एक्टिंग के बाद अब असल जिंदगी में भी सिंगर बने ‘कुमकुम भाग्य’ के ‘किंग’ मिशाल रहेजा

कई लोकप्रिय टीवी सीरियलों में अभिनय कर बतौर अभिनेता शोहरत बटोर चुके मिशाल रहेजा एक कदम आगे बढ़ाते हुए अब गायन के क्षेत्र में कदम रख रहे हैं. जी हां! मिशाल रहेजा बतौर निर्माता,गायक व अभिनेता एक सिंगल गाना ‘‘सारा गूगल‘‘ लेकर आने की तैयारी में हैं.

सिंगल गाने ‘‘सारा गूगल’’ की चर्चा करते हुए मिशाल रहेजा कहते हैं- ‘गायक के रूप में यह मेरा पहला अवसर है और मैं थोड़ा नर्वस हूं. मेरे गुरु त्रिदीब रॉय चैधरी ने इस गीत की रचना की है, जिसे सुनने के बाद मैने स्वयं इसे अपनी अपनी आवाज में स्वरबद्ध करने का निर्णय लिया.सच कहॅूं तो जब मैंने पहली बार लंदन में इस गीत को अपने गुरू त्रिदीब राॅय चैधरी के मुख से सुना,तो मुझे अहसास हुआ कि यह गीत मेरे हालात से मेल खाता है.मेरे जीवन में अभी जिस तरह की स्थिति है,वह सब इस गीत का हिस्सा है.’’

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संगीत वीडियो का निर्माण करने का अनुभव कैसा रहा?

इस सवाल पर मिशाल रहेजा ने कहा- ‘‘यह सबसे मुश्किल काम था. हम बतौर कलाकार सेट पर जाकर निर्देशक के निर्देश कअनुसार काम करके अपने घर लौट आते हैं. मगर यहां हमें कई रचनात्मक लोगों को एक साथ लाना था, जो कि मेरे लिए सीखने का एक खूबसूरत अनुभव रहा.यह एक रोमांटिक गीत है. लेकिन इस गीत को तैयार करते हुए मैंने बहुत कुछ सीख लिया है.इसके बाद एक दूसरा गाना बनाने की भी मेरी योजना है.’’

मिशाल रहेजा ने गीत ‘‘सारा गूगल’’के साथ बौलीवुड की नामचीन हस्तियों को जोड़ा है.कई बौलीवुड फिल्मों और म्यूजिक वीडियो के मशहूर कैमरामैन संजय एफ गुप्ता ने इस सिंगल गाने के वीडियो का निर्देशन किया है. संजय ने इससे पहले लोकप्रिय गीत ‘‘जलवा’’ के वीडियो का भी निर्देशन किया था.

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बता दें कि सिंगल गाना ‘‘सारा गूगल’’ का निर्माण ‘‘मैंगो लेक पिक्चर्स’’ के बैनर तले किया गया है. बहुत जल्द यह गाना और इसका म्यूजिक वीडियो बाजार में उपलब्ध होगा.

लाला रामदेव: कोरोनिल को ना उगल पा रहे, ना निगल

आज बाबा रामदेव का आश्रम कोरोना पॉजिटिव मरीजों को लेकर  देश दुनिया में चर्चा में आ गया है. सौ के आसपास मरीज पॉजिटिव मिलने के बाद हड़कंप है. वहीं बाबा रामदेव से  जैसी अपेक्षा थी उनका स्वभाव देश जानता है, उन्होंने साफ कह दिया है कि यह झूठी खबरें हैं, अफवाहबाजी है.

आज यह सवाल है कि क्या बाबा रामदेव अपने ही  बुने हुए कोरोनिल के जाल में तो नहीं फंस गए हैं ? उन्होंने बड़ी ही चालाकी दिखाते हुए जब दुनिया में कोरोना संक्रमण फैला हुआ था 1 वर्ष पूर्व ही कोरोनिल का ईजाद करके अपनी पीठ थपथपाई थी.

अगर देश में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर नहीं आती भयावह मंजर देश नहीं देखता तो शायद रामदेव बाबा यह भी कहते कि देखो! मेरी बनाई “कोरोनिल”  से कोरोना भाग गया.

वर्तमान भारत सरकार में बैठे प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी से उनकी गलबहियां सार्वजनिक है. कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करने में उनका एक बड़ा योगदान देश ने देखा है. ऐसे में बाबा रामदेव “लाला” बन कर कोरोना कोविड 19 जैसी संक्रमण कारी बीमारी का इलाज और दवाई बनाने का दावा करने लगे, यही नहीं दवाई आज पूरे देश में हर शहर मेडिकल दुकानों में उपलब्ध है. जिसे बड़ी शान के साथ यह कह करके बेचा गया कि इसका इस्तेमाल करने से आप सुरक्षित रहेंगे. देश की भोली-भाली जनता आंख बंद करके उन्हें अपना आराध्य पूज्य मानने वाले लोग उन्हें गेरूए कपड़ा पहने हुए और लंबी दाढ़ी के कारण साधु संत त्यागी  समझ कर के लोग उनकी बात का अक्षरश: पालन करने लगे, परिणाम स्वरूप करोड़ों रुपए रामदेव बाबा ने कोरोनील के नाम पर अपनी गांठ में दबा लिए.

अब कोरोना पलट करके उनके ही आश्रम, योगपीठ में दस्तक दे रहा है और बाबा बगले झांकने को मजबूर हैं. ऐसे हालात बन गए हैं कि उन्हें न तो उगलते बन रहा है और न निगलते.

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पतंजलि योगपीठ और कोरोना

आज यह चर्चा का विषय बन गया है कि हरिद्वार में बाबा रामदेव का पतंजलि योगपीठ  कोरोना विस्फोट का केंद्र है. यहां 83 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए है. सभी संक्रमतों का आइसोलेट कर दिया गया है. कहा जा रहा है अब बाबा रामदेव की भी कोरोना जांच की जा सकती है. मगर समय बीता जा रहा है उनकी जांच की रिपोर्ट इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं आई है, जो यह सवाल खड़ा करती है कि क्या रामदेव कोई विशिष्ट प्राणी है जिनकी कोरोना जांच नहीं होगी ? बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमित मिलने के बाद जिला प्रशासन को चाहिए कि संशय को मिटाते हुए आश्रम के सभी लोगों का कोरोना टेस्ट करके जो कोरोना पॉजिटिव हैं उनका इलाज प्रारंभ करें. क्योंकि कोरोना को किसी भी तरह से छुपाना गंभीर परिणाम ला सकता है.

दरअसल, पंतजलि योगपीठ के कई संस्थानों में  कोरोना संक्रमित मिल रहे हैं. हरिद्वार सीएमओ डॉ. शंभू झा के मुताबिक 10 अप्रैल से अब तक पंतजलि योगपीठ आचार्यकुलम और योग ग्राम में  कोरोना पॉजिटिव मिल चुके हैं. इन संक्रमितों को पतंजलि परिसर में ही आइसोलेट किया गया है.

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बाबा रामदेव अपने कथनी और करनी में हमेशा से अलग अलग दिखाई देते हैं. वे जो कहते हैं वह करते नहीं हैं और करते हैं वैसा कहते नहीं है. आज इस वैश्विक महामारी के समय में जो गंभीरता समझदारी बाबा रामदेव के आचरण में दिखाई देनी चाहिए वह नहीं दिखाई देती. अपने इन्हीं व्यवहार के कारण , जो ऊंचाई रामदेव बाबा ने प्राप्त की थी विगत 10 वर्षों में धराशायी होती दिख रही है.

बाबा रामदेव का सम्मान और प्रभाव धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. आज कोरोना कोविड-19 के इस समय में क़रोनिल ला करके अपनी साख दांव पर लगा दी है , उन्होंने अपने आपको चक्रव्यूह में डाल दिया है जहां से बचकर निकलना अभिमन्यु के लिए भी संभव नहीं हुआ था.

Crime Story: 60 हजार के लिए मासूम का खून

राइटर- कस्तूर सिंह भाटी

सौजन्य- सत्यकथा

राजस्थान में सूर्यनगरी के नाम से मशहूर जोधपुर शहर राजस्थान के वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गृहनगर है. जोधपुर के भीतरी शहर के खांडा फलसा थानांतर्गत कुम्हारियां कुआं इलाके में जटियों की गली में ओमप्रकाश प्रजापति का परिवार रहता है.

ओमप्रकाश के 3 बेटे बंसीलाल, मुरली व गोपाल हैं. सभी भाई पिता के साथ एक ही मकान में रहते हैं. परिवार हलवाई का काम करता है.

पिछले एक साल से कोरोना के कारण शादीब्याह कम होने से परिवार की आय भी प्रभावित हुई. बंसीलाल, मुरली व गोपाल तीनों शादीशुदा व बालबच्चेदार हैं. बंसीलाल के 2 बड़ी बेटियों के बाद 7 वर्ष पहले हिमांशु  हुआ था.

बंसीलाल से छोटे भाई मुरली के एक बेटा व एक बेटी है.  वहीं तीसरे भाई गोपाल के 3 बेटियां हैं. आपस में अनबन के चलते मुरली की पत्नी दोनों बच्चों को ले कर अपने पीहर चली  गई थी.

हिमांशु ही पूरे घर में एकमात्र बेटा था. 15 मार्च, 2021 को दोपहर करीब 3 बजे अचानक हिमांशु कहीं लापता हो गया. परिजनों ने आसपास उस की तलाश की. मगर उस का कोई अतापता नहीं चला. हिमांशु के अचानक लापता होने से घर में कोहराम मच गया. किसी अनहोनी की आशंका से घर में मातम छा गया.

हिमांशु का पता नहीं चलने पर उस के पिता बंसीलाल प्रजापति थाना खांडा फलसा पहुंचे और थाने में बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. गुमशुदगी में बताया कि उन का 7 साल का बेटा हिमांशु 15 मार्च, 2021 की शाम 3 साढ़े 3 बजे के बीच खेलता हुआ घर के आगे गली से लापता हो गया. उस की हर जगह तलाश की लेकिन कोई पता नहीं चला.

बच्चे का कद 3 फीट 6 इंच है और रंग गोरा है. उस ने प्रिंटेड औरेंज टीशर्ट व नीली जींस पहन रखी थी. खांडा फलसा थानाप्रभारी दिनेश लखावत ने गुमशुदगी दर्ज कर बच्चे के लापता होने की खबर उच्चाधिकारियों को दे दी.

जोधपुर पूर्व पुलिस उपायुक्त धर्मेंद्र सिंह यादव ने तुरंत एडिशनल सीपी भागचंद्र, एसीपी राजेंद्र दिवाकर, दरजाराम बोस, देरावर सिंह सहित 5 थानाप्रभारियों व डीएसटी को अलगअलग जिम्मा सौंप कर तत्काल काररवाई करने के निर्देश दिए.

पुलिस टीमों ने अपना काम शुरू कर दिया. सब से पहले कुम्हारिया कुआं क्षेत्र के जटियों की गली में लगे 2 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाली गई. हिमांशु फुटेज में वहां नजर आया. तब 2 बज कर 27 मिनट का समय था. इस के बाद आगे के पूरे इलाके के सीसीटीवी फुटेज देखे गए, मगर उन में हिमांशु कहीं नजर नहीं आया.

पुलिस ने परिजनों से भी पूछा कि फिरौती के लिए कोई फोन तो नहीं आया. उस समय तक कोई फोन नहीं आया था. पुलिस टीमें हिमांशु की खोजबीन में लगी थीं. मगर उस का पता नहीं चला.

17 मार्च, 2021 बुधवार को सुबह 11 बजे रातानाडा क्षेत्र जोधपुर स्थित रेंज आईजी नवज्योति गोगोई के बंगले की चारदीवारी के पास स्थित पोलो ग्राउंड के सूखे नाले में से भयंकर बदबू आ रही थी.

एक व्यक्ति ने असहनीय दुर्गंध की बात आईजी बंगले के संतरी को बताई. संतरी ने पुलिस को सूचना दी. रातावाड़ा पुलिस मौके पर पहुंची. सूखे नाले में आटे के कट्टे से दुर्गंध आ रही थी. आटे के कट्टे को खोल कर देखा तो उस में एक बच्चे का शव मिला.

शव मिलने की सूचना पर पुलिस के अधिकारी मौके पर पहुंचे. एफएसएल की टीम और डौग स्क्वायड को भी बुलाया गया. एफएसएल टीम ने वहां से साक्ष्य उठाए. शुरुआती जांच में सामने आया कि बच्चे की हत्या गला घोंट कर कर शव कट्टे में डाला  गया था. कट्टे में टिफिन बैग भी मिला.

पुलिस ने काररवाई पूरी कर शव को पोस्टमार्टम के लिए मथुरादास माथुर मोर्चरी में रखवा दिया. थोड़ी देर बाद पता चला कि यह शव 3 दिन पहले लापता हुए हिमांशु प्रजापति का है.

मृतक हिमांशु के परिजन जब बच्चे का शव मिलने की खबर पा कर एमडीएम मोर्चरी पहुंचे और बच्चे का शव देखा. उन्होंने शिनाख्त कर दी कि शव हिमांशु का है.

3 दिन से लापता बच्चे का शव मिलने की खबर पा कर कुम्हारिया कुआं क्षेत्र में लोगों ने बाजार बंद कर दिया. महिलाओं ने सड़क जाम कर धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया. पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की जाने लगी.

पुलिस पिछले 3 दिनों से रातदिन हिमांशु की खोज में लगी थी, मगर उस का शव आज मिला. पुलिस कमिश्नर जोस मोहन ने सभी पुलिस अधिकारियों एवं थानेदारों की आपात बैठक बुला कर हर थाना क्षेत्र से एकएक टीम गठित कर करीब 10 पुलिस टीमों को अपनेअपने क्षेत्र के सीसीटीवी फुटेज जांचने को कहा.

कमिश्नर ने निर्देश दिया कि जल्द से जल्द हत्यारों को खोज निकाला जाए. हिमांशु का शव घर से 5 किलोमीटर दूर मिला था. उस का शव मिलने के बाद डीसीपी (पूर्व) धर्मेंद्र सिंह यादव ने जिले के अधिकारियों की बैठक ली और एडिशनल डीसीपी (पूर्व) भागचंद्र के नेतृत्व में अधिकारियों को जल्द से जल्द हत्यारों को पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी.

डीसीपी ने जांच अधिकारी को अपहरण वाले स्थान के आसपास के सीसीटीवी की फुटेज देखने व संदिग्ध वाहन और व्यक्ति का पता लगाने के निर्देश दिए. नारानाडा व बनाड़ थानाप्रभारी को शव मिलने वाली जगह के आसपास के फुटेज देखने व विश्लेषण करने पर लगाया गया.

डांगियावास थानाप्रभारी को अपहरण व शव मिलने वाले स्थान और समय के बीटीएस के अवलोकन की जिम्मेदारी सौंपी गई. महामंदिर थानाप्रभारी व टीम को सादे कपड़ों में मोर्चरी भेजा गया, ताकि परिजन व स्थानीय लोगों में शामिल संदिग्ध व्यक्ति का पता लगाया जा सके.

सहायक पुलिस आयुक्त (पूर्व) ने आटे के कट्टे की निर्माता कंपनी का पता लगाया, जो बोरानाडा में थी. कट्टे पर मिले बैच नंबर व तारीख से उस दुकान का पता चल गया, जहां वह कट्टा सप्लाई हुआ था. सब से महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी साइबर टीम को दी गई. उन्हें मृतक हिमांशु के दादा ओमप्रकाश के वाट्सऐप पर आए वर्चुअल नंबर का आईपी एड्रैस ट्रेस करने का जिम्मा दिया गया.

वर्चुअल नंबर होने के बावजूद साइबर टीम ने उसे ट्रेस कर लिया. यह नंबर मृतक हिमांशु के पड़ोस में रहने वाले किशन गोपाल सोनी का था. बता दें कि 15 मार्च, 2021 को हिमांशु के लापता होने के बाद अगले दिन 16 मार्च की रात 10 बज कर 20 मिनट पर हिमांशु के दादा ओमप्रकाश के वाट्सऐप पर वर्चुअल नंबर से 10 लाख फिरौती के मैसेज किए गए थे.

दादा ने संदेश नहीं पढ़े तो अपहर्ता ने 17 मार्च की सुबह 10 बज कर 23 मिनट पर पड़ोसी मुकेश फोफलिया को वर्चुअल नंबर से काल किया. उस ने कहा कि ओमप्रकाश को जो मैसेज भेजे गए हैं, वह पढ़ें.

साथ ही कहा कि 10 लाख रुपए ले कर चाचा मुरली नागौर रेलवे स्टेशन पर आ जाए. रुपए मिलने पर हिमांशु को सुरक्षित लौटाने का आश्वासन दिया गया था.

फिरौती न देने पर बच्चे की किडनी, हार्ट निकाल कर बेचने की धमकी दी गई थी. कहा गया था कि बच्चे के शरीर से अंग निकाल कर रुपए वसूल कर लेंगे. संदेश में धमकी दी गई थी कि पुलिस को सूचना नहीं देनी है.

अपहर्त्ताओं ने फिरौती के संदेशों में हिमांशु के पिता बंसीलाल व दादा के साथ चाचा मुरली का भी उल्लेख किया था. मुकेश फोफलिया ने यह जानकारी हिमांशु के परिजनों से साझा की.

ओमप्रकाश के मोबाइल पर भेजे मैसेज देखे गए. इसी दौरान हिमांशु का शव पुलिस को मिल गया था. तब मृतक हिमांशु के दादा ओमप्रकाश और पड़ोसी मुकेश ने पुलिस को इस की जानकारी दे दी थी.

साइबर टीम ने वर्चुअल नंबर ट्रेस कर के मैसेज और फोन करने वाले किशन गोपाल सोनी की पहचान कर ली. उधर आटे के कट्टे के संबंध में दुकानदार ने बताया कि ऐसा 25 किलो आटे का कट्टा हरेक तीसरे दिन किशन गोपाल सोनी ले जाता है.

मृतक हिमांशु का पड़ोसी किशन गोपाल का परिवार ठेले पर सब्जीपूड़ी बेचता है. किशन 25 किलो आटे का कट्टा लेता है. यह जानकारी मिलने पर पुलिस ने किशन सोनी के किराए के मकान में जा कर जांच की.

जांच के दौरान आटे के कट्टे और टिफिन सप्लाई करने वाला बैग मिले. ऐसे ही बैग व कट्टे में हिमांशु का शव बरामद हुआ था.

पुलिस टीम और साइबर टीम ने जांच की तो अपहरण व हत्या के शक की सुई किशन सोनी पर जा टिकी. हत्या के बाद किशन ने वर्चुअल नंबर हासिल कर फिरौती मांगी थी.

किशन सोनी ने 16 मार्च, 2021 को दिन भर वर्चुअल नंबर लेने के लिए मशक्कत की थी. नंबर हासिल होने पर उस ने उस नंबर को इंटरनेट से कनेक्ट किया और हत्या के बावजूद फिरौती मांगने के लिए दादा को मैसेज व मुकेश फोफलिया को काल की.

पुलिस का मानना है कि फिरौती मांगने के संदेश भ्रमित करने के लिए भेजे गए थे. खैर, जब पुलिस को यकीन हो गया कि किशन सोनी ही हिमांशु प्रजापति का अपहर्त्ता और हत्यारा है, तब पुलिस ने एमडीएम अस्पताल की मोर्चरी में सब से आगे रह कर प्रदर्शन कर रहे सोनी को धर दबोचा.

किशन मोर्चरी के बाहर धरनेप्रदर्शन में पुलिस प्रशासन के खिलाफ जम कर नारेबाजी और आरोपी को पकड़ने का नाटक कर रहा था. जब पुलिस ने उसे दबोचा तो किशन ने अपना मोबाइल वहीं पटक कर पैर से तोड़ना चाहा. मगर पुलिस पहले ही उस की कुंडली खंगाल चुकी थी. पुलिस ने किशन सोनी को हिरासत में लिया और खांडा फलसा थाने ला कर पूछताछ की.

पुलिस के आला अधिकारी भी पूछताछ करने पहुंचे. आरोपी ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. किशन सोनी ने ही हिमांशु प्रजापति की अपने घर में 15 मार्च, 2021 की दोपहर बाद साढ़े 3 बजे पहले गला घोंट कर और फिर गमछे से रस्सी बना कर उसे गले में लपेटा और कस कर उसे मार डाला था. हत्या के बाद करीब एक घंटे तक वह शव के पास बैठा रहा और शव को ठिकाने लगाने की योजना बनाता रहा.

इस के बाद करीब पौने 5 बजे उस ने हिमांशु का शव आटे के कट्टे में डाला और नीचे तहखाने में ले जा कर रख दिया ताकि उस के परिवार को पता न चले.

शाम को 5 बजे किशन की मां और बहन जब पूरीसब्जी बेच कर घर लौटीं तब किशन शव वाले कट्टे के ऊपर टिफिन सप्लाई करने वाले थैले डाल कर मोटरसाइकिल पर वहां से 5 किलोमीटर दूर रातानाडा थानाक्षेत्र के आईजी के बंगले के पास पोलो मैदान के  खाली नाले में सुनसान स्थान पर डाल आया.

उस ने हिमांशु की हत्या फिरौती वसूलने के लिए की थी. आरोपी किशन ने बताया कि उसका परिवार गरीब है और रोटियां बेच कर गुजारा करता है. आरोपी औनलाइन जुआ खेलता है. वह जुए में करीब 60 हजार रुपए हार गया था. हिमांशु 3 बजे खेलता हुआ जब अचानक उस के घर आया तो उस ने उसे आधा घंटा बहलाफुसला कर रोका.

बाद में जब हिमांशु घर जाने की जिद करने लगा तब उस ने हाथ आए शिकार को मौत की नींद सुला दिया. हिमांशु के हत्यारे के पकड़े जाने की खबर के बाद कुम्हारियां कुआं क्षेत्र में प्रदर्शन बंद हुआ. पुलिस ने मैडिकल बोर्ड से मृतक के शव का पोस्टमार्टम करा कर शव परिजनों को सौंप दिया.

खांडा फलसा क्षेत्र में हिमांशु की हत्या से लोग सन्न थे. मृतक के घर पर मातम छाया था. परिजनों ने मृतक का अंतिम संस्कार कर दिया. वहीं पुलिस ने आरोपी किशन गोपाल सोनी की गिरफ्तारी के बाद उस के खिलाफ खांडा फलसा थाने में अपहरण कर के फिरौती मांगने और हत्या करने का मामला दर्ज कर लिया.

पुलिस ने हिमांशु के हत्यारोपी किशन गोपाल सोनी निवासी कुम्हारिया कुआं, थाना खांडा फलसा, जोधपुर को कोर्ट में पेश कर 2 दिन के रिमांड पर ले कर पूछताछ की. पूछताछ में जो कहानी प्रकाश में वह आई, वह इस प्रकार है.

राजस्थान के बीकानेर शहर के सुनारों की गवार, बागड़ी मोहल्ला से सालों पहले सूरजरत्न सोनी जोधपुर आ बसे थे. सूरजरत्न ठेले पर सब्जीपूड़ी बेचते थे. इसी से अपने बीवीबच्चों का पालनपोषण करते थे. सूरजरत्न के बेटे किशन गोपाल ने एसी फ्रिज रिपेयरिंग का काम सीख लिया था. इस काम से उसे अच्छी आय होती थी.

सूरजरत्न की बीवी और बेटी उस के साथ सब्जीपूड़ी के ठेले पर उस की मदद करती थी. सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि कोरोना काल आ गया. किशन का कामधंधा ठप हो गया. कई महीने तक कामधंधा बंद रहा. भूखों मरने की नौबत आ गई. किशन दिन भर मोबाइल में आंखें गड़ाए रहता. वह मोबाइल में दिन भर गेम खेलता रहता था. वह मोबाइल हैकर बन गया था.

उस के मोबाइल में पुलिस को ऐसेऐसे ऐप मिले जो मोबाइल हैक करने में प्रयुक्त होते हैं. किशन मोबाइल में औनलाइन जुआ खेलता था. इस से वह 50-60 हजार का कर्जदार हो गया था. रुपए मांगने वाले किशन को परेशान करने लगे. वह किसी भी तरह रुपए पाने की फिराक में था.

तभी 15 मार्च, 2021 को करीब 3 बजे खेलतेखेलते हिमांशु उर्फ लाडू उस के घर आ गया. मातापिता व बहन ठेले पर थे. किशन घर पर अकेला था. उस के शैतानी दिमाग ने साजिश रची और उस ने हिमांशु को कमरे में बंधक बना लिया.

मासूम हिमांशु रोनेचिल्लाने लगा तो किशन ने हाथों से उस का गला दबाया. वह बेहोश हो गया तो कपड़े से उस का गला घोंट कर मार डाला. उस ने शव आटे के कट्टे में बांधा और टिफिन सप्लई वाले बैग में डाला.

फिर अकेला ही मोटरसाइकिल पर रख दिनदहाड़े आईजी बंगले के पास जा कर सूखे नाले में फेंक आया. कुम्हारिया कुआं से ले कर जालोरी गेट, रातानाडा व पोलो मैदान तक के सीसीटीवी फुटेज में किशन के बयान की पुष्टि हुई.

उस ने यूट्यूब से वर्चुअल नंबर खोजे. शव ठिकाने लगाने के बाद वर्चुअल नंबर लेने के लिए अमेरिका का नंबर चयन किया. मोबाइल से ही पेटीएम से भुगतान किया. वर्चुअल नंबर मिलने पर उसे इंटरनेट से जोड़ कर वाट्सऐप डाउनलोड किया और उसी से उस ने मृतक के दादा ओमप्रकाश को मैसेज भेजे और पड़ोसी मुकेश फोफलिया को फोन किया.

किशन सोनी ने वर्चुअल नंबर लेने के बाद टैबलेट में वाट्सऐप इंस्टाल किया था. उस ने अपने मोबाइल के इंटरनेट से टैबलेट कनेक्ट कर मृतक के दादा को फिरौती के लिए वाट्सऐप मैसेज भेजे थे.

आरोपी किशन ने सुनियोजित तरीके से साजिश रची थी. उस के टैबलेट में कई ऐसे ऐप इंस्टाल मिले. उसे भ्रम था कि पुलिस वर्चुअल नंबर से आईडी तो ट्रेस कर लेती है, लेकिन इन ऐप से लोकेशन व आईपी एड्रेस लगातार बदलते रहेंगे और वह पकड़ में नहीं आएगा. मगर उस की यह होशियारी धरी रह गई. वह शिकंजे में आ ही गया.

आरोपी किशन के खिलाफ आरोपों को और मजबूत करने के लिए पुलिस के आग्रह पर एक बार फिर एफएसएल टीम घटनास्थल पर आई. उस ने किशन गोपाल सोनी के घर की जांच की और साक्ष्य जुटाए.

पुलिस रिमांड पर चल रहे किशन की निशानदेही पर पुलिस ने टैबलेट, शव छिपाने में प्रयुक्त कट्टे का हूबहू कट्टा, टिफिन बैग, हेलमेट व बाइक बरामद की.

हिमांशु का मुंह बंद कर के किशन उसे अलमारी में छिपाना चाहता था मगर हिमांशु के घर जाने की जिद करने पर उस ने उसे मार डाला और 5 बजे तक शव फेंक कर घर लौट आया. नहा कर किशन बाहर निकल गया. उस के बाद हिमांशु के परिजन उसे तलाशते मिले. किशन भी उन के साथ हिमांशु की तलाश में जुट गया.

हिमांशु के परिवार वाले इस आस में थे कि वह कहीं खेल रहा होगा जबकि किशन सोनी उस की हत्या कर शव तक ठिकाने लगा चुका था. कुछ दिनों से किशन 60 हजार रुपए का कर्ज उतारने के लिए अपहरण और फिरौती की योजना बना रहा था कि हिमांशु उस के घर आ गया था.

बस किशन ने आगापीछा सोचे बगैर उसे दबोच लिया और मार डाला. किशन को विश्वास था कि हिमांशु की फिरौती के 10 लाख रुपए उस के परिवार वाले उसे दे देंगे. मगर वह अपने ही बुने जाल में फंस गया.

रिमांड अवधि खत्म होने पर 20 मार्च, 2021 को पुलिस ने किशन को कोर्ट में पेश कर 3 दिन के रिमांड पर फिर लिया. पूछताछ पूरी होने पर किशन को 23 मार्च को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin: पाखी की नई चाल का क्या होगा अंजाम, सई-विराट में बढ़ेंगी दूरियां?

स्टार प्लस का  सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) में इन दिनों हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. सीरियल में नए-नए ट्विस्ट देखने को मिल रहा है जिससे दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. तो आइए बताते हैं शो के नए अपडेट्स के बारे में.

सीरियल में जल्द ही पाखी का नया रूप देखने को मिलने वाला है. जी हां, चौहान हाउस से सई के जाने के बाद अब पाखी विराट को पाना चाहती है. तो वहीं उधर सई ने चौहान हाउस में दोबारा आने से मना कर दिया है.

 

तो इधर पाखी विराट के करीब आने की कोशिश कर रही है. पाखी ने विराट के मन में सई के खिलाफ कान भी भरती नजर आ रही है. खबर यह आ रही है कि इस शो के अपकमिंग एपिसोड में ये दिखाया जाएगा कि विराट, पाखी की इस हरकत से से तंग आ जाएगा और वह उसको मना करेगा. तो पाखी अपनी बेईज्जती बर्दाश्त नहीं कर पाएगी और सई से बदला लेने का प्लान बनाएगी.

 

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एक तरफ पाखी चाहती है कि विराट और सई को अलग हो जाए तो दूसरी तरफ बरखा चाहती है कि सई और विराट एक हो जाए. बरखा के आने से पाखी का हर एक प्लान चौपट होने वाला है.

 

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सीरियल के अपकमिंग एपिसोड में ये देखना दिलचस्प होगा कि पाखी अपने चाल में कामयाब होती है?  या सई और विराट हमेशा के लिए अलग हो जाएंगे?

सज-धज कर किसकी दुल्हन बन गईं भोजपुरी एक्ट्रेस रानी चटर्जी? फोटोज हो रही हैं वायरल

भोजपुरी फिल्मों की फेमस एक्ट्रेस रानी चटर्जी (Rani Chatterjee) ने हाल ही में अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर दुल्हन लुक में कुछ फोटोज शेयर की हैं, इन फोटोज को देखकर फैंस के बीच में खलबली मच गई हैं और हर कोई बस यही जानना चाहता है कि क्या सचमुच रानी चटर्जी ने शादी कर ली हैं और आखिर उनका दूल्हा है कौन? अगर आपके मन में भी यही सवाल है तो हम आपको बताते हैं इन वायरल फोटोज की सच्चाई…

फिल्म के लिए बनीं दुल्हन…

रानी चटर्जी के फैंस को घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि उन्होंने सचमुच शादी नहीं की है बल्कि वो तो एक फिल्म के लिए दुल्हन बनीं हैं. जी हां, रानी चटर्जी ने अपकमिंग फिल्म ‘बाबुल की गलियां’ (Babul Ki Galiyan) के लिए ये वेडिंग सीन शूट किया है. जिसकी फोटोज उन्होंने अपने पर्सनल अकाउंट पर शेयर की हैं. इन फोटोज को शेयर करते हुए रानी ने लिखा- ‘बुजर्ग कहते है सही समय पर शादी करने से अच्छा दूल्हा मिलता है. मेरे अगले पोस्ट का इंतजार कीजिए.’ जिसके बाद कुछ फैंस रानी चटर्जी को गुपचुप शादी रचाने पर बधाई भी देने लगे थे.

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ये भोजपुरी एक्टर बना दूल्हा…

इस फिल्म में रानी चटर्जी के साथ जय यादव लीड रोल में दिखाई देंगे जो इस सीन में उनके दूल्हे भी बने हैं. रानी के अलावा जय यादव ने भी अपनी सोशल मीडिया अकाउंट पर फोटो शेयर करते हुए कैप्शन दिया है, ‘रानी जी आप भोजपुरी फिल्म जगत की रानी हो. इतना सरल स्वभाव, हंसमुख, अपने को-आर्टिस्ट और टेक्नीशियनस को किस तरह कम्फर्ट करना चाहिए आप से सीखने को मिला. मुझे आपके साथ काम करके खुशी हो रही है. इतने सपोर्ट के लिए आपका धन्यवाद.’

 

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जय यादव के इस पोस्ट पर रानी ने रिप्लाई दिया, ‘आप बहुत स्वीट हो जय मैं तुम्हें बहुत मिस करूंगी. मेरी पक पक को अपनी प्यारी स्माइल के साथ सुनने के लिए आपका धन्यवाद. जल्द मिलेंगे.’

बता दें कि हाल ही में रानी चटर्जी ने व्हाइट वेडिंग गाउन में एक खूबसूरत फोटोशूट करवाया था, जिसकी फोटोज देख फैंस को लगा कि वो सचमुच शादी करने वाली हैं.

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Mother’s Day Special- बहू-बेटी: भाग 3

रात को गैस के तंदूर पर रश्मि ने बढि़या स्वादिष्ठ मुर्गा और नान बनाए. इस बार बहू अपने मायके से तंदूर ले कर आई थी, पर वह वैसा का वैसा ही बंद पड़ा था. उस पर खाना बनाने का अवकाश किसे था. सास को आदत न थी और बहू को समय न था. तंदूर का खाना इतना अच्छा लगा कि विजय ने रश्मि से कहा, ‘‘कल हम भी एक तंदूर खरीद लेंगे.’’

दयावती के मुंह से निकल गया, ‘‘क्यों पैसे खराब करोगे? यही ले जाना. यहां किस काम आ रहा है.’’

कमलनाथ ने कहा, ‘‘ठीक तो है, बेटा. तुम यही ले जाओ. हमें जरूरत पड़ेगी तो और ले लेंगे.’’

बहू चुप. उस के दिल पर तो जैसे किसी ने हथौड़ा मार दिया हो. उस ने अपने पति की ओर देखा. बेटे ने मुंह फेर लिया. एक ही इलाज था. कल ही बहन के लिए एक नया तंदूर खरीद कर ले आए. लेकिन इस के लिए पैसे और समय दोनों की आवश्यकता थी.

बेटी को अपना माहौल याद आया. एक बार तंदूर ले गई तो उस के ससुर व पति दोनों जीवन भर उसे तंदूर पर ही बैठा देंगे. दोनों को खाने का बहुत शौक था. इस के अलावा उसे याद था कि जब मां का दिया हुआ शाल सास ने उस की ननद को बिना पूछे पकड़ा दिया था तो उसे कितना मानसिक कष्ट हुआ था. आंखों में आंसू आ गए थे. भाभी की हालत भी वही होगी.

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बात बिगड़ने से पहले ही उस ने कहा, ‘‘नहीं मां, यह तंदूर भाभी का है, मैं नहीं ले जाऊंगी. मेरे पड़ोस में एक मेजर रहते हैं. उन्होंने मुझे सस्ते दामों

पर फौजी कैंटीन से तंदूर लाने के

लिए कहा है. 2-2 तंदूर ले कर मैं

क्या करूंगी?’’

बेटी ने तंदूर के लिए मांग नहीं की थी, परंतु उस ने ससुराल लौटते ही मेजर साहब से तंदूर के लिए कहने का इरादा कर लिया था.

अगले दिन बेटी और दामाद चले गए. घर सूनासूना लगने लगा. चहलपहल मानो समाप्त हो गई थी. इस सूनेपन को तोड़ने वाली केवल एक आवाज थी और वह थी बच्ची के रोने की आवाज. वातावरण सामान्य होने में कुछ समय लगा. मां के मुंह से हर समय बेटी का नाम निकलता था. वह क्याक्या करती थी…क्या कर रही होगी…बच्चा ठीक से हो जाए…तुरंत बुला लूंगी. 3 महीने से पहले वापस नहीं भेजूंगी. बहू सोच रही थी, उसे तो पीछे पड़ कर 1 महीने बाद ही बुला लिया था.

दयावती की बहन की लड़की किसी रिश्तेदार के यहां विवाह में आई थी, समय निकाल कर वह मौसी से मिलने भी आ गई.

‘‘क्या हो रहा है, मौसी?’’

‘‘अरे, तू कब आई?’’ दयावती ने चकित हो कर कहा, ‘‘कुछ खबर भी नहीं?’’

‘‘लो, जब खुद ही चली आई तो खबर क्या भेजनी? आई तो कल ही हूं. शादी है एक. कल वापस भी जाना है, पर अपनी प्यारी मौसी से मिले बिना कैसे जा सकती हूं? भाभी कहां हैं? सुना है, छुटकी बड़ी प्यारी है. बस, उसे देखने भर आई हूं.’’

‘‘अरे, बैठ तो सही. सब देखसुन लेना. देख कढ़ी बना रही हूं. खा कर जाना.’’

‘‘ओहो…बस, मौसी, तुम और तुम्हारी कढ़ी. हमेशा चूल्हाचौका. अब भाभी भी तो है, कुछ तो आराम से बैठा करो.’’

दयावती ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘क्या आराम करना. काम तो जिंदगी की अंतिम सांस तक करना ही करना है.’’

‘‘हाय, दीदी, तुम्हारा कितना काम करती थी. सच, तुम्हें रश्मि दीदी की बहुत याद आती होगी, मौसी?’’

‘‘अब फर्क तो होता ही है बहू और बेटी में,’’ दयावती ने फिर गहरी सांस ली.

जया सुन रही थी. उस के दिल पर चोट लगी. क्यों फर्क होता है बहू और बेटी में? एक को तीर तो दूसरे को तमगा. जब सास की बहन की लड़की चली गई तो जया सोचने लगी कि इस स्थिति में बदलाव आना जरूरी है. सास और बहू के बीच औपचारिकता क्यों? वह सास से साफसाफ कह सकती है कि बारबार बेटी की रट न लगाएं. पर ऐसा कहने से सास को अच्छा न लगेगा. अब उसे ही बेटी की भूमिका अदा करनी पड़ेगी. न सास रहेगी, न बहू. हर घर में बस, मांबेटी ही होनी चाहिए.

वह मुसकराई. उसे एक तरकीब सूझी. परिणाम बुरा भी हो सकता था, परंतु उस ने खतरा उठाने का निर्णय ले ही लिया. अगले सप्ताह होली का त्योहार था. अगर कुछ बुरा भी लगा तो होली के माहौल में ढक जाएगा. उस ने छुटकी को उठा कर चूम लिया.

प्रात: जब वह कमरे से निकली तो जींस पहने हुए थी और ऊपर से चैक का कुरता डाल रखा था. हाथ में गुलाल था.

‘‘होली मुबारक हो, मांजी,’’ कहते हुए जया ने ननद की नकल करते हुए सास के गालों पर चुंबन जड़ दिए और मुंह पर गुलाल मल दिया. दयावती की तो जैसे बोलती ही बंद हो गई. इस से पहले कि सास संभलती, जया ने खिलखिला कर ‘होली है…होली है’ कहते हुए सास को पकड़ कर नाचना शुरू कर दिया. होहल्ला सुन कर कमलनाथ भी बाहर आ गए और यह दृश्य देख कर हंसे बिना न रह सके.

‘‘यह क्या हो रहा है, बहू?’’ कमलनाथ ने हंसते हुए कहा.

‘‘होली है, पिताजी, और सुनिए, आज से मैं बहू नहीं हूं, बेटी हूं…सौ फीसदी बेटी,’’ यह कहते हुए उस ने ससुर के मुंह पर भी गुलाल पोत दिया.

इस से पहले कि कुछ और हंगामा खड़ा होता, पासपड़ोस के लोग मिलने आने लगे. स्त्रियां तो घर में ही घुस आईं. इसी बीच छुटकी रोने लगी. जया ने दौड़ कर छुटकी को उठा लिया और उस के कपड़े बदल कर सास की गोदी में बैठा दिया.

‘‘मांजी, आप मिलने वालों से निबटिए, मैं चायनाश्ता लगा रही हूं.’’

‘‘पर, बहू…’’

‘‘बहू नहीं, बेटी, मांजी. अब मैं बेटी हूं. देखिए मैं कितनी फुरती से काम निबटाती हूं.’’

लोग आ रहे थे और जा रहे थे. जया फुरती से नाश्ता लगालगा कर दे रही थी. रसोई का काम भी संभाल रही थी. गरमागरम पकौडि़यां बना रही थी, जूठे बरतन इकट्ठा नहीं होने दे रही थी. साथ ही साथ धो कर रखती जाती थी. सास को 2 बार रसोई से बाहर किया. उस का काम केवल छुटकी को रखना और मिलने वालों से बात करना था. सास को मजबूरन 2 बार छुटकी के कपड़े बदलने पड़े. सब से बड़ी बात तो यह थी कि दादी की गोद में छुटकी आज चुप थी, रोने का नाम नहीं. लगता था कि वह भी षडयंत्र में शामिल थी.

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जब मेहमानों से छुट्टी मिली तो दयावती ने महसूस किया कि छुटकी कुछ बदल गई है. रोई क्यों नहीं आज? बल्कि शैतान हंस ही रही थी.

कमलनाथ ने आवाज दी, ‘‘बहू, जरा एक दहीबड़ा और दे जाना, बहुत अच्छे बने हैं.’’

रसोई से आवाज आई, ‘‘यहां कोई बहूवहू नहीं है, पिताजी.’’

‘‘बड़ी भूल हो गई बेटी,’’ कमलनाथ ने हंसते हुए कहा, ‘‘अब तो मिलेगा न?’’

‘‘और हां बेटी,’’ सास ने शरमाते हुए कहा, ‘‘अपनी मां का भी ध्यान रखना.’’

सास के गले में बांहें डालते हुए जया ने कहा, ‘‘क्योें नहीं, मां, आप लोगों को पा कर मैं कितनी धन्य हूं.’’

रमेश ने जो यह नाटक देख रहा था, गंभीरता से कहा, ‘‘इन हालात में मेरी क्या स्थिति है?’’ और सब हंस पड़े.

Serial Story: जड़ों से जुड़ा जीवन- भाग 5

लेखक-  वीना टहिल्यानी

‘‘कौन? फरीदा बेग? अरे, वह 4-5 साल पहले तक यहीं थी. उस की नजर कमजोर हो गई थी. मोतियाबिंद का आपरेशन भी हुआ पर अधिक उम्र होने के कारण वह काम नहीं कर पाती थी, लेकिन रहती यहीं थी. फिर एक दिन उस का बेटा सेना से स्वैच्छिक अवकाश ले कर आ गया और वह अपने साथ फरीदा को भी ले गया,’’ मुखर्जी ने पूरी जानकारी एकसाथ दे दी.

अम्मां चली गई हैं, यह जानते ही मिली का चेहरा सफेद पड़ गया. उस के निरीह चेहरे को देख कर जौन ने एक और प्रयत्न किया, ‘‘आप के पास उन का कोई पता तो होगा ही मिस्टर मुखर्जी?’’

‘‘हां…हां, क्यों नहीं. आप उन से मिलने जाएंगे? खूब खुश होंगी वह अपनी पुरानी बच्ची से मिल कर.’’ मुखर्जी बाबू आनंदित हो उठे. मिली की जाती जान जैसे वापस लौट आई.

पुराने खातों की खोज हुई. कोलकाता के उपनगर दमदम से भी आगे, नागेर बाजार के किसी पुराने इलाके का पता लिखा था.

अगले दिन, संचालक ने उन के जाने के लिए टूरिस्ट कार की व्यवस्था कर दी.

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अम्मां के लिए फलफूल लिए गए. चौडे़ पाड़ वाली बंगाली धोती खरीदी गई. मिली बहुत खुश थी. आखिर दूरियां नापतेनापते जब वे दिए गए पते पर पहुंचे तो पता चला कि वहां तो कोई और परिवार रहता है. पड़ोसियों से पूछताछ की लेकिन पक्के तौर पर कोई कुछ कह न सका. शायद वे अपने गांव उड़ीसा चले गए थे, जहां उन की जमीन थी. पर वहां का पता किसी को मालूम न था.

मिली की तो जैसे सुननेसमझने की शक्ति ही जाती रही. फिर रुलाई का ऐसा आवेग उमड़ा कि उस की हिचकियां बंध गईं. जौन ने उसे संभाल लिया. बांहों में उसे बांध कर उस का सिर सहलाया. स्नेह से समझाया पर मिली तो जैसे कुछ सुननेसमझने के लिए तैयार ही न थी.

उस का कातर कं्रदन जारी रहा तो जौन घबरा उठा. कंधे झकझोर कर उस ने मिली को जोर से डांटा, ‘‘मिली, बहुत हुआ…अंब बंद करो यह नादानी.’’

‘‘यहां आना तो बेकार ही हो गया न जौन,’’ मिली रोंआसे स्वर से बोली.

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‘‘यह तो बेवकूफों वाली बात हुई,’’ जौन फिर नाराज हुआ, ‘‘अरे, अपने भाई के साथ तुम वापस अपने देश आई हो. मैं तो पहली बार ही इंडिया देख रहा हूं और इसे तुम बेकार कहती हो. असल में मिली, तुम्हारी अपेक्षाएं ही गलत हैं. तुम ने सोचा, तुम जो जैसा जहां छोड़ गई हो वह वैसा का वैसा वहीं पाओगी. बीच के समय का तुम्हें जरा भी विचार नहीं…तुम्हें तुम्हारा पुराना भवन न दिखा तो तुम निराश हो गईं. फरीदा अम्मां न मिलीं तो तुम हताश हो उठीं. तनिक यह भी सोचो कि बिल्ंिडग कितनी सुविधामयी है. फरीदा अम्मां अपने परिवार के साथ सुख से हैं. यह    दुख की बात है कि तुम उन से नहीं मिल पाईं पर इस बात को दिल से तो न लगाओ. जिन को चाहती हो, प्यार करती हो उन को अपना आदर्श बनाओ. जुझारू, बहादुर और सेवामयी बनो, फरीदा अम्मां जैसे.’’

भाई की बातों को ध्यान से सुनती मिली एकाएक ही बोल पड़ी, ‘‘जौन, मैं तो अभी कितनी छोटी हूं…मैं भला क्या कर सकती हूं.’’

‘‘तुम क्याक्या कर सकती हो, समय आने पर सब समझ जाओगी. फिलहाल तो तुम इस संस्था को कुछ दान दो जिस ने तुम्हें पाला, पोसा, बड़ा किया, प्यार दिया. मौम तुम्हें कितना सारा पैसा दे कर गई हैं…आओ, मैं तुम्हें चेक भरना बताऊं.’’

दोनों भाईबहनों ने ‘भारती बाल आश्रम’ के नाम एक चेक बनाया जिसे चुपचाप गलियारे में रखे दानपात्र में डाल दिया.

‘‘कोलकाता घूम कर शांतिनिकेतन चलेंगे फिर नालंदा और बोधगया देखेंगे. उस के बाद आगरा का ताज देख कर दिल्ली पहुंचेंगे और दिल्ली दर्शन के बाद वापस लंदन लौट चलेंगे. इस ट्रिप में तो बस, इतना ही घूमा जा सकता है.’’

आंख खुली तो मिली ने देखा एक सितारा अभी भी अपनी पूरी निष्ठा से दमक रहा था. मिली इस सितारे को पहचानती है यह भोर का तारा है.

फरीदा अम्मां कहती थीं, भोर का यह तारा भूलेभटकों को राह दिखाता है, दिशाहारों की उम्मीद जगाता है. बड़ा ही हठीला है पूरब दिशा का यह सितारा. किरणें उसे लाख समझाएं पर जबतक सूरज खुद नहीं आ जाता यह जिद्दी तारा जाने का नाम ही नहीं लेता. इसी हठी सितारे के आकर्षण में बंधी मिली बिस्तर से उठ खड़ी हुई.

पिछवाड़े की बालकनी खोल मिली ने बाहर कदम रखा ही था कि सहसा ठिठक गई. सामने जटाजूटधारी बरगद खड़ा था. वही वैभवशाली वटवृक्ष. पहले से कहीं ऊंचा, उन्नत, विराट और विशाल.

मिली ने हाथ आगे बढ़ा कर हौले से पेड़ के पत्तों को सहलाया, धीरे से उस की डालों को छुआ, मानो पूछ रही हो कि  पहचाना मुझे? मैं मिली हूं जो कभी तुम्हारी छांव में खेलती थी, तुम्हारी जटाओं पर झूलती थी. और इस तरह एक बार फिर मिली बचपन में भटकने लगी थी.

अचानक मसजिद से अजान की आवाज उभरी तो किसी मंदिर के घंटे घनघना उठे. और यह सब सुनते ही मिली को अभिमान हो आया कि कैसी विशाल, विराट, भव्य और उदार है उस की मातृभूमि.

मौम सच कहती थीं, हर जीवन अपनी जड़ों से जुड़ा होता है. मनुष्य अपनी माटी से अनायास ही आकर्षित होता है. अपनी जमीन और अपनी मिट्टी ही देती है व्यक्ति को असीम ऊर्जा और अलौकिक आनंद.

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दिन चढ़ने लगा था. कोलकाता शहर के विहंगम विस्तार पर सूरज दमक रहा था. सड़कों पर गलियों में धूप पसर रही थी. सूरज की किरणों के साथ ही जैसे संपूर्ण शहर जाग उठा था.

मिली को अचानक ही लंदन की याद हो आई. शांत, सौम्य लंदन. लंदन उस का अपना नगर, अपना शहर, जहां बर्फ भी गिरती है तो चुपचाप बेआवाज. सर्द मौसम में, पेड़ों की फुनगियों पर, घरों की छतों पर, सड़कों और गलियों में. यहां से वहां तक बस चांदी ही चांदी, बर्फ की चांदी. मिली के मन में जैसे बर्फ की चांदी बिखर गई. मिली अकुला उठी. उसे अपना घर याद हो आया. भोर का सितारा तो न जाने कब, कहां निकल गया था. अब तो उसे भी जाना था, वापस अपने घर.

न ताली, न थाली: लौकडाउन से मुकरे मोदी

केंद्र सरकार अब प्रदेशों का बोझ नहीं उठाना चाहती है. इस वजह से प्रदेशों को लौकडाउन का फैसला लेने की आजादी दे दी है.

एक साल पहले जिस लौकडाउन यानी तालाबंदी को केंद्र की मोदी सरकार कोरोना को रोकने का सब से मारक हथियार मान रही थी, कोरोना को रोकने के लिए ताली और थाली बजाने का काम करा रही थी, अब कोरोना की दूसरी लहर को रोकने के लिए मोदी सरकार पुराने टोटके आजमाने से बच रही है. एक साल बाद अब केंद्र सरकार लौकडाउन की पौलिसी पर खुद फैसला नहीं लेना चाहती है.

हालात ये हैं कि जब उत्तर प्रदेश में हाईकोर्ट ने राजधानी लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर और गोरखपुर को 26 अप्रैल, 2021 तक लौकडाउन करने का आदेश दिया तब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने लौकडाउन करने से इनकार कर दिया. योगी सरकार ने कहा कि लौकडाउन से रोजीरोटी का संकट पैदा हो जाएगा. सरकार को प्रदेश के लोगों की जिंदगी के साथसाथ रोजीरोटी भी बचानी है.

ठीक एक साल पहले 2020 के मार्च महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लौकडाउन की शुरुआत ‘जनता कर्फ्यू’ से की थी. इस के बाद धीरेधीरे 3 महीने तक का पूरा लौकडाउन चला था. सरकार का मानना था कि लौकडाउन से ही कोरोना को रोकने में मदद मिलेगी.

एक साल बाद सरकार अपने फैसले पर ही अमल करने को तैयार नहीं है. इस से 2 बातें साफ होती हैं कि या तो पिछले साल लौकडाउन का फैसला सही नहीं था, बिना किसी आधार के लिए लिया गया था या इस साल लौकडाउन न कर के कोरोना सकंट को बढ़ाने का काम किया जा रहा है. कोर्ट के कहने के बाद भी सरकार हठधर्मी से काम कर रही है.

हाईकोर्ट का तर्क

इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और अजित कुमार की खंडपीठ ने जनहित याचिका पर सनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को 26 अप्रैल, 2021 तक के लिए 5 शहरों लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर और गोरखपुर में लौकडाउन करने को कहा. कोर्ट ने कहा, ‘लोग सड़कों पर बिना मास्क के घूम रहे हैं. पुलिस 100 फीसदी मास्क लागू करने में नाकाम है. संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है. अस्पतालों में दवा और औक्सीजन की भारी कमी है. लोग दवा और इलाज के बगैर दम तोड़ रहे हैं. सरकार ने कोई फौरी योजना नहीं बनाई है. न ही पूर्व में कोई तैयारी की है. डाक्टर, मैडिकल स्टाफ, मुख्यमंत्री तक संक्रमित हैं. मरीज इलाज के लिए अस्पतालों में दौड़ लगा रहे हैं.’

हाईकोर्ट ने सरकार से युद्ध स्तर पर आपदा से निबटने के लिए काम करने को कहा है. कोर्ट ने प्रयागराज का उदाहरण देते हुए कहा कि यहां 30 लाख की आबादी है. 12 अस्पतालों में 1977 बिस्तर और 514 आईसीयू हैं. इस से पता चलता है कि केवल 5 फीसदी लोगों को ही इलाज देने की व्यवस्था है. लखनऊ में बिस्तर काफी कम हैं. हर 5वें घर में सर्दीजुकाम से पीड़ित लोग हैं. जांच नहीं हो पा रही है. कोर्ट ने कहा कि वीआईपी लोगों की रिपोर्ट 12 घंटे में आ रही है, पर आम आदमी को 3 दिन बाद तक जांच रिपोर्ट मिल रही है.

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तीखी टिप्पणियां

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश  सरकार को आईना दिखाते हुए तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि आप के पास खानेपीने की चीजों से भरी किराना की दुकान हो या बाइक और कार से भरे शोरूम, अगर दवा की दुकान खाली है, रेमेडीसीवर जैसी जीवनरक्षक दवाएं नहीं मिल रही हैं तो इन चीजों का कोई उपयोग नहीं है.

हाईकोर्ट ने आगे कहा कि संक्रमण की चेन बन गई है. यह और आबादी को चपेट में ले इस से पहले कठोर कदम उठा कर उस को तोड़ना होगा. कोविड अस्पतालों में सुविधाएं नहीं हैं. पिछले एक साल में सरकार ने कोविड से निबटने के लिए कोई तैयारी नहीं की है.

पर हाईकोर्ट की तीखी टिप्पणी के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार ने लौकडाउन लगाने का फैसला नहीं लिया. उत्तर प्रदेश में लौकडाउन के नाम पर योगी सरकार ने रविवार को ‘वीकऐंड लौकडाउन’ की घोषणा पहले से ही कर रखी है. इस के अलावा रात 8 बजे से सुबह 7 बजे तक पूरे प्रदेश में लौकडाउन रहता है. इस को ‘नाइट कर्फ्यू’ कहा जाता है.

योगी सरकार के इस कदम के बाद भी उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है. इस उपाय को फेल होते देख कर ही हाईकोर्ट ने 26 अप्रैल, 2021 तक पूरी तरह से लौकडाउन की बात कही थी, जिस पर सरकार ने अमल नहीं किया.

चलन में है ‘वीकऐंड लौकडाउन’

पूरे भारत में ‘आंशिक लौकडाउन’ और ‘वीकऐंड लौकडाउन’ लगाने का काम चल रहा है. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, दिल्ली सभी प्रदेशों में लौकडाउन के फैसले वहां की प्रदेश सरकारें ले रही हैं. दिल्ली में एक हफ्ते का लौकडाउन होते ही लोगों में दिल्ली से पलायन की होड़ लग गई. बसअड्डे भर गए. बसों की कमी हो गई. महाराष्ट्र में पूरे साल ही ‘आंशिक लौकडाउन’ लगा रहा, जिस की वजह से वहां ज्यादा अफरातफरी नहीं हो रही है.

लौकडाउन पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आते ही लोग सड़कों पर उतर कर जरूरी सामान की खरीदारी करने लगे हैं, जिस से सामान की कमी होने लगती है. पिछले साल लौकडाउन होने पर केवल खानेपीने की चीजों की ही खरीदारी हो रही थी. इस साल दवाओं की भी खरीदारी होने लगी है.

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लौकडाउन लगने का सब से गलत असर यह होता है कि जमाखोरी बढ़ जाती है. जरूरी चीजों के दाम बढ़ जाते हैं. लौकडाउन लगने का फायदा यह होता है कि लोगों का इधर से उधर जाना कम हो जाता है, जिस की वजह से संक्रमण फैलने का खतरा कम हो जाता है. लौकडाउन से आर्थिक हालात खराब होते हैं. सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. इस वजह से सरकार लौकडाउन से बच रही है और केंद्र सरकार लौकडाउन लगाने का फैसला प्रदेश सरकारों पर छोड़ रही है, जिस से केंद्र सरकार पर आर्थिक बोझ न पडे.

Crime Story: रोहतक का खूनी अखाड़ा- भाग 1

सौजन्य-  मनोहर कहानियां

एक पुरानी कहावत है कि हर जुर्म की पृष्ठभूमि में जर, जोरू और जमीन मूल कारण होता है. हरियाणा के रोहतक स्थित जाट कालेज के मेहर सिंह अखाड़े में उस रात जो कुछ हुआ, उस की जड़ में कोई एक नहीं, बल्कि ये तीनों ही कारण छिपे थे.

12 फरवरी, 2021 की रात के करीब 9 बजे जाट कालेज का पूरा प्रांगण सैकड़ों लोगों की भीड़ से खचाखच भरा था. चारों तरफ चीखपुकार मची थी. महिलाओं की मर्मांतक चीखों से पूरा माहौल गमगीन था. कालेज के बाहर पुलिस और प्रशासन की गाडि़यों का हुजूम जमा था. सायरन बजाती पुलिस की गाडि़यों और एंबुलैंस से पूरा इलाका किसी बड़े हादसे की ओर इशारा कर रहा था.

करीब 2 घंटे पहले मेहर सिंह अखाड़े में जो खूनी खेला गया था, उस के बाद वहां सिर्फ तबाही और मौत के निशान बचे थे.

जाट कालेज के मेहर सिंह अखाड़े में जो हादसा हुआ था, उस की शुरुआत शाम करीब साढ़े 6 बजे हुई थी.

मनोज कुमार मलिक, जो जाट कालेज रोहतक में डीपीई थे, अपनी पत्नी साक्षी मलिक व अपने 3 साल के बेटे सरताज के साथ अखाड़े में मौजूद थे. साक्षी मलिक एथलीट कोटे से रेलवे में कार्यरत थी. मनोज जाट कालेज के मेहर सिंह अखाड़े में हर शाम कुश्ती के खिलाडि़यों को प्रशिक्षण देने आते थे.

उस शाम मनोज करीब 6 बजे खिलाडि़यों को अभ्यास कराने के लिए अपनी पत्नी साक्षी व बेटे सरताज को साथ ले कर जाट कालेज के अखाड़े आए थे. साक्षी मैदान में जा कर अपने गेम की प्रैक्टिस कर रही थीं, बेटा सरताज भी उन के साथ था.

अखाड़े वाले मैदान में ऊंची आवाज में स्टीरियो पर वार्मअप म्यूजिक बज रहा था. मनोज मलिक जिस वक्त अखाडे़ में पहुंचे वहां कोच प्रदीप मलिक, सतीश दलाल पहले से ही खिलाडि़यों को प्रशिक्षण दे रहे थे, महिला खिलाड़ी पूजा अखाडे़ में दावपेंच आजमा रही थी. साक्षी मैदान में अपनी एथलीट की प्रैक्टिस करने लगीं. बेटा सरताज उन के पास ही था.

कोच सतीश दलाल खिलाड़ी पूजा से कुश्ती के दावपेंच को ले कर बात कर रहे थे. मनोज व प्रदीप मलिक आपस में बात करने लगे. इस के बाद प्रदीप जिम्नेजियम के ऊपर बने रेस्टहाउस में चले गए, जहां एक कमरे में पहले से ही कोच सुखविंदर मौजूद था.

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प्रदीप मलिक ने सुखविंदर के कमरे में जा कर उस से बातचीत शुरू कर दी. जिम्नेजियम में भी ऊंची आवाज में म्यूजिक बज रहा था, जहां कई युवा पहलवान वार्मअप कर रहे थे.

सुखविंदर से बातचीत के दौरान अचानक प्रदीप मलिक का फोन आ गया. फोन ले कर वह जैसे ही उठे, तभी अचानक सुखविंदर ने उन के सिर में गोली मार दी. गोली लगते ही प्रदीप लहरा कर जमीन पर गिर पड़े. सुखविंदर ने प्रदीप के शव को दरवाजे के सामने से हटा कर एक तरफ डाल दिया.

गोली जरूर चली थी, लेकिन मैदान में चल रहे स्टीरियो साउंड के कारण किसी को पता नहीं चला कि गोली कहां चली और किस ने चलाई. सुखविंदर ने जिम्नेजियम की छत से आवाज दे कर मुख्य कोच मनोज मलिक को, जो नीचे मैदान में थे, को भी उसी कमरे में बुलाया, जिस में उस ने प्रदीप को गोली मारी थी.

जैसे ही मनोज मलिक कमरे में घुसे, सुखविंदर ने बिना कोई बात किए सीधे उन के सिर में गोली मार दी. उन की भी मौके पर ही मौत हो गई. सुखविंदर ने उन के शव को भी कमरे में एक तरफ डाल दिया.

2 लोगों को गोली मारने के बाद सुखविंदर ने जिम्नेजियम की बालकनी में जा कर कोच सतीश दलाल को बात करने के लिए आवाज दे कर उसी कमरे में बुला लिया. सतीश दलाल के कमरे में एंट्री करते ही उस ने उन्हें भी गोली मार दी. कुछ ही मिनटों में तीनों की हत्या के बाद भी सुखविंदर का जुनून कम नहीं हुआ. उस कमरे में शवों को छिपाने के लिए और जगह नहीं बची थी, इसलिए उस ने उस कमरे में ताला लगा दिया.

अगला निशाना थी पूजा

सुखविंदर का अगला निशाना थी अखाड़े में पहलवानी कर रही महिला पहलवान पूजा. सुखविंदर ने पूजा को फोन किया कि मनोज मलिक और दूसरे कोच कुछ बात करने के लिए उसे जिम्नेजियम में बने कमरे में आने के लिए कह रहे हैं. जिस कमरे में उस ने पूजा को बुलाया, वह दूसरा कमरा था.

पूजा जैसे ही उस कमरे में पहुंची सुखविंदर ने उसे भी गोली मार दी. गोली लगते ही उस की भी मौके पर ही मौत हो गई.

मनोज मलिक व पूजा की हत्या के बाद सुखविंदर के टारगेट पर थीं साक्षी मलिक, जो उस वक्त नीचे मैदान में प्रैक्टिस कर रही थी. सुखविंदर ने बालकनी से उन्हें भी आवाज दे कर बुलाया कि मनोज बुला रहे हैं. ऊपर आ जाओ आप से कुछ सलाह लेनी है.

उस ने साक्षी को भी उसी कमरे में बुलाया, जिस में पूजा की हत्या कर उस की लाश रखी थी. साक्षी के कमरे में एंट्री करते ही बिना कोई सवालजवाब किए सुखविंदर ने सीधे सिर में गोली मार कर उन की भी हत्या कर दी.

सुखविंदर के सिर पर मनोज मलिक के लिए नफरत का जुनून इस कदर हावी था कि वह मनोज के पूरे वंश को मिटाना चाहता था. दरअसल, सुखविंदर ने एक बार अखबार में खबर पढ़ी थी कि बेटे ने अपने पिता की हत्या के 20 साल बाद जवान हो कर हत्यारे को मौत के घाट उतार कर बदला लिया था. इसलिए सुखविंदर मनोज के बेटे को

जिंदा छोड़ना नहीं चाहता था, जिस से बाद में वह अपने पिता की मौत का बदला ले सके.

साक्षी की हत्या के बाद वह नीचे गया और मैदान में खेल रहे सरताज को यह कहते हुए उठा लिया कि उस की मम्मी ऊपर बुला रही है. ऊपर लाने के बाद सुखविंदर ने सरताज को भी गोली मार दी. सरताज को मृत समझ कर सुखविंदर ने उस कमरे में भी ताला लगा दिया. दोनों कमरों का ताला लगाने के बाद वह मेनगेट पर तीसरा ताला लगा कर अखाड़े के मैदान में आ गया.

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अखाड़े में मौजूद सभी लोगों की हत्या के बाद सुखविंदर नीचे आ कर अपनी गाड़ी में बैठ गया. उस समय नीचे कोई नहीं था. वहां से वह सीधे जाट कालेज के सामने पहुंचा, जहां पर मेहर सिंह अखाड़े का एक दूसरा कोच अमरजीत भी पहुंच चुका था. अमरजीत को उस ने अखाड़े के संबंध में बात करने के लिए बुलाया था.

अगले भाग में पढ़ें- पहलवानों को हुआ शक

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