बिटकौइन के मुकाबले नई क्रिप्टोकरेंसी वनकौइन इजाद कर धोखाधड़ी करने वाली बुल्गारिया की एक संभ्रांत महिला रुजा इग्नातोवा पर चार बिलियन डालर घोटाले का आरोप है. वह दुनिया भर के दर्जनों देशों के लोगों से लाखों-करोड़ों रुपे, डौलर, यूरो या पौंड की मुद्राओं में पैसे बटोर कर फरार हो चुकी है. डिजिटल जमाने की इस ठगी के शिकार होने वालों में भारतीय भी हैं. अमेरिका समेत भारत की पुलिस को भी उसकी तलाश है.
दिल्ली के कनाट प्लेस इलाके में एक कैंटिन चलाने वाला 25 वर्षीय रामनरेश अप्रैल 2015 में बिहार से आया था. मैट्रिक पास ग्रामीण युवक को उसके ही गांव के जान-पहचान वाले की मदद से कैंटिन में हेल्पर का काम मिल गया था. वह अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहता था. इसके लिए किसी भी तरह का काम करने को इच्छुक था. उसे कोई भी मोटा-महीन काम करने से जरा भी संकोच नहीं था. एक दिन उसे पार्ट टाइम पैसा कमाने के बारे में जानकारी मिली. कैंटिन में अक्सर चाय पीने आने वाले एक युवक ने उसे औनलाइन मल्टी लेवल मार्केटिंग बिजनेस और क्रिप्टोक्वाइन के बारे में समझाया कि कैसे वह उसके जरिए डाॅलर में पैसे कमाकर रातोंरात अमीर बन सकता है. इसके लिए तीन तरह के स्कीमों में 4000, 6000 या फिर 8000 रुपये नगद का भुगतान कर एक मल्टीनेशनल कंपनी के वेबपोर्टल का मेंबर बनना था.
मेंबर बनते ही उसके नाम से खुले आईडी अकाउंट में क्रमशः 50, 75 या 100 डौलर आ जाने वाले थे. वह रकम तब डालर के रुपये में वैल्यू के हिसाब से जमा की गई राशि से कुछ अधिक ही थी. उसने तुरंत दो मेंबरशिप ले ली. एक अपनी और दूसरी पत्नी के नाम आईडी बना डाले. बदले में उसे जमा की गई रकम के कमीशन के चेक भी मिल गए. उसे कंपनी के हजारों करोड़ डौलर से अधिक मल्टीनेशनल बिजनेस से जुड़े विभिन्न देशों के हजारों लोगों की मोटी आमदनी के बारे बताया गया. साथ ही समय-समय पर महंगी गाड़ियां, बाइक, फ्लैट या इलेक्टाॅनिक गजेट व घरेलू सामानों के उपहार मिलने की भी बात कही गई. यह सब उसके लिए किसी सपने से कम नहीं था. इसे पाने के लिए वह जीतोड़ मेहनत करने से पीछे नहीं हटने वाला था.
वह कंपनी के नियम और शर्तों का पालन करते हुए ज्यादा से ज्यादा लोगों को मेंबर बनाने में जुट गया. हर नए मेंबर से उसे कमीशन की आमदनी होने लगी. वह कमीशन की राशि काटकर कंपनी के पोर्टल पर पैसे जमा कर दिया करता था. कंपनी द्वारा होने वाली उसकी आमदनी का शुरूआती जरिया यही था. अतिरिक्त मोटी आमदनी के लिए तबतक इंतजार करना था, जबतक कि उसके आईडी आकाउंट में 500 डालर जमा नहीं हो जाते. वह बड़ी राशि सीधे उसके बैंक आउंट में ट्रांस्फर होने वाले थे. मेंबरशिप का पैसे जमा करते ही आईडी अकाउंट में 72 घंटे के भीतर आमदनी की राशि जुड़ने लगी. वह उन पैसों का अपने बैंक खाते में ट्रांस्फर होने का इंतजार करने लगा. बताया गया था कि टैक्स कटकर आमदनी की रकम स्वतः उसके खाते में आ जाएगी.
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रामनरेश को आनलाइन काम करने की एक छोटी ट्रेनिंग मिली, लेकिन पोर्टल में दिए गए नियम और शर्तें अंग्रेजी में होने के कारण ठीक से नहीं समझ पाया. इसकी उसने जरूरत भी नहीं समझा और अपने दोस्त की बातों पर भरोसा कर कंपनी का सेल्स एजेंट बन गया. इस काम में दोस्त को सीनियर मानकर उसके बताए तरीके पर मेंबर बनाने लगा.

कुछ महीने में ही रामनरेश ने 200 से अधिक मेंबर बना लिए. सीनियर से मिली जानकारी के हिसाब से उसकी आईडी के खाते में 500 डालर से अधिक आ जाने चाहिए थे, जो 325 पर आकर ही अटक गया था. इस बारे में उसे सीनियर से पूछने पर मालूम हुआ कि ऐसा उसके द्वारा चेन सिस्टम के पिरामिड रूल को फाॅलो नहीं करने के कारण हुआ.
मल्टी लेवल मार्केटिंग यानी कि एमएलएम के अनुसार उसकी आईडी के दोनों साइड से मेंबर बनने चाहिए थे. उसे बनाए मेंबर पर भी मेंबरशिप के लिए दबाव बनाना चाहिए था. खैर, उसे पोजेटिव बने रहकर मेंबरशिप पर ध्यान देना होगा. फिलहाल उसे कमीशन की ही आमदनी होने वाली है. एक डांट के साथ आश्वासन भी मिला कि उसकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी. काफी कम समय में टार्गेट पूरा करने पर वह कंपनी द्वारा दिल्ली के किसी फाईव स्टार होटल में सम्मानित किया जा सकता है. हो सकता है लैपटाॅप, एप्पल का स्मार्टफोन या बाईक गिफ्ट में मिले. वह खुश हो गया और नए जोश के साथ मेंबर बढ़ाने में जुट गया.
करीब डेढ़ साल गुजर गए. अमीर बनने का सपना संजोए रामनरेश के बैंक खाते में न तो एक रुपया ट्रांसफर हुआ, और न ही उसे कोई गिफ्ट मिला. धीरे-धीरे मेंबर बनने भी बंद हो गए. कमीशन की आय तक रूक गई. एक दिन उसे पता चला कि वेबसाइट ही ब्लाॅक हो गई है. उसके जैसे हजारों लोगों के पैसे डूब गए. उस दौरान उसने करीब 10 लाख रुपये कंपनी को दे दिए थे. उसे घर बैठे पार्ट टाइम बिजनेस बताने वाला दोस्त दूसरी कंपनी की मार्केटिंग में लग गया था. हालांकि रामनरेश घाटे में नहीं रहा. उसने भी इस दौरान तीन लाख रुपये के करीब कमाई कर ली थी.
फरीदाबाद के रहने वाले अखिलेश को भी ऐसी ही मार्केटिंग का बेहद कड़वा अनुभव है. उसे बड़ा नुकसान उठाना पड़ा. कंपनी के नाम अलग थे. बदले हुए नियम और शर्तों के मुताबिक मेंबरशिप की राशि के बराबर सोने के सिक्के मिलने थे. उसने अधिक कमीशन पाने के लिए अपने पैसे लगाकर दर्जनों मेंबर बनाए. अपनी चेन पूरी करने की लालच में करीब 15 लाख रुपये कंपनी को दे दिए. बाद में पता चला कि सिक्के असली नहीं थे, बल्कि वर्चुअल करेंसी काॅइन थी. नतीजा उसके हाथ कुछ नहीं आया और पोर्टल की साइट ही बंद हो गई.
देशभर में अखिलेश और रामनरेश जैसे ठगे जाने वालों की फेहरिश्त लंबी है. वे शहरों-महानगरों के अलावा गांव-कस्बे तक हो सकते हैं. सभी ‘कौईन’ को डाॅलर और फिर रुपया में बदलने के चक्कर में अपने और दूसरों के लाखो रुपये गंवा चुके हैं. बाद में पता चला कि उनकी सारी कमाई एक विदेशी महिला ने हड़प ली है. क्रिप्टोकरेंसी की वर्चुअल करेंसी का खेल उसी ने खेला था. इतना ही नहीं उसने ’वनकौइन’ के नाम से फर्जी डिजिटल करेंसी तक इजाद कर ली थी. उसके द्वारा लोगों को डौलर, पौंड, यूरो या रुपे में निवेशकर मोटा मुनाफा कमाने के सपने दिखाए गए थे. उसने विभिन्न देशों में इसके प्रमोटर बना लिए थे, जो वेबपोर्टलों के जरिए एमएलएम के हिस्सेदार थे.
वह महिला है बुल्गारिया की 36 वर्षीया डा. रुजा इग्नातोवा, जो खुद को क्रिप्टोकरेंसी की महारानी कहा करती थीं. उसने लोगों को यह कहकर धोखा दिया था कि उन्होंने डिजिटल करेंसी या कहें वर्चुअल करेंसी ‘बिटकौइन’ के मुकाबले वनकौइन के नाम से एक नई क्रिप्टोकरेंसी ईजाद की है. यही नहीं, उसने लोगों को इस करेंसी में लाखों करोड़ों डाॅलर और यूरो करेंसी निवेश करने के लिए भी राजी कर लिया था. फिर अचानक गायब हो गईं. उसे अंतिम बार एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान मई 2017 में देखा गया था.
रुजा ने फर्जी डिजिटल करेंसी बनाकर ये काम आखिर किया कैसे? वह अचानक कहां गायब हो गई? इन दिनों कहां छिपी है? ये सवाल किसी गहरे रहस्य से कम नहीं हैं. उसे तलाशने की कोशिश विदेशी मीडिया के अलावा कई देशों की पुलिस भी कर रही है. यहां तक कि भारतीय पुलिस भी उसे पोंजी स्कीम चलाने के अपराध का अभियुक्त बना चुकी है. उसके खिलाफ आरोप पत्र तैयार किया गया है. उसपर 11 जुलाई 2017 से ही डिजिटल मुद्रा निवेश योजना की धोखाधड़ी का आरोप लगा हुआ है. नवी मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा लगाई गई चार्जशीट में वनकाॅइन से जुड़े दर्जनों प्रमोटर शामिल हैं. पुलिस उनपर नकेल कसने की कोशिश में है. यह पहल तब हुई थी जब मुंबई पुलिस ने अप्रैल 2017 में एक प्रमोशन प्रोग्राम के दौरान ऐसे ही एक ग्रुप को गिरफ्तार किया था.
भारत दुनिया भर के कई देशों में से एक है, जिसमें कानून प्रवर्तक एजेंसियां वनकॅाइन के खिलाफ जांच में जुटी है. आरोपी रुजा को सार्वजनिक तौर पर मकाऊ में देखा गया था. तब वहां उसका भव्य जन्म दिन मनाया गया था. मुंबई पुलिस इस मामले में जांच के परिणाम स्वरूप करीब 30 लोगों को आरोपी बना चुकी है. हालांकि जांचकर्ताओं को इसमें शामिल कुछ लोगों के साथ धोखाधड़ी के बारे में बात करने में मुश्किल आ रही है. कारण सभी पोंजी स्कीम के तहत आते हैं. एक सीनियर कानून प्रवर्तक अधिकारी के अनुसार इस तरह की स्कीम में निवेशक अपराधियों के साथ-साथ पीड़ित भी बन जाते हैं. इसलिए उनपर कार्रवाई करना आसान नहीं होता है.
क्रिप्टोकरेंसी की महारानी रुजा का जाल
बात जून 2016 के शुरुआती दिनों की है. एक बिजनेस वुमन डॉक्टर रुजा इग्नातोवा लंदन के मशहूर वेम्बली अरेना में अपने हजारों चाहने वालों के सामने स्टेज पर नमूदार हुई थी. तब लोग उसकी खूबसूरती और लटके-झटके को हसरत भरी निगाहों से देखते ही रह गए. उसने हमेशा की तरह महंगा बॉलगाउन पहन रखा था. कानों में हीरे के लंबे-लंबे झूलते हुए झुमके चमक बिखेर रहे थे. होठों पर चटख सुर्ख लिपस्टिक लगी थी. इस लुक में उसकी उम्र का अंदाजा लगाना सहज नहीं था कि वह 36 साल की है. उसकी एक-एक चाल, बोलने की शैली और अदाओं से संभ्रांतता झलक रही थी. वह पूरे जोश में थी. हाथ में माइक थामे स्टेज पर झूमती हुई अपने चाहने वालों को रुजा ने इस आयोजन का खास मकसद बताया था. उसने छोटे से अभिभाषण में वनकाॅइन की खूबियां गिनावाते हुए कहा था कि उसने एक ऐसी डिजिटल करेंसी इजाद की है, जो बहुत जल्द ही दुनिया की सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी बनने वाली है. आने वाले दिनों में सारी दुनिया में हर कोई इसी वर्चुअल करेंसी के सहारे पैसे का भुगतान करेगा. औनलाइन ट्रांजेक्शन में वहकाॅइन का ही सिक्का चलेगा, क्योंकि यह काफी सुरक्षित और आसानी से इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी है.
उपस्थित लोग उसकी बातों पर आखिर क्यों नहीं भरोसा करते? उसने दावे के साथ कहा था कि भले ही दुनिया की पहली क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन भले ही आज सबसे ज्यादा जानी-पहचानी जाती हो, लेकिन अब इससे अच्छी नई करेंसी वनकाॅइन आ गई है. इसके आगे बिटकाॅइन नहीं टिकने वाली है. रुजा ने समझाया था कि वनकौइन, बिटकौइन की खामियों को खत्म करने वाली अद्भुत डिजिटल करेंसी है. आने वाले दिनों में कोई भी बिटकौइन का जिक्र तक नहीं करेगा. इसका प्रमाण है कि दुनिया भर में लोग वनकॉइन को एक नई क्रांति मान कर इसमें पैसा लगा रहे थे.
इस लुभावने दावे का जबरदस्त असर हुआ. रुजा की सभी तरह की मीडिया में जबरदस्त तारीफ हुई. उसने जैसा चाहा था वैसा ही परिणाम आया. इस बारे में बीबीसी को मिले दस्तावेजों के मुताबिक 2016 के पहले छह महीने में ही ब्रिटेन के नागरिकों ने वनकौइन में करीब 3 करोड़ यूरो का निवेश कर दिया था. इसमें 20 लाख यूरो तो महज एक हफ्ते में ही निवेश किए जा चुके थे. रुजा ने वनकौइन को लेकर वेम्बले में हुए भव्य कार्यक्रम के बाद तो जैसे निवेश के लिए लोगों को एक तरह से राजी करते हुए जाल बिछाकर दाना डाल दिया था.
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प्राप्त जानकारी के अनुसार अगस्त 2014 से मार्च 2017 के बीच दुनिया भर के कई देशों से करीब चार अरब यूरो का निवेश वनकौइन में किया गया था. इसमें भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्ला देश और ब्राजील, दक्षिण अफ्रीकी देशों से लेकर हौन्गकौन्ग, नौर्वे, क्यूबा, यमन यहां तक कि फिलस्तीन जैसे देशों के नागरिक भी शामिल थे. हैरत की बात यह थी कि वनकॉइन में धड़ाधड़ निवेश कर रहे लोग इससे की जा रही धोखाधड़ी से अनभिज्ञ थे.
बिटकौइन बनाम वनकौइन
कुछ लोग काफी समय से एक ऐसी करेंसी विकिसत करने की कोशिश में लगे थेे, जिस पर किसी सरकार की पाबंदी नहीं हो. इसी सिलसिले में डिजिटल करेंसी बिटकाॅइन इजाद किया गया. इसे सुरक्षित होने और इसमें किसी भी तरह की जालसाजी की संभावना नहीं पाए जाने के प्रति लोगों को आश्वस्त किया गया. टेक्नोलौजी के जमाने में एक खास तरह के डेटाबेस पर आधारित बिटकौइन ने लोगों के इस डर को खत्म कर दिया था.

करेंसी की दुनिया में तकनीकी तौर पर इसे ब्लौकचेन कहते हैं. ये एक बड़ी सी डायरी की तरह होता है. एक ब्लौकचेन उसके मालिक के पास होता है, लेकिन इससे अलग इस ब्लॉकचेन की कई कौपी होती हैं. हर बार जब भी किसी और को एक भी बिटकौइन भेजा जाता है, तो इसका लेखा-जोखा सभी बिटकॉइन मालिकों के पास मौजूद बिटकौइन रिकौर्ड बुक में दर्ज हो जाता है. इस रिकौर्ड में कोई भी किसी भी तरह का बदलाव नहीं कर सकता. यहां तक कि इस ब्लौकचेन का मालिक या फिर इस रिकॉर्ड बुक को तैयार करने वाला भी इसमें कोई बदलाव नहीं कर सकता.
इसके पीछे जटिल गणित काम करता है, जिसे हर कोई आसानी से नहीं समझ सकता है. इस कारण इसे पूरी तरह से सुरक्षित समझना एक भूल हो सकती है. इसकी खामियां भी है. इसकी न केवल कौपी हो सकती है, बल्कि इसे हैक भी किया जा सकता है. या फिर इनका दो बार इस्तेमाल तक हो सकता है. इन खामियों के बावजूद कारोबार की दुनिया में बिटकौइन एक तरह की क्रांतिकारी डिजिटल करेंसी मानी गई, जिसके इस्तेमाल की मान्यता भारत में भी है. हालांकि इसे प्रतिबंधित कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 4 मार्च को इसके इस्तेमाल की कानूनी मान्यता दे दी है. इस तहर के क्रिप्टोकरेंसी में तमाम बैंकों और राष्ट्रीय मुद्रा को पीछे छोड़ने की क्षमता के कारण इसकी बदौलत निवेशकों को फोन पर ही बैंकिंग की सुविधा मिलने लगी. कारोबारियों को किसी भी करेंसी में पैसे के लेन-देन की सहुलियत मिल गई. इस पंक्ति के लिखे जाने तक एक बिटकौइन की कीमत 5,11,272 रुपया थी. डा. रुजा ने इसी मौके को भुनाने का मन बनाया था और लोगों को सपने बेचने की योजना बना डाली.
इसके लिए रुजा की कंपनी को एक ऐसे शख्स की तलाश थी, जो ब्लौकचेन तैयार कर सके. उनकी कंपनी ने ब्लौकचेन बनाने में माहिर एक साफ्टवेयर डेवलपर ब्योन बियर्क से संपर्क किया. अक्टूबर 2016 में बियर्क के पास एक फोन आया. फोन करने वाले ने इन्हें नौकरी की पेशकश की. इस ऑफर में बियर्क को रहने के लिए घर, कार और सालाना ढाई लाख पौंड की तनख्वाह का प्रस्ताव दिया गया. फोन करने वाले ने अपनी कंपनी के बारे में बताया कि ये पूर्वी यूरोपीय देश बुल्गारिया की एक क्रिप्टोकरेंसी स्टार्ट-अप है. कंपनी को एक तजुर्बेकार टेक्निकल चीफ की जरूरत है.
ब्योर्न बियर्क उस नौकरी की पेशकश करने वाले से जब पूछा कि कंपनी में उसका काम क्या होगा, तब जवाब मिला कि कंपनी के लिए ब्कौचेन तैयार करनी है. कपंनी के कार्य के बारे में बताया गया कि वह एक क्रिप्टोकरेंसी कंपनी है, जो पिछले कुछ ही समय से काम कर रही है. कंपनी का नाम वनकॉइन बताया गया. यह सुनते ही ब्योर्न बियर्क ने नौकरी की ये पेशकश ठुकरा दी.
उन्हीं दिनों गलास्गो की रहने वाली जेन मेकएडम को उसके एक दोस्त ने वनकाॅइन के बारे में बताया. जेन ने अपना कंप्यूटर ऑन किया और दोस्त द्वारा भेजे गए एक लिंक पर क्लिक कर वनकौइन के औनलाइन वेबिनार सेमिनार को देखा. करीब सवा घंटे के वीडियो में उसने क्रिप्टोकरेंसी के बारे में जाना. साथ ही वह डा. रुजा के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हो गई. उसने महसूस किया कि उसकी भी किस्मत बदल सकती है. सेमिनार में सभी लोग बहुत खुश थे. सभी अपने अनुभव सुनाते हुए एक ही बात बता रहे थे कि कैसे उनकी किस्मत बदल सकती है. वीडियो में यह भी कहा गया कि वह बहुत खुशकिस्मत हैं कि उसे इससे जुड़ने का अवसर मिला है.
औनलाइन सेमिनार में डा. रुजा के बारे में जबरदस्त तरीके से बताया गया था. रुजा ने औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी. उन्होंने कोन्सतान्ज से पीएच-डी की डिग्री हासिल की थी. उन्होंने मैकिन्से एंड कंपनी में मैनेजमेंट सलाहकार के तौर पर काम भी किया था. सबसे बड़ी बात यह थी कि इस सेमिनार को जानी-मानी पत्रिका दी इकॉनोमिस्ट द्वारा आयोजित किया गया था, जिसमें डॉ. रुजा को कंफ्रेंस के जरिए ऑनलाइन दिखाया गया था.
वीडियो देखने के बाद जेन डॉ.रुजा के सशक्त महिला के किरदार से बेहद प्रभावित हो गई थी. यहां तक कि उसने तुरंत वनकॉइन में एक हजार यूरो निवेश करने का फैसला भी कर लिया था. ये बहुत ही आसान था. इसके लिए आॅनलाइन एक वनकॉइन टोकन खरीदने की जरूरत थी, जो वनकॉइन करेंसी में बदल जाएगा और आईडी अकाउंट में आ जाएगा. उन्हें बताया गया कि एक दिन ऐसा आएगा जब जेन अपने खरीदे गए वनकॉइन को यूरो और पाउंड में तब्दील कर देगी, जो जमा की गई रकम से कहीं ज्यादा होगी. जेन मैकएडम को लगा कि ये तो पैसे कमाने का शानदार और आसान तरीका है. इस बेहतरीन क्रिप्टोकरेंसी में निवेश के लिए शायद एक हजार यूरो कम हैं. यह उसकी जिंदगी में काफी बदलाव लाने का मौका मिला है.
उत्साही जेन को देख कर प्रमोटर ने बताया कि सबसे छोटा पैकेज 140 यूरो का था. लेकिन, उनके पास तो एक लाख 18 हजार यूरो तक के पैकेज भी हैं. यानी वह छप्परफाड़ मुनाफा कमा सकती है. एक हफ्ते बाद ही जेन मैकएडम ने पांच हजार यूरो का टाइकून पैकेज खरीद लिया. जल्द ही ऐसा समय भी आया जब जेन ने न केवल अपने दस हजार यूरो वनकॉइन में लगा ही दिए, बल्कि अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों के भी करीब ढाई लाख यूरो का निवेश इस नई क्रिप्टोकरेंसी में कर दिया था.
उसके बाद वह बार-बार वनकॉइन की वेबसाइट देखने लगी. जैसे ही उनके वनकाॅइन की कीमत बढ़ती, वह जबरदस्त खुशी महसूस करती. जल्द ही जेन के वनकॉइन की कीमत एक लाख पाउंड पहुंच गई. यानी उनके निवेश से दस गुना ज्यादा रिटर्न मिलने वाला था. इस रकम को देख कर जेन छुट्टियों पर जाने और ढेरसारी शॉपिंग करने की योजनाएं बनाई. उसी साल के आखिर में एक अजनबी ने इंटरनेट के माध्यम से जेन मैकएडम से संपर्क किया. उसने कहा कि वह लोगों की मदद करना चाहता है. उसने जेन से यह भी कहा कि उसने वनकॉइन के बारे में गहराई से पड़ताल की है और अब उनलोगों से बात करना चाहता है, जिन्होंने इसमें निवेश किया है.
जेन ने बड़ी अनिच्छा से उस व्यक्ति से स्काइप के जरिए बात करने के लिए हामी भरी. उनकी बातचीत सहजता और शांतिपूर्ण ढंग से शुरू हुई, लेकिन बहुत जल्द ही वे एक-दूसरे पर तीखी टिप्पणियां करने लगे, जो चिल्लाने के मुकाबले से कम नहीं थे. हालांकि उस अजनबी से हुई बातचीत ने जेन की जिंदगी को एक नई दिशा में मोड़ दिया. अजनबी का नाम टिमोथी करी था. वह बिटकॉइन में दिलचस्पी रखने वाला व्यक्ति था. वह क्रिप्टोकरेंसी की जमकर वकालत करता था. उसका कहना था कि वनकॉइन की वजह से क्रिप्टोकरेंसी बदनाम हो जाएंगी. यही कारण था कि उसने जेन मैकएडम को दो टूक शब्दों में कहा था कि वनकॉइन असल में एक घोटाला है. उसने काफी कड़े शब्दों में गाली देते हुए कहा था कि यह दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला है. यही नहीं उसने ये भी कहा कि वह इस बात को साबित भी कर सकता है. इस पर जेन भड़क गई थी और उन्होंने तीखे लहजे में कहा,‘‘ ठीक है, फिर तुम मुझे साबित कर के दिखाओ.’’
उसके बाद कुछ हफ्तों तक टिमोथी करी ने जेन को डिजिटल करेंसी के बारे में ढेर सारी जानकारियां भेजी. उन्हें बताया कि क्रिप्टोकरेंसी कैसे काम करती है. टिमोथी ने इस संबंध में जेन को कई लिंक, लेख, यू-ट्यूब वीडियो और दूसरी सामग्री भेजे. टिमोथी ने जेन का संपर्क क्रिप्टोकरेंसी के एक्सपर्ट ब्योर्न बियर्क से कराया. ब्योर्न एक ब्लॉकचेन के डेवेलपर हैं. उन्होंने ही जेन को बताया कि वनकॉइन के पास कोई ब्लॉकचेन नहीं है.

जेन मैकएडम अब अपने पैसे डूबने की आशंका से डर गई थी. उन्हें टिमोथी की भेजी सारी जानकारी पढ़ने-सुनने और समझने में करीब तीन महीने का समय लग गया. क्रिप्टोकरेंसी की तमाम जानकारियां मिलने के बाद जेन ने अपने वनकॉइन ग्रुप के लीडर से पूछा कि क्या वनकाॅइन की कोई ब्लॉकचेन है? या फिर नहीं है. शुरू में तो उसे ये बताया गया कि उसे इस बारे में जानने की जरूरत ही नहीं है, लेकिन, जब जेन ने जोर देकर ये बात जाननी चाही, तो उसे आखिर में इसकी हकीकत का पता चला. इस सच के बारे में जेन को अप्रैल 2017 में एक वॉयसमेल के जरिए मालूम हुआ. वह वाॅयस मेल था-‘‘ ठीक है… जेन! वे ये जानकारी लोगों को नहीं देना चाहते, क्योंकि इस बात का डर है कि जहां पर ब्लॉकचेन को रखा गया है, उसे कोई खतरा नहीं हो. इसके अलावा, एक एप्लिकेशन के तौर पर इसे किसी सर्वर की जरूरत नहीं है…. … तो, हमारी ब्लॉकचेन तकनीक असल में एक एसक्यूएल सर्वर है, जिसका अपना डेटाबेस है.’’
इस जानकारी के मिलने पर जेन को टिमोथी और ब्योर्न बियर्क की मदद से यह भी मालूम हुआ कि कोई मानक एसक्यूएल सर्वर डेटाबेस के आधार पर असल में कोई क्रिप्टोकरेंसी विकसित ही नहीं की जा सकती. क्योंकि इस डेटाबेस का मैनेजर कभी भी इसके भीतर जाकर बदलाव कर सकता है. यह जानकारी जेन के लिए सदमे जैसी थी. उन्होंने बताया कि ‘‘मैंने तो ऐसा सोचा ही नहीं था. ये क्या हो गया?… और मेरे पांव सुन्न हो गए. मैं जमीन पर गिर पड़ी.’’
जेन, टिमोथी और ब्योर्न की सभी बातों का एक ही मतलब था कि वनकॉइन की वेबसाइट पर बढ़ रहे नंबरों का कोई मतलब नहीं था. वे केवल आंकड़े भर थे, जिन्हें वनकॉइन का कोई कर्मचारी कहीं दूर बैठकर कंप्यूटर पर टाइप कर रहा था. जेन और उन के दोस्तों, परिजनों ने अपनी पैसे की फिक्र को दूर करने के बजाय, अपनी सारी रकम, यानी करीब ढाई लाख यूरो वनकॉइन में झोंक दिए थे.
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लापता हो गई रुजा
जेन मैकएडम भले ही वनकाॅइन के जरिए ठगी की कड़वी सच्चाई को जान चुकी थी, लेकिन वनकॉइन के अधिकतर निवेशकों को इसकी हकीकत के बारे में नहीं मालूम था. दूसरी तरफ वनकॉइन की मार्केटिंग के लिए डॉ. रुजा पूरी दुनिया की सैर कर रही थीं. वह पूरी दुनिया में सपने बेचकर पैसा कमाने में लगी हुई थी. मकाऊ से लेकर दुबई और सिंगापुर तक. उन्हें देखने के लिए बड़े-बड़े स्टेडियम भर जाते थे. उसका आकर्षण ही ऐसा था कि नए-नए निवेशक वनकॉइन में पैसे लगाने के लिए तुरंत तैयार हो जाते थे. यह कहें कि वनकॉइन का तेजी से विस्तार हो रहा था. रुजा अपनी इस कमाई से नई-नई संपत्तियां खरीद रही थी. उन्होंने बुल्गारिया की राजधानी सोफिया और काला सागर के किनारे स्थित शहर सोजोपोल में लाखों डॉलर की संपत्ति खरीदी थी. अपने खाली समय में में रुजा अपनी महंगी और आलीशान याट, द डेविना में बड़ी-बड़ी दावतें देती थीं. जुलाई 2017 में हुई ऐसी ही एक पार्टी में अमरीकी पॉप स्टार बेब रेक्चा ने भी एक निजी कार्यक्रम पेश किया था.
रुजा की बेहद कामयाबी का राज जल्द ही लोगों की निगाह में आ गया. हजारों निवेशकों को उसके द्वारा किए गए निवेश को लेकर चिंता गहराने लगी. नतीजा वनकॉइन के साम्राज्य में मुश्किलों का तूफान उमड़ने लगा. वनकॉइन के क्वाइन को असली नकदी में बदलने के लिए एक एक्सचेंज खोलने का वादा किया गया था. लेकिन, उसमें बार-बार देर हो रही थी. यूरोपीय निवेशकों की चिंताएं बढ़ने का यही कारण भी था.
पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन में रुजा को अक्टूबर 2017 में एक कार्यक्रम में आना था. लेकिन, समय की बेहद पाबंद डॉ. रुजा नहीं आईं. इस सम्मेलन में शामिल हुए एक प्रतिनिधि ने बताया कि वह रास्ते में हैं. जबकि किसी को भी उसके बारे नहीं पता था कि वह कहां है. आयोजक और दूसरे प्रतिनिधियों द्वारा उसे बार-बार फोन कॉल किए जा रहे थे. मैसेज भेजे जा रहे थे. उन्हें कोई जवाब नहीं मिल पा रहा था. सोफिया स्थित वनकॉइन के मुख्यालय , जहां पर उनकी मौजूदगी लोगों में एक खौफ पैदा करती थी, के अधिकारियों को भी नहीं पता था कि रुजा कहां हैं? कुल मिलाकर डॉ. रुजा गायब हो गई थीं. कुछ लोगों को ये डर था कि या तो रुजा को बैंकों ने अगवा कर लिया है, या फिर उसे मार दिया गया है. उन्हें बताया गया था कि क्रिप्टोकरेंसी की इस क्रांति से बैंकों को ही सब से ज्यादा खतरा है. जबकि हकीकत ये थी कि डॉ. रुजा अंडरग्राउंड हो गई थीं.
डा.रुजा के अंडरग्राउंड होने की वजह थी उसके खिलाफ एफबीआई को मिली शिकायतें. एफबीआई के दस्तावेजों के अनुसार लिस्बन के सम्मेलन में नहीं शामिल होने के मात्र दो हफ्ते बाद रुजा रियान एयर की एक फ्लाइट से सोफिया से एथेंस के लिए रवाना हुई थी. उसके बाद उसके बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. वह आखिरी बार था, जब रुजा को किसी ने देखा या उसके बारे में सुना था.
मल्टी लेवल मार्केटिंग की काली दुनिया
यह सारा मामला मल्टी लेवल मार्केटिंग की काली दुनिया से जुड़ा हुआ है. इंटरनेट के आने से इसका फैलाव काफी दूर-दूर तक हो चुका है. नेटवर्किंग और टेक्नोलाॅजी ने सारी बाध्यताएं खत्म कर दी है. जेना की तरह इगोर अल्बर्ट्स भी वनकाॅइन से जुड़े रहे हैं. वे मल्टी लेवल मार्केटिंग के धुरंधर माने जाते हैं. इस धंधे में उसने काफी धन कमाया है. वे नीदरलैंड के एम्सटर्डम के बाहरी हिस्से में स्थित बेहद पॉश इलाके में एक विशाल मकान में रहते हैं. उनकी कोठी के सामने 10 फुट ऊंचा लोहे का फाटक लगा है. इस पर इगोर और उनकी पत्नी एंड्रिया का नाम खुदा हुआ है. साथ ही लिखा है, ‘पता नहीं कौन सा ख्वाब पूरा हो.’ कोठी के बाहर महंगी कारें मासेराती और एस्टन मार्टिन खड़ी रहती है. यह सब उसने मल्टी लेवल मार्केटिंग से ही अर्जित की है. एक समय में इगोर अल्बर्ट्स की परवरिश एक गरीब मुहल्ले में हुई थी. उस के बाद वे नेटवर्क मार्केटिंग या मल्टीलेवल मार्केटिंग के कारोबार से जुडकर खूब कमाई की. ढेर सारे पैसे कमाए. उसका दावा है कि उसने पिछले तीस सालों में मल्टी लेवल मार्केटिंग से करीब 10 करोड़ यूरो कमाए हैं.
मल्टी लेवल मार्केटिंग के काम करने का तरीका अनोखा है, जिसे गैरकानूनी करार नहीं दिया जा सका है. इसकी शुरूआत सामान्यतः हेल्थ-वेल्थ सुधारने वाली विटामिन या दूसरी हर्बल की दवाइयों से हुई. उसे सीधे बेचने के बजाय पहले दो लोगों को बेची जाती है. बिक्री से मार्केटिंग कंपनी और उत्पादक को मुनाफे के कुछ पैसे मिल जाते हैं. फिर दोनों व्यक्ति मार्केटिंग की चेन बनते हैं. वे जो भी बेचते हैं, उसका एक हिस्सा कंपनी को मिल जाता है. वे टीम की डाउनलाइन कहलाते हैं. इसी तरह से दोनों दो-दो और लोगों को अपने साथ जोड़ते हैं. फिर ये चारों भी अपने साथ दो-दो और लोगों को जोड़ लेते हैं. इस तरह से ये कड़ी बढ़ती चली जाती है. बहुत जल्द ही ये सिलसिला काफी बड़ा बन जाता है. उदाहरण के तौर पर वह इतना बड़ा बन सकता है कि 25-30 कड़ियों बाद दिल्ली जैसे महानगर के हजारों नागरिक दवाई की गोलियां बेचते नजर आ सकते हंै. इस सिलसिला या डाउनलाइन को शुरू करने वाले को सभी की बिक्री में से एक हिस्सा मिलता रहता है.
मल्टी लेवल मार्केटिंग अवैध नहीं मान गई है. इस धंधे में एमवे और हर्बालाइफ जैसी बड़ी कंपनियां इसी कारोबारी तरीके से अपने कारोबार का विस्तार कर चुकी है. परंतु हां, मल्टीलेवल मार्केटिंग विवादास्पद भी है. क्योंकि, आम-तौर पर बहुत कम लोग ही सारा मुनाफा हड़प लेते हैं. बहुतों को नुकसान होता है और वे हाथ मलते रह जाते हैं. ऐसी मार्केटिंग में मुनाफे के बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं और अधिकाधिक बिक्री का दबाव बनाया जाता है. यही इसकी बदनाम का कारण भी है. कई मामले में जब सारा पैसा केवल दूसरे लोगों को इस कड़ी से जोड़ कर ही कमाया जाता है, तो ये अवैध हो जाता है. इसे ही पिरामिड योजना के नाम से जाना जाता है.
इगोर अल्बट्र्स जब मई 2015 में ऐसी ही एक मार्केटिंग के तौर स्थापित हो चुके थे, तब उन्हें दुबई में वनकॉइन के एक कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया था. दुबई में इगोर की मुलाकात काफी लोगों से हुई थी. सभी नई डिजिटल करेंसी से काफी धन कमाने का इरादा रखते थे. वहीं डॉ. रुजा ने भी इगोर को प्रभावित किया. वहां वह एक राजकुमारी के लिबास में शामिल हुई थीं. उन्होंने लोगों को एक वित्तीय क्रांति के सपने दिखाए. इगोर को रुजा की स्कीम पसंद आई और नए मिशन की तैयारी में जुट गया. उन्होंने अपनी सेल्स टीम को निर्देश दिया कि उसके द्वारा किए जा रहे काम को रोककर केवल वनकॉइन बेचना शुरू करे. इगोर अपनी टीमों के साथ दीवानों की तरह काम करते हुए पहले महीने में ही शून्य से 90 हजार यूरो की रकम बना ली.
रुजा को इगोर जैसे मार्केटिंग करने वालों की ही तलाश रहती थी, ताकि उसे बड़ी-बड़ी डाउनलाइन या टीमों वाले मल्टीलेवल मार्केटिंग के कारोबारियों को अपने धंधे में शामिल कर सके. उनके जरिए रुजा के लिए फर्जी सिक्के की मार्केटिंग करना और उसको बेच पाना बहुत आसान था. इस योजना के बारे में एफबीआई ने दावा किया है कि रुजा कुछ खास लोगों के बीच ही मल्टी लेवल मार्केटिंग से गठजोड़ करती थी. उसकी वनकॉइन की कामयाबी का यही राज था. ये केवल एक फर्जी क्रिप्टोकरेंसी भर नहीं थी, बल्कि पुराने तौर-तरीके वाली पिरामिड योजना थी. इसका उत्पाद वनकॉइन का फर्जी डिजिटल सिक्का था.
बहुत जल्द ही इगोर अल्बर्ट्स वनकॉइन बेचकर हर महीने दस लाख यूरो से भी अधिक कमाई करने लगा. जल्द ही वह नेटवर्क मार्केटिंग का सबसे बड़ा उत्पाद बन गया. इस बारे में इगोर अल्बर्ट्स का कहना है कि बहुत कम समय में यह लोकप्रिय हो गया. कोई और कंपनी तो इसके आस-पास भी नहीं पहुंच सकी. इगोर अल्बर्ट्स पत्नी एंड्रिया सिम्बाला के साथ मिलकर वनकॉइन बेचे. उन्होंने जो कमाई की उसका 60 फीसद हिस्सा नकद में भुगतान किया गया. अंतिम दिनों में ये रकम हर महीने करीब बीस लाख यूरो के आस-पास थी. बाकी का भुगतान उन्हें वनकॉइन के तौर पर किया जा रहा था. इगोर ने बिल गेट्स से भी धनी बनने का गणित बिठाया था. इसके लिए उसने एंड्रिया से 10 करोड़ सिक्के जुटाने के लिए कहा था. क्योंकि 10 करोड़ सिक्के 10 करोड़ यूरो में तब्दील होने वाले थे. खैर इगोर का भी यह सपना जेना की तरह चूर हो गया.
इगोर ने भी कंपनी से ब्लॉकचेन होने का सबूत मांगा था. उन्हें भी कोई सबूत मिला और दिसंबर 2017 में उसने वनकॉइन का साथ छोड़ दिया. इस मामले में इगोर खुद को मुजरिम नहीं मानता, क्योंकि उन्होंने इतने सारे लोगों को ऐसे सिक्के में निवेश करने के लिए राजी किया, जो असल में था ही नहीं. जबकि इसके जरिए खूब पैसा भी कमाया. इसके विपरीत जेन के दिल पर बहुत बड़ा बोझ है, क्योंकि उन्होंने वनकॉइन बेच कर मात्र तीन हजार यूरो ही कमाए. इनमे 1800 यूरो उन्हें नकद मिले. इस रकम को भी उन्होंने वनकॉइन खरीदने में खर्च कर दिए. भारत में ऐसी मार्केटिंग करने वालों को तो पता ही नहीं होता है कि उसका सरगना कौन है. वे इगोर या उसके नीचे काम करने वाले सेल्स के लोगों से जुड़े होते हैं. उनकी वेबसाइटें खुलती-बंद होती रहती हैं. लोग जितना कमाते हैं उतना ही दूसरों का पैसा गंवा देते हैं.
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वनकाॅइन की कार्पोरेट बुनावट
वनकॉइन की कॉरपोरेट बुनावट जितनी पेचीदा थी, रुजा उतनी ही निर्भिक. उसने बुल्गारिया की राजधानी सोफिया के बीचो-बीच एक विशाल संपत्ति खरीदी थी. तकनीकी रूप से इस संपत्ति पर वन प्रॉपर्टी नाम की कंपनी का मालिकाना हक था. वन प्रॉपर्टी की मालिक एक और कंपनी थी, जिसका नाम रिस्क लिमिटेड था. इस रिस्क लिमिटेड की मालकिन रुजा थीं. जबकि उन्होंने ये कंपनी पनामा के रहने वाले किसी गुमनाम व्यक्ति के नाम कर दी थी. मजे की बात ये है कि कंपनी तो पनामा के उस अनजान शख्स के नाम हो गई, मगर इसका प्रबंधन पेरागॉन नाम की कंपनी के पास था. पेरागॉन की मालकिन एक और कंपनी थी, जिसका नाम था आर्टेफिक्स. उसकी मालकिन रुजा की मां वेस्का थीं. फिर 2017 में आर्टेफिक्स को 20 साल के आस-पास की उम्र के एक अनजान शख्स को बेच दिया गया था. एक फ्रेंच पत्रकार मैक्सिम ग्रिम्बर्ट ने कई महीनों तक वनकॉइन की कॉरपोरेट संरचना को समझने की कोशिश की. उन्होंने इससे जुड़ी अधिक से अधिक कंपनियों के नाम और बैंक के खातों का पता लगाने की कोशिश की. रुजा के आसानी से छिप जाने या लापता होने के लिए इतना ही काफी है. इस मामले की तह में जाने के प्रयास में जुटे बीबीसी के पत्रकार और मनीलैंड के विशेषज्ञों के अनुसार अक्सर ऐसे फर्जीवाड़े करने वाले ब्रितानी कंपनियों को ही तरजीह देते हैं. क्योंकि उन्हें खड़ी करना आसान होता है और वो कानूनी रूप से वैध भी लगती हैं.
बहरहाल, अमेरिका के डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस का दावा है कि उसके पास इस घोटाले का पूर्वी यूरोप के संगठित आपराधिक गिरोहों के अहम लोगों और रुजा के भाई कॉन्सटैंटिन इग्नातोव से ताल्लुक के सबूत हैं. रुजा के लापता होने के बाद वनकॉइन को चलाने का काम उसके भाई कॉन्सटैंटिन ने अपने हाथ में ले लिया था. कॉन्सटैंटिंन इग्नातोव 6 मार्च 2019 को वनकाॅइन से जुड़ी कुछ बैठकों में शामिल होने के लिए अमेरिका आया था. उस दिन वह लॉस एंजेलेस हवाई अड्डे पर मौजूद था. हवाई अड्डे पर बुल्गारिया वापस जाने की फ्लाइट पकड़ने का इंतजार कर रहा था. उसके विमान पर सवार होने से पहले ही एफबीआई के एजेंटों ने उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया. उसपर वनकॉइन के फर्जीवाड़े के आरोप लगाए गए. उसी समय अमरीकी अधिकारियों ने डॉक्टर रुजा पर उन की गैरमौजूदगी में डिजिटल फर्जीवाड़े, सुरक्षा के फर्जीवाड़े और मनी लॉन्डरिंग के अभियोग भी लगाए. हैरत की बात यह है कि रुजा के भाई की गिरफ्तारी और उसके फरार घोषित होने के बावजूद वनकॉइन के काम का सिलसिला जारी है. वनकॉइन के दफ्तर में चहल-पहल बनी हुई है.