पंचायत चुनाव से गांवों तक पहुंच रहा कोरोना संकट

जिस समय कोरोना की दूसरी लहर से पूरे देश में तांडव मचा हुआ है, उसी समय उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हो रहे हैं. पंचायत चुनाव के प्रचार में न तो लोग मास्क पहन रहे हैं, न ही दो गज की दूरी किसी का पालन नहीं हो रहा है. ऐसे में चुनाव प्रचार के साथसाथ कोरोना का प्रसार भी गांवों में हो रहा है.

जिन जिलों में पंचायत के चुनाव हो चुके हैं, वहां पर कोरोना के मामले ज्यादा निकल रहे हैं. कई जिलों से मतदान में ड्यूटी करने वाले कर्मचारियों के कोरोना पौजिटिव होने के मामले भी सामने आए हैं. कर्मचारी संगठन भी इस के खिलाफ आवाज उठाने लगे हैं.

उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव 4 चरणों में हो रहे हैं. 15 अप्रैल और 19 अप्रैल के 2 चरणों के मतदान हो चुके हैं. 26 अप्रैल और 29 अप्रैल वाले 2 चरणों में मतदान होेने वाला है. एक गांव में कम से कम 1500 वोटर हैं. ग्राम प्रधान, पंच, ब्लौक सीमित सदस्य और जिला पंचायत सदस्य के 4 पदों पर मतदान हो रहा है. ऐसे में 4 तरह के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. वे सभी बड़ी संख्या में लोगों के साथ प्रचार कर रहे हैं.

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कोरोना की दूसरी लहर की शुरुआत भी अप्रैल के दूसरे हफ्ते से ही शुरू  हुई. जैसेजैसे चुनाव आगे बढ़ रहे हैं, उसी तरह से कोरोना संक्रमण भी आगे बढ़ रहा है.

प्रचार और मतदान ड्यूटी से कोरोना का खतरा

गांवगांव कोरोना का संकट 2 तरह से फैल रहा है. एक तो चुनावी प्रचार से दूसरा मतदान करने आने वाले वोटर और मतदान में ड्यूटी करने आने वाले कर्मचारी इस संक्रमण को बढ़ा रहे हैं.

सुलतानपुर जिले में लंभुआ के कोटिया निवासी सुरेश चंद्र त्रिपाठी दुबेपुर ब्लौक के उच्च प्राथमिक विद्यालय उतुरी में सहायक अध्यापक नियुक्त थे. उन्हें चुनाव अधिकारी बना कर चांदा के कोथराखुर्द भेजा गया. उन्हें कई दिनों से बुखार आ रहा था. इस के बाद भी उन की कोरोना की जांच नहीं हुई.

सुरेश चंद्र त्रिपाठी अपनी जांच कराने और चुनावी ड्यूटी से छुट्टी देने के लिए बारबार कहते रहे, पर विभाग के लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. न तो उन की जांच हुई, न ही उन की ड्यूटी कटी.

19 अप्रैल को पंचायत चुनाव के दूसरे फेस में चुनावी ड्यूटी के दौरान सुरेश चंद्र त्रिपाठी की तबीयत खराब हुई. इस के बाद उन्हें जिला अस्पताल सुलतानपुर भेजा गया, जहां उन की मौत हो गई. मौत के बाद जांच पर पता चला कि वह कोरोना पौजिटिव भी थे.

ऐसे में सोचा जा सकता है कि कोरोना का संक्रमण किस तरह से फैल रहा है. सुरेश चंद्र त्रिपाठी के संपर्क में गांव के तमाम लोग आए होंगे. न तो उन की जांच मुमकिन है और न ही उन का पता लगाया जा सकता है. इस तरह से पंचायत चुनाव में गांवगांव कोरोना फैलने का डर बना हुआ है.

इंडियन पब्लिक सर्विस इंप्लौइज फैडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बीपी मिश्रा और महामंत्री प्रेमचंद्र ने प्रधानमंत्री और चुनाव आयोग को चिट्ठी भेजी है. इस में लिखा है कि कोरोना जैसी महामारी को देखते हुए देशभर में हो रहे चुनावों को स्थगित कर दिया जाए, क्योंकि चुनाव ड्यूटी में लगे हजारों कर्मचारी संक्रमित हो रहे हैं. चिट्ठी में कहा गया है कि चुनाव में कोविड प्रोटोकौल का पालन करा पाना मुमकिन नहीं है.

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80 फीसदी तक हो रहा मतदान

पंचायत चुनावों में 80 फीसदी तक मतदान हो रहा है, जिस से यह समझा जा सकता है कि कितनी ज्यादा भीड़ वोट डालने के लिए लाइनों में लगती है. किसी भी लाइन में 2 गज की दूरी का कोई पालन नहीं होता है. पुलिस के डर से वोट डालते समय भले ही लोग मास्क का इस्तेमाल कर लें, पर चुनाव प्रचार में मास्क का इस्तेमाल तकरीबन न के बराबर होता है.

वोट डालने के लिए मतदाताओं को मुंबई, सूरत, पंजाब और दिल्ली से गांव बुलाया गया. ये लोग प्राइवेट गाड़ी कर के गांव में वोट डालने आए और वहां से वापस अपनी जगह चले गए. ऐसे बाहरी लोग कोरोना संक्रमण फैलने की सब से बड़ी वजह हैं. जिन जिलों में पहले और दूसरे चरण का मतदान हो चुका है, वहां कोरोना के मरीज सब से ज्यादा मिलने लगे हैं. इस से साफ है कि पंचायत चुनाव कोरोना संक्रमण को बढ़ाने वाला साबित हो रहा है.

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Serial Story: निकम्मा बाप- भाग 3

लेखक- हेमंत कुमार

जसदेव ने शहर पहुंच कर कुछ मिठाइयां साथ ले लीं. सोचा कि बच्चों और शांता से काफी दिन बाद मिल रहा है, खाली हाथ कैसे जाए और अब तो

वे नन्हा मेहमान भी राह देख रहा होगा उस की.

जसदेव ने अपने दोनों हाथों में मिठाइयों का थैला पकड़े शांता का दरवाजा खटखटाया. कमरे के बाहर नया पेंट और सजावट देख कर उसे लगा कि शांता अब अच्छे पैसे कमाने लगी है शायद.

हलका सा दरवाजा खुला और एक अनजान औरत दरवाजे से मुंह बाहर निकाल कर जसदेव से सवाल करने लगी, ‘‘आप कौन…?’’

‘‘जी, मुझे शांता से मिलना था. वह यहां रहती है न?’’ जसदेव ने पूछा.

‘‘शांता, नहीं तो भाई साहब, यहां तो कोई शांता नहीं रहती. हम तो काफी दिनों से यहां रह रहे हैं,’’ उस औरत ने हैरानी से कहा.

‘‘बहनजी, आप यहां कब आई हैं?’’ जसदेव ने उस औरत से पूछताछ करते हुए पूछा.

‘‘तकरीबन 2 साल पहले.’’

जसदेव वहां से उलटे पैर निकल गया. उस के मन में कई बुरे विचार भी आए, पर अपनेआप को तसल्ली देते हुए खुद से ही कहता रहा कि शायद शांता गांव वापस चली गई होगी. जसदेव शांता की खबर लेने शहर में रह रहे अपने दोस्तों के पास पहुंचा.

पहली नजर में तो जसदेव के बचपन का दोस्त फगुआ भी उसे पहचान नहीं पाया था, पर आवाज और कदकाठी से उसे पहचानने में ज्यादा देर नहीं लगी.

जसदेव ने समय बरबाद करना नहीं चाहा और सीधा मुद्दे पर आ कर फगुआ से शांता के बारे में पूछा, ‘‘मेरी शांता कहां है? मुझे सचसच बता.’’

फगुआ ने उस से नजरें चुराते हुए चुप रहना ही ठीक समझा. पर जसदेव के दवाब डालने पर फगुआ ने उसे अपने साथ आने को कहा. फगुआ अंदर से चप्पल पहन कर आया और जसदेव उस के पीछेपीछे चलने लगा.

कुछ दूरी तक चलने के बाद फगुआ ने जसदेव को देख कर एक घर की  तरफ इशारा किया, फिर फगुआ वापस चलता बना.

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फगुआ ने जिस घर की ओर इशारा किया था, वह वही कोठा था, जहां जसदेव पहले रोज जाया करता था. पर जसदेव को समझ में नहीं आया कि फगुआ उसे यहां ले कर क्यों आया है.

अगले ही पल उस ने जो देखा, उसे देख कर जसदेव के पैरों तले जमीन खिसक गई. कोठे की सीढि़यों से उतरता एक अधेड़ उम्र का आदमी रवीना की बांहों में हाथ डाले उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बैठ कर कहीं ले जाने की तैयारी में था. जसदेव भाग कर गया और रवीना को रोका. वह नौजवान मोटरसाइकिल चालू कर उस का इंतजार करने लगा.

रवीना ने पहले तो अपने बापू को इस भेष में पहचाना ही नहीं, पर फिर समझाने पर वह पहचान ही गई.

उस ने अपने बापू से बात करना भी ठीक नहीं समझा. रवीना के दिल में  बापू के प्रति जो गुस्सा और भड़ास थी, उस का ज्वालामुखी रवीना के मुंह से फूट ही गया.

रवीना ने कहा, ‘‘यह सबकुछ आप की ही वजह से हुआ है. उस दिन आप तो भाग गए थे, पर उन लोगों ने मां को नोच खाया, किसी ने छाती पर झपट्टा मारा, किसी ने कपड़े फाड़े और एकएक कर मेरे सामने ही मां के साथ…’’ रवीना की आंखों से आंसू आ गए.

‘‘मां कहां है बेटी?’’ जसदेव ने चिंता भरी आवाज में पूछा.

‘‘मां तो उस दिन ही मर गईं और उन के पेट में पल रहा आप का बच्चा भी…’’ रवीना ने कहा, ‘‘मां ने मुझे भागने को कहा, पर उस से पहले ही आप के महेश बाबू ने मुझे इस कोठे पर बेच दिया.’’

रवीना इतना ही कह पाई थी कि मोटरसाइकिल वाला ग्राहक रवीना को आवाज देने लगा और जल्दी आने को कहने लगा.

रवीना उस की मोटरसाइकिल पर उस से लिपट कर निकल गई और एक बार भी जसदेव को मुड़ कर नहीं देखा.

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जसदेव का पूरा परिवार ही खत्म हो चुका था और यह सब महेश बाबू की योजना के मुताबिक हुआ था, इसे समझने में भी जसदेव को ज्यादा समय नहीं लगा. बीच रोड से अपनी कीमती कार में महेश बाबू को जब उस लड़की के साथ जाते हुए देखा, जिस ने उसे फंसाया था, तब जा कर जसदेव को सारा माजरा समझ में आया कि यह महेश बाबू और इस लड़की की मिलीभगत थी, पर अब बहुत देर हो चुकी थी और कुछ  भी वापस पहले जैसा नहीं किया जा सकता था.

Serial Story: निकम्मा बाप- भाग 2

लेखक- हेमंत कुमार

शांता को इस से पहले कि कुछ समझ में आता, इस बार कई सारे आदमी शांता के दरवाजे को उखाड़ने की कोशिश में लग गए. उन की बातों से यह तो साफ था कि वह जसदेव को अपने साथ उठा ले जाने आए थे या फिर मारने.

दरवाजे की सांकल टूट गई, पर उस के आगे रखे ढेर सारे भारीभरकम सामान ने अभी तक दरवाजे को थामा हुआ था और शायद जसदेव की सांसों को भी.

जसदेव को कुछ समझ में नहीं आया कि शांता से क्या बताए, ऊपर से इतना शोर सुन कर उसे अपना हर एक पल अपना आखिरी पल दिखाई पड़ने लगा.

‘‘अरे, बता न क्या कर के आया है आज? इतने लोग तेरे पीछे क्यों पड़े हैं?’’ अब शांता की आवाज में गुस्सा और चिंता दोनों दिखाई पड़ रही थी, जिस के चलते जसदेव ने अपना मुंह खोला, ‘‘मैं ने कुछ नहीं… मैं ने कुछ नहीं किया शांता, मुझे क्या पता था कि वह…’’ जसदेव फिर चुप हो गया.

अब शांता जसदेव का गरीबान पकड़ कर झकझोरने लगी, ‘‘कौन है वह?’’

शांता पति से बात करने का अब अदब भी भूल चुकी थी.

‘‘आज जब मैं महेश बाबू के यहां जुआ खेलने बैठा था कि एक लड़की मुझे जबरदस्ती शराब पिलाने लगी. मैं नशे में धुत्त था कि इतने में उस लड़की ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया.

‘‘मैं कुछ समझ न पाया और बहाना बना कर जुए के अड्डे से उठ गया और सीधा उस लड़की के पास चला गया.

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‘‘वह मेरा हाथ पकड़ कर अपने कमरे में ले गई और नंगधड़ंग हो कर मुझ से सारे पाप करवा डाले, जिस का अंदाजा तुम लगा सकती हो.’’

‘‘फिर…?’’ शांता ने काफी गुस्से  में पूछा.

‘‘उसी वक्त न जाने कहां से महेश बाबू उस कमरे में आ गए और गेट खटखटाना शुरू कर दिया.

‘‘जल्दी दरवाजा न खुलने की वजह से उन्होंने लातें मारमार कर दरवाजा तोड़ दिया.

‘‘दरवाजा खुलते ही वह लड़की उन से जा लिपटी और मेरे खिलाफ इलजाम लगाने लगी. मैं किसी तरह से अपनी जान बचा कर यहां आ पाया, पर शायद अब नहीं बचूंगा.’’

शांता को अब जसदेव की जान की फिक्र थी. उस ने जसदेव को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘तुम पीछे के रास्ते से भाग जाओ और अब यहां दिखना भी मत.’’

‘‘तेरा, रवीना और तेरे पेट में पल रहे इस मासूम बच्चे का क्या…? मैं नहीं मिला, तो वे तुम लोगों को मार डालेंगे,’’ जसदेव को अब अपने बीवीबच्चों की भी फिक्र थी.

शांता ने फिर जसदेव पर गरजते हुए कहा, ‘‘तुम पागल मत बनो. वे मुझ औरत को कितना मारेंगे और मारेंगे भी तो जान से थोड़े ही न मार देंगे. अगर तुम यहां रहोगे, तो हम सब को ले डूबोगे.’’

जसदेव पीछे के दरवाजे से चोरीछिपे भाग निकला. जसदेव भाग कर कहां गया, इस का ठिकाना तो किसी को नहीं पता.

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तकरीबन 2 साल बीत चुके थे. जसदेव को अब अपने बीवीबच्चों की फिक्र सताने लगी थी. उस ने सोचा कि काफी समय हो गया है और अब तक तो मामला शांत भी हो गया होगा और जो रहीसही गलतफहमी होगी, वह महेश बाबू के साथ बैठ कर सुलझा लेगा.

जसदेव ने 2 साल से अपनी दाढ़ी नहीं कटवाई थी और बाल भी काफी लंबे हो चुके थे. जसदेव ने इसे अपना नया भेष सोच कर ऐसे ही अपनी

शांता और रवीना के पास जाने की योजना बनाई.

लोक जनशक्ति पार्टी: बिहार में लगातार गिरती साख

जब से लोक जनशक्ति पार्टी के सर्वेसर्वा रामविलास पासवान नहीं रहे हैं, तब से यह पार्टी अपना वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रही है. बेटे चिराग पासवान ने कमान तो संभाल ली, पर वे अपना दबदबा कायम नहीं रख पाए हैं. पहले उन के एकलौते विधायक ने पार्टी छोड़ी, फिर देखादेखी एकलौते एमएलसी ने भी लोजपा से हाथ जोड़ लिए.

नतीजतन, अब बिहार में लोजपा का न विधायक रहा है, न ही एमएलसी. इस के पहले लोजपा के 208 नेताओं ने जनता दल (यूनाइटेड) का दामन थाम लिया. इस से चिराग पासवान की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं.

बिहार विधानसभा व विधानपरिषद का दरवाजा लोजपा के लिए बंद हो चुका है. अब बिहार की राजनीति में 2 ही गठबंधन पूरी तरह से आमनेसामने हैं. तीसरी पार्टी की कोई हैसियत नहीं रही. एक तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन तो दूसरी तरफ महागठबंधन.

बिहार की सत्ता के केंद्र में नीतीश कुमार हैं, जो पिछले कई साल से मुख्यमंत्री की कुरसी पर कब्जा जमाए हुए हैं. वे राष्ट्रीय जनता दल के साथ भी और भारतीय जनता पार्टी के साथ भी मुख्यमंत्री बने, इसलिए बिहार की जनता उन्हें अब ‘कुरसी कुमार’ के नाम से भी जानने लगी है.

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जिस लोक जनशक्ति पार्टी को रामविलास पासवान ने खूनपसीने से सींचा था, आज वह धराशायी हो रही है. रामविलास पासवान की मौत के बाद पार्टी की कमान उन के बेटे चिराग पासवान के हाथ में है. पर चिराग पासवान और नीतीश कुमार की एकदूसरे से पटरी नहीं बैठती है. वे दोनों एकदूसरे को पसंद नहीं करते हैं.

बिहार विधानसभा के चुनाव में जद (यू) को चिराग पासवान की वजह से 25-30 सीटों का नुकसान हुआ था. नतीजतन, नीतीश कुमार चिराग पासवान से खफा हैं. वे हर हाल में लोजपा को मटियामेट करना चाहते हैं.

यही वजह है कि उन्होंने लोजपा विधायक राजकुमार सिंह को अपने साथ कर लिया. एकमात्र एमएलसी नूतन सिंह भी वर्तमान राजनीतिक हालात देखते हुए भाजपा में शामिल हो गईं. नूतन सिंह के पति नीरज सिंह भाजपा कोटे से नीतीश सरकार की कैबिनेट में मंत्री बनाए गए हैं.

लोजपा दलित जातियों की राजनीति करने का दावा करती है, पर उस के पार्टी नेताओं में दलितों की नुमाइंदगी कम रहती है. दलितों के नाम पर रामविलास पासवान के परिवार के सदस्य ही सांसद और पार्टी में प्रमुख पदों पर विराजमान हैं. यह रामविलास पासवान के जमाने से ही चला आ रहा है. चिराग पासवान भी अपने पिता के नक्शेकदम पर चल रहे हैं.

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रामविलास पासवान राजनीति में मौसम वैज्ञानिक के रूप में जाने जाते थे. वे हवा के रुख को पहचान कर अपनी राजनीतिक रोटी सेंकते थे, लेकिन चिराग पासवान में वह काबिलीयत नहीं है. चिराग पासवान बिहार में वोटकटवा बन कर रह गए हैं.

लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान अपनी डूबती सियासी नैया को दलितसवर्ण गठजोड़ के साथ बचाना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने बिहार प्रदेश लोजपा का कार्यकारी अध्यक्ष राजू तिवारी को बनाया है. चुनाव के बाद राज्य और जिलास्तरीय संगठन के पदाधिकारियों को चिराग पासवान ने भंग कर दिया था.

अब नए सिरे से दलितसवर्ण और पिछड़ी जातियों को संगठन से जोड़ कर पार्टी को मजबूत करने की कवायद तेज हो गई है. इस का नतीजा क्या होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

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Crime Story: राज की चाहत में- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

आखिरकार मनीषा इस निर्णय पर पहुंच गई कि वह राज की मदद से अरविंद को रास्ते से हटा देगी. उस का सोचना था कि पति की मौत के बाद उस की सरकारी नौकरी उसे अनुकंपा नियुक्ति के रूप में मिल जाएगी और वह राज के संग अपनी जिंदगी खुशी से बिता सकेगी.

बातचीत के बाद पहले अरविंद की हत्या के लिए उन्होंने पूजा के प्रसाद में जहर मिलाने की योजना बनाई, पर विक्की पंडा ने यह कह कर इस योजना को निरस्त कर दिया कि प्रसाद और भी लोग मांग सकते हैं. बाद में अरविंद को शराब पिला कर हत्या करने की योजना बनाई गई.

प्रदीप उर्फ विक्की पंडा अरविंद की हत्या की योजना में इसलिए शामिल हो गया क्योंकि वह चाहता था कि मनीषा और अरविंद से लिए गए 33 हजार रुपए के कर्ज से उसे मुक्ति मिल जाएगी. योजना के मुताबिक मनीषा ने राज को पूरी योजना समझाई और उस का बांदा से जबलपुर आने जाने का रिजर्वेशन करवा दिया. 21 जनवरी, 2021 की सुबह राज जबलपुर आ गया. दोपहर में टैगोर गार्डन में मनीषा राज और विक्की पंडा ने काफी देर बैठ कर अरविंद की हत्या की योजना को अंतिम रूप दिया. तय हुआ कि पहले अरविंद को शराब पिलाई जाए और फिर उस की किसी तरह हत्या कर दी जाए.

योजना बनने के बाद विक्की अपने घर चला गया. जबकि मनीषा और राज आटो रिक्शा ले कर रेलवे स्टेशन आ गए. कुछ दिनों पहले अरविंद ने जबलपुर की एक मोबाइल शौप से किस्तों में राज को एक महंगा मोबाइल फोन दिलवाया था, जिस की किस्त वह हर महीने आ कर दे जाता था.

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रेलवे स्टेशन से ही मनीषा ने अरविंद के औफिस में फोन कर के कहा कि राज मोबाइल की किस्त देने जबलपुर आया है. वह रात की ट्रेन से निकल जाएगा, उस से जबलपुर स्टेशन जा कर मिल लो.

जब अरविंद को राज के जबलपुर आने की खबर मिली, तब वह अधारताल जोनल औफिस में था. उस ने औफिस जा कर जल्दी से डाक वितरण का काम निपटाया और 5 बजे रेलवे स्टेशन पहुंच गया.

रेलवे स्टेशन पर उस की मुलाकात राज से हो गई. राज ने उसे बताया कि वह रात 9 बजे चित्रकूट एक्सप्रैस से वापस चला जाएगा. तब राज ने अरविंद के सामने प्रस्ताव रखा कि कहीं बैठ कर शराब पीते हैं फिर खाना खाने के बाद उसे स्टेशन छोड़ कर घर चले जाना.

शराब पीने की बात पर अरविंद राजी हो गया. दोनों पैदल ही रेलवे स्टेशन से सदर की ओर आ गए. तब तक अंधेरा होने लगा था. एक वाइन शौप से राज ने शराब की बोतल खरीदी. पास की दुकान से पानी की बोतल, डिस्पोजल गिलास, चखना के पाऊच ले कर दोनों पैट्रोल पंप के पीछे मुर्गी मैदान में सुनसान जगह पर शराब पीने बैठ गए. तभी विक्की पंडा भी पहुंच गया.

सीधेसादे अरविंद को यह भान नहीं था कि जिस नौकरी को पाने के लिए उस ने जी तोड़ मेहनत की थी और कितने ही साल बेरोजगारी में काटे थे, वही नौकरी उस की जान की दुश्मन बन जाएगी. राज और विक्की चालाकी से इस तरह पैग बना रहे थे कि अरविंद ज्यादा से ज्यादा पी सके.

शराब पीतेपीते लगभग साढ़े 7 का समय हो गया. इस बीच अरविंद का नशा पूरे शबाब पर पहुंच गया था, तभी राज ने पास में पड़े एक बड़े से पत्थर से अरविंद के सिर पर हमला कर दिया. उस के सिर से खून की धारा बहने लगी और थोड़ी देर तड़फड़ाने के बाद वह ढेर हो गया. जब दोनों को तसल्ली हो गई कि अरविंद मर चुका है तो राज और विक्की वहां से भाग निकले.

राज जल्दी से रेलवे स्टेशन आ गया. प्लेटफार्म पर चित्रकूट एक्सप्रैस लग चुकी थी. वह ट्रेन में सवार हो गया. रात 9 बजे ट्रेन जबलपुर स्टेशन से रवाना हो गई.

29 जनवरी, 2021 को जबलपुर के एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर अरविंद की हत्या का खुलासा कर दिया. प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया गया कि अरविंद की हत्या मनीषा के इशारे पर विक्की की मदद से राज यादव ने की थी.

एसपी ने अरविंद की हत्या के मुख्य आरोपी राज यादव को जल्द गिरफ्तार करने का आश्वासन दिया. इस के बाद कैंट थाना पुलिस ने मनीषा और विक्की पंडा को न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

मनीषा और विक्की को जेल भेजने के बाद जबलपुर पुलिस राज की तलाश में जुट गई. राज के घर से जब्त उस के मोबाइल की जांच की तो मोबाइल में मनीषा और उस के आपत्तिजनक हालत में फोटो मिले, जो उन के नाजायज संबंधों की कहानी बयां कर रहे थे.

पुलिस टीम राज के पिता से सूरत में रहने वाले उस के बड़े बेटे का मोबाइल नंबर ले कर आई थी. पुलिस ने जब राज के भाई से बात की तो पहले तो उस ने राज के सूरत में न होने की जानकारी दी. जब पुलिस ने डर दिखाया तो उस ने पुलिस को भरोसा दिलाया कि वह जल्द ही राज को ले कर जबलपुर आएगा.

राज और उस का बड़ा भाई 3-4 दिनों तक पुलिस टीम को गुमराह करते रहे. इस पर जबलपुर पुलिस की टीम ने सूरत जा कर छापामारी की तो राज यादव पुलिस की गिरफ्त में आ गया.

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पुलिस ने राज से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अरविंद की हत्या की पूरी कहानी पुलिस को बता दी.

पुलिस ने अरविंद की हत्या के आरोपी खेमचंद यादव उर्फ राज पर आईपीसी की धारा 302,120 के तहत मामाला दर्ज कर उसे जेल भेज दिया. अरविंद और मनीषा के दोनों बच्चों को जबलपुर के ग्वारीघाट में रहने वाली उस की नानी के सुपुर्द कर दिया गया.

नौकरी की चाहत में अपने पति की हत्या करने वाली मनीषा का नौकरी पाने का सपना धरा का धरा रह गया.

क्षणिक शारीरिक सुख और सोशल मीडिया की चकाचौंध में अपने मासूम बच्चों को बेसहारा करने वाली मनीषा अपने प्रेमी खेमचंद और भाई प्रदीप उर्फ विक्की पंडा के साथ जेल में है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Crime Story: राज की चाहत में- भाग 2

सौजन्य- मनोहर कहानियां

घटनास्थल पर शराब की बोतल और पानी के पाउच के साथ चखना के खाली पैक पड़े थे. डैडबौडी के पास ही एक बड़ा सा पत्थर पड़ा मिला, जिस पर खून के निशान थे. शायद इसी पत्थर से सिर पर वार कर युवक की हत्या की गई थी.

घटनास्थल पर अब तक लोगों की काफी भीड़ जमा थी, लेकिन कोई भी मृतक को नहीं पहचान सका. एसआई कन्हैया चतुर्वेदी ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो उन्हें मृतक की पैंट की जेब में नगर निगम की डाकबुक मिली. डाकबुक को उलटपलट कर देखा गया तो परची पर एक मोबाइल नंबर लिखा था.

परची में लिखे मोबाइल नंबर पर टीआई विजय तिवारी ने फोन लगाया तो फोन रिसीव करने वाले ने अपना नाम मलखान और पता ग्वारघाट बताया. टीआई तिवारी ने जब उसे बताया कि मुर्गी मैदान पर एक डैडबौडी मिली है. उसी के कपड़ों की जांच में नगर निगम की डाकबुक और यह मोबाइल नंबर मिला है. तब मलखान ने पुलिस को बताया कि उस का जीजा अरविंद राजपूत नगर निगम में डाक लाने ले जाने का काम करता था.

मलखान ने जब मनीषा को फोन लगा कर बातचीत की तो उस ने बताया कि वह कल अरविंद को बता कर बच्चों के साथ एक गमी के कार्यक्रम में वेहिकल फैक्ट्री इलाके में आई है.

मलखान ने मनीषा से अरविंद के साथ किसी अनहोनी की आशंका व्यक्त की तो वह फोन पर रोने लगी. मलखान ने उसे समझाते हुए उस के साथ तत्काल मुर्गी मैदान चलने को कहा. मलखान कुछ ही देर में मनीषा और एक रिश्तेदार को आटो में बिठा कर सदर के मुर्गी मैदान पहुंच गया. वहां पहुंच कर मनीषा ने पति अरविंद को पहचान लिया.

लाश की पहचान होने पर पुलिस टीम ने शव पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भेज दिया और आगे की काररवाई में जुट गई. स्थिति के मद्देनजर पुलिस मनीषा के बयान नहीं ले सकी.

घटना को बीते 3 दिन हो चुके थे. इसी दौरान मनीषा ने एक बार घर पर आत्महत्या करने का प्रयास किया, जिस की जानकारी कैंट पुलिस को मिल गई थी. पुलिस सहानुभूति की वजह से उस के बयान नहीं ले पा रही थी.

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एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा के निर्देश पर नगर की सीएसपी भावना मरावी ने हत्या का राज जानने के लिए कैंट थाना पुलिस की एक टीम तैयार की.

कैंट पुलिस थाना के टीआई विजय तिवारी ने जब मनीषा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो 2 मोबाइल नंबर संदिग्ध पाए गए. इन मोबाइल नंबरों की लोकेशन सर्च करने पर पुलिस को एक नंबर आकाश विनोदिया, सिविल लाइंस, जबलपुर का और दूसरा नंबर खेमचंद यादव, बांदा, उत्तर प्रदेश का था.

कैंट पुलिस ने सब से पहले राज यादव के मोबाइल को सर्विलांस पर लगाया तो घटना वाले दिन 21 जनवरी को उस की लोकेशन सुबह के 6 बजे से रात के 9 बजे तक जबलपुर की मिली. पुलिस की टीम जब खेमचंद की खोजबीन के लिए बांदा पहुंची, तब तक वह अपने गांव बेनीपुर पहुंच चुका था.

पुलिस ने उस की लोकेशन ट्रेस कर उस के घर पर मुंहअंधेरे दबिश तो यह पिछले दरवाजे से भाग निकला. आसपास के इलाकों में दिन भर उस की तलाश की गई, मगर राज नहीं मिला. उस के पिता ने बताया कि वह अपने बड़े भाई के पास सूरत जा सकता है.

पिता को राज और मनीषा के प्रेम संबंधों की पूरी जानकारी थी. पता चला कि मनीषा जून, 2020 में आंखों का इलाज करवाने के बहाने चित्रकूट आई थी और दोनों 5 दिनों तक एक होटल में रुके थे. तब उस ने मनीषा को समझाया था कि अपना वैवाहिक जीवन बरबाद न करे. मगर वह राज के प्यार में पागल हो गई थी.

राज अपना मोबाइल घर पर छोड़ गया था, ऐसे में राज को खोजना पुलिस के लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा था. पुलिस उस का मोबाइल जब्त कर खाली हाथ लौट आई.

कैंट पुलिस पर जब पुलिस अधिकारियों का दबाव पड़ा तो आकाश विनोदिया की मोबाइल लोकेशन पर पहुंच गई. जबलपुर के सिविल लाइंस जा कर पता चला वह नंबर एक रिटायर्ड मैडिकल नर्स का है जो काफी बूढ़ी हो गई थीं.

उन्होंने खुद को इलाके की भजन मंडली का अध्यक्ष बताते हुए मनीषा और अरविंद से किसी तरह की जानपहचान होने से इनकार किया. उन्होंने यह भी बताया कि यह सिमकार्ड उस के भतीजे आकाश ने ला कर दिया था, लेकिन इस सिमकार्ड का उपयोग आकाश कभी नहीं करता.

पुलिस की समझ नहीं आ रहा था कि आखिर अरविंद के मर्डर से नर्स का क्या कनेक्शन हो सकता है. पुलिस ने जब उन से पूछा, ‘‘आप के मोबाइल से कोई और शख्स बात तो नहीं करता?’’

उन्होंने बताया, ‘‘हां उन की भजन मंडली में ढोलक बजाने वाला विक्की पंडा अकसर उन के फोन से बात करता है. कभीकभी तो वह घंटे भर के लिए मोबाइल मांग कर ले जाता है.’’

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पुलिस ने जब विक्की पंडा के बारे में पता किया तो शाम के समय विक्की पंडा देवी मंदिर की आरती के कार्यक्रम में मिल गया.

उस ने मनीषा को अपनी ममेरी बहन बताया. पुलिस को अब दोनों पर अरविंद की हत्या का पूरा यकीन हो गया. पुलिस टीम ने विक्की पंडा और मनीषा को थाने बुला कर पूछताछ की तो पहले तो वे अनजान बने रहे.

जब पुलिस टीम ने उन से अलगअलग कमरे में ले जा कर सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने सारा सच उगल दिया. मनीषा और विक्की के बताए अनुसार अरविंद की हत्या छतरपुर जिले के खेमचंद यादव उर्फ राज ने की थी.

घटना वाले दिन शाम को अरविंद को औफिस में फोन कर के मनीषा ने बुलाया था और विक्की पंडा हत्या के समय राज के साथ था. दोनों से पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह मानवीय रिश्तों को शर्मसार कर देने वाली थी. खेमचंद गुड़गांव की एक कंपनी में नौकरी करता था.

मनीषा की बुआ का लड़का प्रदीप ठाकुर उर्फ विक्की पंडा सिविल लाइंस के उपहार अपार्टमेंट में रहता था. वह अपने आप को देवी का भक्त बताता था. धार्मिक कर्मकांड और तंत्रमंत्र का झांसा दे कर लोगों से पैसे ऐंठ कर वह घर का खर्च चलाता था. वह स्थानीय भजन मंडली में ढोलक बजाता था.

विक्की पंडा अपनी ममेरी बहन मनीषा से 20 हजार रुपए और जीजा अरविंद से 13 हजार रुपए उधार ले चुका था, मगर लौटाने का नाम ही नहीं ले रहा था. जब भी अरविंद और मनीषा उस से पैसे वापस मांगते, वह अपनी तंगहाली का बहाना बना देता था.

मनीषा और खेमचंद के नाजायज संबंधों की भनक विक्की को थी. एक बार तो उस ने मनीषा को चेतावनी भी दी थी कि यदि उस से पैसे मांगे तो वह उस के और राज के संबंधों की पूरी सच्चाई जीजा को बता देगा. इस डर से मनीषा उस से पैसा मांगने में संकोच करने लगी थी.

अब मनीषा राज के साथ विक्की पंडा से मिलनेजुलने लगी थी. मनीषा और राज विक्की से शादी करने की बात बताते रहते थे. एक दिन विक्की पंडा ने मंदिर में पूरे विधिविधान से राज से मनीषा की मांग में सिंदूर भरवा कर शादी करा दी .

मनीषा और राज प्रेम में इस कदर अंधे हो चुके थे कि देह सुख के लिए किसी भी हद तक जाने तैयार थे. कभीकभी उन के मन में विचार आता कि दोनों घर से भाग जाएं, लेकिन मनीषा सोचती कि राज बेरोजगार है. आखिर उसे कितने दिनों तक बैठा कर खिलाएगा.

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मनीषा को अरविंद से ज्यादा अपने बच्चों की भी चिंता थी. वह जानती थी कि यदि वह बच्चों को छोड़ कर राज के साथ भाग गई तो अरविंद बच्चों का खयाल नहीं रख पाएगा और उस के बच्चे अनाथ हो जाएंगे. मनीषा के मन में कई बार अरविंद की हत्या करने का विचार आता, मगर अगले ही पल वह डर जाती.

अगले भाग में पढ़ें-  राज  ने अरविंद की हत्या की पूरी कहानी पुलिस को बता दी

Crime Story: राज की चाहत में- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

अरविंद राजपूत का घर मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर के घमापुर इलाके में सरकारी कुआं के पास था. 49 साल का अरविंद राजपूत जबलपुर नगर निगम के आधारताल जोन में बतौर डाक रनर काम करता था.

उस के परिवार में 30 साल की पत्नी मनीषा, 7 साल की बेटी और 5 साल का एक बेटा था. करीब 10 साल पहले जब अरविंद के मातापिता जीवित थे तो घर की माली हालत अच्छी नहीं थी.

घर अरविंद के बड़े भाई की कमाई से चलता था. जब बड़े भाई की शादी हो गई तो वह अपनी पत्नी के साथ अलग रहने लगा. हायर सेकेंडरी तक पढ़े अरविंद की उम्र बढ़ती जा रही थी, पर न ही उसे कहीं कामधंधा मिल रहा था और न ही उस की शादी हो पा रही थी.

आखिरकार 2012 में अरविंद को जबलपुर नगर निगम में दैनिक वेतन पर काम मिल गया.

अरविंद जब  40 साल का था तो सन 2012 में उस की शादी मनीषा ठाकुर से हो गई, जिसे बबली भी कहते थे. उस की उम्र 21 साल थी.

मनीषा की मां का बचपन में ही निधन हो गया था. उस के पिता ने उस की सगी मौसी से शादी कर ली थी, जिसे उस ने सगी बेटी की तरह पाला था.

मैट्रिक तक पढ़ी मनीषा सुडौल काया और सुंदर आंखों की वजह से बहुत सुंदर लगती थी. मनीषा के 2 भाई थे. छोटा ग्वारीघाट में रेस्टोरेंट चलाता था, जबकि बड़े भाई ने दूसरी जाति की लड़की से लव मैरिज कर ली थी. वह परिवार से अलग रहता था.

अरविंद मनीषा का बहुत खयाल रखता. मनीषा चंचल और खुले विचारों वाली लड़की थी उसे सजनासंवरना और घूमनाफिरना पसंद था. लेकिन अपने से दोगुनी उम्र के पुराने खयालात के सादगी पसंद पति अरविंद के साथ वह मन मार कर दिन काट रही थी.

सन 2016 में नगर निगम ने अरविंद की डाक रनर की नौकरी स्थाई कर दी. वक्त के साथ अरविंद के परिवार में एक बेटी और एक बेटा आ गया. जब तक घर में अरविंद के मातापिता जीवित रहे, मनीषा उन की देखरेख में लगी रही.

अरविंद टिफिन ले कर सुबह औफिस निकल जाता तो शाम को ही लौटता. मनीषा का जब भी मन होता अपने बच्चों को ले कर अपने रिश्तेदारों और परिचितों के यहां चली जाती. जब वह लोगों को स्मार्टफोन पर फेसबुक, यूट्यूब चलाते देखती तो उस का मन भी करता कि उस के पास भी स्मार्टफोन होता तो कितना अच्छा होता.

एक दिन उस ने अरविंद से स्मार्टफोन की डिमांड रख दी. अरविंद के पास कोई सेलफोन नहीं था, न ही ऐसी हैसियत थी कि महंगा स्मार्टफोन खरीद सके. इस के बावजूद उस ने पत्नी को खुश रखने के लिए स्मार्टफोन ला कर दे दिया.

अरविंद ने मनीषा को औफिस के अपनेएकदो साथियों के नंबर भी दे दिए .जब भी मनीषा को अरविंद से बात करनी होती वह उस के दोस्तों के फोन पर काल कर के पति से बात कर लेती. मनीषा की अंगुलियां पूरे दिन स्मार्टफोन पर घूमती रहतीं.

उस ने फेसबुक पर अपना एकाउंट बनाया और प्रोफाइल में अपनी खूबसूरत अदाओं वाली तसवीरें अपलोड कर दीं. उसे बहुत सारे लाइक और कमेंट्स मिलने लगे.

उस ने बहुत सारे लोगों की फ्रैंड रिक्वेस्ट भी स्वीकार कर ली थी. अरविंद थकाहारा जब काम से लौटता तो घर पर मनीषा को बच्चों के साथ मोबाइल में बिजी देख कर खुश हो जाता.

अरविंद 49 साल की उम्र पार कर चुका था, जबकि मनीषा अभी 29 साल की जवान औरत थी. बढ़ती उम्र, शराब की लत और नौकरी के बोझ ने अरविंद को जिस्मानी तौर पर  कमजोर बना दिया था. उसे महसूस होने लगा था कि अब वह मनीषा को शारीरिक रूप से संतुष्ट नहीं कर पा रहा है.

औरत की शारीरिक जरूरतें पति पूरी करने में सक्षम न हो तो कई बार औरत के कदम बहक जाते हैं.

ऐसा ही मनीषा के साथ हुआ. मनीषा फेसबुक की दुनिया में इस तरह खो गई थी कि वह बिना जांचपड़ताल के किसी भी लड़के को अपना फ्रैंड बना लेती थी. फेसबुक पर नएनए दोस्त बनाना और सोशल मीडिया पर चैटिंग करना उस का शगल बन गया था.

2019 के मार्च महीने में एक दिन मनीषा दोपहर में घर के कामकाज से निपट कर बिस्तर पर लेटी थी. तभी उस के मोबाइल की घंटी बजी. उस ने जैसे ही हैलो बोला दूसरी तरफ से किसी लड़के की आवाज आई, ‘‘हाय मनीषा, मैं राज बोल रहां हूं.’’

‘‘कौन राज?’’ मनीषा ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मनीषा, मैं राज यादव हूं. फेसबुक पर तुम्हें फ्रैंड रिक्वेस्ट भेजी थी, जिसे तुम ने स्वीकार कर लिया था.’’

‘‘पर तुम्हें मेरा मोबाइल नंबर किस ने दिया?’’ मनीषा ने हैरानी से पूछा .

‘‘हम जिसे दिल से चाहते हैं, उस का मोबाइल नंबर तो क्या उस की पूरी खोजखबर रखते हैं.’’ राज ने दीवानगी के साथ जवाब दिया.

मनीषा को किसी अपरिचित लड़के का इस तरह बात करना अच्छा नहीं लगा. उस ने थोड़ी सी बात कर के फोन काट दिया.

फिर उसे याद आया कि कुछ दिन पहले उस ने राज यादव नाम के लड़के की फ्रैंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट की थी. उसे यह उम्मीद कतई नहीं थी कि कोई फेसबुक फ्रैंड उसे फोन मिला कर इस तरह बातचीत करेगा .

मनीषा की फेसबुक की यह दोस्ती धीरेधीरे मनोरंजन का साधन बन गई. पति अरविंद दिन भर औफिस में रहता और मनीषा का समय सोशल मीडिया पर बीतता. उस ने उस दिन भले ही फोन डिसकनेक्ट कर के राज से तौबा कर ली थी, लेकिन वह हाथ धो कर उस के पीछे पड़ गया था.

वह रोज ही किसी न किसी बहाने उसे फोन करने लगा. वह मनीषा के फेसबुक मैसेंजर पर कभी प्यारभरी शेरोशायरी भेजता तो कभी उस की पोस्ट पर कमेंट कर के प्यार जताता. धीरेधीरे मनीषा को भी राज से फोन पर बातचीत करने में मजा आने लगा.

फोन पर शुरू हुआ बातचीत का यह सिलसिला कब प्यार में बदल गया, मनीषा को पता ही नहीं चला. अब वह रोज राज के फोन का इंतजार करती. कभी राज फोन करना भूल जाता तो मनीषा उसे काल कर के उस से प्यार भरी बातें करती. कभीकभी दोनों वीडियो काल के जरिए भी एकदूजे का दीदार करके मस्तीभरी बातें कर लेते थे.

राज और मनीषा का प्यार परवान चढ़ा तो एक दिन वह मनीषा से मिलने जबलपुर आ गया. उस समय अरविंद काम पर गया हुआ था और उस के दोनों बच्चे अरविंद के बड़े भाई के घर गए हुए थे.

मनीषा ने 25 साल के गोरेचिट्टे गबरू जवान राज को देखा तो पलभर के लिए तो वह सपनों की दुनिया में खो गई. राज ने बताया कि उस का नाम खेमचंद यादव है, लेकिन उसे घर वाले राज कहते हैं.

राज ने मनीषा से फेसबुक मैसेंजर और वीडियो काल के जरिए तो कई बार बातें की थी, लेकिन खूबसूरत मनीषा को पहली बार नजरों के सामने देखा तो अपना आपा खो बैठा.

मनीषा कब से उस से मिलने के सपने संजोए थी, उसे मौका मिला तो उस ने भी राज का पूरे मन से साथ दिया.

शाम को जब अरविंद काम से घर लौटा तो घर में नए मेहमान को देख मनीषा से पूछा, ‘‘अरे मनीषा, मेहमान कहां से आए हैं?’’

मनीषा ने खेमचंद का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘ये मेरी बचपन की सहेली के जीजा हैं. नाम है राज यादव. यूपी के बांदा से किसी काम के सिलसिले में जबलपुर आए हैं.’’ अरविंद ने गर्मजोशी से राज का स्वागत किया और उस की खूब मेहमाननवाजी भी की. दूसरे दिन अरविंद उसे भेड़ाघाट घुमाने ले गया और वहां का धुआंधार जलप्रपात दिखाया. शाम को बैठ कर दोनों ने जाम छलकाए.

राज यादव महीने दो महीने में काम का बहाना बना कर मनीषा से मिलने जबलपुर आने लगा. जब वह जबलपुर आता तो अरविंद के साथ  बैठ कर खूब शराब पीता और मनीषा के बच्चों पर पैसे खर्च करता.

लेकिन मनीषा और राज की प्रेम कहानी समाज की नजरों से ज्यादा दिनों तक न छिप सकी. जब अरविंद के बड़े भाई को इस बात का पता चला तो उस ने राज के इस तरह मनीषा से मिलनेजुलने पर आपत्ति उठाई.

अरविंद के मन में भी शक का कीड़ा कुलबुलाता था, लेकिन वह यह सोच कर तसल्ली कर लेता कि मनीषा उसे और उस के बच्चों को कितना प्यार करती है.

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22 जनवरी, 2021 सुबह के 9 बजे थे. कैंट पुलिस थाने में फोन द्वारा सूचना मिली कि सदर इलाके के मुर्गी मैदान पर कोई युवक नशे में बेसुध पड़ा है. कैंट थाने में इस तरह की सूचनाएं आए दिन मिलती रहती थीं, इसलिए ड्यूटी पर मौजूद एसआई कन्हैया चतुर्वेदी अपने एक साथी पुलिसकर्मी के साथ मुर्गी मैदान की ओर रवाना हो गए.

वह मुर्गी मैदान पहुंचे तो उन्होंने देखा कि 24-25 साल का एक युवक औंधे मुंह जमीन पर पड़ा है. पुलिस टीम ने पास जा कर जैसे ही उसे सीधा किया तो युवक का चेहरा और सिर खून से सना हुआ है. वह मर चुका था.

स्थिति को समझ कर कन्हैया चतुर्वेदी ने तत्काल टीआई विजय तिवारी समेत पुलिस के आला अधिकारियों को सूचना दी और आसपास के लोगों से पूछताछ करने लगे. कुछ ही देर में फोरैंसिक टीम के साथ टीआई विजय तिवारी घटनास्थल पहुंच गए.

अगले भाग में पढ़ें- टीआई विजय तिवारी ने  मनीषा के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई

Serial Story: निकम्मा बाप- भाग 1

लेखक- हेमंत कुमार

जसदेव जब भी अपने गांव के बाकी दोस्तों को दूसरे शहर में जा कर नौकरी कर के ज्यादा पैसे कमाते हुए देखता तो उस के मन में भी ऐसा करने की इच्छा होती.

एक दिन जसदेव और शांता ने फैसला कर ही लिया कि वे दोनों शहर जा कर खूब मेहनत करेंगे और वापस अपने गांव आ कर अपने लिए एक पक्का घर बनवाएंगे.

शांता और जसदेव अभी कुछ ही महीने पहले शादी के बंधन में बंधे थे. जसदेव लंबीचौड़ी कदकाठी वाला, गोरे रंग का मेहनती लड़का था. खानदानी जायदाद तो थी नहीं, पर जसदेव की पैसा कमाने के लिए मेहनत और लगन देख कर शांता के घर वालों ने उस का हाथ जसदेव को दे दिया था.

शांता भी थोड़े दबे रंग की भरे जिस्म वाली आकर्षक लड़की थी.

अपने गांव से कुछ दूर छोटे से शहर में पहुंच कर सब से पहले तो जसदेव के दोस्तों ने उसे किराए पर एक कमरा दिलवा दिया और अपने ही मालिक ठेकेदार लखपत चौधरी से बात कर मजदूरी पर भी रखवा लिया. अब जसदेव और शांता अपनी नई जिंदगी की शुरुआत कर चुके थे.

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थोड़े ही दिनों में शांता ने अपनी पहली बेटी को जन्म दिया. दोनों ने बड़े प्यार से उस का नाम रवीना रखा.

मेहनतमजदूरी कर के अपना भविष्य बनाने की चाह में छोटे गांवकसबों से आए हुए जसदेव जैसे मजदूरों को लूटने वालों की कोई कमी नहीं थी.

ठेकेदार लखपत चौधरी का एक बिगड़ैल बेटा भी था महेश. पिता की गैरहाजिरी में बेकार बैठा महेश साइट पर आ कर मजदूरों के सिर पर बैठ जाता था.

सारे मजदूर महेश से दब कर रहते थे और ‘महेश बाबू’ के नाम से बुलाया करते थे, शायद इसलिए क्योंकि महेश एक निकम्मा इनसान था, जिस की नजर हमेशा दूसरे मजदूरों के पैसे और औरतों पर रहती थी.

जसदेव की अपने काम के प्रति मेहनत और लगन को देख कर महेश ने अब उसे अपना अगला शिकार बनाने की ठानी. महेश ने उसे अपने साथ बैठा कर शराब और जुए की ऐसी लत लगवाई कि पूछो ही मत. जसदेव भी अब शहर की चमकधमक में रंग चुका था.

महेश ने धोखे से 1-2 बार जसदेव को जुए में जितवा दिया, ताकि लालच  में आ कर वह और ज्यादा पैसे दांव पर लगाए.

महेश अब जसदेव को साइट पर मजदूरी नहीं करने देता था, बल्कि अपने साथ कार में घुमाने लगा था.

शराब और जुए के अलावा अब एक और चीज थी, जिस की लत महेश जसदेव को लगवाना चाहता था ‘धंधे वालियों के साथ जिस्मफरोशी की लत’, जिस के लिए वह फिर शुरुआत में अपने रुपए खर्च करने को तैयार था.

महेश जसदेव को अपने साथ एक ऐसी जगह पर ले कर गया, जहां कई सारी धंधे वालियां जसदेव को अपनेअपने कमरों में खींचने को तैयार थीं, पर जसदेव के अंदर का आदर्श पति अभी बाकी था और शायद इसी वजह से उस ने इस तोहफे को ठुकरा दिया.

महेश को चिंता थी कि कहीं नया शिकार उस के हाथ से निकल न जाए, यही सोच कर उस ने भी जसदेव पर ज्यादा दबाव नहीं डाला.

उस रात घर जा कर जसदेव अपने साथ सोई शांता को दबोचने की कोशिश करने लगा कि तभी शांता ने उसे खुद से अलग करते हुए कहा, ‘‘आप भूल गए हैं क्या? मैं ने बताया था न कि मैं फिर पेट से हूं और डाक्टर ने अभी ऐसा कुछ भी करने को मना ही किया है.’’

जसदेव गुस्से में कंबल ताने सो गया.

अगले दिन जसदेव फिर महेश बाबू के पास पहुंचा और कल वाली जगह पर चलने को कहा.

महेश मन ही मन खुश था. एक बार धंधे वाली का स्वाद चखने के बाद जसदेव को अब इस की लत लग चुकी थी. इस बीच महेश बिचौलिया बन कर मुनाफा कमा रहा था.

जसदेव की तकरीबन ज्यादातर कमाई अपनी इस काम वासना में खर्च हो जाती थी और बाकी रहीसही जुए और शराब में.

जसदेव के दोस्तों को महेश बाबू की आदतों के बारे में अच्छी तरह से मालूम था. उन्होंने जसदेव को कई बार सचेत भी किया, पर महेश बाबू की मीठीमीठी बातों ने जसदेव का विश्वास बहुत अच्छी तरह से जीत रखा था.

पैसों की कमी में जसदेव और शांता के बीच रोजाना झगड़े होने लगे थे. शांता को अब अपना घर चलाना था, अपने बच्चों का पालनपोषण भी करना था.

10वीं जमात में पढ़ने वाली रवीना के स्कूल की फीस भी कई महीनों से नहीं भरी गई थी, जिस के लिए उसे अब जसदेव पर निर्भर रहने के बजाय खुद के पैरों पर खड़ा होना ही पड़ा.

शांता ने अपनी चांदी की पायल बेच कर एक छोटी सी सिलाई मशीन खरीद ली और अपने कमरे में ही एक छोटा सा सिलाई सैंटर खोल दिया. आसपड़ोस की औरतें अकसर उस से कुछ न कुछ सिलवा लिया करती थीं, जिस के चलते शांता और उस के परिवार की दालरोटी फिर से चल पड़ी.

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जसदेव की आंखों में शांता का काम करना खटकने लगा. वह शांता के बटुए से पैसे निकाल कर ऐयाशी करने लगा और कभी शांता के पैसे न देने पर उसे पीटपीट कर अधमरा भी कर दिया करता था.

शांता इतना कुछ सिर्फ अपनी बेटी रवीना की पढ़ाई पूरी करवाने के लिए सह रही थी, क्योंकि शांता नहीं चाहती थी कि उस की बेटी को भी कोई ऐसा पति मिल जाए जैसा उसे मिला है.

बेटी रवीना के स्कूल की फीस पिछले 10 महीनों से जमा नहीं की गई थी, जिस के चलते उस का नाम स्कूल से काट दिया गया.

स्कूल छूटने के गम और जसदेव और शांता के बीच रोजरोज के झगड़े से उकताई रवीना ने सोच लिया कि अब वह अपनी मां को अपने बापू के साथ रहने नहीं देगी.

अभी जसदेव घर पर नहीं आया था. रवीना ने अपनी मां शांता से अपने बापू को तलाक देने की बात कही, पर गांव की पलीबढ़ी शांता को छोटी बच्ची रवीना के मुंह से ऐसी बातें अच्छी  नहीं लगीं.

शांता ने रवीना को समझाया, ‘‘तू अभी पाप की इन बातों पर ध्यान मत दे. वह सब मैं देख लूंगी. भला मुझे कौन सा इस शहर में जिंदगीभर रहना है. एक बार तू पढ़लिख कर नौकरी ले ले, फिर तो तू ही पालेगी न अपनी बूढ़ी मां को…’’

‘‘मैं अब कैसे पढ़ूंगी मां? स्कूल वालों ने तो मेरा नाम भी काट दिया है. भला काटे भी क्यों न, उन्हें भी तो फीस चाहिए,’’ रवीना की इस बात ने शांता का दिल झकझोर दिया.

रात के 11 बजे के आसपास अभी शांता की आंख लगी ही थी कि किसी ने कमरे के दरवाजे को पकड़ कर जोरजोर से हिलाना शुरू कर, ‘‘शांता, खोल दरवाजा. जल्दी खोल शांता… आज नहीं छोड़ेंगे मुझे ये लोग शांता…’’

दरवाजे पर जसदेव था. शांता घबरा गई कि भला इस वक्त क्या हो गया और कौन मार देगा.

शांता ने दरवाजे की सांकल हटाई और जसदेव ने फौरन घर में घुस कर अंदर से दरवाजे पर सांकल चढ़ा दी और घर की कई सारी भारीभरकम चीजें दरवाजे के सामने रखने लगा.

जसदेव के चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थीं. वह ऊपर से नीचे तक पसीने में तरबतर था. जबान लड़खड़ा रही थी, मुंह सूख गया था.

‘‘क्या हुआ? क्या कर दिया? किस की जेब काटी? किस के गले में झपट्टा मारा?’’ शांता ने एक के बाद एक कई सवाल दागने शुरू कर दिए.

जसदेव पर शांता के सवालों का कोई असर ही नहीं हो रहा था, वह तो सिर्फ अपनी गरदन किसी कबूतर की तरह इधर से उधर घुमाए जा रहा था, मानो चारदीवारी में से बाहर निकलने के लिए कोई सुरंग ढूंढ़ रहा हो.

‘‘क्या हुआ? बताओ तो सही? और कौन मार देगा?’’ शांता ने चिंता भरी आवाज में पूछा.

जसदेव ने शांता के मुंह पर अपना हाथ रख कर उसे चुप रहने को कहा.

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