Manohar Kahaniya: जब थाना प्रभारी को मिला प्यार में धोखा- भाग 1

सौजन्य- मनोहर कहानियां

मां पद्मावती ने मौके पर मौजूद रहे लोगों से पूछताछ के बाद रूपा की हत्या करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उस के शव को पंखे से लटकाया गया था. पंखे और पलंग की दूरी काफी कम थी. शव पंखे से तो लटका था, लेकिन घुटने पलंग पर मुड़े हुए थे. गले में रस्सी के 2 निशान थे. शरीर के कुछ अंगों पर जगहजगह दाग भी थे. शव ध्यान से देखने से लग रहा था कि उस के हाथों को पकड़ा गया था. घुटने पर भी मारने के निशान थे. उस के कपड़े भी आधेअधूरे थे.

रूपा की मौत के मामले में साहिबगंज के जिरवाबाड़ी ओपी थाने के एसआई सतीश सोनी के बयान के आधार पर केस दर्ज कर लिया गया. पुलिस ने जांचपड़ताल के लिए रूपा का क्वार्टर भी सील कर दिया.

मामला एक पुलिस अधिकारी की मौत का था. दूसरे यह संदिग्ध भी था. इसलिए साहिबगंज के उपायुक्त ने कार्यपालक दंडाधिकारी संजय कुमार और परिजनों की मौजूदगी में शव का मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने और इस की वीडियोग्राफी कराने के आदेश दिए. उपायुक्त के आदेश पर पुलिस ने 3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से रूपा के शव का पोस्टमार्टम कराया.

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पोस्टमार्टम कराने के बाद पुलिस की ओर से साहिबगंज के पुलिस लाइन मैदान में रूपा तिर्की को अंतिम विदाई दी गई. सशस्त्र पुलिस की टुकड़ी ने उन्हें सलामी दी.

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एसपी अनुरंजन किस्पोट्टा, साहिबगंज के एसडीपीओ राजेंद्र दुबे, बरहरवा के एसडीपीओ प्रमोद कुमार मिश्रा और राजमहल के एसडीपीओ अरविंद कुमार के अलावा अनेक थानाप्रभारियों तथा पुलिस जवानों ने फूलमालाएं अर्पित कर रूपा को श्रद्धांजलि दी. बाद में रूपा का शव परिवार वालों को सौंप दिया गया.

रूपा का शव 5 मई की सुबह रूपा के पैतृक गांव रातू के काठीटांड पहुंचा. उसी दिन रूपा का अंतिम संस्कार कर दिया गया. शवयात्रा में गांव के लोगों के साथ राज्यसभा सांसद समीर उरांव, विधायक बंधु तिर्की, रांची की महापौर आशा लकड़ा, महिला आयोग की आरती कुजूर, प्रमुख सुरेश मुंडा सहित अनेक जनप्रतिनिधि भी शामिल हुए, लेकिन पुलिस और प्रशासन का कोई बड़ा अधिकारी वहां नहीं पहुंचा.

सीबीआई जांच की उठी मांग

बात 3 मई, 2021 की है. शाम को करीब 7 बजे का समय रहा होगा. सबइंसपेक्टर मनीषा कुमारी ड्यूटी पूरी करने के बाद अपने क्वार्टर पर पहुंची. उस का क्वार्टर अपनी बैचमेट एसआई रूपा तिर्की के क्वार्टर के सामने था. रूपा तिर्की झारखंड के साहिबगंज जिला मुख्यालय पर महिला थानाप्रभारी थीं और मनीषा साहिबगंज में ही नगर थाने में तैनात थी.

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मनीषा जब क्वार्टर पर पहुंची, तो रूपा का कमरा अंदर से बंद था. इस का मतलब था कि रूपा अपनी ड्यूटी से आ चुकी थी. रूपा का हालचाल पूछने के लिए मनीषा ने उस के रूम का दरवाजा खटखटाया, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं मिला. कई बार की कोशिशों के बाद भी जब रूपा ने कमरा नहीं खोला तो मनीषा सोच में पड़ गई. वैसे भी शाम के करीब 7 ही बजे थे. इसलिए सोने का समय भी नहीं हुआ था.

मनीषा ने आसपास के लोगों को बुला कर एक बार फिर रूपा को आवाज देते हुए जोर से दरवाजा खटखटाया, लेकिन इस बार भी कमरे के अंदर से कोई हलचल नहीं  हुई. आखिर मनीषा ने दरवाजा तोड़ने का फैसला किया.

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लोगों की मदद से दरवाजा तोड़ कर मनीषा जब कमरे के अंदर घुसी तो रूपा पंखे के एंगल से एक रस्सी के सहारे लटकी हुई थी. यह देख कर मनीषा हैरान रह गई. उस ने एक पुलिस अफसर के तौर पर रूपा की नब्ज टटोल कर देखी, लेकिन उस में जीवन के कोई लक्षण नजर नहीं आए.

एकबारगी तो वह सोच में पड़ गई कि क्या करे और क्या नहीं करे? फिर उस ने सब से पहले एसपी साहब को सूचना देना उचित समझा. सूचना मिलने पर साहिबगंज एसपी अनुरंजन किस्पोट्टा, एसडीपीओ राजेंद्र दुबे और दूसरे पुलिस अफसर मौके पर पहुंच गए.

अगले भाग में पढ़ेंएसआईटी को सौंपी गई जांच

जरा सी आजादी- भाग 1: नेहा आत्महत्या क्यों करना चाहती थी?

‘‘आखिर क्या कमी है जो तुम्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता. दिमाग तो ठीक है न तुम्हारा. तुम तो मुझे भी पागल कर के छोड़ोगी, नेहा. इतना समय नहीं है मेरे पास जो हर समय तुम्हारा ही चेहरा देखता रहूं.’’

एक कड़वी सी मुसकान चली आई नेहा के होंठों पर. बोली, ‘‘समय तो कभी नहीं रहा तुम्हारे पास. जब जवानी थी तब समय नहीं था, अब तो बुढ़ापा सिर पर खड़ा है जब अपने पेशे के शिखर पर हो तुम. इस पल तुम से समय की उम्मीद तो मैं कर भी नहीं सकती.’’

‘‘क्या चाहती हो? क्या छुट्टी ले कर घर बैठ जाऊं? माना आज बैठ भी गया तो कल क्या होगा. कल फिर तुम्हारा मन नहीं लगेगा, फिर क्या करोगी? कोई ठोस हल है?’’

तौलिया उठा कर ब्रजेश नहाने चले गए. आज एक मीटिंग भी थी. नेहा ने उन्हें जरूरी तैयारी भी करने नहीं दी. वे समझ नहीं पा रहे थे आखिर वह चाहती क्या है. सब तो है. साडि़यां, गहने, महंगे साधन जो भी उन की सामर्थ्य में है सब है उन के घर में. अभी इकलौते बेटे की शादी कर के हटे हैं. पढ़ीलिखी कमाऊ बहू भी मिल चुकी है. जीवन के सभी कोण पूरे हैं, फिर कमी क्या है जो दिल नहीं लगता. बस, एक ही रट है, दिल नहीं लगता, दिल नहीं लगता. हद होती है हर चीज की.

जीवन के इस पड़ाव पर परेशान हो चुके हैं ब्रजेश. रिटायरमैंट को 3 साल रह गए हैं. कितना सब सोच रखा है, बुढ़ापा इस तरह बिताएंगे, उस तरह बिताएंगे. जीवनभर की थकान धीरेधीरे अपनी मरजी से जी कर उतारेंगे. आज तक अपनी इच्छा से जिए कब हैं? पढ़ाई समाप्त होते ही नौकरी मिल गई थी. उस के बाद तो वह दिन और आज का दिन.

पिताजी पर बहनों की जिम्मेदारी थी इसलिए जल्दी ही उन का सहारा बन जाना चाहते थे ब्रजेश. अपना चाहा कभी नहीं किया. पिता की बहनें और फिर अपनी बहनें… सब को निभातेनिभाते यह दिन आ गया. अपना परिवार सीमित रखा, सब योजनाबद्ध तरीके से निबटा लिया. अब जरा सुख की सांस लेने का समय आया है तो नेहा कैसी बेसिरपैर की परेशानी देने लगी है. नींद नहीं आती उसे, परेशान रहती है, अकेलेपन से घबराने लगी है. बारबार एक ही बात कहती है, उस का दिल नहीं लगता. उस का मन उदास होने लगा है.

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कुछ दिन के लिए मायके भी भेज दिया था उसे. वहां से भी जल्दी ही वापस आ गई. पराए घर में वह थोड़े न रहेगी सारी उम्र. उस का घर तो यह है न, जहां वह रहती है. कुछ दिन बहू के पास भी रहने गई. वह घर भी अपना नहीं लगा. वह तो बहू का घर है न, वह वहां कैसे रह सकती है.

रिटायरमैंट के बाद एक जगह टिक कर बैठेंगे तब शायद साथसाथ रहने के लिए बड़ा घर ले लें. अभी जब तक नौकरी है हर 3-4 साल के बाद उन्हें तो शहर बदलना ही है. उस शहर में आए मात्र  4 महीने हुए हैं. यह नई जगह नेहा को पसंद नहीं आ रही. नया घर ही मनहूस लग रहा है.

‘‘अड़ोसपड़ोस में आओजाओ, किसी से मिलोजुलो. टीवी देखो, किताबें पढ़ो. अपना दिल तो खुद ही लगाना है न तुम्हें, अब इस उम्र में मैं तुम्हें दिल लगाना कैसे सिखाऊं,’’ जातेजाते ब्रजेश ने समझाया नेहा को.

हर रोज यही क्रम चलता रहता है. जीवन एकदम रुक जाता है जब ब्रजेश चले जाते हैं, ऐसा लगता है हवा थम गई है, इतनी भारी हो कर ठहर गई है कि सांस भी नहीं आती. छाती पर भी हवा ही बोझ बन कर बैठ गई है.

बेमन से नहाई नेहा, तौलिया सुखाने बालकनी में आई. सहसा आवाज आई किसी की.

‘‘नमस्कार, भाभीजी. इधर देखिए, ऊपर,’’ ताली बजा कर आवाज दी किसी ने.

नेहा ने आगेपीछे देखा, कोई नजर नहीं आया तो भीतर जाने लगी.

‘‘अरेअरे, जाइए मत. इधर देखिए न बाबा,’’ कह कर किसी ने जोर से सीटी बजाई.

सहसा ऊपर देखा नेहा ने. चौथे माले पर एक महिला खड़ी थी.

‘‘क्या हैं आप भी. इस उम्र में मुझ से सीटी बजवा दी. कोई अड़ोसीपड़ोसी देखता होगा तो क्या कहेगा, बुढि़या का दिमाग घूम गया है क्या. नमस्कार, कैसी हैं आप?’’

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हंस रही थी वह महिला. नेहा से जानपहचान बढ़ाना चाह रही थी. कहां से आए हैं? नाम क्या है? पतिदेव क्या काम करते हैं?

‘‘आप से पहले जो इस फ्लैट में थे उन से मेरी बड़ी दोस्ती थी. उन का तबादला हो गया. आप से रोज मिलना चाहती हूं मैं, आप मिलती ही नहीं. वाशिंग मशीन पिछली बालकनी में रख लीजिए न. इसी बहाने सूरत तो नजर आएगी.

‘‘अरे, कपड़े धोते समय ही किसी का हालचाल पूछा जाता है. सारा दिन बोर नहीं हो जातीं आप? क्या करती रहती हैं? आज क्या कर रही हैं?’’

‘‘कुछ भी तो नहीं. आप आइए न मेरे घर.’’

‘‘जरूर आऊंगी. आज आप आ जाइए. एक बार बाहर तो निकल कर देखिए, आज मेरे घर किट्टी पार्टी है. सब से मुलाकात हो जाएगी.’’

कुछ सोचा नेहा ने. किट्टी डालना ब्रजेश को पसंद नहीं है. बिना किट्टी डाले वह कैसे चली जाए. चलती किट्टी में जाना अच्छा नहीं लगता.

‘‘आप मेरी मेहमान बन कर आइए न. इधर से घूम कर आएंगी तो फ्लैट नं. 22 सी नजर आएगा. चौथी मंजिल. जरूर आइएगा, नेहाजी.’’

हाथ हिला दिया नेहा ने. मन ही नहीं कर रहा था. साड़ी निकाल कर रखी थी कि चली जाएगी मगर मन माना ही नहीं, सो, वह नहीं गई. वह दिन बीत गया और भी कई दिन. एक शाम वही पड़ोसन दरवाजे पर खड़ी नजर आई.

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‘‘आइए,’’ भारी मन से पुकारा नेहा ने.

‘‘अरे भई, हम तो आ ही जाएंगे जब आ गए हैं तो. आप क्यों नहीं आईं उस दिन? मन नहीं घबराता क्या? एक तरफ पड़ेपड़े तो रोटी भी जल जाती है. उसे भी पलटना पड़ता है. आप कहीं बाहर नहीं निकलतीं, क्या बात है? सामने निशा से पूछा था मैं ने, उस ने बताया कि आप उस से भी कभी नहीं मिलीं.’’

आने वाली महिला का व्यवहार नेहा को इतना अपनत्व भरा लगा कि सहसा आंखें भर आईं. रोटी भी एक ही तरफ पड़ेपड़े जल जाती है तो वह भी जल ही तो गई है न. क्या फर्क है उस में और एक जली रोटी में. जली रोटी भी कड़वी हो जाती है और वह भी कड़वी हो चुकी है. हर कोई उस से परेशान है.

राहुल गांधी के समक्ष “प्रधानमंत्री” पद!

राहुल गांधी के जन्मदिवस पर यह पहली बार हुआ कि देशव्यापी स्तर पर उनके व्यक्तित्व और कार्यशैली पर चर्चा हुई यह अपने आप में एक अनोखी और महत्वपूर्ण बात है कि राहुल गांधी को जन्मदिवस पर इस दफा जिस तरीके से उन्हें नोटिस में लिया गया वह यह बता गया कि आगामी समय में राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री पद के सशक्त दावेदार हैं.

जैसा कि हम सभी जानते हैं राहुल गांधी ने 19 जून को 51 वर्ष पूरे किए और बावनवें वर्ष की देहरी पर पांव रखा है. सुबह से ही राहुल गांधी के जन्मदिन पर सोशल मीडिया में चर्चा का दौर शुरू हो गया, लोगों ने यह खुलकर कहना शुरू कर दिया कि जिस तरीके से वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी असफलताओं से गिर गए हैं और एक ऐसे चक्र व्यूह में फंस गए हैं उससे निकल पाना अब मुश्किल जान पड़ता है. ऐसे में आखिर देश का नेतृत्व कौन सा व्यक्ति कर सकता है. इसमें लगभग लोगों की यही राय थी कि राहुल गांधी की चाहे विपक्ष के लोग कितने ही मजाक उड़ा कर उनकी छवि खराब करने का प्रयास करें मगर उन में बहुत सारी खुशियां भी है. जिस तरीके से उन्होंने सादगी और मानवता का बार-बार परिचय दिया है वह यह बताता है कि वह  दिल के साफ है, यही कारण है कि लोगों दिलों में राहुल गांधी अब राज करने लगे हैं.

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यह माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा  चुनाव में जब भाजपा चारों खाने चित हो जाएगी तो राहुल गांधी के नेतृत्व में केंद्र में सरकार बनेगी और प्रधानमंत्री बन कर राहुल गांधी देश को एक सशक्त नेतृत्व दे सकते हैं.

दरअसल, राहुल गांधी ने बारंबार यह जाहिर किया है कि वे देश और देश की माटी यहां के जन-जन से इस तरीके से वाकिफ हो चुके हैं यहां के माहौल को जिस नवाचार के साथ उन्होंने आत्मसात किया है वैसा नेतृत्व दूसरी राजनीतिक दल में कहीं दिखाई नहीं देता.

विरोध और लोगों के दिलों में जगह!

धीरे-धीरे इस बात का भी खुलासा हो चुका है कि विपक्ष अर्थात भारतीय जनता पार्टी और उसकी अनेक संस्थाओं के सोशल मीडिया कर्मियों ने राहुल गांधी के खिलाफ सोची-समझी रणनीति के तहत उन्हें बार-बार पप्पू का कहकर देश के जनमानस में उन्हें एक बेचारा शख्स बना करके यह जताया कि देश को एक सशक्त नेतृत्व की आवश्यकता है.

देश को नरेंद्र दामोदरदास मोदी जैसे 56 इंच के व्यक्ति की आवश्यकता है जो देश के भीतर और देश के बाहर दोनों जगह पर देश के आत्म सम्मान को ऊंचाई देकर  देश  को समझ सके और अच्छा कर सके.

लोग सोशल मीडिया के  प्रपंच में फंस करके राहुल गांधी के अच्छाइयों को न देखते हुए सिर्फ बताई गई बिना तथ्य की बातों के आधार पर मन, भावना बना कर कांग्रेस और राहुल को हाशिए पर डालते चले गए.

धीरे धीरे नरेंद्र मोदी विफलताओं के शिखर की ओर बढ़ रहे हैं तो लोगों को सच्चाई का एहसास हो रहा है कि किस तरीके से सोशल मीडिया में  सफेद झूठ बता करके उन्हें भ्रमित किया गया था. परिणाम स्वरूप अब राहुल गांधी के प्रति लोगों की संवेदना जाग रही है. लोगों को उनकी अच्छाइयां दिख रही हैं. उनके जन्मदिवस पर जिस तरीके से लोगों ने उनके प्रधानमंत्री पद संभालने की अपेक्षा के साथ स्नेह पूर्वक याद किया वह अपने आप में अत्यंत महत्वपूर्ण कहा जा सकता है. और यह बात आने वाले समय में सच भी सिद्ध हो सकती है.

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चुनौतियां ही चुनौतियां हैं!

मगर, इसके बावजूद राहुल गांधी के सामने चुनौतियां कम नहीं है. एक तरफ कांग्रेस के भीतर वे चुनौतियों से घिरे हुए हैं तो दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व किस तरीके से इन दिनों राजनीति की एक नई एबीसीडी लिख रहा है उसमें एक सीधे सरल सादगी पसंद राहुल गांधी को चक्रव्यू भेद पाना मुश्किल दिखाई देता है. क्योंकि आज की राजनीति इतनी गंदली हो चुकी है उसमें साम, दाम, दंड, भेद से आगे का खेल खेला जाता है.

कांग्रेस अपने सिद्धांतों के साथ राजनीति के मैदान में लोगों से वोट मांगती है मगर आज की राजनीति उससे आगे निकल कर के एक ऐसे खतरनाक और भयावह रास्ते पर बढ़ गई है जिसमें कोई नैतिकता, कोई धर्म नहीं बचता. इसके अलावा भी राहुल के समक्ष बहुत सारी चुनौतियां हैं जिसमें महत्वपूर्ण है उनका आत्मविश्वास के साथ भाजपा के साथ चुनाव में उतरना, कांग्रेस का नेतृत्व का मामला भी एक बड़ा प्रश्न है जिसे सबसे पहले सुलझाना होगा, इसके साथ ही जिस तरीके से कांग्रेस के नेता पार्टी को छोड़कर जा रहे हैं या फिर उन्हें लालच देकर के आकर्षित किया जा रहा है यह भी राहुल गांधी के लिए एक अनसुलझा सवाल है.

इन सब के बावजूद जिस तरीके से सोशल मीडिया में राहुल गांधी को उनके जन्मदिवस पर लोगों ने इसमें पूर्वक और एक सम्मान के भाव के साथ याद किया वह बताता है कि आने वाला समय राहुल गांधी का है.

एक अदद “वधू चाहिए”, जरा ठहरिए !

आप की उम्र चाहे जितनी हो, मगर आप इस दुनिया में कब और कहां ठगी के शिकार हो जाते हैं,  कौन जानता है? प्रश्न है सजग रहने का जागृत रहने का और अपनी आंखें खुले रखने का.

इस आलेख में हम आपको एक ऐसे विधुर की कहानी बताने जा रहे हैं जो रिटायरमेंट के बाद जब दूसरी शादी की सोचने लगा. आगे बढ़ा तो किस तरह ठगों ने उसे लाखों रुपए का चूना लगा दिया.यह सच्ची कहानी है छत्तीसगढ़ के बिलासपुर शहर की. जहां शादी का विज्ञापन देखकर एक महिला व उसके कथित फर्जी रिश्तेदारों ने मिलकर देश की नवरत्न कंपनी कहे जाने वाले सार्वजनिक संस्थान एनटीपीसी के रिटायर डिप्टी मैनेजर से 8 लाख 86 हजार रुपए की ठगी कर ली.

जब दूसरे विवाह की बात चली तो वधू पक्ष ने अपनी आर्थिक स्थिति खराब बता मकान बेचने का झांसा दिया और अपने खाते में पैसे जमा करा लिए. मामला की सरकंडा थाने में प्राथमिक रिपोर्ट दर्ज कराई गई . ठगी गीतांजली सिटी फेस-2 निवासी नरेंद्र कुमार सूद पिता स्व.राजेंद्र कुमार 61 वर्ष के साथ हुई. आप एनपीसीसी में डिप्टी मैनेजर के पद से रिटायर हुए हैं.उनकी पत्नी का निधन हो गया है। उन्होंने दूसरी शादी करने की इच्छा से अखबार में वधु की आवश्यकता के लिए विज्ञापन प्रकाशित करवाया.

15 मार्च 2020 को यह प्रकाशित हुआ था और उसी रात 8 बजे श्रीमान सूद के मोबाइल पर एक नंबर से कॉल आया. जब उन्होंने कॉल रिसीव किया तो दूसरी तरफ से महिला ने अपना नाम अन्नू सिंह बताया और प्रकाशित विज्ञापन के संदर्भ देकर  शादी करने की इच्छा जताई और बताया घर में मुखिया और कर्ताधर्ता के रूप में आंटी हैं जिनका नाम एलिजाबेथ सिंह हैं. अन्नू सिंह ने कहा कि उसका एक बड़ा भाई आदित्य सिंह उर्फ आदि हैं. आदित्य सिंह ने  भी कहा कि उसे यह रिश्ता बहुत पसंद हैं.

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अन्नू सिंह ने 17 मार्च 2020 को अपना फोटो वाट्सअप से भेजा और बताया कि आंटी व भईया को रिश्ता पसंद है. कुछ दिनों के बाद जीत के बाद जब आत्मीयता बढ़ी तो अन्नू सिंह व आदित्य सिंह ने कॉल कर कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है अगर उन्हें 50 लाख रुपए एकमुश्त दे देगें तो वे इसे किसी व्यापार में निवेश कर तीन माह के भीतर पूरा पैसा 15 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटा देगें. बड़ी रकम होने की वजह से नरेंद्र कुमार सूद ने असमर्थता जताई और इनकार कर दिया.

इसके बाद ठगों ने दूसरा जाल फेंका, आदित्य सिंह ने कहा कि यदि पैसा उधारी में नहीं दे रहे हैं तो उनका पैतृक मकान खरीद लीजिए और कहा कि यदि वे उनका मकान खरीद लेते हैं तो उनके साथ रहने का मौका मिलेगा.  बिलासपुर में अकेले रहते हो इससे अच्छा होगा कि भोपाल में आकर रहो पैतृक मकान का पता अशोका गार्डन थाने के पीछे, मकान न0 556/234, गली नंबर दो, भोपाल बताया गया.

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सुखमय जीवन की चाहत

पत्नी के निधन के पश्चात अक्सर लोग दूसरा विवाह कर लेते हैं. इसमें कोई बुराई भी नहीं है. मगर सावधानी जरूर आवश्यक है. इस सच्चे अपराधिक घटनाक्रम में भी अगर नरेंद्र कुमार थोड़ी भी सजगता रखते तो लाखों रुपए का चूना नहीं लग पाता. आगे जब बातचीत हुई तो महिला ने खुद को तलाकशुदा और गरीब बताते हुए बताया कि दहेज के चलते उसकी दूसरी शादी नहीं हो पा रही है. अन्नू सिंह ने अपना फोटो वॉट्सएप किया. फिर आदित्य सिंह ने कॉल किया और कहा कि लॉकडाउन हटते ही शादी कराएंगे. कुछ दिन बाद फिर कॉल कर बिजनेस के लिए 50 लाख रुपए मांगे गए.

इतनी बड़ी रकम एकमुश्त देने से नरेंद्र सूद ने इनकार कर दिया. इस पर आरोपियों ने फिर कॉल कर कहा कि उधारी नहीं दे सकते तो हमारा भोपाल में अशोका गार्डन के पीछे स्थित पैतृक मकान खरीद लीजिए.

उसकी कीमत एक करोड़ रुपए है, पर 70 लाख रुपए में आपके नाम कर देंगे. इससे हम सबको भी साथ रहने का मौका मिल जाएगा. इस पर फिर नरेंद्र सूद ने एकमुश्त रकम देने से मना किया तो आरोपियों ने उनसे किस्त में रुपए देने की बात कही.

आरोपियों ने ठगी की शुरुआत बड़ी चालाकी से करते हुए वॉट्सएप के जरिए भेजे 50 रुपए के स्टांप पर मकान का सौदा तय किया. उनकी बातों में आकर नरेंद्र ने उनकी आंटी के बताए बैंक खाते में पहले 16 हजार, फिर 45 हजार, 50 हजार, 1.5 लाख, 3 लाख और फिर 3.25 लाख रुपए सहित कुल 8.86 लाख रुपए खाते में ट्रांसफर कर दिए.

इसके बाद एक दिन आदित्य ने फिर कॉल कर बताया कि अन्नू कोरोना संक्रमित हो गई है. इसलिए बातचीत संभव नहीं है.

आरोपियों में से एक महिला ने खुद को तलाकशुदा और गरीब बताते हुए शादी की इच्छा जाहिर की थी. शादी तय होने पर ठगों ने अपना मकान बेचने की बात कही और फिर किस्तों में रुपए खाते में ट्रांसफर करा लिए. और जब ठगे जाने का नरेंद्र कुमार को एहसास हुआ तो बहुत समय हो चुका था.

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जम्मू-कश्मीर: नरेंद्र दामोदरदास मोदी का अवैध खेला!

कश्मीर राज्य के 14 प्रमुख राजनीतिक पार्टियों को संवाद के लिए 24 जून को शाम 3 बजे आमंत्रित किया गया है. और इसके साथ ही देशभर में  कश्मीर और लद्दाख में राजनीतिक हालात सामान्य करने और चुनाव के मसले पर चर्चा प्रारंभ हो गई है.

यह माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी की सरकार पश्चिम बंगाल में चुनाव पूरी तरह से हार जाने के पश्चात अब जम्मू कश्मीर में चुनाव करवाकर किसी तरह सत्ता हासिल करने के साथ, देश में यह संदेश देना चाहती है कि भाजपा अभी भी अपनी पूरी ताकत के साथ देश को नेतृत्व देने में सक्षम है.

जम्मू कश्मीर और लद्दाख को लेकर के जिस तरीके से भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार की एक रणनीति है, जिस पर हम इस रिपोर्ट में आगे चर्चा करेंगे. मगर यह समझ लें की भाजपा और केंद्र सरकार ने कदम दर कदम यहां काम किया है. अपनी गहरी घुसपैठ  जनाधार बनाने का प्रयास किया है. इससे उसे आत्मविश्वास है कि अब वह समय आ गया है जब चुनाव में भाजपा को आसानी से विजय मिलने की उम्मीद है.

और दोनों हाथों में लड्डू!

जम्मू कश्मीर और लद्दाख को तीन भागों में विभाजित करने के बाद लगभग 2 वर्ष तक जम्मू कश्मीर से लेकर देश और अंतरराष्ट्रीय मंच पर  केंद्र सरकार ने लगातार यह चर्चा बनाए रखने में कामयाबी प्राप्त की कि भारत सरकार का यह कदम उसके संवैधानिक अधिकारों में आता है. यही कारण है कि संयुक्त राष्ट्र संघ हो या अमेरिका अथवा चीन सभी इस मसले पर लगभग खामोश रहे. एक समय जम्मू कश्मीर में हालात अवश्य चिंता जनक बन गए मगर केंद्र ने उस पर इस तरह काबू किया कि वह भी अपने आप में आश्चर्यजनक रूप से सफलीभूत हुआ है. नरेंद्र दामोदरदास मोदी और गृहमंत्री अमित शाह लगातार जम्मू कश्मीर और लद्दाख के मसले पर आगे बढ़ते ही चले गए हैं जहां तक वह जमीनी स्तर पर आम लोगों को और निचले स्तर के जनप्रतिनिधियों को विश्वास दिला करके उन्हें मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास हुआ है. त्रिस्तरीय चुनाव संपन्न हुए हैं सरपंचों से गृह मंत्री ने सीधे बात की है.

यह सब बातें केंद्र और भाजपा की सरकार की, एक रणनीति रही है और सफल हुई है. ऐसे में अब वह समय आ गया है जब सरकार वहां चुनाव करवा करके भाजपा को एक मजबूत अमलीजामा पहनाना चाहती है, यही कारण है कि चुनावी प्रक्रिया प्रारंभ करने की शुरुआत के रूप में जून की 24 तारीख को सभी राजनीतिक दलों के साथ प्रधानमंत्री और कुछ महत्वपूर्ण मंत्री आमने-सामने बातचीत करके यह संदेश देना चाहते हैं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनाव होने जा रहे हैं.

अब हालात ऐसे हैं कि अगर 14 दलों का गुपकार संगठन चुनाव में शिरकत करता है प्रधानमंत्री की बैठकों में बातचीत करता है अथवा नहीं करता है दोनों ही स्थितियों में बाजी भाजपा और केंद्र सरकार के हाथों में होगी.

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लोकतंत्र और देश दुनिया में संदेश

केंद्र सरकार देश और दुनिया में यह संदेश देने जा रही है कि जम्मू कश्मीर और लद्दाख में शांति व्यवस्था काबू में है.  देश के लोकतांत्रिक  संवैधानिक अधिकारों के बहाली के साथ चुनाव संपन्न करवाए जा रहे हैं. वर्तमान समय में जिस तरीके से जम्मू कश्मीर के स्थानीय नेता फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती आदि नाराज बैठे हुए हैं अगर यह चुनाव में शिरकत करते हैं तो धीरे-धीरे माहौल बदलने लगेगा. दरअसल, अगरचे  कश्मीर में भाजपा सत्तासीन नहीं भी होती है तो बाजी उसके ही हाथों में ही होगी चुंकि पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म होने के पश्चात केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में उपराज्यपाल सत्ता के संवैधानिक प्रमुख होते हैं और चुनी हुई सरकार ऐसा कुछ भी नहीं कर सकती जो उसके अपने मन का एकतरफा हो.

इस तरह कुल मिलाकर  केंद्र सरकार की यह राजनीतिक चौपड़ बिछी हुई बिसात, जम्मू कश्मीर के नेताओं के लिए ना उगलते बनेगी ना निगलते.

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ऐसे में पाकिस्तान के पेट में यह मरोड़ उठनी शुरू हो गई है कि जम्मू कश्मीर में चुनाव का यह आगाज मोदी सरकार की कुछ ऐसी अवैध परियोजना है जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ को रोकना चाहिए?

पाठकों! क्या आपको लगता है कि जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार कुछ ऐसा अवैध करने जा रही है, जो नहीं होना चाहिए. क्या राजनीतिक खेला और दांव-पेंच है यह हम आपके चिंतन के लिए छोड़ते हैं.

मां-बाप ने 10,000 रुपए में बेचा बच्चा

आज के वक्त में जो मां- बाप ऐसा करते हैं उन्हें कलयुगी मां-बाप कहना ही ठीक होगा. बच्चें तो मां- बाप की जान होते हैं… कौन ऐसे मां-बाप होंगे जो अपने बच्चों को पैसों के लिए बेच दें लेकिन ऐसा हुआ. दरअसल ये घटना एक- दो दिन पहले की ही है और ये घटना ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर की है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिस महिला ने बच्चे को खरीदा है उस  महिला को बच्चे को खरीदने और अवैध रूप से गोद लेने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है. पुलिस के मुताबिक अब तक बच्चे के माता-पिता का कुछ पता नहीं चला है. खारवेल नगर थाने के प्रभारी इंस्पेक्टर अरुण कुमार स्वैन ने कहा कि पुलिस ने एक एनजीओ के बताने पर बच्चे को रेस्क्यू किया. उन्होंने आगे बताया कि जिस माता-पिता ने अपने बच्चे को बेचा है, वे कूड़ा बीनते हैं. वहीं बच्चे को खरीदने वाली महिला सुमेदिन बीबी भी कूड़ा बीनने का काम करती हैं और बच्चे के जन्म के बारे में वो पहले से ही जानती थी. वो संतानहीन थी, इसलिए उसने उस दंपती को बच्चे को बेचने को कहा. बच्चे के पिता ने 10,000 रुपए देने को कहा,और फिर उस बच्चे का सौदा किया गया.

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एनजीओ ने बताया कि शुरु में  पूछताछ के बाद उन्हें यह पता चला कि बच्चे के पिता ने अपने ड्रग्स और शराब की लत को पूरा करने के लिए ये सौदा किया और अपने बच्चे को मात्र 10,000 में बेच दिया. सोच कर रूह कांप जाए कि भला कौन अपने बच्चे के साथ ऐसा करता है.

आपको ये जानकर और भी हैरानी होगी कि वो बच्चा मात्र 10 दिन का ही था. भुवनेश्वर में पुलिस ने एक एनजीओ के सहयोग से एक बेचे गए नवजात बच्चे को रेस्क्यू किया है. साथ ही पुलिस ने 10 दिन के बच्चे को खरीदने के लिए 42 साल की एक कूड़ा बीनने वाली महिला को गिरफ्तार किया है. रेस्क्यू के बाद बच्चे को भुवनेश्वर के सुभद्रा महताब सेवा सदन भेजा गया. बच्चे को 14 जून को खरीदा गया था.बच्चे के बेचे जाने की जानकारी पुलिस को देने वाले  एनजीओ बेनुधर सेनापति ऑफ चाइल्डलाइन ने बताया कि माता-पिता अपने बच्चे को बेचना चाहते थे, क्योंकि उनके पास सड़क पर गुजर-बसर करने को पैसे नहीं थे, एनजीओ ने बताया कि शुरुआती पूछताछ के बाद उन्हें यह पता चला कि बच्चे के पिता ने अपने ड्रग्स और शराब की लत को पूरा करने के लिए ये सौदा किया.

हालांकि ओडिशा में बच्चों को बेचे जाने की  ये घटना कोई पहली बार नहीं है. खबरों के मुताबिक 1980 और 90 के दशक में गरीबी के कारण कई लोग बच्चों की देखभाल नहीं कर पाते थें तो वो अपने बच्चे को बेच देते थे. ये घटनाएं तब भी होती थीं और आज भी हो रही हैं. पश्चिम ओडिशा के कालाहांडी और बोलांगीर जिले बच्चों को बेचे जाने की घटनाओं से भरे पड़े हैं. एक घटना तो काफी फेमस हुई थी और उस घटना ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया था.

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सन् 1985 में 2 साल की एक आदिवासी लड़की को मात्र 40 रुपए में बेच दिया गया था और उस वक्त ये घटना राज्य की गरीबी को लेकर केंद्र  में चर्चा का विषय बन गया थी. हालांकि सिर्फ ओडिशा ही नहीं बल्कि ऐसे कई राज्य हैं जहां गरीबी के कारण या पैसे के लालच के कारण बच्चों को बेच दिया जाता है या तो लावारिस छोड़ दिया जाता है. अभी कुछ दिन पहले ही एक खबर आई थी एक कुछ ही दिन की बच्ची को उसकी कुंडली के साथ एक बक्से में बंद कर के नदी में छोड़ दिया था. वो बच्ची एक नाविक परिवार को मिली और अब वो उसे गोद लेने के लिए अदालत से गुहार लगा रहे हैं.

शायद आज एक बार फिर से गरीबी और साथ ही बच्चे को बेचने का विषय केंद्र में उठाना चाहिए और सरकार को इस पर कोई कड़ा रुख अपनाना चाहिए ताकि बच्चों का भविष्य खराब ना हो क्योंकि यहां पर ज्यादातर लड़कीयां ऐसी होती हैं जिन्हें लावारिस छोड़ देने पर उन्हें कोठे या विदेशों में बेच दिया जाता है. ये चिंता का विषय है आखिर क्या है उनका भविष्य ?

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भोजपुरी एक्टर Pawan Singh के घर पर पुलिस ने बढ़ाई सुरक्षा, जानिए क्या है पूरा मामला

भोजपुरी सिनेमा के पौपुलर एक्टर पवन सिंह अपनी एक्टिंग और गाने की वजह से सुर्खियों में छाये रहते हैं. फैंस को भी उनके गानों का बेसब्री से इंतजार रहता है. इसी बीच खबर आ रही है कि पवन सिंह का एक फैन भोजपुर जिला मुख्यालय आरा स्थित उनके घर पर पहुंच गया. और उसने कुछ ऐसा किया जिसे सुनकर आप भी हैरान हो जाएंगे. आइए बताते है, क्या है पूरा मामला?

बताया जा रहा है कि एक शख्स ने अपने हाथ पर किसी नुकीली चीज से अभिनेता का नाम खुदवा लिया और अभिनेता से मिलने दिल्ली से उनके घर पहुंचा. जब तक पवन सिंह उस इंसान से नहीं मिले, तब तक वो घर के बाहर ही खड़ा रहा.

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खबरो के अनुसार पवन सिंह के घर से कुछ लोग बाहर आए और उस फैन से मिले. बाद में पवन सिंह ने अपने फैन से मुलाकात की और उसे समझाया कि वो इस तरह का जोखिम भरा काम न करें. उस फैन ने पवन सिंह के साथ फोटो भी खिचवाई.

ऐसे में पुलिस उनके आवास पर पहुंची और स्थिति का जायजा लिया. कोविड-19 संक्रमण के चलते पवन सिंह अपना ज्यादातर क्वालिटी टाइम घर पर ही बिता रहे हैं.

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वर्कफ्रंट की बात करे तो  एक्टर  ने हाल ही में एक दिलचस्प गाना ‘डॉक्टर साहब मना किया है’ यूट्यूब पर रिलीज किया है. इस गाने को दर्शकों की ओर से शानदार प्रतिक्रिया मिली है. अभिनेता ने वीडियो में अपने अमेजिंग डांस मूव्स से भी फैंस का दिल जीत लिया. इसे रिकेश पांडे ने लिखा है और संगीत प्रियांशु सिंह ने दिया है.

Pratyusha Banerjee के बॉयफ्रेंड Rahul Raj Singh ने पेरेंट्स पर लगाए गंभीर आरोप, दिया ये शॉकिंग बयान

छोटे पर्दे की फेमस एक्ट्रेस प्रत्यूषा बनर्जी ने 1 अप्रैल 2016  में दुनिया को अलविदा कह दिया. ऐसे में उनके फैंस, फैमिली और फ्रेड्स को जबरदस्त झटका लगा था. प्रत्यूषा मौत की खबर सुनने के बाद हर कोई हैरान था.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार प्रत्यूषा बनर्जी की आत्महत्या का जिम्मेदार उनके बॉयफ्रेंड राहुल राज सिंह को ठहराया गया था. अब इसी बीच राहुल राज सिंह ने प्रत्युषा के माता-पिता पर गंभिर आरोप लगाए हैं.

 

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एक इंटरव्यू के मुताबिक राहुल ने कहा है कि उन्होंने प्रत्यूषा को नहीं मारा बल्कि उसके माता-पिता के लालच ने उसे मारा था. इतना ही नहीं राहुल ने प्रत्यूषा की करीबी दोस्त काम्या पंजाबी  और विकास गुप्ता  को उनकी मौत के मामले में उनका नाम लेने के लिए फटकार लगाई है.

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खबरों की माने तो राहुल ने कहा है कि मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं जब अदालत मेरा नाम इस मामले से हटाएगी. मुझे पता है कि मैं दोषी नहीं हूं.

 

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उन्होंने आगे कहा कि मैंने प्रत्यूषा को नहीं मारा, उसके माता-पिता के लालच ने उसे मार डाला. वह उनकी बढ़ती मांगों को पूरा नहीं कर पाई थी. मैंने उसे बचाने की कोशिश की ना कि उसे मारने की.

 

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रिपोर्ट्स के मुताबिक राहुल ने ये कहा कि मैं उस दिन को कभी नहीं भूल सकता. जिस तरह से प्रत्यूषा के दोस्तों विकास गुप्ता और काम्या पंजाबी ने कोशिश की प्रत्यूषा की मौत के लिए मुझे जिम्मेदार ठहराया जाए. वे जानते हैं कि मैं दोषी नहीं हूं. वे यह भी जानते हैं कि उन्होंने सारा तमाशा क्यों किया.

क्या ‘बालिका वधू’ फेम अविका गौर का है कोई सीक्रेट चाइल्ड? जानें क्या है सच

‘बालिका वधू’ फेम अविका गौर (Avika Gor) और मनीष रायसिंघन (Manish Raisinghan) के रिश्‍ते को लेकर अक्सर कई तरह की खबरे सुनने को मिलती है. बिते दिनों ये खबर आई थी कि अविका गौर बिन ब्याही मां बन गई हैं. बताया जा रहा था कि अविका और मनीष का एक बच्‍चा है. जिसे दोनों ने दुनिया से छिपाकर रखा है. तो वहीं अब काफी लंबे समय बाद अविका गौर ने इस पूरे मामले में चुप्‍पी तोड़ी है. आइए बताते हैं क्या कहा एक्ट्रेस ने?

एक इंटरव्‍यू के मुताबिक अविका गौर ने ‘सीक्रेट चाइल्‍ड’  को लेकर चुप्‍पी तोड़ी है. उन्होंने कहा कि ‘यह नामुमकिन है, सवाल ही नहीं उठता! एक्ट्रेस ने कहा कि ऐसे कई खबरे देखने को मिली, जिसमें कहा गया कि हमने बच्‍चा छुपा के रखा है. मनीष रायसिंघन और मैं आज भी बहुत करीब हैं.

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एक्ट्रेस ने आगे कहा कि वह हमेशा मेरी जिंदगी में एक खास स्‍थान पर रहेंगे. मेरी जिंदगी के सफर में 13 साल की उम्र से लेकर अब तक, वह मेरे सबसे करीबी दोस्‍त रहे हैं.

खबरों के मुताबिक अविका ने आगे कहा कि मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है. जानकारी के लिए बता दूं कि मनीष उम्र में मुझसे 18 साल बड़े हैं. मैंने देखा है कि उनके अंदर आज भी एक बच्‍चा है. इस उम्र में उनसे यह सब सीखने की जरूरत है. आज भी जब मुझसे लोग पूछते हैं कि क्‍या मेरे और उनके बीच कुछ चल रहा है तो मेरा यही जवाब होता है कि यार,  मेरे पापा से थोड़े छोटे हैं वो.

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अविका ने ये भी बताया कि शुरुआती दौर में हमें ऐसी अफवाहां से वह थोड़ी परेशान हो गई थीं. यहां तक कि हमने आपसी सहमति से दो हफ्ते तक बात नहीं करने का भी फैसला किया था.

 

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तो वहीं मनीष रायसिंघन ने 2020 में ही संगिता चौहम से शादी कर ली. एक इंटरव्‍यू के मुताबिक उन्होंने कहा था कि उनकी पत्‍नी संगीता को भी  ऐसा लगता था कि अविका और वह कपल हैं. मनीष रायसिंघन ने अपनी पत्नी को समझाया कि वो दोनों सिर्फ अच्‍छे दोस्‍त हैं.  तब संगिता ने उनसे कहा था कि अविका के साथ उनकी जैसी कैमिस्‍ट्री है, किसी को भी यह गलतफहमी हो जाएगी.

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Manohar Kahaniya: चित्रकूट जेल साजिश- भाग 3

सौजन्य- मनोहर कहानियां

सन 2014 में जेल से छूटने के बाद मुकीम काला ने अपने गैंग के साथ 15 फरवरी, 2015 को सहारनपुर के तनिष्क ज्वैलरी शोरूम में इंसपेक्टर की वरदी में 10 करोड़ की डकैती डाली थी. उसी दरमियान उस ने तीतरो में 2 सगे भाइयों की हत्या और सहारनपुर में सिपाही राहुल ढाका की हत्या कर दी थी.

इस वारदात के बाद यूपी एसटीएफ ने मुकीम काला और उस के शार्प शूटर साबिर जंधेड़ी को 20 अक्तूबर, 2015 को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने उस से गिरफ्तारी के दौरान एके-47 भी बरामद की थी.

मुन्ना बजरंगी का करीबी था मेराज

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बदमाशों के खिलाफ सख्त काररवाई का संदेश दिया तो इस के बाद गैंग के कई बदमाश ढेर कर दिए गए. मुकीम काला को पिछले दिनों ही हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिला कारागार से सहारनपुर जिला कारागार में निरुद्ध किया गया था. मुकीम काला 7 मई, 2021 को चित्रकूट जेल आया था.

मुकीम काला के साथ ही उत्तर प्रदेश का एक कुख्यात अपराधी मेराज भी चित्रकूट जेल में अंशुल द्वारा की गई गोलीबारी में मारा गया था.

मेराज अली बसपा के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी की गैंग का सदस्य था. हालांकि उस की नजदीकी मुन्ना बजरंगी से ज्यादा थी. इसी साल 20 मार्च, 2021 को वाराणसी जेल से चित्रकूट जेल में उस का ट्रांसफर हुआ था.

मूलरूप से गाजीपुर निवासी मेराज बनारस के जैतपुर थाने का हिस्ट्रीशीटर था. मुख्तार अंसारी हो या मुन्ना बजरंगी, दोनों की गैंगों के लिए असलहों का इंतजाम मेराज ही करता था. वह फरजी दस्तावेजों पर असलहों का लाइसैंस बनवाने का भी मास्टरमाइंड था.

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मेराज मुन्ना बजरंगी के लिए अदालतों में पैरवी करने से ले कर गवाहों को तोड़ने का भी काम करता था. अक्तूबर 2020 में जैतपुरा पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया था. तब फरजी तरीके से बनवाए गए 9 लाइसेंसी पिस्तौल और रायफल की जानकारी हुई थी.

इस वारदात के बाद जब पुलिस ने चित्रकूट जेल में मारे गए तीनों कैदियों के शवों का पोस्टमार्टम कराया तो पता चला कि मेराज के सिर में एक और सीने में 2 गोलियां लगी थीं. जबकि मुकीम के गोलियों से छलनी बदन में 13 गोलियों के निशान थे.

2 जेलर आए शक के दायरे में

उस के शरीर में करीब 5 गोलियां मिलीं. इधर अंशुल के शरीर में करीब 20 फायर आर्म इंजरी मिलीं, वह पुलिस की गोलियों से मारा गया था.

जेल गोलीकांड की जांच करने वाले दल ने जेल में उस दिन ड्यूटी पर तैनात जेल वार्डनों के साथ मौके पर मौजूद बंदियों, अंशुल द्वारा बंधक बनाए गए कैदियों से भी पूछताछ की. जेल के सभी सीसीटीवी फुटेज कब्जे में लिए. कैदियों की बातचीत के लिए जेल में लगे पीसीओ का पूरा रिकौर्ड कब्जे में लिया और पूरी जेल की तलाशी कराई.

पुलिस को शूटआउट के बाद आस्ट्रिया मेड ग्लोक पिस्तौल व एक खाली मैग्जीन जेल से बरामद हुई. ये वही पिस्तौल थी, जिस से अंशुल ने गोलियां चलाई थीं.

यह पिस्टल छोटे असलहों में सब से घातक हथियार माना जाता है. यही वजह है कि 9 एमएम के इस ग्लोक पिस्तौल की सिविल यानी पब्लिक को सप्लाई प्रतिबंधित है. यह सेना और पुलिस के जवानों को दी जाती है. सवाल उठता है कि सरकारी सप्लाई वाला यह हथियार गैंगस्टर अंशुल को कहां से मिला?

पुलिस जांच में एक और भी बात अभी तक सामने आई है. पता चला कि अंशुल को जिस हाई सिक्योरिटी बैरक में रखा गया था, वहां की सुरक्षा की जिम्मेदारी डिप्टी जेलर पीयूष और अरविंद की थी.

दोनों जेलर बिना किसी बड़े कारण के 10 मई को अचानक छुट्टी पर चले गए थे. ये 13 मई को लौट कर आए थे. माना जा रहा है कि दोनों जेलरों की छुट्टी के दौरान ही जेल में पिस्तौल पहुंचाई गई थी.

जांच में यह भी सामने आया है कि चित्रकूट के पहाड़ी थानाक्षेत्र के परसौजा गांव का निवासी मनोज इस जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है.

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मनोज जेल में मादक पदार्थों की सप्लाई से ले कर कैदियों से बैठकी के रुपए तक वसूलने का काम करता है. वह जेल अधिकारियों का खास है. मनोज अंशुल की खातिरदारी में लगा रहता था.

पुलिस जांच में सामने आया है कि अंशुल जेल में एंड्रायड फोन इस्तेमाल करता था. अंशुल के एनकाउंटर के बाद यह फोन भी पुलिस के हाथ लगा. लेकिन जांच अफसर और लोकल पुलिस इस की जानकारी छिपा रही हैं.

दरअसल, इस वारदात को अंजाम देने के लिए अंशुल ने किसकिस से संपर्क किया. इस की जानकारी फोन में इस्तेमाल हो रहे सिम की काल डिटेल्स से मिल सकती है.

जेल वार्डन जगमोहन पर प्रश्नचिह्न

काल डिटेल्स निकलने पर कई प्रभावशाली लोगों की संलिप्तता सामने आने के डर से फोन के बारे में अफसर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं.

चित्रकूट जेल शूटआउट मामले में जुटी जांच समिति के हाथ और भी कई अहम जानकारियां लगी हैं.

खुलासा हुआ है कि चित्रकूट जेल में जब अंशुल दीक्षित ने मेराज और मुकीम की हत्या के बाद 5 बंदियों को बंधक बनाया था तो एक जेल वार्डन जगमोहन, अंशुल से बातचीत कर सरेंडर करने को कह रहा था. यह वही जेल वार्डन जगमोहन था, जो बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या के समय भी मौजूद था.

अब यह महज इत्तफाक है या कोई बड़ी साजिश, इस की जांच में पुलिस और एजेंसियां जुटी हुई हैं. 14 मई को शूटआउट के बाद जब अंशुल दीक्षित को घेरा जा रहा था तो उस वक्त भी जगमोहन की वहां मौजूदगी कई सवाल उठाती है.

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चित्रकूट जेल के घटनाक्रम को देख कर अंदाजा लगाया जा रहा है कि जेल में हुई वारदात मुन्ना बजरंगी की तरह कौन्ट्रैक्ट किलिंग का मामला है. अंशुल को पता था कि मुन्ना की हत्या के बाद सुनील राठी पर कोई आंच नहीं आई थी.

इसी तरह अंशुल को शायद यह भरोसा दिलाया गया होगा कि मेराज और मुकीम को मार कर वह भी सुरक्षित बच जाएगा.

कोरोना काल में जब एक साल से ज्यादा का समय बीत जाने पर भी कैदियों की उन के परिजनों से मिलाई तक नहीं हो रही थी. ऐसे में अंशुल के पास घातक हथियार का पहुंचना और कुछ दिन पहले ही एक के बाद एक मेराज व मुकीम काला का इस जेल में आना साबित करता है कि साजिश के तार बहुत गहरे हैं.

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