लेखक- हेमंत कुमार

जसदेव जब भी अपने गांव के बाकी दोस्तों को दूसरे शहर में जा कर नौकरी कर के ज्यादा पैसे कमाते हुए देखता तो उस के मन में भी ऐसा करने की इच्छा होती.

एक दिन जसदेव और शांता ने फैसला कर ही लिया कि वे दोनों शहर जा कर खूब मेहनत करेंगे और वापस अपने गांव आ कर अपने लिए एक पक्का घर बनवाएंगे.

शांता और जसदेव अभी कुछ ही महीने पहले शादी के बंधन में बंधे थे. जसदेव लंबीचौड़ी कदकाठी वाला, गोरे रंग का मेहनती लड़का था. खानदानी जायदाद तो थी नहीं, पर जसदेव की पैसा कमाने के लिए मेहनत और लगन देख कर शांता के घर वालों ने उस का हाथ जसदेव को दे दिया था.

शांता भी थोड़े दबे रंग की भरे जिस्म वाली आकर्षक लड़की थी.

अपने गांव से कुछ दूर छोटे से शहर में पहुंच कर सब से पहले तो जसदेव के दोस्तों ने उसे किराए पर एक कमरा दिलवा दिया और अपने ही मालिक ठेकेदार लखपत चौधरी से बात कर मजदूरी पर भी रखवा लिया. अब जसदेव और शांता अपनी नई जिंदगी की शुरुआत कर चुके थे.

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थोड़े ही दिनों में शांता ने अपनी पहली बेटी को जन्म दिया. दोनों ने बड़े प्यार से उस का नाम रवीना रखा.

मेहनतमजदूरी कर के अपना भविष्य बनाने की चाह में छोटे गांवकसबों से आए हुए जसदेव जैसे मजदूरों को लूटने वालों की कोई कमी नहीं थी.

ठेकेदार लखपत चौधरी का एक बिगड़ैल बेटा भी था महेश. पिता की गैरहाजिरी में बेकार बैठा महेश साइट पर आ कर मजदूरों के सिर पर बैठ जाता था.

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