हैवान- भाग 1: प्यार जब जुनून में बदल जाए

जेल की जिस अंधेरी कोठरी में विक्रम सजा काट रहा था, उस की दीवारों पर बस एक ही नाम लिखा था, राधा. सिर्फ जेल की दीवारों पर ही नहीं, बल्कि राधा का नाम तो विक्रम के दिलोदिमाग पर छाया हुआ था. राधा ही वह नाम था, जिसे मौत भी विक्रम की जिंदगी से नहीं मिटा सकती थी.

विक्रम राधा से प्यार ही नहीं करता था, बल्कि उसे जुनून की हद तक चाहता भी था.

जिस कालकोठरी में लोग रोरो कर अपना समय काटते थे, वहां विक्रम के दिनरात राधा की यादों, खयालों और ख्वाबों में गुजरते थे. हर पल राधा से मिलने की तड़प और इंतजार ने उसे अब तक सलाखों के पीछे जिंदा रखा था, वरना वह कब का दुनिया को अलविदा कह चुका होता.

विक्रम लावारिसों की तरह एक अनाथालय में पलाबढ़ा था. उस के मांबाप का पता नहीं था. उस ने बचपन से ही हर ख्वाहिश के लिए मन मारना सीखा था.

जब अनाथालय की चारदीवारी में उस का दम घुटने लगा, तो एक दिन विक्रम भाग निकला.

पेट भरने के लिए पहले उस ने मजदूरी की, लेकिन जब पेट नहीं भरा, तो लोगों से पैसे छीनने लगा. 2-4 साथी मिल गए, तो एक गिरोह बना लिया.

इस के बाद विक्रम अपराध के चक्रव्यूह में ऐसा फंसा कि बड़े गिरोह का सरदार बन गया. आलीशान कोठी ले ली और पुलिस से छिपने के लिए वह शहर से दूर उसी कोठी का सहारा लेता था.

एक दिन बाजार में घूमतेघूमते विक्रम की नजर एक खूबसूरत चेहरे पर पड़ी. यह चेहरा राधा का था. राधा ने जैसे उस के चेहरे पर एक जादू सा कर दिया था.

राधा को देखते ही विक्रम को पहली नजर का प्यार हो गया था. राधा की शक्ल में मानो उसे जिंदगी का नया मकसद मिल गया था. अब तो वह बस राधा का ही पीछा करता. राधा बाजार जाती, तो विक्रम भी उस की एक झलक पाने के लिए उस के पीछे हो लेता.

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रात को जब राधा घर में सोती, तो वह भी राधा के घर के बाहर दरवाजे पर ही सो जाता. विक्रम सोचता, ‘मैं उस से मिल कर अपने दिल की बात कह दूंगा. पूछेगी तो बता दूंगा कि मैं एक चोर हूं. कुछ कहेगी तो कह दूंगा कि चोर हूं, तो क्या हुआ. क्या चोरों के पास दिल नहीं होता? क्या उन्हें प्यार करने का हक नहीं? तुम एक बार मेरी बन जाओ, मैं ये सारे उलटेसीधे काम छोड़ दूंगा…’

विक्रम रोज यही सोचता, पर राधा से कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता.

एक दिन विक्रम ने पक्का कर लिया कि वह आज राधा को अपने दिल की बात बता कर ही दम लेगा.

सुबह राधा कालेज के लिए घर से निकली. विक्रम भी उस के पीछे हो लिया. किसी अकेली या सुनसान जगह देख कर वह राधा से अपनी बात कहने वाला था.

राधा की उम्र तकरीबन 22 साल, रंग गोरा. कद 5 फुट, 5 इंच. खूबसूरत नैननक्श और मोरनी सी चाल. जो भी देखे, मरमिटे उस की खूबसूरती पर.

राधा नदी के पुल से गुजरने लगी. विक्रम तेज कदमों से राधा की तरफ चल पड़ा. राधा इस बात से बिलकुल अनजान थी कि कोई उस पर इस कदर फिदा है. पुल से इक्कादुक्का आदमी ही गुजर रहे थे.

इस से पहले कि विक्रम राधा के पास पहुंचता, 4 दिलफेंक मोटरसाइकिल सवार राधा को अकेले देख कर उस के चारों ओर मंडराने लगे.

‘हाय बेबी’, ‘हाय डार्लिंग’ और ‘हाय स्वीटी’ कह कर वे चारों राधा के इर्दगिर्द चक्कर काटने लगे.

तभी एक ने राधा का दुपट्टा खींच लिया. अपना आंचल छिपाते हुए राधा रोनी सूरत बनाए कह रही थी, ‘‘प्लीज, मेरा रास्ता छोडि़ए… मुझे जल्दी कालेज पहुंचना है.’’

राधा की इस बात का उन पर कोई असर नहीं पड़ा. दूसरे ने राधा के हाथों से किताबें छीन लीं. वह बोला, ‘‘हाय बेबी डौल, आओ मैं तुम्हें पढ़ाता हूं.’’

राधा की आंखों में आंसू आ गए. कुछ ही दूरी पर खड़ा विक्रम राधा की बेइज्जती को देख कर आगबबूला हो उठा. उसे ऐसा लगा, मानो कोई उस के बदन पर जहरबुझा खंजर घोंप रहा है.

विक्रम तेजी से आगे बढ़ा और मोटरसाइकिल सवार एक लड़के पर जोर से एक लात दे मारी. इस से पहले कि वह संभलता, विक्रम की दूसरी किक ने उस का बैलेंस बिगाड़ दिया और वह पुल के नीचे गिर गया.

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बाकी तीनों का ध्यान विक्रम की ओर गया. एक ने उसे मोटरसाइकिल से कुचलना चाहा, पर विक्रम ने फुरती से उस के जबड़े पर एक ऐसा घूंसा जड़ा कि वह मोटरसाइकिल समेत काफी दूर तक घिसटता चला गया. बाकी दोनों पर विक्रम ने लातघूंसों की बरसात कर दी. जख्मी हालत में सभी लड़के भाग खड़े हुए.

विक्रम ने दुपट्टा उठाया और राधा को अपने हाथ से ओढ़ा दिया.

‘‘अगर आज आप वक्त पर नहीं आते, तो न जाने मेरा क्या होता,’’ राधा बोली.

विक्रम ने पास पड़ी किताबें उठा कर राधा को दीं और बोला, ‘‘मैं… मैं…’’

राधा बोली, ‘‘मेरा नाम राधा है. समझ नहीं आ रहा कि मैं आप का शुक्रिया कैसे अदा करूं?’’

‘‘नहीं, यह तो मेरा फर्ज था,’’ विक्रम के मुंह से ज्यादा शब्द नहीं निकल रहे थे.

‘‘आप ने अपना नाम नहीं बताया?’’

‘‘विक्रम…’’ अपना नाम किसी तरह जबान पर ला कर विक्रम तो बस राधा को ही देख रहा था.

राधा ने फिर से एक प्यारी सी मुसकान बिखेरते हुए कहा, ‘‘अगर आप को एतराज न हो, तो आप मेरे घर पर खाने के लिए आइए… इस बहाने मैं आप का शुक्रिया भी अदा कर सकूंगी और मेरे मांबाप भी आप से मिल कर खुश होंगे.’’

राधा की इस बात से विक्रम का हौसला बढ़ा और उस ने अचानक राधा के दोनों हाथ अपने हाथ में ले कर बोल दिया, ‘‘राधा, आई लव यू. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. प्लीज राधा, तुम गलत मत समझना.’’

विक्रम की इस हरकत से राधा चौंक पड़ी. अभी भी राधा के हाथ विक्रम के हाथों में थे. शायद विक्रम का छूना राधा को भी अच्छा लगा था.

राधा ने धीरे से हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘आप कल खाने पर मेरे घर जरूर आइएगा.’’

अगले दिन के इंतजार में विक्रम ने सारी रात करवटों में बिताई. विक्रम ठीक समय पर राधा के घर पहुंच गया. राधा के पिता ने बड़े आदर से विक्रम का स्वागत किया और उस का शुक्रिया अदा किया.

विक्रम ने भी समय देख कर उस के पिता से राधा की शादी की बात कह दी.

वैसे तो विक्रम उस के पिता को पसंद था, लेकिन शादीब्याह के मामले में वे थोड़े रूढि़वादी थे.

‘‘अपने बारे में कुछ बताओ विक्रम,’’ राधा के पिता ने पूछा.

‘‘जी, मेरा नाम विक्रम दास है. मैं अनाथ हूं, लेकिन आप की राधा का खयाल बहुत अच्छी तरह रखूंगा. पेशे से मैं इंपोर्टऐक्सपोर्ट का कारोबार करता हूं,’’ विक्रम ने बताया.

इस से पहले विक्रम अपनी बात आगे बढ़ाता, राधा के पिता के चेहरे के तेवर बदलने लगे, ‘‘विक्रम दास… दास यानी शिड्यूल कास्ट… तुम ने पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘जी, मैं तो आप से आज ही मिला हूं.’’

‘‘वह मैं कुछ नहीं जानता, तुम्हारी शादी राधा से नहीं हो सकती.’’

‘‘आखिर क्यों?’’

‘‘इसलिए कि तुम्हारी जाति हमारी जाति से मेल नहीं खाती. हम ठहरे ऊंचे कुल के ब्राह्मण और तुम…’’

‘‘आप यकीन मानिए, मैं राधा से बहुत प्यार करता हूं.’’

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‘‘प्यारव्यार कुछ नहीं… मैं ने एक बार कह दिया कि मैं गैरब्राह्मण परिवार में राधा की शादी हरगिज नहीं कर सकता और तुम तो…’’

‘‘बस कीजिए आप, आज जमाना कहां से कहां पहुंच चुका है और आप अभी भी वहीं जातपांत और अमीरीगरीबी पर अटके हैं.’’

‘‘मैं इस बात पर कोई बहस नहीं चाहता. तुम ने मेरी बेटी को गुंडों से बचाया, इसलिए तुम यहां खड़े हो, वरना तुम्हारी जाति के लोग हमारी दहलीज के पार नहीं आते.’’

अब विक्रम को राधा के पिता की बात चुभने लगी. उधर राधा भी अपने पिता के आगे कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.

तभी पुलिस का सायरन बजा. इंस्पैक्टर अंदर आया और आननफानन विक्रम को अपनी गिरफ्त में ले लिया. सब लोग अचानक पुलिस की ऐंट्री से चौंक गए.

राधा घबरा कर बोली, ‘‘इंस्पैक्टर साहब, आप यह क्या कर रहे हैं?’’

राधा की बात बीच में काट कर इंस्पैक्टर बोला, ‘‘मैं बिलकुल ठीक कर रहा हूं. यह बहुत बड़ा चोर है. पुलिस को कई दिनों से इस की तलाश थी.’’

राधा हैरान सी खड़ी रही और विक्रम चिल्लाचिल्ला कर कह रहा था, ‘‘राधा, मैं तुम से प्यार करता हूं, मुझे गलत मत समझना. मेरा इंतजार करना. जेल और जाति की दीवारें मुझे तुम से जुदा नहीं कर सकतीं. तुम मेरा इंतजार करना राधा…’’ और पुलिस की जीप विक्रम को ले कर राधा की आंखों से ओझल हो गई.

सबकुछ इतनी जल्दी हुआ कि राधा सोचती रह गई, ‘विक्रम तो कारोबारी था, फिर पुलिस उसे चोर क्यों बता रही थी? इस का मतलब विक्रम ने मुझ से झूठ बोला था, मुझे धोखा दिया था.’

राधा के पिता ने उस से कहा, ‘‘तुम इस धोखेबाज के झांसे में आने से बच गई, वरना यह चोर तो हमें धोखा दे ही चुका था.’’

कल तक विक्रम के लिए दिल में इज्जत रखने वाली राधा अब उस से नफरत करने लगी थी.

उधर विक्रम जेल में अपनी सजा खत्म होने का इंतजार कर रहा था, ताकि जल्द से जल्द अपनी राधा से मिल सके.

तभी विक्रम का शागिर्द चंदू उस से मिलने आया, ‘‘नमस्ते उस्ताद.’’

‘‘कहो, कैसे हो चंदू? कैसी है मेरी राधा?’’

चंदू कुछ घबराते हुए बोला, ‘‘उस्ताद, बुरी खबर है.’’

‘‘बुरी खबर… क्या बात है चंदू?’’

‘‘उस्ताद, वह… वह… वह…’’

‘‘वह… वह… क्या… तेरी जबान क्यों लड़खड़ा रही है? कुछ बोलता क्यों नहीं?’’

‘‘उस्ताद, राधा की कल शादी हो गई.’’

‘‘नहीं… नहीं… ऐसा नहीं हो सकता,’’ विक्रम के हाथ चंदू की गरदन पर थे, ‘‘कह दे कि यह झूठ है.’’

‘‘नहीं उस्ताद, यह सच है.’’

‘‘राधा मेरे सिवा किसी और की नहीं हो सकती. राधा सिर्फ मेरे लिए बनी है. उसे मुझ से कोई और नहीं छीन सकता. अगर ऐसा हुआ, तो मैं दुनिया को आग लगा दूंगा,’’ चंदू के गले पर विक्रम के हाथों का दबाव बढ़ने लगा. वह बड़ी मुश्किल से बोला, ‘‘उस्ताद, मेरी गरदन…’’

विक्रम ने गरदन छोड़ दी और अपना सिर सलाखों पर मारने लगा, ‘‘राधा, तुम मुझे धोखा नहीं दे सकतीं… मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा. तुम्हें सिर्फ मेरे लिए बनाया गया है,’’ विक्रम का माथा खून से लथपथ हो चुका था.

‘‘चंदू, जा कर पता करो कि मेरी राधा को मुझ से छीनने वाला आखिर कौन है?’’

‘‘जी उस्ताद…’’ कह कर चंदू चला गया.

विक्रम की जेल की कोठरी में बचे 2 दिन अब सदियों से लंबे लग रहे थे. वह अब एक पंछी की तरह आजाद होने के लिए फड़फड़ा रहा था. जेलर राउंड पर आया. उस ने देखा कि विक्रम ने बैरक की दीवारों पर हर जगह राधा का ही नाम लिख रखा है.

जेलर विक्रम पर चिल्लाया, ‘‘तेरे बाप की दीवार है क्या? खर्चा आता है खर्चा. हरामखोर कहीं का… यहां पर सजा काटने आया है या आशिकी करने.’’

विक्रम चुप रहा. सीखचों के पास आ कर जेलर फिर चीखा, ‘‘क्यों बे, गूंगा है क्या? कुछ बोलता क्यों नहीं? खड़ा हो…’’

विक्रम सलाखों के पास आ गया.

‘‘एक बात बता…’’ जेलर बोला, ‘‘कौन है यह? धोखा दे गई क्या… कौन थी? बीवी, प्रेमिका या फिर धंधे वाली?’’

जेलर इस से आगे कुछ और बोलता, विक्रम के दोनों हाथ उस की गरदन दबोच चुके थे.

विक्रम गुस्से से चीख उठा, ‘‘मेरी राधा को धंधे वाली बोलता है. मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा. तेरी इस बदजबानी की सजा सिर्फ मौत है,’’ विक्रम के सिर पर खून सवार हो चुका था.

विक्रम के हाथ जेलर की गरदन पर लगातार दबाव बढ़ाते जा रहे थे. जेलर के हलक से घुटीघुटी चीखें निकल रही थीं. जेलर को बचाने के लिए 2-3 सिपाही दौड़े. उन्होंने विक्रम पर डंडों की बौछार कर दी, लेकिन उस के हाथों का दबाव तब तक ढीला नहीं पड़ा, जब तक जेलर की जान नहीं निकल गई.

विक्रम ने उस सिपाही पर वार कर दिया, जो दरवाजा खोल कर उस पर डंडे बरसा रहा था. बाहर खड़े सिपाही सीटी बजा रहे थे. विक्रम ने सलाखों से बाहर आ कर दोनों को एकएक घूंसे से ही जमीन सुंघा दी.

जेलर की कमर से रिवाल्वर निकाल कर विक्रम छत की तरफ दौड़ा. छत से सड़क पर एक ट्रक आता दिखा. पुलिस की एक गोली उस की पीठ में धंस चुकी थी. विक्रम चीख उठा, पर जैसेतैसे उस ने ट्रक में छलांग लगा दी.

इस बात को एक साल बीत चुका था. राधा एक प्यारे से बच्चे की मां बन चुकी थी. उस का पति अरुण एक बैंक में मैनेजर था. वह राधा को बहुत चाहता था. दोनों अपने छोटे से परिवार में बहुत खुश थे.

एक दिन पतिपत्नी बाजार से घर लौट रहे थे, तभी वहां से गुजर रहे चंदू की नजर राधा पर पड़ी. वह तो कई महीनों से राधा की तलाश में था ही, इसलिए दोनों के पीछे हो लिया. अरुण ने घर का दरवाजा खोला और वे दोनों अंदर दाखिल हो गए.

चंदू ने घर देखा और वापस हो लिया. विक्रम के जेल से फरार होने के बाद पुलिस बुरी तरह से उस के पीछे पड़ गई थी. विक्रम भी अपनी कोठी में कुछ वक्त के लिए अंडरग्राउंड हो गया था. जख्मी हालत में चंदू ने ही विक्रम का इलाज किया था. इस पूरे साल के दरम्यान वह राधा को भूल नहीं पाया था, बल्कि उस की दीवानगी और बढ़ चुकी थी.

चंदू दौड़ादौड़ा आया, ‘‘उस्ताद, उस्ताद…’’

‘‘क्या हुआ चंदू?’’ विक्रम ने पूछा.

‘‘उस्ताद, राधा का पता लग गया है. मैं अभी उस का घर देख कर आ रहा हूं.’’

विक्रम खुशी से उछल उठा. उस ने चंदू को सीने से लगा लिया.

‘‘चंदू, मेरे दोस्त, मेरे भाई, आज तू ने मुझे वह खुशी दी है, जो मैं बयान नहीं कर सकता. मैं यह तेरा एहसान सारी जिंदगी नहीं भूलूंगा. कहां रहती है मेरी राधा?’’

‘‘बांद्रा पैडर रोड.’’

‘‘मैं अभी अपनी राधा के पास जाता हूं. अब और इंतजार नहीं होता.’’

‘‘उस्ताद, संभल कर. पुलिस पागल कुत्ते की तरह आप की तलाश में है.’’

‘‘तू मेरी फिक्र मत कर चंदू. आज मैं अपनी राधा को अपने साथ ले कर ही आऊंगा. आज मेरे और राधा के बीच पुलिस तो क्या कोई भी नहीं आ सकता.’’

विक्रम ने काला लिबास पहना. चश्मे और टोपी से अपना चेहरा छिपाते हुए वह राधा के घर निकल पड़ा. हाथ में रिवाल्वर लिए विक्रम आज राधा से मिलने को बेचैन था.

दिन के ठीक 12 बजे थे. अरुण रोजाना की तरह बैंक जा चुका था. राधा घर पर अकेली थी. बच्चा सो रहा था. घंटी बजी. राधा ने दरवाजा खोला. विक्रम को इतने दिनों बाद अचानक सामने देख वह चौंक गई.

‘‘विक्रम… तुम?’’

‘‘हां, मैं. तुम्हारा विक्रम. मैं ने तुम से कहा था ना कि तुम मेरा इंतजार करना. लेकिन तुम ने मेरा इंतजार क्यों नहीं किया? मैं तुम्हें एक पल भी नहीं भुला पाया. जेल में हर घड़ी बस तुम्हारा नाम लेता था. चलो, जल्दी से तैयार हो जाओ… तुम्हें मेरे साथ चलना है.’’

‘‘तुम क्या बकवास कर रहे हो? हां, मैं मानती हूं कि तुम ने मुझे गुंडों से बचाया था, लेकिन तुम ने मुझ से अपनी जाति और चोर होने की बात भी तो छिपाई थी. तुम ने मुझे धोखे में रखा, वरना मैं तो यही समझती रहती कि तुम बिजनैसमैन हो, फिर भी मैं उस घटना के लिए तुम्हारी शुक्रगुजार हूं.’’

‘‘शुक्रगुजार… सिर्फ शुक्रगुजार? अरे, मैं तुम्हारे लिए सारी दुनिया से टकराने के लिए तैयार हूं. तुम्हारे चलते मैं ने जेलर का कत्ल कर दिया, जेल से भागा, गोलियां खाईं और कहती हो कि तुम शुक्रगुजार हो.’’

‘‘देखो विक्रम, आज मैं एक शादीशुदा औरत हूं. अच्छा होगा कि तुम खुद को पुलिस के हवाले कर दो.’’

विक्रम राधा के पैरों पर गिर पड़ा, ‘‘नहीं राधा, मुझ से इतनी बेरुखी से बात मत करो. मेरे साथ चलो. मैं तुम्हारे बगैर नहीं रह सकता.’’

हैवान- भाग 2: प्यार जब जुनून में बदल जाए

इस बार राधा चीख उठी, ‘‘ओह विक्रम, तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? मैं अब किसी और की हो चुकी हूं. मेरा पति है, बच्चा है, अपना घर है. हो सके, तो तुम मुझे भूल जाओ. अगर तुम मेरे साथ जबरदस्ती करोगे, तो मजबूरन मैं पुलिस को फोन कर दूंगी.’’

‘‘नहीं राधा… नहीं… मैं बगैर तुम्हारे जी नही पाऊंगा.’’

‘‘लगता है कि तुम ऐसे नहीं जाओगे,’’ राधा फोन की तरफ बढ़ी. फोन लगाया, ‘‘हैलो, पुलिस स्टेशन.’’

इस से पहले कि राधा अपनी बात पूरी करती, विक्रम ने फोन छीन कर तार काट दिया.

विक्रम गुस्से में चीखा, ‘‘मैं तुम्हें इतनी आसानी से नहीं छोड़ूंगा राधा. अगर मैं तुम्हारे लिए इतना तड़प सकता हूं, तो तुम्हें भी अपने लिए तड़पा सकता हूं. अब तो तुम्हें मेरे साथ चलने से कोई नहीं रोक सकता,’’ विक्रम आगे बढ़ा.

‘‘आगे मत बढ़ना. मैं कहती हूं कि वहीं रुक जाओ,’’ राधा चिल्लाई, लेकिन विक्रम ने आगे बढ़ कर उसे आपनी बांहों में भर लिया. राधा कसमसाई. इस से पहले कि वह बचाव के लिए चीखती, विक्रम ने उस के सिर पर हलके से वार कर उसे बेहोश कर दिया. उसे अपनी गोद में उठाया. बाहर सन्नाटा था. राधा को अपनी कार की पिछली सीट पर लिटा कर गाड़ी अपनी कोठी की तरफ दौड़ा दी.

राधा को होश आया, तो उस ने खुद को एक खूबसूरत बैडरूम में पाया. पूरे कमरे में राधा की तसवीरें लगी थीं. राधा ने दरवाजा खोला. बाहर एक बहुत बड़ा कमरा था. 2 आदमी हाथ में रिवाल्वर लिए पहरेदारी कर रहे थे. राधा समझ गई कि भागना बेकार है. वह वापस कमरे में आ गई.

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‘‘कैसी हो राधा,’’ विक्रम बोला.

‘‘मुझे यहां क्यों लाए हो?’’

‘‘अपनी चीज को अपने पास ही तो लाया हूं.’’

‘‘तुम बहुत बड़ी गलती कर रहे हो विक्रम.’’

‘‘नहीं, मैं कोई गलती नहीं कर रहा. प्यार करना कोई जुर्म नहीं है. तुम सिर्फ मेरी हो… सिर्फ मेरी.’’

‘‘मैं सिर्फ अपने पति की हूं. तुम मेरे साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते. मुझे हाथ मत लगाना. मैं तुम से नफरत करती हूं.’’

‘‘नहीं राधा, मुझ से नफरत मत करो. मैं मर कर भी सुकून नहीं पाऊंगा.’’

‘‘मुझे यहां से जाने दो प्लीज,’’ राधा गिड़गिड़ाई.

‘‘नहीं, अब तुम यहीं रहने की आदत डाल लो. अब यही तुम्हारा घर है.’’

‘‘घर… थू… अरे, तुम क्या जानो कि घर किसे कहते हैं, पत्नी क्या होती है और प्यार क्या होता है? तुम तो छीनने वालों में से हो.’’

‘‘हां, मैं लुटेरा हूं. तुम मुझे आसानी से हासिल नहीं हुई, इसलिए मैं ने तुम्हें छीन लिया.’’

‘‘यहां ला कर तुम क्या साबित करना चाहते हो? प्यार के नाम पर तुम्हें मेरा जिस्म चाहिए… यह लो, लूट लो मेरी इज्जत. मुझे पा कर तुम्हारी हवस बुझ सकती है, तो बुझा लो,’’ कहते हुए राधा ने अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए.

विक्रम ने राधा को एक जोरदार थप्पड़ मारा और जिस्म से हटी साड़ी राधा को थमाते हुए बोला, ‘‘तुम ने समझ क्या रखा है? अगर मुझे जिस्म की प्यास ही बुझानी होती, तो बाजार में जिस्म बेचने वालों की कोई कमी नहीं है. अरे, मैं ने तुम से प्यार किया है, तुम्हारे जिस्म से नहीं. तुम्हें यहां मुझ से कोई खतरा नहीं है. मैं तुम्हारा अपना हूं.’’

‘‘ये कैसा प्यार है तुम्हारा, जो मेरी ही जिंदगी बरबाद करने पर तुला है, आखिर तुम्हें मुझ से चाहिए क्या?’’

‘‘शादी… मैं तुम से शादी करना चाहता हूं,’’ विक्रम ने जवाब दिया.

‘‘तुम जानते हो कि ऐसा नहीं हो सकता है. मैं शादीशुदा हूं?’’

‘‘तलाक दे दो उसे.’’

‘‘शादी कोई मजाक है, जो आज की और कल तलाक दे दिया? मैं ऐसी औरत नहीं हूं, जो तुम जैसे झूठे और अपराधी के लिए अपने पति को धोखा दे दे,’’ कहते हुए राधा ने विक्रम को चले जाने के लिए कहा.

‘‘अभी तो मैं जा रहा हूं, लेकिन तुम्हें हर हाल में हासिल कर के ही दम लूंगा,’’ विक्रम कमरे से बाहर निकल गया.

उधर थाने में अरुण ने इंस्पैक्टर को सारा हाल बताया.

‘‘मिस्टर अरुण…’’ इंस्पैक्टर दयाल ने पूछा, ‘‘आप यह कैसे कह सकते हैं कि आप की पत्नी किडनैप हुई है? हो सकता है कि वह अपनी मरजी से कहीं गई हो?’’

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‘‘इंस्पैक्टर साहब…’’ अरुण बोला, ‘‘मैं अपनी राधा को अच्छी तरह से जानता हूं. वह बिना बताए कहीं नहीं जाती. अपने दूधपीते बच्चे को छोड़ कर कहां जाएगी राधा? नहीं साहब, घर में बिखरा सामान और टैलीफोन का कटा तार साबित करता है कि हाथापाई के बाद कोई राधा को जबरदस्ती उठा ले गया है.’’

‘‘मिस्टर अरुण, बुरा मत मानना, पर आप की पत्नी का कोई चाहने वाला था? मेरा मतलब शादी से पहले उस का…’’

अरुण का चेहरा गुस्से से लाल हो उठा, पर अपना गुस्सा दबा कर वह बोला, ‘‘नहीं.’’

‘‘ठीक है, अभी आप जाइए. हम आप की पत्नी को ढूंढ़ने की पूरी कोशिश करेंगे. अगर इस दौरान आप को कोई जानकारी मिले, तो हमें जरूर बताना.’’

‘‘ओके इंस्पैक्टर,’’ अरुण ने हाथ मिलाया और बाहर निकल गया. घर में बच्चा रो रहा था. अरुण ने दूध की बोतल से चुप कराना चाहा, लेकिन उसे तो मां की छाती चाहिए थी.

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अरुण इस अचानक हुए हादसे से सकते में था. उधर, विक्रम अपने खयालों में यही सोच रहा था कि अगर राधा का पति मर जाए, तो राधा का ध्यान उस की तरफ आएगा. उस का पति ही उस के रास्ते का सब से बड़ा कांटा था. उस की मौत ही उसे राधा के करीब ला सकती थी. एक शादीशुदा औरत दूसरी शादी नहीं कर सकती, लेकिन एक विधवा तो कर सकती है. हां… राधा तभी उस की होगी, जब उस के पति की मौत हो जाएगी… और विक्रम ने एक भयानक इरादा कर लिया. उस के चेहरे पर दरिंदगी के भाव आ गए थे.

‘ट्रिन…ट्रिन…’ कालबैल की आवाज सुन कर अरुण ने जैसे ही दरवाजा खोला… ‘धांयधांय’ 2 गोलियां उस के सीने में समा गईं. अरुण कटे पेड़ सा ढेर हो गया. गोली की आवाज से बच्चे की नींद खुल गई. वह जोरजोर से रोने लगा.

हैवान- भाग 3: प्यार जब जुनून में बदल जाए

विक्रम ने बच्चे को उठाया और बाहर निकला. गोली की आवाज सुन कर बाहर काफी लोग जमा हो चुके थे.

‘‘खबरदार कोई हिला तो गोली से भून कर रख दूंगा,’’ विक्रम चीखा. सभी सहम कर दूर हट गए. विक्रम ने गाड़ी खोली और बच्चे को ले कर खंडाला रोड की तरफ निकल गया.

विक्रम जैसे ही अपनी कोठी में पहुंचा, बच्चे का रोना सुन कर राधा दौड़ कर वहां आई. अपने बच्चे को सीने से लगाने लगी. बच्चे को भूखा जान कर उस ने उसे आंचल में छिपा लिया.

‘‘वे कैसे हैं?’’ राधा ने पूछा, ‘‘मैं उन से कब मिल सकूंगी? कब जाने दोगे मुझे उन के पास?’’

‘‘उस से तो अब तुम कभी नहीं मिल सकतीं.’’

‘‘क्यों?’’ राधा ने घबराते हुए पूछा.

‘‘तुम पहले बच्चे को दूध पिलाओ.’’

कुछ देर खामोशी छाई रही. दूध पीतेपीते बच्चा सो गया.

‘‘क्यों नहीं मिल सकती मैं उन से?’’ राधा ने फिर पूछा.

‘‘क्योंकि अब वह इस दुनिया में नहीं है.’’

‘‘नहीं… तुम झूठ बोल रहे हो.’’

‘‘अपने हाथों से खत्म किया है मैं ने उसे. मेरे और तुम्हारे बीच दीवार था वह.’’

‘‘कमीने, तू ने मेरा सुहाग छीन लिया. मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगी,’’ राधा घायल शेरनी की तरह विक्रम पर झपट पड़ी.

विक्रम कुछ देर तो खामोश रहा, फिर अचानक राधा पर लातघूंसों से हमला कर दिया. उस पर दरिंदगी सी छाई थी.

‘‘मैं तेरे लिए मरा जा रहा हूं और तू मरे हुए आदमी के लिए जिंदा आदमी को मार रही है. तेरे और मेरे बीच जो भी आएगा, उस का अंजाम सिर्फ मौत होगा,’’ इतना कह कर विक्रम बाहर चला गया.

राधा बच्चे को सीने से लगा कर जोरजोर से रोने लगी. कुछ देर में वह सो गई. इसी बीच विक्रम आया और बच्चे को चंदू को थमा कर सोती हुई राधा के पास लेट गया और उस के पैरों को चूमने लगा.

राधा जाग कर चौंकते हुए बोली, ‘‘तुम यहां? मेरा बच्चा कहां है?’’

‘‘वह जहां भी है ठीक है,’’ विक्रम ने कहा, ‘‘तुम मुझे ही अपना बच्चा समझ लो,’’ विक्रम मासूम बच्चे की तरह राधा से लिपट गया.

राधा ने धक्का दे कर उसे दूर किया, ‘‘खबरदार, जो मेरे नजदीक आए, तुम खूनी हो, दरिंदे हो.’’

अचानक राधा के इस धक्के से विक्रम के अंदर एक बार फिर हैवानियत सी छा गई. उस ने राधा के बदन से कपड़े खींचने शुरू कर दिए.

राधा चीख उठी, ‘‘छोड़ो मुझे.’’

विक्रम ने एक झटके से साड़ी खींच दी. अब राधा के जिस्म पर सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज बचा था. विक्रम तेजी से राधा पर झपटा. राधा ने बचने की पूरी कोशिश की, लेकिन नाकाम रही.

वह विक्रम की बांहों की गिरफ्त में आ चुकी थी. पिंजरे में बंद पंछी की तरह फड़फड़ा रही थी. मगर उस की चीखें सुनने वाला कोई नहीं था.

विक्रम ने उसे पलंग पर लिटा दिया. राधा कसमसाई. विक्रम ने उस का पेटीकोट खींच दिया.

राधा रोते हुए फरियाद करने लगी, ‘‘मैं तुम्हारे पैर पड़ती हूं, छोड़ दो मुझे.’’

विक्रम ने राधा के जिस्म को अपने जिस्म से सटा लिया. राधा फरियाद करती रही, पर विक्रम उस के एकएक अंग को चूमता रहा और बोला, ‘‘राधा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. उस दिन मैं ने तुम्हें मारा था. मुझे माफ कर दो. उस दिन मैं ने खुद को भी सजा दी थी. यह देखो,’’ विक्रम ने राधा के सीने से मुंह हटा कर अपने जिस्म पर लगे घावों को दिखाने लगा.

‘‘राधा, मैं ने तुम्हारे कपड़े इसलिए उतारे हैं, क्योंकि मैं नहीं चाहिता कि तुम्हारे जिस्म पर किसी और के दिए कपड़े हों. तुम मेरी हो और तुम्हारा जिस्म भी मेरा है. मैं बगैर शादी के तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं करूंगा. मैं ने तुम्हारे लिए कपड़े खरीदे हैं, अभी लाता हूं,’’ कह कर विक्रम पास के कमरे में चला गया.

राधा अपने जिस्म को हाथों से छिपाए बैठी थी. विक्रम वापस आया, तो उस के हाथ में खूबसूरत साड़ी, ब्लाउज और खूबसूरत गहने थे.

‘‘मैं अपने हाथों से तुम्हें ये पहनाऊंगा.’’

‘‘मैं तुम्हारी दी हुई कोई चीज नहीं पहनूंगी.’’

‘‘कैसे नहीं पहनोगी,’’ विक्रम गुर्राया.

विक्रम के सख्त चेहरे को देख कर राधा घबरा गई. वह जानती थी कि जब भी यह चेहरा खतरनाक होता है, या तो उस का कोई मरता है या उस की पिटाई होती है.

‘‘अरे, मुझ से क्या शरमाना,’’ विक्रम ने राधा से कहा. विक्रम उसे जबरदस्ती कपड़े पहनाने लगा. हाथों में हीरे की अंगूठी और गले में सोने की चेन पहना कर वह बोला, ‘‘राधा, देखो तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो.’’

विक्रम राधा को विशाल आईने के पास ले गया.

‘‘राधा, आज मैं तुम्हारे साथ सोऊंगा, पर करूंगा कुछ नहीं.’’

हैवान- भाग 4: प्यार जब जुनून में बदल जाए

राधा तो जैसे पत्थर की मूरत बन गई थी. विक्रम ने राधा को पलंग पर लिटाया और फिर बच्चे की तरह उस से लिपट कर सो गया.

‘‘सर, एमएमपी-9989 नंबर की गाड़ी खंडाला रोड पर जाती देखी गई है,’’ हवलदार बोला.

‘‘हूं,’’ इंस्पैक्टर ने सिगरेट का एक कश खींचा और पास खड़े आदमी से बोला, ‘‘इस नंबर की गाड़ी वाले ने अरुण का खून किया और बच्चे को ले गया?’’

‘‘जी साहब.’’

‘‘पता करो कि कितने घर हैं इस इलाके में और यह नंबर किस के नाम पर हैं?’’

‘‘जी साहब,’’ हवलदार अपने काम पर लग गया.

‘‘राधा, मैं तुम्हारे साथ जबरदस्ती नहीं करना चाहता. प्लीज, तुम मुझ से शादी कर लो. तुम्हारे अलावा मेरा है ही कौन. हम दोनों कहीं दूर चले जाएंगे. मैं तुम्हारे बच्चे को भी अपना नाम दूंगा.’’

राधा चीख उठी, ‘‘तुम ने मुझे समझ क्या रखा है? मैं कोई धंधे वाली हूं कि आज इस की हो गई और कल किसी और की. मैं अपने पति के हत्यारे के साथ शादी करूं, हरगिज नहीं. मैं अपने मासूम बेटे को उस के पिता का नाम दूंगी. अरे, तुम्हारे जैसे खूनी और हैवान का बेटा कहलाने से अच्छा है कि वह लावारिस ही रहे. और तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मेरा कोई नहीं है? मेरा बच्चा है, उस के बल से मैं गर्व से जी लूंगी. थूकती हूं मैं तुम पर… थू…’’

राधा का थूक विक्रम के चेहरे पर गिरा. विक्रम गुस्से से लाल हो उठा. उस के चेहरे पर हैवानियत छाने लगी, पर वह चुपचाप बाहर चला गया.

विक्रम अपनी सोच में डूब गया, ‘मुझे राधा से दूर करने वाली एक ही दीवार है, उस का बच्चा. अगर वह उस के पास नहीं रहे, तो वह मेरी हो कर रहेगी. मैं यह दीवार हटाऊंगा…’ विक्रम के चेहरे पर दरिंदगी के इतने भयानक भाव आ गए, जो पहले कभी नहीं आए थे.

विक्रम ने पहले उस के बच्चे को मौत की नींद सुलाया, फिर राधा की इज्जत को तारतार करने के लिए उसे अपने वहशी आदमियों के हवाले कर दिया.

विक्रम के आदमी राधा को एक सुनसान कमरे की तरफ ले गए. वे आपस में बातें कर रहे थे, ‘‘आज तो मजा आ जाएगा. हम सब मिलबांट कर खाएंगे.’’

इस के बाद दरवाजे बंद हो गए. विक्रम उस झोंपड़ीनुमा मकान के पास पहुंच गया. खिड़की खुली थी. अंदर 6 लोग थे. राधा की आवाज बाहर तक सुनाई दे रही थी.

‘‘कौन हो तुम लोग? मुझे यहां…’’

इस के बाद थोड़ेथोड़े अंतर के बाद राधा के कपड़े खिड़की से बाहर गिरते नजर आ रहे थे. राधा की चीखें बढ़ती जा रही थीं. हर चीख पर विक्रम अपनी रिवाल्वर में कारतूस भरता. उस के चेहरे पर हैवानियत सवार हो गई. यह आखिरी चीख थी. 6 लोगों ने राधा की इज्जत लूटी. एकएक कर मकान से बाहर आए. सभी बहुत खुश थे. विक्रम ने राधा के जिस्म को ढका और अपने कंधों पर उठा कर बाहर आया.

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विक्रम बाहर आ कर चिल्लाया, ‘‘ठहरो.’’

वे सभी रुक गए. विक्रम ने अपनी रिवाल्वर तानते हुए कहा, ‘‘तुम सब ने मेरी राधा को बहुत तकलीफ दी है, अब तुम्हारी बारी है.’’

इतना कह कर विक्रम ने सभी को गोलियों से भून दिया.

‘ट्रिन…ट्रिन…’ इंस्पैक्टर ने फोन उठाया.

‘‘हैलो, बांद्रा पुलिस स्टेशन?’’ दूसरी ओर से धरधराती आवाज आई.

‘‘इंस्पैक्टर रमेश हैं.’’

‘‘हां, मैं इंस्पैक्टर रमेश बोल रहा हूं.’’

‘‘मेरी बात गौर से सुनो इंस्पैक्टर. आज से तकरीबन डेढ़ साल पहले सैंट्रल जेल में जेलर और कुछ पुलिस वालों की हत्या कर एक कैदी फरार हो गया था. उस पर एक लाख रुपए का इनाम भी है…’’

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‘‘क्या जानते हो तुम विक्रम के बारे में?’’

‘‘मैं यह पूछ रहा था कि अगर मैं विक्रम का पता बता दूं, तो मुझे इनाम कब और कैसे मिलेगा?’’

‘‘हां जरूर मिलेगा, पहले विक्रम का मिलना जरूरी है.’’

‘‘तो सुनो. विक्रम खंडाला रोड से 4 किलोमीटर दूर दक्षिण की ओर एक बंगले में रहता है.’’

‘‘अपना नाम बताओ.’’

‘‘नहीं इंस्पैक्टर, विक्रम बहुत खतरनाक अपराधी है. जब तक वह गिरफ्तार नहीं हो जाता, मैं सामने नहीं आऊंगा,’’ दूसरी ओर से फोन कट गया.

हैवान- भाग 5: प्यार जब जुनून में बदल जाए

इंस्पैक्टर रमेश सोचने लगा कि हो न हो, राधा का अपहरण और अरुण का कत्ल विक्रम ने ही किया है. सोचतेसोचते इंस्पैक्टर के चेहरे पर एक जीत भरी मुसकान फैल गई.

इधर बेहोश राधा को विक्रम अपनी गोद में लिटाए उस के बालों पर हाथ फेर रहा था.

‘‘राधा, अब हम एक हो गए हैं. अब हमें कोई और जुदा नहीं कर सकता. हमारी शादी होगी. हम दोनों साथ रहेंगे. मैं नौकरी करूंगा. महीने के आखिर में तनख्वाह तुम्हारे हाथों में सौंपूंगा. तुम दरवाजे पर खड़ी हो कर मेरा रास्ता देखोगी. मुझे लेट आने पर डांटोगी. मैं तुम्हें सारे सुख दूंगा. अब हम लोग खुशीखुशी साथ रहेंगे.’’

राधा की बेहोशी टूटने लगी. जैसे ही उसे होशा आया, वह विक्रम को धक्का दे कर दूर जा खड़ी हुई.

‘‘तुम ने मुझे बरबाद कर के ही दम लिया. अब तो तुम्हें चैन मिल गया न. और अब क्या चाहते हो तुम?’’

‘‘ऐसा मत कहो राधा,’’ विक्रम रोने वाले अंदाज में बोला, ‘‘आज हमारी शादी है राधा.’’

‘‘शादी…’’ राधा नफरत से बोली, ‘‘मैं तुम से शादी करूंगी, तुम ने यह सोचा भी कैसे.’’

‘‘क्यों, अब तो हमारे बीच कोई दीवार भी नहीं है.’’

‘‘तुम ने मुझ से मेरा पति छीन लिया. मेरे सामने मेरे मासूम बेटे का कत्ल कर दिया. मुझे हवस के भूखे कुत्तों के सामने डाल कर मेरी इज्जत लुटवा दी. मैं… मैं… तुम से शादी तो क्या तुम पर थूकना भी पसंद नहीं करूंगी.’’

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विक्रम चीख पड़ा, ‘‘हां, मैं ने ये सब किया, सिर्फ तुम्हें पाने के लिए. तुम्हें पाने के लिए जेल से भागा. जेलर का खून किया. अरुण और तुम्हारे बच्चे की हत्या की. तुम्हारा बलात्कार करवाया. ये सब मैं ने इसलिए किया, ताकि तुम्हें पा सकूं. तुम्हीं ने तो कहा था कि तुम्हें मेरे सहारे की जरूरत नहीं है, क्योंकि तुम अपने पति, बेटे और इज्जत के सहारे जी लोगी. मुझे ये सब दीवारें तुम्हारे लिए गिरानी पड़ीं. अब तुम्हारे पास कुछ नहीं है. अब तुम्हें मुझ से शादी करनी ही पड़ेगी. अब इस हाल में तुम्हें कौन अपनाएगा सिवाय मेरे?’’

अब राधा चीखचीख कर कहने लगी, ‘‘मैं तुम से नफरत करती हूं और हमेशा करती रहूंगी. तवायफ बन कर कोठों में नाच लूंगी, भीख मांग लूंगी, मगर तुम से शादी नहीं करूंगी. अपने दिल से यह खयाल निकाल दो. तुम्हारा यह सपना एक सपना ही बन कर रह जाएगा.’’

विक्रम रोने लगा, ‘‘आखिर तुम कैसे मानोगी? क्या चाहती हो तुम?’’

‘‘मैं ने तुम्हें पाने के लिए क्याक्या नहीं किया और तुम हो कि…’’

‘‘मैं तुम्हें जान से मार डालना चाहती हूं.’’

‘‘क्या, तुम मुझे मारना चाहती हो. मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम…’’

‘‘हां… हां… मैं तुम से नफरत करती हूं,’’ राधा झल्ला गई.

विक्रम राधा से प्यार की भीख मांगता रहा, पर राधा हर बार यही जवाब देती कि मैं तुम से नफरत करती हूं.

‘‘राधा, तुम्हारी यह नफरत कैसे दूर होगी?’’ विक्रम बोला.

‘‘तुम्हारा खून कर के,’’ राधा भयानक आवाज में बोली.

‘‘तुम्हारी नफरत ले कर जीना मेरे बस का नहीं है. ये लो रिवाल्वर और खत्म कर दो मुझे. अगर मुझे मार कर तुम्हारी नफरत मिटती है, तो उतार दो मेरे सीने में इस रिवाल्वर की सारी गोलियां,’’ कहते हुए विक्रम ने गोलियों से भरा रिवाल्वर राधा के हाथों में थमा दिया. राधा ने भी विक्रम की ओर रिवाल्वर तान लिया.

‘धांय’ गोली चली, मगर राधा के हाथ की रिवाल्वर से नहीं, बल्कि चंदू की पिस्तौल से.

चंदू मुसकरा रहा था.

‘‘यह क्या हरकत है चंदू?’’ विक्रम चीखा.

‘‘उस्ताद, अगर तुम इस लड़की के हाथों मर गए, तो तुम्हारे ऊपर रखे गए उस इनाम का क्या होगा, जो पुलिस को बताने से मुझे मिलने वाला है. अगर मरना है, तो मेरी गोली से मरो, पुलिस की गोली से मरो.’’

‘‘चंदू… दगाबाज कहीं का…’’ विक्रम चीखा.

‘‘इतनी ऊंची आवाज में चिल्लाने का कोई फायदा नहीं उस्ताद. थोड़ी देर में तो पुलिस आने वाली है. उस के बाद तुम होगे पुलिस की गिरफ्त में और मैं इनाम के एक लाख रुपए ले कर इस लड़की को अपनी रखैल बना कर ऐश करूंगा.’’

‘‘चंदू…’’ विक्रम चंदू की ओर झपटा.

‘‘धांय,’’ एक गोली विक्रम के घुटने को पार करती हुई निकल गई. विक्रम वहीं गिर गया.

‘‘हा…हा…हा…’’ चंदू जोर से हंसा, ‘‘आज से मैं उस्ताद और यह लड़की भी मेरी हो गई. चल आजा रानी,’’ चंदू राधा को घसीटने लगा.

फिर एक बार विक्रम की ओर देख कर बोला, ‘‘चलते हैं उस्ताद.’’

चंदू राधा को ले कर दूसरे कमरे की तरफ चला गया. राधा की चीख सुन कर जख्मी विक्रम का चेहरा वीभत्स हो गया. वह पूरा जोर लगा कर उठा. चंदू ने राधा के जिस्म से साड़ी अलग कर दी. साड़ी विक्रम के चेहरे पर जा गिरी. विक्रम को देख चंदू ने रिवाल्वर तान दी.

इस से पहले कि चंदू ट्रिगर दबाता, विक्रम ने चंदू के ऊपर छलांग लगा दी. दोनों में जबरदस्त लड़ाई होने लगी. जख्मी होने की वजह से शुरू में चंदू भारी पड़ा, लेकिन उस्ताद तो उस्ताद ही होता है. विक्रम ने जख्मी होते हुए भी चंदू को अपने शिकंजे में ले लिया.

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इस बीच राधा ने जल्दी से साड़ी पहनी और पास में ही पड़े रिवाल्वर को उठा लिया. विक्रम ने चंदू को मारमार कर बुरी तरह से जख्मी कर दिया.

विक्रम बोला, ‘‘चंदू, उस्ताद उस्ताद ही होता है और चेला चेला.’’

हैवान- भाग 6: प्यार जब जुनून में बदल जाए

पल भर के लिए राधा सोच में पड़ गई, ‘‘यह आदमी जो मेरा गुनाहगार है… इस ने यह सब आखिर किया किसलिए? मुझे पाने के लिए न. क्या यही इस का जुर्म है कि इस ने मुझ से बेइंतहा प्यार किया. भले ही इस का तरीका गलत था, लेकिन चाहा तो मुझे बेपनाह ही था. लेकिन यह भी सच है कि इस चाहत में इस ने मेरा सबकुछ छीन लिया. मुझे बरबाद कर दिया. उस की सजा तो मैं इसे जरूर दूंगी. इतनी भयानक सजा दूंगी, जो यह सोच भी नहीं सकता.’’

विक्रम फिर बोला, ‘‘सोच क्या रही हो राधा, चलाओ गोली. आज तुम्हारे सामने तुम्हारा गुनाहगार खड़ा है. मार दो मुझे.’’

‘‘विक्रम…’’ तभी बाहर लाउडस्पीकर से तेज आवाज आई.

विक्रम ने खिड़की से बाहर झांक कर देखा. बाहर चारों तरफ पुलिस फैली हुई थी. इंस्पैक्टर रमेश के हाथ में माइक था. पुलिस की बंदूकें विक्रम की कोठी की ओर तनी हुई थीं.

‘‘विक्रम, अपनेआप को पुलिस के हवाले कर दो,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने फिर से लाउडस्पीकर से बोला.

‘‘हा…हा…हा…’’ चंदू ठहाके मार कर हंसा, ‘‘अब तुम मरोगे उस्ताद, पुलिस आ चुकी है. अब मेरे हाथों में होगा इनाम और तुम्हारी किस्मत में कालकोठरी या पुलिस की गोली. हा… हा… हा…’’ चंदू की हंसी गूंजने लगी.

विक्रम राधा से बोला, ‘‘राधा, जल्दी से खत्म कर दो मुझे. मैं पुलिस के हाथों गिरफ्तार होने के बजाय तुम्हारे हाथों से मरना पसंद करूंगा. तुम्हारी नफरत को अपने खून के कतरों से मिटा कर मुझ मर कर भी सुकून मिलेगा. राधा, जल्दी करो.’’

‘‘मैं तुम्हें इतनी आसानी से मरने नहीं दूंगी विक्रम. तुम ने मुझे बहुत तड़पाया है. तुम्हें तो मौत से भी बदतर जिंदगी दूंगी मैं. मुझे पाने के लिए जो जुल्म तुम ने किए हैं, उन जुल्मों की यही सजा है कि मैं तुम्हें कभी न मिलूं. तुम जिंदा रहोगे, लेकिन मुझे कभी हासिल नहीं कर सकोगे. मैं तुम्हें कभी नहीं मिलूंगी… कभी नहीं…’’ और राधा ने रिवाल्वर अपनी कनपटी पर लगा कर ट्रिगर दबा दिया.

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राधा ने दम तोड़ दिया. विक्रम चीख पड़ा.

‘‘नहीं राधा… नहीं… ये तुम ने क्या किया?’’ विक्रम राधा की लाश से लिपट कर रोने लगा.

आज विक्रम की सारी उम्मीदों और सपनों को कभी न खत्म होने वाला ग्रहण लग चुका था. दूर खड़ा चंदू मुसकरा रहा था. गोली की आवाज सुन कर इंस्पैक्टर रमेश चौंक गया.

‘‘विक्रम, अब मैं सिर्फ 3 तक गिनूंगा… अगर तब तक तुम ने खुद को पुलिस के हवाले नहीं किया तो मजबूरन मुझे गोली चलानी पड़ेगी.’’

उधर विक्रम राधा को अपनी बांहों में लिए रोए जा रहा था.

चंदू बोला, ‘‘अब ये मर चुकी है उस्ताद, अब तुम्हारी बारी है.’’

‘‘राधा, अगर तुम नहीं तो मैं जी कर क्या करूंगा? मैं खुद को गोली मार कर तुम्हारीनफरत दूर करूंगा.’’

‘‘एक…’’ इंस्पैक्टर की आवाज गूंजी.

चंदू, ‘‘उस्ताद, एक हो गया. तुम तो गए.’’

‘‘दो…’’ इंस्पैक्टर की आवाज फिर गूंजी.

विक्रम का चेहरा अचानक से भयानक हो गया. उस के चेहरे पर हैवानियत के भाव आ गए. उस ने सभी खिड़की और दरवाजे खोल दिए.

‘‘उस्ताद तुम गए और मैं मालामाल,’’ चंदू ठहाका लगा कर हंसा.

‘‘हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे. चंदू मैं चाहूं तो अब भी भाग सकता हूं लेकिन भागूंगा नहीं. अब मैं अपनी राधा के बिना जिंदा नहीं रहना चाहता.’’

विक्रम ने जेब से रिवाल्वर निकाली. चंदू कांप उठा.

‘‘उस्ताद, पुलिस से टक्कर लोगे?’’

‘‘नहीं चंदू नहीं… राधा ने खुदकुशी कर ली. मैं जिंदा नहीं रहना चाहता. फिर ये पुलिस खाली हाथ तो वापस जाएगी नहीं. तुम्हारी गद्दारी पर ही पुलिस इतनी दूर से आई है… ऐसे ही लौट जाए अच्छा नहीं लगा.’’

‘‘तीन…’’ इंस्पैक्टर रमेश अक्रामक स्वर में बोला.

विक्रम पर तो दयाल का कोई असर नहीं था. अलबत्ता चंदू जरूर घबरा गया था. उसे विक्रम के इरादे बेहद भयावह नजर आने लगे थे.

विक्रम ने राधा का माथा चूमा और कहा, ‘‘मैं भी तुम्हो पास आ रहा हूं राधा. मैं आ रहा हूं…’’

‘‘फायर,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने आर्डर दिया. सैकड़ों गोलियां खिड़की दरवाजों से अंदर आने लगीं. चंदू ने दीवार की आड़ ली. चंदू जोर से रमेश को आवाज लगा रहा था. यह बताने के लिए कि वे गोली न चलाए. अंदर वह भी है जिस ने विक्रम की फोन पर सूचना उस तक पहुंचाई थी. मगर गोलियों के शोर में चंदू की आवाज कहीं गुम हो गई.

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चंदू को बेबस देख कर विक्रम हंसा, ‘‘लगता है चंदू तुम ने पुलिस नहीं मौत बुलाई है.’’

विक्रम लेट कर घसीटता हुआ चंदू के पास पहुंच गया. उस ने चंदू का हाथ पकड़ लिया. चंदू घबरा गया.

विक्रम बोला, ‘‘ऐ चंदू, तुम ने बचपन में गिल्लीडंडा और कंचों का खेल तो बहुत खेला होगा. चल, आज हम दोनों मिल कर मौत का खेल खेलते हैं.’’

पुलिस की गोलियों से पूरा माहौल गूंज उठा.

विक्रम के इरादे भांपते ही चंदू दहशत से भर गया, ‘‘नहीं उस्ताद… नहीं.’’

विक्रम ने भरा रिवाल्वर उछाला और राधा की तरफ देख कर बोला, ‘‘राधा, मैं आ रहा हूं.’’

विक्रम ने चंदू और खुद को दीवार की आड़ से हटा कर खिड़की के सामने कर दिया. पलक झपकते ही गोलियां दोनों के जिस्म में समाती चली गईं.

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दोनों ने वहीं दम तोड़ दिया. पुलिस कोठी में घुसी. चंदू अपने लालच का शिकार हुआ.

विक्रम राधा को पाने की चाहत और जुनून में इस कदर हैवान हो गया था कि उस ने पहले राधा को बरबाद किया, फिर खुद को मौत के गले लगाया.

कमरे में 3 लाशें पड़ी थीं. फर्श पर खून बिखरा पड़ा था. इंस्पैक्टर रमेश ने अपनी टोपी निकाल कर हाथों में ले ली. विक्रम की राधा के लिए दीवानगी की बढ़ती हद ने उसे हैवान बना कर रख दिया था.

कोरोना: देश में “संयुक्त सरकार” का गठन हो!

इस महामारी से एकजुट हो कर जूझने के लिए जरूरत आ पड़ी है, देश में ‘संयुक्त सरकार’ का गठन हो.

क्या वाकई देश में ‘संयुक्त सरकार’ बनाने की जरूरत आ पड़ी है?

देश में कोरोना को ले कर जो हालात बन चुके हैं, वह दिल दहला रहे हैं. कहीं रेमडेसीविर इंजेक्शन नहीं है, कहीं औक्सीजन गैस नहीं है, कहीं बेड नहीं है, तो कहीं एंबुलेंस नहीं है.

लाशों को भी श्मशान घाट में जगह नहीं मिल पा रही है. उसे देख कर लगता है कि देश में मैडिकल इमर्जेंसी नहीं, बल्कि संयुक्त सरकार का गठन किया जाना चाहिए .

देश के गंभीर हालात पर देश भले ही मौन है, मगर देश के बाहर तमाम आलोचना हो रही है. आस्ट्रेलिया के प्रमुख अखबार ‘फाइनेंशियल रिव्यू’ ने प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट डेविड रो का एक कार्टून छापा है- “पस्त हाथी पर मौत की सवारी.”

इस कार्टून में भारत को एक हाथी का प्रतीक दिखाया गया है, जो मरणासन्न है और प्रधानमंत्री मोदी अपने सिंहासन पर निश्चिंत शान से बैठे हुए हैं.

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देश और दुनिया में इस तरह की आलोचना से अच्छा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं देश के मुखिया होने के नाते सामने आ कर देश में सभी महत्वपूर्ण दलों के प्रमुख नेताओं को ले कर संयुक्त सरकार का गठन की घोषणा कर के देश को बचा सकते हैं. जैसे ही हालात में सुधार हो, देश पुनः अपने राजनीतिक रंगरूप में आगे बढ़ने लगे.

वस्तुत: कोरोना का कहर देश के लगभग सभी राज्यों में बिजली बन कर टूटा है. देश का सब से बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश हो या महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश हो या राजस्थान, दिल्ली हो या दक्षिण भारत के प्रदेश सभी जगह कोविड-19 के कारण स्वास्थ्य संकट खड़ा हो गया है और शासनप्रशासन की धज्जियां उड़ रही हैं. लगता ही नहीं कि कहीं कोई व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है. अस्पतालों के बद से बदतर हालात वायरल वीडियो के रूप में देश देख रहा है. जीवनरक्षक दवाएं नहीं मिल पा रही हैं और अगर ये कहीं मिल भी रही हैं, तो कालाबाजारी में लाखों रुपए लोगों को देने पड़ रहे हैं.

जिस तरह कोरोना महासंकट के कारण हालात बेकाबू हो गए हैं और संभले नहीं संभल रहा है. उन्हें देख कर लगता है कि तत्काल प्रभाव से देशहित मे संयुक्त राष्टीय सरकार को देश को सौंप देना चाहिए.

औक्सीजन का ही एक मसला अगर हम देखें तो पाते हैं कि देश के हर कोने में त्राहिमामत्राहिमाम मची हुई है. कहीं औक्सीजन नहीं है, तो कहीं औक्सीजन होने पर उसे अनट्रेंड लोग संचालित कर रहे हैं और न जाने कितने मरीज सिर्फ लापरवाही से मर गए. कई जगहों पर तो औक्सीजन लीकेज के कारण आग लग गई और बेवजह लोग मर गए.

औक्सीजन का वितरण भी देशभर में सुचारु रूप से नहीं हो पा रहा है. सवाल है कि आखिर इस का दोषी कौन है? शासनप्रशासन आखिर कहां है? ऐसी गंभीर हालत को देख कर कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी को देश को जो दिशा देनी चाहिए, उसे नहीं दे पा रहे हैं. चहुं ओर अव्यवस्था का आलम बन गया है, इसलिए जितनी जल्दी हो सके, देश अगर संयुक्त राष्ट्रीय सरकार काम संभाल ले तो कोरोना संकट से नजात शीघ्र मिलने की संभावना है .

देश में महामारी का आलम है. भयंकर हो चुके कोरोना के कारण सरकारें ‘मौतों का हत्याकांड’ कर रही हैं यानी आंकड़े छिपाए जा रहे हैं.

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छत्तीसगढ़ से औक्सीजन लखनऊ, उत्तर प्रदेश भेजा जा रहा है. और कहीं का औक्सीजन कहीं सत्ता की धौंस दिखा कर रोक लिया जा रहा है. लोग इस आपाधापी में बेवजह ही मर रहे हैं. ऐसे गंभीर हालात बन गए हैं. जमाखोरी और महंगाई सुरसा के मुंह की तरह बढ़ चुकी है. शासन महंगाई को रोक नहीं पा रहा है और जमाखोरी कर के लोग आम लोगों को दोनों हाथों से लूट रहे हैं. लगता है, देश में शासन नहीं है. देश अराजकता की ओर बढ़ चुका है. जिसे जितनी जल्दी हो सके, व्यवस्थित करने के लिए संयुक्त सरकार बनाना इस दृष्टिकोण से उचित प्रतीत होता है क्योंकि इसी संवैधानिक माध्यम से देश में एक रूप से शासन संभव होगा और देश कोरोना से लड़ पाएगा.

और दुनिया चिंतित हो उठी है…

जिस तरीके से कोरोना की रफ्तार बढ़ रही है, आने वाले समय में प्रतिदिन 5 लाख कोरोना मरीज मिलने लगेंगे तो हालात और भी गंभीर हो जाएंगे. स्थिति में सुधार का क्या प्रयास हो रहा है? यह देशदुनिया की जनता को दिखाई नहीं दे रहा है. स्थिति विषम होते हुए ही दिखाई दे रही है.

यहां सब से महत्वपूर्ण तथ्य है कि कोविड-19 की तबाही भयावह मंजर को, भारत के गंभीर हालात को दुनिया देख रही है और उसे देख कर के चिंतित है. और आगे आ कर के हाथ बंटाना चाहती है पाकिस्तान, चीन जैसे शत्रु राष्ट्रों के अलावा यूरोपीय संघ, जरमनी, ईरान ने भारत के गंभीर हालात को देख कर के सहायता देने की पेशकश की है. वहीं रूस और अमेरिका भी सामने आ गया है, क्योंकि आज भारत के कारण दुनिया को ‘मानवता संकट’ में दिखाई देने लगी है.
अनेक देश भारत को इस महामारी से बचाने के लिए पहल कर रहे हैं. ऐसे हालात को देख कर के कहा जा सकता है कि जब दुनिया चिंतित है, तो सीधा सा अर्थ है कि भारत की वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार असफल सिद्ध हो रही है. हालात यही बने रहे तो कहा जा रहा है कि आने वाला समय और भी भयावह होगा.

हमारे यहां विगत दिनों सब से मजाक भरा फैसला यह रहा कि कोरोना वैक्सीन 3 दरों पर खरीदने का ऐलान किया गया. केंद्र सरकार स्वयं 150 रुपए में और राज्यों को 600 रुपए में वैक्सीन बेचने का फरमान जारी हुआ, जो सरकार के दिवालियापन का ही सुबूत है.

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गंभीर हालत का इस बात से भी पता चलता है कि दुनिया के कई देशों ने भारत से अपनी आवाजाही को रोक दिया है. भारत के कई बड़े पैसे वाले अपनी जान बचाने की खातिर देश छोड़ कर भाग चुके हैं.

यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि भारत में हुई मौतों पर अमेरिका जैसे देश मान रहे हैं कि भारत में जो आंकड़े सरकार बता रही है, उस से दोगुना से 5 गुना तक मौतें हो रही हैं, जिन्हें छुपाया जा रहा है.

ऐसे में अगर देश को मैडिकल इमर्जेंसी से बचाने के लिए यथाशीघ्र ही एक राष्ट्रीय सरकार बननी चाहिए, तभी देश में एक रूप में शासन व्यवस्था होने पर लोगों की जान बचेगी, अन्यथा आने वाले समय में जो भयंकर मंजर होगा, उस के कारण लोग देश की शासन व्यवस्था और शासन में बैठे हुए लोगों को कभी भी माफ नहीं कर पाएंगे. इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह है कि अपना अहम छोड़ कर सभी राष्ट्रीय दलों को साथ ले कर देश के प्रमुख अर्थशास्त्री, न्यायविद, चिकित्सक, सामाजिक विभूति को आगे ला कर एक ‘राष्ट्रीय संयुक्त सरकार’ बनाएं और उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देते हुए देश को नेतृत्व देने का काम किया जाना चाहिए.

बिहार: गांव को चमकाने की कवायद या लूटखसोट

बिहार के पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी के हवाले से छपी इस खबर में बिहार के तकरीबन 8,300 गांव (पंचायतों) के विकास व उन के बढि़या रखरखाव के लिए एक रूपरेखा पेश की गई, जिस में पूरे राज्य की हर पंचायत में पार्क बनाने, खेल के लिए मैदान बनाने, सिक्योरिटी के नजरिए से गांवगांव में सीसीटीवी कैमरे लगाने, छठ घाट बनाने व उन्हें निखारने और सामुदायिक शौचालय बनाने जैसी और भी कई योजनाओं को लागू करने की बात की गई.

पंचायती राज मंत्री सम्राट चौधरी ने यह भी बताया कि 15वें वित्त आयोग की सिफारिश के तहत केंद्र सरकार ने बकाया 1,254 करोड़ रुपए पंचायती राज विभाग को भेज दिए हैं, जबकि 3,763 करोड़ रुपए की रकम पहले ही भेजी जा चुकी है.

यकीनन यह खबर उन लोगों पर जरूर असर डालेगी, जिन्होंने अब तक बिहार के गांवों के दर्शन नहीं किए हैं, पर वे लोग जो बिहार से जुड़े हैं और अकसर बिहार के गांवदेहात के इलाकों में आतेजाते रहते हैं, उन के लिए यह खबर खास जोश की बात नहीं हो सकती, बजाय इस के कि यह खबर गांवदेहात के इलाकों की तरक्की और उन्हें निखारने की कम और लूटखसोट व बंदरबांट के लिए गढ़ी जाने वाली योजना संबंधी खबर ज्यादा लगती है.

जिन गांवों को ‘वीआईपी गांव’ बनाने की बात कही जा रही है, उन की आज के समय में क्या हालत है, इस का जायजा लेना जरूरी है. गांव की तो छोडि़ए, आप बिहार के शहरों की यहां तक कि राजधानी पटना की बात करें तो यहां अनेक इलाके ऐसे हैं, जिधर से आप का मुंह पर रूमाल रखे या नाक बंद किए बिना गुजर पाना भी मुमकिन नहीं है.

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अभी पिछले साल की ही तो बात है, जब पटना की जल निकासी व्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई थी. लोगों के घरों में पानी घुस गया था. यहां तक कि राज्य के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी घुटनेघुटने पानी में सपरिवार मदद के लिए सड़क पर खड़े नजर आए थे.

आज बिहार के ज्यादातर गांव बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं. शायद राज्य के किसी भी गांव में जल निकासी का कोई ठोस इंतजाम नहीं है. हां, अनेक गांवों में नालियां व नाले बने जरूर देखे जा सकते हैं, पर आज या तो वे टूटेफूटे पड़े हैं या उन में कूड़ा पटा पड़ा है या जिस मकसद से ये नालेनालियां बनाए गए थे, वह कतई पूरा नहीं हो रहा.

कूड़ा निबटान की कोई योजना पूरे राज्य के किसी गांव में नहीं है. नतीजतन, तकरीबन हर घर के सामने कूड़े का ढेर लगा है, जो बदबू फैलाता है. इसी गंदगी के चलते मक्खीमच्छरों की भरमार है.

आज भी गांव के तमाम लोग सड़कों के किनारे खुले में शौच करते हैं, जिस के चलते राहगीरों का गुजरना तो मुश्किल हो ही जाता है, बदबू के साथ बीमारी फैलने का भी डर बना रहता है.

पिछले साल बारिश के दिनों में दरभंगा जिले व आसपास के कई इलाकों में बाढ़ व बारिश का जो पानी गांवों में घुस गया था, वह आज तक कई ठिकानों पर रुका हुआ है. इस से वहां बदबू व मच्छरमक्खियों का तो साम्राज्य है ही, साथ ही ऐसी जगहों पर आम के पेड़ों समेत और भी पेड़ लगातार पानी लगे रहने के चलते खराब हो चुके हैं.

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पिछले शासनकाल में ‘हर घर नलजल योजना’ की शुरुआत की थी. पर यह योजना जनहितकारी योजना तो कम भ्रष्टाचार में डूबा हुआ एक तमाशा जरूर साबित हुई.

इस के तहत गांवगांव में पानी की प्लास्टिक की वे टंकियां रखी गई हैं, जो अमूमन लोग अपने मकानों पर जल भंडारण के लिए रखवाते हैं. इस के अलावा प्लास्टिक (फाइबर) के पाइप बिछाए गए, जो लगने के साथसाथ खराब होते जा रहे थे.

इन टंकियों में मोटर द्वारा जमीनी जल भरा जाता था और उसी की सप्लाई की जाती थी. आज यह योजना तकरीबन नाकाम हो चुकी है, क्योंकि या तो प्लास्टिक के पाइप टूटफूट गए हैं या जमीन के नीचे से पानी खींचने वाली मोटरें जल गई हैं.

ऐसा जान पड़ता है कि इस तरह की योजनाएं जनता की सुविधा के लिए नहीं, बल्कि जनता के टैक्स के पैसों की लूटखसोट के लिए ही बनाई जाती हैं, इसीलिए शक पैदा हो रहा है कि राज्य के गांवों को चमकाने व उन्हें ‘वीआईपी’ बनाने की जो नई कवायद एक बार फिर शुरू होने जा रही है, वह हकीकत में धरातल पर दिखाई भी देगी या नेताओं, पंचायत प्रतिनिधियों व सरकारी अफसरों के बीच लूटखसोट का साधन बन कर रह जाएगी?

सीसीटीवी कैमरे व पार्क बनाने से ज्यादा जरूरी है कि सही तरीके से चलने वाली नालेनालियां बनाई जाएं और जो टूटेफूटे हैं, उन्हें ठीक किया जाए. हर गांव में कूड़ा निबटान का बढि़या इंतजाम किया जाए.

‘हर घर नलजल योजना’ की दोबारा समीक्षा की जाए और इन के पाइप बदल कर लोहे के पाइप बिछाए जाएं व जलशोधन के बाद जल की सप्लाई की जाए. इस के लिए प्लास्टिक की टंकियां पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि बड़ी सीमेंट की टंकियां बनवाई जाएं.

इन सब से भी ज्यादा जरूरी है कि इन सभी योजनाओं को भ्रष्टाचार से मुक्त रखा जाए और जो भी सरकारी अफसर, जनप्रतिनिधि या ठेकेदार इन जनहितकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार करते दिखें, उन्हें फौरन जेल भेजा जाए. इस के साथसाथ गांव के लोगों को भी जागरूक किया जाए और उन्हें भी गंदगी व साफसफाई के बीच के फर्क को समझाने के लिए जनसंपर्क मुहिम चलाई जाए.

देश का किसान नए कानूनों से है परेशान ?

पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल व पुडुचेरी के चुनावों का फैसला चाहे जो भी हो, मोदीशाह सरकार ने यह जता दिया है कि 1947 के बाद जो आजादी हमें मिली थी, वह धीरेधीरे खत्म हो रही है और चुनावों के जरीए नई अपनी सरकारें बनाने की बात केवल हवाहवाई है जैसे कि भगवान ही हमें चलाता है, वही फसल पैदा करता है, वही कारखानों से सामान बनवाता है, वही सर्वशक्तिशाली.

मोदीशाह और भगवान दोनों कहते हैं कि हमें पूजो, हमारी हां में हां मिलाओ वरना सरकार बनाना तो दूर तुम जीने लायक भी नहीं रहोगे.

देश का किसान नए कानूनों से परेशान है और देश में धरनों पर बैठा है पर ये भगवान कहते हैं कि पुराणों में लिखा है कि तपस्या तो वर्षों करनी पड़ती है तब भगवान सुनते हैं. देश का मजदूर बेकारी से परेशान है. उसे कोरोना वायरस से डरा कर जब सैकड़ों मील दूर चला कर घर भेजा गया तो रास्ते में डंडे पड़े, खाना नहीं मिला. पर चुनावों में मोदीशाह पैसा बरसा रहे हैं. उन का कहर तो दूसरी पार्टियों पर टूट रहा है जैसा छोटे व्यापारियों, मजदूरों, घरवालियों (नोटबंदी और गैस के दाम बढ़ा कर) पर गिरता है.
भारत जैसे विशाल देश में तरहतरह की पार्टियां होनी चाहिए ताकि हर तरह के लोग अपनी बात कह सकें और सरकारी फैसलों को अपने हिसाब से करवाने की कोशिश कर सकें पर भारतीय जनता पार्टी का सपना है कि देश में ऐसा राज हो जिस में केवल एक पार्टी हो, एक शासक हो, एक नेता हो, एक की सुनी जाए. एक ईश्वर है, उसी में आत्मा है का पाठ सुनने और सुनाने वाले अब एक का ही मंदिर चाहते हैं या एक ही ताकत को सारे मंदिरों का मालिक बना देना चाहते हैं.

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कभी तमिलनाडु में विपक्षी पार्टियों पर छापे पड़ते हैं तो कभी पश्चिम बंगाल में. कभी केरल में पुराने मामले खोले जा रहे हैं तो कभी चुनाव आयोग की बांहें मरोड़ कर उसे अपने मन की करने को कहा जा रहा है. अदालतों से कुछकुछ कहींकहीं न्याय मिल रहा है पर ऐसी सरकार सपना होती जा रही है जो सब की हो, चाहे उसे वोट दिया हो या न दिया हो.

लोकतंत्र की जान है अलग बोल. सब एक ही सुर में बोलेंगे तो वे तो कैदी माने जाएंगे. गांव तक में कई सोच चलती हैं. तभी पंच, यानी 5 की बात की जाती है. 5 जने अपनीअपनी बात अलग तरह से कह सकें, यही इस देश की मूल भावना है, यही 1947 के बाद हमें मिला.

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असल में अंगरेजों के राज में भी हमें छूट ज्यादा थी, क्योंकि जितनी जेलें आज सरकार के खिलाफ बोलने वालों से भरी हैं, 1947 से पहले कभी नहीं भरी. गांधी, नेहरू, भगत सिंह अपनी बात कह सकते थे. आज वह कहते हुए डर लगने लगा है. आज सरकार की खुफिया पुलिस मंदिरों के पंडों की शक्ल में हर गली में मौजूद है और मजेदार बात है कि उसी जनता से चंदा और चढ़ावा पाती है जिस पर वार करती है. उसी के सहारे चुनाव लड़े जा रहे हैं.

जैसे फैसले हो रहे हैं वह दिख रहा है. सारे धंधे, खेती के धंधे भी कुछ हाथों में दिए जा रहे हैं. सारे देश को मुट्ठी में करने के लिए व्यापार कुछ के हाथों में होगा. अदालतों में चुनिंदा लोग ही बैठे होंगे. पुलिस और प्रशासन में जो सरकार की न सुन कर जनता की सुनेगा उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल दिया जा रहा है. इन 5 राज्यों की सरकारों, विपक्षी दलों या विपक्षी को जहरीला बताबता कर जहर जनता के लिए बहाया जा रहा है. नतीजे जो भी हों चौंकाएंगे नहीं.

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