‘ज्योति’ एक्ट्रेस Sneha Wagh के पिता का हुआ निधन, शेयर किया इमोशनल पोस्ट

कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने देश को तबाह कर दिया है. हर रोज लोग इस बीमारी से अपनी जान गंवा रहे हैं.  कोरोना वायरस का कहर टीवी इंडस्ट्री पर भी टूट पड़ा है. अब खबर ये आ रही है कि सीरियल ‘ज्योति’  एक्ट्रेस  स्नेहा वाघ के पिता का इस वायरस के कारण निधन हो गया है.

बताया जा रहा है कि स्नेहा वाघ के पिता को निमोनिया हो गया था. और उनका कोराना रिपोर्ट भी पॉजिटिव पाया गया था. इस वायरस की वजह से स्नेहा वाघ के पिता हालत बिगड़ गई और उनको बचाया नहीं जा सका.

 

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स्नेहा वाघ अपने पिता की निधन से बुरी तरह टूट गई हैं. और उन्होंने एक इमोशनल पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयेर किया है. एक्ट्रेस ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि ‘एक महीने तक निमोनिया और कोरोना से लड़ाई लड़ने के बाद मैंने अपने पिता को खो दिया.

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उन्होेंने आगे  लिखा कि मेरा दिल हजारों टुकड़ों में टूट कर बिखर गया है. मेरी जिंदगी का सबसे मजबूत स्तम्भ मेरे साथ नहीं है. मुझे आज से पहले इतना ज्यादा दर्द कभी नहीं हुआ. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपकी जिंदगी किस हालत से गुजर रही है. अपने परिवार को खोने का गम हर चीज से बढ़कर है.

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स्नेहा वाघ ने दूसरी पोस्ट सोशल मीडिया पर शेयर की. इस पोस्ट में उन्होंने लिखा कि  मेरे प्यारे पापा, आप अपनी बातों से लोगों को हंसाया करते थे, आपकी वजह से हमारा दिन अच्छा जाता था. आप एक अच्छे दिल के इंसान थे. आपने हमेशा मुझे ईमानदारी सिखाई, आप चाहते थे कि मैं एक बेहतर इंसान बनूं.

उन्होंने आगे लिखा कि  ये सोच कर मेरा दिल रो रहा है कि अब आप हमारे बीच नहीं है. आपके जाने के बाद हमारी जिंदगी में खालीपन हो गया है.

Serial Story: काले घोड़े की नाल- भाग 2

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

‘तो क्या मुखियाजी ने अपने भाइयों को इसलिए पालापोसा है, ताकि वे हमारे पतियों को हम से दूर कर के हमें भोग सकें… पर, मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती, क्योंकि मेरे पति ही अपने बड़े भाई के खिलाफ एक शब्द भी नहीं सुनना चाहते हैं…’ ऐसा सोच कर सीमा को नींद न आ सकी.

रानी के कमरे से सीमा को कुछ आवाज आती महसूस हुई, तो आधी रात को वह उठी और नई बहू रानी के कमरे के बाहर जा कर दरवाजे की ?िर्री में आंख गड़ा दी.

अंदर रानी बेसुध हो कर सो रही थी, जबकि मुखियाजी उस के बिस्तर के पास खड़े हो कर रानी के बदन को किसी भूखे भेडि़ए की तरह घूरे जा रहे थे.

अभी मुखियाजी रानी के सीने की तरफ अपना हाथ बढ़ाने ही जा रहे थे कि उन की हरकत देख कर सीमा को गुस्सा आया और उस ने पास में रखे बरतन नीचे गिरा दिए, जिस की आवाज से  रानी जाग गई और चौंकते हुए पूछ बैठी, ‘‘मुखियाजी आप यहां… इस समय…’’

‘‘हां… बस जरा देखने चला आया था कि तु?ो कोई परेशानी तो नहीं  है,’’ इतना कह कर मुखियाजी बाहर निकल गए.

रानी भी मुखियाजी की नजर और उन के इरादों को अच्छी तरह सम?ा गई थी, पर उस ने अनजान बने रहना ही उचित सम?ा.

‘‘कल तो आप रानी के कमरे में ही रहे… हमें अच्छा नहीं लगा,’’ सीमा ने शिकायती लहजे में कहा, तो मुखियाजी ने बात बनाते हुए कहा, ‘‘दरअसल,

अभी वह नई है… विनय शहर गया है,  तो रातबिरात उस का ध्यान तो रखना  ही है न.’’

एक शाम को मुखियाजी सीधा रानी के कमरे में घुसते चले गए. रानी उन्हें देख कर सिर से पल्ला करने लगी, तो मुखियाजी ने उस के सिर से साड़ी का पल्ला हटाते हुए कहा, ‘‘अरे, हम से शरमाने की जरूरत नहीं है… अब विनय यहां नहीं है, तो उस की जगह हम ही तुम्हारा ध्यान रखेंगे…

‘‘यकीन न हो, तो अपने पिता से पूछ लेना. वे तुम से हमारी हर बात का  पालन करने को ही कहेंगे,’’ मुखियाजी ने रानी की पीठ को सहला दिया था.

मुखियाजी की इस बात पर रानी के पिताजी ने ये कह कर मोहर लगा दी थी, ‘‘बेटी, तुम मुखियाजी की हर बात मानना. उन्हें किसी भी चीज के लिए मना मत करना.’’

एक अजीब संकट में थी रानी. नई बहू रानी ने आज खाना बनाया था. पूरे घर के लोग जब खाना खा चुके, तो घर के नौकरों की बारी आई. घोड़ों की रखवाली करने वाला चंद्रिका भी खाना खाने आया. उस की और रानी की नजरें कई बार टकराईं. हर बार चंद्रिका नजर नीचे ?ाका लेता.

खाना खा चुकने के बाद चंद्रिका सीधा रानी के सामने पहुंचा और बोला, ‘‘बहुत अच्छा खाना बनाया है आप ने… हम कोई उपहार तो दे नहीं सकते, पर यह हमारे काले घोड़े की नाल है… इसे आप घर के दरवाजे पर लगा दीजिए. यह बुरे वक्त और भूतप्रेत से आप की हिफाजत करेगी.’’

‘‘अरे, यह सब भूतप्रेत, घोड़े की नाल वगैरह कोरा अंधविश्वास होता है… मेरा इन पर भरोसा नहीं है,’’ रानी ने कहा, पर उस ने देखा कि उस के ऐसा कहने से चंद्रिका का मुंह उतर गया है.

‘‘अच्छा… यह तो बताओ कि तुम मु?ो घुड़सवारी कब सिखाओगे?’’  रानी ने कहा, तो चंद्रिका बोला, ‘‘जब आप कहें.’’

‘‘ठीक है, 1-2 दिन में मैं अस्तबल आती हूं.’’

घर की छत से अकसर रानी ने चंद्रिका को घोड़ों की मालिश करते देखा था. 6 फुट लंबा शरीर था चंद्रिका का. जब वह अपने कसरती बदन से घोड़ों की मालिश करता, तो वह एकदम अपने काम में तल्लीन हो जाता, मानो पूरी दुनिया में बस यही काम रह गया हो.

2 दिन बाद रानी मुखियाजी के साथ अस्तबल पहुंची. चंद्रिका ने काला घोड़ा एकदम तैयार कर रखा था. मुखियाजी वहीं खड़े हो कर रानी को घोड़े पर सवार हो कर घूमते जाते देख रहे थे. चंद्रिका पैदल ही घोड़े की लगाम थामे हौलहौले चल रहा था.

‘‘तुम ने सवारी के लिए वह सफेद घोड़ी धन्नो क्यों नहीं चुनी?’’

‘‘जी, क्योंकि धन्नो इस समय उम्मीद से है न… ऐसे में हम घोड़ी पर सवार नहीं होते,’’ रानी को चंद्रिका का जवाब दिलचस्प लगा.

‘‘अच्छा… तो वह धन्नो मां बनने वाली है, तो फिर उस के बच्चे का बाप कौन है?’’

‘‘यही तो है… बादल, जिस पर आप बैठी हुई हैं. बहुत प्यार करता है यह अपनी धन्नो से,’’ चंद्रिका ने उत्तर दिया.

‘‘प्यार…?’’ रानी ने एक लंबी सांस छोड़ी थी.

‘‘इस घोड़े को जरा तेज दौड़ाओ… जैसा फिल्मों में दिखाते हैं.’’

‘‘जी, उस के लिए हमें आप के  पीछे बैठना पड़ेगा,’’ चंद्रिका ने शरमाते हुए कहा.

‘‘तो क्या हुआ… आओ, बैठो मेरे पीछे.’’

चंद्रिका शरमाते?ि?ाकते रानी के पीछे बैठ गया और बादल को दौड़ाने के लिए ऐड़ लगाई. बादल सरपट भागने लगा. घोड़े की लगाम चंद्रिका के मजबूत हाथों में थी. चंद्रिका और रानी के जिस्म एकदूसरे से रगड़ खा रहे थे.

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रानी और चंद्रिका दोनों ही रोमांचित हो रहे थे. एक अनकहा, अनदेखा, अनोखा सा कुछ था, जो दोनों के बीच में पनपता जा रहा था.

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‘‘आप के पास उस का जो पता था, वह गलत था. शहर की एक  झोंपड़पट्टी का उस ने जो पता दिया था, वह फर्जी निकला. वह कहीं और रहती थी.

‘‘अब यह बिलकुल आईने की तरफ साफ हो चुका है कि इस अपहरण में उस का ही हाथ है, तभी तो आप के जेवरात और बैंक खाते के बारे में बदमाशों को गहरी जानकारी थी.’’

पुलिस अब अगली कार्यवाही में जुट गई थी. उस ने अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया था.

मिनट घंटों में और घंटे दिन में बदल रहे थे. पुलिस भी पास के जिलों के जंगलपहाड़ों तक में खाक छान रही थी. 2 दिन बीत चुके थे और अभी तक गुडि़या का कोई सुराग, कोई अतापता नहीं था.

शाम के समय वनिता के पास फिर से बदमाशों का फोन आया. वह उलटे उन्हें ही डांटने लगी, ‘‘मैं रुपए ले कर बैठी हूं और तुम यहांवहां घूम रहे हो. मैं शाम को शहर के बौर्डर पर बागडि़या टैक्सटाइल फैक्टरी के पास बने आउट हाउस में अटैची ले कर अपनी एक सहेली के साथ रहूंगी.

‘‘और हां, तुम भी पुलिस को कुछ न बताना और मेरी बेटी को छोड़ कर रुपए ले जाना.’’

‘अरे, पुलिस को कुछ न बताने की बात तो मेरी थी.’

‘‘और, मु झे भी अपनी इज्जत प्यारी है, इसलिए कह रही हूं.’’

शहर के उस एरिया में एक पुराना इंडस्ट्रियल ऐस्टेट था जिस में पुरानी खंडहर उजाड़ फैक्टिरियां थीं. वनिता ने अपनी गाड़ी निकाली और सुमन के साथ अटैची ले कर बैठ गई.

कई एकड़ में फैली उस फैक्टरी में कोई आताजाता नहीं था. उस के ठीक नीचे नाला बह रहा था. वे दोनों वहीं एक दीवार की ओट में बैठ गईं, जहां से चारों तरफ का मंजर दिखता था.

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अचानक उस उजाड़ फैक्टरी की एक बिल्डिंग के अंदर से 2 आदमी बाहर निकले. उन के पीछे नौकरानी भुंगी भी गुडि़या को लिए दिखाई दी.

उन दोनों में से एक के हाथ में पिस्तौल थी. वह पिस्तौल को जेब में रखते हुए बोला, ‘‘अब इस की कोई जरूरत नहीं है,’’ वह अटैची लेने के लिए आगे बढ़ा.

अचानक बिजली की तेजी से वनिता ने उसे अटैची देते वक्त जोरों का धक्का दिया तो वह आदमी अटैची को लिए हुए ही नाले में जा गिरा.

उसे गिरता देख कर दूसरा आदमी एकदम से भाग खड़ा हुआ. सुमन दौड़ कर गुडि़या की ओर लपकी, तो भुंगी उसे छोड़ कर भाग निकली.

वनिता और सुमन ने जल्दी गुडि़या के बंधन खोले. गुडि़या उन से चिपट कर रोने लगी.

‘‘आप ने तो कमाल कर दिया वनिताजी…’’ पुलिस इंस्पैक्टर अजमल उस की तारीफ करने लगा था, ‘‘हमें मालूम पड़ा कि आप इधर आ रही हैं, तो हम ने भी आप का पीछा किया और यहां तक आ पहुंचे.’’

थोड़ी देर में उस घायल मुजरिम के साथ पुलिस आती दिखी जो नाले में जा गिरा था. एक पुलिस वाले के हाथ में अटैची भी थी.

पुलिस इंस्पैक्टर अजमल ने अटैची खोली तो उसे हंसी आ गई. अटैची में पुरानी किताबें, पत्रिकाएं और अखबार भरे थे. उस भारी अटैची को समेट न पाने के चलते ही वह आदमी वनिता के एक धक्के से नाले में लुढ़क गया था.

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‘‘आप के इस साहस से न सिर्फ आप को अपनी बेटी मिली है, बल्कि हमें भी एक खतरनाक मुजरिम मिला है. अब इस के जरीए सारे मुजरिम हवालात में होंगे. मैं आप के इस साहस की तारीफ करता हूं. फिलहाल तो आप अपनी बेटी को ले कर घर जाइए, बाकी औपचारिकताएं बाद में होंगी.’’

‘‘अरे भाई, वनिता के साहस के कायल हम भी हैं…’’ करीम भाई बोला, ‘‘तभी तो औफिस की खास फाइलें इन्हीं के पास आती हैं.’’

‘‘वनिता एक मां भी हैं करीमजी. और एक मां अपनी औलाद के लिए शेर को भी माल दे सकती है…’’ सुमन बोल पड़ी, ‘‘वनिता, अब घर चलो. गुडि़या को सामान्य करते हुए तुम्हें खुद भी सामान्य होना है. आगे का काम पुलिस पूरा कर लेगी.’’

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Crime Story- दुश्मनी भी शिद्दत से निभाई: भाग- 2

पूजा और विजेत के प्यार पर जब पहरा लगा तो दोनों बैचेन हो उठे. कभीकभार मोबाइल पर छिपछिप कर बातचीत कर के वह अपने मन की तसल्ली कर लेते. उन्हें एकदूजे के बगैर रहना नागवार लगने लगा तो आखिरकार काफी सोचविचार करने के बाद दोनों ने निर्णय कर लिया कि प्रेम के पंछी किसी पिंजरे में कैद हो कर ज्यादा दिन नहीं रहेंगे.

दिसंबर, 2020 में सर्दियों की एक रात विजेत अपनी प्रेमिका पूजा को घर से भगा ले गया. दूसरे दिन सुबह देर तक जब पूजा अपने कमरे से बाहर नहीं निकली तो उस की मां ने अंदर जा कर देखा, पूजा अपने बिस्तर पर नहीं थी.

पूरे दिन पूजा का भाई धीरज और उस के पिता उस की तलाश करते रहे. जब उन्हें पूजा की कोई खोजखबर नहीं मिली तो थकहार कर उन्होंने तिलवारा थाने में पूजा के गायब होने की रिपोर्ट करा दी.

पुलिस रिपोर्ट में घर वालों ने यह अंदेशा भी व्यक्त किया कि विजेत पूजा को बहलाफुसला कर ले गया है. पूजा के विजेत के साथ भागने की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई तो उस के परिवार की बदनामी होने लगी.

मोहल्ले के लोग चटखारे ले कर पूजा और विजेत के प्रेम प्रसंग की चर्चा करने लगे. सब से ज्यादा जिल्लत का सामना पूजा के भाई धीरज को करना पड़ा. बदनामी के डर से उस का घर से निकलना दूभर हो गया.

उधर घर से भाग कर विजेत और पूजा ने जबलपुर के मातेश्वरी मंदिर में जा कर शादी कर ली. विजेत ने जीवन भर पूजा का साथ निभाने का वादा किया. इस के बाद दोनों हनीमून के लिए दिल्ली चले गए.

कुछ दिनों तक दिल्ली और आसपास के इलाकों में मौजमस्ती करने के बाद जबलपुर आ कर विजेत पूजा के साथ गढा के गंगानगर में अपने चाचा के मकान में रहने लगा. कुछ दिन प्यारमोहब्बत का नशा दोनों पर छाया रहा. लेकिन समय गुजरते उन के सामने आर्थिक तंगी के डैने फैल गए.

इस बीच 27 फरवरी, 2021 को पुलिस ने एक दिन विजेत और पूजा को खोज निकाला. तब थाने में घर वालों के सामने पूजा ने लिखित बयान दे कर साफ कह दिया कि उस ने अपनी मरजी से विजेत से शादी की है और वह उसी के साथ रहना चाहती है. पूजा के घर वाले उसे उस के हाल पर छोड़ कर घर वापस आ गए.

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शादी के पहले विजेत ने पूजा को जो सब्जबाग दिखाए थे, वे धीरेधीरे झूठ साबित होने लगे. विजेत के संग 3 महीने में ही पूजा जान चुकी थी कि विजेत रंगीनमिजाज युवक है. उसे यह भी पता चला कि इसी रंगीनमिजाजी की वजह से उस के खिलाफ 2018 में उस के खिलाफ थाने में एक नाबालिग लड़की से छेड़छाड़ में पोक्सो ऐक्ट का मामला दर्ज हुआ था.

इस बात को ले कर दोनों के बीच मनमुटाव भी बढ़ने लगा. दोनों के बीच होने वाले झगड़े में नौबत मारपीट तक आ चुकी थी. पूजा के अरमानों का गला घोंटा जा रहा था. जब विजेत आए दिन पूजा के साथ मारपीट करने लगा तो परेशान हो कर 7 मार्च, 2021 को पूजा ने फोन कर के अपने भाई को बुला लिया.

धीरज पहले ही विजेत से खार खाए हुआ था, ऊपर से वह उस की बहन से मारपीट करने लगा तो गुस्से में आगबबूला हो कर वह पूजा को अपने घर शंकराघाट ले आया.

पूजा के मायके आने के बाद विजेत बेचैन रहने लगा. अपने किए पर वह शर्मिंदा था, मगर धीरज के डर से वह उस के घर जा कर पूजा से नहीं मिल पा रहा था. पूजा से मिलने के लिए वह धीरज के घर के आसपास ही चक्कर लगाता रहता था.

11 मार्च, 2021 की सुबह धीरज तिलवारा की ओर जा रहा था. इस दौरान उस ने देखा कि उस का जीजा विजेत उस के घर की ओर जा रहा है. उसे शक हुआ कि विजेत उस के घर जा कर पूजा को फिर से अपने साथ ले जा सकता है. इसलिए वह घर वापस आ गया और छत पर बैठ कर निगरानी करने लगा. इसी दौरान उस ने देखा कि विजेत उस के घर के पीछे की झाडि़यों में खड़ा है. विजेत को वहां देख कर धीरज को गुस्सा आ गया.

उस ने घर से धारदार हंसिया उठाया और विजेत के पीछे दौड़ा. धीरज को देख कर विजेत भागने लगा. विजेत बमुश्किल 500 मीटर ही भाग पाया होगा कि खेतों के बीच मेड़ पर बेरी की झाड़ी के पास गिर गया.

विजेत के जमीन पर गिरते ही धीरज ने उस पर हंसिया से ताबड़तोड़ 15-16 वार कर दिए. कुछ देर तक विजेत छटपटाता रहा. धीरज के सिर पर खून सवार था. उस ने हंसिया से विजेत कश्यप की गरदन धड़ से अलग कर दी.

इतने पर भी जब उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उस ने विजेत के हाथ का एक पंजा काट दिया. दूसरे पंजे को भी उस ने काटने का प्रयास किया, मगर कामयाब नहीं हुआ. इस के बाद विजेत के कटे सिर को ले कर वह अपने घर आया.

घर के एक कोने में कटे सिर को रखते हुए वह घर के अंदर दाखिल हुआ. उस ने अपनी बहन पूजा के पैर छूते हुए हुए कहा, ‘‘बहन मुझे माफ कर देना, विजेत तुझे भगा कर ले गया था, उस अपमान को तो मैं बरदाश्त कर गया. मगर कोई मेरी लाडली बहन के साथ मारपीट करे, यह बरदाश्त नहीं कर सकता. आज मैं ने उस का खेल खत्म कर दिया है.’’पूजा धीरज की बातें सुन कर अवाक रह गई. जैसे ही उस की नजर बाहर की तरफ कोने में रखे कटे सिर पर पड़ी तो उस के मुंह से चीख निकल गई.

करीब जा कर उस ने अपने पति विजेत का कटा हुआ सिर देखा तो जमीन पर सिर पटकने लगी और पल भर में बेहोश हो गई. धीरज ने विजेत के कटे सिर व हंसिया को बोरीनुमा एक थैले में रख लिया और बाइक स्टार्ट कर 7 किलोमीटर दूर तिलवारा थाने पहुंच गया.

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11 मार्च, 2021 को महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जा रहा था. त्यौहार के मद्देनजर तिलवारा थाने के टीआई सतीश पटेल और ज्यादातर स्टाफ मंदिरों के आसपास सुरक्षा के लिए तैनात थे.

दोपहर के समय अचानक एक बाइक सवार युवक हाथ में एक थैला लिए थाने में दाखिल हुआ तो थाने में मौजूद एक पुलिसकर्मी की नजर उस पर पड़ी.

बाइक पर आए युवक के कपड़े खून से सने हुए थे. पुलिसकर्मी ने उसे दूर से देखते ही पूछा, ‘‘कौन हो तुम? यहां किसलिए आए हो?’’

उस युवक ने अपने साथ लाए थैले को जमीन पर रखते हुए कहा, ‘‘साब, मेरा नाम धीरज शुक्ला है. बर्मन मोहल्ले का विजेत कश्यप मेरी बहन को भगा कर ले गया था. आज मैं ने उस का मर्डर कर दिया है. मुझे गिरफ्तार कर लीजिए. इस थैले में उस का सिर और हाथ का पंजा काट कर लाया हूं.’’

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युवक की बात सुन कर थाने में मौजूद पुलिसकर्मी सकते में आ गए. उन्होंने देखा कि थैले में से खून की बूंदें टपक रही थीं. धीरज के हाथ से थैला लेते हुए जब पुलिसकर्मी ने देखा तो वह सकपका गया. तत्काल घटना की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी गई. टीआई सतीश पटेल को जैसे ही मामले की खबर मिली, वह तत्काल थाने आ गए.

अगले भाग में पढ़ें- विजेत की हत्या का क्या प्लान था

Crime Story- दुश्मनी भी शिद्दत से निभाई: भाग- 1

मध्य प्रदेश की संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर शहर से लगा हुआ एक देहाती इलाका है तिलवारा. नर्मदा नदी की गोद में बसे तिलवारा के बर्मन मोहल्ले में सुरेंद्र कश्यप का परिवार रहता था. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां व एक बेटा विजेत था. 38 साल का विजेत पढ़ाईलिखाई पूरी करने के बाद कोई कामधंधा करने के बजाय फालतू इधरउधर घूमता रहता था.

इस बात को ले कर उस के पिता उसे समझाते रहते कि कुछ कामधंधा देख ले, इधरउधर आवारागर्दी करता रहता है. मगर विजेत पर पिता की नसीहतों का कोई असर नहीं पड़ता था. वह दिन भर दोस्तों के साथ मटरगश्ती करता और देर रात घर लौटता था.

करीब 3 साल पहले की बात है, बेरोजगारी के दिन काट रहे विजेत की मुलाकात एक दिन धीरज शुक्ला उर्फ मिंटू से हुई. रामनगर इलाके के शंकरघाट में रहने वाले धीरज के पिता शिवराम शुक्ला का नाम शराब के अवैध कारोबार से जुड़ा हुआ है. पिता के इस गोरखधंधे में धीरज भी बराबर का साथ दे रहा था.

शिवराम के परिवार में उस की पत्नी, 35 साल का बड़ा बेटा धीरज उर्फ मिंटू, 30 साल का छोटा लड़का लवकेश और 19 साल की बेटी पूजा थी.

विजेत और धीरज के रहवासी इलाकों में कोई खास फासला नहीं था. इस वजह से उन की मुलाकात आए दिन होती रहती थी. विजेत धीरज की लाइफस्टाइल देख कर काफी प्रभावित था. जब विजेत और धीरज में पक्की दोस्ती हो गई तो धीरज ने विजेत को भी अवैध शराब बेचने के धंधे में शामिल कर लिया.

धीरज ने जब विजेत को बताया कि इस कारोबार में खूब पैसा है तो विजेत धीरज के साथ मिल कर जबलपुर के कई इलाकों में शराब की सप्लाई करने लगा. इस से विजेत को रोजगार के साथ अच्छीखासी कमाई होने लगी.

विजेत के पास पैसा आते ही उस का रहनसहन भी बदल गया. विजेत और धीरज का एकदूसरे के घर आनाजाना शुरू हो गया. धीरज के घर वाले भी विजेत से इस तरह घुलमिल गए थे कि धीरज के घर पर न होने पर भी वह उन से घंटों बैठ कर बातचीत करता रहता था.

एक दिन सुबह विजेत धीरज से मिलने उस के घर पहुंच गया. जैसे ही उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो धीरज की बहन पूजा ने दरवाजा खोला. खूबसूरत पूजा शुक्ला को सामने देख कर विजेत देखता ही रह गया. उस समय पूजा की उम्र 16 साल थी. उस की खूबसूरती ने विजेत को पहली नजर में ही उस का दीवाना बना दिया.

पूजा ने अपनी मधुर मुसकान के साथ विजेत से कहा, ‘‘आइए, आप बैठिए. भैया अभी नहा रहे हैं.’’

पूजा की मुसकान ने विजेत पर जैसे जादू सा कर दिया. वह मुसकराता हुआ पूजा के पीछेपीछे कमरे में आ कर सोफे पर बैठ गया. इसी दौरान पूजा उस के लिए चाय बना कर ले आई.

विजेत की नजरें अब पूजा पर ही जमी थीं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह किस मोहपाश में बंधा जा रहा है. चाय की चुस्की लेते हुए उस ने पूजा की तरफ जी भर देखा और बोला, ‘‘तुम्हारे हाथों की बनी चाय में जादू है.’’

अपनी तारीफ सुन पूजा ने शरमाते हुए कहा ‘‘ऐसा क्या जादू कर दिया मैं ने?’’

‘‘तुम्हारी खूबसूरती की तरह चाय भी बहुत टेस्टी है,’’ विजेत बोला.

विजेत से अपनी तारीफ सुन पूजा उस से कुछ बोल पाती, इस के पहले ही धीरज बाथरूम से निकल कर कमरे में आ गया. धीरज को आता देख पूजा वहां से चली गई.

उस दिन के बाद से विजेत पूजा का आशिक बन गया. अब वह अकसर धीरज से मिलने के बहाने पूजा के घर आने लगा. पूजा का इस नाजुक उम्र में किसी लड़के के प्रति झुकाव स्वाभाविक था.

विजेत दिखने में हैंडसम था. उस के पहनावे, स्टाइलिश लुक से पूजा भी उसे मन ही मन चाहने लगी थी. जब भी विजेत घर आता तो पूजा चायपानी के बहाने उस के आगेपीछे घूमने लगती.

पूजा का भाई धीरज इस बात से अंजान था कि उस का दोस्त दोस्ती में विश्वासघात कर के उस की बहन पर बुरी नजर रख रहा है.

विजेत को जब भी मौका मिलता, धीरज की गैरमौजूदगी में पूजा से मिलने पहुंच जाता. पूजा के मम्मीपापा धीरज का दोस्त होने के नाते उसे भी अपने बेटे की तरह समझते थे.

उन्हें इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि धीरज से भी उम्र में बड़ा उस का दोस्त उन की मासूम बेटी को प्यार के जाल में फंसा रहा है.

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पूजा और विजेत का प्यार आंखों ही आंखों में परवान चढ़ रहा था. सितंबर, 2019 की बात है. पूजा के मम्मीपापा और छोटा भाई लवकेश किसी काम से अपने रिश्तेदार के यहां गए हुए थे.

विजेत को पता था कि पूजा का भाई धीरज काम के सिलसिले में एक पार्टी से मिलने शहर से बाहर गया है. मौका देख कर वह पूजा के घर पहुंच गया. फिर वह उसे अपनी बाइक पर बैठा कर शहर घुमाने ले गया. शहर में घूमने के बाद दोनों ने एक पार्क में बैठ कर जी भर कर बातें कीं.

प्यार मनुहार भरी बातें करते हुए विजेत ने पूजा को अपनी बांहों में भर लिया. जवानी की दहलीज पर कदम रख रही पूजा को पहली बार किसी युवक के साथ इतने नजदीक आने का मौका मिला था.

इश्कमोहब्बत की इस फिसलन भरी राह पर वह अपने आप को संभाल न सकी. पार्क में झाडि़यों की ओट में उस दिन पहली बार दोनों ने प्यार के समंदर की अथाह गहराई में गोता लगाया.

विजेत ने पूजा को किस करते हुए कहा, ‘‘पूजा मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं और तुम से ही शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मगर विजेत ये काम इतना आसान नहीं है. हम दोनों अलगअलग जाति के हैं, इसलिए दुनिया हमारे प्यार की दुश्मन बन जाएगी. समाज और परिवार हमारी शादी की इजाजत नहीं देगा.’’ पूजा के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं.

‘‘प्यार किसी बंधन में बंध कर नहीं रह सकता पूजा.’’ विजेत ने उसे कस कर गले लगाते हुए कहा.

‘‘विजेत तुम नहीं जानते, धीरज भैया को हमारे प्यार के बारे में पता चल गया तो वे तो मेरी जान ही ले लेंगे.’’ पूजा ने विजेत से अपने आप को छुड़ाते हुए कहा.

‘‘पूजा, दुनिया की कोई भी ताकत मुझे तुम से जुदा नहीं कर सकती.’’ विजेत ने पूजा को सीने से चिपकाते हुए कहा.

प्यार की दुनिया में खोए ये दो प्रेमी अच्छी तरह जानते थे कि प्यार की राह भले ही आसान हो, मगर शादी की राह कांटों की सेज से कम नहीं होगी.

उस दिन खूब मौजमस्ती कर दोनों अपनेअपने घर आ गए.

विजेत का मन पूजा से शादी करने के लिए उतावला था, मगर पूजा अभी 18 साल की नहीं हुई थी. विजेत जानता था कि नाबालिग उम्र में वह पूजा से शादी नहीं कर सकता. ऐसे में इंतजार करने के अलावा उस के सामने कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

अगले साल जैसे ही पूजा शुक्ला ने अपने जीवन के 18 साल पूरे किए तो विजेत कश्यप ने हिम्मत कर के पूजा के घरवालों के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया.

विजेत के इस प्रस्ताव से पूजा के घर में हड़कंप मच गया. धीरज का तो खून खौल उठा. उस ने विजेत को भलाबुरा कहते हुए साफतौर पर कह दिया कि ये शादी हरगिज नहीं हो सकती. गांवदेहात के इलाकों में आज भी दूसरी जाति में शादी करना सामाजिक परंपराओं का उल्लंघन माना जाता है.

समाज में बदनामी का डर भी था. उस दिन के बाद से विजेत की धीरज के घर आने पर पाबंदी लगा दी गई और घर वाले पूजा पर सख्त नजर रखने लगे.

अगले भाग में पढ़ें- क्या पूजा और विजेत ने शादी की

Crime Story- दुश्मनी भी शिद्दत से निभाई: भाग- 3

थाने में जब धीरज से पूछताछ की गई तो धीरज ने बताया कि विजेत ने दोस्ती में विश्वासघात कर के मेरी बहन को बहलाफुसला कर शादी की थी. इस अपमान का बदला लेने के लिए मैं ने उस की हत्या कर दी. मैं ठान चुका था कि या तो वो जीवित रहेगा या मैं.

तिलवारा पुलिस ने आरोपी धीरज की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल हंसिया और खून से सने उस के कपड़े आदि जब्त कर लिए. आरोपी की सूचना पर पुलिस जब रामनगर इलाके के एक खेत में पहुंची तो वहां विजेत का धड़ पड़ा हुआ था.

वहां पर विजेत के घर वाले और रिश्तेदारों की भीड़ लगी थी. तिलवारा पुलिस ने लाश का पंचनामा तैयार कर उसे पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

इधर धीरज के घर से जाने के बाद उस की बहन पूजा को जैसे ही होश आया, वह दौड़ कर खेत की तरफ गई. वहां विजेत के बिना सिर के धड़ को देख कर उस के सब्र का बांध टूट गया. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि शादी के 3 महीने के भीतर ही उस के सारे ख्वाब रेत के महल की तरह ढह गए हैं. शोक से व्याकुल वह अपने घर आई और एक कमरे में जा कर जोरजोर से रोने लगी.

चीखपुकार सुन कर आसपास की महिलाएं घर आ गईं तो पूजा की मां रोरो कर सब को घटना की जानकारी देने लगी.

घंटे दो घंटे के बाद जब पूजा के रोने की आवाज कमरे से आनी बंद हुई तो उस की मां ने कमरे के अंदर जा कर देखा तो उस की चीख निकल गई.

चीख सुन कर पूजा के पिता दौड़ कर आए तो देखा, पूजा पंखे से लटकी हुई थी. पूजा ने अपनी ओढ़नी का फंदा बना कर पंखे से लटक कर फांसी लगा ली थी. पुलिस टीम को जैसे ही पूजा के फांसी लगाने की खबर मिली वह शंकराघाट में धीरज के घर पहुंच गई.

पूजा को पंखे से उतार कर पुलिस जांचपड़ताल में लग गई. पुलिस को शक था कि कहीं धीरज ने विजेत से पहले पूजा की हत्या कर के पंखे से तो नहीं लटका दिया.

फूटाताल में रहने वाले मृतक विजेत के ममेरे भाई और दूसरे रिश्तेदारों ने पुलिस के सामने यह आरोप लगाया कि पूजा ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है.

उन का कहना था कि विजेत की हत्या करने के बाद धीरज ने पूजा को फांसी पर लटका दिया. यह हत्या पूरी योजना बना कर की गई है, ताकि किसी को संदेह न हो. वह नहीं चाहते थे कि पूजा अपने भाई और अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ गवाही दे.
महाशिवरात्रि के धार्मिक उत्सव पर इस तरह की घटना होने से पूरे क्षेत्र में तनाव का माहौल बन गया था. जबलपुर रेंज के डीआईजी भगवत सिंह चौहान और एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा पूरी घटना पर नजर रखे हुए थे.

वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर तिलवारा टीआई सतीश पटेल ने दोनों पक्षों को समझा कर पहले दोनों शवों का पोस्टमार्टम कराया, फिर शाम को पुलिस की मौजूदगी में अलगअलग स्थानों पर पूजा और विजेत का अंतिम संस्कार कराया.

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आईजी जबलपुर रेंज की ओर से तिलवारा थाने के टीआई सतीश पटेल की सूझबूझ के लिए पुरस्कृत किया गया. पूजा और विजेत की प्रेम कहानी का दुखद अंत हो चुका था. पुलिस ने धीरज शुक्ला के इकबालिया बयान के आधार पर आईपीसी की धारा 302 के तहत विजेत की हत्या का मुकदमा कायम कर उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

रक्षा बंधन के दिन पूजा जिस भाई की कलाई पर राखी बांध कर बहन अपनी रक्षा का जिम्मा सौंपती थी, वही भाई उस के प्यार का जानी दुश्मन बन गया. जातपांत की संकुचित विचारों की बेडि़यों में जकड़े भाई ने बहन की मांग का सिंदूर उजाड़ दिया, जिस के चलते बहन को मौत को गले लगाने पर मजबूर होना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कोरोना की दूसरी दस्तक, गरीब लोगों में बड़ी दहशत

वह फोटो ब्राजील के एक कब्रिस्तान की थी. उस फोटो के नीचे जो लिखा था, वह और भी डराने वाला था, जो इस तरह था कि ‘ब्राजील में कोरोना का नया स्वरूप तबाही मचाए हुए है. यहां के साओ पाउलो शहर में इतनी जानें जा चुकी हैं कि उन शवों को दफनाने के लिए जगह कम पड़ गई है. ऐसे में पुरानी कब्रों को खोद कर कंकाल निकाले जा रहे हैं और नए शव दफनाने के लिए जगह बनाई जा रही है. पिछले हफ्ते ब्राजील में 60 हजार से ज्यादा मौतें हुई हैं.’

दुनियाभर में कोरोना महामारी की दूसरी लहर आ चुकी है. भारत भी इस से अछूता नहीं है. दिल्ली को ही देख लें. वहां मार्च महीने के बाद कोरोना के मामले इस तरह तेजी से बढ़े कि वहां रात का कर्फ्यू तक लगाना पड़ा.

ऐसा नहीं है कि वहां कोरोना की टैस्टिंग नहीं की जा रही है, बल्कि वहां तो रिकौर्ड एक लाख से ज्यादा लोगों की कोरोना जांच की गई, कोरोना का टीका भी लगाया जा रहा है, पर इस से हालात काबू में आते नहीं दिखे.

पूरे देश की बात करें, तो पिछले  6 महीने के टौप पर कोरोना का आतंक रहा और बहुत से शहर तो दोबारा लौक होने लगे. महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के कई जिलों में बंदिशें लगाई गईं.

आम तो क्या खास लोग भी इस भयंकर बीमारी की चपेट में आ गए, जिन में रौबर्ट वाड्रा, सचिन तेंदुलकर, अक्षय कुमार और बड़ेबड़े अस्पतालों के डाक्टर तक शामिल थे.

गरीबों में खलबली

पिछले साल के लौकडाउन में लोगों को पता ही नहीं था कि यह बीमारी कितनी गंभीर है, इसलिए वे इस हद तक घबरा गए थे कि आननफानन अपनेअपने मूल इलाकों की तरफ बोरियाबिस्तर समेट कर जैसे हुआ निकल पड़े. तब उन पर मुसीबतें आई थीं, तो बहुत से लोगों ने उन की मदद भी की थी.

रोजगार छोड़ कर वे किसी तरह कंगाली में जिए, जो काम मिला उसे किया और अपने दिन गुजारे. कोरोना थोड़ा सुस्त हुआ तो फिर बड़े शहरों की तरफ रुख किया, पर उन का इस बार का पलायन और भी भयावह होगा. मुंबई और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में तो इस का असर दिखने लगा है.

इन में से ज्यादातर कुशल और अर्धकुशल मजदूर हैं, जो मुख्य तौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक, गुजरात, तेलंगाना और ओडिशा जैसे राज्यों से संबंध रखते हैं.

मुंबई की धारावी कच्ची बस्ती में पहले भी कोरोना बम फूटा था. वहां के कामगार घर वापसी को मजबूर हुए थे, जिन में से तकरीबन 80 फीसदी मजदूर अक्तूबर, 2020 तक वापस आ गए थे, मगर अब उन में से आधे से ज्यादा लोग फिर से अपने गांव लौटने की तैयारी कर रहे हैं या जा चुके हैं.

दिल्ली के रेलवे स्टेशनों और बसअड्डों पर भी मजदूर तबके की यह अफरातफरी दिखाई दे रही है. पर कुछ गरीब ऐसे भी हैं, जो दिल्ली और उस के आसपास के शहरों में रह कर अपना  और अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं और न चाहते हुए भी यह जगह नहीं छोड़ सकते हैं.

हरियाणा के फरीदाबाद के राजू नगर की एक झुग्गी में राजेश रहता है. झुग्गी अपनी है, पर रोजगार का कोई ठिकाना नहीं. परिवार उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में रहता है और राजेश यहां चाय का ठेला लगाता है. इस से पहले वह किसी ट्रैक्टर कंपनी में हैल्पर था और 9,000 रुपए हर महीने पगार पाता था. इतने में गुजारा नहीं था और कंपनी में हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती थी.

राजेश हिम्मत हार गया और नौकरी छोड़ दी. फिर इसी साल के जनवरी महीने में चाय का ठेला लगा लिया, पर उस के बाद क्या हुआ, यह उसी की जबानी सुनिए.

तकरीबन 50 साल के राजेश ने बताया, ‘‘नौकरी छोड़ कर सोचा कि चाय के ठेले से ठीकठाक कमाई हो जाएगी, पर मेरी सोच गलत थी. यहां गरीब को और ज्यादा दबाया जाता है. लोग मेरे ठेले पर चाय पीने आते हैं, बीड़ीसिगरेट, खाने का दूसरा छोटामोटा सामान लेते हैं, पर ज्यादातर उधार. ऐसा नहीं है कि वे नकद सामान नहीं ले सकते हैं, पर ऐसा करते नहीं हैं.

‘‘आप यकीन नहीं मानोगे कि पिछले ढाई महीने में मैं ने सिर्फ 8,000 रुपए की कमाई की है. इस से अच्छी तो ट्रैक्टर कंपनी की नौकरी ही थी. अब जब फिर से कोरोना बीमारी ज्यादा फैलने की खबरें आ रही हैं, तो इस से गरीब की और ज्यादा कमर टूट जाएगी.’’

इसी तरह दिल्ली के आया नगर में रहने वाले राहुल निगम का दर्द कुछ यों छलका, ‘‘मैं गुरुग्राम में बिरयानी का स्टाल लगा कर अपने परिवार का पेट पाल रहा था, पर लगातार कम होती आमदनी से मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी. अब मैं ने कड़ा फैसला लेते हुए अपना धंधा समेट दिया है और  हमेशा के लिए वापस इंदौर जा रहा हूं.

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‘‘पिछले साल अचानक हुए लौकडाउन ने मेरा सारा कामधंधा चौपट कर दिया था. बाद में जो थोड़ाबहुत  पैसा बचा हुआ था, वह भी खत्म हो गया. अब अगर दोबारा काम शुरू करने की भी सोचूं तो कोरोना महामारी के गंभीर हालात के चलते दोबारा लौकडाउन लग जाने का डर सता रहा है, इसीलिए यहां से जाना ही ठीक लग  रहा है.’’

दिल्ली के आया नगर में ही रहने वाली बसंती लोगों के घरों में काम करती है. वह मूल रूप से उत्तराखंड की है और दिल्ली में रोजीरोटी के लिए आई है. वह अपने ड्राइवर पति और 2 बच्चों के साथ दिल्ली में रहती है.

बसंती ने अपना दर्द बताया, ‘‘पिछले लौकडाउन में पति और मेरा दोनों का काम छूट गया था. वे 6 महीने हम ने बहुत मुश्किल से गुजारे थे. हम पूरी तरह सरकार और मददगारों पर आश्रित थे. जब धीरेधीरे सब खुलने लगा, तब बड़ी मुश्किल से किसी घर में काम मिला. पति को तो अभी कुछ दिन पहले ही नौकरी मिली है.

‘‘गांव में सास बीमार रहती हैं. हमें वहां भी पैसे भेजने होते हैं. अगर फिर से लौकडाउन लग गया तो क्या होगा, यह सोच कर ही डर लगने लगता है. हम इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं हैं.’’

महरौली जिले के भाजपा महिला मोरचा में मंत्री और मालती फाउंडेशन की सहसंस्थापक मधु गुप्ता ने कोरोना के बढ़ते मामलों पर चिंता जताते हुए कहा, ‘‘दोबारा लगे नाइट कर्फ्यू से लोगों में खलबली सी मची हुई है. गरीब ही नहीं, बल्कि मिडिल क्लास भी बड़ा चिंतित है. समाज में हर कोई एकदूसरे से जुड़ा हुआ है. अगर मजदूर तबका या गरीब लोग यों शहर छोड़ कर अपने गांव जाएंगे तो सबकुछ ठप हो जाएगा.

‘‘अगर ऐसा हुआ तो पूरा देश फिर आर्थिक मंदी की तरफ चला जाएगा. पिछला लौकडाउन तो किसी तरह झेल गए थे, पर अब तो हिम्मत ही टूट जाएगी. सरकार को सबकुछ ध्यान में रख कर कोई भी फैसला लेना होगा. आम आदमी की सोचनी होगी.’’

चुनौतियां हैं बड़ी

कोरोना को झेलते हुए एक साल से ऊपर का समय हो गया है. टीका जरूर आ गया है, पर वह भी बीमारी दूर भगाने का पक्का इलाज नहीं है.

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वीरवार, 15 अप्रैल तक देश में  तकरीबन 10 करोड़ डोज दिए जा चुके थे, पर जिस तरह से कोरोना के केस बढ़ने लगे हैं, अभी भी यह कोशिश नाकाफी लग रही है.

यह दूसरी लहर तब तेजी से लौटी है, जब लगने लगा था कि अब कोरोना पर काबू पाना ज्यादा मुश्किल नहीं होगा और लोगों को रोजगार पाने में आसानी होगी. लेकिन बड़ेबड़े शहरों में लगे रात के कर्फ्यू ने लोगों खासकर उस गरीब कामगार तबके की सांसें अटका दी हैं, जो रोज कुआं खोद कर पानी पीता है. वह दोबारा शहर छोड़ कर अपने गांव जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा और जो लोग चले भी जाएंगे, उन्हें फिर भुखमरी का सामना करना पड़ेगा. इस बार कोई सोनू सूद उन की मदद करेगा, इस शक है. हां, ऐसे लोगों को लूटने वालों की लार जरूर टपकने लगेगी.

अमेरिका की एक संस्था की बात मानें, तो पिछले एक साल में कोरोना महामारी के चलते भारत में रोजाना  725 रुपए से 1,450 रुपए की कमाई करने वाले 3.20 करोड़ लोग मध्यम आय वर्ग से निम्न आय वर्ग में चले गए हैं. इतना ही नहीं, रोज तकरीबन 150 या उस से कम रुपए कमाने वाले निम्न आय वर्ग का आंकड़ा बढ़ कर 7.5 करोड़ तक पहुंच गया है.

कोरोना महामारी दोबारा बड़ी गंभीर समस्या के रूप में उभरी है. इस का असर देश की माली हालत पर पड़ेगा. लोगों में निराशा, हताशा और असुरक्षा की भावना जागेगी, खुद के प्रति भी और सरकार के प्रति भी.

ऐसे बदलेगी बिहार की सियासत

भारतीय जनता पार्टी ने बिहार में 17 साल बाद शाहनवाज हुसैन को अहमियत देने का काम किया है. इस के जरीए वह मुसलिमों को बताना चाहती है कि उन की चिंता भी उसे है.

दूसरी तरफ बिहार में नीतीश कुमार पर राष्ट्रीय जनता दल हमलावर है. उन को ‘निर्लज्ज कुमार’ का नाम दे कर 5 साल तक विधानसभा के बौयकौट का नारा दिया गया है. कमजोर पड़ते नीतीश कुमार को भाजपा भी बिहार से दूर करना चाहती है.

राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नया नाम ‘निर्लज्ज कुमार’ रख दिया है. तेजस्वी यादव का कहना है कि बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक की चर्चा के दौरान विधानसभा में मौजूद विधायकों को जिस बुरी तरह से मारापीटा गया और उन की बेइज्जती की गई, उसे शब्दों में बताया नहीं जा सकता?है.

तेजस्वी यादव ने ये बातें अपने ट्विटर हैंडिल पर बताईं. उन्होंने लिखा, ‘महिला विधायक अनीता देवी नौनिया के पैर में चोट लगी. उन का ब्लाउज पकड़ कर घसीटा गया. उन के साथ बताई न जाने वाली बदसुलूकी की गई. जिस समय विधानसभा में यह हो रहा था, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के चरणों में बैठ कर आनंद ले रहे थे.’

तेजस्वी यादव ही नहीं, दूसरे कई विधायकों ने भी इस बात की शिकायत की. विधायक सत्येंद्र कुमार ने कहा, ‘एसपी ने मेरी छाती पर पैर रख कर बुरी तरह से मारा.’

इस घटना के विरोध में तेजस्वी यादव ने कहा, ‘अगर सीएम नीतीश कुमार ने घटना पर माफी नहीं मांगी, तो वे 5 साल तक विधानसभा का बौयकौट करेंगे.’

किसी विरोधी नेता द्वारा 5 साल तक विधानसभा के बौयकौट का यह पहला मामला है. वैसे, पिछले कुछ सालों में विधानसभा में मारपीट की तमाम घटनाएं हुई हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा में भी ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, पर किसी विपक्षी नेता द्वारा 5 साल तक विधानसभा का बौयकौट पहली बार हो रहा है.

राजद और बिहार सरकार के बीच विधानसभा में मारपीट का मामला नाक का सवाल बन गया है. राजद के नेता तेजस्वी यादव ही नहीं, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव भी इस घटना को ले कर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए अपने ट्विटर पर लिखते हैं, ‘लोहिया जयंती के दिन कुकर्मी आदमी कुकर्म नहीं करेगा, तो कुकर्मी कैसे कहलाएगा?’

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लालू प्रसाद यादव अपने ट्विटर पर आगे लिखते हैं, ‘जब पुलिस विधानसभा में घुस कर विधायकों को मार सकती है, तो सोचिए, जब उन के घर पर जाएगी, तो क्या करेगी.’

पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने भी अपने ट्विटर पर लिखा, ‘तुम ने आज जो चिनगारी भड़काई है, वह कल तुम्हारे काले सुशासन को जला कर राख कर देगी.’

इस घटना को ले कर तमाम ऐसे वीडियो भी सोशल मीडिया पर दिखे, जिन में पुलिस महिला विधायक को घसीट कर ले जा रही थी.

सरकार की तरफ से दावा किया  गया कि राजद के विधायक विधानसभा के अध्यक्ष को विधानसभा में आने से रोक रहे थे. विधायकों के हमले से उन्हें बचाने के लिए ऐसा किया गया.

तेजस्वी यादव और लालू परिवार के विरोध पर बिहार के मुख्यमंत्री ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. नीतीश कुमार की खामोशी की वजह यह है कि वे इस घटना को तूल नहीं देना चाहते हैं, जबकि तेजस्वी यादव इस बात को मुद्दा बनाना चाहते हैं. आने वाले दिनों में यह मुद्दा बिहार में राजनीति का नया अखाड़ा बनेगा.

क्या है बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधयेक 2021

बिहार विधानसभा में मारपीट की घटना का कारण राजद के विधायकों द्वारा बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधयेक 2021 का विरोध किया जाना था. राजद और बाकी विपक्ष जैसे कांग्रेस और वाम दलों का कहना है कि नीतीश सरकार इस विधेयक की आड़ में पुलिस को विशेष अधिकार दे रही है, जिस के बाद पुलिस बिना किसी वारंट के किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है.

विधायक इस बात का विरोध कर रहे थे, जिस की वजह से विधानसभा में पुलिस बुलानी पड़ी और मारपीट की यह घटना घट गई, जिसे बिहार की राजनीति में एक काला अध्याय माना जा रहा है. यह केवल काला अध्याय ही नहीं है, बल्कि विपक्षी दलों को एकजुट करने का जरीया भी बन गया है.

बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक 2021 को ले कर राजद, कांग्रेस और वाम दल नीतीश सरकार पर हमलावर हैं. नीतीश कुमार की सहयोगी भारतीय जनता पार्टी भी अलग से पूरे मामले को देख रही है. उस के लिए भी यह अवसर की तरह से है.

जैसेजैसे विपक्षियों द्वारा नीतीश कुमार पर हमले होंगे, उन की पकड़ बिहार से कम होगी. इस से भाजपा को नीतीश कुमार को हाशिए पर धकेलना आसान होता जाएगा.

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शाहनवाज बन सकते हैं भाजपा का नया चेहरा

बिहार की राजनीति में शाहनवाज हुसैन को ले कर अटकलों का दौर चल रहा है. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि शाहनवाज हुसैन बिहार में भाजपा का नया चेहरा होंगे. इन के जरीए वह मुसलिम तबके में अपनी पैठ बनाने का काम करेगी.

मुसलिम तबका बिहार में यादव समाज के साथ मिल कर भाजपा को विस्तार नहीं करने दे रहा है. राजद को कमजोर करने के लिए भी जरूरी है कि मुसलिम तबके को उस से अलग किया जाए. शाहनवाज हुसैन ऐसे नेता हैं, जिन से यह काम हो सकता है.

साल 2001 में 32 साल की उम्र में केंद्र की अटल सरकार में शाहनवाज हुसैन को उड्डयन मंत्री बनाया गया था. तब वे भाजपा के ‘पोस्टर बौय’ कहे  जाते थे.

शाहनवाज हुसैन की इमेज कट्टर मुसलिम की नहीं है. उन का प्रेम विवाह रेनू नामक लड़की से हुआ था, जो उन के साथ पढ़ती थी.

साल 2004 में जब वे किशनगंज सीट से अपना चुनाव हार गए, तो भाजपा की राजनीति में हाशिए पर चले गए. साल 2009 में वे सांसद बने, पर भाजपा में उन की अहमियत को कम कर दिया गया.

तकरीबन 17 साल बाद शाहनवाज हुसैन को केंद्र की राजनीति से बिहार भेजा गया. यहां नीतीश सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया.

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भाजपा की मुख्यधारा में शाहनवाज हुसैन की वापसी को नए नजरिए से देखा जा रहा है. बिहार में शाहनवाज हुसैन को मंत्री बनाने के लिए विधानपरिषद का सदस्य बनाया गया. इस के बाद वे उद्योग मंत्री बनाए गए. उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया.

शाहनवाज हुसैन के बहाने भाजपा मुसलिमों को यह संदेश देने का काम कर रही है कि वह उन की चिंता करती है. दिल्ली में मोदीशाह की जोड़ी बनने के बाद शाहनवाज हुसैन को पहली बार अहमियत दी जा रही है.

शाहनवाज हुसैन के बारे में यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि केंद्र में उन की उपयोगिता दिख नहीं रही थी, जिस के चलते उन्हें बिहार भेजा गया?है.

Mother’s Day Special- मां का साहस: भाग 1

मां उसे सम झा रही थीं, ‘‘दामादजी सिंगापुर जा रहे हैं. ऐसे में तुम नौकरी पर जाओगी तो बच्चे की परवरिश ठीक से नहीं हो पाएगी. वैसे भी अभी तुम्हें नौकरी करने की क्या जरूरत है. दामादजी भी अच्छाखासा कमा रहे हैं. तुम्हारा अपना घर है, गाड़ी है…’’

‘‘तुम साफसाफ यह क्यों नहीं कहती हो कि मैं नौकरी छोड़ दूं. तुम भी क्या दकियानूसी बातें करती हो मां,’’ वनिता बिफर कर बोली, ‘‘इतनी मेहनत और खर्च कर के मैं ने अपनी पढ़ाई पूरी की है, वह क्या यों ही बरबाद हो जाने दूं. तुम्हें मेरे पास रह कर गुडि़या को नहीं संभालना तो साफसाफ बोल दो. मेरी सास भी बहाने बनाने लगती हैं. अब यह मेरा मामला है तो मैं ही सुल झा लूंगी. भुंगी को मैं ने सबकुछ सम झा दिया है. वह यहीं मेरे साथ रहने को राजी है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है वनिता…’’ मां उसे सम झाने की कोशिश करते हुए बोलीं, ‘‘अब हम लोगों की उम्र ढल गई है. अपना ही शरीर नहीं संभलता, तो दूसरे को हम बूढ़ी औरतें क्या संभाल पाएंगी. सौ तरह के रोग लगे हैं शरीर में, इसलिए ऐसा कह रही थी. बच्चे की सिर्फ मां ही बेहतर देखभाल कर सकती है.’’

‘‘मैं फिर कहती हूं कि मैं ने इतनी मेहनत से पढ़ाईलिखाई की है. मु झे बड़ी मुश्किल से यह नौकरी मिली है, जिस के लिए हजारों लोग खाक छानते फिरते हैं और तुम कहती हो कि इसे छोड़ दूं.’’

‘‘मांजी का वह मतलब नहीं था, जो तुम सम झ रही हो…’’ शेखर बीच में बोला, ‘‘अभी गुडि़या बहुत छोटी है. और मांजी अपने जमाने के हिसाब से बातें समझा रही हैं. गुडि़या की चंचल हरकतें बढ़ती जा रही हैं. 2 साल की उम्र ही क्या होती है.’’

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‘‘तुम तो नौकरी छोड़ने के लिए बोलोगे ही… आखिर मर्द हो न.’’

‘‘अब जो तुम्हारे जी में आए सो करो…’’ शेखर पैर पटकते हुए वहां से जाते हुए बोला, ‘‘परसों मु झे सिंगापुर के लिए निकलना है. महीनेभर का कार्यक्रम है. बस, मेरी गुडि़या को कुछ नहीं होना चाहिए.’’

‘‘मेम साहब, मैं बच्ची देख लूंगी…’’ भुंगी पान चबाते हुए बीच में आ कर बोली, ‘‘आखिर हमें भी तो अपना पेट पालना है.’’

‘‘तुम्हें अपने बनावसिंगार से फुरसत हो तब तो तुम बच्ची को देखोगी…’’ वनिता की सास बीच में आ कर बोलीं, ‘‘हम जरा बीमार क्या हुए, फालतू हो गए. घर में सौ तरह के काम हैं. सब तरफ से भरेपूरे हैं हम. एक बच्चे की कमी थी, वह भी पूरी हो गई. हमें और और क्या चाहिए.’’

‘‘देखिए बहनजी, आप ही इसे सम झाएं कि ऐसे में कोई जरूरी तो नहीं कि यह नौकरी करे…’’ अब वे वनिता की मां से मुखातिब थीं, ‘‘4 साल तो नौकरी कर ली. अब यह  झं झट छोड़े और चैन से घर में रहे.’’

‘‘अब मैं आप लोगों के मुंह नहीं लगने वाली. मैं साफसाफ कहे देती हूं कि मैं नौकरी नहीं छोड़ने वाली. मु झे भी अपनी जिंदगी जीने का हक है. मु झे भी अपनी आजादी चाहिए. मैं आम औरतों की तरह नहीं जी सकती.’’

‘‘मु झे भी तो काम और पैसा चाहिए मेम साहब…’’ भुंगी खीसें निपोर कर बोली, ‘‘आप निश्चिंत हो कर चाकरी करो. मैं भी चार रोटी खा कर यहीं पड़ी रहूंगी. घर और गुडि़या को देख लूंगी.’’

‘‘भुंगी, मु झे तुम पर पूरा यकीन है…’’ वनिता चहकते हुए बोली, ‘‘ये पुराने जमाने के लोग हैं. आगे की क्या सोचेंगे. मु झ में हुनर है, तो मु झे इस का फायदा मिलना ही चाहिए. औफिस में मेरा नाम और इज्जत है. आखिर नाम कमाना किस को अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘पता नहीं, कहां से आई है यह भुंगी…’’ वनिता की मां उस की सास से बोलीं, ‘‘न पता, न ठिकाना. मु झे इस के लक्षण भी ठीक नहीं दिखते. पता नहीं, क्या पट्टी पढ़ा दी है कि इस वनिता की तो मति मारी गई है.’’

भुंगी इस महल्ले में  झाड़ूपोंछे का काम करती थी. उस ने वनिता के घर में भी काम पकड़ लिया था. अब वह वनिता की भरोसेमंद बन गई थी. काम के बहाने वह ज्यादातर यहीं रह कर वनिता की हमराज भी बन गई थी. वनिता उसे पा कर खुश थी.

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घर में बूढ़े सासससुर थे, मगर वे अपनी ही बीमारी के चलते ज्यादा चलफिर नहीं पाते थे. शेखर अपने संस्थान के खास इंजीनियर थे. सिंगापुर की एक नामी यूनिवर्सिटी में एक महीने की खास ट्रेनिंग के लिए उन का चयन किया गया था. इस ट्रेनिंग के पूरा होने के बाद उन की डायरैक्टर के पद पर प्रमोशन तय था. मगर उन का नन्ही सी गुडि़या को छोड़ कर जाने का मन नहीं हो रहा था. वे उस की हिफाजत और देखभाल के लिए आश्वस्त होना चाहते थे, इसलिए वनिता ने अपनी मां को यहां बुलाना चाहा था. मगर मां ने साफतौर पर मना कर दिया तो वनिता को निराशा हुई. अब वह भुंगी के चलते आश्वस्त थी कि सबकुछ ठीकठाक चल जाएगा.

दसेक दिन तो ठीकठाक ही चले. भुंगी के साथ गुडि़या हिलमिल गई थी और उस के खानपान और रखरखाव में अब कोई परेशानी नहीं थी.

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