे कोई.

न्याय मिलने में विलंब

निरपराधी को संदेह के आधार पर गिरफ्तार कर के कारावास में डाल दिया जाता है, फिर न्याय मिलने में इतना विलंब हो जाता है कि तब तक बेगुनाह व्यक्ति की मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्थिति तहसनहस हो चुकी होती है.

कारावास से निकलने के बाद वह लाखों लोगों के सवालों के घेरे में आ जाता है और सामान्य जीवन जीने में उसे सालों लग जाते हैं. आरुषि हत्याकांड के निरपराधी तलवार दंपति इस का ज्वलंत उदाहरण हैं.

आरुषि हत्याकांड में आरुषि के मातापिता राजेश और नूपुर तलवार को सीबीआई कोर्ट ने 26 नवंबर, 2013 में उम्रकैद की सजा सुनाई थी. इस के बाद से ही वे गाजियाबाद की डासना जेल में बंद थे, लेकिन तलवार दंपति की याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 अक्तूबर, 2017 गुरुवार को 9 साल पुराने आरुषि-हेमराज हत्याकांड में उन्हें निर्दोष बता कर तत्काल रिहा करने का आदेश दे दिया.

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कोर्ट के सामने सीबीआई उन्हें अपराधी साबित नहीं कर पाई. जस्टिस पी.के. नारायण ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘किसी को केवल शक के आधार पर हत्यारा कह देना गलत है. सीबीआई के पास ऐसा कोई ठोस सबूत नहीं है, जिस की वजह से तलवार दंपति की याचिका रद्द की जा सके. इसीलिए उन्हें बरी किया जाता है.

अब सवाल यह उठता है कि यदि तलवार दंपति अपराधी नहीं हैं तो उन्हें न्याय मिलने में विलंब होने के कारण लगभग 4 सालों तक जेल की यातना क्यों सहनी पड़ी? जिस से उन को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक यंत्रणा से गुजरना पड़ा. एक तो उन्हें बेटी को खोने का दुख, ऊपर से हत्या का लांछन झेलने के दुख ने उन्हें जीते जी मार दिया.

एक प्रतिष्ठित डाक्टर दंपति बेटी की हत्या के इतने सालों बाद की प्रक्रिया से प्रभावित हो कर दोबारा से पहले जैसा जीवन पुनर्स्थापित कर पाएंगे? सरकार के पास इस का जवाब क्या है?

हमारे देश के अंधे कानून की नीति से जनता का विश्वास उठ गया है, इसीलिए सही अपराधी को सजा देने के लिए बहुत से लोग कानून को हाथों में ले कर स्वयं ही उसे सजा देने पर मजबूर हो जाते हैं. इस पर बहुत सारी फिल्में बनी हैं, लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती.

कई बार तो यह देखा गया है कि कई निरपराधी हत्या के झूठे आरोप में उम्रकैद की सजा काटने के बाद जेल से बाहर आ कर असली अपराधी की हत्या कर देता है और कानून से पूछता है कि क्या उसे इस अपराध की दोबारा सजा मिल सकती है?

क्या उस निरपराध को कानून उस की जेल में बीती जिंदगी वापस लौटा सकता है? कानून हमारे मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं, लेकिन जब रक्षक ही भक्षक बन जाएं तो हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा? आखिर कब इस अंधे कानून का

अंत होगा और निरपराध को सुरक्षा प्रदान होगी? ?

लापता क्रिप्टोकरेंसी की लुटेरी महारानी

बिटकौइन के मुकाबले नई क्रिप्टोकरेंसी वनकौइन इजाद कर धोखाधड़ी करने वाली बुल्गारिया की एक संभ्रांत महिला रुजा इग्नातोवा पर चार बिलियन डालर घोटाले का आरोप है. वह दुनिया भर के दर्जनों देशों के लोगों से लाखों-करोड़ों रुपे, डौलर, यूरो या पौंड की मुद्राओं में पैसे बटोर कर फरार हो चुकी है. डिजिटल जमाने की इस ठगी के शिकार होने वालों में भारतीय भी हैं. अमेरिका समेत भारत की पुलिस को भी उसकी तलाश है.

दिल्ली के कनाट प्लेस इलाके में एक कैंटिन चलाने वाला 25 वर्षीय रामनरेश अप्रैल 2015 में बिहार से आया था. मैट्रिक पास ग्रामीण युवक को उसके ही गांव के जान-पहचान वाले की मदद से कैंटिन में हेल्पर का काम मिल गया था. वह अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहता था. इसके लिए  किसी भी तरह का काम करने को इच्छुक था. उसे कोई भी मोटा-महीन काम करने से जरा भी संकोच नहीं था. एक दिन उसे पार्ट टाइम पैसा कमाने के बारे में जानकारी मिली. कैंटिन में अक्सर चाय पीने आने वाले एक युवक ने उसे औनलाइन मल्टी लेवल मार्केटिंग बिजनेस और क्रिप्टोक्वाइन के बारे में समझाया कि कैसे वह उसके जरिए डाॅलर में पैसे कमाकर रातोंरात अमीर बन सकता है. इसके लिए तीन तरह के स्कीमों में 4000, 6000 या फिर 8000 रुपये नगद का भुगतान कर एक मल्टीनेशनल कंपनी के वेबपोर्टल का मेंबर बनना था.

मेंबर बनते ही उसके नाम से खुले आईडी अकाउंट में क्रमशः 50, 75 या 100 डौलर आ जाने वाले थे. वह रकम तब डालर के रुपये में वैल्यू के हिसाब से जमा की गई राशि से कुछ अधिक ही  थी. उसने तुरंत दो मेंबरशिप ले ली. एक अपनी और दूसरी पत्नी के नाम आईडी बना डाले. बदले में उसे जमा की गई रकम के कमीशन के चेक भी मिल गए. उसे कंपनी के हजारों करोड़ डौलर से अधिक मल्टीनेशनल बिजनेस से जुड़े विभिन्न देशों के हजारों लोगों की मोटी आमदनी के बारे बताया गया. साथ ही समय-समय पर महंगी गाड़ियां, बाइक, फ्लैट या इलेक्टाॅनिक गजेट व घरेलू सामानों के उपहार मिलने की भी बात कही गई. यह सब उसके लिए किसी सपने से कम नहीं था. इसे पाने के लिए वह जीतोड़ मेहनत करने से पीछे नहीं हटने वाला था.

वह कंपनी के नियम और शर्तों का पालन करते हुए ज्यादा से ज्यादा लोगों को मेंबर बनाने में जुट गया. हर नए मेंबर से उसे कमीशन की आमदनी होने लगी. वह कमीशन की राशि काटकर कंपनी के पोर्टल पर पैसे जमा कर दिया करता था. कंपनी द्वारा होने वाली उसकी आमदनी का शुरूआती जरिया यही था. अतिरिक्त मोटी आमदनी के लिए तबतक इंतजार करना था, जबतक कि उसके आईडी आकाउंट में 500 डालर जमा नहीं हो जाते. वह बड़ी राशि सीधे उसके बैंक आउंट में ट्रांस्फर होने वाले थे. मेंबरशिप का पैसे जमा करते ही आईडी अकाउंट में 72 घंटे के भीतर आमदनी की राशि जुड़ने लगी. वह उन पैसों का अपने बैंक खाते में ट्रांस्फर होने का इंतजार करने लगा. बताया गया था कि टैक्स कटकर आमदनी की रकम स्वतः उसके खाते में आ जाएगी.

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रामनरेश को आनलाइन काम करने की एक छोटी ट्रेनिंग मिली, लेकिन पोर्टल में दिए गए नियम और शर्तें अंग्रेजी में होने के कारण ठीक से नहीं समझ पाया. इसकी उसने जरूरत भी नहीं समझा और अपने दोस्त की बातों पर भरोसा कर कंपनी का सेल्स एजेंट बन गया. इस काम में दोस्त को सीनियर मानकर उसके बताए तरीके पर मेंबर बनाने लगा.

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कुछ महीने में ही रामनरेश ने 200 से अधिक मेंबर बना लिए. सीनियर से मिली जानकारी के हिसाब से उसकी आईडी के खाते में 500 डालर से अधिक आ जाने चाहिए थे, जो 325 पर आकर ही अटक गया था. इस बारे में उसे सीनियर से पूछने पर मालूम हुआ कि ऐसा उसके द्वारा चेन सिस्टम के पिरामिड रूल को फाॅलो नहीं करने के कारण हुआ.

मल्टी लेवल मार्केटिंग यानी कि एमएलएम के अनुसार उसकी आईडी के दोनों साइड से मेंबर बनने चाहिए थे. उसे बनाए मेंबर पर भी मेंबरशिप के लिए दबाव बनाना चाहिए था. खैर, उसे पोजेटिव बने रहकर मेंबरशिप पर ध्यान देना होगा. फिलहाल उसे कमीशन की ही आमदनी होने वाली है. एक डांट के साथ आश्वासन भी मिला कि उसकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी. काफी कम समय में टार्गेट पूरा करने पर वह कंपनी द्वारा दिल्ली के किसी फाईव स्टार होटल में सम्मानित किया जा सकता है. हो सकता है लैपटाॅप, एप्पल का स्मार्टफोन या बाईक गिफ्ट में मिले. वह खुश हो गया और नए जोश के साथ मेंबर बढ़ाने में जुट गया.

करीब डेढ़ साल गुजर गए. अमीर बनने का सपना संजोए रामनरेश के बैंक खाते में न तो एक रुपया ट्रांसफर हुआ, और न ही उसे कोई गिफ्ट मिला. धीरे-धीरे मेंबर बनने भी बंद हो गए. कमीशन की आय तक रूक गई. एक दिन उसे पता चला कि वेबसाइट ही ब्लाॅक हो गई है. उसके जैसे हजारों लोगों के पैसे डूब गए. उस दौरान उसने करीब 10 लाख रुपये कंपनी को दे दिए थे. उसे घर बैठे पार्ट टाइम बिजनेस बताने वाला दोस्त दूसरी कंपनी की मार्केटिंग में लग गया था. हालांकि रामनरेश घाटे में नहीं रहा. उसने भी इस दौरान तीन लाख रुपये के करीब कमाई कर ली थी.

फरीदाबाद के रहने वाले अखिलेश को भी ऐसी ही मार्केटिंग का बेहद कड़वा अनुभव है. उसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. कंपनी के नाम अलग थे. बदले हुए नियम और शर्तों के मुताबिक मेंबरशिप की राशि के बराबर सोने के सिक्के मिलने थे. उसने अधिक कमीशन पाने के लिए अपने पैसे लगाकर दर्जनों मेंबर बनाए. अपनी चेन पूरी करने की लालच में करीब 15 लाख रुपये कंपनी को दे दिए. बाद में पता चला कि सिक्के असली नहीं थे, बल्कि वर्चुअल करेंसी काॅइन थी. नतीजा उसके हाथ कुछ नहीं आया और पोर्टल की साइट ही बंद हो गई.

देशभर में अखिलेश और रामनरेश जैसे ठगे जाने वालों की फेहरिश्त लंबी है. वे शहरों-महानगरों के अलावा गांव-कस्बे तक हो सकते हैं. सभी ‘कौईन’ को डाॅलर और फिर रुपया में बदलने के चक्कर में अपने और दूसरों के लाखो रुपये गंवा चुके हैं. बाद में पता चला कि उनकी सारी कमाई एक विदेशी महिला ने हड़प ली है. क्रिप्टोकरेंसी की वर्चुअल करेंसी का खेल उसी ने खेला था. इतना ही नहीं उसने ’वनकौइन’ के नाम से फर्जी डिजिटल करेंसी तक इजाद कर ली थी. उसके द्वारा लोगों को डौलर, पौंड, यूरो या रुपे में निवेशकर मोटा मुनाफा कमाने के सपने दिखाए गए थे. उसने विभिन्न देशों में इसके प्रमोटर बना लिए थे, जो वेबपोर्टलों के जरिए एमएलएम के हिस्सेदार थे.

वह महिला है बुल्गारिया की 36 वर्षीया डा. रुजा इग्नातोवा, जो खुद को क्रिप्टोकरेंसी की महारानी कहा करती थीं. उसने लोगों को यह कहकर धोखा दिया था कि उन्होंने डिजिटल करेंसी या कहें वर्चुअल करेंसी ‘बिटकौइन’ के मुकाबले वनकौइन के नाम से एक नई क्रिप्टोकरेंसी ईजाद की है. यही नहीं, उसने लोगों को इस करेंसी में लाखों करोड़ों डाॅलर और यूरो करेंसी निवेश करने के लिए भी राजी कर लिया था. फिर अचानक गायब हो गईं. उसे अंतिम बार एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान मई 2017 में देखा गया था.

रुजा ने फर्जी डिजिटल करेंसी बनाकर ये काम आखिर किया कैसे? वह अचानक कहां गायब हो गई? इन दिनों कहां छिपी है? ये सवाल किसी गहरे रहस्य से कम नहीं हैं. उसे तलाशने की कोशिश विदेशी मीडिया के अलावा कई देशों की पुलिस भी कर रही है. यहां तक कि भारतीय पुलिस भी उसे पोंजी स्कीम चलाने के अपराध का अभियुक्त बना चुकी है. उसके खिलाफ आरोप पत्र तैयार किया गया है. उसपर 11 जुलाई 2017 से ही डिजिटल मुद्रा निवेश योजना की धोखाधड़ी का आरोप लगा हुआ है. नवी मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा लगाई गई चार्जशीट में वनकाॅइन से जुड़े दर्जनों प्रमोटर शामिल हैं. पुलिस उनपर नकेल कसने की कोशिश में है. यह पहल तब हुई थी जब मुंबई पुलिस ने अप्रैल 2017 में एक प्रमोशन प्रोग्राम के दौरान ऐसे ही एक ग्रुप को गिरफ्तार किया था.

भारत दुनिया भर के कई देशों में से एक है, जिसमें कानून प्रवर्तक एजेंसियां वनकॅाइन के खिलाफ जांच में जुटी है. आरोपी रुजा को सार्वजनिक तौर पर मकाऊ में देखा गया था. तब वहां उसका भव्य जन्म दिन मनाया गया था. मुंबई पुलिस इस मामले में जांच के परिणाम स्वरूप करीब 30 लोगों को आरोपी बना चुकी है. हालांकि जांचकर्ताओं को इसमें शामिल कुछ लोगों के साथ धोखाधड़ी के बारे में बात करने में मुश्किल आ रही है. कारण सभी पोंजी स्कीम के तहत आते हैं. एक सीनियर कानून प्रवर्तक अधिकारी के अनुसार इस तरह की स्कीम में निवेशक अपराधियों के साथ-साथ पीड़ित भी बन जाते हैं. इसलिए उनपर कार्रवाई करना आसान नहीं होता है.

क्रिप्टोकरेंसी की महारानी रुजा का जाल

बात जून 2016 के शुरुआती दिनों की है. एक बिजनेस वुमन डॉक्टर रुजा इग्नातोवा लंदन के मशहूर वेम्बली अरेना में अपने हजारों चाहने वालों के सामने स्टेज पर नमूदार हुई थी. तब लोग उसकी खूबसूरती और लटके-झटके को हसरत भरी निगाहों से देखते ही रह गए. उसने हमेशा की तरह महंगा बॉलगाउन पहन रखा था. कानों में हीरे के लंबे-लंबे झूलते हुए झुमके चमक बिखेर रहे थे. होठों पर चटख सुर्ख लिपस्टिक लगी थी. इस लुक में उसकी उम्र का अंदाजा लगाना सहज नहीं था कि वह 36 साल की है. उसकी एक-एक चाल, बोलने की शैली और अदाओं से संभ्रांतता झलक रही थी.   वह पूरे जोश में थी. हाथ में माइक थामे स्टेज पर झूमती हुई अपने चाहने वालों को रुजा ने इस आयोजन का खास मकसद बताया था. उसने छोटे से अभिभाषण में वनकाॅइन की खूबियां गिनावाते हुए कहा था कि उसने एक ऐसी डिजिटल करेंसी इजाद की है, जो बहुत जल्द ही दुनिया की सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी बनने वाली है. आने वाले दिनों में सारी दुनिया में हर कोई इसी वर्चुअल करेंसी के सहारे पैसे का भुगतान करेगा. औनलाइन ट्रांजेक्शन में वहकाॅइन का ही सिक्का चलेगा, क्योंकि यह काफी सुरक्षित और आसानी से इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी है.

उपस्थित लोग उसकी बातों पर आखिर क्यों नहीं भरोसा करते? उसने दावे के साथ कहा था कि भले ही दुनिया की पहली क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन भले ही आज सबसे ज्यादा जानी-पहचानी जाती हो, लेकिन अब इससे अच्छी नई करेंसी वनकाॅइन आ गई है. इसके आगे बिटकाॅइन नहीं टिकने वाली है. रुजा ने समझाया था कि वनकौइन, बिटकौइन की खामियों को खत्म करने वाली अद्भुत डिजिटल करेंसी है. आने वाले दिनों में कोई भी बिटकौइन का जिक्र तक नहीं करेगा. इसका प्रमाण है कि दुनिया भर में लोग वनकॉइन को एक नई क्रांति मान कर इसमें पैसा लगा रहे थे.

इस लुभावने दावे का जबरदस्त असर हुआ. रुजा की सभी तरह की मीडिया में जबरदस्त तारीफ हुई. उसने जैसा चाहा था वैसा ही परिणाम आया. इस बारे में बीबीसी को मिले दस्तावेजों के मुताबिक 2016 के पहले छह महीने में ही ब्रिटेन के नागरिकों ने वनकौइन में करीब 3 करोड़ यूरो का निवेश कर दिया था. इसमें 20 लाख यूरो तो महज एक हफ्ते में ही निवेश किए जा चुके थे. रुजा ने वनकौइन को लेकर वेम्बले में हुए भव्य कार्यक्रम के बाद तो जैसे निवेश के लिए लोगों को एक तरह से राजी करते हुए जाल बिछाकर दाना डाल दिया था.

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प्राप्त जानकारी के अनुसार अगस्त 2014 से मार्च 2017 के बीच दुनिया भर के कई देशों से करीब चार अरब यूरो का निवेश वनकौइन में किया गया था. इसमें भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्ला देश और ब्राजील, दक्षिण अफ्रीकी देशों से लेकर हौन्गकौन्ग, नौर्वे, क्यूबा, यमन यहां तक कि फिलस्तीन जैसे देशों के नागरिक भी शामिल थे. हैरत की बात यह थी कि वनकॉइन में धड़ाधड़ निवेश कर रहे लोग इससे की जा रही धोखाधड़ी से अनभिज्ञ थे.

बिटकौइन बनाम वनकौइन 

कुछ लोग काफी समय से एक ऐसी करेंसी विकिसत करने की कोशिश में लगे थेे, जिस पर किसी सरकार की पाबंदी नहीं हो. इसी सिलसिले में डिजिटल करेंसी बिटकाॅइन इजाद किया गया. इसे सुरक्षित होने और इसमें किसी भी तरह की जालसाजी की संभावना नहीं पाए जाने के प्रति लोगों को आश्वस्त किया गया. टेक्नोलौजी के जमाने में एक खास तरह के डेटाबेस पर आधारित बिटकौइन ने लोगों के इस डर को खत्म कर दिया था.

करेंसी की दुनिया में तकनीकी तौर पर इसे ब्लौकचेन कहते हैं. ये एक बड़ी सी डायरी की तरह होता है. एक ब्लौकचेन उसके मालिक के पास होता है, लेकिन इससे अलग इस ब्लॉकचेन की कई कौपी होती हैं. हर बार जब भी किसी और को एक भी बिटकौइन भेजा जाता है, तो इसका लेखा-जोखा सभी बिटकॉइन मालिकों के पास मौजूद बिटकौइन रिकौर्ड बुक में दर्ज हो जाता है. इस रिकौर्ड में कोई भी किसी भी तरह का बदलाव नहीं कर सकता. यहां तक कि इस ब्लौकचेन का मालिक या फिर इस रिकॉर्ड बुक को तैयार करने वाला भी इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकता.

इसके पीछे जटिल गणित काम करता है, जिसे हर कोई आसानी से नहीं समझ सकता है. इस कारण इसे पूरी तरह से सुरक्षित समझना एक भूल हो सकती है. इसकी खामियां भी है. इसकी न केवल कौपी हो सकती है, बल्कि इसे हैक भी किया जा सकता है. या फिर इनका दो बार इस्तेमाल तक हो सकता है. इन खामियों के बावजूद कारोबार की दुनिया में बिटकौइन एक तरह की क्रांतिकारी डिजिटल करेंसी मानी गई, जिसके इस्तेमाल की मान्यता भारत में भी है. हालांकि इसे प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 4 मार्च को इसके इस्तेमाल की कानूनी मान्यता दे दी है. इस तहर के क्रिप्टोकरेंसी में तमाम बैंकों और राष्ट्रीय मुद्रा को पीछे छोड़ने की क्षमता के कारण इसकी बदौलत निवेशकों को फोन पर ही बैंकिंग की सुविधा मिलने लगी. कारोबारियों को किसी भी करेंसी में पैसे के  लेन-देन की सहुलियत मिल गई. इस पंक्ति के लिखे जाने तक एक बिटकौइन की कीमत 5,11,272 रुपया थी. डा. रुजा ने इसी मौके को भुनाने का मन बनाया था और लोगों को सपने बेचने की योजना बना डाली.

इसके लिए रुजा की कंपनी को एक ऐसे शख्स की तलाश थी, जो ब्लौकचेन तैयार कर सके. उनकी कंपनी ने ब्लौकचेन बनाने में माहिर एक साफ्टवेयर डेवलपर ब्योन बियर्क से संपर्क किया. अक्टूबर 2016 में बियर्क के पास एक फोन आया. फोन करने वाले ने इन्हें नौकरी की पेशकश की. इस ऑफर में बियर्क को रहने के लिए घर, कार और सालाना ढाई लाख पौंड की तनख्वाह का प्रस्ताव दिया गया. फोन करने वाले ने अपनी कंपनी के बारे में बताया कि ये पूर्वी यूरोपीय देश बुल्गारिया की एक क्रिप्टोकरेंसी स्टार्ट-अप है. कंपनी को एक तजुर्बेकार टेक्निकल चीफ की जरूरत है.

ब्योर्न बियर्क उस नौकरी की पेशकश करने वाले से जब पूछा कि कंपनी में उसका काम क्या होगा, तब जवाब मिला कि कंपनी के लिए ब्कौचेन तैयार करनी है. कपंनी के कार्य के बारे में बताया गया कि वह एक क्रिप्टोकरेंसी कंपनी है, जो पिछले कुछ ही समय से काम कर रही है. कंपनी का नाम वनकॉइन बताया गया. यह सुनते ही ब्योर्न बियर्क ने नौकरी की ये पेशकश ठुकरा दी.

उन्हीं दिनों गलास्गो की रहने वाली जेन मेकएडम को उसके एक दोस्त ने वनकाॅइन के बारे में बताया. जेन ने अपना कंप्यूटर ऑन किया और दोस्त द्वारा भेजे गए एक लिंक पर क्लिक कर वनकौइन के औनलाइन वेबिनार सेमिनार को देखा. करीब सवा घंटे के वीडियो में उसने क्रिप्टोकरेंसी के बारे में जाना. साथ ही वह डा. रुजा के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हो गई. उसने महसूस किया कि उसकी भी किस्मत बदल सकती है. सेमिनार में सभी लोग बहुत खुश थे. सभी अपने अनुभव सुनाते हुए एक ही बात बता रहे थे कि कैसे उनकी किस्मत बदल सकती है. वीडियो में यह भी कहा गया कि वह बहुत खुशकिस्मत हैं कि उसे इससे जुड़ने का अवसर मिला है.

औनलाइन सेमिनार में डा. रुजा के बारे में जबरदस्त तरीके से बताया गया था. रुजा ने औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी. उन्होंने कोन्सतान्ज से पीएच-डी की डिग्री हासिल की थी. उन्होंने मैकिन्से एंड कंपनी में मैनेजमेंट सलाहकार के तौर पर काम भी किया था. सबसे बड़ी बात यह थी कि इस सेमिनार को जानी-मानी पत्रिका दी इकॉनोमिस्ट द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें  डॉ. रुजा को कंफ्रेंस के जरिए ऑनलाइन दिखाया गया था.

वीडियो देखने के बाद जेन डॉ.रुजा के सशक्त महिला के किरदार से बेहद प्रभावित हो गई थी. यहां तक कि उसने तुरंत वनकॉइन में एक हजार यूरो निवेश करने का फैसला भी कर लिया था. ये बहुत ही आसान था. इसके लिए आॅनलाइन एक वनकॉइन टोकन खरीदने की जरूरत थी, जो  वनकॉइन करेंसी में बदल जाएगा और आईडी अकाउंट में आ जाएगा. उन्हें बताया गया कि एक दिन ऐसा आएगा जब जेन अपने खरीदे गए वनकॉइन को यूरो और पाउंड में तब्दील कर देगी, जो जमा की गई रकम से कहीं ज्यादा होगी. जेन मैकएडम को लगा कि ये तो पैसे कमाने का शानदार और आसान तरीका है. इस बेहतरीन क्रिप्टोकरेंसी में निवेश के लिए शायद एक हजार यूरो कम हैं. यह उसकी जिंदगी में काफी बदलाव लाने का मौका मिला है.

उत्साही जेन को देख कर प्रमोटर ने बताया कि सबसे छोटा पैकेज 140 यूरो का था. लेकिन, उनके पास तो एक लाख 18 हजार यूरो तक के पैकेज भी हैं. यानी वह छप्परफाड़ मुनाफा कमा सकती है. एक हफ्ते बाद ही जेन मैकएडम ने पांच हजार यूरो का टाइकून पैकेज खरीद लिया. जल्द ही ऐसा समय भी आया जब जेन ने न केवल अपने दस हजार यूरो वनकॉइन में लगा ही दिए, बल्कि अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों के भी करीब ढाई लाख यूरो का निवेश इस नई क्रिप्टोकरेंसी में कर दिया था.

उसके बाद वह बार-बार वनकॉइन की वेबसाइट देखने लगी. जैसे ही उनके वनकाॅइन की कीमत बढ़ती, वह जबरदस्त खुशी महसूस करती. जल्द ही जेन के वनकॉइन की कीमत एक लाख पाउंड पहुंच गई. यानी उनके निवेश से दस गुना ज्यादा रिटर्न मिलने वाला था. इस रकम को देख कर जेन छुट्टियों पर जाने और ढेरसारी शॉपिंग करने की योजनाएं बनाई. उसी साल के आखिर में एक अजनबी ने इंटरनेट के माध्यम से जेन मैकएडम से संपर्क किया. उसने कहा कि वह लोगों की मदद करना चाहता है. उसने जेन से यह भी कहा कि उसने वनकॉइन के बारे में गहराई से पड़ताल की है और अब उनलोगों से बात करना चाहता है, जिन्होंने  इसमें निवेश किया है.

जेन ने बड़ी अनिच्छा से उस व्यक्ति से स्काइप के जरिए बात करने के लिए हामी भरी. उनकी बातचीत सहजता और शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुई, लेकिन बहुत जल्द ही वे एक-दूसरे पर तीखी टिप्पणियां करने लगे, जो चिल्लाने के मुकाबले से कम नहीं थे. हालांकि उस अजनबी से हुई बातचीत ने जेन की जिंदगी को एक नई दिशा में मोड़ दिया. अजनबी का नाम टिमोथी करी था. वह बिटकॉइन में दिलचस्पी रखने वाला व्यक्ति था. वह क्रिप्टोकरेंसी की जमकर वकालत करता था. उसका कहना था कि वनकॉइन की वजह से क्रिप्टोकरेंसी बदनाम हो जाएंगी. यही कारण था कि उसने जेन मैकएडम को दो टूक शब्दों में कहा था कि वनकॉइन असल में एक घोटाला है. उसने काफी कड़े शब्दों में गाली देते हुए कहा था कि यह दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला है. यही नहीं उसने ये भी कहा कि वह इस बात को साबित भी कर सकता है. इस पर जेन भड़क गई थी और उन्होंने तीखे लहजे में कहा,‘‘ ठीक है, फिर तुम मुझे साबित कर के दिखाओ.’’

उसके बाद कुछ हफ्तों तक टिमोथी करी ने जेन को डिजिटल करेंसी के बारे में ढेर सारी जानकारियां भेजी. उन्हें बताया कि क्रिप्टोकरेंसी कैसे काम करती है. टिमोथी ने इस संबंध में जेन को कई लिंक, लेख, यू-ट्यूब वीडियो और दूसरी सामग्री भेजे. टिमोथी ने जेन का संपर्क क्रिप्टोकरेंसी के एक्सपर्ट ब्योर्न बियर्क से कराया. ब्योर्न एक ब्लॉकचेन के डेवेलपर हैं. उन्होंने ही जेन को बताया कि वनकॉइन के पास कोई ब्लॉकचेन नहीं है.

जेन मैकएडम अब अपने पैसे डूबने की आशंका से डर गई थी. उन्हें टिमोथी की भेजी सारी जानकारी पढ़ने-सुनने और समझने में करीब तीन महीने का समय लग गया. क्रिप्टोकरेंसी की तमाम जानकारियां मिलने के बाद जेन ने अपने वनकॉइन ग्रुप के लीडर से पूछा कि क्या वनकाॅइन की कोई ब्लॉकचेन है? या फिर नहीं है. शुरू में तो उसे ये बताया गया कि उसे इस बारे में जानने की जरूरत ही नहीं है, लेकिन, जब जेन ने जोर देकर ये बात जाननी चाही, तो उसे आखिर में इसकी हकीकत का पता चला. इस सच के बारे में जेन को अप्रैल 2017 में एक वॉयसमेल के जरिए मालूम हुआ. वह वाॅयस मेल था-‘‘ ठीक है… जेन! वे ये जानकारी लोगों को नहीं देना चाहते, क्योंकि इस बात का डर है कि जहां पर ब्लॉकचेन को रखा गया है, उसे कोई खतरा नहीं हो. इसके अलावा, एक एप्लिकेशन के तौर पर इसे किसी सर्वर की जरूरत नहीं है…. … तो, हमारी ब्लॉकचेन तकनीक असल में एक एसक्यूएल सर्वर है, जिसका अपना डेटाबेस है.’’

इस जानकारी के मिलने पर जेन को टिमोथी और ब्योर्न बियर्क की मदद से यह भी मालूम हुआ कि कोई मानक एसक्यूएल सर्वर डेटाबेस के आधार पर असल में कोई क्रिप्टोकरेंसी विकसित ही नहीं की जा सकती. क्योंकि इस डेटाबेस का मैनेजर कभी भी इसके भीतर जाकर बदलाव कर सकता है. यह जानकारी जेन के लिए सदमे जैसी थी. उन्होंने बताया कि ‘‘मैंने तो ऐसा सोचा ही नहीं था. ये क्या हो गया?… और मेरे पांव सुन्न हो गए. मैं जमीन पर गिर पड़ी.’’

जेन, टिमोथी और ब्योर्न की सभी बातों का एक ही मतलब था कि वनकॉइन की वेबसाइट पर बढ़ रहे नंबरों का कोई मतलब नहीं था. वे केवल आंकड़े भर थे, जिन्हें वनकॉइन का कोई कर्मचारी कहीं दूर बैठकर कंप्यूटर पर टाइप कर रहा था. जेन और उन के दोस्तों, परिजनों ने अपनी पैसे की फिक्र को दूर करने के बजाय, अपनी सारी रकम, यानी करीब ढाई लाख यूरो वनकॉइन में झोंक दिए थे.

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लापता हो गई रुजा

जेन मैकएडम भले ही वनकाॅइन के जरिए ठगी की कड़वी सच्चाई को जान चुकी थी, लेकिन वनकॉइन के अधिकतर निवेशकों को इसकी हकीकत के बारे में नहीं मालूम था. दूसरी तरफ वनकॉइन की मार्केटिंग के लिए डॉ. रुजा पूरी दुनिया की सैर कर रही थीं. वह पूरी दुनिया में सपने बेचकर पैसा कमाने में लगी हुई थी. मकाऊ से लेकर दुबई और सिंगापुर तक. उन्हें देखने के लिए बड़े-बड़े स्टेडियम भर जाते थे. उसका आकर्षण ही ऐसा था कि नए-नए निवेशक वनकॉइन में पैसे लगाने के लिए तुरंत तैयार हो जाते थे. यह कहें कि वनकॉइन का तेजी से विस्तार हो रहा था. रुजा अपनी इस कमाई से नई-नई संपत्तियां खरीद रही थी. उन्होंने बुल्गारिया की राजधानी सोफिया और काला सागर के किनारे स्थित शहर सोजोपोल में लाखों डॉलर की संपत्ति खरीदी थी. अपने खाली समय में में रुजा अपनी महंगी और आलीशान याट, द डेविना में बड़ी-बड़ी दावतें देती थीं. जुलाई 2017 में हुई ऐसी ही एक पार्टी में अमरीकी पॉप स्टार बेब रेक्चा ने भी एक निजी कार्यक्रम पेश किया था.

रुजा की बेहद कामयाबी का राज जल्द ही लोगों की निगाह में आ गया. हजारों निवेशकों को उसके द्वारा किए गए निवेश को लेकर चिंता गहराने लगी. नतीजा वनकॉइन के साम्राज्य में मुश्किलों का तूफान उमड़ने लगा. वनकॉइन के क्वाइन को असली नकदी में बदलने के लिए एक एक्सचेंज खोलने का वादा किया गया था. लेकिन, उसमें बार-बार देर हो रही थी. यूरोपीय निवेशकों की चिंताएं बढ़ने का यही कारण भी था.

पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में रुजा को अक्टूबर 2017 में एक कार्यक्रम में आना था. लेकिन, समय की बेहद पाबंद डॉ. रुजा नहीं आईं. इस सम्मेलन में शामिल हुए एक प्रतिनिधि ने बताया कि वह रास्ते में हैं. जबकि किसी को भी उसके बारे नहीं पता था कि वह कहां है. आयोजक और दूसरे प्रतिनिधियों द्वारा उसे बार-बार फोन कॉल किए जा रहे थे. मैसेज भेजे जा रहे थे. उन्हें कोई जवाब नहीं मिल पा रहा था. सोफिया स्थित वनकॉइन के मुख्यालय , जहां पर उनकी मौजूदगी लोगों में एक खौफ पैदा करती थी, के अधिकारियों को भी नहीं पता था कि रुजा कहां हैं? कुल मिलाकर डॉ. रुजा गायब हो गई थीं. कुछ लोगों को ये डर था कि या तो रुजा को बैंकों ने अगवा कर लिया है, या फिर उसे मार दिया गया है. उन्हें बताया गया था कि क्रिप्टोकरेंसी की इस क्रांति से बैंकों को ही सब से ज्यादा खतरा है. जबकि हकीकत ये थी कि डॉ. रुजा अंडरग्राउंड हो गई थीं.

डा.रुजा के अंडरग्राउंड होने की वजह थी उसके खिलाफ एफबीआई को मिली शिकायतें. एफबीआई के दस्तावेजों के अनुसार लिस्बन के सम्मेलन में नहीं शामिल होने के मात्र दो हफ्ते बाद रुजा रियान एयर की एक फ्लाइट से सोफिया से एथेंस के लिए रवाना हुई थी. उसके बाद उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. वह आखिरी बार था, जब रुजा को किसी ने देखा या उसके बारे में सुना था.

मल्टी लेवल मार्केटिंग की काली दुनिया

यह सारा मामला मल्टी लेवल मार्केटिंग की काली दुनिया से जुड़ा हुआ है. इंटरनेट के आने से इसका फैलाव काफी दूर-दूर तक हो चुका है. नेटवर्किंग और टेक्नोलाॅजी ने सारी बाध्यताएं खत्म कर दी है. जेना की तरह इगोर अल्बर्ट्स भी वनकाॅइन से जुड़े रहे हैं. वे मल्टी लेवल मार्केटिंग के धुरंधर माने जाते हैं. इस धंधे में उसने काफी धन कमाया है. वे नीदरलैंड के एम्सटर्डम के बाहरी हिस्से में स्थित बेहद पॉश इलाके में एक विशाल मकान में रहते हैं. उनकी कोठी के सामने 10 फुट ऊंचा लोहे का फाटक लगा है. इस पर इगोर और उनकी पत्नी एंड्रिया का नाम खुदा हुआ है. साथ ही लिखा है, ‘पता नहीं कौन सा ख्वाब पूरा हो.’ कोठी के बाहर महंगी कारें मासेराती और एस्टन मार्टिन खड़ी रहती है. यह सब उसने मल्टी लेवल मार्केटिंग से ही अर्जित की है. एक समय में इगोर अल्बर्ट्स की परवरिश एक गरीब मुहल्ले में हुई थी. उस के बाद वे नेटवर्क मार्केटिंग या मल्टीलेवल मार्केटिंग के कारोबार से जुडकर खूब कमाई की. ढेर सारे पैसे कमाए. उसका दावा है कि उसने पिछले तीस सालों में मल्टी लेवल मार्केटिंग से करीब 10 करोड़ यूरो कमाए हैं.

मल्टी लेवल मार्केटिंग के काम करने का तरीका अनोखा है, जिसे गैरकानूनी करार नहीं दिया जा सका है. इसकी शुरूआत सामान्यतः हेल्थ-वेल्थ सुधारने वाली विटामिन या दूसरी हर्बल की दवाइयों से हुई. उसे सीधे बेचने के बजाय पहले दो लोगों को बेची जाती है. बिक्री से मार्केटिंग कंपनी और उत्पादक को मुनाफे के कुछ पैसे मिल जाते हैं. फिर दोनों व्यक्ति मार्केटिंग की चेन बनते हैं. वे जो भी बेचते हैं, उसका एक हिस्सा कंपनी को मिल जाता है. वे टीम की डाउनलाइन कहलाते हैं. इसी तरह से दोनों दो-दो और लोगों को अपने साथ जोड़ते हैं. फिर ये चारों भी अपने साथ दो-दो और लोगों को जोड़ लेते हैं. इस तरह से ये कड़ी बढ़ती चली जाती है. बहुत जल्द ही ये सिलसिला काफी बड़ा बन जाता है. उदाहरण के तौर पर वह इतना बड़ा बन सकता है कि 25-30 कड़ियों बाद दिल्ली जैसे महानगर के हजारों नागरिक दवाई की गोलियां बेचते नजर आ सकते हंै. इस सिलसिला या डाउनलाइन को शुरू करने वाले को सभी की बिक्री में से एक हिस्सा मिलता रहता है.

मल्टी लेवल मार्केटिंग अवैध नहीं मान गई है. इस धंधे में एमवे और हर्बालाइफ जैसी बड़ी कंपनियां इसी कारोबारी तरीके से अपने कारोबार का विस्तार कर चुकी है. परंतु हां, मल्टीलेवल मार्केटिंग विवादास्पद भी है. क्योंकि, आम-तौर पर बहुत कम लोग ही सारा मुनाफा हड़प लेते हैं. बहुतों को नुकसान होता है और वे हाथ मलते रह जाते हैं. ऐसी मार्केटिंग में मुनाफे के बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं और अधिकाधिक बिक्री का दबाव बनाया जाता है. यही इसकी बदनाम का कारण भी है. कई मामले में जब सारा पैसा केवल दूसरे लोगों को इस कड़ी से जोड़ कर ही कमाया जाता है, तो ये अवैध हो जाता है. इसे ही पिरामिड योजना के नाम से जाना जाता है.

इगोर अल्बट्र्स जब मई 2015 में ऐसी ही एक मार्केटिंग के तौर स्थापित हो चुके थे, तब उन्हें दुबई में वनकॉइन के एक कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था. दुबई में इगोर की मुलाकात काफी  लोगों से हुई थी. सभी नई डिजिटल करेंसी से काफी धन कमाने का इरादा रखते थे. वहीं डॉ. रुजा ने भी इगोर को प्रभावित किया. वहां वह एक राजकुमारी के लिबास में शामिल हुई थीं. उन्होंने लोगों को एक वित्तीय क्रांति के सपने दिखाए. इगोर को रुजा की स्कीम पसंद आई और नए मिशन की तैयारी में जुट गया. उन्होंने अपनी सेल्स टीम को निर्देश दिया कि उसके द्वारा किए जा रहे काम को रोककर केवल वनकॉइन बेचना शुरू करे. इगोर अपनी टीमों के साथ दीवानों की तरह काम करते हुए पहले महीने में ही शून्य से 90 हजार यूरो की रकम बना ली.

रुजा को इगोर जैसे मार्केटिंग करने वालों की ही तलाश रहती थी, ताकि उसे बड़ी-बड़ी डाउनलाइन या टीमों वाले मल्टीलेवल मार्केटिंग के कारोबारियों को अपने धंधे में शामिल कर सके.   उनके जरिए रुजा के लिए फर्जी सिक्के की मार्केटिंग करना और उसको बेच पाना बहुत आसान था. इस योजना के बारे में एफबीआई ने दावा किया है कि रुजा कुछ खास लोगों के बीच ही मल्टी लेवल मार्केटिंग से गठजोड़ करती थी. उसकी वनकॉइन की कामयाबी का यही राज था. ये केवल एक फर्जी क्रिप्टोकरेंसी भर नहीं थी, बल्कि पुराने तौर-तरीके वाली पिरामिड योजना थी. इसका उत्पाद   वनकॉइन का फर्जी डिजिटल सिक्का था.

बहुत जल्द ही इगोर अल्बर्ट्स वनकॉइन बेचकर हर महीने दस लाख यूरो से भी अधिक कमाई करने लगा. जल्द ही वह नेटवर्क मार्केटिंग का सबसे बड़ा उत्पाद बन गया. इस बारे में इगोर अल्बर्ट्स  का कहना है कि बहुत कम समय में यह लोकप्रिय हो गया. कोई और कंपनी तो इसके आस-पास भी नहीं पहुंच सकी. इगोर अल्बर्ट्स पत्नी एंड्रिया सिम्बाला के साथ मिलकर वनकॉइन बेचे. उन्होंने जो कमाई की उसका 60 फीसद हिस्सा नकद में भुगतान किया गया. अंतिम दिनों में ये रकम हर महीने करीब बीस लाख यूरो के आस-पास थी. बाकी का भुगतान उन्हें वनकॉइन के तौर पर किया जा रहा था. इगोर ने बिल गेट्स से भी धनी बनने का गणित बिठाया था. इसके लिए उसने एंड्रिया से 10 करोड़ सिक्के जुटाने के लिए कहा था. क्योंकि 10 करोड़ सिक्के 10 करोड़ यूरो में तब्दील होने वाले थे. खैर इगोर का भी यह सपना जेना की तरह चूर हो गया.

इगोर ने भी कंपनी से ब्लॉकचेन होने का सबूत मांगा था. उन्हें भी कोई सबूत मिला और दिसंबर 2017 में उसने वनकॉइन का साथ छोड़ दिया. इस मामले में इगोर खुद को मुजरिम नहीं मानता, क्योंकि उन्होंने इतने सारे लोगों को ऐसे सिक्के में निवेश करने के लिए राजी किया, जो असल में था ही नहीं. जबकि इसके जरिए खूब पैसा भी कमाया. इसके विपरीत  जेन के दिल पर बहुत बड़ा बोझ है, क्योंकि उन्होंने वनकॉइन बेच कर मात्र तीन हजार यूरो ही कमाए. इनमे 1800 यूरो उन्हें नकद मिले. इस रकम को भी उन्होंने वनकॉइन खरीदने में खर्च कर दिए. भारत में ऐसी मार्केटिंग करने वालों को तो पता ही नहीं होता है कि उसका सरगना कौन है. वे इगोर या उसके नीचे काम करने वाले सेल्स के लोगों से जुड़े होते हैं. उनकी वेबसाइटें खुलती-बंद होती रहती हैं. लोग जितना कमाते हैं उतना ही दूसरों का पैसा गंवा देते हैं.

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वनकाॅइन की कार्पोरेट बुनावट

वनकॉइन की कॉरपोरेट बुनावट जितनी पेचीदा थी, रुजा उतनी ही निर्भिक. उसने बुल्गारिया की राजधानी सोफिया के बीचो-बीच एक विशाल संपत्ति खरीदी थी. तकनीकी रूप से इस संपत्ति पर वन प्रॉपर्टी नाम की कंपनी का मालिकाना हक था. वन प्रॉपर्टी की मालिक एक और कंपनी थी, जिसका नाम रिस्क लिमिटेड था. इस रिस्क लिमिटेड की मालकिन रुजा थीं. जबकि उन्होंने ये कंपनी पनामा के रहने वाले किसी गुमनाम व्यक्ति के नाम कर दी थी. मजे की बात ये है कि कंपनी तो पनामा के उस अनजान शख्स के नाम हो गई, मगर इसका प्रबंधन पेरागॉन नाम की कंपनी के पास था. पेरागॉन की मालकिन एक और कंपनी थी, जिसका नाम था आर्टेफिक्स. उसकी मालकिन रुजा की मां वेस्का थीं. फिर 2017 में आर्टेफिक्स को 20 साल के आस-पास की उम्र के एक अनजान शख्स को बेच दिया गया था. एक फ्रेंच पत्रकार मैक्सिम ग्रिम्बर्ट ने कई महीनों तक वनकॉइन की कॉरपोरेट संरचना को समझने की कोशिश की. उन्होंने इससे जुड़ी अधिक से अधिक कंपनियों के नाम और बैंक के खातों का पता लगाने की कोशिश की. रुजा के आसानी से छिप जाने या लापता होने के लिए इतना ही काफी है. इस मामले की तह में जाने के प्रयास में जुटे बीबीसी के पत्रकार और मनीलैंड के विशेषज्ञों के अनुसार अक्सर ऐसे फर्जीवाड़े करने वाले ब्रितानी कंपनियों को ही तरजीह देते हैं. क्योंकि उन्हें खड़ी करना आसान होता है और वो कानूनी रूप से वैध भी लगती हैं.

बहरहाल, अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस का दावा है कि उसके पास इस घोटाले का पूर्वी यूरोप के संगठित आपराधिक गिरोहों के अहम लोगों और रुजा के भाई कॉन्सटैंटिन इग्नातोव से ताल्लुक के सबूत हैं. रुजा के लापता होने के बाद वनकॉइन को चलाने का काम उसके भाई कॉन्सटैंटिन ने अपने हाथ में ले लिया था. कॉन्सटैंटिंन इग्नातोव 6 मार्च 2019 को वनकाॅइन से जुड़ी कुछ बैठकों में शामिल होने के लिए अमेरिका आया था. उस दिन वह लॉस एंजेलेस हवाई अड्डे पर मौजूद था. हवाई अड्डे पर बुल्गारिया वापस जाने की फ्लाइट पकड़ने का इंतजार कर रहा था. उसके विमान पर सवार होने से पहले ही एफबीआई के एजेंटों ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया. उसपर वनकॉइन के फर्जीवाड़े के आरोप लगाए गए. उसी समय अमरीकी अधिकारियों ने डॉक्टर रुजा पर उन की गैरमौजूदगी में डिजिटल फर्जीवाड़े, सुरक्षा के फर्जीवाड़े और मनी लॉन्डरिंग के अभियोग भी लगाए. हैरत की बात यह है कि रुजा के भाई की गिरफ्तारी और उसके फरार घोषित होने के बावजूद वनकॉइन के काम का सिलसिला जारी है. वनकॉइन के दफ्तर में चहल-पहल बनी हुई है.

Best of Manohar Kahaniya: हवस की खातिर मिटा दिया सिंदूर

ढेलाणा गांव के बहुचर्चित संतोष हत्याकांड की अदालत में करीब 2 साल तक चली सुनवाई के बाद  माननीय न्यायाधीश ने 10 जुलाई, 2017 को फैसला सुनाने का दिन मुकर्रर कर दिया. लिहाजा उस दिन जोधपुर के अपर सेशन न्यायाधीश नरेंद्र सिंह मालावत की अदालत दर्शकों से खचाखच भरी हुई थी.

जज साहब के अदालत में बैठने के बाद लोग आपस में कानाफूसी करने लगे. जज साहब ने अपने सामने रखे फैसले के नोट्स व्यवस्थित किए तो फुसफुसाहटें थम गईं और अदालत में एक पैना सन्नाटा छा गया. सभी के दिमाग में एक ही सवाल घूम रहा था कि पता नहीं रामेश्वरी और उस के प्रेमी भोम सिंह को क्या सजा मिलेगी.

इन दोनों ने जिस तरह का अपराध किया था, उसे देखते हुए लोग चाह रहे थे कि उन्हें फांसी होनी चाहिए. आखिर रामेश्वरी और भोम सिंह ने ऐसा कौन सा अपराध किया था, जिस की सजा को जानने के लिए तमाम लोग अदालत में समय से पहले ही पहुंच गए थे. यह जानने के लिए हमें घटना की पृष्ठभूमि में जाना होगा.

राजस्थान के जिला जोधपुर के लोहावट थाने में 12 फरवरी, 2015 को कुनकुनी दोपहरी में अच्छीखासी गहमागहमी थी. एडिशनल एसपी सत्येंद्रपाल सिंह एसडीएम राकेश कुमार के साथ थाने के दौरे पर थे. उस समय दोनों अधिकारी थाने में एक जरूरी मीटिंग ले रहे थे. मीटिंग इलाके में बढ़ती आपराधिक वारदातों को ले कर बुलाई गई थी.

मीटिंग में सीओ सायर सिंह तथा लोहावट के थानाप्रभारी निरंजन प्रताप सिंह भी मौजूद थे. मीटिंग के दौरान ही थाने के बाहर हो रहे शोर की ओर अचानक अधिकारियों का ध्यान गया. शोर थमने के बजाय तेज होता जा रहा था. एडिशनल एसपी ने थानाप्रभारी को शोर के बारे में पता लगाने का इशारा किया. थानाप्रभारी तुरंत यह कहते हुए बाहर की तरफ लपके, ‘‘सर, मैं पता करता हूं.’’

कुछ ही मिनटों में थानाप्रभारी बड़ी अफरातफरी में लौट आए. उन्होंने बताया, ‘‘सर, बाहर सुतारों की बस्ती के कुछ लोग हैं, जो किसी के कत्ल की रिपोर्ट लिखाने आए हैं. जब उन्हें कुछ देर इंतजार करने को कहा तो वे बुरी तरह उखड़ गए. वे मीटिंग से पहले रिपोर्ट लिखाने की मांग कर रहे हैं.’’

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थानाप्रभारी की बात सुनने के बाद एडिशनल एसपी के चेहरे पर उत्सुकता जाग उठी. सहमति जानने के लिए उन्होंने एसडीएम राकेश कुमार की ओर देखा और फिर थानाप्रभारी से बोले, ‘‘ठीक है, उन में से 1-2 खास लोगों को बुला लाओ.’’

थानाप्रभारी भीड़ में से एक आदमी को बुला लाए. एएसपी ने उस अधेड़ शख्स को कुरसी पर बैठने का इशारा किया. उस के बैठने के बाद उन्होंने पूछा, ‘‘बताओ, क्या मामला है?’’

उस आदमी ने अपना नाम कैलाश बता कर बोला कि वह ढेलाणा गांव की सुतार बस्ती में रहता है. उस के घर के पास ही उस के चाचा संतोष का मकान है, जहां वह अपनी पत्नी रामेश्वरी और 3 बेटियों व एक बेटे के साथ रहते थे. चाची रामेश्वरी उर्फ बीबा के नाजायज संबंध गांव के ही भोम सिंह के साथ हो गए थे. इस की जानकारी संतोष को भी थी.

6 फरवरी से चाचा संतोष रहस्यमय तरीके से गायब हैं. चाचा के खून से सने अधजले कपड़े ग्रेवल रोड के पास पड़े हैं. इस से मुझे लगता है कि चाची ने भोम सिंह के साथ मिल कर चाचा की हत्या कर लाश को कहीं ठिकाने लगा दिया है.

एएसपी सत्येंद्रपाल सिंह कुछ देर तक फरियादी को इस तरह देखते रहे, जैसे उस की बातों की सच्चाई जानने का प्रयास कर रहे हों. इस के बाद एसडीएम राकेश कुमार से निगाहें मिला कर अपने मातहतों की तरफ देखते हुए बोले, ‘‘चलो, ग्रेवल रोड की ओर चल कर देखते हैं.’’

लगभग आधे घंटे में ही एएसपी पूरे अमले के साथ कैलाश द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गए. कैलाश ने हाथ का इशारा करते हुए कहा, ‘‘साहब, वो देखिए, वहां पड़े हैं कपड़े.’’

एएसपी समेत पुलिस अधिकारियों ने आगे बढ़ कर नजदीक से देखा तो उन्हें यकीन आ गया कि कैलाश ने गलत नहीं कहा था. वास्तव में ग्रेवल रोड की ढलान पर खून सने अधजले कपड़े पड़े थे. खून आलूदा कपड़ों से जाहिर था कि मामला हत्या का न भी था तो जहमत वाला जरूर था.

पुलिस को देख कर वहां गांव वालों की भीड़ लगनी शुरू हो गई. एएसपी ने थानाप्रभारी से कपड़ों को सील करने के आदेश दिए. इस के बाद कैलाश को करीब बुला कर तसल्ली करनी चाही, ‘‘तुम पूरे यकीन के साथ कैसे कह सकते हो कि ये कपड़े तुम्हारे चाचा संतोष के ही हैं?’’

‘‘साहब, आप एक बार रामेश्वरी और भोम सिंह से सख्ती से पूछताछ करेंगे तो हकीकत सामने आ जाएगी. दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’’ कैलाश ने हाथ जोड़ कर विनती के स्वर में कहा, ‘‘आप रामेश्वरी की बेटियों से पूछताछ करेंगे तो इस मामले में और ज्यादा जानकारी मिल सकती है.’’

थाने पहुंच कर एएसपी ने रामेश्वरी और उस की बेटियों मनीषा, भावना और अंकिता को थाने बुलवा लिया. पुलिस ने रामेश्वरी को अलग बिठा कर उस की बेटियों से पूछताछ की तो उन्होंने अपने पिता की नृशंस हत्या किए जाने का आंखों देखा हाल बयां कर दिया. उन्होंने बताया कि पापा की हत्या मम्मी और भोम सिंह ने की थी. तीनों बहनों की बात सुन कर सभी अधिकारी सन्न रह गए.

रामेश्वरी थाने में ही बैठी थी. एएसपी के आदेश पर थानाप्रभारी भोम सिंह के घर पहुंच गए. वह घर पर ही मिल गया. वह उसे गिरफ्तार कर के थाने ले आए. थाने में रामेश्वरी और उस के बच्चों को देख कर उस के चेहरे का रंग उड़ गया. वह समझ गया कि इन लोगों ने पुलिस को सब कुछ बता दिया होगा, इसलिए उस ने पुलिस पूछताछ में सारी कहानी बयां कर दी. उस ने बताया कि उसी ने तलवार से काट कर संतोष की हत्या की थी. भोम सिंह से पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

संतोष कुमार लकड़ी के इमारती काम का हुनरमंद कारीगर था. इस छोटी सी ढाणी में या आसपास उसे उस के हुनर के अनुरूप मजदूरी नहीं मिल पाती थी, इसलिए 2 साल पहले वह एक जानकार के बुलाने पर मुंबई चला गया था, जहां उसे अच्छाखासा काम मिल गया था.

संतोष के परिवार में पत्नी रामेश्वरी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा था. बेटा सब से छोटा था, जबकि बड़ी बेटी मनीषा 13 साल की है, भावना 10 साल की और अंकिता 8 साल की. संतोष काम के सिलसिले में ज्यादातर घर से बाहर ही रहता था.

इसी दौरान गांव के ही 28 साल के भोम सिंह के साथ 50 साल की रामेश्वरी का चक्कर चल गया. उस का रामेश्वरी के यहां आनाजाना बढ़ गया. भोम सिंह एक आवारा युवक था, इसलिए रामेश्वरी के ससुराल वालों ने उस के बारबार घर आने पर आपत्ति जताई. मोहल्ले के लोग भी तरहतरह की बातें करने लगे.

डर की वजह से कोई भी सीधे भोम सिंह से कहने की हिम्मत नहीं कर पाता था. संतोष कुमार जब मुंबई से लौटा, तब उसे लोगों के द्वारा पत्नी के कदम बहक जाने की जानकारी मिली. नतीजा यह हुआ कि संतोष ने रामेश्वरी की जम कर खबर ली.

इत्तफाक से भोम सिंह एक दिन ऐसे वक्त में रामेश्वरी से मिलने उस के घर आ टपका, जब घर में संतोष मौजूद था. संतोष तो पहले ही उस से खार खाए बैठा था. उस ने भोम सिंह को बुरी तरह आड़े हाथों लिया और उसे चेतावनी दे दी कि आइंदा वह इस घर की ओर रुख करेगा तो अच्छा नहीं होगा.

अच्छीखासी लानतमलामत होने के बावजूद भी भोम सिंह ने उस के घर आना न छोड़ा और न ही रामेश्वरी ने उसे घर आने से मना किया. संतोष की मजबूरी थी कि वह ज्यादा दिन छुट्टी नहीं ले सकता था और मुंबई में रिहायशी दिक्कत के कारण परिवार को साथ नहीं ले जा सकता था. लिहाजा उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे.

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एक बार संतोष ने पत्नी और भोम सिंह को फिर रंगेहाथों पकड़ लिया. लेकिन भोम सिंह फुरती से वहां से भाग गया. जातेजाते वह कह गया कि वह इस बेइज्जती का बदला ले कर रहेगा.

फरवरी, 2015 में संतोष मुंबई से घर लौटा. उस के आने के बाद रामेश्वरी की इश्क की उड़ान में व्यवधान पैदा हो गया. रास्ते में रोड़ा बने पति से छुटकारा पाने के बारे में उस ने प्रेमी से बात की. फिर दोनों ने संतोष को ठिकाने लगाने की योजना बना ली. उन्होंने तय कर लिया कि इस बार वे संतोष को ठिकाने लगा कर ही रहेंगे.

योजना के अनुसार 6 फरवरी, 2015 की आधी रात को भोम सिंह छिपतेछिपाते संतोष के घर पहुंच गया. उस समय संतोष गहरी नींद में सो रहा था, जबकि रामेश्वरी प्रेमी के आने के इंतजार में जाग रही थी. उसी समय भोम सिंह ने सोते संतोष के ऊपर तलवार से वार कर दिया.

संतोष की मर्मांतक चीख सुन कर तीनों बेटियां हड़बड़ा कर उठ बैठीं. वे भाग की भीतरी चौक में पहुंचीं और जो भयानक नजारा देखा तो उन्हें जैसे काठ मार गया. भोम सिंह उन के पिता पर तलवार से वार कर रहा था और वह गिरतेपड़ते छोड़ देने की मिन्नतें कर रहे थे. लेकिन उस शैतान का दिल नहीं पसीजा.

रामेश्वरी पास में खड़ी सब कुछ देख रही थी. मनीषा ने पिता को बचाने की कोशिश की तो भोम सिंह ने धमका कर उसे परे धकेल दिया और कहा कि अगर किसी को भी बताया तो तीनों को तलवार से काट देगा.

संतोष की हत्या के बाद भोम सिंह ने उस के कपड़े उतार दिए और लाश एक पौलीथिन में लपेट कर बोरी में भर दी. बाद में उस बोरी को एक ड्रम में डाल कर कमरे में रख दी.

इस के बाद भोम सिंह चला गया. अगले दिन रात को वह बैलगाड़ी ले कर आया, तब रामेश्वरी और भोम सिंह ने मिल कर ड्रम को गाड़ी में डाला. वे लाश को शिवपुरी रोड पर घने जंगल में दफन कर आए. रामेश्वरी ने घर लौटने के बाद रात को पति के खून सने कपड़े चूल्हे में डाल कर जलाने की कोशिश की, लेकिन कपड़े खून से गीले होने के कारण पूरी तरह से जल नहीं पाए. फिर 11 फरवरी की रात को रामेश्वरी अधजले कपड़ों को ग्रेवल रोड पर फेंक आई.

बाद में वह शोर मचाने लगी कि मेरे भरतार (पति) के खून सने कपड़े ग्रेवल रोड पर पड़े हैं, लेकिन उन का कहीं पता नहीं चल रहा है. उस की चीखपुकार सुन कर अड़ोसीपड़ोसी भी आ गए. उसी दौरान संतोष का भतीजा कैलाश भी आ गया. उस ने ग्रेवल रोड पर चाचा के खून सने अधजले कपड़े देखे तो उसे शक हो गया.

इस से पहले कैलाश व अन्य पड़ोसियों को संतोष कई दिनों तक दिखाई नहीं दिया तो पड़ोसियों ने भी रामेश्वरी से पूछा. पर रामेश्वरी ने यह कह कर टाल दिया कि यहीं कहीं होंगे. पर उस के जवाब से कोई संतुष्ट नहीं था. बच्चों ने बताया कि डर की वजह से उन्होंने भी मुंह नहीं खोला.

भोम सिंह और रामेश्वरी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर संतोष की लाश और तलवार बरामद कर ली. पुलिस ने सारे सबूत जुटा कर दोनों अभियुक्तों के खिलाफ भादंवि की धारा 450, 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें जेल भेज दिया.

पुलिस ने फोरैंसिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट व अन्य साक्ष्यों के अलावा निर्धारित समय में आरोपपत्र तैयार कर कोर्ट में पेश कर दिया. करीब 2 सालों तक अदालत में केस की सुनवाई चली. तमाम साक्ष्य पेश करने के साथ गवाह भी पेश हुए. 10 जुलाई, 2017 को न्यायाधीश नरेंद्र सिंह मालावत ने केस का फैसला सुनाने का दिन निश्चित किया.

सजा सुनाने के पहले माननीय न्यायाधीश नरेंद्र सिंह ने कहा कि अभियोजन पक्ष प्रत्यक्षदर्शी साक्ष्यों, परिस्थितिजन्य साक्ष्यों एवं बरामदगियों से इस घटना की कड़ी से कड़ी जोड़ने में सफल रहा है. इसी प्रकार घटना से ताल्लुक रखती फोरैंसिक रिपोर्ट में मकतूल की पत्नी अभियुक्ता रामेश्वरी के कपड़ों पर पाए गए खून के छींटे भी मकतूल संतोष कुमार के खून से मिलते पाए गए.

ऐसी स्थिति में अभियुक्तों का बचाव संभव नहीं है. एक पल रुकते हुए विद्वान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मौकाएवारदात पर मौजूद मकतूल की तीनों बेटियां अंकिता, भावना और मनीषा प्रत्यक्षदर्शी थीं.

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‘‘अंकिता और भावना ने अभियोजन पक्ष की कहानी की पूरी तस्दीक की है, इसलिए बचाव पक्ष की इस दलील पर घटना को झूठा नहीं माना जा सकता कि अभियोजन पक्ष ने मनीषा को पेश नहीं किया. लड़कियां मुलजिम भोम सिंह की इस धमकी से बुरी तरह डरी हुई थीं. उन्होंने पुलिस के आने के बाद ही मुंह खोला.’’

विद्वान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘कोर्ट इस सच्चाई से वाकिफ है कि पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में मकतूल की मौत की वजह सिर तथा शरीर के अन्य हिस्सों पर घातक चोटें आना बताया गया है. वारदात में इस्तेमाल की गई तलवार की बरामदगी भी मुलजिम के कब्जे से होना उस के आपराधिक षडयंत्र को पुख्ता करती है.

‘‘हालांकि यह मामला विरल से विरलतम की श्रेणी में नहीं आता, किंतु ऐसे गंभीर अपराध की दोषसिद्धि में अपराधियों को कोई रियायत देना उचित नहीं है. इसलिए तमाम सबूतों और गवाहों के बयान के आधार पर अदालत मृतक की पत्नी रामेश्वरी और उस के प्रेमी भोम सिंह को दोषी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाती है.’’

सजा सुनाए जाने के बाद पुलिस ने दोनों मुजरिमों को अपनी कस्टडी में ले लिया. अदालत में मौजूद लोगों और मृतक की बेटियों ने इस सजा पर तसल्ली व्यक्त की.

जब सुहागरात पर आशिक ने भेज दिया बीवी का एमएमएस

कर्नाटक की राजधानी बैंगलुरु में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है. वह भी ऐसा कि खुद पुलिस भी नहीं समझ पा रही है कि कौन सी धाराएं लगाएं और कौन सी नहीं.

मामला बैंगलुरु के सुब्रमण्यम नगर की है जहां राशिद के साथ अमीना (दोनों बदले हुए नाम) का निकाह बड़ी धूमधाम से हुआ.

सगाई पिछले साल जून में ही हुई थी. राशिद जहां निजी कंपनी में काम करता है, वहीं अमीना सरकारी मुलाजिम है.

बीवी ने दिया धोखा!

राशिद ने जानकारी देते हुए बताया,”शादी को ले कर मैं ने ढेर सारे सपने संजो रखे थे. इस शादी में मैं ने लगभग 9 लाख रूपए खर्च किए थे. सगाई में लगभग डेढ़ लाख रुपए खर्च हुए थे. इस शादी में दुल्हन और दूल्हे यानी बरातीघराती में सैकड़ों लोग शामिल हुए थे. बढ़िया खानापीना हुआ था.

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“खूबसूरत बीवी के साथ आम दूल्हे की तरह मैं भी सुहागरात मनाने को ले कर बेचैन था. मगर सुहागरात के ऐन पहले मेरे फेसबुक के मैसेंजर पर एक वीडियो क्लिप आया, जिसे देख कर मेरे होश उङ गए.”

राशिद ने आगे बताया,”उस शख्स ने वीडियो क्लिप के साथ अपना नंबर भी शेयर किया था. जब मैं ने उस के मोबाइल पर फोन किया तो उस ने अपना नाम शकील (बदला नाम) बताया और कहा कि वह और अमीना पिछले 7-8 सालों से रिलेशनशिप में थे. अमीना ने मुझे धोखा दिया है.”

क्या था वीडियो में

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार शकील ने जो वीडियो राशिद को भेजी थी, उस में दोनों अंतरंग पलों में साथ थे. कोई जोरजबरदस्ती नहीं थी, जबकि दोनों ओरल सैक्स करते हुए भी दिख रहे थे.

उस शख्स ने राशिद को यह भी बताया कि दोनों की सगाई के बाद भी अमीना उस के पास नियमित रूप से आती थी और दोनों बराबर सैक्स करते रहे हैं.

उलझ चुका है मामला

उधर मामले ने दूसरा रूप ले लिया. कहते हैं पुरूष चाहे जितनी बेवफाई कर ले पर बीवी की बेवफाई वह बरदाश्त नहीं कर पाता.

राशिद ने परेशान हो कर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.

उस ने पुलिस को बताया कि उसे अमीना और शकील के बीच व्हाट्सऐप चैटिंग के दौरान बातचीत के स्क्रीनशौट्स भी हाथ लगे हैं, जिस में काफी अंतरंग बातचीत की गई है. एक मैसेज में अमीना बताती है कि वह शकील को बेहद पसंद करती है. उस के घर वाले भी उसे पसंद करते हैं.

पुलिस ने की काररवाई

फोटो और वीडियो की जांच के बाद पुलिस ने जब शकील को गिरफ्तार किया तो उस ने अपना और अमीना के बीच पिछले 7-8 सालों से चल रहे संबंधों की बात कुबूल कर ली.

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राशिद के बयान को आधार मान कर पुलिस ने आईपीसी की धारा 406 और 506 के तहत मामला दर्ज कर तफ्तीश शुरू कर दी है.

मामले का खुलासा होने के बाद मीडिया से बातचीत में पुलिस ने बताया,”यह काफी पेचिदा मामला है. प्राप्त वीडियो और फोटो को आधार मान कर यह साबित करना होगा कि अमीना ने राशिद को धोखा दिया है. इस के लिए हम कानूनी सलाहकार की मदद ले रहे हैं.”

बीवी और घर वालों की धमकी

उधर अमीना के घर वाले और खुद अमीना ने राशिद को धमकी दी है. अमीना ने तो आत्महत्या तक करने की धमकी दी है और एक नोट लिखा है कि उस के साथ ज्यादती की गई है, जिस के कुसूरवार राशिद और उस के परिवार वाले हैं.

दांव पर जिंदगी

मामले की पङताल में भले ही पुलिस जुटी है पर इस प्रकरण से एकसाथ 3 परिवार की प्रतिष्ठा के साथसाथ जिंदगियां भी दांव पर है. यों तो आरोप की सचाई सामने आने के बाद ही यह तय हो पाएगा कि कानून में ऐसे अपराध के लिए क्या सजा है और दोनों की शादी पर इस का क्या प्रभाव पङेगा पर इतना तो तय है कि जिस ने वीडियो क्लिप भेजा वह और लङकी जिस ने शादी से पहले संबंध बनाए यह गलती कर दी या फिर किसी ने जानबूझ कर वीडियो बना लिया, जो कानूनन अपराध भी है.

इसलिए बेहतर यही है कि सैक्स संबंध बनाते समय विशेष सतर्कता बरती जाए.

सावधान रहें

सेक्स पार्टनर अंतरंग पलों को अपने मोबाइल में कैद न करें न करने दें क्योंकि आगे चल कर ऐसे संबंधों में या तो धोखा देने की गुंजाइश रहती है या फिर ऐसे वीडियो क्लिप्स आसानी से वायरल भी हो जाते हैं. कई तो पोर्न साइट पर अपलोड कर दिए जाते हैं. इसलिए खुद को महफ़ूज रखने के लिए सतर्क रहें और सोचसमझ कर आगे बढ़ें.

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3 साल बाद मिला इंसाफ

बंगलादेश की राजधानी ढाका में होली आर्टिसन बेकरी नाम का एक कैफे है. उस दिन शाम सुहानी थी. तारिषी जैन अपने पिता संजीव जैन व 2 दोस्तों अबिंता कबीर व फराज अयाज हुसैन के साथ कैफे में डिनर पर गई थी. यह कैफे ढाका के दूतावास क्षेत्र में था. डिनर आया भी नहीं था कि तारिषी के पिता के मोबाइल पर किसी का फोन आया, जिस की वजह से उन्हें जरूरी काम से कैफे से जाना पड़ गया.

पिता संजीव जैन को गए अभी कुछ समय ही हुआ था कि अचानक कैफे गोलियों और धमाकों की आवाज से गूंज उठा. पता ही नहीं चला कि कैफे में कब दबेपांव आतंकवादी घुस आए थे. ताबड़तोड़ गोलियां चलते ही कैफे में अफरातफरी मच गई. आतंकवादियों ने गोलियां चलाते हुए कैफे में घुस कर डिनर कर रहे मेहमानों को बंधक बना लिया.

उन्होंने कैफे में मौजूद मेहमानों को 12 घंटे तक अपने कब्जे में रखा. बंधक बनाने के बाद उन्होंने एकएक कर 22 लोगों को मौत के घाट उतार दिया. मरने वालों में उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद शहर की छात्रा तारिषी जैन सहित इटली के 9, जापान के 7, बंगलादेश में जन्मा एक अमेरिकी, बंगलादेश के 2 नागरिकों के अलावा 2 पुलिस अधिकारी भी शामिल थे.

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कुछ देर में सेना के कमांडो भी वहां पहुंच गए. कमांडो औपरेशन में वे 5 आतंकवादी मारे गए, जिन्होंने कैफे में गोलीबारी की थी. यह घटना पहली जुलाई, 2016 को घटी थी. हमले के बाद बंगलादेश में चरमपंथ को ले कर नई बहस छिड़ गई. इतना ही नहीं, देश के उद्योग, व्यापार को ले कर भी चिंता बढ़ गई थी. क्योंकि देश के इतिहास में यह सब से भीषण आतंकवादी हमला था.

करीब 3 साल तक इस बहुचर्चित मामले की सुनवाई ढाका की आतंकरोधी विशेष ट्रिब्यूनल में चल रही थी. विशेष ट्रिब्यूनल द्वारा 27 नवंबर, 2019 को इस केस का फैसला सुनाया जाना था.

हाईप्रोफाइल मामला होने के कारण कोर्ट परिसर और आसपास सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे. इस विशेष अदालत में इन आतंकियों को कड़ी सुरक्षा के बीच लाया गया था. फैसले को ले कर कोर्टरूम पत्रकारों, वकीलों व अन्य लोगों से भरा हुआ था. सभी को इस फैसले का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार था. निर्धारित समय पर विशेष अदालत के जज मुजीबुर रहमान कोर्टरूम में आ कर अपनी कुरसी पर बैठे तो वहां मौजूद सभी लोगों की नजरें उन पर जम गईं.

आगे बढ़ने से पहले आइए हम इस आतंकवादी हमले को याद कर लें. यह आतंकवादी हमला इतना वीभत्स था कि विश्वभर में इस की गूंज सुनाई दी. इस आतंकवादी हमले ने बंगलादेश को ही नहीं, भारत सहित कई देशों को स्तब्ध कर दिया था. दूतावास इलाके में हमला होने से बंगलादेश की छवि धूमिल हुई थी. इस के बाद पुलिस ने जगहजगह छापेमारी कर सैकड़ों संदिग्धों को हिरासत में लिया था.

इस आतंकी हमले के तुरंत बाद इस की जिम्मेदारी आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने ली थी. लेकिन जांच में यह बात सामने आई कि इन आतंकियों का आईएस से कोई संबंध नहीं था. यह बात बंगलादेश सरकार ने भी स्वीकारी कि इस हमले में किसी विदेशी आतंकी संगठन का हाथ नहीं था. हमले के पीछे जिहादी संगठन जमायतुल मुजाहिदीन बंगलादेश (जेएमबी) का हाथ था. जांच में यह भी सामने आया था कि कमांडो औपरेशन में मारे गए 5 आतंकियों में से 2 आतंकी जाकिर नाइक से प्रभावित थे.

बंगलादेश पुलिस मामले की जांच में जुट गई. जांच में पता चला कि इस हमले में कई संदिग्ध हमलावर थे. इन में से 5 हमलावर कमांडो ने मौके पर ही ढेर कर दिए थे, अन्य की जांच एजेंसियों ने तलाश शुरू कर दी. अपने तलाशी अभियान में पुलिस ने अलगअलग मुठभेड़ के दौरान 8 आतंकी और मार गिराए, जबकि 8 जीवित आतंकियों को गिरफ्तार कर लिया गया.

गिरफ्तार हुए दहशतगर्दों में जहांगीर हुसैन, रकीबुल हसन, असलम हुसैन, अब्दुल सबूर, सोहिल महफूज, हादुर रहमान और शरीफुल इसलाम मामूनुर रशीद थे.

हमले में मारे गए लोगों में शामिल 19 वर्षीय भारतीय लड़की तारिषी जैन का परिवार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद स्थित मोहल्ला सुहागनगर का रहने वाला था. तारिषी बर्कले यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया की मेधावी छात्रा थी. वह वहां एमबीए (इकोनौमिक्स) कर रही थी.

तारिषी के पिता संजीव कुमार जैन ढाका में कपड़े का कारोबार करते थे. पिता संजीव जैन बिजनैस के सिलसिले में करीब 20 साल पहले हांगकांग शिफ्ट हो गए थे. उन के 2 बच्चे थे, तारिषी और संचित. तारिषी की शुरुआती पढ़ाई हांगकांग में ही हुई. संचित कनाडा में इंजीनियर की नौकरी कर रहा है.

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गारमेंट कारोबार की वजह से संजीव जैन का परिवार सन 2007 में ढाका शिफ्ट हो गया था. 3 महीने की छुट्टियां होने पर तारिषी अपने मातापिता के साथ ढाका आई हुई थी. दूसरे दिन वह पिता संजीव जैन, मां तूलिका जैन व बड़े भाई संचित के साथ अपने चाचा राकेश मोहन के पास फिरोजाबाद जाने वाली थी. उस का भाई संचित जैन भी कनाडा से दिल्ली पहुंच गया था. सभी लोगों को दिल्ली से फिरोजाबाद जाना था. लेकिन खानाखाने गई तारिषी दहशतगर्दों का निवाला बन गई.

सेना के कमांडो ने लोगों को बचाने की काररवाई के दौरान कैफे में घुस कर 22 लोगों की हत्या करने वाले पांचों दहशतगर्दों को मार गिराया था. इन में निबरस इसलाम, रिहान इम्तियाज, मीर समी मुबस्सिर, रिपान व बिकाश शामिल थे.

घटना के बाद इन पांचों के फोटो आईएसआईएस द्वारा जारी किए गए. फोटो में ये लोग एके-47 व आईएसआईएस के झंडे के साथ दिखाई दे रहे थे.

खास बात यह कि इन पांचों ने मदरसे में तालीम नहीं ली थी, बल्कि सभी नामचीन स्कूलों के पढ़ने वाले, बड़े घरानों के युवक थे. इन के मासूम चेहरों के पीछे छिपी हैवानियत का किसी को पता नहीं था. ये लोग आईएसआईएस से कैसे जुडे़, इन के घर वालों तक को पता नहीं थी.

मृत आतंकियों के घर वालों को इस घटना के दूसरे दिन अखबारों व टीवी की खबरों से उन के मरने की जानकारी मिली. पहचान होने के बाद आतंकी के दोस्तपरिचित हैरान रह गए. इन में एक तो हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री श्रद्धा कपूर का प्रशंसक था.

पांचों आतंकी जनवरी, 2016 से अपनेअपने घरों से गायब हुए थे. कुछ के घर वालों ने थाने में गुमशुदगी भी दर्ज करा रखी थी. सवाल यह था कि आखिर किस ने उन के हाथ से किताबें ले कर बंदूक थमा दी और उन के बस्तों में बारूद भर दी.

हमले के दौरान तारिषी जैन अपने दोस्तों अबिंता कबीर व फराज अयाज हुसैन के साथ कैफे के टौयलेट में छिप गई थी. वहीं से उस ने अपने पिता संजीव जैन व चाचा राकेश मोहन को फोन किया था. तारिषी के अंतिम शब्द रोंगटे खड़े करने वाले थे. उस ने कहा, ‘आतंकी रेस्तरां में घुस आए हैं. मैं बुरी तरह से डरी हुई हूं और दोस्तों के साथ टौयलेट में छिपी हूं. पापा, मुझे नहीं लगता कि मैं जिंदा बच पाऊंगी. आतंकी एकएक कर के लोगों को मार रहे हैं.’

तारिषी निरीह परिंदे की तरह फड़फड़ा रही थी. संजीव जैन भले ही बेटी का हौसला बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन का दिल बैठा जा रहा था.

आयतें सुन कर अलग किए गैरइसलामी

सेना के कमांडो द्वारा रेस्क्यू में बचाए गए 18 प्रत्यक्षदर्शियों में से एक हसनात करीम भी थे. उन के पिता रिजाउल करीम के अनुसार पांचों आतंकवादियों ने रेस्टोरेंट के हाल में सभी बंधकों को बंदूक की नोंक पर इकट्ठा किया.

फिर उन से कुरआन की 1-2 आयतें सुनाने को कहा. जो लोग आयतें सुना देते, उन्हें एक ओर कर देते थे और जो नहीं सुना पाते थे, उन्हें दूसरी ओर खड़ा कर दिया जाता था. इस के बाद आयतें न सुना पाने वाले लोगों की तेज धारदार हथियारों से हत्या कर दी गई. इन में तारिषी के साथ अधिकतर विदेशी शामिल थे.

जब आतंकी मजहब जानने के लिए आयतें सुन कर लोगों को मार रहे थे, तब तारिषी के दोस्त इंसानियत का धर्म निभा रहे थे. तारिषी के दोनों दोस्त अबिंता और फराज ने आखिरी वक्त तक दोस्ती और इंसानियत का साथ नहीं छोड़ा.

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फराज ने आतंकियों को कुरआन की आयतें सुना दी थीं. इस पर फराज से उन्होंने दूसरी ओर जाने को कहा, लेकिन फराज ने अपनी दोस्त तारिषी और अबिंता के बिना जाने से इनकार कर दिया. इस पर आतंकियों ने तीनों दोस्तों की हत्या कर दी थी.

तारिषी जैन की हत्या की खबर मिलने के बाद उस के परिजनों व परिचितों में मातम छा गया. पलभर में परिवार की खुशियां काफूर हो गईं. घटना वाली रात तारिषी ने फिरोजाबाद में रहने वाले अपने चाचा राकेश मोहन से फोन पर बात की थी और वहां के हालात के बारे में भी बताया था.

राकेश मोहन के अनुसार, 3 जुलाई, 2016 रविवार को तारिषी परिवार के साथ फिरोजाबाद आने वाली थी, लेकिन उस से पहले दरिंदों ने उन की बेटी की हत्या कर दी.

तारिषी की मौत के बाद फिरोजाबाद व देश में अलगअलग स्थानों पर घटना की निंदा की गई. कैंडल मार्च निकाल कर श्रद्धांजलि दी गई.

भारत सरकार की सक्रियता के कारण तारिषी का शव 4 जुलाई, 2016 को बंगलादेश से नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे लाया गया. वहां से कार द्वारा शव को गुरुग्राम (हरियाणा) ले जाया गया, जहां तारिषी के पिता संजीव जैन का घर था. गुरुग्राम में ही तारिषी का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

लंबी सुनवाई के बाद सुनाया गया फैसला

लगभग 3 साल तक यह मामला विशेष ट्रिब्यूनल में चला. जांच अधिकारी हुमायूं कबीर ने 113 गवाहों के बयान कोर्ट में दर्ज कराए. पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए 8 दहशतगर्दों ने अदालत में खुद को बेकसूर बताया. गवाहों के बयान और दोनों पक्षों के वकीलों की जिरह सुनने के बाद जज मुजीबुर रहमान ने सबूतों के आधार पर 27 नवंबर, 2019 को अपना फैसला सुनाया.

जज मुजीबुर रहमान ने इसलामी आतंकवादी संगठन के 7 आतंकियों जहांगीर हुसैन, रकीबुल हसन रेगन, असलम हुसैन उर्फ रशीदुल इसलाम, अब्दुल सबूर खान उर्फ सोहिल महफूज, हादुर रहमान सागर, शरीफुल इसलाम, खालिद और मामूनुर रशीद को फांसी की सजा सुनाई.

अदालत ने आतंकी हमले में 22 निर्दोष लोगों की दर्दनाक मौत को अमानवीय करार दिया. जज ने सभी दोषियों पर 50-50 हजार टका का जुरमाना भी लगाया. जब कोर्ट ने फैसला सुनाया तो दोषी बिना किसी पछतावे के बेखौफ खड़े थे और उन्होंने अल्लाह हू अकबर का नारा भी लगाया.

न्यायाधीश ने आठवें आरोपी मिजानुर रहमान को बरी कर दिया, क्योंकि अभियोजन पक्ष प्रतिबंधित संगठन नव-जमायतुल मुजाहिदीन बंगलादेश (नव जेएमबी) द्वारा किए गए हमले में उस के संबंध को साबित नहीं कर सका था.

अपने फैसले में न्यायाधीश ने बंगलादेशी मूल के कनाडाई नागरिक तमीम चौधरी को हमले का मास्टरमाइंड बताया, जो हमले के बाद राष्ट्रव्यापी आतंकवादरोधी सुरक्षा अभियान के दौरान मारा गया था. आतंकरोधी शाखा ने आतंकी हमले की 2 साल की जांच के बाद पिछले साल जुलाई में अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी.

फैसला सुनाए जाने के बाद सरकारी वकील गुलाम सरवर खान ने पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि मामले की जांच में पता चला कि दोषियों ने आतंकवादियों को धन मुहैया कराया था. हथियारों की आपूर्ति की थी या फिर हमले में सीधे तौर पर शामिल लोगों की मदद की थी. उन के खिलाफ जो आरोप थे, वे साबित हो गए.

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जिन 7 आतंकियों को सजा सुनाई गई है, वे हमले की साजिश में शामिल थे. कोर्ट ने उन्हें अधिकतम सजा सुनाई. सभी दोषी करार दिए गए अपराधियों का संबंध जमायतुल मुजाहिदीन बंगलादेश से था. यह संगठन बंगलादेश में शरिया कानून लागू करना चाहता था.

फिरोजाबाद के सुहागनगर में रहने वाले तारिषी के ताऊ राजीव जैन को 27 नवंबर, 2019 की शाम यह खबर मिली कि ढाका के रेस्टोरेंट में आतंकी हमला करने वाले 7 आतंकियों को विशेष अदालत ने मौत की सजा सुनाई है तो उन के दिल को सुकून मिला.

बेटी को खोने का गम आज भी परिवार के सदस्यों की आंखों में झलकता है. बर्कले यूनिवर्सिटी, कैलिफोर्निया की छात्रा तारिषी मेधावियों में अपना स्थान रखती थी. तारिषी के मातापिता ने बेटी की स्मृति में बर्कले यूनिवर्सिटी में एक मेधावी स्कौलरशिप शुरू करने की घोषणा की है.

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

हत्या: मासूम ने खोला बुआ, दादी का राज!

छत्तीसगढ़ के महासमुन्द मे ग्यारह साल की एक मासूम बुआ और दादी की पोल खोल दोनों  को जेल के सींखचों के पीछे  पहुंचा दिया. कुछ फिल्मी कुछ रहस्यमयी इस अपराध कथा पर सुनकर आप चौक जायेंगे की एक मासूम बच्ची ने बताया की कैसे उसके पिता की हत्या बुआ और दादी ने मिल ठीक एक साल पहले कर दी थी. महत्वपूर्ण  यह की एक साल तक पुलिस को गुमराह करने वाली आरोपी बहन एवं  मां को सिटी कोतवाली पुलिस ने हत्या व  उसे छुपाने के आरोप में गिरफ्तार कर भादवि की धारा 302, 201, 34 के तहत जेल भेज दिया . सिटी कोतवाली प्रभारी ने हमारे संवाददाता को जानकारी देते हुए बताया  कि एक साल पहले 20 फरवरी 2019 को मृतक आश कुमार यादव 30 साल बिमचा निवासी को महासमुन्द के अस्पताल आरएलसी में यह कहते हुए भर्ती कराया था कि आश कुमार यादव घर की सीढ़ी से गिर गया और उसके सिर पर चोट लगने की वजह से घायल हो गया है. बाद मे उसकी मृत्यु  हो गयी.

मामूली बात,रिश्ते का खून!

छोटी सी बात कब कैसे मोड़ लेती है कोई नहीं जानता महासमुंद के इस हत्याकांड में भी देखिए कुछ ऐसा ही हुआ- घायल अवस्था में आश कुमार यादव को अस्पताल में भर्ती कराया गया . तत्पश्चात डाक्टरोंं ने मामले की गंभीरता को देखते हुए  घायल आश कुमार यादव को राजधानी रायपुर डीकेएस अस्पताल रिफर कर दिया. बाद में घायल आश कुमार यादव कि  मौत 3 मार्च 2019 को वहीं चिकित्सा के दरमियान हो गई.

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पोस्टमार्टम के पश्चात राजधानी रायपुर पुलिस ने शून्य में मर्ग कायम कर महासमुंद के सिटी कोतवाली पुलिस को डायरी भेज दी थी. सिटी कोतवाली पुलिस ने मामले में जांच शुरू की तो मामला संदेहास्पद लगा और पुलिस ने जांच शुरू कर दी. कोतवाली पुलिस ने  मामले की सारी जानकारी पुलिस अधीक्षक जितेन्द्र शुक्ल को दी.पुलिस अधीक्षक ने सिटी कोतवाली थाना क्षेत्र के एसडीओपी नारद सुयवंशी और सिटी कोतवाली पुलिस राकेश खुटेश्वर को आदेशित किया कि मामले में सूक्ष्मता से जांच की जाए. सिटी कोतवाली पुलिस बिमची पहुंच  मामले की तफतीश  करने  लगी. एक साल पहले किस तरह से आश कुमार यादव घायल हुआ था ? इसकी पूछताछ की  तो मृतक की मां और उसकी बहन व पिता ने पुलिस को झूठी कहानी बताने लगी. पुलिस का मामले में संदेह बढ़ता गया. पुलिस जब भी जांच में जाती तो बड़ी चालाकी से बच्चों को दूसरे गांव भेज दिया जाता था. पुलिस को मृतक के बच्चे कही नजर नहीं आते थे. बच्चों के बारे में मृतक के परिवार से पूछा जाता तो कोई ना कोई बहाना बता कर बच्चों की सही जानकारी पुलिस को नहीं देते थे.

बेटी ने बताया  सच!

पुलिस अपने स्तर से मामले में बच्चों की जांच पड़ताल की तो पुलिस को जानकारी मिली की मृतक आश कुमार यादव के दोनों बच्चे तुमगांव थाना क्षेत्र के अछरीडीह में है. पुलिस वहां पहुंच गई  बच्चों से पूछताछ करने के लिए  सकारात्मक माहौल तैयार कर सादी वर्दी में बच्चों के पास पहुंचे और मृतक आश कुमार यादव के बच्चों से बात चीत  की. मृतक की 11 साल की बेटी हितेश्वरी ने  बातों बातों मे कहा – उसके पिता  आश कुमार यादव और उसकी बुआ माधुरी यादव के बीच झगड़ा हुआ और उसकी बुआ माधुरी नेे पिता  को घर के बरामदे में रखे “खटिया के खुरे” से सिर में वार किया. माधुरी यादव का वार इतना जोर का था कि मृतक वहीं बेहोश हो कर गिर गया. घटना के वक्त मृतक की मां भी साथ  थी,उसने घटना के बाद खून साफ किया और झूठा बहाना बनाया था.

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सिटी कोतवाली पुलिस ने मृतक की आरोपी बहन माधुरी यादव से पूछताछ की तो उसने बताया कि घटना दिनांक को उसका भाई मृतक आश कुमार यादव शराब पीकर आया था और वह उसका मोबाइल लेकर गया था. माधुरी ने जब अपने भाई से मोबाइल ले जाने पर नाराजगी जाहिर की तो मृतक आश कुमार यादव अपनी बहन और मां से गाली गलौच करने लगा और दोनों भाई बहन में झगड़ा हो गया. गुस्से में आकर माधुरी यादव ने पास ही रखे खटिये के खुरे से अपने भाई पर प्रहार कर दिया,जिसकी वजह से वह घायल हो गया और तीन दिन के बाद उसकी रायपुर के अस्पताल में मृत्यु हो गई. पुलिस ने मामले में बहन और मां  को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

संगीन विश्वासघात

28 सितंबर, 2017 को जिला गुरदासपुर के गांव मिताली के रहने वाले रंजीत सिंह की विधवा जसविंदर कौर ने एसएसपी हरचरण सिंह भुल्लर को एक शिकायत दी थी, जिस में उस ने जो लिखा था, वह कुछ इस प्रकार था—

2 बच्चों की मां जसविंदर कौर के पति रंजीत सिंह पंजाब पुलिस में थे, जिन की अप्रैल, 2008 में अचानक मौत हो गई थी. जसविंदर पढ़ीलिखी थी, इसलिए अनुकंपा के आधार पर उसे पति की जगह नौकरी मिल जानी चाहिए थी. इस के लिए उस ने काफी कोशिश की, लेकिन उसे नौकरी नहीं मिल सकी. किसी ने जसविंदर कौर को सलाह दी कि इस तरह कुछ नहीं होना. अगर वह किसी मंत्री या बड़े नेता से कहलवा दे तो उस का काम आसानी से हो जाएगा. जसविंदर को याद आया कि उस की एक सहपाठिन के पिता बड़े नेता हैं. वह राज्य सरकार में मंत्री भी हैं. जसविंदर जा कर उन से मिली. यह सन 2009 के शुरू की बात है.

जसविंदर कौर ने मंत्री महोदय से पूरी बात बता कर यह भी बताया कि उन की बेटी कालेज में उस के साथ पढ़ती थी. मंत्री महोदय ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए हरसंभव मदद का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि उन के लिए यह काम जरा भी मुश्किल नहीं है.

यह मंत्री महोदय कोई और नहीं, सरदार सुच्चा सिंह लंगाह थे, जिन से जसविंदर कौर चंडीगढ़ स्थित उन के सरकारी आवास पर अपने घर वालों के साथ मिली थी. लंगाह ने जसविंदर को काम कराने का आश्वासन देते हुए 2-3 दिनों बाद अकेली किसान भवन में आ कर मिलने को कहा. आने से पहले फोन कर लेने की बात कहते हुए उन्होंने उसे अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया था.

2 दिनों बाद जसविंदर कौर ने मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह को फोन किया तो उन्होंने उसे अगले दिन दोपहर को किसान भवन आने को कहा, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह वहां अकेली ही आएगी. जसविंदर कौर ने वैसा ही किया. अगले दिन दोपहर को वह अकेली ही चंडीगढ़ के सैक्टर-35 स्थित किसान भवन पहुंच गई. वहां ठहरने के लिए होटलों की तरह हर सुखसुविधा वाले कमरे बने हैं. इन्हीं कमरों में से एक कमरे में लंगाह आराम कर रहे थे. उन्होंने जसविंदर को अपने कमरे में बुलवा लिया.

जसविंदर ने अपनी शिकायत में लंगाह पर जो आरोप लगाए हैं, उस के अनुसार वह किसान भवन के उस कमरे में पहुंची तो मंत्री सुच्चा सिंह उसे अपनी बगल में बिठा कर उस के साथ अश्लील हरकतें करने लगा. इस से जसविंदर बुरी तरह डर गई.

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उस ने लंगाह को रोकने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘अंकल, मैं आप की बेटी सरबजीत कौर के साथ बेबे नानकी कालेज में पढ़ी हूं. इस नाते मैं आप की बेटी की तरह हूं. आप को अपने पिता की तरह मान कर मैं आप के पास मदद के लिए आई हूं. आप मुझ पर रहम करें. मैं विधवा हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. प्लीज, मुझे जाने दीजिए.’’

जसविंदर के अनुसार, इस चिरौरी का सुच्चा सिंह लंगाह पर कोई असर नहीं हुआ. पहले तो उस ने अपनी ऊंची पहुंच के बारे में बताते हुए उसे जल्दी सरकारी नौकरी दिलवाने का लालच दिया. लेकिन जसविंदर काबू में नहीं आई तो उस ने उसे धमकी दी कि वह चाहे तो उसे अभी किसी केस में फंसा कर उस की जिंदगी बरबाद कर सकता है. इस के बाद उस ने जबरदस्ती जसविंदर की अस्मत लूट ली.

जसविंदर ने अपनी शिकायत में आगे लिखा है कि सुच्चा सिंह लंगाह का रुतबा देख कर वह डर के मारे चुप रह गई. बस पकड़ कर वह अपने गांव लौट आई. इस बारे में उस ने किसी को कुछ नहीं बताया. फिर वह एक लाचार विधवा औरत थी, जिस के लिए अपने बच्चों को पालने की खातिर नौकरी बहुत जरूरी थी.

यही वजह थी कि इज्जत लुटने के बाद भी जसविंदर लंगाह से संबंध तोड़ नहीं सकी. वह उसे फोन कर के अपने काम के बारे में पूछती रहती. उन का एक ही जवाब होता था कि वह कोशिश कर रहा है कि उस का काम जल्दी हो जाए.

एक बार लंगाह ने बीएमडब्ल्यू कार भेज कर जसविंदर कौर को पंजाब सिविल सेक्रेटेरिएट स्थित अपने औफिस में बुलवाया और उस के सामने ही किसी बड़े पुलिस अफसर को फोन कर के कहा कि वह जसविंदर को उस के पास भेज रहे हैं, उस का काम किसी भी सूरत में आज ही हो जाना चाहिए. इस के बाद लंगाह ने जसविंदर को अपने एक आदमी के साथ उस पुलिस अधिकारी के पास भेज दिया.

पुलिस अधिकारी भला आदमी था, उस ने उसी दिन नियुक्तिपत्र जारी करवा दिया. इस तरह जसविंदर को स्टेट विजिलेंस विभाग में क्लर्क की नौकरी मिल गई. नौकरी पा कर जसविंदर कौर बहुत खुश थी. वह लंगाह को धन्यवाद देने भी गई.

जसविंदर की मजबूरी का फायदा उठाते हुए लंगाह ने एक बार नहीं, कई बार शारीरिक शोषण किया. उस दिन भी वह उसे यह कहते हुए एक जगह ले जा कर वही सब किया कि अभी उस की नौकरी कच्ची है, जल्दी वह उसे पक्की करवा देगा.

डराधमका कर मंत्रीजी करते रहे उस का यौनशोषण

इस के बाद सुच्चा सिंह लंगाह जसविंदर से यह कहने लगा कि उस ने कई लोगों को एजेंसियां दिलवाई हैं, जो हर महीने लाखों रुपए कमा रहे हैं. वह चाहे तो उस के परिवार के किसी सदस्य के नाम एजेंसी दिलवा सकता है, जिस के माध्यम से वह मोटी कमाई कर सकती है. इस तरह की बातें करते हुए अकसर वह कुछ ऐसी बातें कह देते थे, जिस से जसविंदर इतना डर जाती कि उसे अपनी मौत का अहसास होने लगता था.

जसविंदर कौर के अनुसार, मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह अकसर उस से कहा करते थे कि उन की इतनी पहुंच है कि अगर वह किसी का कत्ल भी करवा दें तो कोई उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. यूपी, बिहार के कई गैंगस्टरों से उन की बहुत पटती है. वे उन के इशारे पर कभी भी कुछ भी कर सकते हैं. यहां तक कि वह जिस का कह दें, वे उस का कत्ल भी कर सकते हैं. इस तरह लंगाह जसविंदर को डरा कर अलगअलग जगहों पर ले जा कर उस का यौनशोषण करता रहा.

एसएसपी को दी गई अपनी शिकायत में जसविंदर ने आगे जो लिखा था कि मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह ने उसे अलगअलग जगहों पर ले जा कर उस के साथ इतनी बार दुष्कर्म किया है कि अब वह बता भी नहीं सकती. कुछ ऐसी जगहों पर भी वह उसे ले गया था, जिन के बारे में उसे आज भी कुछ पता नहीं है. लंगाह जब भी उसे कहीं ले जाता था, गाड़ी खुद चलाता था. उस आदमी ने उस से सिर्फ अपनी हवस ही नहीं मिटाई, बल्कि आर्थिक रूप से भी उसे खूब लूटा.

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सुच्चा सिंह लंगाह ने जसविंदर को चंडीगढ़ में प्लौट दिलाने के नाम पर गांव की उस की जमीन बिकवा दी. उस रकम से सिपहिया नामक आदमी को प्लौट खरीदने के नाम पर बयाने के रूप में 15 लाख रुपए दिलवा दिए. इस के बाद एक वकील को 30 लाख रुपए दिए. बाद में उस से कहा गया कि अब वे लोग अपना प्लौट नहीं बेचना चाहते. जसविंदर को एक लाख रुपए दे कर लंगाह ने कहा कि बकाया रकम उसे धीरेधीरे दे दी जाएगी. कुछ दिनों बाद साढ़े 3 लाख रुपए दे कर उस से कहा गया कि उसे जो रकम मिल गई, वही बहुत है, बयाने की रकम भला कोई वापस करता है. इस तरह बाकी रकम लंगाह ने खुद रख ली थी.

जसविंदर कठपुतली बनी हुई थी मंत्री की

इस के बाद सुच्चा सिंह लंगाह ने जसविंदर के नाम पर सहकारी बैंक से 8 लाख रुपए कर्ज ले कर 1 लाख रुपए उसे दे दिए और बाकी के 7 लाख रुपए खुद रख लिए. इस के बाद यह कह कर जसविंदर के गांव वाले मकान का सौदा करवा दिया कि वह उसे जालंधर शहर में फ्लैट खरीदवा देगा. इस के बाद उस से प्रार्थना पत्र लिखवा कर उस का तबादला जालंधर करवा दिया.

जसविंदर कौर के अनुसार, लंगाह उसे नदी पार अपनी जमीनों के बीच बनी कोठी पर भी बुलाया करता था, जहां जाने में उसे बहुत डर लगता था. जसविंदर को लगता कि अगर उसे मार कर वहां दफना दिया गया तो किसी को पता तक नहीं चलेगा. वैसे भी उस ने उसे इतना डरा दिया था कि वह उस के हाथों की कठपुतली बनी हुई थी. इसीलिए वह उस के खिलाफ किसी के सामने मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी.

एक बार जसविंदर के बेटे का एक्सीडेंट हुआ तो लंगाह ने यह कह कर उसे और डरा दिया कि कहीं यह एक्सीडेंट किसी ने कराया तो नहीं? उस ने यह बात इस तरह कही थी कि जसविंदर ने सोचा कि अगर उस ने कभी उस के खिलाफ जाने की सोची तो वह उस के परिवार को नुकसान पहुंचा सकता है.

जसविंदर जितना सुच्चा सिंह से डरती रही, वह उस का उतना ही शारीरिक और आर्थिक शोषण करता रहा. क्योंकि बेसहारा अकेली जसविंदर कौर की उस के सामने औकात ही क्या थी? इस बीच जसविंदर को पता चल गया कि सुच्चा सिंह ने उस की तरह और भी कई औरतों को उसी की तरह लूट कर उन की जिंदगी बरबाद कर दी.

इस के बाद जसविंदर को लगने लगा कि अब वह अति की सीमा पार कर चुका है. आखिर अपनी जान हथेली पर रख कर किसी तरह हिम्मत जुटा कर जसविंदर कौर ने सुच्चा सिंह लंगाह के खिलाफ उपर्युक्त शिकायत लिख कर एसएसपी को दे दी थी.

अपने ऊपर हुई ज्यादतियों को साबित करने के लिए मजबूरन जसविंदर ने इस सब की वीडियो बना ली थी. क्योंकि अगर वह ऐसा न करती तो अपनी पहुंच की बदौलत लंगाह उस की शिकायत को दबवा कर वह उसे किसी केस में फंसवा सकता था. इसीलिए सबूत के तौर पर जसविंदर ने एक वीडियो शिकायत पत्र के साथ नत्थी कर दी थी.

जसविंदर कौर ने शिकायत देने के बाद गुहार लगाई थी कि उसे और उस के परिवार को सुच्चा सिंह लंगाह से बहुत ज्यादा खतरा है. वह इतना खतरनाक आदमी है कि कभी भी उस पर हमला करवा कर मरवा सकता है. इसलिए उस ने निवेदन किया था कि उस की व उस के परिवार की सुरक्षा की व्यवस्था की जाए. उसे इंसाफ दिलवाया जाए और उस के आर्थिक नुकसान की भरपाई करवाई जाए.

सुच्चा सिंह लंगाह ने मंत्री और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का सदस्य रहते हुए तमाम गैरजिम्मेदाराना काम करते हुए बहुत ज्यादतियां की हैं. इसलिए इस मामले को अत्यंत गंभीरता से लेते हुए एक बेसहारा मजलूम औरत की फरियाद पर ध्यान दे कर उस के खिलाफ तुरंत काररवाई की जाए.

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शिकायत पत्र के अंत में जसविंदर कौर ने अपने दस्तखत कर के नामपता और मोबाइल नंबर भी लिख दिया था. इस के साथ एक एफिडेविट के अलावा पैनड्राइव और सीडी भी संलग्न थी, जिस में 20 मिनट की वीडियो थी, जो किसी नीली फिल्म से कम नहीं थी. उस में लंगाह को निर्वस्त्र हो कर शिकायतकर्ता के साथ शारीरिक संबंध बनाते दिखाया गया था.

सबूतों के आधार पर सुच्चा सिंह के खिलाफ दर्ज हो गई शिकायत

एसएसपी हरचरण सिंह भुल्लर ने मार्क कर के जसविंदर की शिकायत की काररवाई के लिए डीएसपी (सिटी) गुरबंस सिंह बैंस को भिजवा दी. उन्होंने इस के तथ्यों एवं वीडियो वगैरह की जांच कर के कानूनी राय लेने के लिए उसे जिला न्यायवादी के पास भिजवा दिया. डिस्ट्रिक्ट अटार्नी ने भादंवि की धारा 376, 384, 420 एवं 506 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करने की संस्तुति दे दी.

इस तरह 29 सितंबर, 2017 को गुरदासपुर के थाना सिटी में अपराध संख्या 168 पर उपर्युक्त धाराओं के तहत सुच्चा सिंह लंगाह के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो गया. इस के बाद लंगाह की वह अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई.

इस के बाद सुच्चा सिंह लंगाह ने भूमिगत हो कर पार्टी के सभी पदों तथा शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की सदस्यता से इस्तीफा दे कर अदालत में आत्मसमर्पण करने की घोषणा कर दी. अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने उस के इस्तीफे को तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया. एसएसपी हरचरण सिंह भुल्लर ने मामले की जांच डीएसपी आजाद दविंद्र सिंह एवं इंसपेक्टर सीमा देवी को सौंपने के अलावा जसविंदर कौर को सुरक्षा मुहैया करा दी.

उसी दिन सुच्चा सिंह ने बयान जारी करते हुए कहा कि उन के विरुद्ध यह झूठा मामला सरकार द्वारा गुरदासपुर उपचुनाव जीतने के लिए एक सोचीसमझी साजिश के तहत दर्ज कराया गया है. लेकिन उन्हें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है. वह 30 सितंबर, 2017 को माननीय अदालत में आत्मसमर्पण कर देंगे.

लेकिन सुच्चा सिंह 30 सितंबर को किसी भी अदालत में आत्मसमर्पण करने नहीं पहुंचा. हालांकि उस दिन छुट्टी थी, फिर भी गुरदासपुर की अदालत में ड्यूटी मजिस्ट्रैट दिन भर बैठे रहे. इतना ही नहीं, मीडियाकर्मी, पुलिस फोर्स और अकाली दल के समर्थक भी अदालत पहुंच कर उस के बंद होने तक उस का इंतजार करते रहे.

जिस तरह सोशल मीडिया पर सुच्चा सिंह लंगाह का आपत्तिजनक वीडियो वायरल हुआ था, उसी तरह यह खबर भी सामने आई कि केस दर्ज करवाने वाली महिला ने 12 दिन पहले उसे चेतावनी देते हुए कहा था कि जो हुआ, सो हुआ. अब वह उस का पीछा छोड़ दें, वरना उसे मजबूरन पुलिस की शरण में जाना पड़ेगा.

लेकिन सुच्चा सिंह लंगाह ने उस की इस चेतावनी की जरा भी परवाह नहीं की थी. वह जाने कहां छिपा बैठा था. उसी बीच पहली अक्तूबर को भाजपा के पंजाब प्रभारी प्रभात झा ने बयान जारी करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अकाली नेता पूर्वमंत्री सुच्चा सिंह लंगाह को फंसाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन उसी दिन शाम को शिरोमणि अकाली दल पार्टी ने उसे निकाले जाने का आदेश सार्वजनिक कर दिया.

गिरफ्तारी के डर से भूमिगत हो गया सुच्चा सिंह

मुकदमा दर्ज होने के 3 दिनों बाद सुच्चा सिंह लंगाह वकीलों की टीम के साथ चंडीगढ़ की जिला अदालत में आत्मसमर्पण करने पहुंचा, पर अदालत ने उसे गुरदासपुर जाने को कहा. इस के बाद सुच्चा सिंह फिर भूमिगत हो गया. श्री अकालतख्त साहिब समेत अन्य तख्तों के जत्थेदारों ने इस मामले पर नोटिस लेते हुए उस पर कड़ी काररवाई करने की बात की.

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श्री अकालतख्त साहिब के जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी गुरबचन सिंह ने इस घटना की भर्त्सना करते हुए अपना बयान जारी किया कि सुच्चा सिंह लंगाह ने एसजीपीसी जैसी सर्वोच्च धार्मिक संस्था का सदस्य रहते हुए जो कृत्य किया है, वह अति निंदनीय है. दुनिया भर में बैठी संगत इस की जोरदार शब्दों में निंदा करती है. जल्दी ही इस मामले पर सिंह साहिबान की बैठक बुला कर और उस में धार्मिक मामलों को ले कर गठित कमेटी की राय ले कर लंगाह के खिलाफ जो काररवाई की जानी चाहिए, वह की जाएगी.

3 अक्तूबर को सुच्चा सिंह लंगाह की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने लुकआउट नोटिस जारी कर दिया. उस ने अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट में जमानत की अर्जी लगाई, जो खारिज कर दी गई. आखिर 4 अक्तूबर को उस ने अपने वकीलों के साथ जा कर गुरदासपुर की सीजेएम कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने पूछताछ के लिए उसे 9 अक्तूबर तक के लिए कस्टडी रिमांड पर ले लिया.

उस समय सुच्चा सिंह ने अदालत में मौजूद पत्रकारों से कहा था कि उन के विरुद्ध साजिश रची गई है, जिस में एक कांग्रेसी नेता तथा एक पुलिस अधिकारी ने मुख्य भूमिका निभाई है. इसी के साथ उस ने यह भी कहा कि उसे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है.

अदालत परिसर में ही कुछ लोगों ने सुच्चा सिंह पर हमला कर दिया, जिस में वह बालबाल बच गया. इस घटना के बाद पुलिस ने एक हमलावर युवक को नंगी तलवार के साथ गिरफ्तार कर लिया था.

उसी दिन सरबतखालसा पंथ के जत्थेदारों की ओर से सिख पंथ के नाम जारी एक हुकमनामे के अनुसार, सुच्चा सिंह को पंथ से निकाल दिया गया. इस के बाद इस फैसले पर 5 सिंह साहिबानों श्री अकालतख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह, तख्त श्री दमदमा साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह, तख्त श्री पटनासाहिब के जत्थेदार ज्ञानी इकबाल सिंह, ज्ञानी जगतार सिंह व ज्ञानी रघबीर सिंह ने इस फैसले पर मुहर लगा दी.

कस्टडी रिमांड के दौरान सुच्चा सिंह लंगाह की उम्र अथवा रुतबे की परवाह न करते हुए पुलिस ने उस से गहन पूछताछ की.

कपूरथला से 10वीं पास कर के राजनीति में आने वाले सुच्चा सिंह लंगाह का मूल गांव था लंगाह, जहां उस के पिता तारा सिंह खेतीकिसानी करते थे. माझा में उस की अच्छी पहचान थी. उस के राजनीतिक कद को देखते हुए पार्टी में कई अहम पदों की जिम्मेदारी उसे सौंपी गई थी. क्योंकि वह पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का बहुत करीबी और खासमखास था.

सुच्चा सिंह सन 1997 से 2002 तक बादल के नेतृत्व वाली सरकार में लोकनिर्माण मंत्री रहा. इस के बाद सन 2007 से 2012 तक की अकाली-भाजपा सरकार में उसे कृषि मंत्री बनाया गया था. सन 2012 के विधानसभा चुनाव में डेरा बाबा नानक सीट पर वह कांग्रेस के सुखजिंदर सिंह रंधावा से चुनाव हार गया.

उस ने 2 शादियां की थीं. उस के 2 बेटे और 2 बेटियां हैं. उस की पहली पत्नी गुरदासपुर के कस्बा धारीवाल में रहती है, जबकि दूसरी पत्नी नरेंद्र कौर नयागांव (मोहाली) में रहती है. 61 साल के हो चुके सुच्चा सिंह लंगाह पुलिस रिकौर्ड के अनुसार हिस्ट्रीशीटर है. जमीनों पर नाजायज कब्जे के उस पर अनेक मामले चले हैं. सन 2002 में उसे पंजाब के सतर्कता विभाग ने गिरफ्तार कर उस पर मुकदमा चलाया था. सन 2015 में उसे 3 साल की कैद हुई थी. इस फैसले के खिलाफ  की गई उस की अपील हाईकोर्ट में विचाराधीन है.

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इस मामले में सुच्चा सिंह लंगाह बुरी तरह से फंस चुके है. अन्य धाराओं के अलावा पुलिस ने उस के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की धारा 295-ए जोड़ कर उस के कस्टडी रिमांड में एक दिन की बढ़ोत्तरी करवाई थी. 10 अक्तूबर को उसे न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है.

बहरहाल, अपनी बेटी की सहपाठिन रही विधवा औरत के साथ विश्वासघात का संगीन खेल खेल कर पूर्व मंत्री सुच्चा सिंह ने अपने इर्दगिर्द नफरत की एक ऐसी फसल उगा ली है, जिसे काट पाना उस के लिए आसान नहीं है.

कहानी सौजन्य – मनोहर कहानियां

तेजाब से खतरनाक तेजाबी सोच

लड़की और उस की मां ने विरोध किया तो अपराधियों ने छात्रा पर तेजाब उड़ेल दिया जिस से उस का चेहरा और पेट बुरी तरह से जल गया. अपराधी सामूहिक बलात्कार करने की नीयत से वहां आए थे.

तेजाब फेंकने की वारदातें देश के अलगअलग हिस्सों में आएदिन होती रहती हैं और लगातार बढ़ती ही जा रही हैं. पहले तो ये शहरों तक ही सिमटी थीं, पर अब तो गांवदेहात की लड़कियों पर भी तेजाब फेंकने के मामले बढ़ रहे हैं.

मथुरा, उत्तर प्रदेश के दामोदरपुर में 25 साला महिला पुलिसकर्मी के ऊपर बदमाशों ने तेजाब फेंक दिया था जिस से वे बुरी तरह से घायल हो गई थीं. वे ड्यूटी कर के अपने घर जा रही थीं कि दरिंदों ने इस वारदात को अंजाम दे दिया.

इसी तरह बिहार के औरंगाबाद जिले के कुटुंबा थाना क्षेत्र की एक लड़की कोचिंग के लिए जा रही थी कि अचानक उस के ऊपर एक मोटरसाइकिल सवार मनचले ने तेजाब फेंक दिया. वहां मौजूद लोग उस घायल लड़की को इलाज के लिए तत्काल अस्पताल ले गए.

इसी जिले के हसपुरा ब्लौक के रघुनाथपुर गांव के नजदीक एक लड़की, जो पुलिस की बहाली के लिए सुबह दौड़ने की प्रैक्टिस कर रही थी, की कुछ दरिंदों ने उस के साथ रेप कर के उस

की हत्या कर दी और चेहरे पर तेजाब डाल दिया.

बिहार के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन द्वारा अंजाम दिए गए तेजाब कांड को आज भी लोग भूल नहीं पाते हैं, जिस में चंदा बाबू के परिवार के 2 सदस्यों सतीश और गिरीश पर तेजाब की बालटी उलट कर उन की हत्या कर के लाश को टुकड़ेटुकड़े कर बोरे में भरवा कर फिंकवा दिया था.

बरेली, उत्तर प्रदेश में पानी लेने आई 3 औरतों पर तेजाब फेंक दिया गया था जिस से वे तीनों बुरी तरह से झुलस गई थीं.

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वाराणसी, उत्तर प्रदेश में एक दोस्त के घर ठहरी रूसी लड़की पर उसी के दोस्त ने तेजाब फेंक दिया था जिस से वह 50 फीसदी झुलस गई थी.

इसी तरह उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक आदमी द्वारा अपनी पत्नी, सासससुर समेत 7 दूसरे लोगों पर तेजाब फेंक कर घायल करने का मामला सामने आया था.

पत्नी द्वारा दुष्कर्म और दहेज व सताने का मामला दर्ज कराया गया था जिस से नाराज हो कर पति ने यह घिनौना काम किया था. इस तेजाबी कांड में एक 6 महीने का बच्चा भी चपेट में आ गया था और 3 लड़कियां भी बुरी तरह से झुलस गई थीं.

शामली जिले में 4 सगी बहनें बोर्ड के इम्तिहान से ड्यूटी कर के लौट रही थीं कि तभी मोटरसाइकिल से 2 लड़के आए और उन चारों पर तेजाब फेंक कर चलते बने.

छत्तीसगढ़ में 4 नाबालिग लड़कियों पर तेजाब फेंकने की वारदातें हो चुकी हैं. महाराष्ट्र में एक पत्रकार और उस के परिवार के सदस्यों पर एक अज्ञात लड़की ने तेजाब फेंक दिया था.

मुजफ्फरनगर में एक बस में सवार लड़की पर एक लड़के ने तेजाब फेंक दिया था जिस से लड़की के साथसाथ दूसरी सवारियां भी घायल हो गई थीं.

इसी तरह उत्तराखंड के देहरादून

में भी एक कालेज छात्रा पर एक लड़के ने तेजाब फेंक दिया था.

तेजाब फेंकने की बढ़ती वारदातें लोगों को झकझोर कर रख देती हैं. लड़के पहले लड़की से प्यार करते हैं और फिर किसी तरह अनबन होने से प्यार का धागा टूटने पर ऐसे वहशी दरिंदों द्वारा लड़कियों पर तेजाब फेंकने की वारदातों को अंजाम दिया जाता है.

आमतौर पर यह देखा जा रहा है

कि प्यार में ज्यादातर लड़कियां धोखा खाती हैं. यहां तक कि उन के जिस्म से खिलवाड़ भी किया जाता है और जब शादी करने की बात आती है तो ज्यादातर लड़के मुकर जाते हैं. वे तो प्यार का सिर्फ ढोंग करते हैं और लड़कियों के जिस्म से खेलना चाहते हैं.

बहुत से मनचले तो किसी लड़की को एकतरफा चाहते हैं और जब लड़की उन्हें तवज्जुह नहीं देती है तो उस पर तेजाब फेंकने जैसी वारदात कर बैठते हैं.

लड़की के मातापिता लड़की की शादी किसी दूसरे लड़के के साथ करने के लिए ठान लेते हैं तो उन हालात में

भी लड़की के ऊपर तेजाब फेंकने की वारदातें हो जाती हैं.

अगर कोई लड़का हकीकत में किसी लड़की से प्यार करता है तो वह किसी भी सूरत में तेजाब नहीं फेंक सकता. इतिहास इस बात का गवाह है कि प्यार में धोखा खाने वाले लोग मासूम की तसवीर के सहारे मरते दम तक उस से प्यार करते हैं.

तेजाब फेंकने वाले प्रेमी अपराधी सोच के होते हैं. जिन लड़कियों का तेजाब से चेहरा झुलस गया है, वे बदसूरत दिखने लगी हैं. वे उन दहशतगर्दों से सवाल भी पूछती हैं कि क्या तुम मुझे इस रूप में आज भी चाहते हो? इस का जवाब इन दहशतगर्दों के पास शायद नहीं होगा.

औरंगाबाद जिले के रजानगर महल्ले की 9वीं जमात की छात्रा सलमा पर एक लड़के ने साल 2016 में तेजाब फेंक दिया था जिस से वह बुरी तरह से झुलस गई थी.

सलमा ने बताया, ‘‘जब मेरे साथ साल 2016 में तेजाब की घटना घटी थी तो लोगों द्वारा हमदर्दी और मदद करने का आश्वासन देने वालों का तांता लगा था. पत्रकारों की भी भीड़ जमा हुई थी. रिश्तेदारों ने भी तरहतरह से भरोसा दिया था. लेकिन आज सभी लोग भूल गए हैं. अब तो जिंदगी काटनी ही मुश्किल हो गई है. मेरा चेहरा देखने से लोगों की यात्रा खराब होने लगी है. मुझे देख कर बच्चे भी डरने लगे हैं.

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‘‘अब तो मैं घर वालों पर ही बोझ बन कर रह रही हूं. कोई दूसरा उपाय भी नहीं है. अपराधी को सजा हो भी जाए तो थोड़ी देर के लिए तसल्ली जरूर होगी, लेकिन मेरी जिंदगी तो नरक ही बन गई है.

‘‘मैं लड़की नहीं, एक जिंदा लाश के समान हूं. बारबार खुदकुशी करने का जी करता है. लेकिन यह सोच कर फैसला बदल देती हूं कि परिवार ने मेरे चलते बहुत दुख झेला है और मेरी वजह से इन लोगों को जेल नहीं जाना पड़े. अब तो भूल से कभी आईना भी नहीं देखती. गलती से अगर देख लेती हूं, आंखों से आंसू रुकते नहीं हैं.’’

दिल्ली की लक्ष्मी अग्रवाल, जिन के साथ भी तेजाब की वारदात घटी थी, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से सवाल किया

कि तेजाब खुलेआम बिकता क्यों है? कोर्ट ने खुलेआम तेजाब बेचने पर रोक लगाई थी, लेकिन आज भी हालात जस के तस बने हुए हैं.

सामाजिक सरोकार से जुड़ी रंजीता सिंह का कहना है कि जब तक इन दहशतगर्दों पर कड़ी कार्यवाही नहीं की जाएगी, इन का मनोबल बढ़ता जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए तेजाब फेंकने वालों पर 10 साल की सजा का प्रावधान किया है, फिर भी इन वारदातों पर रोक लगने के बजाय ये और ज्यादा बढ़ती जा रही हैं.

इस पुजारी ने की 5 शादियां और फिर उन को धकेल दिया जिस्मफरोशी के धंधे में

धर्म के नाम पर काले कारनामे करने वाले बाबाओं की फिहरिस्त यों तो काफी लंबी है पर हम आप को एक ऐसे बाबा के बारे में बताने जा रहे हैं, जिस की करतूत जान कर आप के होश फाख्ता हो जाएंगे.
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में स्वामी अनुज चेतन सरस्वती नाम के एक ढोंगी बाबा को पुलिस ने गिरफ्तार किया है. इस पर आरोप है कि इस ने सत्संग के बहाने महिलाओं को अपने जाल में फंसा कर गलत काम को अंजाम दिया है.

महिलाओं को फंसाता था जाल में

माथे पर तिलक और शरीर में भभूत लगा कर इस ढोंगी बाबा ने न जाने कितनी ही महिलाओं को अपने जाल में फंसाया होगा पर मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस बाबा पर 5 महिलाओं ने धोखा देने, यौन शोषण करने और फिर जिस्मफरोशी कराने को मजबूर करने का आरोप लगाया है.
महंगी गाङी में चलने वाले और मीठीमीठी बातें करने वाले इस बाबा का नाम है स्वामी अनुज चेतन सरस्वती.

शातिराना अंदाज

इस का काम करने का अंदाज इतना शातिराना था कि एकबारगी लोगों को यकीन ही नहीं हुआ कि यह बाबा ऐसा भी कर सकता है.
तथाकथित यह बाबा पहले सत्संग में महिलाओं को धर्मकर्म की बातें बताता था फिर उन्हें अपनी बातों में फंसा कर शादी कर लेता था और बाद में उन्हें जिस्मफरोशी का धंधा करने के लिए मजबूर करता था.

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नशे का इंजैक्शन लगाता था

इस ने 1-2 नहीं 5-5 शादियां की हैं. इस पर आरोप है कि यह महिलाओं को नशे का इंजैक्शन भी लगता था ताकि वे इस का आदी हो जाएं और फिर उन से यह मनमानी कर सके.
इंसानियत को शर्मसार करने वाली इस घटना पर से परदा तब उठा जब इन महिलाओं ने भाग कर पुलिस में शिकायत दी.

पुलिस गिरफ्त में यह ढोंगी बाबा

क्षेत्र के डीआईजी राजेश कुमार पांडेय ने मीडिया से बातचीत में खुलासा किया कि उक्त ढोंगी बाबा को गिरफ्तार कर जानकारी जुटाई जा रही है और दोष साबित होने पर कानूनन उसे कङी से कङी सजा दिलाई जाएगी.
वैसे, यह घटना कोई नई भी नहीं है. समाज में आएदिन ऐसे ढोंगी बाबाओं की पोल खुलती रही है. बावजूद जागरूकता के अभाव में सब से अधिक महिलाएं ही इन जैसों की जाल में फंसती रही हैं.
इन बाबाओं को यह पता है कि महिलाएं कोमल मन की होती हैं और अधिकतर धर्मभीरु भी जिन्हें धर्म का डर दिखा कर आसानी से शिकार बनाया जा सकता है.

सतर्क रहें ताकि…

धर्म के नाम पर खुद की जिंदगी दांव पर लगाने से बेहतर है कि सतर्क रहा जाए और इन बाबाओं की चिकनीचुपङी बातों में न आया जाए.

हमारे समाज में ऐसे कई तथाकथित बाबाओं की काली करतूत से परदा उठता आया है और कईयों को उस के किए की कानूनन सजा भी मिल चुकी है. कुछ जेल में हैं और कुछ खुद के पकङाए जाने के डर से देश से बाहर भी भाग चुके हैं.

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अपना ध्यान इस तरह के धर्मकर्म से हटा कर समाजिक कामों में भी लगाया जा सकता है, जहां नाम भी है और शोहरत भी.

इसलिए सावधान रहिए और ऐसे ढोंगी बाबाओं की शिकायत पुलिस में करिए.

लव में हत्या : नेता जी आखिरकार जेल गए

छत्तीसगढ़  के रायगढ़ जिले में वर्ष 2016 में हुए दोहरे सनसनीखेज हत्याकाण्ड की गुत्थी रायगढ़ पुलिस ने अब जाकर  सुलझायी . ओडिशा के बृजराजनगर के  विधायक  रहे अनुप कुमार साय को हत्या के आरोप मे गिरफ्तार किया गया है. राजनीतिक प्रभाव  के कारण  मामला  वर्षों तक लटकता  रहा मगर अंततः  महिला के साथ अवैध संबंध को लेकर मां और नाबालिग बेटी की जघन्य हत्या के आरोपी पूर्व विधायक को जेल की सींखचों के पीछे  भेज दिया गया है.

दरअसल, 7 मई 2016 को एक अज्ञात महिला व एक लड़की  की लाश पुलिस को हमीरपुर रोड़ के पास मिली थी . इस अंधे कत्ल की गुत्थी को सुलझाने मे पुलिस को चार साल लगे.पुलिस के अनुसार मृतका कल्पना दास का अवैध संबंध पूर्व विधायक अनुप कुमार साय के साथ था. और जैसा कि होता है  महिला शादी का दबाव विधायक अनूप कुमार पर बना रही थी लिहाजा उसकी  और  14 साल की बेटी बबली दास की हत्या कर दी गई.इस हत्याकांड  की जांच में रायगढ़ पुलिस ने  6 राज्यों में लगभग सात सौ लोगो से पूछ ताछ की. तब जाकर यह खुलासा हुआ . रायगढ़ पुलिस आरोपी पूर्व विधायक की डीएनए टेस्ट के साथ साथ नार्को टेस्ट भी कराएगी.

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विधायक का  प्रभाव ऐसा रहा की  जांच 4 वर्षों तक चलती रही.पुलिस ने सारे मोबाईल डिटेल व सबुत जुटा लिया है.कुल मिलाकर यह हत्या अवैध संबंधों का नतीजा कही जा सकती है पुलिस के अनुसार आरोपी अनुपकुमार साय के साथ साथ और भी कई आरोपी इस हत्या में शामिल हो सकते है. इस दिशा में भी पुलिस  जांच पुलिस कर रही है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि लंबे समय तक मृतका की शिनाख्त ही नहीं हो पा रही थी. अंतत: हत्या का खुलासा तब हुआ जब मृतिका का एक रिश्तेदार, जो  पुलिस में था, ने थाने में लगे फोटो की शिनाख्ती की.

कानून के हाथ लंबे  होते हैं

इस हाई प्रोफाइल हत्याकांड  और अपराधियों के कानून की  जद मे आने के बाद यह सिद्ध हो गया कि सचमुच कानून के हाथ लंबे होते हैं. अपराधी चाहे कितना ही बड़ा और प्रभावशाली क्यों ना हो, बच नहीं सकता. घटना का खुलासा करते हुए रायगढ़ जिले के पुलिस अधीक्षक संतोष सिंह ने बताया कि सात मई 2016 को संबलपुरी गांव के रहने वाले कमलेश गुप्ता ने चक्रधरनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई  थी.  हमीरपुर मार्ग मे एक महिला व एक बालिका की हत्या कर शव की पहचान छिपाने के उद्देश्य से कार से कुचल कर  फेंक दी गयी है. रिपोर्ट पर थाना चक्रधरनगर में अज्ञात आरोपी के विरूद्ध अपराध दर्ज कर विवेचना शुरू की गई थी.

जिला पुलिस द्वारा अन्तर्राज्यीय ईश्तहार जारी किया गया था और इसी ईश्तहार से, मृतक की पहचान उसके पूर्व पति सुनील श्रीवास्तव द्वारा कल्पना दास पिता रूदाक्ष दास उम्र 32 वर्ष और लड़की बबली श्रीवास्तव पिता सुनील श्रीवास्तव उम्र 14 वर्ष के रूप में की गई थी.  चक्रधरनगर पुलिस की जांच चलती  रही  और मृतका कल्पना दास के मोबाईल नम्बर का डिटेल निकालकर विशलेषण कर अन्य साक्ष्यों को एकत्र किया जाता रहा . मृतका के कॉल डिटेल पर ओडिसा के हाई प्रोफाईल शख्स विधायक  अनुप कुमार साय के नाम की जानकारी मिली. जिसके विरूद्ध चक्रधरनगर पुलिस पुख्ता साक्ष्य जुटाने में जुट गई.

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जब पुलिस को संदेही विधायक  के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य के मिलने पर थाना प्रभारी चक्रधरनगर निरीक्षक विवेक पाटले द्वारा पुलिस अधीक्षक  को अवगत कराया गया जिनके दिशा निर्देशन पर संदेही अनूप कुमार साय, पूर्व विधायक ओडिस को चक्रधरनगर पुलिस द्वारा नोटिस देकर थाना तलब किया गया था. संदेही अनूप कुमार साय के थाना चक्रधरनगर आने पर अधिकारियों के सुपरविजन में पूछताछ की जाती  रही. मगर आरोपी बड़ी चालाकी से अपने आप को इस संपूर्ण प्रकरण से अलग बताता था.

 जब शादी करने डाला दबाव तो कर दी हत्या

विवेचना के बीच चक्रधरनगर पुलिस ने संदेही के विरुद्ध लिए गए गवाहों के बयान, कॉल डिटेल रिकार्ड व अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्यों को उसके सामने रखा तो पूर्व विधायक अनुप कुमार साय  का पसीना निकल आया और उसने हथियार डाल दिए. और इस तरह अंधे हत्याकांड का  पर्दाफाश हुआ.आरोपी अनूप कुमार साय पिता हरिशचन्द्र साय उम्र 59 वर्ष निवासी बघरा चकरा थाना बृजराजनगर जिला झारसुगुड़ा (ओडिसा) ने अपने  कथन में बताया कि वह पूर्व विधायक है. वर्तमान में वह ओडिशा में स्टेटवेयर हाऊस कार्पोरेशन का चेयरमेन है.

सन 2004-05 में कल्पना दास को उसके पति सुनील श्रीवास्वत ने छोड़ दिया था. इसी दरमियान कल्पना दास के पिता ने कल्पना और उसकी लड़की बबली को उसके पास भेजा था. मृतका कल्पना व आरोपी पूर्व विधायक के बीच प्रेम संबंध पनपा और दोनों मिलने  लगे. पूर्व विधायक ने एक फ्लैट खरीद कर कल्पना को आवास के लिए दिया और वहां आने-जाने लगा. आरोपी ने बताया कि बाद में कल्पना शादी का दबाव बनाने और पैसे की मांग को परेशान  करने लगी.

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पहले से शादीशुदा आरोपी ने महिला को रास्ते से हटाने के लिए उसकी और उसकी 14 साल की बेटी की निर्ममता से हत्या कर लाश को कोई पहचान ना पाए उस पर कार चला दी थी. आरोपी ने इस जुर्म की सजा से बचने के लिए तमाम हथकंडे अपनाये , लेकिन अंतत: वह कानून के शिकंजे से बच नहीं  पाया.

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