जब से लोक जनशक्ति पार्टी के सर्वेसर्वा रामविलास पासवान नहीं रहे हैं, तब से यह पार्टी अपना वजूद बचाने की लड़ाई लड़ रही है. बेटे चिराग पासवान ने कमान तो संभाल ली, पर वे अपना दबदबा कायम नहीं रख पाए हैं. पहले उन के एकलौते विधायक ने पार्टी छोड़ी, फिर देखादेखी एकलौते एमएलसी ने भी लोजपा से हाथ जोड़ लिए.
नतीजतन, अब बिहार में लोजपा का न विधायक रहा है, न ही एमएलसी. इस के पहले लोजपा के 208 नेताओं ने जनता दल (यूनाइटेड) का दामन थाम लिया. इस से चिराग पासवान की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं.
बिहार विधानसभा व विधानपरिषद का दरवाजा लोजपा के लिए बंद हो चुका है. अब बिहार की राजनीति में 2 ही गठबंधन पूरी तरह से आमनेसामने हैं. तीसरी पार्टी की कोई हैसियत नहीं रही. एक तरफ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन तो दूसरी तरफ महागठबंधन.
बिहार की सत्ता के केंद्र में नीतीश कुमार हैं, जो पिछले कई साल से मुख्यमंत्री की कुरसी पर कब्जा जमाए हुए हैं. वे राष्ट्रीय जनता दल के साथ भी और भारतीय जनता पार्टी के साथ भी मुख्यमंत्री बने, इसलिए बिहार की जनता उन्हें अब ‘कुरसी कुमार’ के नाम से भी जानने लगी है.
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जिस लोक जनशक्ति पार्टी को रामविलास पासवान ने खूनपसीने से सींचा था, आज वह धराशायी हो रही है. रामविलास पासवान की मौत के बाद पार्टी की कमान उन के बेटे चिराग पासवान के हाथ में है. पर चिराग पासवान और नीतीश कुमार की एकदूसरे से पटरी नहीं बैठती है. वे दोनों एकदूसरे को पसंद नहीं करते हैं.
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